Biological Technology : जैविक तकनीक को मिला वैश्विक पुरस्कार

Biological Technology : ब्राजील की अग्रणी कृषि वैज्ञानिक डा. मारियांगेला हुंग्रिया दा कुन्हा को साल 2025 का प्रतिष्ठित ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’ दिए जाने की घोषणा वैश्विक जैविक कृषि जगत के लिए एक प्रेरणास्पद क्षण है. इस अवार्ड को “कृषि का नोबेल पुरस्कार” भी कहा जाता है.

जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण पर उन के काम ने ब्राजील को हर साल तकरीबन 25 अरब अमेरिकी डालर की रासायनिक उर्वरक लागत से छुटकारा दिलाया है.

इस अवसर पर जहां हम ब्राजील की इस वैज्ञानिक को हार्दिक बधाई देते हैं, वहीं यह तथ्य भी सामने लाना जरूरी है कि भारत में इस दिशा में व्यावहारिक और पूरी तरह से सफल मौडल पिछले 3 दशकों से विकसित किया जा चुका है.

मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर, कोंडागांव, छत्तीसगढ़ में हम ने सालों की मेहनत और शोध से एक ऐसी तकनीक को मूर्त रूप दिया है, जिस में बहुवर्षीय पेड़ विशेष रूप से आस्ट्रेलियाई मूल के “अकेशिया” प्रजाति के पौधों को विशेष पद्धति से विकसित कर के उस की जड़ों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को प्राकृतिक रूप से स्थिर कर मिट्टी में लगाया जाता है. इस की पत्तियों से बनने वाला ग्रीन कंपोस्ट अतिरिक्त लाभ प्रदान करता है, जिस से कि स्पीडो के साथ लगाए जाने वाली तकरीबन सभी प्रकार की अंतर्वत्ति फसलों को कुछ समय बाद पचासों साल तक किसी भी प्रकार की रासायनिक अथवा प्राकृतिक खाद अलग से देने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

“नेचुरल ग्रीनहाउस मौडल” के नाम से चर्चित यह तकनीक आज देश के 16 से अधिक राज्यों के प्रगतिशील किसान अपने खेतों में अपना चुके हैं. इस से न केवल रासायनिक नाइट्रोजन खाद पर निर्भरता खत्म हो रही है, बल्कि भारत सरकार द्वारा हर साल दी जाने वाली 45 से 50 हजार करोड़ की नाइट्रोजन उर्वरक सब्सिडी पर भी बड़ी बचत संभव हो रही है. भारत जैसे देश, जो रासायनिक उर्वरकों के लिए कच्चा माल आयात करता है, के लिए यह विदेशी मुद्रा की सीधी बचत करता है.

हमारा मानना है कि जिस तकनीक पर अब वैश्विक स्तर पर पुरस्कार मिल रहा है, उस पर भारत पहले ही काम कर चुका है और एक प्रमाणित, व्यावहारिक मौडल अपने देश में ही उपलब्ध है. भारत सरकार यदि समय रहते इस तकनीक को समर्थन देती, तो आज यह पुरस्कार भारत को भी मिल सकता था.

हमें यह पुरस्कार न मिलने का कोई अफसोस नहीं है, किंतु अब जबकि इस तकनीक को वैश्विक मान्यता मिल चुकी है, भारत सरकार और नीति बनाने वालों से हमारी अपेक्षा है कि वे इस देशज तकनीक को प्राथमिकता दें, इस का प्रसार करें और किसानों को रासायनिक उर्वरकों के जाल से नजात दिलाएं. यह न केवल किसानों की आत्मनिर्भरता, बल्कि राष्ट्र की आर्थिक सुरक्षा और पर्यावरणीय संरक्षण के लिए भी जरूरी है.