मत्स्यपालन (Fisheries) है भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार

नई दिल्ली : मत्स्यपालन क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है. यह राष्ट्रीय आय, निर्यात और खाद्य सुरक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ‘सूर्योदय क्षेत्र’ के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र लगभग 3 करोड़ लोगों, विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों के लोगों को आजीविका प्रदान करता है. विश्व के दूसरे सब से बड़े मछली उत्पादक के रूप में भारत ने 175 लाख टन (साल 2022-23 में) का रिकौर्ड उत्पादन प्राप्त किया. यह कुल वैश्विक मछली उत्पादन में 8 फीसदी का योगदान है.

इस क्षेत्र का महत्व देश के सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) में 1.09 फीसदी और कृषि जीवीए में 6.724 फीसदी से अधिक योगदान के रूप में दिखता है. काफी अधिक विकास संभावनाओं के साथ मत्स्यपालन क्षेत्र को टिकाऊ, जिम्मेदार और समावेशी विकास के लिए केंद्रित नीति व वित्तीय सहायता की जरूरत है.

भारत सरकार ने पीएमएमएसवाई, एफआईडीएफ, नीली क्रांति और पीएमएमकेएसएसवाई आदि जैसी विभिन्न योजनाओं व पहलों के माध्यम से मत्स्यपालन क्षेत्र में बदलाव की अगुआई की है. इस के तहत साल 2015 के बाद से अब तक का सब से अधिक 38,572 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है. इन नीतियों और पहलों के परिणामस्वरूप भारत वैश्विक मत्स्य उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. महत्वपूर्ण निर्यात बाजारों में विभिन्न चुनौतियों के बावजूद भारत का समुद्री खाद्य निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया.

भारत ने साल 2023-24 के दौरान 60,523.89 करोड़ रुपए का 17.8 लाख टन समुद्री खाद्य (सीफूड) निर्यात किया. पिछले एक दशक में झींगापालन के निर्यात में तेजी आई है. झींगा निर्यात लगभग 107 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ दोगुने से अधिक हो गया है. यह 19,368 करोड़ रुपए (साल 2013-14 में) से बढ़ कर 40,013.54 करोड़ रुपए (साल 2023-24 में) हो गया है. इस के परिणामस्वरूप समुद्री खाद्य निर्यात में काफी शानदार प्रगति हुई है. यह पिछले 10 सालों में 14 फीसदी की औसत वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ा है.

मत्स्य निर्यात में बढ़ोतरी पर हितधारक परामर्श विभिन्न हितधारकों के बीच संवाद और सहभागिता को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किया जा रहा है. इन हितधारकों में मछली पालने वाले किसान, मछुआरे, उद्योग क्षेत्र की प्रमुख हस्तियां, समुद्री खाद्य निर्यातक, नीति निर्माता और शोधकर्ताओं आदि शामिल हैं.

इस बैठक का उद्देश्य नवाचार, स्थिरता और मूल्य संवर्धन पर ध्यान केंद्रित करने सहित वैश्विक समुद्री खाद्य बाजार में भारत की स्थिति में उन्नति और मछली पालने वाले किसानों व तटीय समुदायों के लिए समावेशी विकास को बढ़ावा देना है. इस में प्रतिभागी उत्पादकता बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने सहित समुद्री खाद्य निर्यात और इस की मूल्य श्रंखला में अवसर तलाशने की क्षमता में सुधार लाने के लिए सर्वश्रेष्ठ अभ्यासों, टिकाऊ जलकृषि प्रौद्योगिकियों और बुनियादी ढांचे के विकास पर चर्चा में शामिल होंगे.

इस परामर्श में वैश्विक समुद्री खाद्य बाजारों में भारत की उपस्थिति बढ़ाने के लिए कार्यान्वयन योग्य रणनीति तैयार करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जिस से विभिन्न मछली/समुद्री शैवाल/समुद्री खाद्य उत्पादों की निर्यात क्षमता को अधिकतम किया जा सके और देश के लाखों मछुआरों, तटीय समुदायों व मछली पालने वाले किसानों की आजीविका को समर्थन प्राप्त हो सके.

यह पहल मत्स्यपालन क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए भारत सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है. साथ ही, यह सुनिश्चित करती है कि देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता सहित करोड़ों लोगों के लिए आजीविका का स्रोत बना रहे. इस सहयोगात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से भारत सरकार मत्स्यपालन क्षेत्र में समावेशी विकास और लचीलेपन को बढ़ावा देना चाहती है, जो आखिरकार देश की समुद्री अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देगा.

रासायनिक उर्वरकों (Chemical Fertilizers) के अंधाधुंध उपयोग से कैंसर का खतरा

जयपुर : राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्राकृतिक खेती अपनाए जाने की जरूरत है. रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से जमीन की उर्वराशक्ति क्षीण हो रही है. इन के अंधाधुंध उपयोग से कैंसर जैसे असाध्य रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है.

राज्यपाल हरिभाऊ बागडे बीकानेर में कृषि विश्वविद्यालय के विद्या मंडप में ‘प्राकृतिक खेती पर जागरूकता कार्यक्रम‘ विषयक दोदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि 50 साल पहले तक कोई भी रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं करता था. परिस्थितिवश इन का उपयोग शुरू हुआ. आज इन उर्वरकों के अनेक दुष्परिणाम हमारे सामने हैं.

उन्होंने आगे कहा कि जल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए गांव का पानी, गांव में ही रुके, ऐसे प्रयास किए जाएं. उन्होंने शून्य खर्च आधारित खेती के बारे में बताया और कहा कि यह भूमि अन्नपूर्णा है. सकारात्मक तरीके से इस का जितना उपयोग करेंगे, यह अधिक लाभ देगी.

राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि एक दौर था, जब देश के 40 करोड़ लोगों का पेट भरने के लिए हमारे पास पर्याप्त अन्न नहीं था. इस दौर में हमारे अन्नदाताओं ने भरपूर मेहनत की. इस की बदौलत आज 140 करोड़ देशवासियों का पेट भरने के बाद भी हमारे अन्न के भंडार भरे हुए हैं.

उन्होंने कृषि के साथ गोपालन करने का आह्वान किया. प्रदेश की गौ आधारित सहकारिता कार्यों की सराहना की और कहा कि कृषि और पशुपालन से किसानों की आय बढ़ेगी.

राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित संगोष्ठी से प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन मिलेगा. उन्होंने ऐसे आयोजन समयसमय पर आयोजित करने का आह्वान किया.

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों के बारे में बताया और कहा कि हमें प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा. उन्होंने स्वामी केशवानंद के शिक्षा के विकास में दिए गए योगदान को याद किया और कहा कि 9 दिसंबर, 1925 को महाराजा गंगा सिंह ने नहर लाने की कार्ययोजना की शुरुआत की. उस के 100 साल पूरे होने पर ‘बीकानेर के सुशासन के सौ वर्ष’ कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. इस में उद्योग, साहित्य, कृषि, पत्रकारिता आदि के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने वाली प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाएगा.

उन्होंने श्रीअन्न (मोटे अनाज) को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता जताई और कहा कि राजस्थानी वनस्पति फोगला, केर, सांगरी और तुंबा आदि पर अनुसंधान किए जाने की जरूरत है.

केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि प्राकृतिक खेती हमारी प्राचीनतम पद्धति है. यह भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाए रखती है. इस खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है. आज रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग के कारण भूमि की उर्वराशक्ति प्रभावित हो रही है. मानव के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए हमें प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का विजन है कि देश का किसान खुशहाल हो. विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अरुण कुमार ने स्वागत उद्बोधन दिया.
पूर्व में राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने ‘फसल अवशेष प्रबंधन हेतु स्टबल चापर सहस्प्रेडर’ पुस्तक का विमोचन किया. उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा विकसित स्टबल चापर सहस्प्रेडर का लोकार्पण किया और विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित प्रदर्शनी का अवलोकन किया.

सीएमवी वायरस से केले (Bananas) को बचाएं

बुरहानपुर : ग्राम बसाड़, निंबोला, नसीराबाद, बोरी एवं बुरहानपुर के आसपास के गांवों में उद्यानिकी विभाग एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा केला फसल के प्रक्षेत्रों का निरीक्षण किया गया, जिस में पाया गया कि कुछ खेतों में कुछ पौधों पर सीएमवी वायरस के प्रारंभिक लक्षण दिखाई दिए. इस के नियंत्रण एवं बचाव के लिए किसानों को सुझाव दिए गए.

किसानों को सलाह दी गई है कि खेत के आसपास एवं अंदर साफसफाई करें, आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति की जाए. अनुंशसित उर्वरक मात्रा 15 से 20 फीसदी उर्वरक अधिक डालें, साथ ही जैविक खाद/गोबर की खाद का भी उपयोग करें. रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़ कर खेत के बाहर करें या गड्ढे में दबा दें.

प्रभावित खेत में बीमारी फैलाने वाले कीट नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफास 45 एमएल, एसीफेट 15 ग्राम, स्टीकर 15 एमएल, नीम तेल 50 एमएल को 15 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. इमिडाक्लोरोपिड 6 एमएल, एसीफेट 15 ग्राम, स्टीकर 15 एमएल, नीम तेल 50 एमएल को 15 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. छिड़काव साफ मौसम में ही किया जाए.

भेड़पालन की जानकारी आकाशवाणी केंद्र से मिलेगी

अविकानगर : भारतीय क़ृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संस्थान केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर तहसील मालपुरा जिला टोंक के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर एवं आकाशवाणी केंद्र, जयपुर के निदेशक निलेश कुमार कालभोर के बीच आकाशवाणी केंद्र, जयपुर पर भेड़पालन तकनीकियों को किसान के द्वार पहुंचाने के लिए एमओयू साइन किया गया, जिस का उदेश्य अंतिम छोर के किसानों तक संस्थान की वैज्ञानिक पद्धति से भेड़बकरीपालन की तमाम जानकारी को पहुंचा कर लाभान्वित करना है.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने बताया कि आकाशवाणी केंद्र, जयपुर द्वारा “भेड़ा री बाता” पर अविकानगर संस्थान के विभिन्न विषय विशेषज्ञ व वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को भेड़पालन के विभिन्न पहलू पर विस्तार से जानकारी आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रम के माध्यम से दी जाएगी.

इस का प्रसारण आकाशवाणी केंद्र, जयपुर द्वारा किया जाएगा, जिस से देश के दूरदराज के गांवढाणी के किसान, जो किसी करणवश जानकारी और तकनीकी ज्ञान के लिए संस्थानों एवं विश्वविद्यालय मे नहीं जा पाते हैं, उन को आकाशवाणी केंद्र के माध्यम से संस्थान एक नवीन पहल पर भेड़पालन तकनीकियों को किसानो के गांवढाणी तक पहुंचाया जाएगा.

एमओयू के अवसर पर केंद्र के दोनों निदेशकों के साथ अविकानगर संस्थान के पोषण विभाग के अध्यक्ष डा. रणधीर सिंह भट्ट, एजीबी विभाग के अध्यक्ष डा. सिद्धार्थ सारथी मिश्र, प्रसार विभाग प्रभारी डॉ लीला राम गुर्जर एवं आकाशवाणी केंद्र कार्यक्रम समन्वयक भी मौजूद रहे.

डीएपी की जगह सिंगल सुपर फास्फेट व यूरिया को मिला कर करें उपयोग

जयपुर : प्रमुख शासन सचिव, कृषि एवं उद्यानिकी वैभव गालरिया की अध्यक्षता में पंत कृषि भवन के समिति कक्ष में सितंबर के लिए प्रदेश में उर्वरकों की मांग, आपूर्ति एवं उपलब्धता के बारे में समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया. बैठक में उर्वरकों एवं संभावित आपूर्ति के संबंध में कंपनीवार समीक्षा की गई.

प्रमुख शासन सचिव वैभव गालरिया ने विनिर्माता कंपनियों को निर्देशित किया कि इस बार औसत से अधिक बारिश होने के कारण रबी की फसलों की बोआई में डीएपी व यूरिया की मांग बढ़ने की संभावना है. कंपनियां उर्वरक आपूर्ति में कोताही न बरतते हुए आवश्यकतानुसार सप्लाई समय पर करें.

उन्होंने कंपनी प्रतिनिधियों से कहा कि जिन जिलों में उर्वरकों की कमी आ रही है, वहां पर तुरंत उर्वरक सप्लाई किया जाना सुनिश्चित करें. डीएपी, यूरिया, एनपीके और एसएसपी उर्वरकों का सितंबर महीने का आवंटन जो केंद्र सरकार द्वारा किया गया है, उस की आपूर्ति कंपनियों द्वारा समय पर की जाए. वे किसानों को डीएपी के स्थान पर एसएसपी एवं एनपीके के उपयोगों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करें.

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने नैनो यूरिया, नैनो डीएपी, सिंगल सुपर फास्फेट को किसानों द्वारा ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में लेने के लिए इस का प्रचारप्रसार करने के लिए कहा. साथ ही, उर्वरकों की कालाबाजारी करने वाले आदान विक्रेताओं पर सख्त कार्यवाही करने के लिए निर्देशित किया.

उन्होंने आगे कहा कि कंपनियां उर्वरकों की सप्लाई मांग के हिसाब से समय पर पूरा करने की यथासंभव कोशिश करें. डीएपी कम पड़ने पर किसान एसएसपी व यूरिया को मिला कर विकल्प के रूप में उपयोग करें, इस के मिश्रण से फसलों का न केवल उत्पादन बढ़ता है, बल्कि गुणवत्ता में भी सुधार होता है.

बैठक में संयुक्त निदेशक कृषि (आदान) लक्ष्मण राम, संयुक्त निदेशक कृषि (गुण नियंत्रण) गजानंद सहित विभागीय अधिकारी और उर्वरक विनिर्माता एवं आपूर्तिकर्ता कंपनियों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे.

फूलों की खेती (Flower Farming) से महकी जितेंद्र की जिंदगी

इंदौर : केवल पारंपरिक खेती से परिवार की आजीविका चलाने वाले ग्राम सगदोद देपालपुर निवासी किसान जितेंद्र पटेल हमेशा चिंता से ग्रसित रहते थे. बेमौसम बारिश, पारंपरिक तरीके से खेती के काम करने से लाभ के मुकाबले अधिक लागत से कृषि घाटे का सौदा सिद्ध हो रही थी. ऐसे में किसान जितेंद्र पटेल को एकीकृत बागबानी विकास मिशन के बारे में मालूम हुआ. उद्यानिकी विभाग के मैदानी अधिकारियों ने उन्हें पुष्प क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम के बारे में बताया और योजना से संबंधित समस्त जानकारी दी.

किसान जितेंद्र पटेल ने विभागीय अधिकारियों से चर्चा के पश्चात योजना से जुड़ने का मन बनाया. उन्होंने पुष्प क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम के अंतर्गत गेंदा हाईब्रिड प्रजाति का फूल बीज अपने आधा बीघा खेत में लगाया, जिस से उन्हें 160 क्विंटल गेंदा फूल का उत्पादन मिला. खाद, बीज, दवाई, निंदाईगुड़ाई सहित अन्य खर्च तकरीबन 20 से 25 हजार रुपए हुआ. तकरीबन 75 हजार रुपए का गेंदा फूल बिका.

उन्होंने बताया कि तकरीबन 50 हजार रुपए की उन्हें शुद्ध आय प्राप्त हुई. पूर्व में वे पारंपरिक रूप से सोयाबीन की खेती कर रहे थे. सोयाबीन उत्पादन लेने से कहीं अधिक लाभकारी फूलों की खेती है. उन्होंने बताया कि एकीकृत बागबानी विकास मिशन के अंतर्गत उन्होंने पुष्प क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम का लाभ लिया. उन्हें योजना के अंतर्गत 8 हजार रुपए का अनुदान मिला. उन्होंने योजना का लाभ मिलने पर खुशी व्यक्त की.

उल्लेखनीय है कि संभागायुक्त दीपक सिंह के निर्देशानुसार संभाग के समस्त जिलों में आधुनिक कृषि को अधिक से अधिक किसान अपनाएं और इस के लिए किसानों को ट्रेनिंग और मार्गदर्शन प्रदान करने के साथसाथ योजनाओं के महत्व की जानकारी दी जा रही है.

डीडीए उद्यानिकी विभाग, इंदौर डीएस चौहान ने बताया कि योजना का अधिक से अधिक पात्रताधारी किसान लाभ ले, इस के लिए मैदानी अमला और जिला स्तर से लगातार प्रयास किए जाते हैं. योजना लाभ से कृषि के क्षेत्र में किसान आत्मनिर्भर होने के साथसाथ माली रूप से सक्षम हो रहे हैं.

एकीकृत बागबानी विकास मिशन के अंतर्गत पुष्प क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम

जिस योजना से जितेंद्र की जिंदगी में बदलाव आया, उस योजना का नाम एकीकृत बागबानी विकास मिशन के अंतर्गत पुष्प क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम (लूज फ्लावर की खेती) है. इस योजना का लाभ लेने के लिए औनलाइन पंजीयन एमपीएफएसटीएस (MPFSTS) पोर्टल के माध्यम से https://mpfsts.mp.gov.in पर पंजीयन कराए जाने के उपरांत संचालनालय उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण मध्य प्रदेश  भोपाल द्वारा लौटरी के माध्यम से चयनित कर लाभान्वित किया जाता है, जिस में निम्नानुसार दस्तावेज आवश्यक होते हैं :

आवेदक को एक पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ, आवेदन की जमीन का खसरा, खतौनी की नकल की छायाप्रति, जाति प्रमाणपत्र (अजा एवं अजजा वर्ग के लिए), बायोमीट्रिक अथवा निटजेन (Nitgen) एवं मोर्फो डिवाइस (Morpho Device) के माध्यम से जिस में बैंक खाता और मोबाइल नंबर के साथ आवश्यक होता है. औनलाइन पंजीयन के बाद लौटरी में चयनित किसानों का संबंधित विकासखंड अधिकारी द्वारा औनलाइन अपलोड दस्तावेजों को सत्यापित कर अग्रेषित किया जाता है.

तदोपरांत जिले के संबंधित किसानों को काम करने के लिए औनलाइन आशयपत्र, कार्यादेश जारी किए जाते हैं. योजना के तहत लूज फ्लावर उत्पादन के लिए 16 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर सभी किसानों के लिए लघु/सीमांत/बड़े  (अजा/अजजा/सामान्य) अधिकतम 2 हेक्टेयर तक लाभ दिया जा सकता है.

संयुक्त संचालक, उद्यान, इंदौर संभाग डीआर जाटव के मार्गदर्शन में विभागीय अमला भी लगातार विशेष प्रयास कर रहा है. उन्होंने बताया कि कृषक उन्नत उद्यानिकी फसलों, योजनाओं की जानकारी के लिए उद्यानिकी विभाग के जिला अथवा विकासखंड कार्यालय पर संपर्क कर सकते हैं.

औषधीय खेती (Medicinal Farming) के लिए प्रोत्साहन, बढ़ेगी आमदनी

भोपाल : औषधीय पौधों की खेती के रकबे को बढ़ाने के लिए देवारण्य योजना पर काम किया जा रहा है. योजना में योजना का मकसद किसानों विशेषकर जनजाति क्षेत्र के किसानों की कृषि आय में बढ़ोतरी करना है. योजना का क्रियान्वयन आयुष विभाग द्वारा किया जा रहा है. जिले के वनों में बड़ी मात्रा में दुर्लभ औषधि पौधे पाए जाते हैं.

देवारण्य योजना के द्वारा प्राकृतिक रूप से उपलब्ध प्रत्येक प्रकार के औषधीय पौधों के संरक्षण और वैज्ञानिक रूप से दोहन और संग्रहण की प्रणाली का विकास किया जा रहा है. योजना में सरकार के विभिन्न विभागों के साथ सामंजस्य स्थापित कर विभिन्न औषधीय पौधों की पैदावार बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

योजना का क्रियान्वयन आयुष, जनजातीय कार्य, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, वन, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण और किसान कल्याण एवं कृषि विभाग संयुक्त रूप से कर रहे हैं. औषधीय पौधों खेती का बढ़ावा देने के लिए किसान को 51 प्रकार की औषधीय पौधों की खेती करने के लिए मनरेगा से मदद दी जा रही है.

राज्य औषधीय पादप बोर्ड का गठन किया गया है. जनजातीय क्षेत्रों के किसानों ने योजना का लाभ लेते हुए औषधीय पौधे लगाए हैं. राज्य औषधीय पादप बोर्ड द्वारा औषधीय पौधों के भंडारण और विपणन के लिए आयुष औषधि उत्पादन करने वाली कंपनियों के साथ एमओयू करने के प्रयास किए जा रहे हैं.

मोटे अनाज (Coarse Grains) की खेती को बढ़ावा

जयपुर : मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए भारत एवं राज्य सरकार निरंतर प्रयासरत है. मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए बजट घोषणानुसार कृषि विभाग द्वारा वित्तीय वर्ष 2024-25 में किसानों को बाजरा के 7 लाख, 90 हजार और ज्वार के 89 हजार बीज मिनी किट का निःशुल्क वितरण किया गया है, जिस से राज्य में मोटे अनाज के उत्पादन में वृद्धि होगी और किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी.

मोटे अनाज की खेती कम सिंचाई एवं कम उपजाऊ भूमि में आसानी से पैदा की जा सकती है. गौरतलब है कि मोटे अनाज को ऐसी फसल माना जाता है, जो कुपोषण, स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करती है.

बता दें कि देश के प्रस्ताव के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बाजरा, ज्वार, कोदो समेत 8 मोटे अनाज को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया गया था.

स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है मोटा अनाज

मोटे अनाज में बाजरा, ज्वार, रागी एवं कोदो जैसे धान्य को शामिल किया गया है. इन में पोषक तत्व प्रोटीन व खनिज भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. मोटे अनाज में औषधीय गुणों के कारण इन के सेवन से कुपोषण, मोटापा, हार्ट से संबंधित बीमारियों और मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि भोजन थाली में मिलेट्स का सेवन उत्तम स्वस्थ शरीर के रखरखाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

राज्य में बाजरा और ज्वार की 49.60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की गई बोआई

राज्य में खरीफ 2024 में बाजरा और ज्वार की 49.60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बोआई की गई है, जिस में से बाजरे की 43.04 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में और ज्वार की 6.60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बोआई की गई है.

राज्य सरकार को मिला राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस (सिल्वर) पुरस्कार

जयपुर : मुंबई में आयोजित 27वीं राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस कौंफ्रैंस में ‘गवर्नमेंट प्रोसैस रि-इंजीनियरिंग फौर ट्रांसफौर्मेशन: स्टेट लैवल इनिशिएटिव’ के तहत उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए राज्य सरकार के ‘राजकिसान साथी फेज 2’ प्लेटफार्म को ई-गवर्नेंस (सिल्वर) पुरस्कार 2024 से सम्मानित किया गया है. यह कौंफ्रैंस केंद्र सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग की ओर से 3-4 सितंबर को आयोजित की गई.

सूचना प्रौद्योगिकी और संचार विभाग की शासन सचिव आरती डोगरा ने इस उपलब्धि के लिए विभाग की टीम को बधाई और शुभकामनाएं दीं. आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने यह पुरस्कार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के हाथों लिया. पुरस्कार के साथ ट्रौफी, प्रशस्तिपत्र और 5 लाख रुपए का कैश अवार्ड भी प्रदान किया गया.

यह पुरस्कार कृषि, बागबानी, कृषि विपणन आदि विभागों की विभिन्न सेवाओं को ‘ईज आफ डुइंग फार्मिंग’ का आयाम प्रदान करने के लिए सिंगल विंडो इंटिग्रेटेड प्लेटफार्म ‘राजकिसान साथी फेज 2’ को दिया गया है.

ईज आफ डुइंग फार्मिंगका आयाम
किसानों को कृषि, उद्यानिकी, कृषि विपणन विभाग, पशुपालन विभाग, कृषि विपणन बोर्ड, बीज निगम, बीज प्रमाणीकरण संस्था आदि द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं का लाभ त्वरित व पारदर्शी तरीके से प्रदान करने के लिए यह प्लेटफार्म विकसित किया गया है.

इस प्लेटफार्म के माध्यम से किसानों को विभिन्न योजनाओं की जानकारी व लाभ प्राप्त करने के लिए भिन्नभिन्न पोर्टल का प्रयोग कर आवेदन प्रस्तुत करने के स्थान पर सिंगल विंडो के रूप में केवल एक ही पोर्टल के माध्यम से समस्त सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं. एसएसओ आईडी के माध्यम से एक बार तैयार किए गए प्रोफाइल के माध्यम से किसान किसी भी योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं. उन्हें बारबार अपने आधारभूत दस्तावेजों को अपलोड करने की आवश्यकता नहीं है. किसान ई-मित्र केंद्र के माध्यम से भी आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं.

उल्लेखनीय है कि ई-गवर्नेंस नवाचारों के कार्यान्वयन में उत्कृष्टता को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए, भारत सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग द्वारा प्रति वर्ष राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं. ये पुरस्कार ई-गवर्नेंस पर राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान प्रदान किए जाते हैं.

हाइवे पर नहीं दिखेंगे आवारा पशु (Stray Animals)

जयपुर : पशुपालन एवं गोपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर निराश्रित पशुओं का विचरण करना काफी गंभीर समस्या है. इन से हाइवे पर वाहनों की गति बाधित होती है और दुर्घटना होने का अंदेशा बना रहता है. उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों को राजमार्गों पर पशुओं का विचरण रोकने की दिशा में गंभीरता से काम करने और पैट्रोलिंग की पुख्ता व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए.

मंत्री जोराराम कुमावत पिछले दिनों सचिवालय के मंत्रालयिक भवन स्थित अपने कक्ष में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और लोक निर्माण विभाग (राष्ट्रीय राजमार्ग) के अधिकारियों के साथ इस संबंध में आयोजित बैठक को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि आम आदमी हाइवे पर आवागमन के लिए टोल टैक्स चुकाता है. उन्हें सुविधा और सुरक्षा सुनिश्चित करने में किसी प्रकार की ढिलाई नहीं बरती जानी चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि हाइवे पर घूमने वाले आवारा पशुओं के कारण आएदिन दुर्घटनाएं होती हैं, जिन में जन हानि के साथसाथ पशु हानि भी होती है. उन्होंने प्राधिकरण के अधिकारियों को हाइवे पर निराश्रित पशुओं का विचरण बंद करने की पुख्ता व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए.

उन्होंने यह भी कहा कि प्राधिकरण द्वारा पैट्रोलिंग व्यवस्था को और भी सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है. पैट्रोलिंग की गाड़ियां केवल दुर्घटना होने पर ही आती हैं, जबकि दुर्घटना को घटने से रोकने के प्रयास किए जाने चाहिए. इस के लिए प्राधिकरण द्वारा नियमित रूप से पैट्रोलिंग की व्यवस्था की जानी सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि राजमार्गों पर संभावित खतरों से आमजन को सुरक्षा मिले.

पशुपालन विभाग के प्रमुख शासन सचिव विकास सीताराम भाले ने कहा कि निराश्रित पशुओं को राजमार्गों पर विचरण से रोकने के लिए की गई व्यवस्थाओं की समीक्षा के लिए नियमित रूप से बैठक आयोजित की जानी चाहिए.

बैठक में प्रतिमा गुप्ता, प्रतिनिधि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, आशाराम सैनी, प्रतिनिधि, लोक निर्माण विभाग (राष्ट्रीय राजमार्ग), डा. भवानी सिंह राठौड़, निदेशक, पशुपालन विभाग, डा. आनंद सेजरा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, राजस्थान पशुधन विकास बोर्ड, शालिनी शर्मा, निदेशक, गोपालन विभाग सहित अन्य विभागीय अधिकारी उपस्थित थे.