Integrated Farming : नालंदा जिले की रहने वाली अनिता देवी ने कभी सोचा भी नहीं था कि समेकित खेती से उन की और उन के परिवार की दशा और दिशा ही बदल जाएगी. साल 2008 तक वे परंपरागत खेती करती रहीं और कई तरह की कठिनाइयों से जूझती रहीं. एक दिन उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी और मशरूम की खेती करने का मन बनाया. उन्होंने इस के लिए बाकायदा ट्रेनिंग ली और मशरूम का उत्पादन चालू कर दिया. मशरूम बीज उत्पादन, मछलीपालन, मुरगीपालन और मधुमक्खीपालन भी शुरू कर दिया.
समेकित खेती करने पर अनिता को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार दिया था. इस के अलावा साबौर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें नवाचार कृषक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.
छोटे से खेत से भी समेकित खेती कर के किसान अपने परिवार का बेहतर तरीके से लालनपालन कर सकते हैं. परंपरागत खेती के साथ मुरगीपालन, मछलीपालन, मधुमक्खीपालन व बीज उत्पादन आदि कर के किसान अपनी आमदनी को कई गुना ज्यादा बढ़ा सकते हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पिछले 5 सालों से उत्तर बिहार के मखाना किसानों को मखाने के साथसाथ सिंघाड़े की समेकित खेती करने के गुर सिखाने में लगा हुआ है. इस दौरान केंद्र ने इस प्रयोग पर करीब 25 लाख रुपए खर्च कर दिए, पर महज 23 हेक्टेयर जलक्षेत्र में ही समेकित खेती करने में कामयाबी मिल सकी है.
कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि अगर बिहार के सभी मखाना किसान एकसाथ समेकित खेती करें, तो उन की आमदनी में 2 गुना इजाफा हो सकता है.
फिलहाल प्रयोग के तौर पर दरभंगा जिले और उस के आसपास के 23 हेक्टेयर जलक्षेत्रों में मखाने के साथ मछली और सिंघाड़े की खेती की गई है. उत्तर बिहार के 13000 हेक्टेयर जलक्षेत्र में मखाने की खेती की जाती है. इन सभी तालाबों और पोखरों में समेकित खेती करने के लिए किसानों को जागरूक बनाया जा रहा है.
बिहार में कुल जलक्षेत्र 3 लाख 61 हजार हेक्टेयर में फैला हुआ है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना सेंटर और दरभंगा के मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों के ताजा शोध में यह बात उभर कर सामने आई है कि 1 हेक्टेयर जलक्षेत्र में अगर केवल मखाने की खेती की जाती है, तो प्रति हेक्टेयर 40000 रुपए की आमदनी होती है.
अगर इतने ही जलक्षेत्र में मखाने के साथ मछली और सिंघाड़े की खेती भी की जाए, तो आमदनी की रकम 80000 रुपए तक हो सकती है. यह आमदनी कुल लागत को निकालने के बाद होती है. प्रति हेक्टेयर जलक्षेत्र में मखाने की खेती करने के बाद अगर उस में मछलीपालन किया जाए तो 11000 रुपए और सिंघाड़ा लगाने पर 17000 रुपए का अतिरिक्त खर्च आता है.
बिहार सरकार ने समेकित खेती को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में शामिल कर रखा है. सरकारी दावा है कि समेकित खेती के जरीए 1 एकड़ खेत का मालिक भी खेती कर के अपने समूचे परिवार का पेट भर सकेगा और अपनी सुखसुविधाओं पर भी रकम खर्च कर सकेगा. जलजमाव वाले इलाकों में मछलीपालन के साथ बकरीपालन और मुरगीपालन भी किया जा सकता है.