गाजर घास (Carrot Grass) से फसल का बचाव

गाजर घास की 20 प्रजातियां पूरे विश्व में पाई जाती हैं. गाजर घास की उत्पत्ति का स्थान दक्षिण मध्य अमेरिका है. अमेरिका, मैक्सिको, वेस्टइंडीज, चीन, नेपाल, वियतनाम और आस्ट्रेलिया के विभिन्न भागों में फैला यह खरपतवार भारत में अमेरिका या कनाडा से आयात किए गए गेहूं के साथ आया.

हमारे देश में साल 1951 में सब से पहले पूना में नजर आने के बाद यह विदेशी खरपतवार करीब 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुका है. यह खरपतवार जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के विभिन्न भागों में फैला हुआ है.

गाजर घास को देश के विभिन्न भागों में अलगअलग नामों जैसे कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी व गंधी बूटी आदि नामों से जाना जाता है. कांग्रेस घास इस का सब से ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला नाम है. यह घास खाली जगहों, बेकार जमीनों, औद्योगिक क्षेत्रों, बगीचों, पार्कों, स्कूलों, सड़कों और रेलवे लाइनों के किनारों पर बहुतायत में पाई जाती है. पिछले कुछ सालों से इस का प्रकोप सभी तरह की खाद्यान्न फसलों, सब्जियों व फलों में बढ़ता जा रहा है.

वैसे तो गाजर घास पानी मिलने पर साल भर फलफूल सकती है, पर बारिश के मौसम में ज्यादा अंकुरण होने पर यह खतरनाक खरपतवार का रूप ले लेती है. गाजर घास का पौधा 3-4 महीने में अपना जीवनचक्र पूरा कर लेता है. 1 साल में इस की 3-4 पीढि़यां पूरी हो जाती हैं.

करीब डेढ़ मीटर लंबे गाजर घास के पौधे का तना काफी रोएंदार और शाखाओं वाला होता है. इस की पत्तियां काफी हद तक गाजर की पत्तियों की तरह होती हैं. इस के फूलों का रंग सफेद होता है. हर पौधा 1000 से 50000 बेहद छोटे बीज पैदा करता है, जो जमीन पर गिरने के बाद नमी पा कर अंकुरित हो जाते हैं.

गाजर घास के पौधे हर प्रकार के वातावरण में तेजी से बढ़ते हैं. ये ज्यादा अम्लीयता व क्षारीयता वाली जमीन में भी उग सकते हैं. इस के बीज अपनी 2 स्पंजी गद्दियों की मदद से हवा व पानी के जरीए एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहुंच जाते हैं.

गाजर घास से होने वाले नुकसान

* गाजर घास से इनसानों को एग्जिमा, एलर्जी, बुखार व दमा जैसी बीमारियां हो जाती हैं. इस का 1 परागकण भी इनसान को बीमार करने के लिए काफी है. इस के परागकण श्वसन तंत्र में घुस कर दमा व एलर्जी पैदा करते हैं. इस के  ज्यादा असर से इनसानों की मौत तक हो जाती है.

* गाजर घास की वजह से खाद्यान्नों की फसलों की पैदावार में 40 फीसदी तक की कमी आंकी गई है. इस से फसलों की उत्पादकता घट जाती है.

* इस पौधे से ऐलीलो रसायन जैसे पार्थेनिन, काउमेरिक एसिड, कैफिक ऐसिड वगैरह निकलते हैं, जो अपने आसपास

किसी अन्य पौधे को उगने नहीं देते हैं. इस से फसलों के अंकुरण और बढ़वार पर बुरा असर पड़ता है.

* गाजर घास के वन क्षेत्रों में तेजी से फैलने के कारण कई खास वनस्पतियां और जड़ीबूटियां खत्म होती जा रही हैं.

* दलहनी फसलों में यह खरपतवार जड़ ग्रंथियों के विकास को प्रभावित करता है और नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता को कम कर देता है.

* इस के परागकण बैगन, मिर्च व टमाटर वगैरह सब्जियों के पौधों पर जमा हो कर उन के परागण, अंकुरण व फल विन्यास को प्रभावित करते हैं और पत्तियों में क्लोरोफिल की कमी व पुष्प शीर्षों में असामान्यता पैदा कर देते हैं.

* पशुओं के चारे में इस खरपतवार के मिल जाने से दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट आने लगती है. ज्यादा मात्रा में इसे चर लेने से पशुओं की मौत भी हो सकती है.

गाजर घास के इस्तेमाल

* गाजर घास से कई तरह के कीटनाशक, जीवाणुनाशक और  खरपतवारनाशक बनाए जा सकते हैं.

* इस की लुगदी से कई तरह के कागज तैयार किए जा सकते हैं.

* बायोगैस उत्पादन में भी इसे गोबर के साथ मिलाया जा सकता है.

ऐसे करें रोकथाम

* बारिश के मौसम में गाजर घास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़ कर कंपोस्ट व वर्मी कंपोस्ट बनाना चाहिए.

* घर के आसपास गेंदे के पौधे लगा कर गाजर घास के फैलाव को रोका जा सकता है.

* मैक्सिकन बीटल (जाइगोग्रामा बाइकोलाराटा) रामकीट को बारिश के मौसम में गाजर घास पर छोड़ना चाहिए.

* गाजर घास की रासायनिक विधि द्वारा रोकथाम करने के लिए खरपतवार वैज्ञानिक की सलाह लेनी चाहिए.

* नमक के 20 फीसदी घोल से गाजर घास की रोकथाम की जा सकती है, पर यह विधि छोटे क्षेत्र के लिए ही ठीक है.

* गैर कृषि क्षेत्रों में इस की रोकथाम के लिए शाकनाशी रसायन एट्राजिन का इस्तेमाल फूल आने से पहले 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए. ऐसे क्षेत्रों में शाकनाशी रसायन जैसे ग्लाइफोसेट 1.5-2.0 फीसदी या मेट्रीब्यूजिन 0.3-0.5 फीसदी घोल का फूल आने से पहले छिड़काव करने से गाजर घास नष्ट हो जाती है.

* मक्का, ज्वार व बाजरा की फसलों में एट्राजिन 1-1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के तुरंत बाद (अंकुरण से पहले) इस्तेमाल करना चाहिए.

* जमीन को गाजर घास से बचाने के लिए सामुदायिक कोशिशें बहुत जरूरी हैं. गांवों, शहरी कालोनियों, स्कूलों, महाविद्यालयों में रहने या पढ़ने वाले लोगों को चाहिए कि वे अपने आसपास की जमीन को गाजर घास से मुक्त रखें. इसी तरह की कोशिशों से पंजाब राज्य के लुधियाना जिले का मनसूरा गांव पहला गाजर घास मुक्त क्षेत्र बन गया है.

* जगहजगह जा कर लोगों को गाजर घास के नुकसानों व रोकथाम के बारे में जानकारी दे कर उन्हें जागरूक करना चाहिए.

* हर साल अगस्तसितंबर में गाजर घास जागरूकता सप्ताह मनाया जाता है, क्योंकि अक्तूबरनवंबर में गाजर घास सब से ज्यादा होती है.

‘एक पेड़ मां के नाम’ वृक्षारोपण : छात्रों ने लिया संकल्प

उदयपुर: 21 अक्तूबर, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के सस्य विज्ञान फार्म एवं महाविद्यालय खेल प्रांगण पर वृक्षारोपण कार्यक्रम ‘एक पेड़ मां के नाम’ की निरंतरता में 200 अशोक के पौधों का रोपण किया गया, जिस में महाविद्यालय के नवआगंतुक बीएससी (कृषि) स्नातक प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों द्वारा यह संकल्प लिया गया कि इस पौधे की अध्यापन अवधि के दौरान पूरे 4 वर्ष तक पौधे के पूरे रखरखाव की जिम्मेदारी निभाएंगे.

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक द्वारा शुभारंभ करते हुए वृक्षों के महत्व व उपयोगिता पर विस्तृत जानकारी देते हुए पर्यावरण की शुद्धता बनाए रखने में सहयोग पर बल दिया. कार्यक्रम में महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. आरबी दुबे द्वारा विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि इन पौधों के रोपण के साथ ही समयसमय पर निरंतर रखरखाव का पूरा ध्यान रखने की बात दोहराई एवं विद्यार्थियों को बताया कि यह पौधा संबंधित विद्यार्थी की स्नातक डिगरी के लिए अनिवार्य होगा.

कार्यक्रम के समन्यक एवं सहायक निदेशक शारीरिक शिक्षा डा. कपिल देव आमेटा ने बताया कि ये लगाए गए अशोक के पौधे महाविद्यालय प्रांगण की सुंदरता के साक्षी होंगे.

इस अवसर पर ग्रीन पीपल सोसायटी के यासीन पठान, शिवजी गौड़, महाविद्यालय के विभागाध्यक्षों, संकाय सदस्यों, कर्मचारियों एवं वरिष्ठ विद्यार्थियों की उपस्थिति रही. वृक्षारोपण कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय के सहायक अधिष्ठाता छात्र कल्याण डा. एसएस लखावत एवं प्रशासनिक अधिकारी डा. रमेश बाबू द्वारा समस्त सहभागियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया.

one tree in the name of mother

एकवर्षीय कृषि आदान विक्रेता पाठ्यक्रम के 5वें बैच का प्रमाणपत्र वितरित

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने उद्बोधन में कहा कि यदि कृषि आदान विक्रेता मुख्य बिंदुओं को ध्यान में रख कर काम करें, तो भारत की कृषि नए आयामों को स्थापित करने में अपना अमूल्य योगदान प्रस्तुत करेगी. कृषि आदान विक्रेता को अच्छा प्रेक्षणकर्ता, मार्गदर्शक, प्रतिनिधि, सलाहकार, समन्वयक, दूरदर्शी, प्रशासक एवं योजक होना चाहिए, ताकि वह देश के विकास में अपना अह्म योगदान दे सके.

इस अवसर पर राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. आरबी दुबे ने अपने उद्बोधन में प्रजनक बीज के बारे में बताया और डा. आरएल सोनी, निदेशक प्रसार शिक्षा ने नवीनतम् कृषि प्रौद्योगिकी द्वारा कृषि नवाचार आदि के बारे में अभ्यर्थियों को जानकारी दी.

कार्यक्रम में डा. एमके महला, आचार्य कीट विज्ञान एवं पाठ्यक्रम सह समन्वयक ने बताया कि वर्तमान में एकवर्षीय कृषि आदान विक्रेता पाठ्यक्रम में राजस्थान के 40 अभ्यर्थी भाग ले रहे हैं और अब तक 280 अभ्यर्थी इस पाठ्यक्रम का लाभ ले कर अपना व्यापार सुचारू रूप से चलाते हुए  अपना जीवनयापन कर रहे हैं.

पाठ्यक्रम के समन्वयक एवं विभागाध्यक्ष डा. रमेश बाबू ने पाठ्यक्रम में उपस्थित अभ्यर्थियों को उचित कीटनाशकों के उपयोग के बारे में बताया और उपस्थित संकाय सदस्यों व प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम का संचालन उद्यान विज्ञान विभाग के सहप्राध्यापक एवं सहायक निदेशक शारीरिक शिक्षा डा. कपिल देव आमेटा ने किया.

पराली समस्या ( Stubble Problem) का समाधान सरकार को किसानों के साथ मिल कर करना होगा

हरियाणा सरकार द्वारा किसानों पर पराली जलाने के लिए की जा रही कड़ी कार्रवाई ने देशभर के किसानों में गहरी नाराजगी और चिंता पैदा कर दी है. हाल ही में 13 किसानों की गिरफ्तारी, ‘रैड एंट्री’ जैसे कदम और किसानों की फसल मंडियों में न बेचने देने के आदेशों ने किसानों में आक्रोश भर दिया है.

किसानों की गिरफ्तारी और उन के माल को मंडी में न बेचने देना एक ऐसा कदम है, जो केवल उन की समस्याओं को बढ़ाएगा. हरियाणा सरकार ने पराली जलाने के 653 मामलों में अब तक 368 किसानों की ‘रैड एंट्री’ कर दी है, जिस से ये किसान अगले 2 साल तक अपनी फसल मंडियों में नहीं बेच पाएंगे. इस से न केवल उन की माली हालत कमजोर होगी, बल्कि उन का गुस्सा भी बढ़ेगा. इस तरह की दमनकारी नीतियां केवल किसानों और सरकार के बीच की खाई को बढ़ाने का काम करती हैं.

किसान पहले ही पूर्व की हरियाणा सरकार से नाराज चल रहे थे. राज्य में किसानों की इन‌ गिरफ्तारियों और फसल मंडियों में न बिकने देने जैसे तुगलकी मध्यकालीन फरमान ने इस मुद्दे को और गरमा दिया है. लगता है कि सरकार की नीतिनिर्माताओं ने अपना दिमाग खूंटी पर टांग दिया है, वरना इतनी आसान सी बात ही समझ में नहीं आती कि इस समस्या का समाधान केवल दंडात्मक उपायों से कभी भी नहीं हो सकता. किसानों के सामने कई जमीनी व्यावहारिक समस्याएं हैं, जिन्हें समझे बिना ऐसे कबीलाई न्याय और कठोर नीतियां लागू करना उन के साथ घोर अन्याय है और व्यापक देशहित के भी खिलाफ है.

इस बात से किसी को भी इनकार नहीं है कि पराली जलाना एक गंभीर पर्यावरणीय मुद्दा है, लेकिन इसे केवल किसानों की गलती मानना उचित नहीं है, यह सिक्के का केवल एक पहलू है. इस संवेदनशील मामले में किसानों की मजबूरी को समझना अत्यंत आवश्यक है.

पराली का निबटान एक महंगी और समयसाध्य प्रक्रिया है, जिस में किसान को काफी माली नुकसान उठाना पड़ता है. ट्रैक्टरों और पानी के इस्तेमाल से पराली को मिट्टी में मिलाने का खर्च प्रति एकड़ 5,000 रुपए से अधिक होता है, जो छोटे और मझोले किसानों के लिए एक भारी बोझ है. इस के अलावा फसल के सीजन के बीच में समय की कमी भी उन्हें पराली जलाने के लिए मजबूर कर देती है.

किसानों के सम्मुख चुनौतियां

किसान फसल कटाई के तुरंत बाद अगली फसल के लिए खेत तैयार करने की जल्दी में होते हैं. यदि पराली को सड़ने के लिए खेत में छोड़ा जाता है, तो इस में काफी समय लगता है, और इस देरी से उन्हें दूसरी फसल का नुकसान होता है. “समय से चूका किसान, डाल से चूका बंदर की तरह होता है, जो धरती पर मुंह के बल गिरा नजर आता है.” इस स्थिति में किसानों के पास न तो इतना समय होता है और न ही इतनी आर्थिक क्षमता कि वे पराली के प्रबंधन के लिए जरूरी संसाधनों में निवेश कर सकें.

दुनिया के प्रसिद्ध पर्यावरणविदों और शोधकर्ताओं ने भी इस समस्या की जड़ को समझा है. नार्वे के जलवायु विशेषज्ञ एरिक सोल्हेम का कहना है, “सस्टेनेबल खेती का विकास तभी संभव है, जब किसानों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पर्यावरणीय नीतियां बनाई जाएं. किसान पर्यावरण का दुश्मन नहीं है, वह इस का साथी है.” यह विचार स्पष्ट करता है कि किसानों को दोषी ठहराने के बजाय उन्हें टिकाऊ समाधान प्रदान करना आवश्यक है.

विकल्पों की खोज

यह सही है कि पराली जलाने से पर्यावरण को नुकसान होता है और वायु प्रदूषण बढ़ता है, लेकिन समाधान का रास्ता किसानों को दंडित करने में नहीं है. समस्या के समाधान के लिए सरकार को किसानों के साथ मिल कर विचारविमर्श करना चाहिए. सरकार का यह दायित्व है कि वह किसानों के लिए ऐसे विकल्प तैयार करे, जो व्यवहारिक हो और किसानों के हित में हो. किसानों को तकनीकी सहायता, संसाधन और आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए, ताकि वे पराली जलाने के विकल्पों को अपना सकें.

पंजाब और हरियाणा में पहले से ही कई पायलट प्रोजैक्ट्स चल रहे हैं, जहां पराली से जैविक खाद बनाई जा रही है या उसे ऊर्जा के उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन यह समाधान तब तक सफल नहीं होंगे, जब तक किसानों को इस का उपयोग करने के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता और तकनीकी मार्गदर्शन नहीं मिलेगा.

हमारा मानना है कि सरकार को दंडात्मक कार्रवाई से पहले किसानों की समस्याओं को समझ कर उन के लिए व्यवहारिक समाधान निकालने चाहिए. पराली जलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना और किसानों को सजा देना उन्हें और अधिक संकट में डाल देगा. देशभर के किसानों में यह संदेश जा रहा है कि सरकार के खिलाफ आंदोलन करने के कारण सरकार किसानों से बदला ले रही है.

वहीं किसानों का यह मानना है कि पराली के पर्यावरणीय मुद्दे पर किसानों को जेल में डालने जैसी कठोर दमनात्मक कार्यवाही करने के पहले महानगरों में दौड़ रहे जहर उगलते करोड़ों वाहन मालिकों और वायुमंडल में विशाक्त धुआं उगलते कारखानों के मालिकों के खिलाफ कार्यवाही कर उन्हें जेल में डालने की हिम्मत दिखाए. देश में कितने ही कारखाने पर्यावरण के नियमों, ग्रीन ट्रिब्यूनल को छकाते हुए धज्जियां उड़ाते हुए नदियों में गंदगी उड़ेल रहे हैं और वायुमंडल में लगातार 24 घंटे जहरीला धुआं भर रहे हैं. आज तक सरकार ने किसी एक भी उद्योगपति को पर्यावरण के मुद्दे पर जेल में नहीं डाला है. चूंकि किसान अकेला है, गरीब है, बेसहारा है, इन में एकजुटता की कमी है और चौधरी चरण सिंह जैसा उस का कोई सक्षम राजनीतिक आका नहीं है, इसीलिए सरकार जब चाहे किसान की गरदन दबोच लेती है और उस पर लट्ठ बजा देती है.

यही सरकारें जीत के आते ही हफ्तेभर के भीतर ही अपने खिलाफ सारे मामलों को राजनीतिक मामले कह कर वापस ले लेती हैं और किसान आंदोलनों में जेल गए किसान साथी आज भी जेलों में सड़ रहे हैं, उन की सुध लेने वाला भी कोई नहीं है. पर इन सारे घटनाक्रमों से किसानों में धीरेधीरे सरकार के ख़िलाफ नफरत और गुस्सा बढ़ता जा रहा है. आगे चल कर यह स्थिति विस्फोटक हो सकती है.

सरकार इस तरह से किसानों को जेल में डालने के पहले ध्यान रखें कि सरकार की जेलों में न तो इतनी जगह है और न ही सरकार के खजाने में इतना पैसा, और न ही सरकार के गोदाम में इतना अनाज है कि वह देश के 16 करोड़ किसान परिवारों, एक परिवार में यदि 5 सदस्य भी हैं तो लगभग 80 करोड़ लोगों को जेल में डाल कर उन्हें बिठा कर खाना खिला सके.

मिलजुल कर होगा समाधान

पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए एक सामूहिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है. पर्यावरण की सुरक्षा और किसानों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित नीति बनाई जानी चाहिए. सरकार को किसानों के साथ मिल कर एक समाधान ढूंढना चाहिए, जिस में किसानों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाए. अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ भी मानते हैं कि किसी भी पर्यावरणीय नीति की सफलता तभी संभव है, जब उसे सामाजिक और आर्थिक रूप से उचित ढंग से लागू किया जाए.

किसान संगठनों का मानना है कि किसानों के खिलाफ कठोर नीतियां अपनाने के बजाय सरकार को उन के साथ संवाद कर समाधान निकालना चाहिए. किसानों की आर्थिक स्थिति और पर्यावरण की रक्षा दोनों को ध्यान में रखते हुए एक सुदृढ़ और व्यवहारिक नीति बनाई जानी चाहिए. पराली जलाने के विकल्प किसानों को तभी अपनाने चाहिए, जब उन्हें इस के लिए आवश्यक संसाधन और सहायता मिल सके.

सरकार को अपने कठोर रवैए पर पुनर्विचार कर किसान संगठनों और विशेषज्ञों के साथ मिल कर इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए. अगर सरकार पहल करे, तो अखिल भारतीय किसान महासंघ इस मुद्दे पर किसानों और किसान संगठनों से बात कर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर सकती है. किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज करना एक दीर्घकालिक समाधान नहीं है, बल्कि उन के साथ मिल कर काम करने से ही हम एक टिकाऊ और सफल कृषि प्रणाली की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं.

आलू (Potato) की खेती

आलू (Potato) दैनिक आहार का एक अभिन्न हिस्सा है. वर्षभर आलू (Potato) की उपलब्धता रहती है. आलू (Potato) से सब्जी, पकौड़े, समोसे, चिप्स बनाने के अलावा इस का व्रत में फलाहार के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. प्रति व्यक्ति आलू (Potato) की उपलब्धता 16 किलो प्रति वर्ष है, जो निश्चित रूप से कम है. आलू (Potato) की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए इस की तकनीकी को समझना होगा.

प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी, देवरिया के निदेशक का कहना है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में धान काटने के बाद किसान दिसंबर तक आलू लगाते है, जिस से कीट बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है, उपज पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. यदि आलू 25 अक्तूबर तक लगा दिया जाए तो कीट और बीमारियों का प्रकोप कम होता है तथा उत्पादन भी अच्छा होता है.

आलू की प्रमुख किस्मों में कुफरी अशोका, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी सूर्या 70-80 दिनों में तैयार हो जाती हैं. इन की उत्पादन क्षमता 250 से 300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है. कुफरी बहार, कुफरी पुखराज, कुफरी लालिमा, कुफरी अरुण, कुफरी गिरीराज, कुफरी कंचन, कुफरी पुष्कर, कुफरी ज्योति 90-100 दिनों में तैयार हो जाती हैं. उत्पादन क्षमता 250-300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है.

कुफरी सतलुज,कुफरी आनंद, कुफरी सिंदूरी, कुफरी चिप्सोना-1, 2, 3 आदि 110-120 दिनों की किस्में हैं, जिस का उत्पादन प्रति हैक्टेयर 350 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

आलू की खेती के लिए बलुई दोमट एवं दोमट मृदा सर्वोच्च होती है. प्रति हैक्टेयर में 30 से 35 क्विंटल कंद (35-40 या 40-50 ग्राम के कंद अथवा 3.5 से 4।सैंटीमीटर वाले कंद) प्रर्याप्त होते हैं. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सैंटीमीटर तथा कंद से कंद की दूरी बीज आलू के आकार के अनुसार 20-30 सैंटीमीटर पर रखी जाती है.

आलू बोआई से पहले 250 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला दें. उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए. 150:80:100 नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से कर सकते हैं. इस की पूर्ति के लिए 260 किलो यूरिया, 176 किलो डाईअमोनियम फास्फेट और 170 किलो म्यूरेट औफ पोटाश का प्रयोग करें. बोआई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग करें. नाइट्रोजन की शेष मात्रा का मिट्टी चढ़ाते समय 20-25 दिन बाद प्रयोग करना चाहिए. आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए. कीट और बीमारियों की निगरानी रखनी चाहिए. अगर आलू भंडारण करना है तो परिपक्व होने पर ही खुदाई करें.

ज्वार (sorghum) की नई किस्म : प्रताप ज्वार 2510

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के वैज्ञानिकों ने किसानों, पशुपालकों के लिए ज्वार की नई किस्म प्रताप ज्वार 2510 विकसित की है. इस किस्म का विकास अखिल भारतीय ज्वार अनुसंधान परियोजना, उदयपुर में कार्यरत वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है.

डा. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि राजस्थान के दक्षिणीपूर्वी क्षेत्र में ज्वार एक प्रमुख मिलेट फसल है, जो वर्षा आधारित क्षेत्रों में अनाज और पशु चारे के लिए उगाई जाती है. पशु चारे के लिए ज्वार का प्रदेश में प्रमुख योगदान है. उन्होंने बताया कि राजस्थान में ज्वार की खेती लगभग 6.4 लाख हैक्टेयर में की जा रही है एवं मुख्य रूप से अजमेर, नागौर, पाली, टोंक, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद एवं भीलवाड़ा जिलों में इस की खेती होती है.

अनुसंधान निदेशक ने बताया कि अखिल भारतीय ज्वार अनुसंधान परियोजना सन 1970 में प्रारंभ हुई थी तथा इस परियोजना के अंतर्गत अभी तक कुल 11 किस्में क्रमशः एसपीवी 96, एसपीवी 245, राजचरी-1, राजचरी-2, सीएसवी 10, एसपीएच 837, सीएसवी 17, प्रताप ज्वार 1430, सीएसवी 23, प्रताप चरी 1080 एवं प्रताप राज ज्वार-1 अनुमोदित हो चुकी हैं.

ज्वार की नई किस्म प्रताप ज्वार 2510 को पत्र संख्या 40271 के अंतर्गत 9 अक्तूबर, 2024 को जारी भारत सरकार के राजपत्र में राजस्थान राज्य के लिए अधिसूचित किया गया.

परियोजना प्रभारी डा. हेमलता शर्मा ने बताया कि यह मध्यम अवधि (105-110 दिन) में पकने वाली किस्म है, जिस से 40-45 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दाने की एवं 130-135 क्विंटल प्रति हैक्टेयर सूखे चारे की उपज प्राप्त होती है तथा यह किस्म एंथ्रेकनोज, जोनेट, मोल्ड रोगों एवं तना मक्खी तथा तना छेदक कीटों के लिए सामान्य प्रतिरोधी है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने बताया कि राजस्थान में ज्वार मुख्य रूप से चारे के लिए उगाई जाती है किंतु विगत वर्ष 2023 ‘अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ के रूप में मनाया गया, जिस से ज्वार के दानों में पोषक गुणों के बारे में आमजन में जागृति आई है. ज्वार एक ग्लुटेन मुक्त अनाज होता है, अतः इस का उपयोग दलिया, ब्रैड, केक आदि बनाने में किया जाता है. ज्वार के दाने का उपयोग खाद्य तेल, स्टार्च, डेक्सट्रोज आदि के लिए भी किया जाता है.

उन्होंने आगे बताया कि वैज्ञानिक तरीके से ज्वार की खेती करने से राजस्थान के किसान इस से अधिक उत्पादन एवं आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

फसल विविधिकरण (Crop Diversification) है लाभकारी

बीजोलिया, भीलवाड़ा में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत फसल विविधीकरण परियोजना के तहत दो दिवसीय विस्तार अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया. यह कार्यक्रम ‘दक्षिणी राजस्थान में फसल विविधिकरण के माध्यम से कृषि स्थिरता और लाभप्रदता बढ़ाना’ शीर्षक के तहत पायलट प्रोजैक्ट के रूप में आयोजित किया जा रहा है.

इस कार्यक्रम का उद्देश्य अधिकारियों को फसल विविधिकरण के नवीनतम तरीकों और तकनीकों से अवगत कराना है, ताकि वे किसानों को बेहतर कृषि स्थिरता और आर्थिक लाभ प्राप्त करने में सहायता कर सकें. कार्यक्रम में उपस्थित विशेषज्ञों ने फसल विविधिकरण के विभिन्न पहलुओं पर व्याख्यान दिए और बताया कि किस प्रकार यह रणनीति दक्षिणी राजस्थान के किसानों को बेहतर लाभप्रदता और दीर्घकालिक कृषि स्थिरता प्राप्त करने में मदद कर सकती है.

परियोजना प्रभारी डा. हरि सिंह ने फसल विविधिकरण को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निबटने और मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए आवश्यक बताया. उन्होंने सफल मामलों के अध्ययन प्रस्तुत किए और जमीनी स्तर पर इन रणनीतियों को लागू करने के व्यावहारिक सुझाव दिए.

उदय लाल कोली, कृषि अधिकारी ने फसल विविधिकरण के आर्थिक लाभों पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि किस प्रकार किसान संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग कर सकते हैं और एकल फसल प्रणाली से जुड़े जोखिमों को कम कर सकते हैं. उन्होंने विस्तार अधिकारियों को किसानों को एक अधिक विविधीकृत फसल प्रणाली अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया, जिस से उन की आय और बाजार के उतारचढ़ाव के खिलाफ स्थिरता बढ़ सके.

कृषि अधिकारी सोनिया सिलवाटिया ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों, विस्तार अधिकारियों और किसानों के बीच सहयोग किस प्रकार फसल विविधिकरण के लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त करने में मदद कर सकता है.

लक्ष्मी लाल ब्रह्मभट्ट ने फसल विविधिकरण के कार्यान्वयन के लिए एक विस्तृत योजना प्रस्तुत की. उन्होंने किसानों की मदद के लिए उपलब्ध सरकारी योजनाओं पर जानकारी प्रदान दी.

फसल विविधिकरण (Crop Diversification)

यह कार्यक्रम अत्यंत जानकारीपूर्ण रहा और प्रतिभागियों ने अपनेअपने क्षेत्रों में इस ज्ञान को लागू करने की उत्सुकता व्यक्त की, ताकि फसल विविधिकरण के माध्यम से कृषि स्थिरता और लाभप्रदता में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके.

राजधानी लखनऊ में हुआ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों का सम्मान

लखनऊ : ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका द्वारा पहली बार बड़े लेवल पर राज्य स्तरीय ‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ का आयोजन लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में 17 अक्तूबर, 2024 को किया गया. इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से 200 से ज्यादा किसान शामिल हुए और खेती में नवाचार व तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले तकरीबन 40 किसानों को राज्य स्तरीय ‘फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड’ से सम्मानित किया गया.

इस कार्यक्रम में डा. पूजा गौड़, डा. हिरेशा वर्मा, वंदना सिंह, कर्नल हरिश्चंद्र सिंह, राम मूर्ति मिश्र, अचल मिश्र, मिलन शर्मा, अरविंद सिंह सहित खेती में खास करने वाले तकरीबन 40 किसान शामिल रहे.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दिनेश प्रताप सिंह, राज्य मंत्री, स्वतंत्र प्रभार, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, कृषि विपणन, कृषि विदेश व्यापार एवं कृषि ने कहा, “मेरी सभी विजेताओं को बधाई. मैं ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के इस कदम को सराहनीय मानता हूं, जिस ने किसानों को सम्मानित किया है. खेती के क्षेत्र में बड़ी संभावना है. इसी वजह से उत्तर प्रदेश का आम विदेशों में जा रहा है. हम दूसरे उत्पादों को भी दुनियाभर में भेज रहे हैं. इस से हमारे किसानों का उत्साह बढ़ रहा है. आज के नौजवान अपने कृषि उत्पादों को ग्लोबल बना सकते हैं. आगरा में ऐसा नवीनतम अनुसंधान केंद्र बनने जा रहा है, जो देश में कृषि जगत में क्रांति ला सकता है. परंपरागत खेती के साथसाथ हमें खेती में नवाचार भी अपनाना चाहिए, जो किसान की आमदनी बढ़ा सकती है.”

Farm n Food Award

इस पर मौके पर जल संरक्षण पर काम करने वाले ‘पद्मश्री’ अवार्डी उमाशंकर पांडेय ने कहा कि वातावरण में मौजूद अधिकांश पानी प्रदूषित हो गया है, अशुद्ध हो गया है. उन्होंने यह भी कहा कि किसान अन्नदाता है, स्वराज्य का मुखिया है. हमें किसानों के लिए, उन की आवश्यकताओं के लिए तैयार रहना चाहिए. हमारा देश कृषि प्रधान है. मैं दिल्ली प्रैस को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने लखनऊ में राज्य स्तरीय पुरस्कार दे कर किसानों को सम्मानित किया है. किसानों का सम्मान करना गौरव की बात है.

दिल्ली प्रैस के कार्यकारी प्रकाशक अनंत नाथ ने कहा, “मेरे लिए खेती के बारे में जानना और समझना एक छात्र के जैसा है, जो मुझ में इस क्षेत्र को ले कर उत्सुकता पैदा करता है. यहां उपस्थित हर किसान ने बहुत ज्यादा मेहनत कर के अपनेआप को दूसरों से अलग बनाया है और वे सभी बधाई के पात्र हैं. अभी यह शुरुआत है और हम आगे भी अन्य राज्यों में इस पुरस्कार को ले जाएंगे और किसानों के भले के लिए ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका अपना योगदान देती रहेगी.

“‘फार्म एन फूड’ पत्रिका द्वारा खेती में नवाचार अपनाने वाले किसानों से विभिन्न श्रेणियों में आवेदन आमंत्रित किए गए थे, जिस में जैविक खेती, खेती में नवाचार, उत्कृष्ट महिला कृषक, उत्कृष्ट युवा किसान, उत्कृष्ट एफपीओ, उत्कृष्ट कृषि विज्ञान केंद्र, मार्केटिंग में उत्कृष्ट किसान, उत्कृष्ट डेयरी व पशुपालक, उत्कृष्ट गन्ना उत्पादक किसान, समेकित खेती अपनाने वाले उत्कृष्ट कृषक, उत्कृष्ट कृषि वैज्ञानिक, खेती में मशीनीकरण अपनाने वाले उत्कृष्ट किसान और हार्वेस्टिंग प्रोसैसिंग श्रेणियां निर्धारित की गई थीं.”

Farm n Food Award

इन श्रेणियों में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से 300 से भी अधिक नोमिनेशन कृषि विज्ञान केंद्रों व कृषि संस्थानों के संस्तुति सहित प्राप्त हुए थे. विभिन्न श्रेणियों में प्राप्त इन नोमिनेशन का 4 सदस्यीय जूरी द्वारा मूल्यांकन किया गया, जिस में सर्वश्रेष्ठ नोमिनेशन को पुरस्कार के लिए चुना गया है. पुरस्कार जूरी में ‘पद्मश्री’ किसान उमाशंकर पांडेय, सैंटर फौर एग्रीकल्चर टैक्नोलौजी अस्सेस्मेंट एंड ट्रांसफर, आईसीएआर–आईएआरआई, नई दिल्ली के प्रधान वैज्ञानिक (कृषि विस्तार) डा. नफीस अहमद, गोवंश पोषण एवं प्रबंधन प्रभाग, भाकृअनुप–केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ के प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण) डा. संजीव कुमार वर्मा व एसवी पटेल कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय मेरठ, उत्तर प्रदेश के निदेशक ट्रेनिंग एवं प्लेसमेंट प्रो. आरएस सेंगर का नाम शामिल हैं.

इस सम्मान समारोह में पुरस्कृत किसानों के साथसाथ कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य कृषि संस्थानों के वैज्ञानिक, अन्य शासकीय और प्रशासनिक अधिकारी, जूरी सदस्य भी उपस्थित रहे.

‘मशरूम उत्पादन तकनीक’ पर ट्रेनिंग के अवसर का लाभ उठाएं

बस्ती : औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र, बस्ती द्वारा बेरोजगार नौजवानों, युवतियों, किसानों और बागबानों को गांव स्तर पर स्वरोजगार सृजन के उद्देश्य से केंद्र के मशरूम अनुभाग द्वारा मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘‘मशरूम उत्पादन तकनीक’’ विषय पर 3 दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन आगामी महीनों की विभिन्न तारीखों में किया जाना है, जिस में बस्ती, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, देवरिया, कुशीनगर, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, बाराबंकी, अयोध्या, सुल्तानपुर, रायबरेली, प्रयागराज, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र, बलिया, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ, जौनपुर, प्रतापगढ, कौशांबी, चंदौली, अंबेडकरनगर, गोरखपुर जिलों के लोग प्रतिभाग कर सकते हैं.

औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र, बस्ती के संयुक्त निदेशक, उद्यान, वीरेंद्र सिंह यादव ने बताया कि 3 दिवसीय प्रशिक्षण में भाग लेने के इच्छुक नौजवान, युवती, किसान और बागबान अपने जिले के जिला उद्यान अधिकारी से संपर्क कर प्रशिक्षण के लिए अपना नाम केंद्र को भिजवा सकते हैं.

उन्होंने बताया कि औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र, बस्ती में स्थित मशरूम अनुभाग की मंशा है कि गांव स्तर पर मशरूम के जरीए रोजगार उपलब्ध कराए जाएं, जिस से कि उन के शहरों की ओर बढ रहे पलायन को रोका जा सके.

इसी उद्देश्य के तहत आम लोगों को मशरूम उत्पादन तकनीक का प्रशिक्षण औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र, बस्ती में स्थित मशरूम अनुभाग द्वारा आगामी महीनों के विभिन्न तिथियों में किया जा रहा है, क्योंकि यह भूमिहीन व गरीब किसानों की आमदनी का जरीया है, इसे अपना कर वे स्वरोजगार सृजन कर सकते हैं.

संयुक्त निदेशक, उद्यान, वीरेंद्र सिंह यादव ने बताया कि प्रशिक्षण के दौरान मशरूम की खेती से ले कर कंपोस्ट बनाने, प्रोसैसिंग और मशरूम के विभिन्न उत्पादों का निर्माण कर आमदनी बढ़ाने के सभी पहलुओं पर जानकारी दी जाएगी.

मशरूम अनुभाग प्रभारी विवेक वर्मा ने बताया कि साल 2024-25 में केंद्र के मशरूम अनुभाग द्वारा मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन साल 2024 में 19 नवंबर से 21 नवंबर, 17 दिसंबर से 19 दिसंबर प्रस्तावित है, जबकि साल 2025 में 7 जनवरी से 9 जनवरी व 20 फरवरी से 22 फरवरी में प्रस्तावित है.

उन्होंने आगे बताया कि दूरदराज के प्रशिक्षणार्थियों के लिए कृषक छात्रावास में एकसाथ 50 किसानों के ठहरने की निःशुल्क व्यवस्था है, परंतु भोजन/बोर्डिंग एवं जलपान की व्यवस्था प्रशिक्षणार्थियों को स्वयं करनी होती है. प्रत्येक प्रशिक्षण सत्र के लिए प्रति प्रशिक्षणार्थी 50 रुपए पंजीकरण शुल्क जमा करना होगा.

एमपीयूएटी ने 2 सालों में अर्जित की दर्जनों उपलब्धियां

उदयपुर : 15 अक्तूबर को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौघोगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि उत्तरोत्तर प्रगति के लिए उन्होंने हमेशा टीम वर्क की अवधारणा में विश्वास रख कर काम किया है. आप चाहे कितने ही विद्वान हों, साधनसंपन्न हों, ऊंचे पद पर हों, अकेले कुछ भी हासिल नहीं कर सकते.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक पिछले दिनों यहां सीडीएफटी सभागार में अपने कार्यकाल के 2 साल पूरे होने पर आयोजित अभिनंदन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि हम सभी एकदूसरे को सम्मान दे कर ही कार्यस्थल को घर जैसा बना सकते हैं. किसी ने सच कहा है, “अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग आते गए, कारवां बनता गया”.

उन्होंने कहा कि जब मैं इस विश्वविधालय में पहली बार आया था, तब अकेला ही था, आज 2 साल बाद 4,000 लोगों का साथ मिल गया और एक पूरा एमपीयूएटी परिवार हो गया है, मेरे साथ.

इस मौके पर कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने विगत 2 साल में विश्वविद्यालय द्वारा अर्जित उपलब्धियों का जिक्र किया. साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय अधिकारियों व कार्मिकों के समग्र प्रयासों से ही एमपीयूएटी का परचम राष्ट्रीय स्तर पर फहरा रहा है. विश्वविद्यालय के अधीन आज 7 महाविद्यालय, 2 क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, 2 उपक्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, एक बारानी अनुसंधान केंद्र और 8 कृषि विज्ञान केंद्र दक्षिणी राजस्थान को कृषि क्षेत्र में उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर अग्रसर कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि राज्यपाल की ’स्मार्ट विलेज इनीशिएटिव’ योजना के तहत राजस्थान के सभी राज्य वित्त पोषित विश्वविद्यालयों में एमपीयूएटी सालों से पहले स्थान पर है और आगे भी पहले स्थान पर रहेगा, यह प्रयास जारी है. इस के लिए विगत एक साल में राजभवन से 2 बार प्रशंसापत्र भी प्राप्त हुए. स्मार्ट गांव के रूप में छाली, मदार व ब्राह्णों की हुंदर इस का जीताजागता उदाहरण है. राज्यपाल ने स्वयं अन्य विश्वविद्यालय के कुलपतियों को इन गांवों का अवलोकन करने की सलाह भी दी. इसी क्रम में अब विश्वविद्यालय 5 गांवों को गोद ले कर स्मार्ट विलेज बनाने को तत्पर है.

उन्होंने इस बात की भी खुशी जाहिर की कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मक्का की नई किस्म प्रताप संकर मक्का- 6 को राष्ट्रीय स्तर पर चिन्हित व अनुमोदित किया गया. इस के लिए 8 कंपनियों से एमओयू किया गया, जिस से विश्वविद्यालय के रेवेन्यू में बढोतरी होगी. साथ ही, 5 किस्में इसबगोल, असालिया, अश्वगंधा, ज्वार एवं मंगफूली की भी रिलीज के लिए चिन्हित की गई. यही नहीं, पिछले दो वर्षो में विश्वविद्यालय ने 54 पेटेंट व 77 एच इंडेक्स हासिल किए है, जो विश्वविद्यालय के मौलिक और नवाचारी शोध क्षमताओं का परिचायक है.

MPUAT

अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष मनाने में भी विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है. मिलेट्स पर सचित्र मार्गदर्शिका, जागरूकता रैलियां, कार्यशालाएं आयोजित की गईं. 4 किसान मेलों का आयोजन किया गया. साथ ही, मिलेट हट की स्थापना के अलावा कृषि महाविद्यालयों, अनुसंधान केंद्रों और केवीके में मिलेट वाटिकाएं विकसित की गईं.

विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध शिक्षाविद पूर्व कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा ने डा. अजीत कुमार कार्नाटक की कुशल नेतृत्व क्षमता और दूरदृष्टि की सराहना करते हुए कहा कि मात्र 2 सालों में एमपीयूएटी ने जो उपलब्धियां अर्जित की हैं, प्रशंसनीय है. धरातल पर रह कर काम करना डा. अजीत कुमार कर्नाटक की प्रवृत्ति है. इसी कारण एक बेहतर टीम बन कर उम्मीद से कहीं ज्यादा अच्छे परिणाम सामने रख देती है.

उन्होंने कहा कि आगामी सालों में कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक के नेतृत्व में और भी अविस्मरणीय उपलब्धियां हासिल होंगी, इस में कोई अतिशयोक्ति नही है. प्रो. उमाशंकर शर्मा ने कहा कि नए जिले सलुंबर में केवीके की स्थापना के लिए काम किए जा रहे हैं.

शुरू में कार्यक्रम के आयोजक व डेयरी एंव खाद्य प्रौद्योगिकी महाविघालय अधिष्ठाता डा. लोकेश गुप्ता ने अतिथि स्वागत में कुलपति के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलसचिव सुधांशु सिंह, वित्त नियंत्रक विनय भाटी सहित विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, वरिष्ठ वैज्ञानिक, परिषद सदस्यों ने अतिथियों का स्वागत किया. छात्र कल्याण अधिकारी डा. मनोज महला ने कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद दिया व मंच संचालन डा. निकिता वधावन ने किया.

बढ़ेगी दुग्ध उत्पादन (Milk Production) क्षमता

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया है कि दुग्ध उत्पादन 3.5 लाख लिटर प्रतिदिन किया जाए और तरल दुग्ध बिक्री 2 लाख लिटर प्रतिदिन किए  जाने के प्रयास किए  जाएं. प्रत्येक दुग्ध संघ कम से कम 5 मिल्क बूथ बनाने का लक्ष्य निर्धारित कर उसे पूरा करे. दुग्ध संघों में कार्यरत डेयरी प्लांट की क्षमता उपयोगिता को बढ़ा कर 50 फीसदी किया जाए.

दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने पिछले दिनों विधान भवन स्थित अपने कार्यालय कक्ष में विभागीय कार्यों के पिछले  एक सप्ताह में क्रियान्वयन की समीक्षा की. उन्होंने कहा कि दुग्ध विकास विभाग का लक्ष्य प्रदेश की जनता को शुद्ध दूध उपलब्ध कराना है और दुग्ध उत्पादन से जुड़े किसानों, पशुपालकों को दुग्ध मूल्य का नियमित रूप से भुगतान कराना प्राथमिकता है.

उन्होंने विभागीय अधिकारियों को बंद पड़ी दुग्ध समितियों को पुनः चालू किए जाने और वर्तमान में संचालित समितियां किसी भी कारण से बंद न किए जाने पर विशेष बल दिया.

मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा कि नंद बाबा एवं गोकुल पुरस्कार के वित्तीय वर्ष 2023-24 के लाभार्थियों की चयन सूची तैयार कर उन्हें पुरस्कृत करने की कार्यवाही शीघ्र पूरी की जाए. दुग्ध विकास मंत्री ने कानपुर, गोरखपुर और कन्नौज डेयरी प्लांट का संचालन एनडीडीबी को दिए जाने के संबंध में हुई प्रगति की भी समीक्षा की और कहा कि जो भी औपचारिकताएं शेष या अपूर्ण हैं, उन्हें शीघ्र पूरा किया जाए. प्रदेश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए नई समितियों के गठन एवं पुनर्गठन का लक्ष्य निर्धारण किया गया है, उसे सुदृद्ध कार्ययोजना बना कर शीघ्र पूरा किया जाए. साथ ही, उन्होंने कहा कि पराग के उत्पादों की मार्केटिंग कर विशेष ध्यान दिया जाए.

उन्होंने निर्देश दिए कि किसानों एवं पशुपालकों को उन के दुग्ध मूल्य का भुगतान निर्धारित समयावधि में किया जाए और देरी न होने पाए. वर्तमान भुगतान के साथ ही बकाया धनराशि का भी भुगतान कर भुगतान प्रक्रिया को नियमित किया जाए और अवगत कराया गया कि वर्तमान में 18108 निबंधित समितियां हैं, जिस के सापेक्ष 7094 कार्यरत समितियां हैं. प्रत्येक दुग्ध संघ द्वारा 2 दुग्ध समितियों का भ्रमण एवं अनुश्रवण किया जा रहा है. पिछले एक माह में 775 कार्यरत एवं 459 अकार्यरत दुग्ध समितियां कुल 1234 दुग्ध समितियों में भ्रमण किया गया. 169 अकार्यरत समितियों को कार्यरत किया गया.

बैठक में दुग्ध विकास विभाग के प्रमुख सचिव के. रवींद्र नायक ने मंत्री को आश्वस्त करते हुए कहा कि उन से प्राप्त दिशानिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाएगा. उन्होंने अधिकारियों को निर्देशित किया कि जिन दुग्ध संघों द्वारा अभी भी दुग्ध मूल्य भुगतान में उदासीनता बरती जा रही है, उन के द्वारा भुगतान कार्य गंभीरता से किया जाए.

उन्होंने अधिकारियों को समितियों की संख्या बढ़ाए जाने के संबंध में तत्परता से काम किए जाने के निर्देश दिए. बैठक में गठन/पुनर्गठन के सापेक्ष संचालित दुग्ध समितियां, दुग्ध समितियों द्वारा भ्रमण, डेयरी प्लांट की उपयोगिता क्षमता, दुषा उपार्जन, तरल दुग्ध बिक्री, बकाया दुग्ध, मूल्य भुगतान आदि की गहन समीक्षा की गई.

बैठक में पीसीडीएफ के प्रबंध निदेशक आनंद कुमार सिंह, दुग्ध आयुक्त राकेश कुमार मिश्रा, पीसीडीएफ के डा. मनोज तिवारी, नयन तारा सहित शासन के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.