सुपर सीडर यंत्र (Super Seeder Machine) से नरवाई का निदान और बोआई एकसाथ

विदिशा : खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए शासन द्वारा कई योजनाएं लागू की गई हैं. किसानों को आधुनिक तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इसी कड़ी का उदाहरण सुपर सीडर है. सुपर सीडर ट्रैक्टर के साथ जुड़ कर काम करने वाला ऐसा यंत्र है, जो नरवाई की समस्या का निदान करने के साथसाथ बोआई भी करता है.

जो किसान धान की खेती के बाद गेहूं और चने की बोआई करते हैं, उन के लिए यह अत्यंत उपयोगी है. सुपर सीडर धान अथवा अन्य किसी भी फसल के डंठल, जिसे नरवाई कहा जाता है, उसे आसानी से छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिला देता है. इस के उपयोग से नरवाई को जलाने की जरूरत नहीं पड़ती. इस से एक ओर  पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण होता है, वहीं दूसरी ओर मिट्टी की ऊपरी परत के उपयोगी जीवाणुओं के जीवन की रक्षा भी होती है.

सुपर सीडर से नरवाई वाले खेत में सीधे गेहूं, चने अथवा अन्य फसल की बोनी की जा सकती है. इस के उपयोग से किसान को नरवाई के झंझट से मुक्ति मिलती है. जो नरवाई किसान के लिए समस्या है, उसे सुपर सीडर खाद के रूप में बदल कर वरदान बना देता है.

किसान कल्याण कृषि विकास विभाग के उपसंचालक केएस खपेडिया ने बताया कि जिले के कृषि अभियांत्रिकी विभाग में सुपर सीडर उपलब्ध है. शासन की योजनाओं के तहत किसान को सुपर सीडर खरीदने पर 40 फीसदी तक छूट दी जा रही है. सुपर सीडर सामान्य तौर पर एक घंटे में एक एकड़ क्षेत्र में नरवाई नष्ट करने के साथ बोआई कर देता है. गेहूं के बाद जिन क्षेत्रों में मूंग की खेती की जाती है, वहां भी सुपर सीडर बहुत उपयोगी है. हार्वेस्टर से कटाई के बाद गेहूं के शेष बचे डंठल को आसानी से मिट्टी में मिला कर सुपर सीडर मूंग की बोआई कर देता है.

सुपर सीडर के उपयोग से जुताई का खर्च बच जाता है. नरवाई नष्ट करने व जुताई और बोआई एकसाथ हो जाने से खेती की लागत घटती है. जिन किसानों के पास ट्रैक्टर हैं, उन के घर के शिक्षित युवा सुपर सीडर खरीद कर एक सीजन में एक लाख रुपए तक की कमाई कर सकते हैं.

नरवाई प्रबंधन (Weed Management) के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों से करें बोआई

उमरिया : फसलों की कटाई के बाद उन के जो अवशेष खेत में रह जाते हैं, उसे नरवाई या पराली कहते हैं. मशीनों से फसल की कटाई होने पर बड़ी मात्रा में नरवाई खेत में रहती है. इस को हटाने के लिए किसान प्रायः इसे जला देते हैं. इस से खेत की मिट्टी की उपरी परत में रहने वाले फसलों के लिए उपयोगी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं. मिट्टी में कड़ापन आ जाता है और इस की जलधारण क्षमता बहुत कम हो जाती है.

किसान नरवाई प्रबंधन के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग करें. इन उपकरणों के उपयोग से नरवाई को नष्ट कर के खाद बना दिया जाता है, जिस से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. नरवाई जलाने से मिट्टी को होने वाले नुकसान और धुएं से होने वाला पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता है.

किसान धान और अन्य फसलों की नरवाई खेत से हटाने के लिए सुपर सीडर और हैप्पी सीडर का उपयोग करें. ये उपकरण किसी भी ट्रैक्टर, जो 50 एचपी के हों, उस में आसानी से फिट हो जाते हैं. इन के उपयोग से एक ही बार में नरवाई नष्ट होने के साथसाथ खेत की जुताई और बोआई हो जाती है. इस से जुताई का खर्च और समय दोनों की बचत होती है. इस के अलावा किसान ट्रैक्टर में स्ट्राबेलर का उपयोग कर के नरवाई को खाद में बदल सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया और कृषि आभियांत्रिकी विभाग, उमरिया के संयुक्त तत्वावधान में गांव कछरवार में सुपर सीडर द्वारा गेहूं फसल की बोआई की गई. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एव प्रमुख डा. केपी तिवारी ने बताया कि धान की फसल यदि हार्वेस्टर से की जाती है, तो खेत में फसल के अवशेष रह जाते हैं, जिन की सफाई के बिना बोआई करना बहुत बड़ी चुनौती रहती है, लेकिन सुपर सीडर एक ऐसी मशीन है, जो बिना सफाई के आसानी से गेहूं या चना की बोआई कर सकती है.

उन्होंने आगे बताया कि नरवाई जलाने से मिट्टी में उत्पन्न होने वाले कार्बनिक पदार्थ में कमी आ जाती है. सूक्ष्म जीव जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिस के फलस्वरूप जैविक खाद का बनना बंद हो जाता है. भूमि की ऊपरी परत में ही पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं. आग लगाने के कारण ये पोषक तत्व जल कर नष्ट हो जाते हैं. बोआई के दौरान तकरीबन 25 किसान उपस्थित थे.

सहायक यंत्री कृषि आभियांत्रिकी मेघा पाटिल द्वारा सुपर सीडर पर मिलने वाली छूट के बारे में बताया कि यह मशीन 3 लाख रुपए की आती है, जिस में 1 लाख, 5 हजार रुपए की छूट मिलती है. सुपर सीडर एकसाथ तीन काम करती है, जिस से हार्वेस्टर के बाद बचे फसल अवशेष को बारीक काट कर मिट्टी में मिला देता है, जिस से मिट्टी में कार्बन कंटेंट बढ़ेगा. मिटटी उपजाऊ होगी और खेत में कटाई के उपरांत तुरंत बोनी का काम हो जाएगा.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया के वैज्ञानिक डा. धनंजय सिंह ने बताया कि फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन को वापस भूमि में मिला देने से कई लाभ होते हैं जैसे कि कार्बनिक पदार्थ की उपलब्धता में वृद्धि, पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि, मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार होता है. फसल उत्पादकता में वृद्धि आती है. खेतों में नरवाई का उपयोग खाद एवं भूसा बनाने में करें. नरवाई से कार्बनिक पदार्थ भूमि में जा कर मृदा पर्यावरण में सुधार कर सूक्ष्म जीवी अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, जिस से कृषि टिकाऊ रहने के साथसाथ उत्पादन में वृद्धि होती है.

नरवाई जलाना है हानिकारक, करें सुपर सीडर (Super Seeder) का उपयोग

मंडला : नरवाई यानी फसल अवशेष या पराली जलाना एक बड़ी समस्या है, इस से वातावरण में प्रदूषण फैलता है एवं मृदा के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है. नरवाई जलाने पर रोकथाम किया जाना बहुत जरूरी है. नरवाई जलाने से वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ता है और मृदा का कार्बनिक प्रदार्थ कम होने के साथसाथ मृदा के लाभकारी सूक्ष्मजीव भी नष्ट होते हैं.

सुपर सीडर का करें उपयोग

फसल अवशेष प्रबंधन के तहत जिले में सुपर सीडर से पहली बार बोनी हो रही है. कलक्टर सोमेश मिश्रा द्वारा सुपर सीडर से बोनी करने के लिए किसानों को जागरूक किए जाने के निर्देश दिए. कलक्टर सोमेश मिश्रा एवं सीईओ जिला पंचायत श्रेयांश कूमट ने स्वयं सुपर सीडर के प्रदर्शन का अवलोकन किया और किसानों को नरवाई न जला कर सुपर सीडर के उपयोग के लिए किसानों को प्रेरित किया.

सुपर सीडर के उपयोग से धान कटाई के उपरांत नई फसल के लिए खेत तैयार करने के लिए अलग से कल्टीवेटर, रोटावेटर और सीड ड्रिल की आवश्यकता नहीं पड़ती है. एक ही यंत्र से तीनों काम एकसाथ एक ही समय में हो जाते हैं. समय की बचत के साथसाथ लागत भी बहुत कम हो जाती है.

सुपर सीडर की खरीदी में तकरीबन 1.05 लाख रुपए की सब्सिडी भी मिलती है. हार्वेस्टर से धान कटाई के उपरांत सुपर सीडर से सीधे रबी फसलों की बोनी करने पर किसानों को 10 से 15 दिन की बचत होती है और लागत में भी कमी होती है.

सुपर सीडर से बोनी करने पर कृषि विभाग देगा 1,600 रुपए प्रति एकड़ का अनुदान

उपसंचालक, कृषि, मधु अली ने बताया कि ग्राम औघटखपरी में नरवाई जलाने की समस्या को दूर करने के लिए कृषि विभाग और अभियांत्रिकी विभाग द्वारा सुपर सीडर से बोनी करने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है. सुपर सीडर का प्रदर्शन कर किसानों को जागरूक किया गया. नरवाई में आग न जलाई जाए, इसलिए सुपर सीडर की बोनी करने वाले किसानों को कृषि विभाग 1,600 रुपए प्रति एकड़ का अनुदान देगी.

नरवाई जलाने वालों पर अर्थदंड का प्रावधान

नरवाई जलाने वालों पर अर्थदंड अधिरोपित करने के जारी आदेश के अनुसार 2 एकड़ से कम पर 2,500 रुपए प्रति घटना पर, 2 से 5 एकड़ तक 5,000 रुपए प्रति घटना पर एवं 5 एकड़ से अधिक पर 15,000 रुपए प्रति घटना पर अर्थदंड का प्रावधान किया गया है.

जिले में रबी फसल के अंतर्गत बोई जाने वाली फसलों की कटाई के बाद किसानों द्वारा नरवाई (फसलों के अवशेषों) जला दी जाती है, जिस के कारण भूमि में उपलब्ध जैव विविधिता समाप्त हो जाती है. भूमि की ऊपरी परत में पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, जो आग लगने के कारण जल कर नष्ट हो जाते हैं. साथ ही, नरवाई जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है.

भारत सरकार द्वारा खेतों में फसल अवशेष यानी नरवाई जलाने की घटनाओं की मौनिटरिंग सैटेलाइट के माध्यम से की जा रही है. प्रदेश में नरवाई जलाने की घटनाएं मुख्यतः गेहूं फसल की कटाई के बाद होती है, जो लगातार बढ़ती जा रही है.

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के क्रम में फसलों की कटाई के उपरांत फसल अवशेषों को खेतों में जलाए जाने से प्रतिबंधित किया गया है. पर्यावरण विभाग के नोटिफिकेशन द्वारा निर्देश जारी किए गए हैं, जिस के अंतर्गत नरवाई जलाने की घटनाओं पर अर्थदंड अधिरोपित करने का प्रावधान किया गया है, जिस में 2 एकड़ से कम पर 2,500 रुपए प्रति घटना पर, 2 से 5 एकड़ तक 5,000 रुपए प्रति घटना पर एवं 5 एकड़ से अधिक पर 15,000 रुपए प्रति घटना पर अर्थदंड का प्रावधान किया गया है.

किसानों को समय से मिले बीज व उर्वरक (Seeds and Fertilizers)

भोपाल : रबी फसलों के लिए किसानों को समय से उत्तम उर्वरक और बीज मिलना सुनिश्चित किया जाए. प्रदेश में सभी उर्वरकों की पर्याप्त उपलब्धता है. डीएपी के समान ही एनपीके भी गुणवत्तायुक्त है. इस में फसलों के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व हैं.

किसान नरवाई न जलाएं, सुपर सीडर का उपयोग करें.

प्रदेश में कहीं भी खाद, बीज का अवैध भंडारण, कालाबाजारी अथवा अमानक विक्रय न हो, यह सुनिश्चित किया जाए. समर्थन मूल्य पर सोयाबीन विक्रय के लिए किसानों को हर आवश्यक सुविधा उपलब्ध कराई जाए.

एपीसी मोहम्मद सुलेमान ने यह निर्देश पिछले दिनों नर्मदा भवन में संपन्न भोपाल एवं नर्मदापुरम संभागों के लिए खरीफ-2024 की समीक्षा एवं रबी 2024- 25 की तैयारियों के लिए आयोजित समीक्षा बैठक में दिए.

बैठक में कृषि, सहकारिता, पशुपालन, डेयरी, मत्स्यपालन, उद्यानिकी आदि विभागों के कार्यों की समीक्षा की गई.

अपर मुख्य सचिव सहकारिता अशोक बर्णवाल, प्रमुख सचिव मत्स्यपालन डीपी आहूजा, प्रमुख सचिव उद्यानिकी अनुपम राजन, सचिव कृषि एम. सेलवेंद्रन, संभागायुक्त भोपाल संजीव सिंह, संभागायुक्त नर्मदापुरम केजी तिवारी, संबंधित जिलों के कलक्टर्स, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत एवं संबंधित विभागीय अधिकारी उपस्थित थे. विभिन्न योजनाओं के सफल हितग्राहियों ने अपने अनुभव भी बैठक में साझा किए.

एपीसी सुलेमान ने कहा कि प्रदेश में सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए किसानों के पंजीयन का कार्य जारी है. आगामी 25 अक्तूबर से सोयाबीन की खरीदी की जाएगी, जो 31 दिसंबर तक चलेगी. खरीदी केंद्रों पर सभी आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित करें. सोयाबीन खरीदी के लिए किसानों को टोकन दिए जाएं, जिस से उन्हें अनावश्यक इंतजार न करना पड़े. किसानों की सुविधा के लिए आवश्यकतानुसार अतिरिक्त केंद्र 1-2 दिन में खोल दिए जाएंगे. खरीदी में शासन द्वारा निर्धारित मापदंडों का प्रयोग किया जाए.

सचिव, कृषि, सेलवेंद्रन ने बताया कि कृषि के क्षेत्र में मध्य प्रदेश देश का अग्रणी राज्य है. दालों के उत्पादन में मध्य प्रदेश देश में 24 फीसदी उत्पादन के साथ प्रथम है. अनाजों के उत्पादन में 12 फीसदी उत्पादन के साथ देश में द्वितीय और तिलहन के उत्पादन में 20 फीसदी उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर है. प्रदेश की कृषि विकास दर 19 फीसदी है. देश में मध्य प्रदेश के सर्वाधिक 16.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती होती है.

उन्होंने बताया कि रबी 2024-25 के लिए प्रदेश में उर्वरकों की पर्याप्त उपलब्धता है. रबी के लिए प्रदेश में कुल 16.43 लाख मीट्रिक टन उर्वरक उपलब्ध है, जिस में 6.88 यूरिया, 1.38 डीएपी, 2.70 एनपीके, 4.08 डीएपी +एनपीके, 4.86 एसएसपी और 0.61 लाख मीट्रिक टन एमओपी उर्वरक उपलब्ध है.

प्रदेश में रबी फसलों के अंतर्गत मुख्य रूप से चंबल एवं ग्वालियर संभागों में सरसों 15 अक्तूबर से 15 नवंबर तक, उज्जैन, इंदौर, भोपाल, सागर संभागों में चना, मसूर 20 अक्तूबर से 10 नवंबर तक, उज्जैन, इंदौर, भोपाल, चंबल, सागर, नर्मदापुरम में गेहूं 1 नवंबर से 30 नवंबर तक और जबलपुर, रीवा एवं शहडोल संभागों में गेहूं एवं चना की फसलों की बोनी 15 नवंबर से 31 दिसंबर तक की जाती है.

एपीसी सुलेमान ने सभी कलक्टरों को निर्देश दिए गए कि वे सुनिश्चित करें कि उन के जिलों में नरवाई न जलाई जाए. किसानों को सुपर सीडर के प्रयोग के लिए प्रेरित किया जाए. इस के प्रयोग से फसल कटाई के साथ ही बोनी भी हो जाती है. इस से खेतों में बची हुई नमी का अगली फसल में उपयोग हो जाता है, कम बीज लगता है और फसल पहले आ जाती है, जो किसानों के लिए अत्यधिक लाभदायक है. सभी जिलों में सुपर सीडर मशीन की किसानों को उपलब्धता सुनिश्चित कराएं.

अपर मुख्य सचिव सहकारिता अशोक बर्णवाल ने निर्देश दिए कि सभी जिलों में रबी फसलों के लिए भी किसानों को शासन की जीरो फीसदी ब्याज पर फसल ऋण योजना का लाभ दिए जाना सुनिश्चित करें. हर जिले में “वन स्टाप सैंटर” बनाए जाएं, जहां किसानों को सारी सुविधाएं मिल सकें. समिति स्तर पर अल्पावधि ऋणों की वसूली बढ़ाई जाए. जो प्राथमिक सहकारी समितियां ठीक से कार्य नहीं कर रही हैं, उन के खिलाफ कार्रवाई भी की जाए.

उन्होंने निर्देश दिए कि पैक्स के आडिट का कार्य अक्तूबर तक पूरा किया जाए और नवीन पैक्स के गठन की कार्रवाई की जाए.

यह भी बताया गया कि ऋण महोत्सव के अंतर्गत आगामी 6 नवंबर तक किसानों को अ-कृषि ऋण वितरित किए जा रहे हैं.

मत्स्य विभाग की समीक्षा में प्रमुख सचिव डीपी आहूजा ने बताया कि मध्य प्रदेश में 4.42 लाख हेक्टेयर जल क्षेत्र, जिस में से 99 फीसदी भाग में मत्स्यपालन किया जाता है. प्रदेश में 2595 मछुआ समितियां पंजीकृत हैं, जिन से 95417 मत्स्यपालक जुड़े हुए हैं. मध्य प्रदेश में प्रति व्यक्ति मत्स्य उपलब्धता 7.5 किलोग्राम है.

प्रदेश का पहला इंटीग्रेटेड एक्वापार्क भदभदा रोड भोपाल में स्थित है. प्रदेश में मुख्य रूप से प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, मुख्यमंत्री मछुआ समृद्धि योजना और मछुआ क्रेडिट कार्ड योजना संचालित हैं. सभी योजनाओं में निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति के निर्देश कृषि उत्पादन आयुक्त द्वारा दिए गए. मछुआपालन की नई तकनीकी के इस्तेमाल के लिए मत्स्यपालक किसानों को प्रेरित किया जाए.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग की समीक्षा में बताया गया कि भारत में दुग्ध उत्पादन में मध्य प्रदेश का तीसरा स्थान है. प्रदेश में 591 लाख किलोग्राम प्रतिदिन दूध का उत्पादन होता है. राष्ट्र का 9 फीसदी दुग्ध उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है. मध्य प्रदेश में प्रति व्यक्ति दुग्ध की उपलब्धता 644 ग्राम प्रतिदिन है, जबकि राष्ट्रीय औसत 459 ग्राम प्रतिदिन का है. प्रदेश में 7.5 फीसदी पशुधन है, जबकि राष्ट्रीय औसत 5.05 का है.

वर्ष 2019 की पशु संगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश में गौवंश पशु संख्या देश में तीसरे स्थान पर 187.50 लाख है, वहीं भैंस वंश पशु संख्या चौथे स्थान पर 103.5 लाख है.

प्रदेश में पशुओं के उपचार के लिए चालित पशु चिकित्सा वाहन (1962) संचालित है, जो कि स्थान पर जा कर पशुओं का इलाज करते हैं.

राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के क्रियान्वयन में मध्य प्रदेश देश में अव्वल है. भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीकी से गायों के नस्ल सुधार कार्यक्रम में प्रदेश में अच्छा कार्य हो रहा है. पशुपालकों से मात्र 100 रुपए के शुल्क पर गायों का नस्ल सुधार किया जाता है. इस से पशुपालकों को अच्छी आय प्राप्त हो रही है.

सभी कलक्टर को यह भी निर्देश दिए गए हैं कि वे इस योजना का अधिक से अधिक लाभ पशुपालकों को दें. कुक्कुटपालन एवं बकरीपालन से भी पशुपालकों को अच्छी आमदनी होती है, इस के लिए भी उन्हें प्रेरित किया जाए.

उद्यानिकी विभाग की समीक्षा के दौरान बताया गया कि दोनों संभागों में उद्यानिकी फसलों के रकबे में भी वृद्धि हो रही है. यहां के किसान उच्च मूल्य फल जैसे थाई पिंक अमरूद, एवाकाडो एवं ड्रैगन फ्रूट की सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं.

संभाग के सभी जिलों में अमरूद, ड्रैगन फ्रूट एवं संतरा फसल का विपणन दिल्ली, मुंबई आदि बड़े महानगरों में किया जा रहा है. गुलाब, जरबेरा एवं उच्च कोटि की सब्जियों की खेती पौलीहाउस एवं शेड नेटहाउस में उच्च तकनीकी से कर के अधिक उत्पादन एवं आय प्राप्त हो रही है.

नरवाई प्रबंधन के लिए सुपरसीडर या हैप्पी सीडर, मिल रहा 50 फीसदी अनुदान

कटनी : वर्तमान में अधिकतर किसान अपनी फसल की कटाई कंबाइन हार्वेस्टर से करते हैं. फसल कटाई के बाद खेत में पड़ी नरवाई में आग लगा दी जाती है, जिस के कारण वायु प्रदूषण के साथसाथ मिट्टी में उपस्थित लाभदायक सूक्ष्म जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं. इस वजह से खेत की उत्पादकता कम हो रही है एवं खेत धीरेधीरे बंजर हो रहे हैं. बिना नरवाई में आग लगाए और बिना खेत की तैयारी किए अगली फसल धान, गेहूं व दलहन की सीधी बोआई हैप्पी सीडर व सुपर सीडर कृषि यंत्र से की जा सकती है.

हैप्पी सीडर को 50 एचपी के ट्रैक्टर से आसानी से चलाया जा सकता है. हैप्पी सीडर में एक रोटर लगा होता है, जिस पर लेच लगे होते हैं, जो खड़े हुए भूसे को काटकाट कर गिराते हैं और पीछे से बोनी हो जाती है. कटा हुआ भूसा सतह पर फैल जाता है एवं 2 कतारों के बीच का खड़ा हुआ भूसा समय के साथसाथ धीरेधीरे सड़ कर कार्बनिक पदार्थ में बदल जाता है. भूसे की सतह के कारण वाष्पीकरण कम होता है, हैप्पी सीडर के उपयोग से एक सिंचाई की भी बचत होती है. हैप्पी सीडर के प्रयोग से खेत तैयार करने की लागत में भी कमी आती है. सुपरसीडर को चलाने के लिए 60 एचपी के ट्रैक्टर की जरूरत होती है.

सुपर सीडर में भी एक रोटर लगा रहता है, जो भूसे को काट कर मिट्टी में दबा देता है और पीछे से बोनी हो जाती है. इस के प्रयोग से भी खेत तैयार करने की लागत में कमी आती है.

उपसंचालक कृषि ने बताया कि हैप्पी सीडर की कीमत लगभग 2 लाख रुपए एवं सुपर सीडर की कीमत 2 से ढाई लाख रुपए है. शासन द्वारा यंत्र पर प्रदाय अनुदान राशि लघु सीमांत अनुसूचित जाति जनजाति एवं महिला किसानों को कीमत का 50 फीसदी एवं सामान्य व बड़े किसानों को कीमत का 40 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है.

हैप्पी सीडर पर 65 हजार से 80 हजार रुपए एवं सुपर सीडर पर 80 हजार से 1.50 लाख रुपए है. यंत्र प्राप्ति के लिए आवेदन कृषि अभियांत्रिकी विभाग के पोर्टल पर अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं. इन यंत्रों के प्रयोग से कृषि लागत में कमी आती है एवं मुनाफा भी बढता है.

अधिक जानकारी के लिए संपर्क  एनएल मेहरा, सहायक कृषि यंत्री, जबलपुर से उन  के मोबाइल नंबर 8889479405  और वीवी मौर्य, सहायक कृषि यंत्री, कटनी से उन के मोबाइल नंबर 9425469228 से संपर्क किया जा सकता है.