फसल अवशेष (Crop Residues) हैं कमाई का जरीया

उमरिया : कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी धरणेन्द्र कुमार जैन के संज्ञान में यह बात आई है कि वर्तमान में गेहूं एवं धान की फसल कटाई अधिकांशतः कंबाइंड हार्वेस्टर से की जाती है. कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) से भूसा न बना कर जला देने और धान के पैरा यानी पुआल को जला देने से धान का पुआल एवं भूसे की आवश्यकता पशु आहार के साथ ही अन्य वैकल्पिक रूप में एकत्रित भूसा ईंटभट्ठा एव अन्य उद्योग भी प्रभावित होते हैं. गेहूं एवं धान के पुआल की मांग प्रदेश के अन्य जिलों के साथ अनेक प्रदेशों में भी होती है. एकत्रित भूसा 4-5 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर विक्रय किया जा सकता है.

इसी तरह गेहूं का पुआल भी बहुपयोगी है. पर्याप्त मात्रा में भूसा/पुआल उपलब्ध न होने के कारण पशु अन्य हानिकारक पदार्थ जैसे पौलीथिन आदि खाते हैं, जिस से वे बीमार होते हैं और अनेक बार उन की मृत्यु हो जाने से पशुधन की हानि होती है.

नरवाई का भूसा 2-3 माह बाद दोगुनी कीमत पर विक्रय होता है और किसानों को यही भूसा बढ़ी हुई कीमतों पर खरीदना पड़ता है. साथ ही, नरवाई एवं धान के पुआल में आग लगाना खेती के लिए नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है. इस की वजह से विगत सालों में गंभीर आग लगने की घटनाएं होने से बड़े पैमाने पर संपत्ति की हानि हुई है.

गरमी के सीजन में बढ़ते जल संकट में बढ़ोतरी के साथ ही कानून व्यवस्था के विपरीत परिस्थितियां बन जाती हैं. खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जनधन, संपत्ति, प्राकृतिक वनस्पति एव जीवजंतु आदि नष्ट होने से व्यापक नुकसान होने के साथ ही खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं के नष्ट होने से खेत की उर्वराशक्ति धीरेधीरे घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

वहीं खेत में पड़ा कचरा, भूसाडंठल सड़ने पर भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं, जिन्हें जला कर नष्ट करना ऊर्जा को नष्ट करना है. आग जलाने से हानिकारक गैसों के उत्सर्जन से पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ रहा है. ऐसी स्थिति में गेहूं एवं धान की फसल कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) और धान के पुआल को जलाना प्रतिबंधित करने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के अंतर्गत प्रतिबंधात्मक आदेश जारी करना आवश्यक है. अत्यावश्यक परिस्थितियां बनने व समयाभाव के कारण सार्वजनिक रूप से जनसामान्य को सूचना दे कर आपत्तियों को सुना जाना संभव नहीं है.

कलक्टर एवं जिला दंडाधिकारी ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के अंतर्गत जनसामान्य के हित सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा, पर्यावरण की हानि रोकने एंव लोक व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रत्येक कंबाइंड हार्वेस्टर के साथ भूसा तैयार करने के लिए स्ट्रा रीपर अनिवार्य करते हुए संपूर्ण उमरिया जिले की राजस्व सीमा क्षेत्र में गेहूं एव धान की फसल कटाई के उपरांत बचे हुए गेहूं के डंठलों (नरवाई) और धान के पुआल को जलाने (आग लगाए जाने) को एकपक्षीय रूप से प्रतिबंधित किया है. आदेश का उल्लंघन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 223 के अंतर्गत दंडनीय होगा.

सपनों को हकीकत में बदलने की बानगी है “बुरहानपुर का बनाना पाउडर”

भोपाल : मध्य प्रदेश का एक छोटा सा जिला बुरहानपुर बरसों से अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और हरेभरे खेतों के लिए प्रसिद्ध है. अब यह जिला “एक जिला एक उत्पाद” की पहल के तहत सफलता के नए आयाम गढ़ रहा है. केले की फसल, जो कि इस जिले की मूल पहचान है, अब न केवल किसानों की आय बढ़ा रही है, बल्कि एक नई उद्यम क्रांति का प्रतीक भी बन गई है.

“बनानीफाय” का बनाना पाउडर न केवल आर्थिक समृद्धि ला रहा है, बल्कि यह एक उदाहरण है कि सही दिशा में किए गए प्रयास किस तरह से छोटे जिलों को भी अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिला सकते हैं. बुरहानपुर के मस्त केले अब सबकी जुबां पर मिठास घोल रहे हैं.

इसी साल फरवरी में हुए “बनाना फेस्टिवल” में यहां के उद्यमियों और किसानों के बीच संवाद का परिणाम अब धरातल पर नजर आ रहा है. इसी प्रेरणा से बुरहानपुर के उद्यमी रितिश अग्रवाल ने “बनाना पाउडर” बनाने की यूनिट लगाई है. यह यूनिट जिला प्रशासन और उद्यानिकी विभाग के सहयोग से खकनार के धाबा गांव में चलाई जा रही है.

“बनानीफाय” ब्रांड के नाम से तैयार किया जा रहा यह बनाना पाउडर शारीरिक पोषण से भरपूर है. यह बच्चों और बड़ों सभी के लिए ऊर्जा और सेहत का खजाना है. इस यूनिट में केले से 3 प्रकार का पाउडर तैयार किया जा रहा है. खाने योग्य पाउडर (केले के गूदे से), जो कि शुद्ध और बेहद उच्च गुणवत्ता वाला है. सादा पाउडर (केले के छिलके सहित), जो खाने योग्य है और फाइबर से भी भरपूर है. केले के छिलके से तैयार पाउडर को खाद (मैन्योर) के रूप में उपयोग किया जाएगा. इस के उपयोग से सभी प्रकार की फसलों की गुणवत्ता एवं उत्पादन मात्रा में भी सुधार होगा.

इस प्रोजैक्ट को “प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्यम उन्नयन योजना” के तहत 10 लाख रुपए की सब्सिडी प्राप्त हुई. कुल 75 लाख रुपए पूंजी निवेश से बनी यह यूनिट एक मिसाल बन गई है. इस में अहमदाबाद से लाई गई आधुनिक मशीनों का उपयोग किया जा रहा है, जो उत्पादन प्रक्रिया को तेज और कुशल बनाती है.

Banana Powder

“बनानीफाय” ब्रांड के उत्पादों को न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों में भी भेजा जा रहा है. इस के 250 ग्राम और 500 ग्राम के पैकेट क्रमशः 280 रुपए और 480 रुपए की कीमत पर उपलब्ध हैं.

यूनिट की खासियत यह है कि यहां केले के छिलके को भी बेकार नहीं जाने दिया जाता. छिलकों से बना पाउडर नर्सरियों और उद्यानिकी फसलों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा. यह पर्यावरणीय संरक्षण और कृषि उत्पादकता बढ़ाने का एक बेहतरीन उदाहरण है.

नेपानगर की विधायिका मंजू दादू और कलक्टर, बुरहानपुर, भव्या मित्तल द्वारा शुभारंभ की गई यह यूनिट अब न केवल बुरहानपुर के किसानों और उद्यमियों के लिए प्रेरणा बन गई है, बल्कि यह यूनिट “एक जिला एक उत्पाद” योजना की वास्तविक सफलता का प्रतीक बन गई है.

सांगोद में कृषि मेला : ऊर्जा मंत्री का नवीन तकनीक अपनाने पर जोर

जयपुर : कोटा जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग के संयुक्त तत्वावधान में कृषि एवं कृषि से संबंधित विभागों की विभिन्न लोक हितकारी योजनाएं, नवीन अनुसंधानों और कृषि विभाग के नूतन आयामों को किसानों एवं हितकारकों के मध्य लोकप्रिय बनाने के लिए पिछले दिनों कृषि उपज मंडी, सांगोद में ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर के मुख्य आतिथ्य में किसान मेले का आयोजन किया गया.

ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर ने उपस्थित किसानों एवं हितधारकों को अधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने, प्रचलित आधुनिक तकनीक जैसे नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी के उपयोग को बढ़ाने, कृषि विभाग की नवीनतम तकनीक अपनाने के लिए भी प्रेरित किया.

उन्होंने किसानों का आव्हान किया कि वे अधिक उपज देने वाली किस्मों को बढ़ावा दें एवं जल बचत के लिए फव्वारा सिंचाई विधि व बूंदबूंद सिंचाई विधि को अपनाएं. साथ ही, जिले की प्रमुख फसलों प्रमुखतया सोयाबीन, लहसुन, चना आदि पर नवीनतम अनुसंधान एवं तकनीक को किसानों को अधिक से अधिक पहुंचाने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया.

मंत्री हीरालाल नागर ने आगामी 2 सालों में किसानों को दिन के समय 6 घंटे बिजली उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया. साथ ही, सोलर ऊर्जा को अधिक से अधिक प्रोत्साहित करने एवं उपयोग करने के लिए निर्देशित किया.

संयुक्त निदेशक, कृषि विस्तार रवींद्र कुमार जैन ने बताया कि मेले में कृषि, उद्यान, पशुपालन, डेयरी, सहकारिता विभाग, कृषि विश्वविद्यालय, कोटा, कृषि विज्ञान केंद्र, बोरखेड़ा, कोटा, नीबू उत्कृष्टता केंद्र, नान्ता फार्म, कोटा, राजीविका विभाग, नाबार्ड एवं एलडीएम, कृषि विपणन विभाग, राजस्थान बीज निगम, कोटा, राष्ट्रीय बीज निगम, इफको, कृभको, रामशांताय जैवी कृषि अनुसंधान केंद्र, जाखोड़ा, कोटा एवं चंबल फर्टिलाइजर एंड कैमिकल लिमिटिड, गढ़ेपान, कोटा द्वारा विभागीय योजनाओं, कृषि नवाचार एवं संस्थानिक योजनाओं की जानकारी दी गई.

साथ ही, शरणागति एफपीओ की निदेशक दुर्गेश कुमारी द्वारा ड्रोन के माध्यम से छिडकाव का लाइव प्रदर्शन किया गया.  उद्यान विभाग एवं सौर ऊर्जा निर्माता कंपनी के संयुक्त तत्वावधान में सोलर ऊर्जा का लाइव प्रदर्शन किया गया. राजीविका के स्वयं सहायता समूह को 1.34 करोड़ रुपए का चेक दिया गया.

प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना से मिली सफलता की कहानी किसान की जबानी

विदिशा : बासौदा जनपद पंचायत के ग्राम राजोदा के किसान वीर सिंह जाटव ने प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना से कृषि कार्यों में मिली मदद और लाभ के चलते किस तरह खेती लाभ का धंधा बनी और मिट्टी परीक्षण के क्या फायदे हुए हैं की कहानी अपनी ही जबानी प्रस्तुत की है.

किसान वीर सिंह जाटव बताते हैं कि साल 2023-24 में वे कृषि विभाग बासौदा के संपर्क में आए और गांव में आयोजित प्रशिक्षण में किसानों को प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के अंतर्गत खेत की मिट्टी की जांच कराने की सलाह दी. साथ ही, मिट्टी के नमूने लेने की विधि एवं सरसों फसल की नवीन तकनीकी की जानकारी के साथसाथ अन्य जानकारियां भी मिली.

साल 2023-24 (रबी) सीजन में उन्होंने अपने खेत का मिट्टी नमूना ले कर कृषि विभाग बासौदा में दिया. उस के बाद मिट्टी की जांच कर उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड बना कर दिया गया और बताया गया कि मिट्टी का स्वास्थ्य कैसा है, क्या कमी है सहित अन्य जानकारियां दी गई. उस के बाद किसान ने रबी मौसम में सरसों फसल की बोआई एक एकड़ में की, जिस में संतुलित बीज व संतुलित उर्वरक में डीएपी 25 किलोग्राम, यूरिया 40 किलोग्राम और जिंक सल्फेट 10 किलोग्राम की उचित मात्रा प्रयोग की गई, जिस का खर्च लगभग 1,000 रुपए आया.

सरसों की फसल लगाने में खेत की तैयारी, बीज, उर्वरक, 1 सिंचाई, दवा और अन्य खर्चे मिला कर कुल लागत औसतन 13 हजार  से 15 हजार रुपए प्रति एकड़ (सरसों की फसल में कम मात्रा में बीज व उर्वरक, एक सिंचाई फसल बोआई के लगभग 35 दिन की अवस्था पर, उचित समय पर बोआई करने से कीट व रोगों का कम प्रकोप हुआ. जिस के फलस्वरूप लागत भी कमी आई और सरसों की फसल में विशेष तौर पर पशुओं के प्रकोप से भी नुकसान नहीं हुआ और सरसों फसल की कुल उपज 08.25 क्विंटल प्रति एकड़, जिस से एमएसपी के विक्रय मूल्य आय 46,610 रुपए प्राप्त हुई और शुद्ध आय औसतन 32,610 रुपए प्राप्त हुई.

किसान वीर सिंह जाटव बताते हैं कि उन्हें अच्छा लाभ प्राप्त हुआ और खेती लाभ का धंधा बनी. उन्होंने अब उन सभी खेतों की मिट्टी का परीक्षण करा लिया है. साथ ही, दूसरे किसानों को भी मिट्टी परीक्षण कराने के लिए प्रेरित करते हैं. सरसों की फसल को भी दूसरे किसानों ने पसंद किया और अगले वर्ष फसल लगाने व मिट्टी परीक्षण करने के लिए प्रेरित हुए हैं.

किसान वीर सिंह जाटव ने प्रधानमंत्री की प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना और कृषि विभाग बासौदा के अधिकारियो के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया है. वे बताते हैं कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का लाभ लेने से पहले वे साधारण खेती करते थे, जिस में वह खरीफ व रबी मौसम में लगाने वाली फसलों में एकदूसरे की देखादेखी फसलों में अंधाधुंध और मनमाने तरीके से खाद व उर्वरकों का प्रयोग करते थे, जिस से अधिक खर्च होता था. लेकिन अब उन के खर्चों में बहुत कमी आ गई है और खेती लाभ का धंधा बन गई है.

कृषि उत्पाद प्रोसैसिंग (Agricultural Product Processing) में हैं अनेक संभावनाएं

प्रतापगढ़ : 21 नवंबर, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अंर्तगत कार्यरत अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना के तहत प्रोजैक्ट “तकनीकी हस्तक्षेप और उद्यमशीलता विकास के माध्यम से लैंगिक समानता को बढ़ावा देना के अंतर्गत लहसुन एवं मूंगफली के उत्पादों में उद्यमशीलता की संभावनाएं” विषय पर बम्बोरी गांव, थाना छोटी सादड़ी, प्रतापगढ़ की महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई.

परियोजना प्रभारी डा. विशाखा सिंह ने महिलाओं को लहसुन एवं मूंगफली से बनने वाले उत्पादों जैसे लहसुन पाउडर, चटनी, फ्लैक्स, अचार, मूंगफली की चिक्की, तेल आदि की बाजार में भारी मांग रहती है. यह कृषि उत्पाद आप के गांव में कच्चे माल के रूप में सस्ते दाम पर उपलब्ध हैं, इसलिए इन उत्पादों के उद्यमशीलता से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. यह काम सीखने के लिए आप को प्रशिक्षण के माध्यम से कुशल बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता रहा है. वैज्ञानिक डा. सुमित्रा मीना ने उत्पादों की पैकिंग, लेबलिंग एवं लागत का लेखाजोखा रखने के संबंध में जागरूक किया.

वैसे भी अनेक तरह के कृषि उत्पादों की प्रोसैसिंग के लिए समयसमय पर ट्रेनिंग होती रहती हैं. अनेक प्रोसैसिंग मशीनें भी उपलब्ध हैं, जो इस काम को आसान बनाते हैं.

प्रशिक्षण आयोजन में सरपंच पुष्पा देवी एव प्रगतिशील किसान मांगीलाल का विशेष संयोग रहा. कार्यक्रम का संचालन दीपाली चंदवानी ने किया.

नवाचारों को बढ़ावा देने में अग्रणी एमपीयूएटी : उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के साथ हुआ समझौता

उदयपुर : 21 नवंबर, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि सौर ऊर्जा दोहन, पेटेंट्स, आईएसओ प्रमाणित लैब, आईएसओ प्रमाणित केवीके, कालेज, स्कूप्स एच इंडेक्स, क्राप केफेटेरिया, सभी केवीके में मिलेट वाटिका विकसित करने जैसी दर्जनों गतिविधियां एमपीयूएटी को प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों में शीर्ष पर रेखांकित करती है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने पिछले दिनों हल्द्वानी, उत्तराखंड में कृषि वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए यह बात कही. कार्यक्रम में राजस्थान के महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर एवं उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के बीच शोध व नवाचार को ले कर एक समझौतापत्र पर हस्ताक्षर हुए, जिस में यह तय किया गया कि दोनों विश्वविद्यालयों के बीच शोध व नए प्रयोगों का आदानप्रदान होगा. इस से दोनों विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को लाभ मिल सकेगा.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने इस मौके पर विस्तारपूर्वक देश के कृषि परिदृश्य पर बात रखी और कहा कि बीजों से पैदावार बढ़ाने को ले कर देशभर में बहुत काम हो रहा है, लेकिन कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल को हमें रोकना होगा. यही नहीं, हमें हरित क्रांति के दुष्प्रभावों को देखना होगा और उसी के अनुरूप रणनीतियां बनानी होंगी.

उन्होंने आगे कहा कि एमपीयूएटी ने 14 से अधिक विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ करार किया हुआ है, जिस का लाभ विद्यार्थियों को मिल रहा है. एमपीयूएटी ने वर्ष 2024 में 25 पेटेंट हासिल किए व कुल पेटेंट 54 हैं. एमपीयूएटी ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है. एमपीयूएटी में सौर ऊर्जा से हर साल एक करोड़ रुपए से ज्यादा के बिजली बिल का खर्च बचाया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के 5 महाविद्यालयों और एक विभाग को मिला कर 1100 किलोवाट (1.1 मेगावाट) का औन ग्रिड प्लांट लगा हुआ है. यह प्रदेश के सभी विश्वविद्यालया में लगा सब से बड़ा प्लांट है. राजस्थान कृषि महाविद्यालय में 500 किलोवाट, जबकि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में 465 किलोवाट का प्लांट लगा है.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि मोटा अनाज व आईएसओ के क्षेत्र में बेतहरीन कार्य के लिए उन के विश्वविद्यालय को राज्यपाल अवार्ड से सम्मानित किया गया है. उन्होंने कहा कि देश की 65 फीसदी आबादी आज भी सीधेतौर पर खेती से जुड़ी है. ऐसे में कृषि के क्षेत्र में शोध एवं नवाचार की बहुत आवश्यकता है.

उन्होंने उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की सराहना करते हुए कहा कि यहां पर आईसीटी व शिक्षार्थियों के लिए पाठ्य सामग्री बहुत अच्छी गुणवत्तायुक्त तैयार की जा रही है, जिस का लाभ निश्चय ही उन के विश्वविद्यालय के विद्यार्थी ले पाएंगे.

कार्यक्रम में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओपीएस नेगी ने विश्वविद्यालय के कार्यों को निरूपित करते हुए एक पीपीटी प्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया.

विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी ने कहा कि इस तरह के करार से शिक्षार्थियों को एक बड़ा फलक मिल पाएगा, जिस से उन के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे. उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में विज्ञान शाखा के निदेशक प्रो. पीडी पंत ने व विश्वविद्यालय कुलसचिव खीमराज भट्ट ने सभी का आभार व्यक्त किया.

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रो. मंजरी अग्रवाल, प्रो. डिगर सिंह फरस्वाण, डा. कल्पना लखेड़ा पाटनी, डा. रंजू जोशी, प्रो. राकेश चंद्र रयाल आदि ने भी विचार रखे.

फलासिया के किसान करेंगे उन्नत कृषि यंत्रों का उपयोग

नई दिल्ली : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविध्यालय के फार्म मशीनरी विभाग में कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा संचालित कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र में श्रम विज्ञान एवं सुरक्षा पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना द्वारा फलासिया की ग्राम पंचायत पानरवा, में कृषि कार्यों में सुरक्षा पर एकदिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल से परियोजना समन्वयक डा. सुखबीर सिंह द्वारा परियोजना की तरफ से क्षेत्र की 40 महिला किसानों को उन्नत कृषि यंत्र भी प्रदान किए गए.

डा. सुखबीर सिंह ने बताया कि खेती में किसानों की रुचि जगाने के लिए कृषि कार्यों को सुगम एवं आरामदायक बनाने के लिए उन्नत एवं श्रम साध्य कृषि यंत्रों को अपनाना अति आवश्यक है. कृषि कार्यों के दौरान उड़ने वाले धूलकणों, रसायनों से बचने के लिए स्प्रे सेफ्टी किट का उपयोग करना बहुत जरूरी है. अरावली के इस सुंदर पहाड़ी क्षेत्र में किसानों के छोटेछोटे खेत हैं, जिन में बड़े कृषि यंत्रों का उपयोग संभव नहीं है. इसलिए यहां के किसानों को एकदूसरे से जुड़ कर खेती करनी होगी.

खेती में उपलब्ध हैं अनेक छोटे कृषि यंत्र

फार्म मशीनरी विभाग के विभागाध्यक्ष एवं परियोजना प्रभारी डा. सांवल सिंह मीना ने बताया कि परियोजना के उदयपुर केंद्र द्वारा विकसित प्रताप व्हील हो एक ऐसा यंत्र है, जिस से किसान बहुत ही आसान तरीके से फसलों से खरपतवार निकाल सकते हैं. इस यंत्र की सहायता से किसान निराई का काम भी कर सकते हैं.

परियोजना के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सोलर मक्का थ्रैशर भी छोटे किसानों के लिए बहुत लाभदायक है, क्योंकि इस मशीन द्वारा भुट्टे से छिलका एवं दाना निकालने के दोनों काम एकसाथ हो जाते हैं. परियोजना की तरफ से अनुसूचित जाति के 40 किसानों को प्रताप व्हील हो, स्प्रे सुरक्षा किट एवं उन्नत दरांत के साथसाथ 20 किसानों को नेपसैक स्प्रयेर प्रदान किए गए.

फार्म मशीनरी विभाग से डा. सीपी दोशी ने किसानों को खेती के दौरान तेज धूप से बचने के लिए परियोजना द्वारा बनाई गई सोलर टोपी की जानकारी देते हुए बताया कि इस टोपी में सोलर से चलने वाला एक पंखा लगा हुआ है, जिस से किसान तेज धूप में भी आराम से खेती के काम कर सकते हैं.

तनिक सहायक रेखा धाकड़ ने महिला किसानों को स्प्रे सुरक्षा किट को पहना कर बताया कि कैसे यह किट स्प्रे काम के दौरान कीटनाशकों को सांस एवं आंख में जाने से रोकता है.

कार्यक्रम में कृषि विभाग, फलासिया के प्रभारी कृषि अधिकारी शिवदयाल मीना ने किसानों को सरकार द्वारा कृषि यंत्रों पर चलाई जा रही विभिन्न अनुदान योजनाओं के बारे में बताते हुए कहा कि सरकार यंत्रीकरण को बढ़ाने के प्रयास कर रही है. वास्तव में कृषि में लागत कम करने के लिए यंत्रीकरण बहुत ही आवश्यक है.

प्रशिक्षण के दौरान फार्म मशीनरी विभाग से डा. नवीन कुमार सी., नरेंद्र कुमार यादव और भरत कुमार ने भी किसानों को आधुनिक तकनीकी के बारे में बताया एवं परियोजना में विकसित मक्का थ्रैशर को प्रदर्शित किया गया. उन्नत कृषि यंत्र पा कर किसानों के चेहरे खिल उठे और कहने लगे कि अब हम भी खेत में आधुनिक किसान बन कर काम करेंगे.

दलहन, तिलहन व फलफूल ( Pulses, Oilseeds and Fruit Crops) के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता जरूरी 

उदयपुर :  कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि खाद्यान्न में तो हम संपन्न हैं, लेकिन दलहन, तिलहन और फलफूल उत्पादन के क्षेत्र में अभी बहुतकुछ करने की जरूरत है. दलहन, तिलहन में हम आत्मनिर्भर ही नहीं, बल्कि निर्यातक बन सकें, इस के लिए भरसक प्रयास करने होंगे.

राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी चौधरी पिछले दिनों राजस्थान कृषि महाविद्यालय के नूतन सभागार में आयोजित पूर्व छात्र परिषद के 23वें राष्ट्रीय सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि जब तक किसान के घर में समृद्धि नहीं होगी, देश में खुशहाली नहीं आ सकती.

उन्होंने आगे कहा कि दलहन व तिलहन उत्पादन में कृषि विज्ञान केंद्र महती भूमिका निभा सकते हैं. उन्होंने आश्वस्त किया कि कृषि विश्वविद्यालय संज्ञान में लाए, तो दलहन व तिलहन, फल एवं फूल उत्पादन में बेहतरी के लिए भारत सरकार हर संभव मदद को तैयार है.

मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान देश की 145 करोड़ की आबादी को हमारे अन्नदाता किसान ने अविस्मरणीय संबल दिया. यही कारण रहा कि आज देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है. किसानों की आय बढ़ाने के प्रधानमंत्री के सपने को मूर्त रूप देने के लिए देशभर के कृषि विज्ञान केंद्र किसानों के लिए जनजागृति का काम करे.

उन्होंने कहा कि खासकर उदयपुर संभाग जनजाति बहुल इलाका है, ऐसे में यहां के विधार्थियों को कृषि शिक्षा ले कर किसानों की आय बढ़ाने में मददगार बनना चाहिए. उन्होंने कहा कि आज धरती को बचाने की आवश्यकता है. डीएपी यूरिया के अनियंत्रित प्रयोग और अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग से धरती की सेहत काफी बिगड़ चुकी है. इस पर चिंतन के साथसाथ जनजागरण की जरूरत है. धरती स्वस्थ रहेगी, तो मनुष्य भी स्वस्थ रहेगा. पानी को भी बचाना होगा. उन्नत बीज उत्पादन के साथसाथ कम पानी से पैदावारी कृषि वैज्ञानिकों का मूल मंत्र होना चाहिए. पहले बाजरा फसल 120 दिन में तैयार होती थी, लेकिन वैज्ञानिकों ने उन्नत बीज तैयार किए तो अब 70 दिन में फसल पक रही है.

Pulses Oilseeds and Fruit Crops

समारोह के विशिष्ट अतिथि सांसद मन्नालाल रावत ने देशभर से आए राजस्थान कृषि महाविद्यालय के पूर्व छात्रों को अनुभव का खजाना बताते हुए कहा कि वे कृषि से जुड़े सभी सैक्टर में अपने अनुभव साझा करें, ताकि 2047 में विकसित भारत के सपने को साकार रूप दिया जा सके.

कार्यक्रम के अति विशिष्ट अतिथि देवनारायण बोर्ड के चेयरमैन ओम बढाना व जिलाध्यक्ष भगवती प्रसाद सारस्वत ने भी विचार रखे.  उन्होंने कहा कि खेती में लागत बढ़ने से किसान विचलित है.

गांव ढ़ोलीखेड़ा बनेगा स्मार्ट गांव 

उदयपुर : 30 नवंबर, 2024. कृषि विज्ञान केंद्र, भीलवाड़ा द्वारा राज्यपाल स्मार्ट विलेज पहल कार्यक्रम के तहत एकदिवसीय वरिष्ठ नागरिक सेवार्थ शिविर का आयोजन चयनित गांव ढ़ोलीखेड़ा में किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुलपति महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि राज्यपाल स्मार्ट विलेज के तहत चयनित गांव ढ़ोलीखेड़ा को अब स्मार्ट गांव बनाया जाएगा.

उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत कृषि के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकी का समावेश कर गांव में फसल उत्पादन, पशुपालन, मुरगीपालन, बागबानी द्वारा किसानों को अधिक आमदानी अर्जित करने के लिए प्रेरित किया जाएगा.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि एमपीयूएटी ने स्मार्ट विलेज योजना के अंतर्गत पूरे सेवा क्षेत्र में 5 गांवों का चयन किया है और उन्हें उसी तरह स्मार्ट गांवों में परिवर्तित किया जाएगा, जैसा कि हम ने पिछले 3 सालों में मदार में किया था.

डा. आरएल सोनी, निदेशक, प्रसार शिक्षा ने बताया कि कृषि में कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसानों को औषधीय फसलों एवं व्यापारिक फसलों की उन्नत खेती करने की आवश्यकता है. केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. सीएम यादव ने बताया कि इस शिविर में 165 वरिष्ठ नागरिकों ने भाग लिया, जिन्हें निःशुल्क स्वास्थ्य जांच और वृद्धावस्था पेंशन, ईकेवाईसी खाते की नकल, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, उन्नत कृषि यंत्रों पर अनुदान, वरिष्ठ नागरिक तीर्थ यात्रा योजना आदि जैसी विभिन्न सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी के साथ ही आ रही समस्याओं का निवारण किया गया. शिविर में वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य की जांच कर दवाई भी उपलब्ध करवाई गई.

इस अवसर पर टीएसपी कैपिटल योजना के तहत मिनी औयल मिल और सोलर थ्रैशर का उद्घाटन कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक द्वारा किया गया. इस दौरान सरपंच बद्री लाल जाट, डीन सीओए, भीलवाड़ा, मुख्य वैज्ञानिक डीएफआरएस, भीलवाड़ा, केवीके के अन्य कर्मचारी और बड़ी संख्या में किसान उपस्थिति थे.

66 मीटर लंबी पगड़ी बांध कर कुलपति का किया सम्मान

कृषि विज्ञान केंद्र, शाहपुरा के सेवा क्षेत्र के बोरानी गांव के लोगों द्वारा कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक को सम्मानित किया गया. वहां 6 गांवों के 66 किसानों ने 66 मीटर लंबी पगड़ी बांध कर उन के 66वें साल के जीवन की शुरुआत की व बधाई दी.

हकृवि में मशरूम (Mushroom) उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण कार्यक्रम

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान द्वारा पिछले दिनों तीनदिवसीय मशरूम उत्पादन तकनीक पर 2 प्रशिक्षण आयोजित किए गए. पहले प्रशिक्षण में मध्य प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा राज्य के विभिन्न जिलों से प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया. इन में कई महिलाएं भी शामिल थीं, जबकि दूसरे प्रशिक्षण में गुरु गोरखनाथ राजकीय महाविद्यालय, हिसार के विज्ञान संकाय के छात्रों ने हिस्सा लिया.

संस्थान के सहनिदेशक डा. अशोक कुमार गोदारा ने बताया कि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज के मार्गदर्शन में आयोजित किए गए प्रशिक्षण कार्यक्रम में मशरूम उत्पादन तकनीक के बारे में प्रशिक्षणार्थियों को विस्तृत जानकारी दी गई. मशरूम के उत्पादन के लिए कृषि अवशेषों को ही इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए मशरूम उत्पादन के लिए इन का इस्तेमाल होना स्वच्छ पर्यावरण के लिए एक अच्छा विकल्प है.

प्रशिक्षण के संयोजक डा. सतीश मेहता ने बताया कि मशरूम उत्पादन को शुरू में एक व्यवसाय के रूप में छोटे स्तर पर शुरू किया जाना चाहिए.

इस प्रशिक्षण में पौध रोग विभाग के सहायक वैज्ञानिक डा. जगदीप सिंह ने सफेद बटन खुम्ब की छोटी और लंबी विधि से खाद तैयार करने, केसिंग तैयार करने की विधि इत्यादि विषयों पर प्रकाश डाला.

सब्जी विभाग के सहवैज्ञानिक डा. विकास कंबोज ने वातानुकूलित कक्ष में मशरूम उत्पादन और स्पेंट मशरूम खाद की विशेषताओं पर प्रकाश डाला. वहीं डा. राकेश कुमार चुघ ने ढींगरी, मिल्क और कीड़ा जड़ी/कोर्डीसैप मिलिटेरिस मशरूम को उगाने कि विधि के बारे में बताया. डा. अमोघवर्षा ने शिटाके मशरूम की उत्पादन तकनीक पर व्याख्यान दिया.

डा. संदीप भाकर ने बताया कि सफेद बटन खुम्ब उगाने पर लगभग 50 रुपए प्रति किलोग्राम लागत आती है और बाजार में लगभग 100 रुपए प्रति किलोग्राम इस का भाव मिल जाता है. प्रशिक्षणार्थियों का विश्वविद्यालय की मशरूम टैक्नोलौजी प्रयोगशाला का भ्रमण करवाया और व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण जानकारियां दे कर उन का कौशल विकास किया.