कस्‍टम हायरिंग सैंटर बनेंगे आधुनिक कृषि यंत्रों के केंद्र

नीमच : जिले के निजी एवं शासकीय सभी कस्‍टम हायरिंग सैंटरों (सीएचसी) को आधुनिक कृषि यंत्रों, उपकरणों का केंद्र बनाए. नई एआई कृषि तकनीक, ड्रोन तकनीक एवं कृषि संसाधन उपलब्‍ध कराए, जिस से कि किसान आधुनिक संसाधनों का उपयोग कर खेती को लाभ का धंधा बना सके.

यह निर्देश कलक्‍टर हिमांशु चंद्रा ने पिछले दिनों कलक्ट्रेट सभा कक्ष नीमच में कृषि उद्यानिकी, पशुपालन, मत्‍स्‍य विभाग द्वारा संचालित योजनाओं और नीमच मंडी द्वारा संचालित गतिविधियों की समीक्षा करते हुए दिए.

बैठक में जिला पंचायत सीईओ गुरूप्रसाद, उपसंचालक, कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्‍स्‍य एवं मंडी सचिव नीमच उपस्थित थे. बैठक में कृषि विभाग की समीक्षा के दौरान कलक्‍टर हिमांशु चंद्रा ने र‍बी एवं खरीफ में कृषि आच्‍छादन रकबा, प्रमुख फसल रकबा, उर्वरक की मांग उपलब्‍धता एवं रबी के लिए उर्वरक का अग्रिम उठाव की जानकारी ली.

उन्‍होंने निर्देश दिए कि रबी के लिए आगामी 15 दिवस में उर्वरक के अग्रिम उठाव का लक्ष्‍य पूरा करवाए. जिले में पर्याप्‍त मात्रा में उर्वरक की उपलब्‍धता एवं किसानों को वितरण सुनिश्चित किया जाए.
बैठक में कलक्‍टर हिमांशु चंद्रा ने फसल बीमा योजना की भी विस्‍तार से समीक्षा की. उन्होंने निर्देश दिए कि कृषि विभाग द्वारा संचालित सभी योजनाओं ने अधिकाधिक किसानों से औनलाइन आवेदन मैदानी अमले के माध्‍यम से करवाए. साथ ही, मिट्टी परीक्षण के लिए भी लक्ष्‍य के अनुरूप नमूने ले कर परीक्षण करवाए और स्वाइल हेल्थ कार्ड किसानों को प्रदान करे.

उद्यानिकी विभाग की समीक्षा में कलक्‍टर ने निर्देश दिए कि उद्यानिकी एवं औषधीय फसलों का रकबा बढ़ाने पर विशेष ध्‍यान दे. किसानों को प्रेरित कर रकबा बढ़ाए. पीएमएफएमई योजना की लक्ष्‍य पूर्ति के लिए बैंकों से संपर्क कर प्रकरण स्‍वीकृत करवाए. पशुपालन विभाग की समीक्षा में कलक्‍टर ने जिले में स्‍वीकृत पद, रिक्‍त पदों की संख्‍या, औषधालयों की संख्‍या, गौशालाओं की संख्‍या, गौशालाओं में पशुओं की क्षमता, पशुपालकों के केसीसी, पशु टीकाकरण एवं उपचार कार्य की विस्‍तार से जानकारी ली.

कलक्‍टर हिमांशु चंद्रा ने नीमच मंडी की समीक्षा में मंडी में विक्रय के लिए आने वाली जिंसों, आवक, मंडी शुल्‍क से प्राप्‍त राजस्‍व नवीन मंडी में हुए विकास कार्य एवं प्रस्‍तावित कार्यों के बारे में विस्‍तार से जानकारी ली.

दलहनी फसलों में कीटों की करें रोकथाम

टीकमगढ़ : उड़द, मूंग और सोयाबीन की फसल में पत्ती भक्षक कीट व सफेद मक्खी का प्रकोप देखा जा रहा है, इसलिए समय रहते उन की रोकथाम जरूरी है. इस के नियंत्रण के लिए क्विनालफास 25 ईसी दवा की 2 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर मौसम साफ रहने पर ही छिड़काव करें.

उड़द, मूंग और सोयाबीन की फसल में पीला पत्ता रोग का प्रकोप देखा जा रहा है. किसान फसलोँ की निगरानी करें और खेत में ग्रसित पौधे पाए जाने पर रोकथाम के लिए ग्रसित पौधे को उखाड़ कर जमीन में दबा दें एवं 0.5 मिलीलिटर इमिडाक्लोप्रिड या थियामेथोक्सम 2.0 मिलीलिटर दवा की मात्रा को प्रति लिटर पानी में घोल बना कर मौसम साफ रहने पर छिड़काव करें.

सोयाबीन की फसल में गर्डल वीटिल का प्रकोप देखा जा रहा है, इस के नियंत्रण के लिए फ्लूबेंडामाइड 39.5 एससी, 400 मिलीलिटर दवा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से घोल कर बना कर मौसम साफ रहने पर ही छिड़काव करें.

भिंडी में पीली पत्ती रोग का प्रकोप देखा जा रहा है. किसान फसल का निरीक्षण करते रहें और इस से बचाव के लिए आसमान साफ रहने पर मिथाइल डेमेटान 25 ईसी दवा की 2 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

आसमान में बादल छाए रहने के कारण धूप की अवधि में कमी को देखते हुए किसान मुरगीघरों में रात के समय 4-5 घंटे रोशनी की व्यवस्था करें और वातावरण में हो रही नमी की वृद्धि से मुरगीघरों में नमी की वृद्धि को रोकने के लिए चूने और लकड़ी के बुरादे का फर्श पर बुरकाव करें. पशुशाला को बाह्य परजीवी जैसे मक्खी व मच्छरों से बचाने के लिए साफसफाई का ध्यान रखें. साथ ही, मैलाथियान का स्प्रे करें.

गुग्गुल की खेती किसानों के लिए अनमोल

मुरैना : औषधीय पेड़ ’गुग्गल’ से प्राप्त राल जैसे पदार्थ को ’गुग्गुल’ गोंद कहा जाता है. भारत में इस जाति के 2 प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं. एक को कौमिफोरा मुकुल और दूसरे को कौमीफोरा बाईटी कहते हैं. मध्य प्रदेश में कौमीफोरा बाईटी प्रजाति की गुग्गुल है.

गुग्गल एक छोटा पेड़ है, जिस के पत्ते छोटे और एकांतर सरल होते हैं. यह सिर्फ वर्षा ऋतु में ही वृद्धि करता है और इसी समय इस पर पत्ते दिखाई देते हैं. शेष समय यानी सर्दी व  गरमी में इस की वृद्धि रुक जाती है और बिना पत्तों के हो जाता है.

आमतौर पर गुग्गुल का पेड़ 3-4 मीटर ऊंचा होता है. इस के तने से सफेद रंग का दूध निकलता है, जो इस का काफी उपयोगी भाग है. प्राकृतिक रूप से गुग्गुल भारत के मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और गुजरात राज्यों में उगता है. भारत में गुग्गुल विलुप्तावस्था के कगार पर आ गया है. बड़े क्षेत्रों में इस की खेती करने की जरूरत है.

भारत में गुग्गुल की मांग अधिक और उत्पादन कम होने के कारण अफगानिस्तान व पाकिस्तान से इस का आयात किया जाता है. गुग्गुल गोंद का उपयोग 60 बीमारियों में काम आता है और गुग्गुल के पेड़ से निकलने वाला गोंद ही गुग्गुल नाम से प्रसिद्ध है. इस गुग्गुल से ही महायोगराज गुग्गुलु, कैशोर गुग्गुलु, चंद्रप्रभा वटी आदि योग बनाए जाते हैं. इस के अलावा त्रिफला गुग्गुल, गोक्षरादि गुग्गुल, सिंहनाद गुग्गुल और चंद्रप्रभा गुग्गुल आदि योगों में भी यह प्रमुख द्रव्य प्रयुक्त होता है.

ताड़ एवं नारियल पर 33वीं वार्षिक बैठक : मिलेगा बढ़ावा

सबौर : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का अखिल भारतीय परियोजना ताड़ एवं नारियल का वार्षिक बैठक का आयोजन बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में किया गया. भारत के पूर्वी क्षेत्र में इस तरह की यह पहली बैठक है, जहां ताड़ और नारियल समूह के पेड़ों जैसे ताड़, नारियल, सुपाड़ी, औयल पाम एवं कोकोबा के विकास पर विमर्श किया जा रहा है. साथ ही, पूरे भारत में चल रही परि‌योजनाओं का अवलोकन और आने वाले वर्ष की तकनीकी योजना की रूपरेखा तैयार की जा रही है. 21 अगस्त से 23 अगस्त तक चलने समन्वित ताड़ परियोजना का आयोजन आईसीएआर – अखिल भारतीय परियोजना की 33वी वार्षिक समूह बैठक में देश के विभिन्न भागों से ताड़ और नारियल के विभिन्न समूहों में काम करने वाले वैज्ञानिकों ने भाग लिया. इस में आईसीएआर, नई दिल्ली के एडीजी, उद्द्यान, डा. वीबी पटेल, केंद्रीय रोपण फसल शोध संस्थान (आईसीएआर-सीपीसीआरआई), कासरगोड के निदेशक डा. केबी हेबर, भारतीय तेल ताड़ अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-आईआईओपीआर) के निदेशक डा. के. सुरेश सहित 30 वैज्ञानिक समेत देश के विभिन्न राज्यों के कृषि विश्वविद्यालय के लगभग 60 वैज्ञानिकों ने इस बैठक में हिस्सा लिया.

इस परियोजना के योजना समन्वयक डा . अगस्टिन जेरार्ड हैं, जिन के नेतृत्व में कार्यक्रम बिहार कृषि विश्वविद्यालय में हुआ.
कार्यालय की शुरुआत अतिथियों के स्वागत के साथ हुई. उद्घाटन सत्र में बिहार कृषि विश्वविद्यालय की गतिविधियों पर आधारित वृत्तचित्र “सफरनामा” के प्रदर्शन के साथ हुआ.

उद्घाटन सत्र में बोलते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि यह हमारे लिए हर्ष का विषय है कि पूर्वी भारत में इस तरह की पहली बैठक बिहार कृषि विश्वविद्यालय में हुई है. उन्होंने कहा कि आज बिहार लीची, मखाना और शहद उत्पादन में पूरे देश में अव्वल है और इस में विश्वविद्यालय के शोध और तकनीकी का बड़ा योगदान है.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने देशभर से आए विशेषज्ञों से बिहार में ताड़ और नारियल कुल के वृक्षों की संभावना पर मंथन करने का अनुरोध किया. साथ ही, यहां से निकले निष्कर्ष के उपरांत बिहार के किसान को कुछ नए फसल जैसे तेल ताड़ (Oil Palm) और कोकोवा की खेती हेतु सुझाव भी देने का अनुरोध किया.

उन्होंने आगे कहा कि बिहार में ताड़ के लिए अनुकूल जलवायु है. अगर ताड़ के बौने पेड़ विकसित किए जाएं, तो किसानों को ज्यादा सुविधा होगी. कुलपति ने सभा को अवगत कराया कि बीएयू ने पिछले 18 महीनों में 14 पेटेंट हासिल किए हैं, जिन में से 3 पेटेंट पालमिरा यानी ताड़ के उत्पाद पर है. उन्होंने ताड़ समूह की फसलों में उद्यमिता की अपार  संभावना को देखते हुए भी काम करने को कहा.
आईसीएआर, नई दिल्ली के एडीजी, उद्यान डा. वीबी पटेल, बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उद्यान के क्षेत्र में हासिल की गई उपलब्धियों की चर्चा की. साथ ही, विश्वविद्यालय द्वारा तकनीकी, शोध और प्रसार के क्षेत्र में हासिल की गई असाधारण उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला.

उन्होंने विश्वास जताया कि यह बैठक बिहार के किसानों के लिए कुछ विशेष निष्कर्ष जरुर अनुशंसित करेगा. योजना समन्वयक डा. अगस्टिन जेरार्ड ने एक साल की योजना को प्रस्तुत किया.
कार्यक्रम में स्वागत भाषण निदेशक शोध डा. एके सिंह ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डा. रूबी रबी रानी ने किया. इस अवसर पर सभी निदेशक और अधिष्ठाता शामिल रहे.

कपास की खेती पर हुई एकदिवसीय कार्यशाला

पांढुरना : जिले के विकासखंड सौंसर के ग्राम मर्राम में उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह की उपस्थिति में सघन रोपण प्रणाली (एचडीपीएस) पद्धति से कपास की खेती में पौधों की बढ़वार नियंत्रण एवं कीट प्रबंधन विषय पर एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया.

कार्यशाला में पूर्व से चयनित अनुसूचित जनजाति के 51 किसानों को केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर से पधारे वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. रामाकृष्णा द्वारा एचडीपीएस पद्धति से कपास फसल उत्पादन के संबंध में विस्तारपूर्वक किसानों को बताया गया, जिस में हलकी जमीन का चयन करते हुए कतार से कतार की दूरी 90 सैंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सैंटीमीटर के अंतराल पर फसल बोई गई. सघन रोपण प्राणाली (एचडीपीएस) पद्धति से कपास की खेती करने वाले किसानों को उचित केनौपी मेनेजमेंट के बारे विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई. इस में फसल की 45 दिन की अवस्था में कम से कम पौधे 1.5 से 2.0 फीट एवं पाति निर्माण अवस्था पर ग्रोथरेगुलेटिंग हार्मोंस चमत्कार 12 मिलीलिटर प्रति 15 लिटर पानी की दर से घोल बना कर एक एकड़ में 10 टंकी दवा का छिड़काव करने की सलाह दी गई, जिस से कि पौधे की बढवार नियंत्रित करते हुए प्रति एकड़ क्षेत्रफल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सके.

सभी चयनित किसानों को केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर द्वारा उन्नत किस्म का बीज एवं ग्रोथरेगुलेटिंग हार्मोंस निशुल्क प्रदान किया गया.

केद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर के डा. दीपक नागराले द्वारा कपास फसल में रोग एवं कीट प्रबंधन के संबंध में तकनीकी जानकारी प्रदान की गई. वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं डीन जेड एआरएस, डा. आरसी शर्मा ने कपास फसल में पोषक तत्व प्रबंधन के बारे में जानकारी दी.

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डा. डीसी वास्तव के द्वारा कपास फसल नवाचार को बढ़ावा  देने पर जोर दिया गया, जिस से कि अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सके. उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह द्वारा एचडीपीएस पध्दति से कपास की खेती के लिए जिले में हलकी जमीन में कपास उत्पादक किसानों के लिए वरदान साबित होना बताया गया, जिस से किसानों को पूर्व में हो रहे उत्पादन की तुलना में दोगुना अधिक उत्पादन होने की बात कही गई.

इस कार्यक्रम में अनुविभागीय कृषि अधिकारी सौंसर, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, कृषि विस्तार अधिकारी, बीटीएम, एटीएम आत्मा, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रतिक्षा मेहरा एवं सृजन के अधिकारी उपस्थित थे.

एफपीओ के जरीए किसानों की आमदनी बढ़ाने पर जोर

ग्वालियर : एफपीओ एवं एआईएफ योजना की निगरानी समिति की बैठक सहशिविर आयोजित कृषक उत्पादन संगठन (एफपीओ) से ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ें. सभी एफपीओ लाइसैंस लें और अपना व्यवसाय बढ़ाएं. एफपीओ को शासन की ओर से पूरा सहयोग दिलाया जाएगा.

यह बात जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी विवेक कुमार ने एफपीओ एवं एआईएफ (एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड) की जिला स्तरीय निगरानी समिति की बैठक सहशिविर में कही. उन्होंने कहा कि एफपीओ से जुड़ कर किसान अपनी आमदनी में बड़ा इजाफा कर सकते हैं. ज्ञात हो कि जिले में वर्तमान में 11 हजार एफपीओ संचालित हैं.

जिला पंचायत के सीईओ विवेक कुमार ने एफपीओ से संबंधित विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया गया कि वे समयसमय पर एफपीओ का भ्रमण करते रहें और जिले के सभी एफपीओ की निरंतर मौनीटरिंग हो. एफपीओ को बिजनैस मौडल के आधार पर काम करने के लिए प्रेरित करने पर उन्होंने बल दिया. साथ ही, यह भी कहा कि एफपीओ को जो समस्याएं आ रही हैं, उन के समाधान के लिए विभागीय अधिकारी उचित मार्गदर्शन दें.

कलक्ट्रेट के सभागार में बीते रोज राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) एवं किसान कल्याण व कृषि विकास विभाग के तत्वावधान में आयोजित हुई बैठक में जिले में संचालित केंद्र पोषित योजना के अंतर्गत सभी 11,000 एफपीओ की वित्तीय स्थिति पर विस्तृत चर्चा की गई, जिस में एफपीओ का टर्नओवर, लाभहानि, शेयरधारकों की संख्या, सभी एफपीओ के लिए जरूरी लाइसैंस जैसे सीड, पैस्टिसाइड, फर्टिलाइजर, मंडी, जीएसटी, एफएसएसएआई इत्यादि शामिल हैं. साथ ही, सभी एफपीओ के मार्केट लिंकेज के लिए ओएनडीसी औनबोर्डिंग की स्थिति, बैंक द्वारा ऋण स्वीकृत करने में कोलेट्रल सिक्युरिटी की समस्या एवं कृषक उत्पादक संगठन की विश्वसनीयता में वृद्धि करने और लिंकेज पर मार्गदर्शन सहित अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा हुई.

शिविर का संचालन नाबार्ड के जिला प्रबंधक धर्मेंद्र सिंह ने किया. इस अवसर पर उपसंचालक कृषि आरएस शक्यवार द्वारा खाद, बीज एवं फर्टिलाइजर के लाइसैंस, मंडी सचिव कदम सिंह द्वारा मंडी लाइसैंस, कृषि विज्ञान केंद्र एवं आत्मा के अधिकारियों द्वारा किसानों को प्रशिक्षण दिया गया. मछली विभाग के अधिकारियों ने विभागीय योजनाओं की विस्तृत जानकारी दी.

बैठक में जिले के कृषि एवं संबंधित विभाग, एलडीएम, एनसीडीसी, सीबीबीओ एवं जिले में संचालित समस्त कृषक उत्पादक संगठन के सीईओ एवं डायरेक्टर शामिल रहे.

तुषार ने स्वरोजगार के तहत खोला स्वयं का मत्स्यपालन केंद्र

बड़वानी: प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से लाभान्वित बड़वानी जिले की राजपुर तहसील के ग्राम पंचायत ओझर निवासी तुषार वालके, पिता महेश वालके ने ओझर में विराह मत्स्यपालन केंद्र नाम से मत्स्यपालन इकाई संचालित की है. इस योजना के तहत तुषार ने 50 लाख रुपए की राशि पर 30 लाख रुपए अनुदान राशि प्राप्त की.

उन्होंने बताया कि एक साल पहले साल 2023-24 में स्वरोजगार के रूप में मत्स्यपालन केंद्र को स्थापित किया था. वे शिक्षित मत्स्य किसान हैं, वे कुछ अलग करना चाहते थे, उन की इसी चाह ने उन्हे मत्स्यपालन केंद्र खोलने के लिए प्रोत्साहित किया.

उन्होंने आगे बताया कि उन के मत्स्यपालन केंद्र पर कुल 8 टैंक हैं, जिन में प्रति टैंक 3,000 फिंगर साइज पंगेसियस मछली के बीज का संचयन किया जाता है. 7 माह की अवधि पूरी होने पर मछलियां उत्पादन के लिए तैयार हो जाती हैं, जिन्हें स्थानीय मछली व्यापारी केंद्र पर आ कर थोक में विक्रय कर के ले जाते हैं. इस का थोक भाव 100 से 150 रुपए प्रति किलोग्राम मिल जाता है. इस में सालाना मत्स्य उत्पादन लगभग 24 मीट्रिक टन हो जाता है. इस से कुल सालाना आय 30 लाख रुपए है और लगभग 22 लाख सालाना खर्च घटाने के बाद शुद्ध वार्षिक लाभ 14 लाख रुपए प्राप्त होता है. इस स्वरोजगार के द्वारा 4 अन्य लोगों को भी आय का माध्यम प्रदान किया है.

सहायक संचालक मत्स्योद्योग जिला बड़वानी एनपी रैकवार ने बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिस का उद्देश्य मछुआरों के साथ मत्स्यपालन क्षेत्र का समग्र विकास करना है. पीएमएमएसवाई को मछली उत्पादन, उत्पादकता और गुणवत्ता से ले कर प्रौद्योगिकी, कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे और विपणन तक मत्स्यपालन मूल्य श्रंखला में महत्वपूर्ण अंतराल को दूर करने के लिए डिजाइन किया गया है. इस के माध्यम से एक मजबूत मत्स्य प्रबंधन ढाचा स्थापित कर मछली किसानों के सामाजिक व आर्थिक कल्याण को सुनिश्चित करना है.

बिहार को तिलहन (Oilseeds) के क्षेत्र में बनेगा आत्मनिर्भर

सबौर : निदेशक अनुसंधान, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के तत्वावधान में कुलपति सभागार, बिहार कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति डा. डीआर सिंह की अध्यक्षता में तिलहन फसल को केंद्र में रख कर गहन विचार मंथन किया गया. इस बैठक में डा. आरके माथुर, निदेशक, भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद मुख्य अतिथ के रूप में मौजूद थे.

इस विचार मंथन संगोष्ठी में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के निदेशक अनुसंधान डा. एके सिंह, उपनिदेशक अनुसंधान डा. शैलबाला डे, अध्यक्ष, पौधा प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग डा. पीके सिंह एवं तिलहन अनुसंधान से जुड़े बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के प्रमुख वैज्ञानिकों, जिस में डा. रामबालक प्रसाद निराला, डा. चंदन किशोर, मनोज कुमार, डा. खुशबू चंद्रा, डा. लोकेश्वर रेड्डी प्रत्यक्ष रूप से बैठक में तिलहनी फसलों से संबंधित अनुसंधान कार्यक्रमों में प्रस्तुत किया गया.

बैठक की शुरुआत निदेशक अनुसंधान डा. डीआर सिंह ने संक्षिप्त रूप से बिहार में तिलहन के सभी 9 फसलों जैसे राईसरसों, सोयाबिन, मूंगफली, तिल, तीसी, सूरजमुखी, कुसुम, अरंडी एवं रामतिल (नाइजर) के बिहार में वर्तमान स्थिति एवं भविष्य में इस की संभावनाओं पर प्रकाश डाला. तदोपरांत डा. रामबालक प्रसाद निराला ने समग्र एवं विस्तृत रूप से बिहार में हो रहे सभी तिलहन फसलों की एक रूपरेखा प्रस्तुत की.

विदित हो कि डा. रामबालक प्रसाद निराला तीसी के प्रमुख वैज्ञानिक हैं एवं तिलहन फसलों के अनुसंधान समन्वयक भी हैं.

उन्होंने अपने प्रस्तुति के दरम्यान तिलहन फसल के कृषि हेतु उन की शक्ति, कमजोरी, उपयोगिता एवं समस्या पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला. इसी क्रम में डा. चंदन किशोर, डा. अमरेंद्र ने भी राईसरसों से जुड़े अपने अनुसंधान कार्यक्रमों की प्रस्तुति की. वहीं मूंगफली एवं सोयाबीन से संबंधित कार्यक्रमों को डा. मनोज कुमार, तिल से संबंधित कार्यक्रमों को डा. खुशबू चंद्रा एवं अरंडी से संबंधी कार्यक्रमों को डा. लोकेश्वर रेड्डी ने प्रस्तुत किया.

कुलपति के निर्देश पर विश्वविद्यालय के तिलहन से जुड़े सभी केंद्रों के अनुसंधान वैज्ञानिक भी आभासी रूप से जुड़े हुए थे एवं भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद के प्रमुख वैज्ञानिक डा. एएल रत्नाकुमार, डा. जी. सुरेश, डा. मणिमुर्गन एवं डा. लावण्या, डा. दिनेश कुमार, डा. विश्वकर्मा, डा. पुष्पा, डा. जीडी सतीष एवं डा. रमन्ना भी आभाषी रूप से इस बैठक में जुड़े रहे और अंत में उन्होंने अपनी विशिष्ट सलाह बैठक में दी.

डा. आरके माथुर ने अपने विशिष्ट सलाह में विश्वविद्यालय को भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद को संयुक्त रूप से अनुसंधान कार्यक्रम चलाने की सलाह दी. साथ ही, बीज प्रतिस्थापन दर को बढ़ाने एवं सभी तिलहन फसलों के उत्पादन क्षेत्रों को बढ़ाने पर जोर दिया.

इसी बीच उन्होंने तिल अनुसंधान के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को मुख्य केंद्र के रूप में अंगीकार एवं सूरजमुखी के अनुसंधान के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर को सहायक केंद्र के रूप में अंगीकार करने का आश्वासन दिया.

किसानों की मांग को देखते हुए डा. फिजा अहमद, निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर द्वारा तिल के सफेद बीज वाले प्रभेद को विकसित करने पर जोर दिया गया.

बैठक का समापन कुलपति डा. डीआर सिंह के समीक्षात्मक टिप्पणी के साथ संपन्न हुआ. कुलपति डा. डीआर सिंह, बिहार सरकार के चतुर्थ कृषि रोड मैप को ध्यान में रखते हुए तिलहन फसल के उत्पादन के महत्व को बताया.

उन्होंने वैज्ञानिकों को निर्देश दिया कि जिलेवार तिलहन फसल की खेती की योजना बनाई जाए और प्रत्येक कृषि विज्ञान केंद्र को तेल कर्षण इकाई को लगाने के लिए कहा. इसी कड़ी में विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा की जा रही अनुसंधान कार्यों की राष्ट्रीय स्तर प्रदान करने के लिए भारतीय तिलहन शोध संस्थान, हैदराबाद के साथ एमओयू पर काम करने को कहा गया.

शैक्षणिक परिभ्रमण (Educational Tours) करेंगे बिहार कृषि विश्वविद्यालय के छात्र

सबौर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर, भागलपुर के 6 महाविद्यालयों से कुल 181 छात्र एवं 121 छात्राएं (स्नातक) और 6 सहायक प्राध्यापक एवं 6 सहायक प्राध्यापिका अखिल भारतीय, शैक्षणिक परिभ्रमण 2024 के लिए रवाना हुए, जिस में बिहार कृषि महाविद्यालय, सबौर के 32 छात्र एवं 22 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है, जबकि भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के 34 छात्र एवं 21 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है. मंडन भारती कृषि महाविद्यालय, सहरसा के 29 छात्र एवं 27 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है.

इसी तरह वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय, डुमराव (बक्सर) के 34 छात्र एवं 25 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है. उद्यान महाविद्यालय, नूरसराय के 12 छात्र एवं 10 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है. डा. कलाम कृषि महाविद्यालय, किशनगंज के 40 छात्र एवं 16 छात्राएं और एकएक सहायक प्राध्यापक एवं सहायक प्राध्यापिका सम्मलित है.

ये सभी छात्रछात्राएं हैदराबाद, चेन्नई, रामेश्वर, ऊटी, मैसूर, बैंगलुरू, सिकंदराबाद इत्यादि जगहों पर परिभ्रमण करेगे और कृषि से संबंधित सभी विश्वविद्यालयो एवं शोध संस्थान का भी परिभ्रमण कराया जाएगा.

यह परिभ्रमण कुल 10 दिनों का रखा गया है. कुलपति डा. डीआर सिंह द्वारा शुभकामनाओं के साथ सभी छात्रछात्राओं को शैक्षणिक परिभ्रमण के लिए भेजा गया. इस मौके पर निदेशक, छात्र कल्याण डा. जेएन श्रीवास्तव, डा. एके साह, अधिष्ठाता कृषि, डा. एसएन राय, प्राचार्य, बीएसी, सबौर, भागलपुर और पवन कुमार, निजी सहायक उपस्थित रहे.

कृषि सांख्यिकी (Agricultural Statistics) सुधार के लिए सरकारी तालमेल जरूरी

नई दिल्ली : कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने नई दिल्ली में देवेश चतुर्वेदी, सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. इस आयोजन में देश में कृषि सांख्यिकी में सुधार के उद्देश्य से नवीनतम पहलों पर चर्चा और विचारविमर्श करने के लिए सभी राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी एक मंच पर आए. इन पहलों का उद्देश्य कृषि सांख्यिकी की सटीकता, विश्वसनीयता और पारदर्शिता को बढ़ाना है, जो नीति निर्माण, व्यापार निर्णयों और कृषि योजना बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं.

इस सम्मेलन का मुख्य फोकस कृषि उत्पादन अनुमानों को बढ़ाने और डेटा सटीकता को मजबूत करने के लिए प्रौद्योगिकी के एकीकरण पर रहा. इस साल के बजट भाषण में घोषणा किए गए डिजिटल फसल सर्वेक्षण ने फसल रकबा अनुमान की सटीकता का मार्ग प्रशस्त किया. यह फसलों के जियो टैग रकबे के साथ खेत स्तरीय डेटा भी उपलब्ध कराएगा, जो सचाई के एकमात्र स्रोत के रूप में काम करेगा.

देशभर में सभी प्रमुख फसलों के लिए वैज्ञानिक रूप से डिजाइन किए गए फसल कटाई प्रयोगों के आधार पर उपज की गणना करने के लिए डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (डीजीसीईएस) शुरू किया गया है. इन पहलों से सीधे खेत से लगभग वास्तविक समय और विश्वसनीय डेटा उपलब्ध होने की उम्मीद है, जिस से फसल उत्पादन का कहीं अधिक सटीक अनुमान लगाना संभव हो जाएगा.

इस सम्मेलन में फसल उत्पादन के आंकड़ों की सटीकता और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए रिमोट सेंसिंग, भूस्थानिक विश्लेषण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. संशोधित एफएएसएएल (अंतरिक्ष, कृषि मौसम विज्ञान और भूआधारित अवलोकनों का उपयोग करते हुए कृषि उत्पादन की भविष्यवाणी) के माध्यम से फसल उत्पादन के आंकड़े जुटाने में प्रौद्योगिकी के संचार के संबंध में कृषि और किसान कल्याण विभाग द्वारा की गई विभिन्न पहलों पर विस्तार से चर्चा की गई.

यह अद्यतन संस्करण 10 प्रमुख फसलों के लिए सटीक फसल मानचित्र और रकबे का अनुमान जुटाने के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीक का लाभ उठाता है. फसल उपज के पूर्वानुमानों के संबंध में अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, भारतीय सांख्यिकी संस्थान, भारतीय कृषि सांख्यिकी अनुसंधान संस्थान और आर्थिक विकास संस्थान जैसी विभिन्न विशेषज्ञ एजेंसियों के साथ सहयोग किया गया है.

सम्मेलन का एक और महत्वपूर्ण पहलू यूपीएजी पोर्टल का उपयोग कर के कृषि डेटा का त्रिकोणीय सर्वेक्षण और सत्यापन करना था. यह प्लेटफार्म विभिन्न स्रोतों से डेटा का क्रास सत्यापन करने की अनुमति देगा, जिस से कृषि सांख्यिकी की मजबूती सुनिश्चित होगी. इस में एक उन्नत डेटा प्रबंधन प्रणाली है, जो सटीक फसल अनुमान जुटाने के लिए विभिन्न स्रोतों को एकीकृत करती है. यह प्रणाली साक्ष्य आधारित निर्णय लेने में मदद करती है और नीति निर्माताओं और हितधारकों को कृषि डेटा संबंधी पहुंच के लिए केंद्रीय हब के रूप में काम करती है.

इस सम्मेलन में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के साथ जोड़ने पर भी जोर दिया गया, ताकि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा चरणबद्ध योजना के साथ फसल कटाई प्रयोगों की निगरानी को बढाया जा सके और स्वतंत्र एजेंसी द्वारा सीसीई एवं राज्य स्तरीय उपज अनुमानों की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके.

इस सम्मेलन की विशेषता एक विस्तृत प्रस्तुति रही, जिस में इन नई पहलों के लाभों के बारे में विस्तार से बताया गया. इस प्रस्तुति में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि कैसे डिजिटल सर्वेक्षण और उन्नत तकनीकों को अपनाने से डेटा संग्रह अधिक कुशल होगा, उस में विसंगतियां कम होंगी और इस से कृषि क्षेत्र में बेहतर नीति निर्माण में सहायता मिलेगी.

देवेश चतुर्वेदी ने कृषि सांख्यिकी की गुणवत्ता बढ़ाने के साझा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच निरंतर सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने राज्यों को इन नई पहलों को तुरंत अपनाने और उन का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया.

यह सम्मेलन इन सुधारों के महत्व पर आम सहमति बनाने और सभी राज्यों द्वारा कृषि सांख्यिकीय ढांचे को मजबूत करने के लिए मिल कर काम करने की प्रतिबद्धता के साथ संपन्न हुआ, जो भारत में कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.