मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं केंचुए

जबलपुर : मिट्टी के महत्वपूर्ण जीवों में केंचुआ एक है. केंचुए में मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने की क्षमता होती है, इसलिए ये मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन्हें किसान का मित्र, खेत का हल चलाने वाला, धरती की आंत, पारिस्थितिक इंजीनियर और जैविक संकेतक के रूप में भी जाना जाता है.

उपसंचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि केंचुए किसानों के सच्चे मित्र और सहायक हैं.  उन के मुताबिक, भारत में कई जातियों के केंचुए पाए जाते हैं. इन में से केवल 2 ऐसे हैं, जो आसानी से प्राप्त होते हैं. एक है, फेरिटाइमा और दूसरा है, यूटाइफियस.

फेरिटाइमा पौसथ्यूमा पूरे भारत में मिलता है. फेरिटाइमा की वर्म कास्टिंग मिट्टी की पृथक गोलियों के छोटे ढेर जैसी होती है और यूटाइफियस की कास्टिंग मिट्टी की उठी हुई रेखाओं के समान होती है. इन का मिट्टी खाने का ढंग लाभदायक है. ये भूमि को एक प्रकार से जोत कर किसानों के लिए उपजाऊ बनाते हैं. वर्म कास्टिंग की ऊपरी मिट्टी सूख जाती है, फिर बारीक हो कर भूमि की सतह पर फैल जाती है. इस तरह जहां केंचुए रहते हैं, वहां की मिट्टी पोली हो जाती है, जिस से पानी और हवा भूमि के भीतर सुगमता से प्रवेश कर सकती है. इस प्रकार केंचुए हल के समान काम करते हैं.

उन्होंने बताया कि एक एकड़ में तकरीबन 10,000 से ऊपर केंचुए रहते हैं. ये केंचुए एक वर्ष में 14 से 18 टन यानी 400 से 500 मन मिट्टी भूमि के नीचे से ला कर सतह पर एकत्रित कर देते हैं. इस से भूमि की सतह आधी इंच ऊंची हो जाती है. यह मिट्टी केंचुओं के पाचन अंग से हो कर आती है, इसलिए इस में नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ भी मिल जाते हैं और यह खाद का काम करती है. इस प्रकार ये मनुष्य के लिए भूमि को उपजाऊ बनाते रहते हैं.

उपसंचालक, किसान कल्याण एवं कृषि विकास रवि आम्रवंशी ने कहा कि यदि इन को पूरी तरह से भूमि से हटा दिया जाए तो हमारे लिए समस्या हो जाएगी. यह महत्वपूर्ण है कि मिट्टी में इन छोटे जीवों को किसी भी कीमत पर संरक्षित किया जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये मानव जाति को अपनी अमूल्य सेवाएं प्रदान करना जारी रखें.

 

फसल बदली तो संजीव की होने लगी लाखों की कमाई

ग्वालियर : संजीव पहले धान की पारंपरिक खेती करते थे. जीतोड़ मेहनत के बावजूद उन्हें अपनी खेती से उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी, जितनी वे उम्मीद रखते थे. ऊपर से यदि मानसून दगा दे जाए, तो उत्पादन और घट जाता है. संजीव ने फसल में बदलाव क्या किया, उन की जिंदगी ही बदल गई. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ने उन के जीवन में सुखद बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाई है.

ग्वालियर जिले के भितरवार विकासखंड के ग्राम गोहिंदा के रहने वाले प्रगतिशील किसान संजीव बताते हैं कि धान की फसल में लागत ज्यादा और आमदनी कम होती थी. जब तमाम प्रयासों के बावजूद आशा के मुताबिक आमदनी नहीं बढ़ी, तब हम ने उद्यानिकी फसल की ओर कदम बढ़ाए. इस के लिए हम ने उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से तकनीकी मदद ली. उन की सलाह पर हम ने “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना” के तहत ड्रिप विथ मल्चिंग पद्धति से बैगन उत्पादन शुरू किया.

संजीव बताते हैं कि एक हेक्टेयर रकबे में हम ने इस पद्धति से बैगन की खेती शुरू की. इस पर लगभग एक लाख, 55 हजार रुपए की लागत आई, जिस में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत 70,000 रुपए का अनुदान भी मिला.

संजीव का कहना है कि जब हम अपने एक हेक्टेयर खेत में धान उगाते थे, तब एक लाख रुपए की लागत आती थी और हमें लगभग एक लाख, 92 हजार रुपए की आय होती थी. इस में अगर हम अपनी मेहनत जोड़ लें, तो आमदनी न के बराबर होती. अब हमें उसी एक हेक्टेयर रकबे में ड्रिप विथ मल्चिंग पद्धति से बैगन की खेती करने पर लागत निकाल कर 5 लाख रुपए की शुद्ध आमदनी हो रही है.

वे बताते हैं कि धान का उत्पादन 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर था, वहीं बैगन का उत्पादन 700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो रहा है. ड्रिप विथ मल्चिंग पद्धति से बैगन उत्पादन में 2 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर का खर्चा आता है और 7 लाख रुपए की आय होती है. इस प्रकार हमें 5 लाख रुपए की आमदनी एक हेक्टेयर रकबे से होने लगी है.

आमदनी बढ़ने से संजीव के चेहरे पर आई खुशी देखते ही बनती है. वे कहते हैं कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ने हमजैसे जरूरतमंद किसानों का जीवन संवार दिया है.

पौध रोपण के लिए नई परमाकल्चर तकनीक

जबलपुर : बारिश के दौरान जिले में बड़े पैमाने पर किए जाने वाले पौध रोपण और उन की सुरक्षा को ले कर जिला पंचायत ने पिछले दिनों जिले की सभी पंचायतों के सरपंच, पंचायत सचिव, ग्राम रोजगार सहायकों, उपयंत्रियों, सहायक यंत्रियों और जनपद पंचायतों की मुख्य कार्यशाला आयोजित की.

सिहोरा के विधायक संतोष वरकडे, जिला पंचायत अध्‍यक्ष आशा मुकेश गोटिंया, वन मंडल अधिकारी ऋषि मिश्र, जिला पंचायत की मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी जयति सिंह मौजूदगी में आयोजित इस कार्यशाला में विषय विशेषज्ञ के तौर पर मुंबई से आए ग्रीन यात्रा संस्था के प्रदीप त्रिपाठी एवं सिद्धार्थ इंगले ने पौध रोपण के तकनीकी के बारे में विस्तार से प्रशिक्षण दिया.

कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए सिहोरा के विधायक संतोष वरकडे ने पौध रोपण जीवन के लिए अतिमहत्‍वपूर्ण है. उन्होंने पौध रोपण के साथसाथ पौधे की सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान दिए जाने पर बल दिया.

उन्होंने कार्यशाला के आयोजन के लिए जिला पंचायत की सीईओ की तारीफ भी की. कार्यशाला में गैरसरकारी संगठन ‘ग्रीन यात्रा’ के मुंबई से पधारे विषय विशेषज्ञ सिद्धार्थ इंगले द्वारा पौध रोपण के तकनीकी पहलुओं पर विस्‍तार से जानकारी दी. उन्होंने कहा कि एक रिसर्च में यह पाया गया है कि औक्‍सीजन की एक दिन की कीमत 13 लाख रुपए है. इसे प्रकृति से हम मुफ्त में प्राप्‍त करते हैं और यह अनमोल है.

इंगले ने कहा कि यह सभी का दायित्‍व है कि पौध रोपण में तकनीकी का भी इस्‍तेमाल करें, ताकि शतप्रतिशत पौधों को बचाया जा सके.

‘ग्रीन यात्रा संस्‍था’ के फाउंडर प्रदीप त्रिपाठी ने कार्यशाला में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जीवन में पैसा कमाना ही सबकुछ नहीं है. उन्‍होंने बताया कि किस प्रकार से अपनी मैडिकल की पढ़ाई छोड़ कर इस अभियान में जुटे हैं.

उन्होंने पौध रोपण की परमाकल्चर विधि का इस्तेमाल करने की सलाह देते हुए कहा कि इस विधि से पौध रोपण स्‍थल को आय का साधन भी बनाया जा सकता है. इस विधि में लगाए गए पौधों के बीच कद्दू, सब्जियां, कंद और पपीता, केला आदि लगाए जा सकते हैं और एक हेक्टेयर क्षेत्र में पौध रोपण कर 4 से 5 लाख रुपए तक की आय ली जा सकती है.

पंकज त्रिपाठी ने बताया कि दिल्‍ली, मुंबई, बैंगलुरु में लगभग 20,000 हेक्‍टेयर में उन के द्वारा यह काम किया जा रहा है. बड़े शहरों में जहां पर कचरा डंप किया जाता है, आज वहां बड़ेबड़े पेड़ उग आए हैं.

वन मंडल अधिकारी ऋषि मिश्र ने कार्यशाला में अपने प्रस्‍तुतीकरण में सर्वप्रथम फिल्‍म के माध्‍यम से वन विभाग द्वारा किए जा रहे पौध रोपण के बारे में जानकारी दी गई.

उन्होंने बताया कि इस वर्ष वन विभाग द्वारा 4 लाख से अधिक पौधों का रोपण किया गया है. इस के लिए पानी कोई बाधा नहीं है. वर्षा के जल का 6 से 8 माह तक प्रबंधन कर सभी पौधों को जिंदा रख सकते हैं.

कार्यशाला के समापन पर जिला पंचायत की सीईओ जयति सिंह ने जिले में पदस्थ सभी उपयंत्रियों को यह बताया कि मनरेगा के तहत किस प्रकार से पौध रोपण करना है. उन्होंने जिले में संचालित वाटरशेड की 2 परियोजनाओं में परमाकल्‍चर के माध्‍यम से ही पौध रोपण किए जाने के निर्देश दिए.

उन्होंने स्‍पष्‍ट किया कि आने वाले दिनों में जनपद पंचायत के भ्रमण के दौरान ये सारी बातें धरातल पर दिखनी चाहिए. इस के लिए सभी जनपद अपनी टीम के साथ तैयारी कर लें.

नाबार्ड की मदद से बन रहे एफपीओ, हो रहे खास काम

बड़वानी : कलक्टर डा. राहुल फटिंग की अध्यक्षता में पिछले दिनों जिला निगरानी समिति की बैठक आयोजित की गई, जिस में फार्मर प्रोड्यूस और्गेनाइजेशन एफपीओ की प्रगति पर विस्तृत चर्चा की गई. बैठक में विभिन्न कृषक उत्पादक संगठन एवं सीबीबीओ संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित हुए, जिन के द्वारा एफपीओ की प्रगति का ब्योरा पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से दिया गया.

नाबार्ड से जिला विकास प्रबंधक विजेंद्र पाटिल ने बताया कि भारत सरकार की 10,000 एफपीओ योजना के अंतर्गत बड़वानी जिले के सभी 7 विकासखंडों में 14 एफपीओ बनाए गए हैं. जिले में ज्यादातर एफपीओ द्वारा अपने किसान सदस्यों को कम दर में कृषि संबंधित सामग्री मुहैया कराने के उद्देश्य से खाद, बीज, दवा आदि की दुकानें बनाई हैं. कुछ एफपीओ द्वारा विशेष काम किया जा रहा है, जिन में नाबार्ड एवं कृषि विकास संस्था की मदद से पानसेमल में देवमोगरा माता एफपीओ द्वारा 8 लाख रुपए की मिर्ची दुबई में निर्यात की गई. वर्ष 2024-25 के लिए यह लक्ष्य 1 करोड़ रुपए के निर्यात का रखा गया है. एफपीओ के सदस्य द्वारा उन्नत मिर्च की नर्सरी संचालित की जा रही है.

नाबार्ड एवं मंथन संस्था की मदद से निवाली में मोगी माता एफपीओ ने हलदी प्रोसैसिंग प्लांट स्थापित किया. भारत सरकार की एआईएफ योजना एवं नाबार्ड की एएमआई सब्सिडी योजना के अंतर्गत बैंक औफ इंडिया, सेंधवा शाखा ने मोगी एफपीओ को यह इकाई लगाने के लिए लोन दिया.

सीबीबीओ मंथन के डा. रजत सक्सेना द्वारा बताया गया कि स्थानीय स्तर पर इस से पहले हलदी प्रसंस्करण की सुविधा न होने के कारण किसानों से उन का उत्पादन बिचौलिए औनेपौने दाम में खरीदते थे, लेकिन हलदी प्रसंस्करण की सुविधा मोहैया होने से किसानों को स्थानीय स्तर पर ही यह संभव हो सकेगा, जिस से कि किसानों को उन के उत्पाद का उचित दाम मिलेगा एवं रोजगार के नए मौके मिलेंगे.

डीडीएम ने नाबार्ड प्रायोजित नैब संरक्षण गारंटी योजना के बारे में बताया, जिस से बैंकों द्वारा एफ़पीओ को समय पर लोन दिया जा सकेगा. बैठक के दौरान कलक्टर ने सभी सीबीबीओ को निर्देशित किया कि वह धरातल पर बेहतर काम करें. विशेषकर, फसलों के मूल्य संवर्धन के काम हो.

बड़वानी में नेचरटूअर्थ एफपीओ अदरक के प्रसंस्करण और नागलवाडी में संत सियाराम एफपीओ टमाटर पर काम करना सुनिश्चित करें.

बैठक में आरबीआई से विनय मोरे, एलडीएम संदीप अग्रवाल, डीडीए जमरे एवं अन्य विभाग उपस्थित थे.

किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग, उपसंचालक, एमएस देवके ने जानकारी देते हुए बताया कि वर्तमान में जिले में किसानों द्वारा बोआई का काम जारी है. सोयाबीन की नई किस्मों का बीज आगामी सीजन में उपलब्ध कराने के लिए भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान द्वारा जिले में विकासखंडवार एक गांव का चयन कर 3 क्विटल का बीज 10 किसानों के लिए उपलब्ध कराया गया.

गांव सिरपुर के 5 किसान और गांव दहीनाल के 5 किसानों के खेतों पर नई किस्मों के फसल प्रदर्शन आयोजित किए गए, जिस में किसानों को सोयाबीन किस्म एनआरसी-130 एवं एनआरसी-142 का बीज उपलब्ध करा कर संबंधित कृषि विस्तार अधिकारी कनक ससाने एवं महेंद्र चौबे द्वारा बीजोपचार के बाद किसानों के खेतों में प्रदर्शन प्लाट आयोजित किए जा रहे हैं, जिस में अनुशंसा के अनुसार संतुलित उर्वरकों का उपयोग किया गया और इन किसानों के खेतों में अन्य किसानों का भी भ्रमण कराया गया.

कृषि अवशेषों से बनेंगी कीमती चीजें

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्याय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग में ‘बायोमेथनेशन एवं अपशिष्ट मूल्यांकन प्रयोगशाला’ व संशोधित गोबर गैस प्लांट का उद्घाटन किया. यह प्रयोगशाला राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) की वित्तीय सहायता से पुनर्निर्मित की गई है.

उन्होंने ‘बायोमेथनेशन एवं अपशिष्ट मूल्यांकन प्रयोगशाला’ के बारे में बताया कि यह लैब हमारे विश्वविद्यालय के पर्यावरण समृद्धि और स्वच्छता के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. यह प्रयोगशाला कृषि अवशेषों के मूल्यवर्धक उत्पाद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. इस प्रयोगशाला में कृषि अवशेषों जैसे पराली, डंठल, छिलके और अन्य अपशिष्टों से मूल्यवर्धक वस्तुएं बनाई जाएंगी, जिन में बायोगैस, बायोइथेनाल, बायोडीजल, कंपोस्ट, जैव सक्रिय यौगिक जैसे पौलीफीनोल्स, जो एंटीमाइक्रोबियल एवं एंटीऔक्सीडेंट गतिविधि वाले होते हैं और पौलीहाइड्रोक्सीब्यूरेट का उत्पादन सूक्ष्मजीवों के द्वारा किया जाता है.

उन्होंने आगे बताया कि इस लैब में कृषि अपशिष्टों के विश्लेषण, बायोगैस के विश्लेषण, मेथेनोजन के विकास के लिए अनारोबिक चैंबर, जैव ईंधन उत्पादन के लिए बायोरिएक्टर जैसे उन्नत प्रौद्योगिकी आधारित उपकरण हैं एवं बायोफ्यूल उत्पादन के लिए कृषि खाद्य अपशिष्ट, हरित संश्लेषित नैनोपार्टिकल्स व पोल्ट्री अपशिष्ट जैसे विभिन्न योजकों का उपयोग किया जा रहा है.

इस का मुख्य उद्देश्य अपशिष्ट पदार्थों के हानिकारक प्रभावों को पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य पर काम करना है. साथ ही, अपशिष्ट प्रबंधन रोजगार के अवसर प्रदान करने और अर्थव्यवस्था में सुधार करने के अवसर भी प्रदान करता है. सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग की वैज्ञानिक डा. कमला मलिक को प्रयोगशाला का प्रभारी एवं डा. शिखा महता को सहप्रभारी बनाया गया है.

मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने बताया कि भूमि की उर्वराशक्ति में बढ़ोतरी एवं ईंधन की कमी की पूर्ति करने में गोबर गैस प्लांट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. हकृवि ने गोबर द्वारा चलने वाले जनता मौडल के बायो गैस प्लांट को संशोधित कर के ऐसा डिजाइन तैयार किया है, जो ताजा गोबर से चलता है.

उन्होंने जानकारी दी कि संशोधित गोबर गैस प्लांट को लगाने से जगह व पैसे की लागत अन्य डिजाइन की अपेक्षा कम आती है. इसे घर के आंगन में भी लगाया जा सकता है. इस प्लांट को शौचालय के साथ जोड़ कर गैस की मात्रा व खाद की गुणवत्ता भी बढ़ाई जा सकती है. स्लरी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा गोबर की अपेक्षा अधिक होती है. इस का उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता बढ़ती है. इस में नीम, आक या धतूरे के पत्ते मिला कर डालने से खेत में कीड़े व बीमारियों का प्रकोप नहीं रहता.

इस अवसर पर विभिन्न महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, शिक्षक एवं गैरशिक्षक कर्मचारियों सहित सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग के सभी वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

बेस प्लांटर विधि से मक्का बोआई को बढ़ावा

मंडला : मक्का मंडला जिले की प्रमुख फसल है. जिले में कृषि विभाग के अमले के द्वारा किसानों को बेस प्लांटर विधि से मक्का की बोआई करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. गांव नेवसा के रहने वाले जागेश्वर राजपूत अपने खेत में मक्का की बोआई कर रहे हैं, जिस से वे मक्का उत्पादन कर सफल किसान बन सकें.

पिछले दिनों कलक्टर डा. सलोनी सिडाना ने गांव नेवसा पहुंच कर मक्का बोआई का निरीक्षण किया. उन्होंने किसान जागेश्वर राजपूत को उच्च किस्म के मक्का बीज की बोआई करने के निर्देश दिए, जिस से मक्का फसल का उत्पादन बढ़ सके.

उन्होंने बताया कि शासन मक्का फसल का समर्थन मूल्य देती है. बाजार में भी मक्का की बहुत मांग है. किसान मक्के को बाजार में बेच कर भी मुनाफा कमा सकता है.

उन्होंने इस अवसर पर किसानों को व्यापारिक फसल की पैदावार करने के निर्देश दिए, जिस के तहत किसान अपने खेतों की पड़त भूमि में फलदार पौधे को लगा कर मुनाफा कमा सकते हैं.

कलक्टर डा. सलोनी सिडाना ने मक्का बोआई पद्धति से आसपास के किसानों को प्रेरित करने के निर्देश दिए, जिस से गांव के किसान भी मक्का की बोआई कर मुनाफा कमा सकें. उन्होंने किसानों से चक्रीय क्रम में फसल बदल कर खेती करने की बात कही, ताकि खेतों में भूमि का उपजाऊपन बना रहे.

उन्होंने किसानों को सब्जी का उत्पादन करने के भी निर्देश दिए, जिस से किसानों को बाजार में बिक रही सब्जी के दामों का लाभ मिल सके. कलक्टर डा. सलोनी सिडाना ने इसी प्रकार की गांव डोंगरा में जा कर बसंत कुमार के खेत में एसआरआई विधि से धान रोपाई का अवलोकन किया.

आइडिया को मिल सकती है 25 लाख तक की ग्रांट

हिसार: अगर आप के पास कोई कृषि व कृषि से संबंधित बिजनेस करने का आइडिया है, तो आप को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के वित्तीय सहयोग से स्थापित एग्रीबिजनेस इंक्यूबेशन सैंटर (एबिक) के माध्यम से 25 लाख रुपए तक की अनुदान राशि दिला सकता है.

यह अनुदान राशि एक प्रक्रिया के तहत एचएयू स्थित एबिक के माध्यम से दी जाएगी. इस के लिए आप को सिर्फ चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की वैबसाइट www.hau.ac.in पर 10 सितंबर, 2024 तक औनलाइन आवेदन करना है.

इस सैंटर के माध्यम से युवा छात्र, किसान, महिला व उद्यमी, मार्केटिंग, नेटवर्किंग, लाइसैंसिंग, ट्रेडमार्क व पेटेंट, तकनीकी व फंडिंग से संबंधित प्रशिक्षण ले कर कृषि क्षेत्र में अपने स्टार्टअप को नया आयाम दे सकते हैं. इस के लिए छात्र कल्याण प्रोग्राम ‘पहल’ एवं ‘सफल’-2024 नाम से 3 प्रोग्रामों का विवरण इस प्रकार हैं :

छात्र कल्याण प्रोग्राम : यह प्रोग्राम छात्रों के लिए पहली बार प्रारंभ किया गया है, जो छात्रों को उद्यमी बनाने में मदद करेगा. इस प्रोग्राम के तहत केवल छात्र ही आवेदन कर सकते हैं चयनित छात्र को एक महीने का प्रशिक्षण व 4 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित छात्र को एकमुश्त दी जाएगी.

पहल : इस प्रोग्राम के तहत चयनित उम्मीदवार को एक महीने का प्रशिक्षण व 5 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित उम्मीदवार को एकमुश्त दी जाएगी.

सफल : इस प्रोग्राम के तहत चयनित उम्मीदवार को एक महीने का प्रशिक्षण व 25 लाख रुपए तक की अनुदान राशि प्रावधान की जाएगी. यह राशि चयनित उम्मीदवार को 2 किस्तों में दी जाएगी.

उन्होंने बताया कि पिछले 5 सालों में 65 स्टार्टअप्स को केंद्रीय कृषि एवं कृषि कल्याण मंत्रालय द्वारा लगभग 7 करोड़ की राशि स्वीकृत की जा चुकी है. कुलपति ने उक्त कार्यक्रमों से संबंधित विवरण पुस्तिका का विमोचन किया.

आवेदकों के लिए आयु व शिक्षा नहीं बनेगी बाध्य

आवेदक को अपने आइडिया का प्रपोजल एचएयू की वैबसाइट www.hau.ac.in पर औनलाइन आवेदन करना है, जोकि नि:शुल्क है. इस के बाद उस आइडिया का यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक व इंक्युबेशन कमेटी द्वारा एक महीने के प्रशिक्षण के लिए चयन किया जाएगा.

एक महीने के प्रशिक्षण के बाद भारत सरकार द्वारा गठित कमेटी आवेदक के आइडिया को प्रस्तुत करवाएगी और चयनित आवेदक को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा अनुदान राशि स्वीकृत की जाएगी.

स्वरोजगार के साथसाथ दूसरे लोगों को भी रोजगार दे पाएंगे

कुलपति ने कहा कि युवाओं के लिए कृषि क्षेत्र में अपना व्यवसाय स्थापित करने का एक सुनहारा अवसर है. एबिक सैंटर से प्रशिक्षण व वित्तीय सहायता ले कर युवा रोजगार खोजने के बजाय रोजगार देने वाले बन सकते हैं. सैंटर के माध्यम से स्टार्टअप्स देश को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अहम भूमिका निभाएंगे.

उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने महिलाओं को उद्यमी बनाने के लिए 10 फीसदी अतिरिक्त अनुदान राशि देने का प्रावधान रखा है. साथ ही, युवा किसान व उद्यमी एबिक सैंटर के माध्यम से कृषि के क्षेत्र में प्रोसैसिंग, मूल्य संवर्धन, सर्विसिंग, पैकजिंग व ब्रांडिग कर के व्यापार की अपार संभावनाएं तलाश सकते हैं. ये तीनों कार्यक्रम उन को आत्मनिर्भर बनाने में काफी मददगार साबित होंगे. सैंटर से अब तक जुड़े युवा उद्यमी व किसानों ने न केवल अपनी कंपनी का टर्नओवर करोड़ो रुपए तक पहुंचाया है, अपितु उन्होंने दूसरे लोगों को रोजगार भी दिया है.

इस अवसर पर अनुसंधान निदेशक डा. एसके पाहुजा, ओएसडी डा. अतुल ढींगड़ा, प्रिंसिपल इंवेस्टीगेटर डा. राजेश गेरा, मीडिया एडवाइजर डा. संदीप आर्य, एबिक के बिजनेस मैनेजर विक्रम सिंधु व राहुल दुहन मौजूद रहे.

मंडी में गड़बड़झाले पर कृषि सचिव जिम्मेदार, कलक्टर करेंगे निगरानी

कटनी : मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा है कि प्रदेश में तुअर के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाए. कोदोकुटकी के रकबे को बढ़ाने से पानीबिजली का उपयोग संतुलित होगा और फसल चक्र में भी सुधार होगा. इसलिए किसानों को कोदोकुटकी की फसल लेने के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है. फसल चक्र पर ग्रीष्मकालीन फसल लेने के नकारात्मक प्रभाव से भी किसानों को अवगत कराना जरूरी है.

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव कृषक हितग्राही मूलक योजनाओं सहित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और कृषि विविधीकरण के लिए कि जा रहे प्रयासों पर मंत्रालय में आयोजित बैठक को संबोधित कर रहे थे. बैठक में किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री ऐदल सिंह कंषाना, मुख्य सचिव मती वीरा राणा उपस्थित थीं.

कृषि उपज मंडी में गड़बड़ी पाए जाने पर संबंधित सचिव होंगे जिम्मेदार

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा कि कृषि उपज मंडियों की व्यवस्था को चाकचौबंद रखने के लिए वरिष्ठ अधिकारी मंडियों के तौलकांटे, वित्तीय लेनदेन और दूसरी व्यवस्था का आकस्मिक निरीक्षण करें. यह सुनिश्चित किया जाए कि किसानों के हितों से कहीं भी खिलवाड़ न हो और मंडी व्यवस्था के प्रति किसानों का विश्वास बरकरार रहे. कलक्टर कृषि उपज मंडी के संचालन पर भी निगरानी रखें. कहीं पर भी कृषि उपज मंडी में गड़बड़ी पाए जाने पर संबंधित सचिव जिम्मेदार होंगे, उन के विरूद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी.

उन्होंने वेयरहाउस निर्माण व उपयोग के प्रावधानों में किसानों के हितों को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संशोधन करने के निर्देश दिए. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से सीमांत, लघु किसानों को लाभ मिले.

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा कि प्रदेश, जलवायु परिस्थितियों, मिट्टी और फसलों के विविध पैटर्न के साथ संपन्न है. हमारे किसानों की अथक मेहनत से प्रदेश कृषि विकास में सर्वोपरि है. हमारा प्रदेश दलहन व तिलहन के क्षेत्र और  उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर है. किसानों की आय में वृद्धि करने और कृषि को लाभ का धंधा बनाने की दिशा में हम निरंतर प्रयासरत हैं.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से अधिक से अधिक सीमांत व लघु किसानों को लाभ मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुधारात्मक उपाय किए जाएं. रानी दुर्गावती अन्न प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत पौष्टिक अन्न का उत्पादन बढ़ाने और इस की पैदावार करने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएं.

फसल विविधीकरण को करें प्रोत्साहित

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने कहा कि धान एवं गेहूं के स्थान पर अन्य लाभकारी फसलें लेने के लिए फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित किया जाए. ऐसी फसलों को बढ़ावा दिया जाए, जो सरकारी खरीद पर निर्भर न हों और जिन का दाम बाजार व निर्यात की मांग से जुड़ा हो.

उन्होंने रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक उर्वरकों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए प्रदेश के सभी क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती को विस्तारित करने संबंधित कार्ययोजना प्रस्तुत करने के निर्देश दिए.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 25 लाख से अधिक किसान हुए लाभान्वित

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में वर्ष 2023-24 में 25 लाख से अधिक किसान लाभान्वित हुए हैं. बीमा दावों का भुगतान भी त्वरित किया जा रहा है. अटल कृषि ज्योति योजना में 25 लाख, 61 हजार नि:शुल्क विद्युत प्रदाय योजना में 9 लाख, 21 हजार और मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना में 80 लाख से अधिक किसान लाभान्वित हुए हैं.

रानी दुर्गावती अन्न प्रोत्साहन योजना में राज्य मिलेट मिशन में वर्ष 2024-25 में कोदो, कुटकी, रागी और ज्वार के 1166 क्विंटल प्रमाणित बीजों का वितरण किया गया. किसानों को कोदोकुटकी पर 1000 रुपए प्रति क्विंटल की दर से अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराई जा रही है. प्रीपेड वाउचर ई-रूपी से हो रहा है. किसानों को अनुदान भुगतान फसल विविधीकरण में इथेनाल उत्पादन, फसल, सब्जीमसाले आदि के और्गेनिक उत्पादन और अश्वगंधा के उत्पादन में सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं. किसानों को अनुदान भुगतान का क्रियान्वयन प्रीपेड वाउचर ई-रूपी से किया जा रहा है.

किसानों को सस्ते दाम पर कृषि उपकरण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्रदेश में बनाए जाने वाले 5000 नए कस्टम हायरिंग सैंटर में से 3,964 केंद्र लगाए जा चुके हैं. किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा संचालित अन्य हितग्राही योजनाओं में उपलब्धि संबंधी जानकारी भी दी गई.

बैठक में अपर मुख्य सचिव डा. राजेश राजौरा, कृषि उत्पादन आयुक्त एसएन मिश्रा, अपर मुख्य सचिव किसान कल्याण अशोक बर्णवाल, प्रमुख सचिव वित्त मनीष सिंह और अन्य अधिकारी उपस्थित थे.

किसानों के हित के लिए कलक्टर जमीन पर

खरगोन : पिछले दिनों सनावद में चने की फसल किसानों से खरीद कर उन की राशि न लौटाने वाले व्यापारी अनिल के विरुद्ध प्रशासन ने सख्ती के साथ कार्यवाही की है. जब किसानों का प्रतिनिधिमंडल कलक्टर कार्यालय में ज्ञापन देने पहुंचा, तब कलक्टर कर्मवीर शर्मा स्वयं आ कर जमीन पर बैठे. किसानों से चर्चा करने के लिए बड़वाह विधायक सचिन बिरला और खरगोन विधायक बालकृष्ण पाटीदार के साथ कार्यालय की पैडियों पर नीचे बैठ कर किसानों को प्रशासन की ओर से किए गए प्रयासों के बारे में जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि प्रशासन ने संवेदनशील हो कर किसानों के हित में उक्त प्रकरण को स्वयं संज्ञान में ले कर पीड़ित किसानों की लिस्ट तैयार कर उन की देय राशि की जानकारी प्राप्त की. प्रशासन ने तत्काल संबंधित व्यापारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. व्यापारी व उस के भाई को जेल भेजा गया. उस के बाद संबंधित व्यापारी की संपत्ति कुर्की कर उस की नीलामी कराई जा रही है, जिस से किसानों को उन की राशि का भुगतान किया जा सके. साथ ही, व्यापारी के पिता पर दबाव बना कर उस की शेष संपत्ति बेच कर पैसा लौटाने का प्रयास किया जा रहा है.

व्यापारी की कसरावद, भीकनगांव एवं सनावद की जमीनों की नीलामी की जा कर प्राप्त राशि अनुसार भविष्य में किसानों के खाते में उन की राशि डाली जाएगी. उक्त मामले में जिला प्रशासन ने त्वरित कार्यवाही कर शासन एवं मंडी बोर्ड को भी अवगत कराया है. विधायक बिरला ने कहा कि किसानों का एकएक पैसा उन्हें शीघ्र ही वापस दिलाया जाएगा.

गेंदा का रकबा बढाने के लिए उद्यान विभाग की अनूठी पहल

झाबुआ : कलक्टर नेहा मीना के मार्गदर्शन में उद्यान विभाग द्वारा गेंदे की खेती का रकबा बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं, जिस में विकासखंड थांदला व पेटलावद में ट्रांसफौम रूरल इंडिया फाउंडेशन (टीआरआई) संस्था और कृष्ण संकुल आदिवासी महिला फार्मर प्रोडयुसर कंपनी द्वारा उद्यान विभाग के साथ क्लस्टर तैयार कर गेंदे की खेती को बढ़ावा देने के लिए नवाचार किए गए.

उसी कड़ी में विकासखंड रामा में गेंदे की खेती का रकबा बढ़ाने के लिए विकासखंड अधिकारी मानु चौबे द्वारा इंदौरअहमदाबाद राजमार्ग के आसपास के गांव भंवर पिपलिया, राछवा, कोकावद व भुरा डाबरा के किसानों का चयन कर उन्हें उन्नत किस्म कलकत्ती गेंदे के पौधे किसानों दिए गए.

गेंदे के पौध की कीमत 2.00 रुपए प्रति पौध थी, जिस में से 1.00 रुपए प्रति पौध किसानों के द्वारा व बाकी शेष राशि 1.00 रुपए प्रति पौध विकासखंड अधिकारी मानु चौबे के द्वारा दिए गए. उन्हें बतलाया गया कि विकासखंड रामा में पारंपरिक खेती को छोड़ फूलों की खेती का रकबा बढ़ाने के उदेश्य से किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए मेरे द्वारा प्रति पौधा 1.00 रुपए का सहयोग किया गया. इन किसानों को तकनीकी सहयोग कर गेंदे की खेती करवाई जाएगी और उपज प्राप्त होने पर किसानों से उक्त राशि प्राप्त की जाएगी.