आदर्श मछुआरा गांव (Model Fisherman Village) का विकास 

मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) अन्य बातों के साथसाथ एकीकृत आधुनिक तटीय मत्स्यन गांवों (इंटीग्रेटेड मौडर्न कोस्टल फिशिंग विल्लेजस) के विकास के लिए तटीय राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को सहायता प्रदान करती है.

हर एक एकीकृत तटीय मत्स्यन गांव के विकास के लिए अनुमानित  इकाई लागत केंद्र और संबंधित राज्य सरकार के बीच 60:40 के आधार पर बांटी जाती है और केंद्र शासित प्रदेशों के मामले में भारत सरकार 100 फीसदी इकाई लागत प्रदान करती है.

पीएमएमएसवाई के अंतर्गत कुल 11 एकीकृत आधुनिक तटीय गांवों के विकास के लिए 7,756.46 लाख रुपए के निवेश के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है, जिन में  केरल में 6,106.61 लाख रुपए की लागत से नौ तटीय गांव,  लक्षद्वीप में 899.85 लाख रुपए की लागत से एक तटीय गांव और पश्चिम बंगाल में 750 लाख रुपए की लागत से एक तटीय गांव शामिल हैं.

चूंकि यह योजना केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों के बीच लागत को आपस में बांट के आधार पर पीएमएमएसवाई की गैरलाभार्थी उन्मुख गतिविधियों के रूप में चलाई जाती है, इसलिए इस योजना के अंतर्गत लाभार्थियों को कोई प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता प्रदान नहीं दी जाती है.

इस के अलावा,पीएमएमएसवाई के अंतर्गत, मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन,  पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के परामर्श से क्लाईमेट रेसीलिएंट कोस्टल फिशरमन विल्लेजस  के रूप में विकास के लिए तटरेखा के करीब स्थित कुल 100 तटीय मछुआरा गांवों की पहचान की है, ताकि उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत मछुआरा गांव बनाया जा सके.

इस कार्यक्रम के लिए राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी), हैदराबाद को एक नोडल एजेंसी बनाया गया है और वर्तमान वित्त वर्ष में पीएमएमएसवाई के अंतर्गत पहचान किए गए 100 तटीय गांवों के विकास के लिए एनएफडीबी के प्रस्ताव को 200 करोड़ रुपए की कुल लागत से मंजूरी दी गई है.

इस के साथ ही, पहचान किए गए तटीय मछुआरा गांवों में  विकसित की गई आवश्यकता आधारित मात्स्यिकी सुविधाओं में फिश ड्राईंग यार्ड, प्रोसैसिंग सेंटर, फिश मार्केट, फिशिंग जेट्टी, आइस प्लांट, कोल्ड स्टोरेज और आपातकालीन बचाव सुविधाएं जैसी सामान्य सुविधाएं शामिल हैं.

यह कार्यक्रम सी वीड कल्टीवेशन, आर्टिफिश्यल रीफ्स, सी रेंचिंग, हरित ईंधन (ग्रीन फ्युल) को बढ़ावा देने, मछुआरों और फिशिंग वेसेल्स के लिए सेफ्टी और सुरक्षा उपायों और ओरनामेंटल फिशरीस जैसी वैकल्पिक आजीविका गतिविधियों को अपनाने जैसी पहलों के माध्यम से क्लाइमेट रेसीलिएंट फिशरीस को भी बढ़ावा देता है.

इस कार्यक्रम में बीमा, आजीविका और पोषण सहायता, किसान क्रेडिट कार्ड और पहचान किए गए तटीय गांवों में रहने वाले पात्र मछुआरों तक केसीसी कवरेज जैसी अन्य गतिविधियों की भी परिकल्पना की गई है.

पीएमएमएसवाई के अंतर्गत क्लाईमेट रेसीलिएंट कोस्टल फिशरमन विल्लेजस यानी आदर्श मछुआरा गांवे के रूप में तटीय राज्यों में से गुजरात में 8, महाराष्ट्र में 15, दमन व दीव में 1, पुदुच्चेरी में 2, ओडिशा में 18, आंध्रप्रदेश में 15, लक्षद्वीप में 2, तमिलनाडु में 16, कर्नाटक में 5, केरल में 6, अंडमाननिकोबार में 5, पश्चिम बंगाल में 5 और गोवा में 2 गांवो की पहचान की गई है.

कृषि विस्तार योजना (Agricultural Extension Scheme) से किसानों को लाभ

विस्तार परियोजना (वर्चुअली इंटीग्रेटेड सिस्टम टू एक्सेस एग्रीकल्चरल रिसोर्सेज) का उद्देश्य प्लेटफार्मों पर विश्वसनीय, सत्यापित और नए संसाधनों को एकीकृत कर के कृषि के लिए एक एकीकृत, संघीय डिजिटल ईकोसिस्टम विकसित करना है.

यह किसान फीडबैक को शामिल करने के लिए दोतरफा संचार को सक्षम करते हुए डिजिटल समाधानों की मापनीयता, पहुंच और समावेशिता को बढ़ाने पर केंद्रित है. यह केंद्रराज्य सम्मलेन को बढ़ावा देने, हितधारकों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने और आईसीएआर संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के प्रयासों के साथ मिलकर के,  कृषि विस्तार के लिए मजबूत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देता है.

इस का लक्ष्य किसानों को कार्यवाही योग्य जानकारी के साथ सशक्त बनाना, सहयोग को सुव्यवस्थित करना और डिजिटल कृषि विस्तार पहलों को लंबे समय तक सस्टेनेबल बनाए रखना हैं.

मौजूदा कृषि विस्तार प्रणाली का डिजिटीकरण और इस का दायरा काफी हद तक बढ़ाने और हर किसान को फसल उत्पादन, विपणन, मूल्य और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और जलवायु स्मार्ट कृषि प्रथाओं, मौसम सलाह आदि पर उच्च गुणवत्ता वाली सलाहकार सेवाओं तक पहुंचाने का काम करता है. साथ ही, ये सलाहकार सेवाएं कृषि और उस से संबंधित क्षेत्रों से जुड़ी सभी सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं जिस से किसानों को लाभ होता है.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि उन की तकनीकी और सामग्री समीक्षा समितियों को नेटवर्क पर लाया जा सके और छोटे पायलटों पर काम शुरू किया जा सके.वर्तमान में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग मौजूदा ‘विस्तार  परियोजना’ का  कार्यान्वयन कर रहा है.

विस्तार परियोजना  का उद्देश्य किसानों को नईनई जानकारी तक पहुंच प्रदान करने के लिए नेटवर्क के जरिए सभी पहलों और समाधानों के साथ एकीकरण करना है. इस में जमीनी स्तर पर तैनात एआई  सक्षम चैटबौट का लाभ उठाना और बाद में एग्रीस्टैक  के साथ एकीकरण शामिल है.

विस्तार परियोजना के प्रयासों में डिजिटल बौट्स पर एक्सटेंशन कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण शामिल है. इसे वीडियो तैयार करने के कौशल को बढ़ाने और किसानों को चरणबद्ध तरीके से आगे प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, जमीनी स्तर पर आवश्यक जानकारी तक पहुंचने के लिए, उन्नत आईटी  उपकरणों को संभालने के लिए, फ्रंट लाइन एक्सटेंशन वर्कर्स को प्रशिक्षण आयोजित करने के लिए, मौजूदा भागीदारी और नेटवर्क स्वयंसेवकों के माध्यम से और सरल बनाया जा सकता है.

उन्नत फसल विविधीकरण (Crop Diversification) पर प्रशिक्षण

उदयपुर : 6 फरवरी, 2025 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत फसल विविधीकरण परियोजना के तहत “सतत कृषि की क्षमता को बढ़ाने हेतु उन्नत फसल विविधीकरण रणनीतियों” पर दो दिवसीय विस्तार अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत हुई.

कार्यक्रम में कृषि अधिकारियों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने सतत कृषि और फसल विविधीकरण के नवीन दृष्टिकोणों पर विचारविमर्श किया जाएगा. यह प्रशिक्षण कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण और खाद्य सुरक्षा जैसी बढ़ती चुनौतियों का समाधान करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया है. इस का मुख्य उद्देश्य अधिकारियों को उन्नत ज्ञान और रणनीतियों से सुसज्जित करना है, ताकि वे फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर कृषि उत्पादकता बढ़ाने और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने में योगदान कर सकें.

कार्यक्रम में डा.अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान ने प्रशिक्षण के उद्देश्यों की जानकारी दी. उन्होंने विविधीकृत फसल प्रणालियों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया, जिस से मृदा स्वास्थ्य में सुधार होगा, एकल फसल पर निर्भरता कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि होगी. साथ ही, उन्होंने फसल विविधीकरण में खरपतवार प्रबंधन की उन्नत तकनीकों पर भी विस्तार से चर्चा करी.

इस कार्यक्रम में परियोजना प्रभारी डा. हरि सिंह ने सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने में फसल विविधीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने पारंपरिक कृषि ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के समावेश से कृषि प्रणालियों को अधिक सक्षम और लचीला बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

डा. एचएल बैरवा, ने पर्यावरण अनुकूल और लाभकारी विविधीकृत उद्यानिकी में फसल विविधीकरण पर चर्चा करी. डा. एचएल बैरवा ने किसानों को विभिन्न फसलों को उद्यानिकी फसलों के साथ एकीकृत करने के आर्थिक और पारिस्थितिक लाभों के बारे में बताया. उन्होंने फलोत्पादन के 10 आयाम बताए जिस से किसानों की आय व रोजगार में वृद्धि हो सके.

फसल विविधीकरण (Crop Diversification)

डा. लतिका व्यास, ने फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने में कृषि विज्ञान केंद्रों की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करी. उन्होंने अधिकारियों को उन्नत कृषि तकनीकों के प्रभावी स्थानांतरण की विभिन्न विधियों का प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया, जिस से वे किसानों को नवाचारों और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें.

कार्यक्रम में उपस्थित मृदा वैज्ञानिक डा. सुभाष मीणा, ने कहा कि लगातार एक ही फसल उगाने से मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिस से उत्पादकता प्रभावित होती है. साथ ही, उन्होंने फसल चक्र, मिश्रित फसल प्रणाली और जैविक खादों के उपयोग पर भी जोर दिया.

इस दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएगें, जिन में विस्तार अधिकारियों को जलवायु अनुकूलन,  मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, समेकित कृषि प्रणाली, नीतिगत ढांचे और सरकारी पहल व्याख्यान व व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाएगा.

मिट्टी की सेहत को सुधारने पर चर्चा करेंगे देशभर के मृदा वैज्ञानिक

उदयपुर : 5 फरवरी, 2025  को मृदा संसाधन मानचित्रण और प्रबंधन की नवीनतम तकनीक पर आधारित 21 दिवसीय शीतकालीन प्रशिक्षण उदयपुर व नागपुर केंद्रों पर आरंभ हुआ. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा घोषित राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर व नागपुर में आयोजित इस प्रशिक्षण में देशभर के 50 से ज्यादा मृदा वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं.

क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर में आयोजित उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक थे, जबकि नागपुर केंद्र के समारोह में मुख्य अतिथि परिमल सिंह, परियोजना निदेशक, नानाजी देशमुख कृषि संजीवनी प्रकल्प (पोकरा) महाराष्ट्र थे. इस समारोह में नागपुर केंद्र औनलाइन जुड़ा.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि देश को आजाद हुए 78 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन किसान आज भी पारंपरिक विधियों से कृषि व इस के मूलाधार मिट्टी को संरक्षित किए हुए है. आजादी के बाद हाल के वर्षों में तकनीक के मामले में भारत ने अद्वितीय सफलता हासिल की है. इन में एआई, रिमोट सेंसिंग, भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), डिजिटल मृदा मानचित्रण (डीएसएम) जैसे उपकरण एवं मृदा संसाधन प्रबंधन की जटिलताओं से निबटने के लिए स्थानिक डाटा का उपयोग करते हैं.

ये प्रौद्योगिकियों मिट्टी के गुणों के विस्तृत विश्लेषण, मिट्टी की प्रक्रियाओं की मौडलिंग और स्थाई भूमि प्रबंधन के लिए रणनीतियों के विकास की सुविधा प्रदान करती हैं. उन्होंने कहा कि मैन्युअल से उच्च तकनीक के जरीए खेती करना किसान के लिए चुनौतीपूर्ण काम है, लेकिन हमारे देश के युवा वैज्ञानिकों की टीम दोनों में तालमेल बिठाने में सक्षम है. इस से किसान व कृषि क्षेत्र में तरक्की सुनिश्चित है.

विशिष्ट अतिथि, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक एवं क्षेत्रीय केंद्र, नई दिल्ली के प्रमुख डा. जेपी शर्मा ने कहा कि यह कार्यक्रम मृदा सर्वेक्षण, भूआकृति पहचान और भूस्थानिक उपकरणों के बारे में व्यावहारिक जानकारी देगा.

जल संसाधन एवं पर्यावरण इंजीनियरिंग, भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के प्रो. शेखरमुद्दू ने कहा कि इस प्रशिक्षण में प्रतिभागियों को मृदा संसाधन मानचित्रण और प्रबंधन में मूल्यवान कौशल प्राप्त होगा. इस से वे मृदा आधारित विकास कार्यक्रमों और टिकाऊ भूमि प्रबंधन में प्रभावी रूप से योगदान करने में सक्षम होंगे.

निदेशक, नागपुर, डा. एनजी पाटिल ने कहा कि मृदा या मिट्टी एक बेहद महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जो स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र को आधार प्रदान करता है. साथ ही कृषि, वानिकी और पर्यावरणीय स्थिरता की आधारशिला के रूप में काम करता है.

प्रधान वैज्ञानिक एवं पाठ्यक्रम प्रमुख क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर के डा. आरपी शर्मा ने बताया कि इस  दीर्घकालिक प्रशिक्षण में न केवल राजस्थान, बल्कि पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और ओड़िसा से मृदा वैज्ञानिक अपनेअपने क्षेत्र की मिट्टी की संरचना व संरक्षण की दिशा में अपनाई जा रही तकनीक पर गहन विचारविमर्श करेंगे, ताकि किसानों के लिए तैयार की जाने वाली पौलिसी को नई दिशा दी जा सके.

राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर के प्रमुख एवं  प्रधान वैज्ञानिक डा. बीएल मीना ने अतिथियों का स्वागत किया, जबकि डा. बृजेश यादव, वैज्ञानिक ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

प्रशिक्षण में इन पर रहेगा फोकस

मृदा-भूमि रूप संबंधों और मृदा निर्माण पर उन के प्रभाव को समझना, आधुनिक मृदा सर्वेक्षण तकनीकों और भूमि संसाधन सूची विधियों की खोज, रिमोट सेंसिंग (आरएस), जीआईएस और डिजिटल मृदा मानचित्रण (डीएसएम) में जानकारी बढ़ाना, गूगल अर्थ इंजन और भूसांख्यिकी में व्यावहारिक प्रशिक्षण, मिट्टी और जल संरक्षण, भूमि उपयोग नियोजन और टिकाऊ प्रबंधन में भूस्थानिक तकनीकों का प्रयोग आदि.

इस के अलावा मृदा निर्माण के कारक एवं प्रक्रियाओं को समझना, क्षेत्र भ्रमण, मिट्टी की प्रोफाइल का अध्ययन व गुणों का अवलोकन, मृदा संसाधन प्रबंधन में उपग्रह डाटा और उन का अनुप्रयोग, मृदा सर्वेक्षण डेटा व्याख्या.

भूमि संसाधन सूची के लिए मृदा सर्वेक्षण तकनीक को समझना, मृदा एवं जल संरक्षण और भूमि उपयोगनियोजन आदि.

मछुआरों के लिए कल्याणकारी योजनओं (Welfare Schemes) का शुभारंभ

मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा भारत में मात्स्यिकी क्षेत्र के स्थायी और जिम्मेदार विकास और मछुआरों के कल्याण के माध्यम से नीली क्रांति (ब्लू रेवोल्यूशन) लाने के लिए सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 20,050 करोड़ रुपए के निवेश से एक प्रमुख योजना ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ (पीएमएमएसवाई) का कार्यान्वयन  किया जा रहा है.

इस योजना में मछुआरों और मत्स्य किसानों के लिए कई कल्याणकारी गतिविधियों की परिकल्पना की गई है, जिस में विभाग ने पीएमएमएसवाई योजना के तहत वेस्सल कम्युनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम के नैशनल रोलआउट प्लान को मंजूरी दी है, जिस में 364 करोड़ रुपए के कुल खर्च के साथ सभी तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों  में 1,00,000 फिशिंग वेसल्स पर ट्रांसपोंडर की स्थापना शामिल है.

नाव मालिकों को ट्रांसपोंडर के लिए मुफ्त में सहायता प्रदान की जाती है, जिस में टू वे कम्यूनिकेशन की सुविधा उपलब्ध है और संपूर्ण एक्सक्लूसिव इकोनोमिक जोन को कवर करते हुए किसी भी आपात स्थिति के दौरान छोटे टेक्स्ट मैसेज भेजे जा सकते हैं. यह मछुआरों को समुद्री सीमा के पास आने या उसे पार करने पर अलर्ट भी करता है.

इस के अलावा अन्य गतिविधियों जैसे समुद्री राज्यों/संघ  राज्य क्षेत्रों में इंटीग्रेटेड कोस्टल फिशिंग, गांवों का विकास, जिस का उद्देश्य स्थायी मत्स्य प्रथाओं के माध्यम से पर्यावरणीय नुकसान को कम करते हुए तटीय मछुआरों को आर्थिक और सामाजिक लाभ प्रदान  करना है.

18 से 70 साल की आयु समूह में आकस्मिक मृत्यु या स्थायी पूर्ण शारीरिक अक्षमता  पर 5 लाख रुपए, आकस्मिक स्थायी आंशिक शारीरिक अक्षमता पर 2.50 लाख रुपए और दुर्घटनावश अस्पताल में भरती होने पर 25,000 रुपए का बीमा लाभ प्रदान करना, 18 से 60 साल की आयु समूह के लिए मछली पकड़ने पर प्रतिबंध/मंद अवधि के दौरान मत्स्य संसाधनों के संरक्षण के लिए सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े सक्रिय पारंपरिक मछुआरों के परिवारों के लिए आजीविका और पोषण संबंधी सहायता देना, जिस में  मछली पकड़ने पर प्रतिबंध/मंद अवधि के  दौरान  3 महीनों के लिए प्रति मछुआरे  को 3,000 रुपए की सहायता प्रदान की जाती है, जिस में लाभार्थी का योगदान 1,500 रुपए  होता है और इस के लिए सामान्य राज्य के लिए अनुपात 50:50, उत्तरपूर्वी राज्यों और हिमालयी राज्यों  के  लिए  80:20, जबकि केंद्र शासित प्रदेशों के लिए सौ फीसदी है.

वर्तमान में चल रही पीएमएमएसवाई के तहत मछुआरों और मत्स्य किसानों को माली रूप से सशक्त बनाने और उन की बारगैनिंग पावर बढ़ाने के लिए मत्स्य किसान उत्पादक संगठनों/फिश फार्मर प्रोड्यूसर और्गेनाइजेशन (एफएफपीओ) की स्थापना के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करने का प्रावधान है, जो मछुआरों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करता है.

मत्स्यपालन विभाग ने अब तक 544.85 करोड़ रुपए की कुल परियोजना लागतपर कुल 2,195 एफएफपीओ की स्थापना के लिए मंजूरी दी है, जिस में 2,000 मत्स्य सहकारिताओं को एफएफपीओ का रूप देने और 195 नए एफएफपीओ गठित करना शामिल है.

इस के अलावा, मछुआरों और मत्स्यपालकों द्वारा संस्थागत ऋण तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए साल 2018-19 से किसान क्रेडिट कार्ड की  सुविधा को मात्स्यिकी क्षेत्र तक विस्तारित किया गया है और आज तक मछुआरों और मत्स्यपालकों को 4,50,799 केसीसी कार्ड दिए गए हैं.

राष्ट्रीय गोकुल मिशन (Rashtriya Gokul Mission)

‘राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ योजना दूध उत्पादन और बोवाइन पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. इस योजना के कार्यान्वयन और पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा किए गए अन्य उपायों से देश में दूध उत्पादन साल 2014-15 में 146.31 मिलियन टन से बढ़ कर साल 2023-24 में 239.30 मिलियन टन हो गया है.

पिछले 10 सालों के दौरान 63.55 फीसदी की वृद्धि हुई है. देश में बोवाइन पशुओं की कुल उत्पादकता साल 2014-15 में प्रति पशु प्रति वर्ष 1,640 किलोग्राम से बढ़ कर साल 2023-24 में प्रति पशु प्रति वर्ष 2,072 किलोग्राम हो गई है. यह 26.34 फीसदी की वृद्धि है, जो विश्व में किसी भी देश द्वारा बोवाइन पशुओं की उत्पादकता में हुई सब से अधिक बढ़ोतरी है.

देशी और नौनडिस्क्रिप्ट गोपशुओं की उत्पादकता वर्ष 2014-15 में प्रति पशु प्रति वर्ष 927 किलोग्राम से बढ़ कर साल 2023-24 में प्रति पशु प्रति वर्ष 1,292 किलोग्राम हो गई है, जो 39.37 फीसदी  की वृद्धि है.

भैंसों की उत्पादकता साल 2014-15 में प्रति पशु प्रति वर्ष 1,880 किलोग्राम से बढ़ कर साल 2023-24 में प्रति पशु प्रति वर्ष 2,161 किलोग्राम हो गई है, जो 14.94 फीसदी  की वृद्धि है.

राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत दूध उत्पादन और बोवाइन पशुओं की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए कई सफलतापूर्वक योजनाओं का कार्यान्वयन किया जा रहा है.

राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग दूध उत्पादन और देशी नस्लों सहित बोवाइन पशुओं की उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए कृत्रिम गर्भाधान कवरेज का विस्तार कर रहा है. अब तक 8.32 करोड़ पशुओं को कवर किया गया है, 12.20 करोड़ कृत्रिम गर्भाधान किए गए हैं, जिस से 5.19 करोड़ किसान लाभान्वित हुए हैं.

संतति परीक्षण और नस्ल चयन: इस कार्यक्रम का उद्देश्य देशी नस्लों के सांडों सहित उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले सांडों का उत्पादन करना है. संतति परीक्षण को गोपशु की गिर, साहीवाल नस्लों और भैंसों की मुर्राह, मेहसाणा की नस्लों के लिए चलाया जा रहा है.

नस्ल चयन कार्यक्रम के अंतर्गत गोपशु की राठी, थारपारकर, हरियाणा, कांकरेज की नस्ल और भैंस की जाफराबादी, नीली रवि, पंढारपुरी और बन्नी नस्लों को शामिल किया गया है. अब तक 3,988 उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले सांडों का उत्पादन किया गया है और उन्हें वीर्य उत्पादन के लिए शामिल किया गया है.

इनविट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक का कार्यान्वयन : देशी नस्लों के उत्कृष्ट पशुओं का प्रसार करने के लिए विभाग ने 22 आईवीएफ प्रयोगशालाएं स्थापित की हैं. आईवीएफ तकनीक की आनुवंशिक उन्‍नयन में महत्‍वपूर्ण भूमिका है और यह कार्य एक ही पीढ़ी में संभव है. इस के अतिरिक्‍त किसानों को उचित दरों पर तकनीक उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने आईवीएफ मीडिया शुरू किया है.

सेक्ससौर्टेड वीर्य उत्पादन : विभाग ने गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में स्थित 5 सरकारी वीर्य स्टेशनों पर सैक्स सौर्टेड वीर्य उत्पादन सुविधाएं स्थापित की हैं. 3 निजी वीर्य स्टेशन भी सैक्ससौर्टेड वीर्य खुराक का उत्पादन कर रहे हैं. अब तक उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले सांडों से 1.15 करोड़ सैक्ससौर्टेड वीर्य खुराकों का उत्पादन किया गया है और उसे कृत्रिम गर्भाधान के लिए उपलब्ध कराया गया है.

जीनोमिक चयन : गोपशु और भैंसों के आनुवंशिक सुधार में तेजी लाने के लिए विभाग ने देश में जीनोमिक चयन शुरू करने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई एकीकृत जीनोमिक चिप विकसित की है – देशी गोपशुओं के लिए गौ चिप और भैंसों के लिए महिष चिप.

ग्रामीण भारत में बहुद्देश्यीय कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (मैत्री): इस योजना के तहत मैत्री को किसानों के द्वार पर गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित और सुसज्जित किया जाता है. पिछले 3 सालों के दौरान राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत 38,736 मैत्री को प्रशिक्षित और सुसज्जित किया गया है.

सैक्ससौर्टेड वीर्य का उपयोग कर के त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम : इस कार्यक्रम का उद्देश्य 90 फीसदी सटीकता के साथ बछियों का उत्पादन करना है, जिस से नस्ल सुधार और किसानों की आय में वृद्धि हो. किसानों को सुनिश्चित गर्भधारण के लिए सैक्ससौर्टेड वीर्य की लागत के 50 फीसदी तक सहायता मिलती है.

इस कार्यक्रम से अब तक 341,998 किसान लाभान्वित हो चुके हैं. सरकार ने किसानों को उचित दरों पर सैक्ससौर्टेड वीर्य उपलब्ध कराने के लिए देशी रूप से विकसित सैक्ससौर्टेड वीर्य तकनीक शुरू की है.

इनविट्रो फर्टिलाइजेश तकनीक का उपयोग कर त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम : इस तकनीक का उपयोग बोवाइन पशुओं के तीव्र आनुवंशिक उन्नयन के लिए किया जाता है और आईवीएफ तकनीक अपनाने में रुचि रखने वाले किसानों को प्रत्येक सुनिश्चित गर्भावस्था पर 5,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराई जाती है.

देशी बोवाइन नस्लों के विकास और संरक्षण के लिए साल 2014-15 और साल 2024-25 (दिसंबर, 2024 तक) के बीच कार्यान्वयन एजेंसियों को 4,442.87 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता जारी की गई और इस के मुकाबले साल 2004-05 और साल 2013-14 के बीच गोपशु और भैंस विकास के लिए 983.43 करोड़ रुपए की राशि जारी की गई. इस योजना का लाभ दूध उत्पादन और बोवाइन पशुओं की उत्पादकता में वृद्धि के रूप में डेयरी से जुड़े किसानों को मिल रहा है.

बजट में मत्स्यपालन के लिए बड़ा ऐलान,50 लाख लोगों को होगा फायदा

साल 2025-2026 के लिए लोकसभा में पेश किए गए केंद्रीय बजट में इस बार मत्स्यपालन क्षेत्र के लिए अब तक की सब से अधिक कुल 2,703.67 करोड़ रुपए की सालाना राशि आवंटित की गई. वित्तीय वर्ष 2025-2026 के लिए यह आवंटित राशि पिछले साल 2024-25 के दौरान 2,616.44 करोड़ की तुलना में 3.3 फीसदी अधिक है. इस में साल 2025-26 के दौरान प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के लिए 2,465 करोड़ रुपए का आवंटन  शामिल है, जो पिछले वर्ष 2024-25 के दौरान योजना के लिए किए गए आवंटन (2,352 करोड़ रुपए) की तुलना में 4.8 फीसदी अधिक है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में जलीय कृषि और समुद्री भोजन निर्यात में अग्रणी के रूप में भारत की उपलब्धि पर जोर दिया. यह बजट रणनीतिक रूप से वित्तीय समावेशन को बढ़ाने, सीमा शुल्क को कम कर के किसानों पर वित्तीय बोझ कम करने और समुद्री मत्स्यपालन के विकास को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है.

बजट 2025-26 में लक्षद्वीप और अंडमाननिकोबार द्वीप समूहों पर विशेष ध्यान देने के साथ विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र और खुले समुद्र से मत्स्यपालन के स्थायी उपयोग के लिए रूपरेखा को सक्षम करने पर जोर दिया गया है. चूंकि भारत में 20 लाख वर्ग किलोमीटर का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र और 8,118 किलोमीटर की लंबी तटरेखा है, जिस की अनुमानित समुद्री क्षमता 53 लाख टन है और 50 लाख लोगों की आजीविका समुद्री मत्स्यपालन क्षेत्र पर निर्भर है.

यह भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, विशेष रूप से अंडमाननिकोबार और लक्षद्वीप द्वीप समूह के आसपास उच्च मूल्यवान ट्यूना और ट्यूना मछली जैसी प्रजातियों के उपयोग के लिए विशाल गुंजाइश और क्षमता प्रदान करता है. सरकार क्षमता विकास के साथ गहरे समुद्र में मछली पकड़ने को बढ़ावा देगी और संसाधन विशिष्ट मछली पकड़ने वाले जहाजों के अधिग्रहण का समर्थन करेगी.

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मत्स्यपालन के विकास का लक्ष्य 6.60 लाख वर्ग किलोमीटर आर्थिक क्षेत्र का उपयोग करना होगा, जिस में 1.48 लाख टन की समुद्री मत्स्यपालन क्षमता होगी, जिस में ट्यूना मत्स्यपालन के लिए 60,000 टन की क्षमता भी शामिल है.

इस उद्देश्य के लिए ट्यूना क्लस्टर के विकास को अधिसूचित किया गया है. ट्यूना मछली पकड़ने वाले जहाजों में औनबोर्ड प्रसंस्करण और फ्रीजिंग सुविधाओं की स्थापना, गहरे समुद्र में ट्यूना मछली पकड़ने वाले जहाजों के लिए लाइसैंस व अंडमाननिकोबार प्रशासन द्वारा एकल खिड़की मंजूरी जैसी गतिविधियों के अवसरों का उपयोग करने पर जोर दिया गया है.

समुद्री पिंजरा संस्कृति में समुद्री शैवाल, सजावटी और मोती की खेती पर भी जोर दिया गया है. लक्षद्वीप द्वीप समूह में मत्स्यपालन के विकास का लक्ष्य इस के 4 लाख वर्ग किलोमीटर के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र  और 4200 वर्ग किलोमीटर के लैगून क्षेत्र का उपयोग होगा, जिस में 1 लाख टन की क्षमता होगी, जिस में ट्यूना मछलीपालन के लिए 4,200 टन की क्षमता भी शामिल है.

इस उद्देश्य के लिए समुद्री शैवाल क्लस्टर के विकास को अधिसूचित किया गया है और लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा शुरू से अंत तक मूल्य श्रृंखला के साथ द्वीपवार क्षेत्र आवंटन और पट्टे की नीति, महिला स्वयं सहायता समूह का गठन और आईसीएआर संस्थान के माध्यम से क्षमता निर्माण जैसी गतिविधियां की गई हैं. निजी उद्यमियों और लक्षद्वीप प्रशासन के सहयोग से ट्यूना मछली पकड़ने और सजावटी मछलीपालन में अवसरों का उपयोग करने पर जोर दिया गया है.

इस बार केंद्रीय बजट 2025 में भारत सरकार ने मछुआरों, किसानों, प्रसंस्करणकर्ताओं और अन्य मत्स्यपालन हितधारकों के लिए ऋण पहुंच बढ़ाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) की ऋण सीमा को 3 लाख से बढ़ा कर 5 लाख रुपए कर दिया है.

इस कदम का उद्देश्य वित्तीय संसाधनों के प्रवाह को सुव्यवस्थित करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि क्षेत्र की कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक धन आसानी से उपलब्ध हो. बढ़ी हुई ऋण उपलब्धता आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने में सहायता करेगी और ग्रामीण विकास और आर्थिक स्थिरता को मजबूत करेगी.

वैश्विक समुद्री भोजन बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने और हमारी निर्यात टोकरी में मूल्यवर्धित उत्पादों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विनिर्माण के लिए जमे हुए मछली पेस्ट (सुरीमी) और नकली केंकड़ा मांस की छड़ें, सुरीमी केंकड़ा पंजा उत्पाद, झींगा एनालौग, लौबस्टर एनालौग और अन्य सुरीमी एनालौग या नकली उत्पाद आदि जैसे मूल्यवर्धित समुद्री खाद्य उत्पादों का निर्यात पर मूल सीमा शुल्क को 30 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा है.

इस के अलावा भारतीय झींगापालन उद्योग को विश्व स्तर पर मजबूत करने के लिए एक्वाफीड के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण इनपुट मछली हाइड्रोलाइजेट पर आयात शुल्क 15 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी  करने की घोषणा की गई है. इस से उत्पादन लागत कम होने और किसानों के लिए राजस्व और लाभ मार्जिन बढ़ने की उम्मीद है, जिस से निर्यात में सुधार और वृद्धि होगी.

भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख ‘सूर्योदय क्षेत्रों’ में से एक कहे जाने वाले भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र ने अपनी छाप छोड़ी है. कृषि के अंतर्गत संबद्ध क्षेत्रों में उत्पादन के मूल्य वित्त वर्ष 2014-15 से 2022-23 तक में 9.0 फीसदी की उच्चतम औसत वार्षिक दशकीय वृद्धि दर्ज करते हुए बहुत स्वस्थ गति से बढ़ रहा है. इस विकास की कहानी को वैश्विक मछली उत्पादन में 8 फीसदी  हिस्सेदारी और 184.02 लाख टन (2023-24) के रिकौर्ड उच्च मछली उत्पादन के साथ दूसरे सब से बड़े मछली उत्पादक देश के रूप में भारत की वैश्विक रैंकिंग द्वारा चिन्हित किया गया है.

भारत साल 2023-24 में 139.07 लाख टन के साथ जलीय कृषि उत्पादन में दूसरे स्थान पर है और 60,524 करोड़ रुपए के कुल निर्यात मूल्य के साथ दुनिया में शीर्ष झींगा उत्पादक और समुद्री खाद्य निर्यातक देशों में से एक है. यह क्षेत्र हाशिए पर मौजूद और कमजोर समुदायों के 30 मिलियन से अधिक लोगों को स्थायी आजीविका प्रदान करता है. ‘सब का साथ, सब का विकास, सब का विश्वास, सब का प्रयास’ के आदर्श वाक्य के साथ भारत सरकार साल 2047 तक विकसित भारत की दिशा में प्रमुख चालक के रूप में मत्स्यपालन क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता दे रही है.

फूलों की खेती (Flower Farming) आमदनी बढ़ाए

यदि किसी काम को करने की लगन और मेहनत का जज्बा हो तो व्यक्ति अच्छीखासी आमदनी हासिल कर सकता है. यह सिद्ध कर के दिखाया है नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा के किसान उमाशंकर कुशवाहा ने.

फूलों की खेती कर के उमाशंकर ने पूरी गाडरवारा तहसील में अपना नाम रोशन किया है. उमाशंकर ने परंपरागत खेती से हट कर अपनी आमदनी के जरीए बढ़ाए हैं. वे अपने खेतों में फूलों की खेती कर के कई किस्म के फूल उगाते हैं. फूलों के साथसाथ मालाएं और गुलदस्ते बना कर बेचते हैं. साथ ही शादीब्याह, जन्मदिन जैसे मौकों पर फूलों से पंडालों की सजावट भी कुशलता के साथ करते हैं.

गाडरवारा में शक्कर नदी के पार कौड़या रोड पर उमाशंकर का फार्महाउस है, जिस में उन के चारों भाइयों के परिवार रहते हैं. वे लोग सब्जीभाजी की खेती के अलावा फूलों की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. उमाशंकर कुशवाहा बताते हैं कि उन के मामाजी भी सोहागपुर पिपरिया में फूलों की खेती करते थे. उन्हें देख कर ही उमाशंकर के मन में भी फूलों की खेती करने की चाहत हुई.

मुख्य रूप से गेंदा, नवरंगा और गैलार्डिया के फूलों की खेती करने वाले उमाशंकर का कहना है कि वे साल में 2 बार फूलों के बीज डाल कर फूलों की खेती करते हैं. वे जूनजुलाई में खेतों को अच्छी तरह से तैयार कर के गेंदे की पौध लगाते हैं.

देशी किस्म का गेंदा 90 से 100 दिनों में फूल देने लगता है, जबकि हाईब्रिड किस्म के गेंदे 50 से 60 दिनों में ही फूल देने लगते हैं. सितंबर से फरवरी तक गेंदे में अच्छी मात्रा में फूल निकलते हैं.

गरमी के मौसम में होने वाले फूलों नवरंगा और मांगरेट की बौनी किस्में अक्तूबर में बोई जाती हैं. फूलों के पौधों को रासायनिक खाद व उर्वरक के अलावा समयसमय पर कोराजन जैसे कीटनाशकों का इस्तेमाल भी करना पड़ता है.

नवरंगा की बोआई : नवरंगा फूल जिसे गैलार्डिया के नाम से भी जाना जाता है, को गरमी के फूलों का राजा कहा जाता है.

इसे बोने के लिए अक्तूबर में खेत की 2 बार जुताई के कर मिट्टी को भुरभुरी व समतल बना कर तकरीबन 3×1 मीटर की क्यारियां तैयार कर लेते हैं. क्यारियों में गोबर की सड़ी खाद डाल कर यूरिया, पोटाश और फास्फोरस भी डाला जाता है.

क्यारियों में अच्छी किस्म के फूल के बीज प्रति एकड़ 800 ग्राम से 1 किलोग्राम की मात्रा में 5 सेंटीमीटर गहरा बो देते हैं. बीज बोने के बाद ऊपर से सूखी घास डाल कर हलकी सिंचाई करते हैं.

क्यारियों में बीज बोने के 3 से 4 हफ्ते बाद खेत में लगाने के लिए पौध तैयार हो जाती है.

पौधों को शाम के समय लगाना अच्छा रहता है. हफ्ते में 2 से 3 दिन सिंचाई की जाती है. बीज बोने के 110 दिनों से 120 दिन में नवरंगा के फूल खिलने लगते हैं. इस में एक ही पौधे में बहुत सारे फूल लगते हैं.

कीटों की रोकथाम के लिए डायमेथियोट 30 ईसी दवा का छिड़काव समयसमय पर करते रहते हैं. फूलों की तोड़ाई का काम सुबह किया जाता है. फूलों पर पानी सींच कर उन्हें बांस की टोकरियों में पैक कर के बाहर भेजा जाता है. तोड़े गए फूलों को गीले कपड़े से ढक कर रखा जाता है. इन फूलों से आकर्षक गुलदस्ते और मालाएं बनाते हैं.

फूलों की खेती (Flower Farming)

5 लाख तक सालाना आमदनी : मौजूदा समय में उमाशंकर 1 एकड़ खेत में गेंदा, गुलाब, सेवंती वगैरह फूलों की खेती कर रहे हैं. फूल स्थानीय बाजारों में 30 से 50 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचने के साथ ही आर्डर पर बाहर भी भेजे जाते हैं. उन के परिवार के सदस्य फूलों की माला तैयार करते हैं, जो 5 रुपए से ले कर 20 रुपए में बिकती हैं.

आम दिनों में रोजाना तकरीबन 500 रुपए तक फूलों की बिक्री से आमदनी होती है, जो खास मौकों पर बढ़ कर 2 हजार रुपए तक हो जाती है. कई बार मांग ज्यादा होने पर वे गुलाब के फूल 100 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से नागपुर से मंगा कर 150 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बेच कर भी अतिरिक्त आमदनी कर लेते हैं.

1 एकड़ में की जा रही फूलों की खेती में साल भर में तकरीबन 1 लाख रुपए की लागत आती है और उस से उमाशंकर के परिवार को तकरीबन 5 लाख रुपए की आमदनी हो जाती है.

शादीब्याह में होती है अच्छी आमदनी : शादीब्याह के दौरान उमाशंकर फूलों से मंडप सजाने का काम भी करते हैं. विवाह मंडप के साथ जयमाला स्टेज सजाने का काम कर के वे रोजाना 5 से 20 हजार रुपए तक कमा लेते हैं. वे गांव के युवकों को भी रोजगार देते हैं.

कई बार तो शादी के सीजन में 4-5 जगहों पर मंडप सजाने का काम मिल जाता है. गांव के 2-3 युवकों को उन्होंने मंडप सजाने के काम में माहिर बना दिया है. काम ज्यादा होने पर वे गांव के इन युवकों की मदद ले कर उन्हें भी आमदनी कराते हैं.

इसी तरह जन्मदिन पार्टी, शादी की सालगिरह जैसे कार्यक्रमों के साथसाथ उन्हें सुहागरात की सेज सजाने का काम भी मिलता है. राजनीतिक या सार्वजनिक समारोहों में भी उन्हें फूलों की मालाएं और गुलदस्ते सप्लाई करने का आर्डर मिलता रहता है.

30 वर्षीय उमाशंकर कुशवाहा ने अपनी सूझबूझ से खेती को फायदे वाला काम साबित किया है. उमाशंकर से फूलों की खेती के में उन के मोबाइल नंबर 982694273 पर बात कर के जानकारी हासिल की जा सकती है.

रोजगार का जरीया बना मोमोज (Momos)

भारत के शहरों में मोमोज (Momos) बेचने के इतने ठेले हो गए हैं, जितने शायद ही किसी और देश में हों. भारत के नार्थईस्ट प्रदेशों में बिकने वाली यह डिश अब उत्तर भारत के हर छोटेबड़े शहरों में बिकने लगी है. ऐसे में मोमोज को बेचना एक अच्छा कारोबार हो गया है.

खास बात यह है कि इस को बनाना बेहद आसान है. ऐसे में कहीं भी भीड़भाड़ वाली जगह पर इस का बिजनैस किया जा सकता है.

मोमोज (Momos) एक लाजवाब रैसिपी है, जो स्टीम कर के बनाई जाती है और लाल मिर्च टमाटर की चटनी के साथ सर्व की जाती है. जिन लोगों को तीखा खाना पसंद है, वह इस को अपने ब्रेकफास्ट में शामिल कर सकते हैं. मोमोज (Momos) को बिना तेल डाले स्टीम से पकाया जाता है.

मोमोज (Momos) एक नेपाली, तिब्बती, भूटानी और भारतीय रैसिपी है, जिसे अब भारत में सब से ज्यादा पसंद और चाव के साथ खाया जाता है.

मोमोज (Momos) बनाने के लिए सब्जियों का इस्तेमाल अपनी पसंद के मुताबिक कर सकते हैं. मोमोज (Momos) बनाने के लिए आटे में हलका नमक होना चाहिए, क्योंकि मिक्सचर के अलावा चटनी में भी नमक डालते हैं और अगर आटे में नमक ज्यादा हो जाएगा तो मोमोज (Momos) खाने में अच्छा नहीं लगेगा. इसलिए मोमोज (Momos) बनाने के लिए आटे और मिक्सचर में नमक का प्रयोग अपने स्वाद के अनुसार ही करें.

मोमोज (Momos) बनाने के लिए सब्जियों को बारीक काटना है, ताकि यह मोमोज (Momos) में आसानी से भर जाए और स्टीम करते वक्त फटे नहीं. साथ ही, हलके हाथों से मोमोज (Momos) में चीजें भर कर हलके पानी लगे हाथों से बंद करना चाहिए.

मोमोज (Momos)  की एक प्लेट में 4 से 6 मोमोज होते हैं. इस की कीमत 20 रुपए से 120 रुपए प्रति प्लेट तक हो सकती है. मोमोज (Momos) को तैयार करने में सीजनल सब्जी का प्रयोग किया जाता है. जो सस्ती मिलती हैं. ऐसे में इस की लागत कम और बेचने वाले का मुनाफा बढ़ जाता है.

कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा को बेस्ट केवीके अवार्ड (Award)

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर एवं आईसीएआर-कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जोधपुर क्षेत्र 2 के अधीन कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा को कृषि में नवाचार के क्षेत्र में तकनीकी हस्तांतरण के माध्यम से कृषक समुदाय के बीच में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए बेस्ट केवीके अवार्ड हेतु नामित किया गया है.

यह पुरस्कार कृषि अनुसंधान, नवाचार, अभियांत्रिकी, पोषण और प्रौद्योगिकी में अद्वितीय रुझानों पर ध्यान केंद्रित करने वाला पांचवां अंतर्राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन- न्यूट्रिएंट-2025 (NUTRIENT-2025), जो कि एग्री मीट फाउंडेशन भारत द्वारा 20-21 फरवरी, 2025 के दौरान आइके गुजराल पंजाब तकनीक विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्थान भाई गुरूदास ग्रुप औफ इंस्टिट्यूट, संगरूर, पंजाब में दिया जाना प्रस्तावित है.

कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा देश का अग्रणीय ISO 9001:2015 प्रमाणित संस्थान है. साथ ही, केंद्र पर विभिन्न प्रदर्शन इकाइयां जैसे सिरोही बकरी, प्रतापधन मुरगी, डेयरी, चूजा पालन, वर्मी कंपोस्ट, वर्मी वाश, प्राकृतिक खेती इकाई, नर्सरी, नेपियर घास, वर्षा जल संरक्षण इकाई, बायोगैस, मछलीपालन, कम लागत से तैयार हाइड्रोपौनिक हरा चारा उत्पादन इकाई, आंवला, अमरूद एवं नींबू का मातृवृक्ष बगीचा, बीजोत्पादन एवं क्राप केफेटेरिया आदि के माध्यम से कृषक समुदाय के लिए समन्वित कृषि प्रणाली के उद्यम स्थापित कर, स्वरोजगार का सृजन एवं आजीविका को सुदृढ कर आत्मनिर्भर किया जा रहा है, जिस से किसानों का गांव से शहरों की ओर पलायन कम हुआ है.

कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा के तकनीकी सहयोग एवं मार्गदर्शन से जिले में 2 कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) क्रमशः भीलवाड़ा गोटरी प्राइड फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड़ एवं मीव किसान बाजार कृषक उत्पादक संगठन का सफल संचालन किया जा रहा है, जिस से कृषक समुदाय के फसल उत्पादन और अन्य कृषि उत्पादों का समय पर विपणन होने से आमदनी में इजाफा हुआ है.

कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा पर राष्ट्रीय जलवायु समुत्थान कृषि में नवप्रवर्तन (निक्रा), प्राकृतिक खेती, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन दलहन एवं तिलहन, अनुसूचित जनजाति परियोजना, पोषण संवेदी कृषि संसाधन और नवाचार (नारी) जनजातीय क्षेत्रों में ज्ञान प्रणाली और होम स्टेड कृषि प्रबंधन (क्षमता), मूल्य संवर्धन और प्रौद्योगिकी ऊष्मायन केंद्र (वाटिका) आदि परियोजनाओं के माध्यम से महिला किसानों, किसानों एवं ग्रामीण युवाओं का आर्थिक उत्थान किया जा रहा है.

कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा द्वारा समयसमय पर किसान मेलों, कृषकवैज्ञानिक संवाद, किसान गोष्ठी, जागरूकता कार्यक्रम, महत्वपूर्ण दिवस, प्रदर्शन, प्रक्षेत्र दिवस, प्रक्षेत्र परीक्षण आदि प्रसार गतिविधियों का आयोजन कर कृषि नवाचार की सफल तकनीकीयों का हस्तांतरण किया जा रहा है.

उपरोक्त उल्लेखनीय कार्यों को दृष्टिगत रखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा को बेस्ट केवीके अवार्ड से नवाजा गया.