महिलाओं और युवाओं को मिलेंगे रोजगार (Employment)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में 10,000 नवगठित बहुद्देशीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS), डेयरी व मत्स्य सहकारी समितियों का शुभारंभ किया. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी की जन्म शताब्दी के दिन 10,000 नई बहुद्देश्यीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (MPACS), डेयरी व मत्स्य सहकारी समितियों का शुभारंभ हो रहा है.

अमित शाह ने कहा कि 19 सितंबर, 2024 को इसी स्थान पर हम ने एक SOP बनाई थी. उस के 86 दिन के अंदर ही हम ने 10,000 पैक्स को रजिस्टर करने का काम समाप्त कर दिया है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की, तो उन्होंने ‘सहकार से समृद्धि’ का मंत्र दिया था.

मंत्री अमित शाह ने आगे कहा कि ‘सहकार से समृद्धि’ तभी संभव है, जब हर पंचायत में सहकारिता उपस्थिति हो और वहां किसी न किसी रूप में काम करे. उन्होंने कहा कि हमारे देश के त्रिस्तरीय सहकारिता ढांचे को सब से ज्यादा ताकत प्राथमिक सहकारी समिति ही दे सकती है, इसलिए मोदी सरकार ने 2 लाख नए पैक्स बनाने का निर्णय लिया था.

केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि नाबार्ड (NABARD), एनडीडीबी(NDDB) और एनएफडीबी (NFDB) ने 10,000 प्राथमिक सहकारी समितियों के पंजीकरण में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. सहकारिता मंत्रालय की स्थापना के बाद सब से बड़ा काम सभी पैक्स का कंप्यूटराइजेशन करने का काम किया गया.

उन्होंने आगे कहा कि कंप्यूटराइजेशन के आधार पर पैक्स को 32 प्रकार की नई गतिविधियों से जोड़ने का काम किया गया. हम ने पैक्स को बहुआयामी बना कर और उन्हें भंडारण, खाद, गैस, उर्वरक एवं जल वितरण के साथ जोड़ा है.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि ट्रेंड मैनपावर न होने के कारण ये सब हम नहीं कर सकते. इस के लिए आज यहां प्रशिक्षण मौड्यूल का भी शुभारंभ हुआ है, जो पैक्स के सदस्यों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने का काम करेंगे.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि ये प्रशिक्षण मौड्यूल हर जिला सहकारी रजिस्ट्रार की जिम्मेदारी बनेगी कि पैक्स के सचिव एवं कार्यकारिणी के सदस्यों का अच्छा प्रशिक्षण सुनिश्चित हो.

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि यहां 10 सहकारी समितियों को रुपे किसान क्रेडिट कार्ड (RuPay Kisan Credit Card), माइक्रो एटीएम (Micro ATM) का वितरण किया गया है. इस अभियान के तहत आने वाले दिनों में हर प्राथमिक डेयरी को माइक्रो एटीएम दिया जाएगा. माइक्रो एटीएम और रुपे किसान क्रेडिट कार्ड (RuPay Kisan Credit Card) हर किसान को कम खर्च पर लोन यानी ऋण देने का काम करेगा.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि पैक्स के विस्तार के लिए विजिबिलिटी, रेलेवेंस, वायबिलिटी और वाइब्रेंसी का ध्यान रखा गया है. पैक्स में 32 कामों को जोड़ कर इसे विजिबल और वायबल बनाया गया है.

उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि गांव में कौमन सर्विस सैंटर (Common Service Centre) (CSC) का जब पैक्स बन जाता है, तो गांव के हर नागरिक को किसी न किसी रूप में पैक्स के दायरे में आना पड़ता है. इस प्रकार हम ने इस की रेलेवेंस भी बढ़ाई है.

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जब पैक्स गैस वितरण, भंडारण, पैट्रोल वितरण आदि का काम करते हैं, तो उन की वाइब्रेंसी अपनेआप बढ़ जाती है. साथ ही, पैक्स के बहुद्देश्यीय होने से पैक्स का जीवन भी लंबा होने की पूरी संभावना रहती है.

उन्होंने कहा कि यह एक बहुद्देशीय कार्यक्रम है, जिस से किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने का प्रयास होगा.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि कंप्यूटराइजेशन और टैक्नोलौजी से पैक्स में पारदर्शिता आएगी, सहकारिता का जमीनी स्तर पर विस्तार होगा और ये महिलाओं और युवाओं के रोजगार का माध्यम भी बनेगा. साथ ही, पैक्स, कृषि संसाधनों की आसान उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगा.

अमित शाह ने कहा कि हमारी 3 नई राष्ट्रीय स्तर की कोऔपरेटिव्स के माध्यम से पैक्स, और्गेनिक उत्पादों, बीजों और ऐक्सपोर्ट के साथ किसानों की समृद्धि के रास्ते भी खोलेगा. इस से सामाजिक और आर्थिक समानता भी आएगी, क्योंकि नए मौडल में महिलाओं, दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों की भागीदारी सुनिश्चित की है, जिस से सामाजिक समरसता भी बढ़ेगी.

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने लक्ष्य रखा है कि अगले 5 साल में 2 लाख नए पैक्स का गठन करेंगे. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि 5 साल से पहले ही हम इस लक्ष्य को पूरा लेंगे.

उन्होंने आगे बताया कि पहले चरण में नाबार्ड 22,750 पैक्स और दूसरे चरण में 47,250 पैक्स बनाएगा. इसी प्रकार एनडीडीबी 56,500 नई समितियां बनाएगा और 46,500 मौजूदा समितियों को और मजबूत बनाएगा. वहीं एनएफडीबी 6,000 नई मत्स्य सहकारी समितियां बनाएगा और 5,500 मौजूदा मत्स्य सहकारी समितियों का सशक्तीकरण करेगा. इन के अलावा राज्यों के सहकारी विभाग 25,000 पैक्स बनाएंगे.

अमित शाह ने इस अवसर पर कहा कि नए मौडल के साथ अब तक 11,695 नई प्राथमिक सहकारी समितियां पंजीकृत हुई हैं, जो हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. साथ ही, 2 लाख नए पैक्स बनने के बाद फौरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेजेस के माध्यम से किसानों की उपज को वैश्विक बाजार में पहुंचाना बड़ा आसान हो जाएगा.

कृषि स्टार्टअप्स को सशक्त बनाने के लिए SABAGRIs वेबसाइट लांच

भागलपुर: कृषि नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए, बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर के कुलपति ने आज SABAGRIs (सबौर एग्री इनक्यूबेटर्स) की आधिकारिक वेबसाइट www.sabagris.com को लांच किया. यह वेबसाइट कृषि स्टार्टअप्स, शोधकर्ताओं और कृषि नवाचारकर्ताओं को संसाधन, समर्थन और सहयोग के अवसर प्रदान करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करेगी.

SABAGRIs, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की एक एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन पहल है,जिस का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में नवाचार, उद्यमिता और शोध को प्रोत्साहित करना है. यह इनक्यूबेटर कृषि स्टार्टअप्स को विचार विकास से लेकर व्यवसाय के विस्तार तक संपूर्ण समर्थन प्रदान करता है, जिस में आधुनिक कृषि के लिए स्थायी और तकनीकी समाधान पर विशेष ध्यान दिया जाता है.

वेबसाइट लांच का आयोजन बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के निदेशालय अनुसंधान में किया गया. इस अवसर पर SABAGRIs के परियोजना अन्वेषक और निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह और उन की टीम के सदस्य उपस्थित रहे.

यह पहल कृषि क्षेत्र में विकास को गति देने और नवोन्मेषी विचारों को व्यवसायिक रूप देने के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी.

काला नमक चावल (Black Salt Rice) की पहचान पूरी दुनिया में पहुंची

सिद्धार्थनगर: जिला प्रशासन सिद्धार्थनगर द्वारा आयोजित बुद्धा राइस क्रेता विक्रेता सम्मेलन कार्यक्रम के समापन एवं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के मौके पर किसान सम्मान दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मंत्री श्रम एवं सेवायोजन, समन्वय विभाग उत्तर प्रदेश अनिल राजभर द्वारा सांसद डुमरियागंज जगदंबिका पाल, विधायक शोहरतगढ़ विनय वर्मा, जिलाध्यक्ष भाजपा कन्हैया पासवान, पूर्व बेसिक शिक्षा मंत्री डा. सतीश द्विवेदी व जिलाधिकारी डा. राजा गणपति आर, पुलिस अधीक्षक अभिषेक महाजन, मुख्य विकास अधिकारी जयेंद्र कुमार आदि की उपस्थिति में किया गया.

मुख्य अतिथि मंत्री श्रम एवं सेवायोजन, समन्वय विभाग उत्तर प्रदेश अनिल राजभर द्वारा जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में बुद्धा रत्ना कंपनी के कालानमक के उत्पाद का विमोचन किया गया. किसान सम्मान दिवस के मौके पर कृषि में बेहतरीन कार्य करने वाले किसानों को भी सम्मानित किया गया. नव चयनित आशाबहुओं को प्रशिक्षण के लिए प्रमाण पत्र एवं ओडीओपी योजना के लाभार्थियों को टूल किट का प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया.

कालानमक के प्रचार प्रसार हेतु ब्रांड एम्बेसडर महेंद्र नाथ पाण्डेय को शाल एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया. मुख्य अतिथि मंत्री श्रम एवं सेवायोजन, समन्वय विभाग उत्तर प्रदेश अनिल राजभर ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती पर याद करते हुए सभी किसानों को किसान सम्मान दिवस की शुभकामनाएं दी.

उन्होंने आगे कहा कि महात्मा गौतम बुद्ध की धरती पर जनपद के प्रभारी मंत्री के रूप में पहली बार सभी अन्नदाता किसानों से मुलाकात हो रही है. मुख्यमंत्री जी द्वारा ओडीओपी के अंतर्गत सिद्धार्थनगर का काला नमक चावल और चंदौली के ब्लैक राइस को चुना गया है. इस क्रेता विक्रेता सम्मेलन के कार्यक्रम की चर्चा अन्य जनपदों में भी हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प है कि किसानों की आय दोगुनी हो उन के इस संकल्प को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश द्वारा निरंतर प्रयास किया जा रहा है.

श्रम एवं सेवायोजन मंत्री अनिल राजभर ने कहा कि उत्पादन को बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से अनुदान देकर किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. किसानों को उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो इस के लिए कार्य योजना भी बनाई जा रही है.

इस के साथ ही, पूर्वांचल के 500 किसानों को विदेशों में भ्रमण कर अच्छी तकनीकियों का प्रयोग कर खेती करने के लिए प्रेरित किया जाएगा. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 6000 मजदूरों को इसराइल भेजा गया है. साथ ही 25000 श्रमिकों को इसराइल भेजने का लक्ष्य भी है उत्तर प्रदेश से जो श्रमिक इसराइल गए हैं, उन को आज अच्छी आय प्राप्त हो रही है. साथ ही, आज क्रेता विक्रेता सम्मेलन के माध्यम से किसान उद्यमियों को काला नमक के उत्पादन को बढ़ाने व उस के निर्यात के लिए जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है, जिस से उनको उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त हो सके.

जिलाधिकारी डाक्टर राजा गणपति आर एवं मुख्य विकास अधिकारी जयेंद्र कुमार के निर्देशन में जिला प्रशासन के अधिकारियों एवं कृषि विभाग के प्रयास से आज जनपद में काला नमक की पहचान पूरी दुनिया में पहुंचने के लिए क्रेता विक्रेता सम्मेलन का कार्यक्रम दो दिनों तक आयोजित किया गया. जिलाधिकारी का यह प्रयास है, कि जनपद के किसानों को काला नमक चावल के उत्पादन की अच्छी कीमत मिल सके.

सांसद डुमरियागंज जगदंबिका पाल ने कहा कि यह तथागत गौतम बुद्ध की जन्मस्थली है. जनपद प्रभारी मंत्री को जनपद में प्रथम आगमन पर बधाई दी गई. सांसद डुमरियागंज ने इतने बड़े कार्यक्रम के आयोजन को मूर्तरूप देने वाले जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी व कृषि विभाग को बधाई दी.

उन्होंने आगे कहा कि यह क्रेता विक्रेता सम्मेलन नये प्रयोग के साथ काला नमक चावल के ब्रांडिंग एवं निर्यात के लिए आयोजित किया गया है. जिला प्रशासन द्वारा कालानमक चावल को विश्व में पहचान दिलाने के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है. कालानमक चावल की क्वालिटी का चावल पूरी दुनिया में नहीं मिल रहा है. काला नमक चावल को शुगर का मरीज भी सेवन कर सकता है.

आज जापान के चावल का मुकाबला हमारे जनपद का काला नमक चावल कर रहा है. जनपद में काला नमक भवन बनाने के लिए भारत सरकार से सीएसआर मद व्यय कर काम करने का प्रयास किया जा रहा है. इस भवन के बनने से बाहर से आने वाले लोगों को कालानमक चावल आसानी से प्राप्त हो जाएगा और वहीं से ही इस की मार्केटिंग भी हो सकेगी.

काला नमक चावल (Black Salt Rice)

सांसद डुमरियागंज जगदंबिका पाल ने कहा कि कालानमक चावल विभिन्न कर्मशियल प्लेटफार्म के माध्यम से आज देश विदेश में अपनी सुगंध फैला रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जी 20 की बैठक में भी अतिथियों को भेंट किया गया था. साथ ही, उन्होंने जिला प्रशासन, कृषि वैज्ञानिकों एवं किसान भाइयों को भी शुभकामनाएं दी.

विधायक शोहरतगढ़ विनय वर्मा ने कहा कि कालानमक चावल को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग द्वारा इस के निर्यात के लिए अच्छा प्रयास किया जा रहा है जिस से किसानों को उन के उत्पाद का अच्छा मूल्य प्राप्त हो सके और महात्मा बुद्ध का प्रसाद कालानमक की खुशबू देशविदेश तक पहुंच सके.

पूर्व बेसिक शिक्षा मंत्री डा. सतीश द्विवेदी ने कहा कि कालानमक चावल के उत्पादन एवं निर्यात के लिए क्रेता विक्रेता सम्मेलन के माध्यम से जिला प्रशासन द्वारा सराहनीय कार्य किया जा रहा है, जिस से किसानों को कालानमक चावल का अच्छा मूल्य प्राप्त होगा.

जिलाध्यक्ष भाजपा कन्हैया पासवान ने कहा कि भगवान गौतम बुद्ध का प्रसाद, कालानमक चावल के लिए जिला प्रशासन द्वारा क्रेता विक्रेता सम्मेलन का कार्यक्रम हो रहा है. जनपद के किसानों द्वारा अधिक मात्रा में कालानमक की खेती की जा रही है. इस के निर्यात के लिए विकल्प हो जाने पर जनपद के किसान और अधिक मात्रा में काला नमक की खेती कर अच्छी आय प्राप्त कर सकेंगे.

बुद्धा राइस क्रेता विक्रेता सम्मेलन कार्यक्रम के द्वितीय दिवस पर दो चरणों में वैज्ञानिको द्वारा किसानों को कालानमक चावल के प्रसंस्करण एवं विपणन के बारे में पूरी जानकारी दी गई. प्रसंस्करण सत्र के दौरान डा. रितेश शर्मा बासमती एक्सपोर्ट बोर्ड, डा. एमएस अनंथा आईआईआरआर हैदराबाद, केके अग्रवाल आई.आई.ए द्वारा किसानों को कालानमक चावल के प्रसंस्करण के बारे में सभी जानकारी दी गई.

विपणन सत्र के दौरान डा. मंजुल प्रताप सिंह निदेशक ओराइजो राइस घर एग्रो वर्ल्ड प्रा.लि. वाराणसी, सुरेश गुप्ता प्रदेश सचिव, लघु उद्योग भारती उत्तर प्रदेश, अविनाश चंद्र तिवारी संयुक्त कृषि निदेशक मंडल बस्ती, डा. मार्कण्डेय सिंह वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र सोहना द्वारा कालानमक चावल के प्रसंस्करण के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई.

इस अवसर पर उपरोक्त के अतिरिक्त उप कृषि निदेशक अरविंद विश्वकर्मा, जिला कृषि अधिकारी मो. मुजम्मिल, जिला कृषि रक्षा अधिकारी विवेक दूबे, जिला भूमि संरक्षण अधिकारी कृषि रवि शंकर पाण्डेय, उपायुक्त उद्योग उदय प्रकाश, जिला उद्यान अधिकारी नन्हे लाल वर्मा, जिला पूर्ति अधिकारी देवेंद्र प्रताप सिंह, जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी तन्मय व अन्य संबंधित अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे.

हाईटेक कृषि ज्ञान वाहनों से मिल रहा हर सवाल का जवाब

सबौर: बिहार कृषि विश्वविद्यालय, द्वारा संचालित “सवालजवाब” कार्यक्रम अब किसानों तक और भी प्रभावी ढंग से पहुंच रहा है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर लोकप्रिय इस कार्यक्रम का प्रसारण आज से कृषि ज्ञान वाहनों के माध्यम से भी किया गया.

समस्तीपुर, पूर्णिया और पटना जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद इन कृषि ज्ञान वाहनों पर किसानों ने विश्वविद्यालय के मीडिया सेंटर से प्रसारित सवालजवाब कार्यक्रम को देखा और वैज्ञानिकों से सीधे प्रश्न पूछे. आज के कार्यक्रम में “जाड़े के मौसम में पशुओं के रखरखाव” विषय पर चर्चा की गई.

इस अवसर पर प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहाने, पशु विज्ञान विशेषज्ञ डा. राजेश कुमार, डा. एमज़ेड होदा और डा. ज्योतिमला ने किसानों के सवालों के उत्तर दिए. कार्यक्रम का संचालन अन्नू द्वारा किया गया.

यह कार्यक्रम हर शनिवार को प्रसारित होता है. साथ ही, अब बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कृषि ज्ञान वाहनों के साथसाथ बामेती, बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना और डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वाहनों में भी उपलब्ध है. इन वाहनों में बड़े टीवी स्क्रीन पर कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया गया.

इस नई पहल पर खुशी जाहिर करते हुए कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा ” इस कदम से दूरदराज के किसानों को खेती और पशुपालन से जुड़ी समस्याओं का समाधान रियल टाइम में मिल सकेगा. यह पहल किसानों के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.”

हाईटेक कृषि ज्ञान वाहन

गौरतलब है कि इस वर्ष बिहार कृषि विश्वविद्यालय के नेतृत्व में हाईटेक कृषि ज्ञान वाहनों का निर्माण किया गया था, जिस का लोकार्पण बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा किया गया था. ये वाहन किसानों को कृषि और पशुपालन से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हैं.

किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण

यह कार्यक्रम न केवल किसानों के दरवाजे तक पहुंच कर उन्हें जागरूक कर रहा है, बल्कि उन की समस्याओं का तुरंत समाधान भी प्रदान कर रहा है. इस से राज्य में कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में प्रगति को नई गति मिलेगी.

लेमन मैन (Lemon Man) को किया कृषि मंत्री ने सम्मानित

लखनऊ: चौधरी चरण सिंह किसान सम्मान दिवस के अवसर पर विधानसभा लखनऊ के प्रांगण में उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही सहित अनेक अधिकारी गण उद्यान विभाग, कृषि विभाग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों का हौसला बढ़ाया और किसानों को सम्मानित किया.

इस मौके पर रायबरेली के किसान आनंद मिश्रा, जिन्हें लेमन मैन के नाम से जाना जाता है. उन्हें प्रदेश स्तरीय द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया. पुरस्कार स्वरूप लेमन मैन को 50000 रुपए मिले.

लेमन मैन ने इस मौके पर कहा कि उद्यान मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने हमें कई मौकों पर आगे बढ़ने और अच्छा काम करने के लिए प्रेरित किया. साथ ही, उद्यान विभाग के वैज्ञानिकों ने हमारा समयसमय पर मार्गदर्शन किया, हमारी बाग में विजिट किया और आज उत्तर प्रदेश का द्वितीय पुरस्कार फलस्वरूप मिला. हम आज सभी को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं.

आपको जानकारी के लिए बता दें कि राज्यस्तरीय फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड 2024 लखनऊ में आयोजित हुआ था जिस में मुख्य अतिथि दिनेश प्रताप सिंह रहे. उन्होंने उस समय भी किसानों का हौसला बढ़ाया था, उस समय वहां पर लेमन मैन भी मौजूद थे. आज के समय में लेमन मैन रायबरेली के प्रमुख नीबू उत्पादक बागवान हैं.

लेमन मैन आनंद मिश्रा यूपी के रायबरेली जनपद के रहने वाले हैं. उन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर नीबू की बागवानी की शुरुआत कर, एक ऐसी मिसाल पेश की, जिस को देख कर दूसरे किसान भी नीबू की खेती करने लगे. नीबू की बागवानी में मिली अदभुत सफलता से जिले में आनंद मिश्रा को लेमन मैन (lemon man) के नाम से पुकारा जाने लगा है.

लेमन मैन के बारे में हमने पढ़ा तो बहुत था लेकिन, उन से हमारी मुलाकात फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड 2024 के दौरान लखनऊ में हुई थी. उन्होंने बातचीत में बताया कि नीबू की बागवानी मुनाफे की खेती है. इस बागवानी में किसान को एक बार जमीन पर पौधे लगाने हैं और 25 सालों तक मुनाफे की फसल काटनी है. मतलब खर्चा कम आमदनी ज्यादा.

आनंद मिश्रा ने 2016 में नौकरी छोड़कर नीबू की बागवानी शुरु की. हालांकि उन्होंने खेती की शुरुआत गेहूं, धान की खेती से ही शुरू की थी. लेकिन सफलता नहीं मिली. फिर 1 साल तक वह अलगअलग तरह की खेती करते रहे. लेकिन जुनून नीबू की बागवानी करने का ही था. आखिर उन का यह जुनून परवान चढ़ा और नीबू की बागवानी करने में बड़े पैमाने पर सफलता प्राप्त की. आज जिले में उन की पहचान उन के नाम से अधिक लेमन मैन के नाम से है.

लखपति बनाए लाख (Lac)

इस समय किसानों की रोजीरोटी खतरे में है. जंगल उजाड़ कर कंक्रीट के जंगल उगाए जा रहे हैं. इस से एक ओर जहां पर्यावरण बिगड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर हमारी सेहत भी संकट में है. ऐसे में जरूरी है कि खेती इस तरह से की जाए, जिस से न सिर्फ पर्यावरण सुरक्षित रहे, बल्कि सेहत और आमदनी भी सही रहे. ऐसा लाख की खेती से हो सकता है. तो आइए जानते हैं कि क्या है लाख, कैसे होगी इस की खेती और कैसे मिलेगी इस से भरपूर आमदनी.

क्या है लाख : यह एक कुदरती राल होता है, जो कैरिका लैक्का नाम के मादा कीट द्वारा खासतौर पर प्रजनन के बाद स्राव के फलस्वरूप बनता है. इस कीट को कुछ खास पेड़ों की टहनियों पर पालते हैं. दरअसल, लाख का कीट अपने शरीर की हिफाजत करने के लिए एक प्रकार का तरल पदार्थ छोड़ता है, जो सूख कर कवच बना लेता है और उसी के भीतर कीट जीवित रहता है. इसी कवच को लाख कहा जाता है.

 

इसे दवा उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, सौंदर्य प्रसाधन उद्योग, विद्युत उद्योग, चमड़ा उद्योग, सूक्ष्म रसायन उद्योग व दूसरे कई उद्योगों में इस्तेमाल किया जाता है. झारखंड में इस की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. वैसे अब इस का दायरा कई राज्यों में बढ़ता जा रहा है.

कितनी तरह का होता है लाख : लाख के कीट 2 तरह के होते हैं, जिन्हें रंगीनी और कुसुमी कहते हैं. रंगीनी लाख की फसल ज्यादातर पलाश व बेर पर लेते हैं. इस के साथ ही रंगीनी लाख की फसल को संदन व पीपल पर भी लेते हैं. कुसुमी लाख की फसल को ज्यादातर कुसुम व बेर पर लेते हैं. बेर, आकाशमनी, गलगांव, भलिया, पुतरी व खैर जैसे पौधों पर दोनों में से कोई भी एक कीट लगा सकते हैं.

कैसे होगी इस की खेती : लाख कीट पालन के कुल 6 चरण होते हैं, पहला पेड़ों की काटछांट, दूसरा कीटों का उन पर फैलाव, तीसरा फुंकी उतारना (कीटों के फैलाव के 15 दिनों बाद बची हुई लाख की डंडी फुंकी कहलाती है), चौथा दवा का छिड़काव, पांचवां फसल की कटाई और छठवां लाख की छिलाई.

लाख की फसल पेड़ों के 2 खंड बना कर करते हैं. पहली फसल पहले खंड में और अगली फसल दूसरे खंड में लेते हैं. इस से पेड़ तंदुरुस्त रहता है व उसे आराम करने का मौका भी मिल जाता है. पेड़ों की कांटछांट सूखी व टूटीफूटी टहनियों को हटाने के लिए करते हैं. तकरीबन 2 से 2.5 सेंटीमीटर व्यास की टहनियों को तकरीबन 1-1.5 फुट की ऊंचाई से लंबे हत्थेदार प्रूनर से फरवरी या जुलाई में काटते हैं. कीटों के फैलाव के लिए लाख के बीजों के बंडल बना कर पेड़ों की कई डालियों पर बांध दिए जाते हैं.

LACक्या है बीहन यानी बीज : बीहन लाख में मौजूद कीट जिंदा होने चाहिए. इस की पहचान है कि लाख के ऊपर कीट द्वारा निकाले गए सफेद मोम जैसे धागे साफ दिखाई देने चाहिए. पपड़ी के भीतर लाख कीट खून की तरह लाल होना चाहिए. लाख की पपड़ी मोटी होनी चाहिए. लाख की पपड़ी में शत्रु कीट नहीं होने चाहिए. यदि डंडियों पर कुछ जाल जैसा फैला हो, गुंबद के आकार का उठा हो या फिर कई जगहों पर छेद दिखाई दें तो समझें कि बीहन लाख दुश्मन कीटों से प्रभावित है.

जुलाई में बीहन लेते समय देखना चाहिए कि उस में से शिशु कीट बाहर नहीं आए हों. अगर आए भी हों, तो बहुत कम हों, लेकिन अक्तूबर और फरवरी में बीहन खरीदते समय शिशु कीट बाहर चलते दिखाई पड़ें तो अच्छा रहेगा.

कहां मिलेंगे बीहन (बीज) : बीजों के लिए आप रांची स्थित ‘इंडियन इंस्टीट्यूट आफ नेचुरल रेजिन एंड गम्स’ जिसे पहले ‘भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान’ के नाम से जानते थे, से संपर्क कर सकते हैं. वैसे बीहन के लिए झारखंड के ऐसे क्षेत्रों में भी संपर्क किया जा सकता है, जहां पर इस की खेती बड़े पैमाने पर की जाती हो. इस के अलावा आप इलाहाबाद के बायोवेद कृषि एवं प्रोद्योगिकी शोध संस्थान 103/42 मोतीलाल नेहरू रोड, निकट प्रयाग स्टेशन से भी संपर्क कर सकते हैं.

कैसे होगा रोगों और कीटों से बचाव : लाख कीट के प्रमुख शत्रु कीट सफेद पिल्लू व काले पिल्लू हैं, जो लाख की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. ये पिल्लू बाद में तितली बन कर नई लाखयुक्त टहनियों पर अंडे देते हैं. इन के अलावा कुछ और कीट जैसे यूरीटोमा व ब्रेकीमेरिया आदि भी भारी नुकसान पहुंचाते हैं.

दुश्मन कीट होने पर किसी कीटनाशी जैसे डाइक्लोरोवास 76 ईसी का इस्तेमाल करना चाहिए. कभीकभी कुछ फफूंदी लाख फसल में दिखाई पड़ती है, जिस की रोकथाम के लिए किसी कवकनाशी जैसे कार्बंडाजिम का छिड़काव करना चाहिए.

रंगीनी बैशाखी फसल में शत्रु कीट से बचाव के लिए कीटनाशी का इस्तेमाल नवंबर के दूसरे या तीसरे हफ्ते और फरवरी के पहले हफ्ते में करते हैं, जबकि रंगीनी कतकी फसल में अगस्त के पहले हफ्ते में करते हैं. कुसुमी जेठवी फसल में फुंकी उतारने के बाद फरवरी के आखिरी हफ्ते या मार्च के पहले हफ्ते में किसी हलके कीटनाशी और फफूंदनाशी का साथ में छिड़काव करना चाहिए.

दुश्मन कीटों की मौजूदगी का अंदाजा हम लाख पपड़ी में छेद, गुंबदनुमा बनावट या खोखली पपडि़यों से लगा सकते हैं. दुश्मन कीटों का पता लगाने के लिए करीब 1 फुट लंबी कीट युक्त टहनी कांच के गिलास में रख कर कपड़े से ढक कर रबर बैंड लगा दें. 2-3 दिनों के बाद इस में यदि छोटेछोटे कीट उड़ते दिखाई दें, तो समझें कि इस में दुश्मन कीटों का हमला हो चुका है.

दीमक की समस्या : जिन पेड़ों पर दीमक की समस्या हो, उन में कांटछांट कर दें और पेड़ों की छाल से दीमक की पपडि़यों को अलग कर के उस में क्लोरोपायरीफास नामक दवा का छिड़काव 20 से 25 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार करें.

दुश्मन कीटों का हमला न होने देना बेहतर : हमारी पूरी कोशिश यह होनी चाहिए कि लाख की फसल में दुश्मन कीटों का प्रकोप न होने पाए. इस के लिए हमें शुरू में ही नाइलान की जाली का इस्तेमाल करना चाहिए.

कटाई और छिलाई : फसल की कटाई 2 प्रकार से की जाती है यानी अपरिपक्व दशा में और परिपक्व दशा में. अपरिपक्व लाख को अरी लाख कहते हैं. इस की कटाई पलाश या बेर के पेड़ पर अप्रैल के आखिरी हफ्ते में करते हैं. ऐसा करने से फसल को ज्यादा गरमी और दुश्मन कीटों से बचाया जा सकता है. परिपक्व फसल की कटाई गरमी के मौसम में पीला धब्बा देख कर करते हैं. शीतकाल में अगहनीकतकी फसल की कटाई शिशु कीट निकलने पर सिकेटियर के जरीए करते हैं. कुल फसल का 80 फीसदी हिस्सा स्क्रैपर की सहायता से छील कर जमा कर लेते हैं. इस के बाद इसे बेच देते हैं. बचे हुए 20 फीसदी हिस्से को बीहन लाख के लिए दूसरे भाग में तैयार पेड़ों पर फैलाते हैं.

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ध्यान रखने वाली बातें

* लाख की खेती शुरू करने के लिए लाख पोशक पेड़ और बीहन लाख जरूर होना चाहिए. इस के अलावा इस की खेती में इस्तेमाल होने वाले यंत्र जैसे सिकेटियर, छोटी व बड़ी दांवली, कुल्हाड़ी, प्लास्टिक की सुतली व नाइलान की जाली वगैरह भी होना चाहिए.

* ठंड के दिनों में कभीकभी कुहासा पड़ता है, तब लाख कीट मीठा रस छोड़ता है, जिस के कारण उस में फफूंद लग जाता है. कुहासा पड़ने पर यह मीठा रस सूखता नहीं और फफूंद का प्रकोप बढ़ जाता है, जो लाख कीट के सांस लेने वाले छेद को बंद कर देता है. नतीजतन, उस की मौत हो जाती है. लिहाजा, इस की रोकथाम के लिए किसी फफूंदीनाशी का छिड़काव जरूर कर देना चाहिए. इस से बचाव के लिए लाख के पेड़ों के नीचे सूखी पत्तियां आदि इकट्ठा कर के जलाएं. ध्यान रखें कि सिर्फ धुआं निकले, आग की लपटें न निकलें. इस से कुहासे का असर काफी कम हो जाता है.

* गरमी में फसल को धूप से बचाने के लिए फरवरीमार्च में लाख लगी टहनी के बगल वाली पुरानी टहनियों को काट देते हैं, जिस से अप्रैलमई में बगल की टहनी पर हरे पत्ते निकलने लगेंगे, जो लाख की फसल पर छतरी जैसा काम करेंगे.

क्या कहते हैं माहिर

लाख की खेती में छिपी संभावनाओं के बारे में  इलाहाबाद स्थित बायोवेद कृषि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान शोध संस्थान के निदेशक डा. बीके द्विवेदी कहते हैं, ‘लाख की खेती से ग्रामीण क्षेत्रों में जहां एक ओर आत्मनिर्भरता बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर लाख के कुटीर उद्योगों की संभावनाएं पैदा हुई हैं. इस से इन क्षेत्रों में रहने वाले बेरोजगार लोगों को घर बैठे रोजगार के साधन मुहैया होंगे. लाख के तमाम इस्तेमाल हैं, इस की कोटिंग यदि किसी वस्तु पर कर देते हैं, तो उस पर दीमक आदि का हमला नहीं होता है. लाख से रोजाना इस्तेमाल के तमाम घरेलू सामान भी बनाए जा सकते हैं, जो देखने में अच्छे होने के साथसाथ टिकाऊ भी होते हैं.

पान (Betel Leaf) की वैज्ञानिक खेती

हमारे प्रमुख कृषि  उद्योगों में पान की खेती का खासा महत्त्व है. कुछ इलाकों में इस का उतना ही महत्त्व है, जितना कि दूसरी खाद्य या नकदी फसलों का है. भारत में पान की खेती अलगअलग क्षेत्रों में कई तरीके से की जाती है, जैसे दक्षिण और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में जहां बारिश ज्यादा होती है और नमी ज्यादा रहती है, वहां पान की खेती कुदरती रूप से की जाती है.

उत्तर भारत में जहां भीषण गरमी और कड़ाके की सर्दी पड़ती है, वहां पान की खेती संरक्षित खेती के तौर पर की जाती है. पान की खेती के लिए अच्छी जलवायु बेहद महत्त्वपूर्ण है. पान की खेती मुंबई का बसीन क्षेत्र, असम, मेघालय, त्रिपुरा के पहाड़ी क्षेत्र, केरल के तटवर्ती इलाकों के साथसाथ उत्तर भारत के गरम व शुष्क इलाकों, कम बारिश वाले कडप्पा, चित्तुर, अनंतपुर, पुणे, सतारा, अहमदनगर उत्तर प्रदेश के बांदा, ललितपुर, महोबा व छतरपुर (मध्य प्रदेश) आदि इलाकों में सफलतापूर्वक की जाती है.

किसानों और व्यापारियों के मुताबिक भारत में पान की 100 से ज्यादा किस्में पाई जाती हैं. इस की किस्मों में बढ़ोतरी इसलिए हुई है, क्योंकि एक ही किस्म को भिन्नभिन्न इलाकों में अलगअलग नामों से जाना जाता है.

उत्तर प्रदेश का पान की पैदावार में खास स्थान है, जिस में महोबा का पान की खेती में पहला स्थान है. महोबा में पान की खेती की शुरुआत 9वीं शताब्दी में चंदेल शासकों ने की थी. पहले यहां तकरीबन 500-600 एकड़ क्षेत्रफल में पान की खेती होती थी, लेकिन गुटखा खाने के बढ़ते प्रचलन, सिंचाई की समस्या, कच्चे माल की कमी और घटती मांग के कारण मौजूदा समय में इस का क्षेत्रफल सिमट गया है. महोबा पान की अच्छी मंडी है. चित्रकूट धाम मंडल में महोबा व बांदा और झांसी मंडल में ललितपुर पान की खेती के लिए जाने जाते हैं.

पान की खेती पर शोध और किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए महोबा में 1980-81 में पान प्रयोग और प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई.

पान बरेजे (पान की बाड़ी) की तैयारी और पान की खेती

जलवायु : पान एक ऊष्ण कटिबंधीय पौधा है. इस की बढ़वार नम, ठंडे व छायादार वातावरण में अच्छी होती है.

बरेजे के लिए सही जमीन : भारत में पान की बेल हर तरह की जमीन में उगाई जाती है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए लाल मिट्टी मिली पडुवा मिट्टी बढि़या रहती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि जिस इलाके में पान की खेती करनी हो, वहां कम से कम 15 सेंटीमीटर मोटी परत वाली तालाब की काली मिट्टी डालनी चाहिए. जिस जमीन पर बरेजा बनाया जाए उस का ढाल सही होना चाहिए ताकि बरसात का पानी आसानी से निकल सके. यदि पानी का भराव या रुकाव होगा तो बरेजे में रोग लगने का खतरा रहता है.

जमीन की तैयारी : बरेजा बनाने से पहले खेत की पहली जुताई मईजून में किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, ताकि तेज धूप में मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीड़ेमकोड़े व खरपतवार खत्म हो जाएं. इस के बाद अगस्त में देशी हल से जुताई कर के खेत खुला छोड़ दें. बरेजा बनाने से 25 दिनों पहले फावड़े से गुड़ाई कर के देशी हल से आखिरी जुताई द्वारा मिट्टी भुरभुरी करनी चाहिए.

जमीन की सफाई : बरेजा बनने के बाद उस के भीतर से कूड़ाकरकट अच्छी तरह साफ करना चाहिए. कुदाल से गहरी गुड़ाई कर के वहां थोड़ी कलई यानी चूना डस्ट बुरक दें और अच्छी तराई करें. कुदाल से दोबारा मिट्टी ऊपर उठाएं और मिट्टी में से कूड़ाकरकट निकालें. तैयारी के बाद 0.25 फीसदी बोर्डों मिश्रण डालें. इस के साथ ही 30-40 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरडी पाउडर ठीक से मिला कर छायादार स्थान पर रखें, इस में नमी बनाएं रखें, 1 हफ्ते बाद जैविक खाद तैयार हो जाएगी. इस को आखिरी जुताई के बाद पान बेल की बोआई से पहले खेत में मिला दें. ऐसा करने से जमीन में पैदा होने वाले रोगों से बचाव हो जाता है और जमीन अच्छी तरह से साफ हो जाती है.

पान की मुख्य किस्में : वैज्ञानिकों के मुताबिक पान की खास किस्में हैं, बनारसी, सौंफिया, बंगला, देशावरी, कपूरी, मीठा व सांची आदि. पान में नरमादा पौधे अलगअलग होते हैं, लेकिन देश में नर पौधों को ही उगाया जाता है. मादा पौधे कुछ समय पहले पश्चिम बंगाल के वोनगांव इलाके से प्राप्त हुए हैं. फूलों के न होने से इस में प्रजनन से नई किस्में विकसित करने में काफी रुकावट है. देश में मुख्य रूप से पान की देशी, देशावरी, कलकतिया, कपूरी, बांग्ला, सौंफिया, रामटेक, मघई व बनारसी आदि प्रजातियों का इस्तेमाल किया जाता है.

बोआई के लिए बेल का चुनाव : पान के बरेजे में बेल का भी काफी महत्त्व है. इस के लिए गांठ की कतरन बनाई जाती है. पान की सालभर पुरानी बेल की कतरन ही चुननी चाहिए. किनारे से 2-3 पान छोड़ कर नीचे जमीन से 90 सेंटीमीटर ऊपर यानी बीचोंबीच से ही कतरन बनानी चाहिए. इन कटिंग्स की अंकुरण कूवत भी ज्यादा होती है. बेल करे ब्लेड या पनकटे से ही काटें. बेल की कतरन को 200 के बंडल बना कर इकट्ठा करें. पान की बेल रोगी पान बरेजे से कभी न लें. इस से आगामी फसल में रोग का खतरा रहता है.

बेल की सफाई : बोने से 1 दिन पहले बेल को 0.25 फीसदी बोर्डों मिश्रण या ब्लाइटाक्स या 500 पीपीएम के घोल में 15-20 मिनट तक डुबोएं.

पान की बेल की रोपाई : पान की रोपाई सुबह 11 बजे तक और शाम को 3 बजे के बाद करनी चाहिए. 1 गांठ और 1 पत्ती वाली बेल एक जगह पर 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी पर 4-5 सेंटीमीटर गहराई में लगा कर अच्छी तरह दबा दें. कूड़ों की आपसी दूरी 50 से 55 सेंटीमीटर रखते हैं, जिस से निराईगुड़ाई व सिंचाई आदि काम आसानी से हो सकें. पान की बेलों की 2 लाइनों की बोआई उलटी दिशा में करते हैं ताकि सिंचाई आसानी से की जा सके.

सिंचाई : पान की खेती में सिंचाई का खास महत्त्व है. बोआई के एकदम बाद ओहर यानी मल्चिंग डाल कर हजारा, लुटिया या स्प्रिंकलर से हलकी सिंचाई करनी चाहिए. मौसम के मुताबिक 3-4 दिनों में ढाई घंटे के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए. बरसात में सिंचाई की कोई खास जरूरत नहीं होती है, फिर भी जरूरी हो तो हलकी सिंचाई करें. सर्दी के मौसम में 7-8 दिनों बाद सिंचाई करनी चाहिए.

पान की बेल बांधना : पान की बेलों को सहारा देने के लिए बांस की पतली फट्टी का इस्तेमाल करते हैं. पौधे 15 सेंटीमीटर के हो जाएं तो उन्हें रस्सी से बांधें. इस से पान की पैदावार में बढ़ोतरी होती है.

निराईगुड़ाई : जब भी खरपतवार दिखाई दे, निराईगुड़ाई करते रहें.

खाद और उर्वरक : जैविक खाद के तौर पर पान की खेती के लिए नीम, सरसों व तिल आदि की खली का इस्तेमाल करते हैं. इस के अलावा जौ, उड़द, दूध, दही व मट्ठे का भी इस्तेमाल करते हैं. तिल की खली 50-60 क्विंटल और नीम की खली 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. नाइट्रोजन 150 किलोग्राम, फास्फोरस 100 किलोग्राम और पोटाश 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

पान (Betel Leaf)

कीड़े व उन की रोकथाम

सफेद मक्खी : यह बरसात में पत्तियों की निचली सतह पर पाई जाती है और इन्हीं सतहों पर अपने अंडों का कवच बना लेती है, जिस से पत्तियां काफी प्रभावित होती हैं. यह मक्खी पत्तियों का रस चूसती है, जिस से बेल की बढ़ोतरी रुक जाती है.

इस की रोकथाम के लिए 0.5 फीसदी डायमेथोएट और 5 फीसदी नीम औयल तेल का छिड़काव इस के प्रभाव के तुरंत बाद करना अच्छा रहता है. 0.5 मिलीलीटर डायमेथोएट या 5 मिलीलीटर नीम के तेल का प्रति लीटर की दर से स्वस्थ फसल में 2 महीने में एक बार छिड़काव करना चाहिए.

सूक्ष्म लाल मकड़ी : इस का प्रभाव पत्तियों की निचली सतह पर होता है, जिस की वजह से पत्तियों का रंग नीचे से लाल धब्बे की तरह दिखाई देता है. कीटों के ज्यादा प्रभाव से पान का रंग लाल हो जाता है. इस की रोकथाम के लिए 30-40 ग्राम सल्फेक्स दवा 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

शल्क कीट : इस का प्रभाव पान की पत्तियों व डंठलों पर होता है. मादा कीट का पिछला सिरा थोड़ा सा चौड़ा होता है. इन की मात्रा ज्यादा होने पर पत्ते सिकुड़ जाते हैं.

इन कीटों की रोकथाम के लिए 0.5 फीसदी डायमेथोएट का छिड़काव 15 दिनों पर करना चाहिए.

पान के खास रोग

पदगलन यानी फुट राट : यह रोग बीज और जमीन में फफूंद लगने से होता है. यह जमीन की सतह पर बेलों के तनों को प्रभावित करता है, जिस से बेल सड़नी शुरू हो जाती है और मुरझा कर खत्म हो जाती है. पत्तियां भी हलके पीले रंग की हो कर गिरने लगती हैं. यह रोग सर्दियों में ज्यादा असर करता है. इस की रोकथाम के लिए पानी का निकास बहुत अच्छा होना चाहिए. जमीन पर गिरी पान की बेलों को जमीन से हटा देना चाहिए. इस रोग से बचने के लिए 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर 30-40 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में मिला कर 1 हफ्ते बाद जमीन की तैयारी करते वक्त खेत में मिलाना चाहिए.

पान की सूखी जड़ सड़न रोग : इस की वजह राइजोप्टोनिया नामक फफूंद है. यह जमीन से पैदा होने वाला रोग है. यदि जमीन को स्वस्थ और साफसुथरा रखा जाए तो इस रोग का खतरा बहुत कम होता है. इस रोग से बचाव के लिए खड़ी फसल में कार्बेंडाजिम 0.3 फीसदी या मैंकोजेब 0.2 फीसदी का महीने में 1 बार छिड़काव करें.

पत्ती का धब्बेदार और तने का एंथ्रेक्नोज रोग : यह रोग कोलेरोट्राइकेन केपसीसी नामक फफूंद से होता है. पत्तियों पर इस से धंसे हुए अनियमित टेढ़ेमेढे़ गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं. पत्तियों के किनारे से ही इस रोग की शुरुआत होती है और आखिर में पत्ती का ज्यादातर हिस्सा काला पड़ने लगता है. यह रोग बरसात में ज्यादा होता है. इस की रोकथाम के लिए मैंकोजेब 0.3 फीसदी का छिड़काव बरसात में 10-15 दिनों पर करना चाहिए.

तना कैंसर : लंबाई में यह भूरे रंग के धब्बे के रूप में तने पर दिखाई देता है. इस के प्रभाव से तना फट जाता है. इस की रोकथाम के लिए 150 ग्राम प्लांटो बाइसिन व 150 ग्राम कापर सल्फेट का घोल 600 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

जड़ों में गांठें बनना : यह रोग मलोयडोगायनी नामक सूत्रकृमि द्वारा फैलता है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में इस का प्रभाव ज्यादा देखा गया है. इस रोग से बेलें कम बढ़ती हैं और धीरेधीरे पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं. बेलों के सिरे मुरझा जाते हैं. ऐसी बेलों पर छोटीछोटी गांठें बनती हैं, जिस वजह से पौधों को पोषक तत्त्व कम मिलते हैं और पौधे छोटे ही रह जाते हैं. इस की रोकथाम के लिए नीम की खली की 15-20 किलोग्राम मात्रा प्रति 100 मीटर की दर से 1 साल तक इस्तेमाल करें.

Farming: जंगल जलेबी: एक खास पेड़

जगल जलेबी (Jungle Jalebi) या गोरस इमली मध्यम आकार का तेजी से बढ़ने वाला और हमेशा हरा रहने वाला कांटेदार पेड़ है. इसे वैज्ञानिक भाषा में पीथेसेलोवीयम ड्यूक्स या पिथेसेलोवियम डलसी या मायमोसा ड्यूल्सीस भी कहते हैं. इस के अंगरेजी नाम मद्रास थोर्न व मनीला हेमेरिंड हैं.

यह करीब 18-20 मीटर तक ऊंचा होता है. इस की छाया में घास नहीं उग पाती है. इस की छाल सलेटी रंग की होती है, जिस पर भूरी या पीली आड़ी धारियां होती हैं. इस की पत्ती के अंत में एक जोड़े कांटे होते हैं. ये पेड़ मैक्सिको व मध्य अमेरिका में कुदरती रूप से पाए जाते हैं.

भारत में जंगल जलेबी के पेड़ गुजरात, राजस्थान, पंजाब व हरियाणा के अलावा दक्षिण भारत में भी लगाए गए हैं. ये हर किस्म की जमीन में उग सकते हैं. हलकी चूने वाली रेतीली जमीन, बंजर जमीन और समुद्र तट के खारे पानी वाली जमीन में भी ये उग सकते हैं. जंगल जलेबी के पेड़ 450 से 1650 मिलीमीटर बारिश वाले क्षेत्रों में आसानी से उग सकते हैं. ये पेड़ सूखा या गरमी सहन कर सकते हैं, पर पाले के प्रति संवेदनशील होते हैं.

जंगल जलेबी के पेड़ पर जनवरीफरवरी में सफेद फूल आते हैं. इस के फल मार्च से मई के बीच में लगते हैं. इस की फली अर्द्धचंद्राकार और बीजों के बीच में सिकुड़ी हुई होती है. हर फली में 6 से 10 बीज होते हैं. बीजों को 2-3 दिन धूप में सुखा कर और किसी कीटनाशक में मिला कर रखने से उन्हें 6 महीने तक रखा जा सकता है.

खेती का तरीका : जंगल जलेबी को बीजों द्वारा उगाया जा सकता है. इस में ठूंठ से दोबारा पनपने की कूवत भी होती है. इस के पेड़ को काटने पर ठूंठ से नई शाखाएं निकलती हैं. इस के बीजों को किसी तरह के उपचार की जरूरत नहीं होती है. बोआई के 2-3 दिनों बाद बीज उग जाते हैं. बारिश के मौसम में पौधों को 3 मीटर × 2 मीटर के अंतर पर रोपा जाता है. 1 हेक्टेयर में 1666 पौधे लगाए जा सकते हैं.

इस्तेमाल : इस पेड़ को ऊसर जमीन के सुधार के लिए लगाया जाता है. इस के अलावा इसे खेत की मेंड़ पर बाड़ के लिए और हवा की गति रोकने वाले पेड़ के रूप में भी लगाया जाता है.

Jungle Jalebi

इस की जड़ें हवा की नाइट्रोजन को योगीकरण द्वारा नाइट्रोजन के यौगिक नाइट्रेट में बदल देती हैं. इस की लकड़ी साधारण इमारती काम और खंभे बनाने के काम में इस्तेमाल की जाती है. इस की लकड़ी जलाने पर बहुत धुंआ देती है, लिहाजा ईंटों को पकाने के काम में इस्तेमाल की जाती है.

जंगल जलेबी की पत्तियां चारे के काम में आती हैं. इस में 29 फीसदी प्रोटीन होता है. इस की टहनियां भी जानवरों को खिलाई जा सकती हैं. इस की फलियों को मीठे गूदे के कारण बच्चे चाव से खाते हैं. इस की फलियां पशुओं को भी खिलाई जाती हैं. इस के बीजों में 17 फीसदी तेल होता है, जिसे शुद्ध करने के बाद खाने के काम में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे साबुन बनाने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस की खली का इस्तेमाल पशुओं को खिलाने में किया जाता है.

कुल मिला कर जंगल जलेबी का पेड़ कई तरह के कामों में इस्तेमाल किया जाता है, लिहाजा इस की खेती कर के किसान काफी कमाई कर सकते हैं.

Farming Challenges: खेती की मौजूदा चुनौतयों के हल

आज युवा खेतीकिसानी से दूर भाग रहे हैं. कुछ तो शहरों की चमकदमक ने उन्हें अपनी तरफ खींचा है और दूसरा वे कड़ी मेहनत नहीं करना चाहते. यही नहीं हकीकत यह भी है कि खेतीकिसानी में किसान जितना पैसा लगाता है, कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण उपज खराब होने से उस की लागत तक नहीं निकल पाती या फिर बंपर पैदावार होने से दाम इतने कम मिलते हैं कि उस का परता ही नहीं खाता.

सरकार की योजनाएं भी किसानों तक नहीं पहुंच पातीं. न तो वह उपज को समय पर सही समर्थन मूल्य दे कर किसानों से खरीदती है और न ही किसानों को अनाज के सही भंडारण की सुविधा मुहैया कराती है. ऐसे में बिचौलिए औनेपौने दाम में उपज खरीद कर उसे मनमाने दामों पर मंडी में बेचते हैं. यह किसान के साथ छलावा है. इन्हीं सब कारणों से युवावर्ग खेती की तरफ रुख नहीं कर रहा है. ऐसे में हमें समस्याओं का हल ढूंढ़ना होगा.

 युवावर्ग का खेती से दूर भागना

हल : युवावर्ग में खेती के प्रति दिलचस्पी पैदा करने के लिए सरकार को सही लाभ की व्यवस्था करनी होगी, साथ ही सरकार को अनाज का समर्थन मूल्य पैदावार की लागत के हिसाब से तय करना चाहिए और उपज बिक्री का सही इंतजाम करना होगा. साथ ही क्षेत्र विशेष की स्थानीय जरूरतों के मुताबिक बिक्री की व्यवस्था करनी होगी और आधुनिक छोटेछोटे कृषि यंत्र स्थानीय स्तर पर उन्हें मुहैया कराने होंगे.

उपज का सही मूल्य न मिलना

हल : देश की आबादी की जरूरत के मुताबिक यह जानना जरूरी है कि देश को किसकिस अनाज की कितनी जरूरत है. देश में जरूरी अनाज कितनी मात्रा में मौजूद हैं और जरूरत के मुताबिक हमें कितनी और पैदावार चाहिए. साथ ही पैदा किए गए अनाज को क्षेत्रीय जरूरत के हिसाब से स्थानीय मंडियों में मुहैया कराने की जरूरत है, जमाखोरों पर सख्ती से लगाम लगाई जाए, तभी ग्राहकों और कारोबारियों के हितों की सुरक्षा की जा सकती है, क्योंकि कारोबारी और ग्राहक हमेशा मुश्किलों का सामना करते हैं और दलाल लाभ कमाते हैं. कारोबारियों को लागत के अनुसार सही कीमत न मिलने की शिकायत हमेशा रहती है.

इस के लिए सरकार को उपज का समर्थन मूल्य लागत को ध्यान में रखते हुए फसल बोआई से पहले तय करना चाहिए. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उपज बाजार में आने के बाद समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत पर न बिके. ऐसा करने से किसानों को यह फैसला लेने में आसानी होगी कि उन्हें कौन सी फसल बोनी है और उस से उन्हें कितना लाभ मिल सकता है.

आज देश की गंभीर समस्या यह है कि किसान फसलों की पैदावार तो करते हैं, लेकिन उस का उन्हें सही मूल्य न मिलने से काफी दिक्कत होती है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद में किसान अच्छे तरीके अपना कर 1,500 से 2,000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गन्ना सफलतापूर्वक उगा रहे हैं और लाभहानि का भी पहले ही अनुमान लगा लेते हैं.

आज के दौर में प्रति किसान कृषि भूमि घटने से हर किसान को खेती के लिए साधन जैसे ट्रैक्टर, ट्राली, हैरो, रोटावेटर, स्प्रेयर वगैरह की जरूरत पड़ती है, जिन से पहले उन का परिवार बड़ी जोत पर खेती करता था. लेकिन इस का बुरा नतीजा यह निकला कि अब हर किसान की अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा ताउम्र इन साधनों को जुटाने में लग जाता है, साथ ही इन साधनों का सही इस्तेमाल भी नहीं होता और किसानों की हालत जस की तस बनी रहती है.

हल : लगातार छोटी होती जोत के हल के लिए कांट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है या सस्ते दामों पर किराए पर खेती के यंत्रों को मुहैया कराने के लिए कस्टम हायरिंग सेंटर किसानों की संख्या के हिसाब से बनाए जाएं.

मिट्टी में जीवाश्म और पोषक तत्त्वों का स्तर लगातार गिरना और हानिकारक कीड़े व बीमारियों का हमला बढ़ना.

हल : मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए कार्बनिक खादों जैसे गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, वर्मी कंपोस्ट व हरी खाद वगैरह के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए. खेत में हल चला कर कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ दें, ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई और सही फसलचक्र को बढ़ावा देना चाहिए.

खेती में रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से किसान की सेहत पर असर पड़ता है.

हल : रसायनों का इस्तेमाल कम करने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए. किसानों को अपने फार्म पर ही जैविक खेती के लिए अच्छी ट्रेनिंग दी जाए.

पैदावार लागत बढ़ना और शुद्ध मुनाफा घटना.

हल : खेती में पैदावार लागत कम करने और मुनाफा बढ़ाने के लिए बाजार पर निर्भरता कम की जाए, खेती निवेशों का सही इस्तेमाल किया जाए और जैविक उपज फार्म पर ही तैयार करने का सही इंतजाम किया जाए.

सभी फसलों में बीज की बेकार व्यवस्था.

हल : किसानों को अपनी जरूरत के मुताबिक बीजों का सही इंजजाम करना चाहिए, क्योंकि सही इंतजाम के अभाव में पैदावार लागत बढ़ती है.

बीमारियों, कीटों और खरपतवारों की रोकथाम की जानकारी की कमी.

हल : रसायनों के इस्तेमाल का तरीका, इस्तेमाल का समय, रसायन की मात्रा और जरूरत के मुताबिक सही रसायन के चयन के बारे में किसानों को ट्रेनिंग देने की जरूरत है, क्योंकि इन के ज्यादा अैर गलत इस्तेमाल से पैदावार लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, आमतौर पर किसानों की निर्भरता विक्रेताओं पर रहती है.

लगातार जमीनी जल का स्तर  गिरना.

हल : ड्रिप, बौछारी और रेनगन सिंचाई पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाए.

करें मशरूम (Mushroom) के स्पान का कारोबार

मशरूम का बीज यानी स्पान फफूंद का एक जाल होता है, जो अपने आधार यानी भूसे वगैरह पर उगता है और मशरूम पैदा करने के लिए तैयार किया जाता है. बोलचाल की भाषा में यह एक ऐसा माध्यम है जो कि मशरूम कवक जाल से घिरा होता है और मशरूम उत्पादन के लिए बीज का काम करता है.

वैसे तो मशरूम की पौध नहीं होती है, फिर भी इस की फसल तैयार करने या कह सकते हैं कि बीज तैयार करने की कई तकनीकें हैं यानी स्पान उत्पादन कई तरह से किया जा सकता है.

एक बीजाणु तकनीक

एक बीजाणु से बीज तैयार करने के लिए ये काम किए जाते हैं:

अच्छे बंद मशरूम का चुनाव करना, साफ रुई से धूल हटाना, 70 फीसदी अल्कोहल से इसे साफ करना और मशरूम के तने के निचले हिस्से को तेज धारदार चाकू से काटना.

उपचारित पेट्रीप्लेट में तार की मदद से तैयार किए गए स्टैंड पर मशरूम खड़ी अवस्था में रख देते हैं. इसे एक गोल मुंह वाले बीकर से ढक दिया जाता है.

इस मशरूम वाली पेट्रीप्लेट को 30 मिनट तक सामान्य तापमान पर रखने के बाद, लेमिनारफलो चैंबर के अंदर रख कर पेट्रीप्लेट से मशरूम फलकायन (स्टैंड सहित) व बीकर को हटाया जाता है. पेट्रीप्लेट को दोबारा दूसरी पेट्रीप्लेट से ढक दिया जाता है.

इस से इकट्ठा बीजाणुओं की संख्या को धीरेधीरे कम किया जाता है जब तक बीजाणुओं की गिनती 10 से 20 फीसदी मिलीलीटर तक नहीं पहुंच जाती है. इस के बाद इसे पिघले हुए सादे माध्यम के साथ पेट्रीप्लेट में उड़ेला जाता है.

पेट्रीप्लेटों को 3-4 दिनों तक बीओडी इनक्यूबेटर में तकरीबन 32 डिगरी सैल्सियस तापमान पर गरम किया जाता है. एकल बीजाणु का चयन बीजाणुओं की बढ़वार को सूक्ष्मदर्शी द्वारा देख कर किया जाता है.

एकल बीजाणु संवर्धन का चयन कर के इसे माल्ट एक्सट्रेक्ट यानी एमईए माध्यम पर फैलाया जाता है और 7 से 10 दिनों तक बीओडी इनक्यूबेटर में गरम किया जाता है.

बहुबीजाणु तकनीक

इस तकनीक में स्पोर प्रिंट से स्पोर उठाने के लिए निवेशन छड़ का छल्ला इस्तेमाल किया जाता है.

छल्ला, जिस में हजारों की तादाद में बीजाणु होते हैं, को पेट्रीप्लेट, जिस में माल्ट एक्सट्रेक्ट या कोई दूसरा कवक माध्यम होता है, के ऊपरी धरातल पर स्पर्श करा दिया जाता है. इन पेट्रीप्लेटों को 4-5 दिनों के लिए बीओडी इनक्यूबेटर में 32 डिगरी सैल्सियस तापमान पर गरम किया जाता है.

फफूंद बढ़ाने की तकनीक

फफूंद उगाने वाली जगह और हाथों को कीटाणुनाशक से और बंद मशरूम को 70 फीसदी एल्कोहल से साफ करना चाहिए.

उपचारित की हुई अंडाकार मशरूम को तेजधार और उपचारित चाकू से 2 बराबर भागों में काट दिया जाता है.

इन कटे टुकड़ों के उस स्थान से, जहां तना व छत्रक एकदूसरे से जुड़े होते हैं, ऊतक के छोटेछोटे टुकड़े निकालते हैं और इन टुकड़ों को माल्ट एक्सट्रेक्ट अगर की प्लेट पर रखा जाता है.

इन प्लेटों को 4-5 दिनों तक 32 डिगरी सेल्सियस तापमान पर बीओडी इनक्यूबेटर या कमरे में सामान्य तापमान पर गरम किया जाता है.

कवक जाल फैले इस माध्यम से छोटेछोटे टुकड़े काट कर इन्हें दूसरे माल्ट एस्सट्रेक्ट अगर पर रख दिया जाता है. इस के बाद इन्हें इनक्यूबेटर में 32 डिगरी सेल्सियस तापमान पर 4-5 दिनों के लिए गरम किया जाता है.

इन तकनीकों को सीधे स्पान माध्यम में इस्तेमाल किया जाता है.

मशरूम (Mushroom)माध्यम तैयार करना

बीज तैयार करने के आधार में बहुत से ऐसे माध्यम हैं, जिन पर मशरूम का बीज बनाया जाता है. ऐसे माध्यमों को तैयार करने की विधियां इस तरह हैं:

पीडीए माध्यम : इसे आलू ग्लूकोज अगर कहते हैं. इस के लिए  200 ग्राम आलुओं को धोने, छीलने व काटने के बाद 1000 मिलीलीटर पानी में खाने लायक नरम होने तक उबाला जाता है.

इसे साफ कपड़े से छान लिया जाता है और इस छने पानी को एक सिलेंडर में इकट्ठा किया जाता है. इस में ताजा उबाला पानी मिला कर 1000 मिलीलीटर तक बना लिया जाता है.

बाद में इस में 20 ग्राम शर्करा और 20 ग्राम अगर मिलाया जाता है और अगर के पूरी तरह से घुल जाने तक उबाला जाता है.

इस माध्यम को 10 मिलीलीटर क्षमता वाली परखनली या ढाई सौ मिलीलीटर क्षमता के फ्लास्क में रख दिया जाता है और पानी न सोखने वाली रुई से उन के मुंह को बंद कर दिया जाता है.

इस के बाद इन्हें 121 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है.

गरम टैस्ट ट्यूब को टेढ़ा रखा जाता है और इन्हें अगले 24 घंटों तक ठंडा होने के लिए रखा जाता है.

माल्ट एक्सटे्रेक्ट अगर माध्यम : जौ का अर्क 35 ग्राम, अगर 20 ग्राम, पेप्टोन 5 ग्राम होना चाहिए.

इन चीजों को 1000 मिलीलीटर गरम पानी में मिलाना चाहिए. अब इसे लगातार एक समान आंच पर रख कर अगर के पूरी तरह घुलने तक हिलाएं.

इस माध्यम को परखनली या फ्लास्कों में डाला जाता है और पानी नहीं सोखने वाली रुई से उन के मुंह को बंद कर दिया जाता है.

अब इन्हें 121 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है.

गरम परखनलियों को तिरछा रखा जाता है या माध्यम को उपचारित पेट्रीप्लेटों में डाल दिया जाता है. अब इन्हें कमरे में सामान्य तापमान पर ठंडा किया जाता है.

स्पान माध्यम

बहुत से पदार्थ अकेले या सभी को मिला कर स्पान माध्यम तैयार किया जाता है. धान का पुआल, ज्वार, गेहूं व राई के दाने, कपास, इस्तेमाल की हुई चाय की पत्तियां वगैरह इस के लिए इस्तेमाल की जाती हैं.

अनाज स्पान : इस में गेहूं, ज्वार, राई का इस्तेमाल किया जाता है. 100 किलोग्राम दानों को सब से पहले 150 लीटर पानी में 20-30 मिनट तब उबाला जाता है. इन उबले हुए दानों को छलनी पर फैला कर 12 से 16 घंटों तक छाया में सुखाया जाता है.

सूखे हुए दानों में 2 किलोग्राम चाक पाउडर व 2 किलोग्राम जिप्सम को अच्छी तरह मिला लें. दानों को ग्लूकोज की बोतलों में दोतिहाई हिस्से तक या फिर 100 गेज मोटे पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों में भर दिया जाता है.

लिफाफों में भी दाने दोतिहाई भाग तक ही भरने चाहिए. अब इन के मुंह को पानी न सोखने वाली रुई के ढक्कन से बंद कर दिया जाता है. ढक्कन न ज्यादा ढीला और न ही ज्यादा कसा हुआ होना चाहिए.

स्पान माध्यम से भरी हुई ग्लूकोज की बोतलों या पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों को 126 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है. अब इन्हें लेमिनार फ्लो में ताजा हवा में ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है.

कवक जाल संवर्धन को निवेशन छड़ की सहायता से इन बोतलों में डाल दिया जाता है. बोतलों को 2 हफ्ते के लिए गरम किया जाता है. अब स्पान इस्तेमाल के लिए तैयार है.

पुआल स्पान : सब से पहले धान के पुआल को 2-4 घंटे तक पानी में भिगोया जाता है, फिर इसे साफ किया जाता है और ढाई से 5 सेंटीमीटर तक लंबे टुकड़ों में काटा जाता है.

इस में चाक पाउडर 2 फीसदी व चावल का चोकर 2 फीसदी की दर से मिलाया जाता है और इसे चौड़े मुंह वाली ग्लूकोज की बोतल या पौलीप्रोपेलीन के 100 गेज मोटाई वाले लिफाफों में भर दिया जाता है. बोतलों व लिफाफों के मुंह को रुई के ढक्कन से बंद कर दिया जाता है.

स्पान माध्यम से भरी बोतल या लिफाफों को 126 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है या 22 पीएसआई दबाव पर 2 घंटे के लिए रखा जाता है.

स्पान माध्यम को ठंडा करने के बाद लेमिनार फ्लो चैंबर में रख कर निवेशन छड़ की सहायता से कवक जाल संवर्धन इन में डाला जाता है.

बोतलों या लिफाफों को 2 हफ्ते के लिए गरम करते हैं.

चायपत्ती का स्पान : इस्तेमाल की हुई चाय की पत्ती को इकट्ठा कर के धोया जाता है, ताकि इस में कोई मलवा वगैरह न रहे. फिर निथारा जाता है. इस में 2 फीसदी की दर से चाक पाउडर मिला दें.

इस के बाद सामग्री को बोतलों या पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों में भरा जाता है. बाकी के काम अनाज स्पान व पुआल स्पान बनाने की तरह ही किए जाते हैं.

इस तरह कपास के कचरे से स्पान माध्यम तैयार किया जाता है.

खादभूसी स्पान : घोड़े की लीद व कमल के बीज का छिलका समान मात्रा में मिलाए जाते हैं. इस मिश्रण को पानी में भिगोया जाता है. खाद की ढेरी 1 मीटर ऊंचाई तक पिरामिड के आकार में बनाई जाती है. फिर इसे 4-5 दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है. ढेरी को तोड़ा जाता है और जरूरत पड़ने पर पानी मिला कर फिर से ढेर बना दें.

मिश्रण को ग्लूकोज की बोतलों या एल्यूमिनियम के हवाबंद डब्बों में भर कर उपचारित किया जाता है.

मिश्रण ठंडा होने के बाद ही इस में मशरूम के कवक जाल को डाला जाता है और खाद को 2 हफ्ते के लिए गरम करते हैं या जब तक कि स्पान तैयार न हो जाए.

मशरूम (Mushroom)

बीज तैयार करते समय बरतें कुछ सावधानियां

*             माध्यम जैसे धान की पुआल या बेकार कपास वगैरह को इतना ज्यादा भी न भिगोएं कि पानी बोतलों या बैगों के तल पर इकट्ठा हो जाए. ऐसे में कवक जाल सही तरह से नहीं फैलेगा.

*             बोतलों या बैगों को इतना कस कर बंद नहीं करना चाहिए कि हवा बाहर न आ सके और भाप अच्छी तरह से अंदर न घुसे.

*             केवल साफ रुई से बने ढक्कनों, डाटों का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

*             ढक्कन या डाट के नीचे स्तर व माध्यम के बीच कम से कम 3-4 सेंटीमीटर खाली जगह होनी चाहिए.

*             मेज व सामग्री को उपचारित करना चाहिए.

*             हाथों को साबुन से साफ करना चाहिए.

*             केवल शुद्ध स्पान का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

*             कवक डालने के बाद बोतलों व बैगों के मुंह को एल्यूमिनियम फाइल से ढकना चाहिए.

स्पान का स्टोरेज

पुआल मशरूम की बढ़वार के लिए ज्यादातर तापमान 30-35 डिगरी सेल्सियस होना चाहिए. अगर तापमान 45 डिगरी सेल्सियस से बढ़ाया जाए या 15 डिगरी सेल्सियस तक घटाया जाए तो कवक जाल में इजाफा नहीं होता है. इस की ज्यादातर प्रजातियां 15 डिगरी तापमान पर जीवित रह सकती हैं.

स्पान माध्यम में वाल्वेरिएला वाल्वेसिया का कवक जाल पूरी तरह फैलने के बाद यह इस्तेमाल के लिए तैयार होता है. अगर इस का इस्तेमाल नहीं करना हो तो इसे इनक्यूबेटर से निकाल लिया जाता है और कम तापमान पर भंडारण किया जाता है ताकि बीज मर न पाए.

15-20 डिगरी सेल्सियस तापमान पर कवक जाल की बढ़वार रुक जाती है और कवक जाल को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. इसे लंबे समय तक भंडारण किया जा सकता है.