उन्नत कृषि यंत्रों (Agricultural Equipment) से कृषि क्षेत्र में मिली सफलता

नर्मदापुरम : प्र‍गतिशील किसान हेमंत दुबे ने उन्नत कृषि यंत्रों और नवीन तकनीकों को अपना कर न केवल अपनी उपज में उल्लेखनीय वृद्धि की है, बल्कि पर्यावरण हितैषी खेती के लिए एक नया मानक भी स्थापित किया है. उन के द्वारा उपयोग किए गए कृषि यंत्रों में सुपरसीडर, राइस ट्रांसप्लांटर, रिज एंड फरो सीडड्रिल, डिस्कहेरो और एमबी प्लाऊ शामिल हैं, जिन्होंने उन की खेती की उत्पादकता और पर्यावरणीय प्रभाव को सकारात्मक रूप से बदल दिया है.

किसान हेमंत दुबे द्वारा खेती में किए जा रहे उन्‍नत तकनीक एवं यंत्रों के प्रयोग से खेती में सफलता प्राप्‍त करने पर आसपास के किसान भी प्रेरित हुए हैं. अब किसान नरवाई जलाने के बजाय सुपर सीडर यंत्र का प्रयोग कर नरवाई का बेहतर प्रबंधन कर रहे हैं, जिस से पर्यावरण को लाभ पहुंच रहा है. साथ ही, मिट्टी को लाभ पहुंचाने वाले जीवांशम एवं कीट सुरक्षित रह रहे हैं, जो मिट्टी को उर्वरकता प्रदान करते हैं. नरवाई न जलाने से आसपास का वातावरण भी शुद्ध रहता है.

सुपरसीडर मशीन का प्रभाव

किसान हेमंत दुबे ने नरवाई जलाने के बजाय सुपरसीडर मशीन का उपयोग कर फसल अवशेषों का प्रबंधन किया, जिस से न केवल भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ी, बल्कि पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा. इस मशीन की सहायता से समय और पैसे की बचत होती है, साथ ही वायु प्रदूषण भी कम होता है. यह मशीन भूमि में जीवांश को बढ़ाने में मदद करती है, जिस से दीर्घकालिक फसल उत्पादन में सुधार होता है.

प्रमुख कृषि उपाय और उन के लाभ

नरवाई प्रबंधन

किसान हेमंत दुबे ने पराली जलाने की परंपरा को छोड़ कर उन्नत कृषि यंत्रों का उपयोग करते हुए नरवाई प्रबंधन को अपनाया. यह पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण कदम है

पोषक प्रबंधन

समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन के तहत फसल अवशेषों का सुपरसीडर एवं पूसा डीकंपोजर से विघटन किया जाता है. इस के अलावा जैव उर्वरकों का बीजोपचार कर भूमि में पोषक तत्वों का बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित किया जाता है.

फसल सुरक्षा

समन्वित कीट एवं रोग प्रबंधन पद्धतियों का पालन करते हुए, फसल सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है, जिस से उत्पादन में वृद्धि होती है.

सिंचाई प्रबंधन

जीरो लेंड लेजर लेबलर से भूमि को समतल कर, 1-1 एकड़ की रकबे बंड तैयार की जाती है. इस के बाद स्वनिर्मित तालाब से सिंचाई जल का उपयोग किया जाता है, जिस से पानी की बचत होती है और सिंचाई के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं पड़ती.

सुपरसीडर मशीन की प्रमुख विशेषताएं  

नरवाई प्रबंधन

यह मशीन नरवाई जलाने के बजाय उसे भूमि में समाहित करती है, जिस से वायु प्रदूषण कम होता है और भूमि की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है.

भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ाना

सुपरसीडर भूमि में फसल अवशेषों को समाहित कर उस की उर्वरक क्षमता को बढ़ाती है.

समय और लागत की बचत

यह मशीन समय और मेहनत की बचत करती है, जिस से किसानों का खर्च कम होता है.

पर्यावरण सुरक्षा

यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कृषि कार्यों को सुधारती है और प्रदूषण को कम करती है.

Rural Women: ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ कर महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर

उमरिया : ग्रामीण आजीविका मिशन से 77,151 महिलाएं जुड़ कर हुई आत्मनिर्भर हुई हैं. घूंघट की आड़ में रहने वाली महिलाएं अब ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ कर आत्मनिर्भरता के पथ पर निरंतर बढ़ रही हैं. समाज में महिलाओं की साख बढ़ी है और स्व-समूहों का गठन कर विभिन्न उत्पादों को तैयार करते हुए उन का विक्रय कर रही हैं एवं परिवार का बेहतर ढंग से संचालन कर रही हैं.

उमरिया जिले की महिलाएं पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं. मध्य प्रदेश में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन जिला में अप्रैल, 2015 मे प्रारंभ हुआ. इसे चरणबद्ध रूप से जिले के सभी विकासखंडों में लागू किया गया. मिशन का मुख्य उद्देश्य गरीबी रेखा के नीचे गुजरबसर करने वाले परिवारों की संस्थाओं का गठन कर उन की माली एवं सामाजिक स्थिति को मजबूत करना है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले निर्धन परिवारों का सामाजिक व माली सशक्तीकरण एवं संस्थागत विकास कर आजीविका के संवहनीय अवसर उपलब्ध कराना है. जिले में कुल 6,324 स्व-सहायता समूहों का गठन किया जा चुका है, जिस के अंतर्गत 77,151 महिलाएं जुड़ चुकी हैं.

समूहों के ग्राम स्तरीय संघ ग्राम संगठन, जो कि ग्राम स्तर पर सभी समूहों को जोड़ कर गठन किया जाता है. जिले में 504 ग्राम संगठन गठित हैं. संकुल स्तरीय संगठन, जिन में 25 से 30 गावों का परिसंघ होता है. कुल 20 संकुल स्तरीय संगठनों का गठन किया गया है. समूह गठन सतत प्रक्रिया है, जिस के तहत जिले के सभी गरीब, बहुत गरीब परिवारों को जोड़ कर उन्हें आर्थिक समृद्धि की ओर ले जाना है. सभी की आय कम से कम 10 से 15 हजार रुपए प्रति माह हो, इस रणनीति के तहत काम किया जा रहा है.

जिले में 4,116 स्व-सहायता समूहों से जुड़े परिवारों को रिवाल्विंग फंड की राशि उपलब्ध कराई गई है, जिस से अपनी छोटीछोटी जरूरतों की पूर्ति ऋण ले कर के करती है. सामुदायिक निवेश निधि के तहत जिले में 2,356 स्व-सहायता समूहों को राशि 1647.70 लाख रुपए सामुदायिक निवेश निधि महिलाओं को ऋण के रूप में उपलब्ध कराई जा चुकी है, जिस से वे अपनी छोटीछोटी गतिविधियां संचालित कर आय अर्जित कर रही है.

बैंक द्वारा 2,249 स्व-सहायता समूहों के 2,372 लाख रुपए स्वीकृत एवं वितरण किए गए हैं, जिन से महिलाएं विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से अपनी आमदनी बढ़ाने में निरंतर प्रयासरत हैं. सामुदायिक के बीच में ही समूह की अवधारणा के प्रचारप्रसार, समूह के अभिलेख संधारण, समूह बैठकों का आयोजन, संचालन एवं क्षमता निमार्ण, बैंक संयोजन, समूहों की आय अर्जन गतिविधियों में सहयोग आदि कामों के लिए सामुदायिक स्रोत व्यक्तियों का चिन्हांकन एवं उन का क्षमतावर्द्धन किया जाता है. ये सामुदायिक स्रोत व्यक्ति स्थाई रूप से सामुदायिक संस्थाओं के सशक्तीकरण में सहभागी बनते हैं.

जिले के अंतर्गत गठित सभी समूहों उन के लेखा संधारण का काम 3,753 बुककीपर के द्वारा किया जा रहा है. इसी तरह समूहों सदस्यों के बैंक लिंकेज में सहयोग करने के लिए 42 बैंक सखी एवं 56 बीसी सखी कार्यरत हैं. कृषि संबंधी जानकारी एवं प्रशिक्षण के लिए 184 व पशुपालन संबंधी जानकारी एवं प्रशिक्षण के लिए 90 सीआरपी, 40 कौशल सखी और 70 ई-सीआरपी, 64 जेंडर सीआरपी, 74 पोषण सखी कार्यरत हैं, जो कि महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का काम कर रही है.

कृषि आधारित गतिविधियों से बढ़ी आजीविका

मिशन द्वारा प्रारंभ से अब तक 34,915 समूह परिवारों को कृषि गतिविधियां से लाभांवित किया जा चुका है, जिन में मुख्यतः धान की श्रीविधि तकनीक, व्यावसायिक सब्जी उत्पादन, हलदी एवं मसाला की खेती, मुनगा एवं फलदार पौधरोपण एवं पशुपालन गतिविधियों से 5,226 परिवारों को जोड़ा गया है, जिन में मधुमक्खीपालन, कड़कनाथ मुरगीपालन, बकरीपालन, डेयरी, मछलीपालन आदि गतिविधियों से लाभांवित किया गया है.

गैरकृषि आधारित गतिविधियों के अंतर्गत निर्माण, व्यवसाय एवं सेवा प्रदाता जैसी गतिविधियां हैं. निर्माण संबंधी गतिविधियों में सेनेटरी नैपकिन, फिनाइल, गुनाइल, किराना, वाशिंग पाउडर, आटा चक्की, साबुन, हैंडवाश, अगरबत्ती बनाने जैसी गतिविधियों से लाभांवित किया गया है, जिस से 9587 समूह सदस्य गतिविधियों को संचालित कर आय अर्जित कर रहा है.

उमरिया जिले को लखपति का लक्ष्य 12,337 दिया गया है. सभी लक्ष्य के अनुसार, सभी हितग्राहियों का चयन किया गया है. इन की आमदनी बढ़ाने के उदे्दष्य से जिले में 152 लखपति सीआरपी को तैनात किया गया है. लखपति सीआरपियों के द्वारा चिन्हित हितग्राहियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिस से कि उन की 2 साल की अवधि में लखपति परिवारों को सालाना आय एक लाख रुपए से ऊपर आय वृद्धि किया जाएगा. कृषि, पशुपालन, लघु व्यवसाय संबंधी गतिविधियां संचालित की जा रही हैं.

मिशन प्रारंभ से अब तक आरसेटी के माध्यम से 3581 महिलाएं एवं पुरुषों का प्रशिक्षण एवं डीडीयूजेकेवाय के माध्यम से 1007 महिलाएं एवं पुरुषों को प्रशिक्षित कर 648 महिलाएं एवं पुरुषों को नियोजित किया गया है. रोजगार मेले के माध्यम से 2113 युवाओं का चयन एवं विभिन्न कंपनियों में नियोजित कराया गया है.

Dairy Farming: भारत की अर्थव्यवस्था में डेयरी क्षेत्र का है अहम योगदान

नई दिल्ली: मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने नई दिल्ली के मानेकशा सैंटर में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस 2024 मनाया गया. इस कार्यक्रम में भारत में श्वेत क्रांति के जनक डा. वर्गीज कुरियन की 103वीं जयंती मनाई गई. उन की विरासत का सम्मान करने के लिए नीति निर्माताओं, किसानों और उद्योग जगत के नेताओं एक मंच पर जुटे थे.

कार्यक्रम में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मुख्य अतिथि के रूप में और राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल व जार्ज कुरियन सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित थे.

इस कार्यक्रम में देशभर से पशुधन और डेयरी क्षेत्र से जुड़े लोगों ने भाग लिया. समारोह के दौरान केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल और जार्ज कुरियन के साथ मिल कर 3 श्रेणियों में विजेताओं को राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार प्रदान किए.

ये पुरस्कार हैं : स्वदेशी गाय/भैंस की नस्लों का पालन करने वाले सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान, सर्वश्रेष्ठ कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन और सर्वश्रेष्ठ डेयरी सहकारी समिति (डीसीएस)/दूध उत्पादक कंपनी/डेयरी किसान उत्पादक संगठन. पूर्वोत्तर क्षेत्र के विजेताओं को प्रत्येक श्रेणी में नए शुरू किए गए विशेष पुरस्कार भी दिए गए.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने अपने संबोधन में भारतीय अर्थव्यवस्था में डेयरी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया. उन्होंने कहा कि डेयरी क्षेत्र का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5 फीसदी का योगदान है और इस में 8 करोड़ से अधिक किसानों को सीधे रोजगार मिल रहा है, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं.

दूग्ध उत्पादन के मामले में भारत पहले स्थान पर है, जो वैश्विक दूध उत्पादन में 24 फीसदी का योगदान देता है. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि साल 2022-23 में भारत की प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 459 ग्राम प्रतिदिन है, जो साल 2022 में विश्व औसत 323 ग्राम प्रतिदिन से काफी अधिक है.

उन्होंने कहा कि जैसेजैसे देशदुनिया की तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, इस में डेयरी क्षेत्र का योगदान भी बढ़ता जाएगा. उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि डेयरी क्षेत्र में असंगठित क्षेत्र को संगठित क्षेत्र के अंतर्गत लाया जाना चाहिए, क्योंकि इस से किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने सहकारी समिति के गुजरात मौडल की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह एक ऐसा उदाहरण है, जो बिचौलियों को कम कर के अच्छा काम कर रहा है. यह मौडल किसानों की आय को कई गुना बढ़ाने में सक्षम है. उन्होंने डेयरी फार्मिंग में सैक्स सौर्टेड सीमेन जैसी तकनीकों को शामिल करने और इस क्षेत्र में कवरेज को मौजूदा 35 फीसदी से बढ़ा कर 70 फीसदी से अधिक करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया.

उन्होंने कहा कि पशुधन डेटा तैयार किया जा रहा है, नस्ल सुधार पर बड़े पैमाने पर काम किया जा रहा है. इस के साथ ही खुरपकामुंहपका रोग और ब्रुसेलोसिस के लिए नि:शुल्क टीके लगाए जा रहे हैं, ताकि साल 2030 तक इन रोगों को खत्म किया जा सके. इन सभी पहलों का उद्देश्य भारत को आने वाले दिनों में दूध निर्यातक बनाना है.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने अपने संबोधन में भारत के डेयरी क्षेत्र की सफलता में महिलाओं और युवाओं के योगदान की सराहना की.

मंत्री प्रो. एसपी बघेल ने उन्हें इस उद्योग में नेतृत्व की भूमिका निभाने और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए नवीन प्रथाओं का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने वैश्विक दूध उत्पादन में देश को शीर्ष पर बनाए रखने के लिए विभाग और सभी हितधारकों के प्रयासों की भी सराहना की.

उन्होंने उल्लेख किया कि दूध उत्पादन में सालाना वैश्विक वृद्धि दर 2 फीसदी है, जबकि भारत का उत्पादन सालाना 6 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. इस के अलावा उन्होंने प्रतिभागियों से कृत्रिम गर्भाधान (एआई) दर का कवरेज बढ़ाने, सैक्स-सौर्टेड वीर्य और आईवीएफ (इनविट्रो फर्टिलाइजेशन) जैसी बेहतर प्रजनन तकनीकों को अपनाने का आग्रह किया. उन्होंने नियमित टीकाकरण के माध्यम से खुरपकामुंहपका रोग के उन्मूलन पर जोर दिया, जो भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री जार्ज कुरियन ने भारतीय अर्थव्यवस्था में डेयरी सहकारी समितियों के योगदान और महिला सशक्तीकरण में उन की भूमिका की सराहना की. उन्होंने डेयरी मूल्य श्रंखला में समान विकास सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मजबूत बुनियादी ढांचे और पशु चिकित्सा सहायता प्रणालियों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.

पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) की सचिव अलका उपाध्याय ने वैज्ञानिक हस्तक्षेपों के माध्यम से दूध उत्पादकता में सुधार के लिए विभाग के निरंतर प्रयासों को रेखांकित किया. उन्होंने ग्रामीण डेयरी बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण, बाजार संपर्क को बढ़ावा देने और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करने के महत्व पर बल दिया.

कार्यक्रम में उत्कृष्ट गायों की पहचान संबंधी ‘सुरभि श्रंखला’ मैनुअल के साथ बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (बीएएचएस)-2024 जारी किया गया. पशुधन और डेयरी क्षेत्र के रुझानों के बारे में यह महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है. यह मैनुअल देश में राष्ट्रीय दुधारू झुंड की स्थापना के लिए है, जो हमारे किसानों के पास या गौशाला/गौसदन/पिंजरापोल में उपलब्ध श्रेष्ठ जर्मप्लाज्म की पहचान और स्थान के लिए महत्वपूर्ण है.

इस से पहले समारोह के दौरान राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने मानेकशा सैंटर में अमूल स्वच्छ ईंधन रैली की अगुआनी की, जिस में अमूल के विभिन्न सदस्य संघों और भारत में जीसीएमएमएफ के 25 से अधिक शाखा कार्यालयों के 77 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए.

‘महिलाओं के नेतृत्व में पशुधन और डेयरी क्षेत्र’ और ‘स्थानीय पशु चिकित्सा सहायता के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना’ विषयों पर दो पैनल चर्चाएं भी आयोजित की गईं, जिस में विशेषज्ञों ने भारत के डेयरी तंत्र के सतत विकास के बारे में जानकारी साझा की.

इन चर्चाओं में क्षेत्र के भविष्य को आकार देने में महिलाओं और स्थानीय पशु चिकित्सा पहलों की परिवर्तनकारी भूमिका पर प्रकाश डाला गया. इस अवसर पर अतिरिक्त सचिव (मवेशी एवं डेयरी विकास) वर्षा जोशी और सलाहकार (सांख्यिकी) जगत हजारिका और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

तुअर और उड़द की खरीद के लिए 10.66 लाख किसान पंजीकृत

पिछले 3 महीनों में मंडी कीमतों में गिरावट के साथ तुअर और उड़द की खुदरा कीमतों में गिरावट आई है या वे स्थिर बनी हुई हैं. उपभोक्ता मामला विभाग दालों की मंडी और खुदरा कीमतों के रुझानों पर विचारविमर्श करने के लिए भारतीय खुदरा विक्रेता संघ (आरएआई) और संगठित खुदरा श्रंखलाओं के साथ नियमित बैठकें कर के यह सुनिश्चित करता है कि खुदरा विक्रेता खुदरा मार्जिन को उचित स्तर पर बनाए रखें.

खुदरा बाजार में सीधे हस्तक्षेप करने के लिए सरकार ने बफर स्टाक से दालों के एक हिस्से को भारत दाल ब्रांड के तहत उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर खुदरा बिक्री के लिए उपलब्ध करवाया है. इसी तरह, भारत ब्रांड के तहत खुदरा उपभोक्ताओं को रियायती कीमतों पर आटा और चावल वितरित किया जाता है.

थोक बाजारों में उच्च मूल्य वाले उपभोक्ता केंद्रों और खुदरा दुकानों के माध्यम से कीमतों को कम करने के लिए बफर स्टाक से प्याज को एक संतुलित और लक्षित तरीके बाजार में उतारा जाता है. प्रमुख उपभोग केंद्रों में स्थिर खुदरा दुकानों और मोबाइल वैन के माध्यम से खुदरा उपभोक्ताओं के बीच प्याज 35 रुपए प्रति किलो की दर से वितरित किया जाता है. इन उपायों से दालों, चावल, आटा और प्याज जैसी आवश्यक खाद्य वस्तुएं उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराने और कीमतों को स्थिर करने में मदद मिली है.

घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिए दालों का सुचारु और निर्बाध आयात सुनिश्चित करने के लिए तुअर और उड़द के आयात को 31 मार्च, 2025 तक ‘मुक्त श्रेणी’ में रखा गया है और मसूर के आयात पर 31 मार्च, 2025 तक कोई शुल्क नहीं लगाया गया है. इस के अतिरिक्त सरकार ने घरेलू बाजार में दालों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए 31 मार्च, 2025 तक देशी चना के शुल्क मुक्त आयात की भी अनुमति दी है. तुअर, उड़द और मसूर की स्थिर आयात नीति व्यवस्था देश में तुअर और उड़द की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने में प्रभावी रही है, क्योंकि आयात का प्रवाह निरंतर बना हुआ है, जिस से दालों की उपलब्धता बनी हुई है और कीमतों में असामान्य वृद्धि पर अंकुश लगा है.

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने किसानों के जागरूकता अभियान, आउटरीच कार्यक्रम, बीज वितरण आदि के लिए एनसीसीएफ और नैफेड को सहायता प्रदान की. सरकार ने नैफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) और पीएम आशा योजना के मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) घटकों के तहत तुअर और उड़द की सुनिश्चित खरीद के लिए किसानों का पूर्व पंजीकरण लागू किया है. 22 नवंबर, 2024 तक एनसीसीएफ और नैफेड द्वारा कुल 10.66 लाख किसानों को पंजीकृत किया गया है.

खरीफ फसलों की स्थिति अच्छी है और मूंग, उड़द जैसी कम अवधि वाले फसलों की कटाई पूरी हो चुकी है, जबकि तुअर की फसल की कटाई अभी शुरू ही हुई है. फसल के लिए मौसम भी अनुकूल रहा है, जिस से उपभोक्ताओं तक आपूर्ति श्रंखला में अच्छा प्रवाह बना हुआ है और दालों की कीमतों में नरमी आने की उम्मीद है.

केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्य मंत्री और सार्वजनिक वितरण मंत्री बीएल वर्मा ने पिछले दिनों लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी.

National Milk Day: राष्ट्रीय दुग्ध दिवस 2024 के मौके पर बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी 2024 का लेखाजोखा

नई दिल्ली: केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के अवसर पर पशुपालन एवं डेयरी विभाग के ‘बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी 2024’ के वार्षिक प्रकाशन का विमोचन किया. इस अवसर पर मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल और जार्ज कुरियन के साथसाथ पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे.

बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (बीएएचएस)- 2024 एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो पशुधन और डेयरी क्षेत्र के रुझानों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है. बीएएचएस -2024, 1 मार्च, 2023 से 29 फरवरी, 2024 तक एकीकृत नमूना सर्वेक्षण के परिणामों पर आधारित है.

यह अनूठा सर्वे दूध, अंडे, मांस और ऊन जैसे प्रमुख पशुधन उत्पादों के उत्पादन अनुमानों पर महत्वपूर्ण डेटा उत्पन्न करता है, जो पशुधन क्षेत्र में नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस प्रकाशन में दुधारू पशुओं, पोल्ट्री पालतू पक्षी प्रजातियां, मारे गए जानवरों और ऊन निकाले गए भेड़ों की अनुमानित संख्या सहित प्रमुख पशुधन उत्‍पाद और प्रति व्यक्ति उपलब्धता का राज्यवार अनुमान शामिल है.

इस के अलावा यह पशु चिकित्सा अस्पतालों, पौलीक्लिनिक्स, गौशालाओं, राज्य फार्मों और अन्य बुनियादी ढांचे के विवरणों के साथसाथ कृत्रिम गर्भाधान की संख्या और पशुधन क्षेत्र संबंधित वैश्विक परिप्रेक्ष्य पर बहुमूल्य डेटा प्रस्तुत करता है.

National Milk Day

साल 2023-24 में दूध, अंडा, मांस और ऊन उत्पादन

बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (बीएएचएस) देश में दूध, अंडे, मांस और ऊन के उत्पादन का सालाना अनुमान जारी करता है. यह एकीकृत नमूना सर्वे (आईएसएस) के परिणामों पर आधारित होता है, जो देशभर में 3 मौसमों यानी गरमी (मार्चजून), बरसात (जुलाईअक्तूबर) और सर्दी (नवंबरफरवरी) में आयोजित किया जाता है. इस सर्वे के नतीजे  इस प्रकार दिए गए हैं:

दूध उत्पादन

बीएएचएस 2024 में जारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2023-24 के दौरान देश में कुल दूध उत्पादन 239.30 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो पिछले 10 सालों की तुलना में 5.62 फीसदी ज्‍यादा है. साल 2014-15 में यह 146.3 मिलियन टन था. इस के अलावा, साल 2022-23 के अनुमानों की तुलना में साल 2023-24 के दौरान उत्पादन में 3.78 फीसदी की वृद्धि हुई है.

साल 2023-24 के शीर्ष 5 दूध उत्पादक राज्यों के बारे में बात की जाए तो, उत्तर प्रदेश 16.21 फीसदी के साथ कुल दूध उत्पादन में पहले स्‍थान पर था. उसके बाद राजस्थान (14.51 फीसदी), मध्य प्रदेश (8.91 फीसदी), गुजरात (7.65 फीसदी) और महाराष्ट्र (6.71 फीसदी) का स्‍थान है.

वार्षिक वृद्धि दर के संदर्भ में पिछले वर्ष की तुलना में सब से अधिक वृद्धि पश्चिम बंगाल (9.76 फीसदी) ने दर्ज की. उस के बाद झारखंड (9.04 फीसदी), छत्तीसगढ़ (8.62 फीसदी) और असम (8.53 फीसदी) का स्थान रहा.

अंडा उत्पादन

देश में साल 2023-24 के दौरान कुल अंडा उत्पादन 142.77 बिलियन रहने का अनुमान है. पिछले 10 सालों में साल 2014-15 के दौरान 78.48 बिलियन के अनुमान की तुलना में 6.8 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. इस के अलावा साल 2022-23 की तुलना में साल 2023-24 के दौरान उत्पादन में सालाना 3.18 फीसदी की वृद्धि हुई है.

कुल अंडा उत्पादन में सब से बड़ा योगदान आंध्र प्रदेश का है, जिस की कुल अंडा उत्पादन में हिस्सेदारी 17.85 फीसदी है. इस के बाद तमिलनाडु (15.64 फीसदी), तेलंगाना (12.88 फीसदी), पश्चिम बंगाल (11.37 फीसदी) और कर्नाटक (6.63 फीसदी) का स्थान है. सब से अधिक वार्षिक वृद्धि दर लद्दाख (75.88 फीसदी) में दर्ज की गई और उस के बाद मणिपुर (33.84 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (29.88 फीसदी) का स्थान है.

मांस उत्पादन

देश में 2023-24 के दौरान कुल मांस उत्पादन 10.25 मिलियन टन होने का अनुमान है. साल 2014-15 में 6.69 मिलियन टन के अनुमान की तुलना में पिछले 10 सालों में 4.85 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. इस के अलावा साल 2022-23 की तुलना में साल 2023-24 में उत्पादन में 4.95 फीसदी की वृद्धि हुई.

कुल मांस उत्पादन में मुख्य योगदान पश्चिम बंगाल का है. इस की हिस्सेदारी 12.62 फीसदी है, उस के बाद उत्तर प्रदेश (12.29 फीसदी), महाराष्ट्र (11.28 फीसदी), तेलंगाना (10.85 फीसदी) और आंध्र प्रदेश (10.41 फीसदी) का स्थान है. उच्चतम वार्षिक वृद्धि दर असम (17.93 फीसदी) में दर्ज की गई है, जिस के बाद उत्तराखंड (15.63 फीसदी) और छत्तीसगढ़ (11.70 फीसदी) का स्थान है.

ऊन उत्पादन

देश में साल 2023-24 के दौरान कुल ऊन उत्पादन 33.69 मिलियन किलोग्राम रहने का अनुमान है, जो पिछले साल की तुलना में 0.22 फीसदी की मामूली वृद्धि दर्शाता है. साल 2019-20 के दौरान यह 36.76 मिलियन किलोग्राम और उस से पिछले साल 33.61 मिलियन किलोग्राम था.

कुल ऊन उत्पादन में सब से बड़ा योगदान राजस्थान का है, जिस की हिस्सेदारी 47.53 फीसदी है. उस के बाद जम्मू और कश्मीर (23.06 फीसदी), गुजरात (6.18 फीसदी), महाराष्ट्र (4.75 फीसदी) और हिमाचल प्रदेश (4.22 फीसदी) का स्थान है. सब से अधिक वार्षिक वृद्धि दर पंजाब (22.04 फीसदी) में दर्ज की गई. उस के बाद तमिलनाडु (17.19 फीसदी) और गुजरात (3.20 फीसदी) का स्थान है.

विश्व परिदृश्य

भारत दूध उत्पादन में विश्व में अग्रणी है, जबकि अंडा उत्पादन में दूसरे स्‍थान पर है.

Groundnut Farming : रेज्ड बेड पद्धति से मूंगफली की खेती

सबौर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के प्रक्षेत्र में बिहार में रेज्ड बेड पद्धति पर मूंगफली की खेती पर प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया. यह प्रक्षेत्र दिवस, निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह के निर्देशानुसार और उन की अध्यक्षता में आयोजित किया गया.

इस कार्यक्रम में बिहार कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डा. एसएन राय, उपनिदेशक अनुसंधान, डा. शैलबाला डे, डीन, पीजीएस डा. एसके पाठक, पीबीजी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. पीके सिंह एवं सस्य विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डा. संजय कुमार उपस्थित थे.

इस कार्यक्रम में सबौर के किसान शामिल हुए. इस कार्यक्रम में वैज्ञानिकों ने रेज्ड बेड पद्धति से मूंगफली की खेती पर किसानों से चर्चा की. निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह ने बताया कि इस पद्धति में मूंगफली एवं धान की खेती कुलपति डा. डीआर सिह के निदेशानुसार हो रही है.

उन्होंने आगे बताया कि विश्वविद्यालय में मूंगफली के विभिन्न प्रभेदों पर भी अनुसंधान हो रहा है, जिस से सबौर भी जलवायु के अनुसार सही प्रभेद मिलेगा.

डा. गायत्री कुमारी द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया. डा. गायत्री कुमारी एवं डा. मनोज कुमार के किसानों को विस्तृत रूप से मूंगफली की खेती के बारे में बताया और किसान द्वारा पूछे गए सारे सवालों का जवाब भी दिया गया. मौके पर विभिन्न विभाग के वैज्ञानिकों सहित रावे और सस्य विज्ञान के स्नात्तकोत्तर विद्यार्थी मौजूद थे.

Bihar’s Food : ‘लिट्टी-चोखा’ के लिए के मिलेगी जीआई मान्यता

भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के माननीय कुलपति डा. डीआर सिंह ने कई विशिष्ट कृषि उत्पादों के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) आवेदनों की प्रगति की समीक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक की अध्यक्षता की. इस बैठक का आयोजन बीएयू के अनुसंधान निदेशक डा. एके सिंह ने किया, जिस में उपनिदेशक, अनुसंधान, डा. सैलबाला देई और बिहार कृषि प्रबंधन एवं विस्तार प्रशिक्षण संस्थान यानी बामेती के रंजीत जैसे प्रमुख अधिकारियों ने भाग लिया.

रंजीत ने औनलाइन माध्यम से बैठक में शामिल हो कर अपना योगदान दिया. इस बैठक का उद्देश्य जीआई मान्यता प्राप्त करने में हुई प्रगति का मूल्यांकन करना और आगे की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने के लिए एक ठोस योजना तैयार करना था.

समीक्षा के दौरान कुलपति डा. डीआर सिंह ने प्रत्येक लक्षित उत्पाद की प्रगति का आकलन किया और उपस्थित वैज्ञानिकों को अपने प्रयासों को तेज करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने बिहार के विशिष्ट उत्पादों की सुरक्षा और प्रचार के लिए जीआई मान्यता की आवश्यकता पर जोर देते हुए “लिट्टी-चोखा” के लिए साल 2024 के अंत तक जीआई मान्यता प्राप्त करने का आश्वासन व्यक्त किया.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने 2025 के अंत तक 10-15 अतिरिक्त उत्पादों के लिए जीआई मान्यता प्राप्त करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी निर्धारित किया. जीआई आवेदन प्रक्रिया को सुगम और तेज करने के प्रयास में कुलपति डा. डीआर सिंह ने बामेती  के अधिकारी रंजीत के साथ बातचीत की और उन से इन आवेदनों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक सरकारी अनुमोदन प्रक्रिया में तेजी लाने का अनुरोध किया.

बैठक का समापन बीएयू के अनुसंधान निदेशक द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिस में बिहार की कृषि विरासत को संरक्षित करने और स्थानीय विशिष्ट उत्पादों की बाजार पहुंच को जीआई प्रक्रिया के माध्यम से बढ़ाने के प्रति बीएयू की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया.

किसान नरवाई जलाने से बचें, करें फसल अवशेष प्रबंधन

मैहर : कलक्टर अनुराग वर्मा और मैहर कलक्टर रानी बाटड ने अपनेअपने जिले के किसानों से अपील की है कि खेतों की फसल काटने के बाद किसान बचे फसल अवशेष को नष्ट करने व खेत में नरवाई न जलाएं. खेत में नरवाई जलाने से मिट्टी एवं भूउर्वरता, लाभदायक सूक्ष्म जीव के साथसाथ संचित नमी के वाष्पीकरण से अत्यधिक नुकसान होता है. मिट्टी के लाभदायक कीट एवं जीवांश नष्ट हो जाते है एवं अगली फसल का उत्पादन प्रभावित होता है.

ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के क्रम में Air (Prevention & control of Pollution) Act 1981 के अंतर्गत प्रदेश में फसलों विशेषतः धान एवं गेहूं की कटाई के उपरांत फसल अवशेषों को खेतों में जलाए जाने को प्रतिबंधित किया गया है एवं उल्लंघन किए जाने पर व्यक्ति/निकाय को प्रावधान के अनुसार पर्यावरण क्षतिपूर्ति देय होगी. 2 एकड़ से कम भूमिधारक किसानों द्वारा राशि 2,500 रुपए प्रति घटना, 2 एकड़ से अधिक और 5 एकड़ से कम भूमिधारक किसानों द्वारा राशि 5,000 रुपए प्रति घटना और 5 एकड़ से अधिक भूमिधारकों द्वारा राशि 15,000 रुपए प्रति घटना पर्यावरण क्षतिपूर्ति देय होगी.

खेत में फसल अवशेष/नरवाई जलाने से मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्मजीव एवं जैविक कार्बन जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिस से मिट्टी सख्त एवं कठोर हो कर बंजर हो जाती है एवं फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है.

किसान फसल अवशेष/नरवाई न जलाएं, बल्कि इस का उपयोग आच्छादन यानी मल्चिंग एवं स्ट्रा रीपर से भूसा बना कर पशुओं के भोजन या भूसे के विपणन से अतिरिक्त लाभ प्राप्त कर सकते हैं. इस के अतिरिक्त गेहूं एवं चना की बोनी के लिए अधिक से अधिक हैप्पी सीडर/सुपर सीडर का उपयोग करें. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे नरवाई जलाने से बचें.

किसान अपने खेतों की मिट्टी का करा सकेंगे परीक्षण

छतरपुर :मध्य प्रदेश शासन किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग मंत्रालय भोपाल के 22 अगस्त, 2024 से प्राप्त निर्देशानुसार जिले में नवीन निर्मित विकासखंड स्तरीय मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं को युवा उद्यमियों एवं संस्थाओं के माध्यम से प्रारंभ और संचालित किया जाना है. इस के लिए चयन के लिए इच्छुक उम्मीदवारों द्वारा आवेदन किए गए, जिस में जिले में कुल 17 संस्थाओं एवं 85 युवा उद्यमियों के आवेदन प्राप्त हुए.

इस के लिए छतरपुर कलक्टर पार्थ जैसवाल के निर्देश पर संस्थाओं एवं युवा उद्यमियों का चयन के लिए प्राप्त आवेदनों के परीक्षण के लिए जिला स्तर पर एक समिति बनाई गई, जिस के निर्देशन में संस्थाओं एवं युवा उद्यमियों द्वारा प्रस्तुत औनलाइन आवेदनों का परीक्षण किया गया और शासन के निर्देशानुसार उन का विकासखंडों में चयन किया गया.

विकासखंडवार चयनित संस्था एवं युवा उद्यमी

विकासखंडवार चयनित संस्था एवं युवा उद्यमी में बड़ामलहरा से एसआरएच फूड इंडस्ट्रीज प्रा. लि., छतरपुर से आरकेसीटी लेबोरेटरी प्रा. लि., बारीगढ़ से अपूर्वा फूड प्रा. लि., राजनगर से एसएमएजी एजुकेशन एंड सर्विस प्रा. लि., लवकुशनगर से वीरेंद्र कुमार पटेल, बिजावर से सर्वेश गुप्ता, बक्सवाहा से चतुर्भुज पाल का चयन किया गया है.

उपसंचालक, कृषि, डा. केके वैद्य ने कहा कि जिले में विकासखंड स्तर पर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं का संचालन होने से जिले के किसानों को मिट्टी परीक्षण के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्हें शीघ्र ही मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट और रिपोर्ट के अनुसार अनुशंसित पोषक तत्वों की पूर्ति की जानकारी प्राप्त होगी, जिस से कि वे अधिक उत्पादन के लिए सिफारिश की गई उर्वरकों की मात्रा का उपयोग कर सकेंगे. इस के लिए किसान अपने खेतों की मिट्टी जांच अवश्य कराएं.

परंपरागत खेती के साथ उद्यानिकी फसल लेने से बढ़ी आमदनी

जबलपुर : जिले के पाटन विकासखंड के ग्राम मुर्रई के किसान बृजराज सिंह राजपूत पारंपरिक गेहूं और धान की फसल के साथ प्राकृतिक खेती को अपना कर आसपास के किसानों के लिए कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने की मिसाल पेश कर रहे हैं.

कृषि अधिकारियों ने पिछले दिनों बृजराज सिंह के खेत में पहुंच कर उद्यानिकी फसल का अवलोकन किया. बृजराज सिंह अपने 10 एकड़ खेत में फसल विविधीकरण को अपना कर शिमला मिर्च, हरी मिर्च, मूंगफली, अदरक, टमाटर जैसी उद्यानिकी फसलें ले रहे हैं. साथ ही, उन्होंने उद्यानिकी फसलों के किनारे गेंदा भी लगाया है. इस से कीट नियंत्रण में मदद मिलने के साथ ही उन्हें अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त हो रही है.

किसान बृजराज सिंह  ने बताया कि उन्होंने उद्यानिकी फसलों को खेत के उत्तरदक्षिण दिशा में लगाया है. इस से फसल को सूरज की रोशनी सुबह और शाम पर्याप्त मात्रा में मिलती है. प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया अच्छी होने के परिणामस्वरूप पौधों का विकास भी अच्छा होता है.

किसान बृजराज सिंह ने आगे बताया कि उन के खेत के चारों ओर नीम के पेड़ भी लगे हुए हैं, जिस से कीटों का नियंत्रण होता है. बृजराज सिंह द्वारा विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक कीटनाशक बनाया जा रहा है. वे इन का उपयोग उद्यानिकी फसलों में कर रहे हैं, जिस से कीटों पर प्रभावी नियंत्रण के साथ उत्पादन लागत में कमी भी आ रही है.

कृषि अधिकारियों के अनुसार, बृजराज सिंह पहले उद्यानिकी फसलों में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग करते थे, किंतु उन्हें प्रोत्साहित कर प्राकृतिक खेती में रुचि बढ़ाई गई. बृजराज सिंह अब जीवामृत, पांच पर्णी अर्क, नीम कड़ा आदि बना कर उपयोग कर रहे हैं.

इस किसान के खेत में मिनी औटोमैटिक वेदर स्टेशन भी लगाया गया है. इस से मौसम के पूर्वानुमान के साथ आने वाली बीमारी, कीडों का आगमन, मिट्टी में उपलब्ध नमी आदि की पूर्व जानकारी मोबाइल पर उपलब्ध हो जाती है. औटोमैटिक वेदर स्टेशन से मिली पूर्व जानकारी के आधार पर बृजराज सिंह को कृषि कार्य परिवर्तित करने में सहायता मिल रही है.

अनुविभागीय कृषि अधिकारी पाटन डा. इंदिरा त्रिपाठी ने बताया कि किसान बृजराज सिंह द्वारा प्राकृतिक खेती करना प्रारंभ कर दिया गया है और इन के खेत पर अन्य किसानों को भ्रमण कराया जा रहा है, जिस से वे भी प्रोत्साहित हो कर प्राकृतिक खेती के साथसाथ फसल विविधीकरण की ओर अग्रसर हों.