‘राष्ट्रीय मछुआरा दिवस’ का आयोजन

उदयपुर : 10 जुलाई, 2024 को मत्स्य विभाग, उदयपुर द्वारा मत्स्य भवन परिसर में ‘राष्ट्रीय मछुआरा दिवस’ का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत में विभाग के सहायक निदेशक डा. अकील अहमद द्वारा अतिथियों एवं समस्त प्रतिभागियों का स्वागत कर इस कार्यक्रम के उद्देश्यों के बारे में जानकारी दी.

मात्स्यिकी  महाविद्यालय के पूर्व प्रोफैसर एवं डीन डा. सुबोध शर्मा ने प्रतिभागियों को बताया कि मछुआरा दिवस का आयोजन मत्स्य वैज्ञानिक डा. हीरालाल चौधरी एवं डा. केएच अलीकुन्ही द्वारा वर्ष 1957 में हारमोंस इंजेक्शन से प्रेरित प्रजनन द्वारा भारतीय मेजर कार्प मत्स्य बीज उत्पादन कराने में सफलता प्राप्त करने के उपलक्ष्य में हर साल मनाया जाता है. इस के फलस्वरूप मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में क्रांति का आगाज हुआ.

वर्तमान में उक्त तकनीक के विकास के साथ मत्स्य वैज्ञानिकों ने भारतीय मेजर कार्प के साथ विदेशी कार्प मछलिया एवं केट फिश के प्रजनन में भी उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है. भारतीय मेजर कार्प के साथ इन मछलियों का मत्स्य बीज भी किसानों को उपलब्ध होने लगा है.

पूर्व में मछली का बीज प्राकृतिक स्रोतों से संग्रहित किया जाता था, जिस के विभिन्न प्रजाति का मिश्रित मत्स्य बीज प्राप्त होता था, जबकि मत्स्य बीज उत्पादन की नवीन तकनीक के विकास के साथ किसानों को मनचाही प्रजाति का शुद्ध बीज समय पर उपलब्ध होने लगा है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मात्स्यिकी महाविद्यालय के पूर्व प्रोफैसर एवं डीन डा. एलएल शर्मा ने राष्ट्रीय मछुआरा दिवस के उपलक्ष्य में मत्स्य किसानों को अपनी बधाई संदेश में मछलीपालन की वैज्ञानिक पद्धती अपनाने एवं नवीन तकनीकों का समावेश करते हुए मत्स्य उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करने का आह्वान किया. साथ ही, राज्य में मत्स्य बीज की उपलब्ता बढाने के लिए भी प्रयास करने पर जोर दिया.

उन्होंने बताया कि 80 के दशक में ही प्रेरित प्रजनन की तकनीक के प्रयोग से स्थानीय मत्स्य प्रजाति सरसी का प्रजनन फतह सागर में सफलतापूर्वक करवाया था. कार्यक्रम में पूर्व उपनिदेशक अरुण कुमार पुरोहित, मत्स्य अधिकारी डा. दीपिका पालीवाल एवं डा. शीतल नरूका सहित उदयपुर क्षेत्र के मत्स्य किसान, मछुआरों एवं प्रगतिशील फिश फार्मर्स ने भाग लिया.

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश के छोटे व सीमांत किसानों को सशक्त करेगी सरकार

नई दिल्ली : पिछले दिनों केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश के छोटे व सीमांत किसानों को सशक्त बनाने के लिए कृषक उत्पादक संगठन यानी एफपीओ को एक आंदोलन के रूप में बढ़ावा दिया जाएगा. इसी कड़ी में केंद्र सरकार द्वारा देशभर में एफपीओ मेले लगाए जाएंगे, जिन के माध्यम से किसानों के एफपीओ को प्रोत्साहन मिलेगा. सरकार का उद्देश्य है कि एफपीओ के माध्यम से हमारे किसान भाईबहन अपने पैरों पर खड़े हों और उन का जीवनस्तर ऊंचा उठे.

यह बात शिवराज सिंह चौहान ने दिल्ली हाट, आईएनए में आयोजित एफपीओ मेल में कही. उन्होंने यहां हर स्टाल पर जा कर एफपीओ संचालकों व किसानों से बात की, एफपीओ के माध्यम से उन की प्रगति पूछी, साथ ही सुझाव भी लिए.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में किसान कल्याण सर्वोपरि है. इस दिशा में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार देने और देश के छोटे किसानों के बढ़ते हुए सामर्थ्य को संगठित रूप देने में हमारे किसान उत्पाद संगठनों, एफपीओ की बड़ी भूमिका है. सरकार इस बात पर ध्यान दे रही है कि एफपीओ से जुड़े किसानों को भी उन के उत्पाद बेचने के लिए अच्छा प्लेटफार्म मिले, जिस से उन्हें तो अधिक लाभ होगा ही, उपभोक्ताओं को भी गुणवत्तापूर्ण उत्पाद सही दाम पर मिलेंगे.

उन्होंने आगे कहा कि एफपीओ का भविष्य बहुत उज्ज्वल है. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हम इस आंदोलन को बहुत आगे ले जाने का प्रयत्न करेंगे. देशभर में 10 हजार नए एफपीओ बनाने की भारत सरकार की योजना बहुत सफलता से आगे बढ़ रही है, जिस के अंतर्गत अभी तक पौने 9 हजार से ज्यादा एफपीओ बनाए जा चुके हैं. एफपीओ का यह बहुत बड़ा एक परिवार है और हम सब मिलजुल कर साथ में आगे बढ़ेंगे. एफपीओ के माध्यम से किसानों को मजबूत बनाने में केंद्र सरकार पूरी ताकत के साथ खड़ी है.

उन्होंने एफपीओ को आर्थिक मजबूती के लिए एक लाख करोड़ रुपए के एग्री इंफ्रा फंड सहित केंद्र की अन्य योजनाओं का लाभ उठाने की अपील की और कहा कि एफपीओ आंदोलन को और ताकत देने के लिए इस योजना की मंत्रालय के स्तर पर समीक्षा भी की जाएगी.

मेले में हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, हिमाचल, पंजाब, जम्मूकश्मीर के एफपीओ शामिल हुए. सभी एफपीओ को ओएनडीसी से जोड़ा जा रहा है. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव फैज अहमद किदवई, मनिंदर कौर, शुभा ठाकुर व अन्य अधिकारी मौजूद थे.

मत्स्यपालन की सफलता से बढ़ी आय

सिवनी : प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का लाभ ले कर मछलीपालन कर अच्छी आय प्राप्त कर रहे मो. अब्दुल वहाब खान सिवनी में केंद्र व राज्य शासन द्वारा युवाओं के कौशल उन्नयन और उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने के लिए विभिन्न योजनाओं का संचालन कर रहे हैं.

शासन की कल्याणकारी योजनाओं का मैदानी स्तर पर सकारात्मक परिणाम दिखाई दे रहा है. इन योजनाओं का लाभ ले कर बेरोजगार युवकयुवतियां विभिन्न उद्यमों का संचालन करते हुए आत्मनिर्भर हो रहे हैं. साथ ही, अपनी एक अलग पहचान भी बना रहे हैं. आज अनेकों युवा उद्यमी स्वयं बेहतर जीवन जीने के साथ ही अन्य जरूरतमंदों को रोजगार उपलब्ध करवा कर समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन रहे हैं.

ऐसा ही उदाहरण सिवनी जिले के विकासखंड बरघाट के गांव अरी के रहने वाले मो. अब्दुल वहाब खान का भी है, जिन्होंने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का लाभ ले कर मछलीपालन का काम शुरू किया. आज वे इस काम से बेहतर आय प्राप्त कर रहे हैं.

वे बताते हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का लाभ ले कर उपसंचालक, मत्स्य मरावी के मार्गदर्शन में 1.50  हेक्टेयर भूमि में तालाब बनाने का काम कराया, जिस पर मत्स्य विभाग द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 में हितग्राही मो. अब्दुल वहाब खान को तालाब निर्माण की इकाई लागत राशि 10.50 लाख रुपए पर 4.20 लाख रुपए एवं इनपुट्स इकाई लागत राशि 6.00 लाख रुपए पर राशि 2.40 लाख रुपए, इस प्रकार कुल 6.60 लाख रुपए का अनुदान दिया गया.

मत्स्य किसान मो. अब्दुल वहाब खान ने बताया कि वे उक्त भूमि में धान की खेती करते थे, जिस में लागत की अपेक्षा मुनाफा कम होता था. उन्होंने तालाब बनाने के बाद साल 2022-23 में 65,000 पंगेशियस मत्स्य बीज का संचयन किया था, जिस से 55 मीट्रिक टन पंगेशियस मछली का उत्पादन हुआ. उत्पादित मत्स्य को हितग्राही द्वारा औसत 90 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में बेचा गया, जिस से उन्हें शुद्ध आय तकरीबन 9 लाख प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुई.

इसी तरह मो. अब्दुल वहाब खान ने साल 2023-24 में 1.00 लाख पंगेशियस मत्स्य बीज का संचयन किया. वर्तमान समय तक उन के द्वारा 5 मीट्रिक टन मछली का विक्रय किया जा चुका है एवं 80-85  मीट्रिक टन पंगेशियस मछली के उत्पादन की उम्मीद है.

चूंकि पंगेशियस मछली के पालन में प्रोटीनयुक्त पूरक आहार का उपयोग किया जाता है एवं एक किलोग्राम मछली के उत्पादन में लगभग 1.50 किलोग्राम पूरक आहार की आवश्यकता होती है.

हितग्राही मो. अब्दुल वहाब खान ने बताया कि मछली के उत्पादन में लगने वाले कुल लागत के बाद उन्हें प्रति हेक्टयर 11-12 लाख का आर्थिक लाभ मिलने की उम्मीद है.

खरीफ फसलों का बीमा 31 जुलाई तक

शिवपुरी : प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत खरीफ वर्ष 2024 में किसान जिले में एग्रीकल्चर जीवी इंश्योरेंस कंपनी इंडिया लिमिटेड के माध्यम से अपनी खरीफ फसलों का बीमा 31 जुलाई तक करा सकते हैं. ऋणी किसानों का संबंधित बैंकों के माध्यम से फसल बीमा किया जाएगा. अऋणी किसान संबंधित बैंक से या बीमा अभिकर्ता अथवा सीएससी (कौमन सर्विस सैंटर) के माध्यम से अपनी फसलों का बीमा करवा सकते हैं.

उपसंचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास ने बताया कि खरीफ फसलों का बीमा कराने के लिए भू-अधिकार पुस्तिका या बी-1 आधारकार्ड, बैंक पासबुक की प्रमाणित प्रति और फसल बोआई प्रमाणपत्र के साथ विधिवत भरा हुआ प्रस्तावपत्र के साथ अपने मोबाइल नंबर के साथ प्रस्तुत करना होगा.

ऋणी किसान, जो फसल बीमा योजना से बाहर होना चाहते हैं, उन्हें भी बीमांकन की अंतिम तिथि से 7 दिन पूर्व यानी 24 जुलाई तक अपने संबंधित बैंक में अवश्य सूचित करना होगा. फसल बीमा कराने पर प्राकृतिक आग जैसे आकाशीय बिजली गिरना, बादल फटना, तूफान, ओलावृष्टि, चक्रपात, बाढ, जलभराव, भूस्खलन सूखा, कीटव्याधियां इत्यादि से फसल नुकसान होने पर किसान फसल बीमा का लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

फसल बीमा के संबंध में किसान एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी औफ इंडिया लिमिटेड के टोल फ्री नंबर 18005707115 पर संपर्क कर सकते हैं.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत फसल का बीमा कराने के लिए शिवपुरी जिले के लिए पटवारी हल्का स्तर पर धान सिंचित के लिए प्रीमियम राशि 800 रुपए प्रति हेक्टयर, धान असिंचित के लिए 713 रुपए, मक्का के लिए 554 रुपए,  तुअर के लिए 582 रुपए, बाजरा के लिए 406 रुपए, सोयाबीन के लिए 689.50 रुपए, मूंगफली के लिए 800 रुपए और जिला स्तर पर उड़द के लिए 558 रुपए  एवं तहसील स्तर पर तिल के लिए 426.80 रुपए, मूंग के लिए 558 रुपए प्रति हेक्टेयर प्रीमियम राशि निर्धारित है. अधिसूचित फसलों की बीमा की प्रीमियम राशि अपने बैंक अथवा सीएससी सैंटर में जमा कर रसीद प्राप्त कर सकते हैं.

युवा करेंगे फसलों की गिरदावरी, तुरंत करें आवेदन

झाबुआ : मध्य प्रदेश राज्य शासन द्वारा दिए गए दिशानिर्देशानुसार जिले में फसलों की गिरदावरी यानी किसान ने अपने खेत के कितने रकबे में कौन सी फसल बोई है. यह जानकारी पटवारी द्वारा शासन के दस्तावेज में दर्ज कराई जाती है. इसे गिरदावरी कहते हैं. अब तक यह काम हाथ से कागजों पर किया जाता था. अब इस के लिए युवाओं को भी जोड़ा जाएगा. इच्छुक युवाओं से 10 जुलाई तक औनलाइन आवेदन मांगे गए हैं.

अपर कलक्टर एसएस मुजाल्दा ने बताया कि फसलों की मध्य प्रदेश भू-अभिलेख नियमावली के अनुसार, फसल गिरदावरी काम साल में 3 बार (खरीफ/रबी/जायद मौसम) में सारा एप के माध्यम से की जाती है, जिस का उपयोग उपार्जन, फसल बीमा आदि योजनाओं में सतत रूप से किया जाता है.

फसल गिरदावरी के काम में पारदर्शिता लाने के लिए भारत सरकार द्वारा डिजिटल क्राप सर्वे का काम शुरू किया गया है. यह प्रत्येक मौसम के लिए लगभग 45 दिन की कार्रवाई होती है, जिस में जिओ फेंस (पार्सल लेवल) तकनीक के माध्यम से खेत में बोई गई फसल का फोटो खींच कर फसल सर्वे का काम नियत अंतराल में पूरा किया जाएगा.

इस योजना में मौसम खरीफ डिजिटल क्राप सर्वे के लिए सर्वेयर पंजीयन 10 जुलाई, 2024 तक किए जाएं. उक्त काम के लिए गांव के स्थानीय युवा व निकटतम ग्राम पंचायत के निवासी, जिन की उम्र 18 साल से 40 साल के मध्य हो, भू-अभिलेख के पोर्टल पर पंजीयन के लिए पात्र हैं. वे पंजीयन करवाएं. इस में आधार ओटीपी से पंजीकरण भू-लेख पोर्टल के माध्यम से होगा. पटवारी द्वारा ग्राम आवंटन किया जाएगा. अधिक जानकारी राजस्व कार्यालय से प्राप्त की जा सकती है.

कुपोषण को मात देती पोषण वाटिका

मंडला : जिले के विकासखंड मोहगांव के अंतर्गत ग्राम पंचायत कौवाडोंगरी के सकरी में स्वयंसहायता समूह सफेद पलाश की दीदियों ने भूमिहीन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और बच्चों में व्याप्त कुपोषण को मात देने के लिए सामुदायिक पोषण वाटिकाएं तैयार की गई हैं, जिस से न केवल महिलाओं की आर्थिक स्तर में सुधार आएगा, बल्कि बच्चे भी कुपोषण से मुक्त हो सकेंगे. कुपोषित बच्चों के स्वजनों को वाटिका से पौष्टिक हरी सब्जी का लाभ मिल सके.

जल कुंड का निर्माण कराया गया, जिस से सिंचाई में सहायता हो सकी

समूह की दीदियों ने बताया कि साल 2022 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत सामुदायिक पोषण वाटिका उपयोजना के तहत गांव सकरी में सहायता समूह की 15 महिलाओं ने 5 एकड़ सामुदायिक जमीन पर सामुदायिक पोषण वाटिका के निर्माण को स्वीकृत किया गया, जिस का उद्देश्य गांव की सामुदायिक बंजर भूमि को पहचान कर उस के भूमि प्रबंधक के सिद्धांत से उपयोग में लाने का प्रयास करना है.

समूह की दीदियों ने बताया कि इस बंजर भूमि पर मनरेगा के सहयोग से फलदार पौधारोपण स्वीकृत कराया गया और औसतन 200 आम,  180 नींबू, 150 अमरूद, 100 बांस और 80 नीम के पौधे लगाए गए. पौधों के बचाव के लिए सीपीटी की खुदाई भी की गई. मनरेगा के सहयोग से इस भूमि पर जल संग्रहण के अंतर्गत आधुनिक खेती से महिलाओं की आय में वृद्धि हुई.

सामुदायिक पोषण वाटिका का सफेद पलाश महिला संगठन के 15 सदस्यी स्वसहायता समूह को सौंपा जाएगा. समूह की दीदियों ने बताया कि मनरेगा के सहयोग से आधुनिक खेती की जा रही है. तरबूज, हलदी, अदरक आदि की मल्टीलेयर आधुनिक खेती की जा रही है.

15 सदस्यी स्वसहायता समूह की दीदियों ने खेती में उपयोग करने के स्वयं जैविक खाद बनाते हैं, जिस में केंचुआ खाद, यूनिट और गोबर खाद का भी प्रयोग फसल में किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि आधुनिक खेती से औसतन 30,000 से 40,000 रुपए की कमाई हो जाती है. साथ ही, चना, मटर, मेथी भाजी, टमाटर, भाटा आदि खेती से उन की आय में इजाफा और पोषण में बढ़ोतरी हुई है. सामुदायिक पोषण वाटिका से गांव वालों को रसायन से मुख्य जैविक तरीके से तैयार पौष्टिक हरी सब्जी व अन्य फसल का लाभ मिल पाया है, जिस से उन का स्वास्थ भी बेहतर हो पाया है.

प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत युवा बनें उद्यमी

छिंदवाडा : उपसंचालक, उद्यान, छिंदवाड़ा ने बताया कि प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उन्नयन योजना के अंतर्गत इच्छुक आवेदकों से आवेदन आमंत्रित किए गए हैं. 18  साल से अधिक उम्र का कोई भी शिक्षित बेरोजगार युवा उद्यमी योजना का लाभ ले कर स्वयं का काम शुरू कर सकते हैं.

इस योजना में बैंक से मिलने वाले लोन में उद्यानिकी विभाग द्वारा स्वीकृत परियोजना लागत राशि का 35 फीसदी अनुदान या अधिकतम 10 लाख रुपए जो भी कम हो, स्वीकृत किया जाता है.

उन्होंने आगे बताया कि स्वरोजगार के इच्छुक उद्यमी योजना का लाभ प्राप्त कर दाल मिल, आटा मिल, चावल मिल, बड़ी, पापड़, अचार, मुरब्बा, जैम, जेली, कैचप, सिरका,  औयल मिल, बेकरी प्रोडक्ट, कुरकुरे, गुड़धाना, पनीर उद्योग, पशु आहार, पोल्ट्री आहार आदि किसी भी प्रकार की इकाई लगा  सकते हैं.

योजना की अधिक जानकारी के लिए उद्यानिकी विभाग के जिला कार्यालय अथवा विकासखंड में स्थापित कार्यालय/रोपणी में संपर्क किया जा सकता है. अतिरिक्त उद्यमी को बैंक लोन दिलाने में सहयोग के लिए जिला स्तर पर जिला रिसोर्स पर्सन से संपर्क किया जा सकता है. इस के लिए आवश्यक दस्तावेज आधारकार्ड, पेनकार्ड, मूल निवास का प्रमाणपत्र, बिजली का बिल, गैस कार्ड आदि और 6 महीने की खाता का स्टेटमेंट एवं मार्कशीट.

अधिक जानकारी के लिए डीआरपी के मोबाइल नंबर-7869163254 व दूरभाष नंबर-07162-247011 पर संपर्क किया जा सकता है.

सभी पशु रोग जूनोटिक नहीं होते

नई दिल्ली :  विश्व जूनोसिस दिवस के उपलक्ष में पशुपालन और डेयरी विभाग द्वारा विश्व जूनोसिस दिवस पर पशुपालन और डेयरी सचिव (एएचडी) की अध्यक्षता में एक बातचीत सत्र का आयोजन किया गया.

जूनोसिस संक्रामक रोग है. इस का संक्रमण जानवरों से मनुष्यों में हो सकता है, जैसे रेबीज, एंथ्रेक्स, इन्फ्लुएंजा (एच1, एन1 और एच5, एन1), निपाह, कोविड-19, ब्रुसेलोसिस और तपेदिक. ये रोग बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी और कवक फफूंद सहित विभिन्न रोगजनकों के कारण होते हैं.
यद्यपि, सभी पशु रोग जूनोटिक नहीं होते हैं. कई बीमारियां पशुधन को प्रभावित करती हैं, किंतु मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा नहीं हैं. ये गैरजूनोटिक रोग प्रजाति विशिष्ट हैं और मनुष्यों को संक्रमित नहीं कर सकते.

उदाहरण के लिए, खुरपका और मुंहपका रोग, पीपीआर, लंपी स्किन डिजीज, क्लासिकल स्वाइन फीवर और रानीखेत रोग इस में शामिल हैं. प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों और पशुओं के प्रति अनावश्यक भय और दोषारोपण को दूर करने लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि कौन सी बीमारियां जूनोटिक हैं.

भारत पशुधन की सब से बड़ी आबादी से संपन्न है, जिस में 536 मिलियन पशुधन और 851 मिलियन मुरगी हैं, जो क्रमशः वैश्विक पशुधन और मुरगी आबादी का तकरीबन 11 फीसदी और 18 फीसदी है. इस के अतिरिक्त, भारत दूध का सब से बड़ा उत्पादक और वैश्विक स्तर पर अंडों का दूसरा सब से बड़ा उत्पादक है.

अभी कुछ समय पहले, केरल के त्रिशूर जिले के मदक्कथरन पंचायत में अफ्रीकी स्वाइन फीवर (एएसएफ) की पुष्टि हुई थी. एएसएफ की पुष्टि सर्वप्रथम भारत में मई, 2020 में असम और अरुणाचल प्रदेश में की गई थी. तब से, यह बीमारी देश के लगभग 24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फैल चुकी है.

विभाग ने साल 2020 में एएसएफ के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की. वर्तमान स्थिति के लिए, राज्य पशुपालन विभाग द्वारा त्वरित प्रतिक्रिया दलों का गठन किया गया है, और 5 जुलाई, 2024 को उपरिकेंद्र के 1 किलोमीटर के दायरे में सूअरों को न्यूनीकरण के लिए मारने का काम किया गया. कुल 310 सूअरों को मार कर उन्हें गहरे खोद कर दफना दिया गया. कार्य योजना के अनुसार आगे की निगरानी उपरिकेंद्र के 10 किलोमीटर के दायरे में की जानी है.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एएसएफ जूनोटिक नहीं है और मनुष्यों में इस का संक्रमण नहीं हो सकता है. वर्तमान में, एएसएफ के लिए कोई टीका नहीं है.

जूनोटिक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण टीकाकरण, उत्तम स्वच्छता, पशुपालन पद्धति और रोगवाहक नियंत्रण पर निर्भर करता है.

वन हेल्थ विजन के माध्यम से सहयोगात्मक प्रयास, जो मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के परस्पर महत्वपूर्ण संबंध को दर्शाता है. पशु चिकित्सकों, चिकित्सा पेशेवरों और पर्यावरण वैज्ञानिकों के बीच सहयोग जूनोटिक रोगों को व्यापक रूप से संबोधित करने के लिए आवश्यक है.

जूनोटिक रोगों के जोखिम को कम करने के लिए, पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने एनएडीसीपी के तहत गोजातीय बछड़ों के ब्रुसेला टीकाकरण के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया है और एएससीएडी के तहत रेबीज टीकाकरण किया गया है.

विभाग आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पशु रोगों के लिए एक व्यापक राष्ट्रव्यापी निगरानी योजना भी कार्यान्वित कर रहा है. इस के अतिरिक्त, वन हेल्थ विजन के तहत, राष्ट्रीय संयुक्त प्रकोप प्रतिक्रिया दल (एनजेओआरटी) की स्थापना की गई है, जिस में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, आईसीएमआर, पशुपालन और डेयरी विभाग, आईसीएआर और पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विशेषज्ञ शामिल हैं. यह स्वास्थ्य दल अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लुएंजा (एचपीएआई) के सहयोगी प्रकोप जांच में सक्रिय रूप से जुड़ा रहा है.

जागरूकता रोग की शुरुआती पहचान, रोकथाम और नियंत्रण में सहायक है, जिस से अंततः सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है. जूनोटिक और गैरजूनोटिक रोगों के बीच के अंतर के बारे में जनता को शिक्षित करने से अनावश्यक भय को दूर करने में सहयोग मिलता है और पशु स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए अधिक सूचित दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है.

यद्यपि जूनोटिक रोग महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम की स्थिति को दर्शाते हैं, इस की पहचान करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि कई पशुधन रोग गैरजूनोटिक हैं और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करते हैं. इस अंतर को समझ कर और उचित रोग प्रबंधन पद्धितयों पर ध्यान केंद्रित कर के, हम पशु और मनुष्य दोनों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित कर सकते हैं, जिस से सभी के लिए एक सुरक्षित और अधिक सुरक्षित पर्यावरण में योगदान मिल सके.

विश्व जूनोसिस दिवस लुई पाश्चर के सम्मान में हर साल मनाया जाता है, जिन्होंने 6 जुलाई, 1885 को एक जूनोटिक बीमारी, रेबीज का पहला सफल टीका लगाया था. यह दिन जूनोसिस के बारे में जागरूक करने, साथ ही ऐसी बीमारियां, जो जानवरों से मनुष्यों में फैल सकती हैं और इन के निवारक और नियंत्रण के उपायों को बढ़ावा मिलता है.

फसल अवशेष प्रबंधन वाले कृषि यंत्रों पर मिल रही भारी सब्सिडी (Heavy subsidy)

लखनऊ : 10,000 से एक लाख रुपए तक के कृषि यंत्रों पर 2,500 और इस से अधिक के यंत्रों पर 5,000 रुपए जमानत राशि होगी. प्रमोशन औफ एग्रीकल्चरल मैकेनाइजेशन फौर इन-सीटू मैनेजमेंट औफ क्राप रेज्ड्यू, (सीआरएम) योजना के तहत फसल अवशेष प्रबंधन वाले कृषि यंत्रों पर अन्नदाता किसानों को अनुदान का अवसर उपलब्ध कराया गया है. इस के तहत 2 जुलाई से किसान औनलाइन आवेदन कर सकेंगे. यह प्रक्रिया 16 जुलाई तक चलेगी.

16 जुलाई तक किसान ऐसे करें औनलाइन आवेदन

एग्रीकल्चरल मैकेनाइजेशन फौर इन-सीटू मैनेजमेंट औफ क्राप रेड्ज्यू (सीआरएम) योजना के तहत कृषि यंत्रों सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम (सुपर एसएमएस), हैप्पी सीडर/स्मार्ट सीडर, सुपर सीडर, पैडी स्ट्रा चोपर/श्रेडर/मल्चर, श्रब मास्टर/रोटरी स्लैशर, सरफेस सीडर, हाइड्रोलिक रिवर्सिबल एमबी प्लाऊ, बेलिंग मशीन, स्ट्रा रेक, जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, क्रापप रीपर ट्रैक्टर माउंटेड/सेल्फ प्रोपेल्ड, सेल्फ प्रोपेल्ड रीपर कम बाइंडर एवं कस्टम हायरिंग सैंटर के आवेदन के लिए 2 जुलाई को दोपहर 12 बजे से 16 जुलाई की रात 12 बजे तक किया जाएगा. विभागीय दर्शन पोर्टल  https://www.agriculture.up.gov.in  पर “यंत्र पर अनुदान हेतु टोकन निकालें” लिंक पर क्लिक कर औनलाइन आवेदन किया जा सकता है. आवेदन के लिए बुकिंग किए जाने के लिए विभागीय पोर्टल पर उपलब्ध मोबाइल नंबर पर ओटीपी यानी वन टाइम पासवर्ड प्राप्त होगा. आवेदक द्वारा एक मोबाइल नंबर से ही आवेदन किया जा सकेगा. इस के लिए अपना अथवा ब्लड रिलेशन सदस्यों के मोबाइल से ही आवेदन मान्य होगा, क्योंकि सत्यापन के समय इस की पुष्टि भी होगी.

फसल अवशेष प्रबंधन वाले कृषि यंत्रों के आवेदन के लिए बुकिंग प्रक्रिया

किसान परिवार (पति अथवा पत्नी में से कोई एक) द्वारा एक वित्तीय वर्ष में प्रमोशन औफ एग्रीकल्चरल मैकेनाइजेशन फौर इन-सीटू मैनेजमेंट औफ क्राप रेज्ड्यू योजना के तहत निर्धारित यंत्रों में से एक या एक से अधिक प्रकार के यंत्र लिए जा सकते हैं. फसल अवशेष प्रबंधन वाले कृषि यंत्रों पर अधिकतम 50 फीसदी व कस्टम हायरिंग सैंटर पर अधिकतम 80 फीसदी तक अनुदान प्राप्त होगा. योजना के तहत फसल अवशेष प्रबंधन वाले कृषि यंत्रों और कस्टम हायरिंग सैंटर के लिए ग्रामीण उद्यमी एवं एफपीओ लाभार्थी होंगे.

ई-लौटरी की मिलेगी सूचना

ई-लौटरी के लिए स्थल, तिथि एवं समय की जानकारी आवेदकों के मध्य संबंधित जनपदीय उपकृषि निदेशक द्वारा विभिन्न माध्यमों से सूचना दी जाएगी. निर्धारित समय के भीतर लक्ष्य से अधिक आवेदन प्राप्त होने पर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित कार्यकारी समिति के समक्ष विभागीय पोर्टल पर ई-लौटरी के माध्यम से ब्लौकवार लक्ष्यों के सापेक्ष लाभार्थी का चयन किया जाएगा. ई-लौटरी व्यवस्था में लक्ष्य के अनुरुप चयनित किए जाने वाले लाभार्थियों की संख्या के अतिरिक्त लक्ष्य का 50 फीसदी तक क्रम के अनुसार प्रतीक्षा सूची भी तैयार होगी. लक्ष्य की पूर्ति न होने पर ई-लौटरी द्वारा तैयार प्रतीक्षा सूची के क्रम में लाभार्थी का चयन किया जाएगा.

आवेदन के समय ही औनलाइन जमा करनी होगी जमानत राशि

पोर्टल https://www.agriculture.up.gov.in पर “यंत्र पर अनुदान हेतु टोकन निकालें” लिंक पर क्लिक कर औनलाइन आवेदन किया जा सकता है. आवेदन के समय ही किसान को यंत्रवार निर्धारित जमानत राशि औनलाइन जमा करनी होगी. लक्ष्य अवशेष न रहने पर एवं ई-लौटरी में चयनित न होने वाले किसानों की जमानत राशि वापस कर दी जाएगी. 10,001 रुपए से ले कर एक लाख रुपए के कृषि यंत्रों के लिए जमानत राशि 2,500 रुपए व एक लाख रुपए से अधिक अनुदान के कृषि यंत्रों के लिए जमानत राशि 5,000 रुपए होगी.

लाभार्थियों का चयन/बुकिंग टोकन कंफर्म होने की तिथि से कृषि यंत्र क्रय कर विभागीय पोर्टल पर क्रय रसीद यंत्रों की फोटो, सीरियल नंबर एवं संबंधित अभिलेख 30 दिन में अपलोड करना होगा. कस्टम हायरिंग सैंटर के लिए 45 दिन का समय दिया जाएगा.

विभाग में सूचीचद्ध कृषि यंत्र निर्माताओं में से किसी से भी क्रय करने की स्वतंत्रता होगी. इन कंपनियों के upyantratracking.in पोर्टल पर अपलोड यंत्र का क्रय करने पर ही अनुदान अनुमन्य होगा. निर्धारित समय में यंत्र न खरीदने की स्थिति में आवेदन स्वतः निरस्त हो जाएगा.

कृषि यंत्रों के खरीदने के लिए फर्मों को मूल्य का कम से कम 50 फीसदी धनराशि का भुगतान लाभार्थी के स्वयं के खाते से ही किए जाने पर अनुदान का भुगतान होगा.

लखनऊ में होगा आम महोत्सव (Mango Festival), सैकड़ों किस्मों का होगा प्रदर्शन

बस्ती: लखनऊ में 12 से 14 जुलाई तक शहीद पथ स्थित अवध शिल्पग्राम में आम महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है, जिस में बस्ती के औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र द्वारा आम की 150 किस्मों का प्रदर्शन किया जा रहा है. इस में आम की रंगीन किस्में पूसा प्रतिभा, पूसा श्रेष्ठ, पूसा सूर्या, पूसा पीतांबर, पूसा लालिमा, अंबिका, अरुनिका, सेंसेसन और टौमी एटकिंस सहित कई ऐसी किस्मों का प्रदर्शन किया जाएगा, जो अपने रंग, स्वाद और बनावट की वजह से लोगों का मन मोह लेने वाला होता है.

संयुक्त निदेशक उद्यान डा. वीरेंद्र सिंह यादव नें बताया कि बस्ती का औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र आम की किस्मों के मामले में पूरे देश में अहम स्थान रखता है.

उन्होंने बताया कि इस बार महोत्सव में बस्ती जनपद के स्टाल पर प्रदर्शित किए जाने वाली आम की रंगीन किस्में लोगों को एक बार फिर से आकर्षित करने के लिए तैयार हैं. आम महोत्सव का उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किया जाएगा.

बस्ती के किसान अनिल पांडेय द्वारा लगाया जाएगा स्टाल

जिले में उन्नत, नवीन और रंगीन किस्मों के आम की बागबानी करने वाले बस्ती सदर ब्लौक के नंदपुर गांव के किसान अनिल कुमार पांडेय द्वारा लखनऊ में आयोजित हो रहे उत्तर प्रदेश आम महोत्सव के प्रतियोगिता में प्रदर्शित किया जाएगा.

उन्होंने बताया कि उद्यान विभाग द्वारा स्टाल लगाए जाने के लिए उन के नाम की संस्तुति आम महोत्सव के लिए की गई है. उन्होंने बताया कि उन्होंने 1.5 हेक्टेयर में आम की उन्नत किस्मों की रोपाई की है, जिस से उन्हें भरपूर आम की फलत मिल रही है.

उन्होंने यह भी बताया कि उन के आम के बगीचे में अमेरिकी किस्म टौमी एटकिंस और सेंसेशन सहित इंडो-इजरायल सैंटर औफ एक्सीलेंस फौर मैंगो से आम की रंगीन किस्मों पूसा प्रतिभा, पूसा श्रेष्ठ, पूसा सूर्या, पूसा पीतांबर, पूसा लालिमा, अंबिका, अरुनिका की रोपाई की गई थी, जिस से उन्हें पिछले 3 वर्षों से भरपूर फलत मिल रही है. आम की यह रंगीन किस्में देखने में खूबसूरत होने के साथ ही औषधीय गुणों से भरपूर हैं.

उन्होंने वताया कि उन के द्वारा तैयार आम की फलत में किसी तरह के कीटनाशक का प्रयोग न कर के आईपीएम विधि का प्रयोग किया जाता है, जबकि आम की खूबसूरती बढ़ाने और दागधब्बों से बचाने के लिए फलों की बैगिंग की जाती है.