50 फीसदी से ज्यादा रोजगार (Employment) देता है कृषि क्षेत्र

करनाल : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान करनाल, हरियाणा में वैज्ञानिकों, गन्ना किसानों एवं लखपति दीदियों के साथ संवाद कार्यक्रम में भाग लिया. उन्होंने कहा कि हम सब एक परिवार हैं. आप सब से मिल कर मैं प्रसन्न हूं. मैं ने भी फलों, फूलों, औषधि की खेती व डेयरी की है. कुछ हम आप से सीखेंगे और कुछ आप को सिखाएंगे.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने बचपन की बातें साझा करते हुए कहा कि मुझे लगा कि जब तक बेटियों को बोझ मानने की मानसिकता रहेगी, तब तक दुनिया बेटियों को पैदा नहीं होने देगी, इसलिए भेदभाव खत्म करना चाहिए.

महिलाओं के लिए योजनाएं

उन्होंने आगे बताया कि मुख्यमंत्री बनते ही महिलाओं के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना बनाई थी. 50 लाख से ज़्यादा लाड़ली लक्ष्मी बेटियां आज मध्य प्रदेश में हैं. महिलाओं का आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक सशक्तीकरण बहुत आवश्यक है. मध्य प्रदेश पहला राज्य था, जिस ने महिलाओं को स्थानीय निकाय के चुनावों में 50 फीसदी आरक्षण दिया था. उस के बाद कन्या विवाह योजना जैसी कई योजनाएं शुरू कीं.

उन्होंने आगे कहा कि महिला सशक्तीकरण मेरी जिंदगी का मिशन है और किसानों की आय के बिना देश आगे नहीं बढ़ सकता. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. आज भी कृषि जीडीपी में महज 18 फीसदी का योगदान देती है और 50 फीसदी से ज्यादा लोगों को रोजगार देती है.

कृषि योजनाओं और कृषि विविधीकरण से बढ़ेगी किसानों की आय

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प किसानों की आय बढ़ाना है. कृषि के लिए हमारी 6 योजनाएं हैं.  हमें उत्पादन बढ़ाना है. इस के लिए अच्छे बीज का होना आवश्यक है. साल 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 109 बीजों की वैरायटी भी आईसीएआर के कैंपस में लोकार्पित की थी. साथ ही, हमें लागत घटाना है. उत्पादन का ठीक दाम देना है. उपज का नुकसान होने पर उस की भरपाई भी करनी है. साथ ही, कृषि का विविधीकरण भी करना है.

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खेती के सहयोगी काम से अतिरिक्त आमदनी

उन्होंने कहा कि आमदनी बढ़ाने के लिए हमें परंपरागत खेती ही नहीं, बल्कि फलों, फूलों, औषधि की खेती, कृषि वानिकी, पशुपालन, मधुमक्खीपालन और मछलीपालन आदि कई प्रकार की खेती करनी होगी. आमदनी बढ़ाने के लिए कई तरह के प्रयास करने पड़ेंगे. कृषि और डेयरी दोनों जुड़े हुए हैं. मुझे गर्व है कि इस क्षेत्र में एनडीआरआई ने उल्लेखनीय काम किया है.

कृषि में नए शोध और तकनीकी खेती से फायदा

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि नई तकनीक का प्रयोग करते हुए हम कैसे अधिक दूध का उत्पादन कर सकते हैं, इस पर हमें ध्यान देना होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जोर दे रहे हैं कि कैसे हम पशुओं को उन्नत नस्ल में बदल दें. वैज्ञानिकों को भी इस के लिए बधाई देता हूं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था, वहीं अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘जय विज्ञान’ जोड़ा और नरेंद्र मोदी ने ‘जय अनुसंधान’ को जोड़ा,  जो कि अनुसंधान के लिए आवश्यक है. शोध और अनंसंधान पर खर्च होना चाहिए. तकनीक के इस्तेमाल के बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं. भारत को हमें ‘फूड बास्केट’ बनाना है और भारत को दूध का सब से बड़ा उत्पादक भी बनाना है. इस में संस्थान की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है.

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तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बनेगा भारत

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि किसान भाई, आप मेरी चिंता न करें. मेरी यही कोशिश रहेगी कि किसान आगे बढ़े और हमारा अन्नदाता कैसे सुखी हो. उन्होंने बहनों को प्रेरित करते हुए कहा कि बहनों आप को भी लखपति बनना है. 1 करोड़, 15 लाख ‘लखपति दीदीयां’ हैं. कई दीदियों ने छोटेछोटे उद्योग शुरू कर दिए हैं. हमें एक वैभवशाली, गौरवशाली, संपन्न, समृद्ध और शक्तिशाली भारत बनाना है.

उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की 5वीं सब से बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्दी ही दुनिया की तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है. उस में कृषि और पशुपालन का अहम रोल होगा और महिलाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान होगा.

उन्होंने कहा कि दीदीयां तकनीक का प्रयोग करते हुए आज ड्रोन उड़ा रही हैं. एनडीआरआई के दोस्तों और अन्य संस्थानों को अच्छे काम के लिए मैं बधाई देता हूं और जहां सुधार की गुंजाइश होगी वह किया जाएगा.

जल संसाधनों (Water Resources) के अधिक दोहन को रोकना जरूरी

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘वाटर एफिशिएंट क्राप कल्टीवार’ विषय पर चौथी उच्चस्तरीय समिति की बैठक का आयोजन हुआ. इस बैठक में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बीआर कंबोज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की, जबकि पंजाब विश्वविद्यालय लुधियाना के पूर्व कुलपति एवं समिति के चेयरमैन डा. बीएस ढिल्लो विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रहे.

बैठक में पीडब्ल्यूआरडीए के तकनीकी सलाहकार व पंजाब के पूर्व कृषि निदेशक राजेश वशिष्ठ, कृषि महाविद्यालय पीएयू के पूर्व अधिष्ठाता डा. एसएस कुकल एवं भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक डा. सीएल आचार्य भी उपस्थित रहे.

इस उच्चस्तरीय समिति का मुख्य उद्देश्य जल संसाधनों के अधिक दोहन को रोकना, खरीफ मौसम में कम पानी में उगाई जानी वाली किस्मों को प्रचलित करना व इन से संबंधित शोध की समीक्षा करना व अन्य संस्थानों के साथ शोध को बढावा देना है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में जल जैसे अमूल्य प्राकृतिक संसाधन के खेती में सदुपयोग करने व उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप कृषि योजना बना कर प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के महत्व के बारे में अपने विचार रखे.

उन्होंने खरीफ मौसम में कम पानी में उगाई जाने वाली व बेहतर उत्पादन देने वाली किस्मों को उगाने के लिए उन्नत सस्य क्रियाएं अपना कर जल संरक्षण करने पर जोर दिया. उन्होंने आगे यह भी कहा कि भावी पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिए जल संसाधनों का संरक्षण बहुत जरूरी है. बायोसैंसर जैसी आधुनिक तकनीक का जल संसाधनों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है. मक्का की फसल धान वाले खेतों में पानी बचाने के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है.

उन्होंने बताया कि मक्का का साइलेज 70-80 दिन में तैयार हो जाता है. साथ ही, चारे की कमी के दिनों में पशुओं के लिए यह बहुत उपयोगी होता है. इसी तरह गेहूं वाले क्षेत्रों में राया की फसल उगा कर पानी की बचत की जा सकती है. राया के बाद छोटी अवधि की फसल जैसे मूंग उगाई जा सकती है, जिस से मुनाफा बढ़ने के साथसाथ संसाधनों की बचत भी होगी.

डा. बीएस ढिल्लो ने बताया कि खरीफ के मौसम में धान की कम पानी में उगाई जाने वाली व धान की सीधी बिजाई के लिए उपयुक्त किस्मों के बारे में चर्चा की. साथ ही, खरीफ में उगाई जाने वाली दूसरी फसलें जैसे मूंग, अरहर, बाजरा व कपास की भी कम पानी में बेहतर पैदावार देने वाली किस्मों के बारे में जानकारी दी.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने बैठक में सभी का स्वागत करते हुए धानगेहूं फसल चक्र में पानी की बचत के लिए विभिन्न तकनीकों व पहलुओं पर अपने विचार रखे. उन्होंने कपास, धान, मक्का फसल की अधिक पैदावार व मुनाफा देने के साथसाथ कम पानी में उगाई जाने वाली किस्मों से संबंधित शोध को बढ़ावा देने संबंधी रणनीति के बारे में भी बताया.

डा. सीएल आचार्य ने बताया कि भूमिगत जल संसाधनों का अधिक दोहन हो रहा है, जिस के चलते पूरे देश में 151 जिले पानी की कमी से जूझ रहे हैं. साथ ही, भूमिगत पानी में पाए जाने वाले हानिकारक तत्व भी होते हैं. गत वर्ष हरियाणा, पंजाब व राजस्थान में क्रमश: 8.69, 16.98 व 11.25 बिलियन क्यूबिक मीटर भूमिगत पानी निकाला जा सकता था, जबकि 11.8, 27.8 व 16.74 बिलियन क्यूबिक मीटर भूमिगत पानी निकाला गया.

उन्होंने यह भी बताया कि आगे ऐसा समय भी आएगा, जब फ्लड सिंचाई बंद करनी होगी व अधिक दक्षता वाले सिंचाई के तरीके जैसे टपक व फव्वारा सिंचाई जैसी तकनीकों को अपनाना होगा. वहीं डा. एसएस कुकल ने बताया कि कम पानी में बेहतर पैदावार देने वाली नई किस्मों का परीक्षण अधिक से अधिक स्थानों पर करना जरूरी है, ताकि उन के नतीजे सत्यापित हो सकें. राजेश वशिष्ठ ने धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया. बैठक का संचालन डा. एसएस यादव ने किया.

बिहार कृषि विश्वविद्यालय (Agricultural University) को मिली नई जिम्मेदारी

सबौर : 19 दिसंबर, 2024. बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर, को नीति आयोग द्वारा पूर्वोदय योजना के तहत पूर्वी भारत के समग्र विकास के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है. यह योजना बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और आंध्र प्रदेश सहित पूर्वी क्षेत्र के विकास के लिए तैयार की जा रही है.

यह पहल पूर्वी भारत में कृषि व ग्रामीण विकास से संबंधित क्षेत्रों में मौजूद अनूठी चुनौतियों और संभावनाओं का अध्ययन कर के एक व्यापक राज्य योजना बनाने का प्रयास करेगी. नीति आयोग ने बीएयू की शोध में उत्कृष्टता और विशिष्ट विशेषज्ञता को मान्यता देते हुए यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है.

यह पहल क्षेत्र के महत्वपूर्ण मुद्दों का विश्लेषण करने, क्षेत्रीय योजनाओं और पिछले कार्यक्रमों के प्रदर्शन के आधार पर संभावित लक्ष्यों को निर्धारित करने और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक हस्तक्षेपों को सूचीबद्ध करने पर केंद्रित होगी.

बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति, डा. डीआर सिंह ने कहा, “यह नामांकन हमारे लिए गर्व और जिम्मेदारी का प्रतीक है. हम इस योजना को प्रभावी और टिकाऊ बनाने के लिए अपनी पूरी विशेषज्ञता और संसाधनों का उपयोग करेंगे.”

इस महत्वाकांक्षी योजना का उद्देश्य पूर्वोदय क्षेत्र को विकास का इंजन बनाना और “विकसित भारत” के लक्ष्य को प्राप्त करना है. यह पहल कृषि एवं ग्रामीण विकास में संरचनात्मक सुधार लाने और क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने में मदद करेगी.

चल कृत्रिम गर्भाधान प्रयोगशाला (अवि मेल) : भारत में भेड़ प्रजनन के क्षेत्र में एक गेमचेंजर

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर ने भेड़ प्रजनन के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व नवाचार शुरू किया है. भेड़ों के लिए चल कृत्रिम गर्भाधान प्रयोगशाला, जिसे अवि मेल नाम दिया गया है. पहली बार डिज़ाइन की गई इस अत्याधुनिक सुविधा का उद्देश्य मद समाकलन और कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं को सीधे किसानों के दरवाजे पर पहुंचा कर भेड़ प्रजनन के क्षेत्र में क्रांति लाना है.

कई चुनौतियों के चलते भेड़ों में कृत्रिम गर्भाधान लोकप्रिय नहीं रहा है और इस का कम उपयोग किया गया है. भेड़ की सर्विक्स (बच्चेदानी का मुंह) की जटिल शारीरिक रचना के कारण कृत्रिम गर्भाधान के लिए भेड़ यानी मेढ़े के क्रायोप्रिजर्व्ड  सीमेन को, जिसे कई सालों तक महफूज  रखा जा सकता है, उस का सफलतापूर्वक उपयोग नहीं किया जा सकता.

तरल शीतित सीमेन के साथ कृत्रिम गर्भाधान काफी सफल होता है और 50 से 60 फीसदी गर्भधारण दर प्राप्त होती है. हालांकि, उसे बहुत कम समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है और इसे संग्रह के बाद 8 से 10 घंटे में उपयोग करने पर ही वांछित सफलता मिलती है.

इस वजह से कृत्रिम गर्भाधान तकनीक सीमेन स्टेशन के 25 से 30 किलोमीटर के दायरे में किसानों के लिए पहुंच पाती है और देश में भेड़ों के लिए स्थापित सीमेन लैबोरेट्रीज की संख्या न के बराबर है.

इन चुनौतियों को पहचानते हुए भेड़ों में नस्ल सुधार कार्यक्रमों के लिए कृत्रिम गर्भाधान के सफल कार्यान्वयन को सक्षम बनाने के लिए इस प्रौद्योगिकी और किसानों के बीच की खाई को पाटने के लिए ‘अवि मेल’ की अवधारणा लाई गई थी.

भारत सरकार के पशुपालन एवं डेयरी विभाग के राष्ट्रीय पशुधन मिशन द्वारा वित्तीय रूप से समर्थित अवि  मेल, पहियों पर पूरी तरह से सुसज्जित मोबाइल सीमेन प्रयोगशाला है, जिसे दूरदराज के क्षेत्रों में भी फील्ड स्थितियों में संचालित करने के लिए डिजाइन किया गया है.

यह एक रोगाणुहीन वातावरण में उच्चतम मेंड़ों से  स्वच्छ सीमेन संग्रह, मूल्यांकन और प्रसंस्करण की सुविधाएं प्रदान करता है, जिसे भेड़ों के अलावा बकरियों, सूअरों और घोड़ों सहित अन्य पशुओं की प्रजातियों में भी उपयोग किया जा सकता है.

अवि मेल को कृषि एवं पशुपालन क्षेत्रों के प्रमुख व्यक्तियों और विशेषज्ञों से काफी तारीफ मिली है. विभिन्न दौरों के दौरान इस नवाचार की कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ लल्लन सिंह, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के राज्य मंत्री प्रो. एसपीएस बघेल, डेयर सचिव और आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक, कृषि वैज्ञानिक भरती बोर्ड के अध्यक्ष डा. संजय कुमार, एग्रीनोवेट के सीईओ डा. प्रवीण मलिक, डीएएचडी के पूर्व संयुक्त सचिव (एनएलएम) डा. ओपी चौधरी के साथसाथ अन्य मंत्री, वरिष्ठ अधिकारी और विभिन्न राज्यों के अनुसंधान संस्थानों, विश्वविद्यालयों और पशुपालन विभागों के विशेषज्ञों ने प्रशंसा की और इसे बड़े स्तर पर प्रयोग करने की अनुशंसा की.

एक प्रायोगिक परीक्षण में राजस्थान के टोंक और जयपुर जिलों के 5 गांवों के 10 किसानों की 450 भेड़ों में कृत्रिम गर्भाधान के लिए अवि मेल का इस्तेमाल किया गया, जिस से 58 फीसदी भेड़ों में एक समय पर उन्नत नस्ल के मेमने प्राप्त हुए.

यह सफलता भेड़ उत्पादकता में सुधार लाने और छोटे किसानों के माली उत्थान में योगदान देने के लिए अवि  मेल की क्षमता को उजागर करती है.

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केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के निदेशक डा. अरुण तोमर ने ‘अवि  मेल’ की परिवर्तनकारी क्षमता पर जोर देते हुए कहा, “यह नवाचार उन्नत प्रजनन तकनीकों को किसानों के लिए सुलभ बनाने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, खासकर दूरदराज के क्षेत्रों में और प्रवासी भ्रमणकारी भेड़पालकों के लिए. अवि मेल में कुशल नस्ल सुधार कार्यक्रमों को सक्षम बनाने की क्षमता है, जिस से पशुधन क्षेत्र में भेड़ उत्पादकता और आर्थिक विकास में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है.”

अवि  मेल को संस्थान के निदेशक डा. अरुण तोमर के मार्गदर्शन में एनएलएम द्वारा वित्तपोषित परियोजना के प्रधान अन्वेषक डा. अजीत सिंह महला और उन की टीम द्वारा बनाया गया है.

डा. अरुण महला ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में दुनिया की दूसरी सब से बड़ी भेड़ आबादी होने और पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान के 7 दशकों के सफल प्रयोग के बावजूद देश अभी तक भेड़ों में एक वांछनीय कृत्रिम गर्भाधान कवरेज हासिल नहीं कर पाया है. यहां तक कि देशभर में कुल गर्भाधानों की संख्या 4 अंकों तक पहुंचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है.

उन्होंने बताया कि नीति बनाने वाले इस तकनीक का बड़े स्तर पर प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए देशभर में भेड़, बकरी और सूअर जैसी प्रजातियों के लिए वीर्य स्टेशनों या कृत्रिम गर्भाधान प्रयोगशालाओं के लिए बुनियादी ढांचे को बढ़ाने की सिफारिश करते हैं.

संस्थान द्वारा विकसित की गई यह चल कृत्रिम गर्भाधान प्रयोगशाला कम लागत में बुनियादी ढांचे को मजबूत कर प्रजनन तकनीकों को भेड़पालकों तक पहुंचा कर भेड़ प्रजनन के क्षेत्र में  क्रांति लाने की संभावनाएं रखती है.

अवि मेल को राज्य पशुपालन विभागों, शोध संस्थानों, नस्ल सुधार कार्यक्रमों में लगे गैरसरकारी संगठनों और उद्यमियों द्वारा अपनाया जा सकता है. हाल ही में एनएलएम सब्सिडी योजना की शुरूआत ने देशभर में व्यावसायिक भेड़पालन में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिस से इस क्षेत्र का असंगठित से संगठित सैक्टर में परिवर्तन हो रहा है.

इस बदलाव के साथ भेड़ों में कृत्रिम गर्भाधान की खासकर प्रगतिशील किसानों और उद्यमियों के बीच बढ़ती मांग देखी गई है. इस के अलावा अविकानगर जैसी शोध संस्थाओं द्वारा विकसित उच्च मांग वाली भेड़ की नस्लों, जिन की मांग और उपलब्धता में उल्लेखनीय अंतर है , जैसे अविशान जो 2 से 4 मेमने देने के लिए जानी जाती है और अविदुम्बा जो असाधारण वजन और वृद्धि के लिए जानी जाती है, के बेहतर जर्म प्लाज्म के प्रसार के लिए कृत्रिम गर्भाधान  का उपयोग कर भारतीय भेड़ों की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है.

अविकानगर संस्थान ‘अवि मेल’ जैसी तकनीकों के सफल विकास के साथ नवीन तकनीकों के माध्यम से पशुधन उत्पादकता को आगे बढ़ाने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है  और आधुनिक प्रजनन पद्धतियों को पशुपालकों के दरवाजे तक ला कर संस्थान भारत के भेड़ उद्योग के लिए अधिक टिकाऊ और समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहा है.

31 दिसंबर तक करा सकेंगे रबी फसलों का बीमा

कटनी : प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत रबी फसलों के लिए बीमा पंजीयन की शुरुआत हो गई है. रबी 2024-25 में फसलों का बीमा कराने के लिए किसानों के लिए अपनी पटवारी हलके में अधिसूचित फसल के लिए बीमा कराने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर, 2024 निर्धारित की गई है.

उपसंचालक, किसान कल्याण एवं कृषि ने बताया कि इच्छुक किसान उक्त तिथि के पूर्व अपनी अधिसूचित फसलों का बीमा करा सकते हैं. रबी मौसम में सभी अनाज दलहन, तिलहन फसलों के लिए बीमित राशि का अधिकतम 1.5 फीसदी मात्र प्रीमियम किसान द्वारा देय है.

ऋणी किसानों ने जिस बैंक से फसल ऋण लिया है, वह उस बैंक में अपना बीमा करवाएं. अऋणी किसानों 31 दिसंबर, 2024 तक किसान क्रेडिट कार्ड पर फसल ऋण प्रदायकर्ता बैंकों सहकारी समितियों और अऋणी किसान बैंक, जनसेवा केंद्र (सीएससी), ग्राम पंचायत स्तर पर जनसेवा केंद्र के माध्यम से अपनी फसलों का बीमा करा सकते हैं.

बीमा कराने के लिए किसानों को घोषणापत्र, आधारकार्ड, जमीन सिकमी होने पर इस का शपथपत्र, ऋणपुस्तिका, बैंक खाते का विवरण, बोआई प्रमाणपत्र ले कर जाना होगा. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना रबी वर्ष 2024-25 में अधिसूचित फसलों के अंतर्गत गेहूं सिंचित की बीमित राशि 36,000 रुपए और प्रीमियम राशि 1.5 फीसदी के हिसाब से 540 रुपए प्रति हेक्टेयर निर्धारित है.

इसी प्रकार चना के लिए बीमित राशि 37, 300 और प्रीमियम राशि 560 रुपए के अलावा मसूर के लिए 26,400 रुपए बीमित राशि एवं प्रीमियम राशि 393 रुपए के अलावा राई व सरसों के लिए बीमित राशि 20,000 रुपए एवं प्रीमियम राशि 300 रुपए प्रति हेक्टेयर निर्धारित है.

उपसंचालक, कृषि ने किसानों से अपनी अधिसूचित फसल का बीमा कराने का आग्रह किया है, ताकि असामान्य परिस्थितियों में होने वाले नुकसान की प्रतिपूर्ति हो सके.

10+1 बकरी इकाई योजना: सभी तबके के लिए कैसे है लाभकारी

छिंदवाडा : जिले में किसानों और मजदूरों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा ’10+1 बकरी इकाई योजना’ शुरू की गई है. उपसंचालक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग के डा. एचजीएस पक्षवार ने बताया कि यह योजना सभी तबकों के भूमिहीन, कृषि मजदूर, सीमांत और लघु किसानों के लिए उपलब्ध है. इस का उद्देश्य देशी और स्थानीय नस्ल की बकरियों में सुधार कर दूध एवं मांस उत्पादन में वृद्धि करना है.

उन्होंने बताया कि योजना के तहत 10 बकरियां और 1 बकरा प्रदान किए जाते हैं. इकाई की कुल लागत 77,456 रुपए है, जिस में 40 फीसदी अनुदान सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए व 60 फीसदी अनुदान अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए उपलब्ध है. लाभार्थी को इकाई लागत का 10 फीसदी अंशदान देना होगा, बाकी राशि बैंक ऋण के माध्यम से उपलब्ध कराई जाएगी.

चयन प्रक्रिया ग्राम सभा, जनपद पंचायत और जिला पंचायत की मंजूरी के बाद पूरी होगी. इच्छुक लाभार्थी बैंक की सहमतिपत्र के साथ आवेदन कर सकते हैं. योजना के तहत मिलने वाले लाभ और प्रक्रिया के लिए निकटतम पशु चिकित्सा अधिकारी या पशु औषधालय प्रभारी से संपर्क किया जा सकता है. योजना जिले में स्वरोजगार बढ़ाने और आर्थिक सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.

सरकारी योजनाओं का लाभ उठा कर किसान बढ़ाएं अपनी आमदनी

कृषि राज्य का विषय होने के कारण राज्य सरकारें राज्य में कृषि के विकास के लिए उपयुक्त उपाय करती हैं. हालांकि भारत सरकार भी उपयुक्त नीतिगत उपायों, बजटीय आवंटन और विभिन्न योजनाओं/कार्यक्रमों के माध्यम से राज्यों के इन प्रयासों में मदद करती है.

भारत सरकार की विभिन्न योजनाएं/कार्यक्रम, उत्पादन में वृद्धि, किसानों को लाभकारी आय और आय समर्थन के माध्यम से किसानों का भला कर रही हैं. फसल उत्पादकता में सुधार, उत्पादन लागत को कम करना, कृषि में विविधीकरण, सतत कृषि के लिए जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनना और किसानों के नुकसान की भरपाई, किसानों की आय बढ़ाने की रणनीतियों में शामिल है.

सरकार के विभिन्न सुधारों और नीतियों में लागत में कमी, उत्पादन बढ़ाने, लाभकारी आय, आय समर्थन, वृद्धावस्था सुरक्षा आदि के उपयोग को आधुनिक और तर्कसंगत बना कर किसानों के लिए उच्च आय पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

सरकार ने कृषि और किसान कल्याण विभाग के बजट आवंटन को साल 2013-14 के दौरान 21,933.50 करोड़ रुपए से बढ़ा कर साल 2024-25 में 1,22,528.77 करोड़ रुपए कर दिया है. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों/योजनाओं की सूची इस प्रकार है :

डीए ऐंड एफडब्ल्यू द्वारा शुरू की गई प्रमुख योजनाएं/कार्यक्रम
– प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान)
– प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (पीएम-केएमवाई)
– प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई)/पुनर्गठित मौसम आधारित – फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस)
– संशोधित ब्याज सबवेंशन योजना (एमआईएसएस)
– कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ)
– 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) का गठन और संवर्धन
– प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा)
– स्टार्टअप और ग्रामीण उद्यमों के लिए कृषि निधि (एग्रीश्योर)
– प्रति बूंद अधिक फसल (पीडीएमसी)
– कृषि विस्तार पर उपमिशन (एसएमएई)
– कृषि मशीनीकरण पर उपमिशन (एसएमएएम)
– बीज और रोपण सामग्री पर उपमिशन (एसएमएसपी)
– परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)
– राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और पोषण मिशन (एनएफएसएनएम)
– डिजिटल कृषि मिशन
– कृषि विपणन के लिए एकीकृत योजना (आईएसएएम) – राष्ट्रीय कृषि बाजार (आईएसएएम-ईएनएएम)
– कृषि विपणन के लिए एकीकृत योजना (आईएसएएम) – अन्य (आईएसएएम-अन्य)
– बागबानी के एकीकृत विकास के लिए मिशन (एमआईडीएच)
– मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी)
– वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास (आरएडी)
– खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमईओ) – पाम औयल
– खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमईओ) – तिलहन
– राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन और शहद मिशन (एनबीएचएम)
– पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन और्गेनिक वैल्यू चेन डवलपमेंट
– कृषि वानिकी
– फसल विविधीकरण कार्यक्रम (सीडीपी)
– राष्ट्रीय बांस मिशन

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने उन 75,000 किसानों की सफलता की कहानियों का संकलन जारी किया है, जिन्होंने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और संबद्ध मंत्रालयों/विभागों द्वारा संचालित योजनाओं के जरीए अपनी आय में दोगुना से अधिक वृद्धि की है.

मौजूदा बुनियादी ढांचे के अंतराल को दूर करने और कृषि बुनियादी ढांचे में निवेश जुटाने के लिए, कृषि बुनियादी ढांचे को बदलने के लिए कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ) की शुरुआत की गई थी. एआईएफ, इंटरेस्ट सबवेंशन और क्रेडिट गारंटी समर्थन के जरीए फसल कटाई के बाद प्रबंधन से जुड़े बुनियादी ढांचे और व्यवहार्य कृषि परिसंपत्तियों के लिए व्यावहारिक परियोजनाओं में निवेश के लिए एक मध्यम दीर्घावधि की ऋण वित्तपोषण सुविधा है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पात्र परियोजनाओं के दायरे को विस्तार देते हुए 28 अगस्त, 2024 को एआईएफ के प्रगतिशील विस्तार को मंजूरी दी थी. इस में व्यक्तिगत पात्र लाभार्थियों को ‘सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए व्यवहार्य परियोजनाओं’ के तहत बुनियादी ढांचे के निर्माण की अनुमति और एकीकृत प्रसंस्करण परियोजनाओं और पीएम कुसुम ‘ए’ का अभिसरण शामिल है.

एआईएफ के तहत अनुमोदित प्रमुख परियोजनाओं में 18,606 कस्टम हायरिंग सैंटर, 16,276 प्राथमिक प्रसंस्करण इकाइयां, 13,724 गोदाम, 3,102 छंटाई और ग्रेडिंग इकाइयां, 1,909 कोल्ड स्टोरेज परियोजनाएं और तकरीबन 21,394 अन्य प्रकार की फसल कटाई के बाद की प्रबंधन परियोजनाएं और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियां शामिल हैं.

कृषि भूमि बनेगी उपजाऊ, जानें कैसे?

कृषि भूमि में जैविक कार्बन की उपस्थिति की नियमित रूप से मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) के माध्यम से जांच की जाती है. योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए राज्यों को 3 साल में एक बार मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाना होगा. अब तक 24.60 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए जा चुके हैं.

मिट्टी में जैविक कार्बन में कमी के प्रमुख कारण हैं :

(i) दोषपूर्ण प्रथाएं जैसे रासायनिक उर्वरक का अविवेकपूर्ण या अत्यधिक उपयोग, बारबार जुताई, ठूंठ जलाना, अतिचारण और कटाव.

(ii) बारहमासी वनस्पतियों की जगह एकल फसल और चारागाह उगाना.

(iii) मिट्टी के भौतिक व रासायनिक गुण जैसे मिट्टी का घनत्व, उच्च बजरी सामग्री, मिट्टी का कटाव और मिट्टी में पानी की कम मात्रा/खराब नमी संरक्षण उपाय.

इस समस्या के समाधान के लिए सरकार किसानों को मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता कार्ड जारी करने के लिए मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता योजना लागू कर रही है. मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा का विवरण देते हैं और मिट्टी में जैविक कार्बन एवं स्वास्थ्य में सुधार के लिए जैविक खादों एवं जैव उर्वरकों के साथसाथ द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित रासायनिक उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पर किसानों को सलाह दी जाती है.

सरकार सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन और्गेनिक वैल्यू चेन डवलपमेंट (एमओवीसीडीएनईआर) के माध्यम से मिट्टी के जैविक कार्बन में सुधार के लिए जैविक खेती को भी बढ़ावा दे रही है.

परंपरागत कृषि विकास योजना और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन और्गेनिक वैल्यू चेन डवलपमेंट के अंतर्गत किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से 3 साल की अवधि के लिए 15,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की सहायता प्रदान की जाती है, जिस में मुख्य रूप से जैव उर्वरक शामिल हैं.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 25 नवंबर, 2024 को बायोमास मल्चिंग, बहुफसल प्रणाली, मिट्टी की जैविक सामग्री, मिट्टी की संरचना, पोषण में सुधार, मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाने के लिए खेत पर बने प्राकृतिक खेती जैव इनपुट के उपयोग जैसे कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमएनएफ) को भी मंजूरी दी है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने वर्षा जल के बहाव के कारण मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए कई स्थान, विशिष्ट जैव इंजीनियरिंग उपाय, हवा के कटाव को रोकने के लिए रेत के टीलों को स्थिर करने और आश्रय बेल्ट तकनीक और समस्याग्रस्त मिट्टी के लिए सुधार तकनीक विकसित की है, जो मिट्टी में जैविक कार्बन को बढ़ाती है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद 16 राज्यों में 20 केंद्रों के साथ “जैविक खेती पर नैटवर्क परियोजना (एनपीओएफ)” को लागू कर रहा है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 16 राज्यों के लिए उपयुक्त 68 फसल प्रणालियों के लिए स्थान विशिष्ट जैविक खेती पैकेज विकसित किए हैं, जिन्हें विभिन्न केंद्रीय/राज्य योजनाओं के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है.

‘नमो दीदी ड्रोन योजना’ : किसान महिलाएं बनेंगी सशक्त

भारत सरकार ने साल 2023-24 से 2025-26 तक के लिए 1261 करोड़ रुपए के कुल खर्च के साथ महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को ड्रोन प्रदान करने के लिए केंद्रीय क्षेत्र की ‘नमो ड्रोन दीदी’ योजना को मंजूरी दी है.

इस योजना के तहत कुल 15,000 ड्रोन में से प्रमुख उर्वरक कंपनियों (एलएफसी) ने अपने संसाधनों का उपयोग कर के साल 2023-24 में पहले ही  500 ड्रोन खरीद लिए हैं, जो कि चुने हुए स्वयं सहायता समूह को दे दिए गए हैं. वित्तीय वर्ष 2024-25  में 3,090 एसएचजी को ड्रोन बांटने का लक्ष्य रखा गया है.

यह योजना कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, ग्रामीण विकास विभाग और उर्वरक विभाग, दीनदयाल योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों और प्रमुख उर्वरक कंपनियों के संसाधनों को साथ ला कर चलाई  जा रही है.

दीनदयाल योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन प्रगतिशील महिला एसएचजी का चयन कर, ड्रोन पायलट और ड्रोन प्रशिक्षण के लिए महिला एसएचजी के सदस्यों को चुन कर, जिलेवार ड्रोन उपयोग का आकलन कर, मौजूदा अंतराल की पहचान कर, ड्रोन उपयोग की उपलब्धता और भविष्य की जरूरतों, एलएफसी और कीटनाशक कंपनियों आदि के समन्वय में चुने गए महिला एसएचजी को व्यवसाय प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है.

‘नमो दीदी ड्रोन योजना’ के तहत ड्रोन की एक पैकेज के रूप में आपूर्ति की जाती है, जिस में ड्रोन पायलट प्रशिक्षण और इन महिला स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों में से एक के लिए पोषक तत्व और कीटनाशक अनुप्रयोग के लिए कृषि उद्देश्य के लिए ट्रेनिंग भी शामिल है.

इस योजना में स्वयं सहायता समूहों के परिवार के सदस्यों को भी ड्रोन सहायक के रूप में प्रशिक्षित करने का प्रावधान किया गया है. इस योजना  का लक्ष्य स्वयं सहायता समूहों को रोजगार और आजीविका सहायता प्रदान करना है.

स्वयं सहायता समूहों को उपलब्ध कराए गए ड्रोन का उपयोग किसानों को तरल उर्वरकों और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए किराए पर सेवाएं प्रदान करने के लिए किया जाएगा, जिस से फसल में कीटनाशक छिड़काव करते हुए किसानों को जिन सेहत व सांस संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन समस्याओं में कमी आएगी.

संतरा उत्पादक किसान योमदेव कालबांडे की सफलता की कहानी

पांढुरना : उद्यानिकी फसलों के उत्पादन में आधुनिक खेती पद्धतियों ने किसानों को लखपति बना दिया है. पांढुरना जिले के ग्राम हिवरा खंडेरवार के किसान योमदेव कालबांडे ने भी परंपरागत खेती को छोड़ कर आधुनिक तकनीक अपनाई, जिस से उन की आमदनी बढ़ गई.

उद्यानिकी विभाग की तकनीकी सलाहों के आधार पर उन्हें संतरे और मौसंबी की खेती से 15 लाख रुपए की शुद्ध आय प्राप्त हुई है. किसान के द्वारा उन्नत तकनीकी से उद्यानिकी खेती करने पर उन्हें एनआरसीसी नागपुर के द्वारा “उत्कृष्ट संतरा उत्पादक किसान” से सम्मानित किया गया है.

किसान योमदेव कालबांडे पहले 40 हेक्टेयर कृषि भूमि में सदियों से चली आ रही परंपरागत खेती करते थे, लेकिन उद्यानिकी विभाग के मार्गदर्शन में उन्हें नया प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया गया, जिस से उन्होंने 25 हेक्टेयर भूमि में उद्यानिकी विभाग के विशेषज्ञों की सलाह पर संतरे और मौसंबी के 7,900 पौधे लगाए. इन पौधों को लगाने और उन की देखभाल करने में उन्होंने आधुनिक तकनीकों का भरपूर उपयोग किया. इन पौधों को लगाने और अन्य खर्चे पर उन्होंने लगभग 5 लाख रुपए खर्च किए.

अब किसान योमदेव कालबांडे का बागान फल देने लगा है. उन के बागान में 500 से अधिक पौधे फल देने लगे हैं और इन से उन्हें लगभग 20 लाख रुपए की आय हुई है.

इस तरह उद्यानिकी विभाग की तकनीकी सलाह से खेती करने पर उन्हें लगभग 15 लाख रुपए  का खालिस मुनाफा हुआ है.

किसान योमदेव कालबांडे की इस सफलता को देख कर दूसरे किसान भी आधुनिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं. उन की मेहनत और लगन को देखते हुए और किसान द्वारा उन्नत तकनीकी से उद्यानिकी खेती करने पर एनआरसीसी, नागपुर ने उन्हें “उत्कृष्ट संतरा उत्पादक किसान” के सम्मान से सम्मानित किया है.