कृषि के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure)

नई दिल्ली: भारत सरकार ने 2 सितंबर, 2024 को घोषित डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए एक ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की है. गुजरात राज्य 5 दिसंबर, 2024 को किसानों की लक्षित संख्या का 25 फीसदी किसान आईडी बनाने वाला देश का पहला राज्य बन चुका है. यह सफलता भारत सरकार की ‘एग्री स्टैक पहल’ के एक भाग के रूप में एक व्यापक मानकसंचालित डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रदर्शन करता है.

किसान आईडी, आधारकार्ड पर आधारित किसानों की एक अनूठी डिजिटल पहचान है, जो राज्य की भूमि रिकौर्ड प्रणाली से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई है, जिस का मतलब है कि किसान आईडी एक व्यक्तिगत किसान के भूमि रिकौर्ड विवरण में बदलाव के साथसाथ स्वचालित रूप से अपडेट होती है. डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल रूप से प्राप्त फसल आंकड़े प्राप्त करने के साथ किसान आईडी का उद्देश्य केंद्रित लाभ प्रदान करना है

डिजिटल पहचान, कार्यवाही योग्य अंतर्दृष्टि एवं सूचित नीतिनिर्माण के लिए एक परिवर्तनकारी उपकरण के रूप में भी कार्य करेगा, जिससे अभिनव किसानकेंद्रित समाधान विकसित किए जा सके, कुशल कृषि सेवा वितरण सुनिश्चित किया जा सके और कृषि परिवर्तन के लिए एक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सके, जिस का लक्ष्य चिरस्थायी कृषि पर ध्यान केंद्रित करते हुए किसानों की आय में बढ़ोतरी करना है.

किसान आईडी निर्माण के लिए व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए, भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्यों के लिए एक बहु-आयामी रणनीति विकसित की है.

ये मोड किसान पहचान पत्र तैयार करने वाले चैनल हैं जैसे कि सेल्फ मोड (मोबाइल का उपयोग कर के किसानों द्वारा स्वपंजीकरण), सहायक मोड (प्रशिक्षित जमीनी कार्यकर्ता/स्वयंसेवकों द्वारा सहायता प्राप्त पंजीकरण), कैंप मोड (ग्रामीण क्षेत्रों में समर्पित पंजीकरण शिविर), सीएससी मोड (सामान्य सेवा केंद्रों के माध्यम से पंजीकरण) आदि.

डिजिटल कृषि मिशन ने किसान रजिस्ट्री बनाने के लिए प्रोत्साहन के रूप में कृषि के लिए डीपीआई एवं पूंजीगत परियोजनाओं हेतु विशेष केंद्रीय सहायता पर समझौता ज्ञापन के माध्यम से कृषि क्षेत्र के लिए डीपीआई निर्माण के लिए राज्यों और केंद्र सरकार के बीच एक सहयोगी प्रयास को सक्षम बनाया है.

इस के अलावा, डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत, केंद्र सरकार तकनीकी दिशानिर्देश, संदर्भ अनुप्रयोग एवं कंप्यूटिंग क्षमता प्रदान कर, क्षमता बढ़ाकर एवं प्रशिक्षण प्रदान कर राज्यों को सक्षम बना रही है. भारत सरकार पंजीकरण शिविरों का आयोजन करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन एवं किसान आईडी तैयार करने में शामिल राज्य के कार्यकर्ताओं को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन भी प्रदान करती है.

राज्य स्तर पर, पहल के मुख्य आकर्षणों में अंतर्विभागिय समन्वय एवं सहयोग, विशेष रूप से राजस्व और कृषि विभागों के बीच सहयोग शामिल हैं. राज्यों ने कृषि क्षेत्र में डीपीआई विकसित करने के लिए प्रक्रिया सुधारों सहित प्रशासनिक एवं तकनीकी परिवर्तनों को सक्षम बनाया है. राज्यों ने प्रगति की निगरानी करने, स्थानीय सहायता प्रदान करने और उत्पन्न डेटा की गुणवत्ता एवं सटीकता सुनिश्चित करने के लिए परियोजना प्रबंधन इकाइयों (पीएमयू) और समन्वय टीमों का भी गठन किया है.

गुजरात 25 फीसदी किसान आईडी (पीएम किसान में राज्य के कुल किसानों के बीच) के साथ अग्रणी है जब कि दुसरे राज्य भी अच्छी प्रगति कर रहे हैं. मध्य प्रदेश ने कम समय में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है, जो 9 फीसदी तक पहुंच गया है जब कि महाराष्ट्र 2 फीसदी  पर है और उत्तर प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान जैसे दुसरे राज्यों ने भी किसान आईडी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय इस परिवर्तनकारी यात्रा में राज्यों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक किसान डिजिटल कृषि क्रांति से लाभान्वित हों.

पशुपालकों (Cattle Farmers) को भेड़ की उन्नत नस्लों का वितरण

डूंगरपुर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर की अनुसूचित जनजाति उपयोजना मे डूंगरपुर जिले के भटनाड़ा ग्राम पंचायत भवन में किसानवैज्ञानिक संगोष्ठी एवं भेड़पालन के लिए 100 पशुओं के वितरण का आयोजन किया गया. इस मौके पर अविकानगर संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर के मार्गदर्शन में टीएसपी उपयोजना के नोडल अधिकारी डा. जी. गणेश सोनवाणे द्वारा संगोष्ठी में उपस्थित आदिवासी किसानों को वैज्ञानिक ढंग से भेड़पालन, टीकाकरण एवं साल भर किए जाने वाली गतिविधियों पर विस्तार से संवाद किया गया. इस मौके पर टीएसपी उपयोजना के माध्यम से डूंगरपुर जिले में किए जा रहे काम के बारे में अतिथियों को अवगत कराया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उमेश मीणा विधायक आसपुर विधानसभा ने भी उपस्थित किसानों को वर्तमान समय के हिसाब से वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन एवं खेती करने पर जोर दिया और सभी आदिवासी किसानो को स्वरोजगार अपनाकर अपने परिवार की आर्थिक उन्नति के लिए नई पीढ़ी को कौशल विकास की ओर बढ़ने का आह्वाहन किया.

कार्यक्रम का संचालन डा. अमर सिंह मीणा द्वारा किया गया. संगोष्ठी के अवसर पर 11 आर्थिक रूप से कमजोर आदिवासी परिवारों को 5 भेड़ (4 मादा एवं 1 नर) की इकाई एवम 45 भेड़पालक आदिवासी किसानों को उन्नत नस्ल का एक मेढ़ा के साथ फीडिंग ट्रौप, पैलेट फीड, तसला, बालटी, खोडी, खुरपी, दंराती आदि का वितरण कार्यक्रम में उपस्थित अथितियों द्वारा किया गया. इस कार्यक्रम में सोहन लाल अहारी एवं रमनलाल कलसुवा द्वारा भेड़पालक आदिवासी किसानों का सर्वे कर के कार्यक्रम आयोजन में सहयोग किया गया. अविकानगर से पशुओं का परिवहन रामखिलाडी मीणा व राजेश चंदेल द्वारा किया गया. संगोष्ठी एवं वितरण कार्यक्रम में अविकानगर संस्थान के वित्त अधिकारी भूपेंद्र कुमार गुर्जर, सरपंच देवशंकर नेनोमा एवं भटनाड़ा पंचायत के गांववासियों के साथ लाभान्वित आदिवासी किसान उपस्थित रहे.

पशुपालकों को भेड़ की उन्नत नस्लों के संदर्भ आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम

डूंगरपुर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर में चल रही अनुसूचित जाति उपयोजना के अन्तर्गत पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान डा. अरूण कुमार तोमर निदेशक के निर्देशन में आयोजित किया गया. जिसके समापन कार्यक्रम मे संस्थान द्वारा चयनित अनुसूचित जाति की 25 महिलओं एवं पुरूष बीपीएल किसानों ने भाग लिया.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में किसानों को भेड़-बकरीयों में प्रजनन, स्वास्थ्य, पशु पोषण, अधिक उत्पादन के लिए कृत्रिम गर्भाधान, ऊन एवं ऊन के उत्पादों की नवीन तकनीकी जानकारियां दी गईं. कार्यक्रम के समापन समारोह में अनुसूचित जाति उपयोजना के नोडल अधिकारी डा. अजय कुमार ने किसानों को संम्बोधित करते हुए कहा कि वे भेड़-बकरी पालन कर अपनी आजीविका में सुधार कर सकते हैं और कहा कि वे संस्थान से 5 दिन में मिली जानकरी को क्षेत्र के दुसरे  किसानों से भी साझा कर उन की भी जानकारी को बढ़ाएं. जिस से अन्य किसान भी इस का फायद ले सकें.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक डा. एल.आर. गुर्जर, प्रभारी, तकनीकी स्थानांतरण एवं सामाजिक विज्ञान विभाग एवं डा. रंगलाल मीणा, वैज्ञानिक रहे. कार्यक्रम में गौतम चौपड़ा, डी.के. यादव एवं अन्शुल शर्मा ने भी सहयोग प्रदान किया.

Awards: मिट्टी से सुपरफूड्स तक अनंत पोद्दार (Anant Poddar) की कहानी

दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकौम औनर्स की डिगरी और सीमेंस में बिजनैस कंट्रोलर के रूप में अनुभव के साथ अनंत पोद्दार ने गुरुग्राम, गोवा, मुंबई और बैंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में अपना कैरियर बनाया, लेकिन कारपोरेट जीवन में सफल होते हुए भी उन के मन में कृषि क्षेत्र में कुछ अलग करने की चाहत थी. इस चाहत को पूरा करने के लिए अनंत पोद्दार ने उच्च तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ दी और खुद को आधुनिक कृषि क्षेत्र में उतार दिया.

 

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हाइड्रोपोनिक्स खेती से की शुरुआत

अनंत पोद्दार ने बैंगलुरु में हाइड्रोपोनिक्स के क्षेत्र में फार्म मैनेजर के रूप में काम किया और अनुभव हासिल करने के बाद अपने गृहनगर खुर्जा में साल 2020 में कोरोना महामारी के दौरान हाइड्रोपोनिक्स खेती के जरीए पोद्दार फार्म्स की स्थापना की. बुलंदशहर जिले में स्थित खुर्जा शहर शिल्पकला और चीनी मिट्टी की क्रोकरी के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन अनंत पोद्दार का फोकस मिट्टी के बरतनों पर नहीं, बल्कि मिट्टी से जुड़े उन खाद्य उत्पादों पर था, जो सेहत के लिए लाभकारी हों.

किए अनेक नवाचार

अग्रवाल मारवाड़ी व्यापारी परिवार से आने वाले अनंत पोद्दार ने एक ऐसे भविष्य की कल्पना की थी, जहां हमारा भोजन शुद्ध, सेहतमंद और हानिकारक रसायनों से मुक्त हो. चाहे वे ताजा रसायनमुक्त सब्जियां हों, विदेशी जड़ीबूटियां हों, लकड़ी घानी से निकला हुआ तेल हो, पौष्टिक स्नैक्स हो, प्राकृतिक शहद हो या मल्टीग्रेन आटा. अनंत पोद्दार ने इन सभी क्षेत्रों में नवाचार किया और सफल भी रहे. इन्हीं खूबियों के चलते अनंत पोद्दार को दिल्ली प्रैस की पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ द्वारा ‘राज्य स्तरीय बेस्ट फार्मर अवार्ड इन मार्केटिंग’ से सम्मानित किया गया.

अनंत पोद्दार (Anant Poddar)

उत्कृष्टता के लिए सम्मानित

कृषि क्षेत्र में अपने योगदान के लिए पोद्दार फार्म्स को व्यापक रूप से सराहा गया है विशेष रूप से उन्हें “फार्म एन फूड कृषि अवार्ड्स 2024” में “बेस्ट फार्मर अवार्ड इन मार्केटिंग” का पुरस्कार मिला, जिस में उन की प्रसंस्करण, पैकेजिंग और ब्रांडिंग में नवाचारी रणनीतियों को सम्मानित किया गया.

इस वर्ष की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने राज्यपाल भवन, लखनऊ में आयोजित उत्तर प्रदेश क्षेत्रीय फल, सब्जी और पुष्प प्रदर्शनी में पोद्दार फार्म्स को सम्मानित किया. इस के अतिरिक्त अनंत पोद्दार को उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री और उद्यान विभाग द्वारा बागबानी, खाद्य प्रसंस्करण और वैज्ञानिक खेती की तकनीकों के प्रति किसानों को शिक्षित करने के लिए कई बार सम्मानित किया गया है.

अनंत पोद्दार के पोद्दार फार्म्स ने उत्तर प्रदेश राज्य उद्यान विभाग का प्रतिनिधित्व करते हुए वर्ल्ड फूड इंडिया और उत्तर प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले जैसे प्रमुख राष्ट्रीय आयोजनों में भी हिस्सा लिया है, जहां उन्होंने नवाचार और स्थिरता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की.

परंपरा और नवाचार का संगम: लकड़ी घानी तेल और जैविक हलदी

भारतीय आहार के आवश्यक तत्व, जैसे तेल और मसाले में भी सुधार की आवश्यकता है. कोई भी भारतीय भोजन इन के बिना अधूरा है. स्वास्थ्य और परंपरा के बीच संतुलन स्थापित करते हुए उन्होंने पारंपरिक लकड़ी घानी को पुनर्जीवित किया और दोगुनी पोषण क्षमता वाले लकड़ी घानी तेल का उत्पादन शुरू किया.

यह तेल न केवल पुरानी भारतीय संस्कृति को बताते हैं, बल्कि उपभोक्ताओं को सेहतमंद उत्पाद भी देते हैं. बाजार में हलदी में मिलावट की व्यापकता को देखते हुए पोद्दार फार्म्स ने नवाचार करने का निर्णय लिया. उन्होंने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के साथ मिल कर ‘केसरी’ नामक जैविक हलदी की खेती की. बाजार में लगभग एक साल के भीतर ‘केसरी’ अपनी शुद्धता और गुणवत्ता के कारण हलदीप्रेमियों की पसंदीदा हलदी बन चुकी है.

खेती के जरीए आजीविका को बढ़ावा देने का काम कर रही सामाजिक संस्थाएं

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देशभर में किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए अनेक सरकारी, गैरसरकारी संस्थान किसानों को अनेक उन्नत कृषि तकनीकों से रूबरू कराते हैं, समयसमय पर अनेक ट्रेनिंग देते हैं, जिस से कृषि क्षेत्र उन्नति कर सके और इस से जुड़े किसानों की आय में भी इजाफा हो.

ऐसी ही कड़ी में राजस्थान के सीकर में विश्व युवक केंद्र और बजाज फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से 11 नवंबर से 15 नवंबर तक आयोजित ध्येय कार्यक्रम के तहत देश की सामाजिक संस्थाओं और कृषि उत्पादक संगठनों के करीब 100 प्रतिनिधियों को कृषि, जल, शिक्षा और आजीविका पर विषय पर प्रशिक्षित किया गया.

इस अवसर पर बजाज समूह के संस्थापक जमनालाल बजाज की जन्मस्थली सीकर और उस के आसपास के क्षेत्रों में जमनालाल कनीराम बजाज ट्रस्ट द्वारा 1963 से अब तक किए गए सतत प्रयासों से कृषि, जल, शिक्षा और आजीविका के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यों को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया गया.

आयोजकों ने साझा किया ट्रेनिंग का उद्देश्य

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Hari Bhai

ट्रेनिंग के पहले दिन बजाज फाउंडेशन में सीएसआर के प्रेसिडेंट हरिभाई मोरी ने जल संसाधनों के विकास पर विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने सभी संस्थाओं से आह्वान किया कि अगर सभी सामाजिक संगठन एकजुट हो कर कृषि और जल पर काम करें, तो देश को विकास की नई परिभाषा गढ़ी जा सकती है.

उन्होंने बताया कि बजाज फाउंडेशन द्वारा सीकर में कृषि, जल पुनर्भरण, शिक्षा और आजीविका पर सघन और सफल रूप से काम किया जा रहा है, जिस के सफल अनुभवों से रूबरू कराने के लिए देश अभी तक 500 के करीब ऐसे सामाजिक सगठनों और किसान उत्पादक संस्थाओं को प्रशिक्षित किया गया है, जो खेती के जरीए आजीविका को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं.

 

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Uday Shanker Singh

विश्व युवक केंद्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी उदय शंकर सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला. इस दौरान बजाज फाउंडेशन और विश्व युवक केंद्र के कार्यों पर एक डौक्यूमेंट्री भी प्रस्तुत की गई.

उन्होंने बताया कि सीकर में गांव का पैसा गांव में और शहर का पैसा गांव में सपने को साकार करने के लिए सामाजिक संस्थाएं अहम भूमिका निभा सकती हैं. ऐसे में सीकर में अपनाए जा रहे इस मौडल को समझाना भी एक उद्देश्य रहा है.

उन्होंने यह भी बताया कि सीकर में लोगों ने बारिश के पानी को अपने घर की छत के जरीए संचयन करने का काम किया है. वर्षा जल संचयन की इस संरचना के लाभों को समझने के लिए यह ट्रेनिंग इन प्रतिभागियों के लिए काफी मददगार साबित हो रही है.

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Ranbir Singh

विश्व युवक केंद्र में कार्यक्रम अधिकारी रणवीर सिंह ने बताया कि देश में आने वाले समय में जल संकट एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ सकता है. ऐसे में जल की कमी वाले सीकर में ट्रेनिंग आयोजित किए जाने का मुख्य उद्देश्य यह था कि लोग यहां के जल संचयन, खेती और सिंचाई में जल प्रबंधन सहित आजीविका के उपायों को सीखें और अपने क्षेत्रों में लागू करें.

 

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Anand Kumar

विश्व युवक केंद्र में ही कार्यक्रम अधिकारी आनंद कुमार ने कहा कि कृषि, जल पुनर्भरण, शिक्षा और आजीविका जैसे विषय पर लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक किए जाने की जरूरत है. ऐसे में सफल अनुभवों को एकदूसरे से साझा किए जाने के लिए सोशल मीडिया एक बड़ा माध्यम साबित हो सकता है. उन्होंने सभी प्रतिभागियों से आह्वान किया कि सभी लोग समयसमय पर सोशल मीडिया के जरीए सफलता की कहानियों को साझा करते रहें, जिस से बदलाव की कहानियों से सीख ले कर दूसरे क्षेत्रों में भी लोग इसे अपना पाएं.

 

पद्मश्री जगदीश पारीक ने कृषि के नवाचारों को किया साझा

पद्मश्री और गोभीमैन औफ इंडिया के नाम से विख्यात जगदीश पारीक ने कम पानी में खेती और बागबानी का अनुभव साझा किया और अपने नवाचारों पर जानकारी दी. कार्यक्रम में एफपीओ और कृषि उद्यमिता, प्राकृतिक खेती और मूल्य संवर्धन मौडल, आत्मनिर्भर परिवार, लघु पैमाने पर कृषि उद्यमिता, वर्षा जल पुनर्भरण संरचना पर प्रकाश डाला गया.

सीकर जिले के अजीतगढ़ निवासी किसान जगदीश प्रसाद पारीक ने बताया कि वे खेती में नएनए प्रयोग करते हैं. वे सब्जियों की नई किस्म तैयार करने से ले कर किसानों को और्गेनिक खेती के लिए प्रेरित करते हैं.

खेती के नाम कई रिकौर्ड

पद्मश्री जगदीश पारीक ने बताया कि वह अपने खेत में 25 किलो ढाई सौ ग्राम वजनी गोभी का फूल, 86 किलो कद्दू, 6 फीट लंबी घीया, 7 फीट लंबी तोरिया, 1 मीटर लंबा और 2 इंच का बैगन, 5 किलो गोल बैगन, ढाई सौ ग्राम मोटा प्याज, साढ़े 3 फीट लंबी गाजर और एक पेड़ से 150 मिर्ची तक उगा चुके हैं.

उन्होंने बताया कि सब से अधिक किस्में फूलगोभी की हैं. यही वजह है कि लोग इन्हें ‘गोभी मैन’ कह कर भी बुलाते हैं.

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पद्मश्री और गोभीमैन औफ इंडिया के नाम से विख्यात जगदीश पारीक

54 साल से कर रहे जैविक खेती

जगदीश पारीक ने बताया कि वह साल 1970 से और्गेनिक खेती कर रहे हैं. पिता के निधन के बाद पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर उन्होंने खेती करना शुरू कर दिया. उन्होंने गोभी से इस की शुरुआत की और इस की किस्मों को ले कर कई नए प्रयोग किए. उन्हें प्रदेश में जैविक और शून्य लागत की खेती के प्रणेता के रूप में पहचान मिली है. इसी वजह से साल 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया था.

रेतीले इलाके में सफल खेती

जगदीश पारीक का खेत ड्राई जोन का हिस्सा है. उन्होंने बताया कि बरसात के पानी से आने वाले बहाव को वह अपने खेत में डायवर्ट करते हैं, जिस से उन का कुआं रिचार्ज हो जाता है और सालभर वह उसी पानी का इस्तेमाल खेती के लिए करते हैं. एक बरसात के सीजन में वह 3 बार पानी की राह रोक कर अपने खेत में मोड़ देते हैं. जिसे जमीन सोख लेती है और उसी पानी से उन के खेत पर बना कुआं जीवंत हो जाता है.

खेती के अनुभवों को करते हैं साझा

जगदीश पारीक की खेती में प्रयोगधर्मिता से न सिर्फ किसान, बल्कि कृषि अधिकारी तक प्रभावित हैं. यही वजह है कि कृषि से जुड़े सैमिनार हों या वर्कशाप देशभर से जगदीश पारीक को बुलाया जाता है और उन के अनुभवों से सीखा जाता है.

फील्ड विजिट कर प्रतिभागी कृषि, जल और आजीविका के अनुभव से हुए रूबरू

विश्व युवक केंद्र और बजाज फाउंडेशन द्वारा सीकर में आयोजित पांचदिवसीय प्रशिक्षण और फील्ड विजिट कार्यक्रम के तीसरे दिन प्रतिभागियों ने लक्ष्मणगढ़ ब्लौक खिनवासर गांव के प्रगतिशील किसान अमरचंद काजला के प्राकृतिक खेती, मीठे नीबू के भूखंड और बायोगैस प्लांट का दौरा किया.

इस दौरान अमरचंद काजला ने अपने प्राकृतिक खेती के मौडल पर प्रतिभागियों को जानकारी दी. उन्होंने बताया कि वह जिस क्षेत्र में खेती कर रहे हैं, वहां का क्लाइमेट खेती के लिए बहुत जटिल है, फिर भी उन्होंने प्राकृतिक खेती के जरीए खेती में सफलता के नए आयाम गढ़ते हुए सफलता प्राप्त की है.

उन्होंने बताया कि उन के कृषि उत्पादों को बेचने के लिए वह एप का सहारा लेते हैं, जिस से उन्हें किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है. उन्होंने अपने गोबर गैस प्लांट की कार्यप्रणाली को दिखाते हुए उस के फायदे भी गिनाए.

बजाज फाउंडेशन में सीएसआर के प्रेसिडेंट हरिभाई मोरी ने अमरचंद काजला के गौ आधारित खेती के मौडल की प्रशंसा करते हुए उसे आगे बढ़ाते हुए पूरे देश में लागू करने पर जोर दिया. वीवाईके के मुख्य कार्यकारी अधिकारी उदय शंकर सिंह ने सीकर में अपनाए जा रहे जल उपयोग प्रणाली, जैविक, प्राकृतिक और गौ आधारित खेती को आज की आवश्यकता बताते हुए मानव स्वास्थ्य के लिए जरूरी बताया.

उन्होंने सीकर के आजीविका मौडल और भूमि जल पुनर्भरण मौडल की सराहना की और उसे अन्य राज्यों में भी लागू किए जाने की वकालत की.

इस के बाद दौरे पर आई टीम ने इस बलारा गांव में कृषि प्रसंस्करण इकाई तेल मिल और मसाला मिल का दौरा कर मूल्य संवर्धन और आजीविका से जुड़ी सफलता के बारे में जानकारी प्राप्त की.

ध्येय प्रोग्राम के तहत दौरे पर आई यह टीम सिंहोदरा गांव के पवन कुमार शर्मा के फार्म पर प्राकृतिक खेती और वृक्षारोपण के तहत 3 लेयर खेती, बाजरा प्रसंस्करण इकाई, खेत टांका और वृक्षारोपण के बारे में भी जानकारी प्राप्त की.

टीम ने ड्रिप के जरीए किन्नू और मीठे नीबू के बाग का अध्ययन करने के लिए रामचंद्र सेन के फार्म का दौरा किया. छत पर वर्षा जल संचयन संरचना के लाभों को समझने के लिए ओमप्रकाश मेहेरिया के फार्म का भी दौरा किया. इस दौरान टीम ने भूमि समतलीकरण गतिविधि के लाभों को समझने के लिए राजेश स्वामी से जानकारियां प्राप्त की.

राजस्थान के सूखे खेतों में फूलों की लहलहाती खेती ने किया हैरान

राजस्थान की जमीन रेतीली होने और कम बारिश के चलते देश के अन्य हिस्सों की तुलना में खेती किया जाना कठिन काम है, लेकिन सीकर जिले के तमाम किसानों ने बजाज फाउंडेशन के सहयोग के बारिश के पानी को संरक्षित करते हुए ड्रिप इरिगेशन के जरीए तमाम ऐसी फसलों को उगाने में सफलता पाई है, जिसे ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है. सीकर की इसी खेती की विधि को सीखने के लिए टीम जब तसरबाड़ी गांव पहुची, तो यहां के किसान भंवर लाल के एकीकृत खेती के मौडल करीब 40 एकड़ क्षेत्र में गेदे और गुलदाऊदी फूल की सफल खेती को देख कर अचंभित हो गई.

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इस मौके पर किसान भंवर लाल ने बताया कि वह करीब 40 एकड़ क्षेत्र में पानी का बेहतर प्रबंधन करते हुए फूलों की खेती कर करीब 70 लाख रुपए की आमदनी हर साल कर लेते हैं. उन्होंने बताया कि वह बारिश के पानी को संरक्षित करते हैं, जिसे ड्रिप के जरीए फसल की सिंचाई करते हैं. उन्होने अपने फार्म, तालाब, पौलीहाउस, बगीचे का भ्रमण भी कराया और खेती के सफल मौडल की जानकारी दी.

प्रतिभागियों ने सराहा

विश्व युवक केंद्र और बजाज फाउंडेशन द्वारा कृषि, जल पुनर्भरण, शिक्षा और आजीविका विषय पर आयोजित ट्रेनिंग और एक्सपोजर विजिट कार्यक्रम में देश के करीब 12 राज्यों से 100 से भी अधिक प्रतिभागी शामिल हुए. प्रतिभागियों ने राजस्थान के सीकर में कम पानी में किए जा रहे सफल खेती और आजीविका के मौडल को सराहा और अपनेअपने क्षेत्रों में लागू किए जाने पर बल दिया.

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से नैशनल अवार्डी किसान राममूर्ति मिश्र ने कहा कि उन्हें सीकर में अपनाए जा रहे एक लिटर पानी में पौधारोपण के सफल प्रयोग ने काफी प्रभावित किया है. उन्होंने कहा कि जब राजस्थान में हरियाली बढ़ाई जा सकती है, तो देश के सिंचित और वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे और भी सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है.

 

ट्रेनिंग में आए रूरल अवेयरनेस फौर कम्युनिटी इवोलूशन के अध्यक्ष नितेश शर्मा ने सीकर में किसानों द्वारा जल संसाधन विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों को सराहा. उन्होंने कहा कि सीकर में किसानों द्वारा संचालित एफपीओ कृषि उद्यमिता की मिसाल है. इस से देश के अन्य किसानों को सीखने में मदद मिलेगी.

 

 

 

 

 

 

 

विश्वनाथ चौधरी ने विजिट के दौरान प्राकृतिक खेती और मूल्य संवर्धन के मौडल और उस से आत्मनिर्भर बने किसान परिवारों के अनुभवों को साझा किया. प्रतिभागी नीलम मिश्रा ने एसएचजी फेडरेशन के जरीए सीकर में हुए महिला सशक्तीकरण को सराहा.

आस्ट्रेलियन टीक (एमएचएटी 16) : 10 सालों में 5 करोड़ तक की आमदनी

आमतौर पर विश्व में अकेसिया बबूल की 1200 से भी ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं. भारत में लगभग सभी जगह पाया जाने वाला बबूल भी इसी अकेसिया की एक प्रजाति है. पान में जिस कत्था को हम खाते हैं, वह भी इसी की एक अन्य प्रजाति की लकड़ी से प्राप्त किया जाता है.

आज हम इस की एक विशेष प्रजाति की चर्चा कर रहे हैं, जिस का आस्ट्रेलिया और अन्य कई देशों में बहुत बड़े पैमाने पर व्यावसायिक रोपण किया गया है और इस से वहां के किसान भरपूर मुनाफा कमा रहे हैं. इस की लकड़ी का व्यापार जगत में लोकप्रिय नाम आस्ट्रेलियन टीक है. बेहतरीन, खूबसूरत, टिकाऊ, बहुमूल्य लकड़ी के सभी प्रमुख गुणों जैसे कठोरता, घनत्व, मजबूती एवं लकड़ी में पाए जाने वाले रेशों के मापदंड पर इस की लकड़ी आजकल पाए जाने वाले सागौन से कहीं भी उन्नीस नहीं बैठती. यही कारण है कि अल्पकाल में ही इस ने न केवल अपार लोकप्रियता हासिल की कर ली है और लकड़ी के व्यापार में बहुत बड़ा मुकाम बना लिया है.

भारत हर साल लगभग 40 लाख करोड़ रुपए की लकड़ी व नौनटिंबरवुड आयात करता है. बिहार से इस की खेती करने पर किसानों को न केवल बेहतरीन आमदनी होगी, बल्कि देश की बहुमूल्य विदेशी पैसे की बचत भी होगी.

यह एक तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति है, जो न केवल उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करती है, बल्कि इस की लकड़ी का व्यापारिक मूल्य भी अत्यधिक है.

मौडर्न तो श्री हर्बल फार्म 2017 सैंटर पर पिछले 30 सालों में किए गए प्रयोगों से यह स्पष्ट हो गया कि इस की बढ़वार लंबाई और मोटाई दोनों ही मामलों में महोगनी, शीशम, मिलिया डुबिया, मलाबार नीम और टीक की अन्य प्रजातियों की तुलना में सर्वाधिक है. कई मामलों में तो इस की वृद्धि ‌इन सब से दोगुनी तक पाई गई है. इस की विशेषता तेज वृद्धि, उच्च गुणवत्ता की लकड़ी और मिट्टी को समृद्ध करने की क्षमता में निहित है.

वर्तमान में देश में उपलब्ध सब से तेजी से बढ़ने वाली और उच्चतम गुणवत्ता की लकड़ी उत्पादन देने वाली एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) की एकमात्र विकसित प्रजाति एमएचएटी-16 (MHAT-16) है, जिसे ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म्स एवं रिसर्च सेंटर’, कोंडागांव ने पिछले कई दशकों के प्रयास से विकसित किया है. यह न केवल बेहतर गुणवत्ता की लकड़ी उत्पादन देती है, बल्कि मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा भी बड़ी तेजी से बढ़ाती है, जिस से यह एक टिकाऊ और लाभकारी और इकोफ्रैंडली विकल्प बन जाती है.

सही पौधे का चयन : सफलता की कुंजी

एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) वृक्षारोपण की सफलता सब से पहले इस बात पर निर्भर करती है कि कौन से पौधे चुने जाते हैं. इस प्रजाति में चयन करने की दिक्कत इसलिए बढ़ जाती है कि ज्यादातर प्रजातियों के पत्ते लगभग एकजैसे ही दिखाई देते हैं, लेकिन असली फर्क लकड़ी की गुणवत्ता में रहता है. एमएचएटी-16 (MHAT-16) प्रजाति का पौधा अपने तेजी से विकास और मजबूत जड़ प्रणाली के लिए प्रसिद्ध है. पौधे के स्वास्थ्य, उस की जड़ प्रणाली और तने की मोटाई जैसे कारकों को ध्यान में रखना चाहिए. उच्च शूट/रूट (shoot/root) अनुपात वाले पौधे तेजी से बढ़ते हैं और विपरीत परिस्थितियों में बेहतर जीवित रहते हैं.

मुख्य बिंदु :
– पौधा रोगमुक्त और कीटमुक्त होना चाहिए.
– अच्छी तरह से विकसित जड़ प्रणाली (lateral root system) होना चाहिए.
– तना मजबूत और काष्ठीय होना चाहिए.

पौधों का रोपण : समय पर और सही जगह :

एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) एमएचएटी-16 (MHAT-16) के पौधों को 3 से 5 महीने की आयु के बाद रोपण के लिए तैयार किया जा सकता है. इस के पौधे पौलीबैग या रूट ट्रेनर्स (root trainers) में उगाए जाते हैं. वर्षा ऋतु रोपण के लिए सर्वोत्तम समय है. हालांकि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो, तो इसे शीत ऋतु में भी लगाया जा सकता है. जिस किसान के पास ड्रिप इरीगेशन की सुविधा हो, तो वे इसे मध्य मार्च तक भी लगा सकते हैं.

मुख्य बिंदु :
– पौधों की ऊंचाई 25-40 सैंटीमीटर होनी चाहिए.
– रोपण के लिए मानसून का समय आदर्श होता है.

कटिंग से पौधों का उत्पादन : एक सस्ती और कारगर विधि :

एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) की इस विशेष प्रजाति के पौधे मुख्य रूप से स्टेम कटिंग (stem cuttings) के माध्यम से उगाए जाते हैं. एमएचएटी- 16 (MHAT-16) प्रजाति की कटिंग से उगाए गए पौधे तेजी से बढ़ते हैं और उन की जड़ प्रणाली मजबूत होती है. कटिंग्स को आईबीए (IBA (Indole-3-butyric acid) के विशेष अनुपात के साथ उपचारित किया जाता है, ताकि जड़ें जल्दी विकसित हों.

मुख्य बिंदु :
– जड़ों के तीव्र गति से विकास के लिए वर्मी कंपोस्ट और साफसुथरी रेती का मिश्रण सब से उपयुक्त होता है.

सिंचाई :

पौधों की वृद्धि की आवश्यकता : एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) एमएचएटी -16 (MHAT-16) के पौधों को नर्सरी अवस्था में तो नियमित नमी की आवश्यकता होती है. पौधों को हर दूसरे दिन पानी देना चाहिए, विशेषकर गरम मौसम में. इस से पौधों का विकास तेजी से होता है और उन के मुरझाने की संभावना कम होती है. खेतों में लगाने के बाद एक बार भलीभांति जड़ पकड़ लेने के बाद इसे कोई विशेष सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती. हालांकि सिंचाई करते रहने पर इस के वृद्धि दर में बहुत अच्छे परिणाम देखे गए हैं.

मुख्य बिंदु :
– पौधों में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें.
– गरम मौसम में पौधे की हालत को देखते हुए पानी की मात्रा और आवृति तय करें.

ग्रेडिंग : गुणवत्ता का मानक :
एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) के पौधों की ग्रेडिंग से यह सुनिश्चित किया जाता है कि केवल उच्च गुणवत्ता वाले पौधों का रोपण किया जाए. एमएचएटी-16 (MHAT-16) प्रजाति के पौधों की जड़ प्रणाली मजबूत होती है और तने की मोटाई अच्छी होती है, जो प्लांटेशन  की सफलता को सुनिश्चित करता है.

मुख्य बिंदु :
– उच्च गुणवत्ता वाले पौधों का उपयोग प्लांटेशन की सफलता के लिए अनिवार्य है.
– ग्रेडेड पौधों के रोपण से पौधे खेतों में बहुत कम मरते हैं और दोबारा रोपण की आवश्यकता कम होती है.

संभावित आर्थिक लाभ : निवेश का सुनहरा अवसर

एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) एमएचएटी-16 (MHAT-16) से प्राप्त लकड़ी उच्च गुणवत्ता की होती है. कई मायनों में यह आजकल मिलने वाली टीक की लकड़ी से भी बेहतर होती है. लगभग 10 साल बाद प्रत्येक पेड़ से औसतन 30-40 घन फीट लकड़ी प्राप्त की जा सकती है. इस की वर्तमान बाजार दर 1000-1500 प्रति घन फीट है. यदि एक एकड़ में लगाए गए 800 पेड़ों में से 600 पेड़ भी सफलतापूर्वक विकसित होते हैं, तो 10 वर्षों के बाद होने वाली कुल आय करोड़ों रुपए में हो सकती है.

आयव्यय के वास्तविक आंकड़े और विश्लेषण:-
(स्रोत:मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म्स एवं रिसर्च सैंटर, कोंडागांव, छत्तीसगढ़)
एक एकड़ में औसतन लगेंगे कुल पौधे – 800
प्रति पौधा लागत रु.100-150 औसतन – 125
कुल प्रारंभिक खर्च – 1,16,000
रखरखाव लागत (प्रति वर्ष) प्रति एकड़ – 10,000
(नोट: क्षेत्रफल बढ़ने पर या राशि कम होती जाती है.)

कुल 10 वषों में कुल रखरखाव लागत 10000×10=₹1,00,000.

कुल खर्च (10 वर्षों) में 116000 + 100000 =₹2,16,000 (2 लाख, 16 हजार रुपए)

आमदनी :
औसतन लकड़ी उत्पादन प्रति पेड़ – 35 घन फीट
लकड़ी की संभावित औसतन न्यूनतम कीमत (टीक के औसतन मूल्य 5000 प्रति क्यूबिक फीट का केवल 25= 1250 प्रति घन फीट
लगाए गए 800 पेड़ों में से केवल 600 उत्पादक पेड़ों से कुल लकड़ी – 600 x35 = 21,000 घन फीट,
लकड़ी का मूल्य = 1250× 21000 रुपए घन फीट – 2,62,5000 (2 करोड़, 62 लाख, 50 हजार रुपए)
कुल आय (10 वर्षों में) – 2,62,50,000 रुपए
शुद्ध आय (10 वर्षों में) कुल आय 26250000- कुल खर्च 216000= 2,60,34,000 रुपए
प्रति वर्ष औसत आय – 26034000 ÷ 10 वर्ष = 26,03,400 (लगभग छ्ब्बीस लाख रुपए) सालाना

नोट : यह गणना प्राप्त होने वाली लकड़ी के संभावित न्यूनतम मूल्य 1250 रुपए के बीच फीट पर की गई है और एक एकड़ के 800 पेड़ों में से केवल 600 पेड़ों के औसत उत्पादन की गणना की गई है. पौधों की बेहतर देखभाल से उत्पादन में वृद्धि और लकड़ी का सही मूल्य मिलने पर एक एकड़ की आमदनी इस से दोगुनी अर्थात 5 करोड रुपए प्रति एकड़ तक भी हो सकती है.)

अतिरिक्त आय : आस्ट्रेलियन टीक (MHAT-16) के पेड़ों पर काली मिर्च एमडीबीपी-16 (MDBP-16) की बेल चढ़ा कर को 5 लाख से ले कर 15 लाख रुपया सालाना की अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है. आस्ट्रेलियन टीक और काली मिर्च के अलावा वृक्षारोपण के बीच खाली पड़ी 50 फीसदी भूमि पर अंतरवर्ती फसल के रूप में औषधि और सुगंधी पौधों की खेती से भी अतिरिक्त कमाई की जा सकती है.

आस्ट्रेलियन टीक (MHAT-16) प्रजाति तेजी से बढ़ने वाली, टिकाऊ और अत्यधिक लाभदायक प्रजाति है, जो न केवल उच्च गुणवत्ता की लकड़ी प्रदान करती है, सालभर में अपनी पत्तियों से लगभग 6 टन बेहतरीन हरी खाद भी देता है.

इस के अलावा यह अपनी तरह का एकलौता पौधा है, जो वायुमंडल की नाइट्रोजन को ले कर धरती में इतनी ज्यादा मात्रा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है कि इसे जैविक नाइट्रोजन की फैक्टरी भी कहा जाता है. इस के रोपण से प्राप्त होने वाले आर्थिक लाभ और कम लागत ने आज इसे किसानों और निवेशकों के लिए एक आदर्श विकल्प बना दिया है.

आस्ट्रेलियन टीक (MHAT-16) प्रजाति की विशेषताएं इसे अन्य किस्मों से बेहतर बनाती है, जिस से यह निवेश का सुनहरा अवसर देती है.

मुख्य लाभ :
– तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति (MHAT-16)
– उच्च गुणवत्ता वाली लकड़ी का उत्पादन
– नाइट्रोजन स्थिरीकरण से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार
– अंतरवर्ती फसलों से अतिरिक्त आय
– साल में इस के पत्तों से लगभग 6 टन की बेहतरीन गुणवत्ता की हरी खाद का उत्पादन
– इस पेड़ पर काली मिर्च चढ़ाने पर इस से मिलने वाली नाइट्रोजन और पत्तों की हरी खाद के कारण काली मिर्च का उत्पादन कई गुना बढ़ गया है और इस से किसान की आमदनी में भी जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है.

सुझाव :

एकेसिया मंगियम (Acacia Mangium) एमएचएटी- 16 (MHAT-16) प्लांटेशन को आर्थिक समृद्धि और पर्यावरणीय संरक्षण के दृष्टिकोण से एक आदर्श योजना माना जा सकता है. इस का सही प्रबंधन और देखभाल आप के निवेश को बड़े पैमाने पर लाभदायक बना सकता है.
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आंकड़ों का स्रोत : ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म्स एवं रिसर्च सैंटर, कोंडागांव, छत्तीसगढ़)

लखनऊ में हुआ उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के किसानों का सम्मान

पहली बार बड़े लैवल पर ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका द्वारा राज्य स्तरीय ‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ का आयोजन लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में 17 अक्तूबर, 2024 को किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से आए तकरीबन 200 किसान शामिल हुए और खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले तकरीबन 40 किसानों को राज्य स्तरीय ‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ से सम्मानित किया गया.

इस मौके पर अवार्ड ग्रहण करने वाले किसानों की कहानियों को वीडियो डौक्यूमैंट्री के जरीए अवार्ड सैरेमनी में वहां मौजूद दूसरे किसानों और अतिथियों के सामने पेश किया गया.

इस अवार्ड सैरेमनी में अतिथियों ने किसानों को स्मृतिचिह्न, सर्टिफिकेट और गिफ्ट प्रदान किए. इस मौके पर अवार्डी किसानों के साथ उन के परिजन भी मौजूद रहे.

Krishi Samman Awardमहिला किसानों ने बढ़ाया हौसला

‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ देश का एकमात्र ऐसा अवार्ड है, जिस में दिनरात खेतों, बागों और डेयरी में काम करने वाली महिलाओं को किसान के रूप में पहचान कर उन्हें न केवल अवार्ड से नवाजने का काम किया गया, बल्कि उन के प्रयासों को भी देश के सामने लाया गया.

इस अवार्ड समारोह में उत्तराखंड से डाक्टर पूजा गौड़ को ‘बैस्ट फार्मर अवार्ड इन मार्केटिंग’, पुष्पा नेगी को ‘बैस्ट डेयरी ऐंड एनिमल कीपर अवार्ड’ और डाक्टर हिरेशा वर्मा को ‘बैस्ट फीमेल फार्मर’ अवार्ड से नवाजा गया, वहीं उत्तर प्रदेश से पुष्पा गौतम को ‘बैस्ट फार्मर अवार्ड इन मार्केटिंग’, मिलन शर्मा को ‘बैस्ट डेयरी ऐंड एनिमल कीपर अवार्ड’, शुभावरी चौहान को ‘यंग फीमेल फार्मर’, साधना सिंह को ‘बैस्ट डेयरी ऐंड एनिमल कीपर अवार्ड’, इंदु सिंह को ‘बैस्ट फीमेल फार्मर अवार्ड’ और वंदना सिंह को भी ‘बैस्ट फीमेल फार्मर अवार्ड’ से नवाजा गया.

40 अवार्डी किसानों में 9 महिला किसान शामिल रहीं, जिन में से कुछ महिला किसानों का कारोबार सालाना करोड़ों रुपए में होता है.

Krishi Samman Awardकार्यकारी प्रकाशक ने किया स्वागत

दिल्ली प्रैस के कार्यकारी प्रकाशक अनंत नाथ की अगुआई और मार्गदर्शन में ‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया. इस मौके पर उन्होंने सभी अतिथियों को पुष्पगुच्छ दे कर उन का स्वागत किया.

दिल्ली प्रैस के कार्यकारी प्रकाशक अनंत नाथ ने कहा कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से विभिन्न 13 श्रेणियों में नामांकित 40 से अधिक किसानों और कृषि विज्ञान केंद्रों को कृषि जगत में किए गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है.

‘फार्म एन फूड’ पत्रिका द्वारा खेती में नवाचार अपनाने वाले किसानों से विभिन्न श्रेणियों में आवेदन आमंत्रित किए गए थे. इन श्रेणियों में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से 300 से भी अधिक नोमिनेशन कृषि विज्ञान केंद्रों व कृषि संस्थानों की संस्तुति सहित प्राप्त हुए थे. विभिन्न श्रेणियों में प्राप्त इन नोमिनेशन का 4 सदस्यीय जूरी द्वारा मूल्यांकन किया गया, जिस में सर्वश्रेष्ठ नोमिनेशन को पुरस्कार के लिए चुना गया है.

Krishi Samman Awardदिल्ली प्रैस के इतिहास पर प्रकाश

‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के इंचार्ज भानु प्रकाश राणा ने दिल्ली प्रैस के गौरवशाली इतिहास के बारे में वीडियो डौक्यूमैंट्री के जरीए प्रकाश डाला.

दिल्ली प्रैस की स्थापना साल 1939 में की गई थी, जिस की पहली पत्रिका इंगलिश भाषा में ‘द कैरेवान’ थी, जो आज भी प्रकाशित हो रही है.

साल 1945 में हिंदी मासिक पत्रिका ‘सरिता’ शुरू की गई और पहले अंक से ही ‘सरिता’ पत्रिका घरघर की पसंदीदा हिंदी पत्रिका बन गई थी.

पिछले कुछ सालों में इस समूह ने कई पत्रिकाएं लौंच की हैं, जो उतनी ही सफल रही हैं, जिन में ‘मुक्ता’, ‘चंपक’, ‘गृहशोभा’, ‘सरस सलिल’, ‘फार्म एन फूड’ जैसी 9 भाषाओं में 31 पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं.

Krishi Samman Awardमंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने बढ़ाया हौसला

‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार में उद्यान, कृषि विपणन, कृषि विदेश व्यापार एवं कृषि निर्यात के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिनेश प्रताप सिंह रहे. इस मौके पर उन्होंने सम्मानित होने वाले किसानों से कहा, ‘‘यहां सम्मानित किसान अपनी खेती के जरीए किसी न किसी के लिए नजीर बने हैं. ऐसे सभी सम्मानित होने वाले किसानों को मैं बधाई देता हूं.’’

मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने ‘फार्म एन फूड’ और दिल्ली प्रैस के इस आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि जब किसानों की सफलता की कहानियों और तकनीकी को प्रचारित करने वाले देश के चौथे स्तंभ मीडिया जगत के लोग ही किसानों को आगे लाने और उन का हौसला बढ़ाने का काम कर रहे हैं, तो यह देश के किसानों के लिए अच्छे दिनों की निशानी है. किसानों के सम्मान के लिए आगे आई दिल्ली प्रैस और ‘फार्म एन फूड’ को मैं धन्यवाद देता हूं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि खेती के क्षेत्र में बड़ी संभावना है. इसी वजह से उत्तर प्रदेश का आम विदेशों में जा रहा है. हम दूसरे उत्पादों को भी दुनियाभर में भेज रहे हैं. इस से हमारे किसानों का उत्साह बढ़ रहा है. आज के नौजवान अपने कृषि उत्पादों को ग्लोबल बना सकते हैं.

आगरा में ऐसा नवीनतम अनुसंधान केंद्र बनने जा रहा है, जो देश में कृषि जगत में क्रांति ला सकता है. परंपरागत खेती के साथसाथ हमें खेती में नवाचार भी अपनाना चाहिए, जिस से किसान की आमदनी बढ़ सकती है.

मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने वाराणसी के नवाचारी और अनाज की कई किस्मों को ईजाद करने वाले किसान श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी, लखीमपुर खीरी के गन्ना किसान अचल कुमार मिश्रा, सिद्धार्थनगर जिले के युवा किसान मंगेश दुबे को अपने हाथों से पुरस्कार प्रदान कर उन का हौसला बढ़ाया.

मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने अवार्ड समारोह में मौजूद ‘लैमनमैन’ के नाम से मशहूर रायबरेली जनपद के कचनावा गांव के किसान आनंद मिश्रा का जिक्र करते हुए कहा कि आनंद मिश्रा ने नीबू की बागबानी से प्रदेश के किसानों के लिए एक ऐसी मिसाल पेश की है, जिस को देख कर दूसरे किसान भी बागबानी की तरफ आने लगे हैं.

उन्होंने आगे जानकारी देते हुए यह भी कहा कि आनंद मिश्रा ने एक मल्टीनैशनल कंपनी की नौकरी छोड़ कर नीबू की बागबानी के जरीए नई मिसाल पेश की है.

किसानों को दिए खेती के टिप्स

जल संरक्षण को एक जन आंदोलन का रूप देने वाले ‘पद्मश्री’ और ‘जलयोद्धा’ उमाशंकर पांडेय ने बताया कि खेती में पानी के समुचित उपयोग से न केवल लागत में कमी ला सकते हैं, बल्कि पानी बचाने की दिशा में आगे भी बढ़ सकते हैं.

उन्होंने पुरखों की विधि ‘खेत पर मेंड़, मेंड़ पर पेड़’ को अपनाते हुए अपने खेतों में वर्षा का पानी रोका. इस के परिणामस्वरूप बांदा मंडल ने उत्तर प्रदेश में गेहूं उत्पादन में रिकौर्ड बनाया और बासमती धान की पैदावार में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जो बुंदेलखंड के लिए एक नई शुरुआत है.

जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तराखंड में निदेशक, शिक्षा विस्तार डाक्टर जितेंद्र क्वात्रा ने विश्वविद्यालय पर किसानों के लिए किए जा रहे प्रयोगों और प्रयासों पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में चल रहे प्रयोगों को सीखने के लिए देशभर से किसान आते रहते हैं. विश्वविद्यालय द्वारा विकसित नवीन किस्मों ने देश के अनाज उत्पादन में अभूतपूर्व क्रांति लाने का काम किया है.

भाकृअनुप-केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ से प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण) डाक्टर संजीव कुमार वर्मा ने किसानों के लिए जरूरी पोषण पर जानकारी दी.

उन्होंने संस्थान द्वारा गत 37 सालों के दौरान की गई महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों, देशी गायों के विकास के लिए संस्थान द्वारा चलाई जा रही विभिन्न अनुसंधान परियोजनाओं, फ्रीजवाल गाय का विकास आदि पर प्रकाश डाला.

उन्होंने बताया कि केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान देश का एकमात्र संस्थान है, जहां गोवंश की नस्ल सुधारने व विकसित करने के लिए काम कर रहा है. इस से किसानों को बहुआयामी लाभ मिल रहा है. उन्होंने कहा कि पशुपालक गायों की उन्नत नस्लों, सीमेन की डोज स्टौक से क्रय कर अपनी आय में भी बढ़ोतरी कर सकते हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, सीतापुर के अध्यक्ष वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डाक्टर दयाशंकर श्रीवास्तव ने किसानों को निरंतर कम होती जोत और बढ़ती खाद्यान्न जरूरतों की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए कहा कि समेकित कृषि प्रणाली एक ऐसी विधा हो सकती है, जिस के माध्यम से किसान विभिन्न फसलों, पशुओं, मछलियों और पेड़पौधों से एक संगठित तरीके से उत्पादन ले सकते हैं.

Krishi Samman Awardजूरी टीम ने किया चयन

‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ में आए नामांकनों और आवेदनों की स्क्रीनिंग व चयन के लिए 4 विशेषज्ञों की जूरी का गठन किया गया था, जिन्होंने 13 कैटेगरी में आए तकरीबन 300 से अधिक आवेदनों की बहुत ही सूक्ष्मता से स्क्रीनिंग की और आवेदन के साथ लगाए गए साक्ष्यों व अपनाई जा रही तकनीकी को देखते हुए अंतिम सूची को फाइनल किया.

‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ के लिए जिन 4 विशेषज्ञों का पैनल बनाया गया था, उन में ‘पद्मश्री’ पुरस्कार विजेता उमाशंकर पांडेय, उत्तर प्रदेश सैंटर फौर एग्रीकल्चर टैक्नोलौजी अस्सेस्मैंट ऐंड ट्रांसफर, आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में प्रधान वैज्ञानिक (कृषि विस्तार) डाक्टर नफीस अहमद, गोवंश पोषण एवं प्रबंधन प्रभाग, भाकृअनुप-केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ से प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण) डाक्टर संजीव कुमार वर्मा व एसवी पटेल कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश में निदेशक ट्रेनिंग एवं प्लेसमैंट प्रोफैसर आरएस सेंगर शामिल रहे.

जूरी में शामिल इन सभी विशेषज्ञों को खेतीबारी में महारत हासिल है. डाक्टर नफीस अहमद को जहां खेती से जुड़ी रिसर्च, तकनीकी हस्तांतरण, ट्रेनिंग इत्यादि में गहन विशेषज्ञता है, तो वहीं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा हर साल दिए जाने वाले इनोवेटिव फार्मर अवार्ड व फार्मर फैलोशिप अवार्ड के वे इंचार्ज भी रहे हैं.

‘पद्मश्री’ उमाशंकर पांडेय को देशभर में पारंपरिक तरीके से पानी बचाने की मुहिम के लिए जाना जाता है और उन के प्रयासों से बुंदेलखंड जैसे सूखे क्षेत्रों में भी धान की उन्नत खेती संभव हो पाई है.

पशुपालन के विशेषज्ञ डाक्टर संजीव कुमार वर्मा देश के नामचीन पशुपालन वैज्ञानिकों में शामिल हैं. उन्हें पशुओं के पोषण और देखभाल में महारत हासिल है. डाक्टर आरएस सेंगर मेरठ कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ और अनुभवी वैज्ञानिक हैं. वे रिसर्च, ट्रेनिंग, नवीन किस्मों के विकास सहित खेती में उच्च कोटि के वैज्ञानिक हैं. खेतीबारी से जुड़े उन के लेख देश और दुनिया की पत्रिकाओं और रिसर्च पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं.

समारोह में मलिहाबाद के निवासी और पूरी दुनिया में ‘मैंगोमैन’ के नाम से विख्यात ‘पद्मश्री’ कलीम उल्लाह खान ने भी किसानों को अवार्ड प्रदान कर उन का हौसला बढ़ाया. उन्होंने अपने द्वारा विकसित और खोजी गई आम की नवीन व उन्नत नस्लों की खूबियों को भी गिनाया. उन के पास लखनऊ के मलिहाबाद में दुनिया का एकलौता ऐसा पेड़ है, जिस पर 300 से ज्यादा किस्म के आम फलते हैं.

तय किए गए थे ये मानक

‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ के लिए प्राप्त 13 कैटेगरी के आवेदनों की स्क्रीनिंग व चयन के लिए जो मानक तय किए गए थे, उन में किसान द्वारा अपनाई जा रही तकनीकी, उन्नत किस्मों और नस्लों का चयन, खाद एवं उर्वरक के उपयोग की तकनीकी, जोखिम न्यूनीकरण, कृषि यंत्रों का उपयोग, लागत और मूल्य संवर्धन, हार्वेस्टिंग प्रोसैसिंग तकनीकी, लागत और लाभ का अनुपात सहित ट्रेनिंग, पुरस्कार और प्रकाशित सफलता की कहानियां जैसे तमाम बिंदु शामिल किए गए थे.

Krishi Samman Awardसहप्रायोजक के रूप में इन का भी रहा सहयोग

‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ की मुख्य सहप्रायोजक कंपनी पोलारिस स्पोर्ट्समैन 570 ट्रैक्टर रही, जो औफ रोडर ह्वीकल बनाने वाली अमेरिकी कंपनी पोलारिस का पहला रोड लीगल ट्रैक्टर है. यह ट्रैक्टर कौंपैक्ट साइज का है और इसे खासतौर पर कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल करने के लिए बनाया गया है. इस में 4-ह्वील ड्राइव की क्षमता है और यह 680 किलोग्राम तक का भार खींच सकता है.

‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ की दूसरी सहप्रायोजक कंपनी मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान रही, जो आयुर्वेदिक दवाओं, हर्बल प्रसाधन सामग्री और खाद्य संरक्षण उत्पादों के लिए जानी जाती है.

मेघदूत को उस की गुणवत्ता वाले उत्पादों के लिए राष्ट्रपति डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा ‘खादी एवं ग्रामोद्योग में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार 2005’ से सम्मानित किया गया था.

साल 1985 में स्थापित मेघदूत ग्रामोद्योग सेवा संस्थान अपने हर्बल उत्पादों, हर्बल दवाओं, स्वास्थ्य खाद्य पदार्थों, स्वास्थ्य टौनिक, बालों की देखभाल के उत्पादों, त्वचा की देखभाल के उत्पादों, सौंदर्य की देखभाल के उत्पादों आदि के एक प्रसिद्ध निर्माता, निर्यातक और आपूर्तिकर्ता के रूप में पहचानी जाती है.

किसानों का हौसला और उत्साह बढ़ाने के लिए भविष्य में देश के अन्य राज्यों में भी ‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ का आयोजन किया जाएगा.

‘चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन’ के अधिकारी हुए सम्मानित

भारत में काम करने वाली संस्था ‘चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन’ से जुड़े 3 अधिकारियों संस्थापक ट्रस्टी सुनील वर्गीस, संस्थापक ट्रस्टी राजेंद्र पाठक और प्रोजैक्ट हैड सुनील पांडेय को गरीबी उन्मूलन और जीरो हंगर पर काम करने के लिए ‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ से नवाजा गया.

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इन अधिकारियों की अगुआई में ‘चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन’ देशभर में जरूरतमंद बच्चों को तत्काल चिकित्सा सहायता प्रदान करती है, जिन में गंभीर बीमारियों और आपात स्थितियों में सहायता शामिल है.

इस के अलावा यहां पर सरकारी स्कूलों में डिजिटल शिक्षा, शिक्षण सामग्री और बुनियादी सुविधाओं में सुधार के लिए विभिन्न परियोजनाओं को चलाया जाता है. इस के तहत स्कूलों में स्मार्ट क्लासेस, पुस्तकालयों का निर्माण और डिजिटल उपकरणों की स्थापना पर ध्यान दिया गया है.

‘चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन’ द्वारा चलाए जा रहे स्वास्थ्य कार्यक्रम में बच्चों के पोषण स्तर को सुधारने और उन्हें स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है. इस के अंतर्गत बच्चों को पौष्टिक आहार, स्वास्थ्य जांच और जागरूकता कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है. हाल ही में ‘स्वास्थ्य से शिक्षा तक’ अभियान की शुरुआत की गई है, जिस का उद्देश्य बच्चों को अच्छे स्वास्थ्य के माध्यम से शिक्षा के अवसर प्रदान करना है.

यह संस्था पर्यावरण सुरक्षा में भी सक्रिय भूमिका निभा रही है. यह संगठन विभिन्न स्थानों पर वृक्षारोपण अभियान चलाता है और स्थानीय समुदायों को पर्यावरणीय जागरूकता के लिए प्रेरित करता है. इस संस्था के द्वारा स्कूलों और सार्वजनिक स्थलों पर स्वच्छता अभियान और सफाई मुहिम का आयोजन किया जाता है.

‘चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन’ इन सभी गतिविधियों के माध्यम से वंचित और असहाय बच्चों की जिंदगी में बदलाव लाने का काम कर रही है.

इस संस्था के संस्थापक ट्रस्टी राजेंद्र पाठक ने बताया, ‘‘हमारी संस्था देशभर में सतत विकास लक्ष्य के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कार्यरत है, जिस के जरीए वंचित तबके को समाज की मुख्यधारा में शामिल किए जाने का प्रयास किया जा रहा है.’’

समय प्रबंधन से बदल सकती है गन्ना किसानों की हालत

परंपरागत खेती में किसान जहां गन्ना-पेड़ी-गेहूं, गन्ना-पेड़ी-गेहूं फसलचक्र अपना रहे हैं, उस में फौरन बदलाव की जरूरत है. इस फसलचक्र को अपनाने से किसान भाइयों को काफी नुकसान हो रहा है. गेहूं काट कर देरी से गन्ने की बोआई होती है, तो गन्ने की उपज बहुत कम (औसतन 375-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) हासिल होती है. साथ ही देरी से (जनवरी के अंत में) बोआई करने पर गेहूं की पैदावार औसतन 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हासिल होती है, जो काफी कम है.

वहीं दूसरी ओर ज्यादा पैदावार लेने के प्रयास में किसान भाई ज्यादा मात्रा में खादबीज का इस्तेमाल कर के उत्पादन लागत बढ़ा रहे हैं. इस से किसानों को दोहरी हानि का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे हालात में यह जरूरी है कि हम नए अंदाज में खेती करना शुरू करें, जिस के लिए जरूरी है कि हम सब से पहले अपने फसलचक्र में बदलाव करें.

जिस खेत में गन्ना बोना है, उस में रबी की फसल काटने के बाद किसान ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई कर के खेत का सौरीकरण करें. फिर उस में हरी खाद लेने के लिए ढैंचे की बोआई करें. अगस्त में ढैंचे को खेत में पलट कर रोटावेटर से अच्छी तरह मिला लें. इस के बाद सितंबर के पहले व दूसरे हफ्ते में गन्ने की बोआई करें (बरसात को देखते हुए गन्ने की बोआई करें). इस समय बोए गए गन्ने का जमाव अच्छा होता है और बढ़वार तेज गति से होती है. अच्छी तरह देखभाल किए गए गन्ने की अगले साल पेराई सत्र में औसतन 1,000-1,200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज आसानी से हासिल की जा सकती है. यहां किसानों के मन में यह सवाल आना लाजिम है कि उन की खरीफ व रबी की 2 फसलों (धान व गेहूं) का नुकसान हो रहा है, लेकिन सचाई कुछ और है.

अब किसानों के मन में सवाल आता है कि उन्हें अपने घरेलू इस्तेमाल के लिए भी धान व गेहूं चाहिए. इस के लिए सुझाव है कि वे अपने खेत को इस तरह बांटें कि जरूरत के मुताबिक उन्हें धान, गेहूं व दूसरी फसलें भी मिल जाएं, उत्पादन लागत भी घटे और प्रति इकाई क्षेत्रफल से ज्यादा पैदावार भी मिले. तभी हम खेती को लाभकारी बना सकते हैं, वरना आप समझ गए होंगे कि ज्यादा उत्पादन लागत लगा कर भी हमें शुद्ध लाभ के रूप में मात्र 95,000 रुपए की आमदनी होती है, जबकि कम लागत से 1,80,000 रुपए की आमदनी हो सकती है.

चने की उन्नत खेती

भारत में पैदा की जाने वाली दलहनी फसलों में चने की खेती का खास स्थान है. देश में चने की पैदावार दुनिया की कुल पैदावार की 70 फीसदी तक होती है. चने की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद मानी जाती है.

चने का इस्तेमाल न केवल दाल के रूप में किया जाता है, बल्कि इस के बेसन से कई तरह के स्वादिष्ठ पकवान व मिठाइयां भी तैयार की जाती हैं. गरीब से ले कर अमीर परिवारों में कई लोगों के नाश्ते में अंकुरित चने की खास जगह है. ताकतवर खाद्य वस्तुओं में चने का खास स्थान है, क्योंकि इस में 21 फीसदी प्रोटीन, 61 फीसदी कार्बोहाइडे्रट व साढ़े 4 फीसदी वसा पाए जाते हैं.

सदियों से चना न केवल इनसानों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, बल्कि पशुओं के चारे व दाने के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में बाजार में चने की मांग हमेशा बनी रहती है, जिस की वजह से किसानों को चने का सही बाजार मूल्य मिल जाता है. किसान अगर अच्छी कृषि तकनीकी व उन्नतशील प्रजातियों के बीजों का इस्तेमाल कर चने की खेती करें, तो उन्हें कम जोखिम व कम लागत में भरपूर फायदा मिल सकता है.

जमीन की तैयारी व बोआई का समय : चने की खेती के लिए दोमट व हलकी दोमट मिट्टी मुफीद रहती है. जमीन का चुनाव करते समय इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि खेत से पानी निकासी का सही इंतजाम हो और मिट्टी ज्यादा लवणीय न हो.

चने की बोआई के लिए सब से अच्छा समय अक्तूबर के दूसरे हफ्ते से ले कर 15 नवंबर तक होता है. चने की बोआई से पहले यह देख लें कि खेत की सतह सख्त न हो और अंकुरण के लिए सही मात्रा में नमी मौजूद हो. चने की बोआई से पहले एक गहरी जुताई कल्टीवेटर या हैरो से करें व पाटा लगा दें. इस के बाद सही नमी में जुताई कर के चने की बोआई करें.

उन्नतशील किस्मों का चयन : चने की कई उम्दा प्रजातियों का इस्तेमाल मौजूदा दौर में किया जा रहा है. लेकिन कुछ खास किस्में जिन में बीमारियां कम लगती हैं, का इस्तेमाल कर के किसान कम कीमत में अच्छी पैदावार कर सकते हैं. चने की उकठारोधी प्रजातियों में जेजी 16, के 850, डीसीपी 92, आधार आरएससी 936, डब्ल्यूसीजी 2 व केसीडी 1168 खास हैं. अन्य बीमारी अवरोधी प्रजातियों में पूसा 256, अवरोधी गुजरात चना, राधे, पूसा 372, डब्ल्यूसीजी 1 व डब्ल्यूसीजी 2 खास हैं. देरी से बोआई की जाने वाली प्रजातियों में 372, पंत जी 186 व उदय खास हैं. काबुली चने की प्रजातियों में एचके 94, शुभ्रा, उज्ज्वल, जेजीके 1, पूसा, शुभ्रा 8128 व फूले जी 0517 खास हैं. चने की इन किस्मों की बोआई के लिए 1 एकड़ खेत के लिए 35-40 किलोग्राम या 1 हेक्टेयर खेत के लिए 75-100 किलोग्राम बीज की जरूरत रहती है.

बीजोपचार या बीजशोधन : आमतौर पर सभी दलहनी फसलों का बीजोपचार करना जरूरी होता है. दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार किए जाने से पौधों की जड़ों में अधिक गाठें होती हैं.

नाइट्रोजन के स्थिरीकरण व फास्फोरस की मौजूदगी बढ़ाने के लिए अलगअलग राइजोबियम कल्चर का इस्तेमाल किया जाता है. चने की 10 किलोग्राम मात्रा पर 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर का इस्तेमाल बीजोपचार के लिए किया जाता है. बीजोपचार के लिए चने की 10 किलोग्राम मात्रा को बाल्टी में ले कर उस में 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर को डाल कर अच्छी तरह से मिला लेते हैं. इस के बाद उपचारित बीजों को छाया में सुखाया जाता है. कभी भी उपचारित बीजों को धूप में न सुखाएं.

चने की फसल को बीजजनित रोगों से बचाने के लिए 2 ग्राम थीरम या 3 ग्राम मैंकोजेब या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा या 2 ग्राम थीरम के साथ 1 ग्राम कारबेंडाजिल की मात्रा को प्रति किलोग्राम की दर से बीजों में मिला कर बीज प्रोसेसिंग करना चाहिए. इस से चने की फसल को उकठा व जड़ गलन की बीमारी से बचाया जा सकता है.

खाद व उर्वरक : वैसे तो चने की खेती के लिए ज्यादा खाद व उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन चने की अधिक पैदावार लेने के लिए सही व संतुलित मात्रा में पोषक तत्त्वों की आपूर्ति करना भी जरूरी हो जाता है. चने की सभी किस्मों के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश व 20 किलोग्राम गंधक का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के समय लाइन में करना चाहिए. चने में प्रोटीन काफी होता है, इसलिए मिट्टी से नाइट्रोजन का हृस होता है, जिस की भरपाई चने के पौधों में स्थित राइजोवियम गांठों से हो जाती है.

सिंचाई : चने की पहली सिंचाई बोआई के 45 से 60 दिनों बाद यानी फसल में फूल आने से पहले करनी चाहिए, जबकि दूसरी सिंचाई फली में दाना बनने के समय करनी सही रहती है. चने की फसल में जब फूल लगते हैं उस दौरान सिंचाई नहीं करनी चाहिए, ऐसा करने से चने की फसल में आने वाली फलियां झड़ जाती हैं व खरपतवार की मात्रा में बढ़ोतरी होती है.

चने की सिंचाई करते समय ध्यान रखें कि फसल में ज्यादा पानी न लगने पाए, क्योंकि चने की जड़ों में मौजूद राइजोबियम जीवाणुओं की क्रियाशीलता आक्सीजन के अभाव में ढीली पड़ जाती है.

इस का असर पौधों पर साफ दिखता है, इस से पौधे पीले पड़ जाते हैं और उन में फलियां व दाने कम बनने से पैदावार खुद ही घट जाती है. चने की फसल में उकठा रोग गहरी सिंचाई से ही लगता है. इसलिए जल निकासी जरूरी है.

Gram Cultivation

खरपतपवार रोकथाम : कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया में जानकार राघवेंद्र विक्रम सिंह का मानना है कि चने की खेती में खरपतवार से न केवल पैदावार घटने की आशंका रहती है, बल्कि इस की विशेषता में भी कमी आ जाती है. चने की फसल में खरपतवार उगने से पैदावार में 50 से 60 फीसदी तक की कमी आती है. यदि समय रहते चने की फसल से खरपतवार को खत्म किया जाए तो पैदावार में 22 से 63 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाएगी. चने की बोआई के 3 दिन के अंदर एलाक्लोर 3 से 4 लीटर या पैंडामेथालीन ढाई से 3 लीटर या मेंटोलाक्लोर 1 से 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छिड़कना चाहिए. इन रसायनों के इस्तेमाल से चौड़ी व सकरी पत्ती के खरपतवार खत्म हो जाते हैं.

बीमारियों की रोकथाम : चने की फसल में आमतौर पर उकठा, मूल विगलन, ग्रीवा गलन, तना गलन, एस्कोकाब्लाइट रोग अधिकतर देखा गया है. यदि बोआई से पहले बीज साफ किया गया है तो इन बीमारियों का असर पौधों पर नहीं होता है. अगर फसल में उकठा रोग दिखाई पड़े तो रोगी पौधों को अलग कर खत्म कर देना चाहिए, जिस से फसल में उकठा के फैलने की आशंका कम हो जाती है. फसल को उकठा रोग से बचाने के लिए उकठारोधी किस्मों का इस्तेमाल करना चाहिए. इस की रोकथाम के लिए कापर आक्सीक्लोराइड की ढाई ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बना कर 2 से 3 बार छिड़काव करना चाहिए.

Gram Cultivation

चने के खास कीट व उन की रोकथाम : चने में आमतौर पर कटुआ कीट का ज्यादा आक्रमण होता है, जो ढाई सेंटीमीटर लंबा मटमैले भूरे रंग का पतंगा जैसा होता है. यह कीट रात को पौधों को जड़ से काट कर जमीन पर गिरा देता है. इस के अलावा फलीबेधक कीट जिसे प्रौढ़ पतंगा भी कहते हैं, ये शुरू में मुलायम पत्तियों को खाते हैं और फिर फलियों में दानों में छेद कर उन्हें खा जाते हैं. फलीबेधक कीट की एक सूड़ी 30-40 फलियों को प्रभावित करती है.

कूबड़ कीड़ा : चने की फसल को कूबड़ कीड़े से भी ज्यादा नुकसान होता है. ये कीड़े फसल की पत्तियों, कलियों व फलों को खा कर नुकसान पहुंचाते हैं. इन की रोकथाम के लिए क्यूनालफास 25 ईसी का डेढ़ से 2 लीटर की मात्रा का छिड़काव करना चाहिए.

कटाई व भंडारण : चने की फसल की कटाई के बाद उस के भंडारण पर खास ध्यान देना चाहिए, क्योंकि दालों के भंडारण में ढोरा या घुन का हमला ज्यादा देखा गया है. इस के बचाव के लिए दालें धूप में सुखा कर नमी रहित कर देनी चाहिए. उस के बाद अल्यूमिनियम फास्फाइड की 2 गोलियां प्रति टन की दर से इस्तेमाल में लानी चाहिए. चने की अच्छी खेती की जानकारी के लिए

कृषि विज्ञान केंद्र बंजरिया, बस्ती के कृषि जानकार राघवेंद्र विक्रम सिंह के मोबाइल नंबर 9415670596 पर संपर्क किया जा सकता है.

सहजन (Drumstick) उगाने की वैज्ञानिक विधि

सहजन का वानस्पतिक नाम मोरिंगाऔलीफेरा है, इसे अंगरेजी में ड्रम स्टिक कहते हैं. यह उत्तर भारत के हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उगता है. इसे कोमल पत्तियों, फूलों व फलियों के लिए उगाया जाता है. भारत में इसे कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे मोरिंगा, मोरिगाई, मुनगा व हार्स रेडिस वगैरह.

यह एक बहुवर्षीय पेड़ है, जिस की पत्तियों, फूलों व फलों को सब्जी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व झारखंड में यह काफी मशहूर है. इस की व्यावसायिक खेती कुछ इलाकों में ही की जाती है. ज्यादातर जगहों में यह घरों के बगीचों में ही उगाया जाता है.

सहजन की फलियों को सब्जी, अचार या सांभर बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. इस के फूलों और पत्तियों से सब्जी बनाई जाती है. इस की सब्जी पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर होती है. आयुर्वेद के मुताबिक सहजन इनसानों में होने वाले तकरीबन 300 रोगों के इलाज में लाभदायक है.

राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद के अनुसार इस में काफी मात्रा में विटामिन, खनिज तत्त्व, वसा व प्रोटीन पाए जाते हैं. सहजन की पत्तियों व फलियों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, कैल्शियम, कैरोटीन व विटामिन ‘सी’ पाए जाते हैं. इस में गाजर के मुकाबले 4 गुना ज्यादा विटामिन, संतरे के मुकाबले में 7 गुना ज्यादा विटामिन ‘सी’, दूध के मुकाबले में 4 गुना ज्यादा कैल्शियम, केले से 3 गुना ज्यादा पोटाश और दही से दोगुना ज्यादा प्रोटीन होता है.

मलेशिया में सहजन के बीजों को मूंगफली की तरह खाया जाता है. इस के बीजों से तेल निकाला जाता है, जिस का इस्तेमाल दवाओं में किया जाता है. आधुनिक खोजों से पता चला है कि सहजन से भूमिगत पानी साफ होता है. सहजन के इस्तेमाल व बाजार की मांग के लिहाज से इस की खेती काफी फायदे वाली साबित होती है.

सहजन जल्दी बढ़ने वाला पेड़ होता है. इस का पेड़ तकरीबन 5 मीटर ऊंचा होता है. इस में खुशबूदार फूल फरवरीमार्च में खिलते हैं. इस की फलियां करीब 25 सेंटीमीटर लंबी होती हैं.

पौधे तैयार करना : आमतौर पर सहजन के पौधे इस की टहनियों को काट कर लगा देने से तैयार हो जाते हैं. वैसे बीज से भी पौधे तैयार किए जाते हैं.

जलवायु : सहजन के सही विकास के लिए तकरीबन 25 डिगरी सेल्सियस तापमान सब से अच्छा रहता है. 40 डिगरी से ज्यादा तापमान इस पर खराब असर डालता है. फूल निकलने के दौरान बहुत कम या बहुत ज्यादा तापमान होने पर फूल गिर जाते हैं.

मिट्टी : सहजन को सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है. सही जल निकास वाली रेतीली दोमट, लाल व काली मिट्टी जिस का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच हो सहजन की खेती के लिए सही मानी जाती है.

किस्में : जाफना, कुलानुर, धनराज, पाल मुरीगाई, ऐजहपानामा मुरिंगा, चाबक बेरी मुरीगाई, केम मुरीगाई व केट्टू मुरीगाई वगैरह इस की खास किस्में हैं. इस की उम्दा संकर किस्में हैं पीकेएम 1 व पीकेएम 2.

पौधे लगाना : सहजन की बहुवर्षीय किस्मों के पौधे कलम द्वारा तैयार किए जाते हैं. इस के लिए ढाईढाई मीटर की दूरी पर 45×45×45 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे बना कर उन में तकरीबन 15 किलोग्राम कंपोस्ट खाद मिट्टी में मिला कर भरें. चुनी हुई कलमों या पौधों को जून से अक्तूबर के बीच गड्ढों में रोप देते हैं.

इस की 1 वर्षीय किस्मों के 625 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से नवंबरदिसंबर या जूनजुलाई के दौरान नर्सरी में बोए जाते हैं. पौधे 1 महीने में रोपाई लायक हो जाते हैं. हर गड्ढे में 2 बीज सीधे बो दिए जाते हैं. 1 हफ्ते में बीजों का अंकुरण हो जाता है.

खाद और उर्वरक : रोपाई के 3 महीने बाद हर पौधे को तकरीबन 40 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 50 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश देनी चाहिए. रोपाई के 6 महीने बाद हर पौधे को तकरीबन 250 ग्राम यूरिया व 30 किलोग्राम कंपोस्ट खाद देनी चाहिए.

काटछांट : समयसमय पर सहजन के पेड़ों की कांटछांट जरूरी है. तकरीबन 75 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर मुख्य तने को काट देना चाहिए ताकि पेड़ की ऊंचाई सीमित रहे. फलों की तोड़ाई के बाद कांटछांट करनी चाहिए. छंटाई के 6 महीने बाद पेड़ दोबारा फल देना शुरू कर देते हैं.

खरपतवारों की रोकथाम : रोपाई के पहले 2 महीनों के दौरान खेत में खरपतवार नहीं रहने चाहिए. रोपाई के बाद पहले 3 सालों तक सहजन के पेड़ों के बीच मिर्च, शिमला मिर्च, बैगन, टमाटर, चना, मटर, कपास व दूसरी सब्जियां उगानी चाहिए, ताकि अलग से आमदनी होती रहे. उस के बाद अदरक व जिमीकंद वगैरह की खेती करनी चाहिए. इस से खेत में मिट्टी, नमी, पोषक तत्त्व, व खरपतवारों का प्रबंधन भी हो जाता है.

सिंचाई : रोपाई या बोआई के बाद 1 महीने तक सिंचाई का खास खयाल रखना चाहिए. फिर मौसम के मुताबिक सिंचाई करते रहना चाहिए.

कीड़ों की रोकथाम : सहजन में पत्ती खाने वाले पिल्लू व फल मक्खी का हमला होता है. इन का प्रकोप बरसात के मौसम में होता है.

इन की रोकथाम के लिए 0.2 फीसदी मैलाथियान का छिड़काव करना चाहिए. यदि मैलाथियान न हो, तो 0.15 फीसदी मोनोक्रोटोफास का छिड़काव करना चाहिए. फलों की तोड़ाई से 1 हफ्ते पहले कोई छिड़काव नहीं करना चाहिए.

रोग नियंत्रण

उकटा रोग : सहजन के पौधों पर इस रोग का हमला अकसर होता है. इस की रोकथाम के लिए रोपाई के बाद 0.2 फीसदी कार्बंडाजिम के घोल का छिड़काव करना चाहिए.

उपज : 1 वर्षीय किस्मों की छठी गांठ से ही फल बनने शुरू हो जाते हैं. इस की अनुमानित उपज 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है.

औषधीय इस्तेमाल

पाचनशक्ति : सहजन की जड़ के 10 मिलीलीटर रस में 2 ग्राम सोंठ डाल कर सुबहशाम पीने से पाचनशक्ति बेहतर होती है.

उदर शूल: सहजन की 100 ग्राम छाल में 5 ग्राम हींग डाल कर उस में 20 ग्राम सोंठ मिला कर जल के साथ पीस कर 1-1 ग्राम की गोलियां बना लें. इन में से 1-1 गोली दिन में 2-3 बार खाने से उदर शूल, अफारा व गैस की तकलीफ ठीक हो जाती है.

मंदाग्नि : सहजन की ताजी जड़, सरसों और अदरक को बराबर मात्रा में पीस कर 1-1 ग्राम की गोलियां  बना कर रख लें. दिन में 2-2 गोलियां सुबहशाम खाने से मंदाग्नि और तिल्ली में लाभ होता है.

दिमागी बुखार : सहजन की छाल को पानी में घिस कर इस की 2 बूंदें नाक में डालने से दिमागी बुखार ठीक हो जाता है.

सांस के रोग : सहजन की जड़ का रस और अदरक का रस मिला कर उस की 10-15 मिलीलीटर मात्रा रोजाना सुबहशाम पीने से सांस के रोग ठीक हो जाते हैं.

गठिया : सहजन की जड़ को अदरक व सरसों के साथ पीस कर लेप करने से गठिया ठीक हो जाता है. सहजन के गोंद का लेप करने से भी गठिया की सूजन ठीक हो जाती है.

चोट और मोच के दर्द : सहजन की पत्तियों को सरसों के तेल के साथ पीस कर चोट व मोच पर लेप कर के धूप में बैठने से उन के दर्द ठीक हो जाते हैं.

कान के नीचे की सूजन : सहजन की छाल और राई को पीस कर लेप करने से कान के नीचे की सूजन ठीक हो जाती है.

घुटनों का पुराना दर्द : सहजन के पत्तों में बराबर मात्रा में सरसों का तेल मिला कर उसे पीस कर कुनकुना कर के लेप करने से घुटनों का पुराना दर्द ठीक हो जाता है.

वात की तकलीफ : सहजन के पत्तों को पानी के साथ पीस कर कुनकुना कर के लेप करने से वात की तकलीफ ठीक हो जाती है.

यकृत कैंसर : सहजन की 20 ग्राम छाल का काढ़ा बना कर, आरोग्य वर्धिनी 2 गोलियों के साथ दिन में 3 बार इस्तेमाल करने से यकृत कैंसर में फायदा होता है.

दाद : सहजन की जड़ की छाल पानी में घिस कर लेप करने से दाद ठीक हो जाता है.

बुखार : सहजन की 20 ग्राम ताजी जड़ को 100 मिलीलीटर पानी में उबाल कर पीने से बुखार ठीक हो जाता है.

स्नायु (नाड़ी) रोग : सहजन की जड़ की छाल को पीस कर लेप करने से स्नायु रोग ठीक हो जाता है.

सिर दर्द : सहजन की जड़ के रस में बराबर मात्रा में गुड़ मिला कर 1-1 बूंद नाक में डालने से सिर दर्द ठीक हो जाता है.

आंखों के रोग : सहजन के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में शहद मिला कर उस की 2-2 बूंदें आंखों में डालने से आंखों के रोगों में लाभ होता है.

दांतों का सड़ना : सहजन की पत्तियों को मुंह में रखने से दांतों का सड़ना रुक जाता है.

कुष्ठ रोग : सहजन की फलियों की सब्जी खाने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है.

कुत्ते के काटने पर : सहजन की पत्तियों, लहसुन, हलदी, नमक और कालीमिर्च को बराबर मात्रा में ले कर पीसें. फिर उसे कुत्ते के काटने वाली जगह पर लगाएं. इस से काफी फायदा होता है.

वीर्य में इजाफा : सहजन के फूलों को दूध में उबाल कर पीने से वीर्य में इजाफा होता है.