टोल फ्री नंबर 1962 पर घर बैठे पशुओं का इलाज

कटनी : जिले में चलित पशु चिकित्सा इकाई के तहत संचालित 7 एंबुलेंस वाहनों के माध्यम से अब तक 8,000 पशुओं का घर पहुंच कर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई गई है. घर पहुंच कर चिकित्सा सुविधा के संचालन के लिए काल सैंटर के टोल फ्री नंबर 1962 पर डायल कर किसान और पशुपालक पशुओं के लिए घर पर ही चिकित्सा सुविधा का लाभ ले सकते हैं.

उपसंचालक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग के डा. आरके सिंह ने बताया कि जिले में संचालित 7 एंबुलेंस वाहन में प्रत्येक में एक डाक्टर, एक पैरावेट और एक ड्राइवर कम अटेंडेंट की तैनाती की गई है. एंबुलेंस वाहन में पशुओं के उपचार से संबंधित सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं.

घरबैठे चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने के लिए पशुपालकों से मात्र 150 रुपए लिया जाता है और सभी उपचार एवं दवाएं निःशुल्क हैं. पशुपालकों से पशुओं के उपचार के बाद अब तक 12 लाख रुपए का शुल्क भी प्राप्त हुआ है.

पशुपालकों के लिए वरदान बनी पशु चिकित्सा एंबुलेंस योजना केंद्र और राज्य सरकार की सहभागिता से संचालित हुई है. प्रदेश में टी एंड एम प्राइवेट लिमिटेड आउटसोर्स एजेंसी द्वारा पशु चिकित्सा एंबुलेंस का संचालन किया जा रहा है. चिकित्सा एंबुलेंस योजना कटनी जिले के सभी 6 विकासखंडों और कटनी शहर मे संचालित है.

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सहकारी समितियों का पंजीयन केवल औनलाइन

भोपाल : जिले में सहकारी समितियों का पंजीयन अब केवल औनलाइन प्रक्रिया द्वारा किया जाएगा. औनलाइन प्रक्रिया से समितियों का पंजीयन करवाने के लिए संबंधित व्यक्तियों को कार्यालय आने की आवश्यकता नहीं है.

उपायुक्त, सहकारिता ने बताया कि समितियों के पंजीयन के लिए विभागीय औनलाइन पोर्टल http:icmis.mp.gov.in पर जा कर 21 व्यक्ति मिल कर सहकारी समिति का गठन कर सकते हैं. पोर्टल पर नवीन संस्था का आवेदन करने के लिए आवेदक उल्लेखित लिंक पर जा कर स्वयं एमपी औनलाइन नागरिक सुविधा केंद्र के माध्यम से आवेदन कर सकता है. आवेदक को पोर्टल पर अपना लौग इन क्रिएट करना होगा. लौग इन क्रिएट करने के लिए आधार से लिंक मोबाइल नंबर प्रविष्टि कर ओटीपी सत्यापन होगा.

प्रस्तावित संस्था की जानकारी एवं प्रथम आवेदन की जानकारी भर कर पासवर्ड बनाना होगा. तत्पश्चात आवेदक का लौग इन निर्मित हो जाएगा. अंश पूंजी का मूल्य दर्ज कर के प्रस्तावित सदस्यों के फोटो एवं हस्ताक्षर अपलोड कर तदर्थ कमेटी नामांकित कर दस्तावेज अपलोड कर अंशों का मूल्य एवं सदस्यता प्रवेश शुल्क का औनलाइन भुगतान करेगा. आधार नंबर से वर्चुएल आईडी जनरेट होगा और आवेदक का ई-साइन कर आवेदन औनलाइन जमा करना होगा.

विभाग द्वारा आवेदन प्राप्त होने पर अधिकतम 45 दिवस के भीतर आवेदन पर कार्यवाही की जाएगी. कुछ कमियां होने पर पोर्टल पर दर्ज किया जाएगा, जिस की सूचना एसएमएस से दी जाएगी. पंजीयन पोर्टल पर आवेदन मान्य होने पर पोर्टल से ही पंजीयन प्रमाणपत्र जनरेट होगा, जिस में डिजिटल हस्ताक्षर रहेंगे.

वर्षा ऋतु में पशुओं की देखभाल जरूरी

भोपाल : बदलते मौसम में जहां मानव जीवन के स्वास्थ्य सुरक्षा पर फोकस जरूरी है, वहीं पशुधन की भी वर्षा ऋतु में देखभाल बहुत आवश्यक है. पशुपालन विभाग की ओर से विशेष जागरूकता अभियान चला कर पशुपालकों को उन के पशुओं की देखभाल करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इस मौसम में वातावरण में आई नमी में बढ़ोतरी की वजह से पशुओं पर नकारात्मक असर पड़ता है, जिस से पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जीवाणु, विषाणु फफूंदजनित एवं पशु परजीवियों जैसे जूं, मक्खी व मच्छरों से होने वाली सभी प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग के उपसंचालक ने बताया कि विभाग पशुपालकों को पशुओं की देखभाल के लिए जागरूक कर रहा है. बरसात के मौसम में पशुपालकों को पशुओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए. पशुओं को सूखे स्थान पर रखें, जहां हवा व धूप की मात्रा पर्याप्त में हो. साफसफाई का भी विशेष ध्यान रखें.

उन्होंने आगे कहा कि पशुओं को यदि पक्के फर्श पर रखा जाता है, तो उस स्थान पर सप्ताह में कम से कम 2 बार कीटाणुनाशक दवा से सफाई करें. परजीवियों से बचाव के लिए पशुपालक पशुबाड़े में मच्छरदानी का प्रयोग करें और समयसमय पर नजदीकी पशु चिकित्सक से परामर्श कर के परजीवियों से बचाव के लिए दवाएं व जानकारी प्राप्त करें.

साथ ही, पशुओं के खुरों को समयसमय पर साफ करते रहें, क्योंकि इस मौसम में फफूंद को बढ़ावा मिलता है. पशुओं को समय पर पेट के कीड़ों की दवा दें व नियमित टीकाकरण कराएं.

उन्होंने सलाह दी है कि अगर किसी भी बीमारी का लक्षण पशुओं में दिखाई दे, तो तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क करें और पशु चिकित्सक की सलाह से उचित उपचार करवाएं.

फसलों को कीट व रोग से बचाने के लिए कृषि विभाग की सलाह

खरगोन : जिले में कृषि विभाग के क्षेत्रीय अमले द्वारा लगातार किसानों के खेतों का निरीक्षण एवं भ्रमण किया जा रहा है. वर्तमान में आमतौर पर फसलों की स्थिति अच्छी है.
उपसंचालक, कृषि, मेहताब सिंह सोलंकी ने किसानों को सलाह दी है कि यदि कपास के पौधे मुरझाते हुए घेरे में दिखाई देते हैं, तो उस में कार्बेन्डाजिम 01 ग्राम या कौपर औक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लिटर पानी के हिसाब से पौधों की जडों में ट्रेंचिंग (टोहा) करें. कहींकहीं कपास फसल के पौधों के पत्तों में सिकुड़न पाई गई है, जिस में रस चूसक कीट जैसे थ्रिप्स, हरा मच्छर का प्रकोप देखा गया है. इन के नियंत्रण के लिए फ्लोनिकामाइड 50 डब्ल्यूपी 6 ग्राम/पंप या फिप्रोनिल 20 एमएल प्रति पंप छिड़काव करने की सलाह दी है. अधिक प्रकोप होने पर फिप्रोनिल प्लस इमिडाक्लोप्रिड के मिश्रण का भी छिड़काव करने की सलाह दी है.

कपास में गुलाबी इल्ली के प्रबंधन के लिए कपास में पूरी अवस्था में प्रति एकड़ खेत में 4 फैरोमौन ट्रैप लगाएं, इन में प्रतिदिन एकत्रित होने वाली वयस्क पंखियों का रिकौर्ड रखें, जैसे ही खेत में प्रति ट्रैप 8 या अधिक पंखी आने लगें, तब खेत में बिना किसी भेदभाव के 10 हरे घेंटों का चयन करें. इन हरे घेंटों में इल्लियों की उपस्थिति को देखें, यदि औसत से 1 या अधिक घेंटों में कीट का प्रकोप है, तब कीटनाशकों का उपयोग प्रारंभ करें.

प्रारंभ में प्रोफेनोफास या थायोडीकार्ब जैसे कम विषैले कीटनाशकों में से किसी एक का चयन कर उपयोग करें. फसल में कीट का अधिक प्रकोप होने की स्थिति में लैम्ब्डासाइहलोथ्रिन या इमामेक्टिन बेंजोएट या इंडोक्साकार्ब जैसे अधिक विषैले कीटनाशकों का उपयोग कर सकते हैं.

सहायक संचालक, कृषि, प्रकाश ठाकुर ने बताया कि मक्का फसल में फाल आर्मी वर्म कीट का प्रकोप दिखाई देने पर उस के बचाव के लिए फ्लूबेंडामाइट 20 डब्ल्यू डीजी 250 ग्राम प्रति हेक्टयर या स्पाइनोसेड 15 ईसी, 200 से 250 ग्राम प्रति हेक्टयर के मान से 200 से 250 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर या इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी का 200 ग्राम प्रति हेक्टरयर में कीट प्रकोप की स्थिति के अनुसार 15 से 20 दिन के अंतराल पर 2 से 3 छिड़काव करें अथवा कार्बोफ्यूरान 3 जी 2 से 3 किलोग्राम प्रति हेक्टयर का उपयोग करें. दानेदार कीटनाशकों का उपयोग पौधे की पोंगली में (5 से 10 दाने प्रति पोंगली) करने की सलाह दी है.

अरबी फसल को झुलसा रोग से कैसे बचाएं

टीकमगढ़ : कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़ के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. बीएस किरार, वैज्ञानिक डा. एसके सिंह, डा. यूएस धाकड़ एवं जयपाल छिगारहा द्वारा अरबी फसल का अवलोकन किया गया. अवलोकन के दौरान अरबी की पत्तियों पर झुलसा (फाइटोफ्थोरा ब्लाइट) रोग के लक्षण देखे गए.

वैज्ञानिकों ने अरबी की पत्तियों पर झुलसा रोग के लक्षणों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि फसल में झुलसा रोग के कारण अरबी की पत्तियों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं और पत्तियाँ गल कर नीचे गिर जाती हैं, जिस से फसल की बढ़वार और उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. लगातार बरसात होने के कारण वातावरण में आर्द्रता और तापक्रम बढ़ जाता है, जिस से इस बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है और उत्पादन भी प्रभावित होता है.

वैज्ञानिकों ने बताया कि इस रोग के प्रबंधन के लिए फसल में उचित जल निकासी की व्यवस्था करें और रोग के लक्षण देखने पर मैंकोजेब दवा 2.5 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें और उस के 20 से 25 दिन बाद मेटालैक्सिल 8 फीसदी मैंकोजेब 64 फीसदी डब्ल्यूपी दवा 2 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. दवा का छिड़काव करने के 3-4 घंटों तक बरसात नहीं होनी चाहिए, जिस से दवा का अच्छा असर हो सके. फसल में ज्यादा घासफूस रहने से कीड़े व बीमारियां फैलने की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए फसल की निंदाई कर फसल को साफसुथरी रखना चाहिए.

कस्‍टम हायरिंग सैंटर बनेंगे आधुनिक कृषि यंत्रों के केंद्र

नीमच : जिले के निजी एवं शासकीय सभी कस्‍टम हायरिंग सैंटरों (सीएचसी) को आधुनिक कृषि यंत्रों, उपकरणों का केंद्र बनाए. नई एआई कृषि तकनीक, ड्रोन तकनीक एवं कृषि संसाधन उपलब्‍ध कराए, जिस से कि किसान आधुनिक संसाधनों का उपयोग कर खेती को लाभ का धंधा बना सके.

यह निर्देश कलक्‍टर हिमांशु चंद्रा ने पिछले दिनों कलक्ट्रेट सभा कक्ष नीमच में कृषि उद्यानिकी, पशुपालन, मत्‍स्‍य विभाग द्वारा संचालित योजनाओं और नीमच मंडी द्वारा संचालित गतिविधियों की समीक्षा करते हुए दिए.

बैठक में जिला पंचायत सीईओ गुरूप्रसाद, उपसंचालक, कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्‍स्‍य एवं मंडी सचिव नीमच उपस्थित थे. बैठक में कृषि विभाग की समीक्षा के दौरान कलक्‍टर हिमांशु चंद्रा ने र‍बी एवं खरीफ में कृषि आच्‍छादन रकबा, प्रमुख फसल रकबा, उर्वरक की मांग उपलब्‍धता एवं रबी के लिए उर्वरक का अग्रिम उठाव की जानकारी ली.

उन्‍होंने निर्देश दिए कि रबी के लिए आगामी 15 दिवस में उर्वरक के अग्रिम उठाव का लक्ष्‍य पूरा करवाए. जिले में पर्याप्‍त मात्रा में उर्वरक की उपलब्‍धता एवं किसानों को वितरण सुनिश्चित किया जाए.
बैठक में कलक्‍टर हिमांशु चंद्रा ने फसल बीमा योजना की भी विस्‍तार से समीक्षा की. उन्होंने निर्देश दिए कि कृषि विभाग द्वारा संचालित सभी योजनाओं ने अधिकाधिक किसानों से औनलाइन आवेदन मैदानी अमले के माध्‍यम से करवाए. साथ ही, मिट्टी परीक्षण के लिए भी लक्ष्‍य के अनुरूप नमूने ले कर परीक्षण करवाए और स्वाइल हेल्थ कार्ड किसानों को प्रदान करे.

उद्यानिकी विभाग की समीक्षा में कलक्‍टर ने निर्देश दिए कि उद्यानिकी एवं औषधीय फसलों का रकबा बढ़ाने पर विशेष ध्‍यान दे. किसानों को प्रेरित कर रकबा बढ़ाए. पीएमएफएमई योजना की लक्ष्‍य पूर्ति के लिए बैंकों से संपर्क कर प्रकरण स्‍वीकृत करवाए. पशुपालन विभाग की समीक्षा में कलक्‍टर ने जिले में स्‍वीकृत पद, रिक्‍त पदों की संख्‍या, औषधालयों की संख्‍या, गौशालाओं की संख्‍या, गौशालाओं में पशुओं की क्षमता, पशुपालकों के केसीसी, पशु टीकाकरण एवं उपचार कार्य की विस्‍तार से जानकारी ली.

कलक्‍टर हिमांशु चंद्रा ने नीमच मंडी की समीक्षा में मंडी में विक्रय के लिए आने वाली जिंसों, आवक, मंडी शुल्‍क से प्राप्‍त राजस्‍व नवीन मंडी में हुए विकास कार्य एवं प्रस्‍तावित कार्यों के बारे में विस्‍तार से जानकारी ली.

दलहनी फसलों में कीटों की करें रोकथाम

टीकमगढ़ : उड़द, मूंग और सोयाबीन की फसल में पत्ती भक्षक कीट व सफेद मक्खी का प्रकोप देखा जा रहा है, इसलिए समय रहते उन की रोकथाम जरूरी है. इस के नियंत्रण के लिए क्विनालफास 25 ईसी दवा की 2 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर मौसम साफ रहने पर ही छिड़काव करें.

उड़द, मूंग और सोयाबीन की फसल में पीला पत्ता रोग का प्रकोप देखा जा रहा है. किसान फसलोँ की निगरानी करें और खेत में ग्रसित पौधे पाए जाने पर रोकथाम के लिए ग्रसित पौधे को उखाड़ कर जमीन में दबा दें एवं 0.5 मिलीलिटर इमिडाक्लोप्रिड या थियामेथोक्सम 2.0 मिलीलिटर दवा की मात्रा को प्रति लिटर पानी में घोल बना कर मौसम साफ रहने पर छिड़काव करें.

सोयाबीन की फसल में गर्डल वीटिल का प्रकोप देखा जा रहा है, इस के नियंत्रण के लिए फ्लूबेंडामाइड 39.5 एससी, 400 मिलीलिटर दवा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से घोल कर बना कर मौसम साफ रहने पर ही छिड़काव करें.

भिंडी में पीली पत्ती रोग का प्रकोप देखा जा रहा है. किसान फसल का निरीक्षण करते रहें और इस से बचाव के लिए आसमान साफ रहने पर मिथाइल डेमेटान 25 ईसी दवा की 2 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

आसमान में बादल छाए रहने के कारण धूप की अवधि में कमी को देखते हुए किसान मुरगीघरों में रात के समय 4-5 घंटे रोशनी की व्यवस्था करें और वातावरण में हो रही नमी की वृद्धि से मुरगीघरों में नमी की वृद्धि को रोकने के लिए चूने और लकड़ी के बुरादे का फर्श पर बुरकाव करें. पशुशाला को बाह्य परजीवी जैसे मक्खी व मच्छरों से बचाने के लिए साफसफाई का ध्यान रखें. साथ ही, मैलाथियान का स्प्रे करें.

गुग्गुल की खेती किसानों के लिए अनमोल

मुरैना : औषधीय पेड़ ’गुग्गल’ से प्राप्त राल जैसे पदार्थ को ’गुग्गुल’ गोंद कहा जाता है. भारत में इस जाति के 2 प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं. एक को कौमिफोरा मुकुल और दूसरे को कौमीफोरा बाईटी कहते हैं. मध्य प्रदेश में कौमीफोरा बाईटी प्रजाति की गुग्गुल है.

गुग्गल एक छोटा पेड़ है, जिस के पत्ते छोटे और एकांतर सरल होते हैं. यह सिर्फ वर्षा ऋतु में ही वृद्धि करता है और इसी समय इस पर पत्ते दिखाई देते हैं. शेष समय यानी सर्दी व  गरमी में इस की वृद्धि रुक जाती है और बिना पत्तों के हो जाता है.

आमतौर पर गुग्गुल का पेड़ 3-4 मीटर ऊंचा होता है. इस के तने से सफेद रंग का दूध निकलता है, जो इस का काफी उपयोगी भाग है. प्राकृतिक रूप से गुग्गुल भारत के मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और गुजरात राज्यों में उगता है. भारत में गुग्गुल विलुप्तावस्था के कगार पर आ गया है. बड़े क्षेत्रों में इस की खेती करने की जरूरत है.

भारत में गुग्गुल की मांग अधिक और उत्पादन कम होने के कारण अफगानिस्तान व पाकिस्तान से इस का आयात किया जाता है. गुग्गुल गोंद का उपयोग 60 बीमारियों में काम आता है और गुग्गुल के पेड़ से निकलने वाला गोंद ही गुग्गुल नाम से प्रसिद्ध है. इस गुग्गुल से ही महायोगराज गुग्गुलु, कैशोर गुग्गुलु, चंद्रप्रभा वटी आदि योग बनाए जाते हैं. इस के अलावा त्रिफला गुग्गुल, गोक्षरादि गुग्गुल, सिंहनाद गुग्गुल और चंद्रप्रभा गुग्गुल आदि योगों में भी यह प्रमुख द्रव्य प्रयुक्त होता है.

ताड़ एवं नारियल पर 33वीं वार्षिक बैठक : मिलेगा बढ़ावा

सबौर : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का अखिल भारतीय परियोजना ताड़ एवं नारियल का वार्षिक बैठक का आयोजन बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में किया गया. भारत के पूर्वी क्षेत्र में इस तरह की यह पहली बैठक है, जहां ताड़ और नारियल समूह के पेड़ों जैसे ताड़, नारियल, सुपाड़ी, औयल पाम एवं कोकोबा के विकास पर विमर्श किया जा रहा है. साथ ही, पूरे भारत में चल रही परि‌योजनाओं का अवलोकन और आने वाले वर्ष की तकनीकी योजना की रूपरेखा तैयार की जा रही है. 21 अगस्त से 23 अगस्त तक चलने समन्वित ताड़ परियोजना का आयोजन आईसीएआर – अखिल भारतीय परियोजना की 33वी वार्षिक समूह बैठक में देश के विभिन्न भागों से ताड़ और नारियल के विभिन्न समूहों में काम करने वाले वैज्ञानिकों ने भाग लिया. इस में आईसीएआर, नई दिल्ली के एडीजी, उद्द्यान, डा. वीबी पटेल, केंद्रीय रोपण फसल शोध संस्थान (आईसीएआर-सीपीसीआरआई), कासरगोड के निदेशक डा. केबी हेबर, भारतीय तेल ताड़ अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-आईआईओपीआर) के निदेशक डा. के. सुरेश सहित 30 वैज्ञानिक समेत देश के विभिन्न राज्यों के कृषि विश्वविद्यालय के लगभग 60 वैज्ञानिकों ने इस बैठक में हिस्सा लिया.

इस परियोजना के योजना समन्वयक डा . अगस्टिन जेरार्ड हैं, जिन के नेतृत्व में कार्यक्रम बिहार कृषि विश्वविद्यालय में हुआ.
कार्यालय की शुरुआत अतिथियों के स्वागत के साथ हुई. उद्घाटन सत्र में बिहार कृषि विश्वविद्यालय की गतिविधियों पर आधारित वृत्तचित्र “सफरनामा” के प्रदर्शन के साथ हुआ.

उद्घाटन सत्र में बोलते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि यह हमारे लिए हर्ष का विषय है कि पूर्वी भारत में इस तरह की पहली बैठक बिहार कृषि विश्वविद्यालय में हुई है. उन्होंने कहा कि आज बिहार लीची, मखाना और शहद उत्पादन में पूरे देश में अव्वल है और इस में विश्वविद्यालय के शोध और तकनीकी का बड़ा योगदान है.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने देशभर से आए विशेषज्ञों से बिहार में ताड़ और नारियल कुल के वृक्षों की संभावना पर मंथन करने का अनुरोध किया. साथ ही, यहां से निकले निष्कर्ष के उपरांत बिहार के किसान को कुछ नए फसल जैसे तेल ताड़ (Oil Palm) और कोकोवा की खेती हेतु सुझाव भी देने का अनुरोध किया.

उन्होंने आगे कहा कि बिहार में ताड़ के लिए अनुकूल जलवायु है. अगर ताड़ के बौने पेड़ विकसित किए जाएं, तो किसानों को ज्यादा सुविधा होगी. कुलपति ने सभा को अवगत कराया कि बीएयू ने पिछले 18 महीनों में 14 पेटेंट हासिल किए हैं, जिन में से 3 पेटेंट पालमिरा यानी ताड़ के उत्पाद पर है. उन्होंने ताड़ समूह की फसलों में उद्यमिता की अपार  संभावना को देखते हुए भी काम करने को कहा.
आईसीएआर, नई दिल्ली के एडीजी, उद्यान डा. वीबी पटेल, बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उद्यान के क्षेत्र में हासिल की गई उपलब्धियों की चर्चा की. साथ ही, विश्वविद्यालय द्वारा तकनीकी, शोध और प्रसार के क्षेत्र में हासिल की गई असाधारण उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला.

उन्होंने विश्वास जताया कि यह बैठक बिहार के किसानों के लिए कुछ विशेष निष्कर्ष जरुर अनुशंसित करेगा. योजना समन्वयक डा. अगस्टिन जेरार्ड ने एक साल की योजना को प्रस्तुत किया.
कार्यक्रम में स्वागत भाषण निदेशक शोध डा. एके सिंह ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डा. रूबी रबी रानी ने किया. इस अवसर पर सभी निदेशक और अधिष्ठाता शामिल रहे.

कपास की खेती पर हुई एकदिवसीय कार्यशाला

पांढुरना : जिले के विकासखंड सौंसर के ग्राम मर्राम में उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह की उपस्थिति में सघन रोपण प्रणाली (एचडीपीएस) पद्धति से कपास की खेती में पौधों की बढ़वार नियंत्रण एवं कीट प्रबंधन विषय पर एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया.

कार्यशाला में पूर्व से चयनित अनुसूचित जनजाति के 51 किसानों को केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर से पधारे वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. रामाकृष्णा द्वारा एचडीपीएस पद्धति से कपास फसल उत्पादन के संबंध में विस्तारपूर्वक किसानों को बताया गया, जिस में हलकी जमीन का चयन करते हुए कतार से कतार की दूरी 90 सैंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सैंटीमीटर के अंतराल पर फसल बोई गई. सघन रोपण प्राणाली (एचडीपीएस) पद्धति से कपास की खेती करने वाले किसानों को उचित केनौपी मेनेजमेंट के बारे विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई. इस में फसल की 45 दिन की अवस्था में कम से कम पौधे 1.5 से 2.0 फीट एवं पाति निर्माण अवस्था पर ग्रोथरेगुलेटिंग हार्मोंस चमत्कार 12 मिलीलिटर प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर एक एकड़ में 10 टंकी दवा का छिड़काव करने की सलाह दी गई, जिस से कि पौधे की बढवार नियंत्रित करते हुए प्रति एकड़ क्षेत्रफल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सके.

सभी चयनित किसानों को केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर द्वारा उन्नत किस्म का बीज एवं ग्रोथरेगुलेटिंग हार्मोंस निशुल्क प्रदान किया गया.

केद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर के डा. दीपक नागराले द्वारा कपास फसल में रोग एवं कीट प्रबंधन के संबंध में तकनीकी जानकारी प्रदान की गई. वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं डीन जेड एआरएस, डा. आरसी शर्मा ने कपास फसल में पोषक तत्व प्रबंधन के बारे में जानकारी दी.

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डा. डीसी वास्तव के द्वारा कपास फसल नवाचार को बढ़ावा  देने पर जोर दिया गया, जिस से कि अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सके. उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह द्वारा एचडीपीएस पध्दति से कपास की खेती के लिए जिले में हलकी जमीन में कपास उत्पादक किसानों के लिए वरदान साबित होना बताया गया, जिस से किसानों को पूर्व में हो रहे उत्पादन की तुलना में दोगुना अधिक उत्पादन होने की बात कही गई.

इस कार्यक्रम में अनुविभागीय कृषि अधिकारी सौंसर, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, कृषि विस्तार अधिकारी, बीटीएम, एटीएम आत्मा, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रतिक्षा मेहरा एवं सृजन के अधिकारी उपस्थित थे.