Lakhpati Didi : शिवराज सिंह चौहान ने किया लखपति दीदियों से संवाद

Lakhpati Didi : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले दिनों 2 दिवसीय उत्तराखंड दौरे पर थे, जहां दूसरे दिन उन्होंने ऋषिकेश के आईडीपीएल मैदान में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत लखपति दीदी एवं प्रगतिशील किसानों के साथ आयोजित संवाद कार्यक्रम में हिस्सा लिया.

इस से पहले उन्होंने महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों, कृषि और उद्यान विभाग द्वारा लगाए गए स्टालों का भी अवलोकन किया. उन के साथ राज्य के मुख्यमंत्री और प्रदेश के कृषि मंत्री गणेश जोशी भी मौजूद रहे.

इस संवाद कार्यक्रम में स्वयं सहायता समूहों की कई महिलाएं और प्रगतिशील किसान भी मौजूद रहे. इस दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लखपति दीदी रीना रावत से बात की.

रीना रावत स्वयं सहायता समूह चलाती हैं और प्रदेश में चल रही ‘लखपति दीदी योजना’ की लाभार्थी हैं. मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रीना रावत से पूछा कि ‘लखपति दीदी योजना’ ने कैसे उन की जिंदगी में बदलाव लाया है.

जवाब में रीना रावत ने कहा कि उन के समूह में 8 से 10 महिलाएं हैं, जो ‘लखपति दीदी योजना’ की लाभार्थी हैं. वे फूड प्रोसैसिंग के क्षेत्र में आज आत्मनिर्भर हैं. पहले उन्हें उन के पति के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब वे अपने नाम और काम से जानीपहचानी जाती हैं. उन्होंने बताया कि आज उन के समूह में हर महिला तकरीबन 10 से 15 हजार रुपए तक की आमदनी हासिल कर रही हैं.

Lakhpati Didiहरिद्वार के प्रगतिशील किसान और मशरूमपालक मनमोहन ने कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से बातचीत के दौरान बताया कि साल 2017 में उन्होंने सरकार की योजनाओं का लाभ ले कर मशरूम उत्पादन शुरू किया था और लोगों को रोजगार भी दिया था. साथ ही, उन की खुद की आमदनी भी कई गुना बढ़ गई थी. बीते 4-5 सालों में उन्होंने मशरूम उत्पादन में 12 से 15 करोड़ रुपए का कारोबार किया. आज पूरे उत्तराखंड में वे मशरूम सप्लाई करते हैं और डोमिनोज जैसे बड़े ब्रांड्स भी उन से व्यापार कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन के फार्म का नाम भी ‘मामाभांजा फार्म’ है.

कार्यक्रम में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘लखपति दीदी योजना’ के लाभार्थियों और किसानों को संबोधित भी किया. उन्होंने कहा कि यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो उत्तराखंड में है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड प्रगति की ओर बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा कि भारत सरकार महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए प्रतिबद्ध है और इसीलिए सरकार संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण देगी. उन्होंने कहा कि आज तक उत्तराखंड में सवा लाख बहनें ‘लखपति दीदी’ बन गई हैं.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ब्रांड हाउस औफ हिमालयाज की सरहाना करते हुए कहा कि उत्तराखंड में हाउस औफ हिमालयाज के तहत कई बेहतरीन उत्पाद बन रहे हैं. यदि इन उत्पादों की बेहतरीन तरीके से मार्केटिंग और प्रचारप्रसार हो जाए, तो ये उत्पाद पूरी दुनिया में प्रसिद्ध होंगे.

उन्होंने मंच से घोषणा करते हुए कहा कि हाउस औफ हिमालयाज के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय उत्तराखंड में सैंटर औफ एक्सीलैंस खोलेगा, ताकि हाउस औफ हिमालयाज का ब्रांडिंग में, मार्केटिंग में और रिसर्च में विकास व्यापक तौर पर हो सके.

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इस अवसर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह देख कर काफी खुशी होती है कि आज हमारी बहनें अपने सपनों को साकार कर समाज को एक नई दिशा दे रही हैं. आज राज्य में 67 हजार स्वयं सहायता समूह बना कर लगभग 5 लाख ग्रामीण परिवारों की महिलाएं संगठित हो कर अपना व्यवसाय कर रही हैं. 7 हजार से अधिक गांव संगठन और 500 से अधिक क्लस्टर संगठन बना कर राज्य की महिलाएं सामूहिक नेतृत्व की एक बेहतरीन मिसाल पेश कर रही हैं.

उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकार का उद्देश्य केवल ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना ही नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि हमारी माताएं, बहनें और बेटियां आत्मनिर्भर बनें, परिवार और समाज को माली रूप से मजबूत कर सकें. आज इन सभी आंकड़ों को रखने के बाद मैं यह विश्वास के साथ कह सकता हूं कि हमारे देवभूमि उत्तराखंड की महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में काम करते हुए समाज के सामने महिला सशक्तीकरण का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं.

Rice Maize : चावल और मक्का की बढ़ी पैदावार

Rice Maize : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नई दिल्ली के पूसा कैंपस स्थित अग्निहाल में पत्रकारों से पिछले दिनों बातचीत की. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन खरीफ 2025 अभियान में हुई चर्चा के साथसाथ खरीफ की बोआई से पहले कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की तैयारियों व रणनीतियों के बारे में जानकारी दी. प्रैस कौन्फ्रेंस में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर सहित विभिन्न राज्यों से आए कृषि मंत्री भी उपस्थित रहे.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि आज राज्यों के कृषि मंत्रियों, केंद्र और राज्य सरकार और आईसीएआर एवं अन्य संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों व वर्चुअल तौर पर जुड़े सभी पदाधिकारियों के साथ चर्चा हुई.

राज्यों के बेहतर प्रदर्शन, किसानों की कड़ी मेहनत के चलते खरीफ के रकबे में वृद्धि हुई है, वहीं खरीफ 2023-24 के दौरान चावल का क्षेत्रफल 40.73 मिलियन हेक्टेयर था, जो खरीफ 2024-25 में 43.42 मिलियन हेक्टेयर हो गया है. वहीं चावल का उत्पादन खरीफ 2023-24 में 113.26 मिलियन टन था, जो खरीफ 2024-25 में 120.68 मिलियन टन हो गया है.

इसी तरह से खरीफ में साल 2023-24 के दौरान मक्के का क्षेत्रफल 8.33 मिलियन हेक्टेयर था, जो खरीफ 2024-25 में 8.44 मिलियन हेक्टेयर हो गया और मक्के का उत्पादन खरीफ 2023-24 में 22.25 मिलियन टन था, जो खरीफ 2024-25 में 24.81 मिलियन टन हो गया है.

उन्होंने बताया कि पिछले साल की तुलना में कुल खाद्यान्न क्षेत्र में 3.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जिस में चावल और मक्का में वृद्धि देखी गई है. समान रूप से खरीफ 2024 में कुल खाद्यान्न उत्पादन में पिछले साल 2023 खरीफ उत्पादन की तुलना में 6.81 फीसदी की वृद्धि हुई है, जिस में चावल, मक्का और ज्वार आदि फसलों में उच्च उत्पादन देखा गया है.

उन्होंने आगे कहा कि विपरीत जलवायु परिस्थितियों के बावजूद हमारे खाद्यान्न का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. रबी सीजन का भी अनुमान बेहद आशाजनक है. आईसीएआर के हमारे वैज्ञानिकों द्वारा कई नई जलवायु अनुकूल किस्मों के विकास के कारण यह लक्ष्य हासिल हुआ है. साथ ही, राज्यों ने भी बेहतर ढंग से खेती में उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया है. उत्पादन वृद्धि में योगदान के लिए उन्होंने सभी को बधाई दी और कहा कि हमारे किसानों की मेहनत को मैं प्रणाम करता हूं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि आगे आने वाले खरीफ के मौसम में हम नई किस्मों के बीज ठीक ढंग से किसानों के पास पहुंचा पाएं, इस के लिए प्रयास जारी है. बड़े स्तर पर अच्छे बीज किसानों तक पहुंचे, इस के लिए काफी चर्चा हुई है.

उन्होंने कहा कि लैब टू लैंड की नीति के तहत वैज्ञानिक और किसान साथ मिल कर काम करें, इस की बड़ी आवश्यकता है. यह खुशी की बात है कि हमारे पास आईसीएआर, कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विश्वविद्यालय को मिला कर 16,000  वैज्ञानिक हैं, जिन के योगदान को शामिल करते हुए किसानों तक शोध की सही जानकारी पहुंचाने के लिए एक प्रभावी व्यवस्था बनाई गई है.

इस बार खरीफ फसल के लिए जो आमतौर पर 15 जून के बाद शुरू होती है, उसी के मद्देनजर 4-4 वैज्ञानिकों की टीम बनाई जाएगी, इन के साथ राज्यों का कृषि विभाग जुड़ेगा, केंद्र सरकार के कृषि विभाग के साथी भी जुड़ेंगे, प्रगतिशील किसान जुड़ेंगे और यह 15 दिन खरीफ फसल के उत्पादन में वृद्धि के लिए अच्छे बीज, बेहतरीन तकनीक का लाभ दिलाने के लिए बातचीत होगी.

एक दिन में 3 जगहों पर एक टीम जाएगी और किसानों से बात करेगी, जिस में अच्छे बीज के बारे में, कृषि पद्धितियों के बारे में, जलवायु अनुकूल बोआई के बारे में, उचित फसल के निर्णय के लिए विस्तार से चर्चा कर के ये टीम किसानों को दिशा देने का काम करेगी.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि जहां तक खरीफ में बीज का सवाल है, बीज की आवश्यकता है, 164.254 लाख क्विंटल की और हमारे पास पर्याप्त बीज 178.48 लाख क्विंटल उपलब्ध है. हम सभी राज्यों की मांग के अनुसार उन्न्त बीज उपलब्ध करा पाएंगे.

खुशी की बात ये है कि सीड रिपलेसमेंट की दर बढ़ रही है. पहले किसान परंपरागत बीज बोते रहते थे, लेकिन 10 साल से पहले ही सीड बदल देना चाहिए. 10 साल हो जाने पर बीज की गुणवत्ता अच्छी नहीं रहती. बीज बदलने की प्रवृत्ति में तेजी आ रही है, जिस के लिए मैं राज्यों को बधाई देता हूं. उन्होंने कहा कि गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता के लिए काम किया जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि देश के किसानों के लिए यूरिया, डीएपी, एनपीके की पर्याप्त व्यवस्था की गई है. विदेश में बढ़ रही कीमत के बावजूद सब्सिडी किसानों को मिल रही है. हम ने खाद को स्टोर करना शुरू कर दिया है.

उन्होंने आगे फसलों के संदर्भ में कहा कि गेहूँ, चावल हमारे यहाँ पर्याप्त मात्रा में होता है लेकिन दलहन और तिलहन का हमें आयात करना पड़ता है. भारत सरकार ने जो दलहन मिशन शुरू किया है, उसे इम्प्लीमेंट करने की बात सम्मेलन में हुई. उत्पादन कैसे बढ़े, इस पर भी चर्चा हुई और औयल सीड के उत्पाद को बढ़ाने पर भी विचार किया गया है.

इस के साथ ही एक और प्रमुख विषय है, ‘अत्यधिक उर्वरकों का इस्तेमाल’. रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए प्राकृतिक कृषि मिशन भारत सरकार ने बनाया है. किसानों को समझा कर किसान की जमीन के टुकड़े पर प्राकृतिक खेती की जाएगी. 33 राज्यों का एनुअल एक्शन प्लान आ गया है. 7.78 लाख हेक्टेयर में 15,560 क्लस्टर बनाए जाएंगे और 10,000 बायोरिसोर्स सैंटर बनाए जाएंगे. 16 प्राकृतिक खेती के केंद्रों की पहचान की गई है और 3,100 वैज्ञानिकों को किसान को मास्टर ट्रेनिंग के रूप में ट्रेन किया गया है. कम से कम 18 लाख किसान प्राकृतिक खेती की शुरुआत करें, 1 करोड़ किसानों को हम सैंसीटाइज करें, इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है.

मंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि ये बैठक बहुत गंभीरता से हुई है. हम ने तय किया है कि रबी की बैठक एक दिन के लिए नहीं, बल्कि 2 दिन की होगी. हम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया है कि जो भेदभावपूर्ण सिंधु जल समझौता किया गया था, जिस में 80 फीसदी पानी पाकिस्तान के हिस्से में और केवल 20 फीसदी हिस्सा पानी का भारत के हिस्से में है, उसे रद्द किया गया है.

अब इस का लाभ किसानों को मिलेगा. विशेषकर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, जम्मू कश्मीर. अधिक पानी के कारण उत्पादकता बढ़ेगी, बाढ़ नियंत्रण जैसे काम भी बेहतर होंगे. किसानों को बिजली भी मिलेगी, जिस से उत्पादन भी बढ़ेगा.

Conference : राष्ट्रीय कृषि खरीफ सम्मेलन 2025 का हुआ आयोजन

Conference :  केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुआई में पिछले दिनों नई दिल्ली स्थित पूसा कैंपस के भारत रत्न सी. सुब्रह्मण्यम औडिटोरियम में कृषि खरीफ अभियान 2025 पर राष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन हुआ. इस सम्मेलन में 10 से ज्यादा राज्यों के कृषि मंत्रियों ने पूसा कैंपस पहुंच कर और अन्य कृषि मंत्रियों ने वर्चुअल माध्यम से जुड़ कर अपने विचार साझा किए व कृषि की उन्नति की दिशा में केंद्र के साथ मिल कर काम करने पर सहमति जताई.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यों से आए कृषि मंत्रियों, अधिकारियों का स्वागत करते हुए कहा कि भारत की 145 करोड़ जनता के लिए पर्याप्त खाद्यान्न, फल और सब्जियों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने की बड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी हमारे कंधों पर है. यह एक असाधारण काम है, जिसे हमें मिल कर पूरा करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि आज हम ने किसानों की मेहनत से अनाज के भंडार भर दिए हैं. उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. अभी हम ने चावल की 2 किस्में विकसित की हैं, जिस से उत्पादन बढ़ेगा, 20 दिन पहले फसल तैयार हो जाएगी, पानी बचेगा, मीथेन गैस का उत्सर्जन कम होगा, जल्द ही ये किस्में किसानों को उपलब्ध कराई जाएंगी. साल 2014 के बाद 2,900 नई किस्मों का विकास हमारे वैज्ञानिकों ने किया है.

उन्होंने यह भी कहा कि ये खरीफ कौन्फ्रेंस कोई औपचारिकता नहीं है. आगे रबी कॉन्फ्रेंस 2 दिन के लिए होगी. हमारा काम है उत्पादन बढ़ाना, उत्पादन की लागत घटाना, उत्पाद के ठीक दाम देना, आपदा में सहायता करना, फलों और फूलों की खेती को बढ़ावा देना है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यह धरती केवल हमारे लिए नहीं है. इस धरती को आने वाली पीढ़ियों के लिए भी स्वस्थ रखना है. अत्यधिक उर्वरकों के इस्तेमाल से धरती की सेहत बिगड़ रही है.

इस सम्मेलन में उन्होंने कहा कि मैं कृषि मंत्री हूं, तो 24 घंटे मुझे यही सोचना चाहिए कि किसानों की बेहतरी कैसे हो. हमें मेहनत के साथ कृषि के लिए उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग सुनिश्चित करते हुए खेती की बेहतरी के लिए काम करना होगा. हमें लैब से लैंड तक टैक्नोलौजी और रिसर्च को पहुंचाना ही होगा. इस कड़ी में उन्होंने ‘विकसित भारत संकल्प अभियान’ के जरीए वैज्ञानिकों की टीम बनाने और किसानों तक पहुंच बनाने की रूपरेखा भी रखी और बताया कि किस प्रकार से ये टीमें गांवगांव पहुंच कर किसानों के बीच जागरूकता के लिए काम करेंगी.

उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि हमारे पास 16,000 वैज्ञानिक हैं, जिन में से 4-4 वैज्ञानिकों की टीमें बना कर जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया जाएगा. इन टीमों का उपयोग किसानों की सेवा के लिए होगा. ये टीमें साल में 2 बार निकलेंगी. रबी फसल के लिए अक्तूबर में अभियान चलेगा. साथ ही, उन्होंने राज्यों के कृषि मंत्रियों से इस अभियान से सक्रिय रूप से जुड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि जब तक हम सब मिल कर एक दिशा में नहीं चलेंगे, तब तक खेतीकिसानी के हित में वांछित नतीजे नहीं मिलेंगे.

इस सम्मेलन में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री रामनाथ ठाकुर भी शामिल हुए. राज्यों से आए मुख्य सचिवों, अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, कृषि आयुक्त, अन्य वरिष्ठ अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने भी शिरकत की.

कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने सम्मेलन की रूपरेखा रखी और राज्यों के साथ समन्वय और तालमेल के साथ काम करने की बात कही. सचिव (उर्वरक) रजत कुमार मिश्रा ने भी प्रस्तुति दी.

आईसीएआर के महानिदेशक डा. एमएल जाट ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय कृषि धीरेधीरे जलवायु अनुकूल होती जा रही है, जो बड़ी उपलब्धि है. कम हेक्टेयर में ज्यादा उपज के लिए भी काम चल रहा है.

आईसीएआर के डीडीजी (कृषि प्रसार) डा. राजबीर सिंह ने विकसित कृषि संकल्प अभियान के बारे में विस्तारपूर्वक बताया. डीडीजी (फसल विज्ञान) डा. डीके यादव ने भी प्रस्तुति दी. मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक राहुल सक्सेना ने मौसम के संबंध में जानकारी दी. संयुक्त सचिव अजीत कुमार साहू, संयुक्त सचिव सैमुअल प्रवीण कुमार और संयुक्त सचिव पूर्णचंद्र किशन ने भी प्रस्तुति दी. कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव पेरिन देवी ने सम्मेलन में आए सभी का आभार व्यक्त किया.

Farming Tasks : मई माह में खेती के ज़रूरी काम

Farming Tasks : मई माह में गरमी चरम पर होती है. लिहाजा हमेशा तो एसी में बैठना मुमकिन नहीं होता. इसलिए गरमी का कहर तो झेलना ही पड़ता है. जब बात किसानों की हो, तब तो आराम हराम होता है. किसान गरमी की लपट झेलते हुए बदस्तूर अपना काम करते रहते हैं और अनाज व अन्य फसलें उगाते रहते हैं.

पेश है, मई महीने के दौरान किए जाने वाले खेती के कामों का एक खुलासा:

* गेहूं की कटाई खत्म होने के बाद खाली खेतों को अगली फसल के लिहाज से तैयार कर लें.

* गेहूं के साथसाथ जई व जौ वगैरह फसलें दे चुके खेतों की मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें ताकि पिछली फसल के अवशेष खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाएं और मिट्टी भुरभुरी हो जाए. पिछली फसल का मोटामोटा कचरा बटोर कर खेत से दूर फेंक देना चाहिए.

* मई की गरमी का खास फायदा यह होता है कि इस से तमाम कीड़ेमकोड़े झुलस कर खत्म हो जाते हैं. इसीलिए करीब 2 हफ्ते के अंतराल से खेतों की लगातार जुताई करते रहना चाहिए. ऐसा करने से गरमी व लू का असर मिट्टी में अंदर तक जाता है और वहां मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया व फफूंदी नष्ट हो जाते हैं.

* मिट्टी को भरपूर धूप का सेवन कराना काफी फायदेमंद होता है. इस से मिट्टी का अच्छाखास इलाज हो जाता है और मिट्टी अगली फसल के लिए बढि़या तरीके से तैयार हो जाती है.

* अपने ईख के खेतों का खास खयाल रखें और 2 हफ्ते के अंतर से सिंचाई करते रहें, ताकि खेतों में भरपूर नमी बनी रहे.

* गन्ने के खेतों में सिंचाई के साथसाथ निराईगुड़ाई भी करते रहें ताकि खरपतवार न पनप सकें.

* गन्ने की फसल में कीड़ों व रोगों का खतरा बराबर बना रहता है, लिहाजा उन के मामले में सतर्क रहें. जरा भी जरूरत महसूस हो तो कृषि वैज्ञानिक से सलाह ले कर कीटों व रोगों का इलाज कराएं.

* अगर धान की अगेती किस्म की नर्सरी डालनी हो तो मई के आखिर तक डाल सकते हैं. नर्सरी में कंपोस्ट खाद या गोबर की सड़ी खाद का इस्तेमाल जरूर करें. इस के अलावा फास्फोरस व नाइट्रोजन का भी सही मात्रा में इस्तेमाल करें.

* धान की नर्सरी डालने में ध्यान रखें कि हर बार जगह बदल कर ही नर्सरी डालें. धान की नर्सरी से अच्छा नतीजा पाने के लिए सिंचाई में कमी न करें.

* अगर सिंचाई का इंतजाम हो तो चारे के लिहाज से ज्वार, बाजरा व मक्के की बोआई करें. पानी की दिक्कत होने पर इन फसलों की बोआई न करें, क्योंकि इन फसलों को ज्यादा पानी की जरूरत होती है.

* बरसीम, लोबिया व जई की बीज वाली फसलें इसी माह तैयार हो जाती हैं. ऐसे में उन की कटाई का काम खत्म करें.

* आखिरी हफ्ते में अरहर की अगेती किस्मों की बोआई करें, मगर बोआई से पहले जुताई कर के व खाद वगैरह मिला कर खेत को सही तरीके से तैयार करना जरूरी है.

* सूरजमुखी के खेतों की सिंचाई करें, क्योंकि गरम मौसम में खेत में नमी रहना जरूरी है.

* सूरजमुखी की सिंचाई के वक्त इस बात का खयाल रखें कि पौधों की जड़ें न खुलने पाएं. अगर पानी से जड़ें खुल जाएं, तो उन पर मिट्टी चढ़ाना न भूलें. मिट्टी चढ़ाने से पौधों को मजबूती मिलती है और वे तेज हवाओं को भी झेल लेते हैं.

* सूरजमुखी के खेत में मधुमक्खियों के बक्से छायादार जगह पर रखें. बक्सों के आसपास टबों में पानी भर कर रखें ताकि मधुमक्खियों को पानी की खोज में भटकना न पड़े. मधुमक्खियों से दोहरा फायदा होता है यानी शहद उत्पादन के साथसाथ परागण भी अच्छा होता है.

* सूरजमुखी की फसल को बालदार सूंड़ी व जैसिड रोग का काफी खतरा रहता है. ऐसा होने पर कृषि वैज्ञानिकों से सलाह ले कर दवा छिड़कें.

* गाजर, मूली, मेथी, पालक, शलजम, पत्तागोभी, गांठगोभी व फूलगोभी की बीज वाली फसलें अमूमन इस माह तक तैयार हो जाती हैं. ऐसे में उन की कटाई का काम निबटाएं. बीजों को निकालने के बाद सुखा कर उन का भंडारण करें.

* पहले डाली गई तुरई की नर्सरी के पौधे तैयार हो चुके होंगे, लिहाजा उन की रोपाई निबटाएं.

* तुरई की नई नर्सरी डालने का इरादा हो, तो यह काम फौरन खत्म करें. ज्यादा देर करने पर नर्सरी डालने का समय बीत जाएगा.

* खेत को अच्छी तरह तैयार करने के बाद बारिश के मौसम वाली भिंडी की बोआई करें. बोआई से पहले निराईगुड़ाई कर के खेत के तमाम खरपतवार निकालना न भूलें.

* अगर प्याज के खेतों में नमी कम लगे तो तुरंत हलकी सिंचाई करें. मई के अंत तक प्याज की पत्तियों को खेत पर झुका दें, ऐसा करने से प्याज की गांठें बेहतरीन होंगी.

* मई में लहसुन की फसल तैयार हो जाती है, लिहाजा उस की खुदाई करें. खुदाई के बाद फसल को 3 दिनों तक खेत में सूखने दें. 3 दिन बाद लहसुनों को उठा कर साफ व सूखी जगह पर रखें.

* मई में अकसर लीची के फलों के फटने की शिकायत सामने आती है. इस की रोकथाम के लिए लीची के गुच्छों व पेड़ों पर पानी का अच्छी तरह छिड़काव करना फायदेमंद रहता है.

* आम, अमरूद, नाशपाती, आलूबुखारा, पपीता, लीची व आंवला के बगीचों की 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. इस दौरान सिंचाई में लापरवाही बरतना ठीक नहीं है, क्योंकि गरमी से बागों का पानी बहुत तेजी से सूखता है.

* अगर औषधीय फसल तुलसी की बोआई करनी हो तो इस के लिए मई का महीना सही रहता है.

* मई में ही औषधीय फसल सफेद मूसली भी बो दें. यह बहुत ज्यादा फायदे वाली फसल होती है.

* औषधीय फसल सर्पगंधा की नर्सरी डालने के लिहाज से भी मई का महीना बेहद खास होता है.

* मई के तीसरे हफ्ते में पहाड़ी इलाकों में रामदाना की बोआई करें. बोआई से पहले बीजों को फफूंदीनाशक से उपचारित करें.

* मई में अकसर मछली पालने वाले तालाब सूखने लगते हैं, लिहाजा उन की मरम्मत कराएं ताकि उन का पानी बाहर न निकल सके. तालाब की सफाई का भी खयाल रखें. इस बात का खयाल रखें कि कोई भी तालाब में कचरा न डालने पाए.

* मई में मवेशियों को लू लगने का खतरा बढ़ जाता है, लिहाजा उन्हें बारबार साफ व ताजा पानी पिलाएं. लू लगने पर पशु के सिर पर बर्फ की पोटली रखें व पशु डाक्टर से इलाज कराएं.

* गरमी की वजह से गायभैंस के छोटे बच्चों को अकसर दस्त की बीमारी हो जाती है, ऐसे में उन्हें दूध कम पीने दें. बीमार बच्चे को दूसरे बच्चों से अलग रखें. जरूरी लगे तो डाक्टर को बुलाएं.

* मुरगियों को गरमी से बचाने के लिए उन के शेडों के अंदर कूलरों का इंतजाम करें या शेड की जालियों पर जूट के परदे लगा कर उन्हें पानी से भिगोते रहें. चूंकि मुरगियां नाजुक होती हैं, लिहाजा उन का खास खयाल रखना पड़ता है.

* मवेशियों के खाने का भी पूरा खयाल रखें. उन्हें बासी व खराब चारा न दें, वरना हैजा होने का खतरा रहता है. ऐसे में पशु को बचाना कठिन हो जाता है.

Farming Task

* आम के नए बाग लगाने के लिए 12×12 मीटर पर गड्ढों की खुदाई करें. नर्सरी में बीजू पौधों की सिंचाई करें और खरपतवार निकालें. फलों का चिडि़यों से बचाव करें. अगेती किस्मों के फलों की तोड़ाई करें और उन्हें बाजार में भेजने का इंतजाम करें.

* केले के पौधों में 50-60 ग्राम यूरिया प्रति पौधे की दर से मिलाएं. कीटों की रोकथाम के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी या फोरेट 10 जी 1 चाय चम्मच भर गोफे में डालें. फलों और डंठलों पर कालेभूरे धब्बे दिखाई देने पर कौपर औक्सीक्लोराइड 0.3 फीसदी के घोल का छिड़काव करें. इस के अलावा 5-7 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें और नया बाग लगाने के लिए खेत की तैयारी और गड्ढ़ों की खुदाई करें.

* नीबूवर्गीय फलों के बाग की सिंचाई करें. कैंकर व्याधि और सफेद मक्खी का नियंत्रण संस्तुत विधियों के मुताबिक करें. नए बाग लगाने के लिए 6×6 मीटर पर गड्ढों की खुदाई करें.

* अमरूद के बागों में हलकी जुताई करने के बाद सिंचाई करें. सूखी टहनियों को निकाल दें.

* लीची के फलों को फटने से बचाने के लिए जमीन में सिंचाई द्वारा सही नमी बनाए रखें. नए बाग के लिए 10×10 मीटर की दूरी पर गड्ढों की खुदाई करें.

* अंगूर में 7 से 10 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें. फल पकने की स्थिति से 1 हफ्ते पहले सिंचाई बंद कर दें. फल के गुणों में बढ़ोत्तरी के लिए इथ्रेल 1 मिलीलिटर प्रति 4 लिटर पानी की दर से या जिब्रेलिक एसिड की संस्तुत मात्रा का पौधों पर पर्णीय छिड़काव करें. फसल सुरक्षा के लिए जाल का इस्तेमाल करें.

* आंवले के नए बाग रोपने के लिए 8-10 मीटर की दूरी पर गड्ढों की खुदाई करें और नए रोपे गए बागों की 10-15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें.

* पपीते की फसल में लिंग भेद साफ होने पर नर पौधों को निकालें और जरूरत के मुताबिक सिंचाई का काम करें.

सब्जी और मसाले

* गरमियों में पैदा होने वाली सब्जियों की सिंचाई, तोड़ाई और उन्हें बाजार भेजने का काम करें.

* टमाटर, बैगन, मिर्च की फसलों में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. फलों की तोड़ाई और बाजार का काम करें. टमाटर और बैगन के फलों से बीज निकालें. मिर्च के पके फलों को तोड़ कर सुखाने और बीज निकालने का काम करें.

* भिंडी की फसल में सिंचाई करें.

* फलों की तोड़ाई और बाजार ले जाने का इंतजाम करें. पकी फलियों को तोड़ने के बाद सुखा कर बीज निकालने का काम करें. बीमार और बेकार पौधों को उखाड़ कर जमीन में दबा दें.

* लहसुन और प्याज की खुदाई और उन्हें छाया में सुखाने का काम करें. छंटाई कर के उन्हें हवादार कमरों में रखें. लहसुन में पत्तियों सहित बंडल बना कर रखने से नुकसान कम होता है.

फूल और सुगंधित फसलें

* गुलाब की फसल में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें.

* रजनीगंधा में 15 दिनों के अंतराल पर दिए गए पोषक तत्त्व के मिश्रण को 400 लटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से पर्णीय छिड़काव (फसल अवधि में कुल 16 छिड़काव) करें.

यूरिया 1.108 किलोग्राम, डीएपी 1.308 किलोग्राम, पोटैशियम नाइट्रेट 0.875 किलोग्राम, टी पाल 0.1 फीसदी.

* मेंथा में 10-12 दिनों के अंतर पर सिंचाई और निराईगुड़ाई करें. नाइट्रोजन की बची एकतिहाई मात्रा (40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) की टौप ड्रेसिंग का काम करें.

Spicy Chaat : दहीबड़ा (Dahi Vada) चटपटी चाट और लजीज व्यंजन

Spicy Chaat : दहीबड़ा (Dahi Vada) ऐसा खाने का सामान है जिस को चाट और खाना दोनों के साथ इस्तेमाल किया जाता है. वैसे तो दहीबड़ा (Dahi Vada) एक ही व्यंजन माना जाता है. प्रमुख रूप से यह दही और बड़ा 2 अलगअलग खाने की चीजों से मिल कर बनता है. बड़ा उड़द और मूंग दाल दोनों से बनता है. उत्तर भारत के अवध क्षेत्र में यह उड़द दाल से अधिक तैयार किया जाता है. छोटी से बड़ी कोई दावत हो, दहीबड़ा (Dahi Vada) के बिना पूरी नहीं होती है. चाट की कोई ऐसी दुकान नहीं होती है जहां दहीबड़ा(Dahi Vada) न मिलता हो.

स्ट्रीट फूड से ले कर रैस्टोरैंट तक में हर जगह दहीबड़ा (Dahi Vada) मिलता है. उत्तर भारत में खाने और चाट दोनों के साथ इस का इस्तेमाल किया जाता है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में केवल दहीबड़ा (Dahi Vada) बेचने वाली कई मशहूर दुकानें भी हैं जो केवल मीठे दहीबड़े (Dahi Vada) ही बेचती हैं. लोगों की पसंद को देखते हुए चाट की दुकानों में भी दहीबड़ा (Dahi Vada) बनने लगे हैं. बड़ी दुकानों में एक प्लेट दहीबड़ा की कीमत 80 रुपए तक पहुंच गई है.

दहीबड़ा बनाने में बहुत ही आसान और खाने में मजेदार होता है. दहीबड़ा हर दिल को भाता है. बच्चों को बहुत पसंद है, साथ में सेहत से भरपूर है. इस वजह से यह गांव से ले कर शहर तक हर जगह पर इस का इस्तेमाल होता है. शादीविवाह की दावत में इस का खासतौर पर इस्तेमाल किया जाता है. उड़द दाल की सब से ज्यादा खपत दहीबड़ा बनाने में ही होती है.

उत्तर भारत में उड़द दाल की खेती की सब से बड़ी वजह यही है कि यहां दहीबड़ा का इस्तेमाल खूब होता है. शायद ही चाट की कोई ऐसी दुकान हो, शादी की कोई ऐसी दावत हो, जिस में दहीबड़ा न बनता हो.

उड़द दाल से बड़ा बनाने के लिए सामान : 250 ग्राम उड़द दाल, आधा कड़ाही तेल तलने के लिए, नमक स्वादानुसार, आधी चम्मच हींग, मिक्सर ग्राइंडर, बड़ा बनाने वाला सांचा, जिस में कम समय में ज्यादा बड़ा बन जाते हैं.

दहीबड़ा बनाने के लिए सामग्री : एक चम्मच भुना जीरा पाउडर, आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, 2 कटोरी दही, एक छोटी कटोरी मीठी चटनी, एक छोटा चम्मच नमक मिला लें. इन को आपस में मिला कर दही तैयार हो जाता है.

जब दहीबड़ा परोसना हो, तब धीमे से बड़ा निकालें. इसे पहले से तैयार दही में डाल दें और परोस दें.

बबिता श्रीवास्तव कहती हैं कि दहीबड़ा को ऊपर से गार्निश करने के लिए हरा धनिया और मीठी चटनी के साथ चाट मसाला डाल सकते हैं. दहीबड़ा चाट की तरह और खाने के साथ भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

उड़द दाल का बड़ा बनाने की विधि

उड़द दाल को अच्छे से धो कर पानी में 5 घंटे के लिए भिगो दें. अब पानी हटा दीजिए. दाल मिक्सी में डालिए और साथ में नमक व हींग डालिए. इसे पीस लें, जब तक चिकना पेस्ट न बन जाए.

अब कड़ाही लीजिए और तेज आंच पर रखिए. गरम होने के लिए तेल डालिए. बड़ा बनाने वाले सांचे से बड़े तैयार कीजिए. जब तेल गरम हो जाए, तब कड़ाही में बड़ा संभाल कर डालें. एक मिनट बाद इन को पलट दें. ऐसे ही पलटते रहें, जब तक कि सुनहरा न हो जाए. अब उन्हें बाहर निकालिए.

उड़द दाल के बड़े आप सूखे भी खा सकते हैं, ये खाने में बहुत स्वादिष्ठ लगते हैं. दहीबड़ा बनाने के लिए एक बड़े कटोरे में पानी लीजिए और आधा चम्मच नमक डालिए. अब उस में बड़ा डाल दें. आधा घंटे तक भीगने दें. जब आप को दहीबड़ा परोसना हो तब धीमे से बड़ा निकालें और पानी निचोड़ लें.

अब इस को पहले से तैयार दही में डाल दीजिए. अगर चाहें तो पानी में भीगे हुए ये बड़े 2 से 4 दिन तक महफूज रख सकते हैं. यह खराब नहीं होते हैं. ऐसे में जब खाने का समय हो तो दही में डाल कर इस को ताजा कर लें.

दहीबड़ा में सब से जरूरी होता है कि इस का दही कभी खट्टा न हो. खट्टा होने पर दहीबड़ा का स्वाद खराब हो जाता है.

Agricultural Equipment: कृषि यंत्रों से करें खरपतवार नियंत्रण

Agricultural Equipment : खेतीबारी में अब किसानों की मेहनत को कम करने के लिए मशीन बनाने वालों ने ऐसेऐसे यंत्र बना दिए हैं, जो बड़े काम के साबित हो रहे हैं. खरीफ की फसल में कुछ यंत्र बड़े उपयोगी होते हैं, जो किसानों को खरपतवार हटाने में मददगार बनते हैं.

ऐसे ही कुछ कृषि यंत्रों की जानकारी का लाभ उठाइए.

खरीफ के मौसम में मक्का, ज्वार, बाजरा जैसी फसलों को किसान उगाते हैं जो अनाज के अलावा पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस के अलावा दलहनी फसलों में अरहर, मूंग, उड़द, ज्वार आदि की भी खेती की जाती है.

इन फसलों से अच्छी उपज लेने के लिए किसान उन्नत किस्म के बीज बोने के साथ समयसमय पर फसल में खादपानी भी देते रहें. इस के बावजूद भी फसल में कुछ समय बाद अनेक तरह के खरपतवार उग आते हैं जो खेत में बोई गई फसल की बढ़वार में रुकावट पैदा करते हैं.

खरपतवार खासकर बोआई के 15 दिन बाद ही पनपने लगते हैं इसलिए किसानों को चाहिए कि वे इन खरपतवारों की रोकथाम पर खासा ध्यान दें जिस से फसल से बेहतर उपज ले सकें.

खरपतवार रोकने के लिए समयसमय पर निराईगुड़ाई करना बहुत जरूरी है. निराईगुड़ाई के लिए आज देश में अनेक कृषि यंत्र मौजूद हैं जो इस काम को आसान बनाते हैं. हाथ से चलाने वाले यंत्रों के अलावा पावरचालित यंत्र भी हैं. अनेक छोटेबड़े कृषि यंत्र निर्माता इन्हें बना रहे हैं.

निराईगुड़ाई में कृषि यंत्रों का इस्तेमाल :ध्यान रखें कि ये कृषि यंत्र लाइन में बोई गई फसलों के लिए बेहतर नतीजे देते हैं इसलिए फसल की बोआई लाइनों में ही करनी चाहिए, जबकि बिखेर कर बोई गई फसल में ये यंत्र कारगर नहीं हैं और इस तरह से बोई फसल में पैदावार भी कम ही मिलती है.

पावर वीडर यंत्र

यह मध्यम आकार का यंत्र है. पावर वीडर यंत्र ऐसे किसानों के लिए फायदेमंद है जो बड़ी मशीनें नहीं खरीद पाते हैं. छोटे साइज से ले कर बड़े साइज तक में यह यंत्र आता है. अपनी सुविधानुसार इस का इस्तेमाल किया व खरीदा जा सकता है.

यह यंत्र लाइन में बोई गई सब्जियों, गन्ना, कपास, फूलों की फसल, दलहनी फसलें वगैरह सभी के लिए फायदेमंद है. पहाड़ी इलाकों के लिए भी यह यंत्र सुविधाजनक होता है क्योंकि ऐसे इलाकों में छोटेछोटे खेत होते हैं जहां बड़े यंत्रों का पहुंचना कठिन होता है.

पावर वीडर यंत्र को चलाना बहुत ही आसान है. इस में एक इंजन लगा होता है जो यंत्र के हिसाब से कम या ज्यादा शक्ति का हो सकता है. ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के पिछले कई अंक में इस प्रकार के अनेक यंत्रों की जानकारी दी गई है.

देश में अनेक प्रगतिशील किसान और कृषि यंत्र निर्माता हैं जो ऐसे यंत्रों को बना रहे हैं जिस से किसान फायदा उठा सकते हैं.

सरकार की तरफ से इन कृषि यंत्रों की खरीद पर सरकारी अनुदान भी दिया जाता है जो राज्य और जाति के अनुसार कम या ज्यादा हो सकती है.

पावर वीडर यंत्र खरीदते समय सरकारी अनुदान का फायदा लेने के लिए जिला कृषि अधिकारी या जिला उद्यान या बागबानी कार्यालय में मिलें. जरूरी कागजात जमा कराने के बाद वरीयता के आधार पर इन यंत्रों पर अनुदान उपलब्ध कराया जाता है.

ट्रैकऔन कल्टीवेटर कम वीडर

ट्रैकऔन कंपनी के इस निराईगुड़ाई यंत्र से गन्ना, कपास, मैंथा, फूल, पपीता, केला, सब्जियां व दूसरी लाइनों में बोई गई फसलों की निराईगुड़ाई की जाती है. साथ ही, इस यंत्र से खेत में डाली गई खाद को भी आसानी से मिलाया जा सकता है.

इस यंत्र से निराईगुड़ाई का खर्चा बहुत कम आता है. इस यंत्र को कहीं भी ले जाना आसान है. इस यंत्र को धकेलना नहीं पड़ता. यह चलाने में बहुत ही आसान है और जरूरत के मुताबिक रोटर की चौड़ाई 12 से 18 इंच व गहराई घटाईबढ़ाई जा सकती है इसलिए इस यंत्र से खेत की जुताई की जा सकती है.

पैट्रोल और डीजल से चलने वाले इस के 2 मौडल बाजार में मुहैया हैं. इन दोनों मौडलों में एयरकूल्ड 4 स्टोक इंजन लगा है. मशीन का कुल वजन तकरीबन 80 किलोग्राम है.

ज्यादा जानकारी के लिए आप मोबाइल फोन नंबर 9412703140 या वैबसाइट से जानकारी ले सकते हैं.

Agricultural Equipment

बीसीएस का इटैलियन पावर वीडर

‘पावर वीडर कई यंत्रों का लीडर’ जी हां, इस यंत्र पर यह बात सटीक बैठती है. पावर वीडर से निराईगुड़ाई के अलावा अनेक काम किए जा सकते हैं. बीसीएस ने पावर वीडर के साथ ऐसे यंत्रों को पेश किया है जिन्हें इस वीडर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है:

लौन मूवर : इस यंत्र को पावर वीडर से जोड़ कर लौन, बागबगीचे की घास को आसानी से काटा जाता है.

सीड ड्रिल : इस यंत्र को पावर वीडर से जोड़ कर खेत की बोआई कर सकते हैं.

स्प्रे पंप : पावर वीडर के साथ स्प्रे पंप जोड़ कर आटोमैटिक तरीके से खेत में कृषि रसायनों का छिड़काव या अन्य तरल पदार्थ का भी छिड़काव कर सकते हैं.

ग्रास कटर: यह घास काटने का कृषि यंत्र है. इसे पावर वीडर के आगे जोड़ कर चलाया जाता है. यह बड़ी ही सफाई के साथ घास काटता है.

बीसीएस के कृषि यंत्रों के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए मोबाइल फोन नंबर 09758577305, 09416668485 पर संपर्क कर सकते हैं.

अशोका पावर वीडर

डीजल व पैट्रोल दोनों से चलने वाले इस यंत्र से कपास, गन्ना, लाइन में बोई गई सब्जियां वगैरह की निराईगुड़ाई की जाती है.

ज्यादा जानकारी के लिए आप कंपनी के फोन नंबर 91-5924-273176 या मोबाइल नंबर 09412636370 पर बात कर सकते हैं.

फाल्कन पावर वीडर

यह कंपनी पावर वीडर के अलावा अनेक प्रकार के बागबानी में काम आने वाले यंत्र बनाती है. इन के यंत्र के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए कंपनी की वैबसाइट  या उन के फोन नंबर 91-161-2811899 पर संपर्क कर सकते हैं.

Spinach Farming : पालक खेती से लें भरपूर फायदा

Spinach Farming: पालक विटामिनों और खनिज पदार्थों से भरपूर फसल है. इसे सेहत का खजाना भी कहा जाता है. इस की पत्तियों का प्रयोग सब्जी के अलावा नमकीन पकोड़े, आलू के साथ मिला कर और भुजिया बना कर किया जाता है.

पालक (Spinach) खाने से शरीर को पोषक तत्त्व हासिल होते हैं. ज्यादा मात्रा में प्रोटीन, कैलोरी, खनिज पदार्थ, कैल्शियम और विटामिन ए, विटामिन सी का यह एक मुख्य साधन है जो दैनिक जीवन के लिए बहुत जरूरी है.

भूमि व जलवायु

पालक (Spinach) की खेती ठंडे मौसम में किए जाने की जरूरत होती है. इस की खेती के लिए ज्यादा तापमान की जरूरत नहीं होती, लेकिन कुछ जगह पर वसंत मौसम में भी इसे पैदा करते हैं यानी जायद की फसल के साथ पैदा करते हैं.

खेत की तैयारी

पालक (Spinach) की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन सब से उत्तम बलुई दोमट होती है. पालक को हलकी अम्लीय जमीन में भी उगाया जा सकता है. उर्वरा शक्ति वाली जमीन में बहुत ज्यादा उत्पादन किया जा सकता है.

पालक के खेत में पानी के निकलने का सही बंदोबस्त होना चाहिए. जमीन का पीएच मान 6.0 से 6.7 के बीच ही अच्छा होता है.

3-4 बार खेत की जुताई कर खेत को तैयार करना चाहिए. जुताई के समय हरी या सूखी घास, खरपतवार वगैरह को खेत से बाहर निकाल कर जला देना चाहिए.

गोबर की खाद और रासायनिक खादों का इस्तेमाल : पालक (Spinach) की फसल के लिए 18-20 ट्रौली गोबर की सड़ी खाद और 100 किलोग्राम डीएपी प्रति हेक्टेयर की दर से बोने से पहले खेत तैयार करते समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए व पहली और दूसरी कटाई के बाद 20-25 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर देने  से फसल की पैदावार अच्छी मिलती है.

घर के बगीचे के लिए भी यह एक मुख्य फसल है. क्यारी तैयार करते समय 4-5 टोकरी गोबर की सड़ी खाद या डाई अमोनियम फास्फेट 500 ग्राम 8-10 वर्गमीटर के लिए मिट्टी में बोआई से पहले मिला देते हैं. बाद में फसल को बढ़ने के बाद काटते हैं तो हर कटाई के बाद 100 ग्राम यूरिया उपरोक्त क्षेत्र में छिड़कना चाहिए, जिस से पत्तियों की बढ़वार जल्दी होती है और सब्जी के लिए पत्तियां जल्दीजल्दी मिलती रहती हैं.

उन्नतशील प्रजातियां

पालक (Spinach) की कुछ मुख्य प्रजातियां हैं जिन को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बोने की सिफारिश की जाती है, वे निम्नलिखित हैं:

पालक आल ग्रीन : इस प्रजाति को बोने से एकसाथ हरी पत्तियां हासिल होती हैं. पत्तियां 40 दिन में कटने के लिए तैयार हो जाती हैं. पत्तियां छोटीबड़ी न हो कर एकजैसी होती हैं. वृद्धि काल अंतिम सितंबर से जनवरी माह में शुरू का समय होता है. इसे 5-6 बार काटा जा सकता है.

पालक पूसा ज्योति : यह प्रजाति ज्यादा पैदावार देती है. पत्तियां समान, मुलायम होती हैं और गहरे हरे रंग की होती हैं. पहली कटाई 40-45 दिनों में शुरू हो जाती है. सितंबर से फरवरी माह के अंत तक पत्तियों की बढ़वार ज्यादा होती है.

फसल की 8-10 बार कटाई की जाती है.

यह फसल 45,000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार देती है.

पालक पूसा हरित : इस प्रजाति के पौधे ऊंचे, एकसमान और अच्छी बढ़वार वाले होते हैं. यह ज्यादा पैदा देने वाली प्रजाति है जो सितंबर माह से मार्च माह तक अच्छी बढ़वार करती है.

तय दूरी पर करें बोआई

पालक (Spinach) की बोआई का उचित समय सितंबर से नवंबर माह का है. देरी से बोई जाने वाली फसल फरवरी माह में भी बोई जाती है जो देर तक सब्जी देती है. इस तरह से नवंबर माह से अप्रैल माह तक पालक की सब्जी मिलती रहती है.

पालक (Spinach) को कतारों में भी बोया जाता है जो कि आगे सुविधाजनक रहता है. कतार से कतार की दूरी 20-35 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 5-10 सैंटीमीटर रखते हैं. बीज की गहराई 1-2 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

Spinach Farming

बोने का तरीका

पालक (Spinach) की बोआई 2 तरीकों से की जाती है. पहली विधि में बीज को खेत में छिटक कर बोते हैं. इसे छिटकवां विधि कहते हैं. दूसरी विधि में बीज को समान दूरी पर कतारों में बोते हैं. कतारों की विधि सब से अच्छी रहती है. इस में निराई, गुड़ाई और कटाई आसानी से हो जाती है.

पालक (Spinach) के खेत के लिए बीज की 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा की जरूरत होती है. अच्छे अंकुरण के लिए खेत में नमी का होना जरूरी है. बोने के बाद बीज को जमीन की ऊपरी सतह में मिला देना चाहिए.

बगीचे के लिए बीज की मात्रा 100-125 ग्राम 8-10 वर्गमीटर क्षेत्र के लिए सही होती है. पालक (Spinach) को गमलों में भी लगाया जा सकता है. एक गमले में 4-5 बीज बोने चाहिए. गमलों से भी समयसमय पर अच्छी पैदावार मिलती है. बोने के बाद बीज को हाथ से मिट्टी में मिला देना चाहिए और पानी अंकुरण के दौरान देना चाहिए.

सिंचाई और निराईगुड़ाई : पालक (Spinach) की फसल के लिए पहली सिंचाई अंकुरण के 6-7 दिन बाद करनी चाहिए. बीज की बोआई जमीन में पर्याप्त नमी होने पर करनी चाहिए. इस तरह से सर्दियों में 12-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

जायद या देर से बोने वाली फसल के लिए सिंचाई की ज्यादा जरूरत पड़ती है. इस तरह से पालक की फसल के लिए सिंचाई व नमी को लगातार बनाए रखना बहुत ही जरूरी है.

बगीचे की फसल के लिए भी नमी के लिए जरूरत के मुताबिक सिंचाई करते रहना चाहिए. गमलों में नमी के मुताबिक 2-3 दिन के बाद और जायद की फसल के लिए रोज शाम के समय ध्यान से पानी देते रहना चाहिए. पानी देते समय यह ध्यान रहे कि गमलों में लगे पौधे टूटे नहीं और फव्वारे से पानी ज्यादा ऊपर से नहीं देना चाहिए.

पालक (Spinach) की फसल में रबी फसल के खरपतवार ज्यादा हो जाते हैं. इन को पहली, दूसरी सिंचाई के तुरंत बाद खेत में निराईगुड़ाई करते समय उखाड़ या निकाल देना चाहिए. इस प्रकार से 2-3 निराइयां फसल में करना जरूरी है. ऐसा करने से फसल की उपज ज्यादा अच्छी मिलती है.

पालक की कटाई : पालक (Spinach) की कटाई डेढ़दो महीने के बाद शुरू हो जाती है. पालक की शाखाओं को कुछ ऊपर से काटना चाहिए, जिस से अगला फुटाव जल्दी हो जाए. नाइट्रोजन की मात्रा देने से और भी जल्दी शाखाएं तैयार हो जाती हैं. इस तरह से एक फसल से 4-5 कटाइयां मिल जाती हैं. बाद में कटाई न कर के बीज के लिए छोड़ा जा सकता है. कटाइयां 8-10 दिन के अंतराल पर करते रहनी चाहिए. कटाई दरांती या हंसिया से करनी चाहिए.

रोगों से पौधों का बचाव : पालक (Spinach) की फसल में 2 बीमारियां ज्यादा लगती हैं, जो फसल को नुकसान पहुंचाती हैं. पहली है, डंपिंग औफ और दूसरी है पाउडरी मिल्ड्यू.

डंपिंग औफ बीमारी में छोटा पौधा पिचक जाता है और मर जाता है. यह बीमारी पायथीयम अल्टीयम कवक द्वारा लगती है. इस पर नियंत्रण के लिए सैरासन या सीडैक्स कवकनाशक से बीजों को उपचारित कर के बोना चाहिए.

पाउडरी मिल्ड्यू बीमारी से पालक (Spinach) की फसल को ज्यादा नुकसान होता है. इस बीमारी में पौधों की पत्तियों पर छोटेछोटे पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं जो आगे चल कर बड़ा रूप ले लेते हैं और पूरा पौधा ही खराब हो जाता है. नियंत्रण के लिए सल्फर का धूल भी फायदेमंद होता है. ऐसे रोगी पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए.

पालक (Spinach) की फसल में कुछ कीट भी नुकसान पहुंचाते हैं. कैटरपिलर व ग्रासहोपर मुख्य कीट हैं जो फसल पर लगते हैं. इन पर नियंत्रण के लिए बीएचसी या डीडीटी पाउडर का छिड़काव करना चाहिए. पालक को छिड़काव से 10 दिन बाद तक इस्तेमाल में नहीं लाना चाहिए.

उपज : पालक (Spinach) की उपज प्रत्येक किस्म या प्रजाति के ऊपर निर्भर करती है. पूसा आल ग्रीन 30,000 किलोग्राम और पूसा ज्योति की उपज 45,000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज हासिल होती है. औसतन प्रत्येक प्रजाति की उपज 25-35 हजार किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पैदावार मुहैया हो जाती है. बगीचे में भी 20-25 किलोग्राम पत्तियां हासिल हो जाती हैं जो समयसमय पर मिलती रहती हैं.

समेकित खेती (Integrated Farming) समय की जरूरत

Integrated Farming : नालंदा जिले की रहने वाली अनिता देवी ने कभी सोचा भी नहीं था कि समेकित खेती से उन की और उन के परिवार की दशा और दिशा ही बदल जाएगी. साल 2008 तक वे परंपरागत खेती करती रहीं और कई तरह की कठिनाइयों से जूझती रहीं. एक दिन उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी और मशरूम की खेती करने का मन बनाया. उन्होंने इस के लिए बाकायदा ट्रेनिंग ली और मशरूम का उत्पादन चालू कर दिया. मशरूम बीज उत्पादन, मछलीपालन, मुरगीपालन और मधुमक्खीपालन भी शुरू कर दिया.

समेकित खेती करने पर अनिता को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार दिया था. इस के अलावा साबौर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें नवाचार कृषक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

छोटे से खेत से भी समेकित खेती कर के किसान अपने परिवार का बेहतर तरीके से लालनपालन कर सकते हैं. परंपरागत खेती के साथ मुरगीपालन, मछलीपालन, मधुमक्खीपालन व बीज उत्पादन आदि कर के किसान अपनी आमदनी को कई गुना ज्यादा बढ़ा सकते हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पिछले 5 सालों से उत्तर बिहार के मखाना किसानों को मखाने के साथसाथ सिंघाड़े की समेकित खेती करने के गुर सिखाने में लगा हुआ है. इस दौरान केंद्र ने इस प्रयोग पर करीब 25 लाख रुपए खर्च कर दिए, पर महज 23 हेक्टेयर जलक्षेत्र में ही समेकित खेती करने में कामयाबी मिल सकी है.

कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि अगर बिहार के सभी मखाना किसान एकसाथ समेकित खेती करें, तो उन की आमदनी में 2 गुना इजाफा हो सकता है.

फिलहाल प्रयोग के तौर पर दरभंगा जिले और उस के आसपास के 23 हेक्टेयर जलक्षेत्रों में मखाने के साथ मछली और सिंघाड़े की खेती की गई है. उत्तर बिहार के 13000 हेक्टेयर जलक्षेत्र में मखाने की खेती की जाती है. इन सभी तालाबों और पोखरों में समेकित खेती करने के लिए किसानों को जागरूक बनाया जा रहा है.

बिहार में कुल जलक्षेत्र 3 लाख 61 हजार हेक्टेयर में फैला हुआ है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना सेंटर और दरभंगा के मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों के ताजा शोध में यह बात उभर कर सामने आई है कि 1 हेक्टेयर जलक्षेत्र में अगर केवल मखाने की खेती की जाती है, तो प्रति हेक्टेयर 40000 रुपए की आमदनी होती है.

अगर इतने ही जलक्षेत्र में मखाने के साथ मछली और सिंघाड़े की खेती भी की जाए, तो आमदनी की रकम 80000 रुपए तक हो सकती है. यह आमदनी कुल लागत को निकालने के बाद होती है. प्रति हेक्टेयर जलक्षेत्र में मखाने की खेती करने के बाद अगर उस में मछलीपालन किया जाए तो 11000 रुपए और सिंघाड़ा लगाने पर 17000 रुपए का अतिरिक्त खर्च आता है.

बिहार सरकार ने समेकित खेती को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में शामिल कर रखा है. सरकारी दावा है कि समेकित खेती के जरीए 1 एकड़ खेत का मालिक भी खेती कर के अपने समूचे परिवार का पेट भर सकेगा और अपनी सुखसुविधाओं पर भी रकम खर्च कर सकेगा. जलजमाव वाले इलाकों में मछलीपालन के साथ बकरीपालन और मुरगीपालन भी किया जा सकता है.

Natural Farming: 1,500 क्लस्टर में लाखों किसानों तक प्राकृतिक खेती

Natural Farming : प्राकृतिक खेती के संदर्भ में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम कई क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. मुझे यह कहते हुए गर्व है कि एक समय था, जब हम अपनी जनता का पेट भरने के लिए अमेरिका से निम्न स्तर का गेहूं लेने के लिए मजबूर थे, लेकिन आज देश में अन्न के भंडार भरे हुए हैं.

हमारा शरबती गेहूं आज दुनिया में धूम मचा रहा है. हमारे खाद्यान्न का उत्पादन लगातार बढ़ता जा रहा है. जलवायु परिवर्तन के खतरों के बावजूद बढ़ते हुए तापमान और अनिश्चित मौसम के बावजूद भी हम ने देश के खाद्यान्न को ही नहीं बढ़ाया है, बल्कि अपनी जनता का पेट भी भरा है, साथ ही कई देशों को अन्न का निर्यात भी किया है.

हम गेहूं के साथसाथ दलहन और तिलहन का उत्पादन भी बढ़ा रहे हैं. कृषि के लिए हमारी 6 सूत्रीय रणनीति है, पहला उत्पादन बढ़ाना और उत्पादन बढ़ाने के लिए अच्छे बीज, कृषि पद्धतियां आदि, दूसरा उत्पादन की लागत घटाना, तीसरा फसलों के ठीक दाम, चौथा नुकसान की भरपाई, पांचवां खेती का विविधीकरण और छठा प्राकृतिक खेती.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि एक करोड़ किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. हमारा लक्ष्य है कि हम लगभग 15 सौ क्लस्टर में साढ़े 7 लाख किसानों तक प्राकृतिक खेती को ले जाना है, ताकि ये किसान अपने खेत के एक हिस्से में प्राकृतिक खेती को शुरू कर सकें. हम सभी को धरती भी कीटनाशकों से बचानी होगी. आज कीटनाशकों के कारण कई पक्षियों का नामोनिशान ही मिट गया है और नदियां भी प्रदूषित हो रही हैं.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगे कहा कि शहरों के विकास से ही काम नहीं चलेगा, स्वावलंबी व विकसित गांव कैसे बने, सड़कों का नैटवर्क, गांव में बुनियादी सुविधाएं, पक्का मकान, साफ पीने का पानी, पंचायत भवन, सामुदायिक भवन, स्थानीय बाजार और गांव के लिए जरूरी चीजें गांव में ही कैसे उत्पादित कर पाएं, उस पर काम करने का प्रयास किया जाए.

उन्होंने आगे कहा कि यह सब हमें करना पड़ेगा, तभी गांव विकसित होगा. गांव का हर परिवार किसी न किसी रोजगार से जुड़ा हो, उस दृष्टि से भी प्रयास करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि मानवीय गुणों के साथ ही सब का विकास हो. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि पर्यावरण की भी चिंता की जाए. प्रकृति का दोहन करें, न कि शोषण करें.

उन्होंने कहा कि आज भारत विकसित देशों की तुलना में केवल 7 फीसदी कार्बन उर्त्सजन करता है. हमें प्रकृति का संरक्षण करते हुए ही विकास करना है. भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की 5वीं सब से बड़ी अर्थव्यवस्था है और तीसरी जल्दी ही बनने वाली है. हम अपना विकास भी करेंगे और दुनिया को भी राह दिखाएंगे.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संबोधन के अंत में कहा कि जिस दिशा में हम बढ़ रहे हैं, विश्व शांति का कोई दर्शन अगर कराएगा तो वह भारत ही कराएगा. ऐसे भारत के निर्माण में हम सब सहयोगी बनें.

Aqua Insurance : मछुआरों को पहली बार मिलेगा एक्वा बीमा

मुंबई : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय एवं पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह की अध्यक्षता में पिछले दिनों 28 अप्रैल, 2025 को मुंबई में “तटीय राज्य मत्स्यपालन बैठक: 2025” का आयोजन किया गया.

इस कार्यक्रम में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और पंचायती राज राज्य मंत्री प्रोफैसर एसपी सिंह बघेल, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन के साथसाथ कई तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के राज्यपालों और मत्स्यपालन मंत्रियों की भी उपस्थिति रही.

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 255 करोड़ रुपए के कुल खर्च के साथ 7 तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्रमुख परियोजनाओं का उद्घाटन किया. तटीय राज्य मत्स्य सम्मेलन में 5वीं समुद्री मत्स्यपालन गणना अभियान, कछुआ बहिष्करण डिवाइस पर पीएमएमएसवाई दिशानिर्देश और पोत संचार एवं सहायता प्रणाली के लिए मानक संचालन प्रक्रिया लागू किए जाने जैसी प्रमुख पहलों का भी शुभारंभ किया गया.

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने डिजिटल एप्लीकेशन व्यास-एनएवी युक्त टैबलेट भी बांटे और प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सहयोजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) के तहत लाभार्थियों को पहली बार एक्वा बीमा (एकमुश्त प्रोत्साहन स्वीकृति-सह-रिलीज आदेश) प्रदान किया. साथ ही, 5वीं समुद्री जनगणना अभियान की भी शुरुआत हुई. इस में पर्यवेक्षकों का प्रशिक्षण गांव स्तर पर डेटा गणनाकर्ताओं की भरती और प्रशिक्षण भी शामिल है. इस के पूरा होने के बाद 3 महीने तक चलने वाली वास्तविक गणना गतिविधि होगी. यह अभियान दिसंबर 2025 तक पूरा हो जाएगा.

5वीं समुद्री मत्स्यपालन जनगणना डिजिटल हुई: व्यास-एनएवी एप

भारत की 5वीं समुद्री मत्स्य गणना (एमएफसी 2025) की तैयारी के एक बड़े कदम के रूप में, पारदर्शिता और दक्षता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से डिजिटल रूप से डेटा संग्रह के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन व्यास-एनएवी लौंच किया गया है. पारंपरिक पद्धति से भूसंदर्भित, एप आधारित डिजिटल प्रणाली को प्रयोग में लाते हुए एमएफसी 2025 देशभर में 12 लाख मछुआरों के परिवारों को कवर करेगा और वास्तविक समय में जांच संभव हो सकेगी.

यह बड़ा अभियान प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग (डीओएफ) द्वारा समन्वित किया जाता है. व्यास-एनएवी को आईसीएआर केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया था.

यह गणना फ्रेम की बड़े स्तर पर कवरेज और सटीकता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है. इस एप में प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों के आधार पर गांवों की सारांश तसवीर रिकौर्ड करने की सुविधा है. यह पर्यवेक्षक केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान भारतीय मत्स्य सर्वे और तटीय राज्यों के मत्स्य विभागों के कर्मचारी हैं.

समुद्री मत्स्यपालन गणना – 2025 के बारे में

समुद्री मत्स्य गणना (एमएफसी)-2025 का ध्यान समुद्र में मछली पकड़ने वाले मछुआरों के प्रत्येक परिवार, उन के गांव, मछली पकड़ने के कौशल और साजोसामान के साथसाथ देशभर में मछली पकड़ने के बंदरगाहों और मछली लैंडिंग केंद्रों से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं के संपूर्ण, सटीक और समय पर दस्तावेजीकरण पर है.

व्यवसाय को नया रूप देते हुए केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान द्वारा बनाए गए अनुकूलित मोबाइल और टैबलेट आधारित एप्लिकेशन का उपयोग डेटा संग्रह के लिए किया जाएगा, ताकि हाथ से किए जाने वाले काम में होने वाली गलतियों को कम किया जा सके और नीति स्तरीय उपयोग के लिए डेटा संकलन में तेजी लाई जा सके.

यह समुद्री मत्स्य गणना एक प्रक्रिया है, जो फील्ड औपरेशन के सिग्नलिंग से शुरू होती है और रिपोर्टिंग के साथ खत्म होती है. जहां घरेलू गणना होती है, वहां संदर्भ अवधि मुख्य गतिविधि है. इस मामले में यह संदर्भ अवधि नवंबरदिसंबर, 2025 है.

इस प्रक्रिया के विभिन्न घटकों को गणना संचालन कहा जाता है. अब तक प्री कोर गणना चरण में ऐसी कई गतिविधियों की योजना बनाई गई है. मोटेतौर पर 3,500 गांवों और 12 लाख परिवारों को इस अभ्यास में अलगअलग समय पर कवर किया जाएगा. गांव की गणना को मईजून तक अंतिम रूप दिया जाएगा, जबकि परिवार स्तर के डेटा और अन्य सुविधाओं को नवंबरदिसंबर माह के दौरान कवर किया जाएगा, जो कि गांव और मछली पकड़ने वाले समुदाय के गणनाकारों द्वारा किया जाएगा.

यह औपरेशन अप्रैल से दिसंबर तक चलेगा. गांव की सूची को अंतिम रूप देने और लैंडिंग केंद्रों के डेटा को केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान, भारतीय मत्स्य सर्वेक्षण और डेयरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग के कर्मचारियों द्वारा कवर किया जाएगा.

नवंबरदिसंबर 2025 के लिए निर्धारित मुख्य गतिविधि में स्थानीय समुदाय से प्रशिक्षित गणनाकार शामिल हैं, जो स्मार्ट उपकरणों के साथ प्रत्येक समुद्री मछुआरे के घर का दौरा करेंगे. इस से पहले इस के लिए अच्छे से तैयारी की जाती है. मछुआरों की जनसांख्यिकीय और सामाजिकआर्थिक स्थिति, वैकल्पिक आजीविका के विकल्प और कैसे और कहां सरकारी योजनाएं उन की स्थिति को बेहतर करती हैं, इन पहलुओं की बारीकियां रिकौर्ड करने पर जोर दिया जाएगा. इस के लिए अधिकारी डिजिटल डेटा संग्रहण में काम कर रहे लोगों को प्रशिक्षित करेंगे और व्यास-एनएवी का उपयोग कर के गांव और बुनियादी ढांचे के डाटा की जांच करेंगे.