Seafood : समुद्री खाद्य निर्यात को बढ़ावा

Seafood : मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत मत्स्यपालन विभाग ने पिछले दिनों नई दिल्ली स्थित अंबेडकर भवन में समुद्री खाद्य (Seafood) निर्यातक सम्मेलन 2025 का आयोजन किया.

इस बैठक में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय (एमओएफएएचएंडडी) और पंचायती राज मंत्रालय (एमओपीआर) मंत्री राजीव रंजन सिंह, एमओएफएएचएंडडी और एमओपीआर राज्य मंत्री प्रोफैसर एसपी सिंह बघेल और राज्य मंत्री एमओएफएएचएंडडी और अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय जौर्ज कुरियन भी उपस्थित थे.

इस बैठक में वाणिज्य विभाग, समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, निर्यात निरीक्षण परिषद, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के अधिकारियों, उद्योग भागीदारों और किसानों ने भाग लिया. इस में भारत सरकार के मत्स्यपालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और गुजरात के मत्स्यपालन विभागों के अधिकारियों ने भी भाग लिया.

इस बैठक के दौरान, केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने भारतीय समुद्री खाद्य (Seafood) की निर्यात क्षमता को बढ़ाने के लिए इस में मूल्य संवर्धन के महत्त्व पर जोर दिया. उन्होंने मत्स्यपालन क्षेत्र में चल रही सरकारी गतिविधियों पर का जिक्र किया, जिस में सभी भागीदारों के लिए बेहतर बाजार संपर्क हेतु सिंगल विंडो सिस्टम का विकास, उच्च स्तर के सागरीय और विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में मत्स्यपालन को मजबूत करना और बुनियादी ढांचे को उन्नत करना शामिल है. इस का उद्देश्य मत्स्यपालन क्षेत्र को और अधिक मजबूत करना है.

उन्होंने आगे उद्योग के सामने आने वाली टैरिफ चुनौतियों से निपटने में समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया और राज्य सरकारों के साथ समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण से राज्यवार प्रजाति विशिष्ट निर्यातों के सटीक मानचित्रण और नए निर्यात अवसरों की पहचान के लिए सभी हितधारक के साथ सलाह आयोजित करने का आग्रह किया. उन्होंने वहां मौजूद सभी भागीदारों को भारतीय समुद्री खाद्य (Seafood) निर्यात को और मजबूत बनाने के लिए सरकार की तरफ से आश्वासन भी दिया.

प्रोफैसर एसपी सिंह बघेल ने देश के बड़े मत्स्य संसाधनों का जिक्र किया और सभी भागीदारों से भारत के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए उन का लाभ उठाने का आग्रह किया. उन्होंने वैश्विक बाजार जोखिमों को कम करने के लिए नए बाजारों की पहचान करने व उन का उपयोग करने के महत्त्व पर जोर दिया और सभी भागीदारों से समुद्री खाद्य (Seafood) मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने और उस का विस्तार करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिल कर काम करने का आह्वान किया.

राज्य मंत्री मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय जौर्ज कुरियन ने “वोकल फौर लोकल” दृष्टिकोण को दोहराया और इस बात पर जोर दिया कि घरेलू बाजारों को मजबूत करने से विशेष रूप से वैश्विक टैरिफ चुनौतियों के मद्देनजर मछुआरों एवं किसानों के लिए नए अवसर पैदा होंगे.

एमओएफएएचएंडडी सचिव (मत्स्यपालन) डा. अभिलक्ष लिखी ने इस बात पर जोर दिया कि धनराशि के हिसाब से भारत के समुद्री खाद्य (Seafood) निर्यात का केवल 10 फीसदी ही वर्तमान में मूल्यवर्धित उत्पाद हैं, उन्होंने बढ़े हुए घरेलू उत्पादन या आयात और पुनर्निर्यात रणनीतियों के माध्यम से वैश्विक मानदंडों के अनुरूप इस हिस्से को 30-60 फीसदी तक बढ़ाने की जोर दिया.

उन्होंने एक ही प्रजाति, व्हाइटलेग श्रिम्प पर भारी निर्भरता पर चिंता जताई, जिस का निर्यात मूल्य 62 फीसदी है, लेकिन मात्रा केवल 38 फीसदी है. डा. अभिलक्ष लिखी ने फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने की तुरंत आवश्यकता पर जोर दिया और आश्वासन दिया कि टैरिफ और गैरटैरिफ बाधाओं से संबंधित मुद्दों को वाणिज्य विभाग, विदेश मंत्रालय और अन्य संबंधित अधिकारियों के साथ समन्वय कर के हल किया जाएगा.

उन्होंने बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए उन की पहचान और वित्तपोषण के लिए लक्षित इनपुट का भी आह्वान किया, जिस से समुद्री खाद्य (Seafood) निर्यात मूल्य श्रृंखला में मूल्यवर्धन को विशेष रूप से बढ़ावा मिलेगा.

इस बैठक में भागीदारों ने समुद्री खाद्य (Seafood) निर्यात को बढ़ावा देने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों के बारे में बताया, जिन में चीन जैसे प्रतिस्पर्धी देशों द्वारा कड़े प्रोत्साहनों की पेशकश के बावजूद अधिक मूल्य संवर्धन की आवश्यकता, अमेरिका जैसे प्रमुख बाजारों में टैरिफ बाधाएं और यूरोपीय संघ जैसे उच्चमूल्य वाले क्षेत्रों तक पहुंचने में प्रमाणन और अनुपालन संबंधी बाधाएं शामिल हैं.

डा. अभिलक्ष लिखी ने निजी परीक्षण, थर्डपार्टी मंजूरी और कृषि प्रमाणन जैसी गैरटैरिफ बाधाओं के साथसाथ रेनबो ट्राउट जैसे विशिष्ट उत्पादों के लिए कोल्ड चेन और प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे में कमियों की ओर भी इशारा किया. इन सुझावों में बड़े निर्यातकों को योजना के लाभ प्रदान करना, मूल्य संवर्धन के लिए प्रोत्साहन देना, सरकार समर्थित प्रमाणन सहायता को मजबूत करना, बुनियादी ढांचे को बढ़ाना, वैश्विक खरीदारों के साथ बी2बी संपर्क को आसान बनाना और बैंकों व एनबीएफसी के माध्यम से वित्त तक पहुंच में सुधार करना शामिल था.

समुद्री खाद्य (Seafood) निर्यात के विस्तार के लिए पहचाने गए वैकल्पिक बाजारों में ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण कोरिया, रूस और चीन शामिल थे, जिन में दक्षिण कोरिया की क्षमता और मध्य पूर्व की बढ़ती मांग पर विशेष जोर दिया गया.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने भारत के समुद्री खाद्य (Seafood) निर्यात के भविष्य से संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण विषयों पर मीडिया प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की. उन्होंने हाल के अमरीकी टैरिफ से उत्पन्न चुनौतियों के बारे में विस्तार से बात की और निर्यातकों के हितों की रक्षा और वैश्विक बाजारों में भारत की प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त बनाए रखने के लिए सरकार के द्वारा चलाए जा रहे उपायों का भी जिक्र किया.

उन्होंने बीते सालों में मत्स्यपालन क्षेत्र की उपलब्धियों का भी जिक्र किया और उत्पादन में हुई खास बढ़ोतरी, बुनियादी ढांचे के विकास और बाजार विविधीकरण के बारे में बताया. इस के अलावा, उन्होंने भारत में समुद्री खाद्य (Seafood) मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने के लिए चलाई जा रही विभिन्न प्रमुख योजनाओं और गतिविधियों पर भी जानकारी साझा की.

Mushroom : मशरूम उत्पादन ट्रेनिंग: रोजगार की संभावनाएं

Mushroom : मशरूम एक ऐसी खेती है जिसे बिना जमीन के भी किया जा सकता है और रोजगार का अच्छा जरीया बनाया जा सकता है. जरुरत है कि मशरूम के काम को करने से पहले इस की तकनीकी जानकारी ली जाए. उस के लिए आप को मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग लेनी होगी. मशरूम उत्पादन कैसे किया जाए इस की ट्रेनिंग अनेक कृषि संस्थानों में मुफ्त में दी जाती है. जिसे कर के आप अपना रोजगार भी कर सकते हैं. मशरूम की प्रोसैसिंग कर इसे कहीं अधिक लाभकारी बनाया जा सकता है. इसी विषय पर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में मशरूम उत्पादन तकनीक पर 3 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया. इस प्रशिक्षण में हरियाणा व राजस्थान के विभिन्न 14 जिलों के प्रतिभागियों ने भाग लिया.

कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान के सहनिदेशक डा. अशोक कुमार गोदारा ने बताया कि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज के मार्गदर्शन में आयोजित किए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य युवाओं का कौशल विकास कर के उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है. मशरूम के प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं.

उन्होंने आगे बताया कि केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा मशरूम के उत्पादन, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन पर अनुदान दे कर युवाओं को इसे एक रोजगार के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने बटन मशरूम के अलावा खाद्य और औषधीय मशरूम जैसे किंग ओयस्टर, शिटाके, कीड़ाजड़ी और गैनोडर्मा मशरूम के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण संस्थानों में युवाओं का कौशल विकास कर के उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए मधुमक्खीपालन, केंचुआ खाद उत्पादन, संरक्षित खेती, बेकरी, फल और सब्जी संरक्षण, डेयरी फार्मिंग, नर्सरी उत्पादन जैसे रोजगारन्मुखी प्रशिक्षण समयसमय पर आयोजित किए जाते हैं. यह प्रशिक्षण डा. सतीश कुमार महता व संस्थान के अन्य वैज्ञानिकों की देखरेख में आयोजित किया गया. प्रशिक्षण के दौरान डा. सतीश कुमार, डा. संदीप भाकर, डा विकास कंबोज, डा. राकेश कुमार चुघ, डा. प्रियंका, डा. डीके शर्मा, डा. भूपेंद्र सिंह, डा. विकाश हुड्डा ने विभिन्न विषयों पर विस्तार से जानकारी दी. प्रशिक्षण के समापन अवसर पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र दिए गए.

Agricultural Innovation : जमीनी कृषि नवाचार का अनोखा मौडल

Agricultural Innovation : 5 अगस्त, 2025 को ‘भारत निर्माण यात्रा ‘ के अंतर्गत देश के 11 अनेक राज्यों से आए 25 उच्च शिक्षित युवाओं ने ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर,’ चिकलपुटी (कोंडागांव) का दौरा किया.

यह यात्रा उन उभरते प्रोफैशनलों के लिए है, जो इंजीनियरिंग, स्थापत्य कला, पत्रकारिता, फिल्म निर्माण, सामाजिक विज्ञान और प्रबंधन जैसे विविध क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखते हैं और अब देश के जमीनी परिवर्तन में सहभागी बनने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

प्राकृतिक ग्रीनहाउस एक मजबूत, स्वदेशी विकल्प

इस यात्रा का प्रमुख आकर्षण रहा प्राकृतिक ग्रीनहाउस मौडल, जिसे मां दंतेश्वरी हर्बल फार्मस और रिसर्च सैंटर ने पौलीहाउस के महंगे और प्लास्टिक आधारित विकल्प के स्थान पर विकसित किया है. यह नवाचार प्लास्टिक के 40 लाख रुपए की लागत में तैयार होने वाले एक एकड़ के पौलीहाउस की तुलना में मात्र 2 लाख रुपए  प्रति एकड़ की लागत से तैयार होता है और पारिस्थितिकीय संतुलन, कम जल उपयोग और दीर्घकालिक टिकाऊ खेती की दृष्टि से उत्कृष्ट माना जा रहा है.

इस यात्रा दल का नेतृत्व कर रहे अनुराग ने उन्हें आस्ट्रेलियन टीक (MDAT-16) के साथ अंतरवर्तीय काली मिर्च की जैविक खेती, हल्दी, इंसुलिन प्लांट और टीक वृक्षों के माध्यम से होने वाली प्राकृतिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण प्रक्रिया से अवगत कराया.

ईथनो मैडिको फारेस्ट और 340 दुर्लभ औषधीय प्रजातियों का संरक्षण

इस फार्म के निदेशक अनुराग त्रिपाठी और एमडी बोटैनिकल्स की निदेशक अपूर्वा त्रिपाठी ने सभी प्रतिभागियों को फार्म के भीतर विकसित “मैडिको फारेस्ट” का अवलोकन कराया. जहां 22 दुर्लभ, विलुप्तप्राय औषधीय वनस्पतियों का उन के प्राकृतिक रहवास में संरक्षण और संवर्धन कर उन के विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है.

इस के अतिरिक्त, उन्होंने बताया कि यहां 340 से अधिक औषधीय व सुगंधित पौधों की प्रजातियों की खेती की जाती है, जिस से बस्तर के सैकड़ों आदिवासी परिवारों को सतत आजीविका प्राप्त हो रही है. यह फार्म परंपरागत ज्ञान, जैविक खेती, विज्ञान और सामाजिक उत्तरदायित्व का जीताजागता संगम बन चुका है.

महिला किसानों की खास भूमिका

इस अवसर पर यात्रियों ने फार्म से जुड़े महिला स्वयं सहायता समूहों की प्रमुख जसमती नेताम से बातचीत की, जिन्होंने महिला किसानों की भूमिका और स्थानीय हर्बल अर्थव्यवस्था, हर्बल इकौनोमी  में उन के योगदान की विस्तार से जानकारी दी. साथ ही, बस्तर के स्थानीय आदिवासी किसान प्रतिनिधियों कृष्णा नेताम, शंकर नाग, समली बाई, बिलची बाई आदि से हुई बातचीत ने युवाओं को जमीनी नवाचार, परंपरागत खेती और स्थानीय नेतृत्व की वास्तविकताओं से परिचित कराया.

दिन भर की यह यात्रा पारंपरिक सादे बस्तरिया भोजन के साथ संपन हुई. जो स्वयं खेतों के मध्य प्रकृति की गोद में दोना पत्तल पर परोसा गया. इस ने यात्रा के अनुभव को न केवल जानकारीपूर्ण बल्कि, आत्मिक रूप से भी समृद्ध किया. इस संपूर्ण आयोजन को सफल बनाने में फार्म की समर्पित टीम शिप्रा, केविन, ऋषिराज, बलई और माधुरी का योगदान सराहनीय रहा.

एक यात्रा, जो आशा और नवाचार का सेतु बनी

भारत निर्माण यात्रा के आयोजनकर्ताओं प्रियांक पटेल, आलोक साहू, तुपेश चंद्राकर, रचना एवं आशीष को मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता है, जिन के प्रयासों से देश के युवा नवचिंतकों को बस्तर की धरती से जोड़ने और ‘स्वदेशी नवाचार’ का प्रत्यक्ष अनुभव कराने का यह अवसर संभव हुआ. यह यात्रा न केवल एक शैक्षणिक खोज थी, बल्कि यह भविष्य के भारत निर्माण की नींव रखने वाले विचारों, सिद्धांतों और लोगों के साथ सीधा संवाद भी सिद्ध हुई.

World Tribal Day : सस्ते दामों पर जमीन बेचने को मजबूर आदिवासी

World Tribal Day : 9 अगस्त, 2025 को सभी जनजातीय क्षेत्रों में विश्व आदिवासी दिवस तीरकमान, ढोलमृदंग और पारंपरिक वेशभूषा और पारंपारिक नृत्य के साथ मनाया गया. खूब भाषणबाजी हुई. जैसे अन्य ‘दिवसों’ पर होती है, वही हमेशा की तरह वादे, वही पुरानी घोषणाएं, वही भावनात्मक नारों की गूंज. लेकिन आज एक दिन बाद जब उत्सव की थकान उतर चुकी है, सवाल यह है कि क्या हम ने इस अवसर पर कुछ सकारात्मक कदम उठाए या फिर इसे भी कैलेंडर पर एक और ‘त्योहार’ बनाकर छोड़ दिया?

वोट की राजनीति ने आदिवासी और गैरआदिवासी के बीच कृत्रिम ‘लगाव’ और ‘बिलगाव’ दोनों को एक साथ पैदा किया है. पांचवी और छठी अनुसूची के जिलों में दशकों से यह धारणा बोई गई है कि सभी गैरआदिवासी उन के दुश्मन हैं. जबकि सच्चाई यह है कि कई पीढ़ियों से बसे राजवंशों, सरकारी कर्मचारियों, शिक्षकों, डाक्टरों, व्यापारियों, किसानों और कारीगरों ने आदिवासी समुदाय के साथ कंधे से कंधा मिला कर खेत, खदान, सड़क और स्कूल खड़े किए हैं.

‘आदिवासी संरक्षण’ के नाम पर बने ज्यादातर कानून, जैसे कि आदिवासी भूमि को गैरआदिवासी न खरीद सके, अकसर आदिवासी लोगों के विकास में उलटा असर डालते हैं. अनुसूची 5 के क्षेत्रों में, जैसे कि बस्तर में, जिस जगह गैरआदिवासी की जमीन 30–40 लाख रुपए प्रति एकड़ बिक रही है, वहीं उस के बगल की आदिवासी जमीन का मालिक जरूरतमंद आदिवासी अपनी जमीन मात्र 2–3 लाख रुपए में बेचने को मजबूर है और यह कानूनी खरीदारी के नाम पर 30 लाख रुपए मूल्य की भूमि को मात्र 3 लाख रुपए में खरीदने वाले कोई बाहरी व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि वही आदिवासी है, जो विकास क्रम में आदिवासी समाज से निकल कर नेता, सरपंच, अफसर, व्यापारी आदि बन गए हैं.

सोचने वाली बात है कि बेचने वाले बेचारे जरूरतमंद मजबूर आदिवासी को भला क्या फर्क पड़ता है कि खरीदने वाला कौन है, उसे तो अपनी जरूरत की पूर्ति के लिए कभी न कभी जमीन बेचना ही होगा, क्योंकि सरकार ने ऐसी कोई व्यवस्था भी नहीं बनाई है कि ऐसी स्थिति में कोई उसे पर्याप्त नगदी सरकारी सहायता दी जाए, जिस से कि वह अपनी अनिवार्य जरूरतें पूरी करने के लिए जमीन बेचने से बाज आए? ऐसी स्थिति में उसे अपनी भूमि का यथासंभव अधिकतम बाजार मूल्य प्राप्त करने का अधिकार भला क्यों नहीं मिलना चाहिए.

सोचने का विषय यह भी है कि क्या यह कानून जरूरतमंद आदिवासी के अपने जमीन को गैरआदिवासी की जमीन के मूल्य के बराबरी पर बेचने के प्राकृतिक अधिकार का हनन नहीं कर रहा है? क्या 10 रुपए मूल्य की वस्तु का ज्यादा मूल्य देने वाले खरीददारों की प्राकृतिक खुली प्रतियोगिता को कानून बनाकर बाधित करते हुए, विशिष्ट अधिकार प्राप्त लोगों द्वारा 1 रुपए में खरीदना संगठित लूट की श्रेणी में नहीं आता? यदि इस कानून के लागू होने के बाद से आज आदिवासियों की जमीन की खरीदीबिक्री के मूल्य और गैरआदिवासियों की खरीदीबिक्री की गई जमीनों का मूल्य की यह जांच की जाए कि आदिवासियों की जमीनें किसकिस ने और किसकिस भाव में खरीदीं, तो यह भेद खुल जाएगा कि इस कानून से गरीब और मजबूर आदिवासी का कोई भला नहीं हुआ, बल्कि उल्टे उन्हें उन के अपने कहलाने वालों ने ही जी भर के लूटा है और गजब की बात यह है कि यह कानूनी लूट जिसे लूटा जा रहा है, उसी की भलाई के नाम पर आज भी धड़ल्ले से जारी है.

इस आदिवासी दिवस पर इस कानून को हटाने की मांग क्यों नहीं उठती यह भी सोचने का विषय है. एक और बात यह है कि यदि यह लोग आदिवासियों के सच्चे हितैषी हैं, तो फिर यह कानून क्यों नहीं बना देते कि चाहे जो भी हो, आदिवासी की जमीन भी गैरआदिवासी की जमीन के बराबर मूल्य पर ही बिकेगी और उस से कम पर रजिस्ट्री ही नहीं होगी?

 

यह आदिवासियों के लिए भी गंभीर समस्या है कि जब दो व्यक्ति, दो गवाहों और शासन के प्रतिनिधि (रजिस्ट्रार) के सामने राजीखुशी अपनी मरजी से जमीन का सौदा करते हैं, तो उचित और पर्याप्त मूल्य दे कर जरूरतमंद आदिवासी की भूमि खरीदने वाले गैरआदिवासी को केवल इसलिए अपराधी बना दिया जाता है, ताकि उन की जमीनें इन्हीं के बीच से निकले मुट्ठीभर संपन्न आदिवासी, जो कानून बनाने वाली सभा में भी बैठे हैं, कानून लागू कराने वाले अधिकारी वर्ग में भी, वे औनेपौने दामों में खरीद सकें.

यह भी सोचने का विषय है कि क्या यह कानून हमारे संविधान की मूल अवधारणा समानता और स्वतंत्रता के हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में बाधा है?  अगर ऐसा है तो इस की तुरंत समीक्षा और संशोधन होना जरूरी है.

सोचने वाली बात है कि जबजब इस कानून को बहुसंख्यक आदिवासियों के हित में संशोधित करने की बात उठती है, तो वह कौन से वर्ग के लोग हैं, जो इस में अड़ंगा डालते है. दुर्भाग्य से, आज भी अपना भलाबुरा समझने में असमर्थ आम आदिवासी ऐसे समय पर अपने ही लुटेरों के साथ खड़े हो कर, अपने ही हितों के खिलाफ बने कानून को बनाए रखने के लिए उन का समर्थन करते हैं. उसी कुल्हाड़ी की बैंट बन जाते हैं, जो कुल्हाड़ी अंत में उसे ही काटने वाली है.

विश्व आदिवासी दिवस सिर्फ आदिवासी अधिकारों की याद, रैली और भाषणबाजी का दिन नहीं होना चाहिए, बल्कि यह दिन हमें अपने असली सभ्यता-परीक्षण, आदिम जीवन दर्शन का दर्पण दिखाना चाहिए.

लेखक डा. राजाराम त्रिपाठी ‘जनजातीय कल्याण एवं शोध संस्थान के संस्थापक और जनजातीय सरोकारों की मासिक पत्रिका ककसाड़ के संपादक हैं.

Seeds : किसानों को मिलेगा मुफ्त बीज

Seeds : लाही यानी तोरिया की खेती को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक योजना के तहत मुफ्त तिलहन बीज की मिनी किट का वितरण किया जा रहा है. इस योजना के तहत प्रदेश के हर पंजीकृत किसान को 2 किलोग्राम लाही/तोरिया के बीज की मिनीकिट मुफ्त में दी जाएगी.

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस योजना के तहत हर किसान को 1 मिनीकिट दी जाएगी. इस के लिए पंजीकरण कराना जरूरी है. अगर पंजीकृत किसानों में आवेदक अधिक आते हैं तो लौटरी से चयन किया जाएगा. चयनित किसानों को बीज की मिनीकिट उस के नजदीकी राजकीय कृषि बीज भंडार से पोस मशीन के जरीए दी जाएगी.

पोषक तत्वों से भरपूर है तोरिया

तोरिया कम समय और कम पानी में अच्छी उपज देती है और छोटे किसानों के लिए यह फसल अधिक लाभदायक मानी जाती है. तोरिया के तेल में ओमेगा 3 फैटी एसिड प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं

कैसे करें आवेदन

यदि आप को तोरिया का बीज इस योजना के तहत लेना है तो किसानों को औनलाइन आवेदन करना होगा. इस के लिए किसान agridarshan.up.gov.in पर 15 अगस्त तक औनलाइन आवेदन कर सकते हैं और अपने जिले के कृषि विभाग या फिर कौमन सर्विस सैंटर यानी सीएससी पर संपर्क करना होगा. आप अपने जिले के जिला कृषि अधिकारी से भी मिल कर इस योजना का लाभ उठा सकते हैं.

Improved Seeds: उन्नत बीज किसानों तक पहुंचाना प्राथमिकता

Improved Seeds: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने मक्का की उच्च गुणवत्ता युक्त उन्नत हाईब्रिड किस्म एचक्यूपीएम-29 का ग्लोबल एग्रो साइंस प्राइवेट लिमिटेड पटना (बिहार) के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित उन्नत किस्मों का बीज ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचे इस के लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ समझौते किए जा रहे हैं. समझौते के तहत विश्वविद्यालय द्वारा विकसित एचक्यूपीएम-29 का बीज तैयार कर के ग्लोबल एग्रो साइंस प्राइवेट लिमिटेड किसानों तक पहुंचाएगी, ताकि उन्हें उन्नत किस्म का विश्वसनीय बीज मिल सके और उन की पैदावार में भी इजाफा हो सके.

इस कंपनी से हुआ समझौता
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय का ग्लोबल एग्रो साइंस प्राइवेट लिमिटेड पटना (बिहार) के साथ समझौता हुआ है. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज की उपस्थिति में समझौता ज्ञापन पर विश्वविद्यालय से अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग और ग्लोबल एग्रो साइंस प्राइवेट लिमिटेड पटना (बिहार) से डा. सीतांशु कुमार ने हस्ताक्षर किए.

एचक्यूपीएम-29 किस्म की विशेषताएं :
अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने बताया कि एचक्यूपीएम 29 उच्च क्वालिटी मक्का की एकल संकर किस्म है, जो चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, करनाल द्वारा विकसित की गई है. इस किस्म को भारत सरकार द्वारा हाल ही में भारत के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों (जम्मूकश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड का पहाड़ी क्षेत्र, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, नागालैंड, मणिपुर व अरूणाचल प्रदेश) के लिए अनुमोदित किया गया है.

यह किस्म न केवल पैदावार की दृष्टि से बेहतर है (71.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) बल्कि, मक्का की मुख्य बीमारियों व कीटों के प्रति भी अवरोधी है. उच्च क्वालिटी होने के कारण यह खाने व फीड के लिए सर्वोत्तम पाई गई है. यह किस्म इनसानों व पशुओं में कुपोषण दूर करने में मददगार साबित हो सकती है.

इस किस्म को विकसित करने में डा. मेहर चंद, कंबोज, प्रीति शर्मा, कुलदीप जांगिड, सांइ दास, नरेंद्र सिंह, ओपी चौधरी, हरबिंदर सिंह, प्रशांत कुमार, नमिता सोनी व सोमवीर का अह्म योगदान रहा.

इस अवसर पर कुलसचिव डा. पवन कुमार, कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. राजेश गेरा, स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता, डा. केडी शर्मा, विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल, सस्य विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. अनिल यादव, बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अध्यक्ष डा. वीरेंद्र मोर, आईपीआर सेल के प्रभारी डा. योगेश जिंदल, डा. रेणु मुंजाल, डा. अनुराग, डा. जितेंद्र भाटिया, डा. देवव्रत, डा. लक्ष्मी, डा. पम्मी कुमारी व डा. सुनील गोयल उपस्थित रहे.

कृषि सखियों को प्रशिक्षण : महिलाएं बनेंगी आत्मनिर्भर

सबौर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में स्थापना दिवस के अवसर पर 5 अगस्त, 2025 से 9 अगस्त, 2025 तक राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के अंतर्गत भागलपुर जिले की चुनी गईं 20 कृषि सखियों के लिए प्राकृतिक खेती विषय पर मास्टर ट्रेनर के रूप में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित हुआ.

इस अवसर पर कई खास अतिथि उपस्थित रहे, जिन में प्रमुख हैं:

भागलपुर के सांसद अजय कुमार मंडल, पूर्व सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के कुलपति डा. श्रीनिवास राव, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति डा. डीआर सिंह, इत्यादि उपस्थित रहे.

इस अवसर पर कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर भागलपुर जिले की चयनित कृषि सखियों के लिए प्राकृतिक खेती पर मास्टर ट्रेनर प्रशिक्षण कार्यक्रम करते हुए मुझे खुशी हो रही है. यह कार्यक्रम न केवल तकनीकी ज्ञान का आदानप्रदान है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर और कृषि नवाचार की अगुआ बनाने की दिशा में एक सशक्त पहल है.

यह 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम विशेष रूप से कृषि सखियों की क्षमता निर्माण के लिए आयोजित किया गया है, ताकि वे अपनेअपने ग्राम पंचायतों में प्राकृतिक खेती की प्रणेता बन सकें. इस प्रशिक्षण में उन्हें जीवामृत, बीजामृत, नीमास्त्र, अग्नि अस्त्र जैसे जैविक इनपुट्स की तैयारी, मल्चिंग, नमी संरक्षण, बीज उपचार आदि तकनीकों का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है. साथ ही, कृषि सखियों को क्लस्टर आधारित विपणन, प्रदर्शन तकनीक और मार्गदर्शन कौशल से भी सशक्त किया जा रहा है, ताकि वे अपने क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती के प्रचारप्रसार की प्रभावी लीडर बन सकें.

इस प्रशिक्षण के बाद ये कृषि सखियां अपने गांवों में किसानों के खेतों पर प्रायोगिक प्रदर्शन करेंगी, उन्हें मार्गदर्शन देंगी और प्राकृतिक खेती अभ्यासों को अपनाने में किसानों की सहायता करेंगी. नियमित समूह भ्रमण और निगरानी के माध्यम से ये सखियां स्थायी कृषि परिवर्तन की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाएंगी.

यह प्रशिक्षण कार्यक्रम जिला स्तर पर प्राकृतिक खेती के विस्तार में कृषि सखियों की भूमिका को सशक्त बनाएगा और सामुदायिक नेतृत्व को बढ़ावा देगा.

Award : बिहार कृषि विश्विद्यालय को मिले 4 पुरस्कार

Award : नई दिल्ली में चल रहे द्वितीय टिकाऊ कृषि सम्मेलन एवं अवार्ड कार्यक्रम में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को 04 वर्गों में पुरस्कार प्राप्त हुआ है. यह कार्यक्रम एग्रीकल्चर पोस्ट डौट कौम एवं इंडी एग्री संस्था की ओर से नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सैंटर  में आयोजित हुआ. इस अवार्ड कार्यक्रम में रामदास अठावले, मंत्री  सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पुरस्कार प्रदान किया गया.

पहले वर्ग में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत विश्वविद्यालय द्वारा किए गए उत्कृष्ठ कार्यों पर पुनर्योजी कृषि पुरस्कार अवार्ड प्रदान किया गया. बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने 2019 में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की शुरूआत की गई, जिस से न्यूनतम जुताई, जैविक इनपुट और जल संरक्षण जैसी पुनर्योजी प्रथाओं को बढ़ावा दे कर 18 जिलों के 45,000 किसानों को लाभ हुआ.

इस कार्यक्रम ने मिट्टी के स्वास्थ्य, ऊर्जा दक्षता और किसान अनुकूलनशीलता में सुधार करते हुए कार्बन फुटप्रिंट और इनपुट लागत को काफी कम कर दिया, जिस से राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों के साथ एक स्केलेबल मौडल की पेशकश की गई.

दूसरे वर्ग में विश्वविद्यालय को जल प्रबंधन में उत्कृष्टता के लिए अवार्ड प्राप्त हुआ है. जल प्रबंधन में उत्कृष्टता पुरस्कार बीएयू, सबौर को बिहार के वर्षा आधारित और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सतत जल प्रबंधन में सुधार के लिए कई नवीन, प्रौद्योगिकी संचालित परियोजनाओं के लिए दिया गया है, जिन में गांव के तालाबों का जीर्णोद्धार, रिमोट सैंसिंग का उपयोग कर के पौधों के रोपण समय का अनुकूलन और नाइट्रेट संदूषण का मानचित्रण शामिल है. ये पहल भूजल पुनर्भरण को बढ़ा कर, फसल योजना में सुधार कर के और जल गुणवत्ता की चुनौतियों का समाधान कर के छोटे और सीमांत किसानों को महत्त्वपूर्ण रूप से लाभान्वित कर सकती है.

तीसरे वर्ग में विश्वविद्यालय को जैविक खेती में उत्कृष्ठता के लिए अवार्ड प्राप्त हुआ है. विश्वविद्यालय द्वारा कृषि में मूल्य संवर्द्धित वर्मी कंपोस्ट एवं एजोला का प्रयोग जैविक खेती हेतु करने से किसानों के लागत में कमी आई है और वर्तमान में 5,000 से अधिक किसान इन के मूल्य संवर्द्धित वर्मी कंपोस्ट के प्रयोग से लाभान्वित हुए हैं.

चौथे वर्ग में विश्वविद्यालय को अवशिष्ट प्रबंधन नवाचार पुरस्कार अवार्ड प्राप्त हुआ है. जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत कृषि विज्ञान केंद्र, रोहतास द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन के तहत साल 2020 में धान के पुआल को स्ट्रौबेल बना कर काम्फेड की मदद से पशुपालकों को पशु चारा के रूप में उपलब्ध कराया गया, जिस से खेतों में फसल अवशेष को जलाने की समस्या में कमी आई और किसानों की आय का अतिरिक्त जरीया बना.

विश्वविद्यालय की ओर से डा. शोभा रानी, वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान, कृषि विज्ञान केंद्र, भोजपुर एवं रविंद्र कुमार जलज, वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान, कृषि विज्ञान केंद्र, रोहतास ने चारों पुरस्कार प्राप्त किए. पिछले साल भी विश्वविद्यालय को प्रशिक्षण में उत्कृष्ठता और हरियाली उत्पादन नवाचारी पुरस्कार प्राप्त हुए थे.

इस अवसर पर डा. डीआर सिंह, कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय राज्य में कृषि और किसानों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है. साथ ही, टिकाऊ खेती और जलवायु अनुकूल कृषि तकनीकों को बढ़ाने के लिए लगातार काम किया जा रहा है. विश्वविद्यालय के इन प्रयासों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाना खुशी का विषय है.

Agriculture : कृषि का एक नया युग प्रारंभ होगा

Agriculture : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर आयोजित भव्य कार्यक्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के निदेशक एवं कुलपति डा. श्रीनिवास राव ने अध्यक्षीय संबोधन दिया. उन्होंने विश्वविद्यालय के 15 सालों की यात्रा को बेहद  प्रेरणादायक बताया.

डा. श्रीनिवास राव ने कहा, “हमने यहां की संरचनाओं, सुविधाओं, प्रयोगशालाओं और प्रक्षेत्रों का अवलोकन किया और यह देख कर गर्व होता है कि इतने कम समय में इस विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रभावशाली पहचान बनाई है. बिहार अब किसी भी राज्य से पीछे नहीं है. बिहार को कृषि उत्पादों के निर्यात के क्षेत्र में भी और बेहतर करना चाहिए.”

समारोह की प्रमुख झलकियां

स्वागत भाषण अधिष्ठाता कृषि डा. एके साह ने दिया, वहीं धन्यवाद ज्ञापन निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह द्वारा प्रस्तुत किया गया.

इस अवसर पर सिंदूर की खेती पर आधारित डौक्यूमैंट्री का विमोचन पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन द्वारा किया गया. उन्होंने कहा, “परिसर की हरियाली दिल को छू लेने वाली है. औपरेशन सिंदूर की गूंज अब विश्व स्तर तक पहुंच चुकी है और बीएयू द्वारा सिंदूर की खेती की चर्चा भी हर ओर है.”

“नन्ही उम्मीदें” कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय, जिसे विश्वविद्यालय ने गोद लिया है, उस पर आधारित प्रेरक डौक्यूमैंट्री का विमोचन सांसद अजय मंडल द्वारा किया गया. इस के साथ ही, कतरनी चावल के एक किलोग्राम के वाटरप्रूफ जिपर बैग का भी विमोचन किया गया, जो स्थानीय कृषि उत्पादों की ब्रांडिंग की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है.

इस अवसर पर क्रौप फिजियोलौजी, कृषि अभियंत्रण, कृषि पत्रकारिता आदि विषयों पर आधारित प्रायोगिक और व्यावहारिक पुस्तकों का भी विमोचन किया गया.

इस अवसर पर कृषि सखियों के लिए प्राकृतिक खेती पर मास्टर ट्रेनर प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ भी किया गया.

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अध्यक्षीय उद्बोधन की मुख्य बातें

डा. श्रीनिवास राव ने कहा कि विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय संस्थानों जैसे आईएआरआई  के साथ जुड़ कर नवाचार और स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए. उन्होंने युवाओं को कृषि की ओर आकर्षित करने हेतु एग्री प्रेन्योरशिप को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता जताई. साथ ही, कृषि शिक्षा को अधिक उद्योगोन्मुखी, डिजिटल समर्थित और समाधान आधारित बनाने की दिशा में कार्य करने की सलाह भी दी. उन्होंने बिहार को कृषि उत्पादों के निर्यात में अग्रणी बनाने की दिशा में विश्वविद्यालय को नीति निर्धारण और अनुसंधान में अहम भूमिका निभाने पर भी जोर दिया.

इस अवसर पर सांसद अजय मंडल ने बीएयू को नीति आयोग द्वारा पूर्वोत्तर योजना की नोडल एजेंसी बनाए जाने को एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया और कहा, “15 सालों में बीएयू  की उपलब्धियां देशभर के कृषि विश्वविद्यालयों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं.”

कुलपति डा. डीआर सिंह ने आईएआरआई और बीएयू के बीच हुए एमओयू को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि इस से बिहार के किसानों, वैज्ञानिकों और छात्रों को सीधा लाभ मिलेगा और राज्य में कृषि का एक नया युग शुरू होगा. इस समारोह में विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, वैज्ञानिकों, छात्रों और बड़ी संख्या में किसानों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया.

पांच श्रेणियों में हुआ किसानों की समस्याओं का समाधान

सबौर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर में रबी मौसम के 30वीं क्षेत्रीय अनुसंधान और प्रसार सलाहकार समिति की बैठक का पिछले दिनों आयोजन किया गया. बिहार कृषि महाविद्यालय सबौर के प्राचार्य की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में निदेशक अनुसंधान, उप निदेशक अनुसंधान, विभिन्न विभागों के अध्यक्ष, वैज्ञानिक और किसान उपस्थित थे.

बिहार कृषि महाविद्यालय सबौर के प्राचार्य ने बताया कि इस आयोजन का उद्देश्य किसानों की समस्याओं का तुरंत समाधान उपलब्ध कराना और उन की नई समस्याओं को इस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा शोध के रूप में लेना है. इस कार्यक्रम में जोन 3ए के अंतर्गत आने वाले पांच जिलों भागलपुर, मुंगेर, बांका, खगड़िया और शेखपुरा के किसान भाइयों और बहनों की समस्याओं पर चर्चा की गई.

इस बैठक के दौरान किसानों की समस्याओं पर गहराई से विचार करते हुए उन्हें अनुसंधान की 5 प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया, ताकि हर समस्या को उस के सही वैज्ञानिक संदर्भ में समझा जा सके और प्रभावी समाधान प्रस्तुत किया जा सकें.

पहली श्रेणी : फसल सुधार से संबंधित थी, जिस में किसानों की उन समस्याओं पर चर्चा की गई जो बीज की गुणवत्ता, नई उन्नत किस्मों की जरूरत, रोग प्रतिरोधक क्षमता और अधिक उत्पादन से जुड़ी थीं. वैज्ञानिकों ने किसानों को ऐसी किस्मों के चयन और उन के प्रबंधन के तरीकों पर सुझाव दिए, जो स्थानीय जलवायु के अनुकूल हों.

दूसरी श्रेणी : इस श्रेणी में प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जिस में मिट्टी, जल, उर्वरता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया गया. किसानों ने जल की कमी, मिट्टी की उर्वरता घटने और मौसम के अनिश्चित व्यवहार जैसी समस्याओं को रखा, जिन के लिए वैज्ञानिकों ने समेकित जल प्रबंधन, जैविक उर्वरक उपयोग और भूमि संरक्षण तकनीकों की सलाह दी.

तीसरी श्रेणी : यह फसल संरक्षण से संबंधित थी, जिस में कीटों, बीमारियों और खरपतवारों से फसलों की सुरक्षा पर चर्चा हुई. इस श्रेणी में विशेष रूप से केले की फसल में पनामा विल्ट रोग जैसी गंभीर समस्या सामने आई, जिस का समाधान तुरंत उपलब्ध न होने के कारण उसे अनुसंधान के लिए सूचीबद्ध किया गया.

चौथी श्रेणी : इस श्रेणी में उत्पाद विकास और विपणन, जिस में किसानों द्वारा उपजाए गए उत्पादों का प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और बाजार तक पहुंच सुनिश्चित करने के उपायों पर चर्चा की गई. इस में तीसी के प्रसंस्कृत उत्पादों से जुड़ी समस्याएं सामने आईं, जैसे इस के व्यावसायिक उपयोग के सीमित विकल्प और किसानों को उचित मूल्य न मिल पाना, जिन्हें शोध का विषय बनाया गया.

पांचवी श्रेणी : इस श्रेणी में सामाजिक विज्ञान, जिस में किसानों की सामाजिकआर्थिक स्थिति, सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता, महिला किसानों की भागीदारी और प्रशिक्षण की आवश्यकता पर चर्चा की गई.

इस विस्तृत चर्चा के दौरान जिन समस्याओं का समाधान तुरंत संभव था, उन के लिए संबंधित वैज्ञानिकों ने उपाए बताए और मार्गदर्शन दिया. वहीं, कुछ जटिल समस्याएं जैसे पनामा विल्ट रोग, तीसी के मूल्यवर्धित उत्पाद, और जैविक तरीकों से खरपतवार नियंत्रण जैसे विषय, वैज्ञानिकों ने अनुसंधान योग्य मानते हुए उन्हें गहराई से अध्ययन के लिए अनुसंधान परियोजनाओं में शामिल करने का निर्णय लिया.

इन विषयों पर भविष्य में शोध कर स्थायी, व्यवहारिक और पर्यावरण अनुकूल समाधान विकसित किए जाएंगे. ताकि, किसानों को इस का लंबे समय तक लाभ मिल सके. इस कार्यक्रम का संचालन प्रसार शिक्षा विभाग की वैज्ञानिक डा. नेहा पांडे ने किया.