ढिंगरी और दूधछाता मशरूम (Mushroom) पर ट्रेनिंग

उदयपुर : 8 अगस्त, 2024. अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना, अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधान में अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के अंतर्गत ग्राम पंचायत कोचला, पंचायत समिति झाड़ोल (फ.) में एकदिवसीय मशरूम प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. मशरूम प्रशिक्षण में पंचायत समिति झाड़ोल (फ.) आसपास के गांवों के किसानों एवं महिलाओं ने प्रशिक्षण में भाग लिया.

प्रशिक्षण में परियोजना प्रभारी डा. एनएल मीना ने मशरूम के महत्वपूर्ण गुणों, ढिंगरी व दूधछाता मशरूम की खेती के बारे में विस्तार से व्याख्यान दिया. ग्राम पंचायत, कोचला व कंथारिया के सरपंच भगवतीलाल व ख्यालीलाल ने मशरूम की खेती की तकनीकी को अपना कर ज्यादा से ज्यादा आमदनी करने पर जोर दिया. अविनाश कुमार नागदा एवं किशन सिंह राजपूत ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की प्रायोगिक जानकारी दी गई और प्रशिक्षण के अंत में अनुसूचित जाति उपयोजना के कुल 30  प्रशिक्षणार्थियों को सामग्री बांटी गई.

कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector) में अनुसंधानों को बढ़ावा देना जरूरी

हिसार : पिछले दिनों चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘रिसर्च मैनेजमेंट’ विषय पर 21दिवसीय रिफ्रैशर कोर्स संपन्न हुआ. विश्वविद्यालय के मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय द्वारा आयोजित किए गए इस रिफ्रैशर कोर्स में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय व लाला लाजपतराय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार के वैज्ञानिकों ने भाग लिया. कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्यातिथि के तौर पर उपस्थित रहे.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने रिफ्रैशर कोर्स के समापन अवसर पर वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए नए अनुसंधानों को बढ़ावा देना जरूरी है. कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए तापमान रोधी नईनई किस्में व नई तकनीक विकसित करने के लिए और अधिक बेहतर ढंग से काम करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन के दौर में असमय तापमान की बढ़ोतरी से निबटने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को शोध कार्यों एवं अनुसंधानों के लिए महत्वाकांक्षी योजना बना कर काम करना होगा. इस के साथसाथ नए उत्पादों को विकसित करने वाले अनुसंधान और नई प्रौद्योगिकियों के माध्यम से छोटे किसानों को नवीनतम तकनीकों के माध्यम से कम लागत में अधिक पैदावार की ओर अग्रसर कर के उन की माली हालात को मजबूत करना है.

उन्होंने वैज्ञानिकों से कृषि क्षेत्र में आने वाली मुख्य चुनौतियों पर अधिक से अधिक शोध करने एवं किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करने की हिदायत दी. साथ ही, शोध कार्यों, नई कृषि तकनीकों, नवाचारों के साथसाथ कृषि क्षेत्र में आने वाली समस्याओं का निराकरण करने पर ज्यादा से ज्यादा काम करें.

रिफ्रेशर कोर्स में सभी वैज्ञानिकों ने अपना एकएक रिसर्च प्रोजैक्ट प्रस्तुत किया. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने वैज्ञानिकों को 15 दिन के अंदर इस रिसर्च प्रोजैक्ट को संबंधित एजेंसी को सौंपने के निर्देश दिए. उन्होंने कार्यक्रम के समापन अवसर पर कोर्स में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र बांटे.

मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. अतुल ढींगड़ा ने अतिथियों व प्रतिभागियों का स्वागत किया. उन्होंने रिफ्रेशर कोर्स के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उपरोक्त निदेशालय की संयुक्त निदेशक एवं कोर्स समन्वयक डा. रेणु मुंजाल ने प्रशिक्षण अवधि के दौरान किए गए विभिन्न विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी दी, जबकि प्रशिक्षण सहसमन्वयक डा. जितेंद्र भाटिया ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया.

मंच का संचालन डा. जयंती टोकस ने किया. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं शिक्षक उपस्थित रहे.

असीरगढ़ की पहाड़ियों पर रोपे पलाश के 5,000 बीज

बुरहानपुर : शासन के महत्वपूर्ण अभियान ‘‘एक पेड़ मां के नाम‘‘ के तहत जिला प्रशासन द्वारा किए जा रहे प्रयासों का परिणाम सामने आने लगा है. बारिश के मौसम में विभिन्न गांवों की चिन्हित जगहों, पहाड़ियों पर रोपे गए बीजों से अब अंकुरण दिखाई देने लगा है. निश्चित ही आगे यह क्षेत्र को हराभरा करने एवं समृद्ध बनाने में सहयोगी है.

कलक्टर भव्या मित्तल के मार्गदर्शन में ग्राम चिंचाला, भोलाना, इच्छापुर, फोफनार, झांझर, बोदरली, चाकबारा, जाफरपुरा, बिरोदा, सेलगांव, धुलकोट आदि क्षेत्रों में कुछ दिनों पहले ही पलाश के लगभग 1 लाख, 20 हजार बीज, देशी बबूल के 10 हजार बीज, टेमरू के 1 हजार बीज रोपित किए गए थे] वहीं लगभग 25 हजार सीड बौल डाली गई थी, जिस में अब अंकुरण दिखाई देने लगे हैं.

बुरहानपुर को हराभरा बनाने की सीरीज में एवं पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से असीरगढ़ किले के सामने की पहाड़ी पर पलाश के लगभग 5 हजार बीजों का रोपण भी किया गया. इस अवसर पर अपर कलक्टर वीरसिंह चौहान, डिप्टी कलक्टर राजेश पाटीदार, उपसंचालक, कृषि,  मनोहर सिंह देवके, पटवारी, गांव वाले, ग्राम पंचायत सचिव व रोजगार सहायक सभी ने संयुक्त रूप से सहभागिता करते हुए बीजों का रोपण किया.

अभियान के तहत आगे भी बीज रोपण का सिलसिला जारी रहेगा. डिप्टी कलक्टर राजेश पाटीदार ने बताया कि कार्ययोजना के अनुसार जिला प्रशासन द्वारा बीजरोपण का काम चयनित स्थलों पर निर्धारित मापदंड के अनुसार किया जा रहा है. पलाश के पेड़ पर्यावरण के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं. इस से भूमि की उर्वरता तो बढ़ेगी ही, साथ ही साथ मिट्टी का कटाव भी रुकेगा. इस की खासियत यह है कि इस के पत्ते का उपयोग दोनापत्तल बनाने में किया जाता है. यह पर्यावरण हितैषी भी होता है. इन पेड़ों से स्थानीय जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है और यह पर्यावरण संतुलन को बनाने में सहायक होते हैं.

फसलों (Crops) की 109 उच्च उपज देने वाली किस्में जारी

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में फसलों की 109 उच्च उपज देने वाली, जलवायु अनुकूल और जैव अनुकूल किस्मों को जारी किया.

इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों और वैज्ञानिकों से परस्पर बातचीत भी की. इन नई फसल किस्मों के महत्व पर चर्चा करते हुए उन्होंने कृषि में मूल्य संवर्धन के महत्व पर बल दिया. किसानों ने कहा कि ये नई किस्में अत्यधिक लाभकारी होंगी, क्योंकि इन से उन का खर्चा कम होगा और पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

प्रधानमंत्री मोदी ने मोटे अनाजों के महत्व पर चर्चा की और इस बात को रेखांकित किया कि कैसे लोग पौष्टिक भोजन की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने प्राकृतिक खेती के लाभों और जैविक खेती के प्रति आम लोगों के बढ़ते विश्वास के बारे में भी बात की.

उन्होंने कहा कि लोगों ने जैविक खाद्य पदार्थों का सेवन और मांग करना शुरू कर दिया है. किसानों ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की.

किसानों ने जागरूकता पैदा करने में कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) द्वारा निभाई गई भूमिका की भी सराहना की. प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि केवीके को हर महीने विकसित की जा रही नई किस्मों के लाभों के बारे में किसानों को सक्रिय रूप से सूचित करना चाहिए, ताकि उन के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन नई फसल किस्मों के विकास के लिए वैज्ञानिकों की भी सराहना की. वैज्ञानिकों ने बताया कि वे प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए सुझाव के अनुरूप काम कर रहे हैं, ताकि अप्रयुक्त फसलों को मुख्यधारा में लाया जा सके.

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जारी की गई 61 फसलों की 109 किस्मों में 34 प्रक्षेत्र फसलें और 27 बागबानी फसलें शामिल हैं. प्रक्षेत्र फसलों में मोटे अनाज, चारा फसलें, तिलहन, दलहन, गन्ना, कपास, रेशा और अन्य संभावित फसलों सहित विभिन्न अनाजों के बीज जारी किए गए. बागबानी फसलों में फलों, सब्जियों, रोपण फसलों, कंद फसलों, मसालों, फूलों और औषधीय फसलों की विभिन्न किस्में जारी की गईं.

फसलों (Crops)

69 फसलों की इन 109 किस्मों में 69 फील्ड फसलें और 40 बागबानी फसलें शामिल हैं :

खेत फसलें (69)

अनाज (23 किस्‍में): चावल-9, गेहूं-2, जौ 1, मक्‍का-6, सोरगम-1, बाजरा-1, रागी-1, चीना-1, सावां-1.
दलहन (11 किस्‍में): चना-2, अरहर- 2, मसूर-3, मटर- 1, फबाबीन-1, मूंग -2.
तिलहन (7 किस्‍में): कुसुम- 2, सोयाबीन- 2, मूंगफली- 2, तिल- 1.
चारा फसलें (7 किस्‍में): चार

केवीके, भागलपुर में प्रशिक्षण कार्यशाला (Training Workshop)

भागलपुर : पिछले दिनों कृषि विज्ञान केंद्र, भागलपुर में कार्यशाला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिस का उद्घाटन बीएयू के निदेशक प्रसार शिक्षा डा. आरके सोहाने ने किया. इस में किसानों को खेती के नवीनतम नवाचारों से सशक्त बनाने और नईनई अनाज, दलहन और तिलहन फसलों के प्रभेदों के बारे में जानकारी दी गई.

इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आभासी रूप से 109 विभिन्न जलवायु अनुकूल और बायोफोर्टिफाइड फसलों की किस्मों का विमोचन था, जिसे भारतीय कृषि अनुशंधान द्वारा विकसित किया गया है.

उन्होंने नई उन्नत किस्मों का विमोचन किया, जो वर्तमान परिस्थितियों में अनाज, दलहन और तिलहन फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होंगी. ये किस्में न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने में सक्षम हैं, बल्कि इन की उपज भी पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक है.

इस अवसर पर निदेशक प्रसार शिक्षा डा. आरके सोहाने ने बताया कि कुपोषण की समस्या से निबटने और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बायोफोर्टिफाइड फसलों की नई उन्नत किस्मों को विकसित भारतीय कृषि अनुशंधान द्वारा किया गया है. इन किस्मों में विशेष रूप से धान, गेहूं, दलहन, तिलहन और मक्का शामिल हैं, जिन्हें आयरन और जिंक जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से समृद्ध किया गया है.

केवीके के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डा. राजेश कुमार ने बताया कि नई किस्में किसानों की उपज के साथसाथ आय भी दोगुनी करने में मिल का पत्थर साबित होंगी. इस मौके पर इंजीनियर पंकज कुमार, डा. ममता कुमारी, डा. पवन कुमार, डा. मनीष राज, अंजुम हासिम, शशिकांत आदि मौजूद थे.

खाद्य फसल से नकदी फसल (Cash Crops) की ओर बढ़ता कृषि क्षेत्र

नई दिल्ली: भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी तीसरे अग्रिम अनुमान वर्ष 2023-24 के अनुसार, वाणिज्यिक/नकदी फसलों का क्षेत्रफल कृषि वर्ष 2021-22 में 18,214.19 हजार हेक्टेयर से बढ़ कर कृषि वर्ष 2023-24 में 18,935.22 हजार हेक्टेयर हो गया है. पिछले 3 वर्षों का राज्यवार ब्योरा अनुबंध में दिया गया है. निश्चित रूप से वाणिज्यिक/नकदी फसलों (गन्ना, कपास, जूट और मेस्ता) का उत्पादन भी कृषि वर्ष 2021-22 में 4,80,692 हजार टन से बढ़ कर कृषि वर्ष 2023-24 में 4,84,757 हजार टन हो गया है.

नीति आयोग की कार्य समूह की रिपोर्ट, 2018 में कहा गया था कि भविष्य के वर्ष 2032-2033 के लिए खाद्यान्न की मांग और आपूर्ति क्रमशः 337.01 मिलियन टन और 386.25 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो दर्शाता है कि खाद्य सुरक्षा के मामले में हमारे समग्र खाद्यान्न की स्थिति बहुत अच्छी रहेगी.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीए एंड एफडब्ल्यू) देश के सभी 28 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मूकश्मीर और लद्दाख) में क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) लागू कर रहा है. इस के अंतर्गत छोटे व सीमांत किसानों सहित किसानों को पद्धतियों के उन्नत पैकेज पर क्लस्टर प्रदर्शन, फसल प्रणाली पर प्रदर्शन, उच्च उपज किस्मों (एचवाईवी)/संकरों के बीजों का वितरण, उन्नत फार्म मशीनरी/संसाधन संरक्षण मशीनरी/औजार, कुशल जल अनुप्रयोग उपकरण, पौधा संरक्षण उपाय, पोषक तत्व प्रबंधन/मृदा सुधार, प्रसंस्करण और कटाई के बाद के उपकरण, किसानों को फसल प्रणाली आधारित प्रशिक्षण आदि जैसे मध्यवर्तनों के लिए राज्य सरकारों के माध्यम से सहायता प्रदान की जाती है. मिशन विषय वस्तु विशेषज्ञों/वैज्ञानिकों के पर्यवेक्षण में किसानों को प्रौद्योगिकी समर्थन और हस्तांतरण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू)/कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) को सहायता भी प्रदान करता है.

इस के अलावा, सरकार अपनी मूल्य नीति के माध्यम से उच्चतर निवेश और उत्पादन को प्रोत्साहित करने और उचित मूल्यों पर आपूर्ति उपलब्ध करा कर उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करने के दृष्टिकोण से उत्पादकों को उन के उत्पाद के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करती है.

इस दिशा में, सरकार वाणिज्यिक/नकदी फसलों सहित 22 अधिदेशित फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्यों (एमएसपी) की घोषणा करती है, जिस में इन फसलों के लिए उच्चतर न्यूनतम समर्थन मूल्य की पेशकश की जाती है. वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में एमएसपी को उत्पादन लागत का 1.5 गुना के स्तर पर रखने के लिए पूर्व निर्धारित सिद्धांत की घोषणा की गई थी. तदनुसार, सरकार कृषि वर्ष 2018-19 से उत्पादन की अखिल भारतीय भारित औसत लागत पर कम से कम 50 फीसदी रिटर्न के साथ वाणिज्यिक/नकदी फसलों सहित सभी अनिवार्य फसलों के लिए एमएसपी घोषित कर रही है. सरकार ने देश में किसानों की आय के साथसाथ फसलों के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए अनेक नीतियों, सुधारों, विकासात्मक कार्यक्रमों को भी अपनाया है और कार्यान्वित किया है.

कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector) में आईसीएआर का है अहम योगदान

नई दिल्ली : सरकार समयसमय पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अनुसंधान कार्यक्रमों और प्रयासों की समीक्षा करने और आईसीएआर के अनुसंधान परिणामों को बेहतर करने के तरीके सुझाने के लिए जानेमाने कृषि टैक्नोक्रेट और अन्य विशेषज्ञों की उच्चाधिकार प्राप्त समितियों का गठन करती है. पिछली बार ऐसी समिति साल 2017 में 12वीं पंचवर्षीय योजना की अवधि के लिए आईसीएआर की विभिन्न योजनाओं के नतीजों की समीक्षा करने के लिए बनाई गई थी.

आईसीएआर में 8 क्षेत्रीय समितियां हैं, जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करती हैं. क्षेत्रीय समितियों की बैठकें समयसमय पर आयोजित की जाती हैं. इन बैठकों में राज्य सरकार के अधिकारी और उस क्षेत्र में स्थित आईसीएआर के सभी अनुसंधान संस्थान हिस्सा लेते हैं. इन बैठकों में संबंधित राज्य में किसानों के सामने आने वाली सभी समस्याओं या मुद्दों को राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा उठाया जाता है और आईसीएआर अनुसंधान संस्थानों अपने समाधान सुझाते हैं.

आईसीएआर इन बैठकों में राज्यों द्वारा उठाए गए कुछ मुद्दों/समस्याओं पर शोध भी शुरू करता है. आईसीएआर को जमीनी स्तर पर किसानों की समस्याओं के बारे में कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) से नियमित प्रतिक्रियाएं भी मिलती रहती हैं. शोध और विस्तार के जरीए इन समस्याओं को दूर करने के लिए जरूरी कार्यवाही की जाती है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) विभिन्न कृषि पारिस्थितिक क्षेत्रों, मिट्टी के प्रकारों, जलवायु के प्रकार और फसल की उपयुक्तता के संबंध में प्रौद्योगिकियों की उपयुक्तता के लिए स्थानीय जलवायु और भूभौतिकीय स्थितियों के खास शोध करता है. इस से क्षेत्र विशिष्ट शोध और प्रौद्योगिकी विकास मुमकिन हो पाता है. आईसीएआर कई राज्यों में क्षेत्रीय कृषि चुनौतियों का समाधान करने के लिए फसलों, पशुधन, मछलीपालन और खेती के तरीकों पर स्थानीय शोध के लिए अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाओं (एआईसीआरपी) के जरीए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग करता है.

आईसीएआर जलवायु, कृषि, सूखा प्रतिरोधी फसल किस्मों के विकास, कुशल जल प्रबंधन पद्धतियों और स्थानीय जलवायु संबंधी दबावों में उपयुक्त स्थायी खेती तकनीकों को बढ़ावा देता है. कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) स्थानीय शोध, प्रशिक्षण और विस्तार सेवाएं प्रदान करने वाले जिला स्तरीय केंद्रों के तौर पर काम करते हैं. वे किसानों को विकसित प्रौद्योगिकियों के प्रभावी हस्तांतरण के लिए फ्रंटलाइन प्रदर्शनों, खेत पर परीक्षणों और विस्तार गतिविधियों के जरीए प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन और प्रसार सुनिश्चित करते हैं.

डीएपी पर विशेष पैकेज (Special Package)

नई दिल्ली : फास्फेट और पोटाशयुक्त (पीएंडके) उर्वरकों के लिए सरकार ने 1 अप्रैल, 2010 से पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना लागू की है. एनबीएस योजना के तहत  सब्सिडी प्राप्त पीएंडके उर्वरकों पर डाईअमोनियम फास्फेट (डीएपी) सहित उन में निहित पोषक तत्व के आधार पर वार्षिक/द्विवार्षिक आधार पर तय की गई सब्सिडी की एक निश्चित राशि प्रदान की जाती है.

इस योजना के अंतर्गत उर्वरक कंपनियों द्वारा बाजार की गतिशीलता के अनुसार उचित स्तर पर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) तय की जाती है, जिस की निगरानी सरकार द्वारा की जाती है. पीएंडके क्षेत्र नियंत्रणमुक्त है और एनबीएस योजना के अंतर्गत कंपनियां बाजार की गतिशीलता के अनुसार उर्वरकों का उत्पादन/आयात पहल करने के लिए स्वतंत्र हैं.

इस के अलावा किसानों को सस्ते दामों पर डीएपी की निर्बाध उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने आवश्यकता के आधार पर एनबीएस सब्सिडी दरों के अलावा डीएपी पर विशेष पैकेज प्रदान किया है. भू राजनीतिक स्थिति के कारण हाल ही में साल 2024-25 में उर्वरक कंपनियों द्वारा डीएपी की खरीद की व्यवहार्यता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के कारण सरकार ने किसानों को सस्ती कीमतों पर डीएपी की स्थायी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पीएंडके उर्वरक कंपनियों को 1 अप्रैल, 2024 से 31 दिसंबर, 2024 की अवधि के लिए डीएपी की वास्तविक पीओएस (प्वाइंट औफ सेल) बिक्री 3,500 रुपए प्रति मीट्रिक टन पर एनबीएस दरों से परे डीएपी पर एकमुश्त विशेष पैकेज को मंजूरी प्रदान की है. इस के अलावा पीएंडके उर्वरक कंपनियों द्वारा तय एमआरपी की तर्कसंगतता के मूल्यांकन पर जारी दिशानिर्देश भी किसानों को सस्ते दरों पर उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं.

किसानों को यूरिया वैधानिक रूप से अधिसूचित एमआरपी पर उपलब्ध कराया जाता है. यूरिया के 45 किलोग्राम बैग की एमआरपी 242 रुपए प्रति बैग है (नीम कोटिंग और लागू करों के शुल्क को छोड़ कर) और यह एमआरपी 1 मार्च, 2018 से ले कर आज तक अपरिवर्तित उतनी ही है. फार्म गेट पर यूरिया की आपूर्ति लागत और यूरिया इकाइयों द्वारा शुद्ध बाजार प्राप्ति के बीच का अंतर भारत सरकार द्वारा यूरिया निर्माता/आयातक को सब्सिडी के रूप में दिया जाता है. तदनुसार सभी किसानों को रियायती दरों पर यूरिया की आपूर्ति की जा रही है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने प्रमुख फसल प्रणालियों के अंतर्गत विभिन्न मृदा प्रकारों में रासायनिक उर्वरकों के दीर्घावधिक उपयोग के प्रभाव का मूल्यांकन किया है. पिछले कुछ दशकों में की गई जांच से पता चला है कि केवल एनपीके प्रणाली (केवल रासायनिक उर्वरक) में सूक्ष्म और गौण पोषक तत्वों की कमी के संदर्भ में पौषण विकार पाए गए हैं, जो मृदा स्वास्थ्य और फसल उत्पादकता को प्रभावित करते हैं. अनुशंसित खुराक पर अकार्बनिक उर्वरक + जैविक खाद, फसल की उपज और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखते हैं. असंतुलित उर्वरक और केवल यूरिया प्राप्त करने वाले भूखंड में फसल की उपज में सब से अधिक गिरावट देखी गई. इसलिए आईसीएआर अकार्बनिक और जैविक दोनों स्रोतों के संयुक्त उपयोग के माध्यम से मिट्टी परीक्षण आधारित संतुलित और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन प्रथाओं की सिफारिश करता है.

सरकार ने उर्वरकों के सतत और संतुलित उपयोग को बढ़ावा दे कर, वैकल्पिक उर्वरकों को अपना कर, जैविक खेती को बढ़ावा दे कर और संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों को लागू कर के धरती के स्वास्थ्य को बचाने के लिए राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा शुरू किए गए जन आंदोलन का समर्थन करने के लिए जून, 2023 से “पीएम प्रोग्राम फोर रेस्टोरेशन, अवेयरनेस जनरेशन, नरिशमेंट एंड एमेलियोरेशन औफ मदर अर्थ (पीएम-प्रणाम)” को लागू किया है.

उक्त योजना के तहत पिछले 3 सालों  की औसत खपत की तुलना में रासायनिक उर्वरकों (यूरिया, डीएपी, एनपीके, एमओपी) की खपत में कमी के माध्यम से एक विशेष वित्तीय वर्ष में राज्य व केंद्र शासित प्रदेश द्वारा उर्वरक सब्सिडी का जो 50 फीसदी बचाया जाएगा, उसे अनुदान के रूप में उस राज्य/संघ राज्य क्षेत्र को दिया जाएगा.

इस के अलावा सरकार ने 1,500 रुपए प्रति मीट्रिक टन की दर से बाजार विकास सहायता (एमडीए) को मंजूरी दे दी है, ताकि जैविक उर्वरकों को बढ़ावा दिया जा सके. इस का मतलब है गोबरधन पहल के तहत संयंत्रों द्वारा उत्पादित खाद को प्रोत्साहन देना. इस पहल में विभिन्न बायोगैस और सीबीजी समर्थन योजनाएं व कार्यक्रम शामिल हैं. ये सभी हितधारक मंत्रालयों व विभागों से संबंधित हैं, जिन में पैट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की किफायती परिवहन के लिए सतत विकल्प (एसएटीएटी) योजना, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग का स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) को शामिल किया गया है. इन का कुल परिव्यय 1451.84 करोड़ रुपए (वित्तीय वर्ष 2023-24 से 2025-26) है, जिस में अनुसंधान संबंधी वित्त पोषण के लिए 360 करोड़ रुपए की निधि शामिल है.

मोबाइल और वैब एप्लिकेशन पर होगी पशुओं की गणना (Animal counting)

नई दिल्ली : पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी), मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार और मेजबान राज्य जम्मू और कश्मीर ने “जम्मूकश्मीर और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के राज्य और जिला नोडल अधिकारियों (एसएनओ/डीएनओ) के लिए सौफ्टवेयर (मोबाइल और वैब एप्लिकेशन/डैशबोर्ड) और नस्लों पर 21वीं पशु गणना का क्षेत्रीय प्रशिक्षण” आयोजित किया.

यह कार्यशाला श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में आयोजित की गई थी, जिस में इन राज्यों के राज्य/जिला नोडल अधिकारियों को 21वीं पशुधन गणना आयोजित करने के लिए नए लौंच किए गए मोबाइल और वैब एप्लिकेशन पर प्रशिक्षण दिया गया, जो सितंबरदिसंबर, 2024 के लिए निर्धारित है.

अलका उपाध्याय ने वर्चुअल माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था पर पशुधन क्षेत्र के प्रभाव और पशुधन क्षेत्र के उत्पादों के वैश्विक व्यापार के संदर्भ में भारत की स्थिति के बारे में जानकारी साझा की, वहीं भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग के सलाहकार (सांख्यिकी) जगत हजारिका ने कार्यशाला का उद्घाटन किया. इस अवसर पर जम्मू और कश्मीर सरकार के कृषि उत्पादन विभाग के सचिव जीए सोफी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के निदेशक डा. बीपी मिश्रा, भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग के सांख्यिकी प्रभाग के निदेशक वीपी सिंह और जम्मू और कश्मीर सरकार के पशुपालन विभाग के निदेशक डा. अल्ताफ अहमद लावे उपस्थित थे.

इस समारोह में गणमान्य व्यक्तियों के संबोधन ने उद्घाटन कार्यक्रम को विशिष्टता प्रदान की और पशुधन गणना के संचालन के लिए जिला और राज्य स्तरीय नोडल कार्यालयों के सफल प्रशिक्षण की दिशा में एक सहयोगी प्रयास के लिए मंच तैयार किया.

जगत हजारिका ने अपने संबोधन में इस कार्यशाला के महत्व पर प्रकाश डाला, सटीक और कुशल डाटा संग्रह के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए विभाग की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया. उन्होंने 21वीं पशुधन जनगणना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए सभी हितधारकों की सामूहिक जिम्मेदारी पर बल दिया, जो पशुपालन क्षेत्र की भविष्य की नीतियों और कार्यक्रमों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और उन से जनगणना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए नवीनतम तकनीकों से लाभ प्राप्त करने का आग्रह किया.

जीए सोफी ने कार्यशाला को संबोधित किया और बुनियादी स्तर पर व्यापक प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए पशुधन क्षेत्र के महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने एकत्र किए गए डाटा द्वारा भविष्य की पहल को आकार देने और क्षेत्र में चुनौतियों का समाधान करने में इन की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए जनगणना की कुशल योजनाओं और क्रियान्वयन का आह्वान किया.

अपने संबोधन में डा. अल्ताफ अहमद लावे ने पशुधन क्षेत्र में स्थायी अभ्यासों के एकीकरण पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि पशुधन गणना के बाद प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण और तार्किक उपयोग भविष्य की विभागीय नीतियों को तैयार करने और कार्यक्रमों को लागू करने के साथसाथ पशुपालन के क्षेत्र में पशुपालकों के लाभ के लिए नई योजनाएं बनाने और रोजगार सृजन की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेगा.

उन्होंने जम्मूकश्मीर सरकार द्वारा पूरे भारत में दुग्ध उत्पादन में सर्वोत्तम अभ्यासों को अपनाने पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे पशुधन किसानों के वित्तीय सशक्तीकरण में योगदान प्रदान करता है, उन की नकदी जरूरतों की प्रभावशाली रूप से पूर्ति करता है.

उन्होंने पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) द्वारा विकसित नवीनतम तकनीकों के बारे में भी बताया, जैसे कि सैक्स-सौर्टेड वीर्य का उपयोग. उन्होंने सभी राज्यों से आए प्रतिनिधियों का गर्मजोशी से स्वागत किया और उन्हें सफल प्रशिक्षण सत्र की शुभकामनाएं दीं.

कार्यशाला में कई सत्रों की सीरीज आयोजित की गई, जिस की शुरुआत पशुपालन सांख्यिकी प्रभाग द्वारा 21वीं पशुधन गणना के संक्षिप्त विवरण के साथ हुई, जिस के बाद बीपी मिश्रा और आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीएजीआर) की टीम ने गणना में शामिल की जाने वाली प्रजातियों की नस्लों के विवरण पर विस्तृत प्रस्तुति दी. सटीक नस्ल की पहचान के महत्व पर जोर दिया गया, जो विभिन्न पशुधन क्षेत्र कार्यक्रमों में उपयोग किए जाने वाले सटीक आंकड़े तैयार करने और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के राष्ट्रीय संकेतक ढांचे (एनआईएफ) के लिए महत्वपूर्ण है.

इस आयोजित कार्यशाला में 21वीं पशुधन गणना के सौफ्टवेयर के तरीकों और लाइव एप्लिकेशन पर विस्तृत सत्र शामिल थे. भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग की सौफ्टवेयर टीम ने राज्य और जिला नोडल अधिकारियों के लिए मोबाइल एप्लिकेशन और डैशबोर्ड सौफ्टवेयर पर प्रशिक्षण दिया. ये नोडल अधिकारी अपनेअपने जिला मुख्यालयों पर गणनाकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण का आयोजन करेंगे.
कार्यशाला का समापन वीपी सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ. अपने संबोधन में उन्होंने सभी गणमान्य व्यक्तियों और हितधारकों के प्रति उन की उपस्थिति के लिए आभार व्यक्त किया और कार्यशाला का समापन इस आशा के साथ किया कि गणना का काम सफल होगा.

महिला किसान (Women Farmers) खरीफ मौसम का लें फायदा

शहडोल : गृह विज्ञान वैज्ञानिक डा. अल्पना शर्मा ने खरीफ की फसल के लिए महिला किसानों को विषेश सलाह दी. उन्होंने बताया कि महिलाएं खरीफ सीजन में अपने घर के बाड़ी की जमीन में पोषण वाटिका सब्जियों का उत्पादन कर सकती हैं, जिस में खनिज तत्व एवं विटामिन मौजूद रहते हैं, जो हमारे शरीर के लिए काफी लाभदायक होते हैं. इस के साथ ही हरी पत्तेदार सब्जियां एवं कुछ फलियों वाली सब्जियों का भी उत्पादन कर सकते हैं व  इन का उत्पादन भी काफी सरल तरीके से किया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि लौकी, तुरई, खीरा आदि का भी उत्पादन कर सकते हैं. इन में खनिज तत्व एवं विटामिन भी काफी मात्रा में मौजूद होते हैं. बारिश के मौसम में गंदे पानी की वजह से कई तरह की बीमारियां होती हैं, खासतौर से उलटी होना, दस्त लगना आदि. इन से बचने के लिए उन्होंने बताया कि कुएं एवं तालाब का पानी पीने से बचें और हैंडपंप के पानी को छान कर व उबाल कर ही पानी को पीना चाहिए.

उन्होंने बताया कि कुछ जमीन जो खाली रहती हैं, किसी कारण उस में खेती नहीं कर पाते हैं, तो उस जमीन में कोदो या कुटकी की खेती करने का प्रयास करें. कोदोकुटकी में रेशा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, जो हमारे शरीर को कई रोगों से बचाता है. साथ ही, अन्य कई जानकारियों भी दीं.