किसान ऐप (Kisan App) के जरीए 1,000 रुपए का मिलेगा अनुदान

शाजापुर : मध्य प्रदेश शासन द्वारा किसानों को तत्काल अनुदान का लाभ देने के लिए किसान कल्याण विभाग के अंतर्गत ई-रूपी योजना शुरू की गई है, जिस में किसान अपने मोबाइल में किसान ऐप डाउनलोड कर उस में अपना पंजीयन करा कर राष्ट्रीय खाद्य एवं पोषण सुरक्षा मिशन/नेशनल मिशन औन इडिबल औयल (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन तिलहन) के अंतर्गत आईएनएम/आईपीएम घटक के अंतर्गत 2 हेक्टेयर तक कीटनाशक दवा ले सकते हैं, जिस पर 1,000 रुपए का अनुदान तत्काल ई-रूपी में प्राप्त होगा.

योजना में किसान भाई के द्वारा ऐप में पंजीयन के बाद मोबाइल पर क्यूआर कोड का एसएमएस प्राप्त होगा. किसान उस क्यूआर कोड को ऐसे आदान विक्रेता, जिन्होंने बैंक औफ महाराष्ट्र में खाता खुलवाया है के यहां जा कर अपनी कीटनाशकों की औषधि प्राप्त कर सकते हैं. आदान विक्रेता को अपने जिले की किसी भी बैंक औफ महाराष्ट्र में खाता खुलवाना आवश्यक है. खाता खुलवाने के लिए संस्था का रजिस्ट्रेशन, पेनकार्ड/संस्था का आधार नंबर (कोई भी एक), आधारकार्ड, प्रोपाराइटर/पार्टनर पेनकार्ड प्रोपराइटर/पार्टनर, 2 पासपोर्ट साइज के  फोटो आवश्यक हैं.

कम लागत में अधिक उत्पादन, एनपीके (NPK) का है कमाल

भिंड : उपसंचालक, कृषि, राम सुजान शर्मा ने बताया कि जिले में खरीफ में बाजरा के बाद धान मुख्य फसल के रूप में उगाई जाती है. किसी भी फसल के अधिकतम और गुणवत्तापूर्ण उपज प्राप्त करने के लिए संतुलित मात्रा में पोषण प्रबंधन करना अति महत्वपूर्ण है. इस परिपेक्ष्य में भिंड जिले में ज्यादातर किसान फसलों में असंतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करते हैं, जिस से मिट्टी की सेहत खराब होती है.

जिले की मुख्य फसल बाजरा है. मानसून शुरू होते ही किसान फसल के लिए खेतों में उर्वरक डाल रहे हैं.
यहां फसल के उच्चतम उत्पादन के लिए वैज्ञानिक अनुशंसा उर्वरकों के लिए की गई है. जिस से प्रति हेक्टेयर लागत भी कम हो और उत्पादन अधिकतम लिया जा सके. इस के अतिरिक्त किसान डीएपी की ज्यादा मांग करते हैं. यहां किसानों को समझना होगा कि किस फसल के लिए कौन सी खाद उपयुक्त है और किस मात्रा में किस प्रकार दिया जाना है.

डीएपी में दो तत्व होते हैं. 18 फीसदी नाइट्रोजन और 46 फीसदी फास्फोरस, इस की फास्फोरस मात्र 39 फीसदी पानी में घुलनशील है और बाक़ी मिट्टी में बांड हो जाती है.

डीएपी दलहनी और फूल वाली फसलों के लिए उपयुक्त खाद है. इस की कीमत प्रति 50 किलोग्राम 1,350 रुपए है. इस की तुलना में दानेदार फसलों के लिए एनपीके, जो 12:32:16  और 16:16:16 फार्मूलेशन में आता है. ये विशेषतः धान, बाजरा, ज्वार की फसल के लिए सब से उपयुक्त खाद माना जाती है. इस का फास्फोरस डीएपी की तुलना में पानी में अधिक घुलनशील है, लगभग इस का फास्फोरस 90 फीसदी घुलनशील है, जो फसल को आसानी से उपलब्ध हो जाता है. साथ ही, इस में पोटाश भी 16 फीसदी होता है, जो दाने में चमक के लिए होता है. इस की कीमत भी 1,250 प्रति 50 किलो बैग है, जो डीएपी से 150 रुपए कम है.

अतः फसल के लिए आधार रूप में किसान डीएपी के स्थान पर एनपीके का उपयोग कर फसल को ज्यादा और कम लागत में उगा सकते हैं.

उपसंचालक, कृषि, राम सुजान शर्मा ने किसानों से अपील करते हुए कहा है कि यूरिया के साथ एनपीके और एसएसपी का अधिक से अधिक उपयोग करें. सभी किसान फसल के अनुसार अनुशंसित मात्रा में ही उर्वरक का उपयोग करें और लागत कम कर अधिक उपज प्राप्त करने का प्रयास करें और धरती को स्वस्थ बनाएं.

धान के लिए केवीके, लहार के वैज्ञानिकों ने एनपीके 12:32:16, 188 किलोग्राम, यूरिया 168 किलोग्राम, एनपीके 16:16:16 मात्रा 230 किलोग्राम, यूरिया 170 किलोग्राम मात्रा की अनुशंसा की है.

कम खेती (Farming) में कैसे करें अधिक कमाई

शहडोल : कमिश्नर, शहडोल संभाग, बीएस जामोद ने कहा है कि कम खेती में अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को कृषि की नई तकनीक सीखनी होगी. कमिश्नर ने कहा कि किसान उन्नत बीजों का उपयोग करें, खेती में कृषि यंत्रों का उपयोग करते हुए उर्वरकों का संतुलित मात्रा में उपयोग कर खेती से अच्छी पैदावार ले सकते हैं. उन्होंने माना है कि शहडोल संभाग के किसान रासायनिक खादों का कम उपयोग करते हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि किसानों को रासायनिक खादों का उपयोग भी संतुलित तरीके से करना चाहिए, वहीं जैविक खाद के उपयोग को भी बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए.

कमिश्नर बीएस जामोद ने किसानों को समझाइश देते हुए कहा कि किसान पशुपालन, मत्स्यपालन, मुरगीपालन कर अतिरिक्त आय अर्जित करने के प्रसास भी करें. वे शहडोल जिले के सोहागपुर तहसील के ग्राम चटहा में आयोजित कृषक प्रशिक्षण एवं खरीफ फसलों के बीज वितरण एवं किसान संगोष्ठी कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.

कमिश्नर बीएस जामोद ने कहा कि कृषि की लागत को कम करने के लिए किसान आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करें, सही समय पर फसलों की बोआई करें और दवाओं का छिड़काव भी समय पर करें.

उन्होंने कहा कि किसानों को कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए और कृषि के अलावा अन्य अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा. खेती के अलावा किसानेां को उद्यानिक फसलों की ओर भी ध्यान देना होगा.

किसान संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कलक्टर तरुण भटनागर ने कहा कि शहडोल जिले में पिछले वर्ष से इस वर्ष अच्छी बारिश हो रही है और फसलों की बोआई का लक्ष्य भी ज्यादा है.

उन्होंने किसानों से कहा कि किसान फसलों की बोआई समय पर करें. शहडोल जिले में धान की खेती ज्यादा होती है. कलक्टर ने किसानो को समझाइश देते हुए कहा कि धान की फसल को पानी की ज्यादा आवश्यकता होती है. उन्होंने सुझाव दिया कि जहां पानी कम है, ऐसे खेतों में धान की बोआई न करते हुए किसान मोटे अनाज जैसे कोदो, कुटकी भी लगा सकते हैं.

कलक्टर बीएस जामोद ने कहा कि शहडोल जिले में जैविक खाद के उपयोग पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. शहडोल जिल में जल गंगा संवर्धन में लगभग 2,000 से ज्यादा जल संरचनाओं का निर्माण किया गया है, इन जनसंरचनाओं का उपयोग किसान मछलीपालन के लिए करें.

उन्होंने कहा कि शहडोल जिले में मछलीपालन की विपुल संभावनाएं हैं. किसान मत्स्यपालन कर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकता है.

कलक्टर ने किसानों को बताया कि शहडोल जिले में कटक से सीआर 310 धान के बीज मंगाए गए हैं. किसान धान की इस किस्म का भी उपयोग कर सकते हैं. कलक्टर ने अरहर की पूसा -16 किस्म की जानकारी किसानों को देते हुए बताया कि शहडोल जिले के किसानों के लिए यह बीज फायदेमंद साबित होगा, पूसा -16 अरहर की बीज कम समय में पकने वाली है. इसे लगा कर किसान अरहर की अच्छी फसल ले सकते हैं.

किसान संगोष्ठी को संबोधित करते हुए जिला पंचायत सदस्य महीलाल कोल ने कहा कि किसान खेती में पैदावार बढाने के लिए मिट्टी का परीक्षण भी कराएं और संतुलित खाद का भी उपयोग करें.

किसान संगोष्ठी को संबोधित करते हुए संयुक्त संचालक, कृषि, शहडोल संभाग जेएस पेंद्राम ने कहा कि किसान खेती के साथसाथ पशुपालन, मत्स्यपालन, मुरगीपालन भी करें, इस से उन की आय में वृद्धि होगी.
उन्होंने आगे यह भी कहा कि निरंतर सोयाबीन की फसल लेने से जमीन की उर्वरता में कमी आती है. उन्होंने किसानों को सुझाव दिया कि वह मक्के और ज्वार की खेती कर खेती की उर्वरता बढ़ा सकते हैं.
जेएस पेन्द्राम ने कहा कि किसान गोबर खाद का भी उपयेाग करें और समन्वित खेती करने का प्रयास करें.

किसान संगोष्ठी में सहायक संचालक, मत्स्य, राजेश वास्तव, पशु चिकित्सा अधिकारी डा. दिलीप प्रजापति, उपयंत्री कृषि अभियांत्रिकी रितेश पयासी एवं सहायक संचालक उद्यानिकी ने किसानों को शासन द्वारा संचालित योजनाओं की जानकारी विस्तारपूर्वक दी.

इस अवसर पर जनपद उपाध्यक्ष शक्ति सिंह, जनपद सदस्य विक्रम सिंह, एसडीएम अरविंद शाह, उपसंचालक, कृषि, आरपी झारिया, तहसीलदार दिव्या सिंह, मुख्य कार्यपालन अधिकारी ममता मिश्रा एवं किसान उपस्थित रहे.

किसान संगोष्ठी में कमिश्नर, कलक्टर एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा किसानों को खरीफ सीजन में बोने वाली फसलों के बीजों के मिनी किट्स भी निःशुल्क दिए गए. इस अवसर पर किसानों को पौध रोपण के लिए उद्यानिकी विभाग द्वारा निःशुल्क आंवले के पौधे मुहैया कराए गए.

सांप काट ले तो क्या करें

छतरपुर : जिला प्रशासन छतरपुर द्वारा सर्पदंश यानी सांप के काटने के संबंध में एडवाइजरी जारी की गई है. सर्पदंश की घटना से घबराएं नहीं, सर्वदंश का अस्पताल में इलाज संभव है. लोगों से अपील की गई है कि सर्पदंश का इलाज झाड़फूंक नहीं है. इसलिए ओझागुनियां इस का इलाज नहीं कर सकते हैं. इस का उपचार केवल अस्पताल में ही मुमकिन है.

सीएमएचओ डा. आरपी गुप्ता ने बताया कि ज्यादातर लोग सांप के काटने पर जहर से कम और डर के कारण अपनी जान गवां देते हैं. यदि किसी को सांप काटता है, तो बिना देरी किए उसे तुरंत नजदीक के सरकारी अस्पताल में ले जाएं और झाड़फूंक में समय व्यर्थ न करें.

डाक्टरों का कहना है कि सिर्फ 10 फीसदी सांप ही जहरीले होते हैं, बाकी 90 फीसदी जहरीले नहीं होते. बरसात में सर्पदंश की घटनाओं से बचने के लिए अलर्ट रहना जरूरी है. इस में घर के प्रवेश करने वाले सभी स्थानों को बंद करना चाहिए, जैसे किचन, बाथरूम में पानी निकासी के रास्ते को भी बंद करना जरूरी है. घर में नीचे न सोएं, बेडशीट को भी बेड के नीचे नहीं लटकाना चाहिए. अंधेरे वाले स्थान में बिना रोशनी के न जाएं और घास व अधिक पत्तियों में भी संभल कर चलें. सांप काटने पर बिना घबराए हुए पीड़ित को अपने शरीर को अधिक हिलाना नहीं चाहिए. सब से पहले एम्बुलेंस नंबर 108 को फोन करना चाहिए. साथ ही, जितना जल्दी हो सके, अस्पताल में मरीज को एडमिट कराएं. पीड़ित को कुछ भी खिलानापिलाना नहीं चाहिए.

नैनो डीएपी से करें बीजोपचार

सीधी : खरीफ फसलों की बोआई की तैयारी में जुटे सभी किसानों से उपसंचालक, कृषि द्वारा अपील की गई है कि इस बार अपनी फसलों में नैनो डीएपी तरल का प्रयोग अवश्य करें. इस का प्रयोग बीज शोधन और छिड़काव दोनों रूप में किया जाता है.

उपसंचालक, कृषि द्वारा बताया गया कि नैनो डीएपी से बीजोपचार करने एवं फसलों पर छिड़काव करने से विभिन्न लाभ प्राप्त होता है. बीज अंकुरण के तुरंत बाद पौधे को पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जो परंपरागत डीएपी से समय पर नहीं मिल पाती.

उन्होंने बताया कि नैनो डीएपी के उपयोग से पौधे को तुरंत पोषक तत्व मिलते हैं, जिस से जड़ और पौधे की वृद्धि तेजी से होती है, पौधे में जड़ों की संख्या बढ़ती है, नमी की कमी होने पर पौधे की सूखा सहन करने की क्षमता बढ़ती है, पौधे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और नैनो डीएपी पर्यावरण और मिट्टी को कोई हानि नहीं पहुंचाता. यह परंपरागत डीएपी से सस्ता पड़ता है, परिवहन में आसान है और बीजोपचार और छिड़काव दोनों विधियों में यह उपयोगी है.

उपयोग की विधि

बीजोपचार : नैनो डीएपी तरल का बीजोपचार 5 मिलीलिटर प्रति किलोग्राम की दर से करें एवं उपचारित बीजों को 20-30 मिनट तक छांव में सुखाने के बाद ही बोएं.

जड़/कंद/सेट उपचार : नैनो डीएपी तरल का जड़/कंद/सेट उपचार 5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी का घोल बना कर जड़/कंद/सेट को 20 से 30 मिनट तक घोल में डुबोए रखें, फिर छाया में सुखाने के बाद रोपाई/बोआई करें.

पर्णीय छिड़काव : नैनो डीएपी तरल 4 मिलीलिटर प्रति लिटर साफ पानी की दर से घोल बना कर फसलों की वानस्पतिक अवस्था (कल्ले/शाखा बनते समय) या फूल निकलने से पहले वाली अवस्था पर छिड़काव करें.

4,290 रुपए प्रति क्विंटल पर कोदो खरीद और बिजली उत्पादन करेंगे किसान

बालाघाट : मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा कि कोदो या कुटकी हमारी सांस्कृतिक विरासत है. इस विरासत का बालाघाट जिले में इतिहास 3,000 साल पुराना इतिहास है. बालाघाट सिर्फ वन्यजीव, वन, खनिज संसाधनों के लिए ही नहीं जाना जाता है, बल्कि इस की पहचान यहां उत्पादित होने वाले मोटे अनाज से भी है. शासन मोटे का उत्पादन और संवर्धन करने के लिए लगातार काम कर रही है. अब रानी दुर्गावती  अन्न प्रोत्साहन योजना संवर्धन और उत्पादन की दिशा में काम करने के साथ ही किसानों को अधिक मुनाफा देने के लिए शासन द्वारा 1,000 रुपए का अनुदान किसानों को दिया जा रहा है. साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा इस साल कोदो 4290 रुपए समर्थन मूल्य पर खरीदने की घोषणा भी की गई है.

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने आगे यह भी कहा कि शासन के प्रयासों से मिलेट मिशन में  अन्न फसलों का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. बालाघाट में ही यह रकबा 10,000 हेक्टेयर होता था. अब इस का रकबा 15,200 हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखा गया है. मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव पिछले दिनों बालाघाट में  अन्न उत्सव व किसान सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे.

अब किसान अन्न उत्पादन के साथ ही ऊर्जा उत्पादक भी बनेंगे

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने किसानों को अन्न उत्सव व किसान सम्मान समारोह में संबोधित करते हुए कहा  कि राज्य शासन अब सोलर ऊर्जा को बढ़ावा देने की ओर बढ़ रही है. इस में किसानों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होगी. प्रदेश के किसान को अन्न उत्पादन के साथ ही बिजली उत्पादक भी बनाया जाएगा.

उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य शासन मिल कर किसानों को माली रूप से सशक्त करने के लिए किसान सम्मान निधि की राशि प्रदान कर रही है. केंद्र द्वारा हर साल 80 लाख किसानों को किसान सम्मान निधि के रूप में 25,000 करोड़ रुपए प्रदान कर रही है, वहीं राज्य शासन सीएम किसान कल्याण योजना में हर साल  12,500 करोड़ रुपए सीधे पात्र किसानों के खातों में दे रही है.

उन्होंने आगे कहा कि बालाघाट में जल संरचनाओं के संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय काम हुए हैं. इस के लिए बालाघाट के कामों का दस्तावेजीकरण भी किया जाएगा.

आयुष्‍मान योजना में बीमार व्‍यक्ति के उपचार के लिए होगी एयर एम्बुलेंस की सुविधा

मुख्‍यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा कि अब आयुष्‍मान कार्डधारी बीमार व्‍यक्ति को अगर इलाज के लिए दूसरे शहर जाने की जरूरत है, तो इस के लिए चिकित्‍सक, नर्स और उन्‍नत मैडिकल उपकरणों के साथ ही एयर एम्‍बुलेंस की व्‍यवस्‍था भी नि:शुल्‍क कराई जाएगी. साथ ही, बिना आयुष्‍मान कार्डधारी जरूरतमंद व्‍यक्तियों को रियायती दर पर सुविधा का भी लाभ दिया जाएगा.

उन्होंने जानकारी दी कि अब तक जबलपुर, ग्‍वालियर और रीवा जैसे शहरों में एयर टैक्‍सी की व्‍यवस्‍था शुरू कर दी गई है. इस तरह की व्‍यवस्‍था प्रदेश में ऐसे शहर जहां हवाईपट्टी की सुविधा है, वहां से एयर टैक्‍सी का संचालन शीघ्र किया जाएगा.

मुख्‍यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा कि 20 जुलाई को जबलपुर में रीजनल इं‍डस्‍ट्री कौन्‍क्‍लेव होगा, जिस से क्षेत्र के विकास को गति मिलेगी. जो रोजगार की दिशा में यह उल्‍लेखनीय कदम होगा.

उन्‍होंने कहा कि धर्मस्व विभाग द्वारा उन स्‍थलों को चिन्‍हांकित किया जाएगा, जहांजहां से भगवान  राम और  कृष्‍ण का प्रदेश में गमन हुआ है. उन स्‍थलों पर पर्यटन की दृष्टि से काम कर तीर्थ के रूप में विकसित करने का काम किया जाएगा.

मिलेट्स पर आधारित प्रदर्शनियों की मुख्‍यमंत्री ने की तारीफ

मुख्‍यमंत्री डा. मोहन यादव ने इतवारी बाजार स्थित कृषि मंडी में आयोजित  अन्‍न उत्‍सव व किसान सम्‍मान समारोह के प्रारंभ में मिलेट्स पर आधारित प्रदर्शनी का अवलोकन किया. अवलोकन के दौरान उन्‍होंने किसानों से चर्चा भी की. साथ ही, उन्‍होंने प्रदर्शनी की तारीफ करते हुए किसानों का उत्‍साहवर्धन भी किया. इस दौरान उन्‍होंने आजीविका मिशन के 855 स्‍वसहायता समूह को 2728.61 लाख रुपए का केश क्रेडिट लिमिट का प्रतीकात्‍मक चेक भी प्रदान किया. यह चेक स्‍वसहायता समूह की दीदी सुनीता राउत और केशवंती राणा को प्रदान किया.

मुख्‍यमंत्री डा. मोहन यादव ने मिलेट्स के बारे में समूह की दीदियों से चर्चा कर बैहर विकासखंड के शहद पर विशेष प्रतिक्रिया दी. कार्यक्रम के दौरान सांसद भारती पारधी, कटंगी विधायक  गौरव पारधी, लांजी विधायक  राजकुमार कर्राहे, पूर्व मंत्री  गौरीशंकर बिसेन व रामकिशोर कावरे और नपा अध्‍यक्ष भारती सुरजीत ठाकुर उपस्थित रहे. अधिकारियों में कलक्‍टर डा. गिरीश कुमार मिश्रा, एसपी  समीर सौरभ, जिपं सीईओ  डीएस रणदा, एसडीएम  गोपाल सोनी एवं अन्‍य विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे.

मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं केंचुए

जबलपुर : मिट्टी के महत्वपूर्ण जीवों में केंचुआ एक है. केंचुए में मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने की क्षमता होती है, इसलिए ये मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन्हें किसान का मित्र, खेत का हल चलाने वाला, धरती की आंत, पारिस्थितिक इंजीनियर और जैविक संकेतक के रूप में भी जाना जाता है.

उपसंचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि केंचुए किसानों के सच्चे मित्र और सहायक हैं.  उन के मुताबिक, भारत में कई जातियों के केंचुए पाए जाते हैं. इन में से केवल 2 ऐसे हैं, जो आसानी से प्राप्त होते हैं. एक है, फेरिटाइमा और दूसरा है, यूटाइफियस.

फेरिटाइमा पौसथ्यूमा पूरे भारत में मिलता है. फेरिटाइमा की वर्म कास्टिंग मिट्टी की पृथक गोलियों के छोटे ढेर जैसी होती है और यूटाइफियस की कास्टिंग मिट्टी की उठी हुई रेखाओं के समान होती है. इन का मिट्टी खाने का ढंग लाभदायक है. ये भूमि को एक प्रकार से जोत कर किसानों के लिए उपजाऊ बनाते हैं. वर्म कास्टिंग की ऊपरी मिट्टी सूख जाती है, फिर बारीक हो कर भूमि की सतह पर फैल जाती है. इस तरह जहां केंचुए रहते हैं, वहां की मिट्टी पोली हो जाती है, जिस से पानी और हवा भूमि के भीतर सुगमता से प्रवेश कर सकती है. इस प्रकार केंचुए हल के समान काम करते हैं.

उन्होंने बताया कि एक एकड़ में तकरीबन 10,000 से ऊपर केंचुए रहते हैं. ये केंचुए एक वर्ष में 14 से 18 टन यानी 400 से 500 मन मिट्टी भूमि के नीचे से ला कर सतह पर एकत्रित कर देते हैं. इस से भूमि की सतह आधी इंच ऊंची हो जाती है. यह मिट्टी केंचुओं के पाचन अंग से हो कर आती है, इसलिए इस में नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ भी मिल जाते हैं और यह खाद का काम करती है. इस प्रकार ये मनुष्य के लिए भूमि को उपजाऊ बनाते रहते हैं.

उपसंचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने कहा कि यदि इन को पूरी तरह से भूमि से हटा दिया जाए तो हमारे लिए समस्या हो जाएगी. यह महत्वपूर्ण है कि मिट्टी में इन छोटे जीवों को किसी भी कीमत पर संरक्षित किया जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये मानव जाति को अपनी अमूल्य सेवाएं प्रदान करना जारी रखें.

 

फसल बदली तो संजीव की होने लगी लाखों की कमाई

ग्वालियर : संजीव पहले धान की पारंपरिक खेती करते थे. जीतोड़ मेहनत के बावजूद उन्हें अपनी खेती से उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी, जितनी वे उम्मीद रखते थे. ऊपर से यदि मानसून दगा दे जाए, तो उत्पादन और घट जाता है. संजीव ने फसल में बदलाव क्या किया, उन की जिंदगी ही बदल गई. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ने उन के जीवन में सुखद बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाई है.

ग्वालियर जिले के भितरवार विकासखंड के ग्राम गोहिंदा के रहने वाले प्रगतिशील किसान संजीव बताते हैं कि धान की फसल में लागत ज्यादा और आमदनी कम होती थी. जब तमाम प्रयासों के बावजूद आशा के मुताबिक आमदनी नहीं बढ़ी, तब हम ने उद्यानिकी फसल की ओर कदम बढ़ाए. इस के लिए हम ने उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से तकनीकी मदद ली. उन की सलाह पर हम ने “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना” के तहत ड्रिप विथ मल्चिंग पद्धति से बैगन उत्पादन शुरू किया.

संजीव बताते हैं कि एक हेक्टेयर रकबे में हम ने इस पद्धति से बैगन की खेती शुरू की. इस पर लगभग एक लाख, 55 हजार रुपए की लागत आई, जिस में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत 70,000 रुपए का अनुदान भी मिला.

संजीव का कहना है कि जब हम अपने एक हेक्टेयर खेत में धान उगाते थे, तब एक लाख रुपए की लागत आती थी और हमें लगभग एक लाख, 92 हजार रुपए की आय होती थी. इस में अगर हम अपनी मेहनत जोड़ लें, तो आमदनी न के बराबर होती. अब हमें उसी एक हेक्टेयर रकबे में ड्रिप विथ मल्चिंग पद्धति से बैगन की खेती करने पर लागत निकाल कर 5 लाख रुपए की शुद्ध आमदनी हो रही है.

वे बताते हैं कि धान का उत्पादन 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर था, वहीं बैगन का उत्पादन 700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो रहा है. ड्रिप विथ मल्चिंग पद्धति से बैगन उत्पादन में 2 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर का खर्चा आता है और 7 लाख रुपए की आय होती है. इस प्रकार हमें 5 लाख रुपए की आमदनी एक हेक्टेयर रकबे से होने लगी है.

आमदनी बढ़ने से संजीव के चेहरे पर आई खुशी देखते ही बनती है. वे कहते हैं कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ने हमजैसे जरूरतमंद किसानों का जीवन संवार दिया है.

नाबार्ड की मदद से बन रहे एफपीओ, हो रहे खास काम

बड़वानी : कलक्टर डा. राहुल फटिंग की अध्यक्षता में पिछले दिनों जिला निगरानी समिति की बैठक आयोजित की गई, जिस में फार्मर प्रोड्यूस और्गेनाइजेशन एफपीओ की प्रगति पर विस्तृत चर्चा की गई. बैठक में विभिन्न कृषक उत्पादक संगठन एवं सीबीबीओ संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित हुए, जिन के द्वारा एफपीओ की प्रगति का ब्योरा पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से दिया गया.

नाबार्ड से जिला विकास प्रबंधक विजेंद्र पाटिल ने बताया कि भारत सरकार की 10,000 एफपीओ योजना के अंतर्गत बड़वानी जिले के सभी 7 विकासखंडों में 14 एफपीओ बनाए गए हैं. जिले में ज्यादातर एफपीओ द्वारा अपने किसान सदस्यों को कम दर में कृषि संबंधित सामग्री मुहैया कराने के उद्देश्य से खाद, बीज, दवा आदि की दुकानें बनाई हैं. कुछ एफपीओ द्वारा विशेष काम किया जा रहा है, जिन में नाबार्ड एवं कृषि विकास संस्था की मदद से पानसेमल में देवमोगरा माता एफपीओ द्वारा 8 लाख रुपए की मिर्ची दुबई में निर्यात की गई. वर्ष 2024-25 के लिए यह लक्ष्य 1 करोड़ रुपए के निर्यात का रखा गया है. एफपीओ के सदस्य द्वारा उन्नत मिर्च की नर्सरी संचालित की जा रही है.

नाबार्ड एवं मंथन संस्था की मदद से निवाली में मोगी माता एफपीओ ने हलदी प्रोसैसिंग प्लांट स्थापित किया. भारत सरकार की एआईएफ योजना एवं नाबार्ड की एएमआई सब्सिडी योजना के अंतर्गत बैंक औफ इंडिया, सेंधवा शाखा ने मोगी एफपीओ को यह इकाई लगाने के लिए लोन दिया.

सीबीबीओ मंथन के डा. रजत सक्सेना द्वारा बताया गया कि स्थानीय स्तर पर इस से पहले हलदी प्रसंस्करण की सुविधा न होने के कारण किसानों से उन का उत्पादन बिचौलिए औनेपौने दाम में खरीदते थे, लेकिन हलदी प्रसंस्करण की सुविधा मोहैया होने से किसानों को स्थानीय स्तर पर ही यह संभव हो सकेगा, जिस से कि किसानों को उन के उत्पाद का उचित दाम मिलेगा एवं रोजगार के नए मौके मिलेंगे.

डीडीएम ने नाबार्ड प्रायोजित नैब संरक्षण गारंटी योजना के बारे में बताया, जिस से बैंकों द्वारा एफ़पीओ को समय पर लोन दिया जा सकेगा. बैठक के दौरान कलक्टर ने सभी सीबीबीओ को निर्देशित किया कि वह धरातल पर बेहतर काम करें. विशेषकर, फसलों के मूल्य संवर्धन के काम हो.

बड़वानी में नेचरटूअर्थ एफपीओ अदरक के प्रसंस्करण और नागलवाडी में संत सियाराम एफपीओ टमाटर पर काम करना सुनिश्चित करें.

बैठक में आरबीआई से विनय मोरे, एलडीएम संदीप अग्रवाल, डीडीए जमरे एवं अन्य विभाग उपस्थित थे.

किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग, उपसंचालक, एमएस देवके ने जानकारी देते हुए बताया कि वर्तमान में जिले में किसानों द्वारा बोआई का काम जारी है. सोयाबीन की नई किस्मों का बीज आगामी सीजन में उपलब्ध कराने के लिए भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान द्वारा जिले में विकासखंडवार एक गांव का चयन कर 3 क्विटल का बीज 10 किसानों के लिए उपलब्ध कराया गया.

गांव सिरपुर के 5 किसान और गांव दहीनाल के 5 किसानों के खेतों पर नई किस्मों के फसल प्रदर्शन आयोजित किए गए, जिस में किसानों को सोयाबीन किस्म एनआरसी-130 एवं एनआरसी-142 का बीज उपलब्ध करा कर संबंधित कृषि विस्तार अधिकारी कनक ससाने एवं महेंद्र चौबे द्वारा बीजोपचार के बाद किसानों के खेतों में प्रदर्शन प्लाट आयोजित किए जा रहे हैं, जिस में अनुशंसा के अनुसार संतुलित उर्वरकों का उपयोग किया गया और इन किसानों के खेतों में अन्य किसानों का भी भ्रमण कराया गया.

कृषि अवशेषों से बनेंगी कीमती चीजें

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्याय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग में ‘बायोमेथनेशन एवं अपशिष्ट मूल्यांकन प्रयोगशाला’ व संशोधित गोबर गैस प्लांट का उद्घाटन किया. यह प्रयोगशाला राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) की वित्तीय सहायता से पुनर्निर्मित की गई है.

उन्होंने ‘बायोमेथनेशन एवं अपशिष्ट मूल्यांकन प्रयोगशाला’ के बारे में बताया कि यह लैब हमारे विश्वविद्यालय के पर्यावरण समृद्धि और स्वच्छता के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. यह प्रयोगशाला कृषि अवशेषों के मूल्यवर्धक उत्पाद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. इस प्रयोगशाला में कृषि अवशेषों जैसे पराली, डंठल, छिलके और अन्य अपशिष्टों से मूल्यवर्धक वस्तुएं बनाई जाएंगी, जिन में बायोगैस, बायोइथेनाल, बायोडीजल, कंपोस्ट, जैव सक्रिय यौगिक जैसे पौलीफीनोल्स, जो एंटीमाइक्रोबियल एवं एंटीऔक्सीडेंट गतिविधि वाले होते हैं और पौलीहाइड्रोक्सीब्यूरेट का उत्पादन सूक्ष्मजीवों के द्वारा किया जाता है.

उन्होंने आगे बताया कि इस लैब में कृषि अपशिष्टों के विश्लेषण, बायोगैस के विश्लेषण, मेथेनोजन के विकास के लिए अनारोबिक चैंबर, जैव ईंधन उत्पादन के लिए बायोरिएक्टर जैसे उन्नत प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण हैं एवं बायोफ्यूल उत्पादन के लिए कृषि खाद्य अपशिष्ट, हरित संश्लेषित नैनोपार्टिकल्स व पोल्ट्री अपशिष्ट जैसे विभिन्न योजकों का उपयोग किया जा रहा है.

इस का मुख्य उद्देश्य अपशिष्ट पदार्थों के हानिकारक प्रभावों को पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य पर काम करना है. साथ ही, अपशिष्ट प्रबंधन रोजगार के अवसर प्रदान करने और अर्थव्यवस्था में सुधार करने के अवसर भी प्रदान करता है. सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग की वैज्ञानिक डा. कमला मलिक को प्रयोगशाला का प्रभारी एवं डा. शिखा महता को सहप्रभारी बनाया गया है.

मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने बताया कि भूमि की उर्वराशक्ति में बढ़ोतरी एवं ईंधन की कमी की पूर्ति करने में गोबर गैस प्लांट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. हकृवि ने गोबर द्वारा चलने वाले जनता मौडल के बायो गैस प्लांट को संशोधित कर के ऐसा डिजाइन तैयार किया है, जो ताजा गोबर से चलता है.

उन्होंने जानकारी दी कि संशोधित गोबर गैस प्लांट को लगाने से जगह व पैसे की लागत अन्य डिजाइन की अपेक्षा कम आती है. इसे घर के आंगन में भी लगाया जा सकता है. इस प्लांट को शौचालय के साथ जोड़ कर गैस की मात्रा व खाद की गुणवत्ता भी बढ़ाई जा सकती है. स्लरी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा गोबर की अपेक्षा अधिक होती है. इस का उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता बढ़ती है. इस में नीम, आक या धतूरे के पत्ते मिला कर डालने से खेत में कीड़े व बीमारियों का प्रकोप नहीं रहता.

इस अवसर पर विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, शिक्षक एवं गैरशिक्षक कर्मचारियों सहित सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग के सभी वैज्ञानिक उपस्थित रहे.