पशुचारे के नहीं होगी कमी

गोवा : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने गोवा में सीएलएफएमए औफ इंडिया की दोदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया. सीएलएफएमए औफ इंडिया देश में पशुधन क्षेत्र का सब से बड़ा संगठन है. इस अवसर पर सीएलएफएमए औफ इंडिया के अध्यक्ष सुरेश देवड़ा; पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन मंत्रालय में पशुपालन आयुक्त डा. अभिजीत मित्रा और पशुपालन एवं डेयरी विभाग के पूर्व संयुक्त सचिव ओपी चौधरी भी उपस्थित थे.

अपने संबोधन में राजीव रंजन ने पशुपालन में घरेलू समाधानों को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण प्रयासों के बारे में बताया. उन्होंने असंगठित डेयरी क्षेत्र को संगठित करने और चारे की कमी को दूर करने के उद्देश्य से जारी कई योजनाओं का भी उल्लेख किया. सीएलएफएमए की पहल की प्रशंसा करते हुए उन्होंने उम्मीद जताई कि इस तरह की चर्चाओं से सरकार को नीति बनाने में मदद मिलेगी.

सुरेश देवड़ा ने भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन क्षेत्र के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह किसानों और पशुपालन से जुड़े लोगों को रोजगार प्रदान करता है. इस उद्योग का सालाना कारोबार 12 लाख करोड़ रुपए है. उन्होंने कहा कि अंडे, मांस, दूध और पनीर जैसे उच्च गुणवत्ता वाले पशुधन उत्पादों की दुनियाभर में मांग लगातार बढ़ रही है.

डा. अभिजीत मित्रा ने भारत के पशुधन क्षेत्र को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार, उद्योग और अनुसंधान संस्थानों के बीच बेहतर तालमेल बनाने और सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया. कार्यक्रम में सीएलएफएमए औफ इंडिया ने ओपी चौधरी को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया.

लाख का बढ़ेगा उत्पादन

रांची : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के रांची में आईसीएआर-राष्ट्रीय उच्चतर कृषि संस्थान (एनआईएसए) के शताब्दी समारोह में भाग लिया. इस अवसर पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि खेती को लाभप्रद बनाने के अलावा 21वीं सदी में कृषि के समक्ष 3 अन्य बड़ी चुनौतियां हैं. खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, संसाधनों का सतत उपयोग और जलवायु परिवर्तन.

उन्होंने आगे कहा कि द्वितीयक कृषि से जुड़ी गतिविधियां इन चुनौतियों से निबटने में सहायक हो सकती हैं. द्वितीयक कृषि में प्राथमिक कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन के साथसाथ मधुमक्खीपालन, मुरगीपालन, कृषि पर्यटन आदि जैसी कृषि से जुड़ी अन्य गतिविधियां शामिल हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि द्वितीयक कृषि गतिविधियों के माध्यम से कृषि अपशिष्ट का समुचित उपयोग किया जा सकता है. उन्हें प्रसंस्कृत यानी प्रोसैस्ड कर के उपयोगी और मूल्यवान चीजें बनाई जा सकती हैं. इस तरह पर्यावरण की रक्षा होगी और किसानों की आय भी बढ़ेगी.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भारत में लाख का उत्पादन मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाता है. यह उन की आय का एक मुख्य स्रोत है. उन्हें यह जान कर खुशी हुई कि राष्ट्रीय उच्चतर कृषि संस्थान ने लाख, प्राकृतिक रेजिन और गोंद के अनुसंधान और विकास के साथसाथ वाणिज्यिक विकास के लिए कई कदम उठाए हैं. इस में एक छोटी लाख प्रसंस्करण इकाई और एक एकीकृत लाख प्रसंस्करण इकाई का विकास, लाख आधारित प्राकृतिक पेंट, वार्निश और कास्मैटिक उत्पादों का विकास, फलों, सब्जियों और मसालों की शेल्फलाइफ बढ़ाने के लिए लाख आधारित कोटिंग का विकास शामिल है.

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि ये सभी कदम आदिवासी भाईबहनों के जीवनस्तर को बेहतर बनाने में मदद करेंगे. एनआईएसए ने लाख की खेती में अच्छा काम किया है. लेकिन, अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिन में हम और आगे बढ़ सकते हैं. जैसे, फार्मास्यूटिकल्स और कास्मैटिक्स उद्योगों में उच्च गुणवत्ता वाली लाख की मांग है. अगर भारतीय लाख की गुणवत्ता, आपूर्ति श्रंखला और विपणन में सुधार किया जाए, तो हमारे किसान देशविदेश में इस की आपूर्ति कर सकेंगे और उन्हें बेहतर मूल्य मिलेगा.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रांची में आयोजित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय कृषि उच्चतर प्रसंस्करण संस्थान के शताब्दी समारोह के कार्यक्रम में भाग लिया. उन्होंने कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा कि आज हम सब के बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मौजूद हैं, जिन का झारखंड से विशेष लगाव रहा है. जब वे राज्यपाल थीं, तब भी जनता के कल्याण के लिए बहुत काम करती रही हैं. लाख यानी लाह का इतिहास भारत के बराबर ही पुराना है. महाभारत में लाक्षगृह का जिक्र है. वह भी लाख से ही बना था. तब से ले कर आज तक लाख की खेती होती आ रही है.

उन्होंने कहा कि आज के समय में लाख का बहुत महत्व है. प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य किसानों की आय को दोगुना करना है. किसानों की आमदनी बढ़े, उस के लिए खेतों में उत्पादन बढ़ाना, उत्पादन की लागत घटाना, उत्पादन के ठीक दाम देना, नुकसान की भरपाई करना, खेती का विविधीकरण करना लक्ष्य है. हमें परंपरागत खेती के साथसाथ दूसरी खेती की तरफ भी बढ़ना पड़ेगा. कृषि वानिकी यानी पेड़ों से होने वाली आमदनी की तरफ भी प्रधानमंत्री मोदी ने ध्यान दिलाया है.

उन्होंने कहा कि इन सब पहलुओं पर भी अगर हम सोचें तो लाख की खेती बहुत महत्वपूर्ण है. हम 400 करोड़ रुपए की लाख का निर्यात करते हैं. इस खेती से कई तो ऐसे जुड़े हैं, जो एक लाख रुपए से ज्यादा कमा रहे हैं. अलगअलग समूह भी बनाए गए हैं, उन में से कई समूहों की आमदनी 25 से 30 लाख रुपए तक है.

उन्होंने यह भी कहा कि लाख की खेती में अपार संभावनाएं हैं, इसलिए लाख हमारी आय बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है और यह प्लास्टिक का भी विकल्प है.

Lakh productionकार्यक्रम में शामिल हुई महिलाओं का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि महिला सशक्तीकरण की शक्ति हमारी बहनें भी बड़ी आसानी से लाख की खेती कर सकती हैं. महिलाओं को ‘लखपति दीदी’ बनाना है यानी हर महिला की आमदनी कम से कम एक लाख रुपए सालाना हो जाए, हमें इस का इंतजाम करना है. इस के लिए ‘लखपति दीदी योजना’ बनाई गई है. ‘लखपति दीदी योजाना’ का विभाग उन के पास ही है. लाख के माध्यम से भी ‘लखपति दीदीयां’ बनाई जा सकती हैं. आप की आमदनी 1 लाख रुपए से ज्यादा बढ़ाने में हम कोई कमी नहीं छोड़ेंगे. कृषि विभाग व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद लाख की कैसे प्रोसैसिंग हो, पैदावार बढ़े और प्रोसैसिंग के बाद ठीक दाम मिले आदि पर काम कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू के आने से यहां लाख की खेती आगे बढ़े और लाह यानी लाख उत्पादक किसान, गरीबों की समस्या का समाधान हो. ग़रीब, आदिवासी, पिछड़े इस खेती के काम में लगे हैं इसलिए लाख का उत्पादन कम से कम दोगुना हो जाए, इन्हें और प्रोत्साहन मिले, उन की आय बढ़ जाए.

उन्होंने यह भी कहा कि लाख उत्पादन वन विभाग में आता है, इसलिए कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ लाख उत्पादन करने वाले किसानों को नहीं मिलता है. वे कोशिश करेंगे कि लाख को कृषि उत्पाद के रूप में पूरे देश में मान्यता मिले.

उन्होंने कहा कि भारत सरकार इस बात पर ध्यान देगी कि लाख की क्लस्टर आधारित प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना में मदद करें, ताकि प्रोसैसिंग का काम आसान हो जाए और किसानों को भी प्रोसैसिंग के बाद ठीक दाम मिल जाए.

उन्होंने आगे कहा कि जनजातीय कार्य मंत्रालय के साथ मिल कर इस का प्रयत्न करेंगे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी तय की जाए. जितनी लागत आती है, उतना कम से कम 50 फीसदी फायदा जोड़ कर ही लाख की लागत तय हो, ताकि किसानों को ज़्यादा पैसा मिल सके.

उन्होंने कहा कि यहां अभी 1,500 किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इस साल से यहां 1,500 नहीं, बल्कि 5,000 किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि प्रशिक्षण प्राप्त कर किसान ज्यादा लाभ कमा सकें. उन्होंने कहा कि वे आश्वस्त करते हैं कि रांची को कृषि शिक्षा, अनुसंधान शोध में देश का प्रमुख केंद्र बनाया जाएगा.

कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने अपने संबोधन में कहा कि पहले ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान’ का नारा लगा था, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जय अनुसंधान’ का नारा लगा कर देश को विकसित राष्ट्र बनाने का जो सपना संजोया था, वह आज परिलक्षित होता दिख रहा है. इस देश का अन्नदाता 145 करोड़ जनता का ही पेट नहीं भरता है, बल्कि हर क्षेत्र में इस देश का अन्नदाता रातदिन मेहनत करता है. जब अन्नदाता के घर में खुशहाली आती है तो सिर्फ घर ही विकसित नहीं होता, बल्कि देश विकसित होता है. किसी भी फसल की खेती करने वाले किसान को जब तक बिचौलियों से नहीं बचाया जाएगा, तब तक किसान समृद्ध नहीं हो सकता है. इस देश का किसान जब समृद्ध होगा, तभी देश विकसित राष्ट्र बन सकता है. झारखंड, छतीसगढ़ और ओड़िशा के कई आदिवासी समुदायों के लिए लाख की खेती आय का प्रमुख जरीया है.

वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 में एपीडा पवेलियन में भारत का प्रदर्शन

नई दिल्ली : वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा आयोजित वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 में ‘एपीडा पवेलियन’ की स्थापना की है.

वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 में एपीडा की भागीदारी का उद्देश्य भारत के कृषि निर्यात को बढ़ावा देना, नए बाजार खोलना और वैश्विक स्तर पर विविध एवं उच्च गुणवत्ता वाले कृषि खाद्य उत्पादों के अग्रणी उत्पादक और निर्यातक के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाना है.

इस पवेलियन का उद्घाटन वाणिज्य विभाग के अतिरिक्त सचिव राजेश अग्रवाल ने एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव, एपीडा के वरिष्ठ अधिकारियों, विभिन्न आयातकों व निर्यातकों और दूसरे  हितधारकों की उपस्थिति में किया.

19-22 सितंबर, 2024 तक चले एपीडा के कार्यक्रम में ताजा उपजों, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों यानी प्रोसैस्ड फूड आइटम, जैविक उत्पादों और मादक पेय पदार्थों सहित विविध खाद्य उत्पादों को पेश करने के भारत के प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है.

अभिषेक देव ने मध्यपूर्व के बाजारों और खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) से जुड़े देशों में बागबानी आधारित भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए लूलू ग्रुप इंटरनैशनल के अध्यक्ष यूसुफ अली एमए के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए और उस का आदानप्रदान किया.

इस रणनीतिक साझेदारी का उद्देश्य लूलू समूह के दुनियाभर में फैले हाइपर मार्केट और खुदरा दुकानों के व्यापक नैटवर्क के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में बागबानी आधारित भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देना है. यह वैश्विक स्तर पर बागबानी आधारित भारतीय निर्यात के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.

भारत मंडपम के प्रदर्शनी हाल (हाल नंबर 3) में एपीडा पवेलियन इस 3 दिवसीय समारोह में भारत के 25 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों के 155 प्रदर्शकों की मेजबानी की. प्रमुख प्रतिभागियों में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और कर्नाटक जैसे राज्य शामिल हैं. प्रदर्शित किए जाने वाले प्रमुख क्षेत्रों में ताजे फल एवं सब्जियां, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ एवं मूल्यवर्धित उत्पाद, बासमती चावल, पशु उत्पाद, काजू, भौगोलिक संकेतक (जीआई) उत्पाद, जैविक उत्पाद और मादक पेय पदार्थ शामिल हैं.

एपीडा ने लगभग 80 से अधिक देशों के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों को आमंत्रित किया है. बी2बी बैठकों के लिए रिवर्स क्रेताविक्रेता बैठक (आरबीएसएम) की सुविधा एक एप आधारित अपौइंटमैंट प्रणाली के माध्यम से प्रदान की गई है, जो भारतीय निर्यातकों को खरीदारों, आयातकों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रतिनिधियों के साथ सीधे बातचीत करने के लिए एक मंच प्रदान करेगी. अकेले ही लगभग 1,000 बी2बी बैठकें आयोजित की गईं और आयातकों, एग्रीगेटर्स, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), किसान उत्पादक कंपनियों (एफसीपी), इनोवेटर्स और कृषि उद्यमियों के बीच अगले 3 दिनों के लिए 3,000 बैठकें निर्धारित हैं.

ताजा एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद, बासमती चावल, पोषक अनाज (मिलेट) आधारित उत्पाद, जैविक उत्पाद और जीआई टैग वाली वस्तुएं इस पवेलियन में प्रमुख रूप से प्रदर्शित की गईं. एचएमए एग्रो, मिलेट मैजिक फाउंडेशन, जैस्मर फूड्स, बेसिलिया और्गेनिक्स, हाउस औफ हिमालयाज, आल इंडिया कैश्यू एसोसिएशन, इंडियन इंस्टीट्यूट औफ पैकेजिंग, वट्टम एग्रो एंड डेयरी इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड, मैग्नम फूड्स एंड स्नैक्स प्राइवेट लिमिटेड, और कामधेनु एंटरप्राइजेज सहित जैसे ब्रांड अनूठे उत्पादों को प्रदर्शित की गईं.

एक विशेष गैलरी, जीआई उत्पाद गैलरी, जो भारत के प्रतिष्ठित जीआई टैग वाले उत्पादों को समर्पित है, एपीडा पवेलियन का हिस्सा है. जीआई टैग वाले उत्पाद वैश्विक बाजारों में अत्यधिक महत्व रखते हैं.

इस समारोह में आने वाले आगंतुकों ने खाना पकाने का लाइव प्रदर्शन भी देखा और प्रदर्शित उत्पादों से बने विभिन्न प्रकार के भारतीय व्यंजनों का स्वाद लिया. इंटरएक्टिव प्रोजैक्शन मैपिंग और एनामौर्फिक 3-डी एनिमेशन वीडियो वाल को देशभर में अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों और विक्रेताओं के सामने एपीडा के प्रमुख कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की पेशकश को रचनात्मक रूप से प्रदर्शित करने के लिए स्थापित किया गया है.

पवेलियन में विशिष्ट क्षेत्र से संबंधित जानकारी सत्र जैसे “भारत का जैविक मार्ग : खेत से वैश्विक मंचों तक: भारत की जैविक पेशकशों के लिए बाजार संबंधों को बढ़ाना” पर एक कार्यशाला और “बार को विकसित करना : वैश्विक बाजारों में भारतीय मादक पेय पदार्थों के लिए अवसरों की तलाश” पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया.

बिहार के किसानों को मिली कई सौगातें

नई दिल्ली : 18 सितंबर 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिहार के किसानों के लिए अनेक सौगातें दीं. बिहार के कृषि मंत्री मंगल पांडे की केंद्रीय कृषि मंत्री के साथ कृषि भवन, नई दिल्ली में हुई उच्चस्तरीय बैठक में किसान हितैषी निर्णय लिए गए.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में बिहार के कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने और किसानों की सहूलियत के लिए बिहार स्थित कृषि भवन में एपीडा का औफिस खोलने के निर्णय पर एपीडा के सीएमडी द्वारा सहमति व्यक्त की गई.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बिहार में किसानों के उत्थान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हरसंभव उपाय किए जा रहे हैं. इस के तहत उन्होंने हाईब्रीड उन्नत बीजों के लिए कृषि मंत्रालय द्वारा सहयोग प्रदान करने के निर्देश भी दिए. साथ ही, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में अधिक आवंटन के लिए बिहार की मांग पर संबंधित अधिकारियों को तत्काल दिशानिर्देश दिए. इस योजना की बिहार के लिए दूसरी किस्त जारी कर दी गई.

बिहार का कृषि क्षेत्र में अच्छा परफौर्मेंस है. इस आधार पर कृषोन्नति योजना के लिए अधिक राशि के आवंटन के लिए उन्होंने बैठक में ही निर्देशित किया. इस के अलावा गेहूं के लिए अधिक आधार बीज उपलब्ध कराने के लिए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिए और कृषि यांत्रिकरण के लिए अधिक राशि उपलब्ध कराने का निर्णय भी लिया गया.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के बिहार स्थित क्षेत्रीय मक्का अनुसंधान व बीज उत्पादन केंद्र को आवश्यकतानुरूप अत्याधुनिक बनाया जाएगा, जिस के लिए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को मार्गदर्शन दिया. साथ ही, लीची के लिए प्रसिद्ध बिहार में लीची एवं शहद उत्पादक किसानों की सहायता के लिए भी उन्होंने दिशानिर्देश प्रदान किए. इस के साथ ही एनआरसी मखाना का सशक्तीकरण करने का निर्णय लिया गया. बिहार के किसानों को इन सब से काफी फायदा होगा. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में कृषि एवं किसान कल्याण के लिए केंद्र सरकार द्वारा अनेकानेक कदम उठाए जा रहे हैं, इसी कड़ी में बिहार के किसानों के लिए भी हरसंभव कदम उठाए गए हैं.

1 अक्तूबर, 2024 से एमएसपी पर मोटे अनाज की होगी खरीदी

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार श्रीअन्न के फायदों के प्रति एक तरफ जहां आम लोगों को प्रेरित कर रही है, वहीं किसानों को भी इस की खेती के फायदे से जोड़ रही है.  उत्तर प्रदेश में वर्ष 2024-25 के लिए मोटे अनाजों की खरीद 1 अक्तूबर, 2024 से शुरू होगी, जो 31 दिसंबर, 2024 तक चलेगी.

मोटे अनाज में शामिल बाजरा, ज्वार और मक्का की न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर खरीद के लिए किसानों का रजिस्ट्रेशन और रीन्युअल शुरू हो गया है. किसान अपनी किसी भी समस्या के लिए पहले जारी टोल फ्री नंबर 18001800150 से मदद ले सकते हैं. इस के अलावा वे जिला खाद्य विपणन अधिकारी, क्षेत्रीय विपणन अधिकारी, विपणन निऱीक्षक से भी संपर्क कर सकते हैं.

किसानों का जिस बैंक खाते में भुगतान होगा, उस का आधार से जुड़ा होना जरूरी है. भुगतान सीधे किसानों के बैंक खाते में किया जाएगा. वहीं, बिचौलियों को रोकने के लिए खरीद केंद्र पर मोटे अनाज की खरीद ई-पाप (इलैक्ट्रोनिक पौइंट औफ परचेज) डिवाइस के माध्यम से किसानों के बायोमीट्रिक वैरिफिशन के जरीए होगी.

किसानों को विभागीय वैबसाइट http://fcs.up.gov.in या ‘यूपी किसान मित्र’ एप पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है. खरीद रजिस्टर्ड किसानों से ही की जाएगी.

बदायूं,  बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, कासगंज, फिरोजाबाद, मैनपुरी, हरदोई, उन्नाव, कानपुर नगर व देहात, कन्नौज, इटावा, बहराइच, बलिया, फर्रुखाबाद, मीरजापुर, सोनभद्र व ललितपुर में मक्का की खरीद की जाएगी, वहीं बाजरा की खरीद में बदायूं, बुलंदशहर, बरेली, शाहजहांपुर, रामपुर, संभल, अमरोहा, अलीगढ़, कासगंज, एटा, हाथरस, आगरा, मथुरा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, हरदोई, उन्नाव, कानपुर नगर-देहात, इटावा, औरैया, कन्नौज, फर्रुखाबाद, गाजीपुर, बलिया, मीरजापुर, जालौन, चित्रकूट, प्रयागराज, कौशांबी, जौनपुर, फतेहपुर जिले शामिल है. इस के अलावा बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, कानपुर नगर-देहात, फतेहपुर, उन्नाव, हरदोई, मीरजापुर व जालौन में ज्वार की खरीद होगी.

पशुओं की सर्जरी में प्रशिक्षण कार्यशाला

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के सर्जरी एवं रेडियोलौजी विभाग में देश के विभिन्न विभागों से आए पशु चिकित्सकों के लिए 10 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए लुवास के स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज ने सभी प्रतिभागियों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण पूरा करने पर बधाई दी.

उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से अनुरोध करते हुए कहा कि आप इन सारी तकनीकों का अपने क्षेत्र के पशुपालकों एवं पशुओं की भलाई के लिए अवश्य उपयोग करें एवं इसे अपने आसपास के पशु चिकित्सकों को भी सिखाएं, जिस से पशुधन की सर्जरी और भी अच्छी तरीके से की जा सके.

पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने कहा कि पशुधन किसानों की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आप सभी प्रशिक्षणार्थियों से यही उम्मीद है कि आप सब ने इस प्रशिक्षण के दौरान जो सीखा, उस से पशुपालकों की मदद करने में सहायक सिद्ध होंगे और पशुओं की बीमारी से होने वाले माली नुकसान को कम कर सकेंगे.

प्रशिक्षण के बारे में जानकारी देते हुए विभागाध्यक्ष डा. आरएन चौधरी ने बताया कि इस प्रशिक्षण में 9 राज्यों (जम्मूकश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, ओड़िसा, तेलंगना, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक) के 20 पशु चिकित्सकों को एनेस्थिसिया, जनरल सर्जरी, यूरिनरी सर्जरी, डायफारमेटिक हर्निया, आंखों के मोतियाबिंद और अन्य सर्जरी में प्रशिक्षित किया गया.

एचएयू के एबिक सैंटर ने बढ़ाई आवेदन की तिथि

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में स्थापित एग्री बिजनैस इंक्यूबेशन सैंटर (एबिक) ने हरियाणा के छात्रों, उद्यमियों व किसानों से बिजनैस आइडिया मांगे हैं, जो उन को कृषि व्यवसायी बनाने में अहम रोल अदा कर सकते हैं.

अब एबिक ने पहल, सफल व छात्र कल्याण प्रोग्राम, जिस के अंतर्गत व्यवसाय शुरू करने के लिए सरकार की ओर से ग्रांट देने का प्रावधान है, में आवेदन करने की अंतिम तिथि 20 सितंबर, 2024 तक बढ़ा दी है. इस के लिए उम्मीदवार को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर औनलाइन आवेदन करना होगा.

आइडिया को मिल सकती है 4 से 25 लाख तक की ग्रांट

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज के अनुसार, इस सैंटर के माध्यम से युवा छात्र, किसान, महिला व उद्यमी मार्केटिंग, नैटवर्किंग, लाइसैंसिंग, ट्रैडमार्क व पेटेंट, तकनीकी व फंडिंग से संबंधित प्रशिक्षण ले कर कृषि क्षेत्र में अपने स्टार्टअप को नया आयाम दे सकते हैं. इस के लिए ‘छात्र कल्याण प्रोग्राम’, ‘पहल’ एवं ‘सफल’-2024 नाम से 3 प्रोग्रामों का विवरण इस प्रकार हैं:

छात्र कल्याण प्रोग्राम : यह प्रोग्राम छात्रों के लिए पहली बार शुरू किया गया है, जो छात्रों को उद्यमी बनाने में मदद करेगा. इस प्रोग्राम के तहत केवल छात्र ही आवेदन कर सकते हैं. चयनित छात्र को एक महीने का प्रशिक्षण व 4 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित छात्र को एकमुश्त दी जाएगी.

पहल : इस प्रोग्राम के तहत चयनित उम्मीदवार को एक महीने का प्रशिक्षण व 5 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित उम्मीदवार को एकमुश्त दी जाएगी.

सफल : इस प्रोग्राम के तहत चयनित उम्मीदवार को एक महीने का प्रशिक्षण व 25 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित उम्मीदवार को 2 किस्तों में दी जाएगी.

उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 5 सालों में 65 स्टार्टअप्स को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा लगभग 7 करोड़ की राशि स्वीकृत की जा चुकी है. कुलपति प्रो, बीआर कंबोज ने उक्त कार्यक्रमों से संबंधित विवरण पुस्तिका का विमोचन किया.

आवेदकों के लिए आयु व शिक्षा नहीं बनेगी बाध्य

आवेदक को अपने आइडिया का प्रपोजल एचएयू की वैबसाइट पर औनलाइन आवेदन करना है, जोकि नि:शुल्क है. इस के बाद उस आइडिया का यूनिवर्सिटी वैज्ञानिक व इंक्युबेशन कमेटी द्वारा एक महीने के प्रशिक्षण के लिए चयन किया जाएगा. एक महीने के प्रशिक्षण के बाद भारत सरकार द्वारा गठित कमेटी आवेदक के आइडिया को प्रस्तुत करवाएगी और चयनित आवेदक को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा अनुदान राशि स्वीकृत की जाएगी.

प्रशिक्षित युवा स्वरोजगार के साथ-साथ दूसरे लोगों को भी रोजगार दे पाएंगे

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि युवाओं के लिए कृषि क्षेत्र में अपना व्यवसाय स्थापित करने का एक सुनहारा अवसर है. एबिक सैंटर से प्रशिक्षण व वित्तीय सहायता ले कर युवा रोजगार खोजने के बजाय रोजगार देने वाले बन सकते हैं. इस सैंटर के माध्यम से स्टार्टअप्स देश को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अहम भूमिका निभाएंगे. भारत सरकार ने महिलाओं को उद्यमी बनाने के लिए 10 फीसदी अतिरिक्त अनुदान राशि देने का प्रावधान रखा है.

इस के साथ ही युवा, किसान व उद्यमी एबिक सैंटर के माध्यम से कृषि के क्षेत्र में प्रोसैसिंग, मूल्य संवर्धन, सर्विसिंग, पैकजिंग व ब्रांडिग कर के व्यापार की अपार संभावनाएं तलाश सकते हैं. ये तीनों कार्यक्रम उन को आत्मनिर्भर बनाने में काफी मददगार साबित होंगे. उन्होंने कहा कि इस सैंटर से अब तक जुड़े युवा उद्यमी व किसानों ने न केवल अपनी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों रुपए तक पहुंचाया है. अपितु उन्होंने दूसरे लोगों को रोजगार भी प्रदान किया है.

केवीके वैज्ञानिक किसानों को दें नवीनतम तकनीकी जानकारी

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्याल में तीनदिवसीय वार्षिक समीक्षा कार्यशाला का शुभारंभ हुआ. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यशाला का उद्घाटन किया, जबकि आईसीएआर (कृषि विस्तार शिक्षा) के एडीजी डा. आरके सिंह व पूर्व एडीजी डा. रामचंद विशिष्ट अतिथि के रूप में और एमएचयू करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा व बीसीकेवी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एमएम अधिकारी अति विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे.

कार्यशाला में हरियाणा, राजस्थान व दिल्ली राज्य में आईसीएआर के 66 कृषि विज्ञान केंद्रों की गत वर्ष किए गए कार्य प्रगति की समीक्षा की जाएगी. कार्यशाला में आईसीएआर अटारी जोन-2 के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने सभी का स्वागत किया व कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि केवीके के वैज्ञानिकों को फील्ड वर्क के कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए. किसान को कृषि वैज्ञानिकों का सच्चा हितैषी बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें फील्ड में जा कर किसानों की समस्याओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि शोध कार्यों के साथसाथ विस्तार प्रणाली को गति देने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को और अधिक बेहतर ढंग से काम करना होगा. तकनीकी के इस युग में किसानों के लिए समयसमय पर एडवाइजरी जारी की जाए, ताकि कृषि क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के साथसाथ फसलोत्पादन में बढ़ोतरी हो सके.

उन्होंने यह भी कहा कि किसानों का कृषि विज्ञान केंद्रों पर अटूट विश्वास है, जिस के माध्यम से किसान समयसमय पर मौसम संबंधी जानकारी, फसल उत्पादन की एडवाइजरी, विभिन्न फसलों के बीज, मिट्टीपानी की जांच सहित अन्य सुविधाओं का लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

उन्होंने किसानों को प्राकृतिक खेती एवं सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के बारे में जागरूक करने पर भी जोर दिया. किसानों को नई तकनीकों की जानकारी देने के लिए देश के 731 जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र संचालित हैं. उन्होंने केवीके द्वारा किसानों को प्रदत्त की जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी विस्तार से बताया.

कार्यशाला में केवीके द्वारा कृषि महाविद्यालय परिसर में लगाई गई प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया. इस अवसर पर विभिन्न केवीके द्वारा प्रकाशित तकनीकी बुलेटन का भी विमोचन किया गया.

कार्यशाला में आईसीएआर के एडीजी डा. आरके सिंह ने युवाओं को कृषि से जोड़े रखने के लिए कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बनाने, फसल उत्पादन बढ़ाने व कृषि उत्पाद का प्रसंस्करण कर मूल्य संवर्धन करने व नवीनतम तकनीकों को जल्द से जल्द किसानों तक पहुंचाने के लिए केवीके वैज्ञानिकों को प्रेरित किया.

एमएचयू करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा ने कहा कि सरकार द्वारा किसानों के कल्याणार्थ की जाने वाली योजनाओं एवं कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने में केवीके अहम भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने कृषि सिंचाई योजना, दलहनी एवं तिलहनी फसलों के अतिरिक्त कृषि क्षेत्र से संबंधित विभिन्न विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला.

धानुका के चेयरमैन डा. आरजी अग्रवाल व आईसीएआर, नई दिल्ली के पूर्व एडीजी डा. रामचंद ने भी अपने विचार रखे. विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने कार्यशाला में सभी का धन्यवाद किया. मंच का संचालन डा. संदीप रावल ने किया. इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

भेड़बकरी, खरगोशपालन : खर्चा कम, कमाई अधिक

अविकानगर : भाकृअनुप-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के एचआरडी विभाग द्वारा 8 दिवसीय (4 सितंबर से 11 सितंबर, 2024) स्ववित्तपोषित 13वां राष्ट्रीय कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम को निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर की अध्यक्षता मे कौंफ्रैंस हाल मे शुरुआत की गई.

इस 8 दिवसीय वैज्ञानिक भेड़बकरी एवं खरगोशपालन प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के 9 राज्यों (राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र एवं अरुणाचल प्रदेश) के 27 प्रशिक्षिणार्थियों ने रजिस्ट्रेशन करा कर भाग लिया.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने अपने संबोधन में किसानों को संस्थान के पशु भेड़बकरी एवं खरगोशपालन के अवसर एवं उपयोगिता पर उदारहणस्वरूप विस्तार से संवाद किया और बताया कि भेड़ सब से कम संसाधनों में पालने वाला पशु है, जो अपने शारीरिक ग्रोथ भी बकरी की अपेक्षा जल्दी करता है. इसलिए आप देश की मांस की मांग को ध्यान मे रखते हुए अपनी रूचि के अनुसार भेड़बकरी एवं खरगोश का पालन करें.

उन्होंने आगे कहा कि भेड़ एवं बकरी में टीकाकरण के बाद विभिन्न प्रकार के प्रबंधन (आवास, चारा, दाना व विभिन्न मौसम आधारित सावधानी आदि) पर ध्यान दे कर आप अच्छी आमदनी कमा सकते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि इस बैच में जिस तरह के पढ़ेलिखे लोग यहां उपस्थित हैं, उन से मुझे उम्मीद है कि ये व्यवसाय आने वाले समय में हौर्टिकल्चर व पोल्ट्री की तरह पशुपालन उद्यमिता का रूप जरूर लेगा.

उन्होंने आगे कहा कि विकसित भारत निर्माण तभी होगा, जब देश का हर नागरिक देश की तरक्की में भागीदारी होगा. मेरे संस्थान के पशु आत्मनिर्भर भारत में देश की युवाशक्ति के बल पर जरूर इस में रोजगारपरक व्यवसाय के जरीए योगदान देंगे.

अंत में निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी लोगों से संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुभव से सीखने का निवेदन करते हुए अपने पहले से उपलब्ध नोलेज बढ़ाने का आग्रह किया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम का समन्वयक डा. सुरेश चंद शर्मा एवं डा. लीलाराम गुर्जर द्वारा किया जा रहा है. प्रशिक्षण के उद्धघाटन के अवसर पर एजीबी विभाग अध्यक्ष डा. सिद्धार्थ सारथी मिश्र, डा. अजय कुमार, डा. सत्यवीर ड़ागी, डा. विनोद कदम, डा. अरविंद सोनी आदि ने अपने अनुभव से ट्रेनिंग में भाग ले रहे लोगों से चर्चा की. यह जानकारी अविकानगर के मीडिया प्रभारी डा. अमर सिंह मीना दी.

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में 16-17 सितंबर को लगेगा कृषि मेला (Agricultural Fair)

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 16-17 सितंबर को कृषि मेला (रबी) का आयोजन करेगा. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इस वर्ष मेले का विषय ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ होगा. मेले में आने वाले किसानों को विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा कृषि में फसल अवशेष प्रबंधन के बारे में तमाम जानकारी दी जाएगी.

उन्होंने बताया कि इस मेले में बीज, उर्वरक, कीटनाशक, कृषि मशीनें व यंत्र निर्माता कंपनियां भी भाग लेंगी. किसानों को विभिन्न कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त मशीनों, यंत्रों एवं उन की कार्य प्रणाली के साथ इन मशीनों की कीमत और इन के निर्माताओं की भी जानकारी मिल सकेगी.

विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने बताया कि पूर्व की भांति इस साल भी यह मेला विश्वविद्यालय के गेट नंबर 3 के सामने मेला ग्राउंड पर लगाया जाएगा. मेले में किसानों को विश्वविद्यालय की ओर से सिफारिश की गई रबी फसलों के उन्नत बीज और बायोफर्टिलाईज़र के अतिरिक्त कृषि साहित्य उपलब्ध करवाए जाएंगे. इस के लिए मेला स्थल पर विभिन्न सरकारी बीज एजेंसियों के सहयोग से बिक्री काउंटर लगाए जाएंगे.

किसानों को विश्वविद्यालय के अनुसंधान फार्म पर वैज्ञानिकों द्वारा उगाई गई खरीफ फसलें दिखाई जाएंगी और  उन में प्रयोग की गई टैक्नोलौजी की जानकारी दी जाएगी. साथ ही, किसानों की कृषि, पशुपालन और गृह विज्ञान संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए मेले के दोनों ही दिन प्रश्नोत्तरी सभाएं आयोजित की जाएंगी. मेला स्थल पर मिट्टी, सिंचाई व रोगी पौधों की वैज्ञानिक जांच करवाने की किसानों को सुविधा दी जाएगी.

उधर, सहनिदेशक (विस्तार) डा. कृष्ण यादव ने बताया कि कृषि मेले में लगने वाली एग्रोइंडस्ट्रियल प्रदर्शनी के लिए स्टालों की बुकिंग शुरू की जा चुकी है. प्राइवेट कंपनियों को स्टाल ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर आवंटित किए जाएंगे.

उन्होंने बताया कि इस बार किसानों की सुविधा के लिए उन के बैठने हेतु वाटरप्रूफ पंडाल होगा. प्रदर्शनी क्षेत्र में पक्के रास्तों को बनाया गया है और मेला स्थल की सुरक्षा के लिए चारदिवारी, रोशनी व जल निकासी की व्यवस्था की गई है.

उल्लेखनीय है कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हर साल सितंबर माह में कृषि मेला आयोजित करता है, जिस में हरियाणा और पड़ोसी राज्यों से हजारों किसान भाग लेते हैं. इस मेले में एग्रोइंडस्ट्रियल प्रदर्शनी भी लगाई जाती है, जिस में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, लुवास और हरियाणा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त विभिन्न कृषि निविष्टों व फार्म मशीनरी बनाने वाली कंपनियां भी भाग ले कर अपनी तकनीकी प्रदर्शित करती हैं.