दलहन (Pulses) के दामों में गिरावट

नई दिल्ली : उपभोक्ता मामलों के विभाग ने भारतीय खुदरा विक्रेता संघ (आरएआई) के साथ दालों के संबंध में मूल्य परिदृश्य और निर्दिष्ट खाद्य पदार्थों पर लाइसेंसिंग आवश्यकताओं, स्टाक सीमाओं और आवागमन प्रतिबंधों को हटाने के (पहला और दूसरा संशोधन) आदेश, 2024 के तहत 21जून, 2024 और 11जुलाई, 2024 में निर्धारित तुअर और चना के लिए स्टाक सीमाओं के अनुपालन पर चर्चा के लिए बैठक आयोजित की.

इस बैठक की अध्यक्षता भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग की सचिव निधि खरे ने की. आरएआई के 2300 से अधिक सदस्य हैं और देशभर में इस के 6,00,000 से अधिक बिक्री केंद्र (आउटलेट) हैं.

उपभोक्ता मामलों के विभाग की सचिव निधि खरे ने बताया कि पिछले एक महीने में प्रमुख मंडियों में चना, तुअर और उड़द की कीमतों में 4 फीसदी तक की गिरावट आई है, लेकिन इन की खुदरा कीमतों में ऐसी कोई गिरावट नहीं देखी गई है. उन्होंने थोक मंडी कीमतों और खुदरा कीमतों के बीच अलगअलग रुझानों की ओर इशारा किया, जिस से लगता है कि खुदरा विक्रेताओं को ज्यादा मुनाफा मिल रहा है.

उन्होंने यह भी बताया कि खरीफ दलहन की बोआई की प्रगति अच्छी है. सरकार ने प्रमुख खरीफ दलहन उत्पादक राज्यों में तुअर और उड़द के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए हैं, जिस में नेफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का वितरण शामिल है. कृषि विभाग सभी आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए राज्य कृषि विभागों के साथ निरंतर संपर्क में है.

मौजूदा मूल्य परिदृश्य और खरीफ संभावना को ध्‍यान में रखते हुए उन्होंने कहा कि वे दालों की कीमतों को उपभोक्ताओं के लिए किफायती बनाए रखने के सरकार के प्रयासों में हर संभव सहायता प्रदान करें.

उन्होंने आगे बताया कि बड़े खुदरा विक्रेताओं सहित सभी स्टौक होल्डिंग संस्थाओं की स्टाक स्थिति पर बारीकी से नजर रखी जा रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्धारित सीमा का उल्लंघन न हो. स्टाक सीमा का उल्लंघन, बेईमान सट्टेबाजी और बाजार से जुड़े लोगों की ओर से मुनाफाखोरी पर सरकार की ओर से कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

खुदरा उद्योग से जुड़े प्रतिभागियों ने भरोसा दिलाया कि वे अपने खुदरा मार्जिन में आवश्यक सुधार करेंगे और उपभोक्ताओं को किफायती मूल्य पर उपलब्ध कराने के लिए इसे नाममात्र स्तर पर बनाए रखेंगे.

इस बैठक में आरएआई, रिलायंस रिटेल, डी मार्ट, टाटा स्टोर्स, स्पेंसर, आरएसपीजी, वी मार्ट आदि के प्रतिनिधियों ने भाग लिया.

उत्तर प्रदेश में होगी पशुओं की गिनती (Animal Counting)

लखनऊ : प. दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान, बक्शी का तालाब, लखनऊ में 21 वीं पशुगणना की तैयारी के अंतर्गत देश के 3 राज्यों यथा उत्तर प्रदेश के साथसाथ मध्य प्रदेश एवं उत्तराखंड के राज्य/जनपदीय नोडल अफसरों को संयुक्त रूप से प्रशिक्षण प्रदान कर मास्टर्स ट्रेनर तैयार किया जाने के लिए इस एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं उत्तराखंड के कुल 175 पशु चिकित्साविदों, संख्याधिकारियों, नोडल अधिकारियों द्वारा भारत सरकार, मत्स्य, पशुपालन मंत्रालय के सहयोग से आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभाग किया गया.

उक्त कार्यक्रम का उद्घाटन प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह द्वारा किया गया.
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा कि पशुओं की गिनती के उपरांत प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण एवं तार्किक उपयोग से भविष्य की योजनाओं, विभागीय नीतियों को बनाने एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में एवं पशुपालकों के हित में नई योजनाओं और पशुपालन के क्षेत्र में रोजगार सृजन का मार्ग प्रशस्त होगा.

उन्होंने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश में पूरे देश का सर्वाधिक पशुधन है. साल 2019 की पशुओं की गिनती के मुताबिक, प्रदेश में 190.20 लाख गाय, 330.17 लाख महिषवंश, 9.85 लाख भेड़, 144.80 लाख बकरी एवं 4.09 लाख सूकर हैं. देश मे प्रत्येक 5 साल के बाद पशुओं की गिनती की जानी है. वर्तमान में 21वीं पशुगणना की तैयारी चल रही है.

उक्त अवसर पर रविंद्र,  प्रमुख सचिव, पशुधन, उप्र शासन, देवेंद्र पांडेय, विशेष सचिव, उप्र शासन, जगत हजारिका, सलाहकार (सांख्यकीय) भारत सरकार, वीपी सिंह, निदेशक, पशुपालन सांख्यकीय, भारत सरकार, डा. आरएन सिंह, निदेशक प्रशासन एवं विकास और डा. पीएन सिंह, रोग नियंत्रण एवं प्रक्षेत्र, उप्र एवं 3 प्रदेशों के प्रतिभागी उपस्थित थे.

निदेशक, प्रशासन एवं विकास, पशुपालन विभाग द्वारा अपने स्वागत भाषण में समस्त उपस्थित लोगों के साथसाथ प्रतिभागियों का भी स्वागत किया गया. उन के द्वारा प्रतिभागियों से इस महत्वपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम को अतिसंवेदनशील मानते हुए सही रूप में जानकारी प्राप्त कर पशुधन की गणना का आह्वान किया गया, ताकि सही आंकड़ों पर भविष्य की योजनाओं के सृजन में सहयोग मिल सके.

भारत सरकार से आए अधिकारियों द्वारा पशुगणना प्रत्येक 5 सालों के अंतराल पर की जाती है. पशुगणना में प्रत्येक घर, उद्यम एवं संस्थानों में पशुओं की प्रजातिवार गणना की जाती है. देश में प्रथमवार पशुगणना साल 1919 में की गई थी. इस कड़ी में अब तक कुल 20 पशुगणनाएं आयोजित की जा चुकी हैं.

20वीं पशुगणना साल 2019 में आयोजित की गई थी. उक्त पशुगणना में पहली बार टैबलेट के माध्यम से औनलाइन की गई, जिस में गणनकर्ताओं द्वारा भारत सरकार द्वारा विकसित किए गए एप पर पशुओं की गिनती की गई. आंकड़े सीधे भारत सरकार के सर्वर पर अपलोड हुए थे.

प्रमुख सचिव, पशुधन द्वारा अवगत कराया गया कि 20वीं पशुगणना की भांति इस बार भी पशुगणना एनडीएलएम (National Digital Livestock Mission) द्वारा विकसित एंड्राइड एप पर कराई जानी है, जिस के अंतर्गत एनबीएजीआर (National Bureau of Animal Genetic Resources) द्वारा पंजीकृत ब्रीड के अनुसार नस्लवार पशुओं की गिनती की जाएगी.

भारत सरकार द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, पूरे देश में एकसाथ सितंबर से दिसंबर 2024 के मध्य पशुगणना का काम किया जाना है. 21वीं पशुगणना से प्राप्त होने वाले विस्तृत एवं विश्वासपरक आंकड़े की नींव पर नीति निर्धारण से आने वाले समय में पशुपालन विभाग प्रगति के नए आयाम को प्राप्त करेगा.

21 वी पशुगणना के लिए भारत सरकार द्वारा 5 राज्यों कर्नाटक, ओड़िसा, उत्तर प्रदेश, गुजरात व अरुणाचल प्रदेश को पायलट सर्वे के लिए चयनित किया गया है.

मुख्य अतिथि द्वारा अपने संबोधन में पशुपालन को आजीविका का मुख्य स्रोत मानते हुए गुणवत्तायुक्त पशुधन उत्पादों की चर्चा के साथ वास्तविक पशुधन के आंकड़ों पर बल दिया गया. पशुधन विकास के 4 प्रमुख आयाम उन्नत पशु प्रजनन, पशु स्वास्थ्य, पशु प्रबंधन एवं पशु पोषण के क्षेत्र में समग्र प्रयास पशुधन के चहुंमुखी विकास का प्रमुख आधार सही गणना पर ही आधारित है. इसलिए प्रशिक्षण कार्यक्रम की उपयोगिता और सार्थकता पर प्रकाश डाला. साथ ही, गोवंश के समग्र विकास एवं दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिए नई तकनीकी पर बल दिया गया.

निदेशक, रोग नियंत्रण एवं प्रक्षेत्र द्वारा समस्त व्यक्तियों, विभिन्न प्रदेशों से आए प्रतिभागियों के साथसाथ इस कार्यक्रम में सहयोग प्रदान करने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान के अधिकारियों व कर्मचारियों, पशुपालन विभाग, उप्र के अधिकारियों व कर्मचारियों का आभार व्यक्त किया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में पशुपालन विभाग, उप्र के विभिन्न अधिकारियों डा. अरविंद कुमार सिंह, अपर निदेशक, गोधन, डा. जयकेश पांडेय, अपर निदेशक, नियोजन, डा. एके वर्मा, अपर निदेशक, लघु पशु, डा. एमआई खान, संयुक्त निदेशक, सांख्यकीय, डा. संजीव शर्मा उपनिदेशक, सांख्यकीय, डा. नीलम बाला, उपनिदेशक/रजिस्ट्रार और निदेशालय पशुपालन विभाग, उप्र, लखनऊ के विभिन्न अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा प्रतिभाग किया गया.

प्राकृतिक खेती (Natural farming) से मिट्टी रहेगी स्वस्थ

भागलपुर: बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में 15-16 जुलाई 2024 को 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. विषय था, ‘पुनर्योजी कृषि हेतु प्राकृतिक खेती के तरीके’. इस संगोष्ठी में बिहार के 32 जिलों के कृषि विभाग, बिहार सरकार के सहायक तकनीकी प्रबंधक (एटीएम), प्रखंड तकनीकी प्रबंधक (बीटीएम), कृषि समन्वयक एवं जिले के प्रगतिशील किसान सहित कुल 96 प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया.

इस 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में वैज्ञानिकों ने पुनर्योजी कृषि (रिजेनेरेटिव एग्रीकल्चर) की आवश्यकता और उस के महत्व एवं उस को लागू करने के तरीकों के बारे में विस्तार से चर्चा की. प्राकृतिक खेती द्वारा पुनर्योजी कृषि को किस प्रकार अपनाया जा सकता है, उस को बताते हुए सस्य वैज्ञानिक डा. शंभू प्रसाद ने प्रशिक्षणार्थियों को बीजामृत, जीवामृत बनाने की विधियों के साथसाथ प्राकृतिक खेती के मुख्य सिद्धांतों एवं अवयवों के बारे में जानकारी दी. वहीं डा. एके झा ने पुनर्योजी कृषि में वर्मी कंपोस्ट की महत्ता एवं उस को बनाने एवं उपयोग करने के तरीके के बारे में बताया.

कार्यक्रम का समापन सभी प्रतिभागीयों को प्रमाणपत्र वितरण के उपरांत किया गया. समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे निदेशक शोध, डा. अनिल कुमार ने प्रतिभागियों को प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों एवं संगोष्ठी में बताए गए तरीकों से खेती करने की सलाह दी.

उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह बिहार राज्य के सभी किसानों के उत्थान के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं.

बिहार सरकार और बामेती, पटना के सहयोग से किसानों की खेती को लाभकारी और टिकाऊ योजनाओं एवं तकनीकों को प्रचारित एवं प्रसारित करने हेतु इस तरह के संगोष्ठी एवं कार्यक्रम को संचालित करते रहने का निर्देश भी देते हैं.

संगोष्ठी के समापन सत्र में डा. आरएन सिंह, सहनिदेशक, प्रसार शिक्षा एवं उपनिदेशक प्रशिक्षण, बिकृवि, सबौर ने बामेती, पटना के सहयोग की काफी प्रशंसा की और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी. इस कार्यक्रम में सस्य विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. संजय कुमार सहित डा. राजेश कुमार एवं डा. एके झा भी उपस्थित थे.

नरमा में सुंडी (Caterpillar in Narma) और टिंडों में गलन, कैसे करें हल

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा गुलाबी सुंडी एवं टिंडा गलन की समस्या के निवारण के लिए कुलपति प्रो. बीआर कंबोज के मार्गदर्शन में ‘कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम’ आयोजित किया गया. गांव उमरा व चूली कलां में आयोजित कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिकों ने नरमा की फसल में गुलाबी सुंडी के प्रकोप एवं टिंडा गलन की समस्या के बारे में किसानों को विस्तृत जानकारी दी. किसानों को नरमा फसल की उपरोक्त समस्याओं से नजात दिलाने के लिए ‘विश्वविद्यालय आप के द्वार’ तर्ज पर गांवगांव कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं.

गांव उमरा में प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय स्टेशन सिरसा, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय व कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया. केंद्रीय कपास अनुसंधान, सिरसा के प्रधान वैज्ञानिक डा. एसके वर्मा, विश्वविद्यालय के कपास अनुभाग के अध्यक्ष डा. करमल सिंह मलिक, कीट वैज्ञानिक डा. अनिल जाखड़, पौध रोग वैज्ञानिक डा. अनिल सैनी ने नरमा फसल में होने वाले रोगों/बीमारियों की रोकथाम के बारे में किसानों को जागरूक किया. इस तरह के कार्यक्रम जिले के कृषि अधिकारियों एवं कीटनाशक विक्रेताओं के लिए भी आयोजित किए जाएंगे, ताकि गुलाबी सुंडी की समस्या को कम किया जा सके.

अनुसंधान निदेशक डा. एसके पाहुजा ने बताया कि कपास अनुभाग समयसमय पर नरमा फसल की एडवाइजरी जारी करता है, जिस की अनुपालना कर के किसान नरमा फसल की अच्छी पैदावार ले सकते हैं. उन्होंने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कपास फसल के लिए कीट संबंधी महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं :

कीट संबंधी सलाह:

नरमा फसल में गुलाबी सुंडी की निगरानी के लिए 2 फैरोमौन ट्रैप प्रति एकड़ लगाएं या साप्ताहिक अंतराल पर कम से कम 150-200 फूलों का निरीक्षण करें. टिंडे बनने की अवस्था में 20 टिंडे प्रति एकड़ के हिसाब से तोड़ कर, उन्हें फाड़ कर गुलाबी सुंडी हेतु निरीक्षण करें. 12-15 गुलाबी सुंडी प्रौढ़ प्रति ट्रैप 3 रातों में या 5 से 10 फीसदी फूल या टिंडा ग्रसित मिलने पर कीटनाशकों का प्रयोग करें.

कीटनाशकों में प्रोफेनोफास 50 ईसी की 3 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी या क्विनालफास 25 ईसी की 3 से 4 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. सफेद मक्खी एवं हरा तेला का प्रकोप होने पर फलोनिकामिड 50 डब्ल्यूजी 60 ग्राम या एफिडोपायरोप्रेन 50 जी/एल की 400 मिलीलिटर मात्रा प्रति एकड़ का छिड़काव करें.

बीमारी संबंधी परामर्श :

जड़ गलन के प्रबंधन के लिए कार्बन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी को पौधों की जड़ों में डालें. टिंडा गलन के प्रबंधन के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड की 2 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें.

महत्वपूर्ण सस्य क्रियाएं :

बरसात के बाद पानी की निकासी का उचित प्रबंध करें. पहले खाद नहीं डाली है तो अब निराईगुड़ाई के साथ एक बैग प्रति एकड़ की बिजाई करें. अगर डीएपी पहले डाल चुके हैं, तो आधा कट्टा यूरिया प्रति एकड़ डालें.

आम बजट(General Budget) 2024 : किसानों के लिए क्या है खास

– प्राकृतिक खेती को बढ़ावा : सरकार ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिस से किसानों को रासायनिक उर्वरकों की जगह प्राकृतिक तरीकों से खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
– किसान क्रेडिट कार्ड : सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत किसानों को आसानी से ऋण देने की घोषणा की है, जिस से किसानों को अपनी जरूरतों के लिए आसानी से पैसे मिल सकें.
– सिंचाई परियोजनाएं : सरकार ने सिंचाई परियोजनाओं के लिए अधिक धन आवंटित किया है, जिस से किसानों को अपने खेतों में पानी की कमी का सामना न करना पड़े.
– फसल बीमा योजना : सरकार ने फसल बीमा योजना के तहत किसानों को उन की फसलों के नुकसान की भरपाई करने की घोषणा की है, जिस से किसानों को अपनी फसलों के नुकसान से बचाया जा सके.
– किसानों के लिए डिजिटल सेवाएं : सरकार ने किसानों के लिए डिजिटल सेवाएं शुरू की हैं, जिस से किसानों को अपनी जरूरतों के लिए आसानी से जानकारी और सेवाएं मिल सकें.

भारत सरकार द्वारा आज जो बजट पेश किया गया है, इस में किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं. यह बजट किसानों के लिए लाभकारी होगा और कृषि उत्पादन को बढ़ाने में एक नई दिशा प्रदान कर सकेगा. दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए जो प्रावधान किए गए हैं, उस से देश में उत्पादन बढ़ेगा.

ट्रेनिंग स्किल डवलपमैंट और ऐजूकेशन लोन से देश के नौजवानों को फायदा होगा, इस से कौशल विकास की दिशा में उठाया गया सही कदम माना जा सकता है. कौशल विकास से रोजगारस्वरोजगार की असीम संभावनाओं को दिशा मिलेगी. साथ ही, नौजवानों के लिए औपचारिक प्रशिक्षण से लाभ होगा.

इन प्रशिक्षकों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, जिस से बुनियादी ढांचा और अधिक मजबूत करने की संभावनाएं रहेंगी. स्किल गैप को कम करने में प्रशिक्षण कार्यक्रमों यानी इंटर्नशिप से छात्रछात्राओं को फायदा होगा. इस से उद्योगों और शिक्षा जगत के बीच तालमेल बन सकेगा. व्यावसायिक प्रशिक्षण को एकेडमिक शिक्षा से कमतर मानने की नकारात्मक सोच सब से बड़ी चुनौती में से एक है. सब से ज्यादा नियोक्ता कुशल कार्यबल से लाभान्वित होते हैं व कौशल विकास के लिए सुविधाओं का विकास कर सकते हैं

देश में हुए एक आर्थिक सर्वे के अनुसार, उस में कहा गया है कि देश में 91.3 फीसदी नौजवान नौकरी पर रखने लायक नहीं हैं, वहीं 63 फीसदी कंपनियों ने यह बताया है कि आईटी इंजीनियरिंग सर्विसेज और सेल्स में योग श्रमिकों की बेहद कमी है. अकादमी की मदद से श्रमिकों को कुशल बनाया जा सकता है. सब से बड़ी बात है कि विभिन्न राज्यों में कई ऐसे काम हैं, जिन्हें महिलाओं को करने की इजाजत नहीं है.

उत्तर प्रदेश में 18 प्रकार के उत्पादन कार्य में महिलाएं शामिल नहीं हो सकती हैं. इस प्रकार के नियम को खत्म करने की जरूरत है. कुलमिला कर कहा जा सकता है कि इस बार के बजट से युवाओं को आगे बढ़ाने और उन को दक्ष बनाने में मदद मिल सकेगी.

नैचुरल फार्मिंग से जुड़ेंगे किसान

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नए बजट में नैचुरल फार्मिंग की तरफ रुख करने पर जोर दिया है. आने वाले 2 सालों में भारत में एक करोड़ किसानों को सर्टिफिकेशन और ब्रांडिंग की मदद से नैचुरल फार्मिंग से जोड़ा जाएगा. इन के इंप्लीमैंटेशन के लिए ग्राम पंचायतों और वैज्ञानिक संस्थानों की मदद ली जाएगी. इस के अलावा 10,000 नीड बेस्ड बायोइनपुट सैंटर भी स्थापित किए जाएंगे.

किसान क्रेडिट कार्ड

इस आम बजट में किसानों की मदद करने के लिए सरकार ने 5 राज्यों में नए किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जाने की बात कही गई है. इस के अलावा नाबार्ड के माध्यम से भी किसानों को सहायता दी जाएगी.

नई किस्मों पर जोर :

मौसम के बदलने के कारण हर साल किसानों को फसलों के खराब होने से काफी नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में बजट में कहा गया है कि सरकार 32 फसलों की 109 नई किस्में लाएगी, जो मौसम से कम प्रभावित होंगी.

दलहन और तिलहन पर खास घोषणा

सरकार किसानों को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयासरत है. सरकार ने बताया कि अपने नए बजट के तहत दलहन और तिलहन के प्रोडक्शन, स्टोरेज और मार्केटिंग को मजबूत किया जाएगा. साथ ही, सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन, सूरजमुखी जैसे तिलहनों के प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए एक खास रणनीति तैयार की जाएगी.

नए बजट में सरकार ने सब्जियों की सप्लाई चैन को मजबूत करने की बात पर भी जोर दिया है और इन के भंडारण और कलैक्शन पर ध्यान दिया है.

फसलों की नमी नापेगा नमी मीटर (Moisture Meter)

नई दिल्ली : केंद्रीय उपभोक्ता मामला विभाग ने अनाज और तिलहन में नमी के स्तर को मापने में काम आने वाले नमी मीटर के लिए मसौदा नियमों पर चर्चा करने के लिए सभी हितधारकों के साथ एक बैठक आयोजित की.

नमी मीटर एक विशेष उपकरण है, जिस का उपयोग विभिन्न पदार्थों, विशेष रूप से कृषि में अनाज और तिलहन में नमी की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है. नमी के बारे में इस से सटीक आंकड़े मिलते हैं.

इस बैठक की अध्यक्षता उपभोक्ता मामला विभाग की सचिव निधि खरे ने की. इस संशोधन का उद्देश्य अनाज और तिलहन में नमी के स्तर को मापने में नमी मीटर के लिए विनिर्देशों को शामिल करना है. नियम अनाज और तिलहन के वाणिज्यिक लेनदेन में उपयोग किए जाने वाले अनाज नमी मीटर के प्रकार अनुमोदन के लिए माप संबंधी और तकनीकी आवश्यकताओं, परीक्षण विधियों और अधिकतम स्वीकार्य त्रुटियों को निर्दिष्ट करेंगे.

इस बैठक में विभिन्न निर्माताओं, उपयोगकर्ताओं, वैज्ञानिक संस्थानों, प्रयोगशालाओं, राज्य सरकार के कानूनी माप विज्ञान विभागों और वीसीओ ने भाग लिया.

नमी मीटर इन वस्तुओं की गुणवत्ता और भंडारण उपयुक्तता निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण है. नमी के स्तर को माप कर किसान और कारोबारी अनाजों का बेहतर संरक्षण सुनिश्चित कर सकते हैं, इस के खराब होने के जोखिम को कम कर सकते हैं और भंडारण व परिवहन के लिए इष्टतम स्थिति बनाए रख सकते हैं. कानूनी माप विज्ञान नियमों में नमी मीटरों को शामिल करने के प्रस्ताव का उद्देश्य उन की सटीकता को मानकीकृत और विनियमित करना, कृषि व्यापार प्रथाओं में निष्पक्षता और पारदर्शिता बढ़ाना है.

नमी मीटर से संबंधित मसौदा नियम 30 मई, 2024 को सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध कराए गए थे, जिस में जून, 2024 के अंत तक सभी हितधारकों से टिप्पणियां आमंत्रित की गई थीं. इस बैठक के दौरान मसौदा नियमों पर प्राप्त सभी टिप्पणियों पर विस्तार से चर्चा की गई.

सभी हितधारकों ने अनाज और तिलहन में नमी के स्तर को मापने के काम आने वाले नमी मीटर को शामिल करने के लिए प्रस्तावित संशोधन का समर्थन किया. उन्होंने किसानों और कृषि क्षेत्र में शामिल अन्य हितधारकों के सर्वोत्तम हित में इन नियमों को लागू करने के महत्व पर जोर दिया.

विभाग नमी मीटरों के अलावा गैस मीटर (पीएनजी मीटर), ऊर्जा मीटर, वाहनों की गति मापने के लिए रडार उपकरण और श्वास विश्लेषकों को विनियमित करने के लिए नियम बनाने पर भी काम कर रहा है. इस के लिए निर्माताओं, उपयोगकर्ताओं और स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन सहित सभी हितधारकों के साथ सार्वजनिक परामर्श किया जा रहा है.

मशरूम के पोषणीय एवं औषधीय महत्व पर एकदिवसीय प्रशिक्षण हुआ

उदयपुर: 20 जुलाई 2024 को अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना, अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधान में अनुसूचित जनजाति उपयोजना (टीएसपी) के अंतर्गत ग्राम पंचायत सोम में एकदिवसीय मशरूम प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. मशरूम प्रशिक्षण में पंचायत समिति -फलासिया के कुल 22 गांवों के किसानों एवं महिलाओं ने हिस्सा लिया.

प्रशिक्षण में परियोजना प्रभारी डा. एनएल मीना मशरूम के महत्वपूर्ण गुणों, ढिंगरी व दूधछाता मशरूम की खेती के बारे में विस्तार से बताया और पंचायत समिति फलासिया के सहायक कृषि अधिकारी शिव दयाल मीणा ने कृषि में अतिरिक्त आमदनी के लिए मशरूम की खेती को बढ़ावा देने व राजस्थान सरकार की अनुसूचित जनजाति किसानों के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी.

डा. सुरेश कुमार, अविनाश कुमार नागदा एवं किशन सिंह राजपूत ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की प्रायोगिक जानकारी दी और प्रशिक्षण के अंत में अनुसूचित जनजाति उपयोजना के कुल 30 प्रशिक्षणार्थियों को सामग्री वितरित की गई.

किसानों के उत्थान के लिए मिला स्कौच पुरस्कार

नई दिल्ली : बीएयू के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है, क्योंकि इस की परियोजना ‘किसानों की आजीविका के उत्थान के लिए कृषि नवाचार’ को भारत के प्रतिष्ठित स्कौच पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यह सम्मान किसानों की आजीविका बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय के अभिनव प्रयासों और प्रतिबद्धता को दर्शाता है. इस पुरस्कार को नई दिल्ली के इंडिया हैबिटैट सैंटर मेँ कुलपति डा. डीआर सिंह ने ग्रहण किया.

स्कौच पुरस्कार उन लोगों, परियोजनाओं और संस्थानों का सम्मान करता है, जो भारत को एक बेहतर राष्ट्र बनाने के लिए अतिरिक्त प्रयास करते हैं. समाज में योगदान देने में उन की असाधारण उपलब्धियों के लिए यह पुरस्कार मिलता है.

विश्वविद्यालय ने अपने प्रोजैक्ट के महत्वपूर्ण प्रभाव और क्षमता का प्रदर्शन करते हुए पहले ही ग्रैंड फिनाले मेँ स्थान सुरक्षित कर लिया है.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने विश्वविद्यालय की परियोजना को मान्यता देने और इसे पुरस्कृत करने के लिए स्कौच अधिकारियों के प्रति आभार व्यक्त किया. उन्होंने बिहार के कृषक समुदाय के प्रति विश्वविद्यालय के समर्पित कार्य की सफलता पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि पुरस्कृत की गई यह परियोजना अन्य फसलों के साथसाथ धान, गेहूं, मक्का, बैगन और परवल जैसी आवश्यक फसलों की नई किस्मों को विकसित करने पर केंद्रित है. इस के अतिरिक्त, विश्वविद्यालय उत्पादकता में सुधार लाने के उद्देश्य से नई कृषि प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने में सब से आगे है.

डा. डीआर सिंह ने इन नवाचारों के प्रसार में विश्वविद्यालय के प्रयासों पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि अपने मीडिया सैंटर, सोशल मीडिया प्लेटफार्म और ज्ञान वाहन पहल के माध्यम से, विश्वविद्यालय यह सुनिश्चित करता है कि मूल्यवान जानकारी और प्रौद्योगिकियां किसानों तक प्रभावी ढंग से पहुंचें.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय को मिले यह अवार्ड किसानों के प्रति बीएयू की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

प्राकृतिक खेती करने वाले किसान को मिलेगी सब्सिडी (Subsidy)

लखनऊ : राजधानी लखनऊ में ‘प्राकृतिक खेती के विज्ञान पर क्षेत्रीय परामर्श कार्यक्रम’ को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री के ‘धरती मां को रसायनों से बचाने’ के सपने को पूरा करते हुए हम कोशिश करेंगे कि आने वाले समय में किसान रसायनमुक्त खेती करें, ताकि आने वाली पीढ़ी स्वस्थ रहे.

उन्होंने किसानों का आह्वान किया कि वे अपने खेत के एक हिस्से पर प्राकृतिक खेती करें. शुरुआती 3 सालों में जब किसान प्राकृतिक खेती करेंगे, तो पैदावार कम होगी और ऐसी स्थिति में सरकार किसानों को सब्सिडी देगी. प्राकृतिक खेती से उगाए हुए अनाजों, फलों और सब्जियों की बिक्री से किसानों को डेढ़ गुना से ज्यादा दाम मिल जाएंगे.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि देश के कृषि विश्वविद्यालयों में प्राकृतिक खेती के अध्ययन व खोज के लिए प्रयोगशालाओं को स्थापित किया जाएगा, जिन की मदद से देश में प्राकृतिक खेती को मदद मिलेगी और अनाज के भंडार भी भरेंगे.

उन्होंने कहा कि देश के एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक किया जाएगा, ताकि वे देश के हर कोने में जा कर इस का प्रचार कर सकें. केंद्र सरकार सभी हितधारकों से परामर्श कर के प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाएगी.

गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने अपने संबोधन में कहा कि प्राकृतिक खेती और जैविक खेती 2 अलगअलग चीजें हैं और इस अंतर को समझना जरूरी है.

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती में पानी की कम जरूरत होती है और यह किसानों के लिए काफी फायदेमंद है. यह अच्छी बात है कि अब सरकार प्राकृतिक खेती के महत्व को समझ गई है.

इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक खेती के उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. सभी 6 कृषि विश्वविद्यालयों को प्रमाणन प्रयोगशालाओं को बेहतर बनाने के निर्देश दिए गए हैं.

सीएम योगी आदित्यनाथ ने बताया कि उत्तर प्रदेश में 4 कृषि विश्वविद्यालय, 89 कृषि विज्ञान केंद्र और 2 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किए गए हैं.

फसल विविधीकरण, जल प्रबंधन पर पंजाब को मदद   

नई दिल्ली : 18 जुलाई, 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ क्रमवार बैठकों की कड़ी में पिछले दिनों नई दिल्ली स्थित कृषि भवन में पंजाब के कृषि, पशुपालन, मत्स्यपालन, डेयरी विकास और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री गुरमीत सिंह खुदियां के साथ बैठक हुई. इस दौरान राज्य में खेतीकिसानी के विकास को ले कर विविध विषयों पर सकारात्मक चर्चा हुई.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पंजाब द्वारा रखे गए राज्य कृषि सांख्यिकी प्राधिकरण से संबंधित प्रस्ताव पर मंत्रालय की ओर से मंजूरी का पत्र पंजाब के मंत्री को बैठक में दिया. बैठक में पंजाब को राज्य कृषि सांख्यिकी प्राधिकरण (एसएएसए) संबंधित स्वीकृति का जो पत्र केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से दिया गया है, उस के अनुसार कृषि सांख्यिकी में सुधार (आईएएस) योजना में पंजाब को भी शामिल करते हुए एसएएसए के तहत परियोजना निगरानी इकाई (पीएमयू) स्थापित करने की अनुमति दी गई है.

इस योजना के अंतर्गत आईएएस के कार्यों में शामिल कर्मचारियों के लिए सौ फीसदी वित्तीय सहायता के साथ धनराशि जारी की जाती है. यह पहल कृषि सांख्यिकी प्रणाली में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

बैठक में फसल अवशेष प्रबंधन योजना के कार्यान्वयन को ले कर चर्चा हुई और इस बात पर जोर दिया गया कि पर्यावरण के हित में इस दिशा में और भी गंभीरता से काम किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि किसानों को ड्रेगन फ्रूट, कीनू आदि उगाने सहित बागबानी एवं अन्य फसलों के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि पराली की समस्या कम हो और किसानों की आमदनी भी बढ़ सके.

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के संबंध में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र सरकार की ओर से पूरी मदद का भरोसा दिलाया, वहीं अन्य राज्यों की तरह पंजाब को भी पर्याप्त खादबीज की आपूर्ति होती रहेगी.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस संबंध में पूरी तरह गंभीरता से काम कर रहा है. हम मिलजुल कर खेतीकिसानी के विकास के लिए लगातार काम करते रहेंगे. बैठक में कृषि सचिव संजीव चोपड़ा सहित वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे.