खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing) में है असीमित संभावनाए

सबौर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के सम्मेलन कक्ष में संगरिया, पंजाब के संत लौंगोवाल विश्वविद्यालय के डीन डा. कमलेश प्रसाद और लुधियाना स्थित एग्रो-इंडस्ट्रियलिस्ट गगन मेहता एवं खाद्य प्रसंसकरण पोस्ट हारवेस्ट के वैज्ञानिकों के साथ एक बैठक आयोजित की गई. बैठक के प्रारंभ में डा. अनिल कुमार सिंह, निदेशक अनुसंधान ने परिचर्चा में उपस्थित सभी सदस्यों का स्वागत किया.

निदेशक अनुसंधान डा. अनिल कुमार सिंह ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में खाद्य प्रौद्योगिकी और फसल के बाद की तकनीक की वर्तमान स्थिति प्रस्तुत की. उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में कृषि उत्पादों का जीडीपी योगदान 0.80 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत जीडीपी योगदान से अधिक है.

उन्होंने कहा कि बिहार ही केवल ऐसा राज्य है, जिस ने कृषि और संबंधित क्षेत्र में विकास को प्रोत्साहित करने के लिए ‘चौथा कृषि रोडमैप’ तैयार किया है. खाद्य प्रसंस्करण यानी फूड प्रोसैसिंग और फसल के बाद की तकनीक राजस्व सृजन के लिए एक प्रमुख बाजार उन्मुख शाखा है.

बिहार में मूल्य संवर्धन की अपार संभावनाएं हैं. बिहार में 8 उत्पादों को भौगोलिक संकेत टैग (GI Tag) मिला है, जिन में से 5 कृषि उत्पादों को बीएयू, सबौर के वैज्ञानिकों की सहायता से भौगोलिक संकेत प्राप्त हुए हैं. चूंकि कई बागबानी और कृषि उत्पाद स्वाभाविक रूप से नष्ट हो जाते हैं, ऐसे में इन से मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने की आवश्यकता है.

डा. शमशेर अहमद, सहायक प्रोफैसर और खाद्य विकास केंद्र के नोडल अधिकारी ने एफडीसी, बीएयू, सबौर के अंतर्गत विकसित प्रयोगशालाओं, प्रशिक्षण केंद्रों और प्रसंस्करण इकाइयों की जानकारी दी.

बीएयू, सबौर के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में काहलगांव में एक कोल्ड स्टोरेज सुविधा स्थापित की गई है. विभाग के अन्य वैज्ञानिकों ने विशेषज्ञों से आगे की सुझाव प्राप्त करने के लिए अपने प्रस्तावित अनुसंधान कार्य प्रस्तुत किए.

डा. कमलेश प्रसाद ने वैज्ञानिकों के प्रस्तुतीकरण के दौरान कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए. सत्तू के पोषण संवर्धन और कैप्सिकम में कैप्साइसिन सामग्री बढ़ाने के सुझाव दिए. डा. गगन मेहता ने फसल के बाद के उत्पादों को विपणन स्तर पर ले जाने में रुचि व्यक्त की.

निदेशक अनुसंधान ने वैज्ञानिकों को उत्पाद विकसित करने और बिहार के किसानों के लाभ के लिए उन्हें जमीनी स्तर पर ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया.

प्रोबायोटिक्स उत्पादों, मिलेट उत्पादों और न्यूनतम प्रसंस्कृत उत्पादों के विकास पर विश्वविद्यालय में हो रहा है काम, जीआई उत्पादों को और मूल्य संवर्धित किया जा सकता है, ताकि वे अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच सकें. डा. डीआर सिंह, कुलपति, बीएयू, सबौर, डा. एमए अफताब ने समूह चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लिया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया.

वर्मी कंपोस्ट इकाई (Vermi Compost Unit) के लिए 50 हजार अनुदान

जयपुर : आधुनिक युग में खेती में रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है, जिस से मिट्टी की उर्वरता में कमी आ रही है. मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा वर्मी कंपोस्ट इकाई निर्माण की शुरुआत की गई है. इस से मिट्टी की जैविक व भौतिक स्थिति में सुधार लाया जा सकेगा. इस से मिट्टी की उर्वरता एवं पर्यावरण संतुलन बना रहेगा.

रासायनिक उर्वरकों से खेती की बढ़ती हुई लागत को कम करने और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पारंपरिक खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ाने के लिए राज्य सरकार द्वारा जैविक खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिस से फसलों को उचित पोषण मिलने पर उन की वृद्धि होगी एवं किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी.

कृषि आयुक्त कन्हैयालाल स्वामी ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट इकाई लगाने के लिए किसानों को इकाई लागत का 50 फीसदी या अधिकतम 50 हजार रुपए का अनुदान दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में 5,000 वर्मी कंपोस्ट इकाई लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

उन्होंने आगे बताया कि वर्मी कंपोस्ट इकाई लगाने के लिए किसान के पास एक स्थान पर न्यूनतम कृषि योग्य 0.4 हेक्टेयर भूमि का होना आवश्यक है. कृषक ‘राज किसान साथी’ पोर्टल या नजदीकी ई-मित्र केंद्र पर जा कर जनाधार के माध्यम से औनलाइन आवेदन कर सकते हैं. इस के लिए किसान के पास न्यूनतम 6 माह पुरानी जमाबंदी होना आवश्यक है.

उल्लेखनीय है कि जैविक खेती कम खर्च में उत्पादन बढ़ाने का साधन है. जैविक खाद द्वारा मिट्टी के साथ मनुष्य की सेहत भी दुरुस्त रहती है. और्गेनिक फार्मिंग से मिट्टी की संरचना बेहतर रहती है और पर्यावरण को भी लाभ होता है. इस से मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या और भूजल स्तर भी ठीक बना रहता है.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) में हिमाचल प्रदेश अव्वल

शिमला : फ्रांस के राष्ट्रीय कृषि, खाद्य एवं पर्यावरण अनुसंधान संस्थान (आईएनआरएई) के 4 वैज्ञानिकों के प्रतिनिधिमंडल ने 9 सितंबर को मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू से भेंट की. एलआईएसआईएस के उपनिदेशक प्रो. एलिसन मैरी लोकोंटो के नेतृत्व में टीम में शोधकर्ता प्रो. मिरेइल मैट, डा. एवलिन लोस्टे और डा. रेनी वैन डिस शामिल हैं. वह प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में हुई प्रगति के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हिमाचल प्रदेश के दौरे पर आए हैं.

बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में अग्रणी राज्य है. हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खेती के माध्यम से उगाए गए उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करने वाला देश का पहला राज्य है. प्रदेश में गेहूं 40 रुपए प्रति किलोग्राम और मक्का 30 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से खरीदा जा रहा है.

इस के अतिरिक्त गाय का दूध 45 रुपए प्रति लिटर और भैंस का दूध 55 रुपए प्रति लिटर की दर से खरीदा जा रहा है. उन्होंने प्राकृतिक खेती में उत्पाद प्रमाणन के महत्व पर बल दिया. उन्होंने कहा कि प्रदेश में सीटारा प्रमाणन प्रणाली शुरू की गई है, जिसे किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए लागू किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आगे कहा कि ‘हिम उन्नति योजना’ को राज्य में क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण के साथ लागू किया जा रहा है, जिस का उद्देश्य रसायनमुक्त उत्पादन और प्रमाणन करना है. इस के तहत लगभग 50,000 किसानों को शामिल करने और 2,600 कृषि समूह स्थापित करने की योजना है. इस के अलावा राज्य सरकार डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा देने और दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रही है.

आईएनआरएई के वैज्ञानिक 3 सप्ताह तक डा. वाईएस परमार बागबानी एवं औद्यानिकी विश्वविद्यालय, नौणी और राज्य के अन्य स्थानों का दौरा करेंगे. उन का दौरा यूरोपीय आयोग द्वारा वित्त पोषित एक्रोपिक्स परियोजना (अंतर्राष्ट्रीय सहनवप्रवर्तन गतिशीलता और स्थिरता के साक्ष्य की ओर कृषि पारिस्थितिकी फसल संरक्षण) का हिस्सा है, जिस का उद्देश्य कृषि पारिस्थितिकी फसल संरक्षण में सहनवप्रवर्तन को आगे बढ़ाना है.

प्रतिनिधिमंडल ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में राज्य सरकार के प्रयासों और सीटारा प्रमाणन प्रणाली की सराहना की. उन्होंने कहा कि आईएनआरएई इस प्रमाणन प्रणाली को अन्य देशों में अपनाने की संभावना तलाशेगा.

कृषि यंत्र (Agricultural Equipment) खरीद पर मिलेगा 50 फीसदी अनुदान

जयपुर: खेती–किसानी में कृषकों द्वारा बुआई, जुताई और बिजाई जैसे कठोर कार्य किये जाते हैं. इन्हीं कार्यो को सुगम बनाने के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा सब मिशन ऑन एग्रीकल्चरल मैकेनाइजेशन योजना के प्रावधानों के अन्तर्गत किसानों को आधुनिक कृषि यंत्रों पर अनुदान देकर लाभान्वित किया जायेगा, जिससे किसानों पर आर्थिक भार कम पडेगा और कृषि कार्य आसान हो जायेंगे साथ ही किसानों की आय में भी वृद्धि होगी.

कृषि आयुक्त कन्हैया लाल स्वामी ने बताया कि योजना के अन्तर्गत राज्य में लगभग 66 हजार किसानों को 200 करोड़ रूपये का अनुदान दिये जाने का प्रावधान रखा गया है. इसके लिए कृषक 13 सितम्बर तक ऑनलाईन आवेदन कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि कृषि यंत्रों पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, लघु, सीमान्त एवं महिला किसानों को ट्रेक्टर की बीएचपी के आधार पर लागत का अधिकतम 50 प्रतिशत तक तथा अन्य श्रेणी के कृषकों को लागत का अधिकतम 40 प्रतिशत तक अनुदान दिया जायेगा. लघु एवं सीमान्त श्रेणी के किसानों को ऑन-लाईन आवेदन से पूर्व जन आधार में लघु एवं सीमान्त श्रेणी जुड़वाना आवश्यक है, आवेदन के दौरान उक्त प्रमाण पत्र संलग्न करना होगा.

कृषि आयुक्त ने बताया कि राज किसान साथी पोर्टल पर ई-मित्र के माध्यम से जनाधार कार्ड, जमाबंदी की नकल, कृषि यंत्र का कोटेशन आदि दस्तावेजों की सहायता से ऑन-लाईन आवेदन कर सकते हैं. किसानों को राज्य में प्रचलित ट्रैक्टर संचालित सभी प्रकार के कृषि यंत्र जैसे रोटावेटर, थ्रेसर, कल्टीवेटर, बंडफार्मर, रीपर, सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, डिस्क हेरो, प्लॉउ आदि यंत्रों पर अनुदान दिया जायेगा. किसान द्वारा कृषि यंत्रों को पंजीकृत फर्म से खरीदने तथा सत्यापन के बाद अनुदान उनके जनाधार से जुड़े बैंक खाते में हस्तान्तरित किया जायेगा.

एक जन आधार पर होगा एक आवेदन

एक किसान को एक प्रकार के कृषि यंत्र पर तीन वर्ष की कालावधि में केवल एक बार अनुदान दिया जायेगा. किसानों को वित्तीय वर्ष में एक ही कृषि यंत्र पर अनुदान दिया जायेगा. प्रशासनिक स्वीकृति जारी करने से पूर्व खरीदे गये पुराने कृषि यंत्रों पर अनुदान नही दिया जायेगा.

एक जन आधार द्वारा एक ही आवेदन स्वीकार होगा कृषि यंत्रों पर अनुदान के लिए किसान के नाम भूमि और ट्रेक्टर चलित यंत्र पर अनुदान के लिए ट्रेक्टर का रजिस्ट्रेशन आवेदक किसान के नाम होना आवश्यक है.

पशुपालकों को मिलेगा एक लाख रुपए तक बिना ब्याज के ऋण

जयपुर : सहकारिता राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गौतम कुमार दक ने पिछले दिनों कहा कि प्रदेश सरकार मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा के नेतृत्व में किसानों और पशुपालकों की समृद्धि और कल्याण के लिए कृतसंकल्प है और इसी सोच को साकार करने के लिए राजस्थान सहकारी गोपाल क्रेडिट कार्ड ऋण योजना पोर्टल की शुरुआत की गई है.

नेहरू सहकार भवन में आयोजित समारोह में पोर्टल की शुरुआत करते हुए मंत्री गौतम कुमार दक ने कहा कि देश में पहली बार राजस्थान प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले गोपालक किसान परिवार को एक लाख रुपए तक का अल्पकालीन ब्याजमुक्त ऋण एक वर्ष की अवधि के लिए उपलब्ध कराया जाएगा. गोपालक किसान को समय पर ऋण चुकाने पर किसी प्रकार का ब्याज नहीं देना होगा.

सहकारिता मंत्री गौतम कुमार ने कहा कि गोपालक किसान परिवारों को गायभैंस के लिए शैड, खेली निर्माण एवं चारा व बांटा सहित आवश्यक उपकरण खरीदने के लिए पैसों की कमी रहती थी, जिस से वह गोपालन से मिल सकने वाला पूरा लाभ नहीं ले पाता था. इसी को ध्यान में रखते हुए गोपालक किसान को ब्याजमुक्त ऋण की सुविधा उपलब्ध कराई गई है.

मंत्री गौतम कुमार दक ने कहा कि ऋण वितरण को पारदर्शी बनाने और गोपालक परिवार को ऋण प्राप्त करने में किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसलिए ऋण आवेदन से ले कर स्वीकृति की प्रक्रिया को औनलाइन माध्यम से संपादित किया जाएगा. गोपालक किसान ई-मित्र केंद्र या संबंधित ग्राम सेवा सहकारी समिति के माध्यम से ऋण के लिए आवेदन कर सकता है. साथ ही, गोपालक किसान को प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति का सदस्य होना अनिवार्य है.

सहकारिता मंत्री गौतम कुमार ने कहा कि प्रदेश के अधिकाधिक गोपालक किसानों को गोपाल क्रेडिट कार्ड योजना के तहत ऋण उपलब्ध कराने के लिए दुग्ध संघ एवं केंद्रीय सहकारी बैंकों के संयुक्त तत्वावधान में शिविरों का आयोजन किया जाएगा, ताकि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किए गए 5 लाख किसानों को ऋण उपलब्ध कराने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके.

उन्होंने इस अवसर पर उपस्थित अधिकारियों से कहा कि योजना का अधिकाधिक लाभ पहुंचाने के लिए इस का प्रचारप्रसार किया जाए. शासन सचिव, सहकारिता शुचि त्यागी, रजिस्ट्रार, सहकारिता अर्चना सिंह, प्रबंध निदेशक आरसीडीएफ सुषमा अरोडा, अतिरिक्त रजिस्ट्रार (प्रथम) राजीव लोचन शर्मा, प्रबंध निदेशक अपेक्स बैंक संजय पाठक सहित सहकारिता विभाग और आरसीडीएफ और सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग के अधिकारी उपस्थित थे.

गैरबासमती चावल किस्मों के निर्यात को बढ़ावा

नई दिल्ली : वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने आईआरआरआई दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आईएसएआरसी) के साथ मिल कर “गैरबासमती चावल की संभावित किस्मों और चावल के मूल्य वर्धित उत्पादों की रूपरेखा” पर 29 अगस्त, 2024 को नई दिल्ली में एक कार्यशाला का आयोजन किया.

इस कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों के भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग जर्मप्लाज्म के साथ कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) के उच्च गुणवत्ता वाले सुगंधित, पोषक तत्वयुक्त चावल की किस्मों की पहचान करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए 2 अग्रणी अनुसंधान परियोजनाओं, “गैरबासमती चावल की व्यापक अनाज और पोषण गुणवत्ता प्रोफाइलिंग” और “चावल और चावल आधारित खाद्य प्रणालियों से मूल्यवर्धित उत्पाद” के परिणाम प्रदर्शित किए गए.

“चावल और चावल आधारित खाद्य प्रणालियों से मूल्यवर्धित उत्पाद” नामक परियोजना का उद्देश्य पोषक तत्वों से  भरपूर चावल मूसली, साबुत अनाज चावल कुकीज पौप्ड चावल, चावल के टुकड़े और तत्काल उपमा जैसे नवीन, स्वास्थ्यवर्धक चावल आधारित उत्पाद बनाना है.

एपीडा द्वारा समर्थित ये महत्वपूर्ण परियोजनाएं वाराणसी में आईआरआरआई के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र में चावल मूल्य संवर्धन प्रयोगशाला में अत्याधुनिक उत्कृष्टता केंद्र में संचालित की जाती हैं. इस कार्यक्रम के दौरान आईआरआरआई ने देशभर में संभावित गैरबासमती चावल की किस्मों की रूपरेखा प्रस्तुत की और वैश्विक बाजार क्षमता वाले मूल्यवर्धित उत्पादों का प्रदर्शन किया.

वाणिज्य विभाग के अपर सचिव, राजेश अग्रवाल ने अपने मुख्य भाषण में गैरबासमती चावल की संभावित किस्मों पर केंद्रित अनुसंधान के लिए एपीडा और आईआरआरआई के संयुक्त प्रयासों को स्वीकार किया और उन की सराहना की. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इस संयुक्त पहल में बड़ी संभावनाएं हैं और गैरबासमती चावल की पहचानी गई किस्मों में न केवल महत्वपूर्ण निर्यात क्षमता है, बल्कि कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स जैसे स्वास्थ्य लाभ भी हैं और यह जलवायु अनुकूल है. उन्होंने इन किस्मों की निर्यात संभावना और विपणन क्षमता का दोहन करने के लिए गैरबासमती चावल किस्मों के मूल्य संवर्धन और ब्रांडिंग पर भी ध्यान आकर्षित किया.

एपीडा के अध्यक्ष, अभिषेक देव ने देश में चावल उद्योग के महत्व, मूल्यवर्द्धन की जरूरत और स्थिरता व वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार लाने के लिए अनुसंधान पर कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की. उन्होंने चावल निर्यात बढ़ाने और मूल्य श्रंखला में सभी हितधारकों को लाभ पहुंचाने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता भी व्यक्त की. इस के अलावा उन्होंने चावल निर्यात और चावल से बने उत्पादों को बढ़ाने के लिए रणनीतियां विकसित करने के शुरुआती प्रयास पर बल दिया.

एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव ने आईएसएआरसी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि ये परियोजनाएं न केवल स्वस्थ भोजन विकल्पों की बढ़ती मांग का जवाब देती हैं, बल्कि मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने के लिए पारंपरिक चावल की किस्मों का भी उपयोग करती हैं.”

एपीडा की पहलों की सफलता के आधार पर हितधारकों के साथ रणनीतिक सहयोग, औद्योगिक हितधारकों द्वारा लक्षित विपणन प्रयासों के साथसाथ, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार पहुंच का विस्तार करने में महत्वपूर्ण होगा, जिस से प्रीमियम अर्थव्यवस्था में योगदान होगा और गैरबासमती श्रेणी के तहत निर्यात संभावना बढ़ेगी.

एपीडा के समर्थन ने इन परियोजनाओं की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिस ने आईएसएआरसी को अग्रणी प्रगति करने में सक्षम बनाया है और जो भारत के चावल उद्योग के भविष्य को आकार देगा. कम जीआई चावल की किस्मों और पोषक तत्वों से भरपूर मूल्यवर्धित उत्पादों को विकसित करने का संयुक्त दृष्टिकोण भारत की निर्यात क्षमताओं को बढ़ावा देने और कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के भीतर महत्वपूर्ण आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए तैयार है.

फसल की जानकारी MPKISAN App से दर्ज कर सकेंगे किसान

सीहोर : किसान निश्चिंत हो कर अपनी फसल की जानकारी MPKISAN App के माध्यम से दर्ज कर सकेंगे. किसान “मेरी गिरदावरी-मेरा अधिकार” में अब इस जानकारी का उपयोग फसल हानि, न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना, भावांतर योजना, किसान क्रेडिट कार्ड और कृषि ऋण में किया जाएगा. किसान की इस जानकारी का आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एवं पटवारी से सत्यापन होगा.

“मेरी गिरदावरी-मेरा अधिकार” में किसान को यह सुविधा उपलब्ध करवाई गई है कि वे अपने खेत से ही स्वयं फसल की जानकारी एमपीकिसान एप पर दर्ज कर अपनेआप को रजिस्टर सकते हैं. इस एप को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है.

किसान एप पर लौग इन कर फसल स्वघोषणा, दावा आपत्ति औप्शन पर क्लिक कर अपने खेत को जोड़ सकते हैं. खाता जोड़ने के लिए प्लस औप्शन पर क्लिक कर जिला/तहसील/ग्राम/खसरा आदि का चयन कर एक या अधिक खातों को जोड़ा जा सकता है. खाता जोड़ने के बाद खाते के समस्त खसरा की जानकारी एप में उपलब्ध होगी. उपलब्ध खसरा की जानकारी में से किसी भी खसरे पर क्लिक करने पर एआई के माध्यम से जानकारी उपलब्ध होगी.

किसान के सहमत होने पर एक क्लिक से फसल की जानकारी को दर्ज किया जा सकेगा. संभावित फसल की जानकारी से असहमत होने पर खेत में बोई गई फसल की जानकारी खेत में उपस्थित हो कर लाइव फोटो के साथ दर्ज की जा सकती है.

फसलों में कीटरोग नियंत्रण के लिए अपनाएं एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन तकनीक

शिवपुरी : भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, मुरैना द्वारा दोदिवसीय आईपीएम ओरिएंटेशन प्रशिक्षण कार्यक्रम पिछले दिनों कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी में आयोजित किया गया.

कार्यक्रम का उद्घाटन वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी के डा. पुनीत कुमार, अतिथि के रूप में उपसंचालक, कृषि, यूएस तोमर और केंद्र के प्रभारी अधिकारी सुनीत कुमार कटियार द्वारा किया गया.

केंद्र के प्रभारी अधिकारी सुनीत कटियार द्वारा आईपीएम की विभिन्न तकनीक जैसे सस्य, यांत्रिक, जैविक और रासायनिक विधियों का क्रमिक उपयोग और महत्ता के बारे में बताया. आईपीएम के महत्व, आईपीएम के सिद्धांत एवं उस के विभिन्न आयामों सस्य, यांत्रिक जैसे येलो स्टिकी, ब्लू स्टिकी, फैरोमौन ट्रैप, फलमक्खी जाल, विशिष्ट ट्रैप, ट्राइकोडर्मा से बीजोपचार के उपयोग के बारे में और जैविक विधि, नीम आधारित एवं अन्य वानस्पतिक कीटनाशक और रासायनिक आयामों के इस्तेमाल के विषय में विस्तार से बताया गया.

उन्होंने आगे कहा कि किसान फसलों में रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं, जिस से मनुष्यों में तमाम तरह की बीमारियां जैसे कैंसर इत्यादि बहुत तेजी से बढ़ी है. इसलिए हमें किसानों को जागरूक करना है कि रासायनिक कीटनाशकों को अनुशंसित मात्रा में ही उपयोग करें.

वनस्पति संरक्षण अधिकारी प्रवीण कुमार यदहल्ली द्वारा जिले में चूहे का प्रकोप एवं नियंत्रण और फौलआर्मी वर्म के प्रबंधन, मित्र एवं शत्रु कीटों की पहचान के बारे में बताया गया.

सहायक वनस्पति संरक्षण अधिकारी अभिषेक सिंह बादल द्वारा जिले की प्रमुख फसलों के रोग और कीट व प्रबंधन, मनुष्य पर होने वाले कीटनाशकों का दुष्प्रभाव और कीटनाशकों का सुरक्षित और विवेकपूर्ण उपयोग, साथ ही साथ केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति द्वारा अनुमोदित रसायन का कीटनाशकों के लेवल एवं कलर कोड पर आधारित उचित मात्रा में ही प्रयोग करने का सुझाव दिया. साथ ही, भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के एनपीएसएस (नेशनल पेस्ट सर्विजिलेंस सिस्टम) एप के उपयोग एवं महत्व की जानकारी दी गई.

कार्यक्रम के दौरान केंद्र के अधिकारियों द्वारा आईपीएम प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया. जागरूकता के लिए किसानों को फैरोमौन ट्रैप, ल्यूर, जैविक कीटरोग नियंत्रण के लिए उपयोगी सामग्री जैसे ब्यूवेरिया बेसियाना, माइकोराइजा, ट्राइकोडरमा, फल छेदक कीट नियंत्रण के लिए विशेष फैरोमौन ट्रैप इत्यादि भी सैंपल के रूप में दिए गए.

प्रशिक्षण समन्वयक डा. एमके भार्गव, वरिष्ठ वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान) द्वारा समन्वित कीटरोग नियंत्रण के आयामों के साथसाथ प्राकृतिक खेती की ओर भी जागरूकता के बारे में बतलाया गया. वैज्ञानिक (पौध संरक्षण) जेसी गुप्ता द्वारा भी प्राकृतिक खेती में फसल सुरक्षा घटकों की जानकारी दी गई, जिस में आईपीएम के विभिन्न आयामों का प्रदर्शन किया गया.

कार्यक्रम के दूसरे दिन किसानों को खेत भ्रमण करा कर कृषि पारिस्थितिकी तंत्र विश्लेषण के बारे में बताया गया. कार्यक्रम में 70 से अधिक प्रगतिशील किसानों और राज्य कृषि कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया.

29 अगस्त को ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी पर वृक्षारोपण भी किया गया, जिस में आंवला, नीम एवं बकाइन के पौधे रोपित किए गए.

गौपालन किसानों के लिए लाभकारी

झाबुआ : महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने पिछले दिनों ग्राम पंचायत बलोला के ग्राम मातासुला बारिया में 23.32 लाख रुपए की लागत से बन रही “श्री कृष्ण गोशाला” का शुभारंभ किया. उन्होंने गोशाला परिसर में संचालक व अन्य नागरिकों के साथ “एक पेड़ मां के नाम” अभियान के अंतर्गत पौध रोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया.

महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने कहा कि गाय हर किसान को पालनी चाहिए. वह हम सब की पालक है. वह पौष्टिक दूध तो देती ही है, साथ ही साथ उस का गोबर भी हमारे लिए उपयोगी होता है. वह जहां बैठती है, उस के आसपास का वातावरण भी शुद्ध कर देती है.

उन्होंने आगे कहा कि गाय को प्राचीन भारत और वर्तमान समय में भी समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. प्रदेश सरकार गोशालाओं का निर्माण करा कर गायपालन को बढ़ावा दे रही है.

मंत्री निर्मला भूरिया ने कहा कि कृषि क्षेत्र में किसानों के लिए गौपालन लाभदायक माना जाता है. गाय के गोबर का उपयोग खेतों में उर्वरक के रूप में भी किया जाता है. इस के अलावा गोबर को सुखाया जाता है और ईंधन के काम में लाया जाता है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि फसलों के लिए गोमूत्र सब से अच्छा उर्वरक है. गाय का घी और गोमूत्र का उपयोग कई आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में भी किया जाता है.

इस अवसर पर वरिष्ठ जनप्रतिनिधि छीतु सिंह मेड़ा, जिला पंचायत सदस्य वालसिंह मसानिया, ओंकार डामोर, चेनसिंह बारिया, किरन बेन, सरपंच हिंगली बाई, किशोर शाह सहित बड़ी संख्या में गांव वाले और अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे.

मध्य प्रदेश को फिर मिला “सोया प्रदेश” का ताज

इंदौर : मध्य प्रदेश ने सोयाबीन उत्पान में अपने निकटतम प्रतियोगी राज्यों महाराष्ट्र और राजस्थान को पीछे छोड़ते हुए फिर से ”सोयाबीन प्रदेश” बनने का ताज हासिल कर लिया है. भारत सरकार के जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश 5.47 मिलियन टन सोयाबीन उत्पादन के साथ पहले नंबर पर आ गया है. देश के कुल सोयाबीन उत्पादन में मध्य प्रदेश का योगदान 41.92 फीसदी है. महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है, जबकि राजस्थान तीसरे नंबर पर.

पिछले 2 सालों में मध्य प्रदेश में सोयाबीन उत्पादन में कमी आने से मध्य प्रदेश पिछड़ गया था. वर्ष 2022-23 में महाराष्ट्र 5.47 मिलियन टन उत्पादन के साथ पहले स्थान पर था और देश के कुल सोयाबीन उत्पादन में 42.12 फीसदी का योगदान था, जबकि मध्य प्रदेश 5.39 मिलियन टन के साथ दूसरे नंबर पर था.

इस के पहले साल 2021-22 में भी महाराष्ट्र 6.20 मिलियन टन उत्पादन के साथ पहले स्थान पर था और देश के सोयाबीन उत्पादन में 48.7 फीसदी का योगदान था, जबकि मध्य प्रदेश 4.61 मिलियन टन के साथ दूसरे नंबर पर था.

प्रदेश में सोयाबीन का रकबा साल 2022-23 की अपेक्षा साल 2023-24 में 1.7 फीसदी बढ़ा है और क्षेत्रफल पिछले साल 5975 हजार हेक्टेयर से बढ़ कर साल 2023-24 में 6679 हेक्टेयर हो गया है. सोयाबीन का क्षेत्रफल बढ़ने से उत्पादन भी बढ़ा. पिछले साल 2022-23 में सोयाबीन उत्पादन 6332 हजार मीट्रिक टन से बढ़ कर साल 2023-24 में 6675 हजार मीट्रिक टन हो गया.

पिछले कुछ सालों में सोयाबीन उत्पादन और क्षेत्रफल में उतारचढ़ाव होता रहा. सोयाबीन के क्षेत्रफल में साल 2018-19 की तुलना में साल 2019-20 में 14.30 फीसदी की वृद्धि हुई. सोयाबीन क्षेत्रफल साल 2018-19 में 5019 हजार हेक्टेयर था, जो साल 2019-20 में बढ़ कर 6194 हजार हेक्टेयर हो गया. इसी दौरान सोयाबीन का उत्पादन साल 2018-19 में 5809 हजार मीट्रिक टन था, जो बढ़ कर साल 2019-20 में कम हो कर 3856 मीट्रिक टन हो गया.