जल्द करा लें फसल बीमा (Crop Insurance) यह है बीमा कराने की अंतिम तिथि

भोपाल : प्रधानमंत्री फसल बीमा योजनांतर्गत भोपाल जिले में एग्रीकल्चर इंश्योरेस कंपनी औफ इंडिया लि. के माध्यम से किसानों को फसल बीमा (Crop Insurance) योजना का लाभ दिया जा रहा है. इस योजना के तहत खरीफ 2024 के लिए सभी ऋणी, अऋणी, डिफाल्टर, बंटाईदार किसानों के लिए बीमा की अंतिम 15 अगस्त, 2024 थी, परंतु उक्त दिन स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में शासकीय अवकाश होने के कारण सभी किसानों के लिए फसल बीमा की अंतिम तिथि 15 अगस्त से 16 अगस्त, 2024 कर दी गई है.

फसल बीमा के लिए इन कागजात की होगी जरूरत

ऋणी किसानों का फसल बीमा से संबधित बैंक शाखा द्वारा अनिवार्य रूप से करा दिया जाता है एवं अऋणी किसान फसल बीमा के लिए बैंक, एमपी औनलाइन जनसेवा केंद्र सीएससी एवं प्राथमिक कृषि सहकारी ऋण समितियों के माध्यम से अपनी फसलों का बीमा करा सकते हैं.

अऋणी किसानों को बीमा कराने के लिए आवश्यक दस्तावेज आधारकार्ड (नवीनतम), मोबाइल नंबर, बैंक की पासबुक, जिस में किसान का नाम, खाता संख्या, आईएफएससी कोड स्पष्ट हो, खसरा बी-1 (नवीनतम), खसरा अनुसार बोई गई फसल का प्रमाणित बोआई प्रमाणपत्र, किराएदार किसान के लिए किरायानामा का शपथपत्र के साथ निकटतम सीएससी केंद्र, बैंक अथवा प्राथमिक सहाकरी ऋण समिति से संपर्क कर सकते हैं.

किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा होने पर 72 घंटे के अंदर किसान सीधे अथवा अपने क्षेत्र के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के माध्यम से टोल फ्री नंबर 18002337115 पर नुकसान की जानकारी दे सकते हैं.

अतिवृष्टि, बाढ़ जैसी आपदा की स्थिति में 72 घंटे के अंदर फोन करें एवं नुकसानी तिथि एवं वास्तविक आपदा की स्थिति भी दर्ज करें. नुकसानी तिथि फसल की बोनी की तिथि से दर्ज करने पर राशि मान्य नहीं की जाएगी.

फोन करते वक्त विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखा जाए. किसानों को सूचित किया जाता है, ऋणी एवं अऋणी किसानों के लिए बीमा की अंतिम तारीख 16 अगस्त, 2024 से पूर्व ही अपनी फसलों का बीमा कराएं एवं अधिक जानकारी के लिए स्थनीय कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क करें.

भारत दुनिया का फूड बास्केट बनेगा

नई दिल्ली : 5 अगस्त, 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. उन्होंने सभी प्रधानमंत्रियों के भाषण पढ़े, पर कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों की प्राथमिकता में कभी किसान नहीं रहा.

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषणों में जवाहरलाल नेहरू ने साल 1947 में एक बार भी किसान पर चर्चा नहीं की,  1948 में एक बार उल्लेख किया, 1949 से लेकर 1961 तक कोई विशेष चर्चा नहीं की. इंदिरा गांधी ने भी 15 अगस्त के अपने भाषणों में 1966 में 2 बार बात की, 1967 में एक बार चर्चा की, 1968 में 3 बार उल्लेख किया, 1969 में 3 बार चर्चा की, 1970 में एक बार और 1971, 1972, 1973 में भी केजुअली लिया गया. किसानों की कोई पोलिसी की बात नहीं की. वहीं, राजीव गांधी ने भी कभी किसान कल्याण को प्राथमिकता नहीं दी, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में 2014 में 6 बार, 2024 में 23 बार, 2016 में 31 बार, 2017 में 20 बार, 2018 में 17  बार, 2019 में 17 बार, 2020 में 17 बार, 2021 में 15 बार किसानों का नाम लिया है. किसान का नाम, खेती को प्राथमिकता पर बात की. नरेंद्र मोदी के दिल में किसान था, इसलिए जबान पर किसान बारबार आता है.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि फसल खराब होने के बाद मुआवजे को ले कर कई बार गड़बड़ियां सामने आई हैं, इसलिए विजनरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों की तरफ से धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने डिजिटल कृषि मिशन शुरू करने का संकल्प लिया.

उन्होंने कहा कि मुझे कहते हुए गर्व है कि किसानों को आधार की तरह एक डिजिटल पहचान दी जाएगी. किसान आईडी बनाई जा रही है, जिसे किसान की पहचान के रूप में जाना जाएगा. इस किसान आईडी को राज्य के भूमि के रिकौर्ड के साथ जोड़ा जाएगा. अब किसान कोई भी फसल बोएगा, उस के रिकौर्ड में कोई हेराफेरी नहीं हो सकती, क्योंकि वो डिजिटल है. कोई भी उस में गड़बड़ नहीं कर सकता. फसल बोई गई है तो बोने के बाद जैसे ही फसल आती है, मोबाइल से वीडियोग्राफी कर के उस को सुरक्षित कर दिया जाएगा, ताकि फसल कौन सी बोई है, उस में कोई गड़बड़ न कर सके. किसानों के नुकसान के आकलन के लिए व्यवस्था बना रहे हैं कि सीधे रिमोट सेंसिंग से होगा. जैसा नुकसान होगा, वो सौ फीसदी वैसा ही आ जाएगा.

कृषि के लिए मोदी सरकार का विजन

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हमारी सरकार मोदी के नेतृत्व में एक विजन से काम कर रही है और इसलिए उस विजन को प्रकट करना है.

अगले 5 साल का विजन बताते हुए उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज के इस दौर में हमें जलवायु अनुकूल, बायोफोर्टिफाइड नई फसल किस्में तैयार करना पड़ेगी. हम 1,500 नई किस्में तैयार करने जा रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी कुछ दिनों में ही 109 नई किस्में किसानों को समर्पित करने वाले हैं, ताकि बढ़ते हुए तापमान के बाद भी कृषि में उत्पादन लगातार बढ़ता रहे. किसानों को डिजिटल आइडेंटिटी दी जा रही है, सरकार मिशन के तौर पर काम कर रही है. फसल विविधीकरण पर काम किया जा रहा है. प्राकृतिक खेती हमारे विजन में है. लैब रिसर्च को लैंड तक ले जाना हमारा विजन है. वन हेल्थ अप्रोच पर हम काम कर रहे हैं, जो मानव, पशु, पौधे और पर्यावरण स्वास्थ्य के परस्पर संबंध को उजागर करता है.

उन्होंने कहा कि हमारा मंत्रालय बीज की 1,500 से ज्यादा नई किस्में तैयार कर रहा है. 18,000 करोड़ रुपए के निवेश के साथ सौ एक्सपोर्ट ओरिएंटेड बागबानी क्लस्टर विकसित किए जाएंगे. आधुनिक पोस्ट हार्वेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर पर अभूतपूर्व निवेश कर रहे है. ई-नाम 2.0 का शुभारंभ और अतिरिक्त 1,500   मंडियों का एकीकरण का काम किया जा रहा है. 6,800 करोड रुपए निवेश के साथ तिलहन मिशन की शुरुआत कर आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं. बहुआयामी अप्रोच के माध्यम से बीज क्षेत्र के विकास पर जोर दिया जा रहा है. 50,000 गांवों को जलवायु अनुकूल गांव के रूप में विकसित करने के लिए हम पहल करने जा रहे हैं. सूक्ष्म सिंचाई के तहत 1 करोड़, 20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने की योजना पर काम किया जाएगा.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम अगले 2 सालों में 200 जिलों में मौजूद फसल प्रणाली में 2,500 पारंपरिक किस्म को वापस लाने पर जोर दे रहे हैं. अगले 5 सालों में आदर्श दलहन और तिलहन गांव के विकास पर हम काम करेंगे.

हमारा लक्ष्य है कि हम दलहन में आत्मनिर्भरता हासिल करें. मिशन मोड पर जलवायु अनुकूल कृषि पर काम किया जा रहा है. छोटे किसान भी अधिक लाभ कमा सकें, इस के लिए मौडल फार्म बना रहे हैं.

सम्मान निधि से किसान स्वावलंबी और सशक्त हुआ है

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम किसान सम्मान निधि पर चर्चा कर रहे थे, कांग्रेस ने किसानों को सीधी मदद की बात की, लेकिन कांग्रेस ने कभी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जैसी योजना नहीं बनाई. सीमांत किसानों के लिए 6,000 रुपए की राशि माने रखती है. इस किसान सम्मान निधि के कारण किसान आत्मनिर्भर बने हैं, किसान सशक्त भी हुए हैं और किसानों का सम्मान भी बढ़ा है, लेकिन कांग्रेस को किसानों का सम्मान नज़र नहीं आ रहा है.

उन्होंने कहा कि, अगर खेती के लाभ को बढ़ाना है, तो व्यापक दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्देश दिया है कि खेती और खेती से संबंधित सारे विभाग एक दिशा में चलें. हम जानते हैं कि विभाग अलगअलग हैं, कैमिकल फर्टिलाइजर विभाग अलग है, जल शक्ति विभाग अलग है, इसलिए सरकार ये प्रयास कर रही है कि अलगअलग विभाग चाहे वो एनिमल हस्बेन्डरी हो, फिशरीज हो, हार्टिकल्चर हो, ये मिल कर प्लानिंग करें, एक दिशा में चलें, ताकि हम खेती में लाभ को और ज्यादा बढ़ाने का काम कर सकें. एकएक दृष्टिकोण ये सरकार अपनाएगी.

संवाद से समाधान की तरफ बढ़ेंगे

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों से ये निवेदन करना है कि किसान को वोट बैंक न समझें, किसान को इनसान मान कर व्यवहार करें. राज्य सरकारों का सहयोग जरूरी है, क्योंकि बिना राज्य सरकारों के सहयोग के केंद्र काम नहीं कर सकता है, इसलिए जो हमारा सहकारी संघवाद है, उस भावना का आदर करते हुए अलगअलग राज्यों के कृषि मंत्रियों को बुलाया, चाहे किसी पार्टी के हों, हम ने पार्टी का भेद नहीं किया और वहां की कृषि समस्याओं पर चर्चा कर के उन के समाधान का प्रयास किया है. हम राज्यों के साथ मिल कर काम करते रहेंगे. कृषि विज्ञान केंद्र, किसान और विज्ञान को जोड़ने के लिए बने हैं.

सभी सांसदों से आग्रह करता हूं कि, एक बार अपने क्षेत्र के कृषि विज्ञान केंद्र में जरूर जाएं, वहां के कामों में भागीदारी करें. हमारे साइंटिस्ट, जो रिसर्च लैब में काम करते हैं, उसे लैंड तक ले जाएं. प्रधानमंत्री मोदी का विजन है कि आने वाले 2047 तक भारत न केवल अपनी जनता के लिए पोषणयुक्त पर्याप्त अन्न, फल और सब्जियां पैदा करेगा, बल्कि दुनिया का फूड बास्केट भी बन कर उभरेगा. कृषि में समस्याएं हैं, लेकिन समाधान भी हैं.

हम किसानों से बात करेंगे, किसान संगठनों से भी बात करेंगे, हम संवाद से समाधान की तरफ बढ़ेंगे और सब को साथ ले कर आगे चलेंगे. हम इस देश की कृषि और किसानों के कल्याण में कोई कसर नहीं छोड़ेंग.

किसानों का दल जाएगा कृषि प्रशिक्षण (Agricultural Training) के लिए

रायसेन : उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की राज्य योजनांतर्गत रायसेन जिले के 30 किसानों का दल नोडल अधिकारी और ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारी गैरतगंज सुरेंद्र सिंह रघुवंशी के साथ कृषक प्रशिक्षण सहभ्रमण हेतु सीहोर के लिए भेजा गया. कृषक दल को सहायक संचालक उद्यान रमाशंकर द्वारा हरी झंडी दिखा कर भेजा गया.

इस अवसर पर ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारी अंजू शर्मा और शाखा प्रभारी पिंकी गाडगे भी उपस्थित रहीं.

भ्रमण सहप्रशिक्षण के लिए भेजने के पूर्व किसानों को मप्र शासन द्वारा संचालित उद्यानिकी की उन्नतशील विभिन्न योजनाएं जैसे फल क्षेत्र विस्तार योजना, सब्जी क्षेत्र विस्तार योजना, मसाला क्षेत्र विस्तार योजना, ड्रिप, स्प्रिंकलर एवं मिनी स्प्रिंकलर संयंत्र, संरक्षित खेती योजनांतर्गत पौलीहाउस, नैटहाउस निर्माण करना, पौलीहाउस एवं नैटहाउस के अंदर सब्जी एवं फूलों की उच्च तकनीकी से खेती, प्लास्टिक मल्चिंग, जैविक खेती, वर्मी कंपोस्ट यूनिट, पैकहाउस यूनिट, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन एवं अन्य उद्यानिकी की खेती के बारे में अवगत कराया गया.

किसानों के दल को गांव ईटखेडी जिला सीहोर के अंतर्गत फल अनुसंधान केंद्र में खाद्य प्रसंस्करण इकाई पर प्रशिक्षण एवं फलों, सब्जियों, मसाले की खेती पर प्रशिक्षण दिया जाएगा. उस के बाद सीआईएई भोपाल में भ्रमण दल को उन्नत कृषि यंत्रों के बारे में अवगत कराया जाएगा.

भ्रमण दल सीहोर से इछावर में कृषि विज्ञान केंद्र में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा पुष्प फसल, जैविक खेती, सूक्ष्म सिंचाई, सब्जी, मसाला, फलों की उन्नतशील खेती के विषय में अवगत कराया जाएगा. रात्रि विश्राम किया जाएगा. इस के बाद 8   अगस्त को कृषि विज्ञान केंद्र, सीहोर में कृषि मौसम केंद्र का भ्रमण, आईईपीएसआईएनएम पर प्रशिक्षण एवं उद्यानिकी की विशिष्ट तकनीकी के बारे में बताया जाएगा.

सोयाबीन में जैविक तरीके से कीटों की रोकथाम

सवाल : सोयाबीन फसल में कीटों की रोकथाम कैसे करें? कृपया इस के जैविक तरीके बताएं. – विजय कुमार, रीवा, मध्य प्रदेश

डा. प्रेम शंकर, वैज्ञानिक, फसल सुरक्षा, कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती द्वारा जवाब.

जवाब : सोयाबीन में कीटों के जैविक नियंत्रण के लिए टी आकार की खूंटी 40-50 प्रति हेक्टेयर, फैरोमौन ट्रैप 12-15 प्रति हेक्टेयर, ब्यूवेरिया बेसियाना 1 लिटर प्रति हेक्टेयर, बैसिलस थुरिंजिनिसिस 1 किलोग्राम प्रति एचएनपीवी, 250 एलई प्रति एसएलएनपीवी, 250 एलई प्रति हेक्टेयर.

सोयाबीन व उड़द को पीला मोजेक रोग से बचाएं और रोग का प्रकोप दिखते ही ग्रसित पौधों को उखाड़ कर तुरंत नष्ट करें. सिंथेटिक पाइराइट्स कीटनाशक का उपयोग न करें.

शुरुआती अवस्था में ही थायोमेथोक्साम 25 डब्ल्यूजी या एसीटामिप्रिड 20 एसपी मात्रा 60 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. नैनो यूरिया तरल (प्लस) फसलों में नैनो यूरिया की 4 मिली मात्रा प्रति लिटर पानी में घोल कर पहला छिड़काव 35-40 दिन पर, दूसरा अंकुरण से 55-60 दिन बाद व तीसरा फसल की जरूरत पर करें.

सोयाबीन फसल में कीट नियंत्रण के लिए अपनाएं यह उपाय

राजगढ़ : कृषि विज्ञान केंद्र, राजगढ़ व किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा ग्राम महू, पट्टी, धामंदा, गवाडा, उदनखेडी आदि गांवों के खेतों पर नैदानिक भ्रमण किया गया. किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डा. आरपी शर्मा, डा. लाल सिंह, एसके उपाध्याय और राकेश परमार द्वारा किसानों को सलाह दी गई कि वर्षा के कारण कुछ क्षेत्रों में जलभराव की स्थिति होने के कारण कई प्रकार के कीट एवं व्याधियों का प्रकोप देखा जा रहा है.

अतः किसानों को सलाह दी जाती है कि नुकसान को कम करने के लिए शीघ्रता से जल निकासी की व्यवस्था करें. अधिक वर्षा के कारण कुछ सोयाबीन की फसल में फफूंदजनित एंथ्रेक्नोज रोग (इस रोग के कारण तनों और फलियों पर असमान्य छोटे काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं) एरियल ब्लाइट बीमारी (इस बीमारी के कारण पत्तियों पर असामान्य छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं, जो कि बाद की अवस्था में भूरे या काले रंग में बदल जाते हैं एवं संपूर्ण पत्ती झुलसी एवं कुछ नमी की उपस्थिति में पत्तियां ऐसे प्रतीत होती हैं जैसे पानी में उबल गई हों) और जड़ सड़न रोग (राइजोक्टोनिया), जिस में पौधो की जड़ें काली पड़ कर सड़ने लगती हैं आदि बीमारियों का प्रकोप देखा जा रहा है. इन के नियंत्रण के लिए टेबूकोनाझोल (625 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर) अथवा टेबूकोनाझोलसल्फर (1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) अथवा पायरोक्लोस्ट्रोबीन 20 डब्ल्यूजी (500 ग्राम प्रति हेक्टेयर) अथवा हेक्जाकोनाझोल 5 फीसदी ईसी (800 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर) से छिड़काव करें.

कुछ क्षेत्रों में सोयाबीन की फसल पर पीला मोजक वायरस बीमारी का प्रकोप देखा गया है. अतः इस के नियंत्रण के लिए प्रारंभिक अवस्था में ही अपने खेत में जगहजगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप लगाएं, जिस से इस का संक्रमण फैलाने वाली सफेद मक्खी का नियंत्रण होने में सहायता मिले.

इस की रोकथाम के लिए यह भी सलाह है कि फसल पर पीला मोजक रोग के लक्षण दिखते ही ग्रसित पौधों को अपने खेत से उखाड़ दें. ऐसे खेत में सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए अनुशंसित पूर्व मिश्रित संपर्क रसायन जैसे बीटासायफ्लूथ्रिन इमिडाक्लोप्रिड (350 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर) या पूर्व मिश्रित थायोमेथोक्सामलैम्बडा सायहलोथ्रिन (125 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव करें, जिस से सफेद मक्खी के साथसाथ पत्ती खाने वाले कीटों का भी एकसाथ नियंत्रण हो सकें.

यह भी देखने में आया है कि कुछ इलाकों में लगातार हो रही रिमझिम वर्षा की स्थिति में पत्ती खाने वाली इल्लियों द्वारा पत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. ऐसी स्थिति में किसानों को सलाह है कि पत्तियां खाने वाली इल्लियों के नियंत्रण के लिए कीटनाशक जैसे इंडोक्साकार्ब 333 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर या लैम्बडासायहेलोथ्रिन 4.9 सीएस 300 मिलीमीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें.

यदि पत्ती खाने वाली इल्लियों के साथसाथ सफेद मक्खी का प्रकोप हो, तो किसानों को सलाह है कि इन के नियंत्रण के लिए बीटासायफ्लुथ्रिन इमिडाक्लोप्रिड 350 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर या थायोमेथोक्साम लैम्बड़ा सायहलोथ्रिन 125 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें.

सोयाबीन की फसल में तना मक्खी की गिडार (इल्ली) पत्ती के सिर से डंठल को अंदर से खाते हुए तने में प्रवेश करती है. तना मक्खी की पहचान मादा मक्खी आकार में 2 मिलीमीटर लंबी भूरी एवं चमकदार काले रंग की होती है. मक्खी अंडे पत्ती की निचली सतह पर देती है, जो कि हलके पीले रंग के होते हैं. शंखी भूरे रंग की होती है. गिडार (इल्ली) एवं शंखी हमेशा तने के अंदर पाई जाती है. प्रभावित पौधों के तने को चीर कर देखने पर लाल रंग की सुरंग दिखाई देती है. पत्तियां धीरेधीरे पीली पड़ने लगती हैं.

तना मक्खी के नियंत्रण के लिए अनुशंसित कीटनाशी दवा जैसे लैम्बडा सायहलोथ्रिन 4.9 सीएस (300 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर) अथवा पूर्व मिश्रित थायोमेथोक्सामलैम्बडा सायहलोथ्रिन (125 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव करें.

किसानों को सलाह दी जाती है कि अपने खेत में फसल निरीक्षण के उपरांत पाए गए कीट विशेष के नियंत्रण के लिए अनुशंसित कीटनाशक की मात्रा को 500 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से पानी के साथ फसल पर छिड़काव करें.

सोयाबीन की फसल में कीड़ों का प्रकोप व रोकथाम

सवाल : सोयाबीन की फसल में कीड़ों का प्रकोप दिखाई पड़ रहा है, कीड़ों की रोकथाम के लिए कौन सा उपाय अपनाएँ.  – राममूर्ति मिश्र (किसान)

डा. प्रेम शंकर, वैज्ञानिक फसल सुरक्षा द्वारा जवाब 

जवाब : फसल सोयाबीन में पत्ती काटने वाले कीट व चक्र भंग, मक्का में इल्ली का प्रकोप देखा जा रहा है. इस के लिए आप समन्वित कीट नियंत्रण के अंतर्गत प्रकाश प्रपंच, फैरोमौन ट्रैप, टी आकार की खूंटी, जैविक व अनुशंसित रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग करें.

सोयाबीन में कीटों के नियंत्रण के लिए ब्लू बीटल कीट- 4 बीटल, हरी अर्द्धकुंडलक इल्ली- 4 लार्वा (फूल के समय), हरी अर्द्धकुंडलक इल्ली- 3 लार्वा (फली बनते समय), तंबाकू की इल्ली यानी (स्पोडोप्टेरा लिटुरा) – 10 लार्वा, चने की इल्ली- 10 लार्वा, सोयाबीन में प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें और ब्लू बीटल के लिए क्विनालफास 25 लेम्ब्डा ईसी 1 लिटर.

तना मक्खी के लिए थायोमेथोक्साम साइहलोथ्रिन 125 मिली. क्लोरेंट्रानिलीप्रोल+ लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 200 मिलीलिटर  लैम्ब्डासाइहलोथ्रिन 4.90 सीएस 300 मिलीलिटर.

सफेद मक्खी के लिए बीटासायफ्लूबिन + इमिडाक्लोप्रिड 350 मिलीलिटर, एसीटामिप्रिड बाइफेनथ्रेन 250 ग्राम. सेमी लूपर/चने की इल्ली के लिए क्लोरेंट्रानिलीप्रोल 18.5 एससी 150 मिलीलिटर. टेट्रानिलीप्रोल 250-300 मिलीलिटर स्पाइनेटोरम 11.7 एससी 450 मिलीलिटर, फ्लूबेंडामाइड 39.35 एससी 150 मिलीलिटर, इमामेक्टिन बेंजोएट 1.90 ईसी 425 मिलीलिटर, प्रोफेनोफास + साइपरमेथ्रिन 1.25 लिटर कृषि वैज्ञानिको द्वारा अनुशंसित हैं, जिन में से किसी एक कीटनाशक का उपयोग करें.

मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म के नैचुरल ग्रीनहाउस को देख ‘कृभको’ के अधिकारी हुए मुरीद

पिछले दिनों ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर’ पर नई दिल्ली से भारत सरकार की सहकारी खाद समिति ‘कृभको’ के उच्च अधिकारियों एवं विशेषज्ञों का एक उच्च स्तरीय दल ने दौरा किया. यह तीनदिवसीय भ्रमण निरीक्षण का कार्यक्रम डा. राजाराम त्रिपाठी द्वारा किए गए जैविक खेती के प्रयासों और टिकाऊ कृषि में नवाचारों को गहराई से जानने के लिए था.

‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर, कोडागांव, छत्तीसगढ़ के बारे में शंकर नाग ने बताया कि कृभको की इस उच्च स्तरीय टीम के सभी सदस्यों ने डा. राजाराम त्रिपाठी के जैविक फार्म पर हो रही खेती की जम कर प्रशंसा की और कहा, “पूरे भारत में कम लागत पर इतना ज्यादा फायदा खेती से लेने का ऐसा उदाहरण मिलना संभव नहीं है.” विशेष रूप से उन्होंने उस नैचुरल ग्रीनहाउस को सब से ज्यादा पसंद किया, जो डा. राजाराम त्रिपाठी ने केवल डेढ़ लाख रुपए में एक एकड़ में तैयार किया है, जबकि प्लास्टिक और लोहे से तैयार होने वाला परंपरागत ग्रीनहाउस का एक एकड़ की लागत लगभग 40 लाख रुपए आती है. उन्होंने यह भी जाना कि कैसे डा. राजाराम त्रिपाठी का ग्रीनहाउस न केवल बेहद टिकाऊ है, बल्कि परंपरागत ग्रीनहाउस की तुलना में बहुत अधिक लाभदायक भी है.

यह जान कर सभी सदस्य हैरान रह गए कि 40 लाख रुपए वाला ग्रीनहाउस 7-8 साल में नष्ट हो जाता है और उस की कोई कीमत नहीं रहती, जबकि डा. राजाराम त्रिपाठी का पेड़पौधों से तैयार नैचुरल ग्रीनहाउस हर साल अच्छी आमदनी देने के साथ ही 10 साल में लगभग 3 करोड़ की बहुमूल्य लकड़ी भी देता है. ये अपनेआप में एक अजूबा ही है.

कृभको की टीम ने कम खर्च में संपन्न होने वाली अनूठी जैविक खेती की पद्धतियों और नैचुरल ग्रीनहाउस मौडल का निरीक्षण और परीक्षण किया. उन्होंने वहां अपनाई जा रही विधियों को भी समझा और कैमरे में वहां के नजारे को भी कैद किया, ताकि वे प्रभावी तरीकों को अनेक कृषि से जुड़े लोगों तक पहुंचा सकें.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि इतने प्रतिष्ठित मेहमानों के साथ अपने अनुभव और नवाचार साझा करना हमारे लिए अविस्मरणीय रहा. उन के द्वारा मिली प्रशंसा और सुझावों ने हमें और अधिक प्रोत्साहित किया है कि हम अपने पर्यावरण मित्रता और टिकाऊ खेती के मिशन को आगे बढ़ाएं.

कृभको के इस दल का स्वागत डा. राजाराम त्रिपाठी ने खुद किया, तत्पश्चात अनुराग कुमार, जसमती नेताम, शंकर नाग, कृष्णा नेताम, रमेश पंडा एवं मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के अन्य सदस्यों द्वारा अंगवस्त्र, बस्तर की उपजाई हुई पेड़ों पर पकी बेहतरीन गुणवत्ता की काली मिर्च और जनजातीय सरोकारों की मासिक पत्रिका ‘ककसाड़’ का नया अंक भेंट कर के किया गया.

कार्यक्रम के अंत में आभार व्यक्त करते हुए डा. राजाराम त्रिपाठी ने कहा, “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर पिछले 30 वर्षों से इस क्षेत्र के आदिवासियों के उत्थान के लिए निरंतर प्रयासरत है. हमारे फार्म पर अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप शतप्रतिशत जैविक खेती, जड़ीबूटी व मसाले उगाने और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के साथसाथ आदिवासी समुदायों के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर भी प्रदान किए जाते हैं. हम अपने अनुसंधान और नवाचार के माध्यम से पर्यावरण संवेदनशील और जनजातीय समुदायों को माली रूप से लाभकारी समाधान प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

कोटड़ा में मशरूम (Mushroom) प्रशिक्षण

उदयपुर : अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना, अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के तत्वावधान में अनुसूचित जनजाति उपयोजना (टीएसपी) एवं अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के अंतर्गत पंचायत समिति कोटड़ा के 10-15 गांवों के कुल 60 से 80 किसानों एवं महिलाओं ने एकदिवसीय, 2 मशरूम (Mushroom) प्रशिक्षणों में भाग लिया.

राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री बाबूलाल जी खराड़ी ने भी मशरूम प्रशिक्षण का अवलोकन किया और बताया कि  व्यक्तियों की सेहत एवं अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने के लिए मशरूम की खेती को बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक मशरूम प्रशिक्षणो को संपन्न करने पर जोर दिया.

प्रशिक्षण में परियोजना प्रभारी डा. नारायण लाल मीना ने किसानों, महिलाओं एवं बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य एवं किसानों की आय को दोगुना करने के लिए खेती के साथसाथ फसल के सहउत्पादों का उपयोग कर के अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने के लिए मशरूम के पोषणीय, औषधीय महत्व, ढींगरी और दूधछाता मशरूम की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी दी, जिस में किसानों एवं महिलाओं ने पहली बार मशरूम के प्रदर्शन देख कर मशरूम को उगा कर खाने की जिज्ञासा जाहिर की.

कमलेश चरपोटा, कृषि पर्येवेक्षक ने राजस्थान सरकार की अनुसूचित जाति एवं जनजाति की कृषि से संबंधित जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी. अविनाश कुमार नागदा एवं किशन सिंह राजपूत ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की प्रायोगिक जानकारी दी. प्रशिक्षण के अंत में अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति के कुल 60 प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की खेती से संबंधित सामग्री वितरित की गई.

वर्षा सिंचित कृषि (Rainfed Agriculture) पर राष्ट्रीय कार्यशाला

नई दिल्ली: पिछले दिनों कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए), नई दिल्ली में ‘जलवायु अनुकूल वर्षा सिंचित कृषि (सीआरआरए)’ पर राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अपर सचिव और सीईओ (एनआरएए) फैज अहमद किदवई ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उपमहानिदेशक (एनआरएम) डा. एसके चौधरी, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के संयुक्त सचिव (वर्षा आधारित कृषि प्रणाली) फ्रैंकलिन एल. खोबंग और राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण के तकनीकी विशेषज्ञ (जल प्रबंधन) बी. रथ की उपस्थिति में इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया.

फैज अहमद किदवई ने ऐसे नीतिगत सुधारों का आह्वान किया, जो वर्षा सिंचित क्षेत्रों में भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों के विकास को प्राथमिकता देते हैं. वर्षा सिंचित क्षेत्र चरम जलवायु घटनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, इसलिए उन्होंने वर्षा सिंचित कृषि में जलवायु लचीलापन बनाने के लिए कुछ नवाचारी और प्रौद्योगिकी संचालित कृषि पद्धतियों पर बल दिया.

उन्होंने आरएडी योजना की क्षमता पर भी प्रकाश डाला, जिसे जलवायु अनुकूल वर्षा सिंचित कृषि (सीआरआरए) की ओर संक्रमण के लिए ‘राष्ट्रीय कृषि विकास योजना’ (आरकेवीवाई) के एकीकृत दृष्टिकोण के तहत एक घटक के रूप में लागू किया जा रहा है.

इस के अलावा उन्होंने अधिकतम संसाधन उपयोग सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न विकास कार्यक्रमों के साथ आरएडी योजना के प्रभावी अभिसरण का आह्वान किया. कार्यशाला ने राज्य और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों, कृषि विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को जलवायु लचीलापन दृष्टिकोण अपना कर वर्षा सिंचित क्षेत्रों में फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए नवाचारी रणनीतियों और प्रौद्योगिकियों पर चर्चा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया.

डा. एसके चौधरी ने कृषि और संबद्ध क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रेखांकित किया. उन्होंने एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से विभिन्न कृषि इकोसिस्‍टम में वितरित वर्षा सिंचित क्षेत्रों के समावेशी विकास के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने आईसीएआर-एनआईसीआरए योजना के अनुभव को भी साझा किया, जिसे अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार के स्तंभों पर जलवायु परिवर्तन के सभी आयामों के लिए देश में लागू किया जा रहा है. उन्होंने ब्लौक स्तरीय जोखिम मूल्यांकन एटलस और सीआरआरए पर क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को व्यावहारिक प्रशिक्षण देने पर भी बल दिया.

कार्यशाला के तकनीकी सत्रों में वर्षा सिंचित क्षेत्रों में एकीकृत कृषि प्रणाली (आईएफएस) और पशुधन व प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की जटिलताओं पर फोकस किया गया. जलवायु अनुकूल वर्षा सिंचित कृषि के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई, जिस में परिदृश्‍य आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली, वाटरशेड विकास, डिजिटल पूर्वानुमान तकनीक, चरागाह मार्गों का पुनरुद्धार और देश में स्थायी कृषि को बढ़ाने के लिए आर्थिक साक्ष्य तैयार करना शामिल है.

कार्यशाला में आरएडी योजना के लिए अद्यतन परिचालन दिशानिर्देशों और प्रमुख कार्यान्वयन चुनौतियों पर भी गंभीरता से चर्चा की गई. इस का समापन वर्षा सिंचित क्षेत्रों में जलवायु के अनुकूल और स्थिरता बढ़ाने के लिए दूरदर्शी दृष्टिकोणों के साथ हुआ. प्रतिभागियों ने कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने और देशभर के किसानों के लिए आजीविका सुरक्षा में सुधार के लिए प्रस्तावित रणनीतियों की क्षमता के बारे में आशा व्यक्त की.

लुवास व कैरस लैबोरेटरीज के बीच हुआ समझौता, पशु चिकित्सा छात्रों को पुरस्कार

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार के कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा के मार्गदर्शन में कुलपति सचिवालय लुवास, हिसार में 16 जुलाई, 2024 को लुवास विश्वविद्यालय व कैरस लैबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड, करनाल के मध्य समझौता हस्ताक्षर समारोह का आयोजन किया गया.

इस अवसर पर लुवास की ओर से डा. राजेश खुराना, निदेशक मानव संसाधन एवं प्रबंधन और कारस लैब्स की ओर से प्रबंध निदेशक डा. अरुण पिलानी ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. लुवास की ओर से पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग और दूसरे पक्ष की ओर से डा. दीपक कुमार, जीएम- सेल्स एंड मार्केटिंग ने इस अवसर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.

इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य बीवीएससी एंड एएच के अंतिम वर्ष के छात्रों को छात्रवृत्ति/पुरस्कार आवंटित करना है. नैदानिक विषयों यानी मैडिसिन, सर्जरी, स्त्री रोग और क्लिनिक में उन की समग्र योग्यता (ओजीपीए) के आधार पर उन की कड़ी मेहनत और ज्ञान वृद्धि के लिए मनोबल बढ़ाने के लिए पुरस्कार दिया जाएगा.

सहयोग के अनुसार टौपर को 51,000/- रुपए, प्रथम रनरअप को 31,000/- रुपए और दूसरे रनरअप को 21,000/- रुपए के 3 पुरस्कार होंगे और यह पशु चिकित्सा शिक्षा और जागरूकता को बढ़ाने और प्रोत्साहित करने के लिए कैरस प्रयोगशालाओं की सीएसआर नीति के अनुसार सीएसआर गतिविधि का हिस्सा होगा. कैरस या उस के कार्यकारी पास होने वाले छात्रों के शपथ ग्रहण समारोह में इन पुरस्कारों का आवंटन करेंगे.

लुवास के पशु चिकित्सा स्नातक छात्रों को साल 2018 बैच से पुरस्कार दिए जाएंगे. पुरस्कार 2018 बैच के पास होने से शुरू हो कर साल 2023 में न्यूनतम 10 सालों की अवधि के लिए जारी रहेंगे.