करें मशरूम (Mushroom) के स्पान का कारोबार

मशरूम का बीज यानी स्पान फफूंद का एक जाल होता है, जो अपने आधार यानी भूसे वगैरह पर उगता है और मशरूम पैदा करने के लिए तैयार किया जाता है. बोलचाल की भाषा में यह एक ऐसा माध्यम है जो कि मशरूम कवक जाल से घिरा होता है और मशरूम उत्पादन के लिए बीज का काम करता है.

वैसे तो मशरूम की पौध नहीं होती है, फिर भी इस की फसल तैयार करने या कह सकते हैं कि बीज तैयार करने की कई तकनीकें हैं यानी स्पान उत्पादन कई तरह से किया जा सकता है.

एक बीजाणु तकनीक

एक बीजाणु से बीज तैयार करने के लिए ये काम किए जाते हैं:

अच्छे बंद मशरूम का चुनाव करना, साफ रुई से धूल हटाना, 70 फीसदी अल्कोहल से इसे साफ करना और मशरूम के तने के निचले हिस्से को तेज धारदार चाकू से काटना.

उपचारित पेट्रीप्लेट में तार की मदद से तैयार किए गए स्टैंड पर मशरूम खड़ी अवस्था में रख देते हैं. इसे एक गोल मुंह वाले बीकर से ढक दिया जाता है.

इस मशरूम वाली पेट्रीप्लेट को 30 मिनट तक सामान्य तापमान पर रखने के बाद, लेमिनारफलो चैंबर के अंदर रख कर पेट्रीप्लेट से मशरूम फलकायन (स्टैंड सहित) व बीकर को हटाया जाता है. पेट्रीप्लेट को दोबारा दूसरी पेट्रीप्लेट से ढक दिया जाता है.

इस से इकट्ठा बीजाणुओं की संख्या को धीरेधीरे कम किया जाता है जब तक बीजाणुओं की गिनती 10 से 20 फीसदी मिलीलीटर तक नहीं पहुंच जाती है. इस के बाद इसे पिघले हुए सादे माध्यम के साथ पेट्रीप्लेट में उड़ेला जाता है.

पेट्रीप्लेटों को 3-4 दिनों तक बीओडी इनक्यूबेटर में तकरीबन 32 डिगरी सैल्सियस तापमान पर गरम किया जाता है. एकल बीजाणु का चयन बीजाणुओं की बढ़वार को सूक्ष्मदर्शी द्वारा देख कर किया जाता है.

एकल बीजाणु संवर्धन का चयन कर के इसे माल्ट एक्सट्रेक्ट यानी एमईए माध्यम पर फैलाया जाता है और 7 से 10 दिनों तक बीओडी इनक्यूबेटर में गरम किया जाता है.

बहुबीजाणु तकनीक

इस तकनीक में स्पोर प्रिंट से स्पोर उठाने के लिए निवेशन छड़ का छल्ला इस्तेमाल किया जाता है.

छल्ला, जिस में हजारों की तादाद में बीजाणु होते हैं, को पेट्रीप्लेट, जिस में माल्ट एक्सट्रेक्ट या कोई दूसरा कवक माध्यम होता है, के ऊपरी धरातल पर स्पर्श करा दिया जाता है. इन पेट्रीप्लेटों को 4-5 दिनों के लिए बीओडी इनक्यूबेटर में 32 डिगरी सैल्सियस तापमान पर गरम किया जाता है.

फफूंद बढ़ाने की तकनीक

फफूंद उगाने वाली जगह और हाथों को कीटाणुनाशक से और बंद मशरूम को 70 फीसदी एल्कोहल से साफ करना चाहिए.

उपचारित की हुई अंडाकार मशरूम को तेजधार और उपचारित चाकू से 2 बराबर भागों में काट दिया जाता है.

इन कटे टुकड़ों के उस स्थान से, जहां तना व छत्रक एकदूसरे से जुड़े होते हैं, ऊतक के छोटेछोटे टुकड़े निकालते हैं और इन टुकड़ों को माल्ट एक्सट्रेक्ट अगर की प्लेट पर रखा जाता है.

इन प्लेटों को 4-5 दिनों तक 32 डिगरी सेल्सियस तापमान पर बीओडी इनक्यूबेटर या कमरे में सामान्य तापमान पर गरम किया जाता है.

कवक जाल फैले इस माध्यम से छोटेछोटे टुकड़े काट कर इन्हें दूसरे माल्ट एस्सट्रेक्ट अगर पर रख दिया जाता है. इस के बाद इन्हें इनक्यूबेटर में 32 डिगरी सेल्सियस तापमान पर 4-5 दिनों के लिए गरम किया जाता है.

इन तकनीकों को सीधे स्पान माध्यम में इस्तेमाल किया जाता है.

मशरूम (Mushroom)माध्यम तैयार करना

बीज तैयार करने के आधार में बहुत से ऐसे माध्यम हैं, जिन पर मशरूम का बीज बनाया जाता है. ऐसे माध्यमों को तैयार करने की विधियां इस तरह हैं:

पीडीए माध्यम : इसे आलू ग्लूकोज अगर कहते हैं. इस के लिए  200 ग्राम आलुओं को धोने, छीलने व काटने के बाद 1000 मिलीलीटर पानी में खाने लायक नरम होने तक उबाला जाता है.

इसे साफ कपड़े से छान लिया जाता है और इस छने पानी को एक सिलेंडर में इकट्ठा किया जाता है. इस में ताजा उबाला पानी मिला कर 1000 मिलीलीटर तक बना लिया जाता है.

बाद में इस में 20 ग्राम शर्करा और 20 ग्राम अगर मिलाया जाता है और अगर के पूरी तरह से घुल जाने तक उबाला जाता है.

इस माध्यम को 10 मिलीलीटर क्षमता वाली परखनली या ढाई सौ मिलीलीटर क्षमता के फ्लास्क में रख दिया जाता है और पानी न सोखने वाली रुई से उन के मुंह को बंद कर दिया जाता है.

इस के बाद इन्हें 121 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है.

गरम टैस्ट ट्यूब को टेढ़ा रखा जाता है और इन्हें अगले 24 घंटों तक ठंडा होने के लिए रखा जाता है.

माल्ट एक्सटे्रेक्ट अगर माध्यम : जौ का अर्क 35 ग्राम, अगर 20 ग्राम, पेप्टोन 5 ग्राम होना चाहिए.

इन चीजों को 1000 मिलीलीटर गरम पानी में मिलाना चाहिए. अब इसे लगातार एक समान आंच पर रख कर अगर के पूरी तरह घुलने तक हिलाएं.

इस माध्यम को परखनली या फ्लास्कों में डाला जाता है और पानी नहीं सोखने वाली रुई से उन के मुंह को बंद कर दिया जाता है.

अब इन्हें 121 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है.

गरम परखनलियों को तिरछा रखा जाता है या माध्यम को उपचारित पेट्रीप्लेटों में डाल दिया जाता है. अब इन्हें कमरे में सामान्य तापमान पर ठंडा किया जाता है.

स्पान माध्यम

बहुत से पदार्थ अकेले या सभी को मिला कर स्पान माध्यम तैयार किया जाता है. धान का पुआल, ज्वार, गेहूं व राई के दाने, कपास, इस्तेमाल की हुई चाय की पत्तियां वगैरह इस के लिए इस्तेमाल की जाती हैं.

अनाज स्पान : इस में गेहूं, ज्वार, राई का इस्तेमाल किया जाता है. 100 किलोग्राम दानों को सब से पहले 150 लीटर पानी में 20-30 मिनट तब उबाला जाता है. इन उबले हुए दानों को छलनी पर फैला कर 12 से 16 घंटों तक छाया में सुखाया जाता है.

सूखे हुए दानों में 2 किलोग्राम चाक पाउडर व 2 किलोग्राम जिप्सम को अच्छी तरह मिला लें. दानों को ग्लूकोज की बोतलों में दोतिहाई हिस्से तक या फिर 100 गेज मोटे पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों में भर दिया जाता है.

लिफाफों में भी दाने दोतिहाई भाग तक ही भरने चाहिए. अब इन के मुंह को पानी न सोखने वाली रुई के ढक्कन से बंद कर दिया जाता है. ढक्कन न ज्यादा ढीला और न ही ज्यादा कसा हुआ होना चाहिए.

स्पान माध्यम से भरी हुई ग्लूकोज की बोतलों या पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों को 126 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है. अब इन्हें लेमिनार फ्लो में ताजा हवा में ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है.

कवक जाल संवर्धन को निवेशन छड़ की सहायता से इन बोतलों में डाल दिया जाता है. बोतलों को 2 हफ्ते के लिए गरम किया जाता है. अब स्पान इस्तेमाल के लिए तैयार है.

पुआल स्पान : सब से पहले धान के पुआल को 2-4 घंटे तक पानी में भिगोया जाता है, फिर इसे साफ किया जाता है और ढाई से 5 सेंटीमीटर तक लंबे टुकड़ों में काटा जाता है.

इस में चाक पाउडर 2 फीसदी व चावल का चोकर 2 फीसदी की दर से मिलाया जाता है और इसे चौड़े मुंह वाली ग्लूकोज की बोतल या पौलीप्रोपेलीन के 100 गेज मोटाई वाले लिफाफों में भर दिया जाता है. बोतलों व लिफाफों के मुंह को रुई के ढक्कन से बंद कर दिया जाता है.

स्पान माध्यम से भरी बोतल या लिफाफों को 126 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है या 22 पीएसआई दबाव पर 2 घंटे के लिए रखा जाता है.

स्पान माध्यम को ठंडा करने के बाद लेमिनार फ्लो चैंबर में रख कर निवेशन छड़ की सहायता से कवक जाल संवर्धन इन में डाला जाता है.

बोतलों या लिफाफों को 2 हफ्ते के लिए गरम करते हैं.

चायपत्ती का स्पान : इस्तेमाल की हुई चाय की पत्ती को इकट्ठा कर के धोया जाता है, ताकि इस में कोई मलवा वगैरह न रहे. फिर निथारा जाता है. इस में 2 फीसदी की दर से चाक पाउडर मिला दें.

इस के बाद सामग्री को बोतलों या पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों में भरा जाता है. बाकी के काम अनाज स्पान व पुआल स्पान बनाने की तरह ही किए जाते हैं.

इस तरह कपास के कचरे से स्पान माध्यम तैयार किया जाता है.

खादभूसी स्पान : घोड़े की लीद व कमल के बीज का छिलका समान मात्रा में मिलाए जाते हैं. इस मिश्रण को पानी में भिगोया जाता है. खाद की ढेरी 1 मीटर ऊंचाई तक पिरामिड के आकार में बनाई जाती है. फिर इसे 4-5 दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है. ढेरी को तोड़ा जाता है और जरूरत पड़ने पर पानी मिला कर फिर से ढेर बना दें.

मिश्रण को ग्लूकोज की बोतलों या एल्यूमिनियम के हवाबंद डब्बों में भर कर उपचारित किया जाता है.

मिश्रण ठंडा होने के बाद ही इस में मशरूम के कवक जाल को डाला जाता है और खाद को 2 हफ्ते के लिए गरम करते हैं या जब तक कि स्पान तैयार न हो जाए.

मशरूम (Mushroom)

बीज तैयार करते समय बरतें कुछ सावधानियां

*             माध्यम जैसे धान की पुआल या बेकार कपास वगैरह को इतना ज्यादा भी न भिगोएं कि पानी बोतलों या बैगों के तल पर इकट्ठा हो जाए. ऐसे में कवक जाल सही तरह से नहीं फैलेगा.

*             बोतलों या बैगों को इतना कस कर बंद नहीं करना चाहिए कि हवा बाहर न आ सके और भाप अच्छी तरह से अंदर न घुसे.

*             केवल साफ रुई से बने ढक्कनों, डाटों का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

*             ढक्कन या डाट के नीचे स्तर व माध्यम के बीच कम से कम 3-4 सेंटीमीटर खाली जगह होनी चाहिए.

*             मेज व सामग्री को उपचारित करना चाहिए.

*             हाथों को साबुन से साफ करना चाहिए.

*             केवल शुद्ध स्पान का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

*             कवक डालने के बाद बोतलों व बैगों के मुंह को एल्यूमिनियम फाइल से ढकना चाहिए.

स्पान का स्टोरेज

पुआल मशरूम की बढ़वार के लिए ज्यादातर तापमान 30-35 डिगरी सेल्सियस होना चाहिए. अगर तापमान 45 डिगरी सेल्सियस से बढ़ाया जाए या 15 डिगरी सेल्सियस तक घटाया जाए तो कवक जाल में इजाफा नहीं होता है. इस की ज्यादातर प्रजातियां 15 डिगरी तापमान पर जीवित रह सकती हैं.

स्पान माध्यम में वाल्वेरिएला वाल्वेसिया का कवक जाल पूरी तरह फैलने के बाद यह इस्तेमाल के लिए तैयार होता है. अगर इस का इस्तेमाल नहीं करना हो तो इसे इनक्यूबेटर से निकाल लिया जाता है और कम तापमान पर भंडारण किया जाता है ताकि बीज मर न पाए.

15-20 डिगरी सेल्सियस तापमान पर कवक जाल की बढ़वार रुक जाती है और कवक जाल को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. इसे लंबे समय तक भंडारण किया जा सकता है.

संतरा उत्पादक किसान योमदेव कालबांडे की सफलता की कहानी

पांढुरना : उद्यानिकी फसलों के उत्पादन में आधुनिक खेती पद्धतियों ने किसानों को लखपति बना दिया है. पांढुरना जिले के ग्राम हिवरा खंडेरवार के किसान योमदेव कालबांडे ने भी परंपरागत खेती को छोड़ कर आधुनिक तकनीक अपनाई, जिस से उन की आमदनी बढ़ गई.

उद्यानिकी विभाग की तकनीकी सलाहों के आधार पर उन्हें संतरे और मौसंबी की खेती से 15 लाख रुपए की शुद्ध आय प्राप्त हुई है. किसान के द्वारा उन्नत तकनीकी से उद्यानिकी खेती करने पर उन्हें एनआरसीसी नागपुर के द्वारा “उत्कृष्ट संतरा उत्पादक किसान” से सम्मानित किया गया है.

किसान योमदेव कालबांडे पहले 40 हेक्टेयर कृषि भूमि में सदियों से चली आ रही परंपरागत खेती करते थे, लेकिन उद्यानिकी विभाग के मार्गदर्शन में उन्हें नया प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया गया, जिस से उन्होंने 25 हेक्टेयर भूमि में उद्यानिकी विभाग के विशेषज्ञों की सलाह पर संतरे और मौसंबी के 7,900 पौधे लगाए. इन पौधों को लगाने और उन की देखभाल करने में उन्होंने आधुनिक तकनीकों का भरपूर उपयोग किया. इन पौधों को लगाने और अन्य खर्चे पर उन्होंने लगभग 5 लाख रुपए खर्च किए.

अब किसान योमदेव कालबांडे का बागान फल देने लगा है. उन के बागान में 500 से अधिक पौधे फल देने लगे हैं और इन से उन्हें लगभग 20 लाख रुपए की आय हुई है.

इस तरह उद्यानिकी विभाग की तकनीकी सलाह से खेती करने पर उन्हें लगभग 15 लाख रुपए  का खालिस मुनाफा हुआ है.

किसान योमदेव कालबांडे की इस सफलता को देख कर दूसरे किसान भी आधुनिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं. उन की मेहनत और लगन को देखते हुए और किसान द्वारा उन्नत तकनीकी से उद्यानिकी खेती करने पर एनआरसीसी, नागपुर ने उन्हें “उत्कृष्ट संतरा उत्पादक किसान” के सम्मान से सम्मानित किया है.

एक ऐसा गांव, जिस के हर घर में हैं दुधारू पशु

सागर : सागर जिले में स्थित विश्वविद्यालय की घाटी पर बसा ग्राम रैयतवारी भैंसपालन और दूध उत्पादन के लिए जाना जाता है. दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कलक्टर संदीप जीआर के मार्गदर्शन में संचालित मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.

इसी क्रम में इस गांव में पशुपालन के साथसाथ बकरीपालन को भी प्राथमिकता दी जा रही है. यहां के अधिकांश घरों में कम से कम 2 से 3 बकरियां पाली जाती हैं. बड़े पशुओं की तुलना में बकरीपालन पशुपालकों के लिए माली रूप से काफी फायदेमंद है. बकरीपालन मजदूर, सीमांत और लघु किसानों में भी काफी लोकप्रिय है.

साल 2019 से राखी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी कांती यादव समूह से 50,000 रुपए और 80,000 रुपए का पशुपालन लोन ले चुकी हैं. इन के पास आज 25 से अधिक बकरियां पल रही हैं, यद्यपि उन के पास भैंस और गाय भी हैं.

इस के अलावा शांति यादव, पति किशोरी यादव साल 2018 से दीपक स्वसहायता समूह की सदस्य हैं. उन्होंने समूह से 35,000 रुपए का लोन लिया है, जिस से उन्होंने बकरीपालन की शुरुआत की.

इन दिनों उन के पास 15 बकरियां, 3 बकरे, 4 बकरी के बच्चे और दुधारू गाय हैं. वे बताती हैं कि बकरेबकरियों को पाल कर वे स्थानीय खरीदारों को बेच देती हैं. बड़े पशुओं के साथसाथ बिना अतिरिक्त मेहनत के बकरीपालन का काम आसानी से हो जाता है. इस से मिलने वाली खाद खेतों के लिए बहुपयोगी होती है. वयस्क नर के विक्रय के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है. इस के अलावा कई बार कमजोर और अन्य उत्पादक बकरियां भी बेच दी जाती हैं. अब तक वे 48,000 रुपए की बकरियां बेच चुकी हैं .

इसी समूह की हरवो देवी यादव का परिवार पशुपालन पर ही पल रहा है. उन के परिवार में 3 बेटियां और 2 बेटे हैं. 2 बेटियों की शादी के बाद पूरा परिवार इसी काम में लगा है. उन्होंने समूह से पहले 25,000 रुपए और बाद में 50,000 रुपए का लोन लिया, जिस से गाय और बकरियां खरीदीं, कुछ पैसे खेती में भी लगाए. 35,000 रुपए में 3 बकरे बेचने के बाद इन के पास अब 8 दुधारू पशु हैं.

दुधारू गाय से रोज का 6 लिटर दूध भी बेचा जाता है, जिस से उन्हें दूध से अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होती है. कम आय वर्ग और छोटी जोत वाले किसानों के लिए बकरीपालन एक आमदनी पाने का एक उत्तम और सरल उपाय है.

शिमला मिर्च की फसल से हो रहा लाखों रुपए का मुनाफा

एकीकृत बागबानी विकास मिशन (एमआईडीएच) बागबानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए केंद्र सरकार की एक प्रायोजित योजना है. इस योजना के तहत फलसब्जियां, जड़कंद वाली फसलें, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधे, नारियल, काजू, कोको और बांस जैसी बागबानी फसलों को बढ़ावा दिया जाता है.

इस योजना के अंतर्गत ड्रिप इरीगेशन सहप्लास्टिक मल्चिंग का उपयोग कर के सागर जिले के ग्राम खिरियाताज के रहने वाले करन पटेल ने शिमला मिर्च की खेती कर के लाखों रुपए का मुनाफा कमाया और खेती को लाभ का धंधा बना लिया है.

करन पटेल बताते हैं कि पहले हम गेहूं की खेती किया करते थे जिस से हमारी रोजीरोटी का ही गुजरबसर हो पाता था. न तो भविष्य के लिए कोई पैसा जमा कर पाते थे और न ही परिवार को कोई सुखसुविधा दे पाते थे. मेहनत के बराबर मुनाफा भी नहीं हो पाता था.

तब उद्यानिकी विभाग के लोगों ने मुझे ड्रिप इरीगेशन सहप्लास्टिक मल्चिंग खेती करने की सलाह दी और एकीकृत बागबानी विकास मिशन में मिलने वाले फायदों की जानकारी दी. तब मैं ने मल्चिंग और ड्रिप सिस्टम का इस्तेमाल कर शिमला मिर्च की खेती करना शुरू किया, जिस से मुझे मेहनत के मुकाबले खेती से लाखों रुपए का मुनाफा हुआ.

सागर जिले के प्रगतिशील किसान करन पटेल ग्राम खिरियाताज के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया  कि उद्यानिकी की उच्च तकनीकी ड्रिप एवं मल्चिंग का उपयोग करते हुए उन के द्वारा शिमला मिर्च, पीकाडोर, टमाटर, आलू, मिर्च की खेती की जा रही है. इस वर्ष उन को टमाटर और शिमला मिर्च का दाम अधिक होने से प्रति एकड़ आय में अधिक मुनाफा हुआ है.

हाइड्रोपोनिक खेती को दें बढ़ावा

सागर जिला कलक्टर संदीप जीआर ने उद्यानिकी विभाग के अंतर्गत उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों को हाइड्रोपोनिक खेती व माइक्रोग्रीन्स की खेती को बढावा देने के लिए निर्देशित किया, जहां हाइड्रोपोनिक खेती में पौधों को मिट्टी के बजाय पानी आधारित पोषक घोल में उगाया जाता है, वहीं माइक्रोग्रीन्स छोटे पौधों की पत्तियां या तने होते हैं, जिन्हें 1 से 3 सप्ताह के बीच में काटा जाता है. ये पौधे विटामिन, मिनरल और एंटीऔक्सीडेंट से भरपूर होते हैं और इन्हें सलाद, सैंडविच, स्मूदी और अन्य व्यंजनों में उपयोग किया जा सकता है.

उपसंचालक, उद्यानिकी, पीएस बडोले ने कलक्टर संदीप जीआर को अवगत कराया कि किसान  करन पटेल को पीडीएमसी योजना के अंतर्गत ड्रिप और अटल भूजल योजना के अंतर्गत सब्जी क्षेत्र विस्तार, वर्मी बेड एवं शेडनेट हाउस का लाभ दिया गया है.

पाले से फसल को कैसे बचाएं

आने वाले दिनों में सर्दी का प्रकोप बढ़ने से फसल में पाला गिरने की पूरी संभावना होती है, जिस से फसल को खासा नुकसान होने का अंदेशा रहता है. इसलिए जरूरी है कि किसानों को पाले से फसल सुरक्षा के उपाय जरूर करने चाहिए.

अनेक कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा समयसमय पर पाले से फसल बचाव को ले कर एडवाइजरी जारी होती है. उन के अनुसार, किसानों को काम करना चाहिए. अभी हाल ही में किसान कल्याण एवं कृषि विभाग, पन्ना द्वारा जिले के किसानों को पाले की स्थिति में फसल के बचाव के संबंध में आवश्यक सलाह जारी की गई है.

मौसम विभाग द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रदेश के कई जिलों में तापमान तेजी से कम होने की संभावना है. तापमान में होने वाली इस गिरावट का असर फसलों पर पाले के रूप में होने की आशंका रहती है.

पाले की स्थिति के कारण फसलों को नुकसान होने की संभावना के दृष्टिगत विभाग द्वारा सलाह जारी की गई है. किसानों को सुझाव दिए गए हैं कि रात में खेत की मेंडों पर कचरा और खरपतवार आदि जला कर विशेष रूप से उत्तरपश्चिमी छोर से धुआं करें, जिस से धुएं की परत फसलों के ऊपर आच्छादित हो जाए.

फसलों में खरपतवार नियंत्रण करना भी आवश्यक है, क्योंकि खेतों में उगने वाले अनावश्यक और जंगली पौधे सूरज की गरमी जमीन तक पहुंचने में रुकावट पैदा करते हैं. इस तरह से तापमान के असर को कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.

इसी तरह शुष्क भूमि में पाला पड़ने का जोखिम अधिक होता है, इसलिए फसलों में स्प्रिंकलर के माध्यम से हलकी सिंचाई करनी चाहिए. थायोयूरिया की 500 ग्राम मात्रा का 1,000 लिटर पानी में घोल बना कर 15-15 दिन के अंतर से छिड़काव भी पाले से बचाव के लिए उपयोगी उपाय है.

इस के अलावा 8 से 10 किलोग्राम सल्फर डस्ट प्रति एकड़ का भुरकाव अथवा बेटेवल या घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करने से भी पाले के असर को नियंत्रित किया जा सकता है.

ड्रैगन फ्रूट परियोजना : चार प्रजातियों का पौधरोपण

भागलपुर : सबौर कृषि विश्वविद्यालय बिहार के उद्यान में ड्रैगन फ्रूट परियोजना के अंतर्गत 4 प्रजातियों का पौधरोपण किया गया. ये प्रजातियां अपने रंग एवं पोषक तत्वों के आधार पर अपनी अलग पहचान बनाती हैं.

प्रमुख रूप से लाल छिलका, सफेद गूदा, जो कि राष्ट्रीय अजैविक स्ट्रेस प्रबंधन संस्थान, बारामती, महाराष्ट्र से लाया गया है. गुलाबी छिलके, बैगनी गूदे वाली प्रजाति को केंद्रीय द्वितीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अंडमान व निकोबार से लाया गया है. इस के अतिरिक्त पीला छिलका और सफेद गूदे वाली प्रजाति को कांधल एग्रो फार्म लुधियाना से लाया गया है.

परियोजना के अंतर्गत इन चारों प्रजातियों का मूल्यांकन कृषि जलवायु क्षेत्र जोन 3-। के अंतर्गत किया जाना है. वर्तमान समय में बढ़ती हुई कुपोषण की समस्या को देखते हुए ड्रैगन फ्रूट अपने विशिष्ट पोषक तत्वों जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, लोहा एवं फास्फोरस के समावेश होने से एक उत्तम फल है, जो कुपोषण की समस्या को कम करने में लाभकारी सिद्ध होगा.

मौजूदा दौर में खेतीकिसानी की हालत

कहा जाता है कि किसान किसी भी देश की रीढ़ होते हैं और उन की दशा ही देश की दिशा सुनिश्चित करती है. जिस देश में किसानों की बदहाली होती है, वह देश कभी विकसित हो ही नहीं सकता. आज यही स्थिति देश के विभिन्न राज्यों में देखने को मिल रही है.

किसानों को बैंकों से लिया कर्ज चुकाने और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. इसी के चलते कई किसान अपनी जान की ही बाजी लगा दे रहे हैं. उन के पास इस के अलावा कोई दूसरा तरीका ही नहीं है.

किसान बैंकों से बीज, ट्रैक्टर व ट्यूबवेल वगैरह खरीदने के लिए कर्ज लेते हैं, लेकिन फसल चौपट होने पर वे कर्ज का भुगतान नहीं कर पाते हैं. ऐसे में वे मजबूरन आत्महत्या तक कर लेते हैं. कंगाली और बदहाली के कारण बैंक का कर्ज चुकाना तो दूर वे अपने परिवार का भरणपोषण भी नहीं कर पाते.

यदि किसानों के हालात ऐसे ही बदतर होते रहे तो एक दिन वे खेती करना ही बंद कर देंगे, तब देश में एक भयावह स्थिति पैदा हो जाएगी. इस हालत में दोषी किसान भी  हैं, क्योंकि उन में एकजुटता का अभाव अकसर देखने को मिलता है. इसी का फायदा सरकार उठाती है और वह उन के हितों की अनदेखी कर के उन की मांगों को दरकिनार कर देती है. इन्हीं सब कारणों से किसान तंगहाली से जूझ रहे हैं.

जरूरत है कि किसानों को सही मात्रा में कर्ज व सहायता मुहैया कराई जाए ताकि वे खेतीबारी की दशा सुधार कर के सही तरह से खाद्यान्न उत्पादन कर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकें.

लेकिन ये योजनाएं अधिकारियों और बिचौलियों की कमाई का जरीया बन जाती हैं.

आज के दौर में खेती का अर्थशास्त्र किसानों के खिलाफ है. मजदूरों और छोटे किसानों की बात तो दूर रही, मझोले और बड़े किसानों के सामने भी यह सवाल खड़ा है कि वे किस तरह बैंक का कर्ज चुकाएं और कैसे अपनी दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करें.

हर राज्य में किसानों की हालत एक जैसी है. सरकारें उन्हें झूठा दिलासा दे कर चुप करा देती हैं. आज खेती घाटे का सौदा साबित हो रहा है, इसीलिए छोटेबड़े सभी किसान परेशान हैं कि किस तरह अपनी आजीविका चलाएं. दुनिया में सब से ज्यादा विकास वाला देश होने के बावजूद लगातार हमारी विकास दर में गिरावट आ रही है. साल 1990 में कृषि की जो विकास दर 2-8 फीसदी थी, वह साल 2000-2010 के बीच घट कर 2.4 फीसदी रह गई और वर्तमान दशक में तो यह मात्र 2.1 फीसदी ही है.

खराब फसलों की वजह से किसानों की हालत काफी दयनीय रहती है. यदि सूखे की वजह से खेती खराब हो गई तो उन की जो लागत लगी है, उस के चलते घाटा होना तय है. सरकार अपने वादे के मुताबिक सही समर्थन मूल्य किसानों को नहीं दे पाती, जिस के कारण उनहें अपनी उपज को औनेपौने दामों पर बेचना पड़ता है. अकसर ज्यादा उत्पादन होने पर भंडारण का सही इंतजाम न होने से अनाज पड़ापड़ा सड़ जाता है.

केंद्र और राज्य सरकारों की कर्जमाफी योजना किसानों के लिए कारगर नहीं है, बल्कि यह तो खतरनाक साबित हो सकती है. यह योजना किसानों की समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं है. इस से उन किसानों के लिए मुश्किल हो सकती है, जिन्हें कर्जमाफी नहीं मिली. इस से तमाम किसानों की दिमागी हालत खराब हो सकती है और वे डिप्रेशन की हालात में आ सकते हैं.

खेतीकिसानी के प्रति युवाओं में जज्बा पैदा करने के लिए कृषि को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करना जरूरी है. कृषि को आधुनिक और परंपरागत तरीकों से भी जोड़ने की जरूरत है. साथ ही समयसमय पर इस में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना भी जरूरी है.

मत्स्यपालन और पशुधन की योजनाओं से किसान उठाएं लाभ

नई दिल्ली : मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार वित्तीय वर्ष 2020-21 से 5 सालों के लिए मात्स्यिकी क्षेत्र में 20050 करोड़ रुपए के निवेश के साथ एक प्रमुख योजना “प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना यानी पीएमएमएसवाई)” को कार्यान्वित कर रही है. पीएमएमएसवाई योजना का मुख्य उद्देश्य सतत(सस्टेनेबल), जिम्मेदार, समावेशी (इन्क्लूसिव) और उचित तरीके से मात्स्यिकी क्षमता का उपयोग करना है और मत्स्य उत्पादन विधियों को बढ़ावा देना है. यह योजना कर्नाटक सहित सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लागू की जा रही है.

पीएमएमएसवाई के तहत बीते 4 सालों और वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने कुल 1056.34 करोड़ रुपए की लागत से कर्नाटक सरकार के मात्स्यिकी विकास प्रस्ताव को स्वीकृति दी है.

मत्स्यपालन में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए मंजूर गतिविधियों में गुणवत्तापूर्ण बीज आपूर्ति के लिए फिश हैचरी, मीठे पानी और खारे पानी के एक्वाकल्चर में क्षेत्र विस्तार, प्रौद्योगिकी संचारित कल्चर प्रथाएं जैसे रीसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम, बायोफ्लोक इकाइयां, केज कल्चर, सीवीड फार्मिंग, ओर्नामेंटल ब्रीडिंग और रियरंग यूनिट शामिल हैं.

तटीय समुद्री क्षेत्रों में पीएमएमएसवाई के तहत फिश स्टाक की बहाली के लिए कर्नाटक सहित सभी तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में आर्टिफिशियल रीफ की स्थापना के लिए भी मंजूरी दी गई है. मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र/इंडियन ऐक्सक्लूसिव इकौनोमिक जोन (ईईजेड) में मानसून/मत्स्य प्रजनन अवधि के दौरान एकसमान मत्स्यन पर प्रतिबंध (यूनिफौम फिशिंग बैन) भी लागू कर रहा है और संरक्षण व समुद्री सुरक्षा कारणों से कर्नाटक सहित तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रादेशिक जल (टेरिटोरियल वाटर) के भीतर इस तरह के फिशिंग बैन को लागू किया गया है.

इस के अलावा वित्तीय वर्ष 2023-24 से 2026-27 तक 4 सालों के लिए मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि योजना (पीएम-एमकेएसवाई) नामक एक उपयोजना के कार्यान्वयन के लिए स्वीकृति दे दी है. इस योजना का उद्देश्य मात्स्यिकी क्षेत्र की मूल्यश्रृंखला दक्षता में सुधार के लिए निष्पादन अनुदान के माध्यम से मात्स्यिकी और एक्वाकल्चर सूक्ष्म उद्यमों को बढ़ावा देना है.

पीएमएमएसवाई के तहत राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) के माध्यम से जल कृषि के अन्य क्षेत्रों में विभिन्न कृषि पद्धतियों में विभिन्न क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिस में गहन (इंटेंसिव) मीठे पानी की जल कृषि, खारे पानी में जल कृषि, शीत जल मात्स्यिकी, सजावटी मत्स्यपालन, मत्स्य प्रसंस्करण और विपणन, प्रजाति विशिष्ट हैचरी और प्रजाति विशिष्ट कल्चर (कृषि) प्रैक्टिस शामिल हैं.

एनएफडीबी ने बताया कि पीएमएमएसवाई के तहत अब तक कर्नाटक में 141 प्रशिक्षण और आउटरीच गतिविधियों को वित्त प्रदान किया गया है, जिस में 10,150 प्रतिभागी शामिल हैं और 121.15 लाख रुपए की धनराशि मंजूर की गई है.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग, भारत सरकार ने डेयरी सहकारी समितियों सहित डेयरी क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए कई पहल की हैं. यह सूचित किया गया है कि साल 2014 में राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनडीडीपी) योजना की शुरुआत के बाद से कर्नाटक में 16 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिन की कुल परियोजना लागत 408.39 करोड़ रुपए है. स्वीकृत परियोजनाओं का कार्यान्वयन कर्नाटक सहकारी दुग्ध विपणन संघ लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है.

इस के अलावा साल 2021-22 से 2025-26 तक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, भारत सरकार 500 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ अंब्रेला योजना “इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट फंड” के एक हिस्से के रूप में डेयरी गतिविधियों में लगे डेयरी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (एसडीसीएफपीओ) को सहायता देने की योजना भी लागू कर रही है.

इस योजना को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के माध्यम से लागू किया जा रहा है, जिस का मुख्य उद्देश्य गंभीर रूप से प्रतिकूल बाजार स्थितियों या प्राकृतिक आपदाओं के कारण संकट से निबटने के लिए सौफ्ट वर्किंग कैपिटल लोन (आसान कार्यशील पूंजी ऋण) दे कर के डेयरी गतिविधियों में लगे सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों की सहायता करना है. यह योजना कर्नाटक में भी लागू की जा रही है.

इस के अलावा फरवरी, 2024 से डेयरी प्रोसैसिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट फंडा (डीआईडीएफ) का पुनर्गठन किया गया है और इसे एनिमल हसबंडरी इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट फंड (एएचआईडीएफ) में एकीकृत किया गया है. इस संशोधित योजना के तहत सहकारी समितियां और प्राइवेट डेयरी प्लांट्स दोनों ही 3 फीसदी हर साल की दर से ब्याज सहायता प्राप्त करने के पात्र हैं. साथ ही, निजी संस्थाओं की तरह सहकारी समितियां भी अब इस योजना के अंतर्गत अर्हता प्राप्त किसी भी ऋण देने वाली संस्था से ऋण प्राप्त कर सकती हैं.

अनाज भंडारण (Grain Storage) में दुनियाभर में सब से आगे होगा भारत

नई दिल्ली : सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सब से बड़ी अनाज भंडारण योजना की पायलट परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (नैबकौंस) के सहयोग से 11 राज्यों महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, असम, तेलंगाना, त्रिपुरा और राजस्थान में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) स्तर पर इन की 11 पैक्स में गोदामों को बनाया गया है. इन बने 11 भंडारणों में से 3 को महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना राज्य में पैक्स ने स्वयं के उपयोग के लिए रखा है. इस के अलावा 3 भंडारण को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में राज्य/केंद्रीय एजेंसियों द्वारा किराए पर लिया गया है.

इस पायलट परियोजना को आगे बढ़ा दिया गया है और सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सब से बड़ी अनाज भंडारण योजना के तहत गोदामों के बनाने के लिए 21 नवंबर, 2024 तक देशभर में 500 से अधिक अतिरिक्त पैक्स की पहचान की गई है.

इस योजना के तहत कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ), कृषि विपणन अवसंरचना योजना (एएमआई) आदि जैसी भारत सरकार की विभिन्न मौजूदा योजनाओं के सम्मिलन के जरीए पैक्स को सब्सिडी और ब्याज सहायता दी जाती है. एआईएफ योजना के तहत 2 करोड़ रुपए तक की परियोजना के लिए 3 फीसदी ब्याज सहायता प्रदान की जाती है, जिस में ऋण चुकाने की अवधि 2+5 साल होती है. इस के अलावा एएमआई योजना के तहत भंडारण इकाइयों के बनाने के लिए पैक्स को 33.33 फीसदी सब्सिडी दी जाती है.

इस के अलावा, एएमआई योजना के तहत पैक्स के लिए उत्पाद की उत्पादन लागत और उस के विक्रय मूल्य के बीच के अंतर की धनराशि (मार्जिन मनी) की आवश्यकता 20 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी कर दी गई है. पूंजीगत लागत पर भंडारण अवसंरचना, जिस में बाउंड्री वाल, ड्रेनेज जैसी सहायक चीजें शामिल हैं) के लिए सहायता के अलावा अब पैक्स को सहायक चीजों पर अतिरिक्त सब्सिडी दी जाती है, जो गोदाम घटक की कुल स्वीकार्य सब्सिडी के अधिकतम 1/3 या वास्तविक जो भी कम हो, तक सीमित है.

पायलट परियोजना के अंतर्गत 11 राज्यों की 11 प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों में कुल 9,750 मीट्रिक टन भंडारण क्षमता वाले 11 भंडारण गोदामों को बनाने का काम पूरा हो चुका है.

ग्रामीण महिलाएं (Rural Women): सहकारिता क्षेत्र में कितनी हिस्सेदारी और क्या हैं योजनाएं

नई दिल्ली : राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के अनुसार, 28 नवंबर, 2024 तक देश में 25,385 महिला कल्याण सहकारी समितियां पंजीकृत हैं. इस के अलावा देश में 1,44,396 डेयरी सहकारी समितियां हैं, जहां काफी तादाद में ग्रामीण महिलाएं इस क्षेत्र में कार्यरत हैं.

सरकार ने सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल की हैं, जिस में बहुराज्य सहकारी समितियां (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 को एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के माध्यम से संशोधित किया गया, जिस में एमएससीएस के बोर्ड में महिलाओं के लिए 2 सीटों के आरक्षण के लिए एक विशिष्ट प्रावधान किया गया, जिसे अनिवार्य कर दिया गया है. इस से सहकारी क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने का रास्ता साफ होगा.

वहीँ सहकारिता मंत्रालय द्वारा पैक्स के लिए मौडल उपनियम तैयार किए गए हैं और देशभर के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाए गए हैं. इस में पैक्स के बोर्ड में महिला निदेशकों की जरूरत को अनिवार्य किया गया है. इस से 1 लाख से अधिक पैक्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और उन के द्वारा निर्णय लेना सुनिश्चित हो रहा है.

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), सहकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक सांविधिक निगम है, जो पिछले कई सालों से महिला सहकारी समितियों की सामाजिकआर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिस से उन्हें व्यवसाय मौडल आधारित गतिविधियां अपनाने में सक्षम बनाया जा सके.

एनसीडीसी विशेष रूप से महिला सहकारी समितियों के लिए निम्नलिखित योजनाओं को लागू कर रहा है :

स्वयंशक्ति सहकारी योजना : इस योजना के अंतर्गत महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को सामान्य/सामूहिक सामाजिकआर्थिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त बैंक ऋण की सुविधा के लिए 3 साल तक के लिए कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान किया जाता है.

नंदिनी सहकार : इस योजना के तहत महिला सहकारी समितियों को 5-8 साल तक की अवधि के लिए सावधि ऋण प्रदान किया जाता है, जिस में सावधि ऋण पर 2 फीसदी तक की ब्याज छूट दी जाती है. इस योजना के तहत वित्तीय सहायता एनसीडीसी को सौंपे गए व्यवसाय योजना आधारित गतिविधि/सेवा के लिए प्रदान की जाती है.

इस के अलावा सहकारिता मंत्रालय, नाबार्ड, एनडीडीबी, एनएफडीबी और राज्य सरकारों के साथ मिल कर भारत में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है. इस में सभी पंचायतों/गांवों में नई बहुद्देशीय पैक्स, डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना करना शामिल है. प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) शुरू की गई है. एनडीडीबी को 1,03,000 से अधिक डेयरी सहकारी समितियों के गठन/मजबूतीकरण का काम सौंपा गया है.

इस के अतिरिक्त गुजरात में “सहकारी समितियों के बीच सहयोग” पायलट परियोजना का उद्देश्य प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों को बिजनैस कौरेसपोंडेंट/बैंक मित्र बना कर और सदस्यों को रुपे केसीसी प्रदान कर के उन्हें सशक्त बनाना है. इस पहल का उद्देश्य डेयरी सहकारी समितियों में काफी संख्या में ग्रामीण महिलाओं को शामिल कर के उन की बाजार तक पहुंच को बढ़ाना और उन के वित्तीय व सामाजिक सशक्तीकरण में योगदान देना है.

एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत सहकारी चुनाव प्राधिकरण की स्थापना की गई है और इस ने बहुराज्य सहकारी समितियों के 70 चुनाव आयोजित किए हैं और बोर्ड में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की है.

एनसीडीसी ने 31 मार्च, 2024 तक विशेष रूप से महिलाओं द्वारा प्रवर्तित सहकारी समितियों के विकास के लिए क्रमशः 7,708.09 करोड़ रुपए और 6,426.36 करोड़ रुपए की संचयी वित्तीय सहायता स्वीकृत और वितरित की है.

भारत सरकार ने गुजरात राज्य के पंचमहल और बनासकांठा जिलों में “सहकारी समितियों के बीच सहयोग” नामक एक पायलट परियोजना लागू की है, जिस के तहत प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों को जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) का बिजनैस कौरेसपोंडेंट/बैंक मित्र बनाया गया है और सदस्यों को माइक्रोएटीएम प्रदान किए गए हैं.

इस के अलावा डेयरी सहकारी समितियों के सदस्यों (विशेष रूप से महिला सदस्यों) को उन की तत्काल वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए डीसीसीबी द्वारा रुपे केसीसी प्रदान किया जा रहा है. पायलट प्रोजैक्ट के दौरान दोनों जिलों में डीसीसीबी ने अपने सदस्यों को 22,344 रुपे केसीसी जारी किए हैं, जिन में 6,382 पशुपालन केसीसी शामिल हैं, जिस का लाभ ज्यादातर महिलाओं को मिला है. मंत्रालय ने ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण पर इन पहलों के प्रभाव के लिए कोई विशेष अध्ययन नहीं किया है.