किसानों को जरूरत के मुताबिक मिलेगी खाद (fertilizer)

कटनी : जिले में वर्तमान में खरीफ फसलों के लिए सर्वाधिक मांग वाली उर्वरक यूरिया खाद की पिछले दिनों एक और रैक झुकेही रैक पाइंट पर आ गई है. इस रैक के आने से जिले में यूरिया की पर्याप्त उपलब्धता हो गई है. इस से किसानों को स्थानीय लैवल पर ही उन की मांग के अनुरूप खाद मिल सकेगी.

कलक्टर दिलीप कुमार यादव द्वारा जिले में उर्वरकों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए किए जा रहे निरंतर प्रयासों की वजह से कटनी जिले के लिए एक हजार 10 मीट्रिक टन नीम कोटेड यूरिया की रैक आ गई है.

नीम कोटेड यूरिया उर्वरक की रैक झुकेही रैक पाइंट पर पिछले लग गई है. यहां से परिवहन कर यूरिया जिले में लाई जा रही है.

कलक्टर दिलीप कुमार यादव ने किसानों के हितों और उन से सीधे सरोकार रखने वाले खाद एवं बीज की उपलब्धता जैसे विषयों के प्रति पूरी गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ काम करने कृषि, सहकारिता, मप्र विपणन संघ एवं एमपी एग्रो के अधिकारियों और कर्मचारियों को निर्देशित किया है.

ज़िले के उपसंचालक, कृषि, ने बताया कि रैक से आई नीम कोटेड यूरिया में से कटनी डबल लाक केंद्र के लिए 350 मीट्रिक टन, बहोरीबंद डबल लाक केंद्र के लिए 350 मीट्रिक टन और सीएमएस मार्केटिंग सोसायटी कृषि उपज मंडी, कटनी को 60 मीट्रिक टन और सहकारी समितियों को 200 मीट्रिक टन एवं एमपी एग्रो कटनी को 50 मीट्रिक टन यूरिया आवंटित की जाएगी. इस के चलते यहां के किसानों को पर्याप्त मात्रा में उन की जरूरत के मुताबिक उर्वरक की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी.

उपसंचालक, कृषि विकास एवं किसान कल्याण विभाग ने बताया कि जिले में पहले से ही 3759 मीट्रिक टन यूरिया, 1535 मीट्रिक टन डीएपी, 1319 मीट्रिक टन एनपीके और 3306 मीट्रिक टन एसएसपी उर्वरक की उपलब्धता मौजूद हैं.

खाद बिक्री केंद्रों में लगवाएं दर सूची का बोर्ड

कलक्टर दिलीप कुमार यादव ने सभी खाद की दुकानों के बाहर सूचना बोर्ड लगाने के निर्देश दिए हैं. इस बोर्ड में प्रत्येक उर्वरक की उपलब्ध मात्रा का विवरण और इसी के सामने उर्वरक की दर लिखवाने की हिदायत कलक्टर दिलीप कुमार यादव ने अधिकारियों को दी है.

यहां दें सूचना

कलक्टर दिलीप कुमार यादव ने किसानों से आग्रह किया है कि वे खादबीज से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या और शिकायत या खाद ,बीज मिलने में असुविधा संबंधी सूचना कलक्ट्रेट कार्यालय में बने जिला स्तरीय कंट्रोलरूम के टेलीफोन नंबर 07622-220071 पर दे सकते हैं.

धान से अधिक उत्पादन लेने के लिए करें ये काम

जबलपुर : धान का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा जिले के किसानों को फसल की देखभाल से संबंधित महत्वपूर्ण सलाह दी है. साथ ही, धान की फसल में लगने वाले विभिन्न रोगों से अवगत कराते हुए उन की रोकथाम के उपायों को भी बताया गया है.

सहायक संचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास, रवि आम्रवंशी ने बताया कि किसानों को धान की प्रारंभिक अवस्था में 25 से 30 दिनों तक फसल को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए. धान की फसल में फूल निकलते एवं बालियां बनते समय खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखना चाहिए और आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए.

उन्होंने किसानों को एक सिंचाई के बाद खेत का पानी सूखने के 2-3 दिन बाद दूसरी सिंचाई करने की सलाह दी है. साथ ही, किसानों को धान की फसल में नाइट्रोजन की तीसरी और अंतिम मात्रा टौप ड्रैसिंग के रूप में 55 से 60 दिन के बाद बाली बनने की प्रारंभिक अवस्था में देने को कहा है.

उन्होंने अधिक उपज देने वाली उन्नतशील प्रजातियों के लिए 30 किलोग्राम एवं सुगंधित बासमती प्रजातियों के लिए 15 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने की सलाह दी है.

सहायक संचालक, कृषि, ने किसानों को धान की फसल में जीवाणु झुलसा रोग की जानकारी देते हुए बताया कि पौधों की छोटी अवस्था से ले कर परिपक्व अवस्था तक यह रोग धान की फसल में कभी भी देखा जा सकता है. इस रोग में पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू हो कर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं और सूखे पीले पत्तों के साथसाथ आंख के आकार के चकत्ते भी दिखाई देते हैं. जीवाणु झुलसा रोग में संक्रमण की उग्र अवस्था में पूरी पत्ती सूख जाती है.

जीवाणु झुलसा रोग से फसल की सुरक्षा के उपायों की जानकारी देते हुए रवि आम्रवंशी ने बताया कि किसानों को बीज उपचारित करने के बाद ही बोना चाहिए. इस के लिए उन्हें 2.5 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एवं 25 ग्राम कौपर औक्सीक्लोराइड का प्रति 10 लिटर पानी में घोल बना कर बीजों को घोल में 12 घंटे तक डुबो कर रखना चाहिए. इस के उपरांत बीजों को निकाल कर छांव में सुखाने के बाद ही नर्सरी में बोआई करनी चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि किसानों को नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग कम करना चाहिए और जिस खेत में रोग लगा हो, उस का पानी दूसरे खेत में नहीं जाने देना चाहिए, ताकि रोग का फैलाव न हो. खेत में जीवाणु झुलसा रोग को फैलने से रोकने के लिए किसानों को समुचित जल निकास की व्यवस्था करनी चाहिए और 75 ग्राम एग्रीमाइसिन एवं 100 -500 ग्राम कौपर औक्सीक्लोराइड को 500 से 600 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से 3-4 बार छिड़काव करना चाहिए.

सहायक संचालक, कृषि, रवि आम्रवंशी के मुताबिक, किसानों को पहला छिड़काव रोग प्रकट होने पर और इस के बाद आवश्यकता के अनुसार 10-10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए. साथ ही, किसानों को रोग प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग ही करना चाहिए. इस के अलावा उन्होंने धान की फसल में लगने वाले अन्य रोगों की जानकारी भी दी.

उन्होंने फाल्स स्मर्ट रोग के बारे में किसानों को बताया कि इस रोग से धान की उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है. रोग ग्रस्त दाने आकार में सामान्य दानों से दोगुने या 4 से 5 गुना बड़े होते हैं. फाल्स स्मर्ट रोग की रोकथाम के लिए किसानों को 12 सौ ग्राम मैनकोजेब या कौपर औक्सीक्लोराइड का 500 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

रवि आम्रवंशी ने भूरा धब्बा रोग की रोकथाम के लिए किसानों को जिंक मैंगनीज कार्बोनेट 75 फीसदी की 2 किलोग्राम मात्रा 800 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह दी है.

19 सितंबर से 22 सितंबर तक लगेगा वर्ल्ड फूड इंडिया 2024

नई दिल्ली : केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान ने आज आगामी मेगा फूड इवेंट- वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 की तैयारियों की समीक्षा के लिए नई दिल्ली में स्थित ‘भारत मंडपम’ का दौरा किया. इस का कार्यक्रम का आयोजन 19 सितंबर से ले कर 22 सितंबर, 2024 तक होना है.

इस यात्रा के दौरान चिराग पासवान के साथ मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, कार्यक्रम के आयोजन में शामिल भारतीय वाणिज्य और उद्योग महासंघ (फिक्की) व इन्वेस्ट इंडिया के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे. इस दौरे में प्रदर्शनी हाल, सम्मेलन क्षेत्र और अन्य सुविधाओं का विस्तृत निरीक्षण शामिल था, जिन का उपयोग कार्यक्रम के दौरान किया जाएगा.

इस के अलावा चिराग पासवान ने कार्यक्रम की तैयारियों की समीक्षा के लिए अधिकारियों और आयोजकों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता की. इस में उन्होंने गुणवत्ता और दक्षता के उच्चतम मानकों को बनाए रखने पर जोर दिया.world food india 1

वर्ल्ड फूड इंडिया, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की ओर से आयोजित एक प्रमुख कार्यक्रम है. इस का उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में नवीनतम नवाचारों, प्रौद्योगिकियों और रुझानों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए पूरे विश्व के हितधारकों को एक अनोखा अवसर प्रदान करना है. इस में ज्ञान सत्रों, पैनल चर्चाओं और नेटवर्किंग अवसरों की एक श्रंखला शामिल होगी, जो सहभागिता को बढ़ावा देने और खाद्य प्रसंस्करण के भविष्य को आगे बढ़ाने के लिए डिजाइन की गई है.

इस कार्यक्रम में अत्याधुनिक प्रदर्शनी स्थल, विशेष मंडप होंगे, जो भारत की समृद्ध क्षेत्रीय खाद्य विविधता को प्रदर्शित करेंगे. साथ ही, स्टार्टअप्स और नवप्रवर्तकों के लिए समर्पित क्षेत्र भी होंगे. ये तत्व भारत के डायनमिक खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र और वैश्विक मंच पर इस के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करते हैं.

इस आयोजन की तैयारी में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय व्यापक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों सहित संबद्ध मंत्रालयों व विभागों के साथ सक्रिय रूप से तालमेल कर रहा है. मंत्रालय, वर्ल्ड फूड इंडिया- 2024 को एक ऐतिहासिक आयोजन बनाने और वैश्विक खाद्य उद्योग में अग्रणी रूप में भारत की उभरती भूमिका को प्रदर्शित करने के लिए अपने प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है.

लुवास में पशुओं की सर्जरी और एनेस्थीसिया पर प्रशिक्षण शुरू

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के सर्जरी विभाग में 10 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत हुई. कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए लुवास के मानव संसाधन एवं प्रबंधन निदेशक डा. राजेश खुराना ने बताया कि सर्जरी एवं एनेस्थीसिया में नईनई तकनीक एवं दवाएं आती रहती हैं और एक अच्छे सर्जन को लगातार इस से अवगत रहने की आवश्यकता होती है. इस में यह कार्यक्रम बहुत लाभदायक सिद्ध होगा.

पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने बताया कि लुवास का सर्जरी विभाग पूरे भारत में काफी प्रतिष्ठित है. इस विभाग का बड़े पशुओं की सर्जरी में काफी योगदान है.

भैंसों में डायफ्रामेटिक हर्निया एवं जनरल एनेस्थीसिया में यह विभाग अग्रणी एवं पथ प्रदर्शक रहा है. उन्होंने आशा व्यक्त की कि प्रतिभागी अवश्य ही अच्छी तकनीक सीख कर जाएंगे व अपने क्षेत्र के पशुओं एवं लोगों का कल्याण करेंगे.

सर्जरी एवं रेडियोलौजी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. आरएन चौधरी ने बताया कि इस 10 दिवसीय (2 सितंबर से 11 सितंबर) में 20 प्रशिक्षनार्थी भाग ले रहे हैं, जो भारत के विभिन्न प्रांतों जम्मूकश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओड़िसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक से आए हैं. इन्हें बड़े पशु (गाय, भैंस) और छोटे पालतू पशुओं में की जाने वाली विभिन्न सर्जिकल बीमारियों एवं इन के एनेस्थीसिया में प्रशिक्षित किया जाएगा.

कार्यक्रम का संचालन डा. प्रियंका और धन्यवाद ज्ञापन प्रशिक्षण संयोजक डा. राम निवास ने किया. इस में डा. नीरज, डा. दिनेश, डा. सतबीर शर्मा सहित अन्य संकाय प्रशिक्षक उपस्थित रहे.

रेशम उत्पादन से मिल रहा रोजगार

नर्मदापुरम : प्रदेश में नर्मदपुरम संभाग के नर्मदापुरम एवं बैतूल जिले में रेशम उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी जिले हैं. नर्मदापुरम जिले के मालाखेड़ी रेशम परिसर में प्रदेश का रेशम वस्त्रों का सब से बड़ा शोरूम ‘प्राकृत’ संचालित किया जाता है, जिस में नवीन वस्‍त्रों की श्रंखला में नवीन बाघ प्रिंट, कलमकारी प्रिंट, पचेड़ी प्रिंट, बनारसी और जामदानी के शुद्ध रेशमी वस्त्र विक्रय एवं प्रदर्शन के लिए उपलब्ध हैं. साथ ही, उक्त परिसर में ही मलबरी रेशम धागाकरण, टसर धागाकरण, मूंगा रेशम धागाकरण व रेशम वस्त्र बुनाई का काम भी किया जाता है. रेशम परिसर मालाखेड़ी में रेशम उत्पादन प्रक्रिया से जोड़ कर लगभग 80 महिलाओं को रोजगार भी दिया जा रहा है.

जिला रेशम अधिकारी रविंद्र सिंह ने बताया कि जिले में रेशम उत्पादन का काम सोहागपुर, गूजरवाडा, सुखतवा बनखेड़ी, डोकरीखेड़ा, पनारी, पिपरिया व राजलढाना में मुख्य रूप से किया जाता है. उल्लेखनीय है कि जिले में मलबरी रेशम के 1,80,295 पौधों का रोपण भी किया गया है एवं आगामी फसल में टसर काकून की भी बंपर पैदावार होने की संभावना है.

संभाग के बैतूल जिले में भी इस वित्तीय वर्ष में निजी और शासकीय क्षेत्र में कुल 100 एकड़ प्रक्षेत्र में 4 लाख से भी अधिक पौधों का रोपण किया गया है. बैतूल जिले में सतपुड़ा वूमेन सिल्क प्रोड्यूसर कंपनी द्वारा रेशम उत्पादन का काम पाढर में संचालित किया जा रहा है. लगभग 300 किसानों द्वारा यहां मलबरी रेशम ककून उत्पादन और धागाकरण का काम किया जाता है. क्षेत्र में इस बार भी 100 परिवारों को रेशम गतिविधि से जोड़ा गया है. रेशम से जुड़ कर इन परिवारों ने रोजगार प्राप्त किया है एवं आत्मनिर्भर हुए हैं. कई दीदियां लखपति दीदी भी बनी हैं.

फसल कटाई के बाद प्रबंधन नीति

नई दिल्ली : कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने नई दिल्ली में कृषि भवन में सब्जी समूहों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बागबानी समूहों और मूल्य श्रंखला विकास पर हितधारक परामर्श का सफलतापूर्वक आयोजन किया. इस कार्यक्रम ने भारत में कृषि के भविष्य पर विचारविमर्श करने के लिए किसान समूहों, सरकारी एजेंसियों, मंत्रालयों, स्टार्टअप और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों सहित विभिन्न हितधारकों को एकसाथ लाया.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने कृषि उत्पादक संगठन (एफपीओ) के माध्यम से छोटे किसानों को सहायता देने और ऐसे समूहों के निर्माण के महत्व पर बल दिया, जो दीर्घकालिक स्थिरता और जमीनी स्तर पर प्रभाव सुनिश्चित करते हुए आवश्यक बुनियादी ढांचा और बाजार पहुंच प्रदान करते हैं.

उन्होंने फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और विभिन्न मौसमों के दौरान कीमतों में उतारचढ़ाव को कम करने के लिए भंडारण बुनियादी ढांचे को बढ़ाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.

उन्होंने आगे कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में एक ही उपज की कीमत में अंतर का सामना करना पड़ता है, जो इस क्षेत्र के लिए एक प्रमुख समस्या है. उन्होंने इस बात पर बल देते हुए निष्कर्ष निकाला कि बच्चों में कुपोषण की राष्ट्रव्यापी समस्या का मुकाबला करने के लिए क्षेत्र का ध्यान ‘फलों और सब्जियों तक पहुंच के बिना कोई बचा नहीं’ होना चाहिए.

उन्होंने उपस्थित सभी हितधारकों से आग्रह किया कि वे अपनी सभी चर्चाओं के केंद्र में किसानों को रखें और उन के लाभ को अधिकतम करने के लिए समाधान सुझाएं.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव देवेश चतुर्वेदी ने समूह विकास कार्यक्रम (सीडीपी) के समग्र दृष्टिकोण पर बल दिया. उन्होंने फसल कटाई के बाद प्रबंधन के लिए प्रोत्साहन आधारित नीति की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हितधारक प्रतिनिधि मूल्य श्रंखला विकास में शामिल हों.

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि समूह विकास कार्यक्रम (सीडीपी) केवल बागबानी उत्पादकता को बढ़ावा देने के बारे में नहीं है, बल्कि संपूर्ण मूल्य श्रंखला को एकीकृत करना है. उत्पादन से पूर्व से ले कर विपणन तक, सभी क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा और वृद्धि सुनिश्चित करना है.

उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उत्पादकों को शहरी बाजारों से जोड़ा जाना चाहिए और उन्हें क्षेत्र के सभी विकास के केंद्र में रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अब तक हुई सभी प्रगति में, मंत्रालय के खाद्य प्रसंस्करण प्रोत्साहन ने एक प्रमुख भूमिका निभाई है और राज्य सरकारों को आगे की वृद्धि के लिए सहायता प्रदान करनी चाहिए.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव सैमुअल प्रवीण कुमार ने समूहीकरण और उत्पादन में सुधार, उपभोक्ताओं तक उत्पादन की पहुंच और किसानों और उन की आय को मजबूत करने की आवश्यकता के बारे में बताया.

उन्होंने उत्पादन को अनुकूलित करने, मूल्य श्रंखला विकसित करने के लिए बुनियादी ढांचे की स्थापना और घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मांग के लिए लौजिस्टिक्स के नैटवर्क पर काम करने के लिए प्रथाओं के उचित पैकेज पर 3 आयामी पर ध्यान देने की गणना की. उन्होंने उपज के मूल्यवर्धन, परिवहन और भंडारण के लिए बुनियादी ढांचे की वर्तमान सीमित क्षमता पर प्रकाश डाला.

उद्घाटन सत्र के बाद परामर्श में विषयगत सत्र शामिल थे, जो बागबानी समूहों और मूल्य श्रंखला विकास के प्रमुख पहलुओं पर केंद्रित थे. पहले सत्र, “रणनीतिक समूह विकास और उत्पादन अनुकूलन” में मिट्टी की गुणवत्ता, जलवायु और बाजार निकटता के आधार पर समूह स्थानों के चयन पर चर्चा की गई और कृषि उत्पादक संगठन (एफपीओ), सहकारी समितियों और कृषि तकनीक स्टार्टअप की भूमिका का पता लगाया गया.

पद्मश्री भारत भूषण त्यागी जैसे वक्ताओं और आईटीसी और सह्याद्री फार्म्स के प्रतिनिधियों ने क्षमता निर्माण और उन्नत उत्पादन तकनीकों के महत्व पर प्रकाश डाला. कृषि उत्पादक संगठन (एफपीओ) जैसे सामुदायिक संस्थानों को ब्लौक स्तर पर सहायता देने और उन्हें हाईटैक नर्सरी, उन्नत ज्ञान प्रणाली और बाजार इकोसिस्टम जैसे पिछड़े और आगे के संबंधों से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया गया, ताकि वे सूचित निर्णय लेने में सक्षम हो सकें. टिकाऊ समूहों के निर्माण की आधारशिलाओं में से एक के रूप में किसानों का विश्वास कायम करने पर चर्चा हुई.

दूसरे सत्र में “मूल्य श्रंखला को मजबूत करने के लिए बुनियादी ढांचे और निवेश” में सार्वजनिक व निजी सामुदायिक भागीदारी (पीपीसीपी) और वाम एग्रो फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड, मोंडेलेज न्यूट्रीफ्रेश और देहात जैसे संगठनों द्वारा आधुनिक खेती के स्वरूपों पर चर्चा के साथ आवश्यक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता को संबोधित किया गया.

खेत से ले कर बाजार तक संपूर्ण मूल्य श्रंखला में फसल के नुकसान को कम करने के लिए फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे के हब एंड स्पोक मौडल की आवश्यकता पर चर्चा हुई. सब्जियों की कटाई के बाद होने वाले नुकसान और मौसमी कीमतों में उतारचढ़ाव को कम करने की तत्काल आवश्यकता को पूरा करने के लिए भंडारण, पौलीहाउस और प्राथमिक प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे का विकास चर्चा का केंद्र बिंदु था.

अंतिम सत्र “कृषि बाजारों में बाजार पहुंच और मूल्य अस्थिरता” में समूहों को बाजारों से जोड़ने और मूल्य अस्थिरता के प्रबंधन पर चर्चा की गई, जिस में पेप्सिको, क्रेमिका, निंजाकार्ट और अनिभव फार्मर्स क्लब के सुझाव शामिल थे, जो अनुबंध खेती, किसानों के लिए ज्ञान पहुंच और छोटे किसानों को समर्थन देने के लिए ईमार्केटप्लेस पर केंद्रित थे.

कीमतों को स्थिर करने के लिए देशभर में उपज वितरण का प्रबंधन करने के लिए एक समर्पित माल गलियारे का गठन पर भी चर्चा की गई. समूहों को उन के उद्देश्यों, जैसे कि जैविक समूह, प्रसंस्करण समूह, ताजा उपज समूह इत्यादि पर आधारित करने से उन बाजारों के साथसाथ उचित बीज और निवेश चयन सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी, जिन्हें लक्षित करने की आवश्यकता है.

सत्र एक समग्र चर्चा में समाप्त हुआ, जहां सभी पैनलिस्टों ने बागबानी समूहों के व्यापक विषय और आगे बढ़ने के स्वरूपों का पता लगाने के बारे में विचार साझा किए. चर्चाओं में एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया गया, जो बागबानी क्षेत्र की पूरी क्षमता को प्राप्त करने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास, तकनीक अपनाने और बाजार संबंधों को जोड़ती है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि नीतियां और योजनाएं समावेशी और प्रभावी हैं, किसानों के लिए निरंतर क्षमता निर्माण और नियमित हितधारक परामर्श को आवश्यक बताया गया.

समापन सत्र में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की सचिव अनीता प्रवीण ने हाल ही में 50 विकिरण इकाइयों के लिए जारी की गई रुचि की अभिव्यक्ति (ईओआई) का उल्लेख किया, जो परामर्श में चर्चा किए गए विषयों में योगदान देगा, क्योंकि वे ताजा उपज के शेल्फ जीवन को बढ़ाने में सहायक होंगे.

सत्र का सारांश खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव मिन्हाज आलम ने प्रस्तुत किया, जिन्होंने बागबानी समूहों के विकास का समर्थन करने के लिए सार्वजनिक व निजी भागीदारी और आधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. उन्होंने दोहराया कि देशभर में बागबानी समूहों के सफल विकास के लिए बहुहितधारक सहयोग महत्वपूर्ण है.

बागबानी समूहों के लिए आगे बढ़ने की राह पर बोलते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव मनिंदर कौर द्विवेदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत ने उत्पादन में शीर्ष स्थान हासिल कर लिया है, लेकिन अब हमें बागबानी में प्रसंस्करण में शीर्ष पर रहने की आवश्यकता है. उस समूह को अगले स्तर पर ले जाने के लिए जहां उत्पादन हो रहा है, वहां बुनियादी ढांचे का विकास होना चाहिए. ताजा उपज की स्थिरता और शीघ्रता पर ध्यान केंद्रित करने वाली रणनीतियां विकसित करना बागबानी के लिए मूल्य श्रंखला विकास के केंद्र में होगा.

हितधारकों के बीच परामर्श ने भारत में कृषि के भविष्य पर सार्थक चर्चा के लिए एक व्यापक मंच प्रदान किया. बागवानी समूहों और मूल्य श्रंखला विकास पर ध्यान से कृषि परिदृश्य को बदलने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है, जिस से यह सुनिश्चित होता है कि भारत न केवल वैश्विक बागबानी उत्पादन में अपना नेतृत्व बनाए रखता है, बल्कि अपने किसानों और व्यापक ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कल्याण को भी बढ़ाता है. जैसा कि मुख्य वक्ताओं ने दोहराया, बागबानी समूहों का विकास वास्तव में इस क्षेत्र में सतत विकास का रास्ता है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ऐसी नीतियों और योजनाओं को विकसित करने के लिए नियमित रूप से ऐसे हितधारक परामर्श को प्रोत्साहन देने के लिए समर्पित है, जो कृषि और बागबानी क्षेत्रों में सभी हितधारकों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं.

युवाओं के लिए एग्री स्टार्टअप का सर्वोत्तम समय : डा. अजीत कुमार कनार्टक, कुलपति

उदयपुर : 30 अगस्त, 2024. आजादी के बाद भारत ने आज न केवल अनाज उत्पादन, बल्कि फल, दूध, मछली और अंडा उत्पादन में नए कीर्तिमान हासिल कर विश्व में शीर्ष स्थान पर नाम दर्ज कराया है. अब सर्वोत्तम समय है कि कृषि शिक्षा से जुड़े युवा वैल्यू एडीशन यानी मूल्य संवर्द्धन कर पैसा कमाने की दिशा में अपना ध्यान लगाएं. युवाओं को नौकरी के पीछे नहीं भागना है, बल्कि नौकरी देने वाला बनना होगा, तभी भारत की अर्थव्यवस्था में आशानुरूप बढ़ोतरी संभव है.

यह आह्वान महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने पिछले दिनों संभाग भर से आए कृषि छात्रछात्राओं और युवा उद्यमियों से किया. वे आरसीए के नूतन सभागार में आयोजित ‘एग्री स्टार्टअप स्टेक होल्डर्स कनेक्ट’ विषयक कार्यशाला को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.

राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंध संस्थान (मैनेज) हैदराबाद की ओर से महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के सहयोग से आयोजित कार्यशाला में उदयुपर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर के विभिन्न महाविद्यालयों में कृषि शिक्षा की पढ़ाई कर रहे 400 छात्रछात्राओं के अलावा शोधकर्ताओं, इनक्यूबेटरों, नीति निर्माताओं, कृषि उद्यमियों, स्टार्टअप, कृषि उद्योगों, हितकारक निवेशकों एवं विस्तार कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की. कार्यशाला का उद्देश्य कृषि व्यवसाय और कृषि उद्यमिता पर अपने नवाचारों, विचारों, विशेषज्ञता और अनुभवों को साझा करना है.

उन्होंने आगे कहा कि एक समय था, जब हम आयातित लाल अनाज खाने को मजबूर थे, लेकिन हरित क्रांति, श्वेत क्रांति के बाद हमारे वैज्ञानिकों ने मुख्य फसलों से हट कर बागबानी, मत्स्य, पशुधन, अंडा उत्पादन के क्षेत्र में विलक्षण परिणाम दिए हैं. आज हमारे देश में अनाज उत्पादन 329.50 मिलीयन टन है, तो फल उत्पादन 355.05 मिलीयन टन पहुंच चुका है. इसी तरह दूध उत्पादन 230 मिलियन टन व मछली का उत्पादन 17.54 मिलियन टन हो चुका है यानी भारत विश्व के अग्रणी देशों में खड़ा है और निर्यात भी कर रहा है.

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि आज एग्री स्टार्टअप का समय है. भारत सरकार ने 300 करोड़ रुपए का फंड बनाया है, ताकि युवा अपना स्टार्टअप के सपने को मूर्त रूप दे सके. नाबार्ड जिला उद्योग केंद्र और अन्य संस्थाओं के माध्यम से 5 से 25 लाख रुपए का ऋण युवाओं को दिया जा रहा है, ताकि वे कृषि के क्षेत्र में नवाचार को मूर्त रूप देते हुए स्टार्टअप शुरू कर सकें.

yuava ke liye

कुलपति डा. अजीत कुमार कनार्टक ने युवाओं को स्टार्टअप के 7 मूल मंत्र लक्ष्य, हितधारकों की समझ, संवाद, सहयोग, तालमेल, प्रशंसा आदि गिनाते हुए बताया कि इन सब से ऊपर लागत और लाभांश को बांटना जरूरी है. आज देश में 730 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्र काम कर रहे हैं, जहां कृषि से जुड़ी हर गतिविधि बेहतर मार्गदर्शन में संचालित है.

उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि आज का युवा स्टार्टअप का नाम आते ही शब्दकोष या गूगल में तलाशता है, लेकिन नवाचारों को धरातल पर उतारने का सशक्त माध्यम स्टार्टअप है. स्टार्टअप वही कर सकता है, जिस के पास खोने को कुछ भी नहीं है या सबकुछ खो देने का जज्बा रखता है. आज के युवा में ये दोनों ही गुण निहित है, इसलिए अपनी सोच और विचार को मूर्त रूप दे कर समाज के भले के लिए काम करें.

वर्ष 2014-15 से पूर्व देश में कृषि आधारित 50 से कम स्टार्टअप थे, जो आज बढ़ कर 700 से ज्यादा हो गए हैं. राष्ट्रीय कृषि योजाना के अंतर्गत सर्वाधिक 226 स्टार्टअप महाराष्ट्र में हैं. राजस्थान में फिलहाल 66 स्टार्टअप ही हैं, लेकिन गुंजाइश खूब है.

केले के अपशिष्ट से चमड़ा, कपड़ा व आभूषण निर्माण

कार्यक्रम के अध्यक्ष राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज) हैदराबाद के निदेशक डा. एस. राज ने कहा कि ‘मैनेज’ एक स्वायत्त कृषि शिक्षा संस्थान है, जो अनुसंधान के साथसाथ एग्री बिजनेस से जुड़े कई पाठ्यक्रम कराता है. संस्थान का उद्देश्य कृषि अर्थव्यवस्था में विस्तार अधिकारियों, प्रबंधकों, वैज्ञानिकों और प्रशासकों को प्रबंधकीय और तकनीकी कौशल प्रदान करना है.

उन्होंने आगे कहा कि कृषि एक ऐसा विषय है, जहां हर कदम पर एग्री स्टार्टअप की विपुल संभावनाएं हैं. दक्षिण में युवा उद्यमियों ने इस काम को समझा और केले के अवशेषों से कपड़े, चमड़ा आदि बनाने का काम कर रहे हैं. यही कृषि के अपशिष्टों व फूलों के बीज आदि से चित्ताकर्षक आभूषण बनाने का काम किया जा रहा है.

विशिष्ट अतिथि, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय, बीकानेर में डीन डा. बीएन मेशराम ने कहा कि मौजूदा समय एग्री स्टार्टअप का है. कृषि में पशुपालन को भी साथ में रखें, तो देश की तरक्की को आगे ले जाने से कोई रोक नहीं सकता.

उन्होंने कहा कि युवा सपने देखता है तो साकार भी कर सकता है. मुरगीपालन सहित कृषि के विभिन्न संकायों में स्टार्टअप की विपुल संभावनाएं हैं. कृषि में हर चीज पुनर्चक्रित होती है, जहां स्टार्टअप की असीम संभावनाएं हैं.

कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. भूरालाल पाटीदार ने कहा कि उन के कार्याधीन, कृषि संभाग के 5 जिले उदयपुर, बांसवाड़ा, डूगंरपुर, प्रतापगढ़, सलूम्बर में खरीफ में लगभग 8 लाख हेक्टेयर में बोआई होती है. सब से ज्यादा 3.82 लाख हेक्टेयर में मक्का बोया जाता है, लेकिन अपेक्षित पैदावार बढ़ाने की खूब गुंजाइश है.

डा. भूरालाल पाटीदार ने कहा कि बांसवाड़ा में तो तीनों ऋतुओं में मक्का की खेती होती है. मक्का के सर्वाधिक उत्पाद बनते हैं.

उन्होंने महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति से मक्का आधारित प्रोसैसिंग इकाई लगाने का अनुरोध किया. इस मौके पर उन्होंने किसानों को राज्य सरकार की ओर से संचालित विभिन्न योजनाओं और उन में मिलने वाले अनुदान की जानकारी दी.

वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं बड़गांव कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डा. प्रफुल्ल भटनागर ने कहा कि देश में रोजगार की कमी है. ऐसे मे गांव में उपलब्ध सामग्री व सुविधाओं को समाहित कर नया स्टार्टअप किया जा सकता है. बकरीपालन, मुरगीपालन, सुअरपालन, गौपालन में सरकार की एक से अधिक योजनाएं संचालित हैं, जहां अनुदान के साथसाथ छूट भी मिलती है.

जिला विकास प्रबंधन नाबार्ड के नीरज यादव ने युवा छात्रछात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि कृषि में स्टार्टअप में परेशानी है तो संभावनाएं भी भरपूर हैं. यदि आप के पास आइडिया है और उस का हल है तो नाबार्ड 5 लाख से 25 लाख रुपए तक मदद कर सकता है. कृषि तंत्र से जुड़े युवा नेब वेंचर एप के सहयोग से स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं. नाबार्ड न केवल स्टार्टअप, बल्कि कोल्ड स्टोरेज, गोदाम आदि बनाने के लिए भी माली मदद करता है.

बिहार और झारखंड के कृषि विज्ञान केंद्रों की वार्षिक कार्यशाला

सबौर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में आईसीएआर (ICAR)-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (ATARI), पटना द्वारा आयोजित बिहार और झारखंड में कृषि विज्ञान केंद्रों के लिए तीनदिवसीय वार्षिक क्षेत्रीय कार्यशाला का आयोजन 29 अगस्त, 2024 से 31 अगस्त, 2024 तक किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति डा. डीआर सिंह उपस्थित थे. विशिष्ट अतिथियों में ICAR- MGFRI, मोतिहारी के डा. केजी मंडल, ICAR- RECR, पटना के निदेशक डा. अनुप दास, ICAR, नई दिल्ली से डा. केशव, पीएस (एई) और ICAR-ATARI, पटना के निदेशक डा. अंजनी कुमार शामिल रहे.

मंच पर अन्य गणमान्य व्यक्तियों में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहने, अनुसंधान निदेशक डा. एके सिंह और अन्य गण्यमान लोग शामिल रहे. कुलपति डा. डीआर सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि देश के 731 कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) में से लगभग 10 फीसदी हमारे क्षेत्र जोन IV में स्थित हैं.

उन्होंने कृषि और किसानों के विकास में कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय के छात्र न केवल प्लेसमेंट हासिल कर रहे हैं, बल्कि हाल ही में BPSC द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं में भी उल्लेखनीय सफलता प्राप्त कर चुके हैं.

उन्होंने आगे बताया कि विश्वविद्यालय विभिन्न पहलों के माध्यम से सालाना 2.5 लाख से अधिक किसानों के साथ जुड़ता है और औसतन प्रतिदिन 8 कार्यक्रम आयोजित करता है. उन्होंने गांवों में कृषि ज्ञान वाहन के सकारात्मक प्रभाव पर बल दिया और कहा कि राज्य सरकार प्रत्येक जिले के लिए एक वाहन खरीदने पर विचार करे.

उन्होंने वैज्ञानिकों को विश्वविद्यालय की वैबसाइट पर अपनी सफलता की कहानियां साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि आज मक्का, मखाना, लीची और कई सब्जी फसलों उत्पादकता में बिहार अग्रणी है, जिस के पीछे कृषि विज्ञान केंद्रों की अहम भूमिका है.

उन्होंने खाद्य प्रसंस्करण और पैकेजिंग के महत्व को भी रेखांकित किया, साथ ही कहा कि विश्वविद्यालय ने मखाना, जर्दालू, आम और लीची के लिए पैकेजिंग समाधान विकसित किए हैं. उन्होंने आगे आगामी सेकेंडरी कृषि महाविद्यालय का परिचय कराया, जो देश में अपनी तरह का पहला होगा और राज्य में अपनी तरह की पहली NABL-मान्यताप्राप्त प्रयोगशाला की स्थापना का उल्लेख किया. विश्वविद्यालय ने नीरा सहित कई पेटेंट हासिल किए हैं, जो इस की शेल्फलाइफ को 2 महीने तक बढ़ा देता है.

उन्होंने कुपोषण से निबटने के लिए विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला, यह देखते हुए कि यह संभवत: देश में इस कारण के लिए एक स्कूल को अपनाने वाला पहला स्कूल है. ‘एक उत्पाद, एक वैज्ञानिक’ मौडल को प्रभावी ढंग से लागू किया गया है, जिस में प्रत्येक वैज्ञानिक उल्लेखनीय परिणाम प्राप्त कर रहा है. विश्वविद्यालय का प्रत्येक विभाग अनुसंधान और विकास को बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं भी स्थापित कर रहा है.

अंत में उन्होंने तिलहन, दलहन और ज्वार जैसी फसलों में आत्मनिर्भरता और अधिशेष उत्पादन हासिल करने के साथसाथ विपणन की आवश्यकता पर भी बल दिया.

कार्यक्रम के शुरुआत में अपने स्वागत भाषण में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहने ने बताया कि देशभर में जोन IV सब से अच्छा प्रदर्शन करने वाले क्षेत्रों में से एक है. इस बेहतर प्रदर्शन के पीछे उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा बेहतर तरीके से कामों के संपादन को बताया.

डा. अंजनी कुमार, (ICAR-ATARI), पटना के निदेशक ने सदन को इस वर्ष की कार्यशाला की नई संरचना के बारे में अपडेट किया, जिस में संरक्षण कृषि, NICRA, ARYA और अन्य जैसे विषयों पर थीम आधारित प्रस्तुतियां शामिल हैं. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कार्यशाला में ज्ञान और जागरूकता बढ़ाने के लिए कई व्याख्यान शामिल किए गए हैं. उन्होंने कुलपति को केवीके में विषय वस्तु विशेषज्ञों को सफलतापूर्वक नियुक्ति करने के लिए बधाई दी.

ICAR-MGFRI, मोतिहारी के डा. केजी मंडल ने कुलपति के नेतृत्व में कम समय में विश्वविद्यालय द्वारा प्राप्त की गई प्रभावशाली उपलब्धियों की प्रशंसा की. उन्होंने किसानों की विकसित होती आवश्यकताओं को पूरा करने के महत्व पर जोर दिया और किसानों की आय बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) मौडल की महत्वपूर्ण क्षमता पर प्रकाश डाला.

ICAR-RECR, पटना के निदेशक डा. अनुप दास ने विश्वविद्यालय को उस की निरंतर प्रगति और उपलब्धियों के लिए बधाई दी. उन्होंने जोर दिया कि टीम निर्माण और नवीनता बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को चलाने वाली मुख्य ताकतें हैं. उन्होंने क्षेत्र के 68 केवीके के वैज्ञानिकों को नवीन सोच अपनाने और रचनात्मक समाधान तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने किसानों की सफलता की कहानियां और अनुभवों को संग्रहीत करने की भी सलाह दी.

डा. अनिल कुमार सिंह, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के अनुसंधान निदेशक ने विश्वविद्यालय की कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर प्रकाश डाला. उन्होंने विश्वविद्यालय की वर्ष के लिए प्रभावशाली NIRF रैंकिंग, NABL-प्रमाणित प्रयोगशाला की स्थापना और नर्सरी को सरकार द्वारा 3-स्टार रेटिंग के साथ हाल ही में मान्यताप्राप्त करने की घोषणा की.

उन्होंने विश्वविद्यालय की उल्लेखनीय अनुसंधान उपलब्धियों को भी साझा किया, जिस में CVRC द्वारा कई नई किस्मों का विमोचन और इस के इनक्यूबेशन और स्टार्टअप सेल के माध्यम से संपादित काम शामिल हैं. इस के अतिरिक्त उन्होंने राज्यभर में 54 उत्पादों के लिए भौगोलिक संकेतों पर काम करने में विश्वविद्यालय में चल रहे प्रयासों पर ध्यान आकर्षित किया.

आईसीएआर, नई दिल्ली से डा. केशव, प्रधान वैज्ञानिक (एई) ने वैज्ञानिकों से संस्थान द्वारा प्रदान की गई तकनीकों से परे कुछ नवीन तकनीकों का पता लगाने और विकसित करने का आग्रह किया. साथ ही, विश्वविद्यालय से इस दृष्टिकोण का समर्थन करने के लिए अनुरोध किया. उन्होंने मूल्यवर्धित पदार्थ, प्रसंस्करण और विपणन पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने तकनीकी हस्तक्षेपों के माध्यम से किसानों तक पहुंचने के लिए क्षेत्र के केवीके को उन के उत्कृष्ट प्रयासों के लिए भी आभार व्यक्त किया.

इस कार्यक्रम के दौरान कई प्रकाशनों का अनावरण किया गया, जिस में आईसीएआर-अटारी  (ICAR-ATARI), पटना की वार्षिक रिपोर्ट, अभिनव किसानों की सफलता की कहानियों वाली एक पुस्तक और एक नया न्यूजलेटर शामिल है. इस के अतिरिक्त क्षेत्र के केवीके के सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों को उन के योगदान के लिए सम्मानित किया गया.

देश के पहले राष्ट्रीय वेटरनिटी सम्मेलन का आयोजन

जबलपुर : प्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार लखन पटेल ने पिछले दिनों पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय के सभागार में देश के पहले राष्ट्रीय वेटरनरी सम्मेलन का शुभारंभ किया. एग्रीविजन संस्था द्वारा आयोजित 2 दिन के इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में विधायक अशोक रोहाणी, नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलगुरु डा. मनदीप शर्मा, वेटरनरी काउंसिल औफ इंडिया के अध्यक्ष डा. उमेश शर्मा, चेतस सुखाड़िया, शालिनी वर्मा, शुभम सिंह पटेल, डा. देवेंद्र पोधाड़े एवं तमाम विषय विशेषज्ञ उपस्थित थे.

राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार लखन पटेल ने सम्मेलन का उद्घाटन किया. पशुपालन एवं डेयरी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) लखन पटेल ने सम्मेलन में जम्मूकश्मीर, हरियाणा, तेलंगाना सहित देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आए सभी विद्यार्थियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस सम्मेलन में उन्हें कई नई चीजों को सीखने और समझने के अवसर मिलेगा.

उन्होंने सम्मेलन की सफलता की कामना करते हुए कहा कि वर्तमान समय में पशुपालन और पशु चिकित्सा का महत्व बढ़ता जा रहा है. पशुपालन ऐसा क्षेत्र है, जिसे अपना कर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं. इस क्षेत्र को अपनाने वाले हर विद्यार्थी को इसे एक अच्छा अवसर मान कर अपना श्रेष्ठतम देने के प्रयास करने चाहिए. उन्हें निश्चित रूप से सफलता मिलेगी.

मंत्री लखन पटेल ने प्रदेश मंत्रिमंडल में पशुपालन जैसे विभाग की बागडोर देने पर मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव का आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि वे इस क्षेत्र को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का हर संभव प्रयास करेंगे. पहली बार प्रदेश में पशुपालन विभाग का बजट 40 फीसदी बढ़ाया गया है. प्रदेश में पशु चिकित्सालयों को साधन संपन्न बनाने और सुविधाएं बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की जानकारी देते हुए बताया कि केंद्र शासन से भी उन्हें मदद मिल रही है. साथ ही, पशु चिकित्सा महाविद्यालयों में भी छात्रों को बेहतर शैक्षिक सुविधाएं मिलें, इस के लिए भी हर संभव कोशिशें की जा रही हैं.

11 लाख लखपति दीदी हुईं सम्मानित

जलगांव : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों महाराष्ट्र के जलगांव में लखपति दीदी सम्मेलन में भाग लिया. उन्होंने लखपति बनी 11 लाख नई लखपति दीदियों को प्रमाणपत्र दिए. प्रधानमंत्री ने देशभर की लखपति दीदियों से बातचीत भी की. मोदी ने 2,500 करोड़ रुपए का रिवौल्विंग फंड जारी किया, जिस से 4.3 लाख स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के लगभग 48 लाख सदस्यों को लाभ मिलेगा. इस के अलावा उन्होंने 5,000 करोड़ रुपर के बैंक ऋण भी वितरित किए, जिस से 2.35 लाख एसएचजी के 25.8 लाख सदस्यों को लाभ मिलेगा. लखपति दीदी योजना की शुरुआत से अब तक एक करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाया जा चुका है और सरकार ने 3 करोड़ लखपति दीदियों का लक्ष्य रखा है.

प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर उपस्थित माताओं और बहनों की विशाल भीड़ के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अपने संबोधन की शुरुआत की. उन्होंने लखपति दीदी सम्मेलन के विशाल आयोजन में माताओं और बहनों की भारी भीड़ की उपस्थिति पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि आज पूरे भारत में फैले लाखों महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए 6000 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि वितरित की गई. धनराशि का यह कोष कई महिलाओं को ‘लखपति दीदी’ बनने के लिए प्रेरित करेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि महाराष्ट्र की माताएं और बहनें राज्य की गौरवशाली संस्कृति और परंपराओं की झलक देती हैं. महाराष्ट्र की परंपराएं न केवल भारत में, बल्कि दुनियाभर में जानी जाती हैं. मोदी ने जोर दे कर कहा, “आज जब भारत विकसित बनने का प्रयास कर रहा है, हमारी नारी शक्ति एक बार फिर आगे आ रही है.”

2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र की अपनी यात्रा को याद करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 3 करोड़ लखपति दीदियों को बनाने की इच्छा व्यक्त की थी. पिछले 10 वर्षों के दौरान 1 करोड़ लखपति दीदियां बनाई गईं, जबकि पिछले 2 महीनों में ही 11 लाख नई लखपति दीदियां बनाई गईं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्रियों की पूरी टीम कई नई योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत कर के महाराष्ट्र में महिलाओं को सशक्त और मजबूत बनाने के लिए एकसाथ आई है. लखपति दीदी बनाने का यह अभियान सिर्फ बहनबेटियों की कमाई बढ़ाने का ही अभियान नहीं है, बल्कि पूरे परिवार को, आने वाली पीढ़ियों को सशक्त कर रहा है. यह गांव के पूरे अर्थतंत्र को बदल रहा है. यहां मौजूद हर महिला जानती है कि जब वह आजीविका कमाने लगती है, तो समाज में उस की स्थिति बेहतर होती है. आय बढ़ने के साथ ही परिवार की क्रय शक्ति भी बढ़ती है. जब एक बहन लखपति दीदी बनती है, तो पूरे परिवार की किस्मत बदल जाती है.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश में करोड़ों महिलाओं के पास कोई संपत्ति नहीं है, जिस से छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए बैंक ऋण लेने में बड़ी बाधा आती थी. इसलिए मैं ने महिलाओं पर बोझ कम करने का संकल्प लिया और एक के बाद एक महिलाओं के हित में फैसले लिए.”

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उन की सरकार ने गरीबों के लिए घरों की रजिस्ट्री घर की महिला के नाम पर करने का फैसला किया है. अब तक बने 4 करोड़ घरों में से अधिकांश महिलाओं के नाम पर पंजीकृत हैं. प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि आने वाले समय में बनने वाले 3 करोड़ घरों में से भी अधिकांश महिलाओं के नाम पर पंजीकृत होंगे.

बैंकिंग क्षेत्र में किए गए सुधारों पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि प्रधानमंत्री जनधन योजना में भी अधिकांश बैंक खाते महिलाओं के नाम पर खोले गए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के लगभग 70 फीसदी प्रतिशत लाभार्थी देश की माताएं और बहनें हैं.
इस बात का स्मरण करते हुए कि कैसे उन्हें अतीत में महिलाओं को ऋण देने के खिलाफ चेतावनी दी गई थी, मोदी ने कहा कि उन्हें मातृशक्ति पर पूरा भरोसा है और वे बिना चूके ईमानदारी से ऋण वापस करेंगी. उन्होंने महिलाओं की रुचि से उत्साहित हो कर उन की सरकार ने पीएम मुद्रा योजना की ऋण सीमा बढ़ा कर 20 लाख रुपए कर दी है.

स्ट्रीट वेंडरों के लिए शुरू की गई स्वनिधि योजना के बारे में चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देते हुए कहा कि स्वनिधि में भी बिना गारंटी के ऋण दिए जा रहे हैं, जिस का लाभ महिलाओं तक पहुंचा है. उन की सरकार ने विश्वकर्मा परिवारों की हस्तशिल्प करने वाली कई महिलाओं को बिना गारंटी के लाभ पहुंचाया है.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सखी मंडलियों और महिला स्वयं सहायता समूहों के महत्व को पहले मान्यता नहीं दी गई थी, जबकि आज वे भारत की अर्थव्यवस्था में एक बड़ी शक्ति बनने की राह पर हैं. प्रत्येक गांव और आदिवासी क्षेत्र महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा लाए गए सकारात्मक बदलावों को देख रहे हैं.

उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों में 10 करोड़ महिलाएं इस अभियान से जुड़ चुकी हैं और उन्हें कम ब्याज वाले ऋण की आसान सुविधा के लिए बैंकिंग प्रणाली का हिस्सा बनाया गया है. उन्होंने बताया कि 2014 में स्वयं सहायता समूहों के लिए 25,000 करोड़ रुपए से कम के बैंक ऋण स्वीकृत किए गए थे, जबकि आज यह धनराशि पिछले 10 वर्षों में बढ़ कर 9 लाख करोड़ रुपए हो गई है. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार द्वारा दी जाने वाली प्रत्यक्ष सहायता को भी लगभग 30 गुना बढ़ा दिया गया है.

हर गांव में बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने वाली 1.25 लाख से अधिक बैंक सखियों, ड्रोन के साथ आधुनिक खेती में सहायता करने के लिए ड्रोन पायलट बनने वाली ड्रोन दीदियों और पशुपालकों की मदद के लिए 2 लाख पशु सखियों को प्रशिक्षित करने का उदाहरण दिया.lakhpati didi 3

प्रधानमंत्री ने आधुनिक खेती और प्राकृतिक खेती के लिए नारी शक्ति को नेतृत्व देने के लिए कृषि सखी कार्यक्रम शुरू करने का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि सरकार आने वाले समय में देश के हर गांव में ऐसी लाखों कृषि सखियां बनाने जा रही है. इन अभियानों से बेटियों को रोजगार मिलेगा और उन का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. उन्होंने कहा, “बेटियों की ताकत को ले कर समाज में एक नई सोच पैदा होगी.”

पिछले महीने सदन द्वारा पारित केंद्रीय बजट के बारे में चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि महिलाओं से संबंधित योजनाओं के लिए 3 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. हमारी सरकार बेटियों के लिए हर सैक्टर खोल रही है, जहां कभी उन पर पाबंदियां थीं. उन्होंने लड़ाकू पायलटों सहित तीनों सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों, सैनिक स्कूलों और अकादमियों में प्रवेश और पुलिस बल और अर्धसैनिक बलों में महिलाओं की बढ़ती संख्या का उदाहरण दिया.

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि बड़ी संख्या में महिलाएं गांवों में कृषि और डेयरी क्षेत्र से ले कर स्टार्टअप क्रांति तक के व्यवसायों का प्रबंधन कर रही हैं. उन्होंने राजनीति में बेटियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए नारी शक्ति अधिनियम का जिक्र किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के साथसाथ उन का सशक्तीकरण राष्ट्र की सर्वोच्च प्राथमिकता है. वे अपनी बहनों और बेटियों के दर्द और गुस्से को समझते हैं, चाहे वे किसी भी राज्य की हों.

प्रधानमंत्री मोदी ने सख्त रवैया अपनाते हुए देश की सभी राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों को याद दिलाया कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार एक अक्षम्य पाप है और दोषी एवं उस का साथ देने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सार्वजनिक संस्थाओं को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए, चाहे वह अस्पताल हो या स्कूल या कार्यालय या पुलिस प्रणाली, और उन की ओर से किसी भी तरह की लापरवाही अस्वीकार्य है. मोदी ने कहा, “सरकारें बदल सकती हैं, लेकिन एक समाज और एक सरकार के रूप में हमारी सब से बड़ी जिम्मेदारी महिलाओं के जीवन और सम्मान की रक्षा करना है.”

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं पर अत्याचार करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा देने के लिए सरकार लगातार कानूनों को सख्त बना रही है. पहले शिकायतों की एफआईआर समय पर दर्ज नहीं होती थी और मामलों में बहुत समय लगता था. उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में ऐसी बाधाओं को दूर कर दिया गया है, जहां महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अत्याचारों पर एक पूरा अध्याय बनाया गया है.

उन्होंने बताया कि अगर पीड़ित पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहते हैं, तो वे ई-एफआईआर दर्ज कर सकते हैं और पुलिस स्टेशन स्तर पर तेजी से कार्रवाई सुनिश्चित करने और ई-एफआईआर के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करने के उपाय किए गए हैं.

उन्होंने कहा कि नए कानूनों में नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए मृत्युदंड और आजीवन कारावास का प्रावधान है. उन्होंने यह भी कहा कि बीएनएस ने शादी के नाम पर धोखाधड़ी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए शादी के झूठे वादों और धोखे को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है. प्रधानमंत्री ने कहा, “महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए केंद्र सरकार हर तरह से राज्य सरकारों के साथ है. जब तक भारतीय समाज से इस पापी मानसिकता को खत्म नहीं कर दिया जाता, हम रुक नहीं सकते.”

इस अवसर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस व अजित पवार और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.