जबलपुर मंडी में हाथोंहाथ बिक रहे हैं छिंदवाड़ा केले (Chhindwara Bananas)

छिंदवाड़ा : जिले के हर्रई विकासखंड के ग्राम भुमका के आदिवासी किसान पूरनलाल इनवाती प्राकृतिक खेती से एक ओर जहां रसायनमुक्त फल सब्जी मार्केट में पहुंचा रहे हैं, तो वहीं लाखों रुपए का शुध्द मुनाफा भी कमा रहे हैं. किसान पूरनलाल इनवाती ने इस वर्ष एक एकड़ में प्राकृतिक पद्धति से केले की खेती कर 4 लाख रुपए का शुध्द मुनाफा कमाया है.

प्राकृतिक पद्धति से उन के द्वारा उगाए गए केले “छिंदवाड़ा केले” के नाम से जबलपुर मंडी में हाथोंहाथ बिक रहे हैं. केले के अलावा उन के द्वारा प्राकृतिक पद्धति से बैगन, टमाटर, मक्का की फसल भी लगाई गई है और आम, कटहल, आंवला, सेब, एप्पल बेर, ड्रैगन फ्रूट, नीबू, संतरा, काजू के पौधों का रोपण भी किया गया है.

किसान पूरनलाल इनवाती द्वारा ड्रिप पद्धति एवं फसल अवषेश का प्रबंधन कर पूरी तरह प्राकृतिक रूप से केले की टिशु कल्चर के द्वारा तैयार किस्म जी-9 लगाई गई है. साथ ही, फसल अवषेश प्रबंधन कर के मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारा जा रहा है. पिछले वर्ष आधा एकड में केले की प्राकृतिक खेती कर 2 लाख, 7 हजार रुपए का शुध्द मुनाफा प्राप्त किया गया था.

इस वर्ष एक एकड से 4 से 5 लाख रुपए का शुध्द मुनाफा प्राप्त होना बताया है. एक एकड़ में 800 पौधे लगाए हैं, प्रत्येक पौधे से औसतन 45 किलोग्राम फल प्राप्त हो रहे हैं, जिसे किसान द्वारा जबलपुर मंडी में औसतन 25 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव से विक्रय किया जा रहा है.

किसान द्वारा बताया गया कि हमारा प्राकृतिक केला जबलपुर मंडी में छिंदवाड़ा के केले के नाम से प्रसिद्ध है एवं व्यापारियों द्वारा हाथोंहाथ उचित दाम दे कर खरीद लिया जाता है. सामान्यतः जहां सामान्य केले की 15 से 18 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से मंडी में खरीदी होती है, वहीं हमारा प्राकृतिक केला 25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से हाथोंहाथ बिक रहा है.

किसान द्वारा प्राकृतिक विधि से बैगन, टमाटर एवं मक्का की फसल भी लगाई गई हैं, साथ ही आम, कटहल, आंवला, सेब, एप्पल बेर, ड्रेगन फ्रूट, नीबू, संतरा, काजू के पौधों का भी रोपण किया गया है. किसान द्वारा कड़कनाथ मुरगीपालन, बकरीपालन एवं मछलीपालन इकाई भी स्थापित कर समन्वित खेती की जा रही है.

इस प्रकार कुल लगभग 6 एकड़ जमीन से किसान द्वारा वर्ष में लगभग 10 लाख रुपए का शुध्द लाभ प्राप्त किया जा रहा है. इस से प्रेरणा ले कर जिले के अन्य किसान भी प्राकृतिक खेती को अपना कर एवं समन्वित खेती कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं.

किसान द्वारा की जा रही समन्वित खेती के इस उत्कृष्ट उदाहरण का अवलोकन पिछले दिनों जिले के अधिकारियों द्वारा भी किया गया. कलक्टर छिंदवाड़ा शीलेंद्र सिंह के निर्देशानुसार उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह ने उद्यानिकी महाविद्यालय के डीन एवं सहसंचालक आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र, चंदनगांव के डा. आरसी शर्मा के साथ किसान पूरनलाल इनवाती के खेत मे पहुंच कर प्राकृतिक पद्धति से एक एकड़ में की जा रही केले की खेती का अवलोकन किया. भ्रमण के दौरान सचिन जैन अनुविभागीय कृषि अधिकारी अमरवाड़ा एवं स्थानीय किसान भी उपस्थित थे.

उचित दाम के लिए फसलों की ग्रेडिंग (Grading of Crops) जरूरी

जबलपुर : कलक्टर दीपक सक्सेना की अध्यक्षता में पिछले दिनों आत्मा गवर्निंग बोर्ड की बैठक आयोजित की गई. बैठक में कृषि विस्तार एवं सुधार कार्यक्रम के संबंध में विस्तार से चर्चा की गई, जिस में कृषि, उद्यानिकी, मत्स्य और पशुपालन विभाग से संबंधित विषयों पर चर्चा कर आवश्यक निर्देश दिए.

बैठक में कलक्‍टर दीपक सक्‍सेना ने कहा कि किसानों को उन की फसल का उचित दाम मिले, इस के लिए फसलों की ग्रेडिंग की व्‍यवस्‍था हर ब्लौक में सुनिश्चित की जाए. मोबाइल ग्रेडिंग के माध्‍यम से किसानों को यह सुविधा उपलब्‍ध हो, ताकि वे अपनी फसल की ग्रेडिंग करें और फसल का सही दाम लें.

उन्‍होंने आगे कहा कि किसानों को एक फसल के बाद दूसरी फसल के लिए राशि की बहुत जरूरत पड़ती है, ऐसी स्थिति में यह बड़े कारगर सिद्ध होंगे. उन्‍होंने यह भी कहा कि किसान भ्रमण व प्रशिक्षण की जगह किसानों की फसल के मार्केटिंग किस प्रकार की जाए, इस बात पर विशेष ध्‍यान दें और अधीनस्‍थ अमला को भी इस बात की प्रशिक्षण दी जाए. सोरटेक्‍स मशीनों का प्रदर्शन करें और इस में वेयरहाउस वालों को भी जोड़ने के लिए कहा. बैठक में खरीफ के रकबा व उत्‍पादन लक्ष्‍य के बारे में भी जानकारी ली गई.

कलक्‍टर दीपक सक्‍सेना ने जानकारी देते हुए कहा कि मध्‍य प्रदेश में सोरटेक्‍स मशीनों के उपयोग की बहुत संभावनाएं हैं, यह मशीन पैट्रोल पंप की भांति जगहजगह होने से किसानों को अपनी फसल की ग्रेडिंग व मार्केटिंग के लिए उपयोगी सिद्ध होगा.

बैठक में उद्यानिकी, मत्‍स्‍य व पशुपालन आदि विषयों पर भी विस्‍तार से चर्चा की गई. बैठक में उपसंचालक, कृषि, एसके निगम, रवि आम्रवंशी, उपसंचालक उद्यानिकी नेहा पटेल, उप चालक पशुपालन मून, कृषि अभियांत्रिकी से एलएन मेहरा सहित अन्य संबंधित अधिकारी मौजूद थे.

अनाज भंडारण क्षमता (Grain Storage Capacity) बढ़ाए जाने के लिए किया जा रहा प्रोत्साहित

बालाघाट : प्रभारी मंत्री उदय प्रताप सिंह ने 30 अगस्त, 2024 को जिला अधिकारियों के साथ सामूहिक रूप से बैठक आयोजित की. बैठक में उन्होंने जिले में धान भंडारण क्षमता बढ़ाने के निर्देश दिए.

कलक्टर मृणाल मीणा के निर्देशन में जिला पंचायत सभागृह में जिला पंचायत अध्यक्ष सम्राट सिंह सरसवार, उपाध्यक्ष योगेश राजा लिल्हारे एवं जिला पंचायत सीईओ डीएस रणदा द्वारा जिला आपूर्ति अधिकारी, जिला अग्रणी बैंक प्रबंधक नाबार्ड, कृषि विभाग, नागरिक आपूर्ति विकास निगम, मार्कफेड वेयरहाउस कारपोरेशन, एनआरएलएम, विपणन अधिकारी एवं जिले के राइस मिलर्स और वेयरहाउस संचालकों से चर्चा की गई, वहीं वेयरहाउस संचालकों व राइस मिलर्स व्यापारियों से उन के काम में आ रही समस्याओं की जानकारी ली गई, ताकि समस्याओं का जिले एवं शासन स्तर से निदान किए जाने के प्रयास किए जा सकें.

इस दौरान बताया गया कि जिले में अनाज भंडारण क्षमता बढ़ाए जाने के लिए वेयरहाउस निर्माण की आवश्यकता है, जिस के संबंध में बैंक लोन एवं नाबार्ड द्वारा दी जाने वाली अनुदान की जानकारी भी दी गई. जिला पंचायत अध्यक्ष सम्राट सिंह सरस्वार ने कहा कि अधिकारियों एवं व्यापारियों को समन्वय कर अच्छी प्लानिंग करने की आवश्यकता है, जिस से दोनों को लाभ मिल सके.

भंडारण क्षमता बढ़ाना जरूरी
जिला पंचायत अध्यक्ष सम्राट सिंह सरस्वार ने कहा कि भंडारण क्षमता कम होने के कारण अनाज दूसरे जिलों में भी भंडारित किया जाता है, जिस से शासन को ट्रांसपोर्ट का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है. यदि जिले में भंडारण क्षमता बढ़ जाती है, तो राइस मिलर्स को भी साल में 7 महीने मिलिंग का काम समय पर मिलेगा. साथ ही, शासन एवं व्यापारियों को भी नुकसान नहीं होगा.

इस दौरान व्यापारियों द्वारा बताया गया कि जब सोसाइटी में नई धान खरीदी की जाती है, तो उस समय धान उठाव के लिए दबाव रहता है, जबकि उस धान को मापदंड से अधिक नमी होते हुए भी उठाना पड़ता है. बाद में नमी कम होने से धान उठाने से व्यापारियों को नुकसान होता है. बैठक में ऐसे कई विषयों पर चर्चा की गई.

15 राज्यों में 17 लाख से अधिक औयल पाम पौधे (Oil Palm Saplings) रोपे गए

नई दिल्ली : राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-औयल पाम के तहत आयोजित मेगा औयल पाम प्लांटेशन ड्राइव के तहत भारत के 15 राज्यों में 12,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में 17 लाख से अधिक औयल पाम पौधे रोपे गए, जिस से 10,000 से अधिक किसान लाभान्वित हुए.

15 जुलाई, 2024 को शुरू किए गए इस अभियान ने देश में औयल पाम की खेती के विस्तार की दिशा में भारत सरकार, राज्य सरकारों और औयल पाम प्रसंस्करण कंपनियों के सामूहिक प्रयासों को प्रदर्शित करते हुए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. यह अभियान 15 सितंबर, 2024 तक चलेगा. इस में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा सहित कई राज्यों की भागीदारी देखी गई है.

पतंजलि फूड प्राइवेट लिमिटेड, गोदरेज एग्रोवेट और 3एफ औयल पाम लिमिटेड जैसी प्रमुख औयल पाम प्रोसैसिंग कंपनियों के सहयोग से राज्य सरकारों द्वारा आयोजित इस पहल में कई जागरूकता कार्यशालाएं, वृक्षारोपण अभियान और प्रचार कार्यक्रम शामिल हैं. इन गतिविधियों ने सफलतापूर्वक जागरूकता बढ़ाई है और किसान समुदाय को शामिल किया है. इस मिशन को महत्व देने वाले प्रमुख गणमान्य व्यक्तियों और राजनीतिक नेताओं की उपस्थिति से और अधिक समर्थन मिला है.

भारत सरकार द्वारा अगस्त 2021 में शुरू किए गए खाद्य तेलों के लिए राष्ट्रीय मिशन-औयल पाम (एनएमईओ-ओपी) का उद्देश्य व्यवहार्यता मूल्य समर्थन सहित औयल पाम क्षेत्र के विकास के लिए एक मूल्य श्रंखला पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित कर के औयल पाम की खेती का विस्तार करना और कच्चे पाम तेल (सीपीओ) के उत्पादन को बढ़ावा देना है. मेगा औयल पाम प्लांटेशन ड्राइव खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने, आयात निर्भरता को कम करने और भारतीय किसानों की आय बढ़ाने के लिए इस व्यापक रणनीति का एक प्रमुख घटक है.

सोयाबीन (Soybean) का भाव 5,000 रुपए से पार

नीमच : कृषि उपज मंडी समिति, नीमच में गांव निलीया (जावद) के किसान रामकिशन (मोबाइल नंबर 9907777510) की कृषि उपज सोयाबीन 5011 रुपए प्रति क्विंटल की दर से विक्रय हुई है, वहीं उपमंडी जीरन के किसान संदीप (मोबाइल नंबर 9770499259) की फसल सोयाबीन 5000 रुपए प्रति क्विंटल की दर से विक्रय हुई है, जो कि अब तक पिछले 15 दिनों में विक्रय हुई सोयाबीन का सर्वाधिक मूल्य है, जिस से किसानों में प्रसन्नता देखी गई है.

मंडी समिति, नीमच और उपमंडी जीरन में 6 सितंबर, 2024 को कुल 221 किसानों द्वारा कुल 3666.57 क्विंटल सोयाबीन अधिकतम भाव 5011 रुपए और पशु आहार श्रेणी (NON-EAQ) न्यूनतम भाव 3420 रुपए से विक्रय की गई. 1 अप्रैल, 2024 से विगत माह तक लगभग 25,000 किसानों द्वारा 4 लाख क्विंटल सोयाबीन विक्रय की जा चुकी है.

नीमच मंडी सचिव उमेश बसेड़ि‍या ने उक्‍त जानकारी देते हुए बताया कि मंडी समिति, नीमच द्वारा निरंतर किसानों के हित में काम किए जा रहे हैं. अनेकों सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं. अधिक सुविधा के लिए नवीन मंडी डुंगलावदा में वर्तमान में गेहूं एवं प्याज की नीलामी करवाई जा रही हैं और जल्दी ही अन्य उपजों लहसुन, मक्का, सोयाबीन आदि की नीलामी करवाने की प्रक्रिया भी की जाएगी. नवीन मंडी में शेष काम भी शीघ्र ही पूर्ण कराते हुए किसानों और कारोबारियों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास कि‍ए जा रहे हैं.

सोयाबीन (Soybean)

कलक्‍टर ने किया जीरन मंडी का औचक निरीक्षण

जिले की कृषि‍ उपज मंडी में विक्रय के लिए आने वाले किसानों की सुविधाओं का पूरा ध्‍यान रखा जाए. उपज विक्रय में कोई असुविधा न हो. किसानों को उन की उपज का वाजिब दाम मिले. इस का मंडी प्रशासन विशेष ध्‍यान रखे.

यह निर्देश कलक्‍टर हिमांशु चंद्रा ने पिछले दिनों जीरन उपमंडी के निरीक्षण दौरान मंडी सचिव उमेश बसेड़िया को दिए. कलक्‍टर ने निर्देश दिए कि मंडी परिसर में स्‍वीकृत काम तेजी से पूरे करवाएं.

उन्‍होंने जीरन मंडी के लहसुन शेड में जा कर लहसुन की नीलामी की प्रक्रिया का अवलोकन भी किया. नीलामी में लहसुन का विक्रय 17,800 रुपए के भाव से होना पाया गया. कलक्‍टर ने मंडी सचिव से मंडी में विक्रय के लिए आने वाली सोयाबीन, लहसुन एवं अन्‍य जिंसों की दैनिक आवक, उन के भाव आदि की जानकारी ली.

कलक्‍टर हिमांशु चंद्रा ने जीरन मंडी के परिसर से लगी अतिरिक्‍त जमीन का अवलोकन किया और मंडी के विस्‍तार के लिए उपयोग करने का प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत करने के निर्देश भी दिए. साथ ही, मंडी में स्‍वीकृत निर्माण कार्यों की जानकारी भी ली.

खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing) में है असीमित संभावनाए

सबौर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के सम्मेलन कक्ष में संगरिया, पंजाब के संत लौंगोवाल विश्वविद्यालय के डीन डा. कमलेश प्रसाद और लुधियाना स्थित एग्रो-इंडस्ट्रियलिस्ट गगन मेहता एवं खाद्य प्रसंसकरण पोस्ट हारवेस्ट के वैज्ञानिकों के साथ एक बैठक आयोजित की गई. बैठक के प्रारंभ में डा. अनिल कुमार सिंह, निदेशक अनुसंधान ने परिचर्चा में उपस्थित सभी सदस्यों का स्वागत किया.

निदेशक अनुसंधान डा. अनिल कुमार सिंह ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में खाद्य प्रौद्योगिकी और फसल के बाद की तकनीक की वर्तमान स्थिति प्रस्तुत की. उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में कृषि उत्पादों का जीडीपी योगदान 0.80 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत जीडीपी योगदान से अधिक है.

उन्होंने कहा कि बिहार ही केवल ऐसा राज्य है, जिस ने कृषि और संबंधित क्षेत्र में विकास को प्रोत्साहित करने के लिए ‘चौथा कृषि रोडमैप’ तैयार किया है. खाद्य प्रसंस्करण यानी फूड प्रोसैसिंग और फसल के बाद की तकनीक राजस्व सृजन के लिए एक प्रमुख बाजार उन्मुख शाखा है.

बिहार में मूल्य संवर्धन की अपार संभावनाएं हैं. बिहार में 8 उत्पादों को भौगोलिक संकेत टैग (GI Tag) मिला है, जिन में से 5 कृषि उत्पादों को बीएयू, सबौर के वैज्ञानिकों की सहायता से भौगोलिक संकेत प्राप्त हुए हैं. चूंकि कई बागबानी और कृषि उत्पाद स्वाभाविक रूप से नष्ट हो जाते हैं, ऐसे में इन से मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने की आवश्यकता है.

डा. शमशेर अहमद, सहायक प्रोफैसर और खाद्य विकास केंद्र के नोडल अधिकारी ने एफडीसी, बीएयू, सबौर के अंतर्गत विकसित प्रयोगशालाओं, प्रशिक्षण केंद्रों और प्रसंस्करण इकाइयों की जानकारी दी.

बीएयू, सबौर के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में काहलगांव में एक कोल्ड स्टोरेज सुविधा स्थापित की गई है. विभाग के अन्य वैज्ञानिकों ने विशेषज्ञों से आगे की सुझाव प्राप्त करने के लिए अपने प्रस्तावित अनुसंधान कार्य प्रस्तुत किए.

डा. कमलेश प्रसाद ने वैज्ञानिकों के प्रस्तुतीकरण के दौरान कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए. सत्तू के पोषण संवर्धन और कैप्सिकम में कैप्साइसिन सामग्री बढ़ाने के सुझाव दिए. डा. गगन मेहता ने फसल के बाद के उत्पादों को विपणन स्तर पर ले जाने में रुचि व्यक्त की.

निदेशक अनुसंधान ने वैज्ञानिकों को उत्पाद विकसित करने और बिहार के किसानों के लाभ के लिए उन्हें जमीनी स्तर पर ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया.

प्रोबायोटिक्स उत्पादों, मिलेट उत्पादों और न्यूनतम प्रसंस्कृत उत्पादों के विकास पर विश्वविद्यालय में हो रहा है काम, जीआई उत्पादों को और मूल्य संवर्धित किया जा सकता है, ताकि वे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच सकें. डा. डीआर सिंह, कुलपति, बीएयू, सबौर, डा. एमए अफताब ने समूह चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लिया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया.

वर्मी कंपोस्ट इकाई (Vermi Compost Unit) के लिए 50 हजार अनुदान

जयपुर : आधुनिक युग में खेती में रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है, जिस से मिट्टी की उर्वरता में कमी आ रही है. मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा वर्मी कंपोस्ट इकाई निर्माण की शुरुआत की गई है. इस से मिट्टी की जैविक व भौतिक स्थिति में सुधार लाया जा सकेगा. इस से मिट्टी की उर्वरता एवं पर्यावरण संतुलन बना रहेगा.

रासायनिक उर्वरकों से खेती की बढ़ती हुई लागत को कम करने और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पारंपरिक खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ाने के लिए राज्य सरकार द्वारा जैविक खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिस से फसलों को उचित पोषण मिलने पर उन की वृद्धि होगी एवं किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी.

कृषि आयुक्त कन्हैयालाल स्वामी ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट इकाई लगाने के लिए किसानों को इकाई लागत का 50 फीसदी या अधिकतम 50 हजार रुपए का अनुदान दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में 5,000 वर्मी कंपोस्ट इकाई लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

उन्होंने आगे बताया कि वर्मी कंपोस्ट इकाई लगाने के लिए किसान के पास एक स्थान पर न्यूनतम कृषि योग्य 0.4 हेक्टेयर भूमि का होना आवश्यक है. कृषक ‘राज किसान साथी’ पोर्टल या नजदीकी ई-मित्र केंद्र पर जा कर जनाधार के माध्यम से औनलाइन आवेदन कर सकते हैं. इस के लिए किसान के पास न्यूनतम 6 माह पुरानी जमाबंदी होना आवश्यक है.

उल्लेखनीय है कि जैविक खेती कम खर्च में उत्पादन बढ़ाने का साधन है. जैविक खाद द्वारा मिट्टी के साथ मनुष्य की सेहत भी दुरुस्त रहती है. और्गेनिक फार्मिंग से मिट्टी की संरचना बेहतर रहती है और पर्यावरण को भी लाभ होता है. इस से मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या और भूजल स्तर भी ठीक बना रहता है.

धान की फसल (Paddy Crop) को बचाएं खैरा बीमारी से

देश में खरीफ सीजन में ली जाने वाली फसलों में प्रमुख रूप से धान की खेती होती है. दुनियाभर में की जाने वाली धान की खेती का तकरीबन 22 फीसदी हिस्सा भारत अकेले ही पैदा करता है. धान ही एकमात्र ऐसी फसल है, जिसे भारत में ली जाने वाली फसलों में सब से ज्यादा पानी की जरूरत होती है. धान में जितना पानी जरूरी है, उतना ही जरूरी इस में खरपतवार प्रबंधन, खाद उर्वरक प्रबंधन सहित इस के कीट और बीमारियों का प्रबंधन भी.

धान की खेती करने वाले किसान नर्सरी डालने से ले कर कटाई तक अगर सतर्कता न बरतें, तो उन्हें धान में कीट और बीमारियों के चलते भारी नुकसान भी उठाना पड़ता है. वैसे तो धान की फसल में कई तरह के कीट और बीमारियों का प्रकोप दिखाई देता है, जो धान की फसल को पूरी तरह से बरबाद कर देता है. लेकिन इन्हीं बीमारियों में एक खैरा ऐसी बीमारी है, जो पौध की बढ़ोतरी को पूरी तरह से प्रभावित कर देती है. ऐसी दशा में धान की फसल का उत्पादन पूरी तरह से घट जाता है.

धान में लगने वाली खैरा बीमारी जिंक यानी जस्ता की कमी की वजह से होती है. इस बीमारी को पहली बार साल 1996 उत्तर प्रदेश के तराई एरिया में देखा गया, जिस की पहचान कृषि वैज्ञानिक यशवंत लक्ष्मण नेने द्वारा की गई थी. उन्होंने पाया कि इस रोग के प्रभाव में आ कर धान की फसल की बढ़वार रुक गई थी.

यह है पहचान
धान की फसल को प्रभावित करने वाली खैरा बीमारी जिंक की कमी से होती है. धान की फसल में खैरा बीमारी की पहचान करना बेहद आसान है. नर्सरी में रोपी गई धान की पौध में यह छोटेछोटे चकत्ते के रूप में दिखाई पड़ती है. इस बीमारी के प्रभाव में आने के बाद धान की पत्तियों पर हलके पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो बाद में कत्थई रंग में बदल जाते हैं. इस के बाद इस की पत्तियां मुरझा जाती हैं और मृत हो जाती हैं. इस से धान के पौध में बौनापन आ जाता है और उत्पादन काफी कम हो जाता है.

खैरा बीमारी की चपेट में आने के बाद धान के पौध की जड़ें भी कत्थई रंग की हो जाती हैं. यह बीमारी पहले खेत के किसी एक सिरे से शुरू होती है और देखते ही देखते पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लेती है. अगर बारिश कम हुई है और धूप तेज हो, तो यह बीमारी और भी घातक हो जाती है.

खैरा बीमारी की चपेट में आने के बाद फसल में दाने कम बनते हैं या बनते ही नहीं हैं. इस बीमारी की चपेट में आने के बाद फसल उत्पादकता लगभग 30 से 40 फीसदी तक घट जाती है. इसलिए फसल में बीमारी का प्रकोप होने ही न पाए. किसानों को नर्सरी डालने के समय से ही इस के प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है.

खैरा बीमारी से बचाव के लिए करें यह तैयारी

धान की फसल को खैरा बीमारी से बचाव के लिए रोपाई के पूर्व ही जब किसान खेत की तैयारी कर रहे हों, तो 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक का प्रयोग करना चाहिए. अगर धान की फसल में खैरा बीमारी का प्रकोप दिखाई पड़े तो प्रति हेक्टेयर की दर से 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 25 किलोग्राम चूने को 600 से 700 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. अगर बुझा हुआ चूना न मिल पाए, तो उस की जगह पर जिंक सल्फेट के साथ 2 फीसदी यूरिया का इस्तेमाल करना चाहिए.

खैरा बीमारी से बचाव के लिए डाली गई नर्सरी डालने के 10 दिनों के बाद पहला, 20 दिन बाद दूसरा छिड़काव करना चाहिए. किसान जब धान की फसल रोप चुके हों तो फसल रोपाई के 15 से 30 दिनों में तीसरा छिड़काव करना न भूलें.

धान की फसल में खैरा बीमारी से बचाव के लिए एक ही फसल में धान की फसल की रोपाई बारबार नहीं करनी चाहिए. ऐसा करने से मिट्टी में जिंक की कमी हो जाती है. इसलिए धान की फसल लेने के बाद उस खेत में उड़द या अरहर की खेती करने से जिंक की कमी दूर हो जाती है.

इस के अलावा धान की कई ऐसी उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जो खैरा बीमारी रोधी है. इसलिए इन किस्मों को उगाने पर जोर देना चाहिए. खेत में रासयनिक खाद के उपयोग में कमी ला कर जैविक खादों का उपयोग करना चाहिए.

पौधों के लिए जिंक का महत्व इसलिए है जरूरी

धान की फसल के लिए जिंक एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है. यह पौधे के लिए क्लोरोफिल उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है, जिस से पौधों को पर्याप्त भोजन मिलने में मदद मिलती है.

धान के लिए जिन 8 सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, उस में जिंक सब से महत्वपूर्ण तत्व है. पौधों को जिंक की बहुत कम मात्रा की जरूरत होती है, लेकिन यह पौधे के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

जिंक पौधे में एंजाइमों को सक्रिय कर देता है, जो प्रोटीन संश्लेषण में मददगार होते हैं. अगर पौधे में जिंक की कमी हो जाए, तो इस से पौधे का रंग पीला पड़ जाता है. साथ ही, जिंक पौधे को ठंड का सामना करने में मदद करने के साथ ही पौध की रक्षा प्रणाली को भी मजबूत करता है.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) में हिमाचल प्रदेश अव्वल

शिमला : फ्रांस के राष्ट्रीय कृषि, खाद्य एवं पर्यावरण अनुसंधान संस्थान (आईएनआरएई) के 4 वैज्ञानिकों के प्रतिनिधिमंडल ने 9 सितंबर को मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू से भेंट की. एलआईएसआईएस के उपनिदेशक प्रो. एलिसन मैरी लोकोंटो के नेतृत्व में टीम में शोधकर्ता प्रो. मिरेइल मैट, डा. एवलिन लोस्टे और डा. रेनी वैन डिस शामिल हैं. वह प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में हुई प्रगति के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हिमाचल प्रदेश के दौरे पर आए हैं.

बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में अग्रणी राज्य है. हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खेती के माध्यम से उगाए गए उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करने वाला देश का पहला राज्य है. प्रदेश में गेहूं 40 रुपए प्रति किलोग्राम और मक्का 30 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से खरीदा जा रहा है.

इस के अतिरिक्त गाय का दूध 45 रुपए प्रति लिटर और भैंस का दूध 55 रुपए प्रति लिटर की दर से खरीदा जा रहा है. उन्होंने प्राकृतिक खेती में उत्पाद प्रमाणन के महत्व पर बल दिया. उन्होंने कहा कि प्रदेश में सीटारा प्रमाणन प्रणाली शुरू की गई है, जिसे किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए लागू किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आगे कहा कि ‘हिम उन्नति योजना’ को राज्य में क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण के साथ लागू किया जा रहा है, जिस का उद्देश्य रसायनमुक्त उत्पादन और प्रमाणन करना है. इस के तहत लगभग 50,000 किसानों को शामिल करने और 2,600 कृषि समूह स्थापित करने की योजना है. इस के अलावा राज्य सरकार डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा देने और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रही है.

आईएनआरएई के वैज्ञानिक 3 सप्ताह तक डा. वाईएस परमार बागबानी एवं औद्यानिकी विश्वविद्यालय, नौणी और राज्य के अन्य स्थानों का दौरा करेंगे. उन का दौरा यूरोपीय आयोग द्वारा वित्त पोषित एक्रोपिक्स परियोजना (अंतर्राष्ट्रीय सहनवप्रवर्तन गतिशीलता और स्थिरता के साक्ष्य की ओर कृषि पारिस्थितिकी फसल संरक्षण) का हिस्सा है, जिस का उद्देश्य कृषि पारिस्थितिकी फसल संरक्षण में सहनवप्रवर्तन को आगे बढ़ाना है.

प्रतिनिधिमंडल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में राज्य सरकार के प्रयासों और सीटारा प्रमाणन प्रणाली की सराहना की. उन्होंने कहा कि आईएनआरएई इस प्रमाणन प्रणाली को अन्य देशों में अपनाने की संभावना तलाशेगा.

कृषि यंत्र (Agricultural Equipment) खरीद पर मिलेगा 50 फीसदी अनुदान

जयपुर: खेती–किसानी में कृषकों द्वारा बुआई, जुताई और बिजाई जैसे कठोर कार्य किये जाते हैं. इन्हीं कार्यो को सुगम बनाने के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा सब मिशन ऑन एग्रीकल्चरल मैकेनाइजेशन योजना के प्रावधानों के अन्तर्गत किसानों को आधुनिक कृषि यंत्रों पर अनुदान देकर लाभान्वित किया जायेगा, जिससे किसानों पर आर्थिक भार कम पडेगा और कृषि कार्य आसान हो जायेंगे साथ ही किसानों की आय में भी वृद्धि होगी.

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने बताया कि योजना के अन्तर्गत राज्य में लगभग 66 हजार किसानों को 200 करोड़ रूपये का अनुदान दिये जाने का प्रावधान रखा गया है. इसके लिए कृषक 13 सितम्बर तक ऑनलाईन आवेदन कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि कृषि यंत्रों पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, लघु, सीमान्त एवं महिला किसानों को ट्रेक्टर की बीएचपी के आधार पर लागत का अधिकतम 50 प्रतिशत तक तथा अन्य श्रेणी के कृषकों को लागत का अधिकतम 40 प्रतिशत तक अनुदान दिया जायेगा. लघु एवं सीमान्त श्रेणी के किसानों को ऑन-लाईन आवेदन से पूर्व जन आधार में लघु एवं सीमान्त श्रेणी जुड़वाना आवश्यक है, आवेदन के दौरान उक्त प्रमाण पत्र संलग्न करना होगा.

कृषि आयुक्त ने बताया कि राज किसान साथी पोर्टल पर ई-मित्र के माध्यम से जनाधार कार्ड, जमाबंदी की नकल, कृषि यंत्र का कोटेशन आदि दस्तावेजों की सहायता से ऑन-लाईन आवेदन कर सकते हैं. किसानों को राज्य में प्रचलित ट्रैक्टर संचालित सभी प्रकार के कृषि यंत्र जैसे रोटावेटर, थ्रेसर, कल्टीवेटर, बंडफार्मर, रीपर, सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, डिस्क हेरो, प्लॉउ आदि यंत्रों पर अनुदान दिया जायेगा. किसान द्वारा कृषि यंत्रों को पंजीकृत फर्म से खरीदने तथा सत्यापन के बाद अनुदान उनके जनाधार से जुड़े बैंक खाते में हस्तान्तरित किया जायेगा.

एक जन आधार पर होगा एक आवेदन

एक किसान को एक प्रकार के कृषि यंत्र पर तीन वर्ष की कालावधि में केवल एक बार अनुदान दिया जायेगा. किसानों को वित्तीय वर्ष में एक ही कृषि यंत्र पर अनुदान दिया जायेगा. प्रशासनिक स्वीकृति जारी करने से पूर्व खरीदे गये पुराने कृषि यंत्रों पर अनुदान नही दिया जायेगा.

एक जन आधार द्वारा एक ही आवेदन स्वीकार होगा कृषि यंत्रों पर अनुदान के लिए किसान के नाम भूमि और ट्रेक्टर चलित यंत्र पर अनुदान के लिए ट्रेक्टर का रजिस्ट्रेशन आवेदक किसान के नाम होना आवश्यक है.