प्रगतिशील किसान रवि शंकर सिंह : कृषि को बनाया रोजगार 

रविशंकर उत्तर प्रदेश में लखनऊ के एक ऐसे प्रगतिशील किसान हैं, जिन्होंने खेती के साथसाथ अनेक कृषि कार्य किए हैं और नईनई तकनीकों को भी आजमाया है. कृषि यंत्रीकरण के तहत फार्म मशीनरी बैंक बनाया, तो प्रोसैसिंग को भी अपनाया.

नवंबर, 2024 में उन्हें दिल्ली प्रैस द्वारा राज्य स्तरीय फार्म एन फूड कृषि अवार्ड से भी सम्मानित किया गया.

रविशंकर सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट हैं और उन के पास उन की खुद की खेती की जमीन केवल 2 हेक्टेयर है. इस के अलावा वे अन्य किसानों की जमीन लीज पर ले कर खेती करते हैं.

रविशंकर सिंह खासकर धान, मक्का, अरहर, सावा, कोदों, मडुवा, ज्वार, बाजरा, काला नमक धान, गेहूं, गन्ना, मटर, सरसों, जौ, मसूर, आलू, टमाटर, लहसुन, धनिया, रामदाना, अदरक आदि की खेती करते हैं और जायद के मौसम में जायद-मूंग, उड़द, सूरजमुखी, मिर्च और केले की खेती करते हैं.

खेती से जुड़े कामों से ले रहे अधिक मुनाफा:

किसान रविशंकर सिंह खेती के अलावा खेती से जुड़े अनेक काम करते हैं, जिन से वे अच्छा मुनाफा ले रहे हैं और दूसरे लोगों को भी रोजगार दे रहे हैं.

मछलीपालन और रेशम कीट उत्पादन से कमाई:

रविशंकर सिंह ने बताया कि उन के पास मछलीपालन के लिए 3 हेक्टेयर में तालाब है, जिस में वे बायो फ्लाक्स, फेगेसियस, रोहू कत्ला, ग्रास और सिल्वर किस्म की मछलियां का उत्पादन करते हैं. रेशम कीट पालन के लिए 1 हेक्टेयर में शहतूत के पेड़ और 1 एकड़ में नर्सरी भी है.

डेयरी फार्मिंग से जुड़े कारोबार :

रविशंकर सिंह ने पशुपालन में अच्छा काम किया है. उन के पास पशुपालन के तहत देशी साहिवाल गिर की 10 दुधारू गाय हैं, जिन के दूध की प्रोसैसिंग कर अनेक प्रोडक्ट भी बनाते हैं. इस के अलावा वे गोमूत्र से खेती के लिए वर्मी कंपोस्ट जीवाअमृत बनाने का काम भी करते हैं.

फार्म मशीनरी बैंक से कमाई :

आधुनिकता के इस दौर में रविशंकर सिंह कृषि ने यंत्रों के इस्तेमाल पर खासा जोर दिया है. उन्होंने कृषि यंत्रों को ले कर फार्म मशीनरी बैंक बनाया हुआ है, जिस में अनेक छोटेबड़े अनेक कृषि यंत्र हैं, जिन्हें वे किसानों को किराए पर मुहैया कराते हैं, जो कमाई का अतिरिक्त साधन भी है.

इस के अलावा उन के पास प्रोसैसिंग यूनिट के तहत आटा मिल और दाल मिल भी हैं. इन से वे लोगों को अच्छी गुणवत्ता के उत्पाद उपलब्ध कराते हैं.

मधुमक्खीपालन भी करते हैं साथसाथ :

रविशंकर सिंह खेती के साथसाथ मधुमक्खीपालन भी करते हैं, जिस के तहत उन के पास 150 मधुमक्खी बौक्स हैं, जिन से वे शुद्ध शहद का उत्पादन भी करते हैं.

खेती में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल :

वे खेती में आधुनिक तकनीकों को भी अपनाते आए हैं, जैसे सिंचाई के साधनों में उन के पास खुद का ट्यूबवैल, 2 सोलर पंप और 2 इंजन पंप हैं, जिन का समय के अनुसार काम लिया जाता है.

मिल चुके हैं अनेक पुरस्कार :

रविशंकर सिंह को उन के कृषि कार्यों में मिली सफलता के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर के अनेक पुरस्कार भी मिल चुके हैं.

Potato : आगरा में खुलेगा अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र

Potato: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 24 जून, 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के सिंगरा में अंतर्राष्ट्रीय आलू (Potato) केंद्र के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र की स्थापना की मंजूरी को एक महत्वपूर्ण कदम बताया है.

पिछले दिनों दिल्ली में मीडिया से बातचीत में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि गेहूं और चावल के बाद उपभोग के लिहाज से आलू का तीसरा स्थान है. चीन के बाद भारत आलू उत्पादन में दूसरे नंबर पर है. आलू प्रमुख फसल भी है और खाद्य सुरक्षा के लिहाज से भी बेहद जरूरी है, लेकिन भारत में ज्यादातर आलू की टेबल वैरायटी का उत्पादन होता है, जबकि निर्यात बाजार में प्रोसैस करने योग्य किस्मों की मांग अधिक होती है. इस में जर्म प्लाज्म का भंडार होगा, जिस का उपयोग कर के अधिक उत्पादकता वाले बीज तैयार किए जाएंगे.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा ऐसी नई किस्मों के उत्पादन का कार्य किया जाएगा जो जलवायु अनुकूल हों और गर्मी, रोगों और कीटों जैसी अन्य विभिन्न समस्याओं से लड़ने में सक्षम हो. इस केंद्र के माध्यम से बायोफोर्टिफाईड किस्मों के विकास पर भी बल दिया जाएगा. साथ ही, आलू की ऐसी वैरायटी बनाने पर भी जोर होगा, जिसे मुधमेह के मरीज भी खा सके.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि वर्तमान में, आलू का ज्यादातर उत्पादन उत्तर भारतीय राज्यों में होता है और विंध्य पर्वत श्रृंखला के दक्षिण में उत्पादन बहुत कम है, इसलिए इस केंद्र के माध्यम से विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों के अनुसार आलू की किस्मों के विकास पर भी ध्यान दिया जाएगा. अभी देश में 34 फीसदी आलू का उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है, जिस में आगरा व आसपास के क्षेत्र प्रमुख है, इसलिए आगरा में इस केंद्र की स्थापना का निर्णय लिया गया है.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि केवल आलू ही नहीं बल्कि, अन्य कंदीय फसलों जैसे शकरकंद उस के भी क्वालिटी से भरपूर उत्पादन की दिशा में कार्य किया जाएगा. इस के लिए एक समन्वय समिति का भी गठन किया जाएगा, जिस में भारत सरकार के कृषि सचिव व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक शामिल रहेंगे.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि केंद्र के माध्यम से जो भी वैरायटी तैयार की जाएगी, उस पर भारत सरकार का अधिकार होगा. सभी वैरायटी पर हमारा नियंत्रण रहेगा.

Entrance Exam : एग्रीकल्चर विषयों में प्रवेश के लिए 28 जून को परीक्षा

Entrance Exam: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बीएससी आनर्स एग्रीकल्चर चार वर्षीय कोर्स, बीएससी आनर्स एग्री-बिजनेस मैनेजमेंट, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में बायो-केमिस्ट्री, केमिस्ट्री, एनवायरमेंटल साइंस, फूड साइंस एंड टेक्नोलौजी, मैथमेटिक्स, माइक्रो-बायोलौजी, फिजिक्स, प्लांट फिजियोलौजी, सोशियोलौजी, स्टैटिसटिक्स व जूलौजी, कालेज औफ बायो-टेक्नोलौजी में एग्रीकल्चरल बायोटेक्नोलौजी, बायोइंफौरमैटिक्स, मौलिक्यूलर बायोलौजी और बायो-टेक्नोलौजी, बायो नैनोटेक्नोलौजी व इंडस्ट्रीयल बायोटेक्नोलौजी कोर्सिज के लिए 28 जून को आयोजित होने वाली प्रवेश परीक्षा को ले कर तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि उपरोक्त पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए  9,094 उम्मीदवारों ने आवेदन किए हैं. उन्होंने बताया कि प्रवेश परीक्षा के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय सहित हिसार शहर में 17 परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं ताकि, परीक्षार्थियों को किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े. उन्होंने बताया कि परीक्षा संबंधी सभी तैयारियों को अंतिम रूप देते हुए परीक्षा केंद्रों पर परीक्षार्थियों के लिए बैठने एवं अन्य समुचित प्रबंध करने के लिए अधिकारियों एवं कर्मचारियों की ड्यूटी भी लगाई गई है. सभी परीक्षार्थियों को प्रवेश पत्र देख कर ही परीक्षा भवन में प्रवेश करने की अनुमति दी जाएगी.

सफलतापूर्वक परीक्षा के लिए परीक्षा केंद्रों पर किए जाएंगे पुख्ता प्रबंध: डा. पवन कुमार

कुलसचिव एवं परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार के अनुसार प्रवेश परीक्षा में नकल करने और दूसरे के स्थान पर परीक्षा देने वालों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी. इस के लिए विशेष निरीक्षण दलों का गठन किया गया है. प्रत्येक उम्मीदवार की फोटोग्राफी भी की जाएगी. उन्होंने बताया कि उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्र में मोबाइल फोन, कैलकुलेटर व इलैक्ट्रोनिक डायरी जैसे इलैक्ट्रोनिक उपकरण ले कर जाने की अनुमति नहीं होगी.

इन उपकरणों को उन्हें परीक्षा केंद्र के बाहर छोड़ना होगा, जिनकी सुरक्षा की जिम्मेवारी उम्मीदवारों की ही होगी. उन्होंने बताया कि उम्मीदवारों को अपना एडमिट कार्ड डाउनलोड कर के सत्यापित फोटो के साथ लाना होगा. बिना एडमिट कार्ड के वे परीक्षा केंद्र में प्रवेश नहीं पा सकेंगे. उन्होंने बताया कि उपरोक्त प्रवेश परीक्षा का समय बीएससी 4 वर्षीय पाठ्यक्रम व बीएससी आनर्स एग्री-बिजनेस मैनेजमेंट के लिए सुबह 10:00 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक जबकि शेष पाठ्यक्रमों के लिए सुबह 10:00 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक होगा. परंतु उम्मीदवारों को परीक्षा आरंभ होने के एक घंटा पहले (9:00 बजे तक) अपने परीक्षा केंद्र पर पहुंचना होगा.

उन्होंने बताया कि किसी भी समस्या के लिए उम्मीदवार विश्वविद्यालय के फ्लैचर भवन स्थित सहायक कुलसचिव (एकेडमिक) के कार्यालय में सुबह 7:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक आकर मिल सकते हैं. अन्यथा कार्यालय के फोन नं. 01662-255254 पर संपर्क कर सकते हैं. उम्मीदवार प्रवेश परीक्षा संबंधी सभी महत्वपूर्ण जानकारियां विश्वविद्यालय की वेबसाइट hau.ac.in और admissions.hau.ac.in पर उपलब्ध प्रौस्पेक्टस में देख सकते हैं.

Seminar : लुवास में “पशु चिकित्सा विज्ञान” विषय पर संगोष्ठी

Seminar : 24 जून, 2025 को लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार द्वारा वैश्विक शिक्षा और अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस संगोष्ठी का विषय “पशु चिकित्सा विज्ञान का भविष्य: प्रवृत्तियां, नवाचार और उत्तर अमेरिका का दृष्टिकोण” था.

यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के परामर्श एवं प्लेसमैंट प्रकोष्ठ द्वारा कुलपति प्रोफैसर डा. नरेश कुमार जिंदल के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों और शिक्षकों को पशु चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के नवीन अनुसंधानों, तकनीकों और कैरियर के अवसरों से अवगत कराना था.

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रोफैसर डा. पवनीश मदान थे, जो कनाडा स्थित औन्टेरियो वेटेरिनरी कालेज (गुएल्फ विश्वविद्यालय) के बायो मेडिकल साइंस विभाग से हैं. वे पशु प्रजनन जीव विज्ञान और ट्रांसलेशनल रिसर्च में अग्रणी माने जाते हैं.

डा. पवनीश मदान ने अपने ने पशु चिकित्सा विज्ञान के भविष्य को आकार देने वाली उभरती तकनीकों पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि आने वाले सालों में यह क्षेत्र अनेक क्रांतिकारी परिवर्तनों से गुजरेगा, जिन में प्रमुख हैं पुनरुत्पादक उपचार (जैसे स्टेम सेल थैरेपी), जो क्षतिग्रस्त ऊतकों के पुनर्निर्माण में सहायक है; सटीक पशु चिकित्सा देखभाल, जिस में प्रत्येक पशु की जैविक विशेषताओं के अनुसार व्यक्तिगत इलाज सुनिश्चित किया जाता है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जो निदान से ले कर उपचार निर्णयों तक की प्रक्रिया को अधिक तेज, सटीक और प्रभावी बनाती है. उन्होंने इन तकनीकों के व्यावहारिक अनुप्रयोगों को उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट करते हुए यह संदेश दिया कि पशु चिकित्सा क्षेत्र एक नई वैज्ञानिक दिशा की ओर बढ़ है.

उन्होंने छात्रों को उत्तर अमेरिका में उच्च शिक्षा, रिसर्च फैलोशिप, इंटर्नशिप और कैरियर के विकल्पों की जानकारी भी दी और उन्हें बताया कि एक वैश्विक दृष्टिकोण अपना कर वे अपने कैरियर को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं.

इस कार्यक्रम का आयोजन छात्र कल्याण निदेशक डा. सज्जन सिहाग के पर्यवेक्षण में किया गया, जबकि संचालन और समन्वय की जिम्मेदारी डा. तरुण कुमार (संयोजक, परामर्श एवं प्लेसमैंट प्रकोष्ठ) ने निभाई. पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग भी कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित रहे और उन्होंने छात्रों को इस तरह के कार्यक्रमों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया.

इस संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के इंटर्नशिप कर रहे छात्र, स्नातकोत्तर छात्र, रिसर्च स्कौलर्स और फैकल्टी मेंबर्स ने उत्साहपूर्वक भाग लिया. कार्यक्रम के अंत में एक सवालजवाब और संवाद सत्र भी आयोजित किया गया, जिस में विद्यार्थियों और शिक्षकों ने अंतर्राष्ट्रीय शोध सहयोग, नई तकनीकों का अनुप्रयोग और विदेशों में उच्च अध्ययन के अवसरों को ले कर अपने सवाल रखे और विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त किया.

आईसीएआर-सीआईएई द्वारा विकसित प्लास्टिक मल्च लेयर-कम-प्लांटर

भोपाल : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 22 जून, 2025 को आईसीएआर केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान (सीआईएई), भोपाल का दौरा किया.

जहां केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वैज्ञानिकों, छात्रों और कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कृषि के विकास में संस्थान के योगदान की सराहना की और किसान हितैषी प्रौद्योगिकियों के तीव्र विकास और विकसित प्रौद्योगिकियों को किसानों, विशेषकर छोटे किसानों तक पहुंचाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

उन्होंने कृषि में छोटे इंजन द्वारा संचालित या वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से संचालित मशीनरी विकसित करने और सैंसर आधारित प्रणालियों के अलावा अन्य प्रणालियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर भी बल दिया, ताकि सभी वर्गों के किसानों का विकास हो सके.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने देश के विभिन्न स्थानों पर किसान मेले आयोजित करने और सभी हितधारकों के साथ विचारविमर्श सत्र आयोजित करने की इच्छा जाहिर की, ताकि आने वाले समय में देश में मशीनीकरण की रूपरेखा तैयार की जा सके. इस के अलावा उन्होंने खाद्य सुरक्षा, मृदा स्वास्थ्य और प्रयोगशाला से भूमि तक प्रौद्योगिकियों के प्रभावी हस्तांतरण के महत्व पर भी जोर दिया.

इस कार्यक्रम में सचिव (कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) एवं आईसीएआर के महानिदेशक डा.एमएल जाट, उप महानिदेशक (इंजीनियरिंग) डा. एसएन झा, उप महानिदेशक (विस्तार) डा. एके नायक, आईसीएआर-सीआईएई के निदेशक डा. सीआर मेहता और आईसीएआर-आईआईएसएस, भोपाल के निदेशक डा. एम मोहंती उपस्थित थे.

आईसीएआर-सीआईएई द्वारा विकसित ट्रैक्टर चालित प्लास्टिक मल्च लेयर-कम-प्लांटर

ऊंची क्यारियों का निर्माण, ड्रिप लेटरल, प्लास्टिक मल्च बिछाना और मल्च के नीचे बीज बोने का कार्य मैन्युअल रूप से करना कठिन, अधिक समय और ज्यादा मेहनत का काम होता है, जिस में तकरीबन 29 दिन प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. इन सभी कार्यों को एक साथ करने के लिए ट्रैक्टर चालित प्लास्टिक मल्च लेयर-कम-प्लांटर विकसित किया गया है.

इस यंत्र में ट्रैक्टर की हाइड्रोलिक प्रणाली का उपयोग कर के हाइड्रोलिक मोटर (385 न्यूटन मीटर) और चेन-स्प्रोकेट ट्रांसमिशन सिस्टम के माध्यम से एक्सेंट्रिक स्लाइडर क्रैंक मैकेनिज्म संचालित किया जाता है, वहीं बीज मापने की इकाई में वैक्यूम ट्रैक्टर के पीटीओ से चलने वाले एस्पिरेटर ब्लोअर द्वारा तैयार किया जाता है.

एक्सेंट्रिक स्लाइडर क्रैंक मैकेनिज्म ड्राइविंग डिस्क की घूमने वाली गति को कनेक्टिंग रौड के माध्यम से स्लाइडर क्रैंक में ऊर्ध्वाधर गति में बदल देता है और पंच प्लांटिंग मैकेनिज्म के “D” प्रोफाइल को मिट्टी में खोलता है.

प्न्यूमैटिक बीज मापने वाली प्लेट और एक्सेंट्रिक स्लाइडर क्रैंक मैकेनिज्म को इस प्रकार समकालिक किया गया है कि मापने वाली प्लेट द्वारा उठाया गया बीज बंद “प्लांटिंग जॉ” में डाला जाता है, जो बीज को पकड़े रखता है और स्लाइडर क्रैंक के माध्यम से प्लास्टिक मल्च में प्रवेश करने के बाद उसे छोड़ता है.

इस यंत्र की प्रभावी कार्य क्षमता 0.2 हेक्टेयर प्रति घंटा और कार्य कुशलता 74 फीसदी है, जो 1.7 किलोमीटर प्रति घंटा की गति और 1 मीटर कार्य चौड़ाई पर आधारित है. इस यंत्र की कुल लागत 3 लाख रुपए और संचालन लागत 1500 रुपए प्रति घंटा है. इस का पेबैक पीरियड 1.9 साल (444 घंटे) और ब्रेक-ईवन पौइंट 70 घंटे हर साल है.

इस यंत्र में कतार से कतार की दूरी 0.5 से 0.9 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 0.2 से 0.6 मीटर को यांत्रिक रूप से समायोजित करने की सुविधा है. यह यंत्र मौजूदा ड्रिप लेटरल-कम-प्लास्टिक मल्च लेयर मशीन की तुलना में 26 दिन प्रति हेक्टेयर (89 फीसदी) और 6600 प्रति हेक्टेयर (43 फीसदी) लागत की बचत करता है.

यह यंत्र प्लास्टिक मल्च में उच्च मूल्य वाली फसलें जैसे खरबूजा, ककड़ी, स्वीट कौर्न, बेबी कौर्न, हरी मटर, भिंडी, फलियां आदि लगाने के लिए सब से बेहतर है.

Grain warehouse : बिहार में 50,000 मीट्रिक टन क्षमता वाला अनाज गोदाम

Grain warehouse: बिहार के खगड़िया जिले में निर्मित अत्याधुनिक साइलो गोदाम का उद्घाटन 23 जून, 2025 को केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण और नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रल्हाद जोशी ने किया.

इस अवसर पर जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस साइलो गोदाम की कुल क्षमता 50,000 मीट्रिक टन है. साथ ही साथ इस तरह के साइलो गोदाम के निर्माण से कम जगह में अनाज भंडारण बेहतरीन तरीके से हो पाता है. इस के अलावा अनाज की सुरक्षा भी अत्याधुनिक यंत्रों के उपयोग से कई गुना बढ़ जाती है.

इस उद्घाटन समारोह के अवसर पर केंद्रीय उपभोक्ता, खाद्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा कि यह साइलो पूरी तरह यंत्रीकृत है और स्टील से निर्मित है, जिस से कम जगह में अधिक अनाज इकट्ठा किया जा सकता है और इस सुविधा में भंडारण के दौरान अनाज खराब नहीं होगा और  इस से अनाज भंडारण नुकसान में भी कमी आएगी.

केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी ने केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का जिक्र करते हुए कहा कि इस के तहत लगभग 80 करोड़ देशवाशियों को मुफ्त में अनाज दिए जा रहे हैं. यह संख्या कई यूरोपीय देशों के सामूहिक जनसंख्या से भी ज्यादा है.

इस के साथ ही, उन्होंने ने पीएम सूर्य घर योजना, पीएम कुसुम योजना संबंधी योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसी नीतियों की वजह से भारत आज सब से तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन गया है. कल्याणकारी नीतियों की कड़ी मे उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र करते हुए कहा कि आज 48 घंटे के अंदर में किसान के खाते में पैसा पहुंच रहा है. जहां 3,80,000 करोड़ रुपए सीधे प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के लाभार्थियों के खाते मे पारदर्शी तरीके से पहुंचा दिए गए हैं.

बिहार राज्य के अंदर केंद्र सरकार के कार्यों का जिक्र करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मखाना बोर्ड का गठन प्रधानमंत्री के बिहार के प्रति विशेष प्रेम को दर्शाता है. इस ऐतिहासिक अवसर पर बिहार के खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री लेसी सिंह भी उपस्थित रही. इस के अतिरिक्त, अन्य वरिष्ठ गणमान्य व्यक्ति, स्थानीय जनप्रतिनिधि, और प्रशासनिक अधिकारी भी इस अवसर पर मौजूद रहे.

Price Support Scheme : सरकार करेगी मूंग और उड़द की खरीद

Price Support Scheme : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 24 जून, 2025 को नई दिल्ली में बैठक कर मध्य प्रदेश में मूंग और उड़द व उत्तर प्रदेश में उड़द को मूल्य समर्थन योजना (Price Support Scheme) के तहत खरीदने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. साथ ही, खरीद से संबंधित व्यवस्थाओं को ले कर राज्य के कृषि मंत्रियों के साथ संवाद भी किया और नाफेड, एन.सी.सी.एफ. व राज्य के संबंधित अधिकारियों को आवश्यक दिशानिर्देश भी दिए.

मध्य प्रदेश के लिए राज्य सरकार से प्राप्त प्रस्ताव पर मंत्रालय द्वारा विचार करने और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह द्वारा राज्य सरकार व अन्य हितधारकों के साथ बैठक के बाद मूल्य समर्थन योजना के तहत राज्य में ग्रीष्मकालीन मूंग और ग्रीष्मकालीन उड़द खरीद करने की मंजूरी प्रदान की गई है.

उत्तर प्रदेश में मूल्य समर्थन योजना के तहत राज्य में ग्रीष्मकालीन उड़द खरीद करने की मंजूरी प्रदान की गई है. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठक में कहा कि मूंग और उड़द की खरीद के फैसले से केंद्र सरकार को बड़ा वित्तीय भार उठाना पड़ेगा, लेकिन इस के बावजूद किसान हित के लिए सरकार किसानों तक लाभ पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है.

उन्होंने कहा कि यह बहुत जरूरी है कि खरीद सही तरीके से हो. किसानों से सीधे खरीद से ही बिचौलियों की सक्रियता कम होगी और सही मायनों में लाभ किसान तक पहुंच पाएगा. अधिकारियों को दिशानिर्देश देते हुए उन्होंने कहा कि आधुनिकतम व कारगर प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के साथ किसानों के पंजीकरण की उचित व्यवस्थाएं की जाएं. अगर जरूरत पड़े तो खरीद केंद्रों की संख्या में भी इजाफा करें व उचित और पारदर्शी व्यवस्था के साथ खरीद फसलों की खरीद सुनिश्चित करें.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भंडारण को ले कर मिल रही अव्यवस्था की शिकायत को ले कर भी चिंता जाहिर की और अधिकारियों व राज्यों के कृषि मंत्रियों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए प्रयास करने की बात कही. उन्होंने उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री से कहा कि केंद्र सरकार किसानों के हित में हरसंभव काम करेगी.

इस बैठक में मध्य प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री एदल सिंह कंषाना, उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, केंद्रीय कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी व अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे.

Sweets : रसीली और कुरकुरी इमरती (Imarti)

Imarti: इमरती और जलेबी का रंग करीबकरीब एक जैसा ही होता है. दोनों के स्वाद और डिजाइन में फर्क होता है. इमरती सब से पुरानी मिठाइयों में शुमार की जाती है. देश के हर छोटेबडे़ बाजार में यह मिलती है. उड़द की दाल से तैयार होने के कारण यह खोए और दूध की मिठाइयों की तरह जल्द खराब नहीं होती है. इस का रसीला कुरकुरा स्वाद खाने वालों को बहुत पसंद आता है. इमरती का डिजाइन दूसरी मिठाइयों से पूरी तरह अलग होता है. इस का आकार अलग होने के साथ एकदम गोल होता है. इस के आकार को बनाना कुशल कारीगर का ही काम होता है. भारतीय समाज में इमरती कुछ इस तरह से रचबस गई है कि तमाम लोग अपनी लड़कियों के नाम तक इमरती देवी रखते रहे हैं.

उड़द की दाल से बनी होने की वजह से यह चीनी की चाशनी को इतना अंदर तक सोख लेती है कि इसे खाते ही इस का लाजवाब स्वाद मुंह में घुल जाता है. कुछ लोग इमरती को जलेबी घराने की मिठाई मानते हैं. यह सच बात नहीं है. इमरती और जलेबी दोनों ही अलगअलग हैं. इमरती उड़द की दाल से बनती है, जबकि जलेबी मैदे से तैयार होती है. डिजाइन के हिसाब से देखें तो भी जलेबी और इमरती अलगअलग होती हैं. इमरती भारत की मिठाई नहीं है. यह अरब और ईरान देशों से भारत आई है.

अलगअलग नाम

भारत में यह मिठाई अवध क्षेत्र में आ कर प्रचलित हुई. वहां यह नवाबी मिठाई के रूप में मशहूर हुई. नवाबों की रसोई से निकल कर यह रजवाड़ों तक पहुंच गई. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली व पंजाब के अलावा पूर्व और दक्षिण भारत के शहरों में भी इमरती खूब प्रचलित है. पश्चिम बंगाल में इसे ‘ओम्रीती’ और केरल में ‘जांगिरीग’ कहते हैं. इमरती को गरमागरम खाना पंसद किया जाता है. जलेबी को जहां दही के साथ खाया जाता है, वहीं इमरती को रबड़ी के साथ खाना पसंद किया जाता है.

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में खास किस्म की इमरती बनती है. यह बिना किसी रंग की होती है. यह कुरकुरी नहीं होती है. इसे मिट्टी की मटकी में रख कर बेचा जाता है. जौनपुर की इमरती ‘बेनी की इमरती’ के नाम से मशहूर है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी इमरती बहुत मशहूर है. यहां करीबकरीब हर मिठाई की दुकान में यह मिल जाती है. लखनऊ में शाम के 4 बजते ही इमरती की बिक्री शुरू हो जाती है. देर रात तक लोग इस का स्वाद लेते हैं. शादीविवाह के मौकों पर भी खाने के साथ इमरतीरबड़ी खाने का रिवाज है. फैशन डिजाइनर जस चंदोक कहती हैं, ‘इमरती अपने स्वाद और आकार के कारण सब को पसंद आती है. सब से पुरानी मिठाई होने के कारण इसे नई और पुरानी दोनों पीढि़यां खूब पंसद करती हैं.’

कैसे बनती है इमरती

मिठाई के पुराने कारीगर राम कुमार गुप्ता कहते हैं, ‘इमरती को बनाने के लिए उड़द की दाल को पीस कर गूंधा जाता है. इसे रगंने के लिए खाने वाला केसरिया रंग मिलाया जाता है.  इस के बाद इसे कपडे़ में लिया जाता है. इस कपडे़ में नीचे छेद होता है. यह छेद काफी छोटा होता है.  हाथ के दबाव से गूंधी हुई उड़द की दाल को पतली डोरी की तरह नीचे कढ़ाई के गरम तेल में गिराया जाता है. इसे घुमावदार डिजाइन में तैयार किया जाता है.

‘गोलगोल घुमावदार आकार वाली इमरती जब तेल में ठीक ढंग से फ्राई हो जाती है, तो उसे निकाल कर चीनी से बनी चाशनी में डाल दिया जाता है. चाशनी को पहले ही बना कर रख लिया जाता है. उड़द की दाल से बनी होने के कारण यह चाशनी को अंदर तक सोख लेती है, जिस से मिठास अंदर तक पहुंच जाती है. इस के स्वाद का कुरकुरापन लोगों को खूब पसंद आता है.’

Curd : लाजवाब होता है दही

Curd : हर दिन के खाने में शामिल रहने वाला दही बेमिसाल खूबियों से भरपूर होता है. दही (Curd) के इस्तेमाल से न सिर्फ खाने का जायका ही बढ़ता है, बल्कि सेहत के लिहाज से भी यह कमाल का होता है. इस से बनने वाली लस्सी तो पूरे गरमी के मौसम में घरघर में छाई रहती है. गरमी जाने के बाद भी लस्सी की दुकानों पर लस्सी के दीवानों की लाइनें लगी रहती हैं.

लस्सी के अलावा भी दहीबूरा, दहीचीनी या दहीनमक बहुत से लोगों के हर खाने में शामिल होता है. साउथ के लोग तो अपने सांभरचावल में सादा दही शौक से मिलाते हैं. बगैर दही के उन्हें हर खाना फीका लगता है.

हर चाट व रायते में शामिल रहने वाला दही किसी दायरे का मुहताज नहीं है. तमाम लोग हर सुबह दही व जलेबी का नाश्ता डट कर करते हैं. यानी स्वाद के मोरचे पर दही बराबर डटा रहता है.

कैल्शियम, प्रो बायोटिक बैक्टीरिया व मिनरल्स सहित तमाम पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर दही को पावर फूड कहा जाता है. जायके में तो यह लाजवाब होता ही है, साथ ही सेहत सुधारने व शक्ति देने में भी इस की भूमिका गजब की होती है.

ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक 13वीं सदी में जब चंगेजखान अपनी मुहिम पर निकला था, तो उस के खाने का इकलौता जरीया दही ही था. इस बात से समझा जा सकता है कि दही से शरीर को काम करने की कितनी कूवत मिलती है. यह भी साबित हो चुका है कि दही खाने से सेहत अच्छी होने के साथसाथ जिंदगी भी लंबी होती है. इसी वजह से दुनिया भर के तमाम देशों में सदियों से दही का लगातार इस्तेमाल हो रहा है.

हिंदुस्तानी खाने में भी दही का रिवाज सदियों से चला आ रहा है. पौराणिक किस्सेकहानियों में भी गायों व दूध, दही व मक्खन का हमेशा जिक्र होता रहा है. मोटे तौर पर जब से गायों को पालने का रिवाज शुरू हुआ तभी से दूध के साथसाथ दही का सिलसिला भी शुरू हो गया था. अब तो भैंस के दूध का दही और भी ज्यादा पसंद किया जाने लगा है.

जायका और सेहत

किसी भी खाने में अगर दही शामिल कर दिया जाए तो उस का जायका तो बढ़ता ही है, साथ ही साथ उस की पौष्टिकता में भी इजाफा हो जाता है. खूबियों से भरपूर दही में प्रोबायोटिक फूड काफी मात्रा में पाया जाता है, इस से शरीर की हड्डियां मजबूत होती हैं. इस के अलावा इनसान का हाजमा दुरुस्त रखने में भी दही कारगर किरदार निभाता है.

खानपान के माहिर डाक्टरों का कहना है कि दही में लाभदायक बैक्टीरिया काफी मात्रा में होते हैं, जिन से कैल्शियम हासिल होता है और पेट की तकलीफों में राहत मिलती है.

दही को मथ कर बनाया जाने वाला मट्ठा गरमी के मौसम में खासतौर पर फायदा पहुंचाता है. जो लोग मटनचिकन वगैरह नहीं खाते उन्हें दही के जरीए ही कैल्शियम, विटामिन डी और विटामिन बी 12 आसानी से मिल जाते हैं. शाकाहारी लोगों को भरपूर मात्रा में दही का इस्तेमाल करना चाहिए.

चूंकि दही में 30 फीसदी पानी होता है, लिहाजा इसे खाने वाले के शरीर में पानी की कमी नहीं होने पाती. गरमी के मौसम में ज्यादा पसीना आने से शरीर का काफी पानी निकल जाता है, मगर दही या लस्सी का इस्तेमाल करने से यह कमी दूर हो जाती है.

वैसे तो तमाम लोग दही में चीनी डाल कर स्वाद से खाते हैं, पर खानपान के माहिरों का कहना है कि इस से पेट में आंव पैदा होता है. माहिरों का कहना है कि अगर मीठा दही ही खाना हो तो उस में चीनी के बजाय फल मिला कर खाना बेहतर रहता है. इस से दही के साथसाथ फलों के फायदे भी मिल जाएंगे और नुकसान बिल्कुल नहीं होगा.

कुछ लोग दही में नमक डाल कर खाना पसंद करते हैं. इस मामले में माहिरों का कहना है कि सफेद नमक के बजाय काला नमक डाल कर दही खाना बेहतर है, यह ज्यादा फायदेमंद होता है. माहिरों के मुताबिक हाजमा सुधारने के लिए छाछ पीना बहुत कारगर रहता है.

दही की चंद खासीयतें

* दही में विटामिन बी 2 और बी 12 पाए जाते हैं, जो आंखों और त्वचा के लिए लाभदायक होते हैं. इन से खून की कमी नहीं होने पाती.

* दही में विटामिन डी और ई भी होते हैं, जो प्रजनन अंगों को दुरुस्त रखते हैं.

* दही में तमाम मिनरल होते हैं, जो शरीर के तमाम कामों के लिए जरूरी हैं.

* इस में कैल्शियम व फास्फोरस तत्त्व भी होते हैं, जो हड्डियां मजबूत करते हैं.

* इस में पोटैशियम व मैग्नीशियम भी काफी मात्रा में होते हैं, जो धमनियों व शिराओं की सेहत के लिए कारगर होते हैं.

* दही के नियमित इस्तेमाल से मेनोपाज की हालत में महिलाओं को आस्टियोपोरोसिस होने का खतरा नहीं रहता.

* इस में पाए जाने वाले प्रोबायोटिक तत्त्वों की वजह से कब्ज, दस्त व कोलोन कैंसर जैसी तकलीफों में आराम पहुंचता है.

* नियमित रूप से दही खाने से शुगर की मरीज महिलाओं को क्रानिक केंडाइडल वेजेनाइटिस में आराम मिलता है.

* दूध के मुकाबले दही काफी जल्दी हजम हो जाता है, जबकि इस में काफी मात्रा में प्रोटीन होता है.

* दही में पाए जाने वाले प्रोबायोटिक बैक्टीरिया रोगों से लड़ने की कूवत में इजाफा करते हैं. ये बैक्टीरिया तमाम संक्रमणों, जलन व एलर्जी से भी बचाते हैं.

* दही खाने से भूख मिट जाती है और तृप्ति की डकार आती है.

* इस में पाए जाने वाले कैल्शियम से शरीर के फैट सेल्स कम कार्टिसोल का उत्सर्जन करते हैं, जिस से वजन घटाना आसान हो जाता है.

* इस में पाए जाने वाले एमीनो एसिड्स भी फैट कम करते हैं.

* दही के इस्तेमाल से एलडीएल कोलेस्ट्राल का स्तर घटता है, नतीजतन कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का खतरा कम हो जाता है.

* थकान मिटाने और ऊर्जा हासिल करने के लिए रोजाना दही खाना कारगर रहता है.

* रोजाना के खाने में दही शामिल करने से तनाव दूर होता है, साथ ही पेट और आंतों की तकलीफें भी दूर होती हैं.

वैज्ञानिकों द्वारा किए गए तमाम अध्ययनों से साबित हो चुका है कि पौष्टिकता के लिहाजा से दही लाजवाब होता है. वैज्ञानिकों ने दही को पौष्टिकता से भरपूर खाद्य पदार्थ माना है.

हार्वर्ड स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के ताजा अध्ययन से चला है कि दही के भरपूर इस्तेमाल से टाइप 2 डायबिटीज का खतरा काफी कम हो जाता है.

एक अन्य खोज में जापान के माहिर शोधकर्ताओं ने 1000 लोगों पर शोध कर के नतीजा निकाला कि जिन लोगों ने खालिस दही व दही से बने पेय पदार्थों का खूब ज्यादा इस्तेमाल किया था, उन के मसूढ़े बेहद स्वस्थ व मजबूत थे.

कुल मिला कर इस बात में रत्ती भर भी शक की गुंजाइश नहीं है कि दही एक लाजवाब और बेमिसाल खाद्य पदार्थ है, जो बेहिसाब खूबियों का खजाना है.

Peanuts : मूंगफली की खेती और रोग प्रबंधन

Peanuts : मूंगफली एक तिलहनी फसल है. दुनिया में भारत मूंगफली का सब से ज्यादा उत्पादन करने वाला देश है. लेकिन भारत की औसत उपज काफी कम है. भारत में मूंगफली की फसल गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब, ओडिशा, आंध्र प्रदेश व राजस्थान में सब से ज्यादा उगाई जाती है.

इस की खेती खरीफ व गरमी के मौसम में की जाती है. मूंगफली की कम पैदावार के कारणों में सब से बड़ा कारण है इस फसल पर रोगों का प्रकोप. किसान रोगों से फसल को बचा कर मूंगफली की पैदावार बढ़ा सकते हैं. मूंगफली के रोग हैं:

कालर राट

यह रोग ‘एसपरजिल्लस नाइजर’ नामक कवक से होता है. यह रोग सभी इलाकों में पाया जाता है. बीज बोने के बाद किसी भी अवस्था में इस का संक्रमण हो सकता है. यह रोग बोआई के करीब 20 से 40 दिनों के अंदर दिखाई पड़ता है. रोग की शुरुआत में पौधों का मुख्य अक्ष मुरझा जाता है लेकिन जमीन के ऊपरी तनों व जड़ों पर कोई असर दिखाई नहीं देता. कुछ समय बाद मुख्य अक्ष मर जाता है.

जमीन की सतह के साथ एक धब्बा बन जाता है जो कि फफूंद के बीजाणुओं से ढक जाता है, जैसेजैसे रोग आगे बढ़ता है पौधों का कौलर भाग मुरझाने लगता है. पौधों की नीचे वाली पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. कौलर रोट का सब से खास लक्षण सूखे मौसम में तुरंत मुरझा कर सूख जाना है. बाद में रोग लगे भागों का झड़ना शुरू होता है और फिर पौधे नष्ट हो जाते हैं.

रोकथाम

* साफ व बिना रोग लगे बीज इस्तेमाल करने चाहिए.

* टूटे हुए, कटे हुए और संक्रमित बीजों को निकाल देना चाहिए.

* बीज को अच्छी तरह सुखा कर जमा करना चाहिए.

* बिना रोग लगे अच्छे बीजों की बोआई करनी चाहिए.

* बीजों को बोआई से पहले 2 ग्राम कार्बंडाजिम या 3 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

* कवकनाशी और कीटनाशी दोनों रसायनों से बीजों को उपचारित करने से ज्यादा फायदा होता है.

* फसल चक्र अपनाएं.

* खेत में समय पर सिंचाई करें.

* रोगी पौधों के अवशेषों को खेत में न रहने दें.

टिक्का या पत्तीधब्बा रोग

यह रोग भी कवक से फैलने वाला होता है, जो 2 तरह का होता है:

अगेती धब्बा रोग : यह रोग सरकोस्पोरा अरेचिडीकोला नाम के कवक से होता है. सब से पहले रोग के लक्षण पत्तियों पर धब्बों के रूप में दिखाई पड़ते हैं. फसल बोने के करीब 30 दिनों बाद गोल या किसी भी आकार के धब्बे बनते हैं. पत्ती की ऊपरी सतह पर धब्बे का रंग लाल, भूरा या काला व निचली सतह पर हलका भूरा होता है.

पिछेती धब्बा रोग : यह रोग ‘फीयोआइसेरीयोप्सिस परसोनेटा’ फफूंद से फैलता है. यह रोग ज्यादा नुकसानदायक होता है, क्योंकि इस का फैलाव तेजी से होता है. इस रोग के कारण बने धब्बों का आकार छोटा या गोलाकार और रंग गहरा भूरा या काला होता है. धब्बे पत्तियों के अलावा तने पर भी बनते हैं. रोग जब बढ़ जाता है, तो पत्तियां गिर जाती हैं और पैदावार में कमी आती है.

ये दोनों ही प्रकार के रोग जमीन व बीज से होते हैं. फसल पर रोग शुरू में ही तेजी से बढ़ने लगता है. 25 से 30 डिगरी व अधिक नमी रोग को बढ़ावा देती है. रोग का दूसरा संक्रमण खड़ी फसल में पौधे से पौधे और खेत से दूसरे खेत में हवा, कीट व बारिश के द्वारा होता है.

रोकथाम

* रोग लगी फसल के ठूंठों को फसल कटाई के बाद खेत से निकाल कर गड्ढे में दबा दें या जला दें.

* फसलचक्र अपनाएं.

* खेत के अंदर व आसपास उगे खरपतवारों को समय पर निकालते रहें.

* फसल पर रोग के लक्षण दिखाई देते ही कार्बंडाजिम 0.1 फीसदी या मेंकोजेब 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करें. जरूरत के हिसाब से 10 से 15 दिनों के अंतर पर छिड़काव दोहराएं.

रोली रोग या किट्ट रोग

यह रोग ‘पक्सीनिया अरेचिडिस’ नामक कवक से होता है. सब से पहले पत्ती की निचली सतह पर संतरे के रंग के छोटेछोटे दाने दिखाई देते हैं. बाद में ये दाने पत्ती की ऊपरी सतह पर उभर आते हैं. दानों की बनावट गोलाकार होती है. इस रोग के लक्षण पौधे के सभी ऊपरी भागों पर दिखाई देते हैं. रोग लगे पौधों के दाने सिकुड़े व छोटे रह जाते हैं. पैदावार में कमी आती है.

रोकथाम

* फसलचक्र अपनाएं और खेत में लगातार मूंगफली की फसल न लें.

* खेत के आसपास के खरपतवारों को खत्म करें

* रोग के लक्षण दिखाई देते ही मेंकोजेब 0.2 फीसदी या क्लोरोथेलोनिल 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करें. इस से टिक्का रोग की भी रोकथाम हो जाती है.

Peanuts

कालिका क्षय

यह रोग ‘पी नट बड नेक्रोसिस वायरस’ से होता है व थ्रिप्स कीट से फैलता है. शुरू में इस रोग से नई निकली पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे व धारियां बन जाती हैं. बाद में मुलायम पत्तियां निकलने के बाद ये सूखना शुरू हो जाती हैं. रोग के बढ़ जाने पर पौधे की बढ़वार रुक जाती है व पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है. रोगी पौधे के बीज सिकुड़े व छोटे रह जाते हैं.

रोकथाम

* बोआई देरी से करें (जुलाई के पहले या दूसरे सप्ताह में).

* बीज की मात्रा सामान्य से अधिक रखें.

* कतार से कतार की दूरी सामान्य से कम रखें.

* मूंगफली के साथ बाजरा या ज्वार की मिलीजुली खेती (1:3) करने से रोग में कमी होती है.

* फसल 40 दिनों की हो जाने पर डाइमिथोएट या मोनोक्रोटोफास का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.

* मूंगफली की रोगरोधी किस्मों का इस्तेमाल करें जैसे कादिरी 3, आईसीजीएस 11, आईसीजीवी 86388, आईसीजीबी 86029, टेग 24, बीएसआर 1.

मूंगफली का पुंज विषाणु रोग

यह रोग ‘पी नट क्लंप वायरस’ के नाम से भी जाना जाता है. इसे विषाणु गुच्छा रोग भी कहते हैं. इस रोग के कारण पौधे बौने हो कर गहरे हरे रंग के गुच्छों में बदल जाते हैं. खेत में रोग के लक्षण शुरू में छोटेछोटे समूहों में दिखते हैं. बाद में पूरे खेत में रोग फैल जाता हैं. यह रोग जमीन में पाए जाने वाले ‘पोलीमिक्सा ग्रेमिनिस’ नामक कवक द्वारा होता है.

रोकथाम

* खरपतवारों को खेत से निकालते रहें.

* बीमारी लगी फसल से मिले बीजों का इस्तेमाल न करें.

* मूंगफली के रोग लगे खेतों में रबी मौसम में सरसों की फसल लगाएं.

* रोग लगे खेतों में मूंगफली बोने से पहले गरमी के मौसम में बाजरे की बोआई करें. बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के आसपास रखें. बोआई के 15 दिनों बाद बाजरे के पौधों को निकाल दें. उस के बाद मूंगफली बोएं.

* मूंगफली बोते समय कापर आक्सीक्लोराइड कवकनाशी का 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बना कर कूड़ों में छिड़काव करें.

पीलिया रोग

यह रोग पोषक तत्त्वों की कमी का रोग है. इस रोग में फसल पीली पड़ जाती है व उपज में कमी आती है.

रोकथाम

जिन खेतों में मूंगफली में पीलिया रोग लगता है, वहां 3 साल में 1 बार बोआई से पहले 250 किलोग्राम गंधक या 25 किलोग्राम हरा कसीस प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. या हरा कसीस के 0.5 फीसदी घोल (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या गंधक के अम्ल का 1 मिलीलीटर प्रति 1 लीटर पानी में घोल बना कर 2 बार छिड़काव करें. पहला छिड़काव फूल आने से पहले करें व दूसरा फूल आने के बाद करें.