Fox Nut : टैक्नोलौजी की मदद से बेहतर व आसन होगी मखाने की खेती

दरभंगा : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले दिनों 23 फरवरी को दरभंगा, बिहार पहुंचे, जहां उन्होंने तालाब में उतर कर मखाना (Fox Nut) उत्पादक किसानों से बात की.

उन्होंने मखाने (Fox Nut)  की खेती की पूरी प्रक्रिया समझी और मखाना (Fox Nut) उत्पादन में आने वाली कठिनाइयों को जानने के साथ ही किसानों से सुझाव भी लिए. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मखाना की खेती कठिन है और तालाब में दिनभर रह कर खेती करनी होती है. केंद्र सरकार ने इस साल बजट में मखाना बोर्ड बनाने का ऐलान किया है. इस बोर्ड के बनने के पहले वे किसानों से सुझाव ले कर चर्चा कर रहे हैं, ताकि किसानों की वास्तविक समस्याएं समझी जा सकें.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दरभंगा में राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र पर संवाद कार्यक्रम में मखाना के किसानों से सुझाव लेने के साथ ही उन्हें संबोधित भी किया. इस मौके पर मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम केवल विभाग नहीं चलाते हैं, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में गहराई तक जा कर कैसे हम किसानों की तकलीफ दूर करें, इस की कोशिश करते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि किसान की आमदनी बढ़नी चाहिए. 57 फीसदी  लोग आज भी खेती पर निर्भर हैं, और खेती भी एक चीज की नहीं है, कहीं केला है तो कहीं लीची है, कहीं मकई है, तो कहीं गेहूं है, कहीं धान है, इस धरती पर तो मखाना है. अगर किसानों का कल्याण करना है, तो हमें हर एक फसल को ठीक से देखना पड़ेगा और इसलिए जब मैं पहली बार कृषि मंत्री बन कर पटना आया था, कृषि भवन में तब बैठक हुई थी किसानों के साथ और उस बैठक में मखाना उत्पादक किसानों ने अपनी समस्या बताई थी.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया, जिन्होंने मखाना केंद्र बनाया था. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का भी आभार जताया कि अब उन्होंने मखाना बोर्ड बनाने का फैसला किया है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि मखाना सुपरफूड है, पौष्टिकता का भंडार है, ये मखाना आसानी से पैदा नहीं होता है. मखाना पैदा करने के लिए कितनी तकलीफें सहनी पड़ती हैं, ये यहां आ कर देखा जा सकता है. इसलिए मेरे मन में ये भाव आया कि जिन्होंने किसानों की तकलीफ नहीं देखी, वह दिल्ली के कृषि भवन में बैठ कर मखाना बोर्ड बना सकते हैं क्या…? इसीलिए मैं ने कहा कि पहले वहां चलना पड़ेगा, जहां किसान मखाने की खेती कर रहा है. खेती करतेकरते कितनी दिक्कत और परेशानी आती है, ये भी हो सकता है कि यहां कार्यक्रम करते और निकल जाते, लेकिन इस से भी सही जानकारी नहीं मिलती.

उन्होंने कहा कि मेरे मन में भाव आया कि शिवराज तू तो सेवक है, एक बार पोखर, तालाब में उतर जा और मखाने की बेल को लगा, तब तो पता चलेगा कि मखाने की खेती कैसे होती है. जब बेल हाथ में ली तो पता चला कि उस के ऊपर भी कांटे थे और नीचे भी कांटे थे. हम तो केवल मखाना खाते हैं, लेकिन कभी कांटे नहीं देखे. जब हमारे किसान भाईबहन मखाने की खेती करते हैं, उन के लिए इस फसल को जितना लगाना कठिन है, उतना ही निकालना भी कठिन है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों से कहा कि सही माने में आप से समझ कर कि मखाना बोर्ड बने तो कैसे बने, इसलिए उन्होंने अधिकारियों को भी निर्देश दिया है कि आईसीएआर (ICAR) व अनुसंधान केंद्र  कांटारहित मखाने का बीज विकसित करने पर काम करें.

Fox Nut

यह असंभव काम भी नहीं है. पर जहां बात मेकैनाइजेशन की आई, पानी में डुबकी लगा कर इसे निकालना पड़ता है, पूरे डूब गए आंख, नाक, कान में पानी और केवल पानी ही नहीं होता है, पानी के साथ कीचड़ भी होती है. अब आज के युग में मेकैनाइजेशन से ये चीज बदली जा सकती हैं, अभी यंत्र तो बने हैं, लेकिन उस में आधा मखाना आता है और आधा आता ही नहीं है. गुरिया बड़ी मुश्किल से निकलती है और इसलिए मेकैनाइजेशन होगा और ऐसे यंत्र बनाए जाएंगे, जो गुरिया को आसानी से बाहर खींच लाएं. आज टैक्नोलौजी है और प्रोसैसिंग में लगे कई मित्र ये काम कर रहे हैं.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम उत्पादन बढ़ाने पर काम करेंगे. दूसरा, हम काम करेंगे उत्पादन की लागत घटाना. लागत कैसे घट सकती है, उस के कई पक्ष मेरे सामने आ गए हैं. तीसरा काम- उत्पादन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना, जिस से खेती आसान हो जाए. अब कई पोखर चाहिए, तालाब चाहिए, पानी रोकने की व्यवस्था चाहिए, हम लोग विचार करेंगे कि केंद्र और राज्य सरकार की अलगअलग योजना के तहत ये कैसे बनाए जा सकते हैं. क्या मनरेगा में कहीं तालाबों का निर्माण हो सकता है? कई तरह के रास्ते निकल सकते हैं, उस पर भी हम काम करेंगे. कठिनाइयों को दूर करना है और जिस के लिए कई काम करने पड़ेंगे, वे  है- मखाने की उचित कीमत मिल जाए, इस का इंतजाम करना आदि.

अभी तो ठीक है, लेकिन कई बार दाम गिर जाते हैं, इसलिए बाजार का विस्तार, मंडियों को ठीक करना, घरेलू बाजार, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मखाने की पहुंच बनाना है. उन्होंने कहा कि ये सुपरफूड मखाना एक दिन दुनिया में छा जाएगा, क्योंकि मखाने में कई गुण मौजूद हैं. इसलिए सुपरफूड की हम कैसे मार्केटिंग करें, ब्रांडिंग करें, पेकैजिंग करें, उस सभी में सहयोग देंगे.

उन्होंने कहा कि लीज पर जमीन ले कर खेती करने वाले किसानों को केंद्र सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिले. चाहे किसान क्रैडिट कार्ड हो, कम दरों पर ब्याज, खाद की व्यवस्था, एमएसपी आदि का भी बंदोबस्त हो. बंटाईदार, मेहनत  करने वाले को भी लाभ मिलना चाहिए. इस दिशा में हम काम कर रहे हैं. मखाना उत्पादक किसानों की ट्रेनिंग पर भी काम किया जाएगा. कार्यशाला लगाना, ट्रेनिंग कैंप लगा कर कैसे कौशल विकसित किया जाए, इस की कोशिश करेंगे.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आज का कार्यक्रम कर्मकांड नहीं है, यह आम सभा नहीं है, यह किसान पंचायत है. मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए भी किसानों से बात कर के उन के कल्याण की योजना बनाता था.  यही तो जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है.

उन्होंने आगे कहा कि कल बिहार के सौभाग्य के सूर्य का उदय होगा, जब प्रधानमंत्री मोदी पधारेंगे. पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि बिहार अद्भुत राज्य है, यहां का टैलेंट, यहां के मेहनती किसान, विशेषकर बिहार का मखाना सुपर फूड. मखाना का उत्पादन बढ़े, प्रोसैसिंग हो, गुणवत्ता बढ़े, अभी मखाना उत्पादक किसान कई कठिनाइयों में काम करते हैं, टैक्नोलौजी के माध्यम से उन कठिनाइयों को दूर किया जाए, इस के लिए मखाना बोर्ड बनाया जा रहा है.

Crop diversification: फूलों और मशरूम की खेती से बढ़ेगी आय

उदयपुर: तुरगढ़ गांव, झाड़ोल तहसील, उदयपुर में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत फसल विविधीकरण (Crop diversification) परियोजना के तहत दोदिवसीय किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इस कार्यक्रम का उद्देश्य फसल विविधीकरण (Crop diversification)  को प्रोत्साहित करते हुए किसानों की आय और कृषि स्थिरता को बढ़ाना था.

कार्यक्रम के शुरू में परियोजना अधिकारी डा. हरि सिंह ने फसल विविधीकरण (Crop diversification) की परिभाषा और इस की आवश्यकता व आर्थिक महत्व पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि पारंपरिक फसलों के साथ अन्य फसलों को अपनाने से न केवल मुनाफा बढ़ता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता और जल संरक्षण भी होता है.

एकल फसल प्रणाली के विपरीत विविध फसलें बाजार के उतारचढ़ाव और मूल्य अस्थिरता से सुरक्षा प्रदान करती हैं. इस के अलावा डा. हरि सिंह ने किसानो को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ई-नाम व न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी केंद्र द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं की जानकारी प्रदान की.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. लक्ष्मी नारायण महावर ने कहा कि फसल विविधीकरण (Crop diversification) दक्षिणी राजस्थान के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव ले कर आया है. उन्होंने दक्षिण राजस्थान में फूलों की खेती के महत्व के बारे में बताया कि यहां की जलवायु फूलों की खेती के लिए अनुकूल है, जिस से किसानों को पारंपरिक खेती की तुलना में अधिक लाभ मिल सकता है.

वहीँ प्रोफैसर नारायण लाल मीना ने मशरूम की खेती पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस के आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी लाभों के बारे में बताया और यह भी बताया कि किस प्रकार हम कम निवेश में अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही, उन्होंने मशरूम पाउडर के पोषण मूल्य और बाजार मूल्य के बारे में भी बताया.

Crop diversification

प्रशिक्षण के दौरान मदन लाल मरमट, नारायण सिंह झाला और नरेंद्र यादव ने किसानों के साथ सूखे और एकल फसल से होने वाले नुकसान और उन की चुनौतियों पर चर्चा की और बताया कि कैसे हम फसल विविधीकरण (Crop diversification) के माध्यम से ऐसी समस्याओं पर काबू पा सकते हैं, जिस से कृषि स्थिरता और किसानों की आय में वृद्धि होगी.

कार्यक्रम के अंत में परियोजना अधिकारी डा. हरि सिंह ने खरीफ और रबी फसलों की उन्नत किस्मों की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने किसानों को बताया कि उन्नत किस्में न केवल अधिक उत्पादकता देती हैं, बल्कि कीट और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी रखती हैं.

उन्होंने आगे कहा कि फसलों की उन्नत किस्मों का चयन और सही समय पर बोआई किसानों की उत्पादकता में वृद्धि कर सकता है. साथ ही, संतुलित उर्वरक और सिंचाई प्रबंधन भी महत्वपूर्ण है. उन्होंने खेती के नवीनतम तरीकों जैसे बीजोपचार, समय पर खरपतवार नियंत्रण और फसल चक्र अपनाने पर जोर दिया.

इस कार्यक्रम में 40 से अधिक किसानों ने भाग लिया और प्रशिक्षण को काफी लाभदायक बताया. प्रतिभागियों ने इस जानकारी को अपने खेतों में लागू करने का संकल्प लिया, ताकि फसल विविधीकरण (Crop diversification) के माध्यम से उन की कृषि आय और स्थिरता में सुधार हो सके.

Natural farming : प्रकृति के साथ तालमेल ही प्राकृतिक खेती

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधान में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित जैविक खेती (Natural farming) पर अग्रिम संकाय प्रशिक्षण केंद्र के अंतर्गत 21 दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘‘प्रकृति के साथ सामंजस्यः प्राकृतिक खेती में अनुसंधान और नवाचार’’ पर अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर में पूर्व कुलपति डा. उमाशंकर शर्मा की अध्यक्षता में 19 फरवरी, 2025 को शुभारंभ हुआ.

इस अवसर पर पूर्व कुलपति डा. उमाशंकर शर्मा ने कहा कि प्राकृतिक खेती ही पर्यावरण के लिए अनुकूल है. प्राकृतिक खेती (Natural farming) द्वारा पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के साथसाथ मृदा स्वास्थ्य यानी मिट्टी की सेहत में भी बढ़ोतरी होगी. प्राकृतिक खेती (Natural farming) में प्रयोग कर रहे घटकों से मिट्टी में लाभदायक जीवाणुओं की बढ़ोतरी होगी, जिस से फसलों के उत्पादन में स्थायित्व आएगा.

Natural farmingडा. उमाशंकर शर्मा ने सभी प्रतिभागियों को 21 दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान सभी वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि अपनेअपने क्षेत्र में जा कर ब्रांड अंबेसडर की भूमिका निभाएं. इस प्रशिक्षण में 5 राज्यों के 26 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया. डा. एसके शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने बताया कि प्राकृतिक कृषि (Natural farming) एक तकनीक ही नहीं, अपितु पारिस्थितिकी दृष्टिकोण है, जिस के द्वारा प्रकृति के साथ तालमेल बिठाया जाता है.

डा. उमाशंकर शर्मा ने 5 राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रहे प्राकृतिक कृषि पर प्रशिक्षण ले रहे वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि ज्ञान की सघनता एवं प्रशिक्षणों से दक्षता में वृद्धि द्वारा इस कृषि को बढ़ावा दिया जा सकता है. साथ ही, उन्होंने प्राकृतिक खेती (Natural farming) के घटक जीवामृत, बीजामृत, धनजीवामृत, आच्छादन एवं वाष्प के साथ जैविक कीटनाशियों पर जोर  दिया.

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि डा. एसके शर्मा ने कहा कि प्राकृतिक खेती (Natural farming) के महत्व को देखते हुए स्नातक छात्रों के लिए विशेष पाठ्यक्रम पूरे देश में शुरू किया जा रहा है. इस के लिए सभी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों, शिक्षकों, विषय विशेषज्ञों एवं विद्यार्थियों के लिए प्रशिक्षण आयोजित किए जा रहे हैं.

उन्होंने आगे बताया कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का प्राकृतिक खेती में वृहद अनुसंधान कार्य एवं अनुभव होने के कारण यह विशेष दायित्व विश्वविद्यालय को दिया गया है. प्राकृतिक खेती (Natural farming) के विषय में पूरे विश्व की दृष्टि भारत की ओर है. ऐसे में पूरे विश्व भर से वैज्ञानिक एवं शिक्षक प्रशिक्षण लेने के लिए भारत आ रहे हैं. ऐसे में हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम उत्कृष्ट श्रेणी के प्रशिक्षण आयोजित करें.

Natural farming

डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान एवं कोर्स डायरेक्टर ने अतिथियों का स्वागत किया एवं प्रशिक्षणार्थियों को दिए गए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के बारे में विस्तृत रूप से बताया. डा. अरविंद वर्मा ने बताया कि पूरे प्रशिक्षण में 49 सैद्धांतिक व्याख्यान, 9 प्रयोग प्रशिक्षण एवं 4 प्रशिक्षण भ्रमणों द्वारा प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया.

उन्होंने प्राकृतिक खेती पर सुदृढ़ साहित्य विकसित करने की आवश्यकता बताई. साथ ही, इस ट्रेनिंग के रिकौर्ड वीडियो यूट्यूब व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से प्रसारित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया, जिस से कि वैज्ञानिक समुदाय एवं जनसामान्य में प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूकता बढ़े एवं इस की जानकारी सुलभ हो सके.

कार्यक्रम में डा. आरएल सोनी, निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय, डा. सुनील जोशी, निदेशक, डीपीएम एवं अधिष्ठाता सीटीएआई, डा. मनोज महला, छात्र कल्याण अधिकारी, डा. अमित त्रिवेदी, क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान, उदयपुर, डा. रविकांत शर्मा, सहनिदेशक अनुसंधान एवं डा. एससी मीणा, आहरण वितरण अधिकारी एवं राजस्थान कृषि महाविद्यालय के सभी विभागाध्यक्ष और  तमाम वैज्ञानिक आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन डा. लतिका शर्मा, आचार्य ने किया.

Agricultural Science Centers को मिला आईएसओ का दर्जा

उदयपुर : 21 फरवरी, 2025 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी से संबद्ध सभी कृषि विज्ञान केंद्रों (Agricultural Science Centers) को आईएसओ 9001: 2015 प्रमाणपत्र मिलने के साथ ही प्रसार शिक्षा निदेशालय को भी इस उपलब्धि से नवाजा गया. अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आईएसओ) प्रमाणपत्र मिलने से वैश्विक स्तर पर प्रसार सेवाओं को न केवल बढ़ावा मिलेगा, बल्कि किसानों का और अधिक जुड़ाव होगा.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने यह जानकारी देते हुए बताया कि एमपीयूएटी के इतिहास में यह उपलब्धि मील का पत्थर साबित होगी. आईएसओ प्रमाणपत्र मिलने से एमपीयूएटी की देशविदेश में ख्याति बढ़ेगी. साथ ही, केवीके की प्रतिष्ठा, विश्वसनीयता, कर्मचारी सहभागिता, कानून व नियमों की अनुपालना और वैश्विक व्यापार में भी बढ़ोतरी होगी.

इन केवीके को मिला आईएसओ प्रमाणपत्र

कृषि विज्ञान केंद्र – बोरवट फार्म- बांसवाड़ा, रिठोला- चित्तौड़गढ़, फलोज- डूंगरपुर, बसाड़- प्रतापगढ़, धोइंदा- राजसमंद और सियाखेड़ी- उदयपुर द्वितीय. सुवाणा- भीलवाड़ा प्रथम और अरणियाघोड़ा- भीलवाड़ा द्वितीय को पहले ही आईएसओ प्रमाणपत्र मिल चुका है. इस तरह प्रसार शिक्षा निदेशालय को भी यह प्रमाणपत्र दिया गया है.

ये गतिविधियां बनीं मुख्य आधार

प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्रों पर हालांकि किसान हित से जुड़ी अनेकों गतिविधियां संचालित होती हैं, लेकिन भीलवाड़ा की तर्ज पर सभी आईएसओ प्राप्त केवीके में विभिन्न प्रदर्शन इकाईयां जैसे सिरोही बकरी, प्रतापधन मुरगी, डेयरी, चूजापालन, वर्मी कंपोस्ट, वर्मीवाश, प्राकृतिक खेती इकाई, नर्सरी, नेपियर घास, वर्षा जल संरक्षण इकाई, बायोगैस, मछलीपालन, कम लागत से तैयार हाइड्रोपौनिक, हरा चारा उत्पादन इकाई, आंवला, अमरूद एवं नीबू का मातृवृक्ष बगीचा, बीजोत्पादन एवं क्राप केफैटेरिया आदि के माध्यम से किसान समुदाय के लिए समन्वित कृषि प्रणाली के उद्यम स्थापित कर, स्वरोजगार पैदा कर एवं आजीविका को सुदृढ कर आत्मनिर्भर किया जा रहा है.

ऐसे में किसानों का गांव से शहरों की ओर पलायन कम हुआ है. यही नहीं, किसान समुदाय के फसल उत्पादन और अन्य कृषि उत्पादों का समय पर विपणन होने से आमदनी में भी इजाफा हुआ है. इस के अलावा कृषि विज्ञान केंद्रों में समयसमय पर किसान मेलों, किसानवैज्ञानिक संवाद, किसान गोष्ठी, जागरूकता कार्यक्रम, महत्वपूर्ण दिवस, प्रदर्शन आदि प्रसार गतिविधियों का आयोजन कर कृषि नवाचार की सफल तकनीकियों का हस्तांतरण किया जा रहा है.

मुरगीपालन (Poultry Farming) व्यवसाय की सीखी बारीकियां

जयपुर: राष्ट्रीय कृषि विकास योजना एवं अखिल भारतीय कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना के संयुक्त तत्वावधान में झाड़ोल व फलासिया के स्वयं सहायता समूहों की 30 महिलाओं एवं गुडली के 40 किसान परिवारों के लिए मुरगीपालन (Poultry Farming) व्यवसाय का दोदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम राजस्थान कृषि महाविद्यालय में आयोजित किया गया.

राष्ट्रीय कृषि विकास योजनांतर्गत 10 महिला समूहों के गठन के साथ ही उन्हें कृषि संबंधित विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षित करने का लक्ष्य है. इस के लिए झाड़ोल व फलासिया में 10 महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है.

Poultry Farming

परियोजना प्रभारी डा. विशाखा बंसल ने बताया कि इन 2 दिनों में महिलाओं को मुरगीपालन व्यवसाय की तमाम बारीकियां सिखाई गईं जैसे कि मुरगियों को दाना कब और कैसे देना, मुरगियों का बाड़ा तैयार करना, टीकाकरण, अंडे एकत्रित करना आदि.

प्रशिक्षण में डा. गजानंद, डा. सुभाष, डा. डीपीएस डूडी, देवीलाल मेघवाल, डा. केसराम, डा. मनोज आदि ने मुरगीपालन की विस्तृत जानकारी दी. प्रशिक्षण में स्वयं सहायता समूहों को आय संवर्धन से जोड़ कर स्वावलंबी बनाने पर विशेष जोर दिया गया. प्रशिक्षण कार्यक्रम में कार्तिक सालवी, डा. कुसुम शर्मा व अनुष्का तिवारी ने महिलाओं को पशुपालन इकाई का भ्रमण करवाया.

एलोवेरा (Aloe Vera) से आमदनी

Aloe Vera एलोवेरा एक अफ्रीकी वनस्पति है. इस का वैज्ञानिक नाम एलो वार्बाडेंसिस है. यह देश के अलगअलग हिस्सों में अलगअलग नामों से जाना जाता है. इसे घृतकुमारी, घीकुंवार, ग्वारपाठा, कुमारी और एलोय सहित कुछ अन्य नामों से भी जानते हैं. शुरुआत में लोग इसे अनउपयोगी जमीनों पर लगाते थे, मगर अब इस की व्यावसायिक खेती जोर पकड़ चुकी है. एलोवेरा (Aloe Vera) की व्यावसायिक खेती का दायरा

बढ़ने की खास वजह इस का औषधीय महत्त्व है. एलोवेरा (Aloe Vera) को किसानों से बहुराष्ट्रीय कंपनियां ऊंची कीमत पर खरीद रही हैं.

तमाम आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं में इसे मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है. इस का इस्तेमाल चेहरे को चमकदार बनाने के अलावा पेट के रोगों, आंखों के रोगों और त्वचा के रोगों को ठीक करने में किया जाता है. इसे सौंदर्य प्रसाधन सामग्रियां बनाने में भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है.

कैसा होता है एलोवेरा (Aloe Vera): एलोवेरा छोटे तने और मांसल पत्तियों वाला तकरीबन 1 मीटर तक का पौधा होता है. पत्तियों की नसों पर कांटे पाए जाते हैं. इस में लाल और पीले रंग के फूल आते हैं.

कैसी हो मिट्टी : अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिस का पीएच मान 6.5 से 8.5 के बीच हो इस की खेती के लिए बेहतर होती है. वैसे इस की खेती चट्टानी, रेतीली, पथरीली समेत किसी भी तरह की जमीन में की जा सकती है.

कैसी हो आबोहवा : गरम और शुष्क जलवायु एलोवेरा (Aloe Vera) की खेती के लिए सही होती है. जहां पर कम बारिश होती है और अधिक तापमान बरकरार रहता है, वहां भी इस की खेती आसानी से की जा सकती है.

रोपाई का समय : जहां पर सिंचाई की सुविधा मौजूद हो, वहां बरसात खत्म होने के बाद दिसंबर जनवरी व मईजून छोड़ कर कभी भी इस की रोपाई कर सकते हैं.

खेत की तैयारी : सब से पहले खेत को समतल कर लें. फिर 2 बार जुताई करने के बाद पाटा लगा कर ऊपर उठी हुई क्यारियां बना कर रोपाई करें.

प्रजाति : अपने इलाके के मुताबिक प्रजाति का ही चयन करें. इस के लिए आप जिला उद्यान कार्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यान विशेषज्ञ से मिल सकते हैं. वैसे केंद्रीय औषधि और सगंध पौध संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने सिम सीतल नाम की उन्नत प्रजाति विकसित की है, जिसे लगा सकते हैं.

रोपाई : 50 सेंटीमीटर लाइन से लाइन और 40 सेंटीमीटर पौध से की दूरी रखते हुए रोपाई करें.

खाद और उर्वरक : अच्छी पैदावार के लिए 5-10 टन खूब सड़ी हुई गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट या कंपोस्ट का प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए. इस के अलावा 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश का प्रति हेक्टेयर हर साल इस्तेमाल करना चाहिए. नाइट्रोजन की मात्रा को 3 बार में दिया जाना चाहिए.

सिंचाई: रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करना बहुत जरूरी है. इस के बाद जरूरत के मुताबिक सिंचाई करनी चाहिए. वैसे बीचबीच सिंचाई करने से फसल की बढ़वार कई गुना बढ़ जाती है.

देखभाल : कुछ समस्याओं के अलावा एलोवेरा (Aloe Vera) में कीड़ों और बीमारियों का कोई खास प्रकोप नहीं होता है. कई बार देखने में आता है कि बरसात के मौसम में पत्तियों पर फफूंद जनित सड़न और धब्बे पड़ जाते हैं. इस की रोकथाम के लिए मैंकोजेब की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. कई बार जमीन के अंदर तने और जड़ों को ग्रब कुतरकुतर कर नुकसान पहुंचाते रहते हैं. इस की रोकथाम के लिए 60-70 किलोग्राम नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करनी चाहिए.

Aloe Vera

कटाई : तकरीबन 10-12 महीने बाद इस की पत्तियां कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. बढ़त के मुताबिक नीचे की 2-3 पत्तियों की कटाई पहले करनी चाहिए. तकरीबन 2 महीने के बाद से परिपक्व हो चुकी 3-4 पत्तियों की कटाई करते रहना चाहिए.

उपज : एलोवेरा (Aloe Vera) की 50-60 टन ताजी पत्तियां प्रति हेक्टेयर हासिल हाती हैं, जिन से 35-40 फीसदी तक उपयोगी रस (बार्वेलोइन रहित) मिल जाता है. यदि इसे दूसरे साल के लिए भी छोड़ दिया जाए तो उत्पादन में 10-15 फीसदी की बढ़ोतरी पाई जाती है. वैसे असिंचित दशा में उत्पादन थोड़ा कम मिलता है.

भंडारण : ताजी पत्तियों को कम तापमान में 1-2 दिनों तक रखा जा सकता है.

मुनाफा : एलोवेरा (Aloe Vera) की खेती से होने वाली आय बाजार की समझ, मूल्य और खरीदार पर निर्भर होती है. फिर भी मोटे तौर पर इस से 1.5 लाख से 3 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर सालाना कमाए जा सकते हैं. इस की खेती करने से पहले मार्केटिंग के बारे में गहराई से जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए, ताकि बिक्री के लिए भटकना न पड़े और वाजिब कीमत भी मिल सके.

Agricultural Science Fair: दिल्ली में तीनदिवसीय पूसा कृषि विज्ञान मेला

22 फरवरी, 2025 को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), नई दिल्ली द्वारा आयोजित तीनदिवसीय “पूसा कृषि विज्ञान मेला 2025” का उद्घाटन केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया. इस अवसर पर उन्होंने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक, आईएआरआई के निदेशक डा. सीएच श्रीनिवास राव, उपमहानिदेशक डा. डीके यादव सहित अन्य अधिकारी, कर्मचारी और बड़ी संख्या में किसान भाईबहन, कृषि वैज्ञानिक, कृषि उद्यमी, स्टार्टअप के प्रतिनिधि, खाद्य प्रसंस्करणकर्ता आदि उपस्थित रहे.

उद्घाटन भाषण में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प पूरा करने के लिए लगातार कृषि के क्षेत्र में हम काम कर रहे हैं. मैं भी किसान हूं, मेरे खेत में कद्दू लगा है, शिमला मिर्च भी है और टमाटर भी है. जब क्रौप बंपर आती है, तो कीमतें कई बार गिरती हैं. मैं फूलों की खेती भी करता हूं, गेहूं और धान की खेती भी करता हूं. मैं ऐसा किसान नहीं हूं कि मंत्री हूं तो साहब बन गया हूं, मैं महीने में 2 बार अपने खेत में पहुंचने की कोशिश करता हूं.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आईसीएआर (ICAR) को बधाई देते हुए कहा कि आज जो किस्में दिखाई हैं, वे अपनेआप में बड़ी उपलब्धि हैं. वैज्ञानिक दिनरात मेहनत कर रहे हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि हमारी 6 सूत्रीय रणनीति है. नंबर एक है उत्पादन बढ़ाना. उत्पादन बढ़ाने के लिए सब से प्रमुख चीज है अच्छे बीज. अच्छे बीज की वैरायटी बनाने का काम आईसीएआर (ICAR) कर रही है. हम कोशिश कर रहे हैं कि कैसे अच्छे बीज किसानों तक पहुंचें. ब्रीडर सीड, फाउंडेशन सीड के लिए हम तरीका निकालें कि कैसे वे किसान तक पहुंचें. बीज पहुंचाने के लिए विज्ञान और किसान को जोड़ना पड़ेगा. लैब टू लैंड, यह हम ने एक प्रयोग शुरू किया है आधुनिक कृषि चौपाल.

उन्होंने आईसीएआर (ICAR) को निर्देशित किया कि इस काम को अपने हाथ में ले ले. अगले महीने से आधुनिक कृषि चौपाल आईसीएआर (ICAR) करेगा.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने बताया कि दूसरा प्रमुख काम है, उत्पादन लागत घटाना. उत्पादन बढ़ने से लागत घटती है. इस संबंध में कई योजनाएं भी हैं.

उन्होंने बताया कि 24 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भागलपुर में किसान सम्मान निधि के तहत किसानों के खाते में राशि भेजेंगे.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने बताया कि मैं बिहार में मखाना उत्पादकों के बीच जाऊंगा, मखाना कैसे बोते हैं, वे देखेंगे. इस के पहले मैं सुपारी उत्पादकों के बीच गया था. अभी मैं ने पूसा में इंटीग्रेटेड फार्म देखा. एक हेक्टेयर में मछलीपालन, मुरगीपालन, तालाब था.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि हमें किसानों की लागत का इंतजाम भी करना है. किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा 3 लाख से बढ़ा कर 5 लाख रुपए कर दी गई है. इस से फलसब्जी के किसान को फायदा मिलेगा.

उन्होंने बताया कि तीसरा कार्य है, उत्पादन का ठीक दाम देना. इस के लिए लगातार एमएसपी (MSP) पर बढ़ोतरी की गई है. किसान का गेहूं, चावल तो सरकार खरीदेगी ही, मसूर, उड़द, तुअर भी पूरी खरीदी जाएगी. इन चीजों का उत्पादन तब बढ़ेगा, जब उन को अच्छे दाम मिले. किसान जहां बेचता है, वहां सस्ता बिकता है और दिल्लीमुंबई में आ जाए तो महंगा हो जाता है. अभी टमाटर के रेट कम हो गए. हम ने योजना बनाई है कि नेफेड के माध्यम से ट्रांसपोर्टेशन का खर्च केंद्र सरकार चुकाएगी, जिस से किसान को ठीक दाम मिलें.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सोयाबीन के रेट घटे, तो बाहर से आने वाले तेल पर इंपोर्ट ड्यूटी 27.5 फीसदी कर दी. चावल के निर्यात पर प्रतिबंध था, हम ने उसे हटाया और एक्सपोर्ट ड्यूटी कम की. बीच का मुनाफा जो है, वह घटना चाहिए, इस को ले कर हम वर्कआउट कर रहे हैं.

मंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि मैं किसान संगठनों से नियमित मिलता हूं, मैं आज कुरुक्षेत्र जाऊंगा, चंडीगढ़ भी जाऊंगा. मुझे किसानों से सुझाव मिलते हैं.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि उन्हें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बताया कि लाल मिर्ची की कीमत कम हो गई है. हम ने तय किया कि लाल मिर्ची को हम एमआईएस (MIS) योजना के तहत खरीदने की अनुमति देंगे.

उन्होंने कहा कि इसी तरह चौथा प्रमुख कार्य है कि जब प्राकृतिक आपदा में फसल खराब होती है, उस के लिए हम प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से मदद करते हैं. किसानों को जो लोन मिलता है, वह 7 लाख करोड़ से बढ़ कर 25 लाख करोड़ रुपए हो गया है.

शिवराज सिंह ने किसान भाइयों को आमंत्रित किया कि जो सुझाव हो, दीजिए, उसे हम वर्कआउट करेंगे.

उन्होंने कहा कि विकसित भारत तभी बनेगा, जब कृषि उन्नत होगी. आज जो नई किस्म का प्रदर्शन हुआ है, कोशिश होगी कि जल्दी से जल्दी वह किसान तक पहुंचें.

उन्होंने बताया कि मैं ने मध्य प्रदेश में किसान के लिए योजना बनाई, तो किसान के बीच बैठ कर बनाई. मैं कल मखाने के पोखर में उतरूंगा और देखूंगा कि कैसे मखाने की खेती होती है. इसलिए अब वैज्ञानिक भी खेत में उतरेंगे.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि एक समय था, जब भारत को अमेरिका से पीएल 480 गेहूं मंगवा कर खाना पड़ता था, जबकि आज भारत कई देशों का पेट भर रहा है. ये हमारे किसानों की मेहनत से हुआ है. ऐसे कई प्रयत्न हमें करने हैं.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि एक बात और है कि अपने देश में कोई चीज हो न हो, 5 साल, 12 महीने चुनाव की तैयारी चलती रहती है. सालभर नहीं हुआ, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के चुनाव हुए, फिर लोकसभा चुनाव, फिर महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मूकश्मीर, हरियाणा के चुनाव और उस के बाद दिल्ली का दंगल. इस चुनाव की तैयारी में सारे काम ठप हो जाते हैं, प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री, अधिकारी सब चुनाव में लग जाते हैं. लांग टर्म की प्लानिंग नहीं हो पाती. अगर संशोधन कर के ये तय कर दिया जाए कि सभी चुनाव एक बार में होंगे, तो कैसा रहेगा? आओ, इस किसान मेले में संकल्प लें कि 5 साल में एक बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव होना चाहिए, ताकि सभी लोग जनता की सेवा में लग सकें.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने “नवोन्मेषी कृषक” और “अध्येता कृषक” पुरस्कारों से किसानों को सम्मानित किया, जिन्होंने अपनी खेती में नई तकनीकों को अपना कर अनुकरणीय कार्य किए हैं.

मेले के दौरान किसानों को नवाचारों और वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. मेले में किसानों के लिए उन्नत बीज, जैविक खाद, जलवायु अनुकूल तकनीक, ड्रोन स्प्रे तकनीक, स्मार्ट सिंचाई तकनीक और बाजार लिंकेज जैसी महत्वपूर्ण जानकारी 300 से अधिक स्टाल के माध्यम से उपलब्ध कराई गई है. इस आयोजन से किसानों को नई तकनीकों को अपनाने, वैज्ञानिकों से सीधे बात करने और अपनी खेती को लाभदायक बनाने के लिए आवश्यक जानकारी प्राप्त करने का अवसर मिला है.

Pests of Mango: आम के खास कीट

फरवरी और मार्च आम के लिए खास महत्त्व वाले महीने होते हैं. इन्हीं महीनों में आम में बौर आने का समय होता है या बौर लग चुका होता है. बौर लगने से ले कर तोड़ाई तक आम के तमाम दुश्मन कीट (Pests of Mango) होते हैं, जो जरा सी सावधनी हटने पर बड़ा नुकसान कर देते हैं. आइए जानते हैं आम की फसल में लगने वाले खास कीटों और उन की रोकथाम के बारे में.

मैंगो हापर : इसे कुटकी, भुनगा या लस्सी कीट के नाम से भी जाना जाता है. इस कीट का प्रकोप बौर निकलते ही जनवरीफरवरी में शुरू हो जाता है. यह एक छोटा, तिकोने शरीर वाला भूरे रंग का आम का सब से खतरनाक कीट है. ये कीट आम की नई पत्तियों व फूलों का रस चूसते हैं. प्रभावित भाग पर इन के द्वारा छोड़े गए स्राव से सूटी मोल्ड (काली फफूंदी) उग जाती है. इस से पत्तियों का भोजन बनने का काम रुक जाता है.

इस की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 40 ईसी 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या डाईमेथोएट 30 ईसी 1.5-2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या 50 फीसदी घुलनशील कार्बोरिल 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए. ध्यान रहे कि कीटनाशक का पहला छिड़काव बौर की 2-3 इंच अवस्था पर, दूसरा छिड़काव उस के 15-20 दिनों बाद और तीसरा छिड़काव जब फल सरसों के दाने के आकार के हो जाएं तब किया जाना चाहिए.

मैंगो मिली बग : इसे चेंपा के नाम से भी जानते हैं. यह कोमल शाखाओं व फूलों के डंठलों पर फरवरी से मई तक चिपका हुआ पाया जाता है. यह कोमल भागों का रस चूस कर एक लसलसा पदार्थ छोड़ता है, जो कि फफूंदी रोगों को बढ़ावा देता है. इस से ग्रसित फूल बिन फल बनाए ही गिर जाते हैं.

इस की रोकथाम के लिए यदि कीट पौधों पर चढ़ गए हों, तो डाईमेथोएट (रोगोर) नामक दवा 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिला कर 15 दिनों के अंदर 2 बार छिड़काव करना चाहिए या कार्बोसल्फान 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. वैसे इस कीट से बेहतर बचाव के लिए दिसंबर महीने के पहले पखवारे में आम के तने के चारों ओर गहरी जुताई कर देनी चाहिए. तने पर 400 गेज की पालीथिन की 25 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी लपेट देनी चाहिए. पट्टी के ऊपरी व निचले किनारों को सुतली से बांध देना चाहिए. निचले सिरे पर ग्रीस लगा कर सील कर के जनवरी महीने में ही 250 ग्राम प्रति पेड़ की दर से क्लोरपाइरीफास चूर्ण का तने के चारों ओर बुरकाव कर देना चाहिए.

तना बेधक : इस का प्रौढ़ की करीब 5-8 सेंटीमीटर लंबा, मटमैला या राख के रंग का होता है. इस कीट की सूंडि़यां तने में नीचे से ऊपर की ओर छेद करती हैं, जिस से तने से बुरादा निकलता नजर आता है, नतीजतन तना व मोटी शाखाएं सूख जाती हैं.

इस की रोकथाम के लिए साइकिल की तीली या दूसरी किसी मजबूत तीली से सूंडि़यों को निकाल कर रुई को मिट्टी के तेल या पेट्रोल या 1 फीसदी की दर से मोनोक्रोटोफास के घोल में भिगो कर तने में किए छेदों में डाल कर छेदों को गीली मिट्टी से बंद कर देना चाहिए.

शूट बोरर : इसे शाखा बेधक या प्ररोह छिद्रक कीट के नाम से भी जानते हैं. इस की सूंड़ी नई शाखाओं और प्ररोहों में ऊपर से नीचे की ओर छेद कर के उन्हें खोखला कर देती है.

इस की रोकथाम के लिए प्रभावित भाग को काट कर जला देना चाहिए और नई बढ़वार के समय 4 ग्राम प्रति लीटर कार्बेरिल या 2 मिलीलीटर प्रति लीटर क्वीनालफास का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए.

गाल मिज : इसे पुष्पगुच्छ कीट भी कहते हैं. ये बहुत ही छोटे और हलके गुलाबी रंग के होते हैं. इन कीटों से प्रभावित बौर टेढ़े हो जाते हैं और वहां पर काले धब्बे दिखाई देते हैं. इन की रोकथाम के लिए डायमेथोएट 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से कलियां निकलने के समय पहली बार छिड़काव करना चाहिए और दूसरा छिड़काव जरूरत के हिसाब से 15 दिनों के बाद करना चाहिए.

फ्रूट फ्लाई : इसे फल मक्खी के नाम से भी जानते हैं. यह पीलेभूरे रंग की मक्खी होती है, जो पके या अधपके फलों की त्वचा के नीचे अंडे देती है. इन अंडों से सूंडि़यां निकल कर फलों के अंदर का गूदा खाती रहती हैं. इस से फल सड़ कर गिर जाते हैं. इस कीट का हमला पतली त्वचा वाली और देर से पकने वाली प्रजातियों पर ज्यादा होता है.

इस की रोकथाम के लिए फलों को पकने से पहले ही पेड़ से तोड़ लेना चाहिए और प्रभावित फलों को जमा कर के जमीन के अंदर करीब 1 मीटर गहराई तक दबा देना चाहिए. फल मक्खी को खत्म करने के लिए उसे जमीन के अंदर तकरीबन 1 मीटर गहराई पर दबाना चाहिए. फल मक्खी को मारने के लिए पेड़ों पर जहरीली गोलियां लटका देनी चाहिए. इस के लिए कार्बोरिल 4 ग्राम प्रति लीटर पानी या मिथाइल यूजीनाल के घोल को 1 फीसदी की दर से डब्बों में डाल कर बागों में अप्रैल से अक्तूबर तक लटकाने से नर कीट कीटनाशक की तरफ खिंच कर मर जाते हैं.

स्टोन वीविल: यह कीट आम बनने की शुरुआती दशा में हमला करता है. जब फल मटर के आकार के होते हैं, तो विविल फल की सतह पर अंडे देती है और अंडों से ग्रब निकल कर गुठली में छेद कर के घुस जाते हैं. ये अपना पूरा जीवनचक्र यहीं पूरा करते हैं व अपने मल पदार्थ से फल के गूदे को खराब कर देते हैं. इन की रोकथाम के लिए बगीचों की खूब अच्छी तरह से सफाई करनी चाहिए.

Cowpea: पशुओं के लिए पौष्टिकता से भरपूर लोबिया

पशुओं के लिए लोबिया (Cowpea)  दलहन चारा है. अधिक पौष्टिक व पाचकता से भरपूर होने के कारण इसे घास के साथ मिला कर बोने से इस की पोषकता बढ़ जाती है.

इस की फसल उगाने से किसानों को कई फायदे होते हैं. पहला तो यह कि इस से पशुओं के लिए हरा चारा मिलता है, वहीं दूसरी ओर खेत के खरपतवार को खत्म कर के मिट्टी की उर्वरताशक्ति भी बढ़ाने का काम करती है.

लोबिया (Cowpea) की फसल को किसान खरीफ और जायद मौसम में उगा सकते हैं.

भूमि और खेत की तैयारी

लोबिया (Cowpea)  की खेती आमतौर पर अच्छे जल निकास वाली सभी तरह की जमीनों में की जा सकती है, लेकिन दोमट मिट्टी पैदावार के हिसाब से अच्छी मानी गई है. अच्छे उत्पादन के लिए खेत को हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 जुताई करनी चाहिए, इस से बीज में अंकुरण जल्दी होता है और फसल अच्छी होती है.

बोआई का समय

लोबिया (Cowpea)  की फसल साल में 2 बार की जाती है. गरमियों की फसल के लिए बोआई का सही समय मार्च होता है, खरीफ मौसम में लोबिया (Cowpea) की बोआई बारिश शुरू होने के बाद जुलाई महीने में करनी चाहिए.

उन्नत किस्में

किसी भी फसल के ज्यादा उत्पादन के लिए कई कारक जिम्मेदार होते हैं, उन में से एक उन्नत किस्म का बीज भी है. अगर आप अच्छे किस्म का बीज बोएंगे तो अधिक पैदावार मिलेगी. इसलिए जब भी बोआई करें, अच्छे बीज ही इस्तेमाल करें. आप की जानकारी के लिए कुछ उन्नत बीजों के नाम इस प्रकार हैं:

कोहिनूर, बुंदेल लोबिया-2, बुंदेल लोबिया-3, यूपीसी-5287, आईएफसी-8503, ईसी- 4216, यूपीसी- 5286, 618 वगैरह.

बीज की मात्रा व बोआई

किसान पशुओं के चारे के लिए एक ही खेत में कई तरह के बीज मिला कर बोआई करते हैं. ऐसे में अगर सिर्फ लोबिया (Cowpea)  की फसल लेनी है, तब 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर सही होता है. अगर ज्वार या मक्का आदि के साथ बोना है तो 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर ठीक होता है.

सिंचाई

गरमियों के मौसम में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. पूरे सीजन में लगभग 6-7 सिंचाई करनी पड़ती है, जबकि खरीफ मौसम में आमतौर पर सिंचाई की जरूरत नहीं होती है, लेकिन लंबे समय तक बारिश न होने पर 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

गरमी में ज्यादा खरपतवार की दिक्कत नहीं होती, लेकिन 20-25 दिनों में खुरपी या फावड़े से गुड़ाई कर के खरपतवार पर काबू पाया जा सकता है. बीज बोने से पहले ट्रीफ्लूरानिन (0.75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव करने से खरपतवार की बढ़वार कम होती है.

फसल कटाई

खरीफ मौसम की फसल 50-60 दिनों में और गरमियों की फसल 70-75 दिनों में कटाई (50 प्रतिशत फूल आने पर) के लिए तैयार हो जाती है. लोबिया (Cowpea)  की फसल की कटाई तब भी शुरू की जा सकती है, जब पौधे बड़े हो जाएं और चारे के लिए इस्तेमाल किए जाने लगें.

Guava Garden: पथरीली जमीन पर उगाया अमरूद का बगीचा

Guava Garden| मध्य प्रदेश के सतना जिले से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर उत्तरपूर्व में बसे खुटहा गांव के किसान कृष्ण किशोर त्रिपाठी ने अपनी दूरदृष्टि, मेहनत और मजबूत इरादे से आज वह कर दिखाया है, जो कई किसानों के लिए प्रेरणा बन गया है. पथरीली जमीन पर खेती करना हमेशा से चुनौती भरा होता है, लेकिन आज कृष्ण किशोर ने इस जमीन को उपजाऊ बना दिया है. उन्होंने 30 साल से बंजर पड़ी इस जमीन पर अमरूद का बगीचा (Guava Garden) लगाया है और अब वे हर साल लाखों रुपए की आमदनी कर रहे हैं.

पहली बार लगाए 75,000

कृष्ण किशोर त्रिपाठी ने साल 2022 में अपने एक एकड़ खेत में अमरूद के 400 पौधे लगाए थे. इस के लिए उन्होंने रतलाम से सुनहरा (गोल्डन) अमरूद की किस्म के पौधे 85 रुपए प्रति पौध की दर से खरीदे थे. पौधों को लगाने के लिए गड्ढे खोदने, खाद डालने और मजदूरी का खर्च मिला कर प्रति पौधा 150 रुपए का खर्च आया था. इस के अलावा ड्रिप इरिगेशन (टपक सिंचाई) प्रणाली लगाने पर तकरीबन 12,000 रुपए का खर्च आया. इस प्रकार पहले साल उन्हें कुल 75,000 रुपए खर्च करने पड़े थे. उन के बगीचे में अब 3 फुट ऊंचे पेड़ों पर

12 किलोग्राम तक के फल लग चुके हैं.

किसान कृष्ण किशोर झुके हुए अमरूद के पेड़ को संभालते हुए बताते हैं कि जमीन तो पथरीली थी, लेकिन मैं ने ठान लिया था कि इसे उपजाऊ बनाना है. अमरूद के पौधे लगाते वक्त हर पौधे के लिए गड्ढे खोदने, खाद डालने और पानी की व्यवस्था में काफी मेहनत लगी. ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगा कर पानी की समस्या को भी हल किया. पहले साल में 75,000 रुपए का खर्च हुआ, लेकिन यह मेरी मेहनत का आधार था. अब हर पेड़ पर 12 किलोग्राम के फल आ रहे हैं, जो मेरी उम्मीद से भी ज्यादा हैं.

1.44 लाख रुपए की कमाई

कृष्ण किशोर त्रिपाठी ने इस समय 400 अमरूद के पेड़ों से प्रति पेड़ 12 किलोग्राम फल निकाले हैं. कुलमिला कर 4.8 टन फल का उत्पादन हुआ, जो थोक बाजार में 30 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव से 1.44 लाख रुपए में बिका. आने वाले 2 सालों में जब पेड़ 5 फुट से अधिक ऊंचे हो जाएंगे, तब प्रति पेड़

20 किलोग्राम फल मिलने की उम्मीद है. ऐसे में कुल उत्पादन 8 टन होगा और तकरीबन 2.4 लाख रुपए की कमाई होगी.

कृष्ण किशोर ने कहा कि अमरूद की खेती ने हमें एक नई दिशा दी है. पहली फसल में ही 1.44 लाख रुपए की कमाई ने हमारी मेहनत पर भरोसा बढ़ाया है. आने वाले 2 सालों में उत्पादन और आय दोनों में बढ़ोतरी की उम्मीद है. इस से हमें कृषि के क्षेत्र में और भी नए प्रयोग करने की प्रेरणा मिल रही है.

सतना जिले के अमरूद उत्पादन का डाटा शेयर करते हुए उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के उद्यानिकी अधिकारी नरेंद्र सिंह बताते हैं कि साल 2022-23 के अंतिम अनुमान में 971 हेक्टेयर में 11,364 मीट्रिक टन अमरूद का उत्पादन दर्ज किया गया है, जबकि मध्य प्रदेश राज्य देश में अमरूद उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर है. पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश है. राष्ट्रीय उद्यानिकी बोर्ड द्वारा जारी 2021-22 के पहले अतिरिक्त अनुमान के मुताबिक मध्य प्रदेश में 776.75 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ.

मेहनत से हासिल की सफलता

खुटहा गांव के किसान कृष्ण किशोर त्रिपाठी की जमीन के नीचे केवल 2 फुट खेती लायक ही मिट्टी थी. इस के नीचे पत्थर ही पत्थर थे. इस जमीन पर खेती करना लगभग नामुमकिन था. किसान कृष्ण किशोर के परदादा ने तकरीबन 50 साल पहले इस जमीन को उपयोगी बनाने के लिए 3 फुट मिट्टी डलवाई थी, जिस में कोदोकुटकी जैसी मोटे अनाज की फसलें उगाई जाती थीं, लेकिन बाद में यह जमीन बंजर हो गई.

इस के बाद कृष्ण किशोर ने 30 साल बाद इस जमीन को फिर से खेती लायक बनाने का फैसला किया. वे बताते हैं कि जमीन पर पड़ी मिट्टी को उन्होंने दोबारा उपयोगी बनाया. अब इस में अमरूद का बगीचा लगा कर वे हर साल लाखों रुपए की आमदनी ले रहे हैं.

कृष्ण किशोर त्रिपाठी ने बताया कि यह विचार उन के मन में तब आया था, जब उन की बेटी की तबीयत खराब थी और वे फल खरीदने बाजार गए थे. उस समय सेब का दाम 280 रुपए प्रति किलोग्राम था. उन्होंने तभी तय किया कि वे फलों की खेती करेंगे.

जल संकट से निबटने के लिए ड्रिप योजना खुटहा गांव में पानी की कमी हमेशा से एक बड़ी समस्या रही है. किसान कृष्ण किशोर त्रिपाठी को भी इस का सामना करना पड़ा. उन्होंने 3 बार बोरिंग कराई. पहले 2 बार वे असफल रहे, लेकिन तीसरी बार 150 फुट की गहराई पर पानी मिला. इस के बाद उन्होंने इसे 300 फुट गहराई तक कराया. बोरिंग पर कुल 2.4 लाख रुपए का खर्च आया.

पानी की कमी के कारण किसान कृष्ण किशोर ने टपक सिंचाई प्रणाली का सहारा लिया. यह विधि पानी की बचत में सहायक है और इस से पेड़ों को जरूरत के अनुसार पानी मिलता है. वे बताते हैं कि पानी की कमी हमारे इलाके की सचाई है, लेकिन तकनीक और मेहनत से इस का समाधान संभव है.

सागौन और सेब के पौधे भी लगाए

किसान कृष्ण किशोर ने 2,000 सागौन के पौधे लगाए, जो अब बड़े हो चुके हैं. इस के अलावा उन्होंने सेब के पौधे भी लगाए हैं. सेब के पौधों पर फिलहाल फूल नहीं आए हैं, लेकिन अगले 2 सालों में फल मिलने की संभावना है.

वे बताते हैं कि सागौन के पौधे बड़े हो गए हैं. खेती से जुड़ कर मन को शांति मिलती है.