किसान महिलाओं को मिली सिलाई की ट्रेनिंग (Sewing Training)

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर के अंतर्गत केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान भुवनेश्वर एवं अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना द्वारा संचालित कृषिरत महिलाओं के लिए 10 दिवसीय कौशल विकास प्रशिक्षण सुरक्षात्मक कपड़ों का डिजाइन और विकास का आयोजन बड़गांव पंचायत के मदार गांव में किया गया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत महिलाओं को खेती के काम के दौरान पहनने वाले सुरक्षात्मक कपड़ों को बनाने के साथ कई अन्य कपड़ों की ड्राफ्टिंग सिलाई की ट्रेनिंग दी गई. कपड़ों की सिलाई में कई कपड़ों को बनाने का तरीका जैसे मैक्सी, कुरती, लेडीज पेंट, पजामा, टीशर्ट, ब्लाउज, सलवार के बारे में बताया गया.

मदार गांव में इसी वर्ष जनवरी, 2024 में 10 महिलाओं का समूह बना कर कस्टम हायरिंग सैंटर का शुभारंभ किया गया, जिस में 10 सिलाई मशीनें महिलाओं को दी गई थीं.

इन्हीं महिलाओं की क्षमता एवं कौशल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत इस प्रशिक्षण का आयोजन 22 जुलाई, 2024 से 31 जुलाई, 2024 तक किया गया.

प्रशिक्षण संयोजिका डा. सुधा बाबेल ने यह प्रशिक्षण केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान, भुवनेश्वर की कार्ययोजना के अंतर्गत 100 दिन में 100 महिलाओं को उद्यम एवं कौशल उन्नयन हेतु प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से प्रारंभ किया.

कोटड़ा में मशरूम (Mushroom) प्रशिक्षण

उदयपुर : अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना, अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के तत्वावधान में अनुसूचित जनजाति उपयोजना (टीएसपी) एवं अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के अंतर्गत पंचायत समिति कोटड़ा के 10-15 गांवों के कुल 60 से 80 किसानों एवं महिलाओं ने एकदिवसीय, 2 मशरूम (Mushroom) प्रशिक्षणों में भाग लिया.

राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री बाबूलाल जी खराड़ी ने भी मशरूम प्रशिक्षण का अवलोकन किया और बताया कि  व्यक्तियों की सेहत एवं अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने के लिए मशरूम की खेती को बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक मशरूम प्रशिक्षणो को संपन्न करने पर जोर दिया.

प्रशिक्षण में परियोजना प्रभारी डा. नारायण लाल मीना ने किसानों, महिलाओं एवं बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य एवं किसानों की आय को दोगुना करने के लिए खेती के साथसाथ फसल के सहउत्पादों का उपयोग कर के अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने के लिए मशरूम के पोषणीय, औषधीय महत्व, ढींगरी और दूधछाता मशरूम की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी दी, जिस में किसानों एवं महिलाओं ने पहली बार मशरूम के प्रदर्शन देख कर मशरूम को उगा कर खाने की जिज्ञासा जाहिर की.

कमलेश चरपोटा, कृषि पर्येवेक्षक ने राजस्थान सरकार की अनुसूचित जाति एवं जनजाति की कृषि से संबंधित जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी. अविनाश कुमार नागदा एवं किशन सिंह राजपूत ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की प्रायोगिक जानकारी दी. प्रशिक्षण के अंत में अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति के कुल 60 प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की खेती से संबंधित सामग्री वितरित की गई.

वर्षा सिंचित कृषि (Rainfed Agriculture) पर राष्ट्रीय कार्यशाला

नई दिल्ली: पिछले दिनों कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए), नई दिल्ली में ‘जलवायु अनुकूल वर्षा सिंचित कृषि (सीआरआरए)’ पर राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अपर सचिव और सीईओ (एनआरएए) फैज अहमद किदवई ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उपमहानिदेशक (एनआरएम) डा. एसके चौधरी, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के संयुक्त सचिव (वर्षा आधारित कृषि प्रणाली) फ्रैंकलिन एल. खोबंग और राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण के तकनीकी विशेषज्ञ (जल प्रबंधन) बी. रथ की उपस्थिति में इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया.

फैज अहमद किदवई ने ऐसे नीतिगत सुधारों का आह्वान किया, जो वर्षा सिंचित क्षेत्रों में भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों के विकास को प्राथमिकता देते हैं. वर्षा सिंचित क्षेत्र चरम जलवायु घटनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, इसलिए उन्होंने वर्षा सिंचित कृषि में जलवायु लचीलापन बनाने के लिए कुछ नवाचारी और प्रौद्योगिकी संचालित कृषि पद्धतियों पर बल दिया.

उन्होंने आरएडी योजना की क्षमता पर भी प्रकाश डाला, जिसे जलवायु अनुकूल वर्षा सिंचित कृषि (सीआरआरए) की ओर संक्रमण के लिए ‘राष्ट्रीय कृषि विकास योजना’ (आरकेवीवाई) के एकीकृत दृष्टिकोण के तहत एक घटक के रूप में लागू किया जा रहा है.

इस के अलावा उन्होंने अधिकतम संसाधन उपयोग सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न विकास कार्यक्रमों के साथ आरएडी योजना के प्रभावी अभिसरण का आह्वान किया. कार्यशाला ने राज्य और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों, कृषि विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को जलवायु लचीलापन दृष्टिकोण अपना कर वर्षा सिंचित क्षेत्रों में फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए नवाचारी रणनीतियों और प्रौद्योगिकियों पर चर्चा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया.

डा. एसके चौधरी ने कृषि और संबद्ध क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रेखांकित किया. उन्होंने एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से विभिन्न कृषि इकोसिस्‍टम में वितरित वर्षा सिंचित क्षेत्रों के समावेशी विकास के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने आईसीएआर-एनआईसीआरए योजना के अनुभव को भी साझा किया, जिसे अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार के स्तंभों पर जलवायु परिवर्तन के सभी आयामों के लिए देश में लागू किया जा रहा है. उन्होंने ब्लौक स्तरीय जोखिम मूल्यांकन एटलस और सीआरआरए पर क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को व्यावहारिक प्रशिक्षण देने पर भी बल दिया.

कार्यशाला के तकनीकी सत्रों में वर्षा सिंचित क्षेत्रों में एकीकृत कृषि प्रणाली (आईएफएस) और पशुधन व प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की जटिलताओं पर फोकस किया गया. जलवायु अनुकूल वर्षा सिंचित कृषि के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई, जिस में परिदृश्‍य आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली, वाटरशेड विकास, डिजिटल पूर्वानुमान तकनीक, चरागाह मार्गों का पुनरुद्धार और देश में स्थायी कृषि को बढ़ाने के लिए आर्थिक साक्ष्य तैयार करना शामिल है.

कार्यशाला में आरएडी योजना के लिए अद्यतन परिचालन दिशानिर्देशों और प्रमुख कार्यान्वयन चुनौतियों पर भी गंभीरता से चर्चा की गई. इस का समापन वर्षा सिंचित क्षेत्रों में जलवायु के अनुकूल और स्थिरता बढ़ाने के लिए दूरदर्शी दृष्टिकोणों के साथ हुआ. प्रतिभागियों ने कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने और देशभर के किसानों के लिए आजीविका सुरक्षा में सुधार के लिए प्रस्तावित रणनीतियों की क्षमता के बारे में आशा व्यक्त की.

बजट 2024 (Budget 2024): किसानों के साथ एक बार फिर ‘छलावा’

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट-2024 दो मायनों में अभूतपूर्व रहा. पहला तो यह कि देश के इतिहास में पहली बार किसी वित्त मंत्री ने 7 वीं बार बजट पेश किया है. हालांकि इस रिकौर्ड के बनने से देश का क्या भला होने वाला है पर इकोनौमी पर क्या प्रभाव पड़ना है, यह अभी भी शोधकर्ताओं के शोध का विषय है. दूसरा यह कि कृषि की वर्तमान आवश्यकता के मद्देनजर इस बजट में देश की खेती और किसानों के लिए ऐतिहासिक रूप से अपर्याप्त न्यूनतम राशि प्रावधानित की गई है.

यह गजब विडंबना है कि इस सब के बावजूद 2024-25 के बजट में विकसित भारत की 9 प्राथमिकताओं में कृषि को सर्वप्रथम स्थान पर रखने का दावा करने का ढोंग किया जा रहा है. इस बजट में घोषित योजनाएं और आवंटन न केवल अपर्याप्त हैं, बल्कि वे कृषि क्षेत्र में कोई भी वास्तविक सकारात्मक परिवर्तन लाने में पूरी तरह से असमर्थ हैं.

कृषि बजट : निराशा का कोहरा हुआ और भी घना

“हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,” बजट 2024 के संदर्भ में देश के किसानों के ऊपर यह लाइन बेहद सटीक बैठती है. कृषि व कृषि संबंध क्षेत्रों के लिए फरवरी, 2024 के अंतरिम बजट में 1.47 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था और वर्तमान बजट 1.52 लाख करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है, जो बहुत ही मामूली बढ़ोतरी है. यह राशि देश के कृषि क्षेत्र की विशाल जरूरतों के मुकाबले ऊंट के मुंह में जीरा है.
किसानों को बड़ी घोषणाओं और दीर्घकालिक सुधार योजनाओं की उम्मीद थी, लेकिन यह बजट उन की उम्मीदों पर पानी फेरता दिखाई देता है. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और किसान पेंशन योजनाओं का दायरा व राशि कम होती जा रही है. पुरानी योजना व नई योजनाओं के लिए कोई बड़ा आवंटन नहीं है.

किसानों का प्रीमियम हड़प कर निजी बीमा कंपनियों की बैलेंसशीट समृद्ध हो रही है, जबकि देश में प्रतिदिन बड़ी तादाद में मजबूर किसान आत्महत्या कर रहे हैं. इस से यह साफ है कि सरकार कृषि क्षेत्र के जरूरी कायाकल्प के प्रति बिलकुल ही गंभीर नहीं है.

कृषि शोध : आधेअधूरे वादे, खतरनाक इरादे

बजट में कृषि शोध की समीक्षा और जलवायु अनुकूल किस्मों के विकास का वादा किया गया है, लेकिन इस के लिए कोई ठोस फंडिंग नहीं दी गई है. कृषि शिक्षा और शोध विभाग के लिए मात्र 9941.09 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है, जो पिछले साल की तुलना में बेहद मामूली वृद्धि है. इस राशि से कृषि अनुसंधान में व्यापक सुधार की उम्मीद करना बेमानी है.

भारतीय प्रशासनिक सेवा बनाम भारतीय कृषि सेवा : विशेषज्ञता के बिना जहाज का डूबना तय है

कृषि छात्रों और कृषि वैज्ञानिकों के साथ उन फैकल्टी की तुलना में सदैव पक्षपात होता रहा है. भारतीय कृषि सेवा की लंबे समय से मांग की जाती रही है. देश की कृषि योजनाओं का निर्माण व शीर्ष स्तरीय कार्यान्वयन कृषि विशेषज्ञों के बजाय आईएएस व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा निष्पादित किया जाता है.

हमारा मकसद यहां प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की कार्यक्षमता पर सवाल उठाना नहीं है. किंतु यह भी समझना होगा कि हवाईजहाज उड़ने वाले पायलट से अगर पानी का जहाज चलवाएंगे, तो जहाज के डूबने की पर्याप्त संभावना है.

प्राकृतिक खेती : घटता बजट, खोखले दावे

गजब विडंबना है कि संसद में बजट प्रस्तुत करने के साथ अगले 2 साल में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने की योजना का जिक्र है, लेकिन इस काम के लिए मात्र 365 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जबकि पिछले साल इस काम के लिए 459 करोड़ रुपए का प्रावधान था यानी पिछले साल की तुलना में इस साल के बजट में 94 करोड़ रुपए अर्थात 20 फीसदी की कटौती की गई है. इस से भी ज्यादा आश्चर्यजनक व सत्य तथ्य यह है कि पिछले साल इस मद में सरकार ने केवल 100 करोड़ रुपए ही खर्च किए थे.

ऐसा प्रतीत होता है कि इस सरकार में एक हाथ क्या कर रहा है दूसरे हाथ को पता ही नहीं है, अन्यथा जिस मुद्दे पर प्रधानमंत्री स्वयं संसद में खड़े हो कर छाती ठोंक कर एक करोड़ किसानों को जैविक खेती से जोड़ने की बात कर रहे हों, उसी मद में 20 फीसदी की कटौती हो जाए, तो इस का मतलब यही है कि या तो प्रधानमंत्री को वस्तुस्थिति का पता नहीं है अथवा यह तथ्य जानबूझ कर उन से छुपाए गया है.

जाहिर है कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयास नाकाफी हैं और सरकार झूठे आंकड़ों से खुद को और जनता दोनों को बहला रही है.

हाईटैक डिजिटल एग्रीकल्चर : वास्तविकता व व्यवहार्यता से कोसों दूर

ड्रोन के फायदे गिनाते सरकार थकती नहीं है. पिछले बजट में एक मोटी राशि भी इस पर खर्च कर दी गई, पर इस अत्यंत महंगे खिलौने ने ज्यादातर फायदा इस के निर्माण और विपणन से जुड़ी कंपनियों को ही पहुंचाया है, बहुसंख्य किसानों तक इस का फायदा कैसे पहुंचेगा, इस का कोई प्रभावी रोडमैप दिखाई नहीं देता.

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के उपयोग से कृषि में डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने की घोषणा की गई है. लेकिन सवाल उठता है कि इस प्रक्रिया का असल मकसद क्या है? किसानों को हर सीजन में और अलगअलग फसलों के लिए औनलाइन पंजीकरण की प्रक्रिया में उलझा दिया जाता है. डिजिटल डिवाइड और डेटा दुरुपयोग की चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया गया है.

खाद्य तेल और दालों में आत्मनिर्भरता : एक दूर की कौड़ी

खाद्य तेलों और दालों में आत्मनिर्भरता के लिए मिशन शुरू करने की घोषणा की गई है, लेकिन पिछले अनुभव बताते हैं कि ऐसे कदमों का वास्तविक लाभ नहीं मिला है. जब किसानों का दलहन बाजार में आता है, उस समय उन्हें न तो सही दाम मिलता है, और न ही पर्याप्त खरीदी होती है. कालांतर में तेल आयात कर व्यापारी और कंपनियां मोटा मुनाफा कमाती हैं. सरकार की नाक के नीचे किसान लुट रहा है और व्यापारी चांदी काट रहे हैं. एमएसपी में बढ़ोतरी और बफर स्टाक बनाने जैसे प्रयास नाकाम रहे हैं. आयात पर निर्भरता और कीमतों में उतारचढ़ाव की समस्या जस की तस बनी हुई है.

फलसब्जियों की कीमतों में ठहराव : ठोस समाधान का अभाव

फलसब्जियों की कीमतों में उतारचढ़ाव के चलते महंगाई पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है. टौपअप जैसी स्कीम की असफलता इस बात का सुबूत है. फलसब्जियों के बेहतर उत्पादन, मार्केटिंग और भंडारण के लिए इस बार भी कोई ठोस वित्तीय प्रावधान नहीं किया गया है, जिस से किसानों को राहत मिल सके.

डेयरी और फिशरीज : आधे मन से आधीअधूरी घोषणाएं

डेयरी और फिशरीज के क्षेत्र में केवल झींगा उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने की बात कही गई है. देश में दूध का उत्पादन कुल खाद्यान्न से अधिक हो गया है. यह क्षेत्र पर्याप्त संभावनाओं का क्षेत्र है, लेकिन इस महत्वपूर्ण क्षेत्र के लिए भी कोई नई योजना या बड़ा आवंटन नहीं किया गया है.

कृषि सहकारिता: सहकारिता की फसल, चर गए नेता

सहकारिता आंदोलन के तुच्छ राजनीतीकरण के कारण पटरी से नीचे उतर गया है. असल किसानों को सहकारिता के फायदे के दायरे में लाने के लिए नई नीति लाने की घोषणा की गई है. लेकिन इस के सुधार का कोई नवीन रोडमैप आज भी अस्पष्ट है. इस के लिए पूर्व में गठित की गई समितियों के सुझावों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा. आमूलचूल परिवर्तन लाने वाली नवीन नीति के आने तक किसानों को कोई ठोस लाभ मिलता दिखाई नहीं देता. सहकारिता के नवीन अवतार वर्तमान ‘एफपीओ’ भी कमोबेश नई बोतल में पुरानी शराब वाली कहावत चरितार्थ कर रहे हैं.

अंततः बहुत कठिन है डगर पनघट की, आगे की राह आसान नहीं

कृषि और सहयोगी क्षेत्रों के लिए बजट 2024-25 में कोई बड़े बदलाव या घोषणाएं नहीं हैं. सरकार की प्राथमिकताओं में कृषि को पहले स्थान पर रखना एक दिखावा है. सच तो यह है कि किसानों को बड़े सुधारों और दीर्घकालिक योजनाओं एवं समग्र बजट के 15 से 20 फीसदी राशि की आवश्यकता है. जबकि सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, देश की आबादी का 70 फीसदी जोकि खेती और कृषि संबद्ध उद्योग से जुड़ा हुआ है, के लिए को बजट का मात्र 3 से 4 फीसदी 3 से 4 फीसदी राशि ही आवंटित की  जाती रही है.

वर्तमान बजट में भी नया कहने को कुछ भी नहीं है, पिछली परंपराओं को ही दोहराया गया है. कृषि के लिए बजट राशि में पहले से भी ज्यादा कटौती की गई है. किसान आंदोलन के दरमियान भाजपा नेताओं और उन के प्रवक्ताओं ने जिस तरह से देश के किसानों को तरहतरह के विशेषणों से नवाजा, गालियां दी, आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया, इस सब से देशभर के किसानों में एक कड़वाहट और नाराजगी बैठ गई है. किसानों की बहुप्रतीक्षित मांगों को पूरा करते हुए एक सकारात्मक बजट ला कर इस नाराजगी को कम किया जा सकता था, किंतु सरकार ने एक और अच्छा अवसर गवा दिया.

लुवास व कैरस लैबोरेटरीज के बीच हुआ समझौता, पशु चिकित्सा छात्रों को पुरस्कार

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार के कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा के मार्गदर्शन में कुलपति सचिवालय लुवास, हिसार में 16 जुलाई, 2024 को लुवास विश्वविद्यालय व कैरस लैबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड, करनाल के मध्य समझौता हस्ताक्षर समारोह का आयोजन किया गया.

इस अवसर पर लुवास की ओर से डा. राजेश खुराना, निदेशक मानव संसाधन एवं प्रबंधन और कारस लैब्स की ओर से प्रबंध निदेशक डा. अरुण पिलानी ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. लुवास की ओर से पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग और दूसरे पक्ष की ओर से डा. दीपक कुमार, जीएम- सेल्स एंड मार्केटिंग ने इस अवसर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.

इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य बीवीएससी एंड एएच के अंतिम वर्ष के छात्रों को छात्रवृत्ति/पुरस्कार आवंटित करना है. नैदानिक विषयों यानी मैडिसिन, सर्जरी, स्त्री रोग और क्लिनिक में उन की समग्र योग्यता (ओजीपीए) के आधार पर उन की कड़ी मेहनत और ज्ञान वृद्धि के लिए मनोबल बढ़ाने के लिए पुरस्कार दिया जाएगा.

सहयोग के अनुसार टौपर को 51,000/- रुपए, प्रथम रनरअप को 31,000/- रुपए और दूसरे रनरअप को 21,000/- रुपए के 3 पुरस्कार होंगे और यह पशु चिकित्सा शिक्षा और जागरूकता को बढ़ाने और प्रोत्साहित करने के लिए कैरस प्रयोगशालाओं की सीएसआर नीति के अनुसार सीएसआर गतिविधि का हिस्सा होगा. कैरस या उस के कार्यकारी पास होने वाले छात्रों के शपथ ग्रहण समारोह में इन पुरस्कारों का आवंटन करेंगे.

लुवास के पशु चिकित्सा स्नातक छात्रों को साल 2018 बैच से पुरस्कार दिए जाएंगे. पुरस्कार 2018 बैच के पास होने से शुरू हो कर साल 2023 में न्यूनतम 10 सालों की अवधि के लिए जारी रहेंगे.

दलहन (Pulses) के दामों में गिरावट

नई दिल्ली : उपभोक्ता मामलों के विभाग ने भारतीय खुदरा विक्रेता संघ (आरएआई) के साथ दालों के संबंध में मूल्य परिदृश्य और निर्दिष्ट खाद्य पदार्थों पर लाइसेंसिंग आवश्यकताओं, स्टाक सीमाओं और आवागमन प्रतिबंधों को हटाने के (पहला और दूसरा संशोधन) आदेश, 2024 के तहत 21जून, 2024 और 11जुलाई, 2024 में निर्धारित तुअर और चना के लिए स्टाक सीमाओं के अनुपालन पर चर्चा के लिए बैठक आयोजित की.

इस बैठक की अध्यक्षता भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग की सचिव निधि खरे ने की. आरएआई के 2300 से अधिक सदस्य हैं और देशभर में इस के 6,00,000 से अधिक बिक्री केंद्र (आउटलेट) हैं.

उपभोक्ता मामलों के विभाग की सचिव निधि खरे ने बताया कि पिछले एक महीने में प्रमुख मंडियों में चना, तुअर और उड़द की कीमतों में 4 फीसदी तक की गिरावट आई है, लेकिन इन की खुदरा कीमतों में ऐसी कोई गिरावट नहीं देखी गई है. उन्होंने थोक मंडी कीमतों और खुदरा कीमतों के बीच अलगअलग रुझानों की ओर इशारा किया, जिस से लगता है कि खुदरा विक्रेताओं को ज्यादा मुनाफा मिल रहा है.

उन्होंने यह भी बताया कि खरीफ दलहन की बोआई की प्रगति अच्छी है. सरकार ने प्रमुख खरीफ दलहन उत्पादक राज्यों में तुअर और उड़द के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए हैं, जिस में नेफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का वितरण शामिल है. कृषि विभाग सभी आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए राज्य कृषि विभागों के साथ निरंतर संपर्क में है.

मौजूदा मूल्य परिदृश्य और खरीफ संभावना को ध्‍यान में रखते हुए उन्होंने कहा कि वे दालों की कीमतों को उपभोक्ताओं के लिए किफायती बनाए रखने के सरकार के प्रयासों में हर संभव सहायता प्रदान करें.

उन्होंने आगे बताया कि बड़े खुदरा विक्रेताओं सहित सभी स्टौक होल्डिंग संस्थाओं की स्टाक स्थिति पर बारीकी से नजर रखी जा रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्धारित सीमा का उल्लंघन न हो. स्टाक सीमा का उल्लंघन, बेईमान सट्टेबाजी और बाजार से जुड़े लोगों की ओर से मुनाफाखोरी पर सरकार की ओर से कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

खुदरा उद्योग से जुड़े प्रतिभागियों ने भरोसा दिलाया कि वे अपने खुदरा मार्जिन में आवश्यक सुधार करेंगे और उपभोक्ताओं को किफायती मूल्य पर उपलब्ध कराने के लिए इसे नाममात्र स्तर पर बनाए रखेंगे.

इस बैठक में आरएआई, रिलायंस रिटेल, डी मार्ट, टाटा स्टोर्स, स्पेंसर, आरएसपीजी, वी मार्ट आदि के प्रतिनिधियों ने भाग लिया.

उत्तर प्रदेश में होगी पशुओं की गिनती (Animal Counting)

लखनऊ : प. दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान, बक्शी का तालाब, लखनऊ में 21 वीं पशुगणना की तैयारी के अंतर्गत देश के 3 राज्यों यथा उत्तर प्रदेश के साथसाथ मध्य प्रदेश एवं उत्तराखंड के राज्य/जनपदीय नोडल अफसरों को संयुक्त रूप से प्रशिक्षण प्रदान कर मास्टर्स ट्रेनर तैयार किया जाने के लिए इस एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं उत्तराखंड के कुल 175 पशु चिकित्साविदों, संख्याधिकारियों, नोडल अधिकारियों द्वारा भारत सरकार, मत्स्य, पशुपालन मंत्रालय के सहयोग से आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभाग किया गया.

उक्त कार्यक्रम का उद्घाटन प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह द्वारा किया गया.
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा कि पशुओं की गिनती के उपरांत प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण एवं तार्किक उपयोग से भविष्य की योजनाओं, विभागीय नीतियों को बनाने एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में एवं पशुपालकों के हित में नई योजनाओं और पशुपालन के क्षेत्र में रोजगार सृजन का मार्ग प्रशस्त होगा.

उन्होंने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश में पूरे देश का सर्वाधिक पशुधन है. साल 2019 की पशुओं की गिनती के मुताबिक, प्रदेश में 190.20 लाख गाय, 330.17 लाख महिषवंश, 9.85 लाख भेड़, 144.80 लाख बकरी एवं 4.09 लाख सूकर हैं. देश मे प्रत्येक 5 साल के बाद पशुओं की गिनती की जानी है. वर्तमान में 21वीं पशुगणना की तैयारी चल रही है.

उक्त अवसर पर रविंद्र,  प्रमुख सचिव, पशुधन, उप्र शासन, देवेंद्र पांडेय, विशेष सचिव, उप्र शासन, जगत हजारिका, सलाहकार (सांख्यकीय) भारत सरकार, वीपी सिंह, निदेशक, पशुपालन सांख्यकीय, भारत सरकार, डा. आरएन सिंह, निदेशक प्रशासन एवं विकास और डा. पीएन सिंह, रोग नियंत्रण एवं प्रक्षेत्र, उप्र एवं 3 प्रदेशों के प्रतिभागी उपस्थित थे.

निदेशक, प्रशासन एवं विकास, पशुपालन विभाग द्वारा अपने स्वागत भाषण में समस्त उपस्थित लोगों के साथसाथ प्रतिभागियों का भी स्वागत किया गया. उन के द्वारा प्रतिभागियों से इस महत्वपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम को अतिसंवेदनशील मानते हुए सही रूप में जानकारी प्राप्त कर पशुधन की गणना का आह्वान किया गया, ताकि सही आंकड़ों पर भविष्य की योजनाओं के सृजन में सहयोग मिल सके.

भारत सरकार से आए अधिकारियों द्वारा पशुगणना प्रत्येक 5 सालों के अंतराल पर की जाती है. पशुगणना में प्रत्येक घर, उद्यम एवं संस्थानों में पशुओं की प्रजातिवार गणना की जाती है. देश में प्रथमवार पशुगणना साल 1919 में की गई थी. इस कड़ी में अब तक कुल 20 पशुगणनाएं आयोजित की जा चुकी हैं.

20वीं पशुगणना साल 2019 में आयोजित की गई थी. उक्त पशुगणना में पहली बार टैबलेट के माध्यम से औनलाइन की गई, जिस में गणनकर्ताओं द्वारा भारत सरकार द्वारा विकसित किए गए एप पर पशुओं की गिनती की गई. आंकड़े सीधे भारत सरकार के सर्वर पर अपलोड हुए थे.

प्रमुख सचिव, पशुधन द्वारा अवगत कराया गया कि 20वीं पशुगणना की भांति इस बार भी पशुगणना एनडीएलएम (National Digital Livestock Mission) द्वारा विकसित एंड्राइड एप पर कराई जानी है, जिस के अंतर्गत एनबीएजीआर (National Bureau of Animal Genetic Resources) द्वारा पंजीकृत ब्रीड के अनुसार नस्लवार पशुओं की गिनती की जाएगी.

भारत सरकार द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, पूरे देश में एकसाथ सितंबर से दिसंबर 2024 के मध्य पशुगणना का काम किया जाना है. 21वीं पशुगणना से प्राप्त होने वाले विस्तृत एवं विश्वासपरक आंकड़े की नींव पर नीति निर्धारण से आने वाले समय में पशुपालन विभाग प्रगति के नए आयाम को प्राप्त करेगा.

21 वी पशुगणना के लिए भारत सरकार द्वारा 5 राज्यों कर्नाटक, ओड़िसा, उत्तर प्रदेश, गुजरात व अरुणाचल प्रदेश को पायलट सर्वे के लिए चयनित किया गया है.

मुख्य अतिथि द्वारा अपने संबोधन में पशुपालन को आजीविका का मुख्य स्रोत मानते हुए गुणवत्तायुक्त पशुधन उत्पादों की चर्चा के साथ वास्तविक पशुधन के आंकड़ों पर बल दिया गया. पशुधन विकास के 4 प्रमुख आयाम उन्नत पशु प्रजनन, पशु स्वास्थ्य, पशु प्रबंधन एवं पशु पोषण के क्षेत्र में समग्र प्रयास पशुधन के चहुंमुखी विकास का प्रमुख आधार सही गणना पर ही आधारित है. इसलिए प्रशिक्षण कार्यक्रम की उपयोगिता और सार्थकता पर प्रकाश डाला. साथ ही, गोवंश के समग्र विकास एवं दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिए नई तकनीकी पर बल दिया गया.

निदेशक, रोग नियंत्रण एवं प्रक्षेत्र द्वारा समस्त व्यक्तियों, विभिन्न प्रदेशों से आए प्रतिभागियों के साथसाथ इस कार्यक्रम में सहयोग प्रदान करने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान के अधिकारियों व कर्मचारियों, पशुपालन विभाग, उप्र के अधिकारियों व कर्मचारियों का आभार व्यक्त किया.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में पशुपालन विभाग, उप्र के विभिन्न अधिकारियों डा. अरविंद कुमार सिंह, अपर निदेशक, गोधन, डा. जयकेश पांडेय, अपर निदेशक, नियोजन, डा. एके वर्मा, अपर निदेशक, लघु पशु, डा. एमआई खान, संयुक्त निदेशक, सांख्यकीय, डा. संजीव शर्मा उपनिदेशक, सांख्यकीय, डा. नीलम बाला, उपनिदेशक/रजिस्ट्रार और निदेशालय पशुपालन विभाग, उप्र, लखनऊ के विभिन्न अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा प्रतिभाग किया गया.

प्राकृतिक खेती (Natural farming) से मिट्टी रहेगी स्वस्थ

भागलपुर: बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में 15-16 जुलाई 2024 को 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. विषय था, ‘पुनर्योजी कृषि हेतु प्राकृतिक खेती के तरीके’. इस संगोष्ठी में बिहार के 32 जिलों के कृषि विभाग, बिहार सरकार के सहायक तकनीकी प्रबंधक (एटीएम), प्रखंड तकनीकी प्रबंधक (बीटीएम), कृषि समन्वयक एवं जिले के प्रगतिशील किसान सहित कुल 96 प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया.

इस 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में वैज्ञानिकों ने पुनर्योजी कृषि (रिजेनेरेटिव एग्रीकल्चर) की आवश्यकता और उस के महत्व एवं उस को लागू करने के तरीकों के बारे में विस्तार से चर्चा की. प्राकृतिक खेती द्वारा पुनर्योजी कृषि को किस प्रकार अपनाया जा सकता है, उस को बताते हुए सस्य वैज्ञानिक डा. शंभू प्रसाद ने प्रशिक्षणार्थियों को बीजामृत, जीवामृत बनाने की विधियों के साथसाथ प्राकृतिक खेती के मुख्य सिद्धांतों एवं अवयवों के बारे में जानकारी दी. वहीं डा. एके झा ने पुनर्योजी कृषि में वर्मी कंपोस्ट की महत्ता एवं उस को बनाने एवं उपयोग करने के तरीके के बारे में बताया.

कार्यक्रम का समापन सभी प्रतिभागीयों को प्रमाणपत्र वितरण के उपरांत किया गया. समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे निदेशक शोध, डा. अनिल कुमार ने प्रतिभागियों को प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों एवं संगोष्ठी में बताए गए तरीकों से खेती करने की सलाह दी.

उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह बिहार राज्य के सभी किसानों के उत्थान के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं.

बिहार सरकार और बामेती, पटना के सहयोग से किसानों की खेती को लाभकारी और टिकाऊ योजनाओं एवं तकनीकों को प्रचारित एवं प्रसारित करने हेतु इस तरह के संगोष्ठी एवं कार्यक्रम को संचालित करते रहने का निर्देश भी देते हैं.

संगोष्ठी के समापन सत्र में डा. आरएन सिंह, सहनिदेशक, प्रसार शिक्षा एवं उपनिदेशक प्रशिक्षण, बिकृवि, सबौर ने बामेती, पटना के सहयोग की काफी प्रशंसा की और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी. इस कार्यक्रम में सस्य विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. संजय कुमार सहित डा. राजेश कुमार एवं डा. एके झा भी उपस्थित थे.

नरमा में सुंडी (Caterpillar in Narma) और टिंडों में गलन, कैसे करें हल

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा गुलाबी सुंडी एवं टिंडा गलन की समस्या के निवारण के लिए कुलपति प्रो. बीआर कंबोज के मार्गदर्शन में ‘कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम’ आयोजित किया गया. गांव उमरा व चूली कलां में आयोजित कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिकों ने नरमा की फसल में गुलाबी सुंडी के प्रकोप एवं टिंडा गलन की समस्या के बारे में किसानों को विस्तृत जानकारी दी. किसानों को नरमा फसल की उपरोक्त समस्याओं से नजात दिलाने के लिए ‘विश्वविद्यालय आप के द्वार’ तर्ज पर गांवगांव कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं.

गांव उमरा में प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय स्टेशन सिरसा, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय व कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया. केंद्रीय कपास अनुसंधान, सिरसा के प्रधान वैज्ञानिक डा. एसके वर्मा, विश्वविद्यालय के कपास अनुभाग के अध्यक्ष डा. करमल सिंह मलिक, कीट वैज्ञानिक डा. अनिल जाखड़, पौध रोग वैज्ञानिक डा. अनिल सैनी ने नरमा फसल में होने वाले रोगों/बीमारियों की रोकथाम के बारे में किसानों को जागरूक किया. इस तरह के कार्यक्रम जिले के कृषि अधिकारियों एवं कीटनाशक विक्रेताओं के लिए भी आयोजित किए जाएंगे, ताकि गुलाबी सुंडी की समस्या को कम किया जा सके.

अनुसंधान निदेशक डा. एसके पाहुजा ने बताया कि कपास अनुभाग समयसमय पर नरमा फसल की एडवाइजरी जारी करता है, जिस की अनुपालना कर के किसान नरमा फसल की अच्छी पैदावार ले सकते हैं. उन्होंने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कपास फसल के लिए कीट संबंधी महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं :

कीट संबंधी सलाह:

नरमा फसल में गुलाबी सुंडी की निगरानी के लिए 2 फैरोमौन ट्रैप प्रति एकड़ लगाएं या साप्ताहिक अंतराल पर कम से कम 150-200 फूलों का निरीक्षण करें. टिंडे बनने की अवस्था में 20 टिंडे प्रति एकड़ के हिसाब से तोड़ कर, उन्हें फाड़ कर गुलाबी सुंडी हेतु निरीक्षण करें. 12-15 गुलाबी सुंडी प्रौढ़ प्रति ट्रैप 3 रातों में या 5 से 10 फीसदी फूल या टिंडा ग्रसित मिलने पर कीटनाशकों का प्रयोग करें.

कीटनाशकों में प्रोफेनोफास 50 ईसी की 3 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी या क्विनालफास 25 ईसी की 3 से 4 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. सफेद मक्खी एवं हरा तेला का प्रकोप होने पर फलोनिकामिड 50 डब्ल्यूजी 60 ग्राम या एफिडोपायरोप्रेन 50 जी/एल की 400 मिलीलिटर मात्रा प्रति एकड़ का छिड़काव करें.

बीमारी संबंधी परामर्श :

जड़ गलन के प्रबंधन के लिए कार्बन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी को पौधों की जड़ों में डालें. टिंडा गलन के प्रबंधन के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड की 2 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें.

महत्वपूर्ण सस्य क्रियाएं :

बरसात के बाद पानी की निकासी का उचित प्रबंध करें. पहले खाद नहीं डाली है तो अब निराईगुड़ाई के साथ एक बैग प्रति एकड़ की बिजाई करें. अगर डीएपी पहले डाल चुके हैं, तो आधा कट्टा यूरिया प्रति एकड़ डालें.

आम बजट(General Budget) 2024 : किसानों के लिए क्या है खास

– प्राकृतिक खेती को बढ़ावा : सरकार ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिस से किसानों को रासायनिक उर्वरकों की जगह प्राकृतिक तरीकों से खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
– किसान क्रेडिट कार्ड : सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत किसानों को आसानी से ऋण देने की घोषणा की है, जिस से किसानों को अपनी जरूरतों के लिए आसानी से पैसे मिल सकें.
– सिंचाई परियोजनाएं : सरकार ने सिंचाई परियोजनाओं के लिए अधिक धन आवंटित किया है, जिस से किसानों को अपने खेतों में पानी की कमी का सामना न करना पड़े.
– फसल बीमा योजना : सरकार ने फसल बीमा योजना के तहत किसानों को उन की फसलों के नुकसान की भरपाई करने की घोषणा की है, जिस से किसानों को अपनी फसलों के नुकसान से बचाया जा सके.
– किसानों के लिए डिजिटल सेवाएं : सरकार ने किसानों के लिए डिजिटल सेवाएं शुरू की हैं, जिस से किसानों को अपनी जरूरतों के लिए आसानी से जानकारी और सेवाएं मिल सकें.

भारत सरकार द्वारा आज जो बजट पेश किया गया है, इस में किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं. यह बजट किसानों के लिए लाभकारी होगा और कृषि उत्पादन को बढ़ाने में एक नई दिशा प्रदान कर सकेगा. दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए जो प्रावधान किए गए हैं, उस से देश में उत्पादन बढ़ेगा.

ट्रेनिंग स्किल डवलपमैंट और ऐजूकेशन लोन से देश के नौजवानों को फायदा होगा, इस से कौशल विकास की दिशा में उठाया गया सही कदम माना जा सकता है. कौशल विकास से रोजगारस्वरोजगार की असीम संभावनाओं को दिशा मिलेगी. साथ ही, नौजवानों के लिए औपचारिक प्रशिक्षण से लाभ होगा.

इन प्रशिक्षकों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी, जिस से बुनियादी ढांचा और अधिक मजबूत करने की संभावनाएं रहेंगी. स्किल गैप को कम करने में प्रशिक्षण कार्यक्रमों यानी इंटर्नशिप से छात्रछात्राओं को फायदा होगा. इस से उद्योगों और शिक्षा जगत के बीच तालमेल बन सकेगा. व्यावसायिक प्रशिक्षण को एकेडमिक शिक्षा से कमतर मानने की नकारात्मक सोच सब से बड़ी चुनौती में से एक है. सब से ज्यादा नियोक्ता कुशल कार्यबल से लाभान्वित होते हैं व कौशल विकास के लिए सुविधाओं का विकास कर सकते हैं

देश में हुए एक आर्थिक सर्वे के अनुसार, उस में कहा गया है कि देश में 91.3 फीसदी नौजवान नौकरी पर रखने लायक नहीं हैं, वहीं 63 फीसदी कंपनियों ने यह बताया है कि आईटी इंजीनियरिंग सर्विसेज और सेल्स में योग श्रमिकों की बेहद कमी है. अकादमी की मदद से श्रमिकों को कुशल बनाया जा सकता है. सब से बड़ी बात है कि विभिन्न राज्यों में कई ऐसे काम हैं, जिन्हें महिलाओं को करने की इजाजत नहीं है.

उत्तर प्रदेश में 18 प्रकार के उत्पादन कार्य में महिलाएं शामिल नहीं हो सकती हैं. इस प्रकार के नियम को खत्म करने की जरूरत है. कुलमिला कर कहा जा सकता है कि इस बार के बजट से युवाओं को आगे बढ़ाने और उन को दक्ष बनाने में मदद मिल सकेगी.

नैचुरल फार्मिंग से जुड़ेंगे किसान

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नए बजट में नैचुरल फार्मिंग की तरफ रुख करने पर जोर दिया है. आने वाले 2 सालों में भारत में एक करोड़ किसानों को सर्टिफिकेशन और ब्रांडिंग की मदद से नैचुरल फार्मिंग से जोड़ा जाएगा. इन के इंप्लीमैंटेशन के लिए ग्राम पंचायतों और वैज्ञानिक संस्थानों की मदद ली जाएगी. इस के अलावा 10,000 नीड बेस्ड बायोइनपुट सैंटर भी स्थापित किए जाएंगे.

किसान क्रेडिट कार्ड

इस आम बजट में किसानों की मदद करने के लिए सरकार ने 5 राज्यों में नए किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जाने की बात कही गई है. इस के अलावा नाबार्ड के माध्यम से भी किसानों को सहायता दी जाएगी.

नई किस्मों पर जोर :

मौसम के बदलने के कारण हर साल किसानों को फसलों के खराब होने से काफी नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में बजट में कहा गया है कि सरकार 32 फसलों की 109 नई किस्में लाएगी, जो मौसम से कम प्रभावित होंगी.

दलहन और तिलहन पर खास घोषणा

सरकार किसानों को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयासरत है. सरकार ने बताया कि अपने नए बजट के तहत दलहन और तिलहन के प्रोडक्शन, स्टोरेज और मार्केटिंग को मजबूत किया जाएगा. साथ ही, सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन, सूरजमुखी जैसे तिलहनों के प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए एक खास रणनीति तैयार की जाएगी.

नए बजट में सरकार ने सब्जियों की सप्लाई चैन को मजबूत करने की बात पर भी जोर दिया है और इन के भंडारण और कलैक्शन पर ध्यान दिया है.