पर्यावरण रक्षा (Environmental Protection) के नाम पर पेड़ लगाने का दिखावा

आजादी के बाद से अब तक हम ने देश में जितने भी पौधे रोपित किए, अगर उन में से  50 फीसदी भी जिंदा होते और जंगल बचाए जाते, तो हरित संपदा में हम  दुनिया में नंबर वन होते. यहां मनुष्य को खड़े होने के लिए जगह नहीं बचती.

डेढ़ 2 महीने की चुनावी कवायद के बाद देश की  सरकार बनने की आपाधापी के दरमियान 5 जून का ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ कब दबे पांव आया और निकल लिया, यह आम अवाम को तो पता भी न‌ चला. किंतु सोशल मीडिया व दूसरे दिन के समाचारपत्रों से पता चला कि देशभर में विभिन्न संस्थाओं, सरकारी कार्यालयों में हीट वेव में भी जबरदस्त वृक्षारोपण कार्य संपन्न हुआ है.

पिछले 30 वर्षों से हम खुद पेड़ लगा रहे हैं, पर आज तक यह नहीं समझ पाए कि हमारे देश के किस विद्वान के दिमाग की उपज थी कि यहां ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ 5 जून के दिन ही हो और इस दिन वृक्षारोपण किए जाएं, जबकि विशेषज्ञों का मत है कि असिंचित क्षेत्रों में वृक्षारोपण का आदर्श समय जुलाईअगस्त माह होना चाहिए.

अब चूंकि यह रिवाज बन गया है, इसलिए शासकीय कार्यालयों में, स्कूलों में, अधिकारी, नेता, शिक्षक, बच्चे सभी 5 जून को वृक्षारोपण कर रहे हैं, वन विभाग इस में सब से आगे है,  जबकि देश के ज्यादातर हिस्सों में अभी भी नौतपा का ताप उतरा नहीं है. कई जगहों पर लू चल रही है.

लू से बचने के तमाम तरीकों की जानकारी रखते हुए पढ़ेलिखे जानकार तमाम डाक्टर एवं दवाओं के रहते भी मौत के मुंह में समा रहे हैं. ऐसी हालत में 5 जून को लगाए गए ये नन्हे पौधे 48 घंटे भी जिंदा रह पाएंगे, यह कहना कठिन है.

यह भी सच है कि भारत में मानसून आमतौर पर  15 जून के बाद ही सक्रिय हो पाता है, पर ‘पर्यावरण दिवस’ के नाम पर सरकारी वृक्षारोपण की खानापूर्ति 5 जून को ही होना अनिवार्य है.

इस काम में हमारे वन विभाग हर साल सब को पीछे छोड़ देते हैं. स्वनाम धन्य वन विभाग को इस में सब से आगे होना भी चाहिए, क्योंकि देश के हजारों साल पुराने व जैव विविधता से समृद्ध लगभग सभी जंगलों को तो इन्होंने काट कर, कटवा कर, बेच कर फूंकताप लिया है. इन की सफाईपसंदगी का यह आलम है कि जंगलों में ठूंठ तक नहीं छोड़ा गया है. इधर कुछेक दशकों से वृक्षारोपण नामक नए चारागाह को जंगलों की रक्षा के नाम पर बनी ये बाड़ें निर्द्वंद्व भाव से चट करते जा रही हैं.

हर साल नए पेड़ लगाने, पुराने वनों का सुधार, परती भूमि संरक्षण आदि तरहतरह की योजनाएं बना कर सरकार से जनता के पैसे लो, वृक्षारोपण की नौटंकी करो, फिर उन की देखरेख भी मत करो, ताकि सारे पौधे मर जाएं. अगले साल फिर योजना बनाओ, फिर पैसे लो, फिर वृक्षारोपण की नौटंकी करो. यही इस साल भी हुआ.

वृक्षारोपण की फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर डालना एक रिवाज बन गया है, बस किसी तरह समाचारपत्र में यह छप जाए कि अमुक ने पौधा रोप कर देश के पर्यावरण पर एहसान कर दिया है, अब आगे पौधा पनपे या सूख जाए.

हमारे देश में सरकारी वृक्षारोपण की हालत यह है कि आजादी के बाद वृक्षारोपण कर जितने पौधे लगाए गए, उन में से 50 फीसदी भी अगर जिंदा रह जाते तो या देश विश्व का सब से हराभरा  देश होता.

5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में हम 1973 से लगातार इसे मना रहे हैं. हर साल पर्यावरण की रक्षा के लिए विभिन्न काम निर्धारित किए जाते हैं, जिस पर हर देश से पूरे वर्ष प्राथमिकता के आधार पर ठोस काम करने की अपेक्षा की जाती है.

सऊदी अरब ‘पर्यावरण दिवस समारोह 2024’ की मेजबानी कर रहा है. पर्यावरण की रक्षा के लिए इस वर्ष भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे से निबटने पर संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य अपना ध्यान केंद्रित करते हुए बहुद्देशीय योजनाओं पर काम कर रहे हैं. हम इस में क्याक्या कर रहे हैं, यह सोचने का अलग विषय है. हमारे देश में पर्यावरण रक्षा के नाम पर केवल पेड़ लगाने की नौटंकी मात्र की जाती है. लगाने के बाद इन पेड़ों को इन के हाल पर छोड़ दिया जाता है. इन में से ज्यादातर पौधे मर जाते हैं.

पेड़ों के मामले में सब से धनी देश कनाडा में प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या 10,163 है, वहीं हमारे देश में पिछले 7 दशकों की सतत नौटंकी के बावजूद प्रति व्यक्ति महज 28  पेड़  बचे हैं. विश्व में सब से गरीब देशों में शुमार किए जाने वाला देश इथोपिया भी हरित संपदा के मामले में प्रति व्यक्ति 143 पेड़ों के साथ हम से 5 गुना ज्यादा समृद्ध है.

इस पर्यावरण दिवस की खानापूर्ति करने के लिए हम ने भी पीपल का पेड़ अपने “इथनो मैडिको हर्बल गार्डन” में लगाया है.

खैर, हम ने जो पीपल का पौधा रोपा है, वह तो हम  हर हाल में जिंदा रख लेंगे, पर क्या आप सभी, जिन्होंने इस दिन पौधों का रोपण किया है, क्या ईमानदारी से वादा करेंगे कि आप ने इस बार जितने पौधे रोपे हैं, उन्हें हर हाल में जिंदा रखेंगे?

पूसा संस्थान में ‘नवोन्मेषी किसान सम्मेलन’ का आयोजन

नई दिल्ली : राजधानी नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा संस्थान) के डा. बीपी पाल सभागार में 6 जून, 2024 को देशभर के प्रगतिशील किसानों का सम्मेलन होने जा रहा है, जिस में इस वर्ष 6 राज्यों के 7 किसानों को ‘अध्येता किसान’ यानी फैलो फार्मर और 22 राज्यों के 33 किसानों को ‘नवोन्मेषी किसान’ यानी इनोवेटिव फार्मर पुरस्कार  से सम्मानित किया जाएगा. इस में 8 राज्यों से 9 महिला किसान, 6 आदिवासी किसान  शामिल हैं.

सभी पुरस्कृत किसानों ने खेती के विभिन्न मौडल तैयार कर अपनेअपने क्षेत्रों में स्थानीय रूप से समेकित कृषि प्रणाली का विकास किया है. इस में खाद्यान्न फसलें, बागबानी आदि शामिल किया है. कई सफल किसानों ने फसल विविधीकरण को अपना कर अपनी आय को बढ़ाया है.

इस के अलावा हाईटैक कृषि पद्धतियों जैसे संरक्षित खेती, गैरपारंपरिक ऊर्जा स्रोत, सोलर प्रणालियों, जल संसाधन के संरक्षण एवं उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली तकनीकों को अपनाया. विभिन्न किसानों ने आईपीएम, उन्नत कृषि मशीनरी और हाइड्रोपोनिक्स इत्यादि को अपनी खेती में शामिल किया है.

पूसा संस्थान (Pusa Institute)

अनेक किसानों ने उत्पादन के साथसाथ प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग, मूल्य संवर्धन और विपणन के लिए भी नवाचार किए हैं. किसानों ने प्रमुख रूप से खाद्यान्न फसलों के बीज उत्पादन के क्षेत्र में बहुत योगदान किया. इस में सतत कृषि की पद्धतियों को अपनाया, जिस में प्रमुख रूप से जैविक नाशीजीव, जैव उर्वरक, केंचुआ खाद, बायोगैस स्लरी के उपयोग के साथसाथ उत्पादन इकाइयों का निर्माण किया. फसलों के अवशेष प्रबंधन के लिए पूसा डीकंपोजर का इस्तेमाल किया और पराली से खाद बनाई. किसानों की एक बड़ी उपलब्धि यह रही है कि उन्होंने इन उन्नत तरीकों को न स्वयं अपनाया, बल्कि साथी किसानों को भी हस्तांतरित किया. उन्होंने किसान उत्पादक संगठन, स्वयं सहायता समूह भी बनाया और रोजगार भी पैदा किया.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर साल लगभग 40 किसानों को चिह्नित कर सम्मानित करता है. संस्थान में साल 2008 से नवोन्मेषी किसान सम्मान और साल 2012 से अध्येता किसान सम्मान की शुरुआत की गई.  अब तक देशभर के विभिन्न राज्यों के 400 से अधिक किसानों को भाकृअसं-अध्येता किसान और नवोन्मेषी किसान के रूप में सम्मानित किया जा चुका है.

इस अवसर पर 4 पद्मश्री से सम्मानित किसानों को भी आमंत्रित किया गया. इस एकदिवसीय कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण ‘किसान, वैज्ञानिक और विद्यार्थी संवाद’ है.

इस कार्यक्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उपमहानिदेशक (कृषि प्रसार) डा. यूएस गौतम, पूसा संस्थान के निदेशक डा. एके सिंह, संस्थान के सभी संयुक्त निदेशक और सभी संभागाध्यक्ष एवं कृषि छात्र भाग ले रहे हैं.

इस ज्ञानमंथन से जहां एक ओर सम्मानित किसानों को परस्पर संवाद करने का मौका मिल रहा है, वहीं विशेषज्ञों को भावी अनुसंधान की दिशा तय करने और विद्यार्थियों को भी प्रेरणा मिलेगी.

यह बहुआयामी कार्यक्रम संस्थान के निदेशक डा. एके सिंह और संयुक्त निदेशक (प्रसार) डा. आरएन पड़ारिया भाकृअसं, नई दिल्ली के नेतृत्व में आयोजित किया जा रहा है.

किसान पाठशाला में मिल रही कृषि तकनीकी (Agricultural Technology) जानकारी

बस्ती : खरीफ 2024 में बस्ती मंडल के समस्त जनपद में ग्राम पंचायत स्तर पर गोष्ठी/किसान पाठशाला का आयोजन प्रत्येक ग्राम पंचायत पर 1 जून से 14 जून 2024 तक जारी है. यह जानकारी देते हुए संयुक्त कृषि निदेशक अविनाश चंद्र तिवारी ने बताया कि दलहन विकास, तिलहन विकास, मिलेट्स पुनरुद्धार त्वरित मक्का विकास योजना एवं आरकेबीवाई योजना के अंतर्गत बस्ती जिले में 677, संत कबीर नगर में 433 एवं सिद्धार्थनगर में 654 किसान पाठशालाओं का आयोजन कराया जाना है.

प्रत्येक किसान पाठशाला में 80 से 100 किसानों की सहभागिता के साथ जनप्रतिनिधियों, एफपीओ के सदस्यों की प्रतिभागिता कराई जानी है.

उन्होंने बताया कि प्रत्येक ग्राम पंचायत के लिए 2 मुख्य खरीफ फसलों जो फसल बीमा के लिए अधिसूचित हो, को चिन्हांकित कर किसानों को फसल उत्पादन नवीनतम तकनीकी की जानकारी दी जाएगी.

किसान पाठशाला में उस विकास खंड में पुरस्कृत/प्रगतिशील किसान के द्वारा अधिक उत्पादन करने के संबंध में बात करा कर किसानों को एफपीओ के गठन/पराली प्रबंधन/डिजिटल क्राप सर्वे/आपदा प्रबंधन/प्राकृतिक खेती धान की डीएसआर विधि दलहन, तिलहन, मक्का उत्पादन तकनीकी, कृषि विभाग की विभिन्न योजनाएं जैसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, सबमिशन औन एग्रीकल्चर ऐक्सटेंशन, सबमिशन औन एग्रीकल्चर मेकैनाइजेशन, पीएम कुसुम (सोलर पंप), पीएम किसान आदि एवं सहयोगी विभाग उद्यान, मत्स्य, पशुपालन, गन्ना, रेशम आदि विभागों द्वारा संचालित योजनाओं और चिन्हित फसल उत्पादन की तकनीकी जानकारी दी जाएगी. सुविधानुसार गोष्ठी/पाठशाला में ड्रोन का प्रदर्शन और उस के तकनीकी का प्रचारप्रसार भी कराया जाएगा.

उन्होंने किसानों से कहा है कि अपने जनपद के कृषि विभाग के अधिकारीयों/कर्मचारियों से संपर्क कर निर्धारित तिथि को ग्राम पंचायत स्तर पर गोष्ठी/किसान पाठशाला में प्रतिभाग करें, जिस से विभागीय योजनाओं के साथसाथ कृषि में उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए नईनई तकनीकी जानकारी प्राप्त कर सके.

धान थ्रैशर मशीन (Paddy thresher machine) को मिला पेटेंट

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक और उपलब्धि को विश्वविद्यालय के नाम किया है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई ड्रायर, डी हस्कर और पौलिशर के साथ एकीकृत धान थ्रैशर मशीन को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय की ओर से पेटेंट मिल गया है.

विश्वविद्यालय के कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह मशीन किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगी. मशीन का आविष्कार महाविद्यालय के फार्म मशीनरी और पावर इंजीनियरिंग विभाग के डा. मुकेश जैन, आईसीएआर के पूर्व एडीजी डा. कंचन के. सिंह और आईआईटी दिल्ली की प्रो. सत्या की अगुआई में किया गया. इस मशीन को भारत सरकार की ओर से इस का प्रमाणपत्र मिल गया है.

वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का नतीजा है विश्वविद्यालय की उपलब्धियां

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि विश्वविद्यालय को लगातार मिल रही उपलब्धियां यहां के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का ही नतीजा हैं. विकसित की गई इस नई तकनीक के लिए पेटेंट मिलने पर उन्होंने सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी.

उन्होंने कहा कि यह बहुत ही गौरव की बात है कि इस तरह की तकनीकों के विकास में सकारात्मक प्रयासों को विश्वविद्यालय हमेशा प्रोत्साहित करता रहता है.

वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए उन्होंने भविष्य में भी इसी प्रकार निरंतर प्रयास जारी रखने की अपील की.

उन्होंने आगे कहा कि चावल लोगों के मुख्य खाद्य पदार्थों में शामिल है. अब किसान खेत में ही मशीन का उपयोग कर के धान के दानों को फसल से अलग कर सकेंगे, सुखा सकेंगे, भूसी निकाल सकेंगे (भूरे चावल के लिए) और पौलिश कर सकेंगे (सफेद चावल के लिए). पहले किसानों को धान से चावल निकालने के लिए मिल में जाना पड़ता था. अभी तक खेत में ही चावल निकालने की कोई मशीन नहीं थी. अब किसान अपने घर के खाने के लिए भी ब्राउन राइस (भूरे चावल) निकाल सकेंगे. सफेद चावल की तुलना में इस में ज्यादा पोषक तत्व होते हैं, क्योंकि यह किसी रिफाइन या पौलिश प्रक्रिया से नहीं गुजरता. सिर्फ इस के ऊपर से धान के छिलके उतारे जाते हैं. इस से शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैलोरी मिलती है. साथ ही, यह फाइबर, विटामिन और मिनरल्स का एक अच्छा स्रोत है. ब्राउन राइस खाने से कोलेस्ट्रोल नियंत्रित रहता है. यह मधुमेह, वजन और हड्डियों को तंदुरुस्त रखने के साथसाथ रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

धान थ्रैशर की मुख्य विशेषताएं

कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने बताया कि यह मशीन 50 एचपी ट्रैक्टर के लिए अनुकूल है. ड्रायर में 18 सिरेमिक इंफ्रारेड हीटर (प्रत्येक 650 वाट) शामिल है. इस मशीन की चावल उत्पादन क्षमता 150 किलोग्राम प्रति घंटा तक पहुंच जाती है. इस मशीन की अनुमानित कीमत 6 लाख रुपए है.

इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, फार्म मशीनरी और पावर इंजीनियरिंग विभाग की अध्यक्ष डा. विजया रानी, डा. अमरजीत कालड़ा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य, डा. अनिल सरोहा व श्याम सुंदर शर्मा उपस्थित रहे.

तिलहनी फसलों (Oilseed Crops) पर अनुसंधान , बढ़ेगी पैदावार

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 31 मई, 2024 को तिलहनी फसलों में अनुसंधान को गति प्रदान करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान, राजेंद्र नगर, हैदराबाद से सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर किए. इस अवसर पर डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने कहा कि हमारे राष्ट्र ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है, परंतु तिलहन व दलहन फसलों में आज भी हमें उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है. हमारी संपूर्ण जनसंख्या को तिलहन व दलहन आपूर्ति के लिए हमें इन का आयात करना पड़ता है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक उपज देने वाली किस्मों की आवश्यकता बताई. साथ ही, उन्होंने कहा कि तिलहनी फसलों के पैकेज एंड प्रैक्टिस में सुधार अत्यंत आवश्यकता है एवं उच्च कोटि के अनुसंधान द्वारा तिलहनी फसलों के हर पहलू पर नई तकनीकी किसानों को उपलब्ध कराई जानी चाहिए.

इस अवसर पर डा. रवि कुमार माथुर, निदेशक, भारतीय तिलहन अनुसंधान केंद्र ने कहा कि इस सहमतिपत्र के हस्ताक्षर के बाद दोनों ही संस्थाओं में तिलहनी फसलों पर संयुक्त रूप से अनुसंधान किए जा सकेंगे. दोनों संस्थाओं के विशेषज्ञ, वैज्ञानिक एवं विद्यार्थी उपलब्ध संसाधनों का लाभ उठा सकेंगे.

सहमतिपत्र के अनुसार, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के छात्र हैदराबाद जा कर तिलहनी फसलों पर उच्च कोटि का अनुसंधान वहां के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में कर सकेंगे. डा. अरविंद वर्मा, अनुसंधान निदेशक, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने इस अवसर पर सहमतिपत्र की विभिन्न तकनीकी पहलुओं पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि भारतीय तिलहन अनुसंधान केंद्र मुख्य रूप से 6 तिलहनी फसलों जैसे अरंडी, अलसी, तिल, कुसुम, सूरजमुखी एवं नाइजर पर अनुसंधान कर रही है.

यह सभी फैसले जलवायु अनुकूलित फैसले हैं और वर्तमान में बढ़ती हुई स्वास्थ्य जागरूकता को देखते हुए इन सभी तिलहनी फसलों की मांग बहुत अधिक है, जिस से कि इन फसलों में अनुसंधान व उत्पादन बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं. ऐसे में इस सहमतिपत्र के अनुसार, दोनों संस्थान अनुसंधान, शिक्षण व प्रसार के क्षेत्र में संयुक्त रूप से काम कर राष्ट्र के तिलहन उत्पादन को बढ़ाने में अपना अतुलनीय योगदान दे सकते हैं. सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर के समय विश्वविद्यालय की वरिष्ठ अधिकारी व परिषद के सदस्य भी उपस्थित रहे.

बंदर के मोतियाबिंद (Cataract) का हुआ सफल आपरेशन

हिसार : लुवास के कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा के मार्गदर्शन में पशु चिकित्सा महाविद्यालय हिसार के पशु शल्य चिकित्सा एवं रेडियोलौजी विभाग में अभी हाल में ही स्थापित पशु नेत्र चिकित्सा इकाई में एक अंधे बंदर का सफलतापूर्वक मोतियाबिंद का आपरेशन किया गया. पूरे हरियाणा में बंदर के मोतियाबिंद की पहली सर्जरी है.

विभागाध्यक्ष डा. आरएन चौधरी ने बताया कि यह बंदर हांसी के मुनीष द्वारा बिजली के करंट से झुलसने के बाद बचाया गया. शुरू में उस के शरीर पर जलने के कई घाव थे. वह चलनेफिरने में असमर्थ था. कई दिनों की सेवा व उपचार के बाद जब बंदर चलने लगा, तो उन्होंने पाया कि बंदर अंधा है. इस के बाद तब बंदर के मालिक उपचार के लिए लुवास के सर्जरी विभाग में लाए.

पशु नेत्र चिकित्सा इकाई में जांच के उपरांत डा. प्रियंका दुग्गल ने पाया कि बंदर की दोनों आंखों में सफेद मोतिया हो गया है. एक आंख में विट्रस भी क्षतिग्रस्त हो चुका था, अतः दूसरे आंख की सर्जरी की गई और सर्जरी के पश्चात बंदर देखने लग गया. बंदर की लौटी रोशनी देख कर पशु प्रेमी मुनीश और उन के साथियों ने सर्जरी टीम का तहेदिल से धन्यवाद किया.

डा. प्रियंका व उन की टीम भी सर्जरी की सफलता से काफी उत्साहित है. कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा, डीन डा. गुलशन नारंग व अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल ने पशु कल्याण व बंदर में फेकोइमलसिफिकेशन द्वारा सफलतापूर्वक मोतियाबिंद की सर्जरी के लिए टीम सर्जरी को बधाई दी एवं भविष्य में पशु चिकित्सा एवं पशु कल्याण में और नए आयाम स्थापित करने का संदेश दिया है.

सीड पार्क स्थापित कर बढ़ेगा बीज उत्पादन (Seed production)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के किसानों को गुणवत्तायुक्त बीज की उपलब्धता प्रदेश में ही बीजों का उत्पादन करा कर प्रदेश की जरूरत के अनुसार सुनिश्चित कराने के लिए “सीड पार्क” की स्थापना के संबंध में एक कार्यशाला का आयोजन कृषि भवन, लखनऊ में अपर मुख्य सचिव कृषि डा. देवेश चतुर्वेदी की अध्यक्षता में किया गया.

अपर मुख्य सचिव कृषि डा. देवेश चतुर्वेदी द्वारा अवगत कराया गया कि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करते हुए किसानों की आय बढ़ाना है. इस के लिए बीज एक क्रिटिकल एलिमेंट है. बीज की उच्च उत्पादकता के साथ ही गुणवत्ता का भी ध्यान रखना जरूरी है. बीज क्लाइमेट चेंज के अनुकूल वातावरण में भी उच्च उत्पादकता दे सके और घरेलू व ऐक्सपोर्ट दोनों स्थितियों के लिए भी परफैक्ट हो, किसानों की मांग के अनुसार उन के क्षेत्र के लिए प्रजाति उपलब्ध कराई जाए.

प्रदेश की जरूरत के अनुसार बीजों का उत्पादन प्रदेश में ही कराया जाए, जिस एग्रोक्लिमेटिक जोन में जिस प्रजाति के बीज की आवश्यकता हो, उस को वहीं पर उत्पादित करा कर किसानों को उपलब्ध कराया जाए, बाहर के प्रदेश पर बीजों के लिए निर्भरता न रहे, प्रदेश अपने किसानों के लिए बीज की आवश्यकता की पूर्ति में आत्मनिर्भर हो सके, इस के लिए सभी बीज उत्पादक कंपनियों का आवाहन किया कि प्रदेश सीड पार्क की स्थापना की नीति बना रहा है. उस को सभी बीज उत्पादक कंपनी एवं कारपोरेट सभी लोग अपने सुझाव भी दे, राज्य सरकार एक कौमन फैसिलिटी सैंटर के साथ खेतीयोग्य जमीन से ले कर सीड पार्क की स्थापना के लिए जरूरी सभी चीजों में उन को मदद करने को तैयार है, एफपीओ को भी बीज उत्पादन में जोड़ा जाए. प्रदेश सरकार की तरफ से तैयार किए गए सीड पार्क का एक कोंसेप्ट नोट/ड्राफ्ट का प्रस्तुतीकरण भी कार्यशाला में किया गया.

कृषि निदेशक डा. जितेंद्र कुमार तोमर द्वारा अवगत कराया गया कि प्रदेश में कुल लगभग खरीफ एवं रबी मिला कर 60 लाख क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है, वर्तमान में 40 लाख क्विंटल के आसपास उत्पादन में हो रहा है, लगभग 20 लाख का फर्क है. इस के लिए दूसरे राज्यों से बीज पर निर्भरता रहती है, इसलिए सीड पार्क की अवधारणा के साथ कृषि विभाग किसानों को बीज अपने प्रदेश में ही उत्पादित करा कर उपलब्ध कराने के लिए आगे बढ़ रहा है.

कार्यशाला में प्रबंध निदेशक उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम डा. पंकज त्रिपाठी, निदेशक, उत्तर प्रदेश राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था सुरेंद्र बहादुर सिंह और बीज कंपनियों के प्रतिनिधियों द्वारा अपनेअपने विचार रखे गए.

कार्यशाला में अपर कृषि निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र अरविंद कुमार सिंह, अपर कृषि निदेशक तिलहन एवं दलहन सुरेश कुमार सिंह, अपर कृषि निदेशक जगदीश कुमार भट्ट, संयुक्त कृषि निदेशक ब्यूरो डा. आशुतोष कुमार मिश्र सहित अन्य सभी अधिकारियों एवं एफपीओ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सहित प्रगतिशील किसानों द्वारा प्रतिभाग किया गया.

दिल्ली में सम्मानित होंगे गन्ना किसान (Sugarcane Farmer) अचल मिश्रा

लखीमपुर खीरी : कृषि में नित नए नवाचारों के लिए जिले में अपनी अलग पहचान बनाने वाले प्रगतिशील गन्ना किसान अचल कुमार मिश्रा का आईएआरआई इनोवेटिव अवार्ड में चयन हुआ. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली में आयोजित होने वाले “नवोन्मेषी किसान” सम्मान समारोह में 6 जून, 2024 को सम्मानित किया जाएगा. लखीमपुर खीरी जिले के बिजुवा ब्लौक के ग्राम मड़ईपुरवा में रहने वाले 41 साल के प्रगतिशील गन्ना किसान अचल कुमार मिश्रा कृषि में नवाचार को ले कर जिले में ही नहीं, बल्कि देशभर में अपनी अलग पहचान बनाई है.

गन्ने के साथ करते हैं एकीकृत कृषि

अचल कुमार मिश्रा ने अपने खेतों के बीच बेहद खूबसूरत फार्म बना रखा है, जहां वे गन्ने की नर्सरी के साथ मधुमक्खीपालन, कड़कनाथ मुरगा, अजोला उत्पादन, वर्मी कंपोस्ट आदि भी बनाते हैं. अचल कुमार मिश्रा बताते हैं कि एकीकृत कृषि में लागत कम हो जाती है और उत्पादन बेहतर मिलता है.

वे आगे बताते हैं कि आज के समय में ज्यादा उत्पादन के लिए कई किसान मनमाने ढंग से रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने लगे हैं, जिस से खेती में लगात बढ़ती जाती है, इसीलिए किसान खेती को घाटे का सौदा बोलते हैं. लेकिन अगर मुरगी की खाद, वर्मी कंपोस्ट और अजोला आदि का कृषि में सही तरीके से देशी खाद बना कर प्रयोग किया जाए, तो न सिर्फ बाजार से कम उर्वरक खरीदनी होगी, बल्कि उत्पादन भी अच्छा होगा.

गन्ना किसान (Sugarcane Farmer)

अपनी खेती की सफलता को ले कर अचल कुमार मिश्रा बताते हैं कि गन्ना लंबी अवधि की फसल है, तो हम लोग क्या करते हैं, गन्ने के साथ सहफसली खेती करते हैं. जैसे, गन्ने के साथ लहसुन, सरसों, ब्रोकली आदि बीच में बो देते हैं, तो जब तक गन्ने की फसल तैयार होती है, तब तक दूसरी फसलें तैयार हो जाती हैं. इस से हमें सिर्फ गन्ने के उत्पादन का ही इंतजार नहीं करना पड़ता.

पीएम से ले कर सीएम तक कर चुके सम्मानित

प्रगतिशील गन्ना किसान अचल कुमार मिश्रा को कृषि में नवाचार और विविधीकरण को ले कर देश के प्रधानमंत्री से ले कर उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ भी सम्मानित कर चुके हैं. राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना चुके अचल कुमार मिश्रा ने बताया कि हमें कृषि में नित नई सफलता के पीछे अपने पिता को आदर्श मानता हूं.

गरमियों में दुधारू पशुओं (Milch Animals) के लिए लाभकारी लोबिया का चारा

हिसार : गरमी के मौसम में दुधारू पशुओं के लिए लोबिया चारे की फसल लाभकारी है. लोबिया की खेती प्राय: सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. यह गरमी और खरीफ मौसम की जल्द बढऩे वाली फलीदार, पौष्टिक एवं स्वादिष्ठ चारे वाली फसल है.

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने किसानों को लोबिया फसल की बिजाई संबंधी जानकारी देते हुए कहा कि हरे चारे के अलावा दलहन, हरी फली (सब्जी) व हरी खाद के रूप में अकेले अथवा मिश्रित फसल के तौर पर भी लोबिया को उगाया जाता है. हरे चारे की अधिक पैदावार के लिए इसे सिचिंत इलाकों में मई माह में और वर्षा पर निर्भर इलाकों में बरसात शुरू होते ही बीज देना चाहिए.

उन्होंने आगे बताया कि मई माह में बोई गई फसल से जुलाई माह में इस का हरा चारा चारे की कमी वाले समय में उपलब्ध हो जाता है. अगर किसान लोबिया को ज्वार, बाजरा या मक्की के साथ 2:1 के अनुपात में लाइनों में उगाएं, तो इन फसलों के चारे की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है. गरमियों में दुधारू पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ाने के लिए लोबिया का चारा अवश्य खिलाना चाहिए. इस के चारे में औसतन 15-20 फीसदी प्रोटीन और सूखे दानों में लगभग 20-25 फीसदी प्रोटीन होता है.

उन्नत किस्मों को बो कर करें अधिक पैदावार

अनुसंधान निदेशक डा. एसके पाहुजा ने बताया कि किसान लोबिया की उन्नत किस्में लगा कर चारा उत्पादन बढ़ा सकते हैं. लोबिया की सीएस 88 किस्म, एक उत्कृष्ट किस्म है, जो चारे की खेती के लिए सर्वोतम है. यह सीधी बढऩे वाली किस्म है. इस के पत्ते गहरे हरे रंग के और चौड़े होते हैं.

उन्होंने बताया कि यह किस्म विभिन्न रोगों विशेषकर पीले मौजेक विषाणु रोग के लिए प्रतिरोधी व कीटों से मुक्त है. इस किस्म की बिजाई सिंचित एवं कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में गरमी और खरीफ मौसम में की जा सकती है. इस का हरा चारा लगभग 55-60 दिनों में कटाई लायक हो जाता है. इस के हरे चारे की पैदावार लगभग 140-150 क्विंटल प्रति एकड़ है.

चारा अनुभाग के वैज्ञानिक डा. सतपाल ने बताया कि लोबिया की काश्त के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी सब से उपयुक्त होती है, लेकिन रेतीली मिट्टी में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है. लोबिया की अच्छी पैदावार लेने के लिए किसानों को खेत की बढिय़ा तैयारी करनी चाहिए. इस के लिए 2-3 जुताई काफी हैं. पौधों की उचित संख्या व बढ़वार के लिए 16-20 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ उचित रहता है. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सैंटीमीटर रख कर पोरे अथवा ड्रिल द्वारा बिजाई करें. लेकिन जब मिश्रित फसल बोई जाए, तो लोबिया के बीज की एकतिहाई मात्रा ही प्रयोग करें.

उन्होंने किसानों को सलाह दी कि बिजाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए. लोबिया के लिए सिफारिश किए गए राइजोबियम कल्चर से बीज का उपचार कर के बिजाई करें. फसल की अच्छी बढ़वार के लिए 10 किलोग्राम नाइट्रोजन व 25 किलोग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ बिजाई के पहले कतारों में ड्रिल करनी चाहिए. दलहनी फसल होने के कारण इसे नाइट्रोजन उर्वरक की अधिक आवश्यकता नहीं होती. मई माह में बोई गई फसल को हर 15 दिन बाद सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है.

मिलेट्स (Millets) उत्पाद को बढ़ावा देगा बीएयू

भागलपुर: बिहार में श्रीअन्न उत्पादन की संभावनाएं बढ़ती नजर आ रही हैं. दक्षिणी बिहार में खरीफ फसल एवं उत्तरी बिहार में गरमा फसल के रूप में श्रीअन्न उत्पाद की अपार संभावनाएं हैं. अभी बिहार के विभिन्न जिलों में किसान वर्षात एवं गरमा दोनों सीजन में कुछ इलाकों में ज्वार, बाजरा, मंडुवा/रागी, साबो, कोदो एवं चेना की खेती कर रहे हैं. अधिक उत्पादन वाली प्रजातियों से मुनाफा भी अब किसानों को ज्यादा मिलने लगा है, जिस से असिंचित इलाकों में धान के बाजाय रागी उगाना अच्छा साबित हो रहा है.

बढ़ते उत्पादन को देख कर बिहार कृषि विश्वविद्यालय अब श्रीअन्न प्रसंस्करण संयंत्र यानी मिलेट्स प्रोसैसिंग प्लांट को लगा कर किसान के उत्पाद को चावल या आटा बना कर लाभ का एक सुनहरा मौका देने वाली है. साथ ही साथ श्रीअन्न के विभिन्न मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने की मशीन लगा कर किसानों को विभिन्न उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी, जिस से किसान अपना खुद का बिजनेस बना सकते हैं.

मिलेट्स (Millets)
इस बारे में बिहार कृषि विश्वविधालय में सेंटर का एक्सीलेंस फार मिलेट्स वैल्यू चेन परियोजना द्वारा एक मीटिंग आयोजित की गई, जिसे एक्रीसेट हैदराबाद से डा. कुमार आर्चायालू, डा. हषवर्धन, डा. प्रियंका एवं दिशावोस मौजूद थे. वहीँ नार्बाद भागलपुर से चंदन सिन्हा और बीएयू के डा. आरके सोहाने, निदेशक प्रसार शिक्षा, डा. एके सिंह, निदेशक अनुसंधान, डा. आरपी शर्मा अधिष्ठाता डा. मो. फिजा अहमद निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र, डा. महेश कुमार सिंह, मुख्य अन्वेशक, डा. विरेंद्र सिंह, डा. अमरेंद्र कुमार, डा. राजेश कुमार, प्रधान केवीके, सबौर आदि के साथ 2  किसान उत्पाद संगठन के 25 किसान एवं जीविका की 12 दीदी भी प्रशिक्षण द्वारा लाभान्वित हुई.

मीटिंग का मुख्य उदेश्य किसान उत्पादक संगठनों एवं जीविका और आंगनबाड़ी के माध्यम से श्रीन्न के उत्पादन को बढ़ावा देने एवं मूल्यवर्धित उत्पादों को बढ़ावा देना और ब्रांडिंग करना है. जिस से किसानों को श्रीअन्न द्वारा अधिक लाभ दिलाया जा सके.