कपास की खेती पर हुई एकदिवसीय कार्यशाला

पांढुरना : जिले के विकासखंड सौंसर के ग्राम मर्राम में उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह की उपस्थिति में सघन रोपण प्रणाली (एचडीपीएस) पद्धति से कपास की खेती में पौधों की बढ़वार नियंत्रण एवं कीट प्रबंधन विषय पर एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया.

कार्यशाला में पूर्व से चयनित अनुसूचित जनजाति के 51 किसानों को केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर से पधारे वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. रामाकृष्णा द्वारा एचडीपीएस पद्धति से कपास फसल उत्पादन के संबंध में विस्तारपूर्वक किसानों को बताया गया, जिस में हलकी जमीन का चयन करते हुए कतार से कतार की दूरी 90 सैंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सैंटीमीटर के अंतराल पर फसल बोई गई. सघन रोपण प्राणाली (एचडीपीएस) पद्धति से कपास की खेती करने वाले किसानों को उचित केनौपी मेनेजमेंट के बारे विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई. इस में फसल की 45 दिन की अवस्था में कम से कम पौधे 1.5 से 2.0 फीट एवं पाति निर्माण अवस्था पर ग्रोथरेगुलेटिंग हार्मोंस चमत्कार 12 मिलीलिटर प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर एक एकड़ में 10 टंकी दवा का छिड़काव करने की सलाह दी गई, जिस से कि पौधे की बढवार नियंत्रित करते हुए प्रति एकड़ क्षेत्रफल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सके.

सभी चयनित किसानों को केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर द्वारा उन्नत किस्म का बीज एवं ग्रोथरेगुलेटिंग हार्मोंस निशुल्क प्रदान किया गया.

केद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर के डा. दीपक नागराले द्वारा कपास फसल में रोग एवं कीट प्रबंधन के संबंध में तकनीकी जानकारी प्रदान की गई. वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं डीन जेड एआरएस, डा. आरसी शर्मा ने कपास फसल में पोषक तत्व प्रबंधन के बारे में जानकारी दी.

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डा. डीसी वास्तव के द्वारा कपास फसल नवाचार को बढ़ावा  देने पर जोर दिया गया, जिस से कि अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सके. उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह द्वारा एचडीपीएस पध्दति से कपास की खेती के लिए जिले में हलकी जमीन में कपास उत्पादक किसानों के लिए वरदान साबित होना बताया गया, जिस से किसानों को पूर्व में हो रहे उत्पादन की तुलना में दोगुना अधिक उत्पादन होने की बात कही गई.

इस कार्यक्रम में अनुविभागीय कृषि अधिकारी सौंसर, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, कृषि विस्तार अधिकारी, बीटीएम, एटीएम आत्मा, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रतिक्षा मेहरा एवं सृजन के अधिकारी उपस्थित थे.

एफपीओ के जरीए किसानों की आमदनी बढ़ाने पर जोर

ग्वालियर : एफपीओ एवं एआईएफ योजना की निगरानी समिति की बैठक सहशिविर आयोजित कृषक उत्पादन संगठन (एफपीओ) से ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ें. सभी एफपीओ लाइसैंस लें और अपना व्यवसाय बढ़ाएं. एफपीओ को शासन की ओर से पूरा सहयोग दिलाया जाएगा.

यह बात जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी विवेक कुमार ने एफपीओ एवं एआईएफ (एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड) की जिला स्तरीय निगरानी समिति की बैठक सहशिविर में कही. उन्होंने कहा कि एफपीओ से जुड़ कर किसान अपनी आमदनी में बड़ा इजाफा कर सकते हैं. ज्ञात हो कि जिले में वर्तमान में 11 हजार एफपीओ संचालित हैं.

जिला पंचायत के सीईओ विवेक कुमार ने एफपीओ से संबंधित विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया गया कि वे समयसमय पर एफपीओ का भ्रमण करते रहें और जिले के सभी एफपीओ की निरंतर मौनीटरिंग हो. एफपीओ को बिजनैस मौडल के आधार पर काम करने के लिए प्रेरित करने पर उन्होंने बल दिया. साथ ही, यह भी कहा कि एफपीओ को जो समस्याएं आ रही हैं, उन के समाधान के लिए विभागीय अधिकारी उचित मार्गदर्शन दें.

कलक्ट्रेट के सभागार में बीते रोज राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) एवं किसान कल्याण व कृषि विकास विभाग के तत्वावधान में आयोजित हुई बैठक में जिले में संचालित केंद्र पोषित योजना के अंतर्गत सभी 11,000 एफपीओ की वित्तीय स्थिति पर विस्तृत चर्चा की गई, जिस में एफपीओ का टर्नओवर, लाभहानि, शेयरधारकों की संख्या, सभी एफपीओ के लिए जरूरी लाइसैंस जैसे सीड, पैस्टिसाइड, फर्टिलाइजर, मंडी, जीएसटी, एफएसएसएआई इत्यादि शामिल हैं. साथ ही, सभी एफपीओ के मार्केट लिंकेज के लिए ओएनडीसी औनबोर्डिंग की स्थिति, बैंक द्वारा ऋण स्वीकृत करने में कोलेट्रल सिक्युरिटी की समस्या एवं कृषक उत्पादक संगठन की विश्वसनीयता में वृद्धि करने और लिंकेज पर मार्गदर्शन सहित अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा हुई.

शिविर का संचालन नाबार्ड के जिला प्रबंधक धर्मेंद्र सिंह ने किया. इस अवसर पर उपसंचालक कृषि आरएस शक्यवार द्वारा खाद, बीज एवं फर्टिलाइजर के लाइसैंस, मंडी सचिव कदम सिंह द्वारा मंडी लाइसैंस, कृषि विज्ञान केंद्र एवं आत्मा के अधिकारियों द्वारा किसानों को प्रशिक्षण दिया गया. मछली विभाग के अधिकारियों ने विभागीय योजनाओं की विस्तृत जानकारी दी.

बैठक में जिले के कृषि एवं संबंधित विभाग, एलडीएम, एनसीडीसी, सीबीबीओ एवं जिले में संचालित समस्त कृषक उत्पादक संगठन के सीईओ एवं डायरेक्टर शामिल रहे.

तुषार ने स्वरोजगार के तहत खोला स्वयं का मत्स्यपालन केंद्र

बड़वानी: प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से लाभान्वित बड़वानी जिले की राजपुर तहसील के ग्राम पंचायत ओझर निवासी तुषार वालके, पिता महेश वालके ने ओझर में विराह मत्स्यपालन केंद्र नाम से मत्स्यपालन इकाई संचालित की है. इस योजना के तहत तुषार ने 50 लाख रुपए की राशि पर 30 लाख रुपए अनुदान राशि प्राप्त की.

उन्होंने बताया कि एक साल पहले साल 2023-24 में स्वरोजगार के रूप में मत्स्यपालन केंद्र को स्थापित किया था. वे शिक्षित मत्स्य किसान हैं, वे कुछ अलग करना चाहते थे, उन की इसी चाह ने उन्हे मत्स्यपालन केंद्र खोलने के लिए प्रोत्साहित किया.

उन्होंने आगे बताया कि उन के मत्स्यपालन केंद्र पर कुल 8 टैंक हैं, जिन में प्रति टैंक 3,000 फिंगर साइज पंगेसियस मछली के बीज का संचयन किया जाता है. 7 माह की अवधि पूरी होने पर मछलियां उत्पादन के लिए तैयार हो जाती हैं, जिन्हें स्थानीय मछली व्यापारी केंद्र पर आ कर थोक में विक्रय कर के ले जाते हैं. इस का थोक भाव 100 से 150 रुपए प्रति किलोग्राम मिल जाता है. इस में सालाना मत्स्य उत्पादन लगभग 24 मीट्रिक टन हो जाता है. इस से कुल सालाना आय 30 लाख रुपए है और लगभग 22 लाख सालाना खर्च घटाने के बाद शुद्ध वार्षिक लाभ 14 लाख रुपए प्राप्त होता है. इस स्वरोजगार के द्वारा 4 अन्य लोगों को भी आय का माध्यम प्रदान किया है.

सहायक संचालक मत्स्योद्योग जिला बड़वानी एनपी रैकवार ने बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिस का उद्देश्य मछुआरों के साथ मत्स्यपालन क्षेत्र का समग्र विकास करना है. पीएमएमएसवाई को मछली उत्पादन, उत्पादकता और गुणवत्ता से ले कर प्रौद्योगिकी, कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे और विपणन तक मत्स्यपालन मूल्य श्रंखला में महत्वपूर्ण अंतराल को दूर करने के लिए डिजाइन किया गया है. इस के माध्यम से एक मजबूत मत्स्य प्रबंधन ढाचा स्थापित कर मछली किसानों के सामाजिक व आर्थिक कल्याण को सुनिश्चित करना है.

बिहार को तिलहन (Oilseeds) के क्षेत्र में बनेगा आत्मनिर्भर

सबौर : निदेशक अनुसंधान, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के तत्वावधान में कुलपति सभागार, बिहार कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति डा. डीआर सिंह की अध्यक्षता में तिलहन फसल को केंद्र में रख कर गहन विचार मंथन किया गया. इस बैठक में डा. आरके माथुर, निदेशक, भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद मुख्य अतिथ के रूप में मौजूद थे.

इस विचार मंथन संगोष्ठी में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह, उपनिदेशक अनुसंधान डा. शैलबाला डे, अध्यक्ष, पौधा प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग डा. पीके सिंह एवं तिलहन अनुसंधान से जुड़े बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के प्रमुख वैज्ञानिकों, जिस में डा. रामबालक प्रसाद निराला, डा. चंदन किशोर, मनोज कुमार, डा. खुशबू चंद्रा, डा. लोकेश्वर रेड्डी प्रत्यक्ष रूप से बैठक में तिलहनी फसलों से संबंधित अनुसंधान कार्यक्रमों में प्रस्तुत किया गया.

बैठक की शुरुआत निदेशक अनुसंधान डा. डीआर सिंह ने संक्षिप्त रूप से बिहार में तिलहन के सभी 9 फसलों जैसे राईसरसों, सोयाबिन, मूंगफली, तिल, तीसी, सूरजमुखी, कुसुम, अरंडी एवं रामतिल (नाइजर) के बिहार में वर्तमान स्थिति एवं भविष्य में इस की संभावनाओं पर प्रकाश डाला. तदोपरांत डा. रामबालक प्रसाद निराला ने समग्र एवं विस्तृत रूप से बिहार में हो रहे सभी तिलहन फसलों की एक रूपरेखा प्रस्तुत की.

विदित हो कि डा. रामबालक प्रसाद निराला तीसी के प्रमुख वैज्ञानिक हैं एवं तिलहन फसलों के अनुसंधान समन्वयक भी हैं.

उन्होंने अपने प्रस्तुति के दरम्यान तिलहन फसल के कृषि हेतु उन की शक्ति, कमजोरी, उपयोगिता एवं समस्या पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला. इसी क्रम में डा. चंदन किशोर, डा. अमरेंद्र ने भी राईसरसों से जुड़े अपने अनुसंधान कार्यक्रमों की प्रस्तुति की. वहीं मूंगफली एवं सोयाबीन से संबंधित कार्यक्रमों को डा. मनोज कुमार, तिल से संबंधित कार्यक्रमों को डा. खुशबू चंद्रा एवं अरंडी से संबंधी कार्यक्रमों को डा. लोकेश्वर रेड्डी ने प्रस्तुत किया.

कुलपति के निर्देश पर विश्वविद्यालय के तिलहन से जुड़े सभी केंद्रों के अनुसंधान वैज्ञानिक भी आभासी रूप से जुड़े हुए थे एवं भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद के प्रमुख वैज्ञानिक डा. एएल रत्नाकुमार, डा. जी. सुरेश, डा. मणिमुर्गन एवं डा. लावण्या, डा. दिनेश कुमार, डा. विश्वकर्मा, डा. पुष्पा, डा. जीडी सतीष एवं डा. रमन्ना भी आभाषी रूप से इस बैठक में जुड़े रहे और अंत में उन्होंने अपनी विशिष्ट सलाह बैठक में दी.

डा. आरके माथुर ने अपने विशिष्ट सलाह में विश्वविद्यालय को भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद को संयुक्त रूप से अनुसंधान कार्यक्रम चलाने की सलाह दी. साथ ही, बीज प्रतिस्थापन दर को बढ़ाने एवं सभी तिलहन फसलों के उत्पादन क्षेत्रों को बढ़ाने पर जोर दिया.

इसी बीच उन्होंने तिल अनुसंधान के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को मुख्य केंद्र के रूप में अंगीकार एवं सूरजमुखी के अनुसंधान के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को सहायक केंद्र के रूप में अंगीकार करने का आश्वासन दिया.

किसानों की मांग को देखते हुए डा. फिजा अहमद, निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर द्वारा तिल के सफेद बीज वाले प्रभेद को विकसित करने पर जोर दिया गया.

बैठक का समापन कुलपति डा. डीआर सिंह के समीक्षात्मक टिप्पणी के साथ संपन्न हुआ. कुलपति डा. डीआर सिंह, बिहार सरकार के चतुर्थ कृषि रोड मैप को ध्यान में रखते हुए तिलहन फसल के उत्पादन के महत्व को बताया.

उन्होंने वैज्ञानिकों को निर्देश दिया कि जिलेवार तिलहन फसल की खेती की योजना बनाई जाए और प्रत्येक कृषि विज्ञान केंद्र को तेल कर्षण इकाई को लगाने के लिए कहा. इसी कड़ी में विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा की जा रही अनुसंधान कार्यों की राष्ट्रीय स्तर प्रदान करने के लिए भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद के साथ एमओयू पर काम करने को कहा गया.

शैक्षणिक परिभ्रमण (Educational Tours) करेंगे बिहार कृषि विश्वविद्यालय के छात्र

सबौर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर, भागलपुर के 6 महाविद्यालयों से कुल 181 छात्र एवं 121 छात्राएं (स्नातक) और 6 सहायक प्राध्यापक एवं 6 सहायक प्राध्यापिका अखिल भारतीय, शैक्षणिक परिभ्रमण 2024 के लिए रवाना हुए, जिस में बिहार कृषि महाविद्यालय, सबौर के 32 छात्र एवं 22 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है, जबकि भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के 34 छात्र एवं 21 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है. मंडन भारती कृषि महाविद्यालय, सहरसा के 29 छात्र एवं 27 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है.

इसी तरह वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय, डुमराव (बक्सर) के 34 छात्र एवं 25 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है. उद्यान महाविद्यालय, नूरसराय के 12 छात्र एवं 10 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है. डा. कलाम कृषि महाविद्यालय, किशनगंज के 40 छात्र एवं 16 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है.

ये सभी छात्रछात्राएं हैदराबाद, चेन्नई, रामेश्वर, ऊटी, मैसूर, बैंगलुरू, सिकंदराबाद इत्यादि जगहों पर परिभ्रमण करेगे और कृषि से संबंधित सभी विश्वविद्यालयो एवं शोध संस्थान का भी परिभ्रमण कराया जाएगा.

यह परिभ्रमण कुल 10 दिनों का रखा गया है. कुलपति डा. डीआर सिंह द्वारा शुभकामनाओं के साथ सभी छात्रछात्राओं को शैक्षणिक परिभ्रमण के लिए भेजा गया. इस मौके पर निदेशक, छात्र कल्याण डा. जेएन श्रीवास्तव, डा. एके साह, अधिष्ठाता कृषि, डा. एसएन राय, प्राचार्य, बीएसी, सबौर, भागलपुर और पवन कुमार, निजी सहायक उपस्थित रहे.

कृषि सांख्यिकी (Agricultural Statistics) सुधार के लिए सरकारी तालमेल जरूरी

नई दिल्ली : कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने नई दिल्ली में देवेश चतुर्वेदी, सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. इस आयोजन में देश में कृषि सांख्यिकी में सुधार के उद्देश्य से नवीनतम पहलों पर चर्चा और विचारविमर्श करने के लिए सभी राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी एक मंच पर आए. इन पहलों का उद्देश्य कृषि सांख्यिकी की सटीकता, विश्वसनीयता और पारदर्शिता को बढ़ाना है, जो नीति निर्माण, व्यापार निर्णयों और कृषि योजना बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं.

इस सम्मेलन का मुख्य फोकस कृषि उत्पादन अनुमानों को बढ़ाने और डेटा सटीकता को मजबूत करने के लिए प्रौद्योगिकी के एकीकरण पर रहा. इस साल के बजट भाषण में घोषणा किए गए डिजिटल फसल सर्वेक्षण ने फसल रकबा अनुमान की सटीकता का मार्ग प्रशस्त किया. यह फसलों के जियो टैग रकबे के साथ खेत स्तरीय डेटा भी उपलब्ध कराएगा, जो सचाई के एकमात्र स्रोत के रूप में काम करेगा.

देशभर में सभी प्रमुख फसलों के लिए वैज्ञानिक रूप से डिजाइन किए गए फसल कटाई प्रयोगों के आधार पर उपज की गणना करने के लिए डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (डीजीसीईएस) शुरू किया गया है. इन पहलों से सीधे खेत से लगभग वास्तविक समय और विश्वसनीय डेटा उपलब्ध होने की उम्मीद है, जिस से फसल उत्पादन का कहीं अधिक सटीक अनुमान लगाना संभव हो जाएगा.

इस सम्मेलन में फसल उत्पादन के आंकड़ों की सटीकता और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए रिमोट सेंसिंग, भूस्थानिक विश्लेषण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. संशोधित एफएएसएएल (अंतरिक्ष, कृषि मौसम विज्ञान और भूआधारित अवलोकनों का उपयोग करते हुए कृषि उत्पादन की भविष्यवाणी) के माध्यम से फसल उत्पादन के आंकड़े जुटाने में प्रौद्योगिकी के संचार के संबंध में कृषि और किसान कल्याण विभाग द्वारा की गई विभिन्न पहलों पर विस्तार से चर्चा की गई.

यह अद्यतन संस्करण 10 प्रमुख फसलों के लिए सटीक फसल मानचित्र और रकबे का अनुमान जुटाने के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीक का लाभ उठाता है. फसल उपज के पूर्वानुमानों के संबंध में अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, भारतीय सांख्यिकी संस्थान, भारतीय कृषि सांख्यिकी अनुसंधान संस्थान और आर्थिक विकास संस्थान जैसी विभिन्न विशेषज्ञ एजेंसियों के साथ सहयोग किया गया है.

सम्मेलन का एक और महत्वपूर्ण पहलू यूपीएजी पोर्टल का उपयोग कर के कृषि डेटा का त्रिकोणीय सर्वेक्षण और सत्यापन करना था. यह प्लेटफार्म विभिन्न स्रोतों से डेटा का क्रास सत्यापन करने की अनुमति देगा, जिस से कृषि सांख्यिकी की मजबूती सुनिश्चित होगी. इस में एक उन्नत डेटा प्रबंधन प्रणाली है, जो सटीक फसल अनुमान जुटाने के लिए विभिन्न स्रोतों को एकीकृत करती है. यह प्रणाली साक्ष्य आधारित निर्णय लेने में मदद करती है और नीति निर्माताओं और हितधारकों को कृषि डेटा संबंधी पहुंच के लिए केंद्रीय हब के रूप में काम करती है.

इस सम्मेलन में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के साथ जोड़ने पर भी जोर दिया गया, ताकि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा चरणबद्ध योजना के साथ फसल कटाई प्रयोगों की निगरानी को बढाया जा सके और स्वतंत्र एजेंसी द्वारा सीसीई एवं राज्य स्तरीय उपज अनुमानों की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके.

इस सम्मेलन की विशेषता एक विस्तृत प्रस्तुति रही, जिस में इन नई पहलों के लाभों के बारे में विस्तार से बताया गया. इस प्रस्तुति में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि कैसे डिजिटल सर्वेक्षण और उन्नत तकनीकों को अपनाने से डेटा संग्रह अधिक कुशल होगा, उस में विसंगतियां कम होंगी और इस से कृषि क्षेत्र में बेहतर नीति निर्माण में सहायता मिलेगी.

देवेश चतुर्वेदी ने कृषि सांख्यिकी की गुणवत्ता बढ़ाने के साझा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच निरंतर सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने राज्यों को इन नई पहलों को तुरंत अपनाने और उन का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया.

यह सम्मेलन इन सुधारों के महत्व पर आम सहमति बनाने और सभी राज्यों द्वारा कृषि सांख्यिकीय ढांचे को मजबूत करने के लिए मिल कर काम करने की प्रतिबद्धता के साथ संपन्न हुआ, जो भारत में कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

उद्यमिता (Entrepreneurship) के माध्यम से देश बनेगा सशक्त

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय स्थित कृषि महाविद्यालय के सभागार में विश्व उद्यमी दिवस के अवसर पर छात्र कल्याण निदेशालय द्वारा एक गोष्ठी का आयोजन किया गया. ‘भारत @-2047 समृद्ध एवं महान भारत’ विषय पर आयोजित इस गोष्ठी में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की, जबकि मुख्य वक्ता के तौर पर प्रसिद्ध आर्थिक विशेषज्ञ सतीश कुमार उपस्थित रहे.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि उद्यमिता के माध्यम से हम देश को सशक्त व महान बना सकते हैं. उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे राष्ट्र की प्रगति एवं समृद्धि के लिए योजनाबद्ध ढंग से काम करें, ताकि वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाया जा सके. समृद्ध एवं महान भारत बनाने के लिए युवाओं को दृढ़ संकल्प के साथ दिनरात मेहनत करनी होगी.

उन्होंने युवाओं को मार्गदर्शक की भूमिका निभाने के लिए आगे आने का भी आह्वान किया. विद्यार्थियों को उच्च आदर्शों एवं संस्कारों से परिपूर्ण शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए देश में विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों की कोई कमीं नहीं है. सभी व्यक्तियों को सरकारी सेवाएं उपलब्ध नहीं हो सकती हैं, इसलिए स्वावलंबी भारत अभियान के तहत युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने और समृद्ध एवं खुशहाल भारत के निमार्ण के लिए ग्रामीण स्तर पर लघु औद्योगिक इकाइयां स्थापित करनी होंगी. किसानों की माली स्थिति को मजबूत करने के लिए गेहूं को गेहूं के तौर पर नहीं, बल्कि इस के उत्पाद बना कर बेचने होंगे. विकसित भारत के लिए आर्थिक समृद्धि भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देना भी विकसित भारत की महत्वपूर्ण चुनौती है. उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय निरंतर प्रयासरत है. इस के लिए विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम और पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई है. कार्यक्रम में कुलपति व मुख्य वक्ता ने एक पुस्तक का विमोचन किया और कृषि महाविद्यालय के परिसर में पौधारोपण भी किया.

भारत को महान बनाने में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका

मुख्य वक्ता सतीश कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि समृद्ध एवं महान भारत बनाने के लिए स्वावलंबी भारत अभियान योजनबद्ध ढंग से समूचे देश में चलाया जा रहा है. युवा पीढ़ी को विकसित भारत बनाने के लिए काम करना होगा. इस के लिए उन्होंने 8 स्तंभ का भी उल्लेख किया, जिन में वाइब्रेंट डेमोक्रेसी, पूर्ण रोजगारयुक्त भारत, वैश्विक सर्वोच्च अर्थव्यवस्था, अभेद सुरक्षा तंत्र वाला भारत, विज्ञान एवं तकनीकी में अग्रणी भारत, पर्यावरण हितैषी भारत, विश्व बंधुत्व वाला भारत व उच्च जीवन मूल्यों से युक्त भारत शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि कौशल विकास के माध्यम से युवाओं की रोजगार क्षमता को बढ़ाने के लिए पहली बार कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय का भी गठन किया गया है. उद्यमिता की ओर राष्ट्र तीव्र गति के साथ आगे बढ़ रहा है. उद्यमिता के माध्यम से न केवल व्यक्तिगत सफलता की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है, बल्कि इस से समाज में नए रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं.

एचएयू की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि युवाओं को उद्यमी बनाने में लगातार प्रशिक्षण प्रदान करने का अग्रणी काम कर रहा है.

हकृवि के रिटायर्ड प्रोफेसर डा. वीपी लोहाच ने बताया कि स्वावलंबी भारत अभियान के 4 पिलर बताए, जिन में स्वदेशी, विकेंद्रीकरण, उद्यमिता और सहकारिता शामिल है. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता कुलदीप पूनियां ने अपने संबोधन में कहा कि वे संकल्प ले कर जाएं कि नौकरी लेने वाला नहीं, नौकरी देने वाला बनूंगा.

छात्र कल्याण निदेशक डा. मदन खीचड़ ने गोष्ठी में आए हुए सभी लोगों का स्वागत किया और कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने धन्यवाद किया. मंच का संचालन छात्रा अन्नु ने किया. इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, शिक्षक, गैरशिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे.

केवीके में गाजरघास (Carrot Grass) उन्मूलन सप्ताह का आयोजन

भागलपुर : स्थानीय केवीके में गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया गया. यह 16 अगस्त से ले कर 22 अगस्त तक मनाया गया. वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रधान डा. राजेश कुमार ने बताया कि गाजरघास (पार्थेनियम) देश के विभिन्न भागों में कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी, गंधी बुटी आदि के नाम से जाना जाता है. यह देश के 35 मिलियन हेक्टेयर में फैला हुआ है. वर्षा ऋतु में इस का अंकुरण होने पर भीषण खरपतरवार का रूप ले लेती है. यह घास 3-4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेती है.

अभियंत्रण वैज्ञानिक इं. पंकज कुमार ने बताया कि गाजरघास जो कृषि भूमि और पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर प्रभाव डालता है. इस की प्रभावशाली वृद्धि और बीज उत्पादन के कारण यह फसलों, भूमि की उर्वरता और सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है. इसे नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कृषि तकनीकों का उपयोग अत्यंत आवश्यक है.

उद्यान वैज्ञानिक डा. ममता कुमारी ने बताया कि गेंदे के पौधे लगा कर गाजरघास के फैलाव को रोका जा सकता है. पशु विज्ञान वैज्ञानिक डा. मो. ज्याउल होदा ने बताया कि इस घास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी एलर्जी, दमा, बुखार आदि पैदा होता है और पशुओं के लिए यह खरपतवार हानिकारक है. उन्होंने इस के उन्मूलन को ले कर विविध जानकारी दी.

इस अवसर पर कीट विज्ञान के वैज्ञानिक डा. पवन कुमार ने कहा कि इस की रोकथाम के लिए गाजरघास में फूल आने से पहले जड़ को उखाड़ देना चाहिए. साथ ही, जैविक नियंत्रण के बारे में छात्रछात्राओं को विस्तार से जानकारी दी, जबकि शस्य वैज्ञानिक डा. मनीष राज ने बताया कि पार्थेनियम की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए फसल चक्र अपनाएं. अलगअलग प्रकार की फसलें उगाने से खरपतवारों के विकास पर अंकुश लगाया जा सकता है.

फसल कटाई के बाद के अवशेषों को खेत में समान रूप से बिखेरें और कुचलें. इस से पार्थेनियम के बीजों को प्रकाश और हवा से बचाया जा सकेगा, जिस से उन के अंकुरण की संभावना कम होगी. जब आवश्यक हो, तो उचित और अनुमोदित खरपतवारनाशक का उपयोग करें. हालांकि, रासायनिक नियंत्रण का उपयोग सतर्कता से करें, ताकि यह फसलों और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए. इस मौके पर रावे छात्रछात्राएं मौजूद रहे.

सुनीता देवी : सिलाई से शुरू किया सफर, अब ड्रोन तक की उड़ान

मुरैना : परिवार में घर चलाने में परेशानी और माली तंगी के चलते एक महिला ने इतनी मेहनत की कि उस की अलग पहचान बन गई. पूरे इलाके में अब इस महिला को ड्रोन दीदी के रूप में जाना जाता है. मुरैना जिले के जौरा तहसील के अंतर्गत पचोखरा में ’’सेल्फ हेल्प ग्रुप’’ की महिला ने मिशन ज्वाइन कर के अपना जीवन बदल लिया है.

कैलादेवी एसएचजी की सुनीता शर्मा ने अपने घर से रोजगार बढ़ाने के लिए सिलाई से सफर शुरू किया और धीरेधीरे से उन्हें ड्रोन चलाने तक की ट्रेनिंग मिली. सुनीता शर्मा की अब उस क्षेत्र में ड्रोन दीदी के रूप में पहचान बन गई है.

सुनीता शर्मा बताती हैं कि वे पहले घर पर रहती थीं. उन की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी. समूह से जुड़ने के बाद उन्हें 25,000 रुपए का लोन मिला. उन्होंने सब से पहले सिलाई मशीन खरीदी और सिलाई का काम शुरू किया. धीरेधीरे उन की 8,000 रुपए की कमाई हर महीने होने लगी. इस के बाद उन्होंने ’नमो ड्रोन योजना’ की ट्रेनिंग ली. अब तक 60 एकड़ से ज्यादा खेत में ड्रोन से मेडिसिन छिड़काव कर चुकी हैं. आजीविका मिशन से जुड़ कर ही ये सब संभव हो सका है.

उन्होंने यह भी बताया कि वे अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ा रही हैं. उन  का परिवार खुशहाल जीवन जी रहा है. सुनीता शर्मा ने कहा कि आजीविका मिशन एवं इफको की समस्त टीम को दिल से शुक्रिया जिन्होंने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया.

सुनीता शर्मा ने ’’नमो ड्रोन योजना’’ से दिनोंदिन तरक्की की है. उन्होंने खुशी जताते हुए कहा कि 15 अगस्त, 2024 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नई दिल्ली के लाल किले पर होने वाले मुख्य आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्पेशल गेस्ट की लिस्ट में उन को शामिल किया गया है.

किसान साथी मोबाइल एप (Kisan Sathi Mobile App) से 132 गांव के 72,000 किसान होंगे लाभान्वित

जयपुर : जयपुर स्थित राजस्थान इंटरनैशनल सैंटर में जल संसाधन विभाग, राजस्थान और जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘टचिंग लाइव्ज व्हाइल टचिंग द मून- इंडियाज स्पेस सागा’ थीम पर एकदिवसीय रन अप सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन के मुख्य अतिथि जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत एवं विशिष्ट अतिथि अतिरिक्त मुख्य सचिव जल संसाधन अभय कुमार ने इस अवसर पर पार्वती बांध, धौलपुर के कमांड क्षेत्र के काश्तकारों के लिए तैयार किए गए किसान साथी एप का लोकार्पण किया.
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि किसान साथी एप पार्वती बांध के कैचमेंट एरिया के किसानों को पानी की उपलब्धता और आपूर्ति के बारे में विश्वसनीय जानकारी प्रदान करेगा. इस से पार्वती सिंचाई परियोजना के 786 वर्ग किलोमीटर कमांड क्षेत्र के 132 गांव के लगभग 72,000 किसान लाभान्वित होंगे.

उन्होंने आगे कहा कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से इस एप द्वारा किसानों को घर बैठे ही जल की उपलब्धता की जानकारी मिल सकेगी और इस से सिंचाई जल के समुचित उपयोग को बढ़ावा मिलेगा. प्रदेश के सभी बांधों को किसान साथी एप के माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा, जिस से प्रदेश के सभी किसान लाभान्वित हो सकेंगे.

उन्होंने यह भी कहा कि विभाग द्वारा नवाचार करते हुए मार्च माह में बड़े बांधों और नहरों के डिजिटलीकरण के लिए डैशबोर्ड का लोकार्पण भी किया गया था.

मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के दिन को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के रूप में मनाए जाने के प्रधानमंत्री मोदी के फैसले से भावी पीढ़ी इस दिन को सदैव याद रखेगी.

उन्होंने कहा कि इसरो के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और प्रयासों से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान पहुंचाने वाला विश्व का पहला देश भारत है और यह हमारे लिए गौरव की बात है.

अतिरिक्त मुख्य सचिव जल संसाधन अभय कुमार ने कहा कि स्पेस टैक्नोलौजी के उपयोग से भूजल एवं सतही जल के अधिकतम उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसान साथी एप के जरीए किसानों और जल संसाधन विभाग के बीच एक प्रभावी संचार लिंक स्थापित किया गया है. इस एप के जरीए किसानों से ली गई फसल क्षेत्र की जानकारी के माध्यम से पानी की मांग और अंतर का निर्धारण किया जा सकेगा. साथ ही, किसानों को सिंचाई संबंधित शिकायत निवारण करने की सुविधा भी मिलेगी.

सम्मेलन में जल संसाधन विभाग द्वारा जयपुर शहर के विभिन्न विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में आयोजित की गई क्विज एवं पेंटिंग प्रतियोगिता के जूनियर एवं सीनियर वर्ग के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया. इस दौरान जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने स्पेस टैक्नोलौजी एवं जल संसाधन के क्षेत्र में किए जा रहे नवाचारों पर आधारित प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया.

प्रदर्शनी में लगाई गई पुरस्कृत विजेताओं की पेंटिंग्स को उन्होंने सराहा. उद्घाटन सत्र को इसरो वैज्ञानिक सागर सांलुखे और जल शक्ति मंत्रालय के वरिष्ठ संयुक्त आयुक्त कुशाग्र शर्मा ने भी संबोधित किया. मुख्य अभियंता जल संसाधन डीआर मीणा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया.

एकदिवसीय सम्मेलन में विभिन्न तकनीकी सत्रों का भी आयोजन किया गया, जिस में राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस का महत्व, जल क्षेत्र में सेटेलाइट की उपयोगिता, जल संसाधन के क्षेत्र में रिमोट सेंसिंग एवं जीआईएस का उपयोग, जल संसाधन प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की उपयोगिता जैसे विषयों पर व्याख्यान हुए एवं चर्चा की गई.

किसान साथी एप की विशेषताएं
राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना के तहत राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रूड़की के सहयोग से विकसित किया गया किसान साथी मोबाइल एप धौलपुर के पार्वती सिंचाई परियोजना के लगभग 786 वर्ग किलोमीटर कमांड क्षेत्र के किसानों को लाभान्वित करेगा. इस से धौलपुर, बाड़ी एवं बसेड़ी विधानसभा क्षेत्र के 132 गांव के 72,000 किसान लाभान्वित होंगे. पायलट प्रोजैक्ट के रूप में चयनित किए गए पार्वती बांध कमांड क्षेत्र के किसानों को इस एप के जरीए स्वामित्व विवरण के साथ फसल की जानकारी प्राप्त होगी.

किसान जियो टैग किए गए साक्ष्य के साथ पानी की चोरी, नहर संबंधी मुद्दों की जानकारी जल संसाधन विभाग को रिपोर्ट कर सकेंगे, वहीं मंडी भाव की जानकारी और मौसम की जानकारी भी इस एप के जरीए लाइव प्राप्त की जा सकेगी. बांध और नहर में जल की स्थिति भी एप पर उपलब्ध होगी.

इस एप के माध्यम से संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए जल उपयोगकर्ता संघ को पार्वती बांध से पानी की उपलब्धता और आपूर्ति की सही और सटीक जानकारी मिलेगी. किसानों से फसल क्षेत्र की जानकारी ले कर पानी की मांग और अंतर का निर्धारण किया जाएगा. साथ ही, कमांड क्षेत्र के किसानों को सिंचाई संबंधित शिकायत निवारण की सुविधा भी मिलेगी.