दिसंबर (December) महीने के जरूरी काम

आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.

* दिसंबर महीने में गेहूं की पछेती किस्मों की बोआई की जाती है. इस बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 125 किलोग्राम बीज का इस्तेमाल करें. बोआई के दौरान कूंड़ों के बीच 15 सैंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए.

* दिसंबर महीने का अहम काम गन्ने की फसल की कटाई का होता है. इस दौरान गन्ने की तमाम किस्में कटाई के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती हैं. किसान जरूरत और सुविधा के मुताबिक गन्ने की कटाई का काम निबटा सकते हैं.

* शरदकालीन गन्ने के खेतों में अगर नमी कम महसूस हो, तो जरूरत के मुताबिक सिंचाई करना न भूलें.

* गन्ने के साथ अगर तोरिया या राई वगैरह फसलें भी लगी हों, तो जरूरत के मुताबिक उन की निराईगुड़ाई करें. इस से गन्ने की फसल को भी फायदा होगा.

* इस माह मटर की फसल में फूल आने का वक्त होता है, इसलिए फूल आने से पहले मटर के खेतों की सिंचाई कर दें. ऐसा करने से फूल व फलियां बेहतर तरीके से आती हैं.

* मटर की फसल में तनाछेदक और फलीछेदक कीटों के लगने का खतरा रहता है. लिहाजा, उन के प्रति जागरूक रहना जरूरी है.

December Work

* सरसों के खेत में अगर पौधे ज्यादा घने लगे हों, तो बीचबीच से फालतू पौधे उखाड़ कर अपने मवेशियों को चारे के तौर पर खिला दें. सरसों के फालतू पौधों के साथसाथ खेत से तमाम खरपतवार भी निकाल दें.

* मसूर की दाल की बोआई का काम भी नवंबर माह में पूरा कर लिया जाता है. फिर भी अगर अभी तक मसूर की बोआई न हो पाई हो, तो उसे फौरन करें.

* आलू के खेतों का ध्यान रखें. जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें और पौधों में बाकायदा मिट्टी चढ़ा दें. निराईगुड़ाई कर के खेत से खरपतवारों का सफाया करें.

* प्याज की नर्सरी का खयाल रखें और रोपाई का इंतजाम करें. तैयार पौधों की रोपाई इस महीने के आखिर तक कर दें.

* लहसुन के खेतों में अगर नमी कम नजर आए, तो हलकी सिंचाई कर दें. खेत की निराईगुड़ाई करें, ताकि खरपतवार न पनप सकें.

* दिसंबर महीने में अकसर लीची के छोटे पेड़ पाले की गिरफ्त में आ जाते हैं. बचाव के लिए इन पेड़ों को 3 तरफ से छप्पर से कवर कर दें, सिर्फ पूर्वीदक्षिणी सिरा देखभाल के लिए खुला रखें.

* लीची के फल वाले बड़े पेड़ों में 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद प्रति पेड़ की दर से डालें. सभी पेड़ों में 600 ग्राम फास्फोरस भी डालें. बीमार और खराब शाखाओं को पेड़ों से तोड़ कर बाग से दूर ले जा कर जमीन में दबा दें.

* यह आम का मौसम नहीं होता है, मगर आम के बागों की सफाई जरूर करें. आम के 10 साल या उस से पुराने पेड़ों में 1 किलोग्राम पोटाश और 750 ग्राम फास्फोरस प्रति पेड़ की दर से डालें. ये चीजें तनों से 1 मीटर का फासला छोड़ कर थालों में डालें.

* मिली बग कीटों से आम के पेड़ों को महफूज रखने के लिए तने के चारों ओर 2 फुट की ऊंचाई पर 400 गेज वाली 30 सैंटीमीटर पौलीथिन शीट की पट्टी बांधें. पट्टी के निचले किनारे पर अच्छी तरह ग्रीस लगा दें.

* नए बागों में लगे आम के छोटे पौधों को दिसंबर माह में पड़ने वाले पाले से बचाना लाजिमी है. इस के लिए फूस के छप्पर का इस्तेमाल करें. बीचबीच में सिंचाई करते रहें.

* अपने मुरगेमुरगियों को ठंड से बचाने का पूरा इंतजाम करें.

* अगर मुरगीपालन का ज्यादा तजरबा न हो, तो कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से सलाह ले कर मुरगेमुरगियों की हिफाजत का पुख्ता बंदोबस्त करें.

* इस महीने की सर्दी मवेशियों के लिए भी बेहद खतरनाक होती है. लिहाजा, सजग रहें. रात के वक्त गायभैंसों को बंद कमरों में रखें व लाइट लगातार जलने दें. रोशनी के लिए पीली लाइट इस्तेमाल करें, क्योंकि वह दूधिया लाइट के मुकाबले ज्यादा गरम होती है.

* अगर पशुओं को बरामदे में बांधते हैं, तो रात के वक्त मोटेमोटे परदे जरूर लगाएं. सुबहशाम कंडे की आंच जला कर पशुओं को गरमी दें. धुएं से मच्छर भी भाग जाते हैं.

* दिन के वक्त पशुओं को धूप में जरूर बांधें. यह सेहत के लिहाज से जरूरी है.

चने की खेती (Gram Cultivation) और उपज बढ़ाने के तरीके

भारत में बडे़ पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.

चने की खेती भारतीय कृषि में एक प्रमुख स्थान रखती है. विशेष रूप से यह उत्तर और मध्य भारत के राज्यों में उगाई जाती है.

चना भारतीय भोजन का एक अभिन्न हिस्सा है, जो दाल, सब्जी और स्नैक्स जैसे विविध व्यंजनों में उपयोग किया जाता है. पारंपरिक चने की खेती में कई चुनौतियां होती हैं, जैसे कि कम उत्पादन, रोगों व कीटों से सुरक्षा में कमी और सीमित संसाधनों का उपयोग.

इन समस्याओं का समाधान करने के लिए उन्नत खेती की तकनीकें और विधियां अपनाई जा रही हैं. उन्नत खेती का मकसद न केवल उत्पादन को बढ़ाना है, बल्कि फसल की गुणवत्ता को सुधारना और खेती की लागत को कम करना भी है.

उन्नत खेती की तकनीकों में नई किस्मों का चयन, वैज्ञानिक तरीके से उर्वरक प्रबंधन, प्रभावशाली सिंचाई और रोग व कीट नियंत्रण के उपाय शामिल हैं. इन तकनीकों को अपनाने से किसानों को उच्च उत्पादन, बेहतर फसल गुणवत्ता और आर्थिक लाभ प्राप्त होता है.

चने की उन्नत खेती की विधियां, खेत की तैयारी और चयन

चने की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चयन करना बहुत ही जरूरी है. इस के लिए उपजाऊ मिट्टी का चयन करें, जिस में जीवांश और पोषक तत्त्वों की पर्याप्त मात्रा हो. मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए.

खेत की अच्छी तरह से जुताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाएं. अगर मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी है, तो उर्वरकों का प्रयोग करें.

बीज का चयन : उन्नत किस्मों के बीजों का चयन करें, जो उच्च उपज देने वाले हों और रोग प्रतिरोधी हों. बीजों की गुणवत्ता और शुद्धता की जांच करें. बीजों का चयन करते समय जलवायु और मिट्टी के अनुसार उपयुक्त बीजों की बोआई करें.

चने की खेती (Gram Cultivation)

चने की प्रमुख किस्में और उन की विशेषताएं

पूसा 372 : यह किस्म उच्च उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी है. इस की उपज 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 120-130 दिन है. यह फुसैरियम विल्ट और राइजोक्टोनिया रोग के प्रति प्रतिरोधी है.

काबुली चना 11 : यह किस्म जलवायु परिवर्तन के मुताबिक अनुकूल और उच्च उपज देने वाली है. इस की उपज 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 100-110 दिन है. यह फुसैरियम विल्ट और राइजोक्टोनिया रोग के प्रति प्रतिरोधी है.

हिमालयन 95 : यह किस्म उच्च उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी है. इस की उपज 22-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 110-120 दिन है. यह फुसैरियम विल्ट और राइजोक्टोनिया रोग के प्रति प्रतिरोधी है.

पूसा 112 : यह किस्म जलवायु परिवर्तन के मुताबिक अनुकूल और उच्च उपज देने वाली है. इस की उपज 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 120-130 दिन है. यह फुसैरियम विल्ट और राइजोक्टोनिया रोग के प्रति प्रतिरोधी है.

विजय : यह किस्म उच्च उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी है. इस की उपज 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 100-110 दिन है. यह फुसैरियम विल्ट और राइजोक्टोनिया रोग के प्रति प्रतिरोधी है.

काशी चना 1 : यह किस्म उच्च उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी है. इस की उपज 22-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 110-120 दिन है. यह फुसैरियम विल्ट और राइजोक्टोनिया रोग के प्रति प्रतिरोधी है.

पंत चना 234 : यह किस्म जलवायु परिवर्तन के मुताबिक अनुकूल और उच्च उपज देने वाली है. इस की उपज 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 120-130 दिन है. यह फुसैरियम विल्ट और राइजोक्टोनिया रोग के प्रति प्रतिरोधी है.

राज चना 201 : यह किस्म उच्च उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी है. इस की उपज 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 100-110 दिन है. यह फुसैरियम विल्ट और राइजोक्टोनिया रोग के प्रति प्रतिरोधी है.

एचके 11 : यह किस्म उच्च उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी है. इस की उपज 22-28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और अवधि 110-120 दिन है. यह फुसैरियम विल्ट और राइजोक्टोनिया रोग के प्रति प्रतिरोधी है.

बीजों का उपचार

चने की खेती में बीजों का उपचार एक महत्त्वपूर्ण चरण है, जो बीजों की गुणवत्ता और फसल की उत्पादकता को बढ़ाने में मदद करता है. बीजों के उपचार के मुख्य उद्देश्य हैं, बीजों की गुणवत्ता में सुधार करना, बीजों की अंकुरण दर बढ़ाना, फसल की उत्पादकता बढ़ाना और कीट व रोगों से बचाव करना.

बीजों के उपचार के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जा सकते हैं. थीरम उपचार एक प्रभावी तरीका है, जिस में थीरम नामक फफूंदनाशक का उपयोग किया जाता है. इस के अलावा कार्बंडाजिम, टाइकोडर्मा, बाविस्टिन और पीएसबी कल्चर जैसे अन्य फफूंदनाशक का उपयोग किया जा सकता है. राइजोबियम नामक जैविक उर्वरक का उपयोग कर के बीजों को नाइट्रोजन दी जा सकती है.

बीजों के उपचार की विधि बहुत ही आसान है. सब से पहले बीजों को साफ किया जाता है. इस के बाद बीजों को उपचारित करने वाले कैमिकल के साथ मिलाया जाता है. बीजों को 10-15 मिनट तक उपचारित किया जाता है. इस के बाद बीजों को सुखाया जाता है और फिर बोया जाता है.

बोआई

सर्दियों की फसल के लिए अक्तूबरनवंबर माह में बोआई करें. बीजों को 3-4 सैंटीमीटर की गहराई और 10-15 सैंटीमीटर की दूरी पर बोएं. बोआई से पहले बीजों को जरूर उपचारित करें. बोआई के बाद खेत को अच्छी तरह पानी दें.

सिंचाई प्रबंधन

चने को मध्यम सिंचाई की जरूरत होती है. पहली सिंचाई बोआई के 20-25 दिन बाद करें. उस के बाद 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें. सिंचाई के समय मिट्टी की नमी की जांच करें. सिंचाई की अधिक मात्रा से बचें, क्योंकि इस से फसल को नुकसान पहुंच सकता है.

निराईगुड़ाई

नियमित रूप से निराईगुड़ाई करें, ताकि खरपतवार न हों और मिट्टी में हवा और पानी का संचार होता रहे. निराईगुड़ाई से फसल की बढ़वार में मदद मिलती है. निराईगुड़ाई के समय फसल को नुकसान न पहुंचे. निराईगुड़ाई के लिए उचित समय और तरीके का चयन करें.

उर्वरक प्रबंधन

चने के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश  की जरूरत होती है. बोआई से पहले 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ की दर से डालें. उर्वरकों का उपयोग फसल की बढ़ोतरी में मदद करता है. उर्वरकों की अधिक मात्रा से बचें, क्योंकि इस से फसल को नुकसान पहुंच सकता है.

कीट व रोग प्रबंधन

चने में लगने वाले कीटों व रोगों से बचाव के लिए नियमित रूप से निरीक्षण करें. जरूरत के मुताबिक ही कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का छिड़काव करें. जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें. फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों व रोगों की पहचान करें और उन के नियंत्रण के लिए उचित तरीके अपनाएं.

चने में लगने वाले कीट

तेला  : यह कीट चने की फसल को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इस के नियंत्रण के लिए  इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल की 20 मिलीलिटर प्रति एकड़ या क्लोरपायरीफास 20 ईसी की 200 मिलीलिटर प्रति एकड़ की दर से छिड़कें.

हरा तेला : यह कीट चने की पत्तियों और फलियों को नुकसान पहुंचाता है. इस के नियंत्रण के लिए स्पिनोसैड 45 एससी की 20 मिलीलिटर प्रति एकड़ या बेसिलस थ्यूरिजिएंसिस 5 डब्ल्यूपी की 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

माहू : यह कीट चने की पत्तियों और तनों पर हमला करता है. इस के नियंत्रण के लिए डिमेथोएट 30 ईसी की 200 मिलीलिटर प्रति एकड़, मैलाथियान 50 डब्ल्यूपी की 200 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

चने में लगने वाले रोग

फुसैरियम विल्ट : यह रोग चने की फसल को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इस रोग के नियंत्रण के लिए कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी की 200 ग्राम प्रति एकड़, मैंकोजेब 75 डब्ल्यूपी की 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

राइजोक्टोनिया : यह रोग चने की फसल की जड़ों को नुकसान पहुंचाता है. इस के नियंत्रण के लिए क्लोरोथैलोनिल 75 डब्ल्यूपी की 400 ग्राम प्रति एकड़, प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी की 200 मिलीलिटर प्रति एकड़ का छिड़काव करें.

पाउडरी मिल्ड्यू : यह रोग चने की पत्तियों पर हमला करता है. इस के नियंत्रण के लिए ट्राइडेमोर्फ 25 डब्ल्यूपी की 200 ग्राम प्रति एकड़, डिनोकैप 25 की 200 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.

सुरक्षा उपाय

* कीटनाशकों और फफूंदनाशकोें का उपयोग करते समय सुरक्षा उपकरण पहनें.

* कीटनाशकों और फफूंदनाशकोें का उपयोग करने से पहले निर्देशों को पढ़ें.

* कीटनाशकों और फफूंदनाशकोें का उपयोग करने के बाद हाथ धो लें.

* कीटनाशकों और फफूंदनाशकोें का उपयोग करने से पहले फसल की स्थिति की जांच करें.

चने की खेती (Gram Cultivation)

फसल कटाई

चने की फसल कटाई का समय आमतौर पर 100 से 120 दिनों के बीच होता है. जब फसल पूरी तरह पक जाती है और दाने सूख जाते हैं.

फसल कटाई के तरीके

मैनुअल कटाई : छोटे खेतों में फसल को हाथ से काटा जाता है.

मेकैनाइज्ड कटाई : बडे़ खेतों में फसल को मशीन से काटा जाता है.

कंबाइन हार्वेस्टर : यह मशीन फसल को काटती है, दाने को अलग करती है और साफ करती है.

फसल कटाई के बाद की प्रक्रिया

* दाने की साफसफाई.

* दाने की गुड़ाई.

* दाने का भंडारण.

* दाने की पैकेजिंग और बिक्री.

उन्नत खेती के लाभ

उन्नत खेती की तकनीकों और विधियों को अपनाने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं :

उत्पादन में वृद्धि : उन्नत खेती की तकनीकें जैसे वैज्ञानिक उर्वरक प्रबंधन, नई किस्मों का चयन और आधुनिक सिंचाई विधियां उच्च उत्पादन सुनिश्चित करती हैं. इस से किसानों की आय बढ़ती है और खाद्य सुरक्षा में सुधार होता है.

खेती की लागत में कमी : उन्नत विधियां जैसे ड्रिप इरिगेशन और सूक्ष्म उर्वरक प्रबंधन संसाधनों के कुशल उपयोग की अनुमति  देती हैं, जिस से लागत कम होती है. इस से किसानों को अधिक लाभ प्राप्त होता है.

फसल की गुणवत्ता में सुधार : उन्नत तकनीकों का उपयोग फसल की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है. नई किस्में और प्रभावी उर्वरक प्रबंधन से चने की फसल का स्वाद, पोषण और उपज गुणवत्ता में सुधार होता है.

पर्यावरणीय संरक्षण : उन्नत खेती तकनीकें पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में सहायक होती हैं. उर्वरक का उचित प्रबंधन, पानी की निकासी कम, कीटनाशक का उपयोग और सतत कृषि विधियां पर्यावरण की रक्षा करती हैं और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखती हैं.

रोग व कीट प्रबंधन : उन्नत खेती में रोगों और कीटों का प्रबंधन अधिक प्रभावी ढंग से किया जाता है. नई तकनीकें व उन्नत कीटनाशक और फफूंदीनाशक का उपयोग फसल को रोगों व कीटों से बचाता है.

डेयरी की खास चारा कटर मशीन

खेती के साथ ही किए जाने वाले कामों में पशुपालन भी एक खास काम है. पशुपालन में चारे का अहम रोल है खासकर डेयरी फार्मिंग में.  बहुत से किसान दुधारू पशुओ को  पाल कर डेयरी रोजगार से अच्छाखासा मुनाफा कमाते हैं.

किसानों के पास खेती की जमीन भी होती है, जिस में वह चारा फसल ज्वार, बाजरा, लोबिया, ग्वार, बरसीम, जई आदि फसलें उगा कर पशु के लिए चारे का इंतजाम करते हैं. हालांकि, 1-2 पशु रखने वाले किसान कुट्टी या चारा काटने के लिए हाथ से चलने वाली मशीन लगा कर रखते हैं, जिसे आम बोलचाल में टोका मशीन यानी गंड़ासा कहा जाता है.

इसी मशीन से किसान चारे की कटाई कर पशुओं को चारा खिलाते हैं. कुछ हरे चारे जैसे बरसीम, जई आदि तो इस मशीन से सरलता से कट जाते हैं, लेकिन जब ज्वार बाजरा, गन्ना (अंगोला), मक्का जैसी फसल से चारा बनाना हो, तो उन की कटाई में काफी मेहनत लगती है.

तब हमें जरूरत महसूस होती है किसी शक्ति चालित चारा कटाई मशीन की, जिस से कम मेहनत और कम समय में अधिक चारे की कटाई हो सके.

पशुपालकों और किसानों की इस समस्या का समाधान करती हैं पावर चालित एवं ट्रैक्टर चालित चारा काटने वाली मशीनें.

यहां ट्रैक्टर से चलने वाली कुट्टी मशीन के बारे में जानकारी दी गई है. यह चारा कटाई मशीन किसी भी तरह के चारे को आसानी से काट सकती है. ट्रैक्टर या इंजन चालित और बिजली से चलने वाली इस मशीन को चाफ कटर भी कहा जाता है.

ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाई जाने वाली यह मशीन कम समय में अधिक चारे की कटाई आसानी से करती है.

चाफ कटर मशीन

इस यंत्र की मदद से किसी भी तरह के चारे को छोटेछोटे साइज में कुट्टी करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. चारा काटने वाली मशीनों में इलैक्ट्रिक चाफ कटर और पोर्टेबल ट्रैक्टर से चलने वाली चारा काटने वाली मशीनें शामिल हैं, हम जिसे चाफ कटर मशीन कहते हैं.

fodder cutter machine

ट्रैक्टर से चलने वाली चारा कटाई मशीनें

ट्रैक्टर से चलने वाली कुट्टी मशीन को ट्रैक्टर के पीछे पीटीओ शाफ्ट से जोड़ कर चलाया जाता है. यह मशीन हर तरह के चारे को आसानी से काट सकती है. यह चाफ कटर मशीन एक आधुनिक हैवी ड्यूटी मशीन है. इस चाफ कटर मशीन का इस्तेमाल ज्यादातर डेयरी फार्मिंग करने वाले लोग भी करते हैं.

ट्रैक्टर से चलने वाली यह चारा कटर मशीन एक हैवी चेसिस फ्रेम के साथ जुड़ी रहती है, जिसे ट्रैक्टर में पीछे जोड़ कर एक जगह से दूसरी जगह आसानी से लाया और ले जाया जा सकता है. इस चाफ/चैफ कटर में एक बड़े ह्वील पर कई सारे हैवी ड्यूटी ब्लेड लगे होते हैं.

ट्रैक्टर से चलने वाली इस कुट्टी मशीन में 2, 3 और 4 ब्लेड लगे होते हैं. पशुपालक अपनी जरूरत के अनुसार ब्लेड की संख्या को कम या ज्यादा कर सकते हैं.

इस कटर मशीन में पीछे की ओर एक गियर भी होता है, जिस की मदद से आप चारे की मोटाई और बारीकी सैट कर सकते हैं. मशीन में गियर सिस्टम भी है. जरूरत पड़ने पर इसे रिवर्स भी घुमा सकते हैं. इस गियर से कटर की स्पीड भी एडजस्ट की जा सकती है.

चारा कटर मशीन से कटा हुआ चारा सीधे जमीन पर गिरता है. अगर आप चाहते हैं कि चारा जमीन पर न गिर कर एक जगह इकट्ठा हो, तो उस के लिए भी बंदोबस्त है. यह मशीन कटाई के बाद चारे को सीधे ही ट्रौली में भी गिरा सकती है.

यह चारा कटाई मशीन कई घंटों तक लगातार काम कर सकती है. इस के लिए किसी खास देखभाल की भी जरूरत नहीं है.

मिनी चारा कटर एग्रोमैक-1000 एम.

सम्यक एग्रो इंडस्ट्रीज के पास चारा काटने वाली मशीनों की कई सीरीज हैं, जिन की अपनी अलगअलग खूबियां हैं.

इस मिनी चारा कटर से ज्वार, बाजरा, गन्ना, बरसीम, सूखा व हरे अन्य चारे कड़वा आदि की कटाई की जाती है.

इस यंत्र में लगे ब्लेड एमएस स्टील के बने होते हैं. इलैक्ट्रिक मोटर के साथ वी वैल्ट पुली के साथ फिट की गई है.

मिनी चारा कटर एग्रोमैक 1000 एम. की खासीयतें

इस में 2 हौर्सपावर की मोटर लगी है और चारा कटाई के लिए 2 ब्लेड लगे हैं. चारे को आगे बढ़ाने के लिए 2 रोलर लगे हैं. इस मशीन के काम करने की कूवत 1000 किलोग्राम प्रति घंटा तक है. हरे व सूखे चारे में बदलाव हो सकता है.

कड़वा कुट्टी मशीन/रोका- एग्रोमैक-200 एचएम

बिजली व हाथ दोनों तरह से चारा काटने वाली इस मशीन को रोका मशीन भी कहते हैं. यह पुराने समय में इस्तेमाल होने वाली चारा मशीन का ही आधुनिकीकरण है. इस में काफी कम बिजली की खपत होती है. अगर बिजली नहीं है, तो काम चलाने लायक चारा हाथ से भी काटा जा सकता है.

यह पावर कम हैंड औपरेटिड चारा कटाई मशीन है, जो सस्ते दाम में बाजार में मिल जाती है. इस रोका (चारा कटाई) मशीन को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में भी इस्तेमाल किया जाता है. यह मशीन ग्राहकों की जरूरत के अनुसार अनेक विशेषताओं में भी मिल जाती है.

डेयरी फार्म व वर्मी कंपोस्ट बनाने वाली इकाइयों में भी यह चारा कटाई मशीन काफी उपयोगी साबित हो रही है.

खासीयतें

इस मशीन को अगर हाथ से न चला कर पावर से चलाना है, तो इस के लिए 1.5 हौर्सपावर की मोटर या 2 हौर्सपावर का इंजन चाहिए.

इस में चारा काटने के लिए 2 ब्लेड लगे होते हैं. इस में चारा आधा इंच से ले कर पौना इंच तक के साइज में काटा जाता है और एक घंटे में लगभग 300 किलोग्राम चारा कट जाता है.

प्रकाश चारा कटर मशीन

यह ट्रैक्टर चालित चारा कटर मशीन है, जो 2, 3 और 4 ब्लेडों में उपलब्ध है. इस मशीन से हरा व सूखा चारा, जिस में ज्वार, बाजरा, मक्का का कड़वा भी काटा जाता है.

इस मशीन में मजबूत फ्रैक और हैवी ड्यूटी गियर होने के कारण मशीन लंबे समय तक काम करती है.

यह चारा कटर मशीन 2 टायरों वाले फ्रैम पर लगी होती है, इसलिए इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से ले जाया जा सकता है.

अधिक जानकारी के लिए फोन नंबर 0562-4042153 या फिर मोबाइल नंबर 09897591803 पर बात कर सकते हैं.

इन कृषि यंत्रों की खरीद पर सरकार की ओर से सब्सिडी का भी लाभ मिलता है.

केंद्र सरकार भी राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत चारा काटने वाली मशीनों पर पशुपालकों और किसानों को अच्छीखासी सब्सिडी देती है. प्रदेश सरकारें भी अपने नियमानुसार छूट देती हैं. यह सब्सिडी 50 फीसदीतक भी हो सकती है या इस से अधिक भी हो सकती है.

गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय  

खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यत: खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है. इन सब के साथसाथ कुछ खरपतवार ऐसे भी होते हैं, जिन के पत्तों और जड़ों से मिट्टी में हानिकारक पदार्थ निकलते हैं. इस से पौधों की बढ़वार पर बुरा असर पड़ता है, जैसे गाजरघास (पार्थेनियम) एवं धतूरा आदि न केवल फार्म उत्पाद की गुणवत्ता को घटाते हैं, बल्कि इनसान और पशुओं की सेहत के प्रति भी नुकसानदायक हैं.

गेहूं की फसल भारत की खेती का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. इस के सफल उत्पादन के लिए खरपतवार नियंत्रण एक अनिवार्य प्रक्रिया है. खरपतवार न केवल फसल की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, बल्कि फसल की वृद्धि और उपज को भी बाधित करते हैं.

गेहूं की भरपूर और स्वस्थ उपज लेने के लिए सही समय पर खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत ही जरूरी होता है. अकसर खरपतवार कई हानिकारक कीड़े और रोगों का भी घर बन जाता है. इस के साथसाथ ये फसलों के नुकसानदायक कीटों व रोगों को भी आश्रय दे कर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं.

अगर सही समय पर खरपतवारों का नियंत्रण नहीं किया जाता है, तो फसल उत्पादन में 50 से 60 फीसदी तक की कमी हो सकती है और किसानों को माली नुकसान भी उठाना पड़ता है. पर इन का नियंत्रण भी एक कठिन समस्या है.

इन खरपतवारों को नियंत्रित करने से फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार हो सकता है. इन खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि यांत्रिक विधियां, सस्य क्रियाएं, भूपरिष्करण क्रियाएं, कार्बनिक खादों का प्रयोग, जैव नियंत्रण उपाय और रासायनिक विधियां.

गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए विभिन्न तरीकों की विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है :

weeds in wheat

यांत्रिक विधियां

* हाथों से खरपतवार निकालना : यह सब से पुरानी और प्रभावी विधि है, लेकिन इस में समय और मेहनत अधिक लगती है.

* खुरपी, हंसिया, कुदाल आदि से खरपतवार निकालना : इन उपकरणों का उपयोग कर के खरपतवार को निकाला जा सकता है.

* मशीन से खरपतवार निकालना : रोटरी वीडर, वीडर और हार्वेस्टर जैसी मशीनें खरपतवार निकालने में मदद करती हैं.

सस्य क्रियाएं

* फसलों का चुनाव : तेजी से वृद्धि करने वाली फसलें और जड़ें गहरी व फैलने वाली फसलें खरपतवारों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं.

* फसल चक्र : विभिन्न फसलों को लगाने से खरपतवारों की वृद्धि रुक जाती है.

* फसल की सघनता : अधिक सघनता से खरपतवारों को वृद्धि करने का अवसर नहीं मिलता.

कार्बनिक खादों का प्रयोग

* कार्बनिक खाद सड़ने और गलने के बाद कार्बनिक अम्ल का निस्तारण करते हैं, जो खरपतवारों की वृद्धि को कम कर देता है.

* जैविक खादों का उपयोग कर के मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है और खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है.

जैव नियंत्रण के उपाय

* जैविक नियंत्रण एजेंट जैसे नेमाटोड, बैक्टीरिया और फंजाई खरपतवारों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं.

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रासायनिक विधियां

रासायनिक विधियों के जरीए खरपतवार नियंत्रण करना एक प्रभावी तरीका है, लेकिन इस के उपयोग से पहले कुछ सावधानियां बरतें.

शाकनाशी रसायन के प्रकार

संपर्क शाकनाशी : यह शाकनाशी रसायन पत्तियों पर लगाया जाता है और खरपतवार को मारता है. उदाहरण : ग्लाईफोसेट, 2,4-डी.

सिस्टैमिक शाकनाशी : यह शाकनाशी रसायन खरपतवार के पौधे में अवशोषित होता है और उस की वृद्धि को रोकता है. उदाहरण : डाइक्लोफेनाक, मैटोलाक्लोर.

पहले उगाया गया शाकनाशी : यह शाकनाशी रसायन मिट्टी में लगाया जाता है और खरपतवार की वृद्धि को रोकता है. उदाहरण : ट्राईफ्लुरेलिन.

बाद में उगाया गया शाकनाशी : यह शाकनाशी रसायन खरपतवार के उगने के बाद लगाया जाता है और उस की वृद्धि को रोकता है. उदाहरण : ग्लाइफोसेट, 2,4-डी.

शाकनाशी रसायन के उपयोग के तरीके

फसल के पहले : शाकनाशी रसायन को फसल के पहले लगाया जाता है, ताकि खरपतवार की वृद्धि को रोका जा सके.

फसल के साथ : शाकनाशी रसायन को फसल के साथ लगाया जाता है, ताकि खरपतवार की वृद्धि को रोका जा सके.

खरपतवार के ऊपर : शाकनाशी रसायन को खरपतवार के ऊपर लगाया जाता है, ताकि उस की वृद्धि को रोका जा सके.

शाकनाशी रसायन के फायदे

यह शाकनाशी रसायन खरपतवार की वृद्धि को रोकता है और फसल की उत्पादकता को बढ़ाता है.

फसल की सुरक्षा : शाकनाशी रसायन फसल को खरपतवार से बचाता है और उस की सुरक्षा करता है.

समय और मेहनत की बचत : शाकनाशी रसायन का उपयोग करने से समय और मेहनत की बचत होती है.

शाकनाशी रसायन के नुकसान

पर्यावरण पर प्रभाव : शाकनाशी रसायन पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डाल सकता है और जीवजंतुओं को नुकसान पहुंचा सकता है.

फसल को नुकसान : शाकनाशी रसायन फसल को नुकसान पहुंचा सकता है, अगर उस का उपयोग सही तरीके से नहीं किया जाए.

मिट्टी का प्रदूषण : शाकनाशी रसायन मिट्टी का प्रदूषण कर सकता है और उस की उर्वरता को कम कर सकता है.

इन विधियों को अपना कर गेहूं की फसल में खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है.

किसानों को इन विभिन्न उपायों को अपना कर अपनी फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता को बनाए रखना चाहिए.

वर्तमान में उपलब्ध नई तकनीकें और उन्नत विधियां खरपतवार नियंत्रण को अधिक प्रभावी और स्थायी बनाने में मददगार साबित हो रही हैं, जो कृषि की चुनौतियों का सामना करने में मददगार हैं.

गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय

कंडाली : कंडाली एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-60 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं.

सरसों : सरसों एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-90 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल पीले रंग के होते हैं, जो अप्रैलमई माह में खिलते हैं.

खूबकला : खूबकला एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 20-50 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल पीले रंग के होते हैं, जो अप्रैलमई माह में खिलते हैं.

मटर के परिवार की खरपतवार

मटरी : मटरी एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-60 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल बैगनी रंग के होते हैं, जो अप्रैलमई माह में खिलते हैं.

फूली मटर : फूली मटर एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 20-40 सैंटीमीटर तक होती है.

काली मटर : पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल बैगनी रंग के होते हैं, जो अप्रैलमई माह में खिलते हैं. यह एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-60 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं. इन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल बैगनी रंग के होते हैं, जो अप्रैलमई माह में खिलते हैं.

गंदेरी परिवार की खरपतवार

गंदेरी : गंदेरी एक बहुवर्षीय खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल हरे रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं. इस की जड़ें गहरी होती हैं और मिट्टी में पानी को सोख लेती हैं.

बांस घास : बांस घास एक बहुवर्षीय खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 100-200 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल हरे रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं.

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खरपतवार की पहचान

खरपतवार की पहचान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विभिन्न प्रकार के खरपतवारों की विशेषताएं और नियंत्रण की विधियां भिन्न होती हैं. गेहूं की फसल में सामान्य रूप से उगने वाले खरपतवार निम्नलिखित हैं :

मकोय : मकोय एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. मकोय गेहूं की फसल में तेजी से वृद्धि करता है और फसल की उत्पादकता को कम कर देता है.

हिरनखुरी : हिरनखुरी एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल पीले रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं.

ककमाची : ककमाची एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल सफेद रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं.

बथुआ : बथुआ एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल हरे रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं. बथुआ गेहूं की फसल में तेजी से वृद्धि करता है और फसल की उत्पादकता को कम कर देता है.

चौलाई : इस की पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल हरे रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं.

जंगली गाजर : जंगली गाजर एक द्विवर्षीय खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल सफेद रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं.

आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर (Potato Digger)

खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.

कृषि यंत्र पर आप के द्वारा किया गया खर्चा आप को रिटर्न देने की गारंटी के साथ हार्वेस्टर वाली सभी जरूरतें पूरी करता है. इस पोटैटो डिगर से एक दिन में तकरीबन 6-8 एकड़ क्षेत्रफल की आलू खुदाई की जा सकती है.

यह भारत सरकार द्वारा परीक्षण किया गया आलू खुदाई यंत्र है.

खालसा सिंगल कन्वेयर पोटैटो डिगर

यह सिंगल कन्वेयर 2 लाइनों में आलू खुदाई करने वाला यंत्र है. भारी मिट्टी वाले खेत में भी यह आसानी से काम करता है. इस यंत्र में लगा ङ्क आकार का नोज ब्लेड आलू को खराब होने से बचाता है और सिंगल कन्वेयर आलू से मिट्टी अलग कर उसे साफसुथरा करता है.

इस यंत्र में लगा बैक रोलर खेत की मिट्टी को समतल कर उचित सतह बनाता है, जिस से खुदाई के बाद सभी आलू ऊपरी सतह पर आ जाते हैं. इस वजह से आलू चुनने में दिक्कत नहीं होती.

सभी तरह की मिट्टी के लिए खास पोटैटो डिगर

खालसा ब्रांड का 2 लाइनों में आलू खोदने वाला यह यंत्र चलाने में बहुत आसान है. यह आसानी से ट्रैक्टर से जुड़ सकता है. यह यंत्र सभी प्रकार की मिट्टी, जैसे रेतीली, चिकनी और कठोर सभी के लिए उपयुक्त है. कम समय में भी अधिक रकबे को यह कवर करता है और आलू को नुकसान पहुंचाए बिना उस की बेहतर खुदाई करता है.

फ्रंट कन्वेयर और यंत्र में लगी यूनिट के साथ यह आलू का 100 फीसदी ऐक्सपोजर सुनिश्चित करता है अर्थात आलू मिट्टी के ऊपर आ कर दिखता है, जिस से आलू को खेत से उठाने में भी आसानी होती है.

खालसा विंड्रो पोटैटो डिगर

विंड्रो सिस्टम के साथ लगे 2 पंक्ति वाले डिगर एलिवेटर कटाई की नवीनतम तकनीक प्रदान करते हैं. यह पूरी तरह से एडजस्टेबल है और 20 इंच की डिगर हाई कार्बन स्टील डिस्क में गहराई बनाए रखने के लिए पीछे की तरफ 2 पहिए लगे हैं.

इस यंत्र से आलू खुदाई का समय अन्य डिगर के मुकाबले एकतिहाई ही लगता है, जिस से मेहनत, समय और पैसे की काफी अधिक बचत होती है.

2 पंक्ति वाला पोटैटो हार्वेस्टर

खालसा का ट्रैक्टरचालित 2 पंक्ति आलू कंबाइन हार्वेस्टर वी-नोज खुदाई फ्रंट ब्लेड के साथ आता है. यह भारत का पहला स्वचालित आलू हार्वेस्टर है.

कन्वेयर बेल्ट की मदद से आलू बिना मिट्टी के साफसुथरा निकलता है, जो यंत्र में लगे आलू टैंकर में इकट्ठा किया जाता है. उस के बाद आलू को अपनी सुविधानुसार  ट्रौली/बालटियों में ले जाया जा सकता है. ये सभी काम स्वचालित तरीके से होते हैं. इस में किसी मानवशक्ति की जरूरत नहीं होती.

अधिक जानकारी के लिए आप फोन नंबर 0121-2511627, 6541627 पर बात कर सकते हैं या वैबसाइट पर जानकारी ले सकते हैं.

महिलाओं और युवाओं को मिलेंगे रोजगार (Employment)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में 10,000 नवगठित बहुद्देशीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS), डेयरी व मत्स्य सहकारी समितियों का शुभारंभ किया. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी की जन्म शताब्दी के दिन 10,000 नई बहुद्देश्यीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (MPACS), डेयरी व मत्स्य सहकारी समितियों का शुभारंभ हो रहा है.

अमित शाह ने कहा कि 19 सितंबर, 2024 को इसी स्थान पर हम ने एक SOP बनाई थी. उस के 86 दिन के अंदर ही हम ने 10,000 पैक्स को रजिस्टर करने का काम समाप्त कर दिया है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की, तो उन्होंने ‘सहकार से समृद्धि’ का मंत्र दिया था.

मंत्री अमित शाह ने आगे कहा कि ‘सहकार से समृद्धि’ तभी संभव है, जब हर पंचायत में सहकारिता उपस्थिति हो और वहां किसी न किसी रूप में काम करे. उन्होंने कहा कि हमारे देश के त्रिस्तरीय सहकारिता ढांचे को सब से ज्यादा ताकत प्राथमिक सहकारी समिति ही दे सकती है, इसलिए मोदी सरकार ने 2 लाख नए पैक्स बनाने का निर्णय लिया था.

केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि नाबार्ड (NABARD), एनडीडीबी(NDDB) और एनएफडीबी (NFDB) ने 10,000 प्राथमिक सहकारी समितियों के पंजीकरण में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. सहकारिता मंत्रालय की स्थापना के बाद सब से बड़ा काम सभी पैक्स का कंप्यूटराइजेशन करने का काम किया गया.

उन्होंने आगे कहा कि कंप्यूटराइजेशन के आधार पर पैक्स को 32 प्रकार की नई गतिविधियों से जोड़ने का काम किया गया. हम ने पैक्स को बहुआयामी बना कर और उन्हें भंडारण, खाद, गैस, उर्वरक एवं जल वितरण के साथ जोड़ा है.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि ट्रेंड मैनपावर न होने के कारण ये सब हम नहीं कर सकते. इस के लिए आज यहां प्रशिक्षण मौड्यूल का भी शुभारंभ हुआ है, जो पैक्स के सदस्यों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने का काम करेंगे.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि ये प्रशिक्षण मौड्यूल हर जिला सहकारी रजिस्ट्रार की जिम्मेदारी बनेगी कि पैक्स के सचिव एवं कार्यकारिणी के सदस्यों का अच्छा प्रशिक्षण सुनिश्चित हो.

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि यहां 10 सहकारी समितियों को रुपे किसान क्रेडिट कार्ड (RuPay Kisan Credit Card), माइक्रो एटीएम (Micro ATM) का वितरण किया गया है. इस अभियान के तहत आने वाले दिनों में हर प्राथमिक डेयरी को माइक्रो एटीएम दिया जाएगा. माइक्रो एटीएम और रुपे किसान क्रेडिट कार्ड (RuPay Kisan Credit Card) हर किसान को कम खर्च पर लोन यानी ऋण देने का काम करेगा.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि पैक्स के विस्तार के लिए विजिबिलिटी, रेलेवेंस, वायबिलिटी और वाइब्रेंसी का ध्यान रखा गया है. पैक्स में 32 कामों को जोड़ कर इसे विजिबल और वायबल बनाया गया है.

उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि गांव में कौमन सर्विस सैंटर (Common Service Centre) (CSC) का जब पैक्स बन जाता है, तो गांव के हर नागरिक को किसी न किसी रूप में पैक्स के दायरे में आना पड़ता है. इस प्रकार हम ने इस की रेलेवेंस भी बढ़ाई है.

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जब पैक्स गैस वितरण, भंडारण, पैट्रोल वितरण आदि का काम करते हैं, तो उन की वाइब्रेंसी अपनेआप बढ़ जाती है. साथ ही, पैक्स के बहुद्देश्यीय होने से पैक्स का जीवन भी लंबा होने की पूरी संभावना रहती है.

उन्होंने कहा कि यह एक बहुद्देशीय कार्यक्रम है, जिस से किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने का प्रयास होगा.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि कंप्यूटराइजेशन और टैक्नोलौजी से पैक्स में पारदर्शिता आएगी, सहकारिता का जमीनी स्तर पर विस्तार होगा और ये महिलाओं और युवाओं के रोजगार का माध्यम भी बनेगा. साथ ही, पैक्स, कृषि संसाधनों की आसान उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगा.

अमित शाह ने कहा कि हमारी 3 नई राष्ट्रीय स्तर की कोऔपरेटिव्स के माध्यम से पैक्स, और्गेनिक उत्पादों, बीजों और ऐक्सपोर्ट के साथ किसानों की समृद्धि के रास्ते भी खोलेगा. इस से सामाजिक और आर्थिक समानता भी आएगी, क्योंकि नए मौडल में महिलाओं, दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों की भागीदारी सुनिश्चित की है, जिस से सामाजिक समरसता भी बढ़ेगी.

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने लक्ष्य रखा है कि अगले 5 साल में 2 लाख नए पैक्स का गठन करेंगे. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि 5 साल से पहले ही हम इस लक्ष्य को पूरा लेंगे.

उन्होंने आगे बताया कि पहले चरण में नाबार्ड 22,750 पैक्स और दूसरे चरण में 47,250 पैक्स बनाएगा. इसी प्रकार एनडीडीबी 56,500 नई समितियां बनाएगा और 46,500 मौजूदा समितियों को और मजबूत बनाएगा. वहीं एनएफडीबी 6,000 नई मत्स्य सहकारी समितियां बनाएगा और 5,500 मौजूदा मत्स्य सहकारी समितियों का सशक्तीकरण करेगा. इन के अलावा राज्यों के सहकारी विभाग 25,000 पैक्स बनाएंगे.

अमित शाह ने इस अवसर पर कहा कि नए मौडल के साथ अब तक 11,695 नई प्राथमिक सहकारी समितियां पंजीकृत हुई हैं, जो हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. साथ ही, 2 लाख नए पैक्स बनने के बाद फौरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेजेस के माध्यम से किसानों की उपज को वैश्विक बाजार में पहुंचाना बड़ा आसान हो जाएगा.

कृषि स्टार्टअप्स को सशक्त बनाने के लिए SABAGRIs वेबसाइट लांच

भागलपुर: कृषि नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए, बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर के कुलपति ने आज SABAGRIs (सबौर एग्री इनक्यूबेटर्स) की आधिकारिक वेबसाइट www.sabagris.com को लांच किया. यह वेबसाइट कृषि स्टार्टअप्स, शोधकर्ताओं और कृषि नवाचारकर्ताओं को संसाधन, समर्थन और सहयोग के अवसर प्रदान करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करेगी.

SABAGRIs, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की एक एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन पहल है,जिस का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में नवाचार, उद्यमिता और शोध को प्रोत्साहित करना है. यह इनक्यूबेटर कृषि स्टार्टअप्स को विचार विकास से लेकर व्यवसाय के विस्तार तक संपूर्ण समर्थन प्रदान करता है, जिस में आधुनिक कृषि के लिए स्थायी और तकनीकी समाधान पर विशेष ध्यान दिया जाता है.

वेबसाइट लांच का आयोजन बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के निदेशालय अनुसंधान में किया गया. इस अवसर पर SABAGRIs के परियोजना अन्वेषक और निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह और उन की टीम के सदस्य उपस्थित रहे.

यह पहल कृषि क्षेत्र में विकास को गति देने और नवोन्मेषी विचारों को व्यवसायिक रूप देने के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी.

काला नमक चावल (Black Salt Rice) की पहचान पूरी दुनिया में पहुंची

सिद्धार्थनगर: जिला प्रशासन सिद्धार्थनगर द्वारा आयोजित बुद्धा राइस क्रेता विक्रेता सम्मेलन कार्यक्रम के समापन एवं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के मौके पर किसान सम्मान दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मंत्री श्रम एवं सेवायोजन, समन्वय विभाग उत्तर प्रदेश अनिल राजभर द्वारा सांसद डुमरियागंज जगदंबिका पाल, विधायक शोहरतगढ़ विनय वर्मा, जिलाध्यक्ष भाजपा कन्हैया पासवान, पूर्व बेसिक शिक्षा मंत्री डा. सतीश द्विवेदी व जिलाधिकारी डा. राजा गणपति आर, पुलिस अधीक्षक अभिषेक महाजन, मुख्य विकास अधिकारी जयेंद्र कुमार आदि की उपस्थिति में किया गया.

मुख्य अतिथि मंत्री श्रम एवं सेवायोजन, समन्वय विभाग उत्तर प्रदेश अनिल राजभर द्वारा जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में बुद्धा रत्ना कंपनी के कालानमक के उत्पाद का विमोचन किया गया. किसान सम्मान दिवस के मौके पर कृषि में बेहतरीन कार्य करने वाले किसानों को भी सम्मानित किया गया. नव चयनित आशाबहुओं को प्रशिक्षण के लिए प्रमाण पत्र एवं ओडीओपी योजना के लाभार्थियों को टूल किट का प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया.

कालानमक के प्रचार प्रसार हेतु ब्रांड एम्बेसडर महेंद्र नाथ पाण्डेय को शाल एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया. मुख्य अतिथि मंत्री श्रम एवं सेवायोजन, समन्वय विभाग उत्तर प्रदेश अनिल राजभर ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती पर याद करते हुए सभी किसानों को किसान सम्मान दिवस की शुभकामनाएं दी.

उन्होंने आगे कहा कि महात्मा गौतम बुद्ध की धरती पर जनपद के प्रभारी मंत्री के रूप में पहली बार सभी अन्नदाता किसानों से मुलाकात हो रही है. मुख्यमंत्री जी द्वारा ओडीओपी के अंतर्गत सिद्धार्थनगर का काला नमक चावल और चंदौली के ब्लैक राइस को चुना गया है. इस क्रेता विक्रेता सम्मेलन के कार्यक्रम की चर्चा अन्य जनपदों में भी हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प है कि किसानों की आय दोगुनी हो उन के इस संकल्प को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश द्वारा निरंतर प्रयास किया जा रहा है.

श्रम एवं सेवायोजन मंत्री अनिल राजभर ने कहा कि उत्पादन को बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से अनुदान देकर किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. किसानों को उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो इस के लिए कार्य योजना भी बनाई जा रही है.

इस के साथ ही, पूर्वांचल के 500 किसानों को विदेशों में भ्रमण कर अच्छी तकनीकियों का प्रयोग कर खेती करने के लिए प्रेरित किया जाएगा. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 6000 मजदूरों को इसराइल भेजा गया है. साथ ही 25000 श्रमिकों को इसराइल भेजने का लक्ष्य भी है उत्तर प्रदेश से जो श्रमिक इसराइल गए हैं, उन को आज अच्छी आय प्राप्त हो रही है. साथ ही, आज क्रेता विक्रेता सम्मेलन के माध्यम से किसान उद्यमियों को काला नमक के उत्पादन को बढ़ाने व उस के निर्यात के लिए जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है, जिस से उनको उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त हो सके.

जिलाधिकारी डाक्टर राजा गणपति आर एवं मुख्य विकास अधिकारी जयेंद्र कुमार के निर्देशन में जिला प्रशासन के अधिकारियों एवं कृषि विभाग के प्रयास से आज जनपद में काला नमक की पहचान पूरी दुनिया में पहुंचने के लिए क्रेता विक्रेता सम्मेलन का कार्यक्रम दो दिनों तक आयोजित किया गया. जिलाधिकारी का यह प्रयास है, कि जनपद के किसानों को काला नमक चावल के उत्पादन की अच्छी कीमत मिल सके.

सांसद डुमरियागंज जगदंबिका पाल ने कहा कि यह तथागत गौतम बुद्ध की जन्मस्थली है. जनपद प्रभारी मंत्री को जनपद में प्रथम आगमन पर बधाई दी गई. सांसद डुमरियागंज ने इतने बड़े कार्यक्रम के आयोजन को मूर्तरूप देने वाले जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी व कृषि विभाग को बधाई दी.

उन्होंने आगे कहा कि यह क्रेता विक्रेता सम्मेलन नये प्रयोग के साथ काला नमक चावल के ब्रांडिंग एवं निर्यात के लिए आयोजित किया गया है. जिला प्रशासन द्वारा कालानमक चावल को विश्व में पहचान दिलाने के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है. कालानमक चावल की क्वालिटी का चावल पूरी दुनिया में नहीं मिल रहा है. काला नमक चावल को शुगर का मरीज भी सेवन कर सकता है.

आज जापान के चावल का मुकाबला हमारे जनपद का काला नमक चावल कर रहा है. जनपद में काला नमक भवन बनाने के लिए भारत सरकार से सीएसआर मद व्यय कर काम करने का प्रयास किया जा रहा है. इस भवन के बनने से बाहर से आने वाले लोगों को कालानमक चावल आसानी से प्राप्त हो जाएगा और वहीं से ही इस की मार्केटिंग भी हो सकेगी.

काला नमक चावल (Black Salt Rice)

सांसद डुमरियागंज जगदंबिका पाल ने कहा कि कालानमक चावल विभिन्न कर्मशियल प्लेटफार्म के माध्यम से आज देश विदेश में अपनी सुगंध फैला रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जी 20 की बैठक में भी अतिथियों को भेंट किया गया था. साथ ही, उन्होंने जिला प्रशासन, कृषि वैज्ञानिकों एवं किसान भाइयों को भी शुभकामनाएं दी.

विधायक शोहरतगढ़ विनय वर्मा ने कहा कि कालानमक चावल को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग द्वारा इस के निर्यात के लिए अच्छा प्रयास किया जा रहा है जिस से किसानों को उन के उत्पाद का अच्छा मूल्य प्राप्त हो सके और महात्मा बुद्ध का प्रसाद कालानमक की खुशबू देशविदेश तक पहुंच सके.

पूर्व बेसिक शिक्षा मंत्री डा. सतीश द्विवेदी ने कहा कि कालानमक चावल के उत्पादन एवं निर्यात के लिए क्रेता विक्रेता सम्मेलन के माध्यम से जिला प्रशासन द्वारा सराहनीय कार्य किया जा रहा है, जिस से किसानों को कालानमक चावल का अच्छा मूल्य प्राप्त होगा.

जिलाध्यक्ष भाजपा कन्हैया पासवान ने कहा कि भगवान गौतम बुद्ध का प्रसाद, कालानमक चावल के लिए जिला प्रशासन द्वारा क्रेता विक्रेता सम्मेलन का कार्यक्रम हो रहा है. जनपद के किसानों द्वारा अधिक मात्रा में कालानमक की खेती की जा रही है. इस के निर्यात के लिए विकल्प हो जाने पर जनपद के किसान और अधिक मात्रा में काला नमक की खेती कर अच्छी आय प्राप्त कर सकेंगे.

बुद्धा राइस क्रेता विक्रेता सम्मेलन कार्यक्रम के द्वितीय दिवस पर दो चरणों में वैज्ञानिको द्वारा किसानों को कालानमक चावल के प्रसंस्करण एवं विपणन के बारे में पूरी जानकारी दी गई. प्रसंस्करण सत्र के दौरान डा. रितेश शर्मा बासमती एक्सपोर्ट बोर्ड, डा. एमएस अनंथा आईआईआरआर हैदराबाद, केके अग्रवाल आई.आई.ए द्वारा किसानों को कालानमक चावल के प्रसंस्करण के बारे में सभी जानकारी दी गई.

विपणन सत्र के दौरान डा. मंजुल प्रताप सिंह निदेशक ओराइजो राइस घर एग्रो वर्ल्ड प्रा.लि. वाराणसी, सुरेश गुप्ता प्रदेश सचिव, लघु उद्योग भारती उत्तर प्रदेश, अविनाश चंद्र तिवारी संयुक्त कृषि निदेशक मंडल बस्ती, डा. मार्कण्डेय सिंह वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र सोहना द्वारा कालानमक चावल के प्रसंस्करण के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई.

इस अवसर पर उपरोक्त के अतिरिक्त उप कृषि निदेशक अरविंद विश्वकर्मा, जिला कृषि अधिकारी मो. मुजम्मिल, जिला कृषि रक्षा अधिकारी विवेक दूबे, जिला भूमि संरक्षण अधिकारी कृषि रवि शंकर पाण्डेय, उपायुक्त उद्योग उदय प्रकाश, जिला उद्यान अधिकारी नन्हे लाल वर्मा, जिला पूर्ति अधिकारी देवेंद्र प्रताप सिंह, जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी तन्मय व अन्य संबंधित अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे.

हाईटेक कृषि ज्ञान वाहनों से मिल रहा हर सवाल का जवाब

सबौर: बिहार कृषि विश्वविद्यालय, द्वारा संचालित “सवालजवाब” कार्यक्रम अब किसानों तक और भी प्रभावी ढंग से पहुंच रहा है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर लोकप्रिय इस कार्यक्रम का प्रसारण आज से कृषि ज्ञान वाहनों के माध्यम से भी किया गया.

समस्तीपुर, पूर्णिया और पटना जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद इन कृषि ज्ञान वाहनों पर किसानों ने विश्वविद्यालय के मीडिया सेंटर से प्रसारित सवालजवाब कार्यक्रम को देखा और वैज्ञानिकों से सीधे प्रश्न पूछे. आज के कार्यक्रम में “जाड़े के मौसम में पशुओं के रखरखाव” विषय पर चर्चा की गई.

इस अवसर पर प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहाने, पशु विज्ञान विशेषज्ञ डा. राजेश कुमार, डा. एमज़ेड होदा और डा. ज्योतिमला ने किसानों के सवालों के उत्तर दिए. कार्यक्रम का संचालन अन्नू द्वारा किया गया.

यह कार्यक्रम हर शनिवार को प्रसारित होता है. साथ ही, अब बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कृषि ज्ञान वाहनों के साथसाथ बामेती, बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना और डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वाहनों में भी उपलब्ध है. इन वाहनों में बड़े टीवी स्क्रीन पर कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया गया.

इस नई पहल पर खुशी जाहिर करते हुए कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा ” इस कदम से दूरदराज के किसानों को खेती और पशुपालन से जुड़ी समस्याओं का समाधान रियल टाइम में मिल सकेगा. यह पहल किसानों के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.”

हाईटेक कृषि ज्ञान वाहन

गौरतलब है कि इस वर्ष बिहार कृषि विश्वविद्यालय के नेतृत्व में हाईटेक कृषि ज्ञान वाहनों का निर्माण किया गया था, जिस का लोकार्पण बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा किया गया था. ये वाहन किसानों को कृषि और पशुपालन से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हैं.

किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण

यह कार्यक्रम न केवल किसानों के दरवाजे तक पहुंच कर उन्हें जागरूक कर रहा है, बल्कि उन की समस्याओं का तुरंत समाधान भी प्रदान कर रहा है. इस से राज्य में कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में प्रगति को नई गति मिलेगी.

लेमन मैन (Lemon Man) को किया कृषि मंत्री ने सम्मानित

लखनऊ: चौधरी चरण सिंह किसान सम्मान दिवस के अवसर पर विधानसभा लखनऊ के प्रांगण में उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही सहित अनेक अधिकारी गण उद्यान विभाग, कृषि विभाग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों का हौसला बढ़ाया और किसानों को सम्मानित किया.

इस मौके पर रायबरेली के किसान आनंद मिश्रा, जिन्हें लेमन मैन के नाम से जाना जाता है. उन्हें प्रदेश स्तरीय द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया. पुरस्कार स्वरूप लेमन मैन को 50000 रुपए मिले.

लेमन मैन ने इस मौके पर कहा कि उद्यान मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने हमें कई मौकों पर आगे बढ़ने और अच्छा काम करने के लिए प्रेरित किया. साथ ही, उद्यान विभाग के वैज्ञानिकों ने हमारा समयसमय पर मार्गदर्शन किया, हमारी बाग में विजिट किया और आज उत्तर प्रदेश का द्वितीय पुरस्कार फलस्वरूप मिला. हम आज सभी को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं.

आपको जानकारी के लिए बता दें कि राज्यस्तरीय फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड 2024 लखनऊ में आयोजित हुआ था जिस में मुख्य अतिथि दिनेश प्रताप सिंह रहे. उन्होंने उस समय भी किसानों का हौसला बढ़ाया था, उस समय वहां पर लेमन मैन भी मौजूद थे. आज के समय में लेमन मैन रायबरेली के प्रमुख नीबू उत्पादक बागवान हैं.

लेमन मैन आनंद मिश्रा यूपी के रायबरेली जनपद के रहने वाले हैं. उन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर नीबू की बागवानी की शुरुआत कर, एक ऐसी मिसाल पेश की, जिस को देख कर दूसरे किसान भी नीबू की खेती करने लगे. नीबू की बागवानी में मिली अदभुत सफलता से जिले में आनंद मिश्रा को लेमन मैन (lemon man) के नाम से पुकारा जाने लगा है.

लेमन मैन के बारे में हमने पढ़ा तो बहुत था लेकिन, उन से हमारी मुलाकात फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड 2024 के दौरान लखनऊ में हुई थी. उन्होंने बातचीत में बताया कि नीबू की बागवानी मुनाफे की खेती है. इस बागवानी में किसान को एक बार जमीन पर पौधे लगाने हैं और 25 सालों तक मुनाफे की फसल काटनी है. मतलब खर्चा कम आमदनी ज्यादा.

आनंद मिश्रा ने 2016 में नौकरी छोड़कर नीबू की बागवानी शुरु की. हालांकि उन्होंने खेती की शुरुआत गेहूं, धान की खेती से ही शुरू की थी. लेकिन सफलता नहीं मिली. फिर 1 साल तक वह अलगअलग तरह की खेती करते रहे. लेकिन जुनून नीबू की बागवानी करने का ही था. आखिर उन का यह जुनून परवान चढ़ा और नीबू की बागवानी करने में बड़े पैमाने पर सफलता प्राप्त की. आज जिले में उन की पहचान उन के नाम से अधिक लेमन मैन के नाम से है.