पशुपालकों को मिलेगा एक लाख रुपए तक बिना ब्याज के ऋण

जयपुर : सहकारिता राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गौतम कुमार दक ने पिछले दिनों कहा कि प्रदेश सरकार मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा के नेतृत्व में किसानों और पशुपालकों की समृद्धि और कल्याण के लिए कृतसंकल्प है और इसी सोच को साकार करने के लिए राजस्थान सहकारी गोपाल क्रेडिट कार्ड ऋण योजना पोर्टल की शुरुआत की गई है.

नेहरू सहकार भवन में आयोजित समारोह में पोर्टल की शुरुआत करते हुए मंत्री गौतम कुमार दक ने कहा कि देश में पहली बार राजस्थान प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले गोपालक किसान परिवार को एक लाख रुपए तक का अल्पकालीन ब्याजमुक्त ऋण एक वर्ष की अवधि के लिए उपलब्ध कराया जाएगा. गोपालक किसान को समय पर ऋण चुकाने पर किसी प्रकार का ब्याज नहीं देना होगा.

सहकारिता मंत्री गौतम कुमार ने कहा कि गोपालक किसान परिवारों को गायभैंस के लिए शैड, खेली निर्माण एवं चारा व बांटा सहित आवश्यक उपकरण खरीदने के लिए पैसों की कमी रहती थी, जिस से वह गोपालन से मिल सकने वाला पूरा लाभ नहीं ले पाता था. इसी को ध्यान में रखते हुए गोपालक किसान को ब्याजमुक्त ऋण की सुविधा उपलब्ध कराई गई है.

मंत्री गौतम कुमार दक ने कहा कि ऋण वितरण को पारदर्शी बनाने और गोपालक परिवार को ऋण प्राप्त करने में किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसलिए ऋण आवेदन से ले कर स्वीकृति की प्रक्रिया को औनलाइन माध्यम से संपादित किया जाएगा. गोपालक किसान ई-मित्र केंद्र या संबंधित ग्राम सेवा सहकारी समिति के माध्यम से ऋण के लिए आवेदन कर सकता है. साथ ही, गोपालक किसान को प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति का सदस्य होना अनिवार्य है.

सहकारिता मंत्री गौतम कुमार ने कहा कि प्रदेश के अधिकाधिक गोपालक किसानों को गोपाल क्रेडिट कार्ड योजना के तहत ऋण उपलब्ध कराने के लिए दुग्ध संघ एवं केंद्रीय सहकारी बैंकों के संयुक्त तत्वावधान में शिविरों का आयोजन किया जाएगा, ताकि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किए गए 5 लाख किसानों को ऋण उपलब्ध कराने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके.

उन्होंने इस अवसर पर उपस्थित अधिकारियों से कहा कि योजना का अधिकाधिक लाभ पहुंचाने के लिए इस का प्रचारप्रसार किया जाए. शासन सचिव, सहकारिता शुचि त्यागी, रजिस्ट्रार, सहकारिता अर्चना सिंह, प्रबंध निदेशक आरसीडीएफ सुषमा अरोडा, अतिरिक्त रजिस्ट्रार (प्रथम) राजीव लोचन शर्मा, प्रबंध निदेशक अपेक्स बैंक संजय पाठक सहित सहकारिता विभाग और आरसीडीएफ और सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग के अधिकारी उपस्थित थे.

गैरबासमती चावल किस्मों के निर्यात को बढ़ावा

नई दिल्ली : वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने आईआरआरआई दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आईएसएआरसी) के साथ मिल कर “गैरबासमती चावल की संभावित किस्मों और चावल के मूल्य वर्धित उत्पादों की रूपरेखा” पर 29 अगस्त, 2024 को नई दिल्ली में एक कार्यशाला का आयोजन किया.

इस कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों के भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग जर्मप्लाज्म के साथ कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) के उच्च गुणवत्ता वाले सुगंधित, पोषक तत्वयुक्त चावल की किस्मों की पहचान करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए 2 अग्रणी अनुसंधान परियोजनाओं, “गैरबासमती चावल की व्यापक अनाज और पोषण गुणवत्ता प्रोफाइलिंग” और “चावल और चावल आधारित खाद्य प्रणालियों से मूल्यवर्धित उत्पाद” के परिणाम प्रदर्शित किए गए.

“चावल और चावल आधारित खाद्य प्रणालियों से मूल्यवर्धित उत्पाद” नामक परियोजना का उद्देश्य पोषक तत्वों से  भरपूर चावल मूसली, साबुत अनाज चावल कुकीज पौप्ड चावल, चावल के टुकड़े और तत्काल उपमा जैसे नवीन, स्वास्थ्यवर्धक चावल आधारित उत्पाद बनाना है.

एपीडा द्वारा समर्थित ये महत्वपूर्ण परियोजनाएं वाराणसी में आईआरआरआई के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र में चावल मूल्य संवर्धन प्रयोगशाला में अत्याधुनिक उत्कृष्टता केंद्र में संचालित की जाती हैं. इस कार्यक्रम के दौरान आईआरआरआई ने देशभर में संभावित गैरबासमती चावल की किस्मों की रूपरेखा प्रस्तुत की और वैश्विक बाजार क्षमता वाले मूल्यवर्धित उत्पादों का प्रदर्शन किया.

वाणिज्य विभाग के अपर सचिव, राजेश अग्रवाल ने अपने मुख्य भाषण में गैरबासमती चावल की संभावित किस्मों पर केंद्रित अनुसंधान के लिए एपीडा और आईआरआरआई के संयुक्त प्रयासों को स्वीकार किया और उन की सराहना की. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इस संयुक्त पहल में बड़ी संभावनाएं हैं और गैरबासमती चावल की पहचानी गई किस्मों में न केवल महत्वपूर्ण निर्यात क्षमता है, बल्कि कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स जैसे स्वास्थ्य लाभ भी हैं और यह जलवायु अनुकूल है. उन्होंने इन किस्मों की निर्यात संभावना और विपणन क्षमता का दोहन करने के लिए गैरबासमती चावल किस्मों के मूल्य संवर्धन और ब्रांडिंग पर भी ध्यान आकर्षित किया.

एपीडा के अध्यक्ष, अभिषेक देव ने देश में चावल उद्योग के महत्व, मूल्यवर्द्धन की जरूरत और स्थिरता व वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार लाने के लिए अनुसंधान पर कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की. उन्होंने चावल निर्यात बढ़ाने और मूल्य श्रंखला में सभी हितधारकों को लाभ पहुंचाने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता भी व्यक्त की. इस के अलावा उन्होंने चावल निर्यात और चावल से बने उत्पादों को बढ़ाने के लिए रणनीतियां विकसित करने के शुरुआती प्रयास पर बल दिया.

एपीडा के अध्यक्ष अभिषेक देव ने आईएसएआरसी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि ये परियोजनाएं न केवल स्वस्थ भोजन विकल्पों की बढ़ती मांग का जवाब देती हैं, बल्कि मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने के लिए पारंपरिक चावल की किस्मों का भी उपयोग करती हैं.”

एपीडा की पहलों की सफलता के आधार पर हितधारकों के साथ रणनीतिक सहयोग, औद्योगिक हितधारकों द्वारा लक्षित विपणन प्रयासों के साथसाथ, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार पहुंच का विस्तार करने में महत्वपूर्ण होगा, जिस से प्रीमियम अर्थव्यवस्था में योगदान होगा और गैरबासमती श्रेणी के तहत निर्यात संभावना बढ़ेगी.

एपीडा के समर्थन ने इन परियोजनाओं की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिस ने आईएसएआरसी को अग्रणी प्रगति करने में सक्षम बनाया है और जो भारत के चावल उद्योग के भविष्य को आकार देगा. कम जीआई चावल की किस्मों और पोषक तत्वों से भरपूर मूल्यवर्धित उत्पादों को विकसित करने का संयुक्त दृष्टिकोण भारत की निर्यात क्षमताओं को बढ़ावा देने और कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के भीतर महत्वपूर्ण आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए तैयार है.

फसल की जानकारी MPKISAN App से दर्ज कर सकेंगे किसान

सीहोर : किसान निश्चिंत हो कर अपनी फसल की जानकारी MPKISAN App के माध्यम से दर्ज कर सकेंगे. किसान “मेरी गिरदावरी-मेरा अधिकार” में अब इस जानकारी का उपयोग फसल हानि, न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना, भावांतर योजना, किसान क्रेडिट कार्ड और कृषि ऋण में किया जाएगा. किसान की इस जानकारी का आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एवं पटवारी से सत्यापन होगा.

“मेरी गिरदावरी-मेरा अधिकार” में किसान को यह सुविधा उपलब्ध करवाई गई है कि वे अपने खेत से ही स्वयं फसल की जानकारी एमपीकिसान एप पर दर्ज कर अपनेआप को रजिस्टर सकते हैं. इस एप को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है.

किसान एप पर लौग इन कर फसल स्वघोषणा, दावा आपत्ति औप्शन पर क्लिक कर अपने खेत को जोड़ सकते हैं. खाता जोड़ने के लिए प्लस औप्शन पर क्लिक कर जिला/तहसील/ग्राम/खसरा आदि का चयन कर एक या अधिक खातों को जोड़ा जा सकता है. खाता जोड़ने के बाद खाते के समस्त खसरा की जानकारी एप में उपलब्ध होगी. उपलब्ध खसरा की जानकारी में से किसी भी खसरे पर क्लिक करने पर एआई के माध्यम से जानकारी उपलब्ध होगी.

किसान के सहमत होने पर एक क्लिक से फसल की जानकारी को दर्ज किया जा सकेगा. संभावित फसल की जानकारी से असहमत होने पर खेत में बोई गई फसल की जानकारी खेत में उपस्थित हो कर लाइव फोटो के साथ दर्ज की जा सकती है.

फसलों में कीटरोग नियंत्रण के लिए अपनाएं एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन तकनीक

शिवपुरी : भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, मुरैना द्वारा दोदिवसीय आईपीएम ओरिएंटेशन प्रशिक्षण कार्यक्रम पिछले दिनों कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी में आयोजित किया गया.

कार्यक्रम का उद्घाटन वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी के डा. पुनीत कुमार, अतिथि के रूप में उपसंचालक, कृषि, यूएस तोमर और केंद्र के प्रभारी अधिकारी सुनीत कुमार कटियार द्वारा किया गया.

केंद्र के प्रभारी अधिकारी सुनीत कटियार द्वारा आईपीएम की विभिन्न तकनीक जैसे सस्य, यांत्रिक, जैविक और रासायनिक विधियों का क्रमिक उपयोग और महत्ता के बारे में बताया. आईपीएम के महत्व, आईपीएम के सिद्धांत एवं उस के विभिन्न आयामों सस्य, यांत्रिक जैसे येलो स्टिकी, ब्लू स्टिकी, फैरोमौन ट्रैप, फलमक्खी जाल, विशिष्ट ट्रैप, ट्राइकोडर्मा से बीजोपचार के उपयोग के बारे में और जैविक विधि, नीम आधारित एवं अन्य वानस्पतिक कीटनाशक और रासायनिक आयामों के इस्तेमाल के विषय में विस्तार से बताया गया.

उन्होंने आगे कहा कि किसान फसलों में रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं, जिस से मनुष्यों में तमाम तरह की बीमारियां जैसे कैंसर इत्यादि बहुत तेजी से बढ़ी है. इसलिए हमें किसानों को जागरूक करना है कि रासायनिक कीटनाशकों को अनुशंसित मात्रा में ही उपयोग करें.

वनस्पति संरक्षण अधिकारी प्रवीण कुमार यदहल्ली द्वारा जिले में चूहे का प्रकोप एवं नियंत्रण और फौलआर्मी वर्म के प्रबंधन, मित्र एवं शत्रु कीटों की पहचान के बारे में बताया गया.

सहायक वनस्पति संरक्षण अधिकारी अभिषेक सिंह बादल द्वारा जिले की प्रमुख फसलों के रोग और कीट व प्रबंधन, मनुष्य पर होने वाले कीटनाशकों का दुष्प्रभाव और कीटनाशकों का सुरक्षित और विवेकपूर्ण उपयोग, साथ ही साथ केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति द्वारा अनुमोदित रसायन का कीटनाशकों के लेवल एवं कलर कोड पर आधारित उचित मात्रा में ही प्रयोग करने का सुझाव दिया. साथ ही, भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के एनपीएसएस (नेशनल पेस्ट सर्विजिलेंस सिस्टम) एप के उपयोग एवं महत्व की जानकारी दी गई.

कार्यक्रम के दौरान केंद्र के अधिकारियों द्वारा आईपीएम प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया. जागरूकता के लिए किसानों को फैरोमौन ट्रैप, ल्यूर, जैविक कीटरोग नियंत्रण के लिए उपयोगी सामग्री जैसे ब्यूवेरिया बेसियाना, माइकोराइजा, ट्राइकोडरमा, फल छेदक कीट नियंत्रण के लिए विशेष फैरोमौन ट्रैप इत्यादि भी सैंपल के रूप में दिए गए.

प्रशिक्षण समन्वयक डा. एमके भार्गव, वरिष्ठ वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान) द्वारा समन्वित कीटरोग नियंत्रण के आयामों के साथसाथ प्राकृतिक खेती की ओर भी जागरूकता के बारे में बतलाया गया. वैज्ञानिक (पौध संरक्षण) जेसी गुप्ता द्वारा भी प्राकृतिक खेती में फसल सुरक्षा घटकों की जानकारी दी गई, जिस में आईपीएम के विभिन्न आयामों का प्रदर्शन किया गया.

कार्यक्रम के दूसरे दिन किसानों को खेत भ्रमण करा कर कृषि पारिस्थितिकी तंत्र विश्लेषण के बारे में बताया गया. कार्यक्रम में 70 से अधिक प्रगतिशील किसानों और राज्य कृषि कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया.

29 अगस्त को ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी पर वृक्षारोपण भी किया गया, जिस में आंवला, नीम एवं बकाइन के पौधे रोपित किए गए.

गौपालन किसानों के लिए लाभकारी

झाबुआ : महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने पिछले दिनों ग्राम पंचायत बलोला के ग्राम मातासुला बारिया में 23.32 लाख रुपए की लागत से बन रही “श्री कृष्ण गोशाला” का शुभारंभ किया. उन्होंने गोशाला परिसर में संचालक व अन्य नागरिकों के साथ “एक पेड़ मां के नाम” अभियान के अंतर्गत पौध रोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया.

महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने कहा कि गाय हर किसान को पालनी चाहिए. वह हम सब की पालक है. वह पौष्टिक दूध तो देती ही है, साथ ही साथ उस का गोबर भी हमारे लिए उपयोगी होता है. वह जहां बैठती है, उस के आसपास का वातावरण भी शुद्ध कर देती है.

उन्होंने आगे कहा कि गाय को प्राचीन भारत और वर्तमान समय में भी समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. प्रदेश सरकार गोशालाओं का निर्माण करा कर गायपालन को बढ़ावा दे रही है.

मंत्री निर्मला भूरिया ने कहा कि कृषि क्षेत्र में किसानों के लिए गौपालन लाभदायक माना जाता है. गाय के गोबर का उपयोग खेतों में उर्वरक के रूप में भी किया जाता है. इस के अलावा गोबर को सुखाया जाता है और ईंधन के काम में लाया जाता है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि फसलों के लिए गोमूत्र सब से अच्छा उर्वरक है. गाय का घी और गोमूत्र का उपयोग कई आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में भी किया जाता है.

इस अवसर पर वरिष्ठ जनप्रतिनिधि छीतु सिंह मेड़ा, जिला पंचायत सदस्य वालसिंह मसानिया, ओंकार डामोर, चेनसिंह बारिया, किरन बेन, सरपंच हिंगली बाई, किशोर शाह सहित बड़ी संख्या में गांव वाले और अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे.

मध्य प्रदेश को फिर मिला “सोया प्रदेश” का ताज

इंदौर : मध्य प्रदेश ने सोयाबीन उत्पान में अपने निकटतम प्रतियोगी राज्यों महाराष्ट्र और राजस्थान को पीछे छोड़ते हुए फिर से ”सोयाबीन प्रदेश” बनने का ताज हासिल कर लिया है. भारत सरकार के जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश 5.47 मिलियन टन सोयाबीन उत्पादन के साथ पहले नंबर पर आ गया है. देश के कुल सोयाबीन उत्पादन में मध्य प्रदेश का योगदान 41.92 फीसदी है. महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है, जबकि राजस्थान तीसरे नंबर पर.

पिछले 2 सालों में मध्य प्रदेश में सोयाबीन उत्पादन में कमी आने से मध्य प्रदेश पिछड़ गया था. वर्ष 2022-23 में महाराष्ट्र 5.47 मिलियन टन उत्पादन के साथ पहले स्थान पर था और देश के कुल सोयाबीन उत्पादन में 42.12 फीसदी का योगदान था, जबकि मध्य प्रदेश 5.39 मिलियन टन के साथ दूसरे नंबर पर था.

इस के पहले साल 2021-22 में भी महाराष्ट्र 6.20 मिलियन टन उत्पादन के साथ पहले स्थान पर था और देश के सोयाबीन उत्पादन में 48.7 फीसदी का योगदान था, जबकि मध्य प्रदेश 4.61 मिलियन टन के साथ दूसरे नंबर पर था.

प्रदेश में सोयाबीन का रकबा साल 2022-23 की अपेक्षा साल 2023-24 में 1.7 फीसदी बढ़ा है और क्षेत्रफल पिछले साल 5975 हजार हेक्टेयर से बढ़ कर साल 2023-24 में 6679 हेक्टेयर हो गया है. सोयाबीन का क्षेत्रफल बढ़ने से उत्पादन भी बढ़ा. पिछले साल 2022-23 में सोयाबीन उत्पादन 6332 हजार मीट्रिक टन से बढ़ कर साल 2023-24 में 6675 हजार मीट्रिक टन हो गया.

पिछले कुछ सालों में सोयाबीन उत्पादन और क्षेत्रफल में उतारचढ़ाव होता रहा. सोयाबीन के क्षेत्रफल में साल 2018-19 की तुलना में साल 2019-20 में 14.30 फीसदी की वृद्धि हुई. सोयाबीन क्षेत्रफल साल 2018-19 में 5019 हजार हेक्टेयर था, जो साल 2019-20 में बढ़ कर 6194 हजार हेक्टेयर हो गया. इसी दौरान सोयाबीन का उत्पादन साल 2018-19 में 5809 हजार मीट्रिक टन था, जो बढ़ कर साल 2019-20 में कम हो कर 3856 मीट्रिक टन हो गया.

पशुपालन (Animal husbandry) से मीरा की आमदनी हुई डेढ़ लाख रुपए सालाना

निवाड़ी: शासन द्वारा संचालित एनआरएलएम के अंतर्गत स्वयंसहायता समूह से जुड़ कर अन्य दीदियों के साथ ही निवाड़ी जिल के गांव रामनगर की रहने वाली मीरा अहिरवार की खेती एवं पशुपालन से न्यूनतम आय सालाना लगभग डेढ़ लाख रुपए से अधिक हो गई. आजीविका मिशन से जुड़ने से उन्हें जो सहारा मिला, उस के कारण आज वे इस स्थिति में पहुंच गई हैं कि उन्हें पूरा समाज जानने एवं पहचानने लगा है. आज वे अपने परिवार को एक खुशहाल जिंदगी जीने का अवसर दे पा रही हैं.

पशुपालक मीरा ने बताया कि समूह से जुड़ कर उन्होंने 10 रुपए की साप्ताहिक बचत से शुरुआत की एवं समूह से छोटेबड़े लोन ले कर अपने परिवार की जरूरत को पूरी किया. समूह से जुड़ने के बाद समूह द्वारा उन्हें पहली बार 1000 रुपए की आरएफ राशि मिली, जिसे उन्होंने एक महीने बाद चुका दिया. इस के बाद उन्होंने समूह से 10000 रुपए लिए और उन रुपयों से सब से पहले जैविक खाद उपयोग कर खेत की उर्वराशक्ति बढ़ाई गई.

इस के लिए उन्होंने एक भैंस एवं कुछ बकरियां लीं, जिस से और आमदनी बढ़ी और समूह से लिया गया पैसा समय पर चुका दिया. उन्होंने बताया कि मुझे साल में लगभग डेढ़ लाख रुपए से अधिक आय हो रही है.

आधुनिक तकनीक से रजिस्ट्री सब से पहले मध्य प्रदेश में शुरू

सागर : मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा है कि नागरिकों की सुविधा के लिए प्रांतव्यापी चलाए गए राजस्व महाभियान के 2 चरण कारगर सिद्ध हुए हैं. जमीन संबंधी मामलों के त्वरित निराकरण के उद्देश्य के साथ चलाए गए राजस्व महाभियानों में 80 लाख राजस्व प्रकरणों का निराकरण किया गया है. उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रजिस्ट्री के साथ ही नामांतरण करने का काम देश में सब से पहले मध्य प्रदेश ने शुरू किया है.

डा. मोहन यादव ने नागरिकों को उत्तम सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए अधिकारियों एवं कर्मचारियों की टीम को बधाई दी और उन सभी नागरिकों को भी बधाई दी है, जिन के लंबित मामलों का निराकरण हुआ है.

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा है कि मध्य प्रदेश सरकार जनसेवा और आमजन की समस्याओं के निराकरण के लिए प्रतिबद्ध है. राजस्व प्रकरणों के त्वरित निराकरण के लिए 18 जुलाई से 31 अगस्त तक संचालित राजस्व महाभियान 2.0 में नामांतरण, बंटवारा, अभिलेख दुरुस्ती और नक्शा तरमीम के 49 लाख, 15 हजार, 311 मामलों का निराकरण किया गया. साथ ही, 88 लाख से अधिक ई-केवाईसी पूरी की जा चुकी हैं. इस से पहले राजस्व महाभियान 1.0 में 30 लाख से अधिक राजस्व प्रकरणों का निराकरण किया गया था.

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के निर्देश पर राजस्व महाभियान का पहला चरण 15 जनवरी से 15 मार्च, 2024 तक जारी रहा. इस दौरान 30 लाख से ज्यादा राजस्व प्रकरणों का निराकरण हुआ. पहले चरण के राजस्व महाभियान की सफलता एवं जनता की सराहना मिलने पर मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने दूसरे चरण का राजस्व महाभियान शुरू करने के निर्देश दिए. यह अभियान 18 जुलाई से 31 अगस्त, 2024 तक चला. इस में राजस्व न्यायालयों में समयसीमा पर लंबित नामांतरण, बंटवारा, अभिलेख दुरुस्ती के प्रकरणों का सौ फीसदी निराकरण किया गया. साथ ही, नक्शे पर तरमीम उठाना और खसरे की समग्र आधार से लिंकिंग का काम किया गया.

महाभियान में स्वामित्व योजना के तहत आबादी भूमि के सर्वे का काम, फार्मर रजिस्ट्री का क्रियान्वयन और पीएम किसान में सभी हितग्राहियों को शामिल करने का काम भी किया गया. राज्य, संभाग, जिला और तहसील स्तर पर प्रतिदिन प्रकरणों के निराकरण की सतत मौनिटरिंग राजस्व महाभियान डैशबोर्ड के माध्यम से की गई.

36 जिलों में शतप्रतिशत लंबित नामांतरण प्रकरणों का किया गया निराकरण

अलीराजपुर, उज्जैन, उमरिया, खरगौन, गुना, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, झाबुआ, टीकमगढ़, डिंडोरी, दतिया, दमोह, देवास, नर्मदापुरम, निवाडी, नीमच, पन्ना, पांढुरना, बड़वानी, बालाघाट बुरहानपुर, बैतूल, भिंड, भोपाल, मंडला, मऊगंज, मंदसौर, मुरैना, मैहर, रतलाम, राजगढ़, रायसेन, विदिशा, शहडोल, श्योपुर, सतना जिलों में लंबित नामांतरण प्रकरणों का सौ फीसदी निराकरण किया गया है. बाकी जिलों में 99 फीसदी से अधिक प्रकरणों का निराकरण किया गया है. इस प्रकार कुल 99.98 फीसदी लंबित नामांतरण प्रकरणों का निराकरण राजस्व महाभियान 2.0 में किया गया है.

बंटवारा प्रकरणों का सभी जिलों में शत-प्रतिशत निराकरण

बंटवारा लंबित बंटवारा प्रकरणों का शतप्रतिशत निराकरण समस्त जिलों द्वारा किया गया है. अभिलेख दुरुस्ती लंबित अभिलेख दुरुस्ती प्रकरणों का भी शतप्रतिशत निराकरण समस्त जिलों द्वारा किया गया है. इसी प्रकार बुरहानपुर, खंडवा, पांढुरना, सिवनी, बैतूल, झाबुआ जिलों में लंबित नक्शा तरमीम के 50 फीसदी से अधिक प्रकरणों का निराकरण किया गया है.

राइस मिल (Rice Mill) से दीपेंद्र तिवारी का सपना हुआ साकार

अनूपपुर : ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शासन की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना है. यह योजना स्वयं का उद्योग स्थापित कर लोगों में नई जीवन जीने की प्रेरणा भी देती है.

अनूपपुर जिले के गांव लतार के बाशिंदे दीपेंद्र प्रसाद तिवारी पिता गजेंद्र प्रसाद तिवारी, जिन का राइस मिल खोलने का सपना था, परंतु आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वे यह सपना पूरा नहीं कर पा रहे थे.

उन्होंने बताया कि वे रोजगार के लिए दूसरों के यहां छोटीमोटी नौकरी करते थे और अपने परिवार का पालनपोषण करते थे. नौकरी से उन के परिवार की आवश्यकताएं एवं जरूरतें पूरी नहीं हो पाती थीं. वे अत्यंत परेशान रहते थे. तब उन के एक दोस्त ने उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के जनहितकारी योजना प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना की जानकारी दी और उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से मिल कर योजना का लाभ लेने की सलाह दी.

उस के बाद उन्होंने उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के अधिकारियों से संपर्क कर मिनी राइस मिल खोलने के लिए फार्म भरा और उन्हें बैंक द्वारा योजना के माध्यम से 2 लाख रुपए का लोन प्राप्त हुआ. योजना के तहत उन्हें 70,000 रुपए की अनुदान राशि भी मुहैया कराई गई.

उन्होंने बताया कि उन्हीं पैसों से अपना सपना साकार कर मिनी राइस मिल लगाया और अब हर महीने वे 30 से 40 हजार रुपए की आमदनी ले रहे हैं. उन्होंने 3 लोगों को श्रमिक के रूप में रोजगार भी मुहैया कराया है.

निजी क्षेत्र को कृषि शोध में निगरानी के साथ बढ़ावा देना समय की मांग

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘कृषि शोध में आवश्यक बदलाव लाने एवं निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाने’ विषय पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्वावधान में औनलाइन मीटिंग का आयोजन किया गया. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी इस अवसर पर मुख्यातिथि के रूप में उपस्थित रहे. इस बैठक में देश के विभिन्न विभागों के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों, वैज्ञानिकों, निजी क्षेत्रों के प्रतिनिधियों एवं प्रगतिशील किसानों सहित सभी हितधारकों ने भाग लिया.

केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने अपने संबोधन में किसानों की माली हालत को सुदृढ़ करने एवं खेती की लागत को कम कर के उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि पहले हमारे देश में खाद्यान्न उत्पादन कम होने के कारण अनाज को विदेशों से मंगाना पड़ता था. खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी करने के लिए कृषि वैज्ञानिक देश में हरित क्रांति ले कर आए. अब हमारा देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर ही नहीं, बल्कि विदेशों में अनाज का निर्यात कर रहा है. लेकिन देश में छोटे एवं सीमांत किसानों की संख्या अधिक है, खेती की लागत बढ़ती जा रही है व गुणवत्तापूर्ण उत्पादकता में बढ़ोतरी कृषि क्षेत्र की मुख्य चुनौतियां हैं, जिन से निबटने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को और अधिक शोध करने की आवश्यकता है.

यद्यपि, कृषि आदान जैसे बीज, उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक आदि उपलब्ध करवाने में निजी क्षेत्र का 50 फीसदी से भी अधिक योगदान है, लेकिन मानकों के अनुसार इन आदानों की गुणवत्ता पर निगरानी रखना सरकार की अहम जिम्मेदारी है. फसल उत्पादन के साथ ही उत्पाद की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए समग्र सिफारिशें उपलब्ध करवाना कृषि विश्वविद्यालय की अहम भूमिका है, क्योंकि कृषि उत्पादों की गुणवत्ता के आधार पर ही किसान अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इन्हें बेच कर अच्छी आमदनी हासिल कर सकते हैं.

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि कई क्षेत्रों में खेती में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों आदि रसायनों का प्रयोग सिफारिश से अधिक होने के कारण आज यह भूमि, जल व पर्यावरण में घुलने के साथ खाद्य श्रंखला (फूड चेन) में प्रवेश कर गए हैं, जो मानव जाति में गंभीर बीमारियों का कारण बन रहे हैं.

उन्होंने किसानों से पारंपरिक पद्धति से हट कर प्राकृतिक खेती अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि इस खेती पद्धति में कृषि अवशेषों का प्रयोग होने से लागत कम आएगी, जिस से किसानों की आमदनी बढ़ेगी और कृषि उत्पादन की गुणवत्ता में भी वृद्धि होगी. कृषि में प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध हो रहे दोहन पर चिंता जताई और किसानों को कृषि उत्पादन के साथ इन की गुणवत्ता सुधारने पर ध्यान देने को कहा. साथ ही, जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए ऐसी फसलों की उन्नत किस्में उगाने को बढ़ावा देना चाहिए, जो कम पानी में अधिक पैदावार दे सकें.

बैठक में उपस्थित विभिन्न किसानों ने कृषि एवं बागबानी के क्षेत्र में किए जा रहे अपने अनुभव भी साझा किए.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने बताया कि हितधारकों की इस बैठक में डीएएफडब्ल्यू के सचिव डा. देवेश चर्तुवेदी ने सभी का स्वागत किया. आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक ने उपरोक्त विषय के संदर्भ पर प्रकाश डाला.

इस अवसर पर आईसीएआर के पूर्व डीजी डा. एस. अयप्पन व डा. त्रिलोचन महापात्रा, एनआरएए के सीईओ डा. अशोक डलवानी, जेएनयू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सुधीर के. सोपोरी व डा. प्रवीण राव, डा. अरविंद कुमार पाधी, डा. राम कोनदनिया, प्रभाकर राव, कंवल सिंह चौहान, डा. एके सिंह, डा. केबी काथिरिया, डा. के. केशावुलू , डा. सुरेंद्र टिक्कु, डा. राजवीर सिंह राठी, मनोज भाई पुरुषोत्तम सोलंकी ने भी उपरोक्त विषय पर अपने विचार रखे.

इस अवसर पर प्रगतिशील किसान प्रीतम सिंह, पलविंदर सिंह, सुभाष चंद, सुल्तान सिंह, सुरेंद्र सिंह व सुरेंद्र सिंह स्याड़वा भी उपस्थित रहे.