फसलों की नमी नापेगा नमी मीटर (Moisture Meter)

नई दिल्ली : केंद्रीय उपभोक्ता मामला विभाग ने अनाज और तिलहन में नमी के स्तर को मापने में काम आने वाले नमी मीटर के लिए मसौदा नियमों पर चर्चा करने के लिए सभी हितधारकों के साथ एक बैठक आयोजित की.

नमी मीटर एक विशेष उपकरण है, जिस का उपयोग विभिन्न पदार्थों, विशेष रूप से कृषि में अनाज और तिलहन में नमी की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है. नमी के बारे में इस से सटीक आंकड़े मिलते हैं.

इस बैठक की अध्यक्षता उपभोक्ता मामला विभाग की सचिव निधि खरे ने की. इस संशोधन का उद्देश्य अनाज और तिलहन में नमी के स्तर को मापने में नमी मीटर के लिए विनिर्देशों को शामिल करना है. नियम अनाज और तिलहन के वाणिज्यिक लेनदेन में उपयोग किए जाने वाले अनाज नमी मीटर के प्रकार अनुमोदन के लिए माप संबंधी और तकनीकी आवश्यकताओं, परीक्षण विधियों और अधिकतम स्वीकार्य त्रुटियों को निर्दिष्ट करेंगे.

इस बैठक में विभिन्न निर्माताओं, उपयोगकर्ताओं, वैज्ञानिक संस्थानों, प्रयोगशालाओं, राज्य सरकार के कानूनी माप विज्ञान विभागों और वीसीओ ने भाग लिया.

नमी मीटर इन वस्तुओं की गुणवत्ता और भंडारण उपयुक्तता निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण है. नमी के स्तर को माप कर किसान और कारोबारी अनाजों का बेहतर संरक्षण सुनिश्चित कर सकते हैं, इस के खराब होने के जोखिम को कम कर सकते हैं और भंडारण व परिवहन के लिए इष्टतम स्थिति बनाए रख सकते हैं. कानूनी माप विज्ञान नियमों में नमी मीटरों को शामिल करने के प्रस्ताव का उद्देश्य उन की सटीकता को मानकीकृत और विनियमित करना, कृषि व्यापार प्रथाओं में निष्पक्षता और पारदर्शिता बढ़ाना है.

नमी मीटर से संबंधित मसौदा नियम 30 मई, 2024 को सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध कराए गए थे, जिस में जून, 2024 के अंत तक सभी हितधारकों से टिप्पणियां आमंत्रित की गई थीं. इस बैठक के दौरान मसौदा नियमों पर प्राप्त सभी टिप्पणियों पर विस्तार से चर्चा की गई.

सभी हितधारकों ने अनाज और तिलहन में नमी के स्तर को मापने के काम आने वाले नमी मीटर को शामिल करने के लिए प्रस्तावित संशोधन का समर्थन किया. उन्होंने किसानों और कृषि क्षेत्र में शामिल अन्य हितधारकों के सर्वोत्तम हित में इन नियमों को लागू करने के महत्व पर जोर दिया.

विभाग नमी मीटरों के अलावा गैस मीटर (पीएनजी मीटर), ऊर्जा मीटर, वाहनों की गति मापने के लिए रडार उपकरण और श्वास विश्लेषकों को विनियमित करने के लिए नियम बनाने पर भी काम कर रहा है. इस के लिए निर्माताओं, उपयोगकर्ताओं और स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन सहित सभी हितधारकों के साथ सार्वजनिक परामर्श किया जा रहा है.

मशरूम के पोषणीय एवं औषधीय महत्व पर एकदिवसीय प्रशिक्षण हुआ

उदयपुर: 20 जुलाई 2024 को अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना, अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के तत्वावधान में अनुसूचित जनजाति उपयोजना (टीएसपी) के अंतर्गत ग्राम पंचायत सोम में एकदिवसीय मशरूम प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. मशरूम प्रशिक्षण में पंचायत समिति -फलासिया के कुल 22 गांवों के किसानों एवं महिलाओं ने हिस्सा लिया.

प्रशिक्षण में परियोजना प्रभारी डा. एनएल मीना मशरूम के महत्वपूर्ण गुणों, ढिंगरी व दूधछाता मशरूम की खेती के बारे में विस्तार से बताया और पंचायत समिति फलासिया के सहायक कृषि अधिकारी शिव दयाल मीणा ने कृषि में अतिरिक्त आमदनी के लिए मशरूम की खेती को बढ़ावा देने व राजस्थान सरकार की अनुसूचित जनजाति किसानों के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी.

डा. सुरेश कुमार, अविनाश कुमार नागदा एवं किशन सिंह राजपूत ने प्रशिक्षण में भाग लेने वाले प्रशिक्षणार्थियों को मशरूम की प्रायोगिक जानकारी दी और प्रशिक्षण के अंत में अनुसूचित जनजाति उपयोजना के कुल 30 प्रशिक्षणार्थियों को सामग्री वितरित की गई.

किसानों के उत्थान के लिए मिला स्कौच पुरस्कार

नई दिल्ली : बीएयू के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है, क्योंकि इस की परियोजना ‘किसानों की आजीविका के उत्थान के लिए कृषि नवाचार’ को भारत के प्रतिष्ठित स्कौच पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यह सम्मान किसानों की आजीविका बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय के अभिनव प्रयासों और प्रतिबद्धता को दर्शाता है. इस पुरस्कार को नई दिल्ली के इंडिया हैबिटैट सैंटर मेँ कुलपति डा. डीआर सिंह ने ग्रहण किया.

स्कौच पुरस्कार उन लोगों, परियोजनाओं और संस्थानों का सम्मान करता है, जो भारत को एक बेहतर राष्ट्र बनाने के लिए अतिरिक्त प्रयास करते हैं. समाज में योगदान देने में उन की असाधारण उपलब्धियों के लिए यह पुरस्कार मिलता है.

विश्वविद्यालय ने अपने प्रोजैक्ट के महत्वपूर्ण प्रभाव और क्षमता का प्रदर्शन करते हुए पहले ही ग्रैंड फिनाले मेँ स्थान सुरक्षित कर लिया है.

कुलपति डा. डीआर सिंह ने विश्वविद्यालय की परियोजना को मान्यता देने और इसे पुरस्कृत करने के लिए स्कौच अधिकारियों के प्रति आभार व्यक्त किया. उन्होंने बिहार के कृषक समुदाय के प्रति विश्वविद्यालय के समर्पित कार्य की सफलता पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि पुरस्कृत की गई यह परियोजना अन्य फसलों के साथसाथ धान, गेहूं, मक्का, बैगन और परवल जैसी आवश्यक फसलों की नई किस्मों को विकसित करने पर केंद्रित है. इस के अतिरिक्त, विश्वविद्यालय उत्पादकता में सुधार लाने के उद्देश्य से नई कृषि प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने में सब से आगे है.

डा. डीआर सिंह ने इन नवाचारों के प्रसार में विश्वविद्यालय के प्रयासों पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि अपने मीडिया सैंटर, सोशल मीडिया प्लेटफार्म और ज्ञान वाहन पहल के माध्यम से, विश्वविद्यालय यह सुनिश्चित करता है कि मूल्यवान जानकारी और प्रौद्योगिकियां किसानों तक प्रभावी ढंग से पहुंचें.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय को मिले यह अवार्ड किसानों के प्रति बीएयू की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

प्राकृतिक खेती करने वाले किसान को मिलेगी सब्सिडी (Subsidy)

लखनऊ : राजधानी लखनऊ में ‘प्राकृतिक खेती के विज्ञान पर क्षेत्रीय परामर्श कार्यक्रम’ को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री के ‘धरती मां को रसायनों से बचाने’ के सपने को पूरा करते हुए हम कोशिश करेंगे कि आने वाले समय में किसान रसायनमुक्त खेती करें, ताकि आने वाली पीढ़ी स्वस्थ रहे.

उन्होंने किसानों का आह्वान किया कि वे अपने खेत के एक हिस्से पर प्राकृतिक खेती करें. शुरुआती 3 सालों में जब किसान प्राकृतिक खेती करेंगे, तो पैदावार कम होगी और ऐसी स्थिति में सरकार किसानों को सब्सिडी देगी. प्राकृतिक खेती से उगाए हुए अनाजों, फलों और सब्जियों की बिक्री से किसानों को डेढ़ गुना से ज्यादा दाम मिल जाएंगे.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि देश के कृषि विश्वविद्यालयों में प्राकृतिक खेती के अध्ययन व खोज के लिए प्रयोगशालाओं को स्थापित किया जाएगा, जिन की मदद से देश में प्राकृतिक खेती को मदद मिलेगी और अनाज के भंडार भी भरेंगे.

उन्होंने कहा कि देश के एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक किया जाएगा, ताकि वे देश के हर कोने में जा कर इस का प्रचार कर सकें. केंद्र सरकार सभी हितधारकों से परामर्श कर के प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाएगी.

गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने अपने संबोधन में कहा कि प्राकृतिक खेती और जैविक खेती 2 अलगअलग चीजें हैं और इस अंतर को समझना जरूरी है.

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती में पानी की कम जरूरत होती है और यह किसानों के लिए काफी फायदेमंद है. यह अच्छी बात है कि अब सरकार प्राकृतिक खेती के महत्व को समझ गई है.

इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक खेती के उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. सभी 6 कृषि विश्वविद्यालयों को प्रमाणन प्रयोगशालाओं को बेहतर बनाने के निर्देश दिए गए हैं.

सीएम योगी आदित्यनाथ ने बताया कि उत्तर प्रदेश में 4 कृषि विश्वविद्यालय, 89 कृषि विज्ञान केंद्र और 2 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किए गए हैं.

फसल विविधीकरण, जल प्रबंधन पर पंजाब को मदद   

नई दिल्ली : 18 जुलाई, 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ क्रमवार बैठकों की कड़ी में पिछले दिनों नई दिल्ली स्थित कृषि भवन में पंजाब के कृषि, पशुपालन, मत्स्यपालन, डेयरी विकास और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री गुरमीत सिंह खुदियां के साथ बैठक हुई. इस दौरान राज्य में खेतीकिसानी के विकास को ले कर विविध विषयों पर सकारात्मक चर्चा हुई.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पंजाब द्वारा रखे गए राज्य कृषि सांख्यिकी प्राधिकरण से संबंधित प्रस्ताव पर मंत्रालय की ओर से मंजूरी का पत्र पंजाब के मंत्री को बैठक में दिया. बैठक में पंजाब को राज्य कृषि सांख्यिकी प्राधिकरण (एसएएसए) संबंधित स्वीकृति का जो पत्र केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से दिया गया है, उस के अनुसार कृषि सांख्यिकी में सुधार (आईएएस) योजना में पंजाब को भी शामिल करते हुए एसएएसए के तहत परियोजना निगरानी इकाई (पीएमयू) स्थापित करने की अनुमति दी गई है.

इस योजना के अंतर्गत आईएएस के कार्यों में शामिल कर्मचारियों के लिए सौ फीसदी वित्तीय सहायता के साथ धनराशि जारी की जाती है. यह पहल कृषि सांख्यिकी प्रणाली में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

बैठक में फसल अवशेष प्रबंधन योजना के कार्यान्वयन को ले कर चर्चा हुई और इस बात पर जोर दिया गया कि पर्यावरण के हित में इस दिशा में और भी गंभीरता से काम किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि किसानों को ड्रेगन फ्रूट, कीनू आदि उगाने सहित बागबानी एवं अन्य फसलों के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि पराली की समस्या कम हो और किसानों की आमदनी भी बढ़ सके.

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के संबंध में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र सरकार की ओर से पूरी मदद का भरोसा दिलाया, वहीं अन्य राज्यों की तरह पंजाब को भी पर्याप्त खादबीज की आपूर्ति होती रहेगी.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस संबंध में पूरी तरह गंभीरता से काम कर रहा है. हम मिलजुल कर खेतीकिसानी के विकास के लिए लगातार काम करते रहेंगे. बैठक में कृषि सचिव संजीव चोपड़ा सहित वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे.

कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना के शानदार 50 साल

उदयपुर : 19 जुलाई. कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना के शानदार 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में पुडुचेरी से आंरभ हुई मशाल यात्रा (गोल्डन जुबली टौर्च) प्रदेश के विभिन्न केवीके से होती हुई पिछले दिनों केवीके, वल्लभनगर पंहुची. इस मौके पर आयोजित भव्य कार्यक्रम में राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर (राजुवास) के कुलपति डा. एसके गर्ग और वल्लभनगर केंद्र के अधिष्ठाता डा. आरके नागदा ने मशाल महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्ववि़द्यालय को सौंपी. एमपीयूएटी की ओर से निदेशक प्रसार शिक्षा निदेशालय डा. आरए कौशिक एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्यक्ष, उदयपुर द्वितीय डा. आरएल सोनी ने यह मशाल ग्रहण की.

एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि देश में पहला केवीके 21 मार्च, 1974 को पुडुचेरी (पांडिचेरी) में स्थापित किया गया और विगत 5 दशक में उपादेयता और आवश्यकता के आधार पर आज देश में केवीके की संख्या बढ़ कर 731 हो गई है. केवीके का यह मजबूत नैटवर्क खेती की चुनौतियों के लिए अनुकूल है.

उन्होंने बताया कि केवीके योजना भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित है. केवीके कृषि विश्वविद्यालय, आईसीएआर, संस्थानों, संबंधित सरकारी विभागों और कृषि में काम करने वाले गैरसरकारी संगठनों को स्वीकृत किए जाते हैं. केवीके का उद्देश्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन, शोधन और प्रदर्शनों के माध्यम से कृषि व सबद्ध उद्यमों में स्थान विशिष्ट प्रौद्योगिकी मौड्यूल का मूल्यांकन करना है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि किसानों को फसल, पशुधन, वानिकी और मत्स्यपालन के क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी तक पहुंच की आवश्यकता है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) पूरे भारत में जिला स्तर पर स्थापित केवीके के माध्यम से इस का समाधान करता है. केवीके अनुसंधान और विस्तार प्रणाली के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करते हैं. खेत पर परीक्षण, अग्रिम पंक्ति परीक्षण व किसानों एवं विस्तारकर्मियों के लिए प्रशिक्षण आयोजित करते है.

उन्होंने बताया कि केवीके ने फसलोत्पादन, पशुपालन, कृषि वानिकों और संबद्ध क्षेत्रों में नवीनतम प्रगति के साथ लाखों किसानों को सशक्त बनाया है. केवीके की सब से महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक कृषि उद्यमिता और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने की रही है.

प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरए कौशिक ने बताया कि जम्मूकश्मीर व पंजाब प्रांतों के केवीके से होती हुई यह मशाल यात्रा राजस्थान के बीकानेर पंहुची. अब एमपीयूएटी के अधीन बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, प्रथम व द्धितीय, डूंगरपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ, प्रतापगढ़़ सहित समस्त 8 केवीके पर यह मशाल यात्रा जाएगी, जहां से कोटा कृषि विश्वविद्यालय को सौंपी जाएगी.

21 मार्च, 2024 को पुडुचेरी से आंरभ हुई यह मशाल यात्रा संपूर्ण भारत में भ्रमण करते हुए 21 मार्च, 2025 को पुनः पुडुचेरी पहुंचेगी, जहां इस यात्रा का समापन समारोह होगा.

Krishi Vigyan Kendras

केवीके की परिकल्पना के जनक डा. मोहन सिंह मेहता

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि आईसीएआर ने आज पूरे भारत में 731 कृषि विज्ञान केंद्र का मजबूत नैटवर्क बनाया है और भविष्य में देश के हर जिला मुख्यालय पर केवीके की स्थापना की योजना अमल में ली जानी है. हर्ष और गौरवान्वित करने की इस योजना के जनक उदयपुर के शिक्षाविद डा. मोहन सिंह मेहता रहे हैं. डा. मोहन सिंह मेहता ने केवीके की स्थापना से काफी पहले विद्याभवन (बड़गांव) में वे सारी गतिविधियां आंरभ कर दी, जो आज केवीके में देखने को मिल रही हैं.

उन्होंने बताया कि डा. मोहन सिंह मेहता समिति की रिपोर्ट की सिफारि के आधार पर ही 21 मार्च, 1974 को पुडुचेरी में प्रथम कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना संभव हो सकी. किसानों को फसल, पशुपालन, वानिकी और मत्स्यपालन के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी व तकनीकी हस्तांतरण का कार्य विद्याभवन में वर्षों  से जारी था, लिहाजा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) ने विद्याभवन के बड़गांव केंद्र को भी हाथोंहाथ कृषि विज्ञान केंद्र का दर्जा दे दिया, जो आज एक आदर्श केवीके के रूप में स्थापित है.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि केवीके ने किसानों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और हितधारकों की जरूरतों को पूरा करने में अपनी योग्यता साबित की है. पिछले 5 सालों में केवीके से जुड़े कई किसानों को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार और जीनोम सेवियर पुरस्कार सहित अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिस में कृषि में उन के असाधारण योगदान को मान्यता दी गई है. यह मान्यता कृषि प्रतिभाओं को प्रेरित करने और कृषक समुदायों के भीतर नवाचार को बढ़ावा देने में केवीके द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है.

उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि परिदृश्य में उत्पादकता बढ़ाने, स्थिरता सुनिश्चित करने और किसानों की आजीविका में सुधार लाने के उद्देश्य से केवीके द्वारा की गई विभिन्न पहलों के माध्यम से महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं. औसतन प्रत्येक केवीके 43 गांवों को कवर करता है और लगभग 4,300 किसानों को अपनी सेवा देता है. इन में से लगभग 80 फीसदी गांव इस के परिसर से 10 किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित हैं. केवीके ने खेती के तरीकों को आधुनिक बनाने और अटल टिंकरिंग लैब्स के माध्यम से छात्रों को जानकारी प्रदान करने के लिए ड्रोन तकनीक को अपनाया.

लुवास करेगा राष्ट्रीय पशु चिकित्सा विज्ञान अकादमी  की मेजबानी

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा राष्ट्रीय पशु चिकित्सा विज्ञान अकादमी के साथ मिल कर 29-30 नवंबर, 2024 को “सतत पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन : चुनौतियों एवं प्राथमिकताओं की खोज” विषय पर 22वें राष्ट्रीय दीक्षांत समारोह एवं वैज्ञानिक सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा. इस कार्यक्रम का आयोजन कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा के संरक्षक नेतृत्व में किया जाएगा.

इस विषय पर कुलपति सचिवालय में एक औपचारिक बैठक का आयोजन किया गया, जिस में  कुलपति प्रो. (डा.) विनोद कुमार वर्मा ने राष्ट्रीय दीक्षांत समारोह एवं वैज्ञानिक सम्मेलन की प्रथम सूचना विवरणिका का औपचारिक रूप से विमोचन किया. विमोचन के बाद उन्होंने कहा कि यह आयोजन देश में पशु चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन के विकास में अपनी छाप छोड़ेगा. उन्होंने कहा कि आयोजन के लिए गठित आयोजक टीम समय रहते सारी तैयारी कर लेगी, ताकि इसे योजनाबद्ध तरीके से आयोजित किया जा सके.

सम्मेलन के आयोजन सचिव डा. गुलशन नारंग, अधिष्ठाता, पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय ने बताया कि इस कार्यक्रम में कई जानेमाने पशु चिकित्सा पेशेवर, राष्ट्रीय पशु चिकित्सा विज्ञान अकादमी के सदस्य, विभिन्न विश्वविद्यालयों और देश के विभिन्न हिस्सों से वैज्ञानिक और छात्र भाग लेंगे.

उन्होंने बताया कि सम्मेलन के दौरान पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में 4 तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएंगे. इस मौके पर लुवास के मानव संसाधन एवं प्रबंधन निदेशक डा. राजेश खुराना एवं आयोजक टीम के सदस्य मौजूद रहे.

हकृवि में दूसरे चरण की प्रवेश परीक्षा (Entrance Examination) संपन्न

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में स्नातक व स्नात्तकोतर कोर्स की दूसरे चरण की प्रवेश परीक्षा शांतिपूर्वक संपन्न हुई. यह परीक्षा बीएफएससी चारवर्षीय कोर्स, बीएससी एग्रीकल्चर 6 वर्षीय कोर्स, एमएससी एग्रीकल्चर, एमटैक एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग, एमएफएससी कोर्स, एमएससी कम्यूनिटी साइंस कोर्स में दाखिले के लिए आयोजित की गई थी. विश्वविद्यालय की ओर से परीक्षा को सुव्यवस्थित ढंग से संपन्न करवाने के लिए पुख्ता प्रबंध किए गए थे.

विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. बलवान सिंह मंडल ने परीक्षा केंद्रों का दौरा करते हुए परीक्षार्थियों की सुविधा व परीक्षा के सुचारु संचालन के लिए की गई व्यवस्थाओं का भी जायज़ा लिया. इस अवसर पर ओएसडी डा. अतुल ढींगडा, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय डा. एसके पाहुजा, अधिष्ठाता, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय डा. बीना यादव व एसवीसी कपिल अरोड़ा उपस्थित रहे.

इस परीक्षा के लिए विश्वविद्यालय सहित हिसार शहर में 12 परीक्षा केंद्र बनाए गए थे. परीक्षा के सफल आयोजन के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से विशेष निरीक्षण दल बनाया गया था, जिन्होनें सभी केंद्रों पर जा कर निरीक्षण किया.

परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार ने बताया कि उपरोक्त पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए कुल 4,294 विद्यार्थियों ने औनलाइन आवेदन किया था. सभी परीक्षा केंद्रों में कुल 3,886 परीक्षर्थियों ने परीक्षा दी. इस परीक्षा में परीक्षार्थियों की 90.50 फीसदी उपस्थिति दर्ज की गई. उन्होंने उम्मीदवारों व उन के अभिभावकों से अपील की है कि वे उपरोक्त स्नातक व स्नातकोत्तर कार्यक्रमों में दाखिला संबंधी नवीनतम जानकारियों के लिए विश्वविद्यालय की वैबसाइट  admissions.hau.ac.in and hau.ac.in पर अवश्य चेक करते रहें.

बीएयू में आयोजित स्नात्तकोत्तर और पीएचडी की प्रवेश परीक्षाएं

राजभवन द्वारा राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के सत्रों को नियमित करने और परीक्षाएं समय पर संपन्न करने के निर्देशों के अनुरूप 7 जुलाई, 2024 को बिहार कृषि विश्वविद्यालय में स्नात्तकोत्तर और पीएचडी की प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया गया.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह के संरक्षण एवं कुलसचिव डा. एम. हक के सफल नेतृत्व में आयोजित परीक्षा में पीएचडी के लिए कुल 162 अभ्यर्थी, जिस में 94 पुरुष एवं 68 महिला अभ्यर्थी शामिल हुए, वहीं एमएससी (एग्री) के लिए कुल 966 अभ्यर्थी, जिस में 621 पुरुष एवं 345 महिला अभ्यर्थी शामिल हुए.

प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा के कुशल आयोजन के लिए विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और अधिकारियों ने योगदान दिया. विश्वविद्यालय में नियंत्रण कक्ष बना कर सभी परीक्षाओं को कुशलतापूर्वक संपन्न किया गया और बिहार कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डा. एसएन राय केंद्र अधीक्षक रहे.

कुलसचिव डा. एम. हक ने बताया कि आयोजित हुए परीक्षा का परिणाम इस माह के अंत तक आ जाएगा. विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय अपने सभी महाविद्यालयों के शैक्षणिक सत्र को नियमित करने और सभी परीक्षा को समय पर संपन्न करने के लिए प्रतिबद्ध है. अगले माह तक विश्वविद्यालय की सभी परीक्षाएं संपन्न करा ली जाएगी.

‘राष्ट्रीय मछुआरा दिवस’ का आयोजन

उदयपुर : 10 जुलाई, 2024 को मत्स्य विभाग, उदयपुर द्वारा मत्स्य भवन परिसर में ‘राष्ट्रीय मछुआरा दिवस’ का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत में विभाग के सहायक निदेशक डा. अकील अहमद द्वारा अतिथियों एवं समस्त प्रतिभागियों का स्वागत कर इस कार्यक्रम के उद्देश्यों के बारे में जानकारी दी.

मात्स्यिकी  महाविद्यालय के पूर्व प्रोफैसर एवं डीन डा. सुबोध शर्मा ने प्रतिभागियों को बताया कि मछुआरा दिवस का आयोजन मत्स्य वैज्ञानिक डा. हीरालाल चौधरी एवं डा. केएच अलीकुन्ही द्वारा वर्ष 1957 में हारमोंस इंजेक्शन से प्रेरित प्रजनन द्वारा भारतीय मेजर कार्प मत्स्य बीज उत्पादन कराने में सफलता प्राप्त करने के उपलक्ष्य में हर साल मनाया जाता है. इस के फलस्वरूप मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में क्रांति का आगाज हुआ.

वर्तमान में उक्त तकनीक के विकास के साथ मत्स्य वैज्ञानिकों ने भारतीय मेजर कार्प के साथ विदेशी कार्प मछलिया एवं केट फिश के प्रजनन में भी उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है. भारतीय मेजर कार्प के साथ इन मछलियों का मत्स्य बीज भी किसानों को उपलब्ध होने लगा है.

पूर्व में मछली का बीज प्राकृतिक स्रोतों से संग्रहित किया जाता था, जिस के विभिन्न प्रजाति का मिश्रित मत्स्य बीज प्राप्त होता था, जबकि मत्स्य बीज उत्पादन की नवीन तकनीक के विकास के साथ किसानों को मनचाही प्रजाति का शुद्ध बीज समय पर उपलब्ध होने लगा है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मात्स्यिकी महाविद्यालय के पूर्व प्रोफैसर एवं डीन डा. एलएल शर्मा ने राष्ट्रीय मछुआरा दिवस के उपलक्ष्य में मत्स्य किसानों को अपनी बधाई संदेश में मछलीपालन की वैज्ञानिक पद्धती अपनाने एवं नवीन तकनीकों का समावेश करते हुए मत्स्य उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करने का आह्वान किया. साथ ही, राज्य में मत्स्य बीज की उपलब्ता बढाने के लिए भी प्रयास करने पर जोर दिया.

उन्होंने बताया कि 80 के दशक में ही प्रेरित प्रजनन की तकनीक के प्रयोग से स्थानीय मत्स्य प्रजाति सरसी का प्रजनन फतह सागर में सफलतापूर्वक करवाया था. कार्यक्रम में पूर्व उपनिदेशक अरुण कुमार पुरोहित, मत्स्य अधिकारी डा. दीपिका पालीवाल एवं डा. शीतल नरूका सहित उदयपुर क्षेत्र के मत्स्य किसान, मछुआरों एवं प्रगतिशील फिश फार्मर्स ने भाग लिया.