वैज्ञानिक तरीके से सिंचाई एवं खाद प्रबंधन से फसल उत्पादन में वृद्धि

बड़वानी : कृषि विज्ञान केंद्र, बड़वानी द्वारा कृषि आदान विक्रेताओं के एकवर्षीय डिप्लोमा कार्यक्रम (देसी) के अंतर्गत प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. एसके बड़ोदिया के मार्गदर्शन में केंद्र के सभागार में आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एवं प्रमुख वक्ता के रूप में अधिष्ठाता बीएम कृषि महाविद्यालय खंडवा के डा. डीएच रानाडे द्वारा भागीदारी की गई.

सर्वप्रथम अधिष्ठाता डा. डीएच रानाडे ने कहा कि छोटीछोटी सावधानियां एवं प्रबंधन कार्य कर के फसल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है जैसे अपने खेत की मिट्टी के अनुसार फसल का चयन, उपयुक्त प्रजाति का चुनाव, सिंचाई एवं उर्वरक का समुचित प्रबंधन कर 30-40 फीसदी तक उत्पादन में वृद्धि लाई जा सकती है.

अगर फसल में ड्रिप सिचांई पद्धति से सिंचाई की जाए व उचित उर्वरक प्रबंधन किया जाए, तो फसल में अच्छा उत्पादन देखा गया है. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हमें जल प्रबंधन की शुरुआत कृषि क्षेत्र से करनी चाहिए, क्योंकि सर्वाधिक मात्रा में कृषि कार्यों में ही जल का उपयोग किया जाता है और सिंचाई में जल का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या है, जनमानस में धारणा है कि अधिक पानी, अधिक उपज, जो कि गलत है, क्योंकि फसलों के उत्पादन में सिंचाई का योगदान 15-16 फीसदी होता है. फसल के लिए भरपूर पानी का मतलब मात्र मिट्टी में पर्याप्त नमी ही होती है, परंतु वर्तमान कृषि पद्धति में सिंचाई का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है. धरती के गर्भ से पानी की आखिरी बूंद भी खींचने की कवायद की जा रही है.

देश में हरित क्रांति के बाद से कृषि के जरीए जल संकट का मार्ग प्रशस्त हुआ है. बूंदबूंद सिंचाई यानी बौछार (फव्वारा तकनीकी) और खेतों के समतलीकरण से सिंचाई में जल का दुरुपयोग रोका जा सकता है. फसलों के जीवनरक्षक या पूरक सिंचाई दे कर उपज को दोगुना किया जा सकता है.

जल उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए पौधों को संतुलित पोषक तत्वों को प्रबंध करने की आवश्यकता है, जल की सतत आपूर्ति के लिए आवश्यक है कि भूमिगत जल का पुनर्भरण किया जाए, खेतों के किनारे फलदार पेड़ लगाने चाहिए, छोटेबड़े सभी कृषि क्षेत्रों पर क्षेत्रफल के हिसाब से तालाब बनाने जरूरी हैं. रासायनिक खेती की बजाय जैविक खेती पद्धति अपना कर कृषि में जल का अपव्यय रोका जा सकता है. ऊंचे स्थानों, बांधों इत्यादि के पास गहरे गड्ढ़े खोदे जाने चाहिए, जिस से उन में वर्षा का जल एकत्रित हो जाए और बह कर जाने वाली मिट्टी को अन्यत्र जाने से रोका जा सके.

कृषि भूमि में मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए हरित खाद और उचित फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए. कार्बनिक अवशिष्टों को प्रयोग कर इस नमी को बचाया जा सकता है. वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए शहरी मकानों में आवश्यक रूप से वाटर टैंक लगाए जाने चाहिए. इस जल का उपयोग अन्य घरेलू जरूरतों में किया जाना चाहिए. जल का संरक्षण करना वर्तमान समय की जरूरत है.

इस अवसर पर डा. रानाडे द्वारा केंद्र की प्रदर्शन इकाइयों बकरीपालन, मुरगीपालन, केंचुआ खाद इकाई, अजोला इकाई, डेयरी आदि का अवलोकन कर प्रशंसा व्यक्त की.

नरवाई प्रबंधन (Weed Management) के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों से करें बोआई

उमरिया : फसलों की कटाई के बाद उन के जो अवशेष खेत में रह जाते हैं, उसे नरवाई या पराली कहते हैं. मशीनों से फसल की कटाई होने पर बड़ी मात्रा में नरवाई खेत में रहती है. इस को हटाने के लिए किसान प्रायः इसे जला देते हैं. इस से खेत की मिट्टी की उपरी परत में रहने वाले फसलों के लिए उपयोगी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं. मिट्टी में कड़ापन आ जाता है और इस की जलधारण क्षमता बहुत कम हो जाती है.

किसान नरवाई प्रबंधन के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग करें. इन उपकरणों के उपयोग से नरवाई को नष्ट कर के खाद बना दिया जाता है, जिस से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. नरवाई जलाने से मिट्टी को होने वाले नुकसान और धुएं से होने वाला पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता है.

किसान धान और अन्य फसलों की नरवाई खेत से हटाने के लिए सुपर सीडर और हैप्पी सीडर का उपयोग करें. ये उपकरण किसी भी ट्रैक्टर, जो 50 एचपी के हों, उस में आसानी से फिट हो जाते हैं. इन के उपयोग से एक ही बार में नरवाई नष्ट होने के साथसाथ खेत की जुताई और बोआई हो जाती है. इस से जुताई का खर्च और समय दोनों की बचत होती है. इस के अलावा किसान ट्रैक्टर में स्ट्राबेलर का उपयोग कर के नरवाई को खाद में बदल सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया और कृषि आभियांत्रिकी विभाग, उमरिया के संयुक्त तत्वावधान में गांव कछरवार में सुपर सीडर द्वारा गेहूं फसल की बोआई की गई. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एव प्रमुख डा. केपी तिवारी ने बताया कि धान की फसल यदि हार्वेस्टर से की जाती है, तो खेत में फसल के अवशेष रह जाते हैं, जिन की सफाई के बिना बोआई करना बहुत बड़ी चुनौती रहती है, लेकिन सुपर सीडर एक ऐसी मशीन है, जो बिना सफाई के आसानी से गेहूं या चना की बोआई कर सकती है.

उन्होंने आगे बताया कि नरवाई जलाने से मिट्टी में उत्पन्न होने वाले कार्बनिक पदार्थ में कमी आ जाती है. सूक्ष्म जीव जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिस के फलस्वरूप जैविक खाद का बनना बंद हो जाता है. भूमि की ऊपरी परत में ही पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं. आग लगाने के कारण ये पोषक तत्व जल कर नष्ट हो जाते हैं. बोआई के दौरान तकरीबन 25 किसान उपस्थित थे.

सहायक यंत्री कृषि आभियांत्रिकी मेघा पाटिल द्वारा सुपर सीडर पर मिलने वाली छूट के बारे में बताया कि यह मशीन 3 लाख रुपए की आती है, जिस में 1 लाख, 5 हजार रुपए की छूट मिलती है. सुपर सीडर एकसाथ तीन काम करती है, जिस से हार्वेस्टर के बाद बचे फसल अवशेष को बारीक काट कर मिट्टी में मिला देता है, जिस से मिट्टी में कार्बन कंटेंट बढ़ेगा. मिटटी उपजाऊ होगी और खेत में कटाई के उपरांत तुरंत बोनी का काम हो जाएगा.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया के वैज्ञानिक डा. धनंजय सिंह ने बताया कि फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन को वापस भूमि में मिला देने से कई लाभ होते हैं जैसे कि कार्बनिक पदार्थ की उपलब्धता में वृद्धि, पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि, मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार होता है. फसल उत्पादकता में वृद्धि आती है. खेतों में नरवाई का उपयोग खाद एवं भूसा बनाने में करें. नरवाई से कार्बनिक पदार्थ भूमि में जा कर मृदा पर्यावरण में सुधार कर सूक्ष्म जीवी अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, जिस से कृषि टिकाऊ रहने के साथसाथ उत्पादन में वृद्धि होती है.

रेशम फसल की बीमा (Insurance) योजना होगी तैयार

नर्मदापुरम : कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिलीप जायसवाल ने मालाखेड़ी नर्मदापुरम के रेशम परिसर का भ्रमण कर परिसर का अवलोकन किया. भ्रमण के दौरान मंत्री दिलीप जायसवाल ने मालाखेड़ी ककून मार्केट में किसानों के द्वारा उन के ककून विक्रय की प्रक्रिया का अवलोकन किया. इस दौरान उन्होंने देश के कर्नाटक और पश्चिम बंगाल से आए व्यापारियों और मार्केट में मौजूद किसानों से संवाद किया.

मंत्री दिलीप जायसवाल ने किसानों से चर्चा करने के बाद बताया कि मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन की दरों की अपेक्षा मार्केट में अधिक दरें प्राप्त हो रही हैं, जिस से किसानों में प्रसन्नता है.

राज्य मंत्री दिलीप जायसवाल ने मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन की क्रय दरें बाजार अनुरूप ककून दरें संशोधित करने के निर्देश दिए, जिस से मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन भी ककून खरीद सकेगा व स्थापित मशीनें संचालित रहेंगी. मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन ककून उत्पादन से वस्त्र उत्पादन तक की पूरी प्रक्रिया संचालित करेंगे, जिस से धागाकरणों व ट्विस्टिंग बुनकरों को रोजगार प्राप्त हो सकेगा. सिल्क समग्र 2 लागू की जाएगी, जिस से किसानों को लाभ होगा.

उन्होंने परिसर में संचालित रेशम वस्त्र बुनाई का काम का अवलोकन किया एवं प्राकृत शोरूम का भी अवलोकन किया. इस दौरान कुटीर एवं ग्रामाद्योग विभाग के अन्य घटक के अधिकारी भी उपस्थित थे. बताया गया कि रेशम के समग्र विकास के लिए ज्वाइंट वेंचर एसपीवी, एडीवी आदि विकल्पों पर भी विचार किया जाएगा और किसानों की रेशम फसल की बीमा योजना तैयार की जाएगी. निरीक्षण के दौरान जिला रेशम अधिकारी रविंद्र सिंह उपस्थित थे.

कृषि एवं कौशल विकास के साथ ही आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है

25 दिसंबर, 2023 को मध्य प्रदेश में भाजपा की डा. मोहन यादव सरकार में गौतम टेंटवाल को जब राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया गया था, तब न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि देशभर के कृषि विज्ञान के छात्रों में खुशी और रोमांच का माहौल था, क्योंकि ऐसा बहुत कम होता है कि कृषि विज्ञान के छात्र सक्रिय राजनीति में आ कर अपना कैरियर बनाएं और मंत्री पद तक पहुंचें. लेकिन यह सब अचानक नहीं हुआ था, बल्कि इस के पीछे गौतम टेंटवाल की अथक मेहनत,  लगन, समर्पण और प्रतिभा का भी योगदान था.

आरएके एग्रीकल्चर कालेज, सीहोर से बीएससी एग्रीकल्चर और फिर एमएससी पर्यावरण में करने के बाद गौतम टेंटवाल ने राजनीति विज्ञान से भी एमए की डिगरी ली और अब मंत्री पद की भारी व्यस्तता होने के बाद भी पीएचडी करने की इच्छा रखते हैं.

यही वह जज्बा है, जो किसी को भी शीर्ष पर पहुंचा देता है. हालांकि, गौतम टेंटवाल छात्र जीवन से ही आरएसएस के जरीए सक्रिय राजनीति में रहे हैं, लेकिन इसे पेशा उन्होंने बनाया साल 2008 में, जब राजगढ़ जिले की सारंगपुर विधानसभा से वे पहली बार भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे.

पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिर से जीत का परचम लहराया, तो उन्हें मंत्री पद से नवाजा गया और विभाग भी अहम मिला कौशल विकास यानी स्किल डवलपमैंट का, जिस पर इन दिनों सरकार खासा ध्यान दे रही है और तरहतरह की योजनाएं भी संचालित भी कर रही है.

भोपाल में गौतम टेंटवाल से उन के निवास पर लंबी बात हुई. पेश हैं, उस के महत्वपूर्ण अंश :

self-reliant India

सवाल : आप कृषि स्नातक हैं और अब कौशल विकास मंत्री हैं इस नाते कृषि और स्किल डेवलपमेंट को कैसे कनेक्ट करते हैं?

जवाब : यह बहुत अहम और अच्छा सवाल है, जिसे बोलचाल की भाषा में कहें तो खेतीकिसानी और कौशल विकास का गहरा और पुराना नाता है. किसान हमेशा से ही उपलब्ध साधनों, अनुभवों और नई तकनीक को अपनाता रहा है और कृषि की भाषा में कहें तो खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी और मत्स्यपालन सहित कृषि आधारित दूसरे उद्योगों में कौशल विकास के जरीए रोजगार हासिल किए जा सकते हैं. इस के लिए जरूरी है कि इस डिजिटल युग में किसानों के लिए औनलाइन मार्केटिंग, ई-कौमर्स और सरकारी योजनाओं की जानकारी पहुंचाई जाए. कौशल विकास इस में अहम रोल निभाता है.

सवाल : वह कैसे, जरा विस्तार से बताएंगे?

जवाब : जी. कुछ योजनाओं का जिक्र मैं यहां कर रहा हूं, जो बहुत लोकप्रिय हो रही हैं और किसानों के लिए लाभप्रद भी हैं. पहली है ‘ड्रोन दीदी’, जिस के तहत किसानो को वैज्ञानिक तरीके से जोड़ कर खेती की पैदावार व कीटनाशकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से खासतौर से महिलाओं के लिए लौंच किया गया है. इस में महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी जाती है और ड्रोन भी प्रदान किए जाते हैं. मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी इस के उत्साहजनक परिणाम आ रहे हैं.

दूसरी अहम योजना पीएमकेवायवाय यानी प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना है, जिस के तहत युवाओं को कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया जाता है. एक और योजना है, जिस का जिक्र मैं खासतौर से करना चाहूंगा. वह है राष्ट्रीय कृषि विस्तार कार्यक्रम. इस में किसानों को नई तकनीक और विधियों की ट्रेनिंग दी जाती है. इसी तरह ई-नाम में किसानों को डिजिटल प्लेटफार्म पर अपनी पैदावार बेचने का मौका मिलता है.

सवाल : क्या वजह है कि किसान अभी भी नई तकनीक अपनाने से हिचकते हैं?

जवाब : नहीं, ऐसा नहीं है. किसान अब तेजी से नई तकनीक अपना रहा है, लेकिन यह भी सही है कि सभी किसान परंपरागत खेती का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं. देखिए, कौशल विकास का सीधा सा मतलब है, लोगों को विभिन्न कामों में माहिर बनाना. इस में तकनीकी जानकारी, आधुनिक उपकरणों और नई विधियों का प्रशिक्षण शामिल है.

इसी तरह कौशल विकास का मकसद लोगों को आत्मनिर्भर बनाना और रोजगार के मौके पैदा करना है. कृषि के क्षेत्र में कौशल विकास किसानों को अधिक उत्पादन करने और बेहतर तकनीकों को अपनाने में मदद करता है. कौशल विकास के जरीए किसान आधुनिक उपकरणों और तकनीक का उपयोग करना सीखते हैं. मसलन, ड्रिप इरिगेशन, जैविक खेती और हाईड्रोपोनिक्स. इस के अलावा कटाई के बाद फसल को सही तरीके से संरक्षित करना और फसल को बाजार में वाजिब दाम में बेचना भी तो कौशल विकास ही है.

सवाल : आजकल हर कहीं आत्मनिर्भर भारत की बात होती है. इस में कृषि और कौशल विकास कहां फिट होते हैं?

जवाब : देखिए, कृषि न केवल की मध्य प्रदेश की, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था की भी रीढ़ है. हमें जोकुछ भी मिलता है, वह खेतीकिसानी से ही मिलता है. मेरा मानना है कि कृषि और कौशल विकास का तालमेल ही ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बना सकता है. अगर किसान नए कौशल सीखते, अपनाते हैं और उन्नत कृषि पद्धतियों को अपनाएं, तो वे न केवल अपनी आय को बढ़ा सकते हैं, बल्कि देश की माली हालत को भी मजबूत बना सकते हैं. कृषि एवं कौशल विकास को साथ ला कर ही आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.

मक्का है मेवाड़ के लिए खास 

उदयपुर : कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि मेवाड़ के लिए मक्का बहुत खास फसल है. वैसे भी यहां कहावत है, ’गेहूं छोड़ ’न मक्का खाणो – मेवाड़ छोड़ न कठैई नी जाणों’. मक्का कभी अनाज और चारे के लिए बोया जाता था, लेकिन अनुसंधान और कृषि वैज्ञानिकों के प्रयासों की बदौलत मक्का से पोपकौर्न, बेबीकौर्न, जर्म औयल (मक्का का तेल), जिस में एंटीऔक्सीडेंट भरपूर मात्रा उपलब्ध है. यही नहीं, मक्का से स्टार्च के बाद इथेनाल उत्पादन भी संभव है, जिसे भविष्य में पैट्रोल के विकल्प के रूप में अपनाया जा सकता है.

उन्होंने आश्वस्त किया कि ग्रीन फ्यूल की दिशा में एपपीयूएटी हर संभव मदद करेगा. कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि साल 1955 में स्थापित राजस्थान कृषि महाविद्यालय कोई छोटामोटा कालेज नहीं है, बल्कि देश का दूसरा कृषि विश्वविद्यालय है.

उन्होंने आगे कहा कि एमपीयूएटी ने हाल ही प्रताप-6 संकर मक्का बीज पैदा किया है, जिस का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 65 क्विंटल है. कृषि राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी की मंशानुरूप इस बीज के प्रयोग से मक्का का क्षेत्रफल बढ़ाने की जरूरत नहीं है, बल्कि उत्पादन दोगुना हो सकता है.

देश का पहला प्राकृतिक खेती का सैंटर भी इस विश्वविद्यालय के अधीन भीलवाड़ा में कार्यरत है. डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि एमपीयूएटी के अंतर्गत 8 कृषि विज्ञान केंद्र हैं, जबकि 9वां कृषि विज्ञान केंद्र विद्याभवन में चल रहा है, लेकिन वह भी इसी विश्वविद्यालय का अहम हिस्सा है.

उन्होंने बताया कि एमपीयूएटी ने वर्ष 2024 में 24 पेटेंट प्राप्त किए. यह पेटेंट किसी सिफारिश से नहीं, बल्कि भारत सरकार के कठिन नियमशर्तों पर खरे उतरने पर मिले. मिलेट्स की दिशा में भी एमपीयूएटी ने सराहनीय काम किए. अब जरूरत है तकनीक को विश्वविद्यालय हित में मोनीटाइजेशन किया जाए.

आंरभ में पूर्व छात्र परिषद के संरक्षक डा. आरबी दुबे ने बताया कि जुलाई, 1955 में स्थापित राजस्थान कृषि महाविद्यालय से अब तक 4,441 छात्रछात्राएं स्नातकोत्तर, 3013 स्नातक, जबकि 883 विद्यार्थी पीएचडी डिगरी प्राप्त कर चुके हैं. विगत 5 सालों में 915 विद्यार्थियों का देशविदेश में विभिन्न सेवाओं में चयन हुआ है.

पूर्व छात्र डा. लक्ष्मण सिंह राठौड़, पूर्व कुलपति उमाशंकर शर्मा के अलावा पूर्व छात्र परिषद के पदाधिकारी डा. आरबी दुबे, डा. एनस बारहट, डा. जेएल चौधरी, डा. दीपांकर चक्रवर्ती, डा. सिद्धार्थ मिश्रा आदि ने अतिथियों को साफा, पुष्पगुच्छ, स्मृति चिन्ह दे कर सम्मानित किया.

समारोह में पूर्व छात्र परिषद की ओर से 30 से ज्यादा छात्रछात्राओं, शिक्षकों, किसानों को सम्मानित किया गया. सम्मानित होने वाले प्रमुख नाम किसान राधेश्याम कीर, रमेश कुमार डामोर, डा. केडी आमेटा, डा. एस. रमेश बाबू, रजनीकांत शर्मा, डा. भावेंद्र तिवारी, वर्षा मेनारिया व अमीषा बेसरवाल आदि हैं.

कालेज के गलियारों में खूब की हंसीठिठोली, राष्ट्रीय सम्मेलन में शरीक हुए 500 से ज्यादा विद्यार्थी

जीवन के उत्तरार्द्ध में डग भर रहे सैकड़ों पूर्व कृषि छात्रों ने पिछले दिनों एकदूसरे को गले लगा कर न केवल पुरानी यादों को ताजा किया, बल्कि भूलेबिसरे किस्सों को याद करते हुए खूब अट्ट़हास किए. मौका था- राजस्थान कृषि महाविद्यालय पूर्व छात्र परिषद के 23वें राष्ट्रीय सम्मेलन का. पूर्व छात्रों के सम्मेलन में देशविदेश के 500 से ज्यादा छात्र शामिल हुए.

पूर्व छात्रों ने महाविद्यालय के गलियारों में घूमते हुए कालेज के दिनों की यादों को ताजा किया. साथ ही, एकदूसरे से जुड़ने, मोबाइल नंबर लेतेदेते हुए भविष्य में नित्य एकदूसरे से बतियाने का वादा किया.

उल्लेखनीय है कि इस महाविद्यालय ने विश्वस्तरीय वैज्ञानिक दिए हैं. पद्मश्री डा. आरएस परोदा, डा. एसएल मेहता, डा. पीके दशोरा, डा. लक्ष्मण सिंह राठौड़, डा. भागीरथ चौधरी जैसे अनेकानेक नाम हैं, जिन्होंने देशविदेश में नाम किया.

इस मौके पर पूर्व छात्र परिषद के अध्यक्ष डा. नरेंद्र सिंह बारहठ ने कहा कि परिषद की ओर से अगले वर्ष से प्रतिभावन छात्रछात्राओं को 6 स्कौलरशिप प्रदान की जाएगी. उन्होंने बताया कि पूर्व छात्र परिषद को निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) वाला बनाने के प्रयास होंगे. इस के अलावा परिषद के तत्वावधान में प्रति वर्ष पूर्व छात्रों की क्रिकेट प्रतियोगिता आयोजित होगी.

इस मौके पर परिषद की ओर से पूर्व छात्रों के लिए अतिथिगृह बनाने की पेशकश की गई. साथ ही, इस के लिए कुलपति से जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया. अतिथिगृह बनाने के लिए प्रयोग पूर्व छात्र ने अपने जन्मदिन पर एक हजार रुपए देने की घोषणा की.

कालेज के पूर्व छात्र रहे डा. डीपी शर्मा की स्मृति में उन की बहन हेमलता ने परिषद को 2 लाख रुपए भेंट किए. स्वर्ण जयंती की दहलीज पर पहुंच चुके राजस्थान कृषि महाविद्यालय की नींव जुलाई, 1955 में डा. ए. राठौड़ ने रखी. आरंभ में अतिथियों ने पूर्व छात्र परिषद की स्मारिका का विमोचन भी किया गया.

फसल अवशेष (Crop Residues) हैं कमाई का जरीया

उमरिया : कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी धरणेन्द्र कुमार जैन के संज्ञान में यह बात आई है कि वर्तमान में गेहूं एवं धान की फसल कटाई अधिकांशतः कंबाइंड हार्वेस्टर से की जाती है. कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) से भूसा न बना कर जला देने और धान के पैरा यानी पुआल को जला देने से धान का पुआल एवं भूसे की आवश्यकता पशु आहार के साथ ही अन्य वैकल्पिक रूप में एकत्रित भूसा ईंटभट्ठा एव अन्य उद्योग भी प्रभावित होते हैं. गेहूं एवं धान के पुआल की मांग प्रदेश के अन्य जिलों के साथ अनेक प्रदेशों में भी होती है. एकत्रित भूसा 4-5 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर विक्रय किया जा सकता है.

इसी तरह गेहूं का पुआल भी बहुपयोगी है. पर्याप्त मात्रा में भूसा/पुआल उपलब्ध न होने के कारण पशु अन्य हानिकारक पदार्थ जैसे पौलीथिन आदि खाते हैं, जिस से वे बीमार होते हैं और अनेक बार उन की मृत्यु हो जाने से पशुधन की हानि होती है.

नरवाई का भूसा 2-3 माह बाद दोगुनी कीमत पर विक्रय होता है और किसानों को यही भूसा बढ़ी हुई कीमतों पर खरीदना पड़ता है. साथ ही, नरवाई एवं धान के पुआल में आग लगाना खेती के लिए नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है. इस की वजह से विगत सालों में गंभीर आग लगने की घटनाएं होने से बड़े पैमाने पर संपत्ति की हानि हुई है.

गरमी के सीजन में बढ़ते जल संकट में बढ़ोतरी के साथ ही कानून व्यवस्था के विपरीत परिस्थितियां बन जाती हैं. खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जनधन, संपत्ति, प्राकृतिक वनस्पति एव जीवजंतु आदि नष्ट होने से व्यापक नुकसान होने के साथ ही खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं के नष्ट होने से खेत की उर्वराशक्ति धीरेधीरे घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

वहीं खेत में पड़ा कचरा, भूसाडंठल सड़ने पर भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं, जिन्हें जला कर नष्ट करना ऊर्जा को नष्ट करना है. आग जलाने से हानिकारक गैसों के उत्सर्जन से पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ रहा है. ऐसी स्थिति में गेहूं एवं धान की फसल कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) और धान के पुआल को जलाना प्रतिबंधित करने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के अंतर्गत प्रतिबंधात्मक आदेश जारी करना आवश्यक है. अत्यावश्यक परिस्थितियां बनने व समयाभाव के कारण सार्वजनिक रूप से जनसामान्य को सूचना दे कर आपत्तियों को सुना जाना संभव नहीं है.

कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के अंतर्गत जनसामान्य के हित सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा, पर्यावरण की हानि रोकने एंव लोक व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रत्येक कंबाइंड हार्वेस्टर के साथ भूसा तैयार करने के लिए स्ट्रा रीपर अनिवार्य करते हुए संपूर्ण उमरिया जिले की राजस्व सीमा क्षेत्र में गेहूं एव धान की फसल कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) और धान के पुआल को जलाने (आग लगाए जाने) को एकपक्षीय रूप से प्रतिबंधित किया है. आदेश का उल्लंघन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 के अंतर्गत दंडनीय होगा.

सपनों को हकीकत में बदलने की बानगी है “बुरहानपुर का बनाना पाउडर”

भोपाल : मध्य प्रदेश का एक छोटा सा जिला बुरहानपुर बरसों से अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और हरेभरे खेतों के लिए प्रसिद्ध है. अब यह जिला “एक जिला एक उत्पाद” की पहल के तहत सफलता के नए आयाम गढ़ रहा है. केले की फसल, जो कि इस जिले की मूल पहचान है, अब न केवल किसानों की आय बढ़ा रही है, बल्कि एक नई उद्यम क्रांति का प्रतीक भी बन गई है.

“बनानीफाय” का बनाना पाउडर न केवल आर्थिक समृद्धि ला रहा है, बल्कि यह एक उदाहरण है कि सही दिशा में किए गए प्रयास किस तरह से छोटे जिलों को भी अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिला सकते हैं. बुरहानपुर के मस्त केले अब सबकी जुबां पर मिठास घोल रहे हैं.

इसी साल फरवरी में हुए “बनाना फेस्टिवल” में यहां के उद्यमियों और किसानों के बीच संवाद का परिणाम अब धरातल पर नजर आ रहा है. इसी प्रेरणा से बुरहानपुर के उद्यमी रितिश अग्रवाल ने “बनाना पाउडर” बनाने की यूनिट लगाई है. यह यूनिट जिला प्रशासन और उद्यानिकी विभाग के सहयोग से खकनार के धाबा गांव में चलाई जा रही है.

“बनानीफाय” ब्रांड के नाम से तैयार किया जा रहा यह बनाना पाउडर शारीरिक पोषण से भरपूर है. यह बच्चों और बड़ों सभी के लिए ऊर्जा और सेहत का खजाना है. इस यूनिट में केले से 3 प्रकार का पाउडर तैयार किया जा रहा है. खाने योग्य पाउडर (केले के गूदे से), जो कि शुद्ध और बेहद उच्च गुणवत्ता वाला है. सादा पाउडर (केले के छिलके सहित), जो खाने योग्य है और फाइबर से भी भरपूर है. केले के छिलके से तैयार पाउडर को खाद (मैन्योर) के रूप में उपयोग किया जाएगा. इस के उपयोग से सभी प्रकार की फसलों की गुणवत्ता एवं उत्पादन मात्रा में भी सुधार होगा.

इस प्रोजैक्ट को “प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्यम उन्नयन योजना” के तहत 10 लाख रुपए की सब्सिडी प्राप्त हुई. कुल 75 लाख रुपए पूंजी निवेश से बनी यह यूनिट एक मिसाल बन गई है. इस में अहमदाबाद से लाई गई आधुनिक मशीनों का उपयोग किया जा रहा है, जो उत्पादन प्रक्रिया को तेज और कुशल बनाती है.

Banana Powder

“बनानीफाय” ब्रांड के उत्पादों को न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों में भी भेजा जा रहा है. इस के 250 ग्राम और 500 ग्राम के पैकेट क्रमशः 280 रुपए और 480 रुपए की कीमत पर उपलब्ध हैं.

यूनिट की खासियत यह है कि यहां केले के छिलके को भी बेकार नहीं जाने दिया जाता. छिलकों से बना पाउडर नर्सरियों और उद्यानिकी फसलों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा. यह पर्यावरणीय संरक्षण और कृषि उत्पादकता बढ़ाने का एक बेहतरीन उदाहरण है.

नेपानगर की विधायिका मंजू दादू और कलक्टर, बुरहानपुर, भव्या मित्तल द्वारा शुभारंभ की गई यह यूनिट अब न केवल बुरहानपुर के किसानों और उद्यमियों के लिए प्रेरणा बन गई है, बल्कि यह यूनिट “एक जिला एक उत्पाद” योजना की वास्तविक सफलता का प्रतीक बन गई है.

सांगोद में कृषि मेला : ऊर्जा मंत्री का नवीन तकनीक अपनाने पर जोर

जयपुर : कोटा जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग के संयुक्त तत्वावधान में कृषि एवं कृषि से संबंधित विभागों की विभिन्न लोक हितकारी योजनाएं, नवीन अनुसंधानों और कृषि विभाग के नूतन आयामों को किसानों एवं हितकारकों के मध्य लोकप्रिय बनाने के लिए पिछले दिनों कृषि उपज मंडी, सांगोद में ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर के मुख्य आतिथ्य में किसान मेले का आयोजन किया गया.

ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर ने उपस्थित किसानों एवं हितधारकों को अधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने, प्रचलित आधुनिक तकनीक जैसे नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी के उपयोग को बढ़ाने, कृषि विभाग की नवीनतम तकनीक अपनाने के लिए भी प्रेरित किया.

उन्होंने किसानों का आव्हान किया कि वे अधिक उपज देने वाली किस्मों को बढ़ावा दें एवं जल बचत के लिए फव्वारा सिंचाई विधि व बूंदबूंद सिंचाई विधि को अपनाएं. साथ ही, जिले की प्रमुख फसलों प्रमुखतया सोयाबीन, लहसुन, चना आदि पर नवीनतम अनुसंधान एवं तकनीक को किसानों को अधिक से अधिक पहुंचाने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया.

मंत्री हीरालाल नागर ने आगामी 2 सालों में किसानों को दिन के समय 6 घंटे बिजली उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया. साथ ही, सोलर ऊर्जा को अधिक से अधिक प्रोत्साहित करने एवं उपयोग करने के लिए निर्देशित किया.

संयुक्त निदेशक, कृषि विस्तार रवींद्र कुमार जैन ने बताया कि मेले में कृषि, उद्यान, पशुपालन, डेयरी, सहकारिता विभाग, कृषि विश्वविद्यालय, कोटा, कृषि विज्ञान केंद्र, बोरखेड़ा, कोटा, नीबू उत्कृष्टता केंद्र, नान्ता फार्म, कोटा, राजीविका विभाग, नाबार्ड एवं एलडीएम, कृषि विपणन विभाग, राजस्थान बीज निगम, कोटा, राष्ट्रीय बीज निगम, इफको, कृभको, रामशांताय जैवी कृषि अनुसंधान केंद्र, जाखोड़ा, कोटा एवं चंबल फर्टिलाइजर एंड कैमिकल लिमिटिड, गढ़ेपान, कोटा द्वारा विभागीय योजनाओं, कृषि नवाचार एवं संस्थानिक योजनाओं की जानकारी दी गई.

साथ ही, शरणागति एफपीओ की निदेशक दुर्गेश कुमारी द्वारा ड्रोन के माध्यम से छिडकाव का लाइव प्रदर्शन किया गया.  उद्यान विभाग एवं सौर ऊर्जा निर्माता कंपनी के संयुक्त तत्वावधान में सोलर ऊर्जा का लाइव प्रदर्शन किया गया. राजीविका के स्वयं सहायता समूह को 1.34 करोड़ रुपए का चेक दिया गया.

प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना से मिली सफलता की कहानी किसान की जबानी

विदिशा : बासौदा जनपद पंचायत के ग्राम राजोदा के किसान वीर सिंह जाटव ने प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना से कृषि कार्यों में मिली मदद और लाभ के चलते किस तरह खेती लाभ का धंधा बनी और मिट्टी परीक्षण के क्या फायदे हुए हैं की कहानी अपनी ही जबानी प्रस्तुत की है.

किसान वीर सिंह जाटव बताते हैं कि साल 2023-24 में वे कृषि विभाग बासौदा के संपर्क में आए और गांव में आयोजित प्रशिक्षण में किसानों को प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के अंतर्गत खेत की मिट्टी की जांच कराने की सलाह दी. साथ ही, मिट्टी के नमूने लेने की विधि एवं सरसों फसल की नवीन तकनीकी की जानकारी के साथसाथ अन्य जानकारियां भी मिली.

साल 2023-24 (रबी) सीजन में उन्होंने अपने खेत का मिट्टी नमूना ले कर कृषि विभाग बासौदा में दिया. उस के बाद मिट्टी की जांच कर उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड बना कर दिया गया और बताया गया कि मिट्टी का स्वास्थ्य कैसा है, क्या कमी है सहित अन्य जानकारियां दी गई. उस के बाद किसान ने रबी मौसम में सरसों फसल की बोआई एक एकड़ में की, जिस में संतुलित बीज व संतुलित उर्वरक में डीएपी 25 किलोग्राम, यूरिया 40 किलोग्राम और जिंक सल्फेट 10 किलोग्राम की उचित मात्रा प्रयोग की गई, जिस का खर्च लगभग 1,000 रुपए आया.

सरसों की फसल लगाने में खेत की तैयारी, बीज, उर्वरक, 1 सिंचाई, दवा और अन्य खर्चे मिला कर कुल लागत औसतन 13 हजार  से 15 हजार रुपए प्रति एकड़ (सरसों की फसल में कम मात्रा में बीज व उर्वरक, एक सिंचाई फसल बोआई के लगभग 35 दिन की अवस्था पर, उचित समय पर बोआई करने से कीट व रोगों का कम प्रकोप हुआ. जिस के फलस्वरूप लागत भी कमी आई और सरसों की फसल में विशेष तौर पर पशुओं के प्रकोप से भी नुकसान नहीं हुआ और सरसों फसल की कुल उपज 08.25 क्विंटल प्रति एकड़, जिस से एमएसपी के विक्रय मूल्य आय 46,610 रुपए प्राप्त हुई और शुद्ध आय औसतन 32,610 रुपए प्राप्त हुई.

किसान वीर सिंह जाटव बताते हैं कि उन्हें अच्छा लाभ प्राप्त हुआ और खेती लाभ का धंधा बनी. उन्होंने अब उन सभी खेतों की मिट्टी का परीक्षण करा लिया है. साथ ही, दूसरे किसानों को भी मिट्टी परीक्षण कराने के लिए प्रेरित करते हैं. सरसों की फसल को भी दूसरे किसानों ने पसंद किया और अगले वर्ष फसल लगाने व मिट्टी परीक्षण करने के लिए प्रेरित हुए हैं.

किसान वीर सिंह जाटव ने प्रधानमंत्री की प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना और कृषि विभाग बासौदा के अधिकारियो के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया है. वे बताते हैं कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का लाभ लेने से पहले वे साधारण खेती करते थे, जिस में वह खरीफ व रबी मौसम में लगाने वाली फसलों में एकदूसरे की देखादेखी फसलों में अंधाधुंध और मनमाने तरीके से खाद व उर्वरकों का प्रयोग करते थे, जिस से अधिक खर्च होता था. लेकिन अब उन के खर्चों में बहुत कमी आ गई है और खेती लाभ का धंधा बन गई है.

कृषि उत्पाद प्रोसैसिंग (Agricultural Product Processing) में हैं अनेक संभावनाएं

प्रतापगढ़ : 21 नवंबर, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अंर्तगत कार्यरत अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना के तहत प्रोजैक्ट “तकनीकी हस्तक्षेप और उद्यमशीलता विकास के माध्यम से लैंगिक समानता को बढ़ावा देना के अंतर्गत लहसुन एवं मूंगफली के उत्पादों में उद्यमशीलता की संभावनाएं” विषय पर बम्बोरी गांव, थाना छोटी सादड़ी, प्रतापगढ़ की महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई.

परियोजना प्रभारी डा. विशाखा सिंह ने महिलाओं को लहसुन एवं मूंगफली से बनने वाले उत्पादों जैसे लहसुन पाउडर, चटनी, फ्लैक्स, अचार, मूंगफली की चिक्की, तेल आदि की बाजार में भारी मांग रहती है. यह कृषि उत्पाद आप के गांव में कच्चे माल के रूप में सस्ते दाम पर उपलब्ध हैं, इसलिए इन उत्पादों के उद्यमशीलता से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. यह काम सीखने के लिए आप को प्रशिक्षण के माध्यम से कुशल बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता रहा है. वैज्ञानिक डा. सुमित्रा मीना ने उत्पादों की पैकिंग, लेबलिंग एवं लागत का लेखाजोखा रखने के संबंध में जागरूक किया.

वैसे भी अनेक तरह के कृषि उत्पादों की प्रोसैसिंग के लिए समयसमय पर ट्रेनिंग होती रहती हैं. अनेक प्रोसैसिंग मशीनें भी उपलब्ध हैं, जो इस काम को आसान बनाते हैं.

प्रशिक्षण आयोजन में सरपंच पुष्पा देवी एव प्रगतिशील किसान मांगीलाल का विशेष संयोग रहा. कार्यक्रम का संचालन दीपाली चंदवानी ने किया.