केज कल्चर (Cage Culture) तकनीक से कैसे करें मछली (Fish) उत्पादन

लखनऊ : मत्स्य विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा चौधरी चरण सिंह सभागार, सहकारिता भवन लखनऊ में समारोह आयोजित किया गया. इस अवसर पर मत्स्य विकास मंत्री डा. संजय कुमार निषाद ने कहा कि मत्स्यपालन तकनीक एवं नदियों व जलाशयों में मत्स्य अंगुलिका का संचय, मत्स्य आखेट प्रबंधन की जानकारी, जल क्षेत्रों के दोहन न करने व जल क्षेत्र की निरंतरता (सस्टेनेबिलिटी) बनाते हुए अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन के साथसाथ देशीय मत्स्य प्रजातियों का संरक्षण व संवर्धन के लिए समारोह का आयोजन किया गया है. प्रदेश में उपलब्ध कुल जल क्षेत्रों से वर्ष 2023-24 मे उत्तर प्रदेश का कुल मत्स्य उत्पादन 11.60 लाख मीट्रिक टन एवं मत्स्य उत्पादकता 5539.00 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष प्राप्त हुआ.

डा. संजय कुमार निषाद ने कहा कि प्रदेश में गंगा, यमुना, चंबल, बेतवा, गोमती, घाघरा एवं राप्ती सहित कई सदाबाही नदियां बहती हैं, जिन के दोनों किनारे एवं आसपास मछुआ समुदाय की घनी आबादी निवास करती है, जो आजीविका के लिए मुख्यतः मत्स्यपालन, मत्स्याखेट एवं मत्स्य विपणन कार्यों पर निर्भर है. इन्हें रोजगार उपलब्ध कराने एवं उन के आर्थिक उन्नयन के लिए अभियान चला कर मत्स्य जीवी सहकारी समितियों के गठन की कार्यवाही की जा रही है, जिस के अंतर्गत 565 समितियों के गठन का लक्ष्य निर्धारित करते हुए समिति गठन की कार्यवाही कराई जा रही है.

मत्स्य विकास मंत्री संजय कुमार निषाद ने बताया कि केज कल्चर मछली के गहन उत्पादन के लिए एक उभरती हुई तकनीक है. जलाशयों में स्थापित केजों मे पंगेशियस और गिफ्ट तिलपिया का पालन करते हुए उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है.

प्रमुख सचिव, मत्स्य, के. रवींद्र नायक ने कहा कि मत्स्य विभाग द्वारा प्रदेश के मत्स्यपालकों और जलाशय के ठेकेदारों को नवीन तकनीकी प्रदान की जा रहाई है एवं उन के द्वारा प्रदेश के मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिए पूरे मनोयोग से कार्यवाही की जा रही है. प्रदेश में मात्स्यिकी क्षेत्र के विस्तार से रोजगार के साधन उपलब्ध होने के साथसाथ लक्षित वन ट्रिलियन डालर इकोनोमी में मत्स्य सैक्टर की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. उपस्थित मत्स्यपालकों एवं ठेकेदारों से मत्स्य उत्पादन में वृद्धि लाए जाने के संबंध में सुझाव आमंत्रित किए गए. अधिक से अधिक केज लगाए जाने के संबंध में प्रमुख सचिव मत्स्य द्वारा भारत सरकार से धनराशि की मांग की बात कही और यह भी कहा कि जलाशय के ठेकेदार आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं. वह स्वयं के संसाधन से भी जलाशयों में केज स्थापित कराए.

महानिदेशक मत्स्य राजेश प्रकाश ने बताया कि प्रदेश में मत्स्य विकास की अपार संभावनाएं हैं. उपलब्ध जल संसाधनों का वैज्ञानिक एवं तकनीकी दृष्टि से समुचित उपयोग करते हुए प्रदेश को मत्स्य उत्पादन में अग्रणी बनाया जा सकता है. प्रदेश के मत्स्यपालकों द्वारा वर्तमान में नवोन्मेषी तकनीकी के माध्यम से मत्स्य उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा रही है.

विश्व मात्स्यिकी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में निदेशक मत्स्य एनएस रहमानी विश्व मात्स्यिकी दिवस के बारे में प्रकाश डालते हुए इस के उद्देश्यों एवं प्रदेश में मत्स्य विकास के बारे में विस्तार से बताया गया.

निदेशक एनएस रहमानी ने बताया कि मत्स्य उत्पादन वर्ष 2023-24 में 11.60 लाख मीट्रिक टन प्राप्त किया गया. अंतर्स्थलीय मछली उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी तकरीबन 8.85 फीसदी है. प्रदेश में मत्स्य उत्पादकता 5540 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष है.

प्रदेश को वर्ष 2020 एवं 2023 के दौरान अंतर्स्थलीय मछली उत्पादन में उत्कृष्ट योगदान के लिए सर्वश्रेष्ठ अंतर्स्थलीय मत्स्यपालन राज्य का पुरस्कार प्राप्त हुआ है. वर्ष 2023-24 में प्रदेश में 36664.64 लाख मत्स्य बीज का उत्पादन किया गया और प्रदेश के बाहर भी मेजर कार्प मत्स्य बीज निर्यात किया जा रहा है.

प्रदेश में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत विगत 4 सालों में 1277 इंफ्रास्ट्रक्चर इकाइयां लगाई गई, जिस में मुख्यतः 954 रिसर्कुलेटरी ऐक्वाकल्चर सिस्टम, 63 मत्स्य बीज हैचरी, 123 लघु एवं वृहद मत्स्य आहार मिलों, 55 फिश कियोश्क, 78 जिंदा मछली विक्रय केंद्र, 4 मोबाइल लैब की निजी क्षेत्र में स्थापित कराई गई. मछली की बिक्री के लिए कोल्डचेन के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की 2604 इकाइयों पर अनुदान देते हुए लाभान्वित किया गया है.

मत्स्य बीज की उपलब्धता के लिए 63 मत्स्य बीज हैचरी, 266 हेक्टेयर में मत्स्य बीज रियरिंग यूनिट निर्मित कराई गई है. 2019.72 हेक्टेयर क्षेत्रफल के निजी क्षेत्र में तालाब बनाया गया है. केज में मत्स्य उत्पादकता के दृष्टिगत 682 केज स्थापित कराए जा चुके हैं. डेढ़ लाख मछुआरों को मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के तहत पंजीकृत कर आच्छादित किया गया.

मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत पट्टे पर आवंटित तालाबों में प्रथम वर्ष निवेश के लिए अब तक 954 लाभार्थियों को 822.22 हेक्टेयर पर अनुदान प्रदान किया गया एवं मत्स्य बीज बैंक की स्थापना के अंतर्गत 96 लाभार्थियों को 91.044 हेक्टेयर पर अनुदान प्रदान किया गया.

निषादराज बोट सब्सिडी योजना में अब तक कुल 920 मछुआ समुदाय के गरीब व्यक्तियों को जीवकोपार्जन हेतु मछली पकड़ने एवं बेचने के लिए नाव, जाल, आइसबौक्स एवं लाइफ जैकेट उपलब्ध कराए गए. विगत 4 वर्षों में 28,520 व्यक्तियों को मत्स्यपालन के लिए 25858.39 हेक्टेयर क्षेत्रफल के ग्रामसभा के तालाबों के पट्टे उपलब्ध कराए गए.

मत्स्य पालक कल्याण फंड के अंतर्गत मछुआ बाहुल्य 289 गांवों में 3126 सोलर स्ट्रीट लाइट एवं 570 हाईमास्ट लाइट लगाई गई. कोष के माध्यम से चिकित्सा सहायता, दैवीय आपदा, प्रशिक्षण एवं मछुआ आवास बनाने के लिए सहायता प्रदान की गई. माता सुकेता परियोजना के अंतर्गत 250 केज मछुआ समुदाय की महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु लगाए जाने का प्रावधान है. 16757 मत्स्यपालकों को धनराशि 131.00 करोड़ रुपए के किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराए गए.

रिवर रैंचिंग के अंतर्गत मेजर कार्प एवं राज्य मीन चिताला मत्स्य प्रजातियों के नदियों मे संरक्षण के लिए कुल 297 लाख मत्स्य बीज नदियों में संचित कराया गया. विभागीय योजनाओं को पारदर्शी ढंग से औनलाइन पोर्टल के माध्यम से लागू की गई है. मो. परवेज खान प्रगतिशील मत्स्यपालक जनपद बाराबंकी द्वारा आरएएस एवं फीड मिल के बारे में विस्तार से मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई.

डा. संजय श्रीवास्तव, जनपद महराजगंज के प्रगतिशील मत्स्यपालक द्वारा हैचरी निर्माण में उस के लाभ लागत के संबंध में उपस्थित मत्स्यपालकों को तकनीकी विधियों के बारे में जानकारी दी गई. मंजू कश्यप, प्रगतिशील मत्स्यपालक जनपद गाजियाबाद द्वारा तालाब प्रबंधन एवं दूषित तालाबों में सफल मत्स्यपालन कैसे किया जाए, के संबंध में मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई.

देवमणि निषाद, जनपद, गौरखपुर द्वारा अपनी सफलता की कहानी को मत्स्यपालकों के साथ साझा किया गया और अधिक उत्पादन प्राप्त करने के संबंध में जानकारी दी गई. जय सिंह निषाद द्वारा आरएएस के माध्यम से कम भूमि एवं जल से अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन प्राप्त किए जाने के संबंद में अपने अनुभव को उपस्थित मत्स्यपालकों से साझा किया गया. दरोगा जुल्मी निषाद द्वारा मत्स्यपालन में उत्कृष्ट कार्य किए जाने के संबंध में उन्हें पुरस्कृत किया गया.

मनीष वर्मा द्वारा जलाशयों मे केज स्थापना एवं उस में उत्पादित की जाने वली मछलियों और प्रति केज से प्राप्त की जाने वाली शुद्ध आय के संबंध में अपने उदबोधन में मत्स्यपालकों को जानकारी दी गई. डा. नीरज सूद, प्रधान वैज्ञानिक एनबीएफजीआर लखनऊ द्वारा संस्थान के कार्यों के संबंध में विस्तार से बताते हुए मत्स्य उत्पादन में वृद्धि के लिए उचित मात्रा में गुणवत्तायुक्त मत्स्य अंगुलिका का संचय कराते हुए मत्स्य उत्पादन के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है. प्रदेश की वन ट्रिलियन डालर इकोनोमी के मत्स्य सैक्टर के लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.

मोनिशा सिंह, प्रबंध निदेशक, उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी संघ लि. द्वारा संघ द्वारा समितियों एवं मत्स्यपालकों के लिए संचालित कार्यक्रमों के बारे में बताया गया. अंजना वर्मा, मुख्य महाप्रबंधक, उत्तर प्रदेश मत्स्य विकास निगम लि. द्वारा निगम द्वारा मत्स्य बीज उत्पादन और प्रदेश में मत्स्य बीज की उपलब्धता व जलाशयों में केज कल्चर के माध्यम से जलाशयों के मत्स्य उत्पादकता के बारे में बताया गया.

मंत्री द्वारा मात्स्यिकी के विभिन्न क्षेत्र में प्रदेश में उत्कृष्ट योगदान कर रही मंजू कश्यप, प्रगतिशील मत्स्यपालक, जनपद गाजियाबाद, देवमणि निषाद, जनपद गौरखपुर, जय सिंह निषाद, दरोगा जुल्मी निषाद सहित 16 व्यक्तियों को प्रशस्तिपत्र प्रदान करते हुए सम्मानित किया गया.

कार्यक्रम के दौरान मत्स्य की विभिन्न गतिविधियों में अनुदानित 36 व्यक्तियों को मंत्री द्वारा अनुदान की धनराशि के चेक व प्रमाणपत्र भी वितरित किया गया.

विभाग द्वारा निःशुल्क मछुआ दुर्घटना बीमा योजना से आच्छादित करने के लिए मछुआ दुर्घटना बीमा योजना के माध्यम से वर्ष 2024-25 में कुल लक्षित 1,50,000 मत्स्यपालकों का आच्छादन कराए जाने के लिए कार्यवाही की गई. केज कल्चर के साथसाथ पेन कल्चर और जिंदा मछली विक्रय केंद्र को प्रोसाहित करते हुए उत्पादन के साथसाथ मूल्यवर्धन के माध्यम से आय में वृद्धि लाई जाए. उपस्थित मत्स्यपालकों से सुझाव मांगे गए तदनुसार उत्पादन के बढ़ावा देने के लिए कार्ययोजना तैयार कराई जा सके.
उपनिदेशक पुनीत कुमार द्वारा उपस्थित अतिथियों एवं मत्स्यपालकों और जलाशय के ठेकेदारों का धन्यवाद व्यक्त करते हुए कार्यशाला के समापन की घोषणा की गई. कार्यक्रम उत्तर प्रदेश मत्स्य जीवी सहकारी संघ लि. के सभापति वीरू निषाद एवं विभागीय अधिकारी सहित तमाम मत्स्यपालक उपस्थित रहे.

पशुपालकों (Cattle Farmers) को भेड़ की उन्नत नस्लों का वितरण

डूंगरपुर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर की अनुसूचित जनजाति उपयोजना मे डूंगरपुर जिले के भटनाड़ा ग्राम पंचायत भवन में किसानवैज्ञानिक संगोष्ठी एवं भेड़पालन के लिए 100 पशुओं के वितरण का आयोजन किया गया. इस मौके पर अविकानगर संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर के मार्गदर्शन में टीएसपी उपयोजना के नोडल अधिकारी डा. जी. गणेश सोनवाणे द्वारा संगोष्ठी में उपस्थित आदिवासी किसानों को वैज्ञानिक ढंग से भेड़पालन, टीकाकरण एवं साल भर किए जाने वाली गतिविधियों पर विस्तार से संवाद किया गया. इस मौके पर टीएसपी उपयोजना के माध्यम से डूंगरपुर जिले में किए जा रहे काम के बारे में अतिथियों को अवगत कराया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उमेश मीणा विधायक आसपुर विधानसभा ने भी उपस्थित किसानों को वर्तमान समय के हिसाब से वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन एवं खेती करने पर जोर दिया और सभी आदिवासी किसानो को स्वरोजगार अपनाकर अपने परिवार की आर्थिक उन्नति के लिए नई पीढ़ी को कौशल विकास की ओर बढ़ने का आह्वाहन किया.

कार्यक्रम का संचालन डा. अमर सिंह मीणा द्वारा किया गया. संगोष्ठी के अवसर पर 11 आर्थिक रूप से कमजोर आदिवासी परिवारों को 5 भेड़ (4 मादा एवं 1 नर) की इकाई एवम 45 भेड़पालक आदिवासी किसानों को उन्नत नस्ल का एक मेढ़ा के साथ फीडिंग ट्रौप, पैलेट फीड, तसला, बालटी, खोडी, खुरपी, दंराती आदि का वितरण कार्यक्रम में उपस्थित अथितियों द्वारा किया गया. इस कार्यक्रम में सोहन लाल अहारी एवं रमनलाल कलसुवा द्वारा भेड़पालक आदिवासी किसानों का सर्वे कर के कार्यक्रम आयोजन में सहयोग किया गया. अविकानगर से पशुओं का परिवहन रामखिलाडी मीणा व राजेश चंदेल द्वारा किया गया. संगोष्ठी एवं वितरण कार्यक्रम में अविकानगर संस्थान के वित्त अधिकारी भूपेंद्र कुमार गुर्जर, सरपंच देवशंकर नेनोमा एवं भटनाड़ा पंचायत के गांववासियों के साथ लाभान्वित आदिवासी किसान उपस्थित रहे.

पशुपालकों को भेड़ की उन्नत नस्लों के संदर्भ आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम

डूंगरपुर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर में चल रही अनुसूचित जाति उपयोजना के अन्तर्गत पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान डा. अरूण कुमार तोमर निदेशक के निर्देशन में आयोजित किया गया. जिसके समापन कार्यक्रम मे संस्थान द्वारा चयनित अनुसूचित जाति की 25 महिलओं एवं पुरूष बीपीएल किसानों ने भाग लिया.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में किसानों को भेड़-बकरीयों में प्रजनन, स्वास्थ्य, पशु पोषण, अधिक उत्पादन के लिए कृत्रिम गर्भाधान, ऊन एवं ऊन के उत्पादों की नवीन तकनीकी जानकारियां दी गईं. कार्यक्रम के समापन समारोह में अनुसूचित जाति उपयोजना के नोडल अधिकारी डा. अजय कुमार ने किसानों को संम्बोधित करते हुए कहा कि वे भेड़-बकरी पालन कर अपनी आजीविका में सुधार कर सकते हैं और कहा कि वे संस्थान से 5 दिन में मिली जानकरी को क्षेत्र के दुसरे  किसानों से भी साझा कर उन की भी जानकारी को बढ़ाएं. जिस से अन्य किसान भी इस का फायद ले सकें.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक डा. एल.आर. गुर्जर, प्रभारी, तकनीकी स्थानांतरण एवं सामाजिक विज्ञान विभाग एवं डा. रंगलाल मीणा, वैज्ञानिक रहे. कार्यक्रम में गौतम चौपड़ा, डी.के. यादव एवं अन्शुल शर्मा ने भी सहयोग प्रदान किया.

किसानों को मिले उन्नत तकनीकों का प्रशिक्षण

जयपुर : शासन सचिव, कृषि एवं उद्यानिकी, राजन विशाल ने पिछले दिनों दुर्गापुरा स्थित इंटरनैशनल हौर्टिकल्चर इनोवेशन एंड ट्रेनिंग सैंटर (आईएचआईटीसी) का दौरा किया. उन्होंने अधिकारियों को इस ट्रेनिंग सैंटर में ज्यादा से ज्यादा किसानों को उन्नत तकनीकी का कृषि प्रशिक्षण देने के लिए कहा.

राजन विशाल ने किसानों के प्रशिक्षण के दौरान प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किए जाने के लिए संस्थान के फल वृक्ष क्षेत्र, संरक्षित खेती, सब्जी उत्पादन, नर्सरी, ड्रिप इरिगेशन आदि गतिविधियों का निरीक्षण किया. उन्होंने आईएचआईटीसी के कैंपस,  छात्रावास, प्रयोगशाला आदि सभी जगहों का बारीकी से निरीक्षण किया और संस्थान की साफसफाई एवं मेंटेनेंस के आवश्यक दिशानिर्देश प्रदान किए.

शासन सचिव राजन विशाल ने प्रशिक्षण में किसानों की संख्या को बढ़ाने व पूरा ट्रेनिंग प्लान तैयार रखने के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया. साथ ही, संस्थान में हाइड्रोपोनिक्स की स्थापना के लिए भी कहा. हाइड्रोपोनिक प्रणाली मिट्टी के बजाय पानी आधारित पोषक घोल का उपयोग कर के पौधे उगाने की तकनीक है. हाइड्रोपोनिक उत्पादन प्रणाली का प्रयोग छोटे किसानों और वाणिज्यिक उद्यमों द्वारा किया जाता है.

इस के बाद शासन सचिव राजन विशाल ने कर्ण नरेंद्र विश्वविद्यालय के संगठन संस्थान राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा, जयपुर में स्थित समन्वित कृषि प्रणाली क्षेत्र का दौरा किया. यह समन्वित कृषि प्रणाली डेढ़ हेक्टेयर कृषि जोत के लिए राजस्थान के सिंचित क्षेत्र के किसानों की पोषण उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए विकसित की गई है. इस समन्वित कृषि प्रणाली क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की फसल पद्धतियां, उद्यानिकी फल एवं सब्जियां, डेयरी यूनिट, बकरी यूनिट, पोल्ट्री यूनिट, अजोला यूनिट, वर्मी कंपोस्ट यूनिट और गोबर खाद यूनिट है.

समन्वित कृषि प्रणाली के मुख्य सस्य वैज्ञानिक डा. उम्मेद सिंह ने किसानों के लिए सालभर आय का अच्छा स्रोत होने एवं किसान के परिवार के लिए पोषणयुक्त भोजन जैसे फल, सब्जी, अनाज, दाल, मोटे अनाज, तिलहन, पशुओं के लिए चारा एवं इस से जनित अपशिष्ट के सदुपयोग के लिए वर्मी कंपोस्ट, गोबर की खाद इत्यादि के रूप में प्रयोग करने से मिट्टी की  सेहत में सुधार एवं बाहरी उर्वरकों पर निर्भरता कम करने की जानकारी दी.

विश्वविद्यालय के कुलपति बलराज सिंह ने कृषि विश्वविद्यालय एवं दुर्गापुरा में संचालित विभिन्न कृषि अनुसंधान योजनाओं की जानकारी दी.

इस दौरान आयुक्त उद्यानिकी सुरेश कुमार ओला, अतिरिक्त निदेशक कृषि (रसायन), एचएस मीना, संयुक्त निदेशक कृषि (रसायन) अजय कुमार पचौरी, संयुक्त निदेशक उद्यान महेंद्र कुमार शर्मा, संयुक्त निदेशक कृषि (गुण नियंत्रण) गजानंद यादव, उपनिदेशक, उद्यान (आईएचआईटीसी) राजेश कुमार गुप्ता सहित विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे.

ऊंट सरंक्षण योजना में मिल रहे 20,000 रुपए, कैसे उठाएं जल्दी फायदा

जयपुर: राज्य सरकार द्वारा उष्ट्र संरक्षण योजना के तहत डीबीटी को आधार और जनआधार से जोड़ने के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है. पशुपालन और गोपालन विभाग के शासन सचिव डा. समित शर्मा ने बताया कि पशुपालन विभाग द्वारा वर्तमान में ऊंटों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए उष्ट्र संरक्षण योजना का संचालन किया जा रहा है, जिस में टोडियों के जन्म पर उन के पालनपोषण के लिए प्रोत्साहनस्वरूप उष्ट्रपालकों को 2 किस्तों में 20,000 रुपए की माली मदद देने का प्रावधान है.

उन्होंने आगे बताया कि इस अधिसूचना के जारी होने से अब योग्य उष्ट्रपालकों को इस योजना का लाभ लेने के लिए अपना आधारकार्ड और जनआधार संख्या होने का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा, जिस से उन के बैंक खातों में पारदर्शिता एवं सुगमता के साथ राशि हस्तांतरित की जा सकेगी. इस से योजना में पारदर्शिता आएगी और उष्ट्रपालकों को उन की सहायता राशि सरल और निर्बाध तरीके से सीधे प्राप्त हो सकेगी. साथ ही, योजना के तहत आवेदन करते समय कई तरह के पहचानपत्र व अन्य दस्तावेज अपलोड करने की भी बाध्यता नहीं होगी.

डा. समित शर्मा ने बताया कि योजना के तहत लाभार्थियों को सुविधाजनक रूप से लाभ मिल सके, इस के लिए लाभार्थियों को इस के बारे में जागरूक करने के लिए विभिन्न माध्यमों से उन तक सूचना पहुंचाई जाएगी. उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम से लाभार्थियों को समय पर आर्थिक लाभ मिलने के साथसाथ विभाग के काम में भी आसानी होगी और दक्षता आएगी.

Animal Husbandry: “1962” एप पर मिलेंगी पशुपालन की सभी योजनाएं

जयपुर : शासन सचिव पशुपालन, डा. समित शर्मा ने कहा कि पशुओं का चिन्हीकरण, टीकाकरण, प्रजनन, पोषण व बीमारियों के उपचार और मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट सेवा को एकीकृत प्लेटफार्म पर संपादित किया जाएगा. इस विषय पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों डा. समित शर्मा की अध्यक्षता में भारत सरकार के नैशनल डिजिटल लाइवस्टाक मिशन के प्रतिनिधियों के साथ पशुपालन विभाग के अधिकारियों की बैठक सचिवालय में आयोजित की गई. इस चर्चा में बीआईएफएल (मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट और काल सैंटर सेवा प्रदाता) के प्रतिनिधि भी औनलाइन शामिल हुए.

बैठक में डा. समित शर्मा ने निर्देश दिया कि ‘‘1962’’ एप अधिक से अधिक पशुपालकों से डाउनलोड करवाया जाए, ताकि वे विभागीय योजनाओं का लाभ आसानी से उठा सकें और अपने पशुओं के बारे में भी जानकारियां ले सकें. उन्होंने कृषि विभाग के अंतर्गत बने किसानों के व्हाट्सअप ग्रुप पर “1962” एप डाउनलोड करने के निर्देश दिए. इस एप के माध्यम से पशुपालक अपने पशुओं के उपचार के लिए सीधे ही काल सैंटर पर फोन कर सकेगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि पशुओं के टैग नंबर को उन का आधार नंबर माना जाए और उसी नंबर से उन का रजिस्ट्रेशन “1962” एप पर किया जाए.

उन्होंने निर्देश दिया कि भारत पशुधन एप के एनिमल हेल्थ मौड्यूल को जल्द से जल्द लागू करने के लिए योजनाबद्ध रूप से आवश्यक तैयारी की जाए. इस संबंध में पशु चिकित्सकों को आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करने के निर्देश भी डा. समित शर्मा ने दिए. उन्होंने निर्देश दिए कि पशुओं के उपचार के लिए ई-दवा परची का अधिक से अधिक उपयोग किया जाए. भारत पशुधन एप के नोलेज सैंटर पर उपलब्ध जानकारियों को साझा करने के लिए आई गौट कर्मयोगी प्लेटफार्म का उपयोग किया जाना चाहिए.

डा. समित शर्मा ने बीआईएफएल को निर्देश दिए कि वे टैलीमैडिसिन, व्हाट्सअप और चैटबोट का उपयोग “1962” एप काल सैंटर पर करें.

उन्होंने निदेशक पशुपालन को निर्देश दिए कि विभाग के अधिकारियों को भारत पशुधन एप की अधिक जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए भारत सरकार के अधिकारियों के साथ बैठक कराई जाए, जिस की अनुपालना में बैठक के बाद पशुधन भवन में यह बैठक आयोजित की गई. बैठक में विभाग के अधिकारियों ने पशुधन एप से संबंधित अपनी शंकाओं का समाधान किया.

उल्लेखनीय है कि भारत सरकार द्वारा पशुओं के चिन्हीकरण, टीकाकरण, प्रजनन, पोषण और उपचार के लिए नैशनल डिजिटल लाइवस्टाक मिशन संचालित किया जा रहा है.

बैठक में भारत सरकार के नैशनल डिजिटल लाइवस्टाक मिशन के परियोजना प्रबंधक असद परवेज, वरिष्ठ प्रबंधक आरके श्रीवास्तव, परियोजना प्रबंधक (पीएमयू-ईवाई) आर. रेजिथ और सलाहकार डा. जिगर और पशुपालन निदेशक डा. भवानी सिंह राठौड़ सहित पशुपालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे

मोबाइल वेटेरिनरी पहुंचेगी हर पशुपालक के द्वार, ऐसा है सरकार का विचार

जयपुर : पशुपालन, गोपालन एवं डेयरी मंत्री जोराराम कुमावत ने वित्त वर्ष 2024-25 की बजट घोषणाओं को समय पर पूरा करने के निर्देश देते हुए कहा कि पशु कल्याण और पशुपालक हमारी सरकार की प्राथमिकता है. पशुपालन मंत्री पिछले दिनों सचिवालय स्थित अपने कक्ष में विभागीय समीक्षा बैठक को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने बजट घोषणा के तहत पशुधन विकास कोष, सैक्स सोर्टेड सीमन और ब्रीडिंग पोलिसी की प्रगति की समीक्षा की. उन्होंने मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट के विशेष प्रचारप्रसार पर जोर देते हुए कहा कि अधिक से अधिक लोगों तक इस की जानकारी से ही हमारी इस योजना का लाभ लोगों तक पहुंच पाएगा.

उन्होंने इसे हाइब्रिड मोड पर भी चलाने के निर्देश दिए, जिस से अधिक से अधिक लोग इस का लाभ उठा सकें.
उन्होंने प्रत्येक मोबाइल वेटेरिनरी यूनिट में एक आगंतुकपंजिका रखने के निर्देश दिए, जिस से लाभार्थी अपने सुझाव और शिकायतें उस में दर्ज कर सकें और इस सेवा को और बेहतर करने में विभाग को मदद मिल सके.

मंत्री जोराराम कुमावत ने विभागीय पदोन्नति के लिए निदेशक सहित सभी पदों की डीपीसी जल्द से जल्द कराने के निर्देश दिए. साथ ही, रिक्त पदों की भरती की प्रक्रिया को भी गति प्रदान करने के निर्देश प्रदान किए.

उन्होंने भवनरहित संस्थाओं के लिए भवन निर्माण के कार्य को भी जल्द से जल्द योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्देश दिया, जिस से पशुओं और पशुपालकों को समस्याओं से नजात मिल सके.

मंत्री जोराराम कुमावत ने पशु मेलों में प्रचारप्रसार की स्थिति पर असंतोष जाहिर करते हुए कहा कि इसे दुरुस्त करने का प्रयास होना चाहिए, ताकि लोगों को मेलों और उन में होने वाली गतिविधियों की जानकारी हो सके.

पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने गोशालाओं के जमीन की आवंटन नीति की समीक्षा करने के निर्देश देते हुए कहा कि इस का सरलीकरण होना चाहिए. जिला गोपालन समिति की बैठक समय पर आयोजित करने के निर्देश देते हुए उन्होंने कहा कि गोशालाओं को समय पर अनुदान मिलना चाहिए और इस के लिए गोशाला समितियों की बैठक समय पर होना आवश्यक है.

उन्होंने मध्य प्रदेश और ओड़िसा की तरह प्रदेश में भी गौ अभ्यारण्य की स्थापना पर बल दिया, जिस से गायों को आश्रय की सुविधा मिल सके. उन्होंने गाय के गोबर और गौमूत्र के प्रसंस्करण और उस से बनने वाले उत्पादों के लिए योजना बनाने के निर्देश दिए, जिस से किसान और पशुपालक आर्थिक रूप से और मजबूत बन सकें.

उन्होंने गोशालाओं में एआई के उपयोग पर भी बल दिया. साथ ही, एनएलएम की तरह गायों के लिए भी परियोजना तैयार करने के निर्देश दिए.

आगामी बजट घोषणा पर चर्चा करते हुए पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे ऐसी योजना बनाएं, जो अधिक से अधिक किसानों और पशुपालकों के हित में हों और जिन का क्रियान्वयन धरातल पर सुगमता से हो सके.

बैठक में शासन सचिव, पशुपालन एवं गोपालन डा. समित शर्मा ने कहा कि प्रदेश में पशुपालन, डेयरी और पशु चिकित्सा के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं और आने वाले समय में हम इन संभावनाओं को धरातल पर लाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने राइजिंग राजस्थान को इस के लिए एक अच्छा अवसर बताया.

बैठक में पशुपालन निदेशक डा. भवानी सिंह राठौड़, गोपालन निदेशक डा. सुरेश मीणा, पशुपालन विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. आनंद सेजरा और प्रह्लाद सहाय नागा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

कृषि विश्वविद्यालय (Agricultural University), कोटा कर रहा नए आयाम स्थापित

कोटा : कृषि विश्वविद्यालय, कोटा ने कृषि प्रसार शिक्षा के क्षेत्र में कृषक हितार्थ नवाचारों की तरफ आगे कदम बढाते हुए कई आयाम स्थापित किए हैं. कृषि विश्वविद्यालय, कोटा के अधीन प्रसार शिक्षा इकाइयों के रूप में 6 कृषि विज्ञान केंद्र (कोटा, अंता, बूंदी, झालावाड़, सवाई माधोपुर एवं हिण्डौन सिटी) कार्यरत हैं. विश्वविद्यालय लक्षित तरीके से किसानों एवं अन्य हितधारक केंद्रित दृष्टिकोण के साथ कृषि शिक्षा, अनुसंधान, प्रसार एवं प्रशिक्षण में गुणवत्ता, उत्कृष्टता और प्रासंगिकता प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित कर पिछले 2 सालों में नई पहलों के साथ उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं.

प्रसार शिक्षा निदेशालय के माध्यम से किसानों, किसान महिलाओं, ग्रामीण युवाओं एवं प्रसार कार्यकर्ताओं के लिए नवीन कृषि तकनीकों के प्रचारप्रसार, कौशल एवं उद्यमिता विकास के लिए विभिन्न फसल प्रदर्शन, प्रशिक्षण एवं तकनीकी सलाह प्रदान करता है.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अभय कुमार व्यास ने गत 2 सालों में किए गए प्रसार कार्यों के लिए नई पहल एवं प्रमुख उपलब्धियों का संक्षिप्त ब्योरा देते हुए बताया कि राजस्थान के राजभवन से लगातार 3 सालों यानी 2022 -24 तक विश्वविद्यालय सामाजिक उत्तरदायित्व (यूएसआर) कार्यक्रम के तहत गोद लिए गए गांवों कनवास और आंवा के विकास के लिए विश्वविद्यालय के काम की सराहना करते हुए प्रशंसापत्र प्रदान किए हैं. इन गोद लिए गांवों में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम, उन्नत किस्म के पशुओं का वितरण, फसल व बगीचा प्रबंधन, खाद्य प्रसंस्करण, सिलाई प्रशिक्षण पर प्रशिक्षण दिए गए, जिस से ग्रामीणों की आर्थिक उन्नति के नए आयाम खुले हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र, कोटा पर 3.00 करोड़ रुपए की लागत से धनिया, लहसुन प्रसंस्करण और बेकरी उत्पादों के लिए कौमन इनक्यूबेशन सैंटर (सीआईसी) की स्थापना की गई. इस यूनिट पर लघु व दीर्घ अवधि के प्रशिक्षण आयोजित कर युवा ग्रामीणों व किसानों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित एवं लाभान्वित किया गया है.

कृषि विश्वविद्यालय (Agricultural University)

विश्वविद्यालय की वर्तमान गतिविधियों, उपलब्धियों, मौसम की जानकारी, किसानों और अन्य हितधारकों से संबंधित सलाह और नवाचारों को साझा करने के लिए विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर एक आउटडोर एलईडी डिस्प्ले यूनिट स्थापित की गई है, जिस से हर दिन सैकड़ों लोग लाभान्वित हो रहे हैं.

विश्वविद्यालय द्वारा खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में 200 से अधिक उद्यमी अभी तक तैयार किए गए हैं और 600 युवा, किसानों व किसान महिलाओं को सोयाबीन, लहसुन व मोटा अनाज प्रसंस्करण में प्रशिक्षित किया गया है. ये युवा उद्यमी लगभग 10 हजार से 1.5 लाख प्रति माह आय अर्जित कर के स्वयं की और कोटा क्षेत्र की आर्थिक उन्नति में अपना योगदान दे रहे हैं.

कृषि विज्ञान और कैरियर में रुचि पैदा करने के लिए अनुभवी वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करने के लिए स्कूली छात्रों, शिक्षकों और किसान समुदायों को आमंत्रित करने की एक नई पहल की गई है, जिस में अभी तक 10,000 से अधिक छात्रों, शिक्षकों और किसानों को विश्वविद्यालय की विभिन्न अनुसंधान व प्रसार इकाइयों सहित कृषि शिक्षा संग्रहालय का भ्रमण करवाया गया.

16,000 से अधिक किसानों और हितधारकों के लिए तकरीबन 400 क्षमता विकास कार्यक्रम आयोजित किए गए.

12 से 38 फीसदी अधिक उपज और रिटर्न के साथ 2,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में किसानों के खेतों पर नवीनतम तकनीकों के प्रदर्शन के लिए 5,000 अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों का आयोजन किया गया. विश्वविद्यालय ने तकनीकी सहायता के माध्यम से 21 कृषक उत्पादक संगठनों को सुगमता प्रदान की.

कृषि विश्वविद्यालय, कोटा द्वारा प्रशिक्षित और नवोन्मेषी और प्रगतिशील किसान किशन सुमन को भारत के राष्ट्रपति द्वारा “प्लांट जीनोम सेवियर फार्मर्स रिकौग्निशन -2023” अवार्ड एवं अवधेश मीना को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा प्रतिष्ठित पुरस्कार “इनोवेटिव फार्मर अवार्ड” से सम्मानित किया गया.

नई कृषि तकनीकों को किसानों तक पहुंचा रहा हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय सभागार में कृषि अधिकारी कार्यशाला (रबी) 2024 का शुभारंभ हुआ. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने विस्तार शिक्षा निदेशालय द्वारा आयोजित 2 दिवसीय कार्यशाला का बतौर मुख्य अतिथि उद्घाटन किया.

कार्यशाला में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सभी जिलों से कृषि अधिकारी भाग लिया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि विश्वविद्यालय लगातार कृषि कार्यों संबंधी सलाह किसानों तक पहुंचा रहा है, जिस के कारण किसानों को कृषि कार्यों से संबंधित फैसले लेने में मदद मिल रही है.

उन्होंने कहा कि कार्यशाला में नई किस्मों, नई तकनीकों और नई सिफारिशों के साथसाथ भविष्य की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की जाएगी. कुलपति ने आह्वान किया कि कृषि क्षेत्र को लाभकारी बनाने के लिए किसानों को पारंपरिक फसलों के स्थान पर दलहनी एवं तिलहनी फसलों की खेती करने के लिए प्रेरित किया करें. किसानों को उन फसलों की काश्त करने के लिए जागरूक किया जाए, जिन फसलों में पोषक तत्व एवं पानी की कम मात्रा के साथसाथ उत्पादन लागत कम आए.

उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र एक बहुत बड़ा प्लेटफार्म है और कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा, किसानों की आय में बढ़ोतरी व प्राकृतिक संसाधनों का सीमित मात्रा में प्रयोग करना हमारा सर्वोपरि उद्देश्य है. प्राकृतिक एवं और्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा योजनाबद्ध ढंग से काम किया जा रहा है.

किसानों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक निरंतर अनुसंधान एवं नई तकनीक पर काम कर रहे हैं व कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों के साथ मिल कर इन तकनीकों को किसानों तक पहुंचाया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि वर्ष 2023-24 में हरियाणा में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ कर 332 लाख मीट्रिक टन हो गया है, जिस के कारण देश के केंद्रीय पूल में हरियाणा दूसरा सब से बड़ा योगदानकर्ता है.

खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी का कारण विश्वविद्यालय द्वारा विकसित उन्नत किस्में, आधुनिक कृषि तकनीक के अलावा कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा उन तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने से संभव हो सका है. फसल अवशेष प्रबंधन, फसल विविधीकरण, मृदा स्वास्थ्य व जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए आधुनिक तकनीक का उपयोग कर के फसल उत्पादन बढ़ाने व कृषि से जुड़ी समस्याओं का तत्परता से समाधान करने की आवश्यकता है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यशाला में पिछली खरीफ की कार्यवाही रिपोर्ट पुस्तिका का भी विमोचन किया. कार्यशाला में अतिरिक्त मुख्य सचिव कृषि और किसान कल्याण, पशुपालन डेयरी विभाग, हरियाणा सरकार व कुलपति लुवास, हिसार डा. राजा शेखर वुंडरू, आईएएस व कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक राज नारायण कौशिक, आईएएस औनलाइन माध्यम से जुड़े.

कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. आरएस सोलंकी ने राज्य सरकार द्वारा किसानों के कल्याणार्थ क्रियान्वित की जा रही योजनाओं जैसे ‘मेरा पानी-मेरी विरासत’, ‘हर खेत स्वस्थ खेत’, ‘मेरी फसल मेरा ब्योरा’ और ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ पर विस्तार से प्रकाश डाला.

उन्होंने कहा कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों के लिए अति आवश्यक है. इस कार्ड के माध्यम से किसानों को उन की भूमि की मिट्टी की स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है.

विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने वर्कशाप की विस्तृत जानकारी देते हुए निदेशालय द्वारा आयोजित की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों के बारे में बताया. साथ ही, उन्होंने गत वर्ष विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्रों एवं कृषि विभाग द्वारा किसानों के खेतों पर लगवाए गए अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन, तकनीकी प्रदर्शन प्रक्षेत्र के आंकड़ों की जानकारी दी.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने अनुसंधान परियोजनाओं व विश्वविद्यालय की नवीनतम तकनीकों पर चल रहे शोध के कामों के बारे में बताया. विस्तार शिक्षा निदेशालय के सहनिदेशक डा. सुनील ढांडा ने मंच का संचालन किया. इस अवसर पर विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, विभागाध्यक्ष, कृषि और किसान कल्याण विभाग के अधिकारी मौजूद रहे.

Agriculture News : हकृवि कार्यशाला (Workshop) में 19 सिफारिशें स्वीकृत

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के सभागार में आयोजित 2 दिवसीय राज्य स्तरीय कृषि अधिकारी कार्यशाला (Workshop) का समापन हुआ, जिस में मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज रहे. इस कार्यशाला (Workshop) में प्रदेशभर के कृषि अधिकारियों और हकृवि के वैज्ञानिकों द्वारा रबी फसलों की समग्र सिफारिशों के बारे में विस्तृत चर्चा की गई और कई महत्वपूर्ण तकनीकी पहलुओं पर विचारविमर्श किया गया.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि इस कार्यशाला में 19 सिफारिशें स्वीकृत की गई हैं, जिन में एक गेहूं, दो वसंतकालीन मक्का, एक मसूर, एक चारा जई की एवं एक औषधीय फसल बाकला के अलावा गरमी के मौसम में मक्का को चारे की फसल के रूप में उगाने के लिए समग्र सिफारिश, धानगेहूं फसलचक्र में पराली प्रबंधन, गन्ने की फसल में चोटी बेदक व कंसुआ कीट की रोकथाम और एकीकृत कृषि प्रणाली के लिए फसल चक्र भी शामिल हैं.

कार्यशाला (Workshop) में हकृवि के वैज्ञानिकों एवं कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से की गई इन सिफारिशों से किसानों को फायदा होगा. उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला  (Workshop) में दी गई कृषि से संबंधित सिफारिशों से केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के लिए किए जा रहे कार्यों को और गति मिलेगी.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे कम जोत के किसानों की समस्या को पहले अच्छे ढंग से समझें, उस के बाद उन समस्या के निवारण पर शोध करें.

इस अवसर पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. आरएस सोलंकी, डा. रमेश वर्मा, डा. एचएस सहारण सहित विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एवं कृषि और किसान कल्याण विभाग के अधिकारी मौजूद रहे. मंच का संचालन डा. सुनील ढांडा ने किया.

कार्यशाला (Workshop)

इस कार्यशाला (Workshop) में 19 सिफारिशें स्वीकृत हुई हैं, जिन में मुख्य निम्रलिखित हैं :

डब्ल्यूएच 1402 : गेहूं की यह बौनी किस्म सूखा सहनशील एवं अगेती बिजाई के लिए उपयुक्त है. डब्ल्यूएच 1402 की औसत पैदावार 20.1 क्विंटल प्रति एकड़ व उत्पादन क्षमता 27.2 क्विंटल प्रति एकड़ है. यह किस्म अत्यंत रोगरोधी है और गुणवत्ता में उत्तम है.

आईएमएच 225 : यह मक्का की पीले दाने व मध्यम अवधि वाली एकल संकर किस्म है, जो वसंत ऋतु में 115-120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. यह किस्म राष्ट्रीय स्तर पर मक्का की मुख्य बीमारियों व कीटों के अवरोधी व मध्यम अवरोधी पाई गई है. इस की औसत पैदावार 36-38 क्विंटल प्रति एकड़ है.

आईएमएच 226 : यह मक्का की हलकी नारंगी दाने व मध्यम अवधि वाली एकल संकर किस्म है, जो वसंत ऋतु में 115-120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. यह किस्म मुख्य बीमारियों व कीटों के अवरोधी व मध्यम अवरोधी पाई गई है. इस की औसत पैदावार 34-38 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एलएच 17-19 : मसूर की इस छोटे दाने वाली किस्म भारत के उत्तरपश्चिमी क्षेत्रों में काश्त के लिए अनुमोदित की गई है. मध्यम अवधि वाली यह किस्म 6.0 – 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत पैदावार देती है.

आरएच 1975 : इस किस्म की सिफारिश जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एवं उत्तरी राजस्थान के सिंचित क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए की गई है. यह किस्म 145 दिनों में पक कर 10.5-11.5 क्विंटल प्रति एकड़ औसत पैदावार देती है. इस किस्म में तेल की औसत मात्रा 39.3 फीसदी है.

एचएफओ 906 : एक कटाई वाली चारा जई की इस किस्म की हरियाणा के लिए सिफारिश की गई है. यह किस्म 262.00 क्विंटल प्रति एकड़ हरे चारे की पैदवार देती है.

हरियाणा बाकला 3 : इस किस्म की औसत उपज 9.5 क्विंटल प्रति एकड़ है और इस की अधिकतम उपज 20 क्विंटल प्रति एकड़ है. इस में प्रोटीन की मात्रा 28 फीसदी होती है. इस की खेती हरियाणा के सिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों में की जा सकती है.

– धानगेहूं फसल चक्र में पराली प्रबंधन के लिए स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम लगे हुए कंबाइन हार्वेस्टर द्वारा धान की कटाई के उपरांत पराली को मिट्टी में मिलाने के साथसाथ गेहूं की बिजाई के लिए सुपर सीडर का उपयोग करें. इस मशीन से गेहूं की बिजाई करने पर परंपरागत विधि की तुलना में 43 फीसदी ईंधन, 36 फीसदी मेहनत और 40 फीसदी बिजाई लागत की बचत होती है.

– गन्ने की फसल में चोटी बेदक व कंसुआ कीट की रोकथाम के लिए अप्रैल माह के अंत से मई माह के पहले सप्ताह तक क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 फीसदी एससी (कोराजन/सिटीजन) 150 मिलीलिटर प्रति एकड़ की दर से 400 लिटर में मिला कर पीठ वाले पंप से मोटा फव्वारा बना कर फसल के जड़ क्षेत्र में डाल कर हलकी सिंचाई करें.

– गरमी के मौसम में मक्का को चारे की फसल के रूप में उगाने के लिए समग्र सिफारिश.

– एकीकृत कृषि प्रणाली की एक हेक्टेयर मौडल पर शोध के आधार पर मूंगगेहूं (देसी) + सरसों (10:2), मक्का+लोबिया-जई-मीठी सूडानघास एवं मूंगसरसोंमूंग फसल चक्रों की सिफारिश की गई.