किसान दिवस पर खास (Special on Farmer’s Day): 24 फसलों को एमएसपी पर खरीदेगी हरियाणा सरकार

हिसार : किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांग को हरियाणा सरकार ने पूरा कर दिया है. अब प्रदेश सरकार किसानों की 24 फसलों को शतप्रतिशत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदेगीं.

ये विचार प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण, पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन मंत्री श्याम सिंह राणा ने व्यक्त किए. वे चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘किसान दिवस’ के मौके पर आयोजित समारोह में बतौर मुख्यातिथि प्रगतिशील किसानों एवं वैज्ञानिकों को संबोधित कर रहे थे.

नलवा के विधायक रणधीर पनिहार विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने बताया कि प्रदेश की सरकार ने किसानों की माली हालत को सुधारने के लिए एमएसपी की गांरटी दे दी है, जिस से किसानों की आय बढ़ाने मे मदद मिलेगी. किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के साथसाथ हमें मिट्टी की सेहत बनाए रखने के लिए खेत को भी आत्मनिर्भर बनाना होगा, जो कि संबंधित खेत में पराली प्रबधंन, फसल अवशेषों को उसी खेत में समाहित करने व अन्य जैविक प्रबधंन करने से संभव है.

उन्होंने प्रदेश के सभी जिलों में कृषि विज्ञान केंद्रों के जरीए किसानों को स्वस्थ पौध, बीज व फलदार पौधे उपलब्ध करवाने पर भी जोर दिया और किसानों से कहा कि प्रदेश सरकार ने किसानों की आय बढाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता सुनिश्चित करते हुए 24 फसलों पर एमएसपी की गांरटी देने के इस फैसले के साथ हरियाणा 24 फसलों को एमएसपी पर खरीदने वाला देश का पहला राज्य बन गया है.

उन्होंने आगे बताया कि प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए भी किसानों को जागरूक किया जा रहा है. खेती में अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक दवाओं के प्रयोग करने से जमीन खराब होती जा रही है.

उन्होंने यह भी कहा कि किसान को परंपरागत तरीके से खेती करने व रसायनों की सिफारिश के मुताबिक उपयोग करने की जरूरत है. किसानों को कृषि में आधुनिक तकनीकों को अपना कर अपनी आमदनी बढ़ानी चाहिए. किसानों को परंपरागत फसलों के साथसाथ पशुपालन, मत्स्यपालन, मधुमक्खीपालन और खुम्ब उत्पादन को भी प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि उन की माली हालत मजबूत हो सके.

जल, जमीन व पर्यावरण भावी पीढ़ी की धरोहर, उन्हें बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी : प्रो. बीआर कंबोज

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने किसानों से आह्वान किया कि जल, जमीन व पर्यावरण भावी पीढ़ी की धरोहर है, उन्हें बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है. हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों को सही तरीके से उपयोग करने की जरूरत है. साथ ही, हमें अपने लाभ के लिए उन का अत्यधिक दोहन करने से बचना चाहिए. कृषि में विविधीकरण को अपनाएं और उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाएं, ताकि विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा का मुकाबला किया जा सके.

उन्होंने आगे कहा कि हर हाथ को रोजगार उपलब्ध करवा कर ही हम भारत को साल 2047 तक स्वावलंबी, आत्मनिर्भर एवं विकसित राष्ट्र बना सकते हैं. विश्वविद्यालय द्वारा प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को कृषि से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण देने के साथसाथ संबंधित सामग्री भी उपलब्ध करवाई जा रही है, ताकि वे स्वरोजगार स्थापित कर के आत्मनिर्भर बन सकें. विश्वविद्यालय टिश्यू कल्चर तकनीक के माध्यम से गन्ने, केले व अन्य तरह की रोगरहित पौध विकसित कर के किसानों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. जल संसाधनों का बेहतर प्रयोग, वाटरशेड विकास, वर्षा जल संचय और उन्नत तकनीकों को अपना कर पानी का उचित प्रबंधन करने की बहुत ही जरूरत है.

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नलवा के विधायक रणधीर पनिहार ने सरकार द्वारा फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गांरटी देने पर प्रदेश सरकार का धन्यवाद किया. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे शोध के कामों एवं उन्नत किस्म के बीजों के कारण प्रदेश के कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है.

विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने सभी का स्वागत किया, जबकि कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया.

इस अवसर पर मुख्यातिथि श्याम सिंह राणा ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया. इस अवसर पर मुख्यातिथि ने विश्वविद्यालय व कृषि क्षेत्र में स्वरोजगार स्थापित करने वाले किसानों द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया. कार्यक्रम में किसान रत्न सम्मान गांव कनावली, जिला रेवाड़ी के प्रगतिशील किसान यशपाल को प्रदान किया गया. इस के अतिरिक्त प्रत्येक जिले के एक महिला एवं एक पुरुष प्रगतिशील किसान को भी सम्मानित किया गया.

मुख्यातिथि ने खरीफ एवं रबी फसलों की समग्र सिफारिशों पर आधारित पुस्तकों का भी विमोचन किया. इस अवसर पर प्रदेश के सभी जिलों के किसान खासतौर पर महिला किसान उपस्थित रहीं.

सुपर सीडर यंत्र (Super Seeder Machine) से नरवाई का निदान और बोआई एकसाथ

विदिशा : खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए शासन द्वारा कई योजनाएं लागू की गई हैं. किसानों को आधुनिक तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इसी कड़ी का उदाहरण सुपर सीडर है. सुपर सीडर ट्रैक्टर के साथ जुड़ कर काम करने वाला ऐसा यंत्र है, जो नरवाई की समस्या का निदान करने के साथसाथ बोआई भी करता है.

जो किसान धान की खेती के बाद गेहूं और चने की बोआई करते हैं, उन के लिए यह अत्यंत उपयोगी है. सुपर सीडर धान अथवा अन्य किसी भी फसल के डंठल, जिसे नरवाई कहा जाता है, उसे आसानी से छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिला देता है. इस के उपयोग से नरवाई को जलाने की जरूरत नहीं पड़ती. इस से एक ओर  पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण होता है, वहीं दूसरी ओर मिट्टी की ऊपरी परत के उपयोगी जीवाणुओं के जीवन की रक्षा भी होती है.

सुपर सीडर से नरवाई वाले खेत में सीधे गेहूं, चने अथवा अन्य फसल की बोनी की जा सकती है. इस के उपयोग से किसान को नरवाई के झंझट से मुक्ति मिलती है. जो नरवाई किसान के लिए समस्या है, उसे सुपर सीडर खाद के रूप में बदल कर वरदान बना देता है.

किसान कल्याण कृषि विकास विभाग के उपसंचालक केएस खपेडिया ने बताया कि जिले के कृषि अभियांत्रिकी विभाग में सुपर सीडर उपलब्ध है. शासन की योजनाओं के तहत किसान को सुपर सीडर खरीदने पर 40 फीसदी तक छूट दी जा रही है. सुपर सीडर सामान्य तौर पर एक घंटे में एक एकड़ क्षेत्र में नरवाई नष्ट करने के साथ बोआई कर देता है. गेहूं के बाद जिन क्षेत्रों में मूंग की खेती की जाती है, वहां भी सुपर सीडर बहुत उपयोगी है. हार्वेस्टर से कटाई के बाद गेहूं के शेष बचे डंठल को आसानी से मिट्टी में मिला कर सुपर सीडर मूंग की बोआई कर देता है.

सुपर सीडर के उपयोग से जुताई का खर्च बच जाता है. नरवाई नष्ट करने व जुताई और बोआई एकसाथ हो जाने से खेती की लागत घटती है. जिन किसानों के पास ट्रैक्टर हैं, उन के घर के शिक्षित युवा सुपर सीडर खरीद कर एक सीजन में एक लाख रुपए तक की कमाई कर सकते हैं.

नरवाई प्रबंधन (Weed Management) के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों से करें बोआई

उमरिया : फसलों की कटाई के बाद उन के जो अवशेष खेत में रह जाते हैं, उसे नरवाई या पराली कहते हैं. मशीनों से फसल की कटाई होने पर बड़ी मात्रा में नरवाई खेत में रहती है. इस को हटाने के लिए किसान प्रायः इसे जला देते हैं. इस से खेत की मिट्टी की उपरी परत में रहने वाले फसलों के लिए उपयोगी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं. मिट्टी में कड़ापन आ जाता है और इस की जलधारण क्षमता बहुत कम हो जाती है.

किसान नरवाई प्रबंधन के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग करें. इन उपकरणों के उपयोग से नरवाई को नष्ट कर के खाद बना दिया जाता है, जिस से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. नरवाई जलाने से मिट्टी को होने वाले नुकसान और धुएं से होने वाला पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता है.

किसान धान और अन्य फसलों की नरवाई खेत से हटाने के लिए सुपर सीडर और हैप्पी सीडर का उपयोग करें. ये उपकरण किसी भी ट्रैक्टर, जो 50 एचपी के हों, उस में आसानी से फिट हो जाते हैं. इन के उपयोग से एक ही बार में नरवाई नष्ट होने के साथसाथ खेत की जुताई और बोआई हो जाती है. इस से जुताई का खर्च और समय दोनों की बचत होती है. इस के अलावा किसान ट्रैक्टर में स्ट्राबेलर का उपयोग कर के नरवाई को खाद में बदल सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया और कृषि आभियांत्रिकी विभाग, उमरिया के संयुक्त तत्वावधान में गांव कछरवार में सुपर सीडर द्वारा गेहूं फसल की बोआई की गई. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एव प्रमुख डा. केपी तिवारी ने बताया कि धान की फसल यदि हार्वेस्टर से की जाती है, तो खेत में फसल के अवशेष रह जाते हैं, जिन की सफाई के बिना बोआई करना बहुत बड़ी चुनौती रहती है, लेकिन सुपर सीडर एक ऐसी मशीन है, जो बिना सफाई के आसानी से गेहूं या चना की बोआई कर सकती है.

उन्होंने आगे बताया कि नरवाई जलाने से मिट्टी में उत्पन्न होने वाले कार्बनिक पदार्थ में कमी आ जाती है. सूक्ष्म जीव जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिस के फलस्वरूप जैविक खाद का बनना बंद हो जाता है. भूमि की ऊपरी परत में ही पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं. आग लगाने के कारण ये पोषक तत्व जल कर नष्ट हो जाते हैं. बोआई के दौरान तकरीबन 25 किसान उपस्थित थे.

सहायक यंत्री कृषि आभियांत्रिकी मेघा पाटिल द्वारा सुपर सीडर पर मिलने वाली छूट के बारे में बताया कि यह मशीन 3 लाख रुपए की आती है, जिस में 1 लाख, 5 हजार रुपए की छूट मिलती है. सुपर सीडर एकसाथ तीन काम करती है, जिस से हार्वेस्टर के बाद बचे फसल अवशेष को बारीक काट कर मिट्टी में मिला देता है, जिस से मिट्टी में कार्बन कंटेंट बढ़ेगा. मिटटी उपजाऊ होगी और खेत में कटाई के उपरांत तुरंत बोनी का काम हो जाएगा.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया के वैज्ञानिक डा. धनंजय सिंह ने बताया कि फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन को वापस भूमि में मिला देने से कई लाभ होते हैं जैसे कि कार्बनिक पदार्थ की उपलब्धता में वृद्धि, पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि, मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार होता है. फसल उत्पादकता में वृद्धि आती है. खेतों में नरवाई का उपयोग खाद एवं भूसा बनाने में करें. नरवाई से कार्बनिक पदार्थ भूमि में जा कर मृदा पर्यावरण में सुधार कर सूक्ष्म जीवी अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, जिस से कृषि टिकाऊ रहने के साथसाथ उत्पादन में वृद्धि होती है.

फसल अवशेष (Crop Residues) हैं कमाई का जरीया

उमरिया : कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी धरणेन्द्र कुमार जैन के संज्ञान में यह बात आई है कि वर्तमान में गेहूं एवं धान की फसल कटाई अधिकांशतः कंबाइंड हार्वेस्टर से की जाती है. कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) से भूसा न बना कर जला देने और धान के पैरा यानी पुआल को जला देने से धान का पुआल एवं भूसे की आवश्यकता पशु आहार के साथ ही अन्य वैकल्पिक रूप में एकत्रित भूसा ईंटभट्ठा एव अन्य उद्योग भी प्रभावित होते हैं. गेहूं एवं धान के पुआल की मांग प्रदेश के अन्य जिलों के साथ अनेक प्रदेशों में भी होती है. एकत्रित भूसा 4-5 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर विक्रय किया जा सकता है.

इसी तरह गेहूं का पुआल भी बहुपयोगी है. पर्याप्त मात्रा में भूसा/पुआल उपलब्ध न होने के कारण पशु अन्य हानिकारक पदार्थ जैसे पौलीथिन आदि खाते हैं, जिस से वे बीमार होते हैं और अनेक बार उन की मृत्यु हो जाने से पशुधन की हानि होती है.

नरवाई का भूसा 2-3 माह बाद दोगुनी कीमत पर विक्रय होता है और किसानों को यही भूसा बढ़ी हुई कीमतों पर खरीदना पड़ता है. साथ ही, नरवाई एवं धान के पुआल में आग लगाना खेती के लिए नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है. इस की वजह से विगत सालों में गंभीर आग लगने की घटनाएं होने से बड़े पैमाने पर संपत्ति की हानि हुई है.

गरमी के सीजन में बढ़ते जल संकट में बढ़ोतरी के साथ ही कानून व्यवस्था के विपरीत परिस्थितियां बन जाती हैं. खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जनधन, संपत्ति, प्राकृतिक वनस्पति एव जीवजंतु आदि नष्ट होने से व्यापक नुकसान होने के साथ ही खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं के नष्ट होने से खेत की उर्वराशक्ति धीरेधीरे घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

वहीं खेत में पड़ा कचरा, भूसाडंठल सड़ने पर भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं, जिन्हें जला कर नष्ट करना ऊर्जा को नष्ट करना है. आग जलाने से हानिकारक गैसों के उत्सर्जन से पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ रहा है. ऐसी स्थिति में गेहूं एवं धान की फसल कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) और धान के पुआल को जलाना प्रतिबंधित करने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के अंतर्गत प्रतिबंधात्मक आदेश जारी करना आवश्यक है. अत्यावश्यक परिस्थितियां बनने व समयाभाव के कारण सार्वजनिक रूप से जनसामान्य को सूचना दे कर आपत्तियों को सुना जाना संभव नहीं है.

कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के अंतर्गत जनसामान्य के हित सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा, पर्यावरण की हानि रोकने एंव लोक व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रत्येक कंबाइंड हार्वेस्टर के साथ भूसा तैयार करने के लिए स्ट्रा रीपर अनिवार्य करते हुए संपूर्ण उमरिया जिले की राजस्व सीमा क्षेत्र में गेहूं एव धान की फसल कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) और धान के पुआल को जलाने (आग लगाए जाने) को एकपक्षीय रूप से प्रतिबंधित किया है. आदेश का उल्लंघन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 के अंतर्गत दंडनीय होगा.

किसान नरवाई जलाने से बचें, करें फसल अवशेष प्रबंधन

मैहर : कलक्टर अनुराग वर्मा और मैहर कलक्टर रानी बाटड ने अपनेअपने जिले के किसानों से अपील की है कि खेतों की फसल काटने के बाद किसान बचे फसल अवशेष को नष्ट करने व खेत में नरवाई न जलाएं. खेत में नरवाई जलाने से मिट्टी एवं भूउर्वरता, लाभदायक सूक्ष्म जीव के साथसाथ संचित नमी के वाष्पीकरण से अत्यधिक नुकसान होता है. मिट्टी के लाभदायक कीट एवं जीवांश नष्ट हो जाते है एवं अगली फसल का उत्पादन प्रभावित होता है.

ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के क्रम में Air (Prevention & control of Pollution) Act 1981 के अंतर्गत प्रदेश में फसलों विशेषतः धान एवं गेहूं की कटाई के उपरांत फसल अवशेषों को खेतों में जलाए जाने को प्रतिबंधित किया गया है एवं उल्लंघन किए जाने पर व्यक्ति/निकाय को प्रावधान के अनुसार पर्यावरण क्षतिपूर्ति देय होगी. 2 एकड़ से कम भूमिधारक किसानों द्वारा राशि 2,500 रुपए प्रति घटना, 2 एकड़ से अधिक और 5 एकड़ से कम भूमिधारक किसानों द्वारा राशि 5,000 रुपए प्रति घटना और 5 एकड़ से अधिक भूमिधारकों द्वारा राशि 15,000 रुपए प्रति घटना पर्यावरण क्षतिपूर्ति देय होगी.

खेत में फसल अवशेष/नरवाई जलाने से मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्मजीव एवं जैविक कार्बन जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिस से मिट्टी सख्त एवं कठोर हो कर बंजर हो जाती है एवं फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है.

किसान फसल अवशेष/नरवाई न जलाएं, बल्कि इस का उपयोग आच्छादन यानी मल्चिंग एवं स्ट्रा रीपर से भूसा बना कर पशुओं के भोजन या भूसे के विपणन से अतिरिक्त लाभ प्राप्त कर सकते हैं. इस के अतिरिक्त गेहूं एवं चना की बोनी के लिए अधिक से अधिक हैप्पी सीडर/सुपर सीडर का उपयोग करें. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे नरवाई जलाने से बचें.

किसानों को समय से मिले बीज व उर्वरक (Seeds and Fertilizers)

भोपाल : रबी फसलों के लिए किसानों को समय से उत्तम उर्वरक और बीज मिलना सुनिश्चित किया जाए. प्रदेश में सभी उर्वरकों की पर्याप्त उपलब्धता है. डीएपी के समान ही एनपीके भी गुणवत्तायुक्त है. इस में फसलों के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व हैं.

किसान नरवाई न जलाएं, सुपर सीडर का उपयोग करें.

प्रदेश में कहीं भी खाद, बीज का अवैध भंडारण, कालाबाजारी अथवा अमानक विक्रय न हो, यह सुनिश्चित किया जाए. समर्थन मूल्य पर सोयाबीन विक्रय के लिए किसानों को हर आवश्यक सुविधा उपलब्ध कराई जाए.

एपीसी मोहम्मद सुलेमान ने यह निर्देश पिछले दिनों नर्मदा भवन में संपन्न भोपाल एवं नर्मदापुरम संभागों के लिए खरीफ-2024 की समीक्षा एवं रबी 2024- 25 की तैयारियों के लिए आयोजित समीक्षा बैठक में दिए.

बैठक में कृषि, सहकारिता, पशुपालन, डेयरी, मत्स्यपालन, उद्यानिकी आदि विभागों के कार्यों की समीक्षा की गई.

अपर मुख्य सचिव सहकारिता अशोक बर्णवाल, प्रमुख सचिव मत्स्यपालन डीपी आहूजा, प्रमुख सचिव उद्यानिकी अनुपम राजन, सचिव कृषि एम. सेलवेंद्रन, संभागायुक्त भोपाल संजीव सिंह, संभागायुक्त नर्मदापुरम केजी तिवारी, संबंधित जिलों के कलक्टर्स, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत एवं संबंधित विभागीय अधिकारी उपस्थित थे. विभिन्न योजनाओं के सफल हितग्राहियों ने अपने अनुभव भी बैठक में साझा किए.

एपीसी सुलेमान ने कहा कि प्रदेश में सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए किसानों के पंजीयन का कार्य जारी है. आगामी 25 अक्तूबर से सोयाबीन की खरीदी की जाएगी, जो 31 दिसंबर तक चलेगी. खरीदी केंद्रों पर सभी आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित करें. सोयाबीन खरीदी के लिए किसानों को टोकन दिए जाएं, जिस से उन्हें अनावश्यक इंतजार न करना पड़े. किसानों की सुविधा के लिए आवश्यकतानुसार अतिरिक्त केंद्र 1-2 दिन में खोल दिए जाएंगे. खरीदी में शासन द्वारा निर्धारित मापदंडों का प्रयोग किया जाए.

सचिव, कृषि, सेलवेंद्रन ने बताया कि कृषि के क्षेत्र में मध्य प्रदेश देश का अग्रणी राज्य है. दालों के उत्पादन में मध्य प्रदेश देश में 24 फीसदी उत्पादन के साथ प्रथम है. अनाजों के उत्पादन में 12 फीसदी उत्पादन के साथ देश में द्वितीय और तिलहन के उत्पादन में 20 फीसदी उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर है. प्रदेश की कृषि विकास दर 19 फीसदी है. देश में मध्य प्रदेश के सर्वाधिक 16.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती होती है.

उन्होंने बताया कि रबी 2024-25 के लिए प्रदेश में उर्वरकों की पर्याप्त उपलब्धता है. रबी के लिए प्रदेश में कुल 16.43 लाख मीट्रिक टन उर्वरक उपलब्ध है, जिस में 6.88 यूरिया, 1.38 डीएपी, 2.70 एनपीके, 4.08 डीएपी +एनपीके, 4.86 एसएसपी और 0.61 लाख मीट्रिक टन एमओपी उर्वरक उपलब्ध है.

प्रदेश में रबी फसलों के अंतर्गत मुख्य रूप से चंबल एवं ग्वालियर संभागों में सरसों 15 अक्तूबर से 15 नवंबर तक, उज्जैन, इंदौर, भोपाल, सागर संभागों में चना, मसूर 20 अक्तूबर से 10 नवंबर तक, उज्जैन, इंदौर, भोपाल, चंबल, सागर, नर्मदापुरम में गेहूं 1 नवंबर से 30 नवंबर तक और जबलपुर, रीवा एवं शहडोल संभागों में गेहूं एवं चना की फसलों की बोनी 15 नवंबर से 31 दिसंबर तक की जाती है.

एपीसी सुलेमान ने सभी कलक्टरों को निर्देश दिए गए कि वे सुनिश्चित करें कि उन के जिलों में नरवाई न जलाई जाए. किसानों को सुपर सीडर के प्रयोग के लिए प्रेरित किया जाए. इस के प्रयोग से फसल कटाई के साथ ही बोनी भी हो जाती है. इस से खेतों में बची हुई नमी का अगली फसल में उपयोग हो जाता है, कम बीज लगता है और फसल पहले आ जाती है, जो किसानों के लिए अत्यधिक लाभदायक है. सभी जिलों में सुपर सीडर मशीन की किसानों को उपलब्धता सुनिश्चित कराएं.

अपर मुख्य सचिव सहकारिता अशोक बर्णवाल ने निर्देश दिए कि सभी जिलों में रबी फसलों के लिए भी किसानों को शासन की जीरो फीसदी ब्याज पर फसल ऋण योजना का लाभ दिए जाना सुनिश्चित करें. हर जिले में “वन स्टाप सैंटर” बनाए जाएं, जहां किसानों को सारी सुविधाएं मिल सकें. समिति स्तर पर अल्पावधि ऋणों की वसूली बढ़ाई जाए. जो प्राथमिक सहकारी समितियां ठीक से कार्य नहीं कर रही हैं, उन के खिलाफ कार्रवाई भी की जाए.

उन्होंने निर्देश दिए कि पैक्स के आडिट का कार्य अक्तूबर तक पूरा किया जाए और नवीन पैक्स के गठन की कार्रवाई की जाए.

यह भी बताया गया कि ऋण महोत्सव के अंतर्गत आगामी 6 नवंबर तक किसानों को अ-कृषि ऋण वितरित किए जा रहे हैं.

मत्स्य विभाग की समीक्षा में प्रमुख सचिव डीपी आहूजा ने बताया कि मध्य प्रदेश में 4.42 लाख हेक्टेयर जल क्षेत्र, जिस में से 99 फीसदी भाग में मत्स्यपालन किया जाता है. प्रदेश में 2595 मछुआ समितियां पंजीकृत हैं, जिन से 95417 मत्स्यपालक जुड़े हुए हैं. मध्य प्रदेश में प्रति व्यक्ति मत्स्य उपलब्धता 7.5 किलोग्राम है.

प्रदेश का पहला इंटीग्रेटेड एक्वापार्क भदभदा रोड भोपाल में स्थित है. प्रदेश में मुख्य रूप से प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, मुख्यमंत्री मछुआ समृद्धि योजना और मछुआ क्रेडिट कार्ड योजना संचालित हैं. सभी योजनाओं में निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति के निर्देश कृषि उत्पादन आयुक्त द्वारा दिए गए. मछुआपालन की नई तकनीकी के इस्तेमाल के लिए मत्स्यपालक किसानों को प्रेरित किया जाए.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग की समीक्षा में बताया गया कि भारत में दुग्ध उत्पादन में मध्य प्रदेश का तीसरा स्थान है. प्रदेश में 591 लाख किलोग्राम प्रतिदिन दूध का उत्पादन होता है. राष्ट्र का 9 फीसदी दुग्ध उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है. मध्य प्रदेश में प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता 644 ग्राम प्रतिदिन है, जबकि राष्ट्रीय औसत 459 ग्राम प्रतिदिन का है. प्रदेश में 7.5 फीसदी पशुधन है, जबकि राष्ट्रीय औसत 5.05 का है.

वर्ष 2019 की पशु संगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश में गौवंश पशु संख्या देश में तीसरे स्थान पर 187.50 लाख है, वहीं भैंस वंश पशु संख्या चौथे स्थान पर 103.5 लाख है.

प्रदेश में पशुओं के उपचार के लिए चालित पशु चिकित्सा वाहन (1962) संचालित है, जो कि स्थान पर जा कर पशुओं का इलाज करते हैं.

राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में मध्य प्रदेश देश में अव्वल है. भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीकी से गायों के नस्ल सुधार कार्यक्रम में प्रदेश में अच्छा कार्य हो रहा है. पशुपालकों से मात्र 100 रुपए के शुल्क पर गायों का नस्ल सुधार किया जाता है. इस से पशुपालकों को अच्छी आय प्राप्त हो रही है.

सभी कलक्टर को यह भी निर्देश दिए गए हैं कि वे इस योजना का अधिक से अधिक लाभ पशुपालकों को दें. कुक्कुटपालन एवं बकरीपालन से भी पशुपालकों को अच्छी आमदनी होती है, इस के लिए भी उन्हें प्रेरित किया जाए.

उद्यानिकी विभाग की समीक्षा के दौरान बताया गया कि दोनों संभागों में उद्यानिकी फसलों के रकबे में भी वृद्धि हो रही है. यहां के किसान उच्च मूल्य फल जैसे थाई पिंक अमरूद, एवाकाडो एवं ड्रैगन फ्रूट की सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं.

संभाग के सभी जिलों में अमरूद, ड्रैगन फ्रूट एवं संतरा फसल का विपणन दिल्ली, मुंबई आदि बड़े महानगरों में किया जा रहा है. गुलाब, जरबेरा एवं उच्च कोटि की सब्जियों की खेती पौलीहाउस एवं शेड नेटहाउस में उच्च तकनीकी से कर के अधिक उत्पादन एवं आय प्राप्त हो रही है.

फसल अवशेष जलाया तो होगा जुर्माना

संत कबीर नगर : जिलाधिकारी महेंद्र सिंह तंवर के निर्देश के क्रम में अपर जिलाधिकारी जयप्रकाश की अध्यक्षता में पराली प्रबंधन/फसल अवशेष को खेतो में न जलाए जाने से संबंधित समीक्षा बैठक कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित हुई. इस अवसर पर मुख्य विकास अधिकारी जयकेश त्रिपाठी, अपर पुलिस अधीक्षक सुशील कुमार सिंह उपस्थित रहे.

उपनिदेशक, कृषि, डा. राकेश कुमार सिंह द्वारा बताया गया कि सर्वोच्च न्यायालय एवं राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा पराली एवं फसल अवशेष जलाए जाने पर रोक लगाई हुई है, जिस से कि प्रदूषण का रोकथाम की जा सके. जिले में धान की कटाई शुरू हो चुकी है, जिस में तहसील स्तरीय पर सचल दस्ते के द्वारा निगरानी की जाएगी एवं राजस्व व कृषि विभाग के क्षेत्रीय कार्मिकों के द्वारा पराली जलाए जाने की रोकथाम की जाएगी.

उन्होंने बताया कि यदि कोई किसान 2 एकड़ से कम भूमि पर पराली जलाता है, तो 2,500 रुपए, 2 से 5 एकड़ पर 5,000 एवं 5 एकड़ से अधिक भूमि पर 15,000 रुपए पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूल की जाएगी. इसी प्रकार यदि कोई कंबाइन हार्वेस्टर बिना एक्स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम एवं पराली संकलन यंत्र के चलते हुए पाया जाएगा, तो ऐक्ट के अंतर्गत उसे सीज किए जाने की कार्रवाई की जाएगी.

उपनिदेशक, कृषि, डा. राकेश कुमार सिंह ने बताया कि जनपद में अब तक अनुदान पर वितरित 125 फार्म मशीनरी बैंक व कस्टम हायरिंग सैंटर एवं 164 पराली प्रबंधन के यंत्र के माध्यम से धान की पराली का प्रबंध किया जाएगा, जिस में उन्हें बारीक टुकड़ों में काट कर खेत में मिलाने से ले कर खेत से पराली को इकट्ठा कर गौशाला व सीबीजी प्लांट तक पहुंच जाने के निर्देश दिए गए. गत वर्ष कुल 32 पराली जलाए जाने की घटनाओं की पुष्टि हुई थी, जिस में 80,000 रुपए जुर्माने के रूप में वसूले थे.

अपर जिलाधिकारी ने उपकृषि निदेशक सहित समस्त संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों को निर्देशित किया है कि खेतों में फसल अवशेष को न जलाने हेतु जागरूक करें और फसल अवशेष को खेतों में जलाने से होने वाली हानियों को भी बताएं और इस का प्रचारप्रसार कराते रहें.

बैठक में उपजिलाधिकारी सदर शैलेश कुमार दूबे, उपजिलाधिकारी धनघटा रमेश चंद्र, उपजिलाधिकारी मेंहदावल उत्कर्ष श्रीवास्तव, समस्त तहसीलदार, जिला कृषि अधिकारी डा. सर्वेश कुमार यादव सहित संबंधित अधिकारी आदि उपस्थित रहे.

फसल अवशेष : जलाए नहीं खाद बना कर बढ़ाएं जमीन की उर्वराशक्ति

हमेशा से देश में फसल के अवशेषों का सही निबटारा करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. इन का अधिकतर भाग या तो दूसरे कामों में इस्तेमाल किया जाता है या फिर इन्हें नष्ट कर दिया जाता है, जैसे कि गेहूं, गन्ने, आलू व मूली वगैरह की पत्तियां पशुओं को खिलाने में इस्तेमाल की जाती हैं या फिर फेंक दी जाती हैं. कपास, सनई व अरहर आदि के तने, गन्ने की सूखी पत्तियां और धान का पुआल आदि जलाने में इस्तेमाल कर लिया जाता है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में अधिकतर गेहूं व धान की कटाई मशीनों द्वारा की जाती है. पिछले कुछ सालों से एक समस्या देखी जा रही है. जहां हार्वेस्टर द्वारा फसलों की कटाई की जाती है, उन क्षेत्रों में फसल के तनों के अधिकतर भाग खेत में खड़े रह जाते हैं. वहां के किसान खेत में फसल के अवशेषों को जला देते हैं. आमतौर पर रबी सीजन में गेहूं की कटाई के बाद फसल के अवशेषों को जला कर नष्ट कर दिया जाता है.

इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन द्वारा बहुत से जिलों में गेहूं की नरई जलाने पर रोक लगा दी गई है. किसानों को शासन, कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विभाग व संबंधित संस्थाओं द्वारा यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि किसान अपने खेतों के अवशेषों को जीवांश पदार्थ बढ़ाने में इस्तेमाल करें.

इसी तरह गांवों में पशुओं के गोबर का अधिकतर भाग खाद बनाने के लिए इस्तेमाल न कर के उसे ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि इसी गोबर को यदि गोबर गैस प्लांट में इस्तेमाल किया जाए, तो इस से बहुमूल्य व पोषक तत्त्वों से भरपूर गोबर की स्लरी हासिल होगी, जिसे खेत की उर्वराशक्ति बढ़ाने में इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही गोबर गैस को घर में ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

योजना को सफल बनाने के लिए सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाता है, मगर फिर भी नतीजे संतोषजनक नहीं हैं. जमीन में जीवांश पदार्थ की मात्रा लगातार कम होने से उत्पादकता या तो घट रही है या स्थिर हो गई है. लिहाजा समय रहते इस पर ध्यान दे कर जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने पर ही कृषि की उत्पादकता बढ़ा पाना मुमकिन हो सकता है. यह देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए बहुत ही जरूरी है. ज्यादातर भारतीय किसान फसल अवशेषों का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.

फसल अवशेषों को जलाने से होने वाले नुकसान

* जब खेत में आग लगाई जाती है, तो खेत की मिट्टी उसी तरह जलती  है जैसे ईंट भट्ठे की ईंट जलती है. खेत का तापमान बढ़ने से उस में पाए जाने वाले लाभकारी जीव जैसे जैविक फर्टिलाइजर राइजोबियम, अजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम, ब्लू ग्रीन एलगी और पीएसबी जीवाणु जल कर नष्ट हो जाते हैं. इस के अलावा लाभदायक जैविक फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा, जैविक कीटनाशी विबैरिया बैसियाना, वैसिलस थिरूनजनेसिस और किसानों के मित्र कहे जाने वाले केंचुए आग की लपटों से जल कर नष्ट हो जाते हैं.

* फसल अवशेष जलने से पैदा होने वाले कार्बन से वायु प्रदूषित होती है, जिस का इनसानों व पशुपक्षियों पर बुरा असर पड़ता है.

* कार्बन डाईआक्साइड ज्यादा निकलने से ओजोन परत भी प्रभावित होती है और धरती का तापमान बढ़ जाता है.

ऊपर दी गई तालिका को देख कर हम अंदाजा लगा सकते हैं कि फसल अवशेषों से कितनी ज्यादा मात्रा में हम मिट्टी के जरूरी पोषक तत्त्वों की पूर्ति कर सकते हैं. विदेशों में जहां अधिकतर मशीनों से खेती की जाती है, वहां पर फसल के अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिला दिया जाता है. वैसे मौजूदा दौर में भारत में भी इस काम के लिए रोटावेटर जैसी मशीन का इस्तेमाल शुरू हो चुका है, जिस से खेत को तैयार करते समय एक बार में ही फसल अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिलाना काफी आसान हो गया है. जिन क्षेत्रों में नमी की कमी हो, वहां पर फसल अवशेषों की कंपोस्ट खाद तैयार कर के खेत में डालनी फायदेमंद होती है.

फसल अवशेषों का सही इस्तेमाल करने के लिए जरूरी है कि अवशेषों को खेत में जलाने की बजाय उन से कंपोस्ट तैयार कर के खेत में इस्तेमाल करें. उन क्षेत्रों में जहां चारे की कमी नहीं होती, वहां मक्के की कड़वी व धान के पुआल को खेत में ढेर बना कर खुला छोड़ने के बजाय गड्ढों में कंपोस्ट बना कर इस्तेमाल करना चाहिए.

आलू व मूंगफली जैसी फसलों की खुदाई करने के बाद बचे अवशेषों को खेत में जोत कर मिला देना चाहिए. मूंग व उड़द की फसल में फलियां तोड़ कर अवशेषों को खेत में मिला देना चाहिए.

फसल अवशेष (Crop Remains)

खेतों के अंदर इस्तेमाल

फसल की कटाई के बाद खेत में बचे घासफूंस, पत्तियां व ठूंठों आदि को सड़ाने के लिए 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़क कर कल्टीवेटर या रोटावेटर से काट कर मिट्टी में मिला देना चाहिए. इस प्रकार अवशेष खेत में विघटित होना शुरू कर देंगे और तकरीबन 1 महीने में सड़ कर आगे बोई जाने वाली फसल को पोषक तत्त्व देंगे.

अगर फसल अवशेष खेत में ही पड़े रहे तो नई फसल के पौधे शुरुआत में ही पीले पड़ जाते  हैं, क्योंकि अवशेषों को सड़ाने के लिए जीवाणु जमीन की नाइट्रोजन का इस्तेमाल कर लेते हैं. लिहाजा अवशेषों का सही निबटारा करना बेहद जरूरी है, तभी हम अपनी जमीन में जीवांश पदार्थ की मात्रा में इजाफा कर के जमीन को खेती लायक रख सकते हैं और ज्यादा उपज हासिल कर सकते हैं.

पराली समस्या ( Stubble Problem) का समाधान सरकार को किसानों के साथ मिल कर करना होगा

हरियाणा सरकार द्वारा किसानों पर पराली जलाने के लिए की जा रही कड़ी कार्रवाई ने देशभर के किसानों में गहरी नाराजगी और चिंता पैदा कर दी है. हाल ही में 13 किसानों की गिरफ्तारी, ‘रैड एंट्री’ जैसे कदम और किसानों की फसल मंडियों में न बेचने देने के आदेशों ने किसानों में आक्रोश भर दिया है.

किसानों की गिरफ्तारी और उन के माल को मंडी में न बेचने देना एक ऐसा कदम है, जो केवल उन की समस्याओं को बढ़ाएगा. हरियाणा सरकार ने पराली जलाने के 653 मामलों में अब तक 368 किसानों की ‘रैड एंट्री’ कर दी है, जिस से ये किसान अगले 2 साल तक अपनी फसल मंडियों में नहीं बेच पाएंगे. इस से न केवल उन की माली हालत कमजोर होगी, बल्कि उन का गुस्सा भी बढ़ेगा. इस तरह की दमनकारी नीतियां केवल किसानों और सरकार के बीच की खाई को बढ़ाने का काम करती हैं.

किसान पहले ही पूर्व की हरियाणा सरकार से नाराज चल रहे थे. राज्य में किसानों की इन‌ गिरफ्तारियों और फसल मंडियों में न बिकने देने जैसे तुगलकी मध्यकालीन फरमान ने इस मुद्दे को और गरमा दिया है. लगता है कि सरकार की नीतिनिर्माताओं ने अपना दिमाग खूंटी पर टांग दिया है, वरना इतनी आसान सी बात ही समझ में नहीं आती कि इस समस्या का समाधान केवल दंडात्मक उपायों से कभी भी नहीं हो सकता. किसानों के सामने कई जमीनी व्यावहारिक समस्याएं हैं, जिन्हें समझे बिना ऐसे कबीलाई न्याय और कठोर नीतियां लागू करना उन के साथ घोर अन्याय है और व्यापक देशहित के भी खिलाफ है.

इस बात से किसी को भी इनकार नहीं है कि पराली जलाना एक गंभीर पर्यावरणीय मुद्दा है, लेकिन इसे केवल किसानों की गलती मानना उचित नहीं है, यह सिक्के का केवल एक पहलू है. इस संवेदनशील मामले में किसानों की मजबूरी को समझना अत्यंत आवश्यक है.

पराली का निबटान एक महंगी और समयसाध्य प्रक्रिया है, जिस में किसान को काफी माली नुकसान उठाना पड़ता है. ट्रैक्टरों और पानी के इस्तेमाल से पराली को मिट्टी में मिलाने का खर्च प्रति एकड़ 5,000 रुपए से अधिक होता है, जो छोटे और मझोले किसानों के लिए एक भारी बोझ है. इस के अलावा फसल के सीजन के बीच में समय की कमी भी उन्हें पराली जलाने के लिए मजबूर कर देती है.

किसानों के सम्मुख चुनौतियां

किसान फसल कटाई के तुरंत बाद अगली फसल के लिए खेत तैयार करने की जल्दी में होते हैं. यदि पराली को सड़ने के लिए खेत में छोड़ा जाता है, तो इस में काफी समय लगता है, और इस देरी से उन्हें दूसरी फसल का नुकसान होता है. “समय से चूका किसान, डाल से चूका बंदर की तरह होता है, जो धरती पर मुंह के बल गिरा नजर आता है.” इस स्थिति में किसानों के पास न तो इतना समय होता है और न ही इतनी आर्थिक क्षमता कि वे पराली के प्रबंधन के लिए जरूरी संसाधनों में निवेश कर सकें.

दुनिया के प्रसिद्ध पर्यावरणविदों और शोधकर्ताओं ने भी इस समस्या की जड़ को समझा है. नार्वे के जलवायु विशेषज्ञ एरिक सोल्हेम का कहना है, “सस्टेनेबल खेती का विकास तभी संभव है, जब किसानों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पर्यावरणीय नीतियां बनाई जाएं. किसान पर्यावरण का दुश्मन नहीं है, वह इस का साथी है.” यह विचार स्पष्ट करता है कि किसानों को दोषी ठहराने के बजाय उन्हें टिकाऊ समाधान प्रदान करना आवश्यक है.

विकल्पों की खोज

यह सही है कि पराली जलाने से पर्यावरण को नुकसान होता है और वायु प्रदूषण बढ़ता है, लेकिन समाधान का रास्ता किसानों को दंडित करने में नहीं है. समस्या के समाधान के लिए सरकार को किसानों के साथ मिल कर विचारविमर्श करना चाहिए. सरकार का यह दायित्व है कि वह किसानों के लिए ऐसे विकल्प तैयार करे, जो व्यवहारिक हो और किसानों के हित में हो. किसानों को तकनीकी सहायता, संसाधन और आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए, ताकि वे पराली जलाने के विकल्पों को अपना सकें.

पंजाब और हरियाणा में पहले से ही कई पायलट प्रोजैक्ट्स चल रहे हैं, जहां पराली से जैविक खाद बनाई जा रही है या उसे ऊर्जा के उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन यह समाधान तब तक सफल नहीं होंगे, जब तक किसानों को इस का उपयोग करने के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता और तकनीकी मार्गदर्शन नहीं मिलेगा.

हमारा मानना है कि सरकार को दंडात्मक कार्रवाई से पहले किसानों की समस्याओं को समझ कर उन के लिए व्यवहारिक समाधान निकालने चाहिए. पराली जलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना और किसानों को सजा देना उन्हें और अधिक संकट में डाल देगा. देशभर के किसानों में यह संदेश जा रहा है कि सरकार के खिलाफ आंदोलन करने के कारण सरकार किसानों से बदला ले रही है.

वहीं किसानों का यह मानना है कि पराली के पर्यावरणीय मुद्दे पर किसानों को जेल में डालने जैसी कठोर दमनात्मक कार्यवाही करने के पहले महानगरों में दौड़ रहे जहर उगलते करोड़ों वाहन मालिकों और वायुमंडल में विशाक्त धुआं उगलते कारखानों के मालिकों के खिलाफ कार्यवाही कर उन्हें जेल में डालने की हिम्मत दिखाए. देश में कितने ही कारखाने पर्यावरण के नियमों, ग्रीन ट्रिब्यूनल को छकाते हुए धज्जियां उड़ाते हुए नदियों में गंदगी उड़ेल रहे हैं और वायुमंडल में लगातार 24 घंटे जहरीला धुआं भर रहे हैं. आज तक सरकार ने किसी एक भी उद्योगपति को पर्यावरण के मुद्दे पर जेल में नहीं डाला है. चूंकि किसान अकेला है, गरीब है, बेसहारा है, इन में एकजुटता की कमी है और चौधरी चरण सिंह जैसा उस का कोई सक्षम राजनीतिक आका नहीं है, इसीलिए सरकार जब चाहे किसान की गरदन दबोच लेती है और उस पर लट्ठ बजा देती है.

यही सरकारें जीत के आते ही हफ्तेभर के भीतर ही अपने खिलाफ सारे मामलों को राजनीतिक मामले कह कर वापस ले लेती हैं और किसान आंदोलनों में जेल गए किसान साथी आज भी जेलों में सड़ रहे हैं, उन की सुध लेने वाला भी कोई नहीं है. पर इन सारे घटनाक्रमों से किसानों में धीरेधीरे सरकार के ख़िलाफ नफरत और गुस्सा बढ़ता जा रहा है. आगे चल कर यह स्थिति विस्फोटक हो सकती है.

सरकार इस तरह से किसानों को जेल में डालने के पहले ध्यान रखें कि सरकार की जेलों में न तो इतनी जगह है और न ही सरकार के खजाने में इतना पैसा, और न ही सरकार के गोदाम में इतना अनाज है कि वह देश के 16 करोड़ किसान परिवारों, एक परिवार में यदि 5 सदस्य भी हैं तो लगभग 80 करोड़ लोगों को जेल में डाल कर उन्हें बिठा कर खाना खिला सके.

मिलजुल कर होगा समाधान

पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए एक सामूहिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है. पर्यावरण की सुरक्षा और किसानों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित नीति बनाई जानी चाहिए. सरकार को किसानों के साथ मिल कर एक समाधान ढूंढना चाहिए, जिस में किसानों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाए. अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ भी मानते हैं कि किसी भी पर्यावरणीय नीति की सफलता तभी संभव है, जब उसे सामाजिक और आर्थिक रूप से उचित ढंग से लागू किया जाए.

किसान संगठनों का मानना है कि किसानों के खिलाफ कठोर नीतियां अपनाने के बजाय सरकार को उन के साथ संवाद कर समाधान निकालना चाहिए. किसानों की आर्थिक स्थिति और पर्यावरण की रक्षा दोनों को ध्यान में रखते हुए एक सुदृढ़ और व्यवहारिक नीति बनाई जानी चाहिए. पराली जलाने के विकल्प किसानों को तभी अपनाने चाहिए, जब उन्हें इस के लिए आवश्यक संसाधन और सहायता मिल सके.

सरकार को अपने कठोर रवैए पर पुनर्विचार कर किसान संगठनों और विशेषज्ञों के साथ मिल कर इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए. अगर सरकार पहल करे, तो अखिल भारतीय किसान महासंघ इस मुद्दे पर किसानों और किसान संगठनों से बात कर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर सकती है. किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज करना एक दीर्घकालिक समाधान नहीं है, बल्कि उन के साथ मिल कर काम करने से ही हम एक टिकाऊ और सफल कृषि प्रणाली की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं.

पराली जलाने की रोकथाम के लिए उड़नदस्‍ते तैनात

चंडीगढ़ : सीएक्यूएम के निर्देशों के तहत पंजाब और हरियाणा राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई व्यापक कार्ययोजनाओं का लक्ष्य खरीफ सीजन 2024 में धान की पराली जलाने की घटनाओं को रोकना है.

पंजाब और हरियाणा राज्यों में धान की कटाई के मौसम के दौरान धान की पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम के लिए एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय और निगरानी कार्रवाई को तेज करने के लिए सीएक्यूएम की सहायता करने वाले सीपीसीबी के उड़नदस्ते को 01 अक्तूबर, 2024 से 30 नवंबर, 2024 के दौरान पंजाब और हरियाणा के चिन्हित जिलों में तैनात किया गया है, जहां धान की पराली जलाने की घटनाएं आमतौर पर अधिक होती हैं.

इस तरह से तैनात किए गए उड़नदस्ते संबंधित अधिकारियों/जिला स्तर के अधिकारियों/संबंधित राज्य सरकार द्वारा नियुक्त नोडल अधिकारियों के साथ निकट समन्वय में काम करेंगे.

पंजाब के जिन 16 जिलों में उड़नदस्‍ते तैनात किए गए हैं, उन में अमृतसर, बरनाला, बठिंडा, फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, फाजिल्का, फिरोजपुर, जालंधर, कपूरथला, लुधियाना, मानसा, मोगा, मुक्तसर, पटियाला, संगरूर और तरनतारन शामिल हैं. वहीं हरियाणा के जिन 10 जिलों में उड़नदस्‍ते तैनात किए गए हैं, उन में अंबाला, फतेहाबाद, हिसार, जींद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, सिरसा, सोनीपत और यमुनानगर शामिल हैं.

उड़नदस्‍ते संबंधित अधिकारियों के साथ निकट समन्वय में जमीनी स्तर की स्थिति का आंकलन करेंगे और दैनिक आधार पर आयोग और सीपीसीबी को रिपोर्ट करेंगे. इस रिपोर्ट में आवंटित जिले में धान की पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी. इस के अलावा सीएक्यूएम जल्द ही पंजाब और हरियाणा में कृषि विभाग और अन्य संबंधित एजेंसियों के साथ निकट समन्वय के लिए धान की कटाई के मौसम के दौरान मोहाली/चंडीगढ़ में “धान की पराली प्रबंधन” सेल स्थापित करेगा. दोनों राज्‍यों के विभिन्‍न जिलों में उड़नदस्‍ते तैनात किए गए हैं.