डीएपी से बेहतर है एनपीके खाद (Fertilizer)

श्योपुर : खरीफ सीजन-2024 के लिए किसानों द्वारा उर्वरकों का अग्रिम उठाव किया जा रहा है. कृषि विभाग द्वारा किसानों से अपील की गई है कि डीएपी के स्थान पर एनपीके खाद बेहतर विकल्प है. एनपीके 12:32:16 और 16:16:16 उर्वरकों से फसलों में मुख्य पोषक तत्व नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश तत्व की पूर्ति होती है. इसी प्रकार 20:20:0:13 से नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं सल्फर की पूर्ति होती है.

कृषि विभाग द्वारा बताया गया है कि डीएपी से केवल 2 तत्व नत्रजन एवं फास्फोरस ही मिलते हैं, जबकि पोटाश तत्व की पूर्ति नहीं होती है. इस के अलावा सिंगल सुपर फास्फेट, जिस में 16 फीसदी फास्फोरस, 12 फीसदी सल्फर एवं 21 फीसदी कैल्शियम पाया जाता है. इस के उपयोग से फसलों के उत्पादन में वृद्धि होती है. वहीं तिलहन फसलों में सल्फर से तेल की मात्रा बढ़ती है.

जिले में खरीफ सीजन 2024 में मुख्य फसल धान, बाजरा, तिल, उड़द एवं सोयाबीन है. इस के लिए एनपीके उर्वरक का उपयोग किसान करें. ध्यान रखें कि कम से कम 4 इंच वर्षा होने के बाद ही खरीफ फसलों की बोआई करें. बोआई करने से पहले बीजों को फफूंदीनाशक दवा कार्बनडाइजिम 3 ग्राम दवा एक किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें, जिस से बीजजनित बीमारियों से बचाव हो सके.

कृषि उद्यमी की अनेक तकनीकों का मिला प्रशिक्षण

कटनी : मध्य प्रदेश शासन ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा आयोजित विकासखंड रीठी के दूरस्थ ग्राम पंचायत नयाखेड़ा में प्रोजैक्ट उन्नति के अंतर्गत मनरेगा में 100 दिवस कार्य कर चुके 35 महिला एवं पुरुषों को कृषि उद्यमी का 13 दिवसीय प्रशिक्षण भारतीय स्टेट बैंक ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान कटनी के संचालक पवन कुमार गुप्ता के मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण समन्वयक सुनील रजक और अनुपम पांडे के सहयोग से प्रशिक्षक रामसुख दुबे द्वारा दिया गया.

प्रशिक्षण में अनाज दलहनी व तिलहनी फसलों की खेती और धान की  विधि व अरहर की धरवाड़ विधि से कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने का तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया. शुष्क खेती और सिंचाई के अंतर्गत स्प्रिंकलर से 80-90 फीसदी पानी की बचत के लिए टपक सिंचाई के उपयोग को सही बतलाया गया.

रोग नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरडी और कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए जैव उर्वरक दलहनी फसल के लिए राइजोबियम एक दलीय फसल के लिए एजेक्टोबेक्टर और सभी फसलों के लिए फास्फेटिका से बीजोपचार, भूमि उपचार और जड़कंद उपचार का तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया.

वहीं सब्जियों की पौध तैयार करने के लिए नर्सरी प्रबंधन एवं औषधीय पौधों के विषय में बताया गया. नियंत्रित तापमान पर सब्जियों एवं फूलों की खेती के लिए पौलीहाउस और कृषि के लिए उन्नत कृषि यंत्रों के अंतर्गत जुताई, बोआई, निंदाई, गुड़ाई एवं कटाईगहाई के यंत्रों के उपयोग और कस्टम हायरिंग केंद्र लगाने के लिए शासन द्वारा दी जा रही सुविधाओं की जानकारी दी गई. पशुपालन से लाभ, गाय, भैंस एवं बकरी की नस्ल, दुग्ध उत्पादन, संतुलित पशु आहार, विभिन्न रोग एवं उन के नियंत्रण व टीकाकरण चारा, बरसीम, ज्वार, बाजरा, मक्का एवं नेपियर घास से अधिक दूध उत्पादन प्राप्त करने के विषय में बताया गया.

प्रशिक्षण में सरपंच खिलावन सिंह, सचिव रामस्वरूप पटेल एवं रोजगार सहायक प्रकाश कुमार और तमाम प्रशिक्षणार्थी उपस्थित रहे.

चना और तुअर के लिए स्टाक सीमा (Stock Limit) लागू, रुकेगी कालाबाजारी

नई दिल्ली : जमाखोरी और बेईमान सट्टेबाजी को रोकने और उपभोक्‍ताओं को किफायती दर पर तूर और चना की उपलब्‍धता को बेहतर बनाने के लिए भारत सरकार ने एक आदेश जारी किया है, जिस के तहत थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़ी श्रंखला के खुदरा विक्रेताओं, मिल मालिकों और आयातकों के लिए दालों पर स्टाक सीमा लागू की गई है. विनिर्दिष्ट खाद्य पदार्थों पर लाइसैंसिंग आवश्यकताओं, स्टाक सीमाओं और आवागमन प्रतिबंधों को हटाना (संशोधन) आदेश, 2024 को 21 जून, 2024 से तत्काल प्रभाव से जारी किया गया है.

इस आदेश के तहत सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 30 सितंबर, 2024 तक काबुली चना सहित तूर और चना के लिए स्टाक सीमा निर्धारित की गई है. प्रत्येक दाल पर व्यक्तिगत रूप से लागू स्टाक सीमा थोक विक्रेताओं के लिए 200 मीट्रिक टन, खुदरा विक्रेताओं के लिए 5 मीट्रिक टन, प्रत्येक खुदरा दुकान पर 5 मीट्रिक टन और बड़ी श्रंखला के खुदरा विक्रेताओं के लिए डिपो पर 200 मीट्रिक टन, मिल मालिकों के लिए उत्पादन के अंतिम 3 महीने या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 फीसदी, जो भी अधिक हो, होगी.

वहीं आयातकों के संबंध में आयातकों को सीमा शुल्क निकासी की तारीख से 45 दिनों से अधिक समय तक आयातित स्टाक को अपने पास नहीं रखना है. संबंधित कानूनी संस्थाओं को उपभोक्ता मामले विभाग के पोर्टल (https://fcainfoweb.nic.in/psp) पर स्टाक की स्थिति घोषित करनी है. अगर उन के पास मौजूद स्टाक निर्धारित सीमा से अधिक है, तो उन्हें इसे 12 जुलाई, 2024 तक निर्धारित स्टाक सीमा तक लाना होगा.

तूर और चना पर स्टाक सीमा लगाना सरकार द्वारा आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों का हिस्सा है. उपभोक्ता मामले विभाग स्टाक डिस्क्लोजर पोर्टल के माध्यम से दालों की स्टाक स्थिति पर नजर रख रहा था.

विभाग ने अप्रैल, 2024 के पहले सप्ताह में राज्य सरकारों को सभी स्टाक होल्डिंग संस्थाओं द्वारा अनिवार्य स्टाक प्रकटन लागू करने के लिए संदेश भेजा था, जिस के बाद अप्रैल के अंतिम सप्ताह से 10 मई, 2024 तक देशभर में प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों और व्यापारिक केंद्रों का दौरा किया गया.

व्यापारियों, स्टाकिस्टों, डीलरों, आयातकों, मिल मालिकों और बड़ी श्रंखला के खुदरा विक्रेताओं के साथ अलगअलग बैठकें भी आयोजित की गईं, ताकि उन्हें स्टाक के वास्तविक प्रकटन और उपभोक्ताओं के लिए किफायती दर पर दालों की उपलब्‍धता बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित और संवेदनशील बनाया जा सके.

उल्लेखनीय है कि सरकार ने घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए 4 मई, 2024 से देशी चने पर 66 फीसदी आयात शुल्क को कम किया था.

शुल्क को कम करने से आयात में सुविधा हुई है और प्रमुख उत्पादक देशों में चने की बोआई में वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट के अनुसार, आस्ट्रेलिया में साल 2023-24 में चना उत्पादन 5 लाख टन से बढ़ कर साल 2024-25 में 11 लाख टन होने का अनुमान है, जिस के अक्‍तूबर, 2024 से उपलब्ध होने की उम्मीद है.

किसानों को अच्छी कीमत मिलने और भारतीय मौसम विभाग द्वारा सामान्य से अधिक मानसूनी बारिश की भविष्यवाणी के कारण इस मौसम में तूर और उड़द जैसी खरीफ दालों की बोआई में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है.

इस के अतिरिक्त पूर्वी अफ्रीकी देशों से अगस्त, 2024 से चालू वर्ष की तूर फसल का आयात शुरू होने की उम्मीद है.

इन कारकों से आगामी महीने में तूर और उड़द जैसी खरीफ दालों की कीमतों में कमी लाने में मदद मिलने की उम्मीद है. आस्ट्रेलिया में चने की नई फसल की आवक और अक्‍तूबर, 2024 से आयात के लिए इस की उपलब्धता से उपभोक्ताओं को सस्ती कीमत पर चने की उपलब्धता बनाए रखने में मदद मिलेगी.

कृषि परिदृश्य (Agricultural Landscape) को बदलना मेरी जिद – शिवराज सिंह चौहान

नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी आईएआरआई के पूर्व छात्रों का सम्मेलन पिछले दिनों पूसा, नई दिल्ली में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्य आतिथ्य में हुआ. इस अवसर पर उन्होंने वैज्ञानिक समुदाय से अपील की कि वे छोटे और सीमांत किसानों के हित में काम करें और भारतीय कृषि में क्रांति लाएं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि हमारे यहां लगभग 86 फीसदी किसान स्माल मार्जिनल फार्मर हैं. हम को खेती का मौडल ऐसा बनाना पड़ेगा कि किसान एक हेक्टेयर तक की खेती में भी अपनी आजीविका ठीक से चला सकें.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम मिल कर कोई ऐसा रोडमैप बना लें, जिस पर चल कर न केवल भारतीय कृषि और किसान का कल्याण हो सके, बल्कि हम भारत को दुनिया का फूड बास्केट बना दें, दुनिया को अन्न खिलाएं, एक्सपोर्ट करें.

उन्होंने भारत को दलहन व तिलहन में आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया. किसानों की आय बढ़ाने और बदलते परिदृश्य के लिए तकनीकी उन्नति को अपनाना बहुत ही जरूरी है. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी कृषि नीति और शोध छोटे और सीमांत किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएं.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि के परिदृश्य को पूरी तरह से बदलना मेरी जिद है. मैं किसान और विज्ञान को जोड़ना चाहता हूं. किसान को हमें विज्ञान से जोड़ना है और इस के लिए कृषि विज्ञान केंद्र बहुत उपयोगी है. प्रधानमंत्री मोदी का विजन और मिशन कृषि के क्षेत्र को आगे बढ़ाना और किसान का कल्याण करना है. मैं जिस दिन से कृषि मंत्री बना हूं, तभी से दिनरात यही सोच रहा हूं कि किसानों के जीवन को कैसे और बेहतर बनाएं.

इस महत्वपूर्ण बैठक में डा. आरएस परोदा, पूर्व महानिदेशक, आईसीएआर, डा. रमेश चंद, सदस्य, नीति आयोग और डा. हिमांशु पाठक, सचिव, डेयर और महानिदेशक आईसीएआर ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए.

आईएआरआई के निदेशक डा. एके सिंह, डीडीजी डा. आरसी अग्रवाल आदि भी उपस्थित थे. इन विशेषज्ञों ने भारतीय कृषि की चुनौतियों और संभावनाओं पर गहन चर्चा की और किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नीतिगत सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया.

कृषि परिदृश्य (Agricultural Landscape)

डा. आरएस परोदा ने कहा कि भारतीय कृषि को नवाचार और वैज्ञानिक अनुसंधान की सहायता से उन्नत करना समय की मांग है. हमें किसानों के साथ मिल कर नई तकनीकों का परीक्षण और कार्यान्वयन करना होगा, जिस से उन की पैदावार और आय में वृद्धि हो.

डा. रमेश चंद ने इस बात पर जोर दिया कि नीति निर्माण में किसानों की वास्तविक समस्याओं को समझना और उन का समाधान खोजना अनिवार्य है. उन्होंने कहा कि कृषि नीतियों को छोटे और सीमांत किसानों के अनुकूल बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. हमें सुनिश्चित करना होगा कि वे नवीनतम तकनीकों और संसाधनों का उपयोग कर सकें.

डा. हिमांशु पाठक ने कृषि क्षेत्र में उन्नति के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और किसानों के बीच सहयोग से ही हम भारतीय कृषि को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं.

सम्मेलन के दौरान यह निष्कर्ष निकाला गया कि किसानों की आय को बढ़ाने और कृषि क्षेत्र में तकनीकी उन्नति को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी है. प्रतिभागियों ने भारतीय कृषि में नवाचार और शोध को बढ़ावा देने के लिए अपने सहयोग का आश्वासन दिया.

सम्मेलन में उपस्थित वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने भी अपने विचार साझा किए और भारतीय कृषि को आत्मनिर्भर व समृद्ध बनाने के लिए ठोस कदम उठाने का संकल्प लिया. उन्होंने कृषि अनुसंधान और विकास में निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया और किसानों की सहायता के लिए नई योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत की बात की.

इस बैठक में उपस्थित सभी विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने मिल कर भारतीय कृषि के भविष्य को सुरक्षित और समृद्ध बनाने का संकल्प लिया. उन्होंने कहा कि यह केवल सरकार और वैज्ञानिक समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे देश का कर्तव्य है कि वे किसानों की मदद करें और भारतीय कृषि को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाएं.

नरवाई प्रबंधन के लिए सुपरसीडर या हैप्पी सीडर, मिल रहा 50 फीसदी अनुदान

कटनी : वर्तमान में अधिकतर किसान अपनी फसल की कटाई कंबाइन हार्वेस्टर से करते हैं. फसल कटाई के बाद खेत में पड़ी नरवाई में आग लगा दी जाती है, जिस के कारण वायु प्रदूषण के साथसाथ मिट्टी में उपस्थित लाभदायक सूक्ष्म जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं. इस वजह से खेत की उत्पादकता कम हो रही है एवं खेत धीरेधीरे बंजर हो रहे हैं. बिना नरवाई में आग लगाए और बिना खेत की तैयारी किए अगली फसल धान, गेहूं व दलहन की सीधी बोआई हैप्पी सीडर व सुपर सीडर कृषि यंत्र से की जा सकती है.

हैप्पी सीडर को 50 एचपी के ट्रैक्टर से आसानी से चलाया जा सकता है. हैप्पी सीडर में एक रोटर लगा होता है, जिस पर लेच लगे होते हैं, जो खड़े हुए भूसे को काटकाट कर गिराते हैं और पीछे से बोनी हो जाती है. कटा हुआ भूसा सतह पर फैल जाता है एवं 2 कतारों के बीच का खड़ा हुआ भूसा समय के साथसाथ धीरेधीरे सड़ कर कार्बनिक पदार्थ में बदल जाता है. भूसे की सतह के कारण वाष्पीकरण कम होता है, हैप्पी सीडर के उपयोग से एक सिंचाई की भी बचत होती है. हैप्पी सीडर के प्रयोग से खेत तैयार करने की लागत में भी कमी आती है. सुपरसीडर को चलाने के लिए 60 एचपी के ट्रैक्टर की जरूरत होती है.

सुपर सीडर में भी एक रोटर लगा रहता है, जो भूसे को काट कर मिट्टी में दबा देता है और पीछे से बोनी हो जाती है. इस के प्रयोग से भी खेत तैयार करने की लागत में कमी आती है.

उपसंचालक कृषि ने बताया कि हैप्पी सीडर की कीमत लगभग 2 लाख रुपए एवं सुपर सीडर की कीमत 2 से ढाई लाख रुपए है. शासन द्वारा यंत्र पर प्रदाय अनुदान राशि लघु सीमांत अनुसूचित जाति जनजाति एवं महिला किसानों को कीमत का 50 फीसदी एवं सामान्य व बड़े किसानों को कीमत का 40 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है.

हैप्पी सीडर पर 65 हजार से 80 हजार रुपए एवं सुपर सीडर पर 80 हजार से 1.50 लाख रुपए है. यंत्र प्राप्ति के लिए आवेदन कृषि अभियांत्रिकी विभाग के पोर्टल पर अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं. इन यंत्रों के प्रयोग से कृषि लागत में कमी आती है एवं मुनाफा भी बढता है.

अधिक जानकारी के लिए संपर्क  एनएल मेहरा, सहायक कृषि यंत्री, जबलपुर से उन  के मोबाइल नंबर 8889479405  और वीवी मौर्य, सहायक कृषि यंत्री, कटनी से उन के मोबाइल नंबर 9425469228 से संपर्क किया जा सकता है.

चुनौती से भरा है पशुओं का इलाज (Treatment of animals)

छिंदवाडा : मानव स्वास्थ्य में पशु स्वास्थ्य का अहम योगदान है. पशुपक्षियों का स्वास्थ्य बिगड़ने पर इस का प्रतिकूल प्रभाव मानव पर भी पड़ता है. मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो हर रोग के लिए विशेषज्ञ हैं, परंतु पशु स्वास्थ्य का दायरा सीमित है. जितना ध्यान मानव स्वास्थ्य पर दिया जा रहा है, उतना ही पशु स्वास्थ्य एवं पर्यावरण स्वास्थ्य के प्रति भी सजगता होनी चाहिए, तभी हम समग्र स्वास्थ्य की बात कर सकते हैं. वाइल्डलाइफ हेल्थ पर भी पूरा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है.

बर्ड फ्लू (एवियन इन्फ्लूएंजा) पर 2 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में ये विचार भारत सरकार के पशुपालन आयुक्त  अभिजीत मिश्रा ने व्यक्त किए.

प्रमुख सचिव, पशुपालन एवं डेयरी विभाग,  गुलशन बामरा ने कहा कि अभी पशु चिकित्सा के क्षेत्र में काफी चुनौतियां हैं, जिन्हें हमें दूर करना है. वर्ल्ड बैंक और भारत सरकार पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा एक बेहद सार्थक संगोष्ठी एवं परिचर्चा आयोजित की गई, जिस के लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं. इस वैज्ञानिक परिचर्चा के निष्कर्ष निश्चित रूप से पशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण साबित होंगे.

पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ डा. अतुल वास्तव ने कहा कि पशुओं का इलाज बेहद चुनौतीपूर्ण है. मनुष्य तो अपनी बीमारी और परेशानी बता सकता है, लेकिन पशुओं के लक्षण देख कर ही बीमारी का इलाज करना होता है.

उन्होंने पशुओं के पंजीयन की भी आवश्यकता बताई. कार्यशाला में वर्ल्ड बैंक की वरिष्ठ कृषि अर्थशास्त्री डा. हीकूईपी, प्रमुख वैज्ञानिक डा. चंद्रधर तोष ने भी अपने विचार व्यक्त किए.

कार्यशाला में बर्ड फ्लू से संबंधित वैज्ञानिक परिचर्चा की गई. साथ ही, पशुओं में होने वाली अन्य नई बीमारियों और जेनेटिक डिजीज के परिपेक्ष में भी वन हेल्थ के विषय पर गहन चर्चा की गई.

कार्यशाला का आयोजन वर्ल्ड बैंक और पशुपालन एवं डेयरी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में किया गया. कार्यशाला में असम, ओड़िसा, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली आदि राज्यों के पशु विशेषज्ञ एवं वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ उपस्थित हुए.

वर्ल्ड बैंक के विशेषज्ञ, राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग अनुसंधान प्रयोगशाला के वरिष्ठ वैज्ञानिक, राज्यों के पशुपालन एवं डेयरी विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग अधिकारी, राष्ट्रीय स्तर की स्वास्थ्य संस्थानों के अधिकारी, वन विभाग और वन्य प्राणी विभाग से संबंधित अधिकारी व अन्य रोग अनुसंधान प्रयोगशालाओं के अधिकारी आदि शामिल हुए.

पशुओं में हड्डी रोग, लगेंगे कृत्रिम अंग (Artificial Limbs)

हिसार : अब इनसानों की तरह पशुओं में भी हड्डियों/जोड़ों की समस्या से नजात पाने के लिए कृत्रिम इम्प्लांट जल्द ही उपलब्ध होंगे. लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डा. विनोद कुमार वर्मा के मार्गदर्शन में पशु चिकित्सा महाविद्यालय के सर्जरी एवं रेडियोलौजी विभाग ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है.

इस के लिए 21 जून, 2024 को लुवास ने आर्थोपेडिक इम्प्लांट की निर्माता कंपनी “ओर्थोटैक इंडिया प्रा. लि., वलसाड, गुजरात के साथ समझौता किया है. कुलपति सचिवालय में कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा की उपस्थिति में लुवास के मानव संसाधन निदेशालय के निदेशक डा. राजेश खुराना एवं अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल ने आर्थोटैक के निदेशक सुशांत बनर्जी एवं सुनीता बनर्जी के साथ समझौतापत्र पर हस्ताक्षर किए.

सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. आरएन चौधरी ने बताया कि इस से कुत्तों में हिप डिस्प्लेसिया एवं फ्रैक्चर को ठीक करने में काफी सहायता मिलेगी. इस के साथ ही हड्डी के कैंसर से ग्रसित पशुओं में विकृत हड्डी/जोड़ काटने के बाद पशु पूरी तरह से चलनेफिरने में समर्थ होगा. पालतू पशुओं के लिए विशेष रूप से बने इम्प्लांट उपलब्ध न होने से अभी इन के इलाज में काफी समस्या आती है.

लुवास के डा. राम निवास के प्रयास स्वरूप लुवास आर्थोटैक के पशुओं के लायक इम्प्लांट की डिजाइन देगा, जो कि सब से पहले कूल्हे के जोड़ में प्रत्यारोपित किया जाएगा. कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा के साथ महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग ने भी प्रोजैक्ट की सफलता के लिए शुभकामनाएं दी हैं.

राज्यों में बढ़ेगा दलहन उत्पादन, ई-समृद्धि पोर्टल (e-Samriddhi Portal) शुरू

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि केंद्र सरकार फसल विविधीकरण सुनिश्चित करने और दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर तुअर, उड़द और मसूर की खरीद करने के लिए प्रतिबद्ध है.

नई दिल्ली के कृषि भवन में विभिन्न राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ पिछले दिनों वर्चुअल बैठक की अध्यक्षता करते हुए  उन्होंने कहा कि किसानों के पंजीकरण के लिए भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (नेफेड) और भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड (एनसीसीएफ) के माध्यम से ई-समृद्धि पोर्टल शुरू किया गया है.

सरकार पोर्टल पर पंजीकृत किसानों से एमएसपी पर इन दालों की खरीद करने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे अधिक से अधिक किसानों को इस पोर्टल पर पंजीकरण करने के लिए प्रोत्साहित करें, ताकि वे सुनिश्चित खरीद की सुविधा का लाभ उठा सकें.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि देश इन तीनों फसलों के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं है और साल 2027 तक आत्मनिर्भरता हासिल करने का लक्ष्य है.  उन्होंने साल 2015-16 से दालों के उत्पादन में 50 फीसदी की वृद्धि करने के लिए राज्यों के प्रयासों की सराहना की, लेकिन प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ाने और किसानों को दालों की खेती के लिए प्रेरित करने के लिए और अधिक प्रयास करने का आह्वान किया.

उन्होंने सराहना की कि देश ने मूंग और चना में आत्मनिर्भरता हासिल की है और उल्लेख किया कि देश ने पिछले 10 सालों के दौरान आयात पर निर्भरता 30 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी कर दी है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यों से केंद्र के साथ मिल कर काम करने का आग्रह किया, ताकि भारत न केवल खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बने, बल्कि दुनिया की खाद्य टोकरी भी बने.

उन्होंने मौजूदा खरीफ सीजन से शुरू की जा रही नई आदर्श दलहन ग्राम योजना के बारे में जानकारी दी. उन्होंने राज्य सरकारों से अनुरोध किया कि वे चावल की फसल कटने के बाद दालों के लिए उपलब्ध परती भूमि का उपयोग करें.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य सरकारों से तुअर की अंतरफसल को भी जोरदार तरीके से अपनाने को कहा. राज्य सरकारों को एकदूसरे के साथ अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना चाहिए और इस के लिए दौरे किए जाने चाहिए. उन्होंने कहा कि सांसदों, विधायकों जैसे निर्वाचित प्रतिनिधियों को केवीके में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए.

उन्होंने नकदी फसलों की ओर फसल विविधीकरण की आवश्यकता और मिट्टी की उर्वरता को बहाल करने की आवश्यकता के बारे में बात की. साथ ही, उत्पादकता बढ़ाने के लिए किसानों को समय पर और गुणवत्तापूर्ण इनपुट जैसे कि अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की आवश्यकता पर बल दिया.

उन्होंने आगे बताया कि अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता के लिए भारत सरकार ने 150 दलहन बीज हब खोले हैं और कम उत्पादकता वाले जिलों में आईसीएआर द्वारा क्लस्टर फ्रंट लाइन प्रदर्शन (सीएफएलडी) दिए जा रहे हैं.

उन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला करने के लिए जलवायु अनुकूल किस्मों और कम अवधि वाली किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता का उल्लेख किया. उन्होंने राज्य सरकारों से अनुरोध किया कि वे राज्य बीज निगमों को मजबूत कर के अपने बीज वितरण प्रणालियों को मजबूत करें.

देश में दालों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए तत्काल ध्यान देने की जरूरत को देखते हुए यह बैठक बुलाई गई थी, ताकि आयात को कम किया जा सके.

बैठक में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, बिहार, तेलंगाना जैसे प्रमुख दाल उत्पादक राज्यों के कृषि मंत्री मौजूद थे. राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के माध्यम से केंद्र द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की और सहयोग का आश्वासन दिया.

उन्होंने उल्लेख किया कि चूंकि मानसून के सामान्य से अधिक रहने का अनुमान है, इसलिए भारत सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य हासिल किए जाने की बहुत संभावना है. राज्यों ने उच्च उपज देने वाली किस्मों के बीजों के वितरण को बढ़ाने और दालों के तहत क्षेत्र को तत्काल आधार पर बढ़ाने की आवश्यकता को भी पहचाना.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यों को हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया और सभी राज्य कृषि मंत्रियों को राज्य के कृषि परिदृश्य की विस्तृत बैठक आयोजित करने और किसी भी मुद्दे को सामूहिक रूप से हल करने के लिए दिल्ली आमंत्रित किया.

बैठक में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री  रामनाथ ठाकुर एवं  भागीरथ चौधरी, कृषि सचिव  मनोज आहूजा और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डीएआरई) के सचिव और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक भी मौजूद थे.

बायोकंटेनमेंट सुविधा के विकास के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के साथ हुआ समझौता

बागपत : मत्स्यपालन और डेयरी मंत्रालय के पशुपालन एवं डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने पिछले दिनों सचिव, अलका उपाध्याय की उपस्थिति में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के साथ चौधरी चरण सिंह राष्ट्रीय पशु स्वास्थ्य संस्थान (सीसीएसएनएआईएच), बागपत में “बायोकंटेनमेंट सुविधा के उन्नयन और संबंधित मरम्मत कार्यों” के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इन कार्यों के लिए अनुमानित बजटीय व्यय 160 करोड़ रुपए का है और इसे 20 महीनों के भीतर पूरा करने की योजना है.

इस अवसर पर विभाग, सीसीएसएनआईएएच, बागपत और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे. विभाग के तत्वावधान में बागपत की शीर्ष प्रयोगशाला सीसीएसएनआईएएच, भारत में उपयोग किए जाने वाले पशु चिकित्सा टीकों और निदान के गुणवत्ता मूल्यांकन के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान है.

संस्थान की जैव नियंत्रण (बायोकंटेनमेंट) सुविधा साल 2010 में चालू की गई थी और संस्थान को पशु चिकित्सा जैविक एचएस (रक्तस्रावी सेप्टिसीमिया) और आरडी (रानीखेत रोग) के गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला के रूप में मान्यता दी गई है.

अपनी तय भूमिका के अलावा, संस्थान को एलएच एंड डीसी कार्यक्रम के तहत एफएमडी, ब्रुसेला, पीपीआर और सीएसएफ टीकों के क्यूसी परीक्षण की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

बदलती तकनीक और सुरक्षा मानकों को देखते हुए ऐसी सुविधाओं के संचालन के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के दिशानिर्देशों का पालन करना और उन से प्रमाणन प्राप्त करना अनिवार्य है.

इस प्रकार, पशुधन स्वास्थ्य की चुनौतियों का सामना करने और विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा निर्धारित जैव सुरक्षा और उस के मानकों को पूरा करने के लिए इस सुविधा को उन्नत करने की योजना बनाई गई है.

प्रमुख संस्थान में जैव निरोध सुविधा के उन्नयन के प्रस्तावित कार्यों के साथ, विभाग ने बहुआयामी उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए जैसे कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पशु चिकित्सा सेवाएं, पशु चिकित्सा जैविक की गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण, वैक्सीन प्रभावकारिता और सुरक्षा के संदर्भ में गुणवत्ता नियंत्रण प्रोटोकाल का परिशोधन, पशुधन स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सहायता, पशुधन स्वास्थ्य प्रोफिलैक्सिस और निदान के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक मंच के रूप में काम करने के लिए सुविधा में परिवर्तन का लक्ष्य निर्धारित किया है.

इस के अलावा संस्थान में एक अत्याधुनिक पशु गृह निरोध सुविधा होगी, जो चिकित्सा और वैक्सीन अनुसंधान के क्षेत्र में अनुबंध और सहयोगी अनुसंधान के लिए एक मंच के रूप में काम करेगी.

प्रस्तावित कार्यों के कार्यान्वयन के माध्यम से विभाग के कार्य और क्षमता में वृद्धि के संदर्भ में निम्नलिखित लाभ की उम्मीद है:

– प्रयोगशाला प्रमाणन और सत्यापन के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग के नवीनतम दिशानिर्देशों का अनुपालन और डीसीजीआई से पूर्ण सीडीएल स्थिति.

– सीसीएसएनआईएएच, बागपत देश का एकमात्र संस्थान है, जो बड़े और छोटे जानवरों पर नियंत्रक प्रयोग करने की क्षमता रखता है.

– पशुधन स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई चुनौतियों (जैसे, लंपी स्किन डिजीज, एवियन इन्फ्लूएंजा, ग्लैंडर्स रोग आदि) के लिए तैयार रहना.

– टीका परीक्षण, पशु प्रयोग, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण और सरकारों व गैरसरकारी एजेंसियों की गुणवत्ता नियंत्रण आवश्यकताओं की पूर्ति के माध्यम से संशोधित राजस्व सृजन मौडल के साथ आत्मनिर्भरता के लिए संस्थान की क्षमता में वृद्धि.

– “राष्ट्रीय एक स्वास्थ्य मिशन के तहत बीमारियों के प्रकोप की जांच और महामारी की तैयारी” के लिए प्रमुख संस्थान के रूप में काम करना.

– राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए अधिक अवसर.

सीसीएसएनआईएएच, बागपत में जैव नियंत्रण सुविधा के उन्नयन और संबंधित मरम्मत के कामों को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) को सौंपा गया है. एनडीडीबी मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित एक वैधानिक निकाय है और इस में जैव नियंत्रण सुविधाओं के निर्माण और रखरखाव के लिए एक विशेष प्रभाग है.

एनडीडीबी ने हाल के वर्षों में देशभर में पशुधन स्वास्थ्य क्षेत्र में कई जैव नियंत्रण प्रयोगशालाओं और संबंधित बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को पूरा किया है, जिन में आईसीएआर-राष्ट्रीय खुरपका व मुंहपका रोग संस्थान, भुवनेश्वर, आईसीएआर-राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग सुविधा संस्थान, भोपाल, प्रयोगशाला और पशु परीक्षण इकाई, टीएएनयूवीएएस, आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु चिकित्सा महामारी विज्ञान और रोग सूचना विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु, वैक्सीन निर्माण इकाइयां आदि शामिल हैं.

साइटिस जीवित प्राणी प्रजातियों के लिए परिवेश 2.0 पोर्टल पर पंजीयन जरूरी

छतरपुर : वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 यथा संशोधित 2022 के अंतर्गत साइटिस प्रजातियों को अनुसूची- IV  में जोड़ कर उन के रजिस्ट्रेशन, जन्ममृत्यु की जानकारी संधारण, स्वामित्व हस्तांतरण, व्यापार व अन्य संबंधित कार्यवाही के लिए भारत सरकार पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नई दिल्ली के द्वारा 28 फरवरी को जीवित प्राणी प्रजातियां (रिपोर्टिंग और रजिस्ट्रीकरण) नियम 2024 के संबंध में अधिसूचना जारी की गई है, जिस में उक्त कार्य हेतु प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वप्रा) एवं मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक मध्य प्रदेश को अधिकृत किया गया है.

अगर किसी के पास साइटिस जीवित प्राणी प्रजातियां हैं, तो उन को भारत सरकार के परिवेश 2.0 पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करा कर ही उक्त जीवित प्राणी को आधिकारिक तौर से अपने पास रख सकते हैं.

यह पोर्टल आप को सुविधा देता है कि आप वैधानिक रूप से साइटिस जीवित प्राणी जैसे कि लवबर्ड्स, अफ्रीकन ग्रे पैरेट, सनकंयोर रेडफुट-टोरटाइज, ग्रीन इग्वाना, बाल पायथन, मकाउ, एम्परर स्कौपियन आदि  साइटिस  में शामिल जीवित प्राणी प्रजातियों की सूची लिंक https://checklist.cites.org/#/index-download  से प्राप्त की जा सकती है.

परिवेश पोर्टल 2.0 पर प्रदाय की जाने वाली सुविधाएं जैसे कब्जे का रजिस्ट्रीकरण, जन्म की रिपोर्टिंग व रजिस्ट्रीकरण, स्थानांतरण (व्यापार) की रिपोर्टिंग व रजिस्ट्रीकरण, प्राणी प्रजातियों की मृत्यु की रिपोर्टिंग.

रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया

परिवेश 2.0 पोर्टल https://parivesh.nic.in/ पर पंजीयन के लिए भारत सरकार द्वारा 6 माह (1 मार्च, 2024 से 31 अगस्त, 2024 तक) की सीमा निर्धारित है. इसलिए जीवित प्राणी के धारकों द्वारा उक्त समयसीमा में रजिस्ट्रीकरण कराना होगा व निर्धारित समयसीमा के उपरांत उक्त प्रजातियों को बिना रजिस्ट्रीकरण के रखना गैरकानूनी होगा.

इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए निकटतम वनमंडल कार्यालय, छतरपुर से संपर्क कर सकते हैं. स्टेट साइटिस सेल वन भवन, भोपाल से संपर्क कर सकते हैं.

मोबाइल नंबर 9424797059-60-61 व स्टेट साइटिस सेल वन भवन और भोपाल के ईमेल  citesmp@gmail.com  पर भी पत्राचार कर सकते हैं.

आम जनमानस को यह भी सूचित किया जाता है कि किसी भी साइटिस जीवित प्राणी, जिन का परिवेश 2.0 पोर्टल में रजिस्टर नहीं है, उन्हें न खरीदें. पेटशाप विक्रेताओं को भी यह निर्देशित किया जाता है कि वह बिना रजिस्टर्ड ऐसे जीवित प्राणी प्रजाति का विक्रय नहीं करेंगे और रजिस्ट्रीकरण के उपरांत ही परिवेश 2.0 पोर्टल के माध्यम से स्थानांतरण या विक्रय किया जाना सुनिश्चित करेगें.

उक्त नियम के उल्लंघन में केंद्र सरकार के द्वारा सजा का प्रावधान भी रखा गया है.