चूहों (Rats) की ऐसे करें रोकथाम

घरआंगन हो या खेतखलिहान, हर जगह चूहों (Rats) का आतंक है. हर कोई इन के तांडव से परेशान जरूर होता है. ऐसे में चूहों (Rats) का प्रभावी नियंत्रण हम सभी को जरूर करना चाहिए.

घरआंगन के अलावा चूहे (Rats) खेतखलिहानों में सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. इस के अलावा भारी मात्रा में मल त्याग करने व काटने, कुतरने की आदत के चलते बहुत सी बीमारियों के वाहक भी बनते हैं.

एक अनुमान के मुताबिक, देश में पैदा होने वाले कुल खाद्यान्न का तकरीबन 10 फीसदी सिर्फ चूहे ही हजम कर जाते हैं. इन की आबादी भी काफी तेजी से बढ़ती है. चूहे मात्र 5 हफ्ते में ही मैथुन के योग्य हो जाते हैं. एक मादा चूहा सालभर में 6-10 बार बच्चा देती है व एक बार में 6-12 बच्चे दे सकती है.

एक जोड़ी चूहे को अगर नियंत्रित न किया जा सके तो सालभर में ये 1,000-1,200 तक तादाद बढ़ा सकते हैं.

चूहे प्रमुखत: 4 प्रकार के पाए जाते हैं. पहला, घरेलू चूहा, जो सिर्फ घरों में ही पाया जाता है. दूसरा, खेत में चूहे, जो खेत और खलिहान दोनों में पाए जाते हैं. तीसरा, खेत और घर दोनों जगह के चूहे और चौथा, जंगली चूहे, जो जंगलों व रेगिस्तानों में रह कर घासफूल, फलफूल वगैरह खा कर अपना पेट भरते हैं.

चूहे भले ही अलगअलग प्रकार के हैं, मगर इन सब का नियंत्रण इन तरीकों से होता है:

गैररसायनिक तरीका

प्राकृतिक शत्रुओं द्वारा : गैररसायनिक तरीके में चूहों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे बिल्ली, सियार, कुत्ता, उल्लू, चमगादड़, लोमड़ी, चील जैसे जीवों को रख कर नियंत्रित कर सकते हैं. ये सभी जीव चूहों को खा जाते हैं.

चूहेदानी द्वारा : चूहेदानी में चूहों की पसंद की चीजें जैसे रोटी, डबलरोटी, बिसकुट, अमरूद वगैरह रख कर फंसा लिया जाता है. बाद में उन्हें बाहर छोड़ दिया जाता है या मार दिया जाता है.

चूहा अवरोधी भंडारण द्वारा : भंडारण पक्के कंक्रीट के फर्श पर या धातुओं जैसे जस्ता, लोहा, तांबा, वगैरह से बने पात्र में करना चाहिए.

साफसफाई द्वारा : चूहों का स्थायी घर झाडि़यों, कूंड़ों, मेंड़ों वगैरह में होता है, जिस की बेहतर ढंग से साफसफाई कर के चूहों की आबादी घटाई जा सकती है.

रासायनिक तरीका

5 दिवसीय योजना बना कर : चूहे बड़े चालाक होते हैं. मुमकिन है कि अचानक से कोई दवा रखने पर उसे न खाएं और चूहों का खात्मा रासायनिक दवा देने पर भी न हो सके, इसलिए एक 5 दिवसीय योजना बनानी चाहिए.

पहले दिन बिलों का निरीक्षण कर उन्हें मिट्टी से बंद कर देना चाहिए. दूसरे दिन खुले हुए बिल के पास सादा चारा रखना चाहिए. तीसरे दिन दोबारा बिलों के पास सादा चारा रखना चाहिए और चौथे दिन जहरीला चारा बना कर रखना चाहिए. इस के लिए 48 भाग चारा जैसे गुड़, चना, चावल, डबलरोटी वगैरह में 1 भाग जिंक फास्फाइड नामक दवा और एक भाग सरसों का तेल मिला कर देना चाहिए. 5वें दिन बिलों में धूम्रण के लिए 1-2 टैबलेट सल्फास एल्यूमिनियम फास्फाइड 15 फीसदी की गोली रख कर बिल को बंद कर दें.

बांझ करने वाले रसायनों द्वारा : चूहों के नियंत्रण का एक बेहतर उपाय यह भी है कि उन की आबादी बढ़ने ही न पाए, इस के लिए बाजार में अनेक तरह के रसायन आते हैं. चूहे इन्हें खा कर नपुंसक बन जाते हैं.

प्रमुख रसायनों में फुराडेंटीन नाम की दवा की एक गोली (0.2 ग्राम प्रति चूहा) व कोल्चीसीन की एक टैबलेट का 5वां हिस्सा खाने की चीजों में मिला कर चूहों को खिलाने से नपुंसक हो जाते हैं.

धूम्रण के द्वारा : साइमेग या साइनो गैस पाउडर, एल्यूमिनियम फास्फाइड वगैरह दवाओं की 3-4 ग्राम मात्रा हर एक बिल में डाल कर बिल बंद कर देने से चूहे मर जाते हैं.

जिंक फास्फाइड द्वारा : चूहों को खत्म करने के लिए यह सब से असरकारक रसायन है. इस के लिए जहरीला आहार बनाना पड़ता है.

आहार बनाने के लिए 48 भाग चारा जैसे गुड़, चना, चावल, डबलरोटी वगैरह में एक भाग जिंक फास्फाइड नाम की दवा व एक भाग सरसों का तेल लकड़ी के टुकड़े की मदद से मिला कर 10-15 ग्राम हरेक बिल में रखने से चूहे इन को खा कर मर जाते हैं.

वारफेरिन द्वारा : यह रसायन स्टारफेरिन या रेटाफेरिन नाम से आता है. इस की 25 ग्राम मात्रा और 450 ग्राम टूटा हुआ अनाज व 15 ग्राम चीनी और 10 ग्राम खाने वाला तेल इन सब को अच्छी तरह लकड़ी से मिला कर मिट्टी के बरतन में चूहों के बिल के पास रखने से चूहे खा कर बाद में मर जाते हैं.

घरेलू उपाय : गुड़ की चाशनी बना लीजिए. कौटन यानी रुई के छोटेछोटे टुकड़ों को चाशनी में इस तरह डुबोएं कि पूरी तरह से रुई में गुड़ सोख जाए. हवा के सहारे चाशनी में डूबी हुई रुई को सुखा लीजिए. सूखने के बाद जहांजहां चूहों से प्रभावित जगह हों, वहांवहां इन टुकड़ों को रख दीजिए. चूहे इसे खाएंगे, गुड़ तो पच जाएगा, मगर रुई नहीं पचा पाएगा. इस से चूहों को बारबार प्यास लगेगी और पानी न मिलने पर चूहे दम तोड़ देंगे.

हालांकि इस का असर बहुत धीरेधीरे होता है, मगर लंबे समय तक सब्र रख कर इस को किया जाए तो फायदा जरूर मिलता है.

Quinoa : भविष्य की फसल किनोआ

Quinoa : अपने नए शोध कामों के लिए स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर, राजस्थान देशभर में जाना जाता है. पिछले दिनों यहां कृषि अनुसंधान केंद्र के एक बड़े भूभाग में खड़ी रंगबिरंगी फसल ने बरबस ही ध्यान खींच लिया. जिज्ञासावश हम ने यहां के रिसर्च डायरैक्टर पीएस शेखावत से बात की. पेश हैं उसी बातचीत के खास अंश:

ये इतनी खूबसूरत रंगबिरंगी कोई नई फसल है क्या?

जी हां, इसे किनोआ (Quinoa) कहते हैं. यह बथुआ प्रजाति का पौधा है. यह एक ओर्नामैंटल प्लांट है. जब यह कच्चा होता है तो ग्रीन, कुछ पकने पर लाल और कटाई के समय यह पूरी तरह से सफेद हो जाता है, जो देखने में बहुत ही सुंदर लगता है. कुछकुछ हमारे देशी प्रोडक्ट बाजरा एमएच 17 प्रजाति की तरह. इसे दक्षिणी अमेरिका में उगाया जाता है. हमारे देश में इसे हम भविष्य की फसल भी कह सकते हैं. इस के बीजों को पीस कर अनाज की तरह से इस्तेमाल किया जाता है.

क्या आप को लगता है कि यह विदेशी पौधा हमारे यहां की आबोहवा में पनप सकेगा?

बिलकुल पनप सकेगा. यह बहुत हार्डी पौधा है यानी किसी भी तरह की प्रतिकूल आबोहवा में यह अपनेआप को जिंदा रखने की क्षमता वाला पौधा है. यह रबी की फसल है. इसे बोने का सही समय नवंबर माह है और कटाई अप्रैल माह में होती है. इसे समय से पहले काश्त भी किया जा सकता है. इस की बोआई दोमट मिट्टी में होती है. इस पर सर्दी या पाले का कोई असर नहीं होता. इसे ज्यादा पानी की भी जरूरत नहीं होती. यह एक तरह से खरपतवार है. कहने का मतलब यह है कि इस पौधे के लिए यहां की आबोहवा पूरी तरह से माकूल है.

इस पर शोध की कोई खास वजह?

इस पौधे की खूबी ही इस पर शोध की वजह है. यह अनाज वाली फसल है. यह लगने, पकने और सिंचाई में तकरीबन गेहूं जैसा ही है लेकिन इस की बढ़वार गेहूं से कई गुना बेहतर है. इसे मेंटेनैंस फ्री फसल भी कहा जा सकता है यानी वे किसान जिन के पास मैन पावर कम हो, वे भी इसे काश्त कर सकते हैं. इसे खाने में अकेला या दूसरे अनाज के साथ मिला कर भी उपयोग में लाया जा सकता है.

क्या यह सचमुच किसानों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है?

देखिए, हम पिछले 3 सालों से इस पर शोध का काम कर रहे हैं और यह बात सामने आई है कि इस की खेती से किसानों को बहुत फायदा हो सकता है. हमारे रिसर्च सैंटर में हम ने 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर इस की पैदावार ली है, लेकिन हमारे प्रोत्साहन से यहां पास ही में रायसर गांव में एक खेत में लगी फसल से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार भी ली गई है.

हमारे देश में फिलहाल इस का ज्यादा प्रचारप्रसार नहीं हुआ है लेकिन विदेशों में इस की कीमत 500-1,000 रुपए प्रति किलोग्राम तक है. वैसे, हम ने अपने यहां उगाए गए किनोआ को 60 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचा है.

Quinoa

क्या आप को यह लगता है कि इतना महंगा अनाज आम आदमी की पहुंच में हो सकता है?

यह आमतौर पर मैडिसिनल प्लांट है इसलिए औषधि के रूप में ज्यादा कारगर साबित हो सकता है. इसे वैल्यू एडेड प्रोडक्ट यानी दूसरे अनाजों के साथ मिला कर इस्तेमाल में लाया जाता है. इस में मैगनीज होता है जो दिल को मजबूती देता है. इस में एंटीऔक्सिडेंट है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

इस के अलावा इस में चावल की तरह कार्बोहाइड्रेट भी होता है लेकिन इस में फाइबर की मात्रा ज्यादा होने से यह डायबिटीज के मरीजों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है.

अभी आप ने बताया कि किनोआ का प्रचारप्रसार ज्यादा नहीं हुआ है तो आप इस के लिए क्या कोशिश कर रहे हैं?

आप जैसे लोग ही हमारी बात दूर तक पहुंचाएंगे. हम किसानों के लिए पैकेज तैयार कर रहे हैं. पैकेज यानी एक तरह की बुकलैट. इस बुकलैट में किनोआ से संबंधित जानकारी होगी, जैसे कितना बीज, कैसी मिट्टी, मिट्टी का कितना पीएच मान, कितना फर्टिलाइजर, कितनी सिंचाई, क्या बीमारी और उस का उपचार वगैरह. हम इच्छुक किसानों को अपने यहां विजिट करवा कर उन की जिज्ञासा का समाधान भी करते हैं.

आप ने इसे भविष्य की फसल क्यों कहा?

क्योंकि इस फसल को हम आने वाले समय में एक विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करेंगे. अभी मैं ने बताया था कि यह डायबिटीज और दिल के मरीजों के लिए ज्यादा फायदेमंद है. हम देख रहे हैं कि इन मरीजों की तादाद में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में हम इसे दूसरे विकल्प के तौर पर अनाज की तरह इस्तेमाल करेंगे.

दूसरी बात यह भी है कि अब आबोहवा में बदलाव हो रहा है. इस वजह से आने वाले समय में हमारी कुछ फसलें ज्यादा पैदावार देंगी तो कुछ का उत्पादन बहुत कम हो जाएगा.

अब सोचिए कि किसी एक ऐसे समय में जब हमारी क्रौप डाउन हो गई और हमारे पास सीरियल के रूप में कुछ न हो, तब यह फसल किनोआ अनाज के रूप में उभरेगी.

राजस्थान के अलावा इसे देश के किस भूभाग में लगाया जा सकता है?

जैसा कि मैं ने बताया था कि यह एक हार्डी पौधा है और यह किसी भी हालात में उग सकता है. इसे पानी और बेहतर मिट्टी व माकूल आबोहवा के मुताबिक कहीं भी लगाया जा सकता है.

किनोआ विदेशी फसल है. आप हमारे यहां इस का क्या भविष्य देखते हैं?

मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यह आने वाले समय में अनाज के एक बेहतरीन विकल्प के रूप में सामने आएगा. जैसेजैसे लोगों में इस के बारे में जागरूकता बढ़ेगी, वैसेवैसे लोग इस की मांग करेंगे और किसानों में इसे उगाने के प्रति रुझान बढ़ेगा.

अब आप बताइए कि कुछ साल पहले तक ओट्स के बारे में कितने लोग जानते थे, लेकिन आज उस के प्रचारप्रसार के चलते यह लोगों की जबान पर चढ़ा हुआ है. है तो वह भी एक फोडर क्रौप ही न. उसी तरह से सही प्रचारप्रसार से किनोआ भी जल्दी ही आम लोगों की जिंदगी में शामिल हो जाएगा क्योंकि यह कम मात्रा में अधिक पोषण देने वाला अनाज है.

मेरा दावा है कि यह किसानों के लिए किसी भी तरह से घाटे का सौदा नहीं है क्योंकि किसी मेंटेनैंस फ्री फसल का 60 रुपए प्रति किलोग्राम भी हो तो नुकसान नहीं है.

यदि किसान इसे उगाएं तो इस का मार्केट क्या है?

किनोआ लगाने की किसानों में काफी दिलचस्पी है लेकिन फिलहाल परेशानी मार्केट की है क्योंकि लोगों को इस के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. अभी तो इसे हमारे विभाग ने ही बीज के तौर पर खरीदा है लेकिन इस के पक्ष में मार्केट बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. इस पर होने वाले शोध के काम और सैमिनार जैसेजैसे आम लोगों के बीच आएंगे, इस का भी अच्छाखासा मार्केट बन जाएगा.

क्या इसे प्रोसैस कर अनाज की तरह दूसरे उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं?

सीधे खाने पर इस का स्वाद हलका सा कसैला होता है लेकिन कड़वा होने पर करेला भी तो खाया जाता है न. वैसे, किसी भी दूसरे सीरियल की तरह से इस से भी खीर, बिसकुट, दलिया, सूप वगैरह बनाए जा सकते हैं.

Lakhpati Didi : शिवराज सिंह चौहान ने किया लखपति दीदियों से संवाद

Lakhpati Didi : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले दिनों 2 दिवसीय उत्तराखंड दौरे पर थे, जहां दूसरे दिन उन्होंने ऋषिकेश के आईडीपीएल मैदान में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत लखपति दीदी एवं प्रगतिशील किसानों के साथ आयोजित संवाद कार्यक्रम में हिस्सा लिया.

इस से पहले उन्होंने महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों, कृषि और उद्यान विभाग द्वारा लगाए गए स्टालों का भी अवलोकन किया. उन के साथ राज्य के मुख्यमंत्री और प्रदेश के कृषि मंत्री गणेश जोशी भी मौजूद रहे.

इस संवाद कार्यक्रम में स्वयं सहायता समूहों की कई महिलाएं और प्रगतिशील किसान भी मौजूद रहे. इस दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लखपति दीदी रीना रावत से बात की.

रीना रावत स्वयं सहायता समूह चलाती हैं और प्रदेश में चल रही ‘लखपति दीदी योजना’ की लाभार्थी हैं. मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रीना रावत से पूछा कि ‘लखपति दीदी योजना’ ने कैसे उन की जिंदगी में बदलाव लाया है.

जवाब में रीना रावत ने कहा कि उन के समूह में 8 से 10 महिलाएं हैं, जो ‘लखपति दीदी योजना’ की लाभार्थी हैं. वे फूड प्रोसैसिंग के क्षेत्र में आज आत्मनिर्भर हैं. पहले उन्हें उन के पति के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब वे अपने नाम और काम से जानीपहचानी जाती हैं. उन्होंने बताया कि आज उन के समूह में हर महिला तकरीबन 10 से 15 हजार रुपए तक की आमदनी हासिल कर रही हैं.

Lakhpati Didiहरिद्वार के प्रगतिशील किसान और मशरूमपालक मनमोहन ने कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से बातचीत के दौरान बताया कि साल 2017 में उन्होंने सरकार की योजनाओं का लाभ ले कर मशरूम उत्पादन शुरू किया था और लोगों को रोजगार भी दिया था. साथ ही, उन की खुद की आमदनी भी कई गुना बढ़ गई थी. बीते 4-5 सालों में उन्होंने मशरूम उत्पादन में 12 से 15 करोड़ रुपए का कारोबार किया. आज पूरे उत्तराखंड में वे मशरूम सप्लाई करते हैं और डोमिनोज जैसे बड़े ब्रांड्स भी उन से व्यापार कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन के फार्म का नाम भी ‘मामाभांजा फार्म’ है.

कार्यक्रम में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘लखपति दीदी योजना’ के लाभार्थियों और किसानों को संबोधित भी किया. उन्होंने कहा कि यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो उत्तराखंड में है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड प्रगति की ओर बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा कि भारत सरकार महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए प्रतिबद्ध है और इसीलिए सरकार संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण देगी. उन्होंने कहा कि आज तक उत्तराखंड में सवा लाख बहनें ‘लखपति दीदी’ बन गई हैं.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ब्रांड हाउस औफ हिमालयाज की सरहाना करते हुए कहा कि उत्तराखंड में हाउस औफ हिमालयाज के तहत कई बेहतरीन उत्पाद बन रहे हैं. यदि इन उत्पादों की बेहतरीन तरीके से मार्केटिंग और प्रचारप्रसार हो जाए, तो ये उत्पाद पूरी दुनिया में प्रसिद्ध होंगे.

उन्होंने मंच से घोषणा करते हुए कहा कि हाउस औफ हिमालयाज के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय उत्तराखंड में सैंटर औफ एक्सीलैंस खोलेगा, ताकि हाउस औफ हिमालयाज का ब्रांडिंग में, मार्केटिंग में और रिसर्च में विकास व्यापक तौर पर हो सके.

Lakhpati Didi

इस अवसर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह देख कर काफी खुशी होती है कि आज हमारी बहनें अपने सपनों को साकार कर समाज को एक नई दिशा दे रही हैं. आज राज्य में 67 हजार स्वयं सहायता समूह बना कर लगभग 5 लाख ग्रामीण परिवारों की महिलाएं संगठित हो कर अपना व्यवसाय कर रही हैं. 7 हजार से अधिक गांव संगठन और 500 से अधिक क्लस्टर संगठन बना कर राज्य की महिलाएं सामूहिक नेतृत्व की एक बेहतरीन मिसाल पेश कर रही हैं.

उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकार का उद्देश्य केवल ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना ही नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि हमारी माताएं, बहनें और बेटियां आत्मनिर्भर बनें, परिवार और समाज को माली रूप से मजबूत कर सकें. आज इन सभी आंकड़ों को रखने के बाद मैं यह विश्वास के साथ कह सकता हूं कि हमारे देवभूमि उत्तराखंड की महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में काम करते हुए समाज के सामने महिला सशक्तीकरण का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं.

Rice Maize : चावल और मक्का की बढ़ी पैदावार

Rice Maize : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नई दिल्ली के पूसा कैंपस स्थित अग्निहाल में पत्रकारों से पिछले दिनों बातचीत की. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन खरीफ 2025 अभियान में हुई चर्चा के साथसाथ खरीफ की बोआई से पहले कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की तैयारियों व रणनीतियों के बारे में जानकारी दी. प्रैस कौन्फ्रेंस में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर सहित विभिन्न राज्यों से आए कृषि मंत्री भी उपस्थित रहे.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि आज राज्यों के कृषि मंत्रियों, केंद्र और राज्य सरकार और आईसीएआर एवं अन्य संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों व वर्चुअल तौर पर जुड़े सभी पदाधिकारियों के साथ चर्चा हुई.

राज्यों के बेहतर प्रदर्शन, किसानों की कड़ी मेहनत के चलते खरीफ के रकबे में वृद्धि हुई है, वहीं खरीफ 2023-24 के दौरान चावल का क्षेत्रफल 40.73 मिलियन हेक्टेयर था, जो खरीफ 2024-25 में 43.42 मिलियन हेक्टेयर हो गया है. वहीं चावल का उत्पादन खरीफ 2023-24 में 113.26 मिलियन टन था, जो खरीफ 2024-25 में 120.68 मिलियन टन हो गया है.

इसी तरह से खरीफ में साल 2023-24 के दौरान मक्के का क्षेत्रफल 8.33 मिलियन हेक्टेयर था, जो खरीफ 2024-25 में 8.44 मिलियन हेक्टेयर हो गया और मक्के का उत्पादन खरीफ 2023-24 में 22.25 मिलियन टन था, जो खरीफ 2024-25 में 24.81 मिलियन टन हो गया है.

उन्होंने बताया कि पिछले साल की तुलना में कुल खाद्यान्न क्षेत्र में 3.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जिस में चावल और मक्का में वृद्धि देखी गई है. समान रूप से खरीफ 2024 में कुल खाद्यान्न उत्पादन में पिछले साल 2023 खरीफ उत्पादन की तुलना में 6.81 फीसदी की वृद्धि हुई है, जिस में चावल, मक्का और ज्वार आदि फसलों में उच्च उत्पादन देखा गया है.

उन्होंने आगे कहा कि विपरीत जलवायु परिस्थितियों के बावजूद हमारे खाद्यान्न का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. रबी सीजन का भी अनुमान बेहद आशाजनक है. आईसीएआर के हमारे वैज्ञानिकों द्वारा कई नई जलवायु अनुकूल किस्मों के विकास के कारण यह लक्ष्य हासिल हुआ है. साथ ही, राज्यों ने भी बेहतर ढंग से खेती में उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया है. उत्पादन वृद्धि में योगदान के लिए उन्होंने सभी को बधाई दी और कहा कि हमारे किसानों की मेहनत को मैं प्रणाम करता हूं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि आगे आने वाले खरीफ के मौसम में हम नई किस्मों के बीज ठीक ढंग से किसानों के पास पहुंचा पाएं, इस के लिए प्रयास जारी है. बड़े स्तर पर अच्छे बीज किसानों तक पहुंचे, इस के लिए काफी चर्चा हुई है.

उन्होंने कहा कि लैब टू लैंड की नीति के तहत वैज्ञानिक और किसान साथ मिल कर काम करें, इस की बड़ी आवश्यकता है. यह खुशी की बात है कि हमारे पास आईसीएआर, कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विश्वविद्यालय को मिला कर 16,000  वैज्ञानिक हैं, जिन के योगदान को शामिल करते हुए किसानों तक शोध की सही जानकारी पहुंचाने के लिए एक प्रभावी व्यवस्था बनाई गई है.

इस बार खरीफ फसल के लिए जो आमतौर पर 15 जून के बाद शुरू होती है, उसी के मद्देनजर 4-4 वैज्ञानिकों की टीम बनाई जाएगी, इन के साथ राज्यों का कृषि विभाग जुड़ेगा, केंद्र सरकार के कृषि विभाग के साथी भी जुड़ेंगे, प्रगतिशील किसान जुड़ेंगे और यह 15 दिन खरीफ फसल के उत्पादन में वृद्धि के लिए अच्छे बीज, बेहतरीन तकनीक का लाभ दिलाने के लिए बातचीत होगी.

एक दिन में 3 जगहों पर एक टीम जाएगी और किसानों से बात करेगी, जिस में अच्छे बीज के बारे में, कृषि पद्धितियों के बारे में, जलवायु अनुकूल बोआई के बारे में, उचित फसल के निर्णय के लिए विस्तार से चर्चा कर के ये टीम किसानों को दिशा देने का काम करेगी.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि जहां तक खरीफ में बीज का सवाल है, बीज की आवश्यकता है, 164.254 लाख क्विंटल की और हमारे पास पर्याप्त बीज 178.48 लाख क्विंटल उपलब्ध है. हम सभी राज्यों की मांग के अनुसार उन्न्त बीज उपलब्ध करा पाएंगे.

खुशी की बात ये है कि सीड रिपलेसमेंट की दर बढ़ रही है. पहले किसान परंपरागत बीज बोते रहते थे, लेकिन 10 साल से पहले ही सीड बदल देना चाहिए. 10 साल हो जाने पर बीज की गुणवत्ता अच्छी नहीं रहती. बीज बदलने की प्रवृत्ति में तेजी आ रही है, जिस के लिए मैं राज्यों को बधाई देता हूं. उन्होंने कहा कि गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता के लिए काम किया जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि देश के किसानों के लिए यूरिया, डीएपी, एनपीके की पर्याप्त व्यवस्था की गई है. विदेश में बढ़ रही कीमत के बावजूद सब्सिडी किसानों को मिल रही है. हम ने खाद को स्टोर करना शुरू कर दिया है.

उन्होंने आगे फसलों के संदर्भ में कहा कि गेहूँ, चावल हमारे यहाँ पर्याप्त मात्रा में होता है लेकिन दलहन और तिलहन का हमें आयात करना पड़ता है. भारत सरकार ने जो दलहन मिशन शुरू किया है, उसे इम्प्लीमेंट करने की बात सम्मेलन में हुई. उत्पादन कैसे बढ़े, इस पर भी चर्चा हुई और औयल सीड के उत्पाद को बढ़ाने पर भी विचार किया गया है.

इस के साथ ही एक और प्रमुख विषय है, ‘अत्यधिक उर्वरकों का इस्तेमाल’. रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए प्राकृतिक कृषि मिशन भारत सरकार ने बनाया है. किसानों को समझा कर किसान की जमीन के टुकड़े पर प्राकृतिक खेती की जाएगी. 33 राज्यों का एनुअल एक्शन प्लान आ गया है. 7.78 लाख हेक्टेयर में 15,560 क्लस्टर बनाए जाएंगे और 10,000 बायोरिसोर्स सैंटर बनाए जाएंगे. 16 प्राकृतिक खेती के केंद्रों की पहचान की गई है और 3,100 वैज्ञानिकों को किसान को मास्टर ट्रेनिंग के रूप में ट्रेन किया गया है. कम से कम 18 लाख किसान प्राकृतिक खेती की शुरुआत करें, 1 करोड़ किसानों को हम सैंसीटाइज करें, इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है.

मंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि ये बैठक बहुत गंभीरता से हुई है. हम ने तय किया है कि रबी की बैठक एक दिन के लिए नहीं, बल्कि 2 दिन की होगी. हम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया है कि जो भेदभावपूर्ण सिंधु जल समझौता किया गया था, जिस में 80 फीसदी पानी पाकिस्तान के हिस्से में और केवल 20 फीसदी हिस्सा पानी का भारत के हिस्से में है, उसे रद्द किया गया है.

अब इस का लाभ किसानों को मिलेगा. विशेषकर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, जम्मू कश्मीर. अधिक पानी के कारण उत्पादकता बढ़ेगी, बाढ़ नियंत्रण जैसे काम भी बेहतर होंगे. किसानों को बिजली भी मिलेगी, जिस से उत्पादन भी बढ़ेगा.

Conference : राष्ट्रीय कृषि खरीफ सम्मेलन 2025 का हुआ आयोजन

Conference :  केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुआई में पिछले दिनों नई दिल्ली स्थित पूसा कैंपस के भारत रत्न सी. सुब्रह्मण्यम औडिटोरियम में कृषि खरीफ अभियान 2025 पर राष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन हुआ. इस सम्मेलन में 10 से ज्यादा राज्यों के कृषि मंत्रियों ने पूसा कैंपस पहुंच कर और अन्य कृषि मंत्रियों ने वर्चुअल माध्यम से जुड़ कर अपने विचार साझा किए व कृषि की उन्नति की दिशा में केंद्र के साथ मिल कर काम करने पर सहमति जताई.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यों से आए कृषि मंत्रियों, अधिकारियों का स्वागत करते हुए कहा कि भारत की 145 करोड़ जनता के लिए पर्याप्त खाद्यान्न, फल और सब्जियों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने की बड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी हमारे कंधों पर है. यह एक असाधारण काम है, जिसे हमें मिल कर पूरा करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि आज हम ने किसानों की मेहनत से अनाज के भंडार भर दिए हैं. उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. अभी हम ने चावल की 2 किस्में विकसित की हैं, जिस से उत्पादन बढ़ेगा, 20 दिन पहले फसल तैयार हो जाएगी, पानी बचेगा, मीथेन गैस का उत्सर्जन कम होगा, जल्द ही ये किस्में किसानों को उपलब्ध कराई जाएंगी. साल 2014 के बाद 2,900 नई किस्मों का विकास हमारे वैज्ञानिकों ने किया है.

उन्होंने यह भी कहा कि ये खरीफ कौन्फ्रेंस कोई औपचारिकता नहीं है. आगे रबी कॉन्फ्रेंस 2 दिन के लिए होगी. हमारा काम है उत्पादन बढ़ाना, उत्पादन की लागत घटाना, उत्पाद के ठीक दाम देना, आपदा में सहायता करना, फलों और फूलों की खेती को बढ़ावा देना है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यह धरती केवल हमारे लिए नहीं है. इस धरती को आने वाली पीढ़ियों के लिए भी स्वस्थ रखना है. अत्यधिक उर्वरकों के इस्तेमाल से धरती की सेहत बिगड़ रही है.

इस सम्मेलन में उन्होंने कहा कि मैं कृषि मंत्री हूं, तो 24 घंटे मुझे यही सोचना चाहिए कि किसानों की बेहतरी कैसे हो. हमें मेहनत के साथ कृषि के लिए उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग सुनिश्चित करते हुए खेती की बेहतरी के लिए काम करना होगा. हमें लैब से लैंड तक टैक्नोलौजी और रिसर्च को पहुंचाना ही होगा. इस कड़ी में उन्होंने ‘विकसित भारत संकल्प अभियान’ के जरीए वैज्ञानिकों की टीम बनाने और किसानों तक पहुंच बनाने की रूपरेखा भी रखी और बताया कि किस प्रकार से ये टीमें गांवगांव पहुंच कर किसानों के बीच जागरूकता के लिए काम करेंगी.

उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि हमारे पास 16,000 वैज्ञानिक हैं, जिन में से 4-4 वैज्ञानिकों की टीमें बना कर जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया जाएगा. इन टीमों का उपयोग किसानों की सेवा के लिए होगा. ये टीमें साल में 2 बार निकलेंगी. रबी फसल के लिए अक्तूबर में अभियान चलेगा. साथ ही, उन्होंने राज्यों के कृषि मंत्रियों से इस अभियान से सक्रिय रूप से जुड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि जब तक हम सब मिल कर एक दिशा में नहीं चलेंगे, तब तक खेतीकिसानी के हित में वांछित नतीजे नहीं मिलेंगे.

इस सम्मेलन में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री रामनाथ ठाकुर भी शामिल हुए. राज्यों से आए मुख्य सचिवों, अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, कृषि आयुक्त, अन्य वरिष्ठ अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने भी शिरकत की.

कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने सम्मेलन की रूपरेखा रखी और राज्यों के साथ समन्वय और तालमेल के साथ काम करने की बात कही. सचिव (उर्वरक) रजत कुमार मिश्रा ने भी प्रस्तुति दी.

आईसीएआर के महानिदेशक डा. एमएल जाट ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय कृषि धीरेधीरे जलवायु अनुकूल होती जा रही है, जो बड़ी उपलब्धि है. कम हेक्टेयर में ज्यादा उपज के लिए भी काम चल रहा है.

आईसीएआर के डीडीजी (कृषि प्रसार) डा. राजबीर सिंह ने विकसित कृषि संकल्प अभियान के बारे में विस्तारपूर्वक बताया. डीडीजी (फसल विज्ञान) डा. डीके यादव ने भी प्रस्तुति दी. मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक राहुल सक्सेना ने मौसम के संबंध में जानकारी दी. संयुक्त सचिव अजीत कुमार साहू, संयुक्त सचिव सैमुअल प्रवीण कुमार और संयुक्त सचिव पूर्णचंद्र किशन ने भी प्रस्तुति दी. कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव पेरिन देवी ने सम्मेलन में आए सभी का आभार व्यक्त किया.

Farming Tasks : मई माह में खेती के ज़रूरी काम

Farming Tasks : मई माह में गरमी चरम पर होती है. लिहाजा हमेशा तो एसी में बैठना मुमकिन नहीं होता. इसलिए गरमी का कहर तो झेलना ही पड़ता है. जब बात किसानों की हो, तब तो आराम हराम होता है. किसान गरमी की लपट झेलते हुए बदस्तूर अपना काम करते रहते हैं और अनाज व अन्य फसलें उगाते रहते हैं.

पेश है, मई महीने के दौरान किए जाने वाले खेती के कामों का एक खुलासा:

* गेहूं की कटाई खत्म होने के बाद खाली खेतों को अगली फसल के लिहाज से तैयार कर लें.

* गेहूं के साथसाथ जई व जौ वगैरह फसलें दे चुके खेतों की मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें ताकि पिछली फसल के अवशेष खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाएं और मिट्टी भुरभुरी हो जाए. पिछली फसल का मोटामोटा कचरा बटोर कर खेत से दूर फेंक देना चाहिए.

* मई की गरमी का खास फायदा यह होता है कि इस से तमाम कीड़ेमकोड़े झुलस कर खत्म हो जाते हैं. इसीलिए करीब 2 हफ्ते के अंतराल से खेतों की लगातार जुताई करते रहना चाहिए. ऐसा करने से गरमी व लू का असर मिट्टी में अंदर तक जाता है और वहां मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया व फफूंदी नष्ट हो जाते हैं.

* मिट्टी को भरपूर धूप का सेवन कराना काफी फायदेमंद होता है. इस से मिट्टी का अच्छाखास इलाज हो जाता है और मिट्टी अगली फसल के लिए बढि़या तरीके से तैयार हो जाती है.

* अपने ईख के खेतों का खास खयाल रखें और 2 हफ्ते के अंतर से सिंचाई करते रहें, ताकि खेतों में भरपूर नमी बनी रहे.

* गन्ने के खेतों में सिंचाई के साथसाथ निराईगुड़ाई भी करते रहें ताकि खरपतवार न पनप सकें.

* गन्ने की फसल में कीड़ों व रोगों का खतरा बराबर बना रहता है, लिहाजा उन के मामले में सतर्क रहें. जरा भी जरूरत महसूस हो तो कृषि वैज्ञानिक से सलाह ले कर कीटों व रोगों का इलाज कराएं.

* अगर धान की अगेती किस्म की नर्सरी डालनी हो तो मई के आखिर तक डाल सकते हैं. नर्सरी में कंपोस्ट खाद या गोबर की सड़ी खाद का इस्तेमाल जरूर करें. इस के अलावा फास्फोरस व नाइट्रोजन का भी सही मात्रा में इस्तेमाल करें.

* धान की नर्सरी डालने में ध्यान रखें कि हर बार जगह बदल कर ही नर्सरी डालें. धान की नर्सरी से अच्छा नतीजा पाने के लिए सिंचाई में कमी न करें.

* अगर सिंचाई का इंतजाम हो तो चारे के लिहाज से ज्वार, बाजरा व मक्के की बोआई करें. पानी की दिक्कत होने पर इन फसलों की बोआई न करें, क्योंकि इन फसलों को ज्यादा पानी की जरूरत होती है.

* बरसीम, लोबिया व जई की बीज वाली फसलें इसी माह तैयार हो जाती हैं. ऐसे में उन की कटाई का काम खत्म करें.

* आखिरी हफ्ते में अरहर की अगेती किस्मों की बोआई करें, मगर बोआई से पहले जुताई कर के व खाद वगैरह मिला कर खेत को सही तरीके से तैयार करना जरूरी है.

* सूरजमुखी के खेतों की सिंचाई करें, क्योंकि गरम मौसम में खेत में नमी रहना जरूरी है.

* सूरजमुखी की सिंचाई के वक्त इस बात का खयाल रखें कि पौधों की जड़ें न खुलने पाएं. अगर पानी से जड़ें खुल जाएं, तो उन पर मिट्टी चढ़ाना न भूलें. मिट्टी चढ़ाने से पौधों को मजबूती मिलती है और वे तेज हवाओं को भी झेल लेते हैं.

* सूरजमुखी के खेत में मधुमक्खियों के बक्से छायादार जगह पर रखें. बक्सों के आसपास टबों में पानी भर कर रखें ताकि मधुमक्खियों को पानी की खोज में भटकना न पड़े. मधुमक्खियों से दोहरा फायदा होता है यानी शहद उत्पादन के साथसाथ परागण भी अच्छा होता है.

* सूरजमुखी की फसल को बालदार सूंड़ी व जैसिड रोग का काफी खतरा रहता है. ऐसा होने पर कृषि वैज्ञानिकों से सलाह ले कर दवा छिड़कें.

* गाजर, मूली, मेथी, पालक, शलजम, पत्तागोभी, गांठगोभी व फूलगोभी की बीज वाली फसलें अमूमन इस माह तक तैयार हो जाती हैं. ऐसे में उन की कटाई का काम निबटाएं. बीजों को निकालने के बाद सुखा कर उन का भंडारण करें.

* पहले डाली गई तुरई की नर्सरी के पौधे तैयार हो चुके होंगे, लिहाजा उन की रोपाई निबटाएं.

* तुरई की नई नर्सरी डालने का इरादा हो, तो यह काम फौरन खत्म करें. ज्यादा देर करने पर नर्सरी डालने का समय बीत जाएगा.

* खेत को अच्छी तरह तैयार करने के बाद बारिश के मौसम वाली भिंडी की बोआई करें. बोआई से पहले निराईगुड़ाई कर के खेत के तमाम खरपतवार निकालना न भूलें.

* अगर प्याज के खेतों में नमी कम लगे तो तुरंत हलकी सिंचाई करें. मई के अंत तक प्याज की पत्तियों को खेत पर झुका दें, ऐसा करने से प्याज की गांठें बेहतरीन होंगी.

* मई में लहसुन की फसल तैयार हो जाती है, लिहाजा उस की खुदाई करें. खुदाई के बाद फसल को 3 दिनों तक खेत में सूखने दें. 3 दिन बाद लहसुनों को उठा कर साफ व सूखी जगह पर रखें.

* मई में अकसर लीची के फलों के फटने की शिकायत सामने आती है. इस की रोकथाम के लिए लीची के गुच्छों व पेड़ों पर पानी का अच्छी तरह छिड़काव करना फायदेमंद रहता है.

* आम, अमरूद, नाशपाती, आलूबुखारा, पपीता, लीची व आंवला के बगीचों की 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. इस दौरान सिंचाई में लापरवाही बरतना ठीक नहीं है, क्योंकि गरमी से बागों का पानी बहुत तेजी से सूखता है.

* अगर औषधीय फसल तुलसी की बोआई करनी हो तो इस के लिए मई का महीना सही रहता है.

* मई में ही औषधीय फसल सफेद मूसली भी बो दें. यह बहुत ज्यादा फायदे वाली फसल होती है.

* औषधीय फसल सर्पगंधा की नर्सरी डालने के लिहाज से भी मई का महीना बेहद खास होता है.

* मई के तीसरे हफ्ते में पहाड़ी इलाकों में रामदाना की बोआई करें. बोआई से पहले बीजों को फफूंदीनाशक से उपचारित करें.

* मई में अकसर मछली पालने वाले तालाब सूखने लगते हैं, लिहाजा उन की मरम्मत कराएं ताकि उन का पानी बाहर न निकल सके. तालाब की सफाई का भी खयाल रखें. इस बात का खयाल रखें कि कोई भी तालाब में कचरा न डालने पाए.

* मई में मवेशियों को लू लगने का खतरा बढ़ जाता है, लिहाजा उन्हें बारबार साफ व ताजा पानी पिलाएं. लू लगने पर पशु के सिर पर बर्फ की पोटली रखें व पशु डाक्टर से इलाज कराएं.

* गरमी की वजह से गायभैंस के छोटे बच्चों को अकसर दस्त की बीमारी हो जाती है, ऐसे में उन्हें दूध कम पीने दें. बीमार बच्चे को दूसरे बच्चों से अलग रखें. जरूरी लगे तो डाक्टर को बुलाएं.

* मुरगियों को गरमी से बचाने के लिए उन के शेडों के अंदर कूलरों का इंतजाम करें या शेड की जालियों पर जूट के परदे लगा कर उन्हें पानी से भिगोते रहें. चूंकि मुरगियां नाजुक होती हैं, लिहाजा उन का खास खयाल रखना पड़ता है.

* मवेशियों के खाने का भी पूरा खयाल रखें. उन्हें बासी व खराब चारा न दें, वरना हैजा होने का खतरा रहता है. ऐसे में पशु को बचाना कठिन हो जाता है.

Farming Task

* आम के नए बाग लगाने के लिए 12×12 मीटर पर गड्ढों की खुदाई करें. नर्सरी में बीजू पौधों की सिंचाई करें और खरपतवार निकालें. फलों का चिडि़यों से बचाव करें. अगेती किस्मों के फलों की तोड़ाई करें और उन्हें बाजार में भेजने का इंतजाम करें.

* केले के पौधों में 50-60 ग्राम यूरिया प्रति पौधे की दर से मिलाएं. कीटों की रोकथाम के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी या फोरेट 10 जी 1 चाय चम्मच भर गोफे में डालें. फलों और डंठलों पर कालेभूरे धब्बे दिखाई देने पर कौपर औक्सीक्लोराइड 0.3 फीसदी के घोल का छिड़काव करें. इस के अलावा 5-7 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें और नया बाग लगाने के लिए खेत की तैयारी और गड्ढ़ों की खुदाई करें.

* नीबूवर्गीय फलों के बाग की सिंचाई करें. कैंकर व्याधि और सफेद मक्खी का नियंत्रण संस्तुत विधियों के मुताबिक करें. नए बाग लगाने के लिए 6×6 मीटर पर गड्ढों की खुदाई करें.

* अमरूद के बागों में हलकी जुताई करने के बाद सिंचाई करें. सूखी टहनियों को निकाल दें.

* लीची के फलों को फटने से बचाने के लिए जमीन में सिंचाई द्वारा सही नमी बनाए रखें. नए बाग के लिए 10×10 मीटर की दूरी पर गड्ढों की खुदाई करें.

* अंगूर में 7 से 10 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें. फल पकने की स्थिति से 1 हफ्ते पहले सिंचाई बंद कर दें. फल के गुणों में बढ़ोत्तरी के लिए इथ्रेल 1 मिलीलिटर प्रति 4 लिटर पानी की दर से या जिब्रेलिक एसिड की संस्तुत मात्रा का पौधों पर पर्णीय छिड़काव करें. फसल सुरक्षा के लिए जाल का इस्तेमाल करें.

* आंवले के नए बाग रोपने के लिए 8-10 मीटर की दूरी पर गड्ढों की खुदाई करें और नए रोपे गए बागों की 10-15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें.

* पपीते की फसल में लिंग भेद साफ होने पर नर पौधों को निकालें और जरूरत के मुताबिक सिंचाई का काम करें.

सब्जी और मसाले

* गरमियों में पैदा होने वाली सब्जियों की सिंचाई, तोड़ाई और उन्हें बाजार भेजने का काम करें.

* टमाटर, बैगन, मिर्च की फसलों में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. फलों की तोड़ाई और बाजार का काम करें. टमाटर और बैगन के फलों से बीज निकालें. मिर्च के पके फलों को तोड़ कर सुखाने और बीज निकालने का काम करें.

* भिंडी की फसल में सिंचाई करें.

* फलों की तोड़ाई और बाजार ले जाने का इंतजाम करें. पकी फलियों को तोड़ने के बाद सुखा कर बीज निकालने का काम करें. बीमार और बेकार पौधों को उखाड़ कर जमीन में दबा दें.

* लहसुन और प्याज की खुदाई और उन्हें छाया में सुखाने का काम करें. छंटाई कर के उन्हें हवादार कमरों में रखें. लहसुन में पत्तियों सहित बंडल बना कर रखने से नुकसान कम होता है.

फूल और सुगंधित फसलें

* गुलाब की फसल में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें.

* रजनीगंधा में 15 दिनों के अंतराल पर दिए गए पोषक तत्त्व के मिश्रण को 400 लटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से पर्णीय छिड़काव (फसल अवधि में कुल 16 छिड़काव) करें.

यूरिया 1.108 किलोग्राम, डीएपी 1.308 किलोग्राम, पोटैशियम नाइट्रेट 0.875 किलोग्राम, टी पाल 0.1 फीसदी.

* मेंथा में 10-12 दिनों के अंतर पर सिंचाई और निराईगुड़ाई करें. नाइट्रोजन की बची एकतिहाई मात्रा (40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) की टौप ड्रेसिंग का काम करें.

Gardening : बागबानों को उन्नति का रास्ता है फल उत्कृष्टता केंद्र

Gardening : इजरायल की कृषि तकनीक दुनियाभर में जानी जाती है. खेतीबारी से जुड़ी तकनीक और उस से जुड़ी आधुनिक मशीनरी यहां की खेती को बेहद ही आसान बना देते हैं. इजरायल सरकार ने अपने इसी अत्याधुनिक कृषि तकनीक के तहत भारत सरकार के साथ हुए इस समझौते के तहत उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद में फलसब्जियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए उद्यानिक प्रयोग और प्रशिक्षण केंद्र, बस्ती में सैंटर औफ ऐक्सीलैंस फौर फ्रूट यानी फल उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की गई है.

कई दशकों से देश में अनाज, फल और सब्जियों का भले ही उत्पादन बढ़ा हो, लेकिन यह देश की तेजी से बढ़ती आबादी के लिए नाकाफी साबित हो रहा है. यही वजह है कि उपजाऊ जमीनों की प्रचुरता के बाद भी देश को कई तरह के खाद्यान्नों और कृषि उत्पादों के लिए दूसरे देशों से आयात पर निर्भर होना पड़ता है.

देश के किसानों की हालत और खेती के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. देश में क्षेत्रफल के नजरिए से उत्पादन भले ही बढ़ रहा हो, लेकिन लागत के मुकाबले आज भी किसानों को फायदा नहीं मिल पा रहा है. इस की वजह यही है कि खेती के लिए सरकार की लचर नीतियों से ले कर उन्नत खादबीज, तकनीकी यंत्रीकरण व प्रोसैसिंग भी है.

किसानों के लिए खेती में जो सब से बड़ी समस्या आ रही है, वह है मार्केटिंग की. किसान अनाज, फलफूल, सब्जियां वगैरह उगा तो लेता है, लेकिन जब उसे बेचने की बारी आती है तो वह सरकार की ढुलमुल नीतियों के चलते खरीद केंद्रों और मंडियों के चक्कर लगा कर थक जाता है. अंत में थकहार कर बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने कृषि उत्पादों को औनेपौने दामों पर बिचौलियों के हाथों बेचने के लिए मजबूर हो जाता है.

किसानों की समस्याएं यहीं नहीं खत्म हो जाती हैं, बल्कि सब से बड़ी समस्या कर्ज न चुका पाने की है. किसान कर्ज के बोझ से लगातार दबा रहता है और कर्जा न चुका पाने की हालत में आत्महत्या जैसे सख्त कदम उठाने को मजबूर हो जाता है.

सरकारी महकमों और उस के मुलाजिमों द्वारा किसानों को बुरी नजर से देखा जाना खेती के बरबाद होने की प्रमुख वजहों में से एक है. इन्हीं वजहों के चलते किसान अपने नौनिहालों को खेतीबारी से दूर नौकरियों के लिए तैयार कर रहे हैं. अगर ऐसा ही रहा तो एक दिन खेती करने वाला कोई न बचेगा. तब देश में भुखमरी के हालात पैदा होने में देर नहीं लगेगी.

अगर खेती को बचाना है और खेती से मुंह मोड़ रहे किसानों और नौनिहालों को खेती से जोड़ना है तो खेती को रोजगार का मजबूत जरीया बनाना होगा. जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक यों ही बरबाद और तबाह होते रहेंगे. अगर यही हालात रहे तो देश के सामने खाद्यान्न संकट गहरा सकता है.

किसानों के इन हालात को सुधारने के लिए सरकार द्वारा कोई भी ऐसा ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है जिस से खेती के लिए जरूरी चीजें समय से किसानों को मुहैया हो सकें. कृषि उत्पादों को समय से बाजार और उचित मूल्य मिल सके.

जिन देशों ने खेती की अहमियत को समझा है, वहां की खेती ने उस देश की तरक्की के न केवल रास्ते खोले हैं बल्कि वहां की खेती की तकनीक भी देशदुनिया में नजीर बन कर उभरी है. इन्हीं देशों में से एक है इजरायल.

इजरायल की कृषि तकनीक दुनियाभर में जानी जाती है. यह सब यों ही नहीं संभव हुआ है बल्कि वहां के नौकरशाह से ले कर जनप्रतिनिधि और नौजवानों से ले कर औरतों तक को अपनी जिम्मेदारियों के अलावा खेतों में काम करते हुए देखा जा सकता है. खेतीबारी से जुड़ी तकनीक और उस से जुड़ी आधुनिक मशीनरी यहां की खेती को बेहद ही आसान बना देते हैं.

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इजरायल सरकार ने अपने इसी अत्याधुनिक कृषि तकनीक के तहत भारत सरकार से हुए एक समझौते के तहत खेती और बागबानी में सहयोग करने पर समझौता किया है.

भारत सरकार के साथ हुए इस समझौते के तहत उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद में फलसब्जियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए उद्यानिक प्रयोग और प्रशिक्षण केंद्र, बस्ती में सैंटर औफ ऐक्सीलैंस फौर फ्रूट यानी फल उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की गई है. इस के जरीए पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों को बागबानी में नईनई तकनीकों का इस्तेमाल कर सस्ती खेती में ज्यादा उत्पादन किए जाने की जानकारी, ट्रेनिंग व तकनीकी मुहैया कराई जा रही है.

इसी के साथ यहां पर उन्नत किस्म के पौधों की नर्सरी तैयार कर बागबानी के जरीए किसानों और नौजवानों को जोड़ कर रोजगार मुहैया कराए जाने का भी काम किया जा रहा है. इस केंद्र के जरीए किसानों को मार्केटिंग और प्रोसैसिंग की जानकारी भी दिए जाने का काम किया जा रहा है.

इजरायल सरकार द्वारा बस्ती जिले के उद्यान विभाग के मुख्य केंद्र बस्ती व प्रदर्शन क्षेत्र बंजरिया को चुना गया है. यहां हाईटैक तरीके से पौधशालाओं में विभिन्न किस्मों की सब्जियों के पौधों व फलदार पौधों की नर्सरी तैयार कर किसानों को मुहैया कराए जाने का काम किया जा रहा है.

इस केंद्र को खेती के हाईटैक संसाधनों से लैस किया गया है. इस में आटोमैटिक सिंचाई व उर्वरक, संयंत्र, मौसम पूर्वानूमान यंत्र, हाईटैक पौधशाला व प्रशिक्षण केंद्र सहित कई तरह की उन्नत तकनीकों को देखा जा सकता है.

फल उत्कृष्टता केंद्र, बस्ती द्वारा फल व सब्जियों के उत्पादन में वृद्धि के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों को उन्नतशील पौधे हाईटैक नर्सरी, पौलीहाउस के जरीए तैयार कर मुहैया कराए जा रहे हैं. इस केंद्र पर देशविदेशों की उन्नतशील प्रजातियों का संकलन कर उन की नर्सरी तैयार किए जाने का काम भी किया जा रहा है.

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राज्य सरकार के सहयोग से बने ‘फल उत्कृष्टता केंद्र’ में बागबानी को बढ़ावा देने के लिए आधुनिकतम तरीकों से काम किया जा रहा है ताकि दूसरे रोजगार की तरफ मुड़ चुके नौजवानों को भी बागबानी से जोड़ कर उन्हें रोजगार मुहैया कराए जाने पर काम किया जा रहा है. यहां की विशेषताएं, जो इस केंद्र को किसानों के लिए मुफीद जानी जा सकती हैं, निश्चित ही बागबानी की दिशा में एक अनूठा कदम होंगी.

हाईटैक नर्सरी में पौधों को तैयार करने पर किसान लेते हैं जानकारी : सैंटर औफ ऐक्सीलैंस फौर फ्रूट के क्षेत्र में तकरीबन 1,152 वर्गमीटर में आधुनिक व उच्च तकनीक से युक्त पौधशाला बनाई गई है. इस में किसानों के लिए हर साल तकरीबन 10,00,000 पौधे तैयार किए जा रहे हैं. इस का मकसद किसानों को फलसब्जियों से ज्यादा उत्पादन प्राप्त करने के लिए या बीमारियों से मुक्त पौधे मुहैया कराना है.

पौधशाला में पौधों को इस इस तरह से तैयार किया गया है जिस से सालभर यहां पौधे तैयार किए जा रहे हैं. इस में पौधों की जरूरत के मुताबिक तापमान कम व ज्यादा किए जाने की सुविधा है.

इस हाईटैक नर्सरी को मजबूत पौलीथिन शीट से तैयार किया गया है. इस के चलते पौधों के ऊपर कीट व बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है और पौधशाला में पौध उत्पादन के लिए मिट्टी की जगह पर कोकोपीट और वर्मीकुलाइट और परलाइट का इस्तेमाल किया जाता है जिस से बीजों का जमाव अच्छा होने के साथ ही साथ पौधों की बढ़वार भी तेजी से होती है.

इस पौधशाला में टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च, गोभी, बैगन, पपीता, तोरई, लौकी, भिंडी, कद्दू व करेला वगैरह के सब्जी पौध तैयार कर लागत मूल्य पर ही किसानों को मुहैया कराए जा रहे हैं.

नैचुरली वैंटिलेटेड पौलीहाउस : इस पौलीहाउस को 2,016 वर्गमीटर में लगाया गया है. इस में पौधों को नियंत्रण दशा में रखने पर बड़ी तेजी से पौधों की बढ़वार होती है. इस में आम की विभिन्न प्रजातियों के कलमी पौधे तैयार किए जाते हैं.

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यहां से कलम बांधे गए पौधों को परिपक्वता के लिए शेड नैटहाउस में रखा जाता है. इन पौधों को आटोमैटिक टैक्नोलौजी के जरीए पोषक तत्त्व व पानी मुहैया कराया जाता है. इस में एकसाथ 25,000 कलमी आम के पौधे तैयार किए जा सकते हैं.

शेड नैटहाउस : ‘फल उत्कृष्टता केंद्र’ में शेड नैटहाउस का भी बंदोबस्त है. यह भी 2,016 वर्गमीटर के क्षेत्र में लगाया गया है. इस में भी एकसाथ 25,000 कलमी पौधे तैयार कर रखे जा सकते हैं. शेड नैटहाउस में नैचुरली वैंटिलेटेड पौलीहाउस में तैयार किए गए कलमी पौधों को रखा जाता है.

यहां इन पौधों को आटोमैटिक विधि द्वारा तय मात्रा में उर्वरक व पानी मुहैया कराया जाता है. साथ ही, समयसमय पर पैस्टीसाइड्स का छिड़काव कर रोग व कीट से मुक्त रखा जाता है. यहां से तैयार किए सेहतमंद पौधे किसानों को बेचे जाते हैं.

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इंसैक्ट प्रूफ नैटहाउस : इस केंद्र में तैयार होने वाले आम के कलमी पौधों के लिए 2,016 वर्गमीटर में इंसैक्ट प्रूफ नैटहाउस में आम के 290 मातृ पौध तैयार करने के लिए बड़ेबड़े सीमेंट के गमलों में रोपित किया गया है. इस से कलमी पौधों को तैयार करने के लिए रसायन स्टिक यानी ग्राफ्टिंग, कीट व बीमारी से पूरी तरह मुक्त रहें.

आटोमैटिक फर्टिगेशन यूनिट : बागबानों को सिंचाई व उर्वरक के समुचित इस्तेमाल की जानकारी देने व केंद्र के प्रदर्शन ब्लौक व नैचुरली वैंटीलेटेड के पौधों के लिए कंप्यूटर प्रोग्रामिंग से जुड़े आटोमैटिक फर्टिगेशन यूनिट की स्थापना की गई है. इस के जरीए यहां तैयार होने वाली नर्सरी के पौधों को जरूरत के मुताबिक पोषक तत्त्व व सिंचाई सुविधा मुहैया कराई जाती है.

इस के लिए इस संयंत्र में अलगअलग टैंकों में रखे हुए उर्वरक को इस से जोड़ा गया है. इस में रखे गए खाद, पोषक तत्त्व व उर्वरक खुद ही पानी में घुल कर पौधों में पहुंच जाता है.

आटोमैटिक वैदर स्टेशन : ‘फल उत्कृष्टता केंद्र’ में पौधों को समय से सिंचाई की उपलब्धता के लिए आटोमैटिक वैदर स्टेशन की स्थापना की गई है जो प्रतिदिन के वातावरण में वाष्पीकरण की मात्रा को रिकौर्ड करता है.

इस केंद्र के प्रभारी अधिकारी सुरेश कुमार ने बताया कि आटोमैटिक वैदर स्टेशन द्वारा मिट्टी से पानी के वाष्पीकरण, अधिकतम व न्यूनतम तापमान, आपेक्षित आर्द्रता यानी नमी की रीडिंग 24 घंटे वैदर स्टेशन द्वारा रिकौर्ड की जाती है. इस के आधार पर फसलों को दिए जाने वाले पानी की मात्रा की गणना कर कंप्यूटर में प्रोग्रामिंग कर दी जाती है.

केंद्र में तैयार हो रहे आम की रंगीन प्रजातियों से बढ़ेगी किसानों की आमदनी : डाक्टर आरके तोमर, संयुक्त निदेशक, उद्यान, बस्ती मंडल ने बताया कि किसानों, महिलाओं और नौजवानों को बागबानी के जरीए रोजगार से जोड़ने के लिए केंद्र पर विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों व भारतीय अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित की गई आम की रंगीन प्रजातियों के पौधों को संकलित कर उन का मदर ब्लौक लगाया गया है. इस से इलाके के किसानों को आम की रंगीन प्रजाति के पौधे तैयार कर मुहैया करा जा सकें ताकि किसान आम की बागबानी से अच्छी आमदनी ले सकें.

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किसानों की क्षमता बढ़ाने के लिए बागबानी की ट्रेनिंग : प्रभारी अधिकारी सुरेश कुमार ने बताया कि बागबानी से जुड़े किसानों की क्षमता बढ़ाने के लिए इजरायल सरकार के सहयोग से केंद्र परिसर में अत्याधुनिक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई है. यहां पर बस्ती मंडल सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों को बागबानी की नई तकनीक के बारे में बताया जा रहा है.

पिछले साल यहां पर विभिन्न जिलों के 2150 किसानों को ट्रेंड किया गया था, वहीं इस साल 500 किसानों को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य रखा गया है. बीते साल विभिन्न जिलों के 52 किसानों को हरियाणा राज्य के करनाल जिले के घरोंडा में स्थापित सैंटर औफ ऐक्सीलैंस में आधुनिक बागबानी की ट्रेनिंग कराई गई थी.

डाक्टर आरके तोमर ने बताया कि इस केंद्र पर किसानों को फल उत्पादन, सघन बागबानी, नर्सरी तैयार करने, कैनोपी प्रबंधन, पुराने बागों को फिर से सुधारने व ड्रिप सिंचाई, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खीपालन व माली प्रशिक्षण की जानकारी व ट्रेनिंग दी जा रही है.

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उन्होंने यह भी बताया कि बागबानी की लागत में कमी लाने और कीट व रोगों से पौधों के बचाव के साथ ही उन्नतशील पौधों की नर्सरी तैयार करने से ले कर ज्यादा उत्पादन देने व प्रोसैसिंग के साथसाथ मार्केटिंग से जुड़ी सभी जानकारी केंद्र के जरीए किसानों को दी जा रही है ताकि पूर्वांचल के किसान बागबानी को अपना कर इसे रोजगार का साधन बना सकें. केंद्र का मुख्य मकसद किसानों की आमदनी में इजाफा करने के साथ ही साथ उन के स्वस्थ जीवन स्तर को बढ़ावा देना भी है.

Spicy Chaat : दहीबड़ा (Dahi Vada) चटपटी चाट और लजीज व्यंजन

Spicy Chaat : दहीबड़ा (Dahi Vada) ऐसा खाने का सामान है जिस को चाट और खाना दोनों के साथ इस्तेमाल किया जाता है. वैसे तो दहीबड़ा (Dahi Vada) एक ही व्यंजन माना जाता है. प्रमुख रूप से यह दही और बड़ा 2 अलगअलग खाने की चीजों से मिल कर बनता है. बड़ा उड़द और मूंग दाल दोनों से बनता है. उत्तर भारत के अवध क्षेत्र में यह उड़द दाल से अधिक तैयार किया जाता है. छोटी से बड़ी कोई दावत हो, दहीबड़ा (Dahi Vada) के बिना पूरी नहीं होती है. चाट की कोई ऐसी दुकान नहीं होती है जहां दहीबड़ा(Dahi Vada) न मिलता हो.

स्ट्रीट फूड से ले कर रैस्टोरैंट तक में हर जगह दहीबड़ा (Dahi Vada) मिलता है. उत्तर भारत में खाने और चाट दोनों के साथ इस का इस्तेमाल किया जाता है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में केवल दहीबड़ा (Dahi Vada) बेचने वाली कई मशहूर दुकानें भी हैं जो केवल मीठे दहीबड़े (Dahi Vada) ही बेचती हैं. लोगों की पसंद को देखते हुए चाट की दुकानों में भी दहीबड़ा (Dahi Vada) बनने लगे हैं. बड़ी दुकानों में एक प्लेट दहीबड़ा की कीमत 80 रुपए तक पहुंच गई है.

दहीबड़ा बनाने में बहुत ही आसान और खाने में मजेदार होता है. दहीबड़ा हर दिल को भाता है. बच्चों को बहुत पसंद है, साथ में सेहत से भरपूर है. इस वजह से यह गांव से ले कर शहर तक हर जगह पर इस का इस्तेमाल होता है. शादीविवाह की दावत में इस का खासतौर पर इस्तेमाल किया जाता है. उड़द दाल की सब से ज्यादा खपत दहीबड़ा बनाने में ही होती है.

उत्तर भारत में उड़द दाल की खेती की सब से बड़ी वजह यही है कि यहां दहीबड़ा का इस्तेमाल खूब होता है. शायद ही चाट की कोई ऐसी दुकान हो, शादी की कोई ऐसी दावत हो, जिस में दहीबड़ा न बनता हो.

उड़द दाल से बड़ा बनाने के लिए सामान : 250 ग्राम उड़द दाल, आधा कड़ाही तेल तलने के लिए, नमक स्वादानुसार, आधी चम्मच हींग, मिक्सर ग्राइंडर, बड़ा बनाने वाला सांचा, जिस में कम समय में ज्यादा बड़ा बन जाते हैं.

दहीबड़ा बनाने के लिए सामग्री : एक चम्मच भुना जीरा पाउडर, आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, 2 कटोरी दही, एक छोटी कटोरी मीठी चटनी, एक छोटा चम्मच नमक मिला लें. इन को आपस में मिला कर दही तैयार हो जाता है.

जब दहीबड़ा परोसना हो, तब धीमे से बड़ा निकालें. इसे पहले से तैयार दही में डाल दें और परोस दें.

बबिता श्रीवास्तव कहती हैं कि दहीबड़ा को ऊपर से गार्निश करने के लिए हरा धनिया और मीठी चटनी के साथ चाट मसाला डाल सकते हैं. दहीबड़ा चाट की तरह और खाने के साथ भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

उड़द दाल का बड़ा बनाने की विधि

उड़द दाल को अच्छे से धो कर पानी में 5 घंटे के लिए भिगो दें. अब पानी हटा दीजिए. दाल मिक्सी में डालिए और साथ में नमक व हींग डालिए. इसे पीस लें, जब तक चिकना पेस्ट न बन जाए.

अब कड़ाही लीजिए और तेज आंच पर रखिए. गरम होने के लिए तेल डालिए. बड़ा बनाने वाले सांचे से बड़े तैयार कीजिए. जब तेल गरम हो जाए, तब कड़ाही में बड़ा संभाल कर डालें. एक मिनट बाद इन को पलट दें. ऐसे ही पलटते रहें, जब तक कि सुनहरा न हो जाए. अब उन्हें बाहर निकालिए.

उड़द दाल के बड़े आप सूखे भी खा सकते हैं, ये खाने में बहुत स्वादिष्ठ लगते हैं. दहीबड़ा बनाने के लिए एक बड़े कटोरे में पानी लीजिए और आधा चम्मच नमक डालिए. अब उस में बड़ा डाल दें. आधा घंटे तक भीगने दें. जब आप को दहीबड़ा परोसना हो तब धीमे से बड़ा निकालें और पानी निचोड़ लें.

अब इस को पहले से तैयार दही में डाल दीजिए. अगर चाहें तो पानी में भीगे हुए ये बड़े 2 से 4 दिन तक महफूज रख सकते हैं. यह खराब नहीं होते हैं. ऐसे में जब खाने का समय हो तो दही में डाल कर इस को ताजा कर लें.

दहीबड़ा में सब से जरूरी होता है कि इस का दही कभी खट्टा न हो. खट्टा होने पर दहीबड़ा का स्वाद खराब हो जाता है.

Agricultural Equipment: कृषि यंत्रों से करें खरपतवार नियंत्रण

Agricultural Equipment : खेतीबारी में अब किसानों की मेहनत को कम करने के लिए मशीन बनाने वालों ने ऐसेऐसे यंत्र बना दिए हैं, जो बड़े काम के साबित हो रहे हैं. खरीफ की फसल में कुछ यंत्र बड़े उपयोगी होते हैं, जो किसानों को खरपतवार हटाने में मददगार बनते हैं.

ऐसे ही कुछ कृषि यंत्रों की जानकारी का लाभ उठाइए.

खरीफ के मौसम में मक्का, ज्वार, बाजरा जैसी फसलों को किसान उगाते हैं जो अनाज के अलावा पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस के अलावा दलहनी फसलों में अरहर, मूंग, उड़द, ज्वार आदि की भी खेती की जाती है.

इन फसलों से अच्छी उपज लेने के लिए किसान उन्नत किस्म के बीज बोने के साथ समयसमय पर फसल में खादपानी भी देते रहें. इस के बावजूद भी फसल में कुछ समय बाद अनेक तरह के खरपतवार उग आते हैं जो खेत में बोई गई फसल की बढ़वार में रुकावट पैदा करते हैं.

खरपतवार खासकर बोआई के 15 दिन बाद ही पनपने लगते हैं इसलिए किसानों को चाहिए कि वे इन खरपतवारों की रोकथाम पर खासा ध्यान दें जिस से फसल से बेहतर उपज ले सकें.

खरपतवार रोकने के लिए समयसमय पर निराईगुड़ाई करना बहुत जरूरी है. निराईगुड़ाई के लिए आज देश में अनेक कृषि यंत्र मौजूद हैं जो इस काम को आसान बनाते हैं. हाथ से चलाने वाले यंत्रों के अलावा पावरचालित यंत्र भी हैं. अनेक छोटेबड़े कृषि यंत्र निर्माता इन्हें बना रहे हैं.

निराईगुड़ाई में कृषि यंत्रों का इस्तेमाल :ध्यान रखें कि ये कृषि यंत्र लाइन में बोई गई फसलों के लिए बेहतर नतीजे देते हैं इसलिए फसल की बोआई लाइनों में ही करनी चाहिए, जबकि बिखेर कर बोई गई फसल में ये यंत्र कारगर नहीं हैं और इस तरह से बोई फसल में पैदावार भी कम ही मिलती है.

पावर वीडर यंत्र

यह मध्यम आकार का यंत्र है. पावर वीडर यंत्र ऐसे किसानों के लिए फायदेमंद है जो बड़ी मशीनें नहीं खरीद पाते हैं. छोटे साइज से ले कर बड़े साइज तक में यह यंत्र आता है. अपनी सुविधानुसार इस का इस्तेमाल किया व खरीदा जा सकता है.

यह यंत्र लाइन में बोई गई सब्जियों, गन्ना, कपास, फूलों की फसल, दलहनी फसलें वगैरह सभी के लिए फायदेमंद है. पहाड़ी इलाकों के लिए भी यह यंत्र सुविधाजनक होता है क्योंकि ऐसे इलाकों में छोटेछोटे खेत होते हैं जहां बड़े यंत्रों का पहुंचना कठिन होता है.

पावर वीडर यंत्र को चलाना बहुत ही आसान है. इस में एक इंजन लगा होता है जो यंत्र के हिसाब से कम या ज्यादा शक्ति का हो सकता है. ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के पिछले कई अंक में इस प्रकार के अनेक यंत्रों की जानकारी दी गई है.

देश में अनेक प्रगतिशील किसान और कृषि यंत्र निर्माता हैं जो ऐसे यंत्रों को बना रहे हैं जिस से किसान फायदा उठा सकते हैं.

सरकार की तरफ से इन कृषि यंत्रों की खरीद पर सरकारी अनुदान भी दिया जाता है जो राज्य और जाति के अनुसार कम या ज्यादा हो सकती है.

पावर वीडर यंत्र खरीदते समय सरकारी अनुदान का फायदा लेने के लिए जिला कृषि अधिकारी या जिला उद्यान या बागबानी कार्यालय में मिलें. जरूरी कागजात जमा कराने के बाद वरीयता के आधार पर इन यंत्रों पर अनुदान उपलब्ध कराया जाता है.

ट्रैकऔन कल्टीवेटर कम वीडर

ट्रैकऔन कंपनी के इस निराईगुड़ाई यंत्र से गन्ना, कपास, मैंथा, फूल, पपीता, केला, सब्जियां व दूसरी लाइनों में बोई गई फसलों की निराईगुड़ाई की जाती है. साथ ही, इस यंत्र से खेत में डाली गई खाद को भी आसानी से मिलाया जा सकता है.

इस यंत्र से निराईगुड़ाई का खर्चा बहुत कम आता है. इस यंत्र को कहीं भी ले जाना आसान है. इस यंत्र को धकेलना नहीं पड़ता. यह चलाने में बहुत ही आसान है और जरूरत के मुताबिक रोटर की चौड़ाई 12 से 18 इंच व गहराई घटाईबढ़ाई जा सकती है इसलिए इस यंत्र से खेत की जुताई की जा सकती है.

पैट्रोल और डीजल से चलने वाले इस के 2 मौडल बाजार में मुहैया हैं. इन दोनों मौडलों में एयरकूल्ड 4 स्टोक इंजन लगा है. मशीन का कुल वजन तकरीबन 80 किलोग्राम है.

ज्यादा जानकारी के लिए आप मोबाइल फोन नंबर 9412703140 या वैबसाइट से जानकारी ले सकते हैं.

Agricultural Equipment

बीसीएस का इटैलियन पावर वीडर

‘पावर वीडर कई यंत्रों का लीडर’ जी हां, इस यंत्र पर यह बात सटीक बैठती है. पावर वीडर से निराईगुड़ाई के अलावा अनेक काम किए जा सकते हैं. बीसीएस ने पावर वीडर के साथ ऐसे यंत्रों को पेश किया है जिन्हें इस वीडर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है:

लौन मूवर : इस यंत्र को पावर वीडर से जोड़ कर लौन, बागबगीचे की घास को आसानी से काटा जाता है.

सीड ड्रिल : इस यंत्र को पावर वीडर से जोड़ कर खेत की बोआई कर सकते हैं.

स्प्रे पंप : पावर वीडर के साथ स्प्रे पंप जोड़ कर आटोमैटिक तरीके से खेत में कृषि रसायनों का छिड़काव या अन्य तरल पदार्थ का भी छिड़काव कर सकते हैं.

ग्रास कटर: यह घास काटने का कृषि यंत्र है. इसे पावर वीडर के आगे जोड़ कर चलाया जाता है. यह बड़ी ही सफाई के साथ घास काटता है.

बीसीएस के कृषि यंत्रों के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए मोबाइल फोन नंबर 09758577305, 09416668485 पर संपर्क कर सकते हैं.

अशोका पावर वीडर

डीजल व पैट्रोल दोनों से चलने वाले इस यंत्र से कपास, गन्ना, लाइन में बोई गई सब्जियां वगैरह की निराईगुड़ाई की जाती है.

ज्यादा जानकारी के लिए आप कंपनी के फोन नंबर 91-5924-273176 या मोबाइल नंबर 09412636370 पर बात कर सकते हैं.

फाल्कन पावर वीडर

यह कंपनी पावर वीडर के अलावा अनेक प्रकार के बागबानी में काम आने वाले यंत्र बनाती है. इन के यंत्र के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए कंपनी की वैबसाइट  या उन के फोन नंबर 91-161-2811899 पर संपर्क कर सकते हैं.

समेकित खेती (Integrated Farming) समय की जरूरत

Integrated Farming : नालंदा जिले की रहने वाली अनिता देवी ने कभी सोचा भी नहीं था कि समेकित खेती से उन की और उन के परिवार की दशा और दिशा ही बदल जाएगी. साल 2008 तक वे परंपरागत खेती करती रहीं और कई तरह की कठिनाइयों से जूझती रहीं. एक दिन उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी और मशरूम की खेती करने का मन बनाया. उन्होंने इस के लिए बाकायदा ट्रेनिंग ली और मशरूम का उत्पादन चालू कर दिया. मशरूम बीज उत्पादन, मछलीपालन, मुरगीपालन और मधुमक्खीपालन भी शुरू कर दिया.

समेकित खेती करने पर अनिता को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार दिया था. इस के अलावा साबौर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें नवाचार कृषक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

छोटे से खेत से भी समेकित खेती कर के किसान अपने परिवार का बेहतर तरीके से लालनपालन कर सकते हैं. परंपरागत खेती के साथ मुरगीपालन, मछलीपालन, मधुमक्खीपालन व बीज उत्पादन आदि कर के किसान अपनी आमदनी को कई गुना ज्यादा बढ़ा सकते हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पिछले 5 सालों से उत्तर बिहार के मखाना किसानों को मखाने के साथसाथ सिंघाड़े की समेकित खेती करने के गुर सिखाने में लगा हुआ है. इस दौरान केंद्र ने इस प्रयोग पर करीब 25 लाख रुपए खर्च कर दिए, पर महज 23 हेक्टेयर जलक्षेत्र में ही समेकित खेती करने में कामयाबी मिल सकी है.

कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि अगर बिहार के सभी मखाना किसान एकसाथ समेकित खेती करें, तो उन की आमदनी में 2 गुना इजाफा हो सकता है.

फिलहाल प्रयोग के तौर पर दरभंगा जिले और उस के आसपास के 23 हेक्टेयर जलक्षेत्रों में मखाने के साथ मछली और सिंघाड़े की खेती की गई है. उत्तर बिहार के 13000 हेक्टेयर जलक्षेत्र में मखाने की खेती की जाती है. इन सभी तालाबों और पोखरों में समेकित खेती करने के लिए किसानों को जागरूक बनाया जा रहा है.

बिहार में कुल जलक्षेत्र 3 लाख 61 हजार हेक्टेयर में फैला हुआ है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना सेंटर और दरभंगा के मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों के ताजा शोध में यह बात उभर कर सामने आई है कि 1 हेक्टेयर जलक्षेत्र में अगर केवल मखाने की खेती की जाती है, तो प्रति हेक्टेयर 40000 रुपए की आमदनी होती है.

अगर इतने ही जलक्षेत्र में मखाने के साथ मछली और सिंघाड़े की खेती भी की जाए, तो आमदनी की रकम 80000 रुपए तक हो सकती है. यह आमदनी कुल लागत को निकालने के बाद होती है. प्रति हेक्टेयर जलक्षेत्र में मखाने की खेती करने के बाद अगर उस में मछलीपालन किया जाए तो 11000 रुपए और सिंघाड़ा लगाने पर 17000 रुपए का अतिरिक्त खर्च आता है.

बिहार सरकार ने समेकित खेती को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में शामिल कर रखा है. सरकारी दावा है कि समेकित खेती के जरीए 1 एकड़ खेत का मालिक भी खेती कर के अपने समूचे परिवार का पेट भर सकेगा और अपनी सुखसुविधाओं पर भी रकम खर्च कर सकेगा. जलजमाव वाले इलाकों में मछलीपालन के साथ बकरीपालन और मुरगीपालन भी किया जा सकता है.