दलहनी रकबे के विकास में अरहर (Arhar) पूसा-16 मील का पत्थर

झाबुआ : कलक्टर नेहा मीना द्वारा कार्यालय कलक्टर सभाकक्ष में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र को पशुपालन एवं पशु चिकित्सा विभाग उद्धयानिकी विभाग मत्स्यपालन विभाग, कृषि अभियांत्रिकी, सहकारिता विभाग दुग्ध संघ आदि विभागों में संचालित योजनाओं कार्यक्रमों और रबी मौसम 2024-25 में आयोजित होने वाली गतिविधियों के संबंध में गहन समीक्षा बैठक आयोजित हुई.

जिले में दलहनी फसलों के रकबे में विस्तार के लिए अरहर पूसा-16 जैसी किस्में मील का पत्थर साबित हो सकती हैं. अरहर पूसा-16 कम अवधि (लगभग 120 दिन) में पक कर तैयार हो जाती है, जिस से किसान रबी मौसम में गेहू, चना जैसी फसल का उत्पादन भी ले सकते हैं.

कृषि विभाग के अंतर्गत संचालित नवाचारी प्रयासों की विस्तार से समीक्षा के दौरान बायोफोर्टीफाइड किस्मों की संभावनाओं को भी खंगाला जाना जरूरी है. विस्तार से हुई समीक्षा के दौरान जिले के 5 विकासखंडों रामा, रानापुर, थांदला, पेटलावद, मेघनगर के लिए नवीन मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला के संचालन के लिए इच्छुक संस्थाओं के पात्रतानुसार चयन के बाद चयनित संस्थाओ को नवीन मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला के संचालन की समुचित कार्यवाही करते समय सीमा में कराएं. रबी मौसम के दौरान किसानों की मांग के अनुसार पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तायुक्त बीज, उर्वरक भंडारण एवं किसानों को अच्छी किस्म के बीज उपलब्ध कराने के निर्देश दिए.

उद्यानिकी के अंतर्गत टमाटर प्रसंस्करण के साथ डीहाइड्रेट उत्पाद, सोयाबीन प्रसंस्करण उत्पाद निर्माण और विपणन के संबंध में नियोजन करने के लिए निर्देशित किया गया. जिले में उत्पादित होने वाले खा‌द्यान दलहनतिलहन मसाला जैसे विशिष्टता भरे कृषिगत उत्पादों को जिले के बाहर बेहतर विपणन के अवसर प्रदान करने के लिए काम किया जाए.

पशुपालकों को किसान क्रेडिट कार्ड समयसीमा में शतप्रतिशत प्रगति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं और किसान क्रेडिट कार्ड के लक्ष्य को विकासखंडवार प्रदाय कर आवेदन को बैंक मे प्रस्तुत किए जाएं एवं स्वीकृति के लिए सतत बैंक से संपर्क कर स्वीकृति प्राप्त कर हितग्राहियों को लाभ दिलाया जाए. मछुआपालक को प्रेरित कर मछलीपालन के साथ कम लागत वाली उन्नत तकनीक को बढावा देने के सबंध मे निर्देशित किया गया.

बैठक के दौरान एनएस रावत, उपसंचालक, कृषि, डा. विल्सन डावर, उपसंचालक, पशुपालन विभाग, जीएस त्रिवेदी, परियोजना संचालक, आत्मा, नीरज सावलिया उद्यानिकी विभाग, दिलीप सोलंकी मत्स्यपालन विभाग, दलोदिया कृषि अभियांत्रिकी, दिनेश भिड़े सहकारिता विभाग, कनेश दुग्ध संघ आदि विभागों के जिला प्रमुख और कृषि विभाग के अनुभाग एवं विकासखंड स्तरीय अधिकारी, सहायक संचालक कृषि आदि उपस्थित रहे.

नरवाई (Stubble) में आग लगाने पर प्रतिबंध दिसंबर माह तक लागू

रायसेन : लोक व्यवस्था को बनाए रखने के उद्देश्य से कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी अरविंद दुबे द्वारा पूरे जिले की भौगोलिक सीमा में खेत में खड़े धान, सोयाबीन के डंठलों (नरवाई) में आग लगाने पर तत्काल प्रभाव से दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 144 के तहत प्रतिबंध लगाया गया है. यह प्रतिबंध तत्काल प्रभावशील हो कर आगामी 31 दिसंबर, 2024 की अवधि तक के लिए प्रभावशील रहेगा. इस आदेश का उल्लंघन भादवि की धारा 188 के अंतर्गत दंडनीय होगा.

उल्लेखनीय है कि जिले की राजस्व सीमा में धान, सोयाबीन की फसल की कटाई के बाद अगली फसल के लिए खेत तैयार करने के लिए बहुसंख्यक किसानों द्वारा अपनी सुविधा के लिए खेत में आग लगा कर धान, सोयाबीन के डंठलों को नष्ट कर खेत साफ किया जाता है. आग लगाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिस से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इसे नरवाई में आग लगाने की प्रथा के नाम से भी जाना जाता है.

नरवाई में आग लगाना खेती के लिए नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है. इस के कारण विगत वर्षो में गंभीर अग्नि दुर्घटनाएं घटित हुई हैं और बड़े पैमाने पर सम्पत्ति की हानि हुई है. साथ ही, बढ़ते जल संकट में इस से बढ़ोतरी तो होती ही है. कानून, व्यवसायी के लिए भी विपरीत स्थितियां बन जाती हैं. खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जनसम्पत्ति व प्राकृतिक वनस्पति, जीवजंतु आदि नष्ट हो जाते हैं. खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु इस से नष्ट होते हैं, जिस से खेत की उर्वराशक्ति भी धीरेधीरे घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

नरवाई जलाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिस से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. यदि फसल अवशेषों, नरवाई को एकत्र कर जैविक खाद जैसे भूनाडेप वर्मी कंपोस्ट आदि बनाने में उपयोग किया जाए, तो यह बहुत जल्दी सड़ कर पोषक तत्वों से भरपूर खाद बना सकते हैं. इस के अतिरिक्त खेत में कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्क हेरो की सहायता से फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से आने वाली फसलों में जीवांश के रूप में बचत की जा सकती है.

Animal Credit Card Scheme: पशुपालकों को पशु क्रेडिट कार्ड योजना का मिला लाभ

विदिशा : नाबार्ड के सहयोग से बाएफ लाइवलीहूडस द्वारा प्रायोजित करीला एग्रो कृषक उत्पाद संगठन के 233 सदस्य किसानो को पशुपालन के क्षेत्र में बढावा देने के लिए जिला सहकारी बैंक विदिशा के द्वारा पशु क्रेडिट कार्ड वितरण कार्यक्रम का आयोजन पीएनबी प्रशिक्षण संस्थान में किया गया था.

नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक सुनील कुमार ने किसानों से कहा कि पशुपालन को बढ़ावा देने के क्षेत्र में विदिशा जिले में किए जा रहे प्रयासों का संदेश प्रदेश के अन्य जिलों में जाए. उन्होंने पशुपालन के लिए किसान उत्पादक संगठन के जरीए क्षेत्र में विकास के लिए किए जा रहे नवाचारों का स्वागत करते हुए शुभकामनाएं अभिव्यक्त की हैं.

नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक सुनील कुमार ने कहा कि विदिशा जिले में दुग्ध उत्पादन करने वाले किसानों को अधिक से अधिक पशु क्रेडिट कार्ड जारी हो रहे हैं. यह सब आपसी तालमेल का प्रतीक है. उन्होंने केसीसी से होने वाले फायदो को बताया और इस मदद से क्षेत्र में पशुपालकों को पशुओं की संख्या बढाने में मदद मिलेगी.

इस दौरान किसानों को आत्मनिर्भर बनने, आय में वृद्धि करने के क्षेत्र में पशुपालन को महत्वपूर्ण इकाई के रूप में संचालित करने पर विशेष सुझाव साझा किए. कार्यक्रम में लीड बैंक अफसर बीएस बघेल, नाबार्ड के जिला विकास अधिकारी जगप्रीत कौर, सहकारिता बैंक खामखेडा के प्रबंधक लखन भार्गव के अलावा बाएफ लाइवलीहूड्स भोपाल और करीला एग्रो किसान उत्पादक संगठन के बोर्ड डायरेक्टर सदस्य मौजूद रहें.

गेहूं (Wheat) फसल में जड़ माहू कीट लगे तो करें ये काम

सीहोर : वर्तमान मौसम परिर्वतन के कारण गेहूं में जड़ माहू कीट एवं विभूति आदि कीटों का प्रभाव हो सकता है. यदि गेहूं में जड़ माहू कीट का प्रभाव एवं गेहूं में पीलापन दिख जाए, तो दवा का छिड़काव जरूर करें.

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस वर्ष भी गेहूं फसल में जड़ माहू कीट का प्रकोप दिखाई दे रहा है. गेहूं फसल के खेतों में अनेक स्थानों पर पौधे पीले हो कर सूख रहे हैं. समय पर निदान न किए जाने पर इस कीट द्वारा गेहूं फसल में बड़ी क्षति की संभावना रहती है.

जड़ माहू कीट गेहूं के पौधे के जड़ भाग में चिपका हुआ रहता है, जो रस चूस कर पौधे को कमजोर व सुखा देता है. प्रभावित खेतों में पौधे को उखाड़ कर ध्यान से देखने पर बारीकबारीक हलके पीले, भूरे व काले रंग के कीट चिपके हुए दिखाई देते हैं. मौसम में उच्च आर्द्रता व उच्च तापमान होने पर यह कीट अत्यधिक तेजी से फैलता है. अनुकूल परिस्थिति होने पर यह कीट पूरी फसल को नष्ट करने की क्षमता रखता है.

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, जिन क्षेत्रों में अभी तक गेहूं फसल की बोआई नहीं की गई है, वहां पर बोआई से पहले इमिडाक्लोरोप्रिड 48 फीसदी, एफएस की 01 मिलीलिटर दवा अथवा थायोमेथाक्जाम 30 फीसदी, एफएस दवा की 1.5 मिलीलिटर मात्रा प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार जरूर करें.

Special ID card: किसानों का बनेगा खास आईडी कार्ड, मिलेगा लाभ

बुरहानपुर : कृषि क्षेत्र के विकास के लिए चलाई जा रही विभिन्न महत्वपूर्ण योजनाओं का लाभ पात्र व्यक्तियों तक समय से पहुंचे, जिस से संसाधनों के समुचित उपयोग से कृषि क्षेत्र का पूर्ण विकास संभव हो सकेगा. एग्रीस्टैक (डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर फौर एग्रीकल्चर) के अंतर्गत फार्मर रजिस्ट्री तैयार के संबंध में निर्देश हैं.

जिले में राजस्व महाअभियान 3.0 के तहत युद्ध स्तर पर राजस्व विभाग द्वारा विभिन्न कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है. अभिलेख दुरस्ती, नक्शा तरमीम, नामांतरण, बंटवारा प्रकरणों के निराकरण, एनपीसीआई सहित अन्य सुविधाएं नागरिकों को दी जा रही हैं. इन्हीं सुविधाओं में फार्मर रजिस्ट्री भी शामिल है.

मध्य प्रदेश फार्मर रजिस्ट्री प्रणाली के तहत प्रत्येक किसान का एक विशिष्ट किसान आईडी कार्ड (फार्मर आईडी) बनाया जाएगा, जिस के माध्यम से किसानों को शासकीय योजनाओं का लाभ आसानी से मिल सकेगा. यह मध्य प्रदेश राज्य के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है.

कलक्टर भव्या मित्तल के मार्गदर्शन में राजस्व महाअभियान के अंतर्गत किसानों की फार्मर रजिस्ट्री बनाने का कार्य किया जा रहा है. इस के साथ ही किसानों को फार्मर रजिस्ट्री के फायदे भी बतलाए जा रहे है. ग्राम डवाली रै., रायतलाई, सारोला, टिटगांवकला सहित जिले के अन्य ग्रामों में भी अभियान के तहत कार्य किया जा रहा है. फार्मर रजिस्ट्री का उद्देश्य एवं लाभ –

1. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लिए फार्मर रजिस्ट्री अनिवार्य है. दिसंबर, 2024 के उपरांत केवल फार्मर आईडी उपलब्ध होने पर ही योजना का लाभ हितग्राहियों को प्राप्त हो सकेगा.

2. योजनाओं का नियोजन, लाभार्थियों का सत्यापन, कृषि उत्पादों का सुविधाजनक विपणन.

3. प्रदेश के सभी किसानों को राज्य की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सुगम एवं पारदर्शी तरीके से प्रदान करने हेतु लक्ष्य निर्धारण एवं पहचान.

4. किसानों के लिए कृषि ऋण एवं अन्य सेवा प्रदाताओं के लिए कृषि सेवाओं की सुगमता.

5. विभिन्न विभागों द्वारा डाटा का बेहतर उपयोग.

6. फसल बीमा योजना का लाभ प्राप्त करने में सुगमता.

7. न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद में किसानों के पंजीयन में सुगमता.

8. विभिन्न शासकीय योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए बारबार सत्यापन की आवश्यकता नहीं होगी.

वैज्ञानिक तरीके से सिंचाई एवं खाद प्रबंधन से फसल उत्पादन में वृद्धि

बड़वानी : कृषि विज्ञान केंद्र, बड़वानी द्वारा कृषि आदान विक्रेताओं के एकवर्षीय डिप्लोमा कार्यक्रम (देसी) के अंतर्गत प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. एसके बड़ोदिया के मार्गदर्शन में केंद्र के सभागार में आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एवं प्रमुख वक्ता के रूप में अधिष्ठाता बीएम कृषि महाविद्यालय खंडवा के डा. डीएच रानाडे द्वारा भागीदारी की गई.

सर्वप्रथम अधिष्ठाता डा. डीएच रानाडे ने कहा कि छोटीछोटी सावधानियां एवं प्रबंधन कार्य कर के फसल उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है जैसे अपने खेत की मिट्टी के अनुसार फसल का चयन, उपयुक्त प्रजाति का चुनाव, सिंचाई एवं उर्वरक का समुचित प्रबंधन कर 30-40 फीसदी तक उत्पादन में वृद्धि लाई जा सकती है.

अगर फसल में ड्रिप सिचांई पद्धति से सिंचाई की जाए व उचित उर्वरक प्रबंधन किया जाए, तो फसल में अच्छा उत्पादन देखा गया है. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हमें जल प्रबंधन की शुरुआत कृषि क्षेत्र से करनी चाहिए, क्योंकि सर्वाधिक मात्रा में कृषि कार्यों में ही जल का उपयोग किया जाता है और सिंचाई में जल का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या है, जनमानस में धारणा है कि अधिक पानी, अधिक उपज, जो कि गलत है, क्योंकि फसलों के उत्पादन में सिंचाई का योगदान 15-16 फीसदी होता है. फसल के लिए भरपूर पानी का मतलब मात्र मिट्टी में पर्याप्त नमी ही होती है, परंतु वर्तमान कृषि पद्धति में सिंचाई का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है. धरती के गर्भ से पानी की आखिरी बूंद भी खींचने की कवायद की जा रही है.

देश में हरित क्रांति के बाद से कृषि के जरीए जल संकट का मार्ग प्रशस्त हुआ है. बूंदबूंद सिंचाई यानी बौछार (फव्वारा तकनीकी) और खेतों के समतलीकरण से सिंचाई में जल का दुरुपयोग रोका जा सकता है. फसलों के जीवनरक्षक या पूरक सिंचाई दे कर उपज को दोगुना किया जा सकता है.

जल उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए पौधों को संतुलित पोषक तत्वों को प्रबंध करने की आवश्यकता है, जल की सतत आपूर्ति के लिए आवश्यक है कि भूमिगत जल का पुनर्भरण किया जाए, खेतों के किनारे फलदार पेड़ लगाने चाहिए, छोटेबड़े सभी कृषि क्षेत्रों पर क्षेत्रफल के हिसाब से तालाब बनाने जरूरी हैं. रासायनिक खेती की बजाय जैविक खेती पद्धति अपना कर कृषि में जल का अपव्यय रोका जा सकता है. ऊंचे स्थानों, बांधों इत्यादि के पास गहरे गड्ढ़े खोदे जाने चाहिए, जिस से उन में वर्षा का जल एकत्रित हो जाए और बह कर जाने वाली मिट्टी को अन्यत्र जाने से रोका जा सके.

कृषि भूमि में मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए हरित खाद और उचित फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए. कार्बनिक अवशिष्टों को प्रयोग कर इस नमी को बचाया जा सकता है. वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए शहरी मकानों में आवश्यक रूप से वाटर टैंक लगाए जाने चाहिए. इस जल का उपयोग अन्य घरेलू जरूरतों में किया जाना चाहिए. जल का संरक्षण करना वर्तमान समय की जरूरत है.

इस अवसर पर डा. रानाडे द्वारा केंद्र की प्रदर्शन इकाइयों बकरीपालन, मुरगीपालन, केंचुआ खाद इकाई, अजोला इकाई, डेयरी आदि का अवलोकन कर प्रशंसा व्यक्त की.

नरवाई प्रबंधन (Weed Management) के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों से करें बोआई

उमरिया : फसलों की कटाई के बाद उन के जो अवशेष खेत में रह जाते हैं, उसे नरवाई या पराली कहते हैं. मशीनों से फसल की कटाई होने पर बड़ी मात्रा में नरवाई खेत में रहती है. इस को हटाने के लिए किसान प्रायः इसे जला देते हैं. इस से खेत की मिट्टी की उपरी परत में रहने वाले फसलों के लिए उपयोगी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं. मिट्टी में कड़ापन आ जाता है और इस की जलधारण क्षमता बहुत कम हो जाती है.

किसान नरवाई प्रबंधन के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग करें. इन उपकरणों के उपयोग से नरवाई को नष्ट कर के खाद बना दिया जाता है, जिस से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. नरवाई जलाने से मिट्टी को होने वाले नुकसान और धुएं से होने वाला पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता है.

किसान धान और अन्य फसलों की नरवाई खेत से हटाने के लिए सुपर सीडर और हैप्पी सीडर का उपयोग करें. ये उपकरण किसी भी ट्रैक्टर, जो 50 एचपी के हों, उस में आसानी से फिट हो जाते हैं. इन के उपयोग से एक ही बार में नरवाई नष्ट होने के साथसाथ खेत की जुताई और बोआई हो जाती है. इस से जुताई का खर्च और समय दोनों की बचत होती है. इस के अलावा किसान ट्रैक्टर में स्ट्राबेलर का उपयोग कर के नरवाई को खाद में बदल सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया और कृषि आभियांत्रिकी विभाग, उमरिया के संयुक्त तत्वावधान में गांव कछरवार में सुपर सीडर द्वारा गेहूं फसल की बोआई की गई. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एव प्रमुख डा. केपी तिवारी ने बताया कि धान की फसल यदि हार्वेस्टर से की जाती है, तो खेत में फसल के अवशेष रह जाते हैं, जिन की सफाई के बिना बोआई करना बहुत बड़ी चुनौती रहती है, लेकिन सुपर सीडर एक ऐसी मशीन है, जो बिना सफाई के आसानी से गेहूं या चना की बोआई कर सकती है.

उन्होंने आगे बताया कि नरवाई जलाने से मिट्टी में उत्पन्न होने वाले कार्बनिक पदार्थ में कमी आ जाती है. सूक्ष्म जीव जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिस के फलस्वरूप जैविक खाद का बनना बंद हो जाता है. भूमि की ऊपरी परत में ही पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं. आग लगाने के कारण ये पोषक तत्व जल कर नष्ट हो जाते हैं. बोआई के दौरान तकरीबन 25 किसान उपस्थित थे.

सहायक यंत्री कृषि आभियांत्रिकी मेघा पाटिल द्वारा सुपर सीडर पर मिलने वाली छूट के बारे में बताया कि यह मशीन 3 लाख रुपए की आती है, जिस में 1 लाख, 5 हजार रुपए की छूट मिलती है. सुपर सीडर एकसाथ तीन काम करती है, जिस से हार्वेस्टर के बाद बचे फसल अवशेष को बारीक काट कर मिट्टी में मिला देता है, जिस से मिट्टी में कार्बन कंटेंट बढ़ेगा. मिटटी उपजाऊ होगी और खेत में कटाई के उपरांत तुरंत बोनी का काम हो जाएगा.

कृषि विज्ञान केंद्र, उमरिया के वैज्ञानिक डा. धनंजय सिंह ने बताया कि फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन को वापस भूमि में मिला देने से कई लाभ होते हैं जैसे कि कार्बनिक पदार्थ की उपलब्धता में वृद्धि, पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि, मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार होता है. फसल उत्पादकता में वृद्धि आती है. खेतों में नरवाई का उपयोग खाद एवं भूसा बनाने में करें. नरवाई से कार्बनिक पदार्थ भूमि में जा कर मृदा पर्यावरण में सुधार कर सूक्ष्म जीवी अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, जिस से कृषि टिकाऊ रहने के साथसाथ उत्पादन में वृद्धि होती है.

रेशम फसल की बीमा (Insurance) योजना होगी तैयार

नर्मदापुरम : कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिलीप जायसवाल ने मालाखेड़ी नर्मदापुरम के रेशम परिसर का भ्रमण कर परिसर का अवलोकन किया. भ्रमण के दौरान मंत्री दिलीप जायसवाल ने मालाखेड़ी ककून मार्केट में किसानों के द्वारा उन के ककून विक्रय की प्रक्रिया का अवलोकन किया. इस दौरान उन्होंने देश के कर्नाटक और पश्चिम बंगाल से आए व्यापारियों और मार्केट में मौजूद किसानों से संवाद किया.

मंत्री दिलीप जायसवाल ने किसानों से चर्चा करने के बाद बताया कि मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन की दरों की अपेक्षा मार्केट में अधिक दरें प्राप्त हो रही हैं, जिस से किसानों में प्रसन्नता है.

राज्य मंत्री दिलीप जायसवाल ने मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन की क्रय दरें बाजार अनुरूप ककून दरें संशोधित करने के निर्देश दिए, जिस से मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन भी ककून खरीद सकेगा व स्थापित मशीनें संचालित रहेंगी. मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन ककून उत्पादन से वस्त्र उत्पादन तक की पूरी प्रक्रिया संचालित करेंगे, जिस से धागाकरणों व ट्विस्टिंग बुनकरों को रोजगार प्राप्त हो सकेगा. सिल्क समग्र 2 लागू की जाएगी, जिस से किसानों को लाभ होगा.

उन्होंने परिसर में संचालित रेशम वस्त्र बुनाई का काम का अवलोकन किया एवं प्राकृत शोरूम का भी अवलोकन किया. इस दौरान कुटीर एवं ग्रामाद्योग विभाग के अन्य घटक के अधिकारी भी उपस्थित थे. बताया गया कि रेशम के समग्र विकास के लिए ज्वाइंट वेंचर एसपीवी, एडीवी आदि विकल्पों पर भी विचार किया जाएगा और किसानों की रेशम फसल की बीमा योजना तैयार की जाएगी. निरीक्षण के दौरान जिला रेशम अधिकारी रविंद्र सिंह उपस्थित थे.

कृषि एवं कौशल विकास के साथ ही आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है

25 दिसंबर, 2023 को मध्य प्रदेश में भाजपा की डा. मोहन यादव सरकार में गौतम टेंटवाल को जब राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया गया था, तब न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि देशभर के कृषि विज्ञान के छात्रों में खुशी और रोमांच का माहौल था, क्योंकि ऐसा बहुत कम होता है कि कृषि विज्ञान के छात्र सक्रिय राजनीति में आ कर अपना कैरियर बनाएं और मंत्री पद तक पहुंचें. लेकिन यह सब अचानक नहीं हुआ था, बल्कि इस के पीछे गौतम टेंटवाल की अथक मेहनत,  लगन, समर्पण और प्रतिभा का भी योगदान था.

आरएके एग्रीकल्चर कालेज, सीहोर से बीएससी एग्रीकल्चर और फिर एमएससी पर्यावरण में करने के बाद गौतम टेंटवाल ने राजनीति विज्ञान से भी एमए की डिगरी ली और अब मंत्री पद की भारी व्यस्तता होने के बाद भी पीएचडी करने की इच्छा रखते हैं.

यही वह जज्बा है, जो किसी को भी शीर्ष पर पहुंचा देता है. हालांकि, गौतम टेंटवाल छात्र जीवन से ही आरएसएस के जरीए सक्रिय राजनीति में रहे हैं, लेकिन इसे पेशा उन्होंने बनाया साल 2008 में, जब राजगढ़ जिले की सारंगपुर विधानसभा से वे पहली बार भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे.

पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिर से जीत का परचम लहराया, तो उन्हें मंत्री पद से नवाजा गया और विभाग भी अहम मिला कौशल विकास यानी स्किल डवलपमैंट का, जिस पर इन दिनों सरकार खासा ध्यान दे रही है और तरहतरह की योजनाएं भी संचालित भी कर रही है.

भोपाल में गौतम टेंटवाल से उन के निवास पर लंबी बात हुई. पेश हैं, उस के महत्वपूर्ण अंश :

self-reliant India

सवाल : आप कृषि स्नातक हैं और अब कौशल विकास मंत्री हैं इस नाते कृषि और स्किल डेवलपमेंट को कैसे कनेक्ट करते हैं?

जवाब : यह बहुत अहम और अच्छा सवाल है, जिसे बोलचाल की भाषा में कहें तो खेतीकिसानी और कौशल विकास का गहरा और पुराना नाता है. किसान हमेशा से ही उपलब्ध साधनों, अनुभवों और नई तकनीक को अपनाता रहा है और कृषि की भाषा में कहें तो खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी और मत्स्यपालन सहित कृषि आधारित दूसरे उद्योगों में कौशल विकास के जरीए रोजगार हासिल किए जा सकते हैं. इस के लिए जरूरी है कि इस डिजिटल युग में किसानों के लिए औनलाइन मार्केटिंग, ई-कौमर्स और सरकारी योजनाओं की जानकारी पहुंचाई जाए. कौशल विकास इस में अहम रोल निभाता है.

सवाल : वह कैसे, जरा विस्तार से बताएंगे?

जवाब : जी. कुछ योजनाओं का जिक्र मैं यहां कर रहा हूं, जो बहुत लोकप्रिय हो रही हैं और किसानों के लिए लाभप्रद भी हैं. पहली है ‘ड्रोन दीदी’, जिस के तहत किसानो को वैज्ञानिक तरीके से जोड़ कर खेती की पैदावार व कीटनाशकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से खासतौर से महिलाओं के लिए लौंच किया गया है. इस में महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी जाती है और ड्रोन भी प्रदान किए जाते हैं. मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी इस के उत्साहजनक परिणाम आ रहे हैं.

दूसरी अहम योजना पीएमकेवायवाय यानी प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना है, जिस के तहत युवाओं को कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया जाता है. एक और योजना है, जिस का जिक्र मैं खासतौर से करना चाहूंगा. वह है राष्ट्रीय कृषि विस्तार कार्यक्रम. इस में किसानों को नई तकनीक और विधियों की ट्रेनिंग दी जाती है. इसी तरह ई-नाम में किसानों को डिजिटल प्लेटफार्म पर अपनी पैदावार बेचने का मौका मिलता है.

सवाल : क्या वजह है कि किसान अभी भी नई तकनीक अपनाने से हिचकते हैं?

जवाब : नहीं, ऐसा नहीं है. किसान अब तेजी से नई तकनीक अपना रहा है, लेकिन यह भी सही है कि सभी किसान परंपरागत खेती का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं. देखिए, कौशल विकास का सीधा सा मतलब है, लोगों को विभिन्न कामों में माहिर बनाना. इस में तकनीकी जानकारी, आधुनिक उपकरणों और नई विधियों का प्रशिक्षण शामिल है.

इसी तरह कौशल विकास का मकसद लोगों को आत्मनिर्भर बनाना और रोजगार के मौके पैदा करना है. कृषि के क्षेत्र में कौशल विकास किसानों को अधिक उत्पादन करने और बेहतर तकनीकों को अपनाने में मदद करता है. कौशल विकास के जरीए किसान आधुनिक उपकरणों और तकनीक का उपयोग करना सीखते हैं. मसलन, ड्रिप इरिगेशन, जैविक खेती और हाईड्रोपोनिक्स. इस के अलावा कटाई के बाद फसल को सही तरीके से संरक्षित करना और फसल को बाजार में वाजिब दाम में बेचना भी तो कौशल विकास ही है.

सवाल : आजकल हर कहीं आत्मनिर्भर भारत की बात होती है. इस में कृषि और कौशल विकास कहां फिट होते हैं?

जवाब : देखिए, कृषि न केवल की मध्य प्रदेश की, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था की भी रीढ़ है. हमें जोकुछ भी मिलता है, वह खेतीकिसानी से ही मिलता है. मेरा मानना है कि कृषि और कौशल विकास का तालमेल ही ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बना सकता है. अगर किसान नए कौशल सीखते, अपनाते हैं और उन्नत कृषि पद्धतियों को अपनाएं, तो वे न केवल अपनी आय को बढ़ा सकते हैं, बल्कि देश की माली हालत को भी मजबूत बना सकते हैं. कृषि एवं कौशल विकास को साथ ला कर ही आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.

मक्का है मेवाड़ के लिए खास 

उदयपुर : कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि मेवाड़ के लिए मक्का बहुत खास फसल है. वैसे भी यहां कहावत है, ’गेहूं छोड़ ’न मक्का खाणो – मेवाड़ छोड़ न कठैई नी जाणों’. मक्का कभी अनाज और चारे के लिए बोया जाता था, लेकिन अनुसंधान और कृषि वैज्ञानिकों के प्रयासों की बदौलत मक्का से पोपकौर्न, बेबीकौर्न, जर्म औयल (मक्का का तेल), जिस में एंटीऔक्सीडेंट भरपूर मात्रा उपलब्ध है. यही नहीं, मक्का से स्टार्च के बाद इथेनाल उत्पादन भी संभव है, जिसे भविष्य में पैट्रोल के विकल्प के रूप में अपनाया जा सकता है.

उन्होंने आश्वस्त किया कि ग्रीन फ्यूल की दिशा में एपपीयूएटी हर संभव मदद करेगा. कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि साल 1955 में स्थापित राजस्थान कृषि महाविद्यालय कोई छोटामोटा कालेज नहीं है, बल्कि देश का दूसरा कृषि विश्वविद्यालय है.

उन्होंने आगे कहा कि एमपीयूएटी ने हाल ही प्रताप-6 संकर मक्का बीज पैदा किया है, जिस का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 65 क्विंटल है. कृषि राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी की मंशानुरूप इस बीज के प्रयोग से मक्का का क्षेत्रफल बढ़ाने की जरूरत नहीं है, बल्कि उत्पादन दोगुना हो सकता है.

देश का पहला प्राकृतिक खेती का सैंटर भी इस विश्वविद्यालय के अधीन भीलवाड़ा में कार्यरत है. डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि एमपीयूएटी के अंतर्गत 8 कृषि विज्ञान केंद्र हैं, जबकि 9वां कृषि विज्ञान केंद्र विद्याभवन में चल रहा है, लेकिन वह भी इसी विश्वविद्यालय का अहम हिस्सा है.

उन्होंने बताया कि एमपीयूएटी ने वर्ष 2024 में 24 पेटेंट प्राप्त किए. यह पेटेंट किसी सिफारिश से नहीं, बल्कि भारत सरकार के कठिन नियमशर्तों पर खरे उतरने पर मिले. मिलेट्स की दिशा में भी एमपीयूएटी ने सराहनीय काम किए. अब जरूरत है तकनीक को विश्वविद्यालय हित में मोनीटाइजेशन किया जाए.

आंरभ में पूर्व छात्र परिषद के संरक्षक डा. आरबी दुबे ने बताया कि जुलाई, 1955 में स्थापित राजस्थान कृषि महाविद्यालय से अब तक 4,441 छात्रछात्राएं स्नातकोत्तर, 3013 स्नातक, जबकि 883 विद्यार्थी पीएचडी डिगरी प्राप्त कर चुके हैं. विगत 5 सालों में 915 विद्यार्थियों का देशविदेश में विभिन्न सेवाओं में चयन हुआ है.

पूर्व छात्र डा. लक्ष्मण सिंह राठौड़, पूर्व कुलपति उमाशंकर शर्मा के अलावा पूर्व छात्र परिषद के पदाधिकारी डा. आरबी दुबे, डा. एनस बारहट, डा. जेएल चौधरी, डा. दीपांकर चक्रवर्ती, डा. सिद्धार्थ मिश्रा आदि ने अतिथियों को साफा, पुष्पगुच्छ, स्मृति चिन्ह दे कर सम्मानित किया.

समारोह में पूर्व छात्र परिषद की ओर से 30 से ज्यादा छात्रछात्राओं, शिक्षकों, किसानों को सम्मानित किया गया. सम्मानित होने वाले प्रमुख नाम किसान राधेश्याम कीर, रमेश कुमार डामोर, डा. केडी आमेटा, डा. एस. रमेश बाबू, रजनीकांत शर्मा, डा. भावेंद्र तिवारी, वर्षा मेनारिया व अमीषा बेसरवाल आदि हैं.

कालेज के गलियारों में खूब की हंसीठिठोली, राष्ट्रीय सम्मेलन में शरीक हुए 500 से ज्यादा विद्यार्थी

जीवन के उत्तरार्द्ध में डग भर रहे सैकड़ों पूर्व कृषि छात्रों ने पिछले दिनों एकदूसरे को गले लगा कर न केवल पुरानी यादों को ताजा किया, बल्कि भूलेबिसरे किस्सों को याद करते हुए खूब अट्ट़हास किए. मौका था- राजस्थान कृषि महाविद्यालय पूर्व छात्र परिषद के 23वें राष्ट्रीय सम्मेलन का. पूर्व छात्रों के सम्मेलन में देशविदेश के 500 से ज्यादा छात्र शामिल हुए.

पूर्व छात्रों ने महाविद्यालय के गलियारों में घूमते हुए कालेज के दिनों की यादों को ताजा किया. साथ ही, एकदूसरे से जुड़ने, मोबाइल नंबर लेतेदेते हुए भविष्य में नित्य एकदूसरे से बतियाने का वादा किया.

उल्लेखनीय है कि इस महाविद्यालय ने विश्वस्तरीय वैज्ञानिक दिए हैं. पद्मश्री डा. आरएस परोदा, डा. एसएल मेहता, डा. पीके दशोरा, डा. लक्ष्मण सिंह राठौड़, डा. भागीरथ चौधरी जैसे अनेकानेक नाम हैं, जिन्होंने देशविदेश में नाम किया.

इस मौके पर पूर्व छात्र परिषद के अध्यक्ष डा. नरेंद्र सिंह बारहठ ने कहा कि परिषद की ओर से अगले वर्ष से प्रतिभावन छात्रछात्राओं को 6 स्कौलरशिप प्रदान की जाएगी. उन्होंने बताया कि पूर्व छात्र परिषद को निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) वाला बनाने के प्रयास होंगे. इस के अलावा परिषद के तत्वावधान में प्रति वर्ष पूर्व छात्रों की क्रिकेट प्रतियोगिता आयोजित होगी.

इस मौके पर परिषद की ओर से पूर्व छात्रों के लिए अतिथिगृह बनाने की पेशकश की गई. साथ ही, इस के लिए कुलपति से जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया. अतिथिगृह बनाने के लिए प्रयोग पूर्व छात्र ने अपने जन्मदिन पर एक हजार रुपए देने की घोषणा की.

कालेज के पूर्व छात्र रहे डा. डीपी शर्मा की स्मृति में उन की बहन हेमलता ने परिषद को 2 लाख रुपए भेंट किए. स्वर्ण जयंती की दहलीज पर पहुंच चुके राजस्थान कृषि महाविद्यालय की नींव जुलाई, 1955 में डा. ए. राठौड़ ने रखी. आरंभ में अतिथियों ने पूर्व छात्र परिषद की स्मारिका का विमोचन भी किया गया.