कृषि वैज्ञानिक बनें, मनचाहे विषय में पीएचडी करें

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय विभिन्न पीएचडी कोर्सेज के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षा शांतिपूर्वक व व्यवस्थित ढंग से संपन्न हुई. इस के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने मुख्य परिसर में बने परीक्षा केंद्र पर पुख्ता प्रबंध किए थे. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने परीक्षा केंद्र का दौरा किया और परीक्षार्थियों की सुविधा व परीक्षा के सुचारु संचालन के लिए की गई व्यवस्थाओं का भी जायजा लिया. उन के साथ दौरे में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. बलवान सिंह मंडल, ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा व परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार भी उपस्थित रहे.

जिन पीएचडी कोर्सेज के लिए प्रवेश परीक्षा हुई, उन में विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में एग्रीकल्चरल इकोनोमिक्स, एग्रोनोमी, एंटोमोलौजी, एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन एजुकेशन, हार्टिकल्चर, नेमाटोलौजी, जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग, प्लांट पेथोलौजी, सीड साइंस एवं टैक्नोलौजी, सायल साइंस, वेजीटेबल साइंस, एग्री. मेटीयोरोलौजी, फोरेस्ट्री, एग्री बिजनेस मैनेजमेंट व बिजनेस मैनेजमेंट; मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में कैमिस्ट्री, बायोकैमिस्ट्री, प्लांट फिजियोलौजी, इनवायरमेंटल साइंस, माइक्रोबायोलौजी, जूलोजी, सोशियोलौजी, स्टैटिस्टिक्स, फिजिक्स, मैथमेटिक्स व फूड साइंस एंड टैक्नोलौजी, बायोटैक्नोलौजी महाविद्यालय में मोलिक्युलर बायोलौजी एंड बायोटैक्नोलौजी व बायोइन्फर्मेंटिक्स; सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में फूड्स एंड न्यूट्रीशन, एपिरेल एंड टेक्सटाइल साइंस, एक्सटेंशन एजुकेशन एंड कम्युनिकेशन मैनेजमेंट, ह्यूमन डवलपमेंट एंड फैमिली स्टडीज व रिसोर्स मैनेजमेंट एंड कंज्यूमर साइंस; कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में सायल एंड वाटर कंजर्वेशन इंजीनियरिंग और मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय में एक्वाकल्चर, फिशरीज रिसोर्स मैनेजमेंट, फिश प्रोसैसिंग टैक्नोलौजी व एक्वाटिक एनीमल हैल्थ मैनेजमेंट शामिल हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि प्रवेश परीक्षा के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में परिसर में परीक्षा केंद्र बनाया था. इस प्रवेश परीक्षा के सफल आयोजन के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से विशेष निरीक्षण दलों का गठन किया गया था. परीक्षा के दौरान प्रत्येक परीक्षार्थी की फोटोग्राफी भी की गई.

कुल 76 फीसदी परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी, जिन में 65 फीसदी छात्राएं व 35 फीसदी छात्र शामिल रहे.

परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार ने बताया कि उपरोक्त पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए कुल 76 फीसदी परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी, जिन में 65 फीसदी छात्राएं और 35 फीसदी छात्र शामिल रहे.

उन्होंने उम्मीदवारों व उन के अभिभावकों से अपील की कि वे उपरोक्त पीएचडी कार्यक्रमों में दाखिला संबंधित नवीनतम जानकारियों के लिए विश्वविद्यालय की वैबसाइट hau.ac.in and admissions.hau.ac.in पर नियमित रूप से चेक करते रहे.

खेती और पशुपालन को बनाएं उद्योग

अविकानगर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविका नगर में अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत पांचदिवसीय “उन्नत भेड़बकरी एवं खरगोशपालन” पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस मौके पर डा. अजय कुमार नोडल अफसर एससीएसपी उपयोजना ने संस्थान द्वारा मालपुरा के विभिन्न गांव में किए जा रहे काम के बारे में विस्तार से निदेशक व किसानो को जानकारी दी.

पांचदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत मालपुरा तहसील के बरोल गांव के 25 अनुसूचित जाति समाज के महिला व पुरुषों ने विभिन्न विषय नस्ल चयन, पोषण, स्वास्थ्य, प्रजनन, चारा एवं उत्पादों का बाजार के अनुसार वैल्यू एडिशन पर विस्तार से संबोधन लेक्चर्स के माध्यम से जानकारी प्राप्त की.
निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने प्रशिक्षण के समापन अवसर पर सभी से कहा कि आप बाजार की आवश्यकता के अनुसार खेती व पशुपालन करें, जिस से उन से अच्छा मुनाफा मिल सके.

Farmingउन्होंने आगे कहा कि संस्थान में जो यहां सीखा, उस को अपने फार्म पर जा कर धीरेधीरे अपनाना है और भारत सरकार की योजनाओं का लाभ लेते हुए अपनी खेती और पशुपालन को उद्यमिता की ओर ले जाए.
अंत में निदेशक द्वारा सभी किसानों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण समापन पर प्रमाणपत्र का वितरण किया गया. प्रशिक्षण कार्यक्रम समन्वयक डा. लीलाराम गुर्जर प्रभारी तकनीकी स्थानांतरण विभाग एवं समन्वयक डा. रंगलाल मीना द्वारा किया गया.

हिमाचल प्रदेश में भांग की खेती

प्रदेश के किसान लंबे समय से मांग करते आ रहे हैं कि राज्य में भांग की खेती को वैध घोषित कर उन की आय में बढ़ोतरी की जाए. भांग की खेती को मान्यता देने के साथ ही इस पर सरकार कड़ी निगरानी रखने की व्यवस्था भी करे, जिस से भांग की खेती का अवैध कारोबार रोका जा सके.

भांग की खेती को मान्यता मिलने के बाद देश के दवा उद्योग की मांग काफी हद तक पूरी हो सकेगी और राज्य सरकार को वित्तीय लाभ भी होगा. प्रदेश के कई इलाकों में भांग की खेती के लिए उपयुक्त वातावरण मौजूद है और वहां के किसान खेती कर के अपना गुजारा करते हैं. अगर सरकार को हिमाचल प्रदेश में भांग की खेती करने की मान्यता मिलती है, तो प्रदेश में भांग का अवैध कारोबार काफी हद तक रुक पाएगा और किसानों को अपनी आय में बढ़ोतरी करने का मौका भी मिलेगा.

केंद्र सरकार से भांग की खेती करने की मान्यता हिमाचल प्रदेश को अगर मिलती है, तो इस से यहां के किसानों को माली फायदा होने के साथ ही राज्य सरकार का राजस्व भी बढ़ पाएगा. इस के अलावा भांग की अवैध खेती पर भी नकेल कसी जा सकेगी.

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में भांग की वैध खेती

शुरू करने पर विचार किया जा रहा है. इस के लिए सब से पहले  प्रदेश के लोगों की राय ली जाएगी. विधानसभा सदन में भी इस बारे में विचारविमर्श किया जाएगा. इस संबंध में विधायकों की एक कमेटी बनाई गई है. इसे राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में बनाया गया है. यह कमेटी 4 देशों का दौरा करेगी. उस के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी.

मानसून सत्र में भी सदन में सुलह के भाजपा विधायक विपिन सिंह परमार के सवाल पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री इस बारे में चिंतित हैं. पूरा सदन भी चिंतित है. पूरे उत्तराखंड में भांग की खेती एनडीपीएस ऐक्ट के तहत की जाती है. भांग की खेती को करने पर पुरजोर समर्थन कमेटी ने किया है. ग्वालियर में स्थापित भांग से दवाएं बनाने की जगह का भी दौरा किया है. जम्मू और गुलमर्ग में की जा रही भांग की खेती के बारे में अध्ययन किया जा रहा है. इस बारे में नीदरलैंड और इजराइल आदि देश बहुत आगे हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने चिंता जताते हुए कहा कि भांग की खेती करेंगे तो यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि इस का दुरुपयोग न हो, इस से पहले भी बजट सत्र में भी यह मामला चर्चा के लिए आया था.

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी भांग की खेती को कानूनी मान्यता देने की बात राज्य विधानसभा के मानसून सत्र में कह चुके हैं. देश के विभिन्न राज्यों खासकर हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भांग की खेती को मान्यता दी गई है. भांग की खेती उत्तराखंड में कड़ी निगरानी में की जाती है और कितनी पैदावार की जा रही है, इस का पूरा ब्योरा रखा जाता है.

भांग की खेती को अगर हिमाचल प्रदेश में वैध रूप से करने की मंजूरी दी जाती है, तो इस से दवा उद्योग को तो फायदा पहुंचेगा ही, साथ ही साथ भांग के पौधों से तैयार होने वाले विभिन्न सामानों का उत्पादन कर लोगों की आय में वृद्धि की जा सकती है. भांग के पौधों से विभिन्न वस्तुएं जैसे रस्सी, कपड़ा और सजावटी चीजों का उत्पादन किया जाता है.

कृषि के विकास से तरक्की

रांची: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने रांची के गढ़ खटंगा में भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान का दौरा किया. संस्थान में उन के आने पर जनजातीय समुदाय के बच्चों द्वारा उन का पारंपरिक तरीके से स्वागत किया गया.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने पूर्वी क्षेत्र के लिए आईसीएआर अनुसंधान परिसर का भी दौरा किया और राष्ट्रीय माध्यमिक कृषि संस्थान में कृषि उद्यमियों और कृषि वैज्ञानिकों के साथ बातचीत की.

भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान में, अर्जुन मुंडा ने रांची लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद संजय सेठ और निदेशक डा. सुजय रक्षित के साथ बेहतर कृषि उत्पादन से संबंधित संस्थान की विभिन्न गतिविधियों की समीक्षा की.

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि हमारा देश गांवों में बसता है और खेती करना, ग्रामीणों के लिए आजीविका का एक मुख्य स्रोत है.

उन्होंने आगे कहा कि कृषि के विकास का ग्रामीणों की तरक्की से गहरा संबंध है. केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि संस्थान देश में कृषि विकास की गति को तेज करने के लिए एकीकृत तरीके से सूक्ष्मजीव जैव प्रौद्योगिकी की क्षमता का दोहन करने की व्यापक रणनीति के साथ काम कर रहा है.

Arjun Mundaअर्जुन मुंडा ने पूर्वी क्षेत्र के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसंधान परिसर में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और स्थानीय किसानों के साथ बातचीत की. इस अवसर पर उन्होंने किसानों के प्रति आभार व्यक्त किया, जो देश की अर्थव्यवस्था में महान योगदान देते हैं.

अर्जुन मुंडा ने कहा कि किसानों की कड़ी मेहनत और कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई प्रौद्योगिकियों जैसे कीटनाशक छिड़काव व फसल निगरानी की अतिरिक्त गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कृषि ड्रोन की शुरुआत के कारण देश खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो चुका है.

Arjun Mundaमंत्री अर्जुन मुंडा ने किसान समुदाय से आग्रह किया कि वे सरकार द्वारा शुरू की गई पीएम फसल बीमा और पीएम किसान समृद्धि जैसी विभिन्न महत्वपूर्ण योजनाओं का लाभ उठाएं.

राष्ट्रीय माध्यमिक कृषि संस्थान में कृषि उद्यमियों एवं कृषि वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने लाह की खेती, प्रोसैसिंग और अन्य देशों में निर्यात की चुनौतियों एवं अवसरों को ले कर संस्थान की विभिन्न गतिविधियों के बारे में विस्तृत चर्चा की.

बता दें कि लाह के उत्पादन के मामले में झारखंड राज्य देश में पहले स्थान पर है और लाह की खेती के लिए झारखंड का मौसम भी उपयुक्त है.

घर बैठे होगा पशु टीकाकरण

संत कबीर नगर: पशुपालन विभाग द्वारा संचालित खुरपका, मुंहपका बीमारी के टीकाकरण का शुभारंभ करते हुए पशुपालन विभाग की नव बहुद्देशीय गाड़ियों को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया गया.

मेहदावल के विधायक अनिल कुमार त्रिपाठी द्वारा बताया गया कि जनपद में कुल लगभग 2,28,000 गोवंश एवं महिषवंशीय पशु हैं, जिन में शतप्रतिशत टीकाकरण किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यकम के अंतर्गत खुरपकामुंहपका टीकाकरण अभियान का तृतीय चरण जनपद में शुरू किया जा रहा है. इस कार्यकम के तहत जनपद में समस्त गोवंशीय पशु एवं महिषवंशीय पशु का टीकाकरण (4 माह से छोटे और 8 माह से ऊपर ग्याबन पशुओं को छोड़ कर) किया जाना है.

जिलाधिकारी महेंद्र सिंह तंवर ने बताया कि खुरपकामुंहपका एवं विषाणुजनित संक्रामक रोग है, जिस के संकमण में आ जाने के उपरांत पशु को तेज बुखार आता है, मुंह से लार गिरती है, मुह एवं पैरों में छाले पड़ जाते है, पशु चारा खाना छोड़ देता है, दूध उत्पादन घट जाता है. गाभिन पशु बच्चा गिरा देता है और सही समय पर उपयुक्त इलाज नहीं दिया गया, तो पशु की मौत भी हो सकती है.

Animal Careउन्होंने बताया कि इस रोग से बचाव के लिए टीकाकरण ही एकमात्र उपाय है. राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यकम, जो केंद्र सरकार द्वारा पोषित है और राज्य सरकार द्वारा संचालित है, में समस्त पशुपालकों के द्वार पर उन के पशुओं में निःशुल्क टीकाकरण किया जाता है. इस कार्यकम में टीकाकरण से पूर्व कान में छल्ला लगवाना (ईयर टैगिंग) अनिवार्य है.

मुख्य पुश चिकित्साधिकारी द्वारा सभी पशुपालकों से अपील की गई है कि पशुपालन विभाग द्वारा चलाए जा रहे 45 दिवसीय अभियान के दौरान टीकाकरण कर्मियों का सहयोग करते हुए अपने समस्त पशुओं में (4 माह से छोटे एवं 8 माह से ऊपर ग्याबन पशुओं को छोड़ कर) टीका अवश्य लगवाएं.

इस अवसर पर मुख्य चिकित्साधिकारी डा. यशपाल सिंह, उपनिदेशक कृषि डा. राकेश कुमार सिंह, जिला कृषि रक्षा अधिकारी शशांक, उपमुख्य पशु चिकित्साधिकारी, मेहदावल और जनपद के समस्त पशु चिकित्सा अधिकारी आदि उपस्थित रहे.

अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी की जांच जरूरी

जिस तरह से जीवजंतुओं व प्राणियों में अच्छी सेहत के लिए अनेक पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है, उसी तरह से खेत की मिट्टी से अच्छी पैदावार लेने के लिए उन्हें भी पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है. अगर खेत की मिट्टी में समुचित मात्रा में पोषक तत्त्व मौजूद हैं तो हमें खेती से अच्छी उपज मिलेगी.

खेत की मिट्टी परीक्षण के लिए समयसमय पर मिट्टी की जांच जरूर करवानी चाहिए. मिट्टी की जांच से हमें उस में मौजूद लवणीयता, क्षारीयता और अम्लीयता की जानकारी मिलती है.

पौधों में समुचित विकास के लिए उन्हें 16 पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है, जिस में खासकर हाइड्रोजन, औक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर आदि होते हैं.

सामान्य तौर पर मिट्टी में ये सभी तत्त्व मौजूद होते हैं, लेकिन लगातार अनेक तरह की फसल लेने से इन में अनेक पोषक तत्त्वों में कमी आ जाती है. इस के अलावा खेत में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक पदार्थ व खेत में ही फसल अवशेषों का जला देना आदि भी खेत की मिट्टी खराब करते हैं और मिट्टी में मौजूद पोषक तत्त्वों में असमानता आ जाती है, जिस के चलते हमें उचित पैदावार भी नहीं मिल पाती है.

इसी कमी की भरपाई के लिए खेत का मिट्टी परीक्षण कराना अच्छा रहता है. मिट्टी जांच के बाद जो संस्तुति या नतीजे मिलते हैं, उसी के अनुसार खेत में उर्वरक व खादबीज आदि डाले जाते हैं.

मिट्टी की जांच कराना बहुत ही आसान है और सभी की पहुंच में भी. जरूरत है, केवल जागरूकता की.

जानकारी के लिए बता दें कि भारत में मिट्टी जांच की शुरुआत साल 1956 में हुई थी और शुरुआत के समय 24 मिट्टी जांच केंद्र खोले गए थे.

लेकिन तब और अब में बहुत बदलाव आ चुका है. उन दिनों पारंपरिक खेती का दौर था, कृषि रसायनों का इस्तेमाल भी नहीं होता था. लेकिन अब खेती में कृषि रसायनों का बहुत इस्तेमाल हो रहा है, इसलिए आज के समय में ज्यादा जरूरी हो जाता है कि हम अपने खेत की मिट्टी की जांच समयसमय पर कराते रहें और उसी के अनुसार खेती को करें.

आज तो चंद कदमों की दूरी पर मिट्टी जांच की सुविधाएं भी हैं. किसान के काम भी आसान हो रहे हैं, इसलिए सही समय पर सही तरीके से मिट्टी की जांच करानी चाहिए.

मिट्टी नमूना लेने की सही विधि

सब से पहले खेत का मुआयना कर के उसे ढलान, रंग, फसलोत्पादन और आकार के अनुसार उचित भागों में बांट लें. इस के बाद प्रत्येक भाग में टेढ़ेमेढ़े चलते हुए 15-20 निशान लगा लें. इस के बाद खेत में अलगअलग जगहों से  मिट्टी लें.

औजारों का चयन

ऊपरी सतह से नमूना लेने के लिए खुरपी या ट्यूब, आगर, अधिक गहराई से या गीली मिट्टी से लेने के लिए पोस्ट होल आगर और सख्त मिट्टी से नमूना लेने के लिए बरमे (स्क्रू आगर) का प्रयोग करें. गड्ढे खोदने के लिए कस्सी, फावड़ा या बेलचा का प्रयोग करें अथवा लंबी छड़ वाले आगर का प्रयोग करें.

नमूने की गहराई

अन्न, दलहन, तिलहन, गन्ना, कपास, चारे, सब्जियों और मौसमी फलों आदि के लिए ऊपरी सतह (0-15 सैंटीमीटर) से 15-20 निशानों से नमूना लें. बाग या अन्य वृक्षों के लिए 0-30, 30-60 और 60-90 सैंटीमीटर तक के अलगअलग नमूने लें. सतह से नमूने लेने के लिए खुरपी की सहायता से ‘वी’ के आकार का गड्ढा 15 सैंटीमीटर की गहराई तक बनाएं और एक किनारे से लगभग 2 सैंटीमीटर मोटी परत लें.

नमूना तैयार करना

एक खेत या एक बाग से लिए गए सभी नमूनों को एक बिलकुल साफ सतह पर या कपड़े या पौलीथिन शीट पर रख कर खूब अच्छी तरह मिला लें. पूरी मात्रा को एकसमान मोटाई में फैला लें और हाथ से 4 बराबर भागों में बांट लें. आमनेसामने वाले 2 भाग हटा दें और शेष 2 को फिर मिला कर 4 भागों में बांट दें. यह क्रिया तब तक दोहराते रहें, जब तक लगभग आधा किलोग्राम मात्रा न बच जाए.

नाम, पता आदि लिखना

अंत में बची हुई लगभग आधा किलोग्राम मिट्टी को कपड़े, कागज या पौलीथिन की साफ (नई) थैली में रख कर उस पर किसान का नाम, पता नमूना संख्या लिख दें. अलग से एक कागज पर यही विवरण लिख कर थैली के अंदर भी रख दें. मिट्टी गीली हो, तो छाया में सुखा कर थैली में रख दें और 2-3 दिन में ही प्रयोगशाला में भेज दें.

नमूनों पर पहचान चिह्न, नमूने की गहराई, फसल प्रणाली, प्रयोग की गई खादों व उर्वरकों की मात्रा और समय, सिंचाई की सुविधा, जलनिकास आदि की जानकारी के अतिरिक्त वांछित फसल का नाम भी लिखें.

सावधानियां

खेत में अलगअलग जगहों से नमूने लें. प्रयोग में लाए जाने वाले औजार, थैलियां आदि बिलकुल साफ होनी चाहिए. मिट्टी नमूनों को खाद, उर्वरक, दवाओं आदि के संपर्क में न आने दें. नमूना लेते समय सतह पर पड़ा हुआ कूड़ा, खरपतवार, गोबर आदि पहले ही हटा दें. पेड़ों के नीचे और खाद के गड्ढों के आसपास नमूने न लें.

मिट्टी परीक्षण का समय

फसल बोने या रोपाई करने के एक माह पूर्व खाद व उर्वरकों के प्रयोग से पहले ही मिट्टी परीक्षण कराएं. आवश्यकता हो तो खड़ी फसल में से भी कतारों के बीच से नमूने ले कर परीक्षण के लिए भेज सकते हैं, ताकि खड़ी फसल में पोषण सुधार किया जा सके.

साधारण फसलों के लिए 1 या 2 वर्ष में एक बार मिट्टी परीक्षण अवश्य करा लेना चाहिए. फसल कमजोर होने पर बीच में तुरंत समाधान के लिए परीक्षण कराया जा सकता है. खेती आरंभ करने से पूर्व पूरे फार्म की मिट्टी का परीक्षण करा लेना बहुत आवश्यक है.

मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाएं

इस समय देश के लगभग प्रत्येक जिले में ऐसी प्रयोगशालाएं हैं. इस के लिए अपने निकटतम कृषि विकास अधिकारी अथवा विकास खंड अधिकारी से संपर्क करें.

पूसा, नई दिल्ली स्थित केंद्रीय मृदा एवं पादप परीक्षण प्रयोगशाला में इस के लिए किसान और उद्यमी देश के किसी भी भाग से कभी भी संपर्क कर के मिट्टी परीक्षण और वैज्ञानिकों द्वारा दी जा रही जानकारी का पूरा लाभ उठा सकते हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की कुछ विशेषताएं

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली स्थित केंद्रीय मृदा एवं पादप परीक्षण प्रयोगशाला विश्वसनीय परीक्षण सेवा के लिए काफी प्रसिद्ध है. यहां मिट्टी व सिंचाई जल के अतिरिक्त कार्बनिक खाद तथा पौधों के विश्लेषण की सुविधा भी उपलब्ध है.

इस प्रयोगशाला में विभिन्नविभिन्न संस्थाओं में सेवारत अधिकारियों के लिए हर साल मिट्टी परीक्षण प्रशिक्षण का आयोजन किया जाता है.

परीक्षण संबंधी जानकारी और आवश्यक कदम उठाने के लिए यहां मृदा वैज्ञानिकों से सीधा संपर्क हो जाता है और वैज्ञानिक खेती या नई प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए सुझाव मिल जाते हैं.

सूरन की खेती में समझदारी

सूरन यानी जिमीकंद की पहले गांवों में घूरे के आसपास, दालान या मकान के पीछे, बागबगीचों में थोड़ीबहुत बोआई की जाती थी, पर अब अच्छी उपज लेने के लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाया जा रहा है.

सूरन की खेती लाभप्रद होती है. इस में औषधीय तत्त्व भी मौजूद होते हैं. इस का प्रयोग सब्जी और अचार के लिए ज्यादा होता है. सूरन की पकौड़ी भी खूब पसंद की जाती है.

सूरन की खेती में लाभ को देखते हुए किसान इस को उगाना पसंद कर रहे हैं. सही तरह से सूरन की खेती की जाए तो एक सीजन से एक बीघे में एक लाख रुपए तक कमाए जा सकते हैं. सब से अच्छी बात यह है कि सूरन की खेती में बहुत समय भी नहीं लगता. किसान चाहे तो उसी खेत में सहफसली कर के 3 फसलें भी उगा सकते हैं.

सूरन की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि तमाम किसान इस की खेती बहुत बड़े पैमाने पर नहीं करते हैं. वे 1 या 2 बीघे में ही इस की खेती करते हैं और 1 लाख रुपए से ढाई लाख रुपए तक की बचत कर लेते हैं. किसानों के लिए अच्छी बात यह है कि इस की खेती में ज्यादा खर्च भी नहीं आता है.

वैसे, सूरन की खेती मुख्यत: पहाड़ी क्षेत्र में होती है, पर अब मैदानी क्षेत्र के किसान भी इस की खेती करने लगे हैं. किसानों के बीच काम करने वाला ‘पानी संस्थान’ किसानों को सूरन की खेती के लिए जागरूक कर रहा है.

सूरन की बोआई

सूरन की खेती करने वाले किसान गुरुदीन कहते हैं कि वे 2 साल से इस की खेती कर रहे हैं. एक बीघे में 5,000 रुपए से 8,000 रुपए तक खर्च आता है. इस की बिक्री कर 80,000 रुपए से ले कर 1 लाख रुपए तक की कमाई हो जाती है. अब इस के बेचने में कोई दिक्कत नहीं, क्योंकि हर सीजन में इस की सब्जी बनने लगी है. सब्जी के थोक व्यवसायी घर पर आ कर ही खरीद लेते हैं.

किसान बताते हैं कि इसे 30-40 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा जाता है. सूरन को फरवरीमार्च महीने में खेत में बोया जाता है और सितंबरअक्तूबर महीने में इस की खुदाई कर ली जाती है.

खेत की जुताई ऐसी हो कि मिट्टी भुरभुरी हो जाए, 2-2 फुट पर नाली बना कर उस में कंपोस्ट खाद डालें. फिर 1-1 फुट की दूरी पर सूरन के टुकड़े गाड़ दें. इसे केवल 3 बार पानी चाहिए. जून महीने के बाद पानी की जरूरत नहीं होती.

सूरन का आकार बड़ा होने के लिए उचित देखभाल के साथसाथ समयसमय पर निराईगुड़ाई जरूर करें. 3 से 4 महीने में यह 3 से 4 किलोग्राम तक के वजन का हो जाता है.

सहफसली खेती लाभकारी

किसान चाहें तो इस के बीच के हिस्से में दूसरी सब्जी भी उगा सकते हैं. इस के खोदने के बाद आलू, चना, मटर आदि की खेती भी की जा सकती है. जरूरत इस बात की होती

है कि किसानों को परंपरागत तरीका छोड़ कर वैज्ञानिक विधि को अपनाना होगा. इस के महत्त्व को देखते हुए केंद्र और प्रदेश सरकार विभिन्न योजनाओं में शामिल कर खेती के लिए अनुदान दे कर प्रोत्साहित कर रही है.

सूरन की फसल गरम जलवायु में 25-35 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान के बीच होती है. आर्द्र जलवायु प्रारंभ में पत्तियों की वृद्धि में सहायक और कंद बनने की अवस्था में सूखी जलवायु उपयुक्त होती है. अच्छे बिखराव के साथ 1000-1500 मिलीमीटर वर्षा फसल वृद्धि व कंद उत्पादन में भी सहायक है.

सूरन की प्रमुख प्रजातियों में गजेंद्रा, संतरागाची, श्रीपद्मा, आजाद, श्रीआतिरा, एनडीए-9 आदि हैं. इन की उत्पादन क्षमता 40 टन से 100 टन प्रति हेक्टेयर है.

रोपण का समय

सूरन आमतौर पर 6 से 8 महीने में तैयार होने वाली फसल है. सिंचाई की सुविधा रहने पर इसे 15 मार्च से 15 मई के बीच लगाया जाता है. जहां पर पानी की सुविधा नहीं रहती, वहां जून के अंतिम सप्ताह में मानसून शुरू होने पर लगाया जाता है.

सूरन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है. इस में उत्तम जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए. खेती योग्य भूमि तैयार करने के लिए 2 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 3-4 जुताई देशी हल से अच्छी तरह कर के मिट्टी को भुरभुरा, मुलायम और समतल कर लेना चाहिए.

सूरन का उत्पादन लागत प्रति हेक्टेयर तकरीबन 3 लाख, 36 हजार रुपए है और आमदनी तकरीबन 12 लाख रुपए है.

बिजली के इस्तेमाल में न बरतें लापरवाही

अब वो रहट, चरसा, ढेकली के दिन किस्सेकहानियों में ही रह गए हैं. आज का किसान बिजली का खटका दबा कर ही अपनी फसल की सिंचाई कर रहा है. कहने को तो आराम ही आराम है, लेकिन बिजली ने किसानों की नींद उड़ा कर रख दी है.

आज पहले के मुकाबले में सैकड़ों गुना ज्यादा तकनीकी तरक्की हो चुकी है. अच्छे फायदे और भरपूर पैदावार की होड़ में किसान बड़े पैमाने पर फसलों की बोआई करते हैं, लेकिन पूरे दिन बिजली नहीं आने से फसलों को समय पर पानी देना ही मुहाल होता जा रहा है.

बिजली की बेहिसाब कटौती के चलते किसान के लाख जतन करने पर भी सूखती फसल को बचाना मुश्किल हो जाता है. कई बार तो किसानों को बिजली के उपकरणों में खराबी के चलते दुर्घटना का शिकार भी होना पड़ता है.

बिजली से आएदिन दुर्घटनाएं होने के बाद भी किसान रोजाना खेतों की मेंड़ से पंप तक बिजली के तारों पर नाचती मौत के साए तले काम करते हैं. करें भी तो क्या? पापी पेट का सवाल जो ठहरा. यही नहीं, कई बार तो आसमान से गाज गिरती है तो वह भी किसान पर और राजकाज के बजट की बढ़ी महंगाई की मार भी किसान पर ही गिरती है.

बिजली आज किसान की जिंदगी में अहम चीज बन चुकी है, चाहे बीज सुखाना हो, बीजोपचार हो, हर काम में बिजली की जरूरत रहती है. पशुओं के बाड़े और खलिहान में भी बिजली की जरूरत पड़ती ही है. डेरी उद्योग में भी मशीन चाहिए तो उन्हें भी चलाने के लिए बिजली की जरूरत होती है. आजकल निराईगुड़ाई में भी बैटरी से चलने वाले उपकरण बनने लगे हैं. यही नहीं, दूरदराज के खेतों में रात की निगरानी के लिए भी बैटरियों का इस्तेमाल किया जाता है. इन की बैटरी बिजली से चार्ज होती है.

बिजली के ढेरों सुख उस दिन काफूर हो जाते हैं, जब हाथ में बिजली का भारीभरकम बिल आता है. बिल की रकम को देख कर ही किसानों के तोते उड़ जाते हैं. पहले तो बिजली की कटौती से बरबाद फसल, साथ ही भारी बिल की राशि किसान को जबरदस्त झटका देती है.

सूखती फसलों के साथ आंखमिचौली करने वाली बिजली कई बार किसानों के प्राणों के साथ भी खेल जाती है. किसान पुराने टूटेफूटे उपकरणों पर गीले हाथ, गीली मिट्टी, घटिया सामान के साथ मजबूरी में बिजली के तारों को जोड़ने का काम करते हैं. तब यही रोशनी देने वाली बिजली उन की जिंदगी के तार तोड़ कर घरों का चिराग गुल कर देती है.

इन दर्दनाक हादसों से सबक लेना चाहिए. लेकिन पेट की आग के मारे ज्यादातर किसान इतना सबकुछ देखनेसुनने और पढ़ने पर भी कुछ खास सावधानियां नहीं बरतते.

गांवों, खेतों में कुछ खौफनाक नजारे निश्चित तौर पर दुर्घटना को खुली दावत देते हैं.

* नलकूप के पास ही जमीन पर बिछी पड़ी केबल यानी तार सूखी लकड़ी के तख्तों पर होनी चाहिए.

* छप्पर के बने पंपरूम बिजली की आग को पकड़ लेते हैं.

* बिजली मीटर और स्विच बोर्ड बरसाती बौछार के सीधे संपर्क में देखे जा सकते हैं.

* पुराने टायर, कूड़ाकरकट, बिजली उपकरण वगैरह स्विच बोर्ड के पास नहीं रखें.

* बिजली उपकरण, टैस्टर, पलास, तोता पलास वगैरह के प्लास्टिक हैंडल टूटने पर भी उन को काम में ले लेते हैं.

* गीले जूते पहन कर बिना डर के बिजली का खटका दबाते हैं.

* बिजली के खंभे के सहारे ही पशुओं को बांध देते हैं.

* तारों के खुले, कटे, फटे प्लास्टिक कवर वाली जगह पर मजबूत बिजली की टेप नहीं होने पर पौलिथीन की थैलियों की पट्टी बांध देते हैं.

* खेतों में गुजरते बिजली खंभों के सहारे पनपने वाले पौधों की समय पर छंटाई नहीं करते, जिन की टहनियां ऊंची बढ़ कर तारों को छू जाती हैं.

* नलकूप के पास रखे बिजली ट्रांसफार्मर व डीपी के नीचे खाली जगह पर घासफूस और झाडि़यां बिलकुल साफ रखनी चाहिए.

* कई बार खेतों, बाड़ों में उगी हुई बेल पसर कर खंभों के सहारे लिपट कर बिजली के तारों को छू जाती हैं. ये बेलें एक दिन में ही बड़ी नहीं होती हैं, लेकिन दुर्घटना होने तक लापरवाह किसान इन की तरफ ध्यान ही नहीं देते.

* चारे से ऊंचाई तक भरी ट्रैक्टरट्रौली या ट्रक सड़क से गुजरते तारों के नीचे से निकालने की जोखिम उठाने वाले कुछ अनाड़ी या हठी ड्राइवर जानबूझ कर उतावलेपन में मौत को बुलावा दे बैठते हैं.

* बिजली कटौती होने पर कुछ किसान नंगे हाथ काम करते हैं, लेकिन पता नहीं कब बिजली झपट कर झटका मार दे.

राजस्थानी कहावतों के मुताबिक राजा, आग, पानी और योगी इन चारों की वृत्ति का सही पता नहीं लगा सकते. बिजली में पानी और आग दोनों का ही समावेश है. यह किसी भी लापरवाही को नहीं बख्शती. बचाव ही एकमात्र उपाय है.

दुर्घटना से देर भली कहावत के मुताबिक किसानों को समझना चाहिए कि खटारा उपकरणों के साथ या बिना सही बचाव के बिजली के खटकों से छेड़खानी करना मूर्खता से ज्यादा कुछ भी नहीं है.

करंट कुछ भी नहीं छोड़ता, फिर भी हलके करंट से पीडि़त इनसान को प्राथमिक उपचार के साथ ही फौरन नजदीकी अस्पताल ले जाएं.

अपने खेत, बाड़े या घर में किसी भी तरह की बिजली की गड़बड़ी होने पर सही मिस्त्री या विद्युत कर्मचारी को सूचना दें. उन के पास बिजली से बचाव के साधन और जरूरत के औजार होते हैं.

अच्छे औजारों के बिना कोई भी होशियार इनसान बिजली से नहीं बच सकता. याद रखें कि बिजली बहुत ही खतरनाक चीज है. समझदार इनसान इस से सावधानी बरत कर ही महफूज रह पाता है.

घर, खेत या बाड़ा, कहीं पर भी बिजली के तारों का कनैक्शन बढ़ाने के लिए बेतुके जोड़तोड़, खुले जोड़ छोड़ना, टेप के बजाय कपड़े, चिथड़े या पौलीथिन ले कर काम चलाना और किसी भी तरह की अस्थाई व्यवस्था कर के बिजली का फायदा नहीं मिलता, लिहाजा किसी भी समय दुर्घटना घट सकती है.

हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं. बिजली भी इस से परे नहीं है. समझदारी रख कर भरपूर पैदावार लें तो दिलों में बिजलियां जलेंगी, लापरवाह रहेंगे तो परिवार पर बिजली गिरेगी.

बकरी दुग्ध उत्पादन एवं प्रोसैसिंग पर ट्रेनिंग

उदयपुर : एमपीयूएटी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. लोकेश गुप्ता ने बताया कि महाविद्यालय के द्वारा रोजगारपरक शिक्षण के साथसाथ दुग्ध एवं फूड प्रोसैसिंग और अभिनव दुग्ध एवं खाद्य उत्पाद के बारे में उद्यमियों, किसानों, बेरोजगारों एवं ग्रामीणों को समयसमय पर तकनीकी कौशल प्रदान किया जाता है.

उन्होंने बताया कि इसी क्रम में महाविद्यालय द्वारा ‘बकरी दुग्ध उत्पादन एवं उत्पाद प्रोसैसिंग’ पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम किया गया. इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों, बेरोजगारों एवं गांव के लोगों का प्रयोगात्मक प्रशिक्षण के द्वारा स्वकौशल विकसित करना है. साथ ही, उद्यमिता विकास के लिए संपूर्ण तकनीकी सहायता प्रदान करना है.

कौशल विकास कार्यक्रम समन्वयक डा. निकिता वधावन ने बताया कि महाविद्यालय द्वारा भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मंझले उद्यम मंत्रालय द्वारा प्रायोजित उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम वर्षपर्यंत आयोजित किए गए हैं. इन कार्यक्रमों में प्रतिभागियों ने भारी तादाद में उत्साहपूर्वक भाग लिया था.

उन्होंने कहा कि महाविद्यालय के लिए यह गौरव का विषय है कि उन प्रतिभागियों में से कई अब उद्यमी में रूपांतरित हो गए हैं.

डा. निकिता वधावन का कहना था कि उन उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम के प्रतिभागियों का इस तरह से उद्यमियों में रूपांतरण सूक्ष्म, लघु एवं मंझले उद्यम मंत्रालय एवं महाविद्यालय के साझा उद्देश्य का सफल क्रियान्वयन है. महाविद्यालय में अभी ‘बकरी दुग्ध उत्पादन एवं उत्पाद प्रसंस्करण’ पर उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम के पहले दिन से ही प्रतिभागियों को सैद्धांतिक जानकारी के साथसाथ प्रायोगिक जानकारी दी गई. इस के लिए महाविद्यालय ने राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न विशेषज्ञों को आमंत्रित कर प्रतिभागियों को विशिष्ट मार्गदर्शन प्रदान किया.

Goatगौरतलब है कि इस कौशल विकास कार्यक्रम के प्रतिभागी ग्रामीण बकरी दुग्ध उत्पादक हैं और वो यहां कौशल विकास एवं ज्ञान उन्नयन के साथसाथ आने वाली समस्याओं के निस्तारण के लिए विषय विशेषज्ञों से जानकारी लेने के उद्देश्य से आए थे. प्रतिभागियों को बकरी दुग्ध उत्पादन एवं संरक्षण की प्रचलित विधियों के साथ आधुनिक विधियों का दृश्य श्रृव्य माध्यम से विश्लेषणात्मक अध्ययन कराया गया और दोनों विधियों के फायदे एवं नुकसान बताए गए. बकरी दुग्ध ग्रामीण स्तर का प्रचलित एवं प्रसिद्ध उत्पाद है एवं पौष्टिकता से भरपूर बकरी दुग्ध में अपार व्यावसायिक संभावनाएं हैं.

इस कार्यक्रम में बकरी दुग्ध एवं उस से बनने वाले उत्पादों की व्यावसायिक संभावनाओं को सरलीकृत तरीके से समझाया जा रहा है, ताकि बकरीपालक व्यावसायिक उपक्रम आरंभ कर सकें. इस कौशल विकास कार्यक्रम में बकरी दुग्ध से पनीर भी विकसित किया गया, जिस पर महाविद्यालय में काफी समय से अनुसंधान चल रहा था.

एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मंझले उद्यम मंत्रालय ने डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अति उत्कृष्ट संसाधन और तकनीकी कौशल पर विश्वास जताते हुए महाविद्यालय को एक बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी प्रदान की है.

यह विश्वविद्यालय के लिए गौरव का विषय है. महाविद्यालय ने भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मंझले उद्यम मंत्रालय द्वारा प्रायोजित 7 दिवसीय उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित किया था. उस कौशल विकास कार्यक्रम की सफलता से प्रभावित हो कर भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु एवं मंझले उद्यम मंत्रालय ने महाविद्यालय को इस तरह के और भी कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित करने की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी प्रदान की है. इस कार्यक्रम में बकरीपालकों का कौशल उन्नयन किया जा रहा है, जो निश्चित रूप से उन के जीवनस्तर को बढ़ाएगा. साथ ही, पौष्टिकता से भरपूर बकरी दुग्ध के उत्पादों को बड़े पैमाने पर पहचान दिलाएगा.

पराली से जैव ऊर्जा

नई दिल्ली: केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा और विद्युत मंत्री आरके सिंह ने बताया कि सरकार ने पंजाब राज्य सहित देशभर में खेत की पराली सहित जैव ऊर्जा स्रोतों से नए और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं.

उन्होंने बताया कि नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने नवंबर, 2022 में 01 अप्रैल, 2021 से 31 मार्च, 2026 की अवधि के लिए 1715 करोड़ रुपए के बजटीय परिव्यय के साथ राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम (एनबीपी) को दो चरणों में लागू करने के लिए अधिसूचित किया है.

पहले चरण का बजट परिव्यय 858 करोड़ रुपए है. यह कार्यक्रम केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) प्रदान कर के बायोएनर्जी संयंत्रों की स्थापना का समर्थन करता है. एनबीपी के बायोमास कार्यक्रम और अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम घटक के तहत, परियोजना डेवलपर्स पंजाब राज्य के सभी जिलों सहित देश में कहीं भी जैव ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित कर सकते हैं. इन परियोजनाओं को सीएफए संबंधित योजना दिशानिर्देशों के अनुसार प्रदान किया जाता है.

उन्होंने कहा कि पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने विभिन्न अपशिष्ट / बायोमास स्रोतों से संपीड़ित बायो गैस (सीबीजी) के उत्पादन के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने और बढ़ावा देने और प्राकृतिक गैस के साथ इस का उपयोग करने के उद्देश्य से 1 अक्तूबर, 2018 को “किफायती परिवहन की ओर सतत विकल्प (एसएटीएटी)” पहल शुरू की है.

केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा और विद्युत मंत्री आरके सिंह ने बताया कि जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा कार्यान्वित गोबरधन योजना के तहत मौडल सामुदायिक बायो गैस संयंत्र स्थापित करने के लिए प्रति जिले में 50.00 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता उपलब्ध है.

उन्होंने कहा कि विद्युत मंत्रालय ने मौजूदा कोयला संचालित थर्मल पावर प्लांटों में बायोमास के मिश्रण को बढ़ावा देने के लिए समर्थ मिशन (थर्मल पावर प्लांट में बायोमास के उपयोग पर राष्ट्रीय मिशन) को अधिसूचित किया है.

उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, पंजाब और हरियाणा राज्यों और राजस्थान और उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिलों में बायोमास पेलेट संयंत्रों की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए दिशानिर्देश अधिसूचित किए हैं.

मंत्री आरके सिंह ने बताया कि नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के 20 जिलों में जैव ऊर्जा परियोजनाओं में खेत की पराली के उपयोग के लिए जागरूकता पैदा करने की पहल की है.

विद्युत मंत्रालय के राष्ट्रीय बायोमास मिशन ने थर्मल पावर संयंत्रों में बायोमास कोफायरिंग को बढ़ावा देने के लिए देश के 18 राज्यों में किसानों सहित विभिन्न हितधारकों के लिए 51 जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं.