पशुचारे के नहीं होगी कमी

गोवा : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने गोवा में सीएलएफएमए औफ इंडिया की दोदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया. सीएलएफएमए औफ इंडिया देश में पशुधन क्षेत्र का सब से बड़ा संगठन है. इस अवसर पर सीएलएफएमए औफ इंडिया के अध्यक्ष सुरेश देवड़ा; पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन मंत्रालय में पशुपालन आयुक्त डा. अभिजीत मित्रा और पशुपालन एवं डेयरी विभाग के पूर्व संयुक्त सचिव ओपी चौधरी भी उपस्थित थे.

अपने संबोधन में राजीव रंजन ने पशुपालन में घरेलू समाधानों को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण प्रयासों के बारे में बताया. उन्होंने असंगठित डेयरी क्षेत्र को संगठित करने और चारे की कमी को दूर करने के उद्देश्य से जारी कई योजनाओं का भी उल्लेख किया. सीएलएफएमए की पहल की प्रशंसा करते हुए उन्होंने उम्मीद जताई कि इस तरह की चर्चाओं से सरकार को नीति बनाने में मदद मिलेगी.

सुरेश देवड़ा ने भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन क्षेत्र के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह किसानों और पशुपालन से जुड़े लोगों को रोजगार प्रदान करता है. इस उद्योग का सालाना कारोबार 12 लाख करोड़ रुपए है. उन्होंने कहा कि अंडे, मांस, दूध और पनीर जैसे उच्च गुणवत्ता वाले पशुधन उत्पादों की दुनियाभर में मांग लगातार बढ़ रही है.

डा. अभिजीत मित्रा ने भारत के पशुधन क्षेत्र को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार, उद्योग और अनुसंधान संस्थानों के बीच बेहतर तालमेल बनाने और सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया. कार्यक्रम में सीएलएफएमए औफ इंडिया ने ओपी चौधरी को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया.

स्वास्थ्य और स्वाद दोनों से मिल कर बनता है ‘आयुष’ आहार

नई दिल्ली : केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री प्रताप राव जाधव ने पिछले दिनों वर्ल्ड फूड इंडिया में लगी आयुष प्रदर्शनी का दौरा किया और विभिन्न गतिविधियों व आयुष उत्पादों का निरीक्षण किया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि ‘स्वास्थ्य और स्वाद दोनों से मिल कर बना है आयुष आहार’ और आयुष आहार खाने से स्वास्थ्य सही रहता है.

आयुष मंत्रालय के द्वारा लगाई गई इस प्रदर्शनी में विभिन्न आयुर्वेद आहार की विभिन्न रेसिपी को प्रदर्शित किया गया,  ताकि लोग आसानी से अपने घर में आयुष आहार बना सकें. ऐसा कर के हम स्वस्थ भारत की परिकल्पना को साकार कर पाएंगे.

आयुष मंत्रालय ने प्रगति मैदान, नई दिल्ली में 19 से 22 सितंबर तक आयोजित वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 के दौरान अपने पवेलियन में आयुर्वेद आधारित आहार और भारतीय पारंपरिक चिकित्सा से जुड़े विभिन्न खाद्य उत्पादों का प्रदर्शन कर वैश्विक दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया.

आयुष मंत्री प्रताप राव जाधव ने आगे कहा “आयुष मंत्रालय के पवेलियन में प्रदर्शित उत्पाद पारंपरिक जानकारी को समकालीन खाद्य समाधानों के साथ जोड़ते हैं, जिस से इन की वैश्विक मांग में वृद्धि हो रही है.

आयोजन में विश्वभर के स्टेकहोल्डर्स और वरिष्ठ गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया, जिन्होंने भारतीय आयुर्वेद प्रेरित खाद्य परंपराओं की प्रासंगिकता और उन की आधुनिक वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान में भूमिका पर जोर दिया.

केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री प्रताप राव जाधव ने आधुनिक जीवनशैली के संदर्भ में आयुर्वेद को मुख्यधारा के पोषण और स्वास्थ्य में शामिल करने के महत्व पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने आगे यह भी कहा, “आयुर्वेदिक आहार वैज्ञानिक रूप से परखे हुए और परीक्षण किए गए आहार समाधान प्रदान करता है, जो समग्र स्वास्थ्य की अवधारणा को सुदृढ़ बनाता है. वर्ल्ड फूड इंडिया इस प्राचीन जानकारी को वैश्विक मंच पर लाने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है.”

आयुष पवेलियन की मुख्य विशेषताएं

आयुष पवेलियन में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों जैसे मधुमेह, मोटापा और उच्च रक्तचाप के लिए विशेष आयुर्वेदिक आहार उत्पादों का प्रदर्शन किया गया और आयुर्वेदिक तत्वों को रोजमर्रा के भोजन में शामिल कर समग्र स्वास्थ्य और कल्याण को सुधारने के तरीकों का प्रदर्शन भी हुआ. इस के अलावा पवेलियन में आयुर्वेदिक पोषण विशेषज्ञों द्वारा लाइव प्रदर्शन और परामर्श भी दिया गया.

इसी के साथ सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों द्वारा आयुर्वेद आहार अनुसंधान और उत्पाद विकास के लिए साझेदारी पर भी चर्चा हुई और योग का लाइव प्रदर्शन और योग थैरेपी किया गया.

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा आयोजित वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 ने खाद्य और कृषि क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय कंपनियों, नीति निर्माताओं और विशेषज्ञों को एक साझा मंच प्रदान किया. आयुष पवेलियन आगंतुकों को आयुर्वेदिक सिद्धांतों को दैनिक आहार में शामिल करने के स्वास्थ्य लाभों को समझने और अपनाने का अवसर दिया.

आयुष मंत्री प्रताप राव जाधव ने यह भी कहा कि मंत्रालय आयुर्वेदिक खाद्य पदार्थों के लिए मानकीकृत दिशानिर्देश विकसित करने और वैश्विक बाजारों में आयुर्वेद आहार को लोकप्रिय बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियामक निकायों के साथ मिल कर काम करने की योजना बना रहा है. उन्होंने कहा, “आयुर्वेद के पास स्थायी और निवारक स्वास्थ्य समाधानों की पेशकश कर वैश्विक खाद्य परिदृश्य को बदलने की क्षमता है. हम इस क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.”

सीईओ, एनएमपीबी (नैशनल मैडिसिनल प्लांट बोर्ड) डा. महेश दधीचि ने मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में आयुष राज्य मंत्री प्रताप राव जाधव का स्वागत किया और उन्हें आयुर्वेद आहार की गतिविधियों और प्रदर्शन के बारे में जानकारी दी.

लाख का बढ़ेगा उत्पादन

रांची : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के रांची में आईसीएआर-राष्ट्रीय उच्चतर कृषि संस्थान (एनआईएसए) के शताब्दी समारोह में भाग लिया. इस अवसर पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि खेती को लाभप्रद बनाने के अलावा 21वीं सदी में कृषि के समक्ष 3 अन्य बड़ी चुनौतियां हैं. खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, संसाधनों का सतत उपयोग और जलवायु परिवर्तन.

उन्होंने आगे कहा कि द्वितीयक कृषि से जुड़ी गतिविधियां इन चुनौतियों से निबटने में सहायक हो सकती हैं. द्वितीयक कृषि में प्राथमिक कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन के साथसाथ मधुमक्खीपालन, मुरगीपालन, कृषि पर्यटन आदि जैसी कृषि से जुड़ी अन्य गतिविधियां शामिल हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि द्वितीयक कृषि गतिविधियों के माध्यम से कृषि अपशिष्ट का समुचित उपयोग किया जा सकता है. उन्हें प्रसंस्कृत यानी प्रोसैस्ड कर के उपयोगी और मूल्यवान चीजें बनाई जा सकती हैं. इस तरह पर्यावरण की रक्षा होगी और किसानों की आय भी बढ़ेगी.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भारत में लाख का उत्पादन मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाता है. यह उन की आय का एक मुख्य स्रोत है. उन्हें यह जान कर खुशी हुई कि राष्ट्रीय उच्चतर कृषि संस्थान ने लाख, प्राकृतिक रेजिन और गोंद के अनुसंधान और विकास के साथसाथ वाणिज्यिक विकास के लिए कई कदम उठाए हैं. इस में एक छोटी लाख प्रसंस्करण इकाई और एक एकीकृत लाख प्रसंस्करण इकाई का विकास, लाख आधारित प्राकृतिक पेंट, वार्निश और कास्मैटिक उत्पादों का विकास, फलों, सब्जियों और मसालों की शेल्फलाइफ बढ़ाने के लिए लाख आधारित कोटिंग का विकास शामिल है.

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि ये सभी कदम आदिवासी भाईबहनों के जीवनस्तर को बेहतर बनाने में मदद करेंगे. एनआईएसए ने लाख की खेती में अच्छा काम किया है. लेकिन, अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिन में हम और आगे बढ़ सकते हैं. जैसे, फार्मास्यूटिकल्स और कास्मैटिक्स उद्योगों में उच्च गुणवत्ता वाली लाख की मांग है. अगर भारतीय लाख की गुणवत्ता, आपूर्ति श्रंखला और विपणन में सुधार किया जाए, तो हमारे किसान देशविदेश में इस की आपूर्ति कर सकेंगे और उन्हें बेहतर मूल्य मिलेगा.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रांची में आयोजित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय कृषि उच्चतर प्रसंस्करण संस्थान के शताब्दी समारोह के कार्यक्रम में भाग लिया. उन्होंने कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा कि आज हम सब के बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मौजूद हैं, जिन का झारखंड से विशेष लगाव रहा है. जब वे राज्यपाल थीं, तब भी जनता के कल्याण के लिए बहुत काम करती रही हैं. लाख यानी लाह का इतिहास भारत के बराबर ही पुराना है. महाभारत में लाक्षगृह का जिक्र है. वह भी लाख से ही बना था. तब से ले कर आज तक लाख की खेती होती आ रही है.

उन्होंने कहा कि आज के समय में लाख का बहुत महत्व है. प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य किसानों की आय को दोगुना करना है. किसानों की आमदनी बढ़े, उस के लिए खेतों में उत्पादन बढ़ाना, उत्पादन की लागत घटाना, उत्पादन के ठीक दाम देना, नुकसान की भरपाई करना, खेती का विविधीकरण करना लक्ष्य है. हमें परंपरागत खेती के साथसाथ दूसरी खेती की तरफ भी बढ़ना पड़ेगा. कृषि वानिकी यानी पेड़ों से होने वाली आमदनी की तरफ भी प्रधानमंत्री मोदी ने ध्यान दिलाया है.

उन्होंने कहा कि इन सब पहलुओं पर भी अगर हम सोचें तो लाख की खेती बहुत महत्वपूर्ण है. हम 400 करोड़ रुपए की लाख का निर्यात करते हैं. इस खेती से कई तो ऐसे जुड़े हैं, जो एक लाख रुपए से ज्यादा कमा रहे हैं. अलगअलग समूह भी बनाए गए हैं, उन में से कई समूहों की आमदनी 25 से 30 लाख रुपए तक है.

उन्होंने यह भी कहा कि लाख की खेती में अपार संभावनाएं हैं, इसलिए लाख हमारी आय बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है और यह प्लास्टिक का भी विकल्प है.

Lakh productionकार्यक्रम में शामिल हुई महिलाओं का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि महिला सशक्तीकरण की शक्ति हमारी बहनें भी बड़ी आसानी से लाख की खेती कर सकती हैं. महिलाओं को ‘लखपति दीदी’ बनाना है यानी हर महिला की आमदनी कम से कम एक लाख रुपए सालाना हो जाए, हमें इस का इंतजाम करना है. इस के लिए ‘लखपति दीदी योजना’ बनाई गई है. ‘लखपति दीदी योजाना’ का विभाग उन के पास ही है. लाख के माध्यम से भी ‘लखपति दीदीयां’ बनाई जा सकती हैं. आप की आमदनी 1 लाख रुपए से ज्यादा बढ़ाने में हम कोई कमी नहीं छोड़ेंगे. कृषि विभाग व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद लाख की कैसे प्रोसैसिंग हो, पैदावार बढ़े और प्रोसैसिंग के बाद ठीक दाम मिले आदि पर काम कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू के आने से यहां लाख की खेती आगे बढ़े और लाह यानी लाख उत्पादक किसान, गरीबों की समस्या का समाधान हो. ग़रीब, आदिवासी, पिछड़े इस खेती के काम में लगे हैं इसलिए लाख का उत्पादन कम से कम दोगुना हो जाए, इन्हें और प्रोत्साहन मिले, उन की आय बढ़ जाए.

उन्होंने यह भी कहा कि लाख उत्पादन वन विभाग में आता है, इसलिए कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ लाख उत्पादन करने वाले किसानों को नहीं मिलता है. वे कोशिश करेंगे कि लाख को कृषि उत्पाद के रूप में पूरे देश में मान्यता मिले.

उन्होंने कहा कि भारत सरकार इस बात पर ध्यान देगी कि लाख की क्लस्टर आधारित प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना में मदद करें, ताकि प्रोसैसिंग का काम आसान हो जाए और किसानों को भी प्रोसैसिंग के बाद ठीक दाम मिल जाए.

उन्होंने आगे कहा कि जनजातीय कार्य मंत्रालय के साथ मिल कर इस का प्रयत्न करेंगे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी तय की जाए. जितनी लागत आती है, उतना कम से कम 50 फीसदी फायदा जोड़ कर ही लाख की लागत तय हो, ताकि किसानों को ज़्यादा पैसा मिल सके.

उन्होंने कहा कि यहां अभी 1,500 किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इस साल से यहां 1,500 नहीं, बल्कि 5,000 किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि प्रशिक्षण प्राप्त कर किसान ज्यादा लाभ कमा सकें. उन्होंने कहा कि वे आश्वस्त करते हैं कि रांची को कृषि शिक्षा, अनुसंधान शोध में देश का प्रमुख केंद्र बनाया जाएगा.

कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने अपने संबोधन में कहा कि पहले ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान’ का नारा लगा था, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जय अनुसंधान’ का नारा लगा कर देश को विकसित राष्ट्र बनाने का जो सपना संजोया था, वह आज परिलक्षित होता दिख रहा है. इस देश का अन्नदाता 145 करोड़ जनता का ही पेट नहीं भरता है, बल्कि हर क्षेत्र में इस देश का अन्नदाता रातदिन मेहनत करता है. जब अन्नदाता के घर में खुशहाली आती है तो सिर्फ घर ही विकसित नहीं होता, बल्कि देश विकसित होता है. किसी भी फसल की खेती करने वाले किसान को जब तक बिचौलियों से नहीं बचाया जाएगा, तब तक किसान समृद्ध नहीं हो सकता है. इस देश का किसान जब समृद्ध होगा, तभी देश विकसित राष्ट्र बन सकता है. झारखंड, छतीसगढ़ और ओड़िशा के कई आदिवासी समुदायों के लिए लाख की खेती आय का प्रमुख जरीया है.

मेघालय बढ़ रहा है खाद्य प्रसंस्करण की ओर

नई दिल्ली : 21 सितंबर2024. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान ने पिछले दिनों नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 में मेघालय पवेलियन का दौरा किया. उन के साथ मेघालय सरकार के कृषि और किसान कल्याण विभाग के संयुक्त सचिव गुनंका डीबी, आईएफएस भी थे.
अपनी यात्रा के दौरान चिराग पासवान ने खाद्य प्रसंस्करण और जैविक खेती में मेघालय सरकार द्वारा की गई पहल की प्रशंसा की. उन्होंने विशेष रूप से मेघालय कलेक्टिव्स की सराहना की, जो किसान उत्पादक संगठनों, ग्रामीण उद्यमिता और टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए एक अभिनव दृष्टिकोण है.

मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि केंद्र हमेशा आप की सभी पहलों में मदद करने के लिए मौजूद है. जिस तरह से मेघालय बढ़ रहा है, खासकर खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में, हम मेघालय सरकार को केंद्र की ओर से पूरे समर्थन का आश्वासन देते हैं.

मेघालय मंडप में 21 खाद्य प्रसंस्करण ब्रांडों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के साथ मेघालय कलेक्टिव्स शामिल हैं. इन ब्रांडों में प्रसिद्ध लाकाडोंग हलदी, खासी मंदारिन, केव अनानास, स्थानीय अदरक, काजू और कई अन्य स्वदेशी उपज से बने मूल्यवर्धित उत्पाद शामिल हैं. मेघालय कलेक्टिव्स एफपीओ, ग्रामीण उद्यमिता विकास, सतत कृषि प्रथाओं, बाजार संपर्कों के माध्यम से ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने के लिए मेघालय सरकार की एक पहल है. इस सामूहिक दृष्टिकोण का उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना, कृषि उत्पादकता में सुधार करना और मेघालय के अद्वितीय उत्पादों को बढ़ावा देना है.

वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 में एपीडा पवेलियन में भारत का प्रदर्शन

नई दिल्ली : वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा आयोजित वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 में ‘एपीडा पवेलियन’ की स्थापना की है.

वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 में एपीडा की भागीदारी का उद्देश्य भारत के कृषि निर्यात को बढ़ावा देना, नए बाजार खोलना और वैश्विक स्तर पर विविध एवं उच्च गुणवत्ता वाले कृषि खाद्य उत्पादों के अग्रणी उत्पादक और निर्यातक के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाना है.

इस पवेलियन का उद्घाटन वाणिज्य विभाग के अतिरिक्त सचिव राजेश अग्रवाल ने एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव, एपीडा के वरिष्ठ अधिकारियों, विभिन्न आयातकों व निर्यातकों और दूसरे  हितधारकों की उपस्थिति में किया.

19-22 सितंबर, 2024 तक चले एपीडा के कार्यक्रम में ताजा उपजों, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों यानी प्रोसैस्ड फूड आइटम, जैविक उत्पादों और मादक पेय पदार्थों सहित विविध खाद्य उत्पादों को पेश करने के भारत के प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है.

अभिषेक देव ने मध्यपूर्व के बाजारों और खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) से जुड़े देशों में बागबानी आधारित भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए लूलू ग्रुप इंटरनैशनल के अध्यक्ष यूसुफ अली एमए के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए और उस का आदानप्रदान किया.

इस रणनीतिक साझेदारी का उद्देश्य लूलू समूह के दुनियाभर में फैले हाइपर मार्केट और खुदरा दुकानों के व्यापक नैटवर्क के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में बागबानी आधारित भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देना है. यह वैश्विक स्तर पर बागबानी आधारित भारतीय निर्यात के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.

भारत मंडपम के प्रदर्शनी हाल (हाल नंबर 3) में एपीडा पवेलियन इस 3 दिवसीय समारोह में भारत के 25 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों के 155 प्रदर्शकों की मेजबानी की. प्रमुख प्रतिभागियों में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और कर्नाटक जैसे राज्य शामिल हैं. प्रदर्शित किए जाने वाले प्रमुख क्षेत्रों में ताजे फल एवं सब्जियां, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ एवं मूल्यवर्धित उत्पाद, बासमती चावल, पशु उत्पाद, काजू, भौगोलिक संकेतक (जीआई) उत्पाद, जैविक उत्पाद और मादक पेय पदार्थ शामिल हैं.

एपीडा ने लगभग 80 से अधिक देशों के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों को आमंत्रित किया है. बी2बी बैठकों के लिए रिवर्स क्रेताविक्रेता बैठक (आरबीएसएम) की सुविधा एक एप आधारित अपौइंटमैंट प्रणाली के माध्यम से प्रदान की गई है, जो भारतीय निर्यातकों को खरीदारों, आयातकों और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रतिनिधियों के साथ सीधे बातचीत करने के लिए एक मंच प्रदान करेगी. अकेले ही लगभग 1,000 बी2बी बैठकें आयोजित की गईं और आयातकों, एग्रीगेटर्स, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), किसान उत्पादक कंपनियों (एफसीपी), इनोवेटर्स और कृषि उद्यमियों के बीच अगले 3 दिनों के लिए 3,000 बैठकें निर्धारित हैं.

ताजा एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद, बासमती चावल, पोषक अनाज (मिलेट) आधारित उत्पाद, जैविक उत्पाद और जीआई टैग वाली वस्तुएं इस पवेलियन में प्रमुख रूप से प्रदर्शित की गईं. एचएमए एग्रो, मिलेट मैजिक फाउंडेशन, जैस्मर फूड्स, बेसिलिया और्गेनिक्स, हाउस औफ हिमालयाज, आल इंडिया कैश्यू एसोसिएशन, इंडियन इंस्टीट्यूट औफ पैकेजिंग, वट्टम एग्रो एंड डेयरी इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड, मैग्नम फूड्स एंड स्नैक्स प्राइवेट लिमिटेड, और कामधेनु एंटरप्राइजेज सहित जैसे ब्रांड अनूठे उत्पादों को प्रदर्शित की गईं.

एक विशेष गैलरी, जीआई उत्पाद गैलरी, जो भारत के प्रतिष्ठित जीआई टैग वाले उत्पादों को समर्पित है, एपीडा पवेलियन का हिस्सा है. जीआई टैग वाले उत्पाद वैश्विक बाजारों में अत्यधिक महत्व रखते हैं.

इस समारोह में आने वाले आगंतुकों ने खाना पकाने का लाइव प्रदर्शन भी देखा और प्रदर्शित उत्पादों से बने विभिन्न प्रकार के भारतीय व्यंजनों का स्वाद लिया. इंटरएक्टिव प्रोजैक्शन मैपिंग और एनामौर्फिक 3-डी एनिमेशन वीडियो वाल को देशभर में अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों और विक्रेताओं के सामने एपीडा के प्रमुख कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की पेशकश को रचनात्मक रूप से प्रदर्शित करने के लिए स्थापित किया गया है.

पवेलियन में विशिष्ट क्षेत्र से संबंधित जानकारी सत्र जैसे “भारत का जैविक मार्ग : खेत से वैश्विक मंचों तक: भारत की जैविक पेशकशों के लिए बाजार संबंधों को बढ़ाना” पर एक कार्यशाला और “बार को विकसित करना : वैश्विक बाजारों में भारतीय मादक पेय पदार्थों के लिए अवसरों की तलाश” पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया.

समेकित जल मांग प्रबंधन (Water Demand Management) पर कार्यशाला  

नई दिल्ली : पानी के घटते संसाधनों और बढ़ती आबादी व उस से जुड़ी खाद्य मांग के परिप्रेक्ष्य में जल संग्रहण, जल उपयोग दक्षता और जल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए गहन प्रयासों की आवश्यकता है. सिंचाई क्षेत्र को उद्योग और ऊर्जा क्षेत्रों से पानी की मांग के मामले में गंभीर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए समेकित जल मांग प्रबंधन (Water Demand Management) समय की जरूरत है. इस के लिए अनुसंधान संगठनों और गैरसरकारी संगठनों के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है, जो कृषि में पानी के कुशल उपयोग के लिए समुदाय को संगठित कर के जमीनी लैवल पर काम कर रहे हैं.

इस संदर्भ में जमीनी लैवल पर जल उपयोगकर्ता संघ अपने समुदाय व नेतृत्व वाले जल संरक्षण मौडलों के माध्यम से जल मांग प्रबंधन (Water Demand Management) का लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. वास्तव में बढ़ती पानी की मांग को पूरा करने के लिए पारंपरिक प्रथाओं और अनुकूलन कौशल की जानकारी जरूरी है.

जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और धान फाउंडेशन द्वारा किए गए कई हस्तक्षेपों ने प्रभाव का एक व्यापक दायरा देखा है, जिस में उच्च जल आवश्यकता वाली फसलों से कम जल आवश्यकता वाली फसलों की ओर बदलाव, उन्नत फसल पद्धतियां, जिस से पानी की मांग कम हो गई, खेत पर पानी बचत उपायों से मिट्टी में नमी का लैवल बेहतर हुआ आदि.

इसी पृष्ठभूमि में “सामुदायिक नेतृत्व वाले जल संरक्षण मौडलों के माध्यम से टैंक आधारित कृषि को बनाए रखना” विषय पर एक संयुक्त कार्यशाला का आयोजन 19 सितंबर, 2024 को जल प्रौद्योगिकी केंद्र के सभाभवन में भाकृअप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और धान फाउंडेशन, तमिलनाडु द्वारा किया गया. कार्यशाला के मुख्य उद्देश्य हैं :

– सामुदायिक नेतृत्व वाले जल संरक्षण मौडलों की सफलता की कहानियों को प्रदर्शित करना,

– उन तकनीकों का प्रचार करना, जिन में टैंक आधारित कृषि को बनाए रखा,

– टैंक आधारित कृषि को बढ़ाने के लिए साझेदारी का विस्तार करने के तरीके उत्पन्न करना

कार्यशाला के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार के कृषि आयुक्त डा. पीके सिंह ने भाग लिया. उन्होंने जल संरक्षण, जल प्रबंधन और टैंक आधारित कृषि को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों के महत्व पर प्रकाश डाला.

इस कार्यशाला में 4 तकनीकी सत्र हुए, जिन में टैंक सिंचाई आदेशों में जल उपयोगकर्ता संघों के अनुभव साझा किए गए, कुशल जल प्रबंधन के माध्यम से टैंक आधारित कृषि को बनाए रखने पर एक नीति तैयार की गई.

इस अवसर पर भाकृअप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डा. सी. विश्वनाथन, जल प्रौद्योगिकी केंद्र के परियोजना निदेशक डा. पीएस ब्रह्मानंद और धान अकादमी के निदेशक ए. गुरुनाथन, धान वायलगम टैंक फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी वी. वेंकटेशन, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि भौतिकी प्रभाग के प्रमुख डा. एन. सुभाष, आईसीएआर–एनआईएपी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एसके श्रीवास्तव ने कार्यशाला में भाग लिया.

कुलमिला कर इस कार्यशाला में भाकृअप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, आईसीएआर-एनआईएपी, धान फाउंडेशन, कृषि मंत्रालय, आईडब्ल्यूएमआई और नीति आयोग से 100 प्रतिनिधि, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और बिहार के 25 किसान और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के छात्र शामिल हुए.

बिहार के किसानों को मिली कई सौगातें

नई दिल्ली : 18 सितंबर 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिहार के किसानों के लिए अनेक सौगातें दीं. बिहार के कृषि मंत्री मंगल पांडे की केंद्रीय कृषि मंत्री के साथ कृषि भवन, नई दिल्ली में हुई उच्चस्तरीय बैठक में किसान हितैषी निर्णय लिए गए.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में बिहार के कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने और किसानों की सहूलियत के लिए बिहार स्थित कृषि भवन में एपीडा का औफिस खोलने के निर्णय पर एपीडा के सीएमडी द्वारा सहमति व्यक्त की गई.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बिहार में किसानों के उत्थान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हरसंभव उपाय किए जा रहे हैं. इस के तहत उन्होंने हाईब्रीड उन्नत बीजों के लिए कृषि मंत्रालय द्वारा सहयोग प्रदान करने के निर्देश भी दिए. साथ ही, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में अधिक आवंटन के लिए बिहार की मांग पर संबंधित अधिकारियों को तत्काल दिशानिर्देश दिए. इस योजना की बिहार के लिए दूसरी किस्त जारी कर दी गई.

बिहार का कृषि क्षेत्र में अच्छा परफौर्मेंस है. इस आधार पर कृषोन्नति योजना के लिए अधिक राशि के आवंटन के लिए उन्होंने बैठक में ही निर्देशित किया. इस के अलावा गेहूं के लिए अधिक आधार बीज उपलब्ध कराने के लिए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिए और कृषि यांत्रिकरण के लिए अधिक राशि उपलब्ध कराने का निर्णय भी लिया गया.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के बिहार स्थित क्षेत्रीय मक्का अनुसंधान व बीज उत्पादन केंद्र को आवश्यकतानुरूप अत्याधुनिक बनाया जाएगा, जिस के लिए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को मार्गदर्शन दिया. साथ ही, लीची के लिए प्रसिद्ध बिहार में लीची एवं शहद उत्पादक किसानों की सहायता के लिए भी उन्होंने दिशानिर्देश प्रदान किए. इस के साथ ही एनआरसी मखाना का सशक्तीकरण करने का निर्णय लिया गया. बिहार के किसानों को इन सब से काफी फायदा होगा. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में कृषि एवं किसान कल्याण के लिए केंद्र सरकार द्वारा अनेकानेक कदम उठाए जा रहे हैं, इसी कड़ी में बिहार के किसानों के लिए भी हरसंभव कदम उठाए गए हैं.

1 अक्तूबर, 2024 से एमएसपी पर मोटे अनाज की होगी खरीदी

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार श्रीअन्न के फायदों के प्रति एक तरफ जहां आम लोगों को प्रेरित कर रही है, वहीं किसानों को भी इस की खेती के फायदे से जोड़ रही है.  उत्तर प्रदेश में वर्ष 2024-25 के लिए मोटे अनाजों की खरीद 1 अक्तूबर, 2024 से शुरू होगी, जो 31 दिसंबर, 2024 तक चलेगी.

मोटे अनाज में शामिल बाजरा, ज्वार और मक्का की न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर खरीद के लिए किसानों का रजिस्ट्रेशन और रीन्युअल शुरू हो गया है. किसान अपनी किसी भी समस्या के लिए पहले जारी टोल फ्री नंबर 18001800150 से मदद ले सकते हैं. इस के अलावा वे जिला खाद्य विपणन अधिकारी, क्षेत्रीय विपणन अधिकारी, विपणन निऱीक्षक से भी संपर्क कर सकते हैं.

किसानों का जिस बैंक खाते में भुगतान होगा, उस का आधार से जुड़ा होना जरूरी है. भुगतान सीधे किसानों के बैंक खाते में किया जाएगा. वहीं, बिचौलियों को रोकने के लिए खरीद केंद्र पर मोटे अनाज की खरीद ई-पाप (इलैक्ट्रोनिक पौइंट औफ परचेज) डिवाइस के माध्यम से किसानों के बायोमीट्रिक वैरिफिशन के जरीए होगी.

किसानों को विभागीय वैबसाइट http://fcs.up.gov.in या ‘यूपी किसान मित्र’ एप पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है. खरीद रजिस्टर्ड किसानों से ही की जाएगी.

बदायूं,  बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, कासगंज, फिरोजाबाद, मैनपुरी, हरदोई, उन्नाव, कानपुर नगर व देहात, कन्नौज, इटावा, बहराइच, बलिया, फर्रुखाबाद, मीरजापुर, सोनभद्र व ललितपुर में मक्का की खरीद की जाएगी, वहीं बाजरा की खरीद में बदायूं, बुलंदशहर, बरेली, शाहजहांपुर, रामपुर, संभल, अमरोहा, अलीगढ़, कासगंज, एटा, हाथरस, आगरा, मथुरा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, हरदोई, उन्नाव, कानपुर नगर-देहात, इटावा, औरैया, कन्नौज, फर्रुखाबाद, गाजीपुर, बलिया, मीरजापुर, जालौन, चित्रकूट, प्रयागराज, कौशांबी, जौनपुर, फतेहपुर जिले शामिल है. इस के अलावा बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, कानपुर नगर-देहात, फतेहपुर, उन्नाव, हरदोई, मीरजापुर व जालौन में ज्वार की खरीद होगी.

कपास की खेती (Cotton Cultivation) और फसल चक्र में बदलाव

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय में ‘कपास की खेती में गुलाबी सुंडी और बरसात के प्रभाव’ विषय पर एकदिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा व हकृवि के कपास अनुभाग द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्यातिथि के तौर पर उपस्थित रहे.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने किसानों की समस्याओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए हकृवि के वैज्ञानिकों एवं कृषि और किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों को आपसी तालमेल के साथ काम करने का आह्वान किया.

गुलाबी सुंडी के प्रबंधन के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी के बारे में उन्होंने किसानों को जागरूक करने के लिए गांवों में प्रदर्शन प्लांट लगाने के साथ फसल चक्र में भी बदलाव करने का सुझाव दिया.

उन्होंने आगे कहा कि जहां भी भूमि में पोषक तत्वों की कमी है, वहां पर किसान कपास के साथ दलहनी फसलें उगा सकते हैं. उन्होंने किसानों की समस्याओं का समाधान उन के खेत में जा कर करने पर भी जोर दिया.

साथ ही, कपास की फसल के लिए आने वाले 20 दिन बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. इसलिए कृषि वैज्ञानिक एवं अधिकारी खेतों में जा कर लगातार फीडबैक लेने के साथसाथ एडवाइजरी, मौसम पर नजर व प्रचारप्रसार के माध्यम से किसानों को जागरूक करें.

उन्होंने देशी कपास का बीज तैयार करने के लिए कृषि अनुभाग के अधिकारियों को जरूरी दिशानिर्देश दिए. उन्होंने कहा कि प्रिंट व इलैक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से किसानों को प्रत्येक फसल से संबंधित जानकारी सुनिश्चित की जाए. उन्होंने कार्यशाला में अधिकारियों एवं किसानों के साथसाथ पेस्टीसाइड विक्रेताओं को भी प्रशिक्षण देने का आह्वान किया.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक डा. आरपी सिहाग ने कहा कि कपास फसल की समस्याओं के समाधान एवं उत्पादन में बढ़ोतरी को ले कर गत 3-4 साल के दौरान हकृवि एवं विभाग के अधिकारियों ने आपसी तालमेल के साथ संगठित हो कर काम किया है. गुलाबी सुंडी एवं उखेड़ा की समस्याओं से निबटने के लिए गांव में प्रदर्शन प्लांट आयोजित कर के किसानों को जागरूक किया गया है.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने कहा कि कपास फसल के लिए 15 दिन की एडवाइरी के स्थान पर इसे 7 दिन कर दिया गया है. साथ ही, विश्वविद्यालय द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की जानकारी किसानों को शीघ्र उपलब्ध करवाई जा रही है.

कुलसचिव डा. पवन कुमार ने कहा कि कपास एक आमदनी वाली फसल है. गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष गुलाबी सुंडी के प्रकोप में कमी आई है. वहीं कपास अनुभाग के अध्यक्ष डा. करमल सिंह ने कहा कि किसानों को उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध करवाने के साथसाथ विभिन्न प्रकार की बीमारियों के बारे में कृषि विभाग के अधिकारियों को जागरूक किया जाएगा, ताकि किसानों को भी जागरूक किया जा सके.

मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. रमेश यादव ने कार्यशाला में धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया. इस एकदिवसीय कार्यशाला में हकृवि एवं कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के प्रदेशभर के अधिकारियों ने भाग लिया.

राष्ट्रीय मत्स्य विकास कार्यक्रम पोर्टल का शुभारंभ

नई दिल्ली: केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी और पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की चौथी वर्षगांठ पर मत्स्यपालन के क्षेत्र में बदलाव लाने और भारत की नीली अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के उद्देश्य से कई पहलों और परियोजनाओं का शुभारंभ किया.

इस अवसर पर केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन भी उपस्थित थे. मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी, संयुक्त सचिव (आईएफ) सागर मेहरा और विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मत्स्यपालन विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों और फ्रांस, रूस, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, नार्वे और चिली के दूतावासों के प्रतिनिधिमंडल ने इस कार्यक्रम में भाग लिया.

मत्स्यपालन विभाग (भारत सरकार), राष्ट्रीय मत्स्यपालन विकास बोर्ड, आईसीएआर संस्थानों और संबद्ध विभागों और मंत्रालयों के अधिकारियों, पीएमएमएसवाई लाभार्थियों, मछुआरों, मछली किसानों, एफएफपीओ, उद्यमियों, स्टार्टअप, कौमन सर्विस सैंटर (सीएससी) और देशभर के अन्य प्रमुख हितधारकों ने हाइब्रिड मोड में इस कार्यक्रम में भाग लिया.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने इस अवसर पर एनएफडीपी (राष्ट्रीय मत्स्य विकास कार्यक्रम) पोर्टल लौंच किया, जो मत्स्यपालन के हितधारकों की रजिस्ट्री, सूचना, सेवाओं और मत्स्यपालन से संबंधित सहायता के लिए एक केंद्र के रूप में काम करेगा.

उन्होंने पीएम-एमकेएसएसवाई परिचालन दिशानिर्देश भी जारी किए. एनएफडीपी को प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सहयोजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) के तहत बनाया गया है, जो प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत एक उपयोजना है. इस योजना से देशभर में मत्स्यपालन में लगे मछली श्रमिकों और उद्यमों की एक रजिस्ट्री बना कर विभिन्न हितधारकों को डिजिटल पहचान मिलेगी. एनएफडीपी के माध्यम से संस्थागत ऋण, प्रदर्शन अनुदान, जलीय कृषि बीमा आदि जैसे विभिन्न लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं.

मंत्री राजीव रंजन सिंह ने एनएफडीपी पर पंजीकृत लाभार्थियों को पंजीकरण प्रमाणपत्र वितरित किए, जिन में अंकुश प्रकाश थली, रायगढ़, महाराष्ट्र, घनश्याम और प्रसन्न कुमार जेना, पुरी, ओडिशा, प्रदीप कुमार, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश, सुखपाल सिंह, फाजिल्का, पंजाब, रंजन कुमार मोहंती, बालासोर, ओडिशा, आनंद मैथ्यू, पूर्वी खासी हिल्स, मेघालय, रजनीश कुमार, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश, कोक्किलिगड्डा गुंटूर, आंध्र प्रदेश, मीरा देवी, मुंगेर, बिहार, राजेश मंडल, बांका, बिहार, ग्याति रिन्यो, लोअर सुबनसिरी, अरुणाचल प्रदेश, बयाना सतीश, पश्चिम गोदावरी, आंध्र प्रदेश, हरेंद्र नाथ रबा, तामुलपुर, असम और अभिलाष केसी, अलाप्पुझा, केरल शामिल थे.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन क्लस्टर विकास कार्यक्रम के तहत उत्पादन और प्रसंस्करण क्लस्टरों पर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) भी जारी की. उन्होंने मोती की खेती, सजावटी मत्स्यपालन और समुद्री शैवाल की खेती के लिए समर्पित 3 विशेष मत्स्य उत्पादन और प्रसंस्करण क्लस्टरों की स्थापना की घोषणा की. इन क्लस्टरों का उद्देश्य इन विशिष्ट क्षेत्रों में सामूहिकता, सहयोग और नवाचार को बढ़ावा देना है, जिस से उत्पादन और बाजार पहुंच दोनों में वृद्धि होगी.

उन्होंने तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 100 तटीय गांवों को जलवायु अनुकूल तटीय मछुआरा गांवों (सीआरसीएफवी) में विकसित करने के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए. इस के लिए 200 करोड़ रुपए किए गए हैं. यह पहल बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के बीच मछली पकड़ने वाले समुदायों के लिए खाद्य सुरक्षा और सामाजिकआर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के साथसाथ बुनियादी ढांचे में सुधार और जलवायु स्मार्ट आजीविका पर ध्यान केंद्रित करेगी.

केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) द्वारा मछली परिवहन के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी के उपयोग पर एक पायलट परियोजना का भी अनावरण किया गया. यह मत्स्यपालन में प्रौद्योगिकी को शामिल करने की दिशा में एक कदम है. इस अध्ययन का उद्देश्य अंतर्देशीय मत्स्यपालन की निगरानी और प्रबंधन में ड्रोन की क्षमता का पता लगाना, दक्षता और स्थिरता में सुधार करना है.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने समुद्री शैवाल की खेती और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीएमएफआरआई) के मंडपम क्षेत्रीय केंद्र की स्थापना के लिए अधिसूचनाओं का अनावरण किया. उत्कृष्टता केंद्र समुद्री शैवाल की खेती में नवाचार और विकास के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र के रूप में काम करेगा, जो खेती की तकनीकों को परिष्कृत करने, बीज बैंक की स्थापना और नई प्रणालियों को सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा.

इस के अलावा माली रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियों के आनुवंशिक संवर्द्धन के माध्यम से बीज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए समुद्री और अंतर्देशीय दोनों प्रजातियों के लिए न्यूक्लियस ब्रीडिंग सैंटर की स्थापना का भी अनावरण किया गया.

मत्स्य विभाग, भारत सरकार ने ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित आईसीएआर-केंद्रीय मीठा जल जलीय कृषि संस्थान (आईसीएआर-सीआईएफए) को मीठे पानी की प्रजातियों के लिए एनबीसी की स्थापना के लिए नोडल संस्थान और तमिलनाडु के मंडपम में स्थित आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीएमएफआरआई) के क्षेत्रीय केंद्र को समुद्री मछली प्रजातियों पर केंद्रित एनबीसी के लिए नोडल संस्थान के रूप में नामित किया है. लगभग 100 मत्स्यपालन स्टार्टअप, सहकारी समितियों, एफपीओ और एसएचजी को बढ़ावा देने के लिए 3 इनक्यूबेशन केंद्रों की स्थापना को भी अधिसूचित किया गया.

यह केंद्र हैदराबाद में राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज), मुंबई में आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान (सीआईएफई) और कोच्चि में आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईएफटी) जैसे प्रमुख संस्थानों में स्थापित किए जाएंगे.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने ‘स्वदेशी प्रजातियों को बढ़ावा देने’ और ‘राज्य मछली के संरक्षण’ पर पुस्तिका का विमोचन किया. 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में से 22 ने या तो राज्य मछली को अपनाया है या घोषित किया है, वहीं 3 राज्यों ने राज्य जलीय पशु घोषित किया है और केंद्र शासित प्रदेशों लक्षद्वीप और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह ने अपने राज्य पशु घोषित किए हैं, जो समुद्री प्रजातियां हैं.

721.63 करोड़ रुपए के परिव्यय वाली प्राथमिकता परियोजनाओं की घोषणा की गई, जिस में समग्र जलीय कृषि विकास का समर्थन करने के लिए असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, त्रिपुरा और नागालैंड राज्यों में 5 एकीकृत एक्वा पार्कों का विकास, बाजार पहुंच बढ़ाने के लिए अरुणाचल प्रदेश और असम राज्यों में 2 विश्व स्तरीय मछली बाजारों की स्थापना, कटाई के बाद प्रबंधन में सुधार के लिए गुजरात, पुडुचेरी और दमन और दीव राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 3 स्मार्ट और एकीकृत मछली पकड़ने के बंदरगाहों का विकास, और जलीय कृषि और एकीकृत मछलीपालन को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, पंजाब राज्यों में 800 हेक्टेयर खारे क्षेत्र और एकीकृत मछलीपालन शामिल हैं.

उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने पीएमएमएसवाई योजना के परिवर्तनकारी प्रभाव पर जोर दिया, जो भारत के मत्स्यपालन क्षेत्र में अब तक का सब से बड़ा निवेश है. उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अब तक मत्स्यपालन के क्षेत्र में प्राप्त परिणाम पहले के बुनियादी ढांचे के विकास का परिणाम हैं, इसलिए हमें विकसित भारत @2047 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ना होगा.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने जोर दे कर कहा कि सरकार 3 करोड़ मत्स्य हितधारकों के विकास और कल्याण की दिशा में काम कर रही है. उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सामाजिकआर्थिक कल्याण के लिए समूह दुर्घटना बीमा योजना (जीएआईएस), और पोत संचार और सहायता प्रणाली के लिए मछली पकड़ने वाले जहाजों पर ट्रांसपोंडर, क्षेत्र के औपचारिकीकरण और क्षेत्र में समान विकास के लिए एनएफडीपी, निर्यात के लिए मूल्यवर्धन को बढ़ावा देने जैसी विभिन्न पहल विभाग द्वारा की गई हैं.

मंत्री राजीव रंजन सिंह ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मत्स्य विभागों को आगे आ कर आवंटित पैसों का उपयोग करने, एनएफडीपी पर मछली श्रमिकों के पंजीकरण आदि के लिए ठोस प्रयास करने की आवश्यकता भी व्यक्त की.
वहीं जौर्ज कुरियन ने क्षेत्रीय अंतराल को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत उपलब्धियों की सराहना की और बुनियादी ढांचे व प्रजाति विविधीकरण परियोजनाओं सहित प्रमुख पहलों को रेखांकित किया. उन्होंने इन उपलब्धियों को आगे बढ़ाने के लिए किए गए प्रयासों की सराहना की और इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि की.

डा. अभिलक्ष लिखी ने भारत के मत्स्यपालन क्षेत्र में बदलाव लाने में पिछले 4 सालों में हुई उल्लेखनीय प्रगति पर प्रकाश डाला. उन्होंने स्मार्ट और एकीकृत मछली पकड़ने के बंदरगाहों, ड्रोन प्रौद्योगिकियों के उपयोग, एनएफडीपी, स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के विस्तार आदि जैसी नई पहलों पर जोर दिया, जो हमें मत्स्यपालन के क्षेत्र को और आगे बढ़ाने में मदद करेंगी.

सागर मेहरा ने सभा का स्वागत किया और कार्यक्रम के लिए संदर्भ निर्धारित करते हुए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) से भारत के मत्स्यपालन क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास और स्थिरता आई है. मई, 2020 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य मछली उत्पादन, इस के बाद के बुनियादी ढांचे, पता लगाने की क्षमता और सभी मछुआरों के कल्याण में कमियों को दूर करना है.

पीएमएमएसवाई योजना मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र में 20,050 करोड़ रुपए का अब तक का सब से बड़ा निवेश है. पिछले कुछ वर्षों में, पीएमएमएसवाई मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र के समग्र और समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए विकसित और विस्तारित हुई है.

30 अगस्त, 2024 को पालघर (महाराष्ट्र) में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई पोत संचार और सहायता प्रणाली मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मत्स्यपालन क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम है. मछली पकड़ने वाले जहाजों पर 364 करोड़ रुपए की लागत से एक लाख ट्रांसपोंडर निःशुल्क लगाए जाएंगे, ताकि वे दोतरफा संचार कर सकें, संभावित मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकें, जिस से प्रयासों और संसाधनों की बचत हो सके और किसी भी आपात स्थिति में और चक्रवात के दौरान मछुआरों को सचेत किया जा सके. यह तकनीक मछुआरों को समुद्र में रहते हुए उन के परिवारों और मत्स्य विभाग के अधिकारियों और सुरक्षा एजेंसियों के साथ रखेगी.

इस कार्यक्रम में मत्स्यपालन क्षेत्र को मजबूत करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया गया और इस के परिणामस्वरूप आजीविका के अवसरों में वृद्धि हुई और “विकसित भारत 2047” के दृष्टिकोण के अनुरूप सतत विकास हुआ.