नागौर की कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) कमाई से छाई बहार

राजस्थान का मारवाड़ इलाका लजीज खाने की वजह से दुनियाभर में अपनी खास पहचान रखता है, चाहे बीकानेर की नमकीन भुजिया हो या रसगुल्ले की बात हो या फिर जोधपुर के मिरची बड़े व कचौरी की, एक खास तसवीर उभर कर सामने आती है. वहीं दूसरी ओर इस इलाके में मसालों की खेती भी की जाती है. प्रदेश का नागौर जिला एक ऐसी ही मसाला खेती के लिए दुनियाभर में जाना जाता है और वह है कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) की खेती.

डाक्टर और वैज्ञानिक कई तरह की बीमारियों के इलाज के लिए भी कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) के इस्तेमाल की सलाह देते हैं. कई औषधीय गुणों से भरपूर इस मेथी का इस्तेमाल पुराने जमाने से ही पेट दर्द दूर करने, कब्जी दूर करने और बलवर्धक औषधीय के रूप में होता आया है.

मेथी (Fenugreek) की बहुउपयोगी पत्तियां सेहत के लिए फायदेमंद होने के साथसाथ खाने को लजीज बनाने में भी खास भूमिका निभाती है. खास तरह की खुशबू और स्वाद की वजह से मेथी का इस्तेमाल सब्जियों, परांठे, खाखरे, नान और कई तरह के खानों में होता है.

नागौर की यह मशहूर मेथी (Fenugreek) अंतर्राष्ट्रीय कारोबार जगत में बेहद लजीज मसालों के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है. अब तो मेथी (Fenugreek) का इस्तेमाल लोग ब्रांड नेम के साथ करने लगे हैं. सेहत की नजर से देखें तो मेथी (Fenugreek) में प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, कैल्शियम, आयरन व प्रोटीन मौजूद है.

किसान सेवा समिति, मेड़ता के बुजुर्ग किसान बलदेवराम जाखड़ बताते हैं कि किसी जमाने में पाकिस्तान के कसूरी इलाके में ही यह मेथी (Fenugreek) पैदा होती थी, जिस के चलते इस का नाम कसूरी पड़ा. धीरेधीरे इस की पैदावार फसल के रूप में सोना उगलने वाली नागौर की धरती पर होने लगी.

आज हाल यह है कि नागौर दुनियाभर में कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) उपजाने वाला सब से बड़ा जिला बन गया है. यहां की मेथी (Fenugreek) मंडियों ने विश्व व्यापारिक मंच पर अपनी एक अलग जगह बनाई है. न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी नागौर की कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) बिकने के लिए जाती है.

नागौर के ही एक मेथी (Fenugreek) कारोबारी बनवारी लाल अग्रवाल के मुताबिक, कई मसाला कंपनियों ने कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) को दुनियाभर में पहचान दिलाई है. देश की दर्जनभर मसाला कंपनियां कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) को खरीद कर देशविदेश में कारोबार करती हैं. इसी वजह से इस मेथी (Fenugreek) का कारोबारीकरण हो गया है.

नागौर जिला मुख्यालय में 40 किलोमीटर की दूरी में फैले इलाके खासतौर से कुचेरा, रेण, मूंडवा, अठियासन, खारड़ा व चेनार गांवों में मेथी (Fenugreek) की सब से ज्यादा पैदावार होती है. मेथी (Fenugreek) की फसल के लिए मीठा पानी सब से अच्छा रहता है. चिकनी व काली मिट्टी इस की खेती के लिए ठीक रहती है.

कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) की फसल अक्तूबर माह में बोई जाती है. 30 दिन बाद इस की पत्तियां पहली बार तोड़ने लायक हो जाती हैं. इस के बाद फिर हर 15 दिन बाद इस की नई पत्तियां तोड़ी जाती हैं.

मेथी (Fenugreek) के एकएक पौधे की पत्तियां किसान भाई अपने हाथों से तोड़ते हैं. लोकल बोलचाल में मेथी की पत्तियां तोड़ने के काम को लूणना या सूंठना कहते हैं. पहली बार तोड़ी गई पत्तियां स्वाद व क्वालिटी के हिसाब से सब  अच्छी होती है.

वर्तमान में मेथी (Fenugreek) की पैदावार में संकर बीज का इस्तेमाल सब से ज्यादा होता है. यहां के इसे किसान काश्मीरो के नाम से जानते हैं. कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) उतारने में सब से ज्यादा मेहनत होती है, क्योंकि इस के हरेक पौधे की पत्तियों को हाथ से ही तोड़ना पड़ता है.

कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek)

कैसे करें खेती

भारत में मेथी की कई किस्में पाई जाती हैं. कुछ उन्नत हो रही किस्मों में चंपा, देशी, पूसा अलविंचीरा, राजेंद्र कांति, हिंसार सोनाली, पंत रागिनी, काश्मीरी, आईसी 74, कोयंबूटर 1 व नागौर की कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) खास हैं. इस की अच्छी खेती के लिए इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है:

आबोहवा व जमीन : कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) की खेती के लिए शीतोष्ण आबोहवा की जरूरत होती है, जिस में बीजों के जमाव के लिए हलकी सी गरमी, पौधों की बढ़वार के लिए थोड़ी ठंडक और पकने के लिए गरम मौसम मिले. वैसे, यह मेथी हर तरह की जमीन में उगाई जा सकती है, लेकिन इस की सब से अच्छी उपज के लिए बलुई या दोमट मिट्टी बेहतर रहती है.

खाद व उर्वरक : अच्छी फसल के लिए 5 से 6 टन गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत तैयार करते समय मिला देनी चाहिए. इस के अलावा 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-40 किलो फास्फोरस व पोटाश प्रति हेक्टेयर देने से उपज में बढ़ोतरी होती है. नाइट्रोजन की बाकी बची आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई से पहले देते हैं. बाकी नाइट्रोजन 2 बार में 15 दिन के अंतराल पर देते हैं.

बोआई : कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) को अगर बीज के रूप में उगाना है, तो इसे मध्य सितंबर से नवंबर माह तक बोया जाता है. लेकिन अगर इसे हरी सब्जी के लिए उगाना है तो मध्य अक्तूबर से मार्च माह तक भी बो सकते हैं. वैसे, सब से अच्छी उपज लेने के लिए नागौर इलाके में इसे ज्यादातर अक्तूबर से दिसंबर माह के बीच ही बोया जाता है.

इस की बोआई लाइनों में करनी चाहिए. लाइन से लाइन की दूरी 15 से 20 सैंटीमीटर व गहराई 2 से 3 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. ज्यादा गहराई पर बीज का जमाव अच्छा नहीं रहता. बीज बोने के बाद पाटा जरूर लगाएं, ताकि बीज मिट्टी से ढक जाए. यह मेथी 8 से 10 दिनों में जम जाती है.

सिंचाई: कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) के पौधे जब 7-8 पत्तियों के हो जाएं, तब पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. यह समय खेत की दशा, मिट्टी की किस्म व मौसमी बारिश वगैरह के मुताबिक घटबढ़ सकता है. हरी पत्तियों की ज्यादा कटाई के लिए सिंचाई की तादाद बढ़ा सकते हैं.

फसल की हिफाजत : कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) में पत्तियों व तनों के ऊपर सफेद चूर्ण हो जाता है व पत्तियां हलकी पीली पड़ जाती हैं. बचाव के लिए 800 से 1200 ग्राम प्रति हेक्टेयर ब्लाईटाक्स 500-600 लिटर पानी में घोल कर पौधों पर छिड़क दें.

पत्तियां व तनों को खाने वाली गिड़ार से बचाने के लिए 2 मिलीलिटर रोगर 200 लिटर पानी में घोल कर फसल पर छिड़काव करें. छिड़काव कटाई से 5 से 7 दिन पहले करें.

कटाई : हरी सब्जि के लिए बोआई के 3-4 हफ्ते बाद कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) कटाई के लिए तैयार हो जाती है. बाद में फूल आने तक हर 15 दिन में कटाई करते हैं. बीज उत्पादन के लिए 2 कटाई के बाद कटाई बंद कर देनी चाहिए.

उपज और स्टोरेज : सब्जी के लिए मेथी की औसत उपज 80 से 90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर व बीज के लिए 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हासिल होती है. हरी सब्जी के लिए मेथी की पत्तियों को अच्छी तरह से सुखा कर एक साल तक स्टोर कर सकते हैं और बीज को 3 साल तक स्टोर किया जा सकता है.

गौरतलब है कि कसूरी मेथी (Kasuri Fenugreek) के बीजों का मसाले के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है.

सोर्फ मशीन (Machine) से गन्ने (sugarcane) की अच्छी पैदावार

गन्ना उगाने के मामले में भारत पहले नंबर पर है, ऐसा माना जाता है. पर इसे पूरी दुनिया में उगाया जाता है. वैसे, इसे उगाने की शुरुआत ही भारत से मानी गई है और देश में गन्ना पैदा करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है. गन्ने की फसल को आम बोलचाल की भाषा में ईख भी कहा जाता है. इस फसल को एक बार बो कर इस से 3 साल तक उपज ली जा सकती है.

तकरीबन 50 मिलियन गन्ना किसान और उन के परिवार अपने दैनिक जीवनयापन के लिए इस फसल पर ही निर्भर हैं या इस से संबंधित चीनी उद्योग से जुड़े हुए हैं. इसलिए पेड़ी गन्ने की पैदावार में बढ़ोतरी करना बेहद जरूरी है, क्योंकि भारत में इस की औसत पैदावार मुख्य गन्ना फसल की तुलना में 20-25 फीसदी कम है. हर साल गन्ने के कुछ रकबे यानी आधा रकबा पेड़ी गन्ने की फसल के रूप में लिया जाता है.

गन्ने से अधिक उपज लेने में किल्ले की अधिक मृत संख्या, जमीन में पोषक तत्त्वों की कमी होना, ट्रेश यानी गन्ने की सूखी पत्तियां जलाना वगैरह खास कारण हैं.

इन बातों को ध्यान में रखते हुए गन्ना पेड़ी प्रबंधन के लिए ‘सोर्फ’ नाम से एक खास बहुद्देशीय कृषि मशीन मौजूद है. इस के इस्तेमाल से गन्ना पेड़ी से अच्छी फसल ली जा सकती है.

मशीन (Machine)

मशीन की खूबी : यह मशीन एकसाथ 4 काम करने में सक्षम है.

  1. पोषक तत्त्व प्रबंधन : सोर्फ मशीन गन्ने की सूखी पत्तियों वाले खेत में भी कैमिकल उर्वरकों को जमीन के अंदर पेड़ी गन्ने की जड़ों तक पहुंचाने में सहायक है.
  2. ठूंठ प्रबंधन : गन्ना फसल कटने के बाद खेत में जो ठूंठ रह जाते हैं या ऊंचेनीचे होते हैं, उन असमान ठूंठों को जमीन की सतह के पास से बराबर ऊंचाई पर काटने के लिए भी इस मशीन का इस्तेमाल किया जा सकता है.
  3. मेंड़ों का प्रबंधन : गन्ने की पुरानी मेंड़ों की मिट्टी को अगलबगल से आंशिक रूप से काट कर यह मशीन उस को 2 मेंड़ों के बीच पड़ी सूखी पत्तियों पर डाल देती है, जिस से पत्तियां गल कर खाद का काम करती हैं.
  4. जड़ प्रबंधन : ‘सोर्फ’ मशीन द्वारा गन्ने की पुरानी जड़ों को बगल से काट दिया जाता है, जिस से नई जड़ें आ जाती हैं और पेड़ी गन्ने में किल्ले की संख्या में बढ़ोतरी होती है.

सोर्फ मशीन से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय अजैविक स्ट्रैस प्रबंधन संस्थान, (समतुल्य विश्वविद्यालय), मालेगाव, बासमती 413115, पुणे (महाराष्ट्र) फोन : 02112-254057 पर जानकारी ले सकते हैं.

फरवरी में इन बातों पर दें ध्यान

कभी नरम धूप में खिला तो कभी धुंध की चादर में सिकुड़ा फरवरी का महीना खेतीकिसानी के लिए बहुत अहम है, क्योंकि यह मौसम फसल और पशुओं के लिए नाजुक होता है, इसलिए किसान बरतें कुछ  एहतियात:

* समय पर बोई गेहूं की फसल में इन दिनों फूल आने लगते हैं. इस दौरान फसल को सिंचाई की बहुत जरूरत होती है. झुलसा, गेरूई, करनाल बंट जैसी बीमारी का हमला फसल पर दिखाई दे तो मैंकोजेब दवा के 2 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

* गन्ने की बोआई 15 फरवरी के बाद कर सकते हैं. बोआई के लिए अपने इलाके की आबोहवा के मुताबिक गन्ने की किस्मों का चुनाव करें. बोआई में 3 आंख वाले सेहतमंद बीजों का इस्तेमाल करें. बोआई 75 सेंटीमीटर की दूरी पर कूंड़ों में करें. बीज को फफूंदनाशक दवा से उपचारित कर के ही बोएं.

* सूरजमुखी की बोआई 15 फरवरी के बाद कर सकते हैं. उन्नत बीजों को बोआई लाइन में 4-5 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं. बीज को कार्बंडाजिम से उपचारित कर के बोएं.

* मैंथा की बोआई करें. बोआई के लिए उन्नतशील किस्में जैसे हाईब्रिड एमएसएस का चुनाव करें. 1 हेक्टेयर खेत के लिए 400-500 किलो मैंथा जड़ों की जरूरत पड़ती है. बोआई के दौरान 30 किलोग्राम नाइट्रोजन,75 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

* आलू की फसल पर पछेता झुलसा बीमारी दिखाई दे, तो इंडोफिल दवा के 0.2 फीसदी वाले घोल का अच्छी तरह छिड़काव करें. फसल को कोहरे और पाले से बचाने का भी इंतजाम  करें.

* चना, मटर, मसूर की फसल में फलीछेदक कीट की रोकथाम के लिए कीटनाशी का इस्तेमाल करें. चने की फसल की सिंचाई करें. मटर की चूर्ण फफूंदी बीमारी की रोकथाम के लिए कैराथेन दवा का इस्तेमाल करें.

* टमाटर की गरमियों की फसल की रोपाई करें. रोपाई 60×45 सेंटीमीटर की दूरी पर करें. रोपाई से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार कर लें.

* प्याज की रोपाई अभी तक नहीं की गई है, तो फौरन रोपाई करें. पिछले महीने रोपी गई फसल की निराईगुड़ाई करें. जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें.

* आम की चूर्णिल आसिता बीमारी की रोकथाम के लिए कैराथेन दवा का पेड़ों पर अच्छी तरह छिड़काव करें. भुनगा कीट के लिए सेविन दवा का इस्तेमाल करें.

* नर्सरी में अंगूर की सेहतमंद कलमों की रोपाई करें. अंगूर की श्यामवर्ण बीमारी की रोकथाम के लिए ब्लाइटाक्स 50 दवा का छिड़काव करें.

* इस महीने धूप में चटकपन आ जाता है. धूप देख कर किसान पशुओं की देखरेख में लापरवाही बरतने लगते हैं. ऐसा न करें, पशुओं का ठंड से पूरा बचाव करें. जरा सी लापरवाही नुकसानदायक हो सकती है.

* अपने ऐसे पशु जो कि जल्द ही ब्याने वाले हों, उन्हें दूसरे पशुओं से अलग कर दें और उन पर लगातार निगरानी रखें. गाभिन पशु का कमरा आदामदायक और कीटाणुरहित हो. इस में तूड़ी का सूखा डाल कर रखें.

अगर बरसीम सही मात्रा में उपलब्ध हो तो दाना मिश्रण में 5-7 फीसदी खल को कम कर के अनाज की मात्रा बढ़ा दें. दोहते समय थूक, झाग या दूध न लगाएं.

‘फार्म एन फूड जौन डियर अवार्ड’ हाथों में सम्मान चेहरे पर मुसकान

पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ दिल्ली प्रैस के गौरवशाली प्रकाशनों में शुमार देश के किसानों को न केवल खेतीकिसानी से जुड़ी जानकारियां उपलब्ध कराती है, बल्कि यह आम बोलचाल की भाषा में कृषि की नई तकनीकी जानकारी, बागबानी, मत्स्यपालन, डेरी व डेरी उत्पाद, फूड प्रोसेसिंग, खेतीबारी से जुड़ी मशीनों, खेतखलिहान से बाजार तक का सफर समेत ग्रामीण विकास और किसानों की सफलता की कहानियों और अनुभवों को किसानों तक अपने लेखों और खबरों के जरीए पहुंचाने का काम करती रही है. यही वजह है कि इस पत्रिका का प्रसार देश में तेजी से बढ़ रहा है और खेतीबारी में दिलचस्पी रखने वाले पाठकों की तादाद में इजाफा भी हो रहा है.

पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ न केवल लेखों के जरीए किसानों की मददगार बनी हुई है, बल्कि समयसमय पर उन का सम्मान कर किसानों के प्रयासों और अनुभवों को लोगों की नजर में लाने का काम करती रही है. इसी कड़ी में किसानों के सम्मान के लिए पिछले 3 सालों से ‘फार्म एन फूड अवार्ड’ का आयोजन पूर्वी उत्तर प्रदेश में किया जाता रहा है.

इस वर्ष यह आयोजन उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के पिंक स्मार्ट विलेज, हसुड़ी, औसानपुर में ‘फार्म एन फूड जौन डियर अवार्ड’ के नाम से किया गया, जिस के आयोजन में सिद्धार्थनगर जिले के एसपी आटोमोबाइल्स व हसुड़ी ग्राम पंचायत ने मुख्य प्रायोजक के रूप में सहयोगी भूमिका निभाई.

कार्यक्रम का ये हिस्सा बने

17 जनवरी, 2018 को हसुड़ी ग्राम पंचायत तकरीबन 1200 किसानों के जमावड़े की गवाह बनी, जब खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले किसानों को सम्मानित किया गया.

अवार्डइस कार्यक्रम का उद्घाटन उत्तर प्रदेश सरकार में आबकारी व मद्यनिषेध विभाग के कैबिनेट मंत्री राजा जय प्रताप सिंह ने मुख्य अतिथि के रूप में फीता काट कर किया. इस दौरान डुमरियागंज विधानसभा के विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह, बस्ती मंडल के कमिश्नर दिनेश कुमार सिंह, जिलाधिकारी कुणाल सिल्कू, पुलिस अधीक्षक धर्मवीर सिंह ने शिरकत की.

इस के अलावा परियोजना निदेशक संत कुमार, जिला विकास अधिकारी सुदामा प्रसाद, सीएमओ डाक्टर वेद प्रकाश शर्मा, बेशिक शिक्षा अधिकारी मनीराम सिंह, एसडीएम जुबेर बेग सहित जिले के तमाम आला अधिकारी मौजूद रहे, जिन्होंने किसानों द्वारा लगाए गए स्टालों पर जा कर उन की सफलता की न केवल कहानी जानी, बल्कि सरकार द्वारा खेतीबारी से जुड़ी योजनाओं से उन किसानों को जोड़ने का भरोसा भी दिया.

इस दौरान वहां मौजूद किसानों को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि राजा जय प्रताप सिंह ने कहा कि सिद्धार्थनगर प्रदेश के पिछड़े जिलों में भले ही गिना जाता रहा हो, लेकिन खेती के नजरिए से यह बहुत धनी जिला है. काला नमक और बासमती के लिए इस जिले की पहचान पूरी दुनिया में है. ऐसे में दिल्ली प्रैस की पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ ने देश के किसानों के सम्मान के लिए अवार्ड का आयोजन कर सिद्धार्थनगर जैसे जिले में एक नई अभिनव पहल की है.

उन्होंने हसुड़ी, औसानपुर गांव में हुए विकास के कामों की तारीफ की और कहा कि देश की दूसरी ग्राम पंचायतों को ग्राम प्रधान दिलीप त्रिपाठी के कामों से सीख लेनी चाहिए.

विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि ‘फार्म एन फूड’ में लगाए गए नवाचारी किसानों के स्टाल पर जा कर यह पता चला कि अगर किसान उन्नत तकनीकी का उपयोग करें तो वे कभी भी घाटे में नहीं रहें.

बस्ती मंडल के कमिश्नर दिनेश प्रताप सिंह ने इस तरह के आयोजन को बेहद सराहनीय कदम बताया और कहा कि इस से किसानों का मनोबल बढ़ता है.

सीनियर डाक्टर वीके वर्मा ने कहा कि वे पिछले 30 सालों से भी ज्यादा समय से दिल्ली प्रैस की पत्रिकाओं के नियमित पाठक रहे हैं. जिस तरह दिल्ली प्रैस ने देश के हर वर्ग को ध्यान में रख कर पत्रिकाएं निकाली हैं, उस ने समाज को एक नई दिशा देने का काम किया है. उन्होंने कहा कि वे चिकित्सा के क्षेत्र में होने के बावजूद साल 2009 से ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के नियमित पाठक हैं.

जिला अधिकारी कुणाल सिल्कू ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसान तभी प्रगति कर सकते हैं, जब वे आधुनिक तकनीक और उन्नत कृषि प्रणाली का उपयोग करें. इस के लिए सरकार भी तमाम योजनाएं चला रही है. किसान इन योजनाओं का लाभ ले कर घाटे की खेती से उबर सकते हैं. किसानों के लिए इतने बड़े स्तर का आयोजन अपनेआप में अनूठी बात है.

स्टाल रहे आकर्षण का केंद्र

अवार्ड

‘फार्म एन फूड जौन डियर अवार्ड’ में प्रगतिशील किसानों द्वारा लगाए गए कृषि उत्पाद और नवाचारों के बारे में यहां आए किसानों ने तमाम जानकारी ली.

एक तरफ किसानों ने युवा किसान प्रेम प्रकाश सिंह द्वारा की जा रही बड़े स्तर पर खस की खेती, उस की प्रोसेसिंग व मार्केटिंग की जानकारी ली, तो वहीं दूसरी तरफ किसान राममूर्ति मिश्र द्वारा इंटीग्रेटेड खेती के तहत की जा रही राजमा, सुगंधित धान व चीकू की खेती की जानकारी ली.

किसानों द्वारा लगाए गए स्टालों पर युवा किसानों का जमावड़ा रहा. किसान अरविंद पाल द्वारा किए जा रहे मछलियों की विभिन्न प्रजातियों के पालन व उस की तकनीकी जानकारी, किसान राजेंद्र सिंह सिंह द्वारा की जा रही जैविक खेती, बिजेंद्र पाल द्वारा विकसित विशेष प्रजाति के धान, किसान अरविंद सिंह के आलू बीज उत्पादन की तकनीकों समेत दूसरे स्टालों से खूब जानकारियां बटोरीं.

ग्राम प्रधान हुए सम्मानित

अवार्ड‘फार्म एन फूड जौन डियर अवार्ड’ के आयोजन के प्रमुख सहयोगी व स्मार्ट ग्राम, हसुड़ी के ग्राम प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी को ‘फार्म एन फूड’ द्वारा विशेष रूप से सम्मानित किया गया.

इस दौरान कार्यक्रम में आए किसानों और अतिथियों ने गांव में किए गए विकास के कामों का जायजा भी लिया, जिन में पिंक विलेज के रूपम  गांव के रंगरोगन, औरतों की सुरक्षा और खुले में शौच की रोकथाम के लिए लगाए गए सीसीटीवी कैमरे, फ्री वाईफाई, गांव के स्कूल और शिक्षा व्यवस्था, कूड़ा प्रबंधन व साफसफाई, हर घर में एलईडी व बिजली खंभों पर लगे एलईडी की स्ट्रीट लाइट, पूर्वांचल की संस्कृति को बचाने के लिए पूर्वांचल संस्कृति संग्रहालय, गांव की लड़कियों व औरतों के लिए मुफ्त कंप्यूटर व सिलाईकढ़ाई की ट्रेनिंग समेत करए गए विकास के दूसरे कामों की जम कर सराहना की गई.

साझा किए अपने अनुभव

राजस्थान से आए युवा किसान पवन के. टाक ने कार्यक्रम में आए किसानों को जैविक खेती की जानकारी दी और बताया कि किसान जैविक विधि से खेती कर के न केवल अपनी लागत में कमी ला सकते हैं, बल्कि डेढ़ से दोगुना आमदनी भी ले सकते हैं.

राजस्थान के ही किसान राकेश चौधरी ने किसानों को औषधीय खेती से आमदनी बढ़ाने के टिप्स दिए और बताया कि उन्होंने किस तरह से राजस्थान में औषधीय खेती करने वाले किसानों को बिचौलियों के चंगुल से छुटकारा दिला कर उन की आमदनी को दोगुना किया है.

महराजगंज जिले के वर्मी कंपोस्ट के बड़े उत्पादक किसान नागेंद्र पांडेय ने अपनी सफलता के राज बताए, वहीं सिद्धार्थनगर जिले के किसान राम उजागिर, जुगानी मौर्य, सिविल सर्जन हरदेव मिश्र, नुरुल हक जैसे किसानों ने अपनी कामयाबी के राज बताए.

बांटे गए गिफ्ट

अवार्डकार्यक्रम में सहयोगी रही जौन डियर ट्रैक्टर की स्थानीय एजेंसी एसपी आटोमोबाइल्स द्वारा किसानों को जौन डियर की तरफ से डायरी, पैन, बैग, पर्स वगैरह गिफ्ट भी बांटे गए.

इस मौके पर एसपी आटोमोबाइल्स के मालिक आशीष दुबे ने कहा कि किसानों के सम्मान के इतने बड़े आयोजन का हिस्सा बन कर उन्हें बेहद खुशी हो रही है.

खिले किसानों के चेहरे

पिंक स्मार्ट विलेज, हसुड़ी, औसानपुर के पंचायत भवन का प्रांगण देश के अन्नदाता किसानों के सम्मान का द्योतक बना, जब इन्हें अतिथियों के हाथों ‘फार्म एन फूड जौन डियर अवार्ड’ से नवाजा गया.

सम्मानित किसानों में सिद्धार्थनगर जिले से मोरध्वज सिंह को गन्ना उत्पादन के लिए, जटाशंकर पांडेय और जगदंबा प्रसाद को कृषि यंत्रीकरण, जुगानी मौर्य को चने की खेती, रामदास मौर्य को सब्जी की खेती, राम उजागिर को कृषि विविधीकरण, सिविल सर्जन साधन संरक्षण तकनीकी द्वारा धानगेहूं की खेती, हरदेव मिश्र को सब्जी की खेती, प्रेमशंकर चौधरी को बीज उत्पादन, नुरुल हक को मुरगीपालन, हम्माद हसन को मछलीपालन, प्रदीप मौर्य को कृषि यंत्रीकरण, चंद्रभान मौर्य और ज्ञानचंद्र गुप्ता को सब्जी उत्पादन, रामलखन मौर्य को करेले की खेती, परशुराम यादव को काला नमक धान उत्पादन, भगौती प्रसाद को तिलहन उत्पादन, श्रीराम यादव को फसल उत्पादन, अकबर अली को तिलहन उत्पादन और श्रीधर पांडेय को कृषक उन्नयन के लिए अवार्ड मिला.

बस्ती जिले से सम्मानित होने वाले किसानों में अरविंद पाल को इंट्रीग्रेटेड फार्मिंग, प्रेम प्रकाश सिंह को औषधीय व सुगंधित खेती, राममूर्ति मिश्रा को फसलोत्पादन, राजेंद्र सिंह को दलहनतिलहन, बिजेंद्र पाल को बीज उत्पादन, जिला महराजगंज से नागेंद्र पांडेय को केंचुआ खाद, राजस्थान से पवन के. टाक को जैविक खेती के क्षेत्र में नवाजा गया.

साथ ही, यह सम्मान राकेश चौधरी को औषधीय खेती, मोईनुद्दीन चिश्ती को कृषि पर्यावरण पत्रकारिता, गांव कनेक्शन, लखनऊ की नीतू सिंह को कृषि ग्रामीण पत्रकारिता,

डा. वीके वर्मा को चिकित्सा, आलोक शुक्ल को ग्रामीण कला शिक्षा, कृषि विज्ञान केंद्र, सिद्धार्थनगर के वैज्ञानिकों में डा. डीपी सिंह, वैज्ञानिक पशु विज्ञान, वैज्ञानिक ई. अशोक कुमार पांडेय को कृषि अभियंत्रण, वैज्ञानिक डा. अशोक सिंह को सस्य विज्ञान, वैज्ञानिक

डा. प्रदीप कुमार कोफसल सुरक्षा, डाक्टर पीके सिंह को वैज्ञानिक उद्यान, वैज्ञानिक डाक्टर एसके मिश्र को कृषि प्रसार, वैज्ञानिक डा. एम सिंह को फार्म प्रबंधक, वैज्ञानिक नीलम सिंह को गृहविज्ञान में मिला.

अवार्ड

बस्ती जिले से सम्मानित होने वाले कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के वैज्ञानिकों में डाक्टर एसएन सिंह, कार्यक्रम समन्वयक, वैज्ञानिक राघवेंद्र विक्रम सिंह, कृषि प्रसार, वरिष्ठ वैज्ञानिक डाक्टर एसएन लाल, पशुविज्ञान शामिल रहे.

इस मौके पर सम्मानित हुए किसानों का कहना था कि वे दिनरात खेतों में मेहनत कर के फसल उगाते हैं, तब कहीं जा कर देश की सवा अरब जनता का पेट भर पाते हैं. उस के बावजूद भी किसानों की अनदेखी की जाती है. ऐसे हालात में किसानों की मददगार पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ ने उन का सम्मान कर उन के हौसले को दोगुना कर दिया.

इस कार्यक्रम के मंच संचालन की जिम्मेदारी युवा पत्रकार भृगुनाथ त्रिपाठी ने कुशलतापूर्वक निभाई. सचिंद्र शुक्ल, विशाल पांडेय व सत्यप्रकाश पांडेय का भी कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा.

काला टमाटर (Black Tomato) बाजार में मचाएगा धूम

यदि कोई आप से पूछे कि क्या आप ने काले रंग का टमाटर खाया है तो यह सुन कर आप सोचेंगे कि यह कैसा भद्दा मजाक है. आप खाने की बात कर रहे हैं और हम ने तो अभी तक इस रंग का टमाटर देखा भी नहीं है. काला टमाटर खाने में लाल टमाटर की तरह जायकेदार होने के साथ ही कई तरह की बीमारियों को भी दूर करता है. इस टमाटर की खासीयत यह है कि इस को शुगर और दिल के मरीज भी बिना हिचक खा सकते हैं.

आने वाले दिनों में बाजार में काला टमाटर आम हो जाएगा, जैसे अभी तक लाल टमाटर है. काला टमाटर अभी तक देश में पैदा नहीं होता था, लेकिन कुछ लोग विदेश से इस के बीज मंगवा कर टमाटर की खेती प्रायोगिक तौर पर कर रहे हैं, जिस के नतीजे काफी अच्छे हैं. काला टमाटर खरीदारों को खूब लुभा रहा है, जिस के चलते लोग इसे कफी पसंद कर रहे हैं. अब इस के बीज भारत में भी मौजूद हैं. अंगरेजी में इसे इंडिगो रोज टोमेटो कहा जाता है.

इस टमाटर की खासीयत यह है कि यह टमाटर के फल के रूप में शुरू होता है, लेकिन धीरेधीरे यह काले रंग में बदल जाता है.

सब से पहले इंडिगो रोज रेड और बैगनी टमाटर के बीजों को आपस में मिला कर एक नया बीज तैयार किया गया, जिस से ये हाईब्रिड टमाटर पैदा हुआ. यूरोपीय मार्केट में इसे सुपरफूड कहा जाता है. इस के बीज औनलाइन भी मौजूद हैं और भारत में बागबानी के शौकीनों ने इस काले टमाटर को अपने घर की बगिया में जगह दी है.

हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में एकदो बीज विक्रेताओं के पास काले टमाटर के बीज मिल रहे हैं. इन्होंने काले टमाटर के बीज आस्टे्रलिया से मंगवाए हैं. इस की खेती करने के लिए किसानों को अलग से कोई मेहनत नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि इस की खेती भी लाल टमाटर की तरह ही होती है.

बीज विक्रेताओं ने बताया कि अभी तक भारत में काले टमाटर की खेती नहीं होती थी, लेकिन अब इस की खेती की जाएगी.

ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई टमाटर स्किन के लिए अच्छा माना जा रहा है. एक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है कि यह कई बीमारियों से लड़ने में भी कारगर है.

इस टमाटर की फसल तैयार होने में लाल टमाटर से ज्यादा समय लगता है. इस की बोआई जनवरी में की जाती है. इस के लिए किसी तरह की खास मिट्टी या मौसम की जरूरत नहीं होती. जिस तरह के लाल टमाटर की खेती किसान करते हैं, ठीक वैसे ही इस की भी खेती कर सकते हैं.

इस को पकने में 4 महीने का समय लगता है, जबकि लाल टमाटर 3 महीने में ही पक कर तैयार हो जाता है. काले टमाटर की खेती में किसानों को एक महीने का समय ज्यादा लगेगा, लेकिन मुनाफा परंपरागत टमाटर से ज्यादा होगा.

लाल मूली (Red Radish) की अच्छी खेती कैसे करें

लाल मूली सब्जी बाजार की बड़ी दुकानों और बड़ेबड़े होटलों पर ज्यादा परोसी जाती है. इस का इस्तेमाल सलाद, परांठे और कच्ची सब्जी के रूप में ज्यादा किया जाता है. इस में गोलाकार और लंबे आकार की 2 किस्में होती हैं.

इस सब्जी को ज्यादातर कच्चा ही खाया जाता है. इस में तीखापन नहीं होता और यह स्वादिष्ठ होती है. इस में पोषक तत्त्वों की भरपूर मात्रा होती है. भोजन के साथ खाने से यह जल्दी पच जाती है व खून साफ करती है. छिलके के साथ इस का इस्तेमाल करना चाहिए.

सही जमीन व वातावरण : सफेद मूली की तरह ही लाल मूली भी हलकी बलुई दोमट मिट्टी में पैदा होती है. इसे हमेशा मेंड़ों पर ही लगाना चाहिए. लेकिन इस के लिए मिट्टी में भरपूर जीवांश पदार्थ मौजूद होने जरूरी हैं. इस के लिए जमीन का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए.

लाल मूली की खेती के लिए ठंडी जलवायु की जरूरत होती है, क्योंकि यह भी शरद ऋतु की फसल है. 30 से 32 डिगरी सैल्सियस तापमान इस की खेती के लिए जरूरी है. लेकिन 20 से 25 डिगरी सैल्सियस तापमान पर इस की अच्छी पैदावार होती है.

खेत की तैयारी : अच्छी फसल के लिए 4 से 5 जुताई जरूरी हैं. जड़ वाली फसल होने की वजह से इसे भुरभुरी मिट्टी की जरूरत पड़ती है. इसलिए इस की 1 से 2 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल देशी हल से करें या फिर ट्रैक्टर ट्रिलर से करनी चाहिए. खेत को ढेलारहित और सूखी घासरहित होना जरूरी है.

ढेले न रहें, इस के लए हर जुताई के बाद पाटा चलाना जरूरी है. मिट्टी बारीक रहने से इस की जड़ें ज्यादा तेजी से बढ़ती हैं.

अच्छी किस्में : लाल मूली की 2 किस्में होती हैं. यह लंबी और गोल होती है. आमतौर पर इन्हीं किस्मों को ज्यादा उगाया जाता है. साथ ही, इन से ज्यादा उपज मिलती है.

* रैपिड रैड वाइट ट्रिटड (लंबी जड़ वाली)

* स्कारलेट ग्लोब (गोल जड़ वाली)

खाद और उर्वरक : सड़ी गोबर की खाद 8-10 टन प्रति हेक्टेयर और नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम और पोटाश 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए. फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोआई से पहले खेत में देनी चाहिए. नाइट्रोजन की बाकी आधी मात्रा बोआई के 15 से 20 दिन बाद देनी चाहिए.

बीज की मात्रा : लाल मूली के बीज की बोआई लाइन में करने पर 8-10 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है लेकिन छिड़काव विधि से बोने पर 12 से 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत होती है.

बोआई का समय और तरीका : बोआई का सही समय मध्य सितंबर से अक्तूबर तक है, क्योंकि अगेती फसल की ज्यादा मांग होती है.

बोआई का तरीका लाइनों में मेंड़ बना कर करें तो ज्यादा अच्छा है. 10 से 12 सैंटीमीटर की दूरी पर बीज को 2 से 3 मिलीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए ताकि बीज पूरी तरह से अंकुरित हो सकें. गहरा बीज कम अंकुरित होता है. मेंड़ से मेंड़ की दूरी 45 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 8 से 12 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

सिंचाई: जब बीज अंकुरित हो कर 10 से 12 दिन हो जाएं, तब पहली सिंचाई करनी चाहिए. उस के बाद दूसरी सिंचाई के 10 से 12 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए. इस तरह 8 से 10 सिंचाई काफी होती हैं. खेत में पानी कम देना चाहिए जिस से मेंड़ें डूब न पाएं.

निराईगुड़ाई: मूली की फसल में निराईगुड़ाई की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि 40 दिन में इस की फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है. जंगली घास या पौधों को हाथ से उखाड़ देना चाहिए. इस तरह जरूरत पड़ने पर जंगली घास निकालने के लिए 1-2 निराईगुड़ाई की जरूरत पड़ती है.

मिट्टी चढ़ाना : मूली बोने के लिए ऊंची मेंड़ें बनाना जरूरी हैं, क्योंकि यह जड़ वाली फसल है. ऐसा करने से इस की अच्छी उपज मिलती है.

मूली उखाड़ना : तैयार मूली को खेत से निकालते रहना चाहिए. इस तरह मूली की जड़ों को साफ कर के पत्तियों सहित मूली को बाजार या सब्जी की दुकानों पर बेचने के लिए भेजते हैं ताकि जड़ व पत्तियां मुरझा न पाएं और ताजी बनी रहें.

उपज : अच्छी देखभाल होने पर 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल जाती है. जड़ों को ज्यादा दिन तक न रखें क्योंकि ये जल्दी खराब हो जाती हैं. समयसमय पर खुदाई भी करते रहना चाहिए.

बीमारियां और कीट रोकथाम : ज्यादातर पत्तियों पर धब्बे लगने वाली बीमारी लगती है. इस की रोकथाम के लिए फफूंदीनाशक दवा बाविस्टिन से बीज उपचारित कर के बोएं और 0.2 फीसदी के घोल का छिड़काव करें.

लाल मूली में ज्यादातर ऐफिड्स और सूंड़ी का असर होता है. उन कीटों की रोकथाम के लिए रोगोर, मेलाथियान का 1 फीसदी का घोल बना कर छिड़कें.

Krishi Mela Bhopal : “स्वावलंबी बनें किसान”, पशुपालन और डेयरी मंत्री (मप्र) लखन पटेल

Krishi Mela Bhopal :  भोपाल में 20 दिसंबर से ले कर 22 दिसंबर तक कृषि मेले का आयोजन हुआ. इस मेले में कृषि यंत्र निर्माताओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. यहां तमाम तरह के कृषि यंत्र थे, जिस में किसान रुचि ले रहे थे और इन मशीनों की जांचपरख कर जानकारी ले रहे थे.

  भोपाल के केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान में 20 से 22 दिसंबर तक कृषि मेले का आयोजन हुआ, जिस में अनेक कृषि यंत्र निर्माताओं ने हिस्सा लिया और अपने उन्नत कृषि यंत्रों को प्रदर्शित किया. यहां पर सैकड़ों तरह के कृषि यंत्रों का जमावड़ा था, जिस में किसान अपनीअपनी पसंद की मशीनों को जांचपरख कर जानकारी ले रहे थे. कृषि यंत्रों के अलावा कृषि से जुड़े अनेक उत्पाद, खादबीज, उर्वरक आदि की भी जानकारी ली. साथ ही, खेती के अनेक उन्नत तकनीकों का प्रदर्शन भी हुआ था.

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फार्म एन फूड थी मीडिया पार्टनर 

इस भव्य कृषि मेले की मीडिया पार्टनर दिल्ली प्रैस की पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ थी, जहां मुख्य मंच के ठीक सामने ‘फार्म एन फूड पत्रिका’, दिल्ली प्रैस का स्टाल भी था. स्टाल पर दिल्ली प्रैस की 30 पत्रिकाओं का डिस्प्ले किया गया था, जिस में ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका किसानों दवारा बहुत पसंद की जा रही थी.

भोपाल के केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान में आयोजित विशाल कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन एवं अभियांत्रिकी मेले को संबोधित करते हुए प्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी विकास मंत्री लखन पटेल ने किसानों को संबोधित करते हुए नवीन तकनीकों का लाभ ले कर स्वावलंबी बनने की प्रेरणा दी. साथ ही, दिल्ली प्रैस की तरफ से पशुपालन एवं डेयरी विकास मंत्री लखन पटेल को पत्रिकाओं का सैट दे कर सम्मानित भी किया गया. उन्होंने ‘फार्म एन फूड पत्रिका’ को बड़े ही ध्यान से देखा और पढ़ा भी.

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नवीन तकनीकी एवं योजनाओं का उद्देश्य

उन्होंने सुझाव दिया कि नवीन तकनीकी एवं योजनाओं का उद्देश्य किसानों को रोजगार एवं आत्मनिर्भरता मुहैया कराने पर केंद्रित होना चाहिए. जिन किसानों ने अपनी कृषि और आजीविका में सुधार किए हैं, उन की कहानी को सामने लाना चाहिए.

इस से पूर्व विधायक घनश्याम चंद्रवंशी ने प्रदेश सरकार के उल्लेखनीय कृषि हितैषी कदमों के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार खेती को लाभकारी बनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है. जिले की भोज आत्मा समिति एवं राइजिंग मध्य प्रदेश के सहयोग से आयोजित इस मेले में देशभर की लगभग 100 से अधिक कंपनियों ने कृषि यंत्रों एवं तकनीक का सजीव प्रदर्शन किया.

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यह 3 दिवसीय आयोजन 20 से 22 दिसंबर तक हुआ. इस अवसर पर आयोजित कृषि संगोष्ठी में प्रमुख रूप से डा. एसएस सिंधु, वैज्ञानिक आईएआरआई नई दिल्ली, डा. वाईसी गुप्ता, डा. पीबी भदोरिया, आईआईटी खड़गपुर, प्रो. डा. सीके गुप्ता, सोलन, हिमाचल प्रदेश, डा. सीआर मेहता, निदेशक कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, डा. सुरेश कौशिक, आईएआरआई नई दिल्ली, डा. प्रकाश नेपाल आदि वैज्ञानिको ने भाग ले कर विभिन्न विषयों पर किसानों को उपयोगी जानकारी दी.

इस दौरान किसानों की समस्याओं और जिज्ञासाओं का समाधान भी किया गया. आयोजन के विस्तृत रूप देने और समन्वय करने के लिए भरत बालियान की विशेष भूमिका रही. मेले में मंच का संचालन डा. बीजी श्रीवास्तव ने बड़े ही शानदार तरीके से किया.

मौजूदा दौर में खेतीकिसानी की हालत

कहा जाता है कि किसान किसी भी देश की रीढ़ होते हैं और उन की दशा ही देश की दिशा सुनिश्चित करती है. जिस देश में किसानों की बदहाली होती है, वह देश कभी विकसित हो ही नहीं सकता. आज यही स्थिति देश के विभिन्न राज्यों में देखने को मिल रही है.

किसानों को बैंकों से लिया कर्ज चुकाने और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. इसी के चलते कई किसान अपनी जान की ही बाजी लगा दे रहे हैं. उन के पास इस के अलावा कोई दूसरा तरीका ही नहीं है.

किसान बैंकों से बीज, ट्रैक्टर व ट्यूबवेल वगैरह खरीदने के लिए कर्ज लेते हैं, लेकिन फसल चौपट होने पर वे कर्ज का भुगतान नहीं कर पाते हैं. ऐसे में वे मजबूरन आत्महत्या तक कर लेते हैं. कंगाली और बदहाली के कारण बैंक का कर्ज चुकाना तो दूर वे अपने परिवार का भरणपोषण भी नहीं कर पाते.

यदि किसानों के हालात ऐसे ही बदतर होते रहे तो एक दिन वे खेती करना ही बंद कर देंगे, तब देश में एक भयावह स्थिति पैदा हो जाएगी. इस हालत में दोषी किसान भी  हैं, क्योंकि उन में एकजुटता का अभाव अकसर देखने को मिलता है. इसी का फायदा सरकार उठाती है और वह उन के हितों की अनदेखी कर के उन की मांगों को दरकिनार कर देती है. इन्हीं सब कारणों से किसान तंगहाली से जूझ रहे हैं.

जरूरत है कि किसानों को सही मात्रा में कर्ज व सहायता मुहैया कराई जाए ताकि वे खेतीबारी की दशा सुधार कर के सही तरह से खाद्यान्न उत्पादन कर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकें.

लेकिन ये योजनाएं अधिकारियों और बिचौलियों की कमाई का जरीया बन जाती हैं.

आज के दौर में खेती का अर्थशास्त्र किसानों के खिलाफ है. मजदूरों और छोटे किसानों की बात तो दूर रही, मझोले और बड़े किसानों के सामने भी यह सवाल खड़ा है कि वे किस तरह बैंक का कर्ज चुकाएं और कैसे अपनी दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करें.

हर राज्य में किसानों की हालत एक जैसी है. सरकारें उन्हें झूठा दिलासा दे कर चुप करा देती हैं. आज खेती घाटे का सौदा साबित हो रहा है, इसीलिए छोटेबड़े सभी किसान परेशान हैं कि किस तरह अपनी आजीविका चलाएं. दुनिया में सब से ज्यादा विकास वाला देश होने के बावजूद लगातार हमारी विकास दर में गिरावट आ रही है. साल 1990 में कृषि की जो विकास दर 2-8 फीसदी थी, वह साल 2000-2010 के बीच घट कर 2.4 फीसदी रह गई और वर्तमान दशक में तो यह मात्र 2.1 फीसदी ही है.

खराब फसलों की वजह से किसानों की हालत काफी दयनीय रहती है. यदि सूखे की वजह से खेती खराब हो गई तो उन की जो लागत लगी है, उस के चलते घाटा होना तय है. सरकार अपने वादे के मुताबिक सही समर्थन मूल्य किसानों को नहीं दे पाती, जिस के कारण उनहें अपनी उपज को औनेपौने दामों पर बेचना पड़ता है. अकसर ज्यादा उत्पादन होने पर भंडारण का सही इंतजाम न होने से अनाज पड़ापड़ा सड़ जाता है.

केंद्र और राज्य सरकारों की कर्जमाफी योजना किसानों के लिए कारगर नहीं है, बल्कि यह तो खतरनाक साबित हो सकती है. यह योजना किसानों की समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं है. इस से उन किसानों के लिए मुश्किल हो सकती है, जिन्हें कर्जमाफी नहीं मिली. इस से तमाम किसानों की दिमागी हालत खराब हो सकती है और वे डिप्रेशन की हालात में आ सकते हैं.

खेतीकिसानी के प्रति युवाओं में जज्बा पैदा करने के लिए कृषि को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करना जरूरी है. कृषि को आधुनिक और परंपरागत तरीकों से भी जोड़ने की जरूरत है. साथ ही समयसमय पर इस में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना भी जरूरी है.

कृषि के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure)

नई दिल्ली: भारत सरकार ने 2 सितंबर, 2024 को घोषित डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए एक ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की है. गुजरात राज्य 5 दिसंबर, 2024 को किसानों की लक्षित संख्या का 25 फीसदी किसान आईडी बनाने वाला देश का पहला राज्य बन चुका है. यह सफलता भारत सरकार की ‘एग्री स्टैक पहल’ के एक भाग के रूप में एक व्यापक मानकसंचालित डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रदर्शन करता है.

किसान आईडी, आधारकार्ड पर आधारित किसानों की एक अनूठी डिजिटल पहचान है, जो राज्य की भूमि रिकौर्ड प्रणाली से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई है, जिस का मतलब है कि किसान आईडी एक व्यक्तिगत किसान के भूमि रिकौर्ड विवरण में बदलाव के साथसाथ स्वचालित रूप से अपडेट होती है. डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल रूप से प्राप्त फसल आंकड़े प्राप्त करने के साथ किसान आईडी का उद्देश्य केंद्रित लाभ प्रदान करना है

डिजिटल पहचान, कार्यवाही योग्य अंतर्दृष्टि एवं सूचित नीतिनिर्माण के लिए एक परिवर्तनकारी उपकरण के रूप में भी कार्य करेगा, जिससे अभिनव किसानकेंद्रित समाधान विकसित किए जा सके, कुशल कृषि सेवा वितरण सुनिश्चित किया जा सके और कृषि परिवर्तन के लिए एक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सके, जिस का लक्ष्य चिरस्थायी कृषि पर ध्यान केंद्रित करते हुए किसानों की आय में बढ़ोतरी करना है.

किसान आईडी निर्माण के लिए व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए, भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्यों के लिए एक बहु-आयामी रणनीति विकसित की है.

ये मोड किसान पहचान पत्र तैयार करने वाले चैनल हैं जैसे कि सेल्फ मोड (मोबाइल का उपयोग कर के किसानों द्वारा स्वपंजीकरण), सहायक मोड (प्रशिक्षित जमीनी कार्यकर्ता/स्वयंसेवकों द्वारा सहायता प्राप्त पंजीकरण), कैंप मोड (ग्रामीण क्षेत्रों में समर्पित पंजीकरण शिविर), सीएससी मोड (सामान्य सेवा केंद्रों के माध्यम से पंजीकरण) आदि.

डिजिटल कृषि मिशन ने किसान रजिस्ट्री बनाने के लिए प्रोत्साहन के रूप में कृषि के लिए डीपीआई एवं पूंजीगत परियोजनाओं हेतु विशेष केंद्रीय सहायता पर समझौता ज्ञापन के माध्यम से कृषि क्षेत्र के लिए डीपीआई निर्माण के लिए राज्यों और केंद्र सरकार के बीच एक सहयोगी प्रयास को सक्षम बनाया है.

इस के अलावा, डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत, केंद्र सरकार तकनीकी दिशानिर्देश, संदर्भ अनुप्रयोग एवं कंप्यूटिंग क्षमता प्रदान कर, क्षमता बढ़ाकर एवं प्रशिक्षण प्रदान कर राज्यों को सक्षम बना रही है. भारत सरकार पंजीकरण शिविरों का आयोजन करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन एवं किसान आईडी तैयार करने में शामिल राज्य के कार्यकर्ताओं को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन भी प्रदान करती है.

राज्य स्तर पर, पहल के मुख्य आकर्षणों में अंतर्विभागिय समन्वय एवं सहयोग, विशेष रूप से राजस्व और कृषि विभागों के बीच सहयोग शामिल हैं. राज्यों ने कृषि क्षेत्र में डीपीआई विकसित करने के लिए प्रक्रिया सुधारों सहित प्रशासनिक एवं तकनीकी परिवर्तनों को सक्षम बनाया है. राज्यों ने प्रगति की निगरानी करने, स्थानीय सहायता प्रदान करने और उत्पन्न डेटा की गुणवत्ता एवं सटीकता सुनिश्चित करने के लिए परियोजना प्रबंधन इकाइयों (पीएमयू) और समन्वय टीमों का भी गठन किया है.

गुजरात 25 फीसदी किसान आईडी (पीएम किसान में राज्य के कुल किसानों के बीच) के साथ अग्रणी है जब कि दुसरे राज्य भी अच्छी प्रगति कर रहे हैं. मध्य प्रदेश ने कम समय में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है, जो 9 फीसदी तक पहुंच गया है जब कि महाराष्ट्र 2 फीसदी  पर है और उत्तर प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान जैसे दुसरे राज्यों ने भी किसान आईडी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय इस परिवर्तनकारी यात्रा में राज्यों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक किसान डिजिटल कृषि क्रांति से लाभान्वित हों.

खेती के जरीए आजीविका को बढ़ावा देने का काम कर रही सामाजिक संस्थाएं

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देशभर में किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए अनेक सरकारी, गैरसरकारी संस्थान किसानों को अनेक उन्नत कृषि तकनीकों से रूबरू कराते हैं, समयसमय पर अनेक ट्रेनिंग देते हैं, जिस से कृषि क्षेत्र उन्नति कर सके और इस से जुड़े किसानों की आय में भी इजाफा हो.

ऐसी ही कड़ी में राजस्थान के सीकर में विश्व युवक केंद्र और बजाज फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से 11 नवंबर से 15 नवंबर तक आयोजित ध्येय कार्यक्रम के तहत देश की सामाजिक संस्थाओं और कृषि उत्पादक संगठनों के करीब 100 प्रतिनिधियों को कृषि, जल, शिक्षा और आजीविका पर विषय पर प्रशिक्षित किया गया.

इस अवसर पर बजाज समूह के संस्थापक जमनालाल बजाज की जन्मस्थली सीकर और उस के आसपास के क्षेत्रों में जमनालाल कनीराम बजाज ट्रस्ट द्वारा 1963 से अब तक किए गए सतत प्रयासों से कृषि, जल, शिक्षा और आजीविका के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्यों को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया गया.

आयोजकों ने साझा किया ट्रेनिंग का उद्देश्य

Social organizations
Hari Bhai

ट्रेनिंग के पहले दिन बजाज फाउंडेशन में सीएसआर के प्रेसिडेंट हरिभाई मोरी ने जल संसाधनों के विकास पर विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने सभी संस्थाओं से आह्वान किया कि अगर सभी सामाजिक संगठन एकजुट हो कर कृषि और जल पर काम करें, तो देश को विकास की नई परिभाषा गढ़ी जा सकती है.

उन्होंने बताया कि बजाज फाउंडेशन द्वारा सीकर में कृषि, जल पुनर्भरण, शिक्षा और आजीविका पर सघन और सफल रूप से काम किया जा रहा है, जिस के सफल अनुभवों से रूबरू कराने के लिए देश अभी तक 500 के करीब ऐसे सामाजिक सगठनों और किसान उत्पादक संस्थाओं को प्रशिक्षित किया गया है, जो खेती के जरीए आजीविका को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं.

 

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Uday Shanker Singh

विश्व युवक केंद्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी उदय शंकर सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला. इस दौरान बजाज फाउंडेशन और विश्व युवक केंद्र के कार्यों पर एक डौक्यूमेंट्री भी प्रस्तुत की गई.

उन्होंने बताया कि सीकर में गांव का पैसा गांव में और शहर का पैसा गांव में सपने को साकार करने के लिए सामाजिक संस्थाएं अहम भूमिका निभा सकती हैं. ऐसे में सीकर में अपनाए जा रहे इस मौडल को समझाना भी एक उद्देश्य रहा है.

उन्होंने यह भी बताया कि सीकर में लोगों ने बारिश के पानी को अपने घर की छत के जरीए संचयन करने का काम किया है. वर्षा जल संचयन की इस संरचना के लाभों को समझने के लिए यह ट्रेनिंग इन प्रतिभागियों के लिए काफी मददगार साबित हो रही है.

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Ranbir Singh

विश्व युवक केंद्र में कार्यक्रम अधिकारी रणवीर सिंह ने बताया कि देश में आने वाले समय में जल संकट एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आ सकता है. ऐसे में जल की कमी वाले सीकर में ट्रेनिंग आयोजित किए जाने का मुख्य उद्देश्य यह था कि लोग यहां के जल संचयन, खेती और सिंचाई में जल प्रबंधन सहित आजीविका के उपायों को सीखें और अपने क्षेत्रों में लागू करें.

 

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Anand Kumar

विश्व युवक केंद्र में ही कार्यक्रम अधिकारी आनंद कुमार ने कहा कि कृषि, जल पुनर्भरण, शिक्षा और आजीविका जैसे विषय पर लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक किए जाने की जरूरत है. ऐसे में सफल अनुभवों को एकदूसरे से साझा किए जाने के लिए सोशल मीडिया एक बड़ा माध्यम साबित हो सकता है. उन्होंने सभी प्रतिभागियों से आह्वान किया कि सभी लोग समयसमय पर सोशल मीडिया के जरीए सफलता की कहानियों को साझा करते रहें, जिस से बदलाव की कहानियों से सीख ले कर दूसरे क्षेत्रों में भी लोग इसे अपना पाएं.

 

पद्मश्री जगदीश पारीक ने कृषि के नवाचारों को किया साझा

पद्मश्री और गोभीमैन औफ इंडिया के नाम से विख्यात जगदीश पारीक ने कम पानी में खेती और बागबानी का अनुभव साझा किया और अपने नवाचारों पर जानकारी दी. कार्यक्रम में एफपीओ और कृषि उद्यमिता, प्राकृतिक खेती और मूल्य संवर्धन मौडल, आत्मनिर्भर परिवार, लघु पैमाने पर कृषि उद्यमिता, वर्षा जल पुनर्भरण संरचना पर प्रकाश डाला गया.

सीकर जिले के अजीतगढ़ निवासी किसान जगदीश प्रसाद पारीक ने बताया कि वे खेती में नएनए प्रयोग करते हैं. वे सब्जियों की नई किस्म तैयार करने से ले कर किसानों को और्गेनिक खेती के लिए प्रेरित करते हैं.

खेती के नाम कई रिकौर्ड

पद्मश्री जगदीश पारीक ने बताया कि वह अपने खेत में 25 किलो ढाई सौ ग्राम वजनी गोभी का फूल, 86 किलो कद्दू, 6 फीट लंबी घीया, 7 फीट लंबी तोरिया, 1 मीटर लंबा और 2 इंच का बैगन, 5 किलो गोल बैगन, ढाई सौ ग्राम मोटा प्याज, साढ़े 3 फीट लंबी गाजर और एक पेड़ से 150 मिर्ची तक उगा चुके हैं.

उन्होंने बताया कि सब से अधिक किस्में फूलगोभी की हैं. यही वजह है कि लोग इन्हें ‘गोभी मैन’ कह कर भी बुलाते हैं.

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पद्मश्री और गोभीमैन औफ इंडिया के नाम से विख्यात जगदीश पारीक

54 साल से कर रहे जैविक खेती

जगदीश पारीक ने बताया कि वह साल 1970 से और्गेनिक खेती कर रहे हैं. पिता के निधन के बाद पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर उन्होंने खेती करना शुरू कर दिया. उन्होंने गोभी से इस की शुरुआत की और इस की किस्मों को ले कर कई नए प्रयोग किए. उन्हें प्रदेश में जैविक और शून्य लागत की खेती के प्रणेता के रूप में पहचान मिली है. इसी वजह से साल 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया था.

रेतीले इलाके में सफल खेती

जगदीश पारीक का खेत ड्राई जोन का हिस्सा है. उन्होंने बताया कि बरसात के पानी से आने वाले बहाव को वह अपने खेत में डायवर्ट करते हैं, जिस से उन का कुआं रिचार्ज हो जाता है और सालभर वह उसी पानी का इस्तेमाल खेती के लिए करते हैं. एक बरसात के सीजन में वह 3 बार पानी की राह रोक कर अपने खेत में मोड़ देते हैं. जिसे जमीन सोख लेती है और उसी पानी से उन के खेत पर बना कुआं जीवंत हो जाता है.

खेती के अनुभवों को करते हैं साझा

जगदीश पारीक की खेती में प्रयोगधर्मिता से न सिर्फ किसान, बल्कि कृषि अधिकारी तक प्रभावित हैं. यही वजह है कि कृषि से जुड़े सैमिनार हों या वर्कशाप देशभर से जगदीश पारीक को बुलाया जाता है और उन के अनुभवों से सीखा जाता है.

फील्ड विजिट कर प्रतिभागी कृषि, जल और आजीविका के अनुभव से हुए रूबरू

विश्व युवक केंद्र और बजाज फाउंडेशन द्वारा सीकर में आयोजित पांचदिवसीय प्रशिक्षण और फील्ड विजिट कार्यक्रम के तीसरे दिन प्रतिभागियों ने लक्ष्मणगढ़ ब्लौक खिनवासर गांव के प्रगतिशील किसान अमरचंद काजला के प्राकृतिक खेती, मीठे नीबू के भूखंड और बायोगैस प्लांट का दौरा किया.

इस दौरान अमरचंद काजला ने अपने प्राकृतिक खेती के मौडल पर प्रतिभागियों को जानकारी दी. उन्होंने बताया कि वह जिस क्षेत्र में खेती कर रहे हैं, वहां का क्लाइमेट खेती के लिए बहुत जटिल है, फिर भी उन्होंने प्राकृतिक खेती के जरीए खेती में सफलता के नए आयाम गढ़ते हुए सफलता प्राप्त की है.

उन्होंने बताया कि उन के कृषि उत्पादों को बेचने के लिए वह एप का सहारा लेते हैं, जिस से उन्हें किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है. उन्होंने अपने गोबर गैस प्लांट की कार्यप्रणाली को दिखाते हुए उस के फायदे भी गिनाए.

बजाज फाउंडेशन में सीएसआर के प्रेसिडेंट हरिभाई मोरी ने अमरचंद काजला के गौ आधारित खेती के मौडल की प्रशंसा करते हुए उसे आगे बढ़ाते हुए पूरे देश में लागू करने पर जोर दिया. वीवाईके के मुख्य कार्यकारी अधिकारी उदय शंकर सिंह ने सीकर में अपनाए जा रहे जल उपयोग प्रणाली, जैविक, प्राकृतिक और गौ आधारित खेती को आज की आवश्यकता बताते हुए मानव स्वास्थ्य के लिए जरूरी बताया.

उन्होंने सीकर के आजीविका मौडल और भूमि जल पुनर्भरण मौडल की सराहना की और उसे अन्य राज्यों में भी लागू किए जाने की वकालत की.

इस के बाद दौरे पर आई टीम ने इस बलारा गांव में कृषि प्रसंस्करण इकाई तेल मिल और मसाला मिल का दौरा कर मूल्य संवर्धन और आजीविका से जुड़ी सफलता के बारे में जानकारी प्राप्त की.

ध्येय प्रोग्राम के तहत दौरे पर आई यह टीम सिंहोदरा गांव के पवन कुमार शर्मा के फार्म पर प्राकृतिक खेती और वृक्षारोपण के तहत 3 लेयर खेती, बाजरा प्रसंस्करण इकाई, खेत टांका और वृक्षारोपण के बारे में भी जानकारी प्राप्त की.

टीम ने ड्रिप के जरीए किन्नू और मीठे नीबू के बाग का अध्ययन करने के लिए रामचंद्र सेन के फार्म का दौरा किया. छत पर वर्षा जल संचयन संरचना के लाभों को समझने के लिए ओमप्रकाश मेहेरिया के फार्म का भी दौरा किया. इस दौरान टीम ने भूमि समतलीकरण गतिविधि के लाभों को समझने के लिए राजेश स्वामी से जानकारियां प्राप्त की.

राजस्थान के सूखे खेतों में फूलों की लहलहाती खेती ने किया हैरान

राजस्थान की जमीन रेतीली होने और कम बारिश के चलते देश के अन्य हिस्सों की तुलना में खेती किया जाना कठिन काम है, लेकिन सीकर जिले के तमाम किसानों ने बजाज फाउंडेशन के सहयोग के बारिश के पानी को संरक्षित करते हुए ड्रिप इरिगेशन के जरीए तमाम ऐसी फसलों को उगाने में सफलता पाई है, जिसे ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है. सीकर की इसी खेती की विधि को सीखने के लिए टीम जब तसरबाड़ी गांव पहुची, तो यहां के किसान भंवर लाल के एकीकृत खेती के मौडल करीब 40 एकड़ क्षेत्र में गेदे और गुलदाऊदी फूल की सफल खेती को देख कर अचंभित हो गई.

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इस मौके पर किसान भंवर लाल ने बताया कि वह करीब 40 एकड़ क्षेत्र में पानी का बेहतर प्रबंधन करते हुए फूलों की खेती कर करीब 70 लाख रुपए की आमदनी हर साल कर लेते हैं. उन्होंने बताया कि वह बारिश के पानी को संरक्षित करते हैं, जिसे ड्रिप के जरीए फसल की सिंचाई करते हैं. उन्होने अपने फार्म, तालाब, पौलीहाउस, बगीचे का भ्रमण भी कराया और खेती के सफल मौडल की जानकारी दी.

प्रतिभागियों ने सराहा

विश्व युवक केंद्र और बजाज फाउंडेशन द्वारा कृषि, जल पुनर्भरण, शिक्षा और आजीविका विषय पर आयोजित ट्रेनिंग और एक्सपोजर विजिट कार्यक्रम में देश के करीब 12 राज्यों से 100 से भी अधिक प्रतिभागी शामिल हुए. प्रतिभागियों ने राजस्थान के सीकर में कम पानी में किए जा रहे सफल खेती और आजीविका के मौडल को सराहा और अपनेअपने क्षेत्रों में लागू किए जाने पर बल दिया.

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से नैशनल अवार्डी किसान राममूर्ति मिश्र ने कहा कि उन्हें सीकर में अपनाए जा रहे एक लिटर पानी में पौधारोपण के सफल प्रयोग ने काफी प्रभावित किया है. उन्होंने कहा कि जब राजस्थान में हरियाली बढ़ाई जा सकती है, तो देश के सिंचित और वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे और भी सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है.

 

ट्रेनिंग में आए रूरल अवेयरनेस फौर कम्युनिटी इवोलूशन के अध्यक्ष नितेश शर्मा ने सीकर में किसानों द्वारा जल संसाधन विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों को सराहा. उन्होंने कहा कि सीकर में किसानों द्वारा संचालित एफपीओ कृषि उद्यमिता की मिसाल है. इस से देश के अन्य किसानों को सीखने में मदद मिलेगी.

 

 

 

 

 

 

 

विश्वनाथ चौधरी ने विजिट के दौरान प्राकृतिक खेती और मूल्य संवर्धन के मौडल और उस से आत्मनिर्भर बने किसान परिवारों के अनुभवों को साझा किया. प्रतिभागी नीलम मिश्रा ने एसएचजी फेडरेशन के जरीए सीकर में हुए महिला सशक्तीकरण को सराहा.