मक्का व गेहूं के बीज (Maize and Wheat seeds) अच्छे ब्रांड के ही खरीदें, एमआरपी का रखें ध्यान

बडवानी : जिलें में रबी की बोवनी शुरू हो चुकी है, निजी बीज विक्रेताओं की दुकानों पर बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. किसान मक्का एवं गेहूं बीज एमआरपी की दर को देख कर ही खरीदें एवं निर्धारित प्रारूप यानी पक्की रसीद में ही बिल लें.

निजी दुकानों पर मक्का बीज कंपनी बायर क्राप साइस की किस्म डीकेसी-9081 का दाम 3,088 रुपए प्रति बेग है, वहीं डीकेसी-9150 का दाम 2,223 रुपए प्रति बेग, डीकेसी-9228 का दाम 2,376 रुपए प्रति बेग है.

सायाजी सीड्स कंपनी की एक किस्म 1012 का दाम 2,400 रुपए प्रति बेग है, वहीं सायाजी 1018 का दाम 2,560 रुपए प्रति बेग है, जबकि सिंजेंटा सीड्स कंपनी की किस्म एनके-6802 का दाम 2,400 रुपए प्रति बेग, एनके -7884 का दाम 2,800 रुपए प्रति बेग, एनके 7750 का दाम 2,300 रुपए प्रति बेग है.

नुजीवीडू सीड्स कंपनी की किस्म एनएमएच 8353 (विनर) का दाम 2,396 रुपए प्रति बेग, प्रभात एग्रीटैक सीड्स  की किस्म राइडर-एम. का दाम 8-1700 रुपए प्रति बेग, राइडर का दाम 1,400 रुपए प्रति बेग, हाईटैक सीड्स की किस्म- 5101 का दाम 1,900 रूपये प्रति बेग, किस्म 5106 का दाम 1,900 रुपए प्रति बेग है.

कावेरी सीड्स की किस्म के-50 का मूल्य 2,400 रुपए प्रति बेग, एल्डोराडो (श्रीकर) सीड्स की किस्म श्रींकर 9459 का मूल्य 2,200 रुपए प्रति बेग, श्रींकर आदी का मूल्य 1,850 रुपए प्रति बेग, श्रींकर ब्लौक का मूल्य 2,200 रुपए प्रति बेग, जो निजी बीज विक्रेताओं द्वारा एमआरपी से अधिक मूल्य पर बेचें, तो उस की शिकायत तत्काल अपने क्षेत्र के कृषि विस्तार अधिकारी, विकासखंड स्तरीय कृषि अधिकारी या जिला स्तरीय कृषि अधिकारी से करें.

जिन निजी विक्रेताओं द्वारा किसानों को निर्धारित प्रारूप में बिल नहीं दे रहे, उन विक्रेताओं के विरुद्ध गुण नियंत्रण के अंतर्गत वैधानिक कार्यवाही की जाएगी. अधिक जानकारी के लिए क्षेत्रीय कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं.

डीएपी के स्थान पर एनपीके का उपयोग है लाभकारी

कटनी : जिले में रबी फसलों का कार्य प्रगति पर है, जिस के चलते बेसल डोज के रूप में किसानों को डीएपी, एनपीके एवं एसएसपी उर्वरक की जरूरत होती है. वर्तमान में शासन द्वारा उर्वरक की आपूर्ति की जा रही है. रबी फसलों के लिए किसान डीएपी उर्वरक का अधिक उपयोग करते हैं.

कृषि विकास विभाग ने बताया कि किसान रबी फसलों के लिए बेसल डोज के रूप में एनपीके उर्वरक जैसे- 12:32:16 एवं 20:20:0:13 आदि डीएपी के स्थान पर एक अच्छा विकल्प है.

एनपीके का उपयोग करने से फसलों में एकसाथ 3 तत्वों नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश की पूर्ति सुनिश्चित करता है, जबकि डीएपी उर्वरक से मात्र 2 ही तत्वों नाइट्रोजन, फास्फोरस की ही पूर्ति होती है. इस प्रकार डीएपी के स्थान पर एनपीके का उपयोग किसानों के लिए लाभकारी है.

इस के अतिरिक्त किसानों से अपील की गई है कि मृदा परीक्षण के आधार पर जारी मृदा स्वास्थ्य कार्ड में की गई अनुशंसा के अनुरूप ही उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें.

तय दरों पर उर्वरक (Fertilizers) खरीदें, साथ ही बिल भी लें

कटनी : कलक्टर दिलीप कुमार यादव ने रबी फसलों के रकबे में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए कृषि एवं मार्कफेड के अधिकारियों के संयुक्त उर्वरक की उपलब्धता और भंडारण के संबंध में मांग के अनुरूप तत्काल खाद की पूर्ति करने और निरंतर उपलब्धता बनाए रखने के निर्देश दिए हैं.

उन्होंने कहा कि जिले के किसानों को खाद की कमी न हो, इस के लिए राजस्व विभाग और कृषि विभाग के अधिकारी ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर फीडबैक लें. निजी खाद विक्रेताओं और अवैध रूप से भंडार करने, ब्लैक में बेचने और निर्धारित कीमत से अधिक दर पर बेचने वालों पर कार्यवाही करना सुनिश्चित करें. उर्वरक विक्रय केंद्र की जांच के लिए दल गठित कर कलक्टर दिलीप कुमार यादव के निर्देशानुसार जिले में खाद की उपलब्धता के बाद भी कृत्रिम संकट बनाने वालों की जांच के लिए राजस्व एवं कृषि विभाग के अधिकारियों के विशेष दल का गठन किया गया है.

किसानों को उर्वरक की उपलब्धता समय पर सुनिश्चित करने के लिए गठित दल के अधिकारियों द्वारा किए जा रहे औचक निरीक्षण के क्रम में पिछले दिनों एसडीएम बहोरीबंद राकेश कुमार चौरसिया ने नगद खाद विक्रय केंद्र, शर्मा कृषि केंद्र एवं बीज भंडार बहोरीबंद का निरीक्षण कर खाद की उपलब्धता, भंडारण और सूचना पटल में स्टाक की मौजूदगी और दर सूची का अवलोकन किया.

निरीक्षण के दौरान अधिकारियों द्वारा उर्वरक विक्रेताओं के यहां स्टाक की उपलब्धता, पीओएस मशीनों और उर्वरक विक्रय लाइसैंस, दस्तावेजों सहित दुकान के बाहर उर्वरकों की दर सूची की जांच की जा कर उर्वरकों की उपलब्धता, अवैध भंडारण व परिवहन करने पर उर्वरक (नियंत्रण) आदेश एवं आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत ठोस वैधानिक कार्यवाही किए जाने की हिदायत दी गई.

उर्वरक के मूल्य निर्धारित जिला प्रशासन द्वारा किसानों से अपील की गई है कि निर्धारित दरों पर ही खाद खरीदें. यूरिया 45 किलोग्राम की बोरी 266 रुपए 50 पैसे एवं 50 किलोग्राम की डीएपी 1,350 रुपए, पोटाश 1,700 रुपए, एनपीके कौम्प्लैक्स 1470 रुपए, एनपीके 1400 रुपए और सुपर फास्फेट 425 रुपए प्रति बोरी किसानों को विक्रय के लिए निर्धारित की गई है. इस से अधिक कीमत में संबंधित के द्वारा बेचे जाने की शिकायत दर्ज कराएं.

9 हजार, 857 मीट्रिक टन से अधिक उर्वरक उपलब्ध किसानों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए जिले में यूरिया 4302.423 मीट्रिक टन, डीएपी 378.05 मीट्रिक टन, एनपीके 495.25 मीट्रिक टन के अलावा एसएसपी उर्वरक 4681.525 मीट्रिक टन उपलब्ध है. जल्दी ही उर्वरक की और रैक भी जिले में लगने की संभावना है.

किसानों को उन की मांग और उपयोगिता के आधार पर उर्वरक उपलब्ध कराई जा रही है. उर्वरक खरीदी का बिल अवश्य प्राप्त करें. कलक्टर दिलीप कुमार यादव ने कहा कि जिले के किसान अपने विकासखंड में स्थित निजी उर्वरक विक्रेताओं से निर्धारित दर पर उर्वरक की खरीदी करें और खरीदी के बाद उर्वरक खरीदी का बिल अवश्य लें.

यदि कोई उर्वरक विक्रेता निर्धारित दर से अधिक दर पर उर्वरक का विक्रय करता है और स्टाक होते हुए भी उर्वरक देने से मना करता है, तो इस की सूचना गठित दल या अपने विकासखंड के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी अथवा कंट्रोल रूम नंबर 07622 -220070 पर अवश्य दें.

नरवाई जलाना है हानिकारक, करें सुपर सीडर (Super Seeder) का उपयोग

मंडला : नरवाई यानी फसल अवशेष या पराली जलाना एक बड़ी समस्या है, इस से वातावरण में प्रदूषण फैलता है एवं मृदा के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है. नरवाई जलाने पर रोकथाम किया जाना बहुत जरूरी है. नरवाई जलाने से वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ता है और मृदा का कार्बनिक प्रदार्थ कम होने के साथसाथ मृदा के लाभकारी सूक्ष्मजीव भी नष्ट होते हैं.

सुपर सीडर का करें उपयोग

फसल अवशेष प्रबंधन के तहत जिले में सुपर सीडर से पहली बार बोनी हो रही है. कलक्टर सोमेश मिश्रा द्वारा सुपर सीडर से बोनी करने के लिए किसानों को जागरूक किए जाने के निर्देश दिए. कलक्टर सोमेश मिश्रा एवं सीईओ जिला पंचायत श्रेयांश कूमट ने स्वयं सुपर सीडर के प्रदर्शन का अवलोकन किया और किसानों को नरवाई न जला कर सुपर सीडर के उपयोग के लिए किसानों को प्रेरित किया.

सुपर सीडर के उपयोग से धान कटाई के उपरांत नई फसल के लिए खेत तैयार करने के लिए अलग से कल्टीवेटर, रोटावेटर और सीड ड्रिल की आवश्यकता नहीं पड़ती है. एक ही यंत्र से तीनों काम एकसाथ एक ही समय में हो जाते हैं. समय की बचत के साथसाथ लागत भी बहुत कम हो जाती है.

सुपर सीडर की खरीदी में तकरीबन 1.05 लाख रुपए की सब्सिडी भी मिलती है. हार्वेस्टर से धान कटाई के उपरांत सुपर सीडर से सीधे रबी फसलों की बोनी करने पर किसानों को 10 से 15 दिन की बचत होती है और लागत में भी कमी होती है.

सुपर सीडर से बोनी करने पर कृषि विभाग देगा 1,600 रुपए प्रति एकड़ का अनुदान

उपसंचालक, कृषि, मधु अली ने बताया कि ग्राम औघटखपरी में नरवाई जलाने की समस्या को दूर करने के लिए कृषि विभाग और अभियांत्रिकी विभाग द्वारा सुपर सीडर से बोनी करने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है. सुपर सीडर का प्रदर्शन कर किसानों को जागरूक किया गया. नरवाई में आग न जलाई जाए, इसलिए सुपर सीडर की बोनी करने वाले किसानों को कृषि विभाग 1,600 रुपए प्रति एकड़ का अनुदान देगी.

नरवाई जलाने वालों पर अर्थदंड का प्रावधान

नरवाई जलाने वालों पर अर्थदंड अधिरोपित करने के जारी आदेश के अनुसार 2 एकड़ से कम पर 2,500 रुपए प्रति घटना पर, 2 से 5 एकड़ तक 5,000 रुपए प्रति घटना पर एवं 5 एकड़ से अधिक पर 15,000 रुपए प्रति घटना पर अर्थदंड का प्रावधान किया गया है.

जिले में रबी फसल के अंतर्गत बोई जाने वाली फसलों की कटाई के बाद किसानों द्वारा नरवाई (फसलों के अवशेषों) जला दी जाती है, जिस के कारण भूमि में उपलब्ध जैव विविधिता समाप्त हो जाती है. भूमि की ऊपरी परत में पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, जो आग लगने के कारण जल कर नष्ट हो जाते हैं. साथ ही, नरवाई जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है.

भारत सरकार द्वारा खेतों में फसल अवशेष यानी नरवाई जलाने की घटनाओं की मौनिटरिंग सैटेलाइट के माध्यम से की जा रही है. प्रदेश में नरवाई जलाने की घटनाएं मुख्यतः गेहूं फसल की कटाई के बाद होती है, जो लगातार बढ़ती जा रही है.

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के क्रम में फसलों की कटाई के उपरांत फसल अवशेषों को खेतों में जलाए जाने से प्रतिबंधित किया गया है. पर्यावरण विभाग के नोटिफिकेशन द्वारा निर्देश जारी किए गए हैं, जिस के अंतर्गत नरवाई जलाने की घटनाओं पर अर्थदंड अधिरोपित करने का प्रावधान किया गया है, जिस में 2 एकड़ से कम पर 2,500 रुपए प्रति घटना पर, 2 से 5 एकड़ तक 5,000 रुपए प्रति घटना पर एवं 5 एकड़ से अधिक पर 15,000 रुपए प्रति घटना पर अर्थदंड का प्रावधान किया गया है.

नर्मदापुरम में पराली जलाने (Stubble Burning) पर पूरी तरह प्रतिबंध

नर्मदापुरम : नर्मदापुरम जिले में बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं और किसानों द्वारा पराली जलाने से होने वाले नुकसान को देखते हुए अपर कलक्टर ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के तहत जिले की संपूर्ण राजस्व सीमा में खेतों में पराली जलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है.

यह निर्णय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों और पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से लिया गया है. पराली जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताते हुए अपर कलक्टर ने कहा कि इस से न केवल मिट्टी की उर्वराशक्ति कम होती है, बल्कि हानिकारक गैसें भी निकलती हैं, जो कि पर्यावरण को प्रदूषित करता है. इस के अलावा पराली जलाने से अकसर आग लगने की घटनाएं होती हैं, जिस से जनधन की हानि होती है.

किसानों के लिए विकल्प उपलब्ध

अपर कलक्टर ने किसानों को आश्वस्त किया कि पराली के निस्तारण के लिए कई वैकल्पिक तरीके उपलब्ध हैं. किसान रोटावेटर और अन्य उन्नत कृषि यंत्रों का उपयोग कर पराली का प्रबंधन कर सकते हैं. इस के अलावा पराली का उपयोग खाद बनाने, बायोगैस उत्पादन और अन्य उपयोगी कार्यों में किया जा सकता है.

उल्लंघन पर होगी कार्यवाही

आदेश के उल्लंघन करने पर मध्य प्रदेश शासन, पर्यावरण विभाग भोपाल और नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम 1981) में निहित प्रावधानों के अंतर्गत अर्थदंड अधिरोपित किया जाएगा.

जिला प्रशासन की अपील

जिला प्रशासन ने सभी किसानों, ग्रामीणों और अन्य संबंधित पक्षों से इस आदेश का पालन करने का आह्वान किया है. सभी से अपील की गई है कि वे पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दें और पराली जलाने की प्रथा को छोड़ दें.

अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी नर्मदापुरम डीके सिंह ने निर्देशित किया है कि उक्त आदेश की सूचना समस्त नगरपालिका/नगरपरिषद कार्यालय, समस्त अनुविभागीय दंडाधिकारी कार्यालय, समस्त तहसील कार्यालय, समस्त कृषि उपज मंडी समिति कार्यालय, समस्त पुलिस थाना, समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत कार्यालय, जिला नर्मदापुरम के सूचना पटल एवं क्षेत्र के अन्य प्रमुख सहगोचर सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा कर प्रदर्शित की जाए. साथ ही, नर्मदापुरम जिले की सूपर्ण राजस्व सीमा क्षेत्र में मुनादी करवाई जाए. संबंधित क्षेत्र के कार्यपालिक दंडाधिकारी एवं पुलिस थाना प्रभारी अपनेअपने क्षेत्र का सतत भ्रमण कर उक्त व्यवस्था सुनिश्चित कराए.

उन्नत कृषि यंत्रों (Agricultural Equipment) से कृषि क्षेत्र में मिली सफलता

नर्मदापुरम : प्र‍गतिशील किसान हेमंत दुबे ने उन्नत कृषि यंत्रों और नवीन तकनीकों को अपना कर न केवल अपनी उपज में उल्लेखनीय वृद्धि की है, बल्कि पर्यावरण हितैषी खेती के लिए एक नया मानक भी स्थापित किया है. उन के द्वारा उपयोग किए गए कृषि यंत्रों में सुपरसीडर, राइस ट्रांसप्लांटर, रिज एंड फरो सीडड्रिल, डिस्कहेरो और एमबी प्लाऊ शामिल हैं, जिन्होंने उन की खेती की उत्पादकता और पर्यावरणीय प्रभाव को सकारात्मक रूप से बदल दिया है.

किसान हेमंत दुबे द्वारा खेती में किए जा रहे उन्‍नत तकनीक एवं यंत्रों के प्रयोग से खेती में सफलता प्राप्‍त करने पर आसपास के किसान भी प्रेरित हुए हैं. अब किसान नरवाई जलाने के बजाय सुपर सीडर यंत्र का प्रयोग कर नरवाई का बेहतर प्रबंधन कर रहे हैं, जिस से पर्यावरण को लाभ पहुंच रहा है. साथ ही, मिट्टी को लाभ पहुंचाने वाले जीवांशम एवं कीट सुरक्षित रह रहे हैं, जो मिट्टी को उर्वरकता प्रदान करते हैं. नरवाई न जलाने से आसपास का वातावरण भी शुद्ध रहता है.

सुपरसीडर मशीन का प्रभाव

किसान हेमंत दुबे ने नरवाई जलाने के बजाय सुपरसीडर मशीन का उपयोग कर फसल अवशेषों का प्रबंधन किया, जिस से न केवल भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ी, बल्कि पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा. इस मशीन की सहायता से समय और पैसे की बचत होती है, साथ ही वायु प्रदूषण भी कम होता है. यह मशीन भूमि में जीवांश को बढ़ाने में मदद करती है, जिस से दीर्घकालिक फसल उत्पादन में सुधार होता है.

प्रमुख कृषि उपाय और उन के लाभ

नरवाई प्रबंधन

किसान हेमंत दुबे ने पराली जलाने की परंपरा को छोड़ कर उन्नत कृषि यंत्रों का उपयोग करते हुए नरवाई प्रबंधन को अपनाया. यह पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण कदम है

पोषक प्रबंधन

समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन के तहत फसल अवशेषों का सुपरसीडर एवं पूसा डीकंपोजर से विघटन किया जाता है. इस के अलावा जैव उर्वरकों का बीजोपचार कर भूमि में पोषक तत्वों का बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित किया जाता है.

फसल सुरक्षा

समन्वित कीट एवं रोग प्रबंधन पद्धतियों का पालन करते हुए, फसल सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है, जिस से उत्पादन में वृद्धि होती है.

सिंचाई प्रबंधन

जीरो लेंड लेजर लेबलर से भूमि को समतल कर, 1-1 एकड़ की रकबे बंड तैयार की जाती है. इस के बाद स्वनिर्मित तालाब से सिंचाई जल का उपयोग किया जाता है, जिस से पानी की बचत होती है और सिंचाई के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं पड़ती.

सुपरसीडर मशीन की प्रमुख विशेषताएं  

नरवाई प्रबंधन

यह मशीन नरवाई जलाने के बजाय उसे भूमि में समाहित करती है, जिस से वायु प्रदूषण कम होता है और भूमि की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है.

भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ाना

सुपरसीडर भूमि में फसल अवशेषों को समाहित कर उस की उर्वरक क्षमता को बढ़ाती है.

समय और लागत की बचत

यह मशीन समय और मेहनत की बचत करती है, जिस से किसानों का खर्च कम होता है.

पर्यावरण सुरक्षा

यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कृषि कार्यों को सुधारती है और प्रदूषण को कम करती है.

Rural Women: ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ कर महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर

उमरिया : ग्रामीण आजीविका मिशन से 77,151 महिलाएं जुड़ कर हुई आत्मनिर्भर हुई हैं. घूंघट की आड़ में रहने वाली महिलाएं अब ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ कर आत्मनिर्भरता के पथ पर निरंतर बढ़ रही हैं. समाज में महिलाओं की साख बढ़ी है और स्व-समूहों का गठन कर विभिन्न उत्पादों को तैयार करते हुए उन का विक्रय कर रही हैं एवं परिवार का बेहतर ढंग से संचालन कर रही हैं.

उमरिया जिले की महिलाएं पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं. मध्य प्रदेश में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन जिला में अप्रैल, 2015 मे प्रारंभ हुआ. इसे चरणबद्ध रूप से जिले के सभी विकासखंडों में लागू किया गया. मिशन का मुख्य उद्देश्य गरीबी रेखा के नीचे गुजरबसर करने वाले परिवारों की संस्थाओं का गठन कर उन की माली एवं सामाजिक स्थिति को मजबूत करना है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले निर्धन परिवारों का सामाजिक व माली सशक्तीकरण एवं संस्थागत विकास कर आजीविका के संवहनीय अवसर उपलब्ध कराना है. जिले में कुल 6,324 स्व-सहायता समूहों का गठन किया जा चुका है, जिस के अंतर्गत 77,151 महिलाएं जुड़ चुकी हैं.

समूहों के ग्राम स्तरीय संघ ग्राम संगठन, जो कि ग्राम स्तर पर सभी समूहों को जोड़ कर गठन किया जाता है. जिले में 504 ग्राम संगठन गठित हैं. संकुल स्तरीय संगठन, जिन में 25 से 30 गावों का परिसंघ होता है. कुल 20 संकुल स्तरीय संगठनों का गठन किया गया है. समूह गठन सतत प्रक्रिया है, जिस के तहत जिले के सभी गरीब, बहुत गरीब परिवारों को जोड़ कर उन्हें आर्थिक समृद्धि की ओर ले जाना है. सभी की आय कम से कम 10 से 15 हजार रुपए प्रति माह हो, इस रणनीति के तहत काम किया जा रहा है.

जिले में 4,116 स्व-सहायता समूहों से जुड़े परिवारों को रिवाल्विंग फंड की राशि उपलब्ध कराई गई है, जिस से अपनी छोटीछोटी जरूरतों की पूर्ति ऋण ले कर के करती है. सामुदायिक निवेश निधि के तहत जिले में 2,356 स्व-सहायता समूहों को राशि 1647.70 लाख रुपए सामुदायिक निवेश निधि महिलाओं को ऋण के रूप में उपलब्ध कराई जा चुकी है, जिस से वे अपनी छोटीछोटी गतिविधियां संचालित कर आय अर्जित कर रही है.

बैंक द्वारा 2,249 स्व-सहायता समूहों के 2,372 लाख रुपए स्वीकृत एवं वितरण किए गए हैं, जिन से महिलाएं विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से अपनी आमदनी बढ़ाने में निरंतर प्रयासरत हैं. सामुदायिक के बीच में ही समूह की अवधारणा के प्रचारप्रसार, समूह के अभिलेख संधारण, समूह बैठकों का आयोजन, संचालन एवं क्षमता निमार्ण, बैंक संयोजन, समूहों की आय अर्जन गतिविधियों में सहयोग आदि कामों के लिए सामुदायिक स्रोत व्यक्तियों का चिन्हांकन एवं उन का क्षमतावर्द्धन किया जाता है. ये सामुदायिक स्रोत व्यक्ति स्थाई रूप से सामुदायिक संस्थाओं के सशक्तीकरण में सहभागी बनते हैं.

जिले के अंतर्गत गठित सभी समूहों उन के लेखा संधारण का काम 3,753 बुककीपर के द्वारा किया जा रहा है. इसी तरह समूहों सदस्यों के बैंक लिंकेज में सहयोग करने के लिए 42 बैंक सखी एवं 56 बीसी सखी कार्यरत हैं. कृषि संबंधी जानकारी एवं प्रशिक्षण के लिए 184 व पशुपालन संबंधी जानकारी एवं प्रशिक्षण के लिए 90 सीआरपी, 40 कौशल सखी और 70 ई-सीआरपी, 64 जेंडर सीआरपी, 74 पोषण सखी कार्यरत हैं, जो कि महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का काम कर रही है.

कृषि आधारित गतिविधियों से बढ़ी आजीविका

मिशन द्वारा प्रारंभ से अब तक 34,915 समूह परिवारों को कृषि गतिविधियां से लाभांवित किया जा चुका है, जिन में मुख्यतः धान की श्रीविधि तकनीक, व्यावसायिक सब्जी उत्पादन, हलदी एवं मसाला की खेती, मुनगा एवं फलदार पौधरोपण एवं पशुपालन गतिविधियों से 5,226 परिवारों को जोड़ा गया है, जिन में मधुमक्खीपालन, कड़कनाथ मुरगीपालन, बकरीपालन, डेयरी, मछलीपालन आदि गतिविधियों से लाभांवित किया गया है.

गैरकृषि आधारित गतिविधियों के अंतर्गत निर्माण, व्यवसाय एवं सेवा प्रदाता जैसी गतिविधियां हैं. निर्माण संबंधी गतिविधियों में सेनेटरी नैपकिन, फिनाइल, गुनाइल, किराना, वाशिंग पाउडर, आटा चक्की, साबुन, हैंडवाश, अगरबत्ती बनाने जैसी गतिविधियों से लाभांवित किया गया है, जिस से 9587 समूह सदस्य गतिविधियों को संचालित कर आय अर्जित कर रहा है.

उमरिया जिले को लखपति का लक्ष्य 12,337 दिया गया है. सभी लक्ष्य के अनुसार, सभी हितग्राहियों का चयन किया गया है. इन की आमदनी बढ़ाने के उदे्दष्य से जिले में 152 लखपति सीआरपी को तैनात किया गया है. लखपति सीआरपियों के द्वारा चिन्हित हितग्राहियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिस से कि उन की 2 साल की अवधि में लखपति परिवारों को सालाना आय एक लाख रुपए से ऊपर आय वृद्धि किया जाएगा. कृषि, पशुपालन, लघु व्यवसाय संबंधी गतिविधियां संचालित की जा रही हैं.

मिशन प्रारंभ से अब तक आरसेटी के माध्यम से 3581 महिलाएं एवं पुरुषों का प्रशिक्षण एवं डीडीयूजेकेवाय के माध्यम से 1007 महिलाएं एवं पुरुषों को प्रशिक्षित कर 648 महिलाएं एवं पुरुषों को नियोजित किया गया है. रोजगार मेले के माध्यम से 2113 युवाओं का चयन एवं विभिन्न कंपनियों में नियोजित कराया गया है.

Dairy Farming: भारत की अर्थव्यवस्था में डेयरी क्षेत्र का है अहम योगदान

नई दिल्ली: मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने नई दिल्ली के मानेकशा सैंटर में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस 2024 मनाया गया. इस कार्यक्रम में भारत में श्वेत क्रांति के जनक डा. वर्गीज कुरियन की 103वीं जयंती मनाई गई. उन की विरासत का सम्मान करने के लिए नीति निर्माताओं, किसानों और उद्योग जगत के नेताओं एक मंच पर जुटे थे.

कार्यक्रम में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मुख्य अतिथि के रूप में और राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल व जार्ज कुरियन सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित थे.

इस कार्यक्रम में देशभर से पशुधन और डेयरी क्षेत्र से जुड़े लोगों ने भाग लिया. समारोह के दौरान केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल और जार्ज कुरियन के साथ मिल कर 3 श्रेणियों में विजेताओं को राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार प्रदान किए.

ये पुरस्कार हैं : स्वदेशी गाय/भैंस की नस्लों का पालन करने वाले सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान, सर्वश्रेष्ठ कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन और सर्वश्रेष्ठ डेयरी सहकारी समिति (डीसीएस)/दूध उत्पादक कंपनी/डेयरी किसान उत्पादक संगठन. पूर्वोत्तर क्षेत्र के विजेताओं को प्रत्येक श्रेणी में नए शुरू किए गए विशेष पुरस्कार भी दिए गए.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने अपने संबोधन में भारतीय अर्थव्यवस्था में डेयरी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया. उन्होंने कहा कि डेयरी क्षेत्र का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5 फीसदी का योगदान है और इस में 8 करोड़ से अधिक किसानों को सीधे रोजगार मिल रहा है, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं.

दूग्ध उत्पादन के मामले में भारत पहले स्थान पर है, जो वैश्विक दूध उत्पादन में 24 फीसदी का योगदान देता है. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि साल 2022-23 में भारत की प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 459 ग्राम प्रतिदिन है, जो साल 2022 में विश्व औसत 323 ग्राम प्रतिदिन से काफी अधिक है.

उन्होंने कहा कि जैसेजैसे देशदुनिया की तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, इस में डेयरी क्षेत्र का योगदान भी बढ़ता जाएगा. उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि डेयरी क्षेत्र में असंगठित क्षेत्र को संगठित क्षेत्र के अंतर्गत लाया जाना चाहिए, क्योंकि इस से किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने सहकारी समिति के गुजरात मौडल की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह एक ऐसा उदाहरण है, जो बिचौलियों को कम कर के अच्छा काम कर रहा है. यह मौडल किसानों की आय को कई गुना बढ़ाने में सक्षम है. उन्होंने डेयरी फार्मिंग में सैक्स सौर्टेड सीमेन जैसी तकनीकों को शामिल करने और इस क्षेत्र में कवरेज को मौजूदा 35 फीसदी से बढ़ा कर 70 फीसदी से अधिक करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया.

उन्होंने कहा कि पशुधन डेटा तैयार किया जा रहा है, नस्ल सुधार पर बड़े पैमाने पर काम किया जा रहा है. इस के साथ ही खुरपकामुंहपका रोग और ब्रुसेलोसिस के लिए नि:शुल्क टीके लगाए जा रहे हैं, ताकि साल 2030 तक इन रोगों को खत्म किया जा सके. इन सभी पहलों का उद्देश्य भारत को आने वाले दिनों में दूध निर्यातक बनाना है.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने अपने संबोधन में भारत के डेयरी क्षेत्र की सफलता में महिलाओं और युवाओं के योगदान की सराहना की.

मंत्री प्रो. एसपी बघेल ने उन्हें इस उद्योग में नेतृत्व की भूमिका निभाने और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए नवीन प्रथाओं का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने वैश्विक दूध उत्पादन में देश को शीर्ष पर बनाए रखने के लिए विभाग और सभी हितधारकों के प्रयासों की भी सराहना की.

उन्होंने उल्लेख किया कि दूध उत्पादन में सालाना वैश्विक वृद्धि दर 2 फीसदी है, जबकि भारत का उत्पादन सालाना 6 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. इस के अलावा उन्होंने प्रतिभागियों से कृत्रिम गर्भाधान (एआई) दर का कवरेज बढ़ाने, सैक्स-सौर्टेड वीर्य और आईवीएफ (इनविट्रो फर्टिलाइजेशन) जैसी बेहतर प्रजनन तकनीकों को अपनाने का आग्रह किया. उन्होंने नियमित टीकाकरण के माध्यम से खुरपकामुंहपका रोग के उन्मूलन पर जोर दिया, जो भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री जार्ज कुरियन ने भारतीय अर्थव्यवस्था में डेयरी सहकारी समितियों के योगदान और महिला सशक्तीकरण में उन की भूमिका की सराहना की. उन्होंने डेयरी मूल्य श्रंखला में समान विकास सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत बुनियादी ढांचे और पशु चिकित्सा सहायता प्रणालियों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.

पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) की सचिव अलका उपाध्याय ने वैज्ञानिक हस्तक्षेपों के माध्यम से दूध उत्पादकता में सुधार के लिए विभाग के निरंतर प्रयासों को रेखांकित किया. उन्होंने ग्रामीण डेयरी बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण, बाजार संपर्क को बढ़ावा देने और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करने के महत्व पर बल दिया.

कार्यक्रम में उत्कृष्ट गायों की पहचान संबंधी ‘सुरभि श्रंखला’ मैनुअल के साथ बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (बीएएचएस)-2024 जारी किया गया. पशुधन और डेयरी क्षेत्र के रुझानों के बारे में यह महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है. यह मैनुअल देश में राष्ट्रीय दुधारू झुंड की स्थापना के लिए है, जो हमारे किसानों के पास या गौशाला/गौसदन/पिंजरापोल में उपलब्ध श्रेष्ठ जर्मप्लाज्म की पहचान और स्थान के लिए महत्वपूर्ण है.

इस से पहले समारोह के दौरान राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने मानेकशा सैंटर में अमूल स्वच्छ ईंधन रैली की अगुआनी की, जिस में अमूल के विभिन्न सदस्य संघों और भारत में जीसीएमएमएफ के 25 से अधिक शाखा कार्यालयों के 77 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए.

‘महिलाओं के नेतृत्व में पशुधन और डेयरी क्षेत्र’ और ‘स्थानीय पशु चिकित्सा सहायता के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना’ विषयों पर दो पैनल चर्चाएं भी आयोजित की गईं, जिस में विशेषज्ञों ने भारत के डेयरी तंत्र के सतत विकास के बारे में जानकारी साझा की.

इन चर्चाओं में क्षेत्र के भविष्य को आकार देने में महिलाओं और स्थानीय पशु चिकित्सा पहलों की परिवर्तनकारी भूमिका पर प्रकाश डाला गया. इस अवसर पर अतिरिक्त सचिव (मवेशी एवं डेयरी विकास) वर्षा जोशी और सलाहकार (सांख्यिकी) जगत हजारिका और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

तुअर और उड़द की खरीद के लिए 10.66 लाख किसान पंजीकृत

पिछले 3 महीनों में मंडी कीमतों में गिरावट के साथ तुअर और उड़द की खुदरा कीमतों में गिरावट आई है या वे स्थिर बनी हुई हैं. उपभोक्ता मामला विभाग दालों की मंडी और खुदरा कीमतों के रुझानों पर विचारविमर्श करने के लिए भारतीय खुदरा विक्रेता संघ (आरएआई) और संगठित खुदरा श्रंखलाओं के साथ नियमित बैठकें कर के यह सुनिश्चित करता है कि खुदरा विक्रेता खुदरा मार्जिन को उचित स्तर पर बनाए रखें.

खुदरा बाजार में सीधे हस्तक्षेप करने के लिए सरकार ने बफर स्टाक से दालों के एक हिस्से को भारत दाल ब्रांड के तहत उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर खुदरा बिक्री के लिए उपलब्ध करवाया है. इसी तरह, भारत ब्रांड के तहत खुदरा उपभोक्ताओं को रियायती कीमतों पर आटा और चावल वितरित किया जाता है.

थोक बाजारों में उच्च मूल्य वाले उपभोक्ता केंद्रों और खुदरा दुकानों के माध्यम से कीमतों को कम करने के लिए बफर स्टाक से प्याज को एक संतुलित और लक्षित तरीके बाजार में उतारा जाता है. प्रमुख उपभोग केंद्रों में स्थिर खुदरा दुकानों और मोबाइल वैन के माध्यम से खुदरा उपभोक्ताओं के बीच प्याज 35 रुपए प्रति किलो की दर से वितरित किया जाता है. इन उपायों से दालों, चावल, आटा और प्याज जैसी आवश्यक खाद्य वस्तुएं उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने और कीमतों को स्थिर करने में मदद मिली है.

घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिए दालों का सुचारु और निर्बाध आयात सुनिश्चित करने के लिए तुअर और उड़द के आयात को 31 मार्च, 2025 तक ‘मुक्त श्रेणी’ में रखा गया है और मसूर के आयात पर 31 मार्च, 2025 तक कोई शुल्क नहीं लगाया गया है. इस के अतिरिक्त सरकार ने घरेलू बाजार में दालों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए 31 मार्च, 2025 तक देशी चना के शुल्क मुक्त आयात की भी अनुमति दी है. तुअर, उड़द और मसूर की स्थिर आयात नीति व्यवस्था देश में तुअर और उड़द की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने में प्रभावी रही है, क्योंकि आयात का प्रवाह निरंतर बना हुआ है, जिस से दालों की उपलब्धता बनी हुई है और कीमतों में असामान्य वृद्धि पर अंकुश लगा है.

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने किसानों के जागरूकता अभियान, आउटरीच कार्यक्रम, बीज वितरण आदि के लिए एनसीसीएफ और नैफेड को सहायता प्रदान की. सरकार ने नैफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) और पीएम आशा योजना के मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) घटकों के तहत तुअर और उड़द की सुनिश्चित खरीद के लिए किसानों का पूर्व पंजीकरण लागू किया है. 22 नवंबर, 2024 तक एनसीसीएफ और नैफेड द्वारा कुल 10.66 लाख किसानों को पंजीकृत किया गया है.

खरीफ फसलों की स्थिति अच्छी है और मूंग, उड़द जैसी कम अवधि वाले फसलों की कटाई पूरी हो चुकी है, जबकि तुअर की फसल की कटाई अभी शुरू ही हुई है. फसल के लिए मौसम भी अनुकूल रहा है, जिस से उपभोक्ताओं तक आपूर्ति श्रंखला में अच्छा प्रवाह बना हुआ है और दालों की कीमतों में नरमी आने की उम्मीद है.

केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्य मंत्री और सार्वजनिक वितरण मंत्री बीएल वर्मा ने पिछले दिनों लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी.

National Milk Day: राष्ट्रीय दुग्ध दिवस 2024 के मौके पर बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी 2024 का लेखाजोखा

नई दिल्ली: केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के अवसर पर पशुपालन एवं डेयरी विभाग के ‘बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी 2024’ के वार्षिक प्रकाशन का विमोचन किया. इस अवसर पर मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल और जार्ज कुरियन के साथसाथ पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे.

बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (बीएएचएस)- 2024 एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो पशुधन और डेयरी क्षेत्र के रुझानों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है. बीएएचएस -2024, 1 मार्च, 2023 से 29 फरवरी, 2024 तक एकीकृत नमूना सर्वेक्षण के परिणामों पर आधारित है.

यह अनूठा सर्वे दूध, अंडे, मांस और ऊन जैसे प्रमुख पशुधन उत्पादों के उत्पादन अनुमानों पर महत्वपूर्ण डेटा उत्पन्न करता है, जो पशुधन क्षेत्र में नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस प्रकाशन में दुधारू पशुओं, पोल्ट्री पालतू पक्षी प्रजातियां, मारे गए जानवरों और ऊन निकाले गए भेड़ों की अनुमानित संख्या सहित प्रमुख पशुधन उत्‍पाद और प्रति व्यक्ति उपलब्धता का राज्यवार अनुमान शामिल है.

इस के अलावा यह पशु चिकित्सा अस्पतालों, पौलीक्लिनिक्स, गौशालाओं, राज्य फार्मों और अन्य बुनियादी ढांचे के विवरणों के साथसाथ कृत्रिम गर्भाधान की संख्या और पशुधन क्षेत्र संबंधित वैश्विक परिप्रेक्ष्य पर बहुमूल्य डेटा प्रस्तुत करता है.

National Milk Day

साल 2023-24 में दूध, अंडा, मांस और ऊन उत्पादन

बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (बीएएचएस) देश में दूध, अंडे, मांस और ऊन के उत्पादन का सालाना अनुमान जारी करता है. यह एकीकृत नमूना सर्वे (आईएसएस) के परिणामों पर आधारित होता है, जो देशभर में 3 मौसमों यानी गरमी (मार्चजून), बरसात (जुलाईअक्तूबर) और सर्दी (नवंबरफरवरी) में आयोजित किया जाता है. इस सर्वे के नतीजे  इस प्रकार दिए गए हैं:

दूध उत्पादन

बीएएचएस 2024 में जारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2023-24 के दौरान देश में कुल दूध उत्पादन 239.30 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो पिछले 10 सालों की तुलना में 5.62 फीसदी ज्‍यादा है. साल 2014-15 में यह 146.3 मिलियन टन था. इस के अलावा, साल 2022-23 के अनुमानों की तुलना में साल 2023-24 के दौरान उत्पादन में 3.78 फीसदी की वृद्धि हुई है.

साल 2023-24 के शीर्ष 5 दूध उत्पादक राज्यों के बारे में बात की जाए तो, उत्तर प्रदेश 16.21 फीसदी के साथ कुल दूध उत्पादन में पहले स्‍थान पर था. उसके बाद राजस्थान (14.51 फीसदी), मध्य प्रदेश (8.91 फीसदी), गुजरात (7.65 फीसदी) और महाराष्ट्र (6.71 फीसदी) का स्‍थान है.

वार्षिक वृद्धि दर के संदर्भ में पिछले वर्ष की तुलना में सब से अधिक वृद्धि पश्चिम बंगाल (9.76 फीसदी) ने दर्ज की. उस के बाद झारखंड (9.04 फीसदी), छत्तीसगढ़ (8.62 फीसदी) और असम (8.53 फीसदी) का स्थान रहा.

अंडा उत्पादन

देश में साल 2023-24 के दौरान कुल अंडा उत्पादन 142.77 बिलियन रहने का अनुमान है. पिछले 10 सालों में साल 2014-15 के दौरान 78.48 बिलियन के अनुमान की तुलना में 6.8 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. इस के अलावा साल 2022-23 की तुलना में साल 2023-24 के दौरान उत्पादन में सालाना 3.18 फीसदी की वृद्धि हुई है.

कुल अंडा उत्पादन में सब से बड़ा योगदान आंध्र प्रदेश का है, जिस की कुल अंडा उत्पादन में हिस्सेदारी 17.85 फीसदी है. इस के बाद तमिलनाडु (15.64 फीसदी), तेलंगाना (12.88 फीसदी), पश्चिम बंगाल (11.37 फीसदी) और कर्नाटक (6.63 फीसदी) का स्थान है. सब से अधिक वार्षिक वृद्धि दर लद्दाख (75.88 फीसदी) में दर्ज की गई और उस के बाद मणिपुर (33.84 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (29.88 फीसदी) का स्थान है.

मांस उत्पादन

देश में 2023-24 के दौरान कुल मांस उत्पादन 10.25 मिलियन टन होने का अनुमान है. साल 2014-15 में 6.69 मिलियन टन के अनुमान की तुलना में पिछले 10 सालों में 4.85 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. इस के अलावा साल 2022-23 की तुलना में साल 2023-24 में उत्पादन में 4.95 फीसदी की वृद्धि हुई.

कुल मांस उत्पादन में मुख्य योगदान पश्चिम बंगाल का है. इस की हिस्सेदारी 12.62 फीसदी है, उस के बाद उत्तर प्रदेश (12.29 फीसदी), महाराष्ट्र (11.28 फीसदी), तेलंगाना (10.85 फीसदी) और आंध्र प्रदेश (10.41 फीसदी) का स्थान है. उच्चतम वार्षिक वृद्धि दर असम (17.93 फीसदी) में दर्ज की गई है, जिस के बाद उत्तराखंड (15.63 फीसदी) और छत्तीसगढ़ (11.70 फीसदी) का स्थान है.

ऊन उत्पादन

देश में साल 2023-24 के दौरान कुल ऊन उत्पादन 33.69 मिलियन किलोग्राम रहने का अनुमान है, जो पिछले साल की तुलना में 0.22 फीसदी की मामूली वृद्धि दर्शाता है. साल 2019-20 के दौरान यह 36.76 मिलियन किलोग्राम और उस से पिछले साल 33.61 मिलियन किलोग्राम था.

कुल ऊन उत्पादन में सब से बड़ा योगदान राजस्थान का है, जिस की हिस्सेदारी 47.53 फीसदी है. उस के बाद जम्मू और कश्मीर (23.06 फीसदी), गुजरात (6.18 फीसदी), महाराष्ट्र (4.75 फीसदी) और हिमाचल प्रदेश (4.22 फीसदी) का स्थान है. सब से अधिक वार्षिक वृद्धि दर पंजाब (22.04 फीसदी) में दर्ज की गई. उस के बाद तमिलनाडु (17.19 फीसदी) और गुजरात (3.20 फीसदी) का स्थान है.

विश्व परिदृश्य

भारत दूध उत्पादन में विश्व में अग्रणी है, जबकि अंडा उत्पादन में दूसरे स्‍थान पर है.