बड़े काम का है बकरीपालन (Goat Farming) एप

बकरीपालन ऐसा व्यवसाय है, जिस में नुकसान होने की आशंका बहुत कम रहती है. किसान दूसरे कृषि कामों के साथ भी बकरीपालन शुरू कर सकते हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के तहत केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा ने एक ऐसा मोबाइल एप बनाया है, जहां किसानों को बकरीपालन से जुड़ी नस्लों, योजनाओं सहित पूरी जानकारी मिलती है.

बकरीपालन को किसानों की आय बढ़ाने का मुख्य स्रोत कहा जाता है, क्योंकि इसे शुरू करने में बहुत ज्यादा खर्च की जरूरत नहीं पड़ती. सरकार और वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार काम भी कर रहे हैं.

केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान यानी सीआईआरजी ने बकरीपालन एप बनाया है. बकरीपालन की शुरुआत के लिए यह मोबाइल बहुत ही कारगर साबित हो सकता है.

इस मोबाइल एप में भारतीय बकरी की नस्लों के बारे में काफी जानकारी दी गई है. साथ ही, यह भी बताया गया है कि आप अगर मांस के लिए ही बकरीपालन करना चाहते हैं, तो किन किस्मों का चुनाव करेंगे या रेशे और दूध के लिए कौन सी नस्लें बेहतर होंगी.

कृषि उपकरण और चारा उत्पादन

बकरी पालने का काम करते समय किनकिन कृषि उपकरणों की जरूरत पड़ती है या चारा उत्पादन कैसे करेंगे, बकरीपालन मोबाइल एप में इस की भी जानकारी दी गई है. चारा उत्पादन और खेत तैयार करने में कौनकौन से यंत्रों की जरूरत पड़ती है, इस के बारे में भी बताया गया है.

सेहत और आवास प्रबंधन

मोबाइल एप में बकरियों की सेहत की देखभाल कैसे करेंगे और उन के रहने के लिए आवास की व्यवस्था कैसे होगी, इस के बारे में भी बताया गया है.

एप के जरीए बकरियों में होनी वाली बीमारियों और उन की रोकथाम के बारे में बकरीपालक और अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं.

कैसे और कहां मिलेगा बकरीपालन एप

बकरीपालन एप के लिए सब से पहले गूगल प्ले स्टोर में जाना होगा. वहां जा कर टाइप करें सीआईआरजी गोट फार्ंिंमग. वहां यह एप मिल जाएगा. तकरीबन 80 एमबी का यह एक हिंदी, अंगरेजी, तमिल व तेलुगु भाषा में उपलब्ध है. एप खोलते ही भाषा को चुनने का विकल्प आता है.

बकरीपालन के लिए प्रशिक्षण

बकरीपालन कम लागत में बढि़या मुनाफा देता है. इसे बढ़ाने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकारें अपनेअपने लैवल पर कई योजनाएं भी चलाती हैं. जानकारों का कहना है कि बकरीपालन प्रशिक्षण लेने के बाद ही शुरू करना चाहिए.

प्रशिक्षण आप केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा, उत्तर प्रदेश से ले सकते हैं. यह संस्थान बकरीपालन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को ट्रेंड करता है.

राष्ट्रीय प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य बकरीपालकों को जागरूक करना और उन्हें नई तकनीक के बारे में बताना है. प्रशिक्षण के दौरान बकरीपालन के बारे में वैज्ञानिक तरीके से भी बताया जाता है.

प्रशिक्षण लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक होना जरूरी है. प्रशिक्षण 7 दिवसीय होता है. पंजीकरण शुल्क 5,500 रुपए है.

संस्थान में रुकने के लिए 50 रुपए प्रतिदिन और खाने का खर्चा प्रतिदिन 200 रुपए देना होगा. प्रशिक्षणार्थी अपने रहने व भोजन की व्यवस्था संस्थान से बाहर भी कर सकते हैं.

अधिक जानकारी के लिए दिए गए हैल्पलाइन नंबर 0565-2970999, 09682143097 पर संपर्क कर सकते हैं.

इस प्रशिक्षण में पशुपालकों को बकरियों को खरीदने से ले कर आवास प्रबंधन, आहार व्यवस्था, बीमारियों और उन्हें बेचने की पूरी जानकारी समझाई जाती है.

कैसे करें आवेदन

बकरीपालन के प्रशिक्षण के लिए केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा की वैबसाइट www./cirg.res.in है. इस वैबसाइट पर आप को अधिक जानकारी मिल जाएगी.

केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान का पता है : निदेशक, केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मकदूम, फरह, मथुरा (उत्तर प्रदेश) – 221166

बकरीपालन प्रशिक्षण : लाभकारी व्यवसाय

यह प्रशिक्षण कार्यक्रम संस्थागत विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना द्वारा वित्त पोषित स्नातक छात्रों के लिए आयोजित किया गया. कुल 30 छात्रों को डेरी एवं बकरीपालन में उद्यमिता विकास हेतु प्रशिक्षण प्रदान किया गया.

समापन समारोह के मुख्य अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में बताया कि राजस्थान दुग्ध उत्पादन एवं प्रति व्यक्ति उपलब्धता में अग्रणी राज्य है. यही एक कारण है कि राजस्थान में अकाल एवं अन्य आपदाओं के बावजूद राज्य में किसानों द्वारा आत्महत्याओं की घटनाएं नहीं होती हैं. राजस्थान में गाय एवं बकरीपालन किसानों की आय का मुख्य स्रोत है.

उन्होंने बताया कि डेरी एवं बकरीपालन प्रशिक्षण वर्तमान समय की मांग है, एवं इस में उद्यमिता की अपार संभावनाएं हैं.

Goatकार्यक्रम के दौरान डा. अनिल कुमार, प्रोफेसर, जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर ने गाय एवं बकरीपालन से आजीविका सुरक्षा एवं आय के सतत स्रोत के बारे में जानकारी दी.

इस अवसर पर डा. पीके सिंह, परियोजना प्रभारी संस्थागत विकास योजना, एवं डा. एसएस शर्मा, अधिष्ठाता राजस्थान कृषि महाविद्यालय ने अपने विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम की शुरुआत में डा. सिद्धार्थ मिश्रा, आयोजन सचिव एवं विभागाध्यक्ष, पशु उत्पादन विभाग ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी.

समारोह के दौरान डेरी एवं बकरीपालन पुस्तक का विमोचन कुलपति द्वारा अन्य अतिथियों, महाविद्यालय के विभागाध्यक्षों की उपस्थिति में किया गया.

कार्यक्रम के दौरान प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रतिभागी विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए. कार्यक्रम का संचालन डा. लतिका शर्मा ने किया एवं कार्यक्रम के अंत में डा. लक्ष्मण जाट ने समारोह में शामिल सभी सदस्यों का धन्यवाद ज्ञापित किया

बकरीपालन मोबाइल एप

बकरीपालन ऐसा व्यवसाय है, जिस में नुकसान होने की आशंका बहुत कम रहती है. किसान दूसरे कृषि कामों के साथ भी बकरीपालन शुरू कर सकते हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के तहत केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान ने एक ऐसा मोबाइल एप बनाया है, जहां किसानों को बकरीपालन से जुड़ी नस्लों, योजनाओं सहित पूरी जानकारी मिलती है.

बकरीपालन को किसानों की आय बढ़ाने का मुख्य स्रोत कहा जाता है, क्योंकि इसे शुरू करने में बहुत ज्यादा खर्च की जरूरत नहीं पड़ती. सरकार और वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार काम भी कर रहे हैं.

इसी दिशा में केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान यानी सीआईआरजी ने बकरीपालन एप बनाया है. बकरीपालन की शुरुआत के लिए ये मोबाइल बहुत ही कारगर साबित हो सकता है.

इस मोबइल एप में भारतीय बकरी की नस्लों के बारे में काफी जानकारी दी गई है. साथ ही, यह भी बताया गया है कि आप अगर मांस के लिए ही बकरीपालन करना चाहते हैं, तो किन किस्मों का चुनाव करेंगे या रेशे और दूध के लिए कौन सी नस्लें बेहतर होंगी.

कृषि उपकरण और चारा उत्पादन

बकरीपालन में किनकिन कृषि उपकरणों की जरूरत पड़ती है या चारा उत्पादन कैसे करेंगे, बकरीपालन मोबाइल एप में इस की भी जानकारी दी गई है. चारा उत्पादन और खेत तैयार करने में कौनकौन से यंत्रों की जरूरत पड़ती है, इस के बारे में भी बताया गया है.

सेहत और आवास प्रबंधन

मोबाइल एप में बकरियों की सेहत की देखभाल कैसे करेंगे और उन के रहने के लिए आवास की व्यवस्था कैसे होगी, इस के बारे में भी बताया गया है.

एप के जरीए बकरियों में होनी वाली बीमारियों और उन की रोकथाम के बारे में बकरीपालक जानकारी हासिल कर सकते हैं.

कैसे और कहां मिलेगा बकरीपालन एप

बकरीपालन एप के लिए सब से पहले गूगल प्ले स्टोर में जाना होगा. वहां जा कर टाइप करें सीआईआरजी गोट फार्ंिंमग एप मिल जाएगा. तकरीबन 80 एमबी का ये हिंदी, अंगरेजी, तमिल व तेलुगु में उपलब्ध है. एप खोलते ही भाषा को चुनने का विकल्प आता है.

Goatबकरीपालन सीखने के लिए प्रशिक्षण

बकरीपालन कम लागत में बढि़या मुनाफा देता है. इसे बढ़ाने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकारें अपनेअपने लैवल पर कई योजनाएं भी चलाती हैं. जानकारों का कहना है कि बकरीपालन प्रशिक्षण लेने के बाद ही शुरू करना चाहिए.

प्रशिक्षण आप केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा, उत्तर प्रदेश से ले सकते हैं. यह संस्थान बकरीपालन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को ट्रेंड करता है.

राष्ट्रीय प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य बकरीपालकों को जागरूक करना और उन्हें नई तकनीक के बारे में बताना है. प्रशिक्षण के दौरान वैज्ञानिक तरीके से बकरीपालन के बारे में भी बताया जाता है.

प्रशिक्षण लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक होना जरूरी है. प्रशिक्षण 7 दिवसीय होता है. पंजीकरण शुल्क 5,500 रुपए है.

संस्थान में रुकने के लिए 50 रुपए प्रतिदिन देना होगा. खाने का खर्चा प्रतिदिन 200 रुपए देना होगा. प्रशिक्षणार्थी अपने रहने व भोजन की व्यवस्था संस्थान से बाहर भी कर सकते हैं.

वैबसाइट www.cirg.res.in पर प्रशिक्षण की तिथि प्रसारित हो जाने की दशा में ही आप प्रशिक्षण के लिए आवेदन कर सकते हैं, अन्यथा आवेदनपत्र स्वीकार नहीं किए जाते हैं.

अधिक जानकारी के लिए दिए गए हैल्पलाइन नंबर 0565-2970999, 09682143097 पर संपर्क कर सकते हैं.

इस प्रशिक्षण में पशुपालकों को बकरियों को खरीदने से ले कर आवास प्रबंधन, आहार व्यवस्था, बीमारियों और उन को बेचने की पूरी जानकारी सम?ाई जाती है.

कैसे करें आवेदन

बकरीपालन प्रशिक्षण के लिए केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान की वैबसाइट www.cirg.res.in है. इस वैबसाइट पर आप को अधिक जानकारी मिल जाएगी.

केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान का पता है : निदेशक, केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मकदूम, फरह, मथुरा (उत्तर प्रदेश) – 221166

उन्नत बकरीपालन आदिवासी परिवारों के लिए लाभकारी व्यवसाय

अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना, अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर एवं विद्या भवन कृषि विज्ञान केंद्र, बड़गांव प्रथम के संयुक्त तत्वावधान में पांचदिवसीय बकरी पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. यह आयोजन 31 जुलाई से 4 अगस्त तक किया गया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के अवसर पर मुख्य अतिथि निदेशक प्रसार निदेशालय, मप्रकृप्रौवि, उदयपुर ने उन्नत बकरीपालन को लाभकारी व्यवसाय बताते हुए महिलाओं से कहा कि वे उन्नत नस्ल की बकरीपालन वैज्ञानिक तरीके से करें, उन के स्वास्थ्य का ध्यान रखें व समय पर टीकाकरण करें, तो यह बहुत ही फायदे का सौदा होगा.

यदि महिलाए बकरीपालन के साथसाथ मुरगीपालन, बटेरपालन व अन्य आयवर्धक गतिविधियां भी अपनाती हैं, तो उन्हें सिर्फ खेती पर ही निर्भर नहीं रहना पड़ता, बल्कि उन्हें आय के नए जरीए मिल जाते हैं.

Goatकार्यक्रम संयोजक डा. पीसी भटनागर ने महिलाओं को बकरीपालन के बारे में विस्तृत जानकारी के अतिरिक्त केंद्र की गतिविधियों की भी जानकारी दी और बताया कि महिलाओं को बकरियों की नस्ल सुधार के लिए 2 सिरोही नस्ल के बकरे जनजाति उपपरियोजना के अंतर्गत एक माह के भीतर दिए जाएंगे, जिस से आने वाली बकरियों की नस्ल में सुधार होगा. साथ ही, 2 समूहों में 2 औ औषधीय प्राथमिक उपचार कीट भी वितरित किए जाएंगे.

कार्यक्रम संयोजक डा. विशाखा बंसल ने बताया कि प्रशिक्षण में पंचायत समिति मावली के गांव गुड़ली की 20 महिलाओं को रोजगार के बेहतर साधन मुहैया करवाने के लिए विद्या भवन कृषि विज्ञान केंद्र, बड़गांव से जोड़ा गया. दोनों समूहों में अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष व सचिव के चुनाव किए गए और समूह को सर्वप्रथम रोजगार के विभिन्न आयामों से परिचित करवाने के लिए बड़गांव कृषि विज्ञान केंद्र से उन्नत बकरीपालन का प्रशिक्षण दिलवाया गया.

उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण के उपरांत सभी महिलाएं बकरीपालन के साथसाथ रोजगार के अन्य साधनों का प्रशिक्षण प्राप्त करेंगी. इस प्रशिक्षण में महिलाओं को विज्ञान केंद्र की विभिन्न इकाई जैसे बकरीपालन, डेरी इकाई एवं मुरगीपालन इकाई का अवलोकन करवाया गया. साथ ही, प्रशिक्षण में महिलाओं को बकरी की प्रमुख नस्लों, आवास, आहार, बीमारियों के लक्षण व उन की रोकथाम के उपाय, नर बकरे व मादा का चयन, टीकाकरण, विपणन इत्यादि के बारे में विस्तार से बताया गया.

बकरीपालन में नाबार्ड व सरकारी योजनाओं की भी जानकारी दी गई. यह जानकारी डा. शंकरलाल, मुकेश कुमार सुथार, डा. सविता मीणा, भाटी सा., डा. विजय माने, नीरज यादव, डा. निर्मल कुमार, डा. भगवत सिंह, डा. सिद्धार्थ मिश्रा एवं डा. जीवन राम जाट ने दी.