गेंदा का रकबा बढाने के लिए उद्यान विभाग की अनूठी पहल

झाबुआ : कलक्टर नेहा मीना के मार्गदर्शन में उद्यान विभाग द्वारा गेंदे की खेती का रकबा बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं, जिस में विकासखंड थांदला व पेटलावद में ट्रांसफौम रूरल इंडिया फाउंडेशन (टीआरआई) संस्था और कृष्ण संकुल आदिवासी महिला फार्मर प्रोडयुसर कंपनी द्वारा उद्यान विभाग के साथ क्लस्टर तैयार कर गेंदे की खेती को बढ़ावा देने के लिए नवाचार किए गए.

उसी कड़ी में विकासखंड रामा में गेंदे की खेती का रकबा बढ़ाने के लिए विकासखंड अधिकारी मानु चौबे द्वारा इंदौरअहमदाबाद राजमार्ग के आसपास के गांव भंवर पिपलिया, राछवा, कोकावद व भुरा डाबरा के किसानों का चयन कर उन्हें उन्नत किस्म कलकत्ती गेंदे के पौधे किसानों दिए गए.

गेंदे के पौध की कीमत 2.00 रुपए प्रति पौध थी, जिस में से 1.00 रुपए प्रति पौध किसानों के द्वारा व बाकी शेष राशि 1.00 रुपए प्रति पौध विकासखंड अधिकारी मानु चौबे के द्वारा दिए गए. उन्हें बतलाया गया कि विकासखंड रामा में पारंपरिक खेती को छोड़ फूलों की खेती का रकबा बढ़ाने के उदेश्य से किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए मेरे द्वारा प्रति पौधा 1.00 रुपए का सहयोग किया गया. इन किसानों को तकनीकी सहयोग कर गेंदे की खेती करवाई जाएगी और उपज प्राप्त होने पर किसानों से उक्त राशि प्राप्त की जाएगी.

फूलों की खेती से 8 लाख सालाना कमाई

नालंदा : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर के कुलपति डा. डीआर सिंह एवं निदेशक प्रसार, शिक्षा, डा. आरके सोहाने के द्वारा नालंदा जिले के प्रगतिशील किसान आलोक आनंद, पिता बीरेंद्र कुमार सिन्हा, ग्राम- मेद्यी, प्रखंड – बिहारशरीफ में संरक्षित खेती के अंतर्गत तकरीबन 1 एकड़ में जरबेरा फूल एवं 3 पौलीहाउस, रकबा 2 एकड़ में गुलाब फूल की खेती का भ्रमण किया एवं किसान  की दूसरी गतिविधियों से भी रूबरू हुए.

किसान आलोक आनंद से फूलों की मार्केटिंग के बारे में बात की, तो उन्होंने बताया कि हमें जरबेरा फूल की मार्केटिंग में कोई दिक्कत नहीं है, साथ ही, इन के यहां फूलों को स्टोर करने के लिए कूल चैंबर का इंतजाम है.

किसान आलोक आनंद ने बताया कि फूलों की खेती से तकरीबन 7-8 लाख की शुद्ध वार्षिक आमदनी हो जाती है. इस के अलावा वह तकरीबन 6 एकड़ में शिमला मिर्च, 2 एकड़ में केला प्रभेद जी-9 की खेती कर रहे हैं, जिस का कुलपति डा. डीआर सिंह ने अवलोकन किया और अधिक मेहनत कर के नौजवानों के लिए रोल मौडल बने.

इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र, हरनौत, नालंदा के डा. उमेश नारायण ‘उमेश’, वैज्ञानिक, मृदा विज्ञान एवं कुमारी विभा रानी, वैज्ञानिक, उद्यान भी उपस्थित थे.

खरीफ मौसम में बोनी का लक्ष्य तय

ग्वालियर : मौजूदा खरीफ मौसम में जिले में 1 लाख, 81 हजार, 500 हेक्टेयर रकबे में बोनी का लक्ष्य रखा गया है, जो पिछले साल के खरीफ मौसम से 11 हजार, 778 हेक्टेयर अधिक है.

पिछले साल जिले में 1 लाख, 69 हजार, 722 हेक्टेयर रकबे में बोनी हुई थी. धान, ज्वार, मक्का, बाजरा, अरहर, मूंग, उड़द, मूंगफली, तिल व सोयाबीन जिले की प्रमुख खरीफ फसलें हैं.

कलक्टर मती रुचिका चौहान ने खरीफ मौसम में किसानों को खादबीज की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के निर्देश किसान कल्याण व कृषि विकास विभाग के अमले को दिए हैं. उन्होंने कहा है कि किसानों को मानक खाद व बीज मिले, इस के लिए लगातार आदान की दुकानों से सैंपल ले कर जांच कराई जाए. साथ ही, किसानों को निर्धारित दर पर खाद व बीज उपलब्ध कराएं.

उपसंचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास  आरएस शाक्यवार से प्राप्त जानकारी के अनुसार, मौजूदा खरीफ मौसम में जिले में 90,000 हेक्टेयर रकबे में धान की बोनी का लक्ष्य रखा गया है. इसी तरह 30,000 हेक्टेयर में ज्वार, 35,000 हेक्टेयर में बाजरा, 8,000 हेक्टेयर में मूंग, 12,000 हेक्टेयर में उड़द व 5,000 हेक्टेयर रकबे में तिल की बोनी का लक्ष्य है. खरीफ मौसम में इस साल 600 हेक्टेयर रकबे में सोयाबीन, 300 हेक्टेयर में मूंगफली, 400 हेक्टेयर में अरहर व 200 हेक्टेयर रकबे में मक्का की फसल लेने का लक्ष्य रखा गया है.

खरीफ मौसम में जिले में बोनी के लिए निर्धारित 1 लाख, 81 हजार, 500 हेक्टेयर बोनी के लक्ष्य में से विकासखंड मुरार में 45 हजार, 300, घाटीगांव में 20 हजार, 700, डबरा में 54 हजार, 500 एवं विकासखंड भितरवार में 61 हजार हेक्टेयर रकबे में बोनी प्रस्तावित है.

मेंड़ नाली पद्धति से बोनी

अशोक नगर : उपसंचालक, कृषि, केएस कैन ने बताया कि अशोक नगर विकासखंड के गांव फरदई में नवाचार के रूप में किसान  मेहरबान सिंह रघुवंशी के खेत में सोयाबीन की बोआई की नवीन तकनीकी मेंड़ नाली पद्धति से बोनी का प्रदर्शन किया गया. इस पद्धति में प्रत्येक 2 कतारों के बीच नाली बनती है, जिस से फसल की कतारें मेंड़ पर आ जाती हैं.

इस विधि में अत्यधिक वर्षा की स्थिति में जल भराव की स्थिति नहीं होती है और बोआई के तुरंत बाद तेज वर्षा होने पर बीज अंकुरण प्रभावित नहीं होता. साथ ही, किसानों को दोबारा बोनी नहीं करनी पड़ती है एवं कम वर्षा होने पर भी कोई नुकसान नहीं होता है.

उन्होंने बताया कि इस पद्धति से पौधों को पर्याप्त मात्रा में हवा एवं प्रकाश मिलता है और कीट व रोग भी कम लगते हैं. इस तकनीकी से बोनी करने से लगभग 20 से 25 फीसदी उत्पादन में वृद्धि हो जाती है. जिले के किसानों से अपील है कि मेंड़ नाली पद्धति से बोआई करें और अच्छा उत्पादन प्राप्त करें.

इस अवसर पर सहायक कृषि यंत्री सुखराम उईके, शैलेंद्र यादव और वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी मुकेश रघुवंशी एवं अन्य ग्रामीण लोग उपस्थित रहे.

उद्यानिकी विभाग की योजनाओं के लिए करें पंजीयन

अनुपपुर : अनूपपुर जिले में उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग मध्य प्रदेश भोपाल के द्वारा संचालित योजनाओं में प्रदाय लक्ष्यानुसार लाभ प्राप्त करने के लिए किसानों के पंजीयन के लिए औनलाइन आवेदन आमंत्रित किए गए हैं.

अनूपपुर जिले में वर्ष 2024-25 में फल पौध रोपण योजना, संकर सब्जी क्षेत्र विस्तार, संकर मसाला क्षेत्र विस्तार, संकर पुष्प क्षेत्र विस्तार, संरक्षित खेती एवं ड्रिप, मिनी/माइक्रो स्प्रिंकलर, पोर्टेबल स्प्रिंकलर उद्या निकी विभाग की विभिन्न योजनाओं का लाभ किसान उठा सकते हैं.

जिले के समस्त किसान अपनेअपने विकासखंड अधिकारी से संपर्क कर पंजीयन के लिए के लिए औनलाइन आवेदन कर सकते हैं. वहीं दूसरी ओर विकासखंड, पुष्पराजगढ़ के किसान बिपिन कुमार वर्मा के मोबाइल नंबर 8643048280, विकासखंड, जैतहरी के किसान माखनलाल प्रजापति के मोबाइल नंबर 9424700738, विकासखंड, कोतमा के किसान दीपक कुमार बुनकर के मोबाइल नंबर 7828835021 एवं विकासखंड, अनूपपुर के किसान सरदार सिंह चौहान के मोबाइल नंबर 7000937796 पर पंजीयन के संबंध में बातचीत कर अधिक जानकारी ले सकते हैं.

पंजीयन के लिए mpfsts.mp.gov.in पोर्टल पर किसान खुद या किसी भी औनलाइन सेवा केंद्र में जा कर पंजीयन करा सकते हैं. पंजीयन के लिए बैंक की पासबुक, मोबाइल नंबर, खसरा बी-1, आधारकार्ड, फोटो एवं अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति वर्ग के लिए जाति प्रमाणपत्र होना अनिवार्य है.

कृषि वैज्ञानिक डा. टीआर शर्मा बने आईएआरआई के निदेशक, मिला अतिरिक्त प्रभार संभाला

नई दिल्ली : आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), नई दिल्ली को यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उपमहानिदेशक (फसल विज्ञान) डा. टीआर शर्मा ने आईएआरआई, नई दिल्ली के निदेशक का अतिरिक्त प्रभार संभाला है. उन्होंने पूर्व निदेशक डा. अशोक के. सिंह से प्रभार ग्रहण किया.
प्रभार ग्रहण समारोह में आईएआरआई नेतृत्व टीम के प्रतिष्ठित सदस्य, जिन में संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डा. चिन्नुसामी विश्वनाथन, डीन और संयुक्त निदेशक (शिक्षा) डा. अनुपमा सिंह और संयुक्त निदेशक (प्रसार) डा. आरएन पडारिया सहित संस्थान के अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे.

डा. टीआर शर्मा कृषि विज्ञान के क्षेत्र में एक प्रमुख हस्ती हैं, जिन्होंने फसल विज्ञान और पादप जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन के नेतृत्व में आईएआरआई को कृषि अनुसंधान में नवाचार और उत्कृष्टता के नए आयाम प्राप्त होने की उम्मीद है.

इस अवसर पर डा. टीआर शर्मा ने आईएआरआई का नेतृत्व करने के अवसर के लिए आभार व्यक्त किया. उन्होंने खाद्य सुरक्षा और सतत कृषि प्रथाओं की बदलती चुनौतियों का सामना करने के लिए कृषि अनुसंधान में सहयोगात्मक प्रयासों के महत्व पर जोर दिया.

आईएआरआई समुदाय पूर्व निदेशक डा. अशोक के. सिंह को उन की सेवा और कार्यकाल के दौरान कृषि अनुसंधान और नवाचार में उन के उत्कृष्ट योगदान के लिए धन्यवाद किया.
डा. टीआर शर्मा की दृष्टि और विशेषज्ञता से संस्थान के अग्रणी अनुसंधान, शिक्षा और कृषि क्षेत्र में विस्तार के मिशन को आगे बढ़ाने की उम्मीद है. आईएआरआई टीम इस नए अध्याय के प्रति उत्साहित है और डा. टीआर शर्मा के मार्गदर्शन में निरंतर प्रगति और उपलब्धियों की आशा करती है.

समन्वित कृषि प्रणाली से निरंतर मुनाफा

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा लघु एवं सीमांत कृषक परिवारों में समन्वित कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए एकदिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा लक्ष्मीपुरा चित्तौड़गढ़ में किया आयोजित किया गया. प्रशिक्षण के आरंभ में निदेशक प्रसार शिक्षा एवं प्रोजैक्ट इंचार्ज डा. आरए कौशिक ने कृषक महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि समन्वित कृषि प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है, जिस में कृषि के विभिन्न उद्यमों जैसे फसल उत्पादन, पशुपालन, फल एवं सब्जी उत्पादन, मछली उत्पादन, मुरगीपालन, दुग्ध एवं खाद्य प्रसंस्करण, वानिकी इत्यादि का इस प्रकार समायोजन किया जाता है कि ये उद्यम एकदूसरे के पूरक बन कर किसानों को निरंतर आमदनी प्रदान करते हैं.

समन्वित कृषि प्रणाली में संसाधनों की क्षमता का न केवल सदुपयोग होता है, अपितु उत्पादकता एवं लाभप्रदता में भी अतिशीघ्र वृद्धि होती है. समन्वित कृषि प्रणाली को अपनाने से कृषि लागत में कमी आती हैं एवं रोजगार और आमदनी में वृद्धि होती है.

प्रशिक्षण में डा. लतिका व्यास ने कौशल विकास पर चर्चा की और बताया कि भारत में युवाओं की आबादी दुनियाभर में सब से ज्यादा है और इन में से आधे युवा 25 वर्ष की आयु से कम के हैं. भारत में जनसांख्यिकीय लाभ के वर्णन में देखा जाए तो प्रत्येक वर्ष 8 लाख लोग नए रोजगार की तलाश करते हैं, जिस में सिर्फ 5.5 लाख रोजगारों का सृजन हो पाता है या उस से भी कम, इसलिए युवाओं में कौशल विकास करना बहुत जरूरी है, ताकि उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा जा सके और समन्वित कृषि प्रणाली से परिवार के सभी लोगों को वर्षपर्यंत रोजगार मिलता रहता है व इस प्रणाली द्वारा कृषि अवशेषों का उचित प्रंबधन आसान है.

प्रशिक्षण दौरान डा. कपिल देव आमेट, सहआचार्य, उद्यानिकी विभाग ने कहा कि कम जमीन में आमदनी को बढ़ाने के लिए फसलों के साथसाथ सब्जियों की खेती करना चाहिए. साथ ही यह भी बताया कि फसलों में नर्सरी का विशेष महत्व होता हैं, क्योंकि सब्जी की फसल से होने वाला उत्पादन नर्सरी में पौधों की गुणवता पर निर्भर करता है. अधिकांश सब्जियों की खेती नर्सरी तैयार कर के की जाती है जैसे टमाटर, बैगन, मिर्ची, शिमला मिर्च, फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी, ब्रोकली, बेसील, सेलेरी, पार्सले, लेट्यूस, पाकचोई, प्याज इत्यादि. साथ ही, प्रौ ट्रे में कद्दूवर्गीय सब्जियां जैसे खीरा, लौकी, तुरई, करेला, कद्दू, तरबूज, खरबूजा की भी नर्सरी तैयारी की तकनीकी जानकारी का विस्तृत वर्णन किया.

डा. आरएल सोलंकी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, चित्तौड़गढ़ ने किसान महिलाओं को वर्मी कंपोस्ट कैसे बनाया जाता है व इस के फायदे क्या हैं और वर्मी कंपोस्ट को बाजार में बेच कर भी अतिरिक्त आमदनी अर्जित की जा सकती है के बारे में बताया.

प्रोग्राम अफसर, आदर्श शर्मा ने बताया कि यह प्रशिक्षण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित परियोजना के अंतर्गत आयोजित किया गया. इस प्रशिक्षण में कुल 35 प्रशिक्षणर्थियो ने भाग लिया.

नीरा पाउडर को मिला जरमन का पेटेंट (Patent)

सबौर : नीरा ताड़ के पेड़ का ताजा रस है, जिस का इस्तेमाल बिहार में बड़े पैमाने पर शराब बनाने के लिए किया जाता है. हालांकि, बिहार में शराब पर प्रतिबंध है, जो किसानों के लिए, खासकर टोडी निकालने वालों के लिए एक बड़ी समस्या पैदा करता है.

टोडी निकालने वाले बिहार का एक समुदाय है, जिस की सामाजिकआर्थिक स्थिति टोडी संग्रह और विपणन पर निर्भर करती है. टोडी एक नशीला पेय है, जिसे बिहार में बेचा नहीं जा सकता, क्योंकि यह शुष्क राज्य होने के कारण अवैध है.

इस संबंध में बिहार सरकार ने हाल ही में नीरा आधारित उद्योगों को शुरू किया है, ताकि इस के स्वस्थ उपभोग को बढ़ावा दिया जा सके और टोडी निकालने वालों के समुदाय को रोजगार दिया जा सके. टोडी के अलावा, नीरा को स्क्वैश, आरटीएस, गुड़ आदि जैसे विभिन्न उत्पादों में प्रोसैस किया जा सकता है. इस के अतिरिक्त, ताजा नीरा विटामिन, खनिज और अन्य स्वास्थ्यवर्धक यौगिकों का समृद्ध स्रोत है. इस का ताजा सेवन कई बीमारियों को दूर करने में मदद करता है. लेकिन ताजा नीरा का संग्रह मुश्किल है, क्योंकि यह संग्रह के तुरंत बाद किण्वन के लिए प्रवृत्त होता है और तापमान और समय अवधि बढ़ने के साथ यह बढ़ता जाता है. किण्वन को रोकने के लिए कई परिरक्षण विधियों का अभ्यास किया गया है, लेकिन अब तक कोई सही समाधान नहीं मिला है. इसलिए, किण्वन प्रक्रिया को रोके हुए ताजा नीरा को संरक्षित करने के लिए एक परिरक्षण पद्धति की आवश्यकता है.

इस पहलू में, डा. मोहम्मद वसीम सिद्दीकी, वैज्ञानिक, खाद्य विज्ञान और कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी विभाग, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने नीरा को पाउडर के रूप में संरक्षित करने की एक प्रक्रिया विकसित की है. ताड़ के नीरा से पाउडर बनाने की प्रक्रिया को जरमनी से पेटेंट प्राप्त हुआ है. यह तकनीक नीरा उत्पादकों के लिए नए उद्यमशीलता के रास्ते खोलेगी और लंबे समय तक नीरा को सुरक्षित रखने में सहायक होगी. यह पेटेंटेड तकनीक पूरे साल नीरा के स्वाद और आनंद को लेने में मदद करेगी.

ताजा नीरा का परिरक्षण अत्यंत कठिन होता है, इसलिए यह तकनीक स्प्रे ड्रायर का उपयोग कर के ताजा नीरा को पाउडर में बदल देती है. इस विधि में महीन बूंदों को सूखे पाउडर में बदलना शामिल है. चरणों में वाहक सामग्री की विभिन्न सांद्रता के साथ नीरा का समरूपीकरण शामिल है. बाद में एक नोजल के माध्यम से होमोजेनाइज्ड नीरा घोल का परमाणुकरण होता है, इस के बाद गरम हवा के प्रवाह के संपर्क में तेजी से विलायक वाष्पीकरण होता है. सूखे कणों को फिर एक संग्रह कंटेनर के अंदर एकत्र किया जाता है.

पाउडर को एक साल तक एयरटाइट कंटेनर में स्टोर किया जा सकता है. पानी में घोलने के बाद इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. घोलने के बाद इस के संवेदी गुण लगभग ताजा नीरा के समान ही होते हैं. इस के अलावा सुविधा के लिए इसे किसानों की आवश्यकतानुसार संशोधित किया जा सकता है.

पशुपालक महिलाओं की गोष्ठी, मिले टिप्स 

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, लुवास के विस्तार शिक्षा निदेशालय एवं पशुधन उत्पादन प्रबंधन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा के दिशानिर्देशन व डा. देवेंद्र बिढान की अध्यक्षता में हिसार के रावलवास खुर्द में पशुपालक गोष्ठी का आयोजन किया गया. पशुधन उत्पादन प्रबंधन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. देवेंद्र बिढान ने बताया कि इस गोष्ठी का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की भैंस सुधार नेटवर्क परियोजना के लुवास सैंटर के एससीएसपी फंड के तहत किया गया.

कार्यक्रम में विस्तार शिक्षा निदेशक डा. वीरेंद्र पंवार ने मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की. उन्होंने पशुपालक महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि लुवास पशुपालकों के द्वार तक पहुंचने के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करता रहता है. आज की पशुपालक गोष्ठी भी इसी कड़ी में आयोजित की गई है.

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि पशुपालन में महिला पशुपालकों की भागीदारी व उन की व्यस्तता को देखते हुए विश्वविद्यालय ही पशुपालकों के द्वार पर पशुपालन से संबंधित तौरतरीकों से अवगत करवाने के लिए पहुंच रहा है. पशुपालन में नस्ल के चुनाव के साथसाथ वैज्ञानिक तरीके से पशुओं का पोषण प्रबंधन, प्रजनन प्रबंधन और आवास प्रबंधन भी उतना ही जरूरी है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए वैज्ञानिक तौरतरीकों को अपने व्यवसाय में अपनाएं और दूसरे पशुपालक बहनों को भी इन के बारे में जागरूक करें. हमें पशुओं को संतुलित व पौष्टिक आहार देने की कोशिश करनी चाहिए. पशुओं को संतुलित आहार देने से पशुओं की उचित वृद्धि एवं अधिक उत्पादन होता है.

उन्होंने सभी पशुओं को उचित मात्रा में खनिज मिश्रण खिलाने पर बल दिया और प्रतिभागियों को आश्वासन दिया कि पशुपालन से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए विश्वविद्यालय हमेशा पशुपालकों के साथ खड़ा रहेगा.

इस गोष्ठी में अनुसूचित जाति की 50 महिलाओं ने भाग लिया. गोष्ठी में डा. मान सिंह, डा. मनोज कुमार वर्मा और रावलवास खुर्द के पशु चिकित्सक डा. राकेश ने अपनेअपने  व्याख्यानों से प्रतिभागियों का ज्ञानवर्धन किया.

गोष्ठी का सफल संचालन डा. दिपिन चंद्र यादव एवं डा. सरिता के द्वारा किया गया. इस मौके पर गांव के सरपंच व अन्य व्यक्ति भी मौजूद रहे.

सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार के लिए करें आवेदन

अनूपपुर : सबमिशन औन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन आत्मा योजना के अंतर्गत जिले के उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग करते हुए सर्वोच्च उत्पादकता हासिल करने वाले कृषक और कृषक समूह को जिला स्तर व ब्लौक स्तर पर सर्वोत्तम कृषक/कृषक समूह पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

उक्त आशय की जानकारी देते हुए जिले के परियोजना संचालक आत्मा परियोजना एनडी गुप्ता द्वारा बताया गया है कि जिले में वर्ष 2023-24 में वैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग करते हुए प्राकृतिक कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, रेशमपालन एवं कृषि अभियांत्रकीय में उत्कृष्ट कार्य के लिए कृषकों/कृषक समूहों को पुरस्कृत किया जाएगा.

इस के लिए जिले के समस्त प्रगतिशील किसान अपने क्षेत्र के अंतर्गत कार्यरत कृषि विस्तार अधिकारी या वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी कार्यालय से संपर्क कर आवेदन फार्म ले सकते हैं और उसे जरूरी दस्तावेजों के साथ भर कर 30 अगस्त, 2024 तक जमा कर सकते हैं.

नियत तिथि के बाद प्राप्त आवेदनों पर विचार नहीं किया जाएगा. किसान अधिक जानकारी के लिए विकासखंड स्तर पर वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी कार्यालय अनूपपुर, कोतमा, जैतहरी एवं पुष्पराजगढ़ एवं जिला स्तर पर कार्यालय परियोजना संचालक आत्मा जिला अनूपपुर में कार्यालयीन समय में संपर्क कर सकते हैं.