समुद्री मछली पकड़ने वाले जहाजों पर 1,00,000 ट्रांसपोंडर (Transponders) लगाए जाएंगे

नई दिल्ली : भारत सरकार ने 23 अगस्त “राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस” घोषित किया है, क्योंकि इस दिन भारत को एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल हुई थी. इसी दिन चंद्रयान-3 मिशन ने विक्रम लैंडर की सुरक्षित और सौफ्ट लैंडिंग पूरी की और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास प्रज्ञान रोवर को तैनात किया. इस उपलब्धि ने भारत को चंद्रमा पर उतरने वाला चौथा देश और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बना दिया है.

इस ऐतिहासिक उपलब्धि की याद में मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने मात्स्यिकी क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कई सैमिनार और प्रदर्शनियां आयोजित कर रहा है.

ये कार्यक्रम विभिन्न तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, इसरो और मत्स्यपालन विभाग के क्षेत्रीय कार्यालयों के सहयोग से आयोजित किए जा रहे हैं. अब तक विभिन्न तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हाइब्रिड मोड में 4000 से अधिक प्रतिभागियों के साथ 11 सैमिनार और कार्यशालाएं आयोजित की गई हैं.

इन आयोजनों के एक भाग के रूप में मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने 13 अगस्त, 2024 को कृषि भवन, नई दिल्ली में “मात्स्यिकी क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग” विषय पर एक सैमिनार का आयोजन किया. राजीव रंजन सिंह, केंद्रीय मंत्री, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की. इस आयोजन में जार्ज कुरियन, राज्यमंत्री, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय एवं अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के साथसाथ अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति थी.

राजीव रंजन सिंह ने चंद्रयान-3 मिशन की शानदार सफलता के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी. केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने मत्स्यपालन क्षेत्र, विशेष रूप से समुद्री क्षेत्र के साथ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने के लिए मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलों और महत्वपूर्ण उपायों पर प्रकाश डाला.

इस प्रणाली का उपयोग फिशिंग वेसल्स की मौनिटरिंग, कंट्रोल और सरवेलेंस के लिए किया जाता है, जो समुद्र में उन की सुरक्षा के लिए आवश्यक है. 13 तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मेकैनाइज्ड और मोटोराइज्ड दोनों तरह के फिशिंग वेसल्स पर 1,00,000 ट्रांसपोंडर लगाने का लक्ष्य रखा गया है, जिस के लिए 364 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है.

जार्ज कुरियन ने मात्स्यिकी क्षेत्र में तकनीकी नवाचारों, उपग्रह प्रौद्योगिकियों और वेसल्स  कम्यूनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम में युवा पीढ़ी को शामिल करने के महत्व पर प्रकाश डाला. राज्य मंत्री ने राष्ट्रीय रोलआउट प्लान के तहत निःशुल्क ट्रांसपोंडर प्रदान कर के मछुआरों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्धता पर जोर दिया.
इसरो के स्पेस एप्लिकेशन सैंटर के वैज्ञानिक डा. चंद्र प्रकाश ने मात्स्यिकी क्षेत्र में कम्यूनिकेशन एंड नेविगेशन सिस्टम्स का अवलोकन प्रस्तुत किया, जिस में विभिन्न अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों की विशेषताएं और अनुप्रयोग शामिल थे.

डा. अभिलक्ष लिखी, सचिव, मत्स्यपालन विभाग ने वेसल्स कम्यूनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम और ओशनसैट -3 जैसी कुछ प्रमुख परियोजनाओं पर इसरो और मत्स्यपालन विभाग के बीच सहयोगात्मक प्रयासों पर प्रकाश डाला. केंद्रीय सचिव ने मात्स्यिकी क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग को बढ़ाने पर भी जोर दिया.

सागर मेहरा, संयुक्त सचिव, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने सभी गणमान्य व्यक्तियों और अन्य प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया और मत्स्यपालन विभाग विभाग, भारत सरकार और इसरो के बीच सफल सहयोग की सराहना की.

मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार की संयुक्त सचिव नीतू प्रसाद ने मात्स्यिकी क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग पर मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न पहलों जैसे वेसल्स कम्यूनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम के लिए नैशनल रोलआउट प्लान, ओशनसैट का अनुप्रयोग, पोटेंशियल फिशिंग जोन्स (पीएफजेड) आदि के बारे में जानकारी दी.

उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि वेसल्स कम्यूनिकेशन एंड सपोर्ट सिस्टम, जिसे भारत सरकार ने साल 2023 में अनुमोदित किया था, एक महत्वपूर्ण पहल है.

मत्स्यपालन विभाग, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के मात्स्यिकी विभाग, इसरो, आईएनसीओआईएस, आईएमएसी, आईसीएआर, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड के अधिकारी और अन्य हितधारकों ने कृषि भवन में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया.

इस कार्यक्रम में लगभग 1,000 मछुआरे, छात्र, राज्य मात्स्यिकी विभाग और मत्स्यपालन विभाग के क्षेत्रीय कार्यालयों, आईसीएआर आदि के अधिकारियों ने वर्चुअल मोड द्वारा शामिल हुए.

कृषि भवन में आयोजित कार्यक्रम के बाद महाराष्ट्र के मात्स्यिकी विभाग के सहयोग से एफएसआई मुख्यालय, मुंबई में एक सैमिनार और कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिस में मछुआरों, छात्रों, अधिकारियों और नाव मालिकों आदि सहित तकरीबन 300 लोग शामिल हुए.

कृषि छात्र (Agriculture Students) किसान परिवारों से सीखेंगे खेती के गुण

उदयपुर : 12 अगस्त. 2024. राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के बीएससी (कृषि) चतुर्थ वर्ष के छात्रों को ग्रामीण कृषि कार्यानुभव कार्यक्रम हेतु विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक एवं महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. आरबी दुबे ने हरी झंडी दिखा कर बसों को रवाना किया.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने छात्रों को संबोधित करते हुए बताया कि रावे कार्यक्रम के तहत विश्वविद्यालय के विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों पर रहते हुए ग्रामीण किसान समुदाय से कृषि की नवीनतम प्रौद्यागिकी से रूबरू हो कर प्रायोगिक अनुभव प्राप्त करेंगे. साथ ही, उन्होंने विद्यार्थियों को सीख दी कि प्रत्येक विद्यार्थी कम से कम किसान के खेत पर 5 पौधे लगावे और राज्य व केंद्र सरकार द्वारा संचालित विभिन्न कृषि उन्नयन परियोजनाओं के बारे में किसानों को बताए.

महाविद्यालय के अधिष्ठाता ने विद्यार्थियों को अनुशासित रहते हु किसान परिवारों के साथ कृषि के बारे में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करने की सलाह दी. उन्होंने यह भी कहा कि विद्यार्थियों के लिए किसान परिवारों के साथ रह कर उन के द्वारा अपनाई जा रही समन्वित कृषि तकनीकी, विभिन्न फसलों की पारंपरिक एवं उन्नत खेती और पशुपालन तकनीकी के बारे में बारीकी से देख कर सीखने का सुअवसर है.

डा. आरए कौशिक, निदेशक, प्रसार शिक्षा ने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि यदि ईमानदारी से रावे कार्यक्रम के अंतर्गत  प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे, तो भविष्य में कृषि आधारित उद्योग लगा कर स्वरोजगार शुरू कर सकते हैं. साथ ही, सभी कृषि विज्ञान केंद्रों पर लगी हुई विभिन्न प्रदर्शन इकाइयों का अवलोकन करें एवं कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा किसान समुदाय को प्रदान की जा रही सेवाओं का निकटता से अवलोकन करें.

इस कार्यक्रम के समन्वयक प्रो. एसएस सिसोदिया, विभागाध्यक्ष, प्रसार शिक्षा विभाग ने अतिथियों का स्वागत करते हुए रावे कार्यक्रम के बारे में विस्तृत जानकारी दी एवं उन्होंने यह भी कहा कि विद्यार्थियों का समिति द्वारा नियमित निरीक्षण किया जाएगा.

रावे कार्यक्रम के प्रभारी डा. आरएस राठौड़ ने बताया कि इस सत्र के102 विद्यार्थियों में से 34 छात्राएं व 68 छात्र हैं, जो कि बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, शाहपुरा, राजसमंद एवं वल्लभनगर कृषि विज्ञान केंद्रों पर भेजे जा रहे हैं. ये विद्यार्थी 9 सप्ताह तक इन जिलों में किसानों से संवाद कर उन के द्वारा अपनाई जा रही कृषि की नवीनतम विधाओं के बारे में अनुभव हासिल करेंगे.

इस अवसर पर डा. राम हरी मीणा, डा. सुभाष मीणा, डा. कपिल देव आमेटा, डा. शालिनी पिलानिया, डा. हरी सिंह, डा. राम नारायाण कुम्हार, डा. चंद्र प्रकाश नामा, संकाय सदस्यों एवं तमाम कर्मचारी उपस्थित रहे.

भारत और न्यूजीलैंड के बीच बागबानी (Horticulture) क्षेत्र को मिलेगी मजबूती

नई दिल्ली : 12 अगस्त 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान और न्यूजीलैंड के कृषि, वानिकी, व्यापार और विदेश मामलों के एसोसिएट मंत्री टौड मैक्ले के बीच कृषि भवन, नई दिल्ली में उच्चस्तरीय द्विपक्षीय बैठक हुई.

इस बैठक में दोनों देशों के आपसी हितों के प्रमुख क्षेत्रों व सहयोग के अवसरों पर चर्चा की गई. यह चर्चा दोनों देशों की कृषि प्राथमिकताओं के बारे में जानकारी साझा करने और बागबानी पर प्रस्तावित मैमोरेंडम औफ कौपरेशन (एमओसी) सहित साझेदारी के लिए नए रास्ते तलाशने पर केंद्रित थी.

मंत्रियों ने कृषि साझेदारी को और मजबूत करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की, जिस में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है.

बैठक में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारत के साथ संबंध सुदृढ़ करने में न्यूजीलैंड के सक्रिय प्रयासों की सराहना की व इस संबंध के लिए न्यूजीलैंड सरकार की निरंतर प्रतिबद्धता के महत्व को स्वीकार किया. उन्होंने दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंधों पर प्रकाश डाला.

साथ ही, न्यूजीलैंड में भारतीय प्रवासियों के महत्वपूर्ण योगदान और दोनों देशों के बीच बढ़ते शैक्षिक आदानप्रदान का उल्लेख किया. बैठक के मुख्य निष्कर्षों में व्यापार और बाजार पहुंच में सकारात्मक विकास शामिल है. भारतीय अनार के आयात और आम के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के लिए न्यूजीलैंड के समर्थन को गर्मजोशी से स्वीकार किया गया.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लखनऊ और दिल्ली में नए औडिट की गई वीएचटी सुविधाओं को शीघ्र अनुमोदन मिलने की भी उम्मीद जताई, जिस से न्यूजीलैंड को भारतीय आमों का निर्यात और बढ़ेगा.
इस के अलावा न्यूजीलैंड के मंत्री मैक्ले ने न्यूजीलैंड से भारत को पाइन लौग निर्यात की हाल ही में पुनः शुरुआत करने के लिए धन्यवाद दिया, जिस से उन्हें पिछली चुनौतियों से उबरने में मदद मिली.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस क्षेत्र में सहयोग जारी रखने के लिए भारत के समर्थन को दोहराया और संतरे व केले जैसे ताजे और सूखे फलों सहित अन्य कृषि उत्पादों में व्यापार के विस्तार की संभावना पर जोर दिया.

उन्होंने विशेष रूप से न्यूजीलैंड को अंगूर निर्यात करने के लिए भारतीय निर्यातकों को शीघ्र बाजार पहुंच प्रदान करने पर विचार करने का उल्लेख किया. दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय व्यापार व निवेश को और बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने पर सहमति व्यक्त की.

बैठक में विशेष रूप से बागबानी और मछलीपालन में सहयोग की संभावनाओं को देखते हुए अनुसंधान एवं विकास के लिए तकनीकी सहयोग के महत्व पर भी चर्चा की गई. मंत्रियों ने दोनों देशों के किसानों, उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं को लाभान्वित करने के लिए आर्थिक और व्यापार संबंधों को मजबूत बनाने के लिए मिल कर काम करने की अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मैक्ले और उन के प्रतिनिधिमंडल को भारत में उपयोगी एवं सुखद प्रवास के लिए शुभकामनाएं दी. बैठक में भारत में न्यूजीलैंड के हाई कमिश्‍नर पैट्रिक राटा के अलावा दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए.

ढिंगरी और दूधछाता मशरूम (Mushroom) पर ट्रेनिंग

उदयपुर : 8 अगस्त, 2024. अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना, अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधान में अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के अंतर्गत ग्राम पंचायत कोचला, पंचायत समिति झाड़ोल (फ.) में एकदिवसीय मशरूम प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. मशरूम प्रशिक्षण में पंचायत समिति झाड़ोल (फ.) आसपास के गांवों के किसानों एवं महिलाओं ने प्रशिक्षण में भाग लिया.

प्रशिक्षण में परियोजना प्रभारी डा. एनएल मीना ने मशरूम के महत्वपूर्ण गुणों, ढिंगरी व दूधछाता मशरूम की खेती के बारे में विस्तार से व्याख्यान दिया. ग्राम पंचायत, कोचला व कंथारिया के सरपंच भगवतीलाल व ख्यालीलाल ने मशरूम की खेती की तकनीकी को अपना कर ज्यादा से ज्यादा आमदनी करने पर जोर दिया. अविनाश कुमार नागदा एवं किशन सिंह राजपूत ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की प्रायोगिक जानकारी दी गई और प्रशिक्षण के अंत में अनुसूचित जाति उपयोजना के कुल 30  प्रशिक्षणार्थियों को सामग्री बांटी गई.

कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector) में अनुसंधानों को बढ़ावा देना जरूरी

हिसार : पिछले दिनों चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘रिसर्च मैनेजमेंट’ विषय पर 21दिवसीय रिफ्रैशर कोर्स संपन्न हुआ. विश्वविद्यालय के मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय द्वारा आयोजित किए गए इस रिफ्रैशर कोर्स में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय व लाला लाजपतराय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार के वैज्ञानिकों ने भाग लिया. कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्यातिथि के तौर पर उपस्थित रहे.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने रिफ्रैशर कोर्स के समापन अवसर पर वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए नए अनुसंधानों को बढ़ावा देना जरूरी है. कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए तापमान रोधी नईनई किस्में व नई तकनीक विकसित करने के लिए और अधिक बेहतर ढंग से काम करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन के दौर में असमय तापमान की बढ़ोतरी से निबटने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को शोध कार्यों एवं अनुसंधानों के लिए महत्वाकांक्षी योजना बना कर काम करना होगा. इस के साथसाथ नए उत्पादों को विकसित करने वाले अनुसंधान और नई प्रौद्योगिकियों के माध्यम से छोटे किसानों को नवीनतम तकनीकों के माध्यम से कम लागत में अधिक पैदावार की ओर अग्रसर कर के उन की माली हालात को मजबूत करना है.

उन्होंने वैज्ञानिकों से कृषि क्षेत्र में आने वाली मुख्य चुनौतियों पर अधिक से अधिक शोध करने एवं किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करने की हिदायत दी. साथ ही, शोध कार्यों, नई कृषि तकनीकों, नवाचारों के साथसाथ कृषि क्षेत्र में आने वाली समस्याओं का निराकरण करने पर ज्यादा से ज्यादा काम करें.

रिफ्रेशर कोर्स में सभी वैज्ञानिकों ने अपना एकएक रिसर्च प्रोजैक्ट प्रस्तुत किया. कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने वैज्ञानिकों को 15 दिन के अंदर इस रिसर्च प्रोजैक्ट को संबंधित एजेंसी को सौंपने के निर्देश दिए. उन्होंने कार्यक्रम के समापन अवसर पर कोर्स में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र बांटे.

मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डा. अतुल ढींगड़ा ने अतिथियों व प्रतिभागियों का स्वागत किया. उन्होंने रिफ्रेशर कोर्स के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उपरोक्त निदेशालय की संयुक्त निदेशक एवं कोर्स समन्वयक डा. रेणु मुंजाल ने प्रशिक्षण अवधि के दौरान किए गए विभिन्न विषयों के बारे में विस्तार से जानकारी दी, जबकि प्रशिक्षण सहसमन्वयक डा. जितेंद्र भाटिया ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया.

मंच का संचालन डा. जयंती टोकस ने किया. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं शिक्षक उपस्थित रहे.

असीरगढ़ की पहाड़ियों पर रोपे पलाश के 5,000 बीज

बुरहानपुर : शासन के महत्वपूर्ण अभियान ‘‘एक पेड़ मां के नाम‘‘ के तहत जिला प्रशासन द्वारा किए जा रहे प्रयासों का परिणाम सामने आने लगा है. बारिश के मौसम में विभिन्न गांवों की चिन्हित जगहों, पहाड़ियों पर रोपे गए बीजों से अब अंकुरण दिखाई देने लगा है. निश्चित ही आगे यह क्षेत्र को हराभरा करने एवं समृद्ध बनाने में सहयोगी है.

कलक्टर भव्या मित्तल के मार्गदर्शन में ग्राम चिंचाला, भोलाना, इच्छापुर, फोफनार, झांझर, बोदरली, चाकबारा, जाफरपुरा, बिरोदा, सेलगांव, धुलकोट आदि क्षेत्रों में कुछ दिनों पहले ही पलाश के लगभग 1 लाख, 20 हजार बीज, देशी बबूल के 10 हजार बीज, टेमरू के 1 हजार बीज रोपित किए गए थे] वहीं लगभग 25 हजार सीड बौल डाली गई थी, जिस में अब अंकुरण दिखाई देने लगे हैं.

बुरहानपुर को हराभरा बनाने की सीरीज में एवं पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से असीरगढ़ किले के सामने की पहाड़ी पर पलाश के लगभग 5 हजार बीजों का रोपण भी किया गया. इस अवसर पर अपर कलक्टर वीरसिंह चौहान, डिप्टी कलक्टर राजेश पाटीदार, उपसंचालक, कृषि,  मनोहर सिंह देवके, पटवारी, गांव वाले, ग्राम पंचायत सचिव व रोजगार सहायक सभी ने संयुक्त रूप से सहभागिता करते हुए बीजों का रोपण किया.

अभियान के तहत आगे भी बीज रोपण का सिलसिला जारी रहेगा. डिप्टी कलक्टर राजेश पाटीदार ने बताया कि कार्ययोजना के अनुसार जिला प्रशासन द्वारा बीजरोपण का काम चयनित स्थलों पर निर्धारित मापदंड के अनुसार किया जा रहा है. पलाश के पेड़ पर्यावरण के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं. इस से भूमि की उर्वरता तो बढ़ेगी ही, साथ ही साथ मिट्टी का कटाव भी रुकेगा. इस की खासियत यह है कि इस के पत्ते का उपयोग दोनापत्तल बनाने में किया जाता है. यह पर्यावरण हितैषी भी होता है. इन पेड़ों से स्थानीय जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है और यह पर्यावरण संतुलन को बनाने में सहायक होते हैं.

फसलों (Crops) की 109 उच्च उपज देने वाली किस्में जारी

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में फसलों की 109 उच्च उपज देने वाली, जलवायु अनुकूल और जैव अनुकूल किस्मों को जारी किया.

इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों और वैज्ञानिकों से परस्पर बातचीत भी की. इन नई फसल किस्मों के महत्व पर चर्चा करते हुए उन्होंने कृषि में मूल्य संवर्धन के महत्व पर बल दिया. किसानों ने कहा कि ये नई किस्में अत्यधिक लाभकारी होंगी, क्योंकि इन से उन का खर्चा कम होगा और पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

प्रधानमंत्री मोदी ने मोटे अनाजों के महत्व पर चर्चा की और इस बात को रेखांकित किया कि कैसे लोग पौष्टिक भोजन की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने प्राकृतिक खेती के लाभों और जैविक खेती के प्रति आम लोगों के बढ़ते विश्वास के बारे में भी बात की.

उन्होंने कहा कि लोगों ने जैविक खाद्य पदार्थों का सेवन और मांग करना शुरू कर दिया है. किसानों ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की.

किसानों ने जागरूकता पैदा करने में कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) द्वारा निभाई गई भूमिका की भी सराहना की. प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि केवीके को हर महीने विकसित की जा रही नई किस्मों के लाभों के बारे में किसानों को सक्रिय रूप से सूचित करना चाहिए, ताकि उन के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन नई फसल किस्मों के विकास के लिए वैज्ञानिकों की भी सराहना की. वैज्ञानिकों ने बताया कि वे प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए सुझाव के अनुरूप काम कर रहे हैं, ताकि अप्रयुक्त फसलों को मुख्यधारा में लाया जा सके.

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जारी की गई 61 फसलों की 109 किस्मों में 34 प्रक्षेत्र फसलें और 27 बागबानी फसलें शामिल हैं. प्रक्षेत्र फसलों में मोटे अनाज, चारा फसलें, तिलहन, दलहन, गन्ना, कपास, रेशा और अन्य संभावित फसलों सहित विभिन्न अनाजों के बीज जारी किए गए. बागबानी फसलों में फलों, सब्जियों, रोपण फसलों, कंद फसलों, मसालों, फूलों और औषधीय फसलों की विभिन्न किस्में जारी की गईं.

फसलों (Crops)

69 फसलों की इन 109 किस्मों में 69 फील्ड फसलें और 40 बागबानी फसलें शामिल हैं :

खेत फसलें (69)

अनाज (23 किस्‍में): चावल-9, गेहूं-2, जौ 1, मक्‍का-6, सोरगम-1, बाजरा-1, रागी-1, चीना-1, सावां-1.
दलहन (11 किस्‍में): चना-2, अरहर- 2, मसूर-3, मटर- 1, फबाबीन-1, मूंग -2.
तिलहन (7 किस्‍में): कुसुम- 2, सोयाबीन- 2, मूंगफली- 2, तिल- 1.
चारा फसलें (7 किस्‍में): चार

केवीके, भागलपुर में प्रशिक्षण कार्यशाला (Training Workshop)

भागलपुर : पिछले दिनों कृषि विज्ञान केंद्र, भागलपुर में कार्यशाला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिस का उद्घाटन बीएयू के निदेशक प्रसार शिक्षा डा. आरके सोहाने ने किया. इस में किसानों को खेती के नवीनतम नवाचारों से सशक्त बनाने और नईनई अनाज, दलहन और तिलहन फसलों के प्रभेदों के बारे में जानकारी दी गई.

इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आभासी रूप से 109 विभिन्न जलवायु अनुकूल और बायोफोर्टिफाइड फसलों की किस्मों का विमोचन था, जिसे भारतीय कृषि अनुशंधान द्वारा विकसित किया गया है.

उन्होंने नई उन्नत किस्मों का विमोचन किया, जो वर्तमान परिस्थितियों में अनाज, दलहन और तिलहन फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होंगी. ये किस्में न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने में सक्षम हैं, बल्कि इन की उपज भी पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक है.

इस अवसर पर निदेशक प्रसार शिक्षा डा. आरके सोहाने ने बताया कि कुपोषण की समस्या से निबटने और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बायोफोर्टिफाइड फसलों की नई उन्नत किस्मों को विकसित भारतीय कृषि अनुशंधान द्वारा किया गया है. इन किस्मों में विशेष रूप से धान, गेहूं, दलहन, तिलहन और मक्का शामिल हैं, जिन्हें आयरन और जिंक जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से समृद्ध किया गया है.

केवीके के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डा. राजेश कुमार ने बताया कि नई किस्में किसानों की उपज के साथसाथ आय भी दोगुनी करने में मिल का पत्थर साबित होंगी. इस मौके पर इंजीनियर पंकज कुमार, डा. ममता कुमारी, डा. पवन कुमार, डा. मनीष राज, अंजुम हासिम, शशिकांत आदि मौजूद थे.

डेयरी एवं खाद्य उद्योग में रोजगार के अवसर (Employment Opportunities)

उदयपुर : डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के पूर्व विद्यार्थी परिषद द्वारा 11 अगस्त को महाविद्यालय में “डेयरी एवं खाद्य उद्योग में अवसर” विषयक कार्यक्रम ड्रीम बौक्स का आयोजन हुआ. इस अवसर पर पूर्व विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष डा. करुण चंडालिया ने बताया कि विद्यार्थियों को डेयरी एवं खाद्य क्षेत्र में उपलब्ध उद्यमिता, रोजगार एवं उच्च शिक्षण से संबंधित जानकारी दी गई. साथ ही, वार्षिक आम बैठक भी हुई, जिस में वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया और 1999 से 2003 के पूर्व छात्रों को सम्मानित किया गया.

महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. लोकेश गुप्ता ने बताया कि यह महाविद्यालय राजस्थान का सब से पुराना डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय है और डेयरी एवं खाद्य के उच्च तकनीक तंत्री साल 1982 से तैयार कर देश सेवा में अपना योगदान दे रहा है.

यह अपार गर्व का विषय है कि इस महाविद्यालय के पूर्व छात्र आज डेयरी एवं खाद्य क्षेत्र के सिरमौर उद्यमों में उच्च पदों पर हैं और छात्रों को अधिकारियों में रूपांतरित देख कर आज महाविद्यालय गौरवान्वित है.

महाविद्यालय के पूर्व छात्र, जो आज अधिकारी हैं, अपने कनिष्ठ साथियों को कैरियर परामर्श देने के लिए आज एकत्र हो कर महाविद्यालय की गौरवशाली परंपरा को निभा रहे हैं.

इस अवसर पर महाविद्यालय के पूर्व विद्यार्थी परिषद के कार्यालय का उद्घाटन एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने किया. उन्होंने कहा कि डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के पूर्व छात्र परिषद् के सदस्य, जो कि देशविदेश के सिरमौर उद्यमों में विभिन्न स्तरों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं और आज अपने कनिष्ठ साथियों को कैरियर परामर्श देने के लिए एकत्रित देख कर गर्व का अनुभव हो रहा है.

पूर्व विद्यार्थी परिषद के सचिव निर्भय गोयल ने सभी अतिथियों और कैरियर परामर्श विशेषज्ञों को धन्यवाद ज्ञापित किया. अपने व्यस्त कार्यक्रमों से समय निकाल कर इस कार्यक्रम में शिरकत करने वाले 400 से अधिक पूर्व विद्यार्थी के प्रति अपनी खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने वर्तमान विद्यार्थियों से भी इस गौरवशाली परंपरा को अनवरत निभाने का आह्वान किया.

इस 2 दिवसीय कार्यक्रम की अभूतपूर्व सफलता के लिए अथक प्रयास करने वाले पूर्व छात्र परिषद् के सदस्य और महाविद्यालय के स्टाफ और विद्यार्थियों के प्रति भी उन्होंने धन्यवाद दिया.

खाद्य फसल से नकदी फसल (Cash Crops) की ओर बढ़ता कृषि क्षेत्र

नई दिल्ली: भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी तीसरे अग्रिम अनुमान वर्ष 2023-24 के अनुसार, वाणिज्यिक/नकदी फसलों का क्षेत्रफल कृषि वर्ष 2021-22 में 18,214.19 हजार हेक्टेयर से बढ़ कर कृषि वर्ष 2023-24 में 18,935.22 हजार हेक्टेयर हो गया है. पिछले 3 वर्षों का राज्यवार ब्योरा अनुबंध में दिया गया है. निश्चित रूप से वाणिज्यिक/नकदी फसलों (गन्ना, कपास, जूट और मेस्ता) का उत्पादन भी कृषि वर्ष 2021-22 में 4,80,692 हजार टन से बढ़ कर कृषि वर्ष 2023-24 में 4,84,757 हजार टन हो गया है.

नीति आयोग की कार्य समूह की रिपोर्ट, 2018 में कहा गया था कि भविष्य के वर्ष 2032-2033 के लिए खाद्यान्न की मांग और आपूर्ति क्रमशः 337.01 मिलियन टन और 386.25 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो दर्शाता है कि खाद्य सुरक्षा के मामले में हमारे समग्र खाद्यान्न की स्थिति बहुत अच्छी रहेगी.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीए एंड एफडब्ल्यू) देश के सभी 28 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मूकश्मीर और लद्दाख) में क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) लागू कर रहा है. इस के अंतर्गत छोटे व सीमांत किसानों सहित किसानों को पद्धतियों के उन्नत पैकेज पर क्लस्टर प्रदर्शन, फसल प्रणाली पर प्रदर्शन, उच्च उपज किस्मों (एचवाईवी)/संकरों के बीजों का वितरण, उन्नत फार्म मशीनरी/संसाधन संरक्षण मशीनरी/औजार, कुशल जल अनुप्रयोग उपकरण, पौधा संरक्षण उपाय, पोषक तत्व प्रबंधन/मृदा सुधार, प्रसंस्करण और कटाई के बाद के उपकरण, किसानों को फसल प्रणाली आधारित प्रशिक्षण आदि जैसे मध्यवर्तनों के लिए राज्य सरकारों के माध्यम से सहायता प्रदान की जाती है. मिशन विषय वस्तु विशेषज्ञों/वैज्ञानिकों के पर्यवेक्षण में किसानों को प्रौद्योगिकी समर्थन और हस्तांतरण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू)/कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) को सहायता भी प्रदान करता है.

इस के अलावा, सरकार अपनी मूल्य नीति के माध्यम से उच्चतर निवेश और उत्पादन को प्रोत्साहित करने और उचित मूल्यों पर आपूर्ति उपलब्ध करा कर उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करने के दृष्टिकोण से उत्पादकों को उन के उत्पाद के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करती है.

इस दिशा में, सरकार वाणिज्यिक/नकदी फसलों सहित 22 अधिदेशित फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्यों (एमएसपी) की घोषणा करती है, जिस में इन फसलों के लिए उच्चतर न्यूनतम समर्थन मूल्य की पेशकश की जाती है. वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में एमएसपी को उत्पादन लागत का 1.5 गुना के स्तर पर रखने के लिए पूर्व निर्धारित सिद्धांत की घोषणा की गई थी. तदनुसार, सरकार कृषि वर्ष 2018-19 से उत्पादन की अखिल भारतीय भारित औसत लागत पर कम से कम 50 फीसदी रिटर्न के साथ वाणिज्यिक/नकदी फसलों सहित सभी अनिवार्य फसलों के लिए एमएसपी घोषित कर रही है. सरकार ने देश में किसानों की आय के साथसाथ फसलों के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए अनेक नीतियों, सुधारों, विकासात्मक कार्यक्रमों को भी अपनाया है और कार्यान्वित किया है.