उर्वरक एवं कीटनाशी बेचने वाले विक्रेता नहीं डाक्टर बने

उदयपुर : हाल ही में प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर द्वारा 15 दिवसीय खुदरा उर्वरक विक्रेता प्रशिक्षण का आयोजन हुआ. मुख्य अतिथि कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने उद्बोधन में प्रशिक्षणार्थियों से कहा कि उर्वरक विक्रेताओं के लिए यह प्रशिक्षण बहुत ही महत्वपूर्ण है. प्रशिक्षण के बाद वे महज कृषि, खादबीज, उर्वरक विक्रेता नहीं, बल्कि ज्ञानार्जन से कृषि के क्षेत्र में डाक्टर बन जाते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि वे प्रशिक्षण लेने के बाद सच्ची लगन व निष्ठा से अपने व्यवसाय के साथ किसानों को सही समय पर सही सुझाव दे कर अप्रत्यक्ष रूप से उन के लिए बदलाव अभिकर्ता के रूप में सहायता करें. सभी उर्वरक विक्रेताओं को किसानों से सीधा संपर्क स्थापित कर विभिन्न प्रकार की नवीनतम एवं आधुनिक कृषि तकनीकियों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए और उन की आमदनी को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए.

उन्होंने आगे बताया कि ज्ञान के सीखने की कोई उम्र नहीं होती है. जीवन में ऊंचाइयों को छूना है, तो लर्न, अनलर्न एवं रीलर्न के सिद्धांत को अपनाना चाहिए. इस के लिए सभी प्रतिभागियों को कृषि संबंधित नवीनतम साहित्य एवं विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहना चाहिए, ताकि कृषि में हो रहे नवाचारों द्वारा आप किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित कर सकते हैं.

इस अवसर पर डा. आरएल सोनी, निदेशक प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर ने उर्वरकों के संतुलित उपयोग एवं मृदा परीक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पोषक तत्व प्रबंधन, समन्वित पोषक तत्व के लाभ, जैविक खेती और उस के लाभ, कार्बनिक खेती आदि के बारे में भी चर्चा की.

उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ाने के उपाय सुझाए और टिकाऊ खेती समन्वित कृषि पद्धति की फसल विविधीकरण आदि विषयों पर जानकारी दे कर उ नका ज्ञानवर्धन किया.

प्रशिक्षण समन्वयक डा. लतिका व्यास, प्राध्यापक ने बताया कि इस प्रशिक्षण में राज्य के विभिन्न जिलों उदयपुर, राजसमंद, चित्तोरगढ़, बासंवाडा, डूंगरपुर, सलूम्बर आदि से 30 प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया, जिन्हें उर्वरक सर्टिफिकेट कोर्स संबंधी सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक जानकारियां विश्वविद्यालय के विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों एवं राज्य सरकार के कृषि अधिकारियों द्वारा प्रदान की गई. साथ ही, अपने विचार व्यक्त करते हुए इस प्रशिक्षण का लाभ किसानों तक पहुंचाने की अपील की.

प्रशिक्षण के समापन समारोह में खुदरा उर्वरक विक्रेता प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी प्रशिक्षणार्थियों को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि द्वारा प्रमाणपत्र एवं प्रशिक्षण संबंधी साहित्य प्रदान किए गए. साथ ही, प्रशिक्षणार्थियों ने प्रशिक्षण के अनुभव भी साझा किए. इस कार्यक्रम में डा. एसके इंदौरिया, प्राध्यापक, कृष्णा शर्मा, कैलाश माली, हिमा आदि उपस्थित थे. डा. राजीव बैराठी भी प्रशिक्षण के समापन समारोह में मौजूद रहे.

दलहनतिलहन (Pulses and Oilseeds) की खरीद को ले कर नैफेड को निर्देश

जयपुर : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी ने राजस्थान सरकार द्वारा भेजे गए पत्र का संज्ञान लेते हुए दलहनतिलहन की समर्थन मूल्य पर खरीद को ले कर नैफेड (नैशनल एग्रीकल्चरल कोआपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन) के प्रबंध निदेशक दीपक अग्रवाल से फोन पर वार्ता की. उन्होंने राजस्थान में मूंग, उड़द, मूंगफली और सोयाबीन जैसी फसलों की खरीद सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए.

राजस्थान सरकार ने हाल ही में खरीफ 2024-25 की दलहनतिलहन फसलों की खरीद के लिए पीएसएस योजना (प्राइस सपोर्ट स्कीम) के तहत भारत सरकार से अतिरिक्त समर्थन और खरीद की मांग की थी. राज्य में किसानों को उचित मूल्य दिलाने और उन की उपज की खरीद सुनिश्चित करने के लिए यह कदम उठाया गया.

केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों के हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. उन्होंने नैफेड के अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि राजस्थान में अधिसूचित खरीद केंद्रों पर किसानों से उन की फसलें समर्थन मूल्य पर बिना किसी बाधा के खरीदी जाएं. उन्होंने राजस्थान के मूंग, उड़द, मूंगफली और सोयाबीन के खरीद लक्ष्य को समय पर पूरा करने पर विशेष जोर दिया.

किसानों को मिलेगा सीधा लाभ

मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही समर्थन मूल्य योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को उन की उपज का उचित मूल्य दिलाना और बाजार में मूल्य अस्थिरता से बचाना है. उन्होंने राज्य सरकार के अनुरोध पर तेजी से कार्रवाई करते हुए अतिरिक्त अनुदान और संसाधन आवंटन के लिए भी सहमति जताई.

नैफेड के प्रबंध निदेशक दीपक अग्रवाल को निर्देश देते हुए मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुगमता होनी चाहिए. सभी किसानों को उन की फसल का मूल्य तुरंत उन के खातों में स्थानांतरित किया जाए. साथ ही, खरीद केंद्रों पर किसी भी प्रकार की अनियमितता को सख्ती से रोका जाए.

विश्व में भारत टमाटर (Tomatoes) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश

नई दिल्ली : विश्व में टमाटर का दूसरा सब से बड़ा उत्पादक देश भारत है, जो वार्षिक 20 मिलियन मीट्रिक टन का शानदार उत्पादन करता है. हालांकि, अत्यधिक बारिश या अचानक गरमी जैसी प्रतिकूल मौसम की स्थिति उत्पादन और उपलब्धता को प्रभावित करती है. इस के परिणामस्वरूप कीमतों में अत्यधिक उतारचढ़ाव होता है. ये चुनौतियां सीधे किसानों की आय को प्रभावित करती हैं और आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित करती हैं एवं बरबादी की वजह बनती हैं. इन महत्वपूर्ण मुद्दों के समाधान और टमाटर की आपूर्ति को स्थिर करने के लिए अभिनव और प्रारूप समाधान खोजने के लिए टमाटर ग्रैंड चैलेंज (टीजीसी) शुरू किया गया है.

ग्रैंड चैलेंज का उद्देश्य टमाटर उत्पादन, प्रसंस्करण और वितरण में प्रणालीगत चुनौतियों का समाधान करने के लिए देश के युवा नवोन्मेषकों और शोधकर्ताओं की प्रतिभा का उपयोग करना था. ये चुनौतियां हैं :
उत्पादन पूर्व : जलवायु अनुकूल बीजों का कम मिलना और खराब कृषि पद्धतियां.
उपज के बाद नुकसान : कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाओं की कमी और अनुचित रखरखाव के कारण फसल की बरबादी.
प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन : टमाटरों के अधिक उपज होने की स्थिति में प्रसंस्करण के लिए अपर्याप्त बुनियादी ढ़ांचा.
आपूर्ति श्रृंखला : फसल की बाधित आपूर्ति और बिचौलियों का प्रभुत्व मूल्य अस्थिरता का कारण बनता है.
बाजार पहुंच और पूर्वानुमान : फसल की बाधित आपूर्ति और मांग पूर्वानुमान में कमी के कारण मूल्य में गिरावट और बरबादी होती है.
तकनीकी अपनाना : उपयुक्‍त खेती और आईओटी आधारित निगरानी जैसी आधुनिक कृषि तकनीकों के बारे में कम जागरूकता और उपयोग.
पैकेजिंग और परिवहन: फसल को बेहतर और नुकसान को कम करने के लिए नवीन, लागत प्रभावी समाधानों की आवश्यकता.
देशभर के नवोन्मेषकों से कुल 1,376 विचार प्राप्त हुए. उचित मूल्यांकनों के बाद चरण-1 में 423 विचारों को शार्टलिस्ट किया गया. दूसरे चरण में कुल 29 विचार लिए गए, जिस में 28 परियोजनाओं को फंडिंग और मैंटरशिप मिली. परियोजनाओं की समयसमय पर निगरानी की गई, संक्षिप्त दौरे किए गए और एआईसीटीई और डीओसीए की टीजीसी मूल्यांकन समिति द्वारा समीक्षा की गई. विशेषज्ञों के पैनल द्वारा 14-15 अक्तूबर, 2024 को मूल्यांकन को अंतिम रूप दिया गया, जिसे परियोजनाओं को उन की प्रासंगिकता, मापनीयता और नवाचार के आधार पर आंका गया.

टमाटर ग्रैंड चैलेंज ने महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है, जिस के परिणामस्वरूप कई आईपी जिन में 14 पेटेंट, 4 डिजाइन पंजीकरण/ट्रेडमार्क और 10 प्रकाशन दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं. कुछ प्रमुख परिणाम ये थे :
– फसल को ज्‍यादा दिन रखने और नुकसान को कम करने के लिए नए पैकेजिंग और परिवहन समाधानों का विकास.
– ऐसे प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्माण, जो उपयोगिता को बढ़ाते हैं, बरबादी को कम करते हैं और सालभर उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं.
– टमाटर ग्रैंड चैलेंज से समाधान, टमाटर मूल्य में बदलाव, लचीलापन, बरबादी को कम करने और हितधारकों के लिए लाभप्रदता बढ़ाने का वादा करते हैं. यह पहल भारत में अन्य कृषि वस्तुओं की चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक बेंचमार्क स्थापित करती है.
– टमाटर ग्रैंड चैलेंज सहयोग और नवाचार की शक्ति का एक प्रमाण है. शिक्षा, उद्योग और सरकार को एकसाथ ला कर इस ने भारत की कृषि चुनौतियों के लिए सतत, प्रभावशाली समाधानों का मार्ग प्रशस्त किया है. इस पहल के परिणामों से टमाटर के किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होगा.

दलहनी रकबे के विकास में अरहर (Arhar) पूसा-16 मील का पत्थर

झाबुआ : कलक्टर नेहा मीना द्वारा कार्यालय कलक्टर सभाकक्ष में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र को पशुपालन एवं पशु चिकित्सा विभाग उद्धयानिकी विभाग मत्स्यपालन विभाग, कृषि अभियांत्रिकी, सहकारिता विभाग दुग्ध संघ आदि विभागों में संचालित योजनाओं कार्यक्रमों और रबी मौसम 2024-25 में आयोजित होने वाली गतिविधियों के संबंध में गहन समीक्षा बैठक आयोजित हुई.

जिले में दलहनी फसलों के रकबे में विस्तार के लिए अरहर पूसा-16 जैसी किस्में मील का पत्थर साबित हो सकती हैं. अरहर पूसा-16 कम अवधि (लगभग 120 दिन) में पक कर तैयार हो जाती है, जिस से किसान रबी मौसम में गेहू, चना जैसी फसल का उत्पादन भी ले सकते हैं.

कृषि विभाग के अंतर्गत संचालित नवाचारी प्रयासों की विस्तार से समीक्षा के दौरान बायोफोर्टीफाइड किस्मों की संभावनाओं को भी खंगाला जाना जरूरी है. विस्तार से हुई समीक्षा के दौरान जिले के 5 विकासखंडों रामा, रानापुर, थांदला, पेटलावद, मेघनगर के लिए नवीन मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला के संचालन के लिए इच्छुक संस्थाओं के पात्रतानुसार चयन के बाद चयनित संस्थाओ को नवीन मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला के संचालन की समुचित कार्यवाही करते समय सीमा में कराएं. रबी मौसम के दौरान किसानों की मांग के अनुसार पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तायुक्त बीज, उर्वरक भंडारण एवं किसानों को अच्छी किस्म के बीज उपलब्ध कराने के निर्देश दिए.

उद्यानिकी के अंतर्गत टमाटर प्रसंस्करण के साथ डीहाइड्रेट उत्पाद, सोयाबीन प्रसंस्करण उत्पाद निर्माण और विपणन के संबंध में नियोजन करने के लिए निर्देशित किया गया. जिले में उत्पादित होने वाले खा‌द्यान दलहनतिलहन मसाला जैसे विशिष्टता भरे कृषिगत उत्पादों को जिले के बाहर बेहतर विपणन के अवसर प्रदान करने के लिए काम किया जाए.

पशुपालकों को किसान क्रेडिट कार्ड समयसीमा में शतप्रतिशत प्रगति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं और किसान क्रेडिट कार्ड के लक्ष्य को विकासखंडवार प्रदाय कर आवेदन को बैंक मे प्रस्तुत किए जाएं एवं स्वीकृति के लिए सतत बैंक से संपर्क कर स्वीकृति प्राप्त कर हितग्राहियों को लाभ दिलाया जाए. मछुआपालक को प्रेरित कर मछलीपालन के साथ कम लागत वाली उन्नत तकनीक को बढावा देने के सबंध मे निर्देशित किया गया.

बैठक के दौरान एनएस रावत, उपसंचालक, कृषि, डा. विल्सन डावर, उपसंचालक, पशुपालन विभाग, जीएस त्रिवेदी, परियोजना संचालक, आत्मा, नीरज सावलिया उद्यानिकी विभाग, दिलीप सोलंकी मत्स्यपालन विभाग, दलोदिया कृषि अभियांत्रिकी, दिनेश भिड़े सहकारिता विभाग, कनेश दुग्ध संघ आदि विभागों के जिला प्रमुख और कृषि विभाग के अनुभाग एवं विकासखंड स्तरीय अधिकारी, सहायक संचालक कृषि आदि उपस्थित रहे.

नरवाई (Stubble) में आग लगाने पर प्रतिबंध दिसंबर माह तक लागू

रायसेन : लोक व्यवस्था को बनाए रखने के उद्देश्य से कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी अरविंद दुबे द्वारा पूरे जिले की भौगोलिक सीमा में खेत में खड़े धान, सोयाबीन के डंठलों (नरवाई) में आग लगाने पर तत्काल प्रभाव से दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 144 के तहत प्रतिबंध लगाया गया है. यह प्रतिबंध तत्काल प्रभावशील हो कर आगामी 31 दिसंबर, 2024 की अवधि तक के लिए प्रभावशील रहेगा. इस आदेश का उल्लंघन भादवि की धारा 188 के अंतर्गत दंडनीय होगा.

उल्लेखनीय है कि जिले की राजस्व सीमा में धान, सोयाबीन की फसल की कटाई के बाद अगली फसल के लिए खेत तैयार करने के लिए बहुसंख्यक किसानों द्वारा अपनी सुविधा के लिए खेत में आग लगा कर धान, सोयाबीन के डंठलों को नष्ट कर खेत साफ किया जाता है. आग लगाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिस से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इसे नरवाई में आग लगाने की प्रथा के नाम से भी जाना जाता है.

नरवाई में आग लगाना खेती के लिए नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है. इस के कारण विगत वर्षो में गंभीर अग्नि दुर्घटनाएं घटित हुई हैं और बड़े पैमाने पर सम्पत्ति की हानि हुई है. साथ ही, बढ़ते जल संकट में इस से बढ़ोतरी तो होती ही है. कानून, व्यवसायी के लिए भी विपरीत स्थितियां बन जाती हैं. खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जनसम्पत्ति व प्राकृतिक वनस्पति, जीवजंतु आदि नष्ट हो जाते हैं. खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु इस से नष्ट होते हैं, जिस से खेत की उर्वराशक्ति भी धीरेधीरे घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

नरवाई जलाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिस से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. यदि फसल अवशेषों, नरवाई को एकत्र कर जैविक खाद जैसे भूनाडेप वर्मी कंपोस्ट आदि बनाने में उपयोग किया जाए, तो यह बहुत जल्दी सड़ कर पोषक तत्वों से भरपूर खाद बना सकते हैं. इस के अतिरिक्त खेत में कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्क हेरो की सहायता से फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से आने वाली फसलों में जीवांश के रूप में बचत की जा सकती है.

Animal Credit Card Scheme: पशुपालकों को पशु क्रेडिट कार्ड योजना का मिला लाभ

विदिशा : नाबार्ड के सहयोग से बाएफ लाइवलीहूडस द्वारा प्रायोजित करीला एग्रो कृषक उत्पाद संगठन के 233 सदस्य किसानो को पशुपालन के क्षेत्र में बढावा देने के लिए जिला सहकारी बैंक विदिशा के द्वारा पशु क्रेडिट कार्ड वितरण कार्यक्रम का आयोजन पीएनबी प्रशिक्षण संस्थान में किया गया था.

नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक सुनील कुमार ने किसानों से कहा कि पशुपालन को बढ़ावा देने के क्षेत्र में विदिशा जिले में किए जा रहे प्रयासों का संदेश प्रदेश के अन्य जिलों में जाए. उन्होंने पशुपालन के लिए किसान उत्पादक संगठन के जरीए क्षेत्र में विकास के लिए किए जा रहे नवाचारों का स्वागत करते हुए शुभकामनाएं अभिव्यक्त की हैं.

नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक सुनील कुमार ने कहा कि विदिशा जिले में दुग्ध उत्पादन करने वाले किसानों को अधिक से अधिक पशु क्रेडिट कार्ड जारी हो रहे हैं. यह सब आपसी तालमेल का प्रतीक है. उन्होंने केसीसी से होने वाले फायदो को बताया और इस मदद से क्षेत्र में पशुपालकों को पशुओं की संख्या बढाने में मदद मिलेगी.

इस दौरान किसानों को आत्मनिर्भर बनने, आय में वृद्धि करने के क्षेत्र में पशुपालन को महत्वपूर्ण इकाई के रूप में संचालित करने पर विशेष सुझाव साझा किए. कार्यक्रम में लीड बैंक अफसर बीएस बघेल, नाबार्ड के जिला विकास अधिकारी जगप्रीत कौर, सहकारिता बैंक खामखेडा के प्रबंधक लखन भार्गव के अलावा बाएफ लाइवलीहूड्स भोपाल और करीला एग्रो किसान उत्पादक संगठन के बोर्ड डायरेक्टर सदस्य मौजूद रहें.

गेहूं (Wheat) फसल में जड़ माहू कीट लगे तो करें ये काम

सीहोर : वर्तमान मौसम परिर्वतन के कारण गेहूं में जड़ माहू कीट एवं विभूति आदि कीटों का प्रभाव हो सकता है. यदि गेहूं में जड़ माहू कीट का प्रभाव एवं गेहूं में पीलापन दिख जाए, तो दवा का छिड़काव जरूर करें.

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस वर्ष भी गेहूं फसल में जड़ माहू कीट का प्रकोप दिखाई दे रहा है. गेहूं फसल के खेतों में अनेक स्थानों पर पौधे पीले हो कर सूख रहे हैं. समय पर निदान न किए जाने पर इस कीट द्वारा गेहूं फसल में बड़ी क्षति की संभावना रहती है.

जड़ माहू कीट गेहूं के पौधे के जड़ भाग में चिपका हुआ रहता है, जो रस चूस कर पौधे को कमजोर व सुखा देता है. प्रभावित खेतों में पौधे को उखाड़ कर ध्यान से देखने पर बारीकबारीक हलके पीले, भूरे व काले रंग के कीट चिपके हुए दिखाई देते हैं. मौसम में उच्च आर्द्रता व उच्च तापमान होने पर यह कीट अत्यधिक तेजी से फैलता है. अनुकूल परिस्थिति होने पर यह कीट पूरी फसल को नष्ट करने की क्षमता रखता है.

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, जिन क्षेत्रों में अभी तक गेहूं फसल की बोआई नहीं की गई है, वहां पर बोआई से पहले इमिडाक्लोरोप्रिड 48 फीसदी, एफएस की 01 मिलीलिटर दवा अथवा थायोमेथाक्जाम 30 फीसदी, एफएस दवा की 1.5 मिलीलिटर मात्रा प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार जरूर करें.

Special ID card: किसानों का बनेगा खास आईडी कार्ड, मिलेगा लाभ

बुरहानपुर : कृषि क्षेत्र के विकास के लिए चलाई जा रही विभिन्न महत्वपूर्ण योजनाओं का लाभ पात्र व्यक्तियों तक समय से पहुंचे, जिस से संसाधनों के समुचित उपयोग से कृषि क्षेत्र का पूर्ण विकास संभव हो सकेगा. एग्रीस्टैक (डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर फौर एग्रीकल्चर) के अंतर्गत फार्मर रजिस्ट्री तैयार के संबंध में निर्देश हैं.

जिले में राजस्व महाअभियान 3.0 के तहत युद्ध स्तर पर राजस्व विभाग द्वारा विभिन्न कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है. अभिलेख दुरस्ती, नक्शा तरमीम, नामांतरण, बंटवारा प्रकरणों के निराकरण, एनपीसीआई सहित अन्य सुविधाएं नागरिकों को दी जा रही हैं. इन्हीं सुविधाओं में फार्मर रजिस्ट्री भी शामिल है.

मध्य प्रदेश फार्मर रजिस्ट्री प्रणाली के तहत प्रत्येक किसान का एक विशिष्ट किसान आईडी कार्ड (फार्मर आईडी) बनाया जाएगा, जिस के माध्यम से किसानों को शासकीय योजनाओं का लाभ आसानी से मिल सकेगा. यह मध्य प्रदेश राज्य के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है.

कलक्टर भव्या मित्तल के मार्गदर्शन में राजस्व महाअभियान के अंतर्गत किसानों की फार्मर रजिस्ट्री बनाने का कार्य किया जा रहा है. इस के साथ ही किसानों को फार्मर रजिस्ट्री के फायदे भी बतलाए जा रहे है. ग्राम डवाली रै., रायतलाई, सारोला, टिटगांवकला सहित जिले के अन्य ग्रामों में भी अभियान के तहत कार्य किया जा रहा है. फार्मर रजिस्ट्री का उद्देश्य एवं लाभ –

1. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लिए फार्मर रजिस्ट्री अनिवार्य है. दिसंबर, 2024 के उपरांत केवल फार्मर आईडी उपलब्ध होने पर ही योजना का लाभ हितग्राहियों को प्राप्त हो सकेगा.

2. योजनाओं का नियोजन, लाभार्थियों का सत्यापन, कृषि उत्पादों का सुविधाजनक विपणन.

3. प्रदेश के सभी किसानों को राज्य की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सुगम एवं पारदर्शी तरीके से प्रदान करने हेतु लक्ष्य निर्धारण एवं पहचान.

4. किसानों के लिए कृषि ऋण एवं अन्य सेवा प्रदाताओं के लिए कृषि सेवाओं की सुगमता.

5. विभिन्न विभागों द्वारा डाटा का बेहतर उपयोग.

6. फसल बीमा योजना का लाभ प्राप्त करने में सुगमता.

7. न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद में किसानों के पंजीयन में सुगमता.

8. विभिन्न शासकीय योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए बारबार सत्यापन की आवश्यकता नहीं होगी.

वैज्ञानिक तरीके से सिंचाई एवं खाद प्रबंधन से फसल उत्पादन में वृद्धि

बड़वानी : कृषि विज्ञान केंद्र, बड़वानी द्वारा कृषि आदान विक्रेताओं के एकवर्षीय डिप्लोमा कार्यक्रम (देसी) के अंतर्गत प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. एसके बड़ोदिया के मार्गदर्शन में केंद्र के सभागार में आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एवं प्रमुख वक्ता के रूप में अधिष्ठाता बीएम कृषि महाविद्यालय खंडवा के डा. डीएच रानाडे द्वारा भागीदारी की गई.

सर्वप्रथम अधिष्ठाता डा. डीएच रानाडे ने कहा कि छोटीछोटी सावधानियां एवं प्रबंधन कार्य कर के फसल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है जैसे अपने खेत की मिट्टी के अनुसार फसल का चयन, उपयुक्त प्रजाति का चुनाव, सिंचाई एवं उर्वरक का समुचित प्रबंधन कर 30-40 फीसदी तक उत्पादन में वृद्धि लाई जा सकती है.

अगर फसल में ड्रिप सिचांई पद्धति से सिंचाई की जाए व उचित उर्वरक प्रबंधन किया जाए, तो फसल में अच्छा उत्पादन देखा गया है. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हमें जल प्रबंधन की शुरुआत कृषि क्षेत्र से करनी चाहिए, क्योंकि सर्वाधिक मात्रा में कृषि कार्यों में ही जल का उपयोग किया जाता है और सिंचाई में जल का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या है, जनमानस में धारणा है कि अधिक पानी, अधिक उपज, जो कि गलत है, क्योंकि फसलों के उत्पादन में सिंचाई का योगदान 15-16 फीसदी होता है. फसल के लिए भरपूर पानी का मतलब मात्र मिट्टी में पर्याप्त नमी ही होती है, परंतु वर्तमान कृषि पद्धति में सिंचाई का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है. धरती के गर्भ से पानी की आखिरी बूंद भी खींचने की कवायद की जा रही है.

देश में हरित क्रांति के बाद से कृषि के जरीए जल संकट का मार्ग प्रशस्त हुआ है. बूंदबूंद सिंचाई यानी बौछार (फव्वारा तकनीकी) और खेतों के समतलीकरण से सिंचाई में जल का दुरुपयोग रोका जा सकता है. फसलों के जीवनरक्षक या पूरक सिंचाई दे कर उपज को दोगुना किया जा सकता है.

जल उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए पौधों को संतुलित पोषक तत्वों को प्रबंध करने की आवश्यकता है, जल की सतत आपूर्ति के लिए आवश्यक है कि भूमिगत जल का पुनर्भरण किया जाए, खेतों के किनारे फलदार पेड़ लगाने चाहिए, छोटेबड़े सभी कृषि क्षेत्रों पर क्षेत्रफल के हिसाब से तालाब बनाने जरूरी हैं. रासायनिक खेती की बजाय जैविक खेती पद्धति अपना कर कृषि में जल का अपव्यय रोका जा सकता है. ऊंचे स्थानों, बांधों इत्यादि के पास गहरे गड्ढ़े खोदे जाने चाहिए, जिस से उन में वर्षा का जल एकत्रित हो जाए और बह कर जाने वाली मिट्टी को अन्यत्र जाने से रोका जा सके.

कृषि भूमि में मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए हरित खाद और उचित फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए. कार्बनिक अवशिष्टों को प्रयोग कर इस नमी को बचाया जा सकता है. वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए शहरी मकानों में आवश्यक रूप से वाटर टैंक लगाए जाने चाहिए. इस जल का उपयोग अन्य घरेलू जरूरतों में किया जाना चाहिए. जल का संरक्षण करना वर्तमान समय की जरूरत है.

इस अवसर पर डा. रानाडे द्वारा केंद्र की प्रदर्शन इकाइयों बकरीपालन, मुरगीपालन, केंचुआ खाद इकाई, अजोला इकाई, डेयरी आदि का अवलोकन कर प्रशंसा व्यक्त की.

नरवाई प्रबंधन (Weed Management) के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों से करें बोआई

उमरिया : फसलों की कटाई के बाद उन के जो अवशेष खेत में रह जाते हैं, उसे नरवाई या पराली कहते हैं. मशीनों से फसल की कटाई होने पर बड़ी मात्रा में नरवाई खेत में रहती है. इस को हटाने के लिए किसान प्रायः इसे जला देते हैं. इस से खेत की मिट्टी की उपरी परत में रहने वाले फसलों के लिए उपयोगी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं. मिट्टी में कड़ापन आ जाता है और इस की जलधारण क्षमता बहुत कम हो जाती है.

किसान नरवाई प्रबंधन के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग करें. इन उपकरणों के उपयोग से नरवाई को नष्ट कर के खाद बना दिया जाता है, जिस से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. नरवाई जलाने से मिट्टी को होने वाले नुकसान और धुएं से होने वाला पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता है.

किसान धान और अन्य फसलों की नरवाई खेत से हटाने के लिए सुपर सीडर और हैप्पी सीडर का उपयोग करें. ये उपकरण किसी भी ट्रैक्टर, जो 50 एचपी के हों, उस में आसानी से फिट हो जाते हैं. इन के उपयोग से एक ही बार में नरवाई नष्ट होने के साथसाथ खेत की जुताई और बोआई हो जाती है. इस से जुताई का खर्च और समय दोनों की बचत होती है. इस के अलावा किसान ट्रैक्टर में स्ट्राबेलर का उपयोग कर के नरवाई को खाद में बदल सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया और कृषि आभियांत्रिकी विभाग, उमरिया के संयुक्त तत्वावधान में गांव कछरवार में सुपर सीडर द्वारा गेहूं फसल की बोआई की गई. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एव प्रमुख डा. केपी तिवारी ने बताया कि धान की फसल यदि हार्वेस्टर से की जाती है, तो खेत में फसल के अवशेष रह जाते हैं, जिन की सफाई के बिना बोआई करना बहुत बड़ी चुनौती रहती है, लेकिन सुपर सीडर एक ऐसी मशीन है, जो बिना सफाई के आसानी से गेहूं या चना की बोआई कर सकती है.

उन्होंने आगे बताया कि नरवाई जलाने से मिट्टी में उत्पन्न होने वाले कार्बनिक पदार्थ में कमी आ जाती है. सूक्ष्म जीव जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिस के फलस्वरूप जैविक खाद का बनना बंद हो जाता है. भूमि की ऊपरी परत में ही पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं. आग लगाने के कारण ये पोषक तत्व जल कर नष्ट हो जाते हैं. बोआई के दौरान तकरीबन 25 किसान उपस्थित थे.

सहायक यंत्री कृषि आभियांत्रिकी मेघा पाटिल द्वारा सुपर सीडर पर मिलने वाली छूट के बारे में बताया कि यह मशीन 3 लाख रुपए की आती है, जिस में 1 लाख, 5 हजार रुपए की छूट मिलती है. सुपर सीडर एकसाथ तीन काम करती है, जिस से हार्वेस्टर के बाद बचे फसल अवशेष को बारीक काट कर मिट्टी में मिला देता है, जिस से मिट्टी में कार्बन कंटेंट बढ़ेगा. मिटटी उपजाऊ होगी और खेत में कटाई के उपरांत तुरंत बोनी का काम हो जाएगा.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया के वैज्ञानिक डा. धनंजय सिंह ने बताया कि फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन को वापस भूमि में मिला देने से कई लाभ होते हैं जैसे कि कार्बनिक पदार्थ की उपलब्धता में वृद्धि, पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि, मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार होता है. फसल उत्पादकता में वृद्धि आती है. खेतों में नरवाई का उपयोग खाद एवं भूसा बनाने में करें. नरवाई से कार्बनिक पदार्थ भूमि में जा कर मृदा पर्यावरण में सुधार कर सूक्ष्म जीवी अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, जिस से कृषि टिकाऊ रहने के साथसाथ उत्पादन में वृद्धि होती है.