औषधीय व खुशबूदार पौधों की जैविक खेती

शुरू से ही इनसान दूसरे जीवों की तरह पौधों का इस्तेमाल खाने व औषधि के रूप में करता चला आ रहा है. आज भी ज्यादातर औषधियां जंगलों से उन के प्राकृतिक उत्पादन क्षेत्र से ही लाई जा रही हैं. इस की एक मुख्य वजह तो उन का आसानी से मिलना है. वहीं दूसरी वजह यह है कि जंगल के प्राकृतिक वातावरण में उगने की वजह से इन पौधों की क्वालिटी अच्छी और गुणवत्ता वाली होती है.

वर्तमान में एलोपैथी की रासायनिक दवाओं के कई बुरे प्रभावों के चलते पौधों से उत्पादित आयुर्वेदिक हर्बल दवाओं का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. इस वजह से इन का जंगलों से दोहन अधिक बढ़ रहा है और मांग को पूरा करने के लिए कई औषधीय एवं सुगंधीय पौधों की खेती की जा रही है.

चूंकि औषधियां रोगों को ठीक करने और सुगंधीय फसलों में से सुगंधित पदार्थ निकालने में काम आती हैं, इसलिए उत्पादन अधिक करने के बजाय अच्छी क्वालिटी के लिए उत्पादन बाजार की मांग के मुताबिक करना जरूरी है. अच्छी क्वालिटी हासिल करने के लिए जैविक या प्राकृतिक तरीके से उत्पादन ही एकमात्र तरीका है, क्योंकि :

* प्राकृतिक या जैविक तरीके से उत्पादन करने पर औषधीय पौधों में घुलनशील तत्त्व व खुशबूदार पौधों में तेल की मात्रा बढ़ जाती है, जबकि रसायनिक उर्वरकों जैसे यूरिया, डीएपी आदि के प्रयोग से उन की क्वालिटी लगातार घटती जाती है.

* रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से औषधि विष बन जाती है अर्थात कीटनाशकों के अवशेष रोगी के रोग ठीक करने के बजाय रोग को और अधिक बढ़ा सकते हैं. इसलिए सिर्फ प्राकृतिक तरीकों से रोग, कीट नियंत्रण ही औषधीय पौधों की खेती में न केवल बाजार के लिए जरूरी है, बल्कि यह एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है.

* इस के अलावा कई अन्य प्रकार की हानियां हैं, जो रासायनिक खेती से जुड़ी हैं. ये सभी इन फसलों की खेती में भी होती हैं. जैसे लागत का बढ़ना, भूमि की कूवत का कम होना, कीटनाशकों में प्रतिरोधकता पैदा होना और गांवखेत में प्रदूषण का लैवल बढ़ना आदि. इसलिए सही यही है कि औषधीय और खुशबूदार पौधों की जैविक खेती की जाए.

जरूरी भी और मजबूरी भी

पर्यावरण व भूमि को बचाने के लिए और लोगों के स्वास्थ्य के लिए जैविक खेती बहुत जरूरी है. कर्ज के बोझ को कम करने एवं कम होते भूजल से ही खेती करने के लिए जैविक खेती मजबूरी है.

भविष्य में पैट्रोलियम पदार्थों के लगातार बढ़ते दाम और घटती मांग से उवर्रक एवं कीटनाशकों की उपलब्धता (पैट्रोलियम से ही बनते हैं) अपनेआप खतरे में पड़ जाएगी, तब जैविक खेती ही संभव होगी, इसलिए वर्तमान या भविष्य की जरूरत को समझ कर जैविक खेती करना ही एकमात्र विकल्प है.

जैविक खेती के लिए सुझाव

औषधीय और खुशबूदार पौधों की खेती हमेशा जंगल जैसा वातावरण बना कर ही की जाए अर्थात खेत में कुछ पेड़, कुछ झाडि़यां, कुछ लताएं और कुछ शाकीय फसलें हों. इस में मिट्टी की उर्वरता, सूरज की रोशनी, मिट्टी में नमी से जो संतुलन होगा, उस से इन की क्वालिटी बढ़ेगी. दूसरे कई फसलों के होने से बाजार में मांगपूर्ति में संतुलन हो सकेगा, जिस से किसानों को नुकसान होने की संभावना कम होगी.

वर्मी कंपोस्ट या केंचुआ खाद का प्रयोग 10-12 टन प्रति हेक्टेयर हर साल अवश्य किया जाना चाहिए, जिस में अधिकांश मात्रा निराईगुड़ाई के समय दी जानी चाहिए. इस से न केवल अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा, बल्कि क्वालिटी भी अच्छी होगी, किंतु वर्मी कंपोस्ट खुद के खेत अथवा ग्राम स्तर पर बना कर नमीयुक्त अवस्था में छायादार जगह पर भंडारण कर 15-20 दिन में उपयोग कर लेना चाहिए, क्योंकि प्लास्टिक के बोरों में पैक सूखा या 15 दिन से ज्यादा पुराने वर्मी कंपोस्ट के गुण बहुत कम हो जाते हैं.

रोग एवं कीट पर नियंत्रण पाने के लिए नीम+ गोमूत्र का छिड़काव 15-20 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए. भूमि के रोग एवं कीटों को खत्म करने के लिए नीम की खल या पिसी हुई निंबोली 4-5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में 2 साल में एक बार अवश्य मिलानी चाहिए.

अग्निहोत्र, अमृतपानी, पंचगव्य आदि का प्रयोग मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ाने व जलवायुजनित कीट व रोग से बचाव करने के लिए किया जा सकता है.

कुछ औषधीय फसलों की खेती सामान्य फसल चक्र या अन्य के रूप में भी की जा सकती है. जैसे धान के साथ बच की खेती से धान के कई कीटों से छुटकारा मिलता है, इसी प्रकार सब्जियों की खेती के अंतराशस्य के रूप में खुशबूदार घासों/मसालों की खेती से कई रोग व कीट कम हो जाते हैं.

औषधीय पौधों में क्वालिटी सब से प्रमुख है, इसलिए सही समय पर कटाई, तुड़ाई और छाया में सुखा कर भंडारण/विक्रय करना चाहिए.

थोड़ा बीज या पौध को बाजार से ला कर उस का खुद के खेत में जैविक तरीके से उत्पादन करना चाहिए. इस से प्राप्त बीज को ही पूरे खेत में लगाने के लिए उपयोग करना चाहिए.

बीज से बाजार तक की सारी जानकारी होने पर ही औषधीय पौधे की खेती बड़े स्तर पर करनी चाहिए.

अन्न वाली फसलों की मांग हमेशा रहेगी और औषधीय एवं खुशबूदार फसलों की मांग व बाजार भाव तेजी से ऊपरनीचे होते रहते हैं, इसीलिए किसान अन्न वाली फसलों को पूरी तरह न हटाएं, बल्कि औषधीय एवं खुशबूदार फसलों को फसल चक्र अंतराशस्य के रूप में स्थान दें. इस से बाजार के अनुसार तालमेल बनाने में आसानी रहेगी.

Organic farming

प्रकृति का एक मुफ्त उपहार

जैविक खेती के लिए उपयोग की जाने वाली खाद खेती के अवशेष और पशु अपशिष्ट से बनती है, जिस में लागत के नाम पर सिर्फ मेहनत ही होती है. इन के उपयोग से भूमि उपजाऊ और पानी की बचत भी होती है. इसी प्रकार जैविक कीट नियंत्रण नीम व गोमूत्र के माध्यम से बनाए जाते हैं, जिन का कोई नुकसान नहीं होता.

जैविक उत्पाद स्वादिष्ठ, अच्छी गंध व रूप वाले और अधिक समय तक भंडारण करने के योग्य होते हैं और इन का बाजार मूल्य भी अधिक मिलता है.

इस प्रकार जैविक खेती प्रकृति का एक मुफ्त उपहार है, जिस के लिए केवल मेहनत और प्रकृति से तालमेल की आवश्यकता होती है.

एक बीघा जमीन सिर्फ एक गाय और एक नीम

एक हेक्टेयर (100 मीटर × 100 मीटर) भूमि में लगभग 6 बीघा होते हैं. अकसर किसान बीघा नाप को ही आधार मान कर खेती की सभी गणनाएं (नापतौल) आदि का काम करते हैं, इसलिए एक बीघा में जितनी खाद एवं जैविक कीट नियंत्रक की आवश्यकता होती है, उसी के हिसाब से गणना की जाए तो समझने में आसानी रहेगी.

एक गाय : सालभर में एक गाय लगभग 3-3.5 टन गोबर देती है. यदि सिर्फ गोबर से ही खाद बने तो लगभग 2 टन खाद तो बनेगी, जो कि एक  बीघा जमीन में यदि 3 फसल या सब्जियों की फसल भी लगाई जाए तो भी पर्याप्त रहेगी.

इसी प्रकार एक गाय लगभग 1,000 लिटर मूत्र पैदा करती है, जिस में से आधा खाद या सिंचाई के साथ मिला देने के बाद भी 500 लिटर गोमूत्र व नीम की पत्ती से इतना कीट नियंत्रक बन सकता है कि एक बीघा जमीन में साल में हर 15 दिन बाद लगभग 20 छिड़काव किए जा सकते हैं.

एक नीम : नीम की पत्तियां तो गोमूत्र आधारित कीटनाशक व भूमि में हरी खाद के रूप में काम आ ही जाती हैं. साथ ही, एक नीम से हर साल कम से कम 50-60 किलोग्राम निंबोली मिलती है, जिस का लगभग 10-15 लिटर नीम तेल निकालने के बाद 40 किलोग्राम खल को जमीन में मिलाने से पोषक तत्त्व तो मिलते ही हैं, साथ ही जमीन से पैदा होने वाली फसलों के कीड़े व रोग भी कम हो जाते हैं.

इसलिए जैविक खेती को आसान बनाने के लिए प्रति बीघा जमीन के हिसाब से एक गाय पालें और एक नीम का पेड़ लगाएं, तो बाहर से शायद कुछ भी लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. साथ ही, नीम की छाया और गाय का शुद्ध दूध मिलेगा.

पेड़ों का सहारा जरूरी

* औषधीय पौधों की खेती के लिए जंगल जैसा वातावरण बनाने के लिए खेत में पेड़ों की उचित संख्या का उचित प्रणाली में होना बहुत जरूरी हो जाता है. यह पेड़ औषधीय उपयोग के भी हो सकते हैं.

* पेड़ों को फसलों के साथ लगाने का तरीका नया नहीं है. यह शस्य वानिकी या एग्रो फोरैस्ट्री के नाम से जाना जाता है.

* खेत को जंगल बनाने का अर्थ एक उचित संख्या में पेड़ लगाने से है, जो कि एक हेक्टेयर में 10 से 20 तक संख्या हो सकती है. अधिक पेड़ लगाने पर वह फसल के साथ धूप, पानी और पोषक तत्त्व के लिए प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जिस से फसल की बढ़वार पर उलटा असर पड़ सकता है.

जैविक खेती के लिए औषधीय पेड़ों को लगाना ज्यादा सही रहता है. थोड़े से प्रयास से किसान स्वयं की पौधशाला में पौधे तैयार कर सकते हैं. खेत के पास पौधशाला में तैयार किए गए पौधे अधिक स्वस्थ, विकसित जड़ वाले और अच्छे से पनपते हैं.

पेड़/पौधों की प्रजाति ऐसी होनी चाहिए, जिस से साल में थोड़ीथोड़ी पत्तियां झड़ती रहें, जो जमीन पर गिर कर मल्च का काम करें (भूमि को ढक कर रखें) और बाद में खाद के रूप में पोषण भी दें.

कभी भी सफेदा (यूकेलिप्टिस) जैसे पेड़ को खेत में न लगाएं, क्योंकि इन की पत्तियां न तो सड़ती हैं, बल्कि भूमि के दूसरे कामों में बाधा पैदा करती हैं.

बड़े पौधों को खेत की बाड़ पर वायु अवरोधक के रूप में और छोटे पौधों या फलदार पौधों जैसे आंवला, बेल, किन्नू व बेर आदि को फसल की कतारों के बीच कम से कम 8 से 10 मीटर के गैप पर लगाना चाहिए, ताकि फसलों से प्रतिस्पर्धा न हो.

कुछ कांटेदार झाडि़यों जैसे कांटा-करंज (औषधीय पौधा) आदि को खेत की सुरक्षा के लिए बाढ़ के रूप में भी लगाया जा सकता है.

खेत की मेंड़ या गौशाला या चौपाल में कम से कम 2 से 3 पेड़ नीम, बकायन, करंज और सहजन आदि के जरूर लगाएं, जो कि औषधीय पौधे होने के साथसाथ रोग के नियंत्रण में भी सहायक होते हैं.

पेड़ों की नियमित रूप से काटछांट करते रहना चाहिए, ताकि वह सीधे तने वाले बने रहें और खेती के काम में बाधक न बनें.

सुबह की धूप सभी पौधों के लिए अच्छी होती है, इसलिए पेड़ों को हमेशा ऐसी दिशा में लगाना चाहिए, ताकि फसल को सुबह सूरज की रोशनी जरूर मिलती रहे.

सुरक्षा के लिहाज से चारों उन की छाया के बराबर थाला बना देना चाहिए, जिस से नियमित रूप से खादपानी देते रहना चाहिए. इस से फसल और पेड़ों में किसी भी प्रकार की होड़ नहीं होगी और दोनों का विकास अच्छा होगा. थालों में घासफूस की मल्च बिछाने से पानी का नुकसान कम होता है.

दीमक से बचाव : दीमक से बचाव के लिए पौधे लगाने से पहले गड्ढा भरते समय सड़ी गोबर की खाद में आंक, नीम के पत्तों व निंबोली का चूरा मिला कर गड्ढे को भरना चाहिए और हर साल खाद के साथ नीम एवं आंक के पत्ते भी मिलाने चाहिए.

भोपाल में लगे कृषि मेले में ‘फार्म एन फूड’ का जलवा

मध्य प्रदेश खेतीकिसानी पर निर्भर राज्य है, वहां कि सानों, बागबानों और कृषि से जुड़े उद्यमियों को कृषि, बागबानी, डेयरी व कृषि अभियांत्रिकी से जुड़ी नवीनतम और उन्नत जानकारियों से लैस करने के लिए भोपाल के केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान में पिछले दिनों 20 से ले कर 22 दिसंबर, 2024 को विशाल कृषि मेले का आयोजन हुआ.

यह आयोजन भारतीय मीडिया ऐंड इवैंट्स लिमिटेड व बीएसएल कौंफ्रैंस ऐंड ऐक्जीबिशन प्राइवेट लिमिटेड द्वारा भोज आत्मा समिति, भोपाल के सहयोग से किया गया, जिस  में मीडिया पार्टनर के रूप में ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका की अहम भूमिका रही.

मंत्री लखन पटेल ने किया आह्वान

भोपाल के सीआईएई में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में अतिथि के रूप में पहुंचे मध्य प्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी विकास मंत्री लखन पटेल ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसानों को तकनीक का लाभ उठा कर स्वावलंबी बनने का प्रयास करना चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की योजनाओं और नई तकनीकों का मुख्य उद्देश्य किसानों को रोजगार और आत्मनिर्भरता प्रदान करना है. उन्होंने किसानों से सरकार की स्कीमों का लाभ ले कर आमदनी बढ़ाने का आह्वान किया. इस दौरान मंत्री लखन पटेल नें प्रदर्शनी में लगाए गए सभी स्टालों पर पहुंच कर जानकारी ली.

इस अवसर पर विधायक घनश्याम रघुवंशी ने प्रदेश सरकार की कृषि हितैषी नीतियों और खेती को लाभकारी बनाने के प्रयासों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की समस्याओं का समाधान करने और उन की आय बढ़ाने के लिए लगातार प्रयासरत है.

 

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विशेषज्ञों ने साथ किए टिप्स

9वें इंटरनैशनल एग्री ऐंड हौर्टी टैक्नोलौजी ऐक्सपो में भारत सहित अन्य कई देशों के कृषि विशेषज्ञों की भागीदारी रही. इस दौरान मेले में भ्रमण पर आए किसानों और कृषि के छात्रों को विशेषज्ञों द्वारा खेतीबारी से जुड़ी जानकारी भी दी गई.

संगोष्ठी में वैज्ञानिकों में प्रमुख रूप से

डा. एसएस सिंधु, एमेरिट्स वैज्ञानिक, आईएआरआई, नई दिल्ली, डा. वाईसी गुप्ता, पूर्व डीन, एफएलए विभाग, डा. पीबी भदोरिया, आईआईटी खड़गपुर, प्रोफैसर डा. सीके गुप्ता, पूर्व डीन, डीवाईएस परमार विश्वविद्यालय, सोलन, डा. सीआर मेहता, डायरैक्टर, सीआईएई, डा. सुरेश कौशिक, पूर्व सीटीओ, आईएआरआई पूसा, नई दिल्ली, डा. प्रकाश, पूर्व अध्यक्ष, स्टूडैंट्स वर्ल्ड, नेपाल की भागीदारी रही.

वैज्ञानिकों ने किसानों की समस्याओं को सुना और उन के समाधान के लिए उपयोगी सुझाव  दिए. किसानों ने संगोष्ठी में अपनी जिज्ञासाओं को साथ किया और विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त किया.

इस दौरान मंच संचालन का जिम्मा संभाल रहे कृषि वैज्ञानिक विजी श्रीवास्तव ने खेतीबारी से जुड़ी उन्नत जानकारियों को प्रभावी ढंग से पेश करते हुए किसानों को कार्यक्रम के अंत तक बांधे रखा. उन्होंने कृषि स्टूडैंट्स के कैरियर से जुड़े सवालों का समाधान करते हुए उन्हें प्रोत्साहित भी किया.

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आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रदर्शन

कृषि, बागबानी, डेयरी एवं कृषि अभियांत्रिकी से जुड़े इस मेले में देश की नामी कृषि यंत्र और ट्रैक्टर निर्माता कंपनियों ने खेतीबारी के साथ ही हार्वेस्टिंग, प्रोसैसिंग और सिंचाई से जुड़े छोटेबड़े कृषि यंत्रों का प्रदर्शन और बिक्री की.

यंत्र निर्माता कंपनियों ने प्रदर्शनी में छोटे और मंझले किसानों का खास खयाल रखा था, जिस में कोनो वीडर, छोटी और बड़ी पावर के ट्रैक्टर, जायरोवेटर, रोटावेटर, बूम छिड़काव मशीन, मिनी हार्वेस्टर सहित सैकड़ों तरह के यंत्रों और कंबाइन का प्रदर्शन कर मौके पर बुकिंग कराने वालों को विशेष छूट का लाभ भी दिया गया.

इस प्रदर्शनी में खरपतवार नियंत्रण के लिए मैनुअल यंत्रों, फसल कटाई, निराईगुड़ाई सहित तमाम छोटे यंत्रों की रिकौर्डतोड़ बिक्री भी हुई. इस में सौ से अधिक कंपनियों ने आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रदर्शन किया. संगोष्ठी में प्रमुख वैज्ञानिकों ने किसानों को तकनीक और समस्याओं के समाधान पर मार्गदर्शन दिया.

ड्रिप इरिगेशन, रेनगन और सिंचाई प्रबंधन से जुड़े उत्पादों को बनाने वाली देश की जानीमानी कंपनी जैन इरिगेशन सिस्टम लिमिटेड ने भी सिंचाई प्रबंधन से जुड़ी जानकारियों और विधियों को साथ करते हुए अपने उत्पादों को प्रोत्साहित किया.

इस के अलावा ट्रैक्टर, कंबाइन और अन्य कृषि यंत्रों में उपयोग होने वाले टायर की प्रमुख कंपनियों में बालकृष्ण इंडस्ट्रीज लिमिटेड (बीकेटी) और जेके टायर्स ने भी अपनी विस्तृत रेंज पेश की.

इस के अलावा करतार ट्रैक्टर, कंबाइन, वंसुधरा कंपनी के छोटे और मंझले हार्वेस्टिंग से जुड़े कृषि यंत्र, रिपर, शक्तिमान कंपनी के जुताई और छिड़काव से जुड़े यंत्रों की भारी रेंज किसानों को अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल रही.

प्रदर्शनी में आने वाले किसानों को अपने उत्पादों से जोड़ने के लिए निर्माता कंपनियों ने जम कर गिफ्ट भी बांटे.

सरकारी महकमों के स्टाल पर रही भीड़

केंद्रीय कृषि अभियान अभियांत्रिकी संस्थान के प्रदर्शनी ग्राउंड में लगे अंतर्राष्ट्रीय मेले में मध्य प्रदेश सहित देश के तमाम राज्यों के कृषि और बागबानी के महकमों और आईसीएआर से जुड़ी संस्थाओं, डीआरडीओ, जल संसाधन विभाग आदि ने अपने स्टाल लगा कर किसानों को सरकारी योजनाओं सहित उन्नत खेती की जानकारियां साथ कीं, जिस में प्रमुख रूप से उद्यान विभाग, उत्तर प्रदेश, उद्यान विभाग, मध्य प्रदेश, उद्यान विभाग, तमिलनाडु, पंजाबहरियाणा और अन्य राज्यों के कृषि महकमों ने अपने स्टाल पर आने वाले किसानों को जानकारियां दीं.

रंगबिरंगी सब्जियां और फल रहे आकर्षण का केंद्र

मेले में विभिन्न राज्यों और केंद्र सरकार के महकमों के स्टाल पर प्रदर्शित की गई सब्जियों और फलों ने लोगों को अपनी तरफ खूब आकर्षित किया. इस में देशी और विदेशी दोनों तरह की सब्जियां और फल शामिल रहे.

इस मौके पर किसानों को रंगीन देशीविदेशी सब्जियों और फलों के व्यावसायिक उत्पादन व फायदे पर भी जानकारियां दी गईं, जिस में प्रमुख रूप से रंगीन पत्तागोभी, रंगीन फूलगोभी, रंगबिरंगी शिमला मिर्च की किस्में, चेरी, टमाटर की किस्में, रंगीन आम, स्ट्राबेरी, कमलम यानी ड्रैगन फू्रट सहित तमाम चीजें शामिल रहीं.

खूब बिके पौधे

भोपाल में लगे इस मेले में उन्नत किस्मों के फल और सब्जियों के पौधों की जम कर खरीदारी हुई, जिस में सब से ज्यादा, टमाटर, गोभी, बैगन, शिमला मिर्च सहित जैन इरिगेशन सिस्टम लिमिटेड द्वारा तैयार किए गए उन्नत किस्मों के आम, अमरूद, कटहल और केले की किस्मों की खरीदारी किसानों द्वारा की गई.

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‘फार्म एन फूड’ के स्टाल पर हुआ अवार्ड नौमिनेशन

इस कृषि मेले के मीडिया पार्टनर के रूप में दिल्ली प्रैस की पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ द्वारा भी स्टाल लगाया गया था, जिस में ‘फार्म एन फूड’ के अलावा दिल्ली प्रैस की अन्य पत्रिकाओं ‘सरस सलिल’, ‘सरिता’, ‘चंपक’, ‘गृहशोभा’, ‘सत्यकथा’, ‘मनोहर कहानियां’ सहित अन्य भाषाओं की पत्रिकाओं का प्रदर्शन भी किया गया.

इस दौरान ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका द्वारा फरवरी महीने में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए प्रस्तावित ‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ के लिए मौके पर ही तमाम किसानों और वैज्ञानिकों द्वारा अपने नौमिनेशन पेश किए गए.

इस दौरान दिल्ली प्रैस में ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका की जिम्मेदारी संभाल रहे भानु प्रकाश राणा और मध्य प्रदेश में दिल्ली प्रैस ब्रांच के इंचार्ज भारत भूषण श्रीवास्तव द्वारा प्रकाशन से जुड़ी जानकारियां भी दी गईं.

इस के अलावा कृषि की पढ़ाई और शोध कर रहे छात्रों द्वारा अपनी नवीनतम खोज और शोध का प्रस्तुतीकरण भी किया गया. इस दौरान कार्यक्रम के संचालक वीजी श्रीवास्तव ने छात्रों से सवालजवाब भी किए, जिस में सवालों के सही जवाब देने वाले छात्रों को इनाम के रूप में ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका दी गई.

मिर्च में क्यों होता है तीखापन

भारत में ज्यादातर लोग ज्यादा मिर्चमसाले का इस्तेमाल करते हैं और महिलाएं तीखी मिर्च खरीदना ही पसंद करती हैं. मिर्च का नाम सुनते ही कई लोगों को पसीना आ जाता है, तो कई के मुंह में पानी आ जाता है. अकसर आप ने सुना होगा या महसूस किया होगा कि कुछ मिर्च काफी तीखी होती हैं, तो कुछ बिलकुल भी तीखी नहीं होतीं. आप के मन में सवाल उठता होगा कि आखिर ऐसा क्यों होता है. तो आइए, जानते हैं कि आखिर मिर्च तीखी क्यों होती है:

तमाम शोधों के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि कोई मिर्च ज्यादा तीखी तो कोई कम तीखी क्यों होती है? जीवविज्ञान की पत्रिका बायोलाजिकल साइंसेज के मुताबिक इस का खास कारण मिर्च के पौधे का जल के संपर्क में आने से है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि मिर्च में कसैलापन कैपसाइपिनोइड नाम के पदार्थ की वजह से पाया जाता है. यह मिर्च को फफूंद से बचाता है. इंडियाना यूनिवर्सिटी के डेविड हाक के नेतृत्व में शोध करने वाले दल ने बोलिविया जा कर मिर्च के पौधे में कैपसाइपिनोइड तत्त्व की जांच की.

इस जांच में उन्होंने पाया कि उत्तरी क्षेत्र में मात्र 15-20 फीसदी मिर्चों में ही यह तीखा पदार्थ मौजूद था, जबकि दक्षिणी हिस्से में मिर्च के तीखेपन की स्थिति एकदम से अलग थी. इस इलाके में 100 फीसदी मिर्च के पौधों में इस तीखे पदार्थ कैपसाइपिनोइड के होने से मिर्च बहुत तीखी और कसैली थी.

आखिर शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि मिर्च का तीखापन फफूंद से बचने के लिए इस तत्त्व के विकास से पनपता है, जितना अधिक यह पदार्थ मिर्च में मौजूद रहेगा, उतनी ही मिर्च ज्यादा तीखी और कसैली होगी.

समोसे तरहतरह के

पहले जहां केवल आलू के समोसे ही बाजार में बिकते थे अब कई तरह के समोसे जिन में खोया वाले मीठे समोसे भी मिठाई की दुकानों में बिकने लगे हैं. खोया और आलू के समोसे ज्यादा दिन तक नहीं रखे जा सकते इसलिए इन्हें बनने के कुछ घंटे बाद ही खाना सही रहता है. अब मेवा और मसालों से ऐसे समोसे भी तैयार किए जाने लगे हैं, जो कई दिनों तक चलते हैं. यह नमकीन की तरह नाश्ते में इस्तेमाल होते हैं. पौष्टिक होने से इन को खाने के बाद भूख कम लगती है. मेवा मिला होने से यह शरीर को ताकत भी देते हैं.

समोसा भारत का ही नहीं पश्चिम एशियाई देशों का भी प्रमुख नाश्ता है. कमाल की बात यह है कि 1000 साल से इस का तिकोना आकार नहीं बदला है. अपने खास आकार के कारण ही इस को कई इलाकों में तिकोना भी कहा जाता है. यह छोटे से बडे सभी तरह के आकार में मिलता है. आकार के हिसाब से ही इस को कीमत तय होती है.

मुगलकाल में मीट वाला समोसा सब से ज्यादा प्रचलित था. भारत में आने के बाद समोसा के अंदर भरी जाने वाली सामग्री में बदलाव आया. ब्रिटिश काल में जब चाय का चलन बसे तो भारतीयों को चाय का स्वाद पसंद नहीं आता था. ऐसे में चाय और समोसे की जुगलबंदी तैयार हो गई. आज गलीचौराहों पर सब से ज्यादा चायसमोसा ही बिकता है.

आज समोसा भारत का सब से ज्यादा बिकने वाला स्ट्रीट फूड है. उत्तर भारत के हर कस्बे और शहर में समोसे की दुकान है. महाराष्ट्र के कुछ शहरों में रगड़ा समोसा चलन में है.

इस में समोसे के अंदर ब्रेड, आलू, भुजिया और दूसरी कई चीजें भरी जाती हैं. समोसे में स्वाद के लिए पनीर समोसा व मटरकाजू समोसे का इस्तेमाल भी होने लगा है. गोआ में कुछ खास दुकानों पर मीट वाला मांसाहारी समोसा मिलता है. समोसा अकेला ऐसा व्यंजन है जो इतना पुराना होने के बाद भी बदला नहीं है.

आलू भरे समोसे का अपना अलग बाजार है. समोसा भारतीय खानपान व संस्कृति के साथ पूरी तरह से रच बस गया है. यह रोजगार का भी बडा साधन है. कसबों और सड़क किनारे छोटी सी पूंजी लगा कर समोसा बनाने की दुकान खोली जा सकती है. समोसा लोगों को इतना पसंद है कि इस में नुकसान की आशंका नहीं रहती है.

मुनाफे का गणित

डेढ़ किलो आलू और 1 किलो मैदा से करीब 35 समोसे तैयार होंगे. यह सामान्य आकार के करीब 60-70 ग्राम वाले समोसे होंगे. इस को बनाने के लिए 30 रुपए का आलू, 30 रुपए का मैदा, 30 रुपए का बेजिटेबल आयल और 30 रुपए का मसाला लगता है. ऐसे में 120 रुपए खर्च कर करीब 35 समोसे तैयार होंगे. यह समोसे 8 रुपए प्रति समोसे के हिसाब से बिकेंगे. ऐसे में यह समोसे 280 रुपए के बिकेंगे. जिस में 95 रुपए का मुनाफा होगा. समोसा महंगा करने के लिए दुकानदार उस में कई बार मटर, काजू और पनीर डाल कर उस की कीमत दोगुनी कर देते हैं. जबकि ऐसा करने में प्रति समोसा केवल 2 रुपए की लागत बढ़ेगी.

समोसा बनाना आसान

समोसा बनाने के लिए सामग्री के रूप में मैदा, आलू , रिफाइंड तेल, नमक, धनिया पाउडर, गरम मसाला और पिसी खटाई का प्रयोग किया जाता है. सब से पहले आलू को उबाल लें. इस के बाद मैदा में तेल और नमक डाल कर अच्छी तरह से गूंथ लें. उबले आलू हाथ से ही मोटामोटा फोड़ दें. कढ़ाई में तेल डाल कर कर उस में धनिया पाउडर, गरम मसाला, नमक और अमचूर मिलाते हुए भून लें. अब इस में आलू डाल कर ठीक से मिला कर रख दें. पहले से तैयार मैदा के छोटेछोटे पीस तैयार करें. इन को गोल रोटी की तरह 8 इंच व्यास के आकार में तैयार करें. फिर चाकू से 2 हिस्सों में काट दें. एक भाग को तिकोना बनाते हुए उस में आलू मसाला भर लें. दोनों कोने चिपका दें. कढ़ाई में रिफाइंड तेल डाल कर तैयार समोसे तल लें. समोसे को मीठी और नमकीन दोनों ही चटनी के साथ खाया जाता है. मेवा और मसाला समोसे में आलू की जगह मेवा और मसाला पहले से तैयार कर के भरा जाता है.

22 से 24 फरवरी तक लगेगा पूसा संस्थान, नई दिल्ली में कृषि मेला

नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित किया जाने वाला पूसा कृषि विज्ञान मेला इस वर्ष फरवरी 22-24, 2025 के दौरान संस्थान के मेला ग्राउंड में आयोजित किया जा रहा है. इस मेले का मुख्य विषय “उन्नत कृषि – विकसित भारत” है. इस में विभिन्न कृषि कंपनियां, सरकारी व गैरसरकारी संस्थान, उद्यमी और प्रगतिशील किसान अपना स्टाल लगाएंगे. इस मेले में हर साल देश के विभिन्न भागों से 1 लाख से अधिक किसान, उद्यमी, राज्यों के अधिकारी, छात्र एवं अन्य उपयोक्ता भाग लेते हैं.

इस मेले के प्रमुख आकर्षणों में फसलों का जीवंत प्रदर्शन, फूलों और सब्जियों की संरक्षित खेती, गमलों में खेती, ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल) खेती, मिट्टी एवं पानी की मुफ्त जांच, कट फ्लावर, विदेशी सब्जियों एवं उन्नत किस्म के फलों की प्रदर्शनी और विभिन्न भागीदारों द्वारा उच्च उपजशील बीजों/पौधों, कृषि प्रकाशनों की बिक्री और वैज्ञानिकों व किसानों की परस्पर चर्चा शामिल हैं.

इस अवसर पर किसानों को नवोन्मेषी एवं अध्येता सम्मान से सम्मानित किया जाएगा, जिस के लिए उन से आवेदन मांगे गए हैं. किसान अधिक से अधिक संख्या में इस सम्मान के लिए अपना आवेदन अतिशीघ्र भेजें. संबंधित विवरण पूसा संस्थान की वैबसाइट पर उपलब्ध है :

https://iari.res.in/en/krishi-vigyan-mela-2025.php.

कुलपति डा. कर्नाटक नई दिल्ली में मानद फैलो 2024 पुरस्कार से सम्मानित

नई दिल्ली : भारतीय कीट विज्ञान सोसाइटी ने 7 जनवरी, 2025 को नई दिल्ली में कीट विज्ञान में स्थापना दिवस समारोह और फ्रंटियर्स इन एंटोमोलौजी पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक को मानद फैलो 2024 पुरस्कार से सम्मानित किया.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक को पुरस्कार प्रदान करते हुए सोसाइटी के अध्यक्ष डा. वीवी राममूर्ति ने कीट विज्ञान शिक्षण, अनुसंधान व प्रसार में उन के आजीवन योगदान की सराहना की.

उल्लेखनीय है कि डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने 40 साल तक कृषि एवं कीट विज्ञान क्षेत्र में अपनी उत्कृष्ट सेवाएं दी हैं. इन्हें मधुमक्खीपालन, चावलगेहूं और गन्ना पारिस्थितिकी तंत्र के कीट प्रबंधन और मृदा जैव प्रबंधन में विशेषज्ञता प्राप्त है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने तराई क्षेत्र में मधुमक्खी की एपिस मेलिफेरा प्रजाति स्थापित की और इस के पालन के लिए प्रबंधन पद्धतियां विकसित कीं, जिस से शहद, मोम और दूसरे शहद उत्पादों के उत्पादन से किसानों की आय में वृद्धि हुई है और परपरागण वाली फसलों की उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने उत्तराखंड सरकार के कृषि पोर्टल का मधुमक्खीपालन भाग विकसित किया. डा. कर्नाटक को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा साल 2021 का सर्वश्रेष्ठ कुलपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

पिछले कुछ सालों में डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं, जिन में सोसाइटी फौर कम्युनिटी मोबिलाइजेशन फौर सस्टेनेबल डवलपमेंट, नई दिल्ली द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, प्लांटिका एसोसिएशन औफ प्लांट साइंस रिसर्चर्स, देहरादून द्वारा डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षाविद सम्मान और सतत कृषि व संबद्ध विज्ञान के लिए वैश्विक अनुसंधान पहल पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान कीट विज्ञान अनुसंधान में उन के योगदान के लिए चौधरी हंसा सिंह पुरस्कार शामिल हैं.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली और राजस्थान के राज्यपाल द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन के लिए कई महत्वपूर्ण समितियों में नामित भी किया गया है.

स्वास्थ्यवर्धक है चुकंदर

व्यस्तता के चलते आजकल लोग अपनी सेहत का ध्यान नहीं रख पाते, जिस से आएदिन शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होने से वे कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. लंबी आयु के लिए जरूरी है कि अपने खानपीन में फल व हरी सब्जियों के साथ चुकंदर भी शामिल किया जाए. जब खानपान पर सही ध्यान दिया जाएगा तो निश्चित रूप से शरीर की इम्यूनिटी अच्छी होगी और आएदिन होने वाली तकलीफों से बचा जा सकेगा.

चुकंदर खाने से शरीर कई बीमारियों से लड़ने में सक्षम हो जाता है. यह महिलाओं में होने वाली एनीमिया की बीमारी को दूर करने का सब से सही साधन है. इस के गुणों को देखते हुए भारत में इस की व्यापक खेती की जा रही है. यह कैंसर, हाईब्लड प्रेशर के साथ ही अल्जाइमर  की बीमारी को भी दूर करने में कारगर है. चुकंदर स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी खास है. इस में मौजूद तत्त्व जहां शरीर को ऊर्जावान बनाते हैं, वहीं विभिन्न रोगों से लड़ने की कूवत भी विकसित करते हैं. चुकंदर का नियमित सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद है. खासतौर से बढ़ती उम्र के बच्चों और महिलाओं के लिए यह सब से उत्तम आहार है.

चुकंदर सलाद के रूप में नियमित खाने से शरीर कई बीमारियों से लड़ने में सक्ष्म हो जाता है. गर्भवती महिलाओं को तो इस का सेवन जरूर करना चाहिए. गर्भावस्था के दौरान आमतौर पर खून की कमी हो जाती है, जिसे एनीमिया कहा जाता है. जो महिलाएं नियमित रूप से चुकंदर का सेवन करती हैं. उन्हें खून की कमी नहीं होती. कई बार बच्चे भी खून की कमी की वजह से बीमार रहने लगते हैं. ऐसे बच्चों को चुकंदर का जूस पिलाना लाभकारी रहता है. चुकंदर एक तरह की जड़ है. आमतौर पर यह लाल रंग का होता है. कुछ जगहों पर सफेद रंग का चुकंदर भी पाया जाता है. इस के पत्तों को शाक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

किसानों को चुकंदर का अच्छा दाम मिलता है. इस में मौजूद गुणों के कारण इसे अब मौसमी सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाने लगा है. चुकंदर में सही मात्रा में लौह, विटामिन और खनिज होते हैं जो रक्तवर्धन और रक्तशोधन के काम में सहायक होते हैं. इस में मौजूद एंटीऔक्सीडेंट तत्त्व शरीर को रोगों से लड़ने की कूवत देते हैं. इस में सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन और अन्य खास विटामिन पाए जाते हैं.

चुकंदर में गुर्दे और पित्ताशय को साफ करने के प्राकृतिक गुण पाए जाते हैं. इस में मौजूद पोटेशियम जहां शरीर को प्रतिदिन पोषण प्रदान करने में मदद करता है तो वहीं क्लोरीन गुर्दों के शोधन में सहायता करता है. यह पाचन संबंधी समस्याओं में भी लाभकारी है. चुकंदर का रस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर रखता है. महिलाओं के लिए तो यह काफी गुणकारी है. चुकंदर में बेटेन नामक तत्त्व पाया जाता है, जिस की आंत व पेट को साफ रखने के लिए हमारे शरीर को जरूरत रहती है, चुकंदर में मौजूद यह तत्त्व उस की आपूर्ति करता है.

काफी पहले यूरोप में कैंसर के इलाज के लिए चुकंदर का काफी इस्तेमाल किया जाता था. चुकंदर और इस के पत्ते फोलेट का अच्छा जरीया हैं, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की परेशानी को दूर करने में मदद करते हैं.

कैसे खाएं : चुकंदर कई तरीके से खाया जाता है. आमतौर पर इसे कच्चे सलाद के रूप में खाया जाता है. मूली, गाजर, प्याज, टमाटर आदि की तरह ही चुकंदर को भी सलाद में शामिल करें.

इस के अलावा इसे दक्षिण भारत में उबाल कर खाने का भी प्रचलन है. हालांकि उबालने से इस के कुछ तत्त्व खत्म हो जाते हैं. इसलिए इसे कच्चा खाना ही सब से लाभप्रद है. बुजुर्गों और बच्चों को चुकंदर का जूस देना चाहिए. इस के अलावा देश में चुकंदर की सब्जी बना कर खाने का भी चलन है.

Beetroot

चुकंदर के औषधीय गुण

एनीमिया दूर करे चुकंदर : एनीमिया रोग के लिए चुकंदर रामबाण माना जाता है. चुकंदर में उचित मात्रा में आयरन, विटामिंन और मिनिरल्स होते हैं, जो रक्त बढ़ाने और उस के शोधन का काम करते हैं. यही कारण है कि महिलाओं को इस के नियमित सेवन की सलाह दी जाती है.

गुर्दों के लिए लाभकारी : चुकंदर में गुर्दे को स्वस्थ और साफ रखने के गुण मौजूद हैं. किडनी रोगियों को चुकंदर का रस देना लाभकारी है. इस में मौजूद क्लोरीन लीवर और किडनी को साफ रखने में मदद करता है.

पित्ताशय के लिए गुणकारी : शोध में पाया गया है कि यह किडनी के साथ ही पित्ताशय के लिए भी कारगर है. इस में मौजूद पोटेशियम शरीर को रोजाना पोषण देने में मदद करता है, वहीं क्लोरीन लीवर और किडनी को साफ करने में मदद करता है.

पाचन में सहायक : बच्चों और युवाओं को चुकंदर चबाचबा कर खाना चाहिए. इस से दांत और मसूढे़ मजबूत होते हैं. यह पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में भी लाभकारी है. इस का नियमित सेवन करने से अपाच्य की समस्या खत्म हो जाती है. बढ़ती उम्र के बच्चों को चुकंदर जरूर खिलाना चाहिए, इस से उन का शारीरिक सौष्ठव बेहतर होता है और बच्चों के चेहरे पर चमक दिखती है.

उल्टीदस्त : यदि उल्टीदस्त की शिकायत हो तो चुकंदर के रस में चुटकीभर नमक मिलाना फायदेमंद रहता है. इस से पेट में बनने वाली गैस खत्म हो जाती है. उल्टी बंद होने के साथ ही दस्त भी बंद हो जाते हैं.

पीलिया में लाभकारी : चुकंदर पीलिया के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है. पीलिया के रोगियों को चुकंदर का रस दिन में 4 बार देना चाहिए. ध्यान रखें कि एक बार 1 कप से ज्यादा जूस न दें.

हाइपरटेंशन : चुकंदर का जूस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर करता है. इस के नियमित सेवन से चिड़चिड़ापन दूर हो जाता है. खास कर यह महिलाओं के लिए काफी लाभकारी है.

मासिक धर्म में लाभकारी : मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को कमर व पेडू दर्द और अन्य शारीरिक दुर्बलताओं जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. चुकंदर के नियमित इस्तेमाल से मासिक धर्म के दौरान होने ली तकलीफ नहीं होती है.

माहवारी, फोड़े, जलन और मुहासों के लिए भी यह काफी उपयोगी है. खसरा और बुखार में भी त्वचा साफ करने में इस का इस्तेमाल किया जा सकता है.

बालों की रूसी भगाए : चुकंदर के काढ़े में थोड़ा सा सिरका मिला कर सिर में लगाएं या सिर पर चुकंदर के पानी में अदरक के टुकउ़ों को भिगो कर रात में मसाज करें. सुबह बालों को धो लें.

चुकंदर खाएं ब्लडप्रेशर भगाएं : ब्लडप्रेशर के रोगियों को चुकंदर जरूर खिलाएं. चुकंदर और इस के पत्ते फोलेट का एक अच्छा जरीया है, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं. रोज चुकंदर में गाजर और सेब मिला कर उस का जूस पीने से हाईब्लड प्रेशर में कमी आती है. एक अध्ययन के मुताबिक रोजाना 2 कप चुकंदर का जूस पीने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है.

हालांकि इस का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए. इस के ज्यादा सेवन करने से चक्कर आना या वोकल कार्ड पैरालिसिस का खतरा बढ़ जाता है.

चुकंदर की सब्जी भी लाभदायक : चुकंदर स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद सब्जी है. इस में कार्बोहाइड्रेट और कम मात्रा में प्रोटीन और वसा पाई जाती है. यह प्राकृतिक शुगर का सब से अच्छा स्रोत है. इस में सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, सल्फर, क्लोरीन, आयोडीन, आयरन, विटामिन ‘बी1’, ‘बी2’ और ‘सी’ पाया जाता है. इस में कैलोरी काफी कम होती हैं.

पशुओं के स्वास्थ्य में भी कारगर : चुकंदर इतना गुणकारी है कि यह इंसान के साथसाथ पशुओं के लिए भी कारगर है. यही कारण है कि हरियाणा, पंजाब, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में इसे सीजनल पशु आहार के रूप में खिलाया जाता है. विशेष रूप से दुधारू पशुओं को खिलाने से उन का स्वास्थ्य ठीक रहता है और दूध में भी इजाफा होता है.

इस में मौजूद तत्त्व पशुओं में होने वाले विभिन्न रोगों से उन का बचाव करते हैं. इसे खिलाने से पशुओं में आमतौर पर होने वाली बांझपन की समस्या खत्म हो जाती है.

दुधारू पशु 3 से 4 बार ब्याने के बाद कमजोर हो जाते हैं और कुछ में बांझपन के लक्षण भी आ जाते हैं, लेकिन जिन पशुपालकों ने नियमित रूप से उन के चारे में चुकंदर को शामिल किया है, उन्हें इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.

किसानों को महज एक रुपए में मिलेगा पौधा

देश के किसानों के लिए सरकार द्वारा अनेक लाभकारी योजनाएं समयसमय पर आती रहती हैं, जिस का लाभ अनेक किसान और कृषि से जुड़े लोग उठाते रहे हैं. इन योजनाओं में चाहे कृषि यंत्र अनुदान योजना हो, पशुपालन योजना हो, सिंचाई योजना हो, अनेकों योजनाएं हैं, जिन का किसान लाभ उठा सकते हैं.

इसी कड़ी में अब किसानों के लिए कम कीमत में अनेक तरह के फलसब्जियों के पौधे उपलब्ध कराने की योजना आई है, ताकि किसानों को नाममात्र की कीमत पर पौधे मिल सकें.

किसानों के लिए सरकार की ओर से हाईटैक नर्सरियों को बनाया जा रहा है. इन नर्सियों से मात्र 1 रुपए में उन्नत किस्म के पौधे किसानों को उपलब्ध कराए जाएंगे. इस से उत्तर प्रदेश राज्य के किसानों को बहुत ही कम कीमत पर फलसब्जियों के पौधे प्राप्त हो सकेंगे, जिस से उन के फसल उत्पादन की लागत कम होने के साथ ही अधिक मुनाफा मिलेगा.

उत्तर प्रदेश सरकार के उद्यान विभाग की ओर से 2.16 करोड़ रुपए की लागत से 2 हाईटैक  नर्सरी का निर्माण कराया जा रहा है. इन नर्सरियों में फल व सब्जियों की उन्नत किस्मों के पौधे जल्दी ही किसानों को मिलने लगेंगे.

मिली जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले की सदर तहसील में एक करोड़ से अधिक लागत में एक हाईटैक नर्सरी तैयार हो गई है, जहां से कुछ ही दिनों में पौधे भी तैयार होने लगेंगे. इसी प्रकार महरौनी तहसील के अंतर्गत करीब एक एकड़ भूमि पर नर्सरी तैयार हो गई है. इस नर्सरी में भी किसानों के लिए सब्जीफल की पौध तैयार की जा रही है.

उद्यान विभाग की ओर से तैयार की गई नर्सरी  में उन्नत किस्मों के बीजों से प्याज, टमाटर, गोभी, लौकी, खीरा,  शिमला मिर्च, हरी मिर्च, बैगन आदि सब्जियों की तैयार पौध मिलेगी.

खास तकनीक से तैयार हो रही पौध

इन नर्सरियों में हाइड्रोलिक तकनीक इस्तेमाल कर के मौसम के अनुसार सब्जियों की पौध को तैयार किया जा रहा है. इस के लिए यहां पौलीहाउस के अंदर और आधुनिक तकनीक द्वारा पौध तैयार की जा रही है.

पौध तैयार करने में  कृषि यंत्रों की भी भूमिका है और  सीडलिंग तकनीक से पौध तैयार की जा रही है. इस के तहत किसानों की मांग को ध्यान में रख कर पौध तैयार की जा रही है.

उत्तर प्रदेश में फल व सब्जियों की खेती के लिए अनुदान:

प्रदेश में उद्यान विभाग की ओर से किसानों को सब्जी व मसाले की खेती पर सब्सिडी दी जाती है और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत साल 2024–25 में उत्तर प्रदेश के किसानों को सब्जियों की खेती के लिए अनुदान दिया जाता है.

उद्यान विभाग की ओर से इस योजना के तहत यहां के किसानों को एक हेक्टेयर में सब्जी की खेती के लिए 20,000 रुपए की सब्सिडी दी जाती है. एक किसान को एक एकड़ में खेती के लिए ही अनुदान का लाभ प्रदान किया जाता है. इस के अलावा मसाला फसलों की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 12,000 रुपए का अनुदान दिया जाता है.

इन फसलों पर अनुदान का लाभ लेने के लिए किसान को औनलाइन आवेदन करना होता है.

इस के अलावा उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए अनेक लाभदायक सरकारी योजनाएं हैं, जिन का लाभ किसान उठा रहे हैं.

बागबानी महोत्सव के जरीए बिहार ने उन्नत बागबानी से कराया रूबरू

बिहार सरकार द्वारा राज्य के किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए हर एक दिन  नए प्रयोग और योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है. इस के लिए पिछले दिनों राज्य लैवल से ले कर जिला और ब्लौक लैवल पर गोष्ठियां, प्रदर्शनियां और ट्रेनिंग कार्यक्रमों का बेहद सफल आयोजन किया गया.

इसी को ध्यान में रखते हुए बिहार के कृषि महकमे के उद्यान निदेशालय द्वारा पटना के गांधी मैदान में बीते 3 जनवरी से 5 जनवरी, 2025 तक तीनदिवसीय बागबानी महोत्सव का आयोजन किया गया. इस बागबानी महोत्सव में बिहार के सभी जिलों से तकरीबन 1500 किसान 14 हजार से ज्यादा प्रविष्टियों के साथ शामिल हुए.

बागबानी महोत्सव में प्रदर्शनी में तकरीबन 60 स्टाल लगाए गए, जहां से खेतीबागबानी में रुचि रखने वाले लोगों ने अपने पसंद के फल, फूल, सब्जी के बीज/बिचड़ा, पौधा, गमला, मधु, मखाना, मशरूम आदि की खरीदारी भी की.

बागबानी महोत्सव का उद्घाटन राज्य के कृषि और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने किया. इस मौके पर पटना के गांधी मैदान में आयोजित इस प्रदर्शनी में उन्होंने राज्‍य के भूमिहीन किसानों को ले कर बड़ी घोषणा की.

बिहार के कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि कृषि विभाग बिहार में जल्दी ही शहद के उत्पादन और प्रोत्साहन के लिए नीति बनाएगा, जिसे सरकार राज्यभर में बढ़ावा देगी खासकर भूमिहीन किसानों को शहद उत्पादन से जोड़ने की पहल को ले कर नीति बनाई जाएगी.

भूमिहीन किसान मधुमक्खीपालन कर खुद को सशक्त बनाएंगे. सूरजमुखी, सहजन, सरसों, लीची जैसे फल, फूलों के शहद का उत्पादन करने की नीति बनेगी.

कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो राज्य के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों का आधार है. रंगबिरंगे फल, फूल, सब्जी और अन्य बागबानी उत्पादों से सुसज्जित बागबानी महोत्सव, 2025 किसानों के उत्साह का गवाह है.

प्रति व्‍यक्ति आय बढ़ाने में किसानों की भूमिका

कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि बिहार की अर्थव्यवस्था में बागबानी खासकर फल, फूल, सब्जी, मसाला आदि की भूमिका अहम साबित हो रही है. साल 2005 के समय राज्य में प्रति व्यक्ति आय 7,500 रुपए के करीब थी, वहीं आज इस राज्य की प्रति व्यक्ति आय 66,000 रुपए हो गई है.

उन्होंने आगे कहा कि बीते 20 वर्षों में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य में लगभग 8 गुना से अधिक प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है, जिस में किसानों की बढ़ी आय का बड़ा योगदान रहा है. अगर हम सभी राज्य को सुखी और समृद्ध बनाना चाहते हैं, तो बागबानी के माध्यम से किसानों को समृद्ध कर उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं.

कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि महोत्सव में सिर्फ बागबानी उत्पादों का प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि फल, फूल, सब्जी के बीज, बिचड़ा, पौधा, बागबानी उपकरण, मधु, मखाना, मशरूम, चाय आदि की बिक्री की भी व्यवस्था की गई है. बिहार में कुल 13.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बागबानी फसलों की खेती की जाती है, जिस से तकरीबन 286.45 लाख मीट्रिक टन फल, फूल, सब्जी आदि का उत्पादन होता है, जिसे आने वाले समय में और बढ़ाने का लक्ष्य है.

बागबानी क्षेत्र को बढ़ाने पर दिया जोर

कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि कृषि रोडमैप के लक्ष्य से आगे बढ़ कर भी सोचने की जरूरत है. सालाना लक्ष्य निर्धारित करने की दिशा में भी हम सोच सकते हैं. हमें साल 2025 में बागबानी का लक्ष्य बढ़ा कर 18 लाख हेक्टेयर एवं 2026 में इसे बढ़ा कर 20 लाख हेक्टेयर पर ले जाने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए.

बागबानी के क्षेत्र में बिहार लगातार आगे बढ़ रहा है. आज हमारे किसान पारंपरिक बागबानी फसलों के साथसाथ उच्च बाजार मूल्य वाले एक्जोटिक फल, ड्रैगन फ्रूट्स, स्ट्राबेरी आदि की खेती कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि इन उत्पादों का उचित भंडारण हो, प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग एवं मूल्य संवर्द्धन हो, बाजार की सुलभ उपलब्धता हो, इस दिशा में तीव्र गति से काम किया जा रहा है. इस कड़ी में राज्य सरकार के द्वारा कृषि विभाग के अंतर्गत कृषि मार्केटिंग निदेशालय का गठन किया गया है, जिस का उद्देश्य किसानों को उन की उपज का उचित मूल्य उपलब्ध कराना, किसानों को बाजार की व्यवस्था उपलब्ध कराना, किसानों के उत्पादों में मूल्य संवर्द्धन कराना, भंडारण की सुविधा, बेहतर पैकेजिंग आदि की व्यवस्था सुनिश्चित किया जाना है.

विभाग के सचिव संजय अग्रवाल ने बताया कि महोत्सव के आयोजन का उद्देश्य बाजारोन्मुख बागबानी उत्पादों के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए किसानों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाना है, वहीं बागबानी के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकी उपकरण से रूबरू कराना और किसानों को उन के उत्पादों का सही मूल्य प्राप्त हो, इस के लिए निर्यात प्रोत्साहन के लिए किसानों और व्यापारियों को एक प्लेटफार्म उपलब्ध कराना है.

इस अवसर पर अभिषेक कुमार, निदेशक उद्यान, आलोक रंजन घोष, एमडी, बिहार राज्य बीज निगम, अमिताभ सिंह, आप्त सचिव, स्वास्थ्य मंत्री, संतोष कुमार उत्तम, निदेशक पीपीएम, वीरेंद्र प्रसाद यादव, विशेष सचिव, कृषि विभाग, पद्मश्री से सम्मानित किसान चाची राजकुमारी देवी, मनोज कुमार, संयुक्त सचिव समेत कई अधिकारी कार्यक्रम में मौजूद रहे.

gardening festival

मन मोह लेने वाला रहा बागबानी महोत्सव, भाग लेने वाले प्रतिभागियों की प्रविष्टियां

पटना के गांधी मैदान में लगाए गए बागबानी महोत्सव में सब्जी, फल, फूल और सजावटी पौधों को ले कर किसानों और शहरी क्षेत्र के लोगों से प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए आवेदन मांगे गए थे, जिस में उन के प्रविष्टियों की कोडिंग की गई थी. निर्णायक मंडल द्वारा निष्पक्ष रूप से प्रतियोगिता में भाग लेने वाले लोगों के साथ इंसाफ किया जा सके.

16 वर्गों में आयोजित की गई प्रतियोगिताएं

बागबानी महोत्सव में भाग लेने लिए किसानों और बागबानी प्रेमियों के लिए 16 वर्गों में प्रविष्टियां आमंत्रित की गई थीं, जिस में सब्जी, मशरूम, फल, शहद, पान, कटे फूल डंठल सहित, औषधीय एवं सुगंधित पौधा, चित्रकला प्रतियोगिता, क्विज प्रतियोगिता, फल संरक्षण (घर की बनी), शोभाकार पत्तीदार पौधा, बोनसाई, जाड़े के मौसमी फूलों के पौधे, कैक्टस एवं सकुलेंट पौधा, विभिन्न तरह के पाम, कलात्मक पुष्प सज्जा एवं नक्काशी शामिल रहा. इन वर्गों को विभिन्न शाखाओं में बांटा गया था.

इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रत्येक वर्ग से प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार के रूप में नकद इनाम भी दिया गया. इस के अंतर्गत महोत्सव में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले प्रतिभागियों को प्रथम पुरस्कार के रूप में 5,000 रुपए, द्वितीय पुरस्कार के रूप में 4,000 रुपए व तृतीय पुरस्कार के रूप में 3,000 रुपए  प्रदान किए गए.

रंगबिरंगे फूलों और सजावटी पौधों ने मोहा मन, ली जम कर सैल्फी

बिहार सरकार द्वारा पटना के गांधी मैदान में लगाए गए बागबानी महोत्सव में चारों तरफ रंगबिरंगे फूलों की खुशबू बिखरी रही और इन पौधों ने लोगों को सैल्फी लेने को मजबूर कर दिया.

प्रदर्शनी में ये पौधे विभिन्न प्रतियोगियों द्वारा प्रतियोगिता में इनाम पाने के लिए प्रदर्शित किए गए थे. इस के तहत कैक्टस, पाम, गुलाब, गेंदा, सकुलेंट, पान, क्रोटन, गुलदाउदी, जरबेरा, एलोवेरा, विभिन्न पेड़ों के बोनसाई के हजारों की संख्या में पौधे शामिल रहे, जबकि एक विशिष्ट पुरस्कार के लिए 10,000 रुपए का नकद इनाम दिया गया.

रंगीन और विदेशी सब्जियों को देख हैरान हुए लोग

गांधी मैदान में लगाए तीनदिवसीय बागबानी महोत्सव में प्रदेश के विभिन्न जिलों के किसान फल, फूल और सब्जियों के पौधे ले कर प्रतियोगिता में शामिल होने आए थे, जिन्हें प्रदर्शन के लिए आम दर्शकों के लिए रखा गया था. इन प्रतियोगिताओं में आदमकद और जंबो साइज की सब्जियां और फलफूल देखने को मिले.

इस में 20 से 40 किलोग्राम का कद्दू, 5 से 10 किलोग्राम की फूलगोभी, डेढ़ किलोग्राम तक की गांठगोभी, जंबो साइज के सूरन, लौकी, बैगन, टमाटर, बंदगोभी, सेम, गाजर, आलू, मटर, अदरक, हलदी, ड्रैगन फ्रूट के अलावा जैविक तरीके से उगाए गए फलफूल और सब्जी को देख कर लोग हैरान हो कर फोटो और वीडियो बनाने से खुद को रोक नहीं पाए.

प्रदर्शनी में विदेशी सब्जियों में पाकचोई, जुकुनी सहित कई सब्जियां भी प्रतियोगिता के लिए रखी गई थीं, जिस का परिचय जानने के लिए लोग उत्सुक रहे.

चोरमा गांव के बाशिंदे सुरेश गिरी इस महोत्व में हरी मिर्च के पौधे ले कर आए थे. उन के एक पौधे में 60 मिर्चें लगी हुई थीं. वे बताते हैं कि उन्होंने जैविक तरीके से 2 कट्ठे में मिर्च की खेती की. एक कट्ठा में मिर्च गाने में 10,000 रुपए खर्च होते हैं और कमाई तकरीबन 60,000 रुपए होती है.

gardening festivalप्रदर्शनी के स्टालों पर खूब बिकी बागबानी से जुड़ी चीजें

बागबानी महोत्सव में बागबानी से जुड़े उपकरणों, खाद, उर्वरक, बीज, पौधे, गमले इत्यादि से जुड़े लगभग 60 स्टाल लगाए गए थे. जिस में निजी कंपनियों से ले कर सरकारी संस्थान, विश्वविद्यालय, आईसीएआर से जुड़े संस्थान और महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़े लोग शामिल रहे.

इन स्टालों पर लोगों ने बागबानी से जुड़े ब्रांडेड कंपनियों के छोटेछोटे मैनुअल उत्पाद और उपकरण तो खरीदे ही, साथ में उन्नत किस्मों के बीज और पौधों की भी जम कर खरीदारी की.

इस महोत्सव में राष्ट्रीय बीज निगम के स्टाल पर मोटे अनाज, फल, फूल और सब्जियों के प्रमाणित बीजों की खूब बिक्री हुई, जिस में मंडुआ, सांवा, मटर, धनिया, कैलेंडुला, बैगन, मूली, लाल साग और  प्याज के बीज आदि शामिल रहे.

इसी तरह 3 रुपए प्रति पौध की दर से टमाटर, बैगन, पत्तागोभी, लाल फूलगोभी का पौधा भी खूब बिका. एक स्टाल पर बिना बीज वाला खीरा 40 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिका, जो खाने में बिलकुल भी तीखा नहीं होता. इसी तरह आम, अमरूद, चीकू और आंवला के पौधों की बिक्री भी जम कर हुई.

gardening festivalबिहारी व्यंजनों का स्वाद

बागबानी महोत्सव न केवल किसानों और बागबानी में रुचि रखने वाले लोगों के लिए खास रहा, बल्कि यह महोत्सव खानेपीने वाले लोगों को भी अपनी तरफ खींचने में कामयाब रहा.

महोत्सव में बिहार के स्थानीय पारंपरिक व्यंजनों का भी स्टाल लगाया गया था, जहां लिट्टीचोखा, मशरूम के व्यंजन, मंगोड़े इत्यादि का भी लोगों ने जम कर स्वाद लिया.

छत पर फार्मिंग बैड योजना एवं गमले पर मिल रहा अनुदान

बिहार सरकार द्वारा चुनिंदा जनपदों में छत पर खेती किए जाने को प्रोत्साहित करने के लिए छत पर बागबानी योजना के तहत सहायता अनुदान मुहैया कराया जा रहा है, जिस का उद्देश्य शहरों में रहने वाले लोगों में जैविक उत्पादों के प्रयोग को बढ़ावा देने सहित छत पर खेती के जरीए शहरी प्रदूषण में कमी लाना और सब्जियों, फलों के ऊपर लोगों की बाजार पर निर्भरता को कम करना भी है.

यह योजना उन के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है, जिन के पास अपनी खुद की खेती के लिए जमीन नहीं है. वे लोग अगर खेती और बागबानी में रुचि रखते हैं, तो अपने घर की छत पर शौक को अमलीजामा पहना कर अपने इस शौक को पूरा कर सकते हैं.

बागबानी महोत्सव में इस योजना के प्रचारप्रसार के लिए लाइव डैमो प्रदर्शन किया गया था, जहां इस योजना से जुड़ी सभी जानकारियों सहित योजना का लाभ लेने के इच्छुक लोगों का मौके पर ही पंजीकरण किया गया.

योजना से जुड़ी खास बातें

योजना से जुड़े उपकरण, बीज पौधे व अन्य जरूरी संसाधन मुहैया कराने वाली एक कंपनी से जुड़े विकास कुमार ने महोत्सव में उक्त योजना का डैमो प्रदर्शन लगा रखा था. इस दौरान उन्होंने बातचीत में बताया कि अभी केवल बिहार के पटना सदर, दानापुर, फुलवारी एवं खगौल और भागलपुर, गया एवं मुजफ्फरपुर जिले के शहरी क्षेत्र में इस योजना का लाभ लिया जा सकता है. जिस के पास अपना घर हो अथवा अपार्टमेंट में फ्लैट हो, जिस की छत पर 300 वर्ग फुट की जगह हो, वे फार्मिंग बैड योजना का लाभ ले सकते हैं.

उन्होंने आगे बताया कि स्वयं के मकान की स्थिति में छत पर 300 वर्ग फुट खाली स्थल, जो किसी भी हस्तक्षेप से स्वतंत्र हो और अपार्टमेंट की स्थिति में अपार्टमेंट की पंजीकृत सोसाइटी से अनापत्ति प्रमाणपत्र प्राप्त होना जरूरी है.

विकास कुमार ने बताया कि फार्मिंग बैड योजना के अंतर्गत प्रति इकाई (300 वर्ग फुट) का इकाई लागत 48574 रुपए एवं अनुदान 75 फीसदी  और शेष 12143.50 रुपए लाभार्थी द्वारा दिया जाना है. इसी तरह गमले की योजना के अंतर्गत प्रति इकाई लागत 8975 रुपए एवं अनुदान 75 फीसदी और शेष 2243.75 रुपए लाभार्थी द्वारा देय होगा.

उन्होंने यह भी बताया कि आवेदन करने के बाद फार्मिंग बैड योजना के अंतर्गत प्राप्त रसीद पर लाभार्थी को अपने अंश की राशि 12143.50 रुपए प्रति इकाई (300 वर्ग फीट) और गमले की योजना के अंतर्गत प्राप्त रसीद पर लाभुक को अपने अंश की राशि 2243.75 रुपए प्रति इकाई जमा करने के लिए बैंक खाता संख्या एवं विस्तृत विवरणी प्राप्त होगी.

संबंधित जिले के संबंधित खाता संख्या में लाभुक अंश की राशि जमा होने के बाद  ही आगे की कार्रवाई की जाएगी. इस योजना का लाभ प्राप्त करने वाले लाभार्थी द्वारा छत पर लगे बागबानी इकाई का रखरखाव स्वयं के स्तर से करना अनिवार्य होगा.

उन्होंने बताया कि फार्मिंग बैड योजना के अंतर्गत स्वयं के मकान की स्थिति में 2 इकाई और अपार्टमेंट एवं शैक्षणिक/अन्य संस्थान के लिए अधिकतम 5 इकाई का लाभ दिया जाएगा. गमले की योजना का लाभ संस्थाओं को नहीं दिया जाएगा और  गमले की योजना का लाभ किसी आवेदक द्वारा अधिकतम 5 यूनिट तक लिया जा सकेगा.

विकास कुमार ने बताया कि इस योजना की गाइडलाइन के अनुसार चयन के लिए  जिले के लक्ष्य के अंतर्गत 78.60 फीसदी सामान्य जाति, 20 फीसदी अनुसूचित जाति और 1.40 फीसदी  अनुसूचित जनजाति की भागीदारी सुनिश्चित की गई है, जिस में कुल भागीदारी में 30 फीसदी  महिलाओं को प्राथमिकता दिए जाने का प्रावधान है.

गमला योजना में शामिल हैं ये चीजें

गमला योजना के तहत 30 गमले में अलगअलग तरह के पौधे लगा कर दिए जाएंगे. इस में तुलसी, अश्वगंधा, एलोवेरा, स्टीविया, पुदीना, स्नेक प्लांट, मनी प्लांट, गुलाब, चांदनी, एरिका पाम, अपराजिता, करीपत्ता, बोगनविलिया, अमरूद, आम, नीबू, चीकू, केला, रबर आदि के पौधे रहेंगे. इन में 10 इंच के 5, 12 इंच के 5, 14 इंच के 10 और 16 इंच के 10 गमले दिए जाएंगे. इस योजना की लागत 8,974 रुपए की है, लेकिन 75 फीसदी अनुदान के बाद आवेदक को केवल 2,244 रुपए ही देने होंगे.

 12,000 रुपए में छत पर बागबानी का सपना होगा सच

फार्मिंग बैड योजना के तहत लाभार्थी के घर की छत पर कई तरह के फार्मिंग बैड और बैग लगाए जाएंगे. इन में 10 फुट लंबा और 4 फुट चौड़ा 3 फार्मिंग बैड, 2 फुट लंबा और एक फुट चौड़ा एक फार्मिंग बैग, 2 फीट लंबा और 2 फीट चौड़ा 6 बैग लगाए जाएंगे. इस में ड्रिप सिस्टम और मोटर लगा कर दिया जाएगा. ड्रिप सिस्टम में लगे स्विच को चालू करते ही पौधों की सिंचाई हो जाएगी. साथ ही, 30 किलोग्राम कोकोपिट और 50 किलोग्राम वमीं कंपोस्ट दिया जाएगा.

फार्मिंग बैड योजना के तहत लोगों को मौसमी सब्जी और फल के पौधे लगा कर इस योजना के तहत 9 माह तक प्रबंधन का काम एजेंसी ही करेगी. इस दौरान एजेंसी के लोग 18 बार निरीक्षण करने आएंगे. पौधों का विकास, उन की जरूरत के हिसाब से वे काम करेंगे.

एजेंसी पूरी करेगी जरूरतें

सरकार द्वारा इस योजना का लाभ लोगों को आसानी से मुहैया हो पाए, इस के लिए ऐसी व्यवस्था की है कि आवेदन के लिए कहीं चक्कर लगाने की जरूरत न पड़े. इस के लिए सबकुछ एजेंसी पहुंचाने का काम कर रही है. इस योजना के लिए आवेदक को निदेशालय की वैबसाइट https:// horticulture.bihar.gov.in पर जाना होगा. इस वैबसाइट पर ही औनलाइन आवेदन करना होगा. इस के बाद आवेदन किए जाने के 10 दिन के अंदर ही आप के घर की छत पर बागबानी कर दी जाएगी.

जनवरी में किए जाने वाले खेती के खास काम

जनवरी के महीने में अनेक इलाकों में कड़ाके की सर्दी होती है. ऐसे में खेतीकिसानी के काम करना थोड़ा मुश्किल भरे जरूर होते है, लेकिन खेती के लिए फायदेमंद रहते है. गेहूं फसल में अच्छे फुटाव के लिए अधिक ठंड का होना फायदेमंद है तो पाला पड़ना फसल को नुकसान देते है. ऐसे में अगर कहीं प्राकृतिक आपदा के चलते ओलावृष्टि हो जाए तो फसल को काफी नुकसान भी होता है. कुछ ऐसी जरूरी बातें हैं जिन को ध्यान में रख कर हम खेतीकिसानी के काम करे तो वह हमारे लिए फायदेमंद साबित होते है.

आइए डालते हैं एक नजर जनवरी के दौरान किए जाने वाले खेती के कामों पर :

* जनवरी में गेहूं के खेतों पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है. इस दौरान करीब 3 हफ्ते के अंतराल पर गेहूं के खेतों की सिंचाई करते रहें.

* गेहूं के खेतों में अगर खरपतवार या अन्य फालतू पौधे पनपते नजर आएं, तो उन्हें फौरन उखाड़ दें. चौड़े पत्ते वाले खरपतवार ज्यादा हों, तो 2-4 डी सोडियम साल्ट दवा का इस्तेमाल करें. यह दवा काफी कारगर होती है.

* अगर गेहूं की बालियों में अनावृत कंडुआ रोग का असर नजर आए, तो उन पौधों को देखते ही उखाड़ कर नष्ट कर दें.

इस के अलावा अगर खेत में काली गेरुई रोग का प्रकोप दिखाई दे, तो मैंकोजेब दवा की ढाई किलोग्राम मात्रा को करीब 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* यदि चने के खेतों में फलीछेदक कीड़े का का हमला दिखाई पड़े, तो फलियां बनना शुरू होते ही इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की 2 लीटर मात्रा को करीब 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* यदि चने के खेतों में फलीछेदक कीड़े का हमला दिखाई पड़े, तो फलियां बनना शुरू होते ही इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की 2 लीटर मात्रा को करीब 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. छिड़काव के असर से फलियां बेहतरीन होंगी.

* मटर व मसूर के खेतों में उगे खरपतवारों को खरपतवारनाशी दवा का इस्तेमाल कर के नष्ट करें.

* चना, मटर व मसूर के खेतों में इस दौरान निराईगुड़ाई जरूर करें. इस से पौधों को खुराक ढंग से मिल सकेगी और खरपतवार भी नहीं पनपेंगे.

* चने और मटर के खेतों में फूल आने से पहले सिंचाई करें, मगर फूल बनने के दौरान सिंचाई न करें. फूल बनने के बाद फिर सिंचाई करें.

* मटर व चने की फसलों में अगर रतुआ बीमारी का प्रकोप नजर आए, तो रोकथाम के लिए जिंक मैंगनीज कार्बानेट दवा की ढाई किलोग्राम मात्रा करीब 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* नए साल का यह पहला महीना ताजे गुड़ व गन्ने के लिए खास माना जाता है. इस दौरान गन्ने की पेड़ी फसल की कटाई का काम करें. कटाई का काम फसल की हालत व हालात के मुताबिक करें.

* कटाई के दौरान निकली गन्ने की पत्तियों को हरगिज नहीं जलाएं, क्योंकि फसल अवशेष जलाना न सिर्फ गुनाह है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी घातक है. गन्ने की सूखी पत्तियों को जमा कर के कंपोस्ट खाद बनाने में इस्तेमाल करें.

* गन्ने की सूखी पत्तियों को मवेशियों के बेड के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है, इन पत्तियों को अगली पेड़ी फसल में पलवार के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं, इस से खेत में काफी समय तक नमी बनी रहती है. ऐसा करने से खरपतवार भी कम निकलते हैं.

* जौर की फसल को बोए हुए अगर 4-5 हफ्ते हो रहे हों तो खेत की सिंचाई करें. सिंचाई के बाद हलकी निराईगुड़ाई भी करें ताकि खरपतवार न पनप सकें.

* अगर राई व सरसों की फसलों में फूल व फलियां निकल रही हों, तो खेत की सिंचाई करें. सिंचाई के बाद निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालें.

* अगर सरसों में तनासड़न बीमारी का प्रकोप दिखाई दे, तो रोकथाम के लिए बिनोमाइल दवा की आधा किलोग्राम मात्रा या थाइरम की डेढ़ किलोग्राम मात्रा करीब 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* अगर सरसों या राई की फसल पर बालदार सूंडी़ का हमला नजर आए, तो बचाव के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की 1.25 लीटर मात्रा करीब 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* तोरिया के खेतों का मुआयना करें. अगर करीब 75 फीसदी फलियां गोल्डन रंग की हो चुकी हों, तो फसल की कटाई करें. कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह सुखा कर मड़ाई करें.

* नए साल के पहले महीने यानी जनवरी में सोंधे व स्वादिष्ठ लगने वाले नए आलू का इंतजार सभी को होता है. आलू की अगेती फसल जनवरी में खुदाई लायक हो जाती है, लिहाजा यह काम निबटाएं. खुदाई के लिए आलू खोदने वाली मशीन का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. मशीन से आलू की खुदाई तेजी से होती है और आलू नष्ट भी नहीं होते.

* अगर आलू की मध्यम व पछेती फसलों पर झुलसा बीमारी के लक्षण नजर आएं, तो रोकथाम के लिए मैंकोजेब दवा का इस्तेमाल करें.

* प्याज की रोपाई का काम भी जनवरी में ही निबटा देना चाहिए. प्याज की रोपाई करने से पहले खेत में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश जरूर डालें और रोपाई के बाद हलकी सिंचाई करें.

* जनवरी में तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, करेला और भिंडी आदि की बोआई के लिए ढंग से जुताई कर के खेत तैयार करें. खेत में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खद भरपूर मात्रा में डालें.

Farming Work

* जनवरी के ठंडे महीने में पाले का खतरा बहुत ज्यादा रहता है, लिहाजा पाले से बचाव के लिए छोटे फलों वाले पौधों व सब्जियों की नर्सरियों को टाट या घासफूस के छप्परों से अच्छी तरह ढक दें.

* पाला गिरने वाली रात में बाग या खेत की सिंचाई करना न भूलें. इस से पाले का असर घट जाता है.

* जनवरी महीने के दौरान अकसर आंवले में फलीविगलन रोग लग जाता है. ऐसी हालत में बचाव के लिए ब्लाइटाक्स 58 दवा का इस्तेमाल करें.

* माल्टा, किन्नू, संतरा व नीबू आदि के पेड़ों में गमोसिस बीमारी से बचाव के लिए पेड़ों के रोगग्रस्त भागों को काट कर जला दें, पेड़ों के काटे गए हिस्सों पर रिटोमिल व अलसी के तेल का पेस्ट तैयार कर के लगाएं. यह पेस्ट तैयार करने के लिए 1 लीटर अलसी के तेल में 20 ग्राम रिडोमिल दवा अच्छी तरह मिलाएं.

* इस महीने आड़ू, नीबू, संतरा, किन्नू और माल्टा आदि पेड़ों की छंटाई का काम भी करें. इन पेड़ों में कृषि वैज्ञानिक से सलाह ले कर जरूरी खादें भी डालें.

* इसी तरह अंगूर की बेलों की काटछांट का काम भी महीने के अंत तक जरूर निबटा लें. इसी दौरान नई बेलें भी लगाई जा सकती हैं. अगर नई बेले लगाएं, तो लगाने के फौरन बाद सिंचाई जरूर करें.

* आमतौर पर आम के पेड़ों की देखभाल की याद आम के मौसम में ज्यादा आती है, मगर यह अच्छी बात नहीं है. इन पेड़ों की नियमित देखभाल करना जरूरी है. अमूमन दिसंबर में आम के पेड़ों के तनों पर अल्काथीन शीट लगाई जाती है. जनवरी में इस शीट की कायदे से सफाई करें, क्योंकि बगैर सफाई के शीट का पूरा फायदा नहीं मिलता.

* आम के पेड़ों में भुनगा व मित्र कीड़ों के बचाव के लिए मोनोक्रोटोफास 50 ईसी दवा की डेढ़ मिलीलीटर मात्रा 1 लीटर पानी में घोल कर पेड़ों में बौर आने के तुरंत बाद छिड़कें. अगर जरूरी लगे तो 2-3 हफ्ते बाद दोबारा छिड़काव करें.

* अपने महंगे मवेशियों यानी गायभैंसों वगैरह को जनवरी की कड़ाके की ठंड से बचाने के पूरे इंतजाम करें, क्योंकि थोड़ी सी लापरवाही से लाखें रुपए के मवेशी ठंड के शिकार हो सकते हैं.

* पशुओं को दिन के दौरान धूप में बांधें और रात के वक्त आग जला कर गरमी का बंदोबस्त करें. गौशाला के दरवाजे बंद रखें या टाट के मोटे परदे लगाएं. रोशनी का भी पूरा इंतजाम करें.

* जनवरी की सर्दी मुरगेमुरगियों के लिए भी खतरनाक साबित होती है, लिहाजा उन के बचाव का भी पूरा खयाल रखें. जब मुरगियां स्वस्थ होंगी तभी महंगे अंडों का उत्पादन होगा.

* जब घना कोहरा पड़ रहा हो, उस दौरान गौशाला की चौकसी बढ़ा दें, क्योंकि कोहरे का फायदा उठा कर चोरउचक्के अपना कारनामा दिखा देते हैं.

* अपने इलाके के पशुचिकित्सकों के मोबाइल नंबर डायरी में लिखने के साथसाथ अपने मोबाइल में भी दर्ज कर के रखें ताकि आड़े वक्त पर यानी पशुओं के बीमार होने पर उन से फौरन बात की जा सके.