पशुओं के लिए जरूरी हरा चारा

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में पशुपालन और डेयरी विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार के दो अग्रणी संस्थानों सीईएएच, बैंगलुरू और रीजनल फोडर स्टेशन, हिसार द्वारा ‘भारत में चारा प्रबंधन में प्रगति’ (एएफएमआई-2024) विषय पर पांचदिवसीय पहली राष्ट्रीय स्तर की प्रशिक्षण सह कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में विभिन्न राज्यों के चारा विशेषज्ञों सहित 14 राज्यों के 71 पशु चिकित्सकों ने हिस्सा लिया.

कार्यशाला का शुभारंभ चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति एवं मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने किया. कार्यक्रम में संयुक्त आयुक्त (राष्ट्रीय पशुधन मिशन) डा. एचआर खन्ना व संयुक्त आयुक्त और निदेशक (सीईएएच) डा. महेश पीएस भी मौजूद रहे.
प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि नई किस्मों एवं तकनीकों को अपना कर चारा उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती है. उन्होंने केंद्र एवं राज्य सरकार के चारा बीज उत्पादन और संबंधित गतिविधियों में शामिल पशु चिकित्सा अधिकारियों को प्रशिक्षित करने पर बल दिया.

उन्होंने पशु पोषण के महत्व पर पशुपालकों में जागरूकता पैदा करना, पशुधन स्वास्थ्य, चारा उत्पादन डेयरी और चारा उत्पादों की आपूर्ति से जुड़े हितधारकों के लिए एक साझा मंच प्रदान करने पर भी बल दिया. साथ ही, उन्होंने पशु चिकित्सा विज्ञान और कृषि में प्रशिक्षित युवाओं से इस क्षेत्र के बेहतर भविष्य के लिए चारा क्षेत्र में उद्यमिता अपनाने का आग्रह किया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि देश में इस समय 11.3 फीसदी हरे चारे व 23.2 फीसदी सूखे चारे की कमी है. कृषि भूमि सीमित होने के कारण चारा फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाना कठिन है, लेकिन हम चारा फसलों की उन्नत किस्मों का बीज उपलब्ध करवा कर, चारा उत्पादन की नईनई तकनीक विकसित कर के, विभिन्न क्षेत्रों के लिए चारा फसलों के उचित फसल चक्र विकसित कर के बहुवर्षीय चारा फसलों की खेती कर के इस का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं. इस से न केवल हमारे पशुधन की उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी. चारे की कमी के दिनों में साइलेज बना कर पशुओं को खिलाया जा सकता है.

उन्होंने आगे कहा कि चारा फसलों की मुख्य चुनौतियों में गुणवत्तापूर्ण बीज की कमी भी है. इस के लिए हमें किसानों व संबंधित अधिकारियों को चारा फसलों के बीज उत्पादन के लिए प्रेरित करना होगा. यदि इन विषयों पर पशु चिकित्सकों, संबंधित अधिकारियों एवं किसानों को प्रशिक्षण दिया जाए, तो इस से चारा उत्पादन में फायदा हो सकता है. गौरतलब है कि पशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए वर्षभर हरे चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना बहुत ही महत्वपूर्ण है.

डा. महेश पीएस ने कार्यशाला में प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम की थीम और आवश्यकताओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी. क्षेत्रीय चारा केंद्र, हिसार के निदेशक डा. पीपी सिंह ने सभी का धन्यवाद किया.

इस अवसर पर एचएयू के कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा, अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग, पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग, सीएसबीएफ, हिसार के निदेशक डा. रुंतु गोई व हकृवि के चारा अनुभाग के वैज्ञानिक भी उपस्थित रहे.

कृषि शिक्षा पर केंद्र सरकार का फोकस : शिवराज सिंह चौहान, कृषि मंत्री

 नई दिल्ली :  14 अगस्त, 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि और संबद्ध विज्ञान में उच्च शिक्षा के लिए आसियानभारत फैलोशिप लांच की. आईसीएआर कन्वेंशन सैंटर, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र परिसर, पूसा, नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर और भागीरथ चौधरी भी उपस्थित थे.

यहां केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आसियान देशों का जिक्र करते हुए कहा कि हम सब एक हैं और एकदूसरे के बिना हमारा काम नहीं चल सकता. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. आज भी हमारी एक बड़ी आबादी खेती से ही रोजगार प्राप्त करती है. आज कृषि के सामने जलवायु परिवर्तन सहित कई चुनौतियां हैं. भारत ने सदैव कृषि को प्रधानता दी है.

उन्होंने आगे कहा कि समस्याओं के समाधान में कृषि शिक्षा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. सरकार ने पिछले समय में कृषि शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया है, फोकस किया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद इस काम में गंभीरता से लगी हुई है. देश में 66 राज्य कृषि विश्वविद्यालय, 4 डीम्ड विश्वविद्यालय, 3 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय और कृषि संकाय वाले 4 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं, जिन की देखरेख आईसीएआर द्वारा की जाती है.

उन्होंने कहा कि ये संस्थान स्नातक से ले कर डाक्टरेट तक कई तरह के पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं, जिन में कृषि, बागबानी, पशुपालन, मत्स्यपालन, पशु चिकित्सा, कृषि इंजीनियरिंग आदि शामिल हैं. वे कृषि विज्ञान में महत्वपूर्ण शोध भी करते हैं और किसानों व हितधारकों को सेवाएं प्रदान करते हैं. उच्च कृषि शिक्षा के लिए छात्रों को आकर्षित करने व कृषि और संबद्ध विज्ञान विषयों में शिक्षण और अनुसंधान में शैक्षिक उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए, आईसीएआर यूजी, पीजी और पीएचडी के छात्रों को परिषद द्वारा विकसित निर्धारित मानदंडों के आधार पर विभिन्न छात्रवृत्ति प्रदान कर के सहायता करता है.

ये छात्रवृत्ति आईसीएआर कोटा सीटों, आईसीएआर प्रवेश परीक्षा द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को प्रदान की जाती हैं. आईसीएआर एयू प्रणाली की क्षमता और योग्यता को अब दुनियाभर में मान्यता मिल चुकी है. कई विकासशील देशों के छात्र भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों में विकसित अनुसंधान और शिक्षण सुविधाओं से आकर्षित हो कर लाभान्वित हो रहे हैं.

उन्होंने बताया कि भारत सहित विकासशील देशों में निजी क्षेत्र में अधिक नौकरियां पैदा हो रही हैं, इसलिए विकासशील देशों के छात्रों में भारतीय कृषि को समझने के लिए भारत आ कर अध्ययन करने की रुचि बढ़ रही है. भारत में उन के उच्च अध्ययन का समर्थन करने के लिए, आईसीएआर द्वारा नेताजी सुभाष फैलोशिप, भारतअफ्रीका फैलोशिप, भारतअफगानिस्तान फैलोशिप, बिम्सटेक फैलोशिप जैसे कई कार्यक्रम/फैलोशिप शुरू किए गए हैं.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आसियानभारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ और उस के बाद इस पर निर्मित ‘इंडोपैसिफिक विजन’ की आधारशिला है. भारत आसियान एकता, आसियान केंद्रीयता, इंडोपैसिफिक पर आसियान के दृष्टिकोण का समर्थन करता है. हमारे लिए आसियान के साथ राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा सहयोग सर्वोच्च प्राथमिकता है. भारत आसियान और पूर्वी एशिया शिखर मंचों को जो प्राथमिकता देता है, वह पिछले साल हमारे जी-20 शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री मोदी की जकार्ता यात्रा से साफ है. उन्होंने 12 सूत्रीय योजना की घोषणा की थी, जिस पर काफी हद तक अमल किया गया है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत और आसियान के सदस्य देशों के बीच कृषि सहयोग की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि आसियान व भारत कृषि जलवायु क्षेत्रों के मामले में बहुत समानताएं साझा करते हैं. अब कृषि और वानिकी में आसियानभारत सहयोग के लिए कृषि व संबद्ध विज्ञान में उच्च शिक्षा के लिए आसियानभारत फैलोशिप आरंभ की जा रही है. फैलोशिप विशेष रूप से कृषि और संबद्ध विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में शक्तियों की पूर्ति और क्षमता का दोहन करने के लिए साझा हितों के नए और उभरते क्षेत्रों में स्नातकोत्तर कार्यक्रम के लिए है. इस से आसियान सदस्य देशों के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शोध आधारित शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जिस से भारत और आसियान समुदाय एकदूसरे के करीब आएंगे व आसियान देशों से आने वाले छात्रों के बीच जानकारी के अंतर-सांस्कृतिक और अंतर्राष्ट्रीय आदानप्रदान के लिए मंच प्रदान होगा.

फैलोशिप से आसियान राष्ट्रीयता के छात्रों को आईसीएआर व कृषि विश्वविद्यालय प्रणालियों के तहत सर्वश्रेष्ठ भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों में, जरूरत अनुसार, पहचाने गए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में कृषि व संबद्ध विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के लिए सहायता प्रदान की जाएगी.

इस के अलावा भाग लेने वाले संस्थानों के भारतीय संकाय सदस्यों की आसियान सदस्य देशों में परिचयात्मक यात्राओं के माध्यम से आसियान क्षमता निर्माण में सहायता प्रदान की जाएगी. इस से कृषि और संबद्ध विज्ञान क्षेत्र के विकास के लिए आसियान में विशेषज्ञ मानव संसाधन के एक पूल के निर्माण को बढ़ावा मिलेगा.
उन्होंने आगे कहा कि भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा पेश किए जाने वाले मास्टर्स प्रोग्राम छात्रों को अत्याधुनिक शोध से परिचित कराएंगे, उन्हें भविष्य के नवाचारों के लिए तैयार करेंगे. साथ ही, देश में दीर्घकालिक डिगरी कोर्स शोधकर्ताओं को लंबे समय तक जुड़े रहने में मदद कर सकता है और आसियान व भारत को कृषि से संबंधित मुद्दों को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकता है. शैक्षणिक वर्ष 2024-25 से कृषि और संबद्ध विज्ञान में मास्टर डिगरी के लिए आसियान सदस्य देशों के छात्रों को 50 फैलोशिप (प्रति वर्ष 10) प्रदान की जाएंगी. परियोजना 5 साल के लिए आसियानभारत कोष के तहत वित्त पोषण के लिए मंजूर की गई है, जिस में फैलोशिप, प्रवेश शुल्क, रहने का खर्च व आकस्मिकता शामिल है.

पालतू भेड़ और बकरियों (Pet Sheep and Goats) को एफएमडी (FMD) से बचाने के लिए होगा टीकाकरण (Vaccination)

नई दिल्ली : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने टीकाकरण के जरीए वर्ष 2030 तक एफएमडी मुक्त भारत (एफएमडी खुरपरा एवं मुंहपका रोग) के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में विभाग द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा की.

उन्होंने कहा कि पशुधन क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाता है. यह क्षेत्र पशुधन की देखभाल करने वाले किसानों, विशेषकर ग्रामीण परिवारों और महिलाओं की आजीविका में योगदान देने वाला एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल जागरूकता, पहुंच और रुचि चिंता का विषय है, जिस के कारण आजीविका में भारी नुकसान हो रहा है. बैठक में मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल और पशुपालन एवं डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय भी उपस्थित थीं.

बैठक में भारत को वर्ष 2030 तक एफएमडी मुक्त बनाने की कार्ययोजना पर चर्चा की गई. बैठक के दौरान यह बताया गया कि देश में, विशेष रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात में सीरो सर्विलांस के आधार पर जोन बनाने के लिए सभी आकलन किए गए हैं, जहां टीकाकरण अग्रिम चरण में है, उन्हें एफएमडी मुक्त क्षेत्र घोषित करने के लिए प्राथमिकता दी जा सकती है. इस से निर्यात के अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन ने बताया कि पशुओं में होने वाले रोग, पशुधन क्षेत्र के विकास में एक गंभीर बाधा है. अकेले एफएमडी के कारण, प्रति वर्ष लगभग 24,000 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है. इस बीमारी के नियंत्रण और उन्मूलन के परिणामस्वरूप दूध उत्पादन में वृद्धि होगी, लाखों किसानों की आजीविका सुदृढ़ होगी और उन की आय में वृद्धि होगी. इतना ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधी आवश्यकताओं के अनुसार दूध और पशुधन उत्पादों के निर्यात में वृद्धि होगी.

भारत सरकार ने 2 प्रमुख बीमारियों एफएमडी और ब्रुसेलोसिस की रोकथाम के उद्देश्य से टीकाकरण के लिए एनएडीसीपी की प्रमुख योजना शुरू की. कार्यक्रम के तहत मवेशियों और भैंसों में एफएमडी की रोकथाम के लिए 6 मासिक टीकाकरण भेड़ और बकरियों में शुरू किया जाता है. देश के 21 राज्यों में पशुओं में एफएमडी की रोकथाम हेतु टीकाकरण का चौथा दौर पूरा हो चुका है. अब तक कुल मिला कर लगभग 82 करोड़ टीकाकरण किए गए हैं. कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में राउंड 5 पहले ही पूरा हो चुका है.

कार्यक्रम के तहत टीकाकरण के माध्यम से देश से एफएमडी के उन्मूलन के उद्देश्य को पूरा करने का लक्ष्य वर्ष 2030 है. इस समय टीकाकरण के माध्यम से मिलने वाले लाभों को सुरक्षित और कारगर बनाने के लिए एफएमडी मुक्त क्षेत्र बनाने की दिशा में संबंधित राज्यों के साथसाथ पशुओं की आवाजाही का पता लगाने, रोग की निगरानी, जैव सुरक्षा संबंधी उपायों आदि जैसे क्षेत्रों में समन्वित प्रयासों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने की आवश्यकता है.

इस पहल को तेज करने के उद्देश्य से केंद्रीय मंत्रियों ने जमीनी स्तर पर जोनिंग की अवधारणा को लागू करने के लिए आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करने के क्रम में समर्थन और मार्गदर्शन दिया है. जोनिंग की अवधारणा और जोन को एफएमडी मुक्त बनाए रखने की पूर्व शर्तों और जरूरतों के बारे में चर्चा की गई.

यह देखा गया कि इस के लिए न केवल संबंधित राज्यों के साथ गहन सूक्ष्म नियोजन की आवश्यकता है, बल्कि टीकाकरण के माध्यम से वर्ष 2030 तक इस बीमारी को खत्म करने के अंतिम उद्देश्य को निर्धारित करने के लिए एक विस्तृत रोडमैप की भी आवश्यकता है.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि इस बृहद क्रियाकलाप में राज्यों को गुणवत्तापूर्ण वैक्सीन की आपूर्ति सुनिश्चित करना शामिल है. उन्होंने यह भी बताया कि यह गर्व की बात है कि सभी पशु टीके आईसीएआर संस्थानों द्वारा विकसित किए गए हैं और घरेलू स्तर पर उत्पादित किए जा रहे हैं. भारत अब अन्य चुनिंदा एशियाई देशों को टीके निर्यात करने में सक्षम है.

विभाग की ओर से राज्य सरकारों को सहायक उपकरण, टीका लगाने वालों को पारिश्रमिक, जागरूकता पैदा करने और अपेक्षित कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना आदि के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करता है. एफएमडी टीकाकरण की प्रभावकारिता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए गतिविधियों की निगरानी अत्यधिक वैज्ञानिक तरीके से सीरो मौनिटरिंग और सीरो सर्विलांस के माध्यम से की जाती है, जो दुनिया में पशुधन में सब से बड़ा अभियान है.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह के निर्देशों के तहत एफएमडी के खिलाफ चरने वाले भेड़ और बकरियों के टीकाकरण का निर्णय देश की ऐसी सभी आबादी तक बढ़ा दिया गया है. टीके की आपूर्ति शुरू हो गई है और लद्दाख ने पहले ही झुंडों का टीकाकरण शुरू कर दिया है. यह सरकार द्वारा प्रतिबद्ध सौ दिवसीय कार्ययोजना में से एक है. अतिसंवेदनशील और चरने वाले झुंडों में टीकाकरण की बारीकी से निगरानी की जाती है. इस का एक कारण यह भी है कि कई क्षेत्रों में भेड़बकरियों को पर्यावरण में संक्रामक वायरस की अनुपस्थिति स्थापित करने के लिए प्रहरी जानवरों के रूप में भी इस्तेमाल किया जाना है.

मंत्री राजीव रंजन ने प्रतिभागियों से एफएमडी मुक्त भारत की इस चुनौती को स्वीकार करने की अपील करते हुए पशुपालन क्षेत्र के गैरसरकारी संगठनों सहित सभी हितधारकों से एफएमडी मुक्त भारत के लक्ष्य में योगदान देने को कहा. उन्होंने पशुओं में टीकाकरण की सख्त निगरानी और पर्यवेक्षण में सूचना प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला.

समुद्री मछली पकड़ने वाले जहाजों पर 1,00,000 ट्रांसपोंडर (Transponders) लगाए जाएंगे

नई दिल्ली : भारत सरकार ने 23 अगस्त “राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस” घोषित किया है, क्योंकि इस दिन भारत को एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल हुई थी. इसी दिन चंद्रयान-3 मिशन ने विक्रम लैंडर की सुरक्षित और सौफ्ट लैंडिंग पूरी की और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास प्रज्ञान रोवर को तैनात किया. इस उपलब्धि ने भारत को चंद्रमा पर उतरने वाला चौथा देश और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बना दिया है.

इस ऐतिहासिक उपलब्धि की याद में मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने मात्स्यिकी क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कई सैमिनार और प्रदर्शनियां आयोजित कर रहा है.

ये कार्यक्रम विभिन्न तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, इसरो और मत्स्यपालन विभाग के क्षेत्रीय कार्यालयों के सहयोग से आयोजित किए जा रहे हैं. अब तक विभिन्न तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हाइब्रिड मोड में 4000 से अधिक प्रतिभागियों के साथ 11 सैमिनार और कार्यशालाएं आयोजित की गई हैं.

इन आयोजनों के एक भाग के रूप में मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने 13 अगस्त, 2024 को कृषि भवन, नई दिल्ली में “मात्स्यिकी क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग” विषय पर एक सैमिनार का आयोजन किया. राजीव रंजन सिंह, केंद्रीय मंत्री, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की. इस आयोजन में जार्ज कुरियन, राज्यमंत्री, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय एवं अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के साथसाथ अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति थी.

राजीव रंजन सिंह ने चंद्रयान-3 मिशन की शानदार सफलता के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी. केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन क्षेत्र, विशेष रूप से समुद्री क्षेत्र के साथ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने के लिए मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलों और महत्वपूर्ण उपायों पर प्रकाश डाला.

इस प्रणाली का उपयोग फिशिंग वेसल्स की मौनिटरिंग, कंट्रोल और सरवेलेंस के लिए किया जाता है, जो समुद्र में उन की सुरक्षा के लिए आवश्यक है. 13 तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मेकैनाइज्ड और मोटोराइज्ड दोनों तरह के फिशिंग वेसल्स पर 1,00,000 ट्रांसपोंडर लगाने का लक्ष्य रखा गया है, जिस के लिए 364 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है.

जार्ज कुरियन ने मात्स्यिकी क्षेत्र में तकनीकी नवाचारों, उपग्रह प्रौद्योगिकियों और वेसल्स  कम्यूनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम में युवा पीढ़ी को शामिल करने के महत्व पर प्रकाश डाला. राज्य मंत्री ने राष्ट्रीय रोलआउट प्लान के तहत निःशुल्क ट्रांसपोंडर प्रदान कर के मछुआरों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्धता पर जोर दिया.
इसरो के स्पेस एप्लिकेशन सैंटर के वैज्ञानिक डा. चंद्र प्रकाश ने मात्स्यिकी क्षेत्र में कम्यूनिकेशन एंड नेविगेशन सिस्टम्स का अवलोकन प्रस्तुत किया, जिस में विभिन्न अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों की विशेषताएं और अनुप्रयोग शामिल थे.

डा. अभिलक्ष लिखी, सचिव, मत्स्यपालन विभाग ने वेसल्स कम्यूनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम और ओशनसैट -3 जैसी कुछ प्रमुख परियोजनाओं पर इसरो और मत्स्यपालन विभाग के बीच सहयोगात्मक प्रयासों पर प्रकाश डाला. केंद्रीय सचिव ने मात्स्यिकी क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग को बढ़ाने पर भी जोर दिया.

सागर मेहरा, संयुक्त सचिव, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने सभी गणमान्य व्यक्तियों और अन्य प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया और मत्स्यपालन विभाग विभाग, भारत सरकार और इसरो के बीच सफल सहयोग की सराहना की.

मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार की संयुक्त सचिव नीतू प्रसाद ने मात्स्यिकी क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग पर मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न पहलों जैसे वेसल्स कम्यूनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम के लिए नैशनल रोलआउट प्लान, ओशनसैट का अनुप्रयोग, पोटेंशियल फिशिंग जोन्स (पीएफजेड) आदि के बारे में जानकारी दी.

उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि वेसल्स कम्यूनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम, जिसे भारत सरकार ने साल 2023 में अनुमोदित किया था, एक महत्वपूर्ण पहल है.

मत्स्यपालन विभाग, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के मात्स्यिकी विभाग, इसरो, आईएनसीओआईएस, आईएमएसी, आईसीएआर, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड के अधिकारी और अन्य हितधारकों ने कृषि भवन में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया.

इस कार्यक्रम में लगभग 1,000 मछुआरे, छात्र, राज्य मात्स्यिकी विभाग और मत्स्यपालन विभाग के क्षेत्रीय कार्यालयों, आईसीएआर आदि के अधिकारियों ने वर्चुअल मोड द्वारा शामिल हुए.

कृषि भवन में आयोजित कार्यक्रम के बाद महाराष्ट्र के मात्स्यिकी विभाग के सहयोग से एफएसआई मुख्यालय, मुंबई में एक सैमिनार और कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिस में मछुआरों, छात्रों, अधिकारियों और नाव मालिकों आदि सहित तकरीबन 300 लोग शामिल हुए.

मोबाइल और वैब एप्लिकेशन पर होगी पशुओं की गणना (Animal counting)

नई दिल्ली : पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी), मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार और मेजबान राज्य जम्मू और कश्मीर ने “जम्मूकश्मीर और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के राज्य और जिला नोडल अधिकारियों (एसएनओ/डीएनओ) के लिए सौफ्टवेयर (मोबाइल और वैब एप्लिकेशन/डैशबोर्ड) और नस्लों पर 21वीं पशु गणना का क्षेत्रीय प्रशिक्षण” आयोजित किया.

यह कार्यशाला श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में आयोजित की गई थी, जिस में इन राज्यों के राज्य/जिला नोडल अधिकारियों को 21वीं पशुधन गणना आयोजित करने के लिए नए लौंच किए गए मोबाइल और वैब एप्लिकेशन पर प्रशिक्षण दिया गया, जो सितंबरदिसंबर, 2024 के लिए निर्धारित है.

अलका उपाध्याय ने वर्चुअल माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था पर पशुधन क्षेत्र के प्रभाव और पशुधन क्षेत्र के उत्पादों के वैश्विक व्यापार के संदर्भ में भारत की स्थिति के बारे में जानकारी साझा की, वहीं भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग के सलाहकार (सांख्यिकी) जगत हजारिका ने कार्यशाला का उद्घाटन किया. इस अवसर पर जम्मू और कश्मीर सरकार के कृषि उत्पादन विभाग के सचिव जीए सोफी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के निदेशक डा. बीपी मिश्रा, भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग के सांख्यिकी प्रभाग के निदेशक वीपी सिंह और जम्मू और कश्मीर सरकार के पशुपालन विभाग के निदेशक डा. अल्ताफ अहमद लावे उपस्थित थे.

इस समारोह में गणमान्य व्यक्तियों के संबोधन ने उद्घाटन कार्यक्रम को विशिष्टता प्रदान की और पशुधन गणना के संचालन के लिए जिला और राज्य स्तरीय नोडल कार्यालयों के सफल प्रशिक्षण की दिशा में एक सहयोगी प्रयास के लिए मंच तैयार किया.

जगत हजारिका ने अपने संबोधन में इस कार्यशाला के महत्व पर प्रकाश डाला, सटीक और कुशल डाटा संग्रह के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए विभाग की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया. उन्होंने 21वीं पशुधन जनगणना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए सभी हितधारकों की सामूहिक जिम्मेदारी पर बल दिया, जो पशुपालन क्षेत्र की भविष्य की नीतियों और कार्यक्रमों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और उन से जनगणना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए नवीनतम तकनीकों से लाभ प्राप्त करने का आग्रह किया.

जीए सोफी ने कार्यशाला को संबोधित किया और बुनियादी स्तर पर व्यापक प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए पशुधन क्षेत्र के महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने एकत्र किए गए डाटा द्वारा भविष्य की पहल को आकार देने और क्षेत्र में चुनौतियों का समाधान करने में इन की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए जनगणना की कुशल योजनाओं और क्रियान्वयन का आह्वान किया.

अपने संबोधन में डा. अल्ताफ अहमद लावे ने पशुधन क्षेत्र में स्थायी अभ्यासों के एकीकरण पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि पशुधन गणना के बाद प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण और तार्किक उपयोग भविष्य की विभागीय नीतियों को तैयार करने और कार्यक्रमों को लागू करने के साथसाथ पशुपालन के क्षेत्र में पशुपालकों के लाभ के लिए नई योजनाएं बनाने और रोजगार सृजन की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेगा.

उन्होंने जम्मूकश्मीर सरकार द्वारा पूरे भारत में दुग्ध उत्पादन में सर्वोत्तम अभ्यासों को अपनाने पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे पशुधन किसानों के वित्तीय सशक्तीकरण में योगदान प्रदान करता है, उन की नकदी जरूरतों की प्रभावशाली रूप से पूर्ति करता है.

उन्होंने पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) द्वारा विकसित नवीनतम तकनीकों के बारे में भी बताया, जैसे कि सैक्स-सौर्टेड वीर्य का उपयोग. उन्होंने सभी राज्यों से आए प्रतिनिधियों का गर्मजोशी से स्वागत किया और उन्हें सफल प्रशिक्षण सत्र की शुभकामनाएं दीं.

कार्यशाला में कई सत्रों की सीरीज आयोजित की गई, जिस की शुरुआत पशुपालन सांख्यिकी प्रभाग द्वारा 21वीं पशुधन गणना के संक्षिप्त विवरण के साथ हुई, जिस के बाद बीपी मिश्रा और आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीएजीआर) की टीम ने गणना में शामिल की जाने वाली प्रजातियों की नस्लों के विवरण पर विस्तृत प्रस्तुति दी. सटीक नस्ल की पहचान के महत्व पर जोर दिया गया, जो विभिन्न पशुधन क्षेत्र कार्यक्रमों में उपयोग किए जाने वाले सटीक आंकड़े तैयार करने और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के राष्ट्रीय संकेतक ढांचे (एनआईएफ) के लिए महत्वपूर्ण है.

इस आयोजित कार्यशाला में 21वीं पशुधन गणना के सौफ्टवेयर के तरीकों और लाइव एप्लिकेशन पर विस्तृत सत्र शामिल थे. भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग की सौफ्टवेयर टीम ने राज्य और जिला नोडल अधिकारियों के लिए मोबाइल एप्लिकेशन और डैशबोर्ड सौफ्टवेयर पर प्रशिक्षण दिया. ये नोडल अधिकारी अपनेअपने जिला मुख्यालयों पर गणनाकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण का आयोजन करेंगे.
कार्यशाला का समापन वीपी सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ. अपने संबोधन में उन्होंने सभी गणमान्य व्यक्तियों और हितधारकों के प्रति उन की उपस्थिति के लिए आभार व्यक्त किया और कार्यशाला का समापन इस आशा के साथ किया कि गणना का काम सफल होगा.

उत्तर प्रदेश में होगी पशुओं की गिनती (Animal Counting)

लखनऊ : प. दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान, बक्शी का तालाब, लखनऊ में 21 वीं पशुगणना की तैयारी के अंतर्गत देश के 3 राज्यों यथा उत्तर प्रदेश के साथसाथ मध्य प्रदेश एवं उत्तराखंड के राज्य/जनपदीय नोडल अफसरों को संयुक्त रूप से प्रशिक्षण प्रदान कर मास्टर्स ट्रेनर तैयार किया जाने के लिए इस एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं उत्तराखंड के कुल 175 पशु चिकित्साविदों, संख्याधिकारियों, नोडल अधिकारियों द्वारा भारत सरकार, मत्स्य, पशुपालन मंत्रालय के सहयोग से आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभाग किया गया.

उक्त कार्यक्रम का उद्घाटन प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह द्वारा किया गया.
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा कि पशुओं की गिनती के उपरांत प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण एवं तार्किक उपयोग से भविष्य की योजनाओं, विभागीय नीतियों को बनाने एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में एवं पशुपालकों के हित में नई योजनाओं और पशुपालन के क्षेत्र में रोजगार सृजन का मार्ग प्रशस्त होगा.

उन्होंने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश में पूरे देश का सर्वाधिक पशुधन है. साल 2019 की पशुओं की गिनती के मुताबिक, प्रदेश में 190.20 लाख गाय, 330.17 लाख महिषवंश, 9.85 लाख भेड़, 144.80 लाख बकरी एवं 4.09 लाख सूकर हैं. देश मे प्रत्येक 5 साल के बाद पशुओं की गिनती की जानी है. वर्तमान में 21वीं पशुगणना की तैयारी चल रही है.

उक्त अवसर पर रविंद्र,  प्रमुख सचिव, पशुधन, उप्र शासन, देवेंद्र पांडेय, विशेष सचिव, उप्र शासन, जगत हजारिका, सलाहकार (सांख्यकीय) भारत सरकार, वीपी सिंह, निदेशक, पशुपालन सांख्यकीय, भारत सरकार, डा. आरएन सिंह, निदेशक प्रशासन एवं विकास और डा. पीएन सिंह, रोग नियंत्रण एवं प्रक्षेत्र, उप्र एवं 3 प्रदेशों के प्रतिभागी उपस्थित थे.

निदेशक, प्रशासन एवं विकास, पशुपालन विभाग द्वारा अपने स्वागत भाषण में समस्त उपस्थित लोगों के साथसाथ प्रतिभागियों का भी स्वागत किया गया. उन के द्वारा प्रतिभागियों से इस महत्वपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम को अतिसंवेदनशील मानते हुए सही रूप में जानकारी प्राप्त कर पशुधन की गणना का आह्वान किया गया, ताकि सही आंकड़ों पर भविष्य की योजनाओं के सृजन में सहयोग मिल सके.

भारत सरकार से आए अधिकारियों द्वारा पशुगणना प्रत्येक 5 सालों के अंतराल पर की जाती है. पशुगणना में प्रत्येक घर, उद्यम एवं संस्थानों में पशुओं की प्रजातिवार गणना की जाती है. देश में प्रथमवार पशुगणना साल 1919 में की गई थी. इस कड़ी में अब तक कुल 20 पशुगणनाएं आयोजित की जा चुकी हैं.

20वीं पशुगणना साल 2019 में आयोजित की गई थी. उक्त पशुगणना में पहली बार टैबलेट के माध्यम से औनलाइन की गई, जिस में गणनकर्ताओं द्वारा भारत सरकार द्वारा विकसित किए गए एप पर पशुओं की गिनती की गई. आंकड़े सीधे भारत सरकार के सर्वर पर अपलोड हुए थे.

प्रमुख सचिव, पशुधन द्वारा अवगत कराया गया कि 20वीं पशुगणना की भांति इस बार भी पशुगणना एनडीएलएम (National Digital Livestock Mission) द्वारा विकसित एंड्राइड एप पर कराई जानी है, जिस के अंतर्गत एनबीएजीआर (National Bureau of Animal Genetic Resources) द्वारा पंजीकृत ब्रीड के अनुसार नस्लवार पशुओं की गिनती की जाएगी.

भारत सरकार द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, पूरे देश में एकसाथ सितंबर से दिसंबर 2024 के मध्य पशुगणना का काम किया जाना है. 21वीं पशुगणना से प्राप्त होने वाले विस्तृत एवं विश्वासपरक आंकड़े की नींव पर नीति निर्धारण से आने वाले समय में पशुपालन विभाग प्रगति के नए आयाम को प्राप्त करेगा.

21 वी पशुगणना के लिए भारत सरकार द्वारा 5 राज्यों कर्नाटक, ओड़िसा, उत्तर प्रदेश, गुजरात व अरुणाचल प्रदेश को पायलट सर्वे के लिए चयनित किया गया है.

मुख्य अतिथि द्वारा अपने संबोधन में पशुपालन को आजीविका का मुख्य स्रोत मानते हुए गुणवत्तायुक्त पशुधन उत्पादों की चर्चा के साथ वास्तविक पशुधन के आंकड़ों पर बल दिया गया. पशुधन विकास के 4 प्रमुख आयाम उन्नत पशु प्रजनन, पशु स्वास्थ्य, पशु प्रबंधन एवं पशु पोषण के क्षेत्र में समग्र प्रयास पशुधन के चहुंमुखी विकास का प्रमुख आधार सही गणना पर ही आधारित है. इसलिए प्रशिक्षण कार्यक्रम की उपयोगिता और सार्थकता पर प्रकाश डाला. साथ ही, गोवंश के समग्र विकास एवं दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिए नई तकनीकी पर बल दिया गया.

निदेशक, रोग नियंत्रण एवं प्रक्षेत्र द्वारा समस्त व्यक्तियों, विभिन्न प्रदेशों से आए प्रतिभागियों के साथसाथ इस कार्यक्रम में सहयोग प्रदान करने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान के अधिकारियों व कर्मचारियों, पशुपालन विभाग, उप्र के अधिकारियों व कर्मचारियों का आभार व्यक्त किया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में पशुपालन विभाग, उप्र के विभिन्न अधिकारियों डा. अरविंद कुमार सिंह, अपर निदेशक, गोधन, डा. जयकेश पांडेय, अपर निदेशक, नियोजन, डा. एके वर्मा, अपर निदेशक, लघु पशु, डा. एमआई खान, संयुक्त निदेशक, सांख्यकीय, डा. संजीव शर्मा उपनिदेशक, सांख्यकीय, डा. नीलम बाला, उपनिदेशक/रजिस्ट्रार और निदेशालय पशुपालन विभाग, उप्र, लखनऊ के विभिन्न अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा प्रतिभाग किया गया.

पशुधन डेटा के लिए मोबाइल एप्लिकेशन (Mobile Application)

नई दिल्ली : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने पिछले दिनों विज्ञान भवन, नई दिल्ली में 21वीं पशुधन गणना की तैयारी के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को रणनीति बनाने और सशक्त करने के लिए कार्यशाला का उद्घाटन किया. इस अवसर पर मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल और जार्ज कुरियन भी मौजूद थे. कार्यशाला में केंद्रीय मंत्री ने 21वीं पशुधन डेटा संग्रह के लिए विकसित मोबाइल एप्लीकेशन का भी शुभारंभ किया.

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए पशुधन क्षेत्र का महत्व बताया. उन्होंने पशुधन गणना की सावधानीपूर्वक योजना बनाने और उसे लागू करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि एकत्र किया गया डाटा, भविष्य की पहलों को आकार देने और क्षेत्र में चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री राजीव रंजन सिंह ने बताया कि कार्यशाला का उद्देश्य सितंबरदिसंबर 2024 के दौरान निर्धारित आगामी पशुधन गणना के लिए एक समन्वित और कुशल दृष्टिकोण सुनिश्चित करना है.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने कार्यशाला को संबोधित किया और जमीनी स्तर पर व्यापक प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता बताई. उन्होंने इस तरह की रणनीतिक कार्यशाला आयोजित करने के लिए विभाग के प्रयासों की सराहना की और प्रतिभागियों को अपनी समझ और क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण सत्रों में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री जार्ज कुरियन ने पशुधन क्षेत्र में मौजूदा प्रथाओं के एकीकरण पर बल दिया. उन्होंने बताया कि गणना के आंकड़े सतत विकास लक्ष्यों के राष्ट्रीय संकेतक ढांचे में योगदान देंगे, जिस से व्यापक राष्ट्रीय और वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के साथ तालमेल किया जा सकेगा.

पशुपालन एवं डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय ने अपने संबोधन में इस कार्यशाला का महत्व बताते हुए कहा कि यह विभाग सटीक और कुशल डेटा संग्रह के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने 21वीं पशुधन गणना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए सभी हितधारकों की सामूहिक जिम्मेदारी पर बल दिया और कहा कि यह पशुपालन क्षेत्र की भविष्य की नीतियों और कार्यक्रमों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. उन्होंने गणना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए नवीनतम तकनीकों का लाभ उठाने का आग्रह किया.

कार्यशाला में 21वीं पशुधन गणना के लिए कार्यप्रणाली और दिशानिर्देशों पर विस्तृत सत्र, मोबाइल एप्लिकेशन और डैशबोर्ड सौफ्टवेयर पर प्रशिक्षण और प्रश्नों और चिंताओं के समाधान के लिए एक खुली चर्चा शामिल थी.

मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने 21वीं पशुधन गणना की तैयारी के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को रणनीति बनाने और सशक्त करने के लिए एक व्यापक कार्यशाला आयोजित की. कार्यशाला में कई सत्र आयोजित किए गए. इस दौरान पशुपालन सांख्यिकी प्रभाग ने 21वीं पशुधन गणना का संक्षिप्त विवरण दिया और बाद में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो द्वारा गणना में शामिल की जाने वाली प्रजातियों के नस्ल विवरण पर विस्तृत प्रस्तुति दी गई. सटीक नस्ल पहचान के महत्व पर जोर दिया गया. सटीक नस्ल पहचान, विभिन्न पशुधन क्षेत्र कार्यक्रमों में उपयोग किए जाने वाले सटीक आंकड़े तैयार करने और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के राष्ट्रीय संकेतक ढांचे (एनआईएफ) के लिए महत्वपूर्ण है.

मत्स्यपालन में स्वरोजगार (Self-Employment in Fisheries) की अपार संभावनाएं

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय में मत्स्यपालन के प्रति जागरूक करने व बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं, जिस में विभिन्न कालेज व स्कूलों के विद्यार्थियों ने भाग लिया.

इस समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने की.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने संबोधन में कहा कि विश्वविद्यालय के उन्नत अनुसंधानों के माध्यम से प्रदेश के मत्स्यपालन क्षेत्र को बढ़ाने में उपरोक्त महाविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी. मत्स्यपालन में स्वरोजगार की भी अपार संभावनाएं हैं.

उन्होंने विद्यार्थियों एवं शिक्षकों से आह्वान करते हुए कहा कि वे नीली क्रांति को बढ़ावा देेने के लिए कारगर कदम उठाएं. मत्स्यपालन के व्यवसाय में बढ़ोतरी करने के लिए भी विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों को प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वित किया जा रहा है.

उन्होंने शिक्षकों से कहा कि वे विद्यार्थियों में नेतृत्व गुणों को विकसित करें, ताकि विद्यार्थी राष्ट्र के नवनिर्माण में अपना योगदान दे सकें. उन्होंने छात्रों एवं शिक्षकों को नियमित बैठकें आयोजित करने का भी सुझाव दिया.

अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने सभी का स्वागत करते हुए महाविद्यालय की प्रगति एवं गतिविधियों पर प्रकाश डाला, जबकि डा. रचना गुलाटी ने समारोह में सभी का धन्यवाद किया. मंच का संचालन अंकित व अजय ने किया. इस अवसर पर उपरोक्त महाविद्यालय के सभी शिक्षक, गैरशिक्षक कर्मचारी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे.

विभिन्न स्कूलों एवं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों की रंगोली, पोस्टर, स्लोगन, वादविवाद, एक्वास्केपिंग व मत्स्यपालन क्षेत्र में उद्यमिता से संबंधित अनेक प्रतियोगिताएं भी करवाई गईं.

ये रहा प्रतियोगिताओं का परिणाम

इनोवेशन एंड एंटरप्रेंन्योरशिप प्रतियोगिता में उमेश ने प्रथम, कार्तिक ने द्वितीय और सूरज ने तृतीय स्थान, एक्वास्केपिंग में पूर्णिमा व आरजू ने प्रथम, रमन, कार्तिक व अमित ने द्वितीय, जबकि अंकित व विजय ने तृतीय स्थान प्राप्त किया.

वादविवाद प्रतियोगिता में विजयी निशा ने पहला, आशिका व उमेश ने दूसरा, जबकि विधि और शाइना ने तीसरा स्थान प्राप्त किया. उक्त प्रतियोगिता में कैंपस स्कूल की आरोही प्रथम, जबकि कृष्णा दूसरे स्थान पर रहे.

रंगोली प्रतियोगिता में मनोज व युक्ति प्रथम, दिव्या, खुशी, मुस्कान व प्रमोद द्वितीय, जबकि सुनील, दीक्षा, पूजा व निकिता तृतीय स्थान पर रहे. निकिता, कीर्ति, दीपक व महक ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया.

उक्त प्रतियोगिता में कैंपस स्कूल की कृति ने पहला, विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित राजकीय माध्यमिक विद्यालय की रेणुका, अंजली, भानू, सुशील, नंदिनी व प्रिया ने दूसरा, जबकि कैंपस स्कूल की तनीक्षा व नितीका ने तीसरा व नंदिनी और हिमांशी ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया.

समारोह में विद्यार्थियों द्वारा नृत्य एवं गायन सहित अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए, जिस में मानसी, खुशी, दीप्ति, मोहित, अमित, साहिल, सुहानी व जतिन ने भाग लिया.

मत्स्य आहार संयंत्र (Fish Feed Plant) से सानिया बनी सफल उद्यमी

छिंदवाड़ा : प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना छिंदवाड़ा जिले के विकासखंड परासिया के ग्राम जाटाछापर की सानिया अली और उन के पति जुनेद खान के लिए खासी अच्छी साबित हुई है. इस योजना के अंतर्गत जिले के विकासखंड छिंदवाड़ा के ग्राम भैंसादंड में लगभग साढ़े 3 करोड़ रुपए की लागत से स्थापित 20 टन प्रति दिवस के उत्पादन क्षमता के प्रदेश के पहले मत्स्य आहार संयंत्र की स्थापना कर सानिया अली और उन के पति जुनेद खान सफल उद्यमी बन गए हैं. उन की माली हालत अब अत्यंत सुदृढ़ हो गई है.

सानिया अली और उन के पति जुनेद खान ने अपनी जेके इंडस्ट्रीज की स्थापना से जहां वर्ष 2023-24 में लगभग 90 लाख रुपए और वर्ष 2023-24 में लगभग पौने 2 करोड़ रुपए का टर्नओवर प्राप्त किया है, वहीं अपने इस उद्योग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 200 व्यक्तियों को रोजगार भी दिया है. अब वर्ष 2024-25 में उन्हें अपने व्यापार से लगभग ढाई से 3 करोड़ रुपए का टर्नओवर प्राप्त होने की संभावना है. हितग्राही को इस मत्स्य आहार संयंत्र में उत्पादित मत्स्य आहार के विक्रय से प्रतिवर्ष लगभग 8 से 10 लाख रुपए तक की आय प्राप्त हो रही है.

जेके इंडस्ट्रीज, भैंसादंड की स्वामी सानिया अली अपने पति जुनेद खान के साथ इस मत्स्य आहार संयंत्र का संचालन कर रही हैं. उन्होंने अपने पति जुनेद खान को इस इंडस्ट्रीज का मुख्य कार्यपालन अधिकारी नियुक्त किया है. मुख्य कार्यपालन अधिकारी जुनेद खान इस इंडस्ट्रीज को संचालित करने के लिए अपनी पत्नी सानिया अली को भरपूर सहयोग देते हैं. उन की मेहनत व संघर्ष का नतीजा है कि उन का व्यापार अब सफलता की ओर निरंतर बढ़ रहा है और एक सफल उद्यमी के रूप में उन की पहचान बन रही है.

जुनेद खान ने बताया कि वे लगभग 16 वर्ष की आयु से मत्स्यपालन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, इस के पूर्व वे वर्ष 2018 में जिले के जुन्नारदेव विकासखंड के ग्राम घोड़ावाड़ी में एक पौंड को किराए पर ले कर मत्स्यपालन कर चुके हैं.

2 साल तक उन्हें इस काम में घाटा हुआ और तीसरे वर्ष इस काम से उन्हें लाभ प्राप्त होना शुरू हुआ, किंतु अनुभव की कमी के कारण इस में अधिक सफलता नहीं मिली. वे मत्स्य आहार के क्षेत्र में कुछ बेहतर करना चाहते थे, इसलिये वे उचित मार्गदर्शन के लिए मत्स्य विभाग पहुंचे, जहां तत्कालीन सहायक संचालक मत्स्योद्योग द्वारा पुन: 5 लाख रुपए तक की मत्स्य यूनिट की जानकारी दी गई, जिस से उन्हें संतुष्टि नहीं मिली.

उन्होंने अन्य बड़ी योजनाओं के संबंध में जानकारी प्राप्त करना चाही, तो उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की जानकारी हुई, जिस में निजी क्षेत्र में मत्स्य आहार संयंत्र की स्थापना के लिए 2 करोड़ रुपए तक का लोन और 60  फीसदी का अनुदान उपलब्ध कराया जाता है. इस जानकारी से उन का मन प्रसन्न हो गया और उन्होंने अपनी पत्नी के नाम से इस योजना के अंतर्गत अपना प्रकरण तैयार कराया और मत्स्य विभाग के माध्यम से उन्हें 2 करोड़ रुपए का लोन और 60 फीसदी अर्थात 1.20 करोड़ रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ. इस संयंत्र की 13 सितंबर, 2021 को स्थापना की गई, जिस का उद्घाटन तत्कालीन संचालक मत्स्योद्योग भरत सिंह, संयुक्त संचालक शशिप्रभा धुर्वे और सहायक संचालक मत्स्योद्योग रवि गजभिये द्वारा किया गया.

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन ने 4 अप्रैल, 2023 को मध्य प्रदेश के इस प्रथम मत्स्य आहार संयंत्र का अवलोकन किया और संयंत्र के माध्यम से तैयार किए जा रहे मत्स्य आहार की प्रक्रिया की जानकारी के साथ ही मत्स्य आहार की गुणवत्ता, उत्पादन क्षमता, विक्रय दर, मत्स्य आहार की पैकिंग, निर्यात आदि के संबंध में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर इस संयंत्र के माध्यम से तैयार किए जा रहे मत्स्य आहार और अन्य प्रक्रियाओं पर संतोष व्यक्त करते हुए इस की सराहना भी की.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के देश में क्रियान्वयन के सफल 3 वर्ष पूरे होने पर 15 सितंबर, 2023 को ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर, इंदौर में केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला के मुख्य आतिथ्य में आयोजित कार्यक्रम में भी उन्होंने प्रदेश के प्रथम मत्स्य आहार संयंत्र के रूप में अपने संयंत्र का स्टाल लगा कर प्रदर्शन भी किया, जिस की केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन और प्रदेश के अन्य मंत्रियों ने सराहना की.

मत्स्य आहार संयंत्र से छिंदवाड़ा जिले के साथ ही आसपास के जिलों बैतूल, सिवनी, बालाघाट, इंदौर, भोपाल, खंडवा, राजगढ़, नर्मदापुरम आदि एवं प्रदेश के बाहर के प्रदेशों असम, ओड़िसा, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि में भी विक्रय किया जा रहा है.

मुख्य कार्यपालन अधिकारी जुनेद खान ने बताया कि इस संयंत्र की स्थापना में उन की पत्नी और उन्हें अत्यंत कड़ा संघर्ष करना पड़ा.

उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि संयंत्र की स्थापना के लिए मत्स्य विभाग से लोन और अनुदान प्राप्त करने के अलावा अपने पिता जमील खान से लगभग 30 लाख रुपए की लागत से एक एकड़ भूमि खरीदवाई, बैंक औफ बड़ौदा की छिंदवाड़ा शाखा से 50 लाख रुपए का कर्जा लिया, व्यक्तिगत कर्ज लिया और अपनी सारी जमापूंजी लगाने के साथ ही अन्य रिश्तेदारों से भी माली मदद ली. भवन व अधोसंरचना निर्माण में लगभग 80 लाख रुपए, मुख्य आहार निर्माण मशीन में लगभग सवा करोड़ रुपए निजी ट्रांसफार्मर की स्थापना पर लगभग 12 लाख रुपए, रौ मेटेरियल पर लगभग 13 से 14 लाख रुपए, पैकिंग सामग्री पर लगभग 4 लाख रुपए, ट्रेड मार्क लेने पर लगभग 3 लाख रुपए और अन्य मदों पर राशि खर्च हुई.

उन्होंने आगे बताया कि आहार संयंत्र की स्थापना में पहले 2 साल बहुत ही मुश्किल हालात में बीते. राजस्थान और चीन से आहार संयंत्र की अत्याधुनिक मशीनें खरीदी गई थीं, किंतु राजस्थान से खरीदी मशीन बारबार बंद हो रही थी और उस के पार्ट्स व इंजीनियर को राजस्थान से बुलवाने में काफी समय लगता था. ऐसी स्थिति में 4 से 7 दिनों तक उत्पादन प्रभावित होता था. सुबह 9 बजे से लगातार रात 4 से 5 बजे तक मशीन का सुधार कार्य चलता था और इस काम में 3 से 4 दिन लग जाते थे. इस स्थिति से परेशान हो कर संबंधित कंपनी को मशीन वापस भेज कर उस से दूसरी मशीन रिप्लेस करवाई गई और काम शुरू किया गया.

मशीनरी ठीक होने के बाद जब अप्रैलमई, 2022 में उत्पादन प्रारंभ हुआ, तो मार्केटिंग की समस्या सामने आई और इस में एक वर्ष तक घाटे की स्थिति रही. ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संयंत्र को बंद करना पड़ सकता है, किंतु उन्होंने हार नहीं मानी और न ही उन की हिम्मत टूटी.

अपनी जिद और जुनून के दम पर उन्होंने मार्केटिंग के लिए अपनी इंडस्ट्री का ट्रेडमार्क लिया और देश के विभिन्न राज्यों में 15 डीलर नियुक्त किए, जिन के माध्यम से उन्हें व्यापार में सफलता मिलनी शुरू हुई.

मुख्य कार्यपालन अधिकारी जुनेद खान ने बताया कि मत्स्य आहार बनाने के लिए उन्होंने कोलकाता और नई दिल्ली के वैज्ञानिकों और डाक्टरों से रेसिपी प्राप्त की और आहार बनाना शुरू किया. मत्स्य आहार बनाने के लिए रौ मेटेरियल के रूप में सोयाबीन व सरसों की खली, गेहूं, मक्का, चावल, सूखी मछली, मछली का तेल, मेडिसन, मिनरल्स और अन्य सामग्री का उपयोग किया जा रहा है. उन के संयंत्र में मछलियों के साइज के हिसाब से आहार तैयार किया जाता है, जिस में 20 किलोग्राम और 35 किलोग्राम के पैकेट तैयार किए जाते हैं. 20 किलोग्राम की पैकिंग में 4 प्रकार के आहार बनाए जाते हैं, जिस में डस्ट में 40 फीसदी प्रोटीन व 6 फीसदी फेट, एक एमएम में 32 फीसदी प्रोटीन व 6 फीसदी फेट, 2 एमएम में 30 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट और 28 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट रहता है.

वहीं दूसरी ओर 35 किलोग्राम की पैकिंग में 3 एमएम में 28 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट, 4 व 6 एमएम में 28 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट, 4 एमएम में 26 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट, 4 एमएम में 24 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट और 4 एमएम में 20 फीसदी प्रोटीन व 5 फीसदी फैट रहता है.

इस पौष्टिक आहार से 6 माह में ही मछलियों का विकास एक से डेढ़ किलोग्राम तक होने पर वे बिकने को तैयार हो जाती हैं. इन के बिकने से कम समय में अधिक आय प्राप्त होती है और मत्स्यपालक लाभान्वित होते हैं, जबकि दूसरी कंपनियों के आहार में यह विकास 8 से 10 माह में होता है. बाजार मूल्य से 20 फीसदी कम मूल्य पर मत्स्य आहार उपलब्ध कराने पर हमारे संयंत्र से उत्पादित पौष्टिक आहार की मांग बढ़ती जा रही है.

उन्होंने आगे बताया कि मुख्य संयंत्र में प्रत्यक्ष रूप से 20 कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिन्हें स्थायी रोजगार मिला है, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से 15 डीलरों के पास 10-10 किसानों के अलावा 15 से 20 अन्य व्यक्ति रोजगार प्राप्त करते हैं और ट्रांसपोर्ट के काम में लगे 10 ट्रकों के 20-20 ड्राइवरों व कंडक्टरों को भी स्थायी रोजगार मिला है.

उन्होंने यह भी बताया कि उन के परिवार में पतिपत्नी के अलावा उन का एक 7 साल का बेटा व 3 साल की बेटी है. उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की तालीम हासिल की है, जबकि उन की पत्नी इलेक्ट्रिक इंजीनियर हैं.

अपने मत्स्य आहार संयंत्र को उन्होंने भारत का सब से बड़ा आहार निर्माण संयंत्र बनाने का संकल्प लेते हुए अपने लक्ष्य की पूर्ति की ओर वे निरंतर बढ़ रहे हैं.

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने से उन्हें समाज में भी सम्मान मिला है. वह और अन्य उद्यमियों को इस योजना का लाभ लेने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं.

उन्होंने अपने पिता जमील खान, जिन्हें वे अपना गुरु मान कर उनके सिखाए रास्ते पर अपने उद्योग को चला रहे हैं, के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित किया है. साथ ही, इस योजना के अंतर्गत मत्स्य आहार संयंत्र चलाने में मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग प्रदान करने के लिए सहायक संचालक मत्स्योद्योग राजेंद्र सिंह, सहायक मत्स्योद्योग अधिकारी संजय अंबोलीकर और मत्स्य निरीक्षक अनिल राउत के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित किया है.

आईसीएआर (ICAR) सोसायटी की 95वीं वार्षिक आम बैठक

नई दिल्ली: 28 फरवरी 2024, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) सोसायटी की 95वीं वार्षिक आम बैठक केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा की अध्यक्षता में हुई. केंद्रीय मंत्री डा. जितेंद्र सिंह व श्री कैलाश चैधरी, उत्तर प्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी मंत्री धर्मपाल सिंह, नागालैंड के कृषि मंत्री माथुंग यंथन एवं आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक भी मौजूद थे.

बैठक में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि आईसीएआर ने देश को भूख व कुपोषण से निकाल कर स्वस्थ कृषि उत्पादन की ओर ले जाने की दिशा में कृषि क्षेत्र में नवाचार का नेतृत्व किया है. पिछली बैठक में 46 से अधिक सुझाव आए थे, जिन सभी पर आईसीएआर ने काम पूरा किया है.

उन्होंने आगे कहा कि यह प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में केंद्र सरकार की उपलब्धि का ही नतीजा है कि विश्व में सर्वाधिक आबादी होने के बावजूद भारत में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को केंद्र द्वारा मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. कई उपलब्धियों के बावजूद भी कुछ चुनौतियां हैं, जिन का समाधान तलाशते हुए हमें अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढना है. प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में कृषि, किसान को समृद्ध बनाते हुए देश को आगे बढ़ाने का काम सुनिश्चित किया जा रहा है. साथ ही, कृषि संबद्ध क्षेत्रों, पशुपालन, मत्स्यपालन, मुधमक्खीपालन आदि को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है.

आईसीएआर (ICAR)

हमें जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण जैसी चुनौतियों के समाधान की दिशा में तेजी से काम करते हुए किसानों की उन्नति का रास्ता साफ करना है. खुशी की बात है कि इस में आईसीएआर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. आईसीएआर ने साल 2005 से 2014 के दौरान जहां अधिक पैदावार देने वाली 1,225 फसल किस्में जारी की गई थीं, वहीं 2014 से 2023 के दौरान 2,279 ऐसी किस्में जारी की गई हैं, जो लगभग दोगुना है.

अब ध्यान पौषणिक सुरक्षा पर है, इस के लिए जैव प्रबलित किस्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. इस दिशा में प्रभावी ढंग से आगे बढ़ने के लिए बैठक में आने वाले सुझाव काफी मददगार होंगे.
मंत्री अर्जुन मुंडा ने यह भी कहा कि मानव समाज के लिए, कृषि क्षेत्र की प्रगति के बिना किसी और क्षेत्र की प्रगति नहीं हो सकती है.

इस का संतुलन बना कर व तमाम चुनौतियों का सही आंकलन कर उस का निराकरण करते हुए बेहतर परिणाम देने का प्रयास होना चाहिए. सुदूर क्षेत्र में रहने वाले छोटे से छोटे किसान में आत्मस्वावलंबन हो, उन की प्रगति हो, कृषि उत्पादन बढ़े और हर दृष्टि से आत्मनिर्भरता हो, इस की कोशिश होनी चाहिए. इस दिशा में हम सब को मिल कर विचार करते हुए काम करने की जरूरत है, ताकि आने वाले दिनों में लक्ष्य हासिल करें और जो संकल्प लिया है, उसे पूरा कर सकें.

उन्होंने ने आईसीएआर के प्रकाशन व 22 फसलों की 24 किस्में जारी कीं, जिन में धान, गेहूं, मक्का, सावां, रागी, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, चना, अरहर, मसूर, मोठ, जूट, टमाटर, भिंडी, चैलाई, सेम, खीरा, मटर, आलू, मशरूम, अमरूद हैं. डीजी डा. हिमांशु पाठक ने आईसीएआर की उपलब्धियों पर रिपोर्ट पेश की.