छत्तीसगढ़ में मक्का और सोयाबीन को मिलेगा बढ़ावा

नई दिल्ली: 1 जुलाई, 2024. देश में कृषि क्षेत्र की तेजी से प्रगति हो, इस बात को ध्यान में रख कर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यवार चर्चा की पहल की है, जिस के तहत नई दिल्ली स्थित कृषि भवन में छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रामविचार नेताम सहित आए उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ केंद्रीय मंत्री ने बैठक की.

इस दौरान छत्तीसगढ़ में दलहन, तिलहन, बागबानी आदि को बढ़ावा देने के साथ ही कृषि एवं किसान कल्याण से जुड़े दूसरे अनेक विषयों पर चर्चा हुई. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में किसानों व कृषि क्षेत्र का हित हमारे लिए सर्वोपरि है और इसी के तहत छत्तीसगढ़ को केंद्र सरकार हरसंभव मदद देती रहेगी.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की छत्तीसगढ़ के मंत्री रामविचार नेताम के साथ प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, दलहन, तिलहन, बागबानी, नमो ड्रोन दीदी, औयल पाम मिशम सहित भारत सरकार की दूसरी योजनाओं व कामक्रमों पर चर्चा हुई.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि छत्तीसगढ़ के किसानों को केंद्र के स्तर पर कोई समस्या नहीं आने दी जाएगी. इस के लिए केंद्र व राज्य सरकार मिलजुल कर काम करते रहेंगे. उन्होंने आश्वासन दिया कि छत्तीसगढ़ के विकास के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण विभाग अपने स्तर पर पूरा सहयोग देगा. उन्होंने दलहन व तिलहन को प्रोत्साहित करने की केंद्र सरकार की नीति का उल्लेख भी किया.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह भी कहा कि छत्तीसगढ़ में मक्का व सोयाबीन को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध है. खरीफ सीजन में खादबीज आदि आदानों की पर्याप्त उपलब्धता रहेगी. इस के लिए उन्होंने संबंधित अधिकारियों को दिशानिर्देश दिए. इस अवसर पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण सचिव संजीव चोपड़ा सहित केंद्र व राज्य के कृषि एवं बागबानी विभागों के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे.

उद्यानिकी विभाग की योजनाओं के लिए करें पंजीयन

अनुपपुर : अनूपपुर जिले में उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग मध्य प्रदेश भोपाल के द्वारा संचालित योजनाओं में प्रदाय लक्ष्यानुसार लाभ प्राप्त करने के लिए किसानों के पंजीयन के लिए औनलाइन आवेदन आमंत्रित किए गए हैं.

अनूपपुर जिले में वर्ष 2024-25 में फल पौध रोपण योजना, संकर सब्जी क्षेत्र विस्तार, संकर मसाला क्षेत्र विस्तार, संकर पुष्प क्षेत्र विस्तार, संरक्षित खेती एवं ड्रिप, मिनी/माइक्रो स्प्रिंकलर, पोर्टेबल स्प्रिंकलर उद्या निकी विभाग की विभिन्न योजनाओं का लाभ किसान उठा सकते हैं.

जिले के समस्त किसान अपनेअपने विकासखंड अधिकारी से संपर्क कर पंजीयन के लिए के लिए औनलाइन आवेदन कर सकते हैं. वहीं दूसरी ओर विकासखंड, पुष्पराजगढ़ के किसान बिपिन कुमार वर्मा के मोबाइल नंबर 8643048280, विकासखंड, जैतहरी के किसान माखनलाल प्रजापति के मोबाइल नंबर 9424700738, विकासखंड, कोतमा के किसान दीपक कुमार बुनकर के मोबाइल नंबर 7828835021 एवं विकासखंड, अनूपपुर के किसान सरदार सिंह चौहान के मोबाइल नंबर 7000937796 पर पंजीयन के संबंध में बातचीत कर अधिक जानकारी ले सकते हैं.

पंजीयन के लिए mpfsts.mp.gov.in पोर्टल पर किसान खुद या किसी भी औनलाइन सेवा केंद्र में जा कर पंजीयन करा सकते हैं. पंजीयन के लिए बैंक की पासबुक, मोबाइल नंबर, खसरा बी-1, आधारकार्ड, फोटो एवं अनुसूचित जनजाति/अनुसूचित जाति वर्ग के लिए जाति प्रमाणपत्र होना अनिवार्य है.

Wild Elephants : जंगली हाथियों से सताए गांव वालों को मिली मदद

अनुपपुर : जंगली हाथियों से प्रभावित गांवों के किसानों के मकानों की क्षति होने पर राज्य शासन के प्रावधान अनुसार कलक्टर आशीष वशिष्ठ के दिशानिर्देशानुसार प्रभावित गांव वालों को राजस्व पुस्तक परिपत्र खंड 6 (4) के अनुसार, आर्थिक सहायता राशि स्वीकृत कर प्रदान की गई है. तहसील जैतहरी के प्रभारी तहसीलदार अनुपम पांडे द्वारा बताया गया है कि जंगली हाथी द्वारा ग्राम चोलना के 2 मकान प्रभावित, गांव पगना के 2 मकान, ग्राम ठेही का 1 मकान और गांव गौरेला के 2 मकान प्रभावित हुए. किसानों को कुल 7 मकान क्षति प्रभावित किसानों को 37 हजार, 500 रुपए की राहत राशि उन के बैंक खातों में भेजी गई है.

जंगली हाथी से प्रभावित क्षेत्रों में क्षति के आकलन के संबंध में कलक्टर आशीष वशिष्ठ द्वारा निर्देश दिए गए हैं. इस के परिपालन में राजस्व अधिकारियों द्वारा प्रभावित गांवों में शिविर कर जरूरी जानकारी इकट्ठी की गई. जंगली हाथियों से प्रभावित क्षेत्र में सुरक्षा मानकों का ध्यान रखने और सुरक्षात्मक जरूरी सलाह भी गांव वालों दी गई.

गांव वालों को आश्वस्त किया गया कि किसी भी तरह की जरूरत होने पर जिला प्रशासन द्वारा गांव वालों की हर मुमकिन मदद सुनिश्चित की जाएगी. शिविर के दौरान राजस्व अधिकारियों ने गांव वालों को शासन के निर्देशानुसार हर संभव आर्थिक मदद उपलब्ध कराए जाने की बात कही.

कृषि वैज्ञानिक डा. टीआर शर्मा बने आईएआरआई के निदेशक, मिला अतिरिक्त प्रभार संभाला

नई दिल्ली : आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), नई दिल्ली को यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उपमहानिदेशक (फसल विज्ञान) डा. टीआर शर्मा ने आईएआरआई, नई दिल्ली के निदेशक का अतिरिक्त प्रभार संभाला है. उन्होंने पूर्व निदेशक डा. अशोक के. सिंह से प्रभार ग्रहण किया.
प्रभार ग्रहण समारोह में आईएआरआई नेतृत्व टीम के प्रतिष्ठित सदस्य, जिन में संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डा. चिन्नुसामी विश्वनाथन, डीन और संयुक्त निदेशक (शिक्षा) डा. अनुपमा सिंह और संयुक्त निदेशक (प्रसार) डा. आरएन पडारिया सहित संस्थान के अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे.

डा. टीआर शर्मा कृषि विज्ञान के क्षेत्र में एक प्रमुख हस्ती हैं, जिन्होंने फसल विज्ञान और पादप जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन के नेतृत्व में आईएआरआई को कृषि अनुसंधान में नवाचार और उत्कृष्टता के नए आयाम प्राप्त होने की उम्मीद है.

इस अवसर पर डा. टीआर शर्मा ने आईएआरआई का नेतृत्व करने के अवसर के लिए आभार व्यक्त किया. उन्होंने खाद्य सुरक्षा और सतत कृषि प्रथाओं की बदलती चुनौतियों का सामना करने के लिए कृषि अनुसंधान में सहयोगात्मक प्रयासों के महत्व पर जोर दिया.

आईएआरआई समुदाय पूर्व निदेशक डा. अशोक के. सिंह को उन की सेवा और कार्यकाल के दौरान कृषि अनुसंधान और नवाचार में उन के उत्कृष्ट योगदान के लिए धन्यवाद किया.
डा. टीआर शर्मा की दृष्टि और विशेषज्ञता से संस्थान के अग्रणी अनुसंधान, शिक्षा और कृषि क्षेत्र में विस्तार के मिशन को आगे बढ़ाने की उम्मीद है. आईएआरआई टीम इस नए अध्याय के प्रति उत्साहित है और डा. टीआर शर्मा के मार्गदर्शन में निरंतर प्रगति और उपलब्धियों की आशा करती है.

‘कृषि कथा’ लौंच : सफलता की कहानियों को मिलेगा बढ़ावा

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी ‘कृषि कथा’ लौंच की, जो भारतीय किसानों की आवाज को प्रदर्शित करने के लिए एक डिजिटल प्लेटफार्म के रूप में काम करने वाली एक ब्लौगसाइट है, जो देशभर के किसानों के अनुभवों, अंतर्दृष्टियों और सफलता की कहानियों को बढ़ावा देने के लिए है.
मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारतीय कृषि के विशाल और विविध परिदृश्य में किसानों की आवाज और कहानियां अकसर अनकही रह जाती हैं. हर फसल, हर खेत और हर फसल के पीछे दृढ़ता, संघर्ष, चुनौतियों और विजय की कहानी छिपी होती हैं. ‘कृषि कथा’ का उद्देश्य एक व्यापक और सजीव कथा मंच प्रदान करना है, जहां भारत के कृषि समुदाय की कहानियों को साझा और मनाया जा सके.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ‘कृषि कथा’ का शुभारंभ हमारे किसानों की आवाज को पहचानने और बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. उन्होंने जोर दे कर कहा कि उन की दृढ़ता और नवाचार की कहानियां हमारे कृषि क्षेत्र की नींव हैं और विश्वास व्यक्त किया कि यह मंच दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा. इस पहल के उद्देश्यों से जागरूकता बढ़ाने, ज्ञान के आदानप्रदान को सुविधाजनक बनाने, सहयोग को बढ़ावा देने और किसानों को सशक्त बनाने में मदद मिलेगी.

‘कृषि कथा’ पर उजागर किसानों की आवाजें या कहानियां हमें बताती हैं कि कैसे किसानों ने नवीन कृषि विधियों का उपयोग किया है और अपनी कृषि प्रथाओं में सहायता के लिए सरकारी योजनाओं से लाभ उठाया है, साथ ही साथ सामुदायिकचालित कृषि की परिवर्तनकारी शक्ति की कहानियां भी साझा की हैं. इस का उद्देश्य भारतीय किसानों की कहानियों को प्रेरित करना और प्रदर्शित करना, खेती के पेशे में गर्व की भावना पैदा करना और किसानों में दृढ़ता को बढ़ावा देना है. संक्षेप में यह भारत की खेती और किसानों का जश्न मनाने के लिए एक मंच प्रदान करता है.

कृषि अवसंरचना कोष योजना को साल 2020 में शुरू किया गया था, जिस का उद्देश्य फसल कटाई के बाद प्रबंधन अवसंरचना के विकास के लिए नुकसान को कम करना, किसानों को बेहतर मूल्य का एहसास दिलाना, कृषि में नवाचार और कृषि अवसंरचना के निर्माण के लिए निवेश आकर्षित करना है.

इस योजना के तहत बैंकों और वित्तीय संस्थानों के माध्यम से साल 2025-26 तक 1 लाख करोड़ की कुल राशि उपलब्ध कराई गई है. इस योजना में बैंकों द्वारा दिए गए 2 करोड़ तक के लोन के लिए 3 फीसदी ब्याज अनुदान और बैंकों द्वारा भुगतान की गई क्रेडिट गारंटी शुल्क की अदायगी का प्रावधान है.

किसानों के क्रेडिट दावों के निबटान के लिए पोर्टल शुरू

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ) के अंतर्गत बैंकों द्वारा प्रस्तुत ब्याज अनुदान दावों के निबटान की प्रक्रिया को स्वचालित और तेज करने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग और नाबार्ड द्वारा संयुक्त रूप से विकसित वैब पोर्टल का शुभारंभ किया. इस अवसर पर कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी, नाबार्ड के अध्यक्ष, किसान कल्याण विभाग और बैंकों के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे.

इस अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मोदी सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए विभिन्न उपाय कर रही है. उन्होंने कहा कि कृषि अवसंरचना कोष को पीएम मोदी द्वारा 1 लाख करोड़ रुपए की फंडिंग के साथ लौंच किया गया था, ताकि फसलों के भंडारण की क्षमता बढ़ाई जा सके और किसानों के नुकसान को कम किया जा सके.

उन्होंने आगे कहा कि नए लौंच किए गए क्रेडिट दावों के स्वचालन से दावों का निबटान एक दिन के भीतर सुनिश्चित हो जाएगा, जो अन्यथा मैन्युअल निबटान के लिए महीनों लगते थे. इस कदम से पारदर्शिता भी सुनिश्चित होगी और भ्रष्ट तरीकों पर रोक लगेगी.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि किसानों के अनुभव साझा करने वाले नए पोर्टल से किसान समुदाय एकदूसरे के अनुभवों से लाभान्वित हो सकेगा. उन्होंने कहा कि कई किसान स्वयं प्रयोग कर रहे हैं.

केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि आज तक कृषि अवसंरचना कोष के तहत 67,871 परियोजनाओं के लिए 43,000 करोड़ रुपए पहले ही स्वीकृत किए जा चुके हैं,₹72,000 करोड़ रुपए के निवेश को जुटाया गया है. इस के अतिरिक्त बैंक ब्याज सबवेंशन दावों के त्वरित निबटान की उम्मीद कर सकते हैं.

शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि स्वचालित प्रणाली पोर्टल के माध्यम से सटीक पात्र ब्याज अनुदान की गणना में मदद करेगी, जिस से मैन्युअल प्रसंस्करण में संभावित मानव त्रुटियों से बचा जा सकेगा और दावों का तेजी से निबटान भी होगा. इस पोर्टल का उपयोग बैंक, कृषि और किसान कल्याण विभाग का केंद्रीय परियोजना प्रबंधन इकाई (CPMU) और नाबार्ड करेंगे. ब्याज अनुदान दावा और क्रेडिट गारंटी शुल्क दावा प्रसंस्करण का स्वचालन सरकार को सटीक ब्याज अनुदान जारी करने, बदलाव का समय कम करने और बदले में किसानों और कृषि उद्यमियों को वित्तीय रूप से मदद करने और उन्हें देश में कृषि के विकास के लिए अधिक परियोजनाएं लेने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद करेगा.

छोटे और सीमांत किसानों के लिए नया कौम्पैक्ट यूटिलिटी ट्रैक्टर

नई दिल्ली: एक नया विकसित कौम्पैक्ट, किफायती और आसानी से चलने वाला ट्रैक्टर छोटे और सीमांत किसानों को लागत कम रखते हुए कृषि उत्पादकता बढ़ाने में मदद कर सकता है. किसानों को आपूर्ति के लिए ट्रैक्टरों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए एक एमएसएमई ने विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई है.

भारत में 80 फीसदी से ज्यादा सीमांत और छोटे किसान हैं. उन में से एक बड़ी आबादी अभी भी बैलों से खेती करने पर निर्भर है, जिस में परिचालन लागत, रखरखाव और खराब रिटर्न एक चुनौती है. हालांकि पावर टिलर बैलों से चलने वाले हल की जगह ले रहे हैं, लेकिन उन्हें चलाना बोझिल है. दूसरी ओर ट्रैक्टर छोटे किसानों के लिए काफी महंगे हैं.

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए  सीएसआईआर-केंद्रीय यांत्रिक इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएमईआरआई) ने डीएसटी के एसईईडी प्रभाग के सहयोग से सीमांत और छोटे किसानों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कम हौर्सपावर रेंज का एक कौम्पैक्ट, किफायती और आसानी से चलने वाला ट्रैक्टर विकसित किया है.

उन्होंने कई मौजूदा एसएचजी के बीच इस तकनीक को बढ़ावा दिया है और इस तकनीक के लिए विशेष रूप से नए एसएचजी बनाने के प्रयास किए गए हैं. सीएसआईआर-सीएमईआरआई बड़े पैमाने पर निर्माण के लिए स्थानीय कंपनियों को इस का लाइसैंस देने पर भी विचार कर रहा है, ताकि इस का लाभ स्थानीय किसानों तक पहुंच सके.

ट्रैक्टर को 9 एचपी डीजल इंजन के साथ विकसित किया गया है, जिस में 8 फौरवर्ड और 2 रिवर्स स्पीड, 540 आरपीएम पर 6 स्प्लिन के साथ पीटीओ है. ट्रैक्टर का कुल वजन लगभग 450 किलोग्राम है, जिस में आगे और पीछे के पहिए का आकार क्रमशः 4.5-10 और 6-16 है. व्हीलबेस, ग्राउंड क्लीयरेंस और टर्निंग रेडियस क्रमशः 1200 मिमी., 255 मिमी. और 1.75 मीटर है. इस से खेती में तेजी आएगी, बैलगाड़ी से खेती करने में लगने वाले कई दिनों की तुलना में खेती कुछ ही घंटों में हो जाएगी और किसानों की पूंजी और रखरखाव लागत भी कम हो जाएगी. इसलिए, छोटे और सीमांत किसानों के लिए बैल से चलने वाले हल की जगह किफायती कौम्पैक्ट ट्रैक्टर ले सकता है.

इस तकनीक का प्रदर्शन आसपास के गांवों और विभिन्न निर्माताओं के सामने किया गया. रांची स्थित एक एमएसएमई ने ट्रैक्टर के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए एक संयंत्र स्थापित कर के इस के निर्माण में रुचि दिखाई है. वे विभिन्न राज्य सरकार की निविदाओं के माध्यम से किसानों को सब्सिडी दरों पर विकसित ट्रैक्टर की आपूर्ति करने की योजना बना रहे हैं.

समन्वित कृषि प्रणाली से निरंतर मुनाफा

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा लघु एवं सीमांत कृषक परिवारों में समन्वित कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए एकदिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा लक्ष्मीपुरा चित्तौड़गढ़ में किया आयोजित किया गया. प्रशिक्षण के आरंभ में निदेशक प्रसार शिक्षा एवं प्रोजैक्ट इंचार्ज डा. आरए कौशिक ने कृषक महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि समन्वित कृषि प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है, जिस में कृषि के विभिन्न उद्यमों जैसे फसल उत्पादन, पशुपालन, फल एवं सब्जी उत्पादन, मछली उत्पादन, मुरगीपालन, दुग्ध एवं खाद्य प्रसंस्करण, वानिकी इत्यादि का इस प्रकार समायोजन किया जाता है कि ये उद्यम एकदूसरे के पूरक बन कर किसानों को निरंतर आमदनी प्रदान करते हैं.

समन्वित कृषि प्रणाली में संसाधनों की क्षमता का न केवल सदुपयोग होता है, अपितु उत्पादकता एवं लाभप्रदता में भी अतिशीघ्र वृद्धि होती है. समन्वित कृषि प्रणाली को अपनाने से कृषि लागत में कमी आती हैं एवं रोजगार और आमदनी में वृद्धि होती है.

प्रशिक्षण में डा. लतिका व्यास ने कौशल विकास पर चर्चा की और बताया कि भारत में युवाओं की आबादी दुनियाभर में सब से ज्यादा है और इन में से आधे युवा 25 वर्ष की आयु से कम के हैं. भारत में जनसांख्यिकीय लाभ के वर्णन में देखा जाए तो प्रत्येक वर्ष 8 लाख लोग नए रोजगार की तलाश करते हैं, जिस में सिर्फ 5.5 लाख रोजगारों का सृजन हो पाता है या उस से भी कम, इसलिए युवाओं में कौशल विकास करना बहुत जरूरी है, ताकि उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा जा सके और समन्वित कृषि प्रणाली से परिवार के सभी लोगों को वर्षपर्यंत रोजगार मिलता रहता है व इस प्रणाली द्वारा कृषि अवशेषों का उचित प्रंबधन आसान है.

प्रशिक्षण दौरान डा. कपिल देव आमेट, सहआचार्य, उद्यानिकी विभाग ने कहा कि कम जमीन में आमदनी को बढ़ाने के लिए फसलों के साथसाथ सब्जियों की खेती करना चाहिए. साथ ही यह भी बताया कि फसलों में नर्सरी का विशेष महत्व होता हैं, क्योंकि सब्जी की फसल से होने वाला उत्पादन नर्सरी में पौधों की गुणवता पर निर्भर करता है. अधिकांश सब्जियों की खेती नर्सरी तैयार कर के की जाती है जैसे टमाटर, बैगन, मिर्ची, शिमला मिर्च, फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी, ब्रोकली, बेसील, सेलेरी, पार्सले, लेट्यूस, पाकचोई, प्याज इत्यादि. साथ ही, प्रौ ट्रे में कद्दूवर्गीय सब्जियां जैसे खीरा, लौकी, तुरई, करेला, कद्दू, तरबूज, खरबूजा की भी नर्सरी तैयारी की तकनीकी जानकारी का विस्तृत वर्णन किया.

डा. आरएल सोलंकी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, चित्तौड़गढ़ ने किसान महिलाओं को वर्मी कंपोस्ट कैसे बनाया जाता है व इस के फायदे क्या हैं और वर्मी कंपोस्ट को बाजार में बेच कर भी अतिरिक्त आमदनी अर्जित की जा सकती है के बारे में बताया.

प्रोग्राम अफसर, आदर्श शर्मा ने बताया कि यह प्रशिक्षण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित परियोजना के अंतर्गत आयोजित किया गया. इस प्रशिक्षण में कुल 35 प्रशिक्षणर्थियो ने भाग लिया.

नीरा पाउडर को मिला जरमन का पेटेंट (Patent)

सबौर : नीरा ताड़ के पेड़ का ताजा रस है, जिस का इस्तेमाल बिहार में बड़े पैमाने पर शराब बनाने के लिए किया जाता है. हालांकि, बिहार में शराब पर प्रतिबंध है, जो किसानों के लिए, खासकर टोडी निकालने वालों के लिए एक बड़ी समस्या पैदा करता है.

टोडी निकालने वाले बिहार का एक समुदाय है, जिस की सामाजिकआर्थिक स्थिति टोडी संग्रह और विपणन पर निर्भर करती है. टोडी एक नशीला पेय है, जिसे बिहार में बेचा नहीं जा सकता, क्योंकि यह शुष्क राज्य होने के कारण अवैध है.

इस संबंध में बिहार सरकार ने हाल ही में नीरा आधारित उद्योगों को शुरू किया है, ताकि इस के स्वस्थ उपभोग को बढ़ावा दिया जा सके और टोडी निकालने वालों के समुदाय को रोजगार दिया जा सके. टोडी के अलावा, नीरा को स्क्वैश, आरटीएस, गुड़ आदि जैसे विभिन्न उत्पादों में प्रोसैस किया जा सकता है. इस के अतिरिक्त, ताजा नीरा विटामिन, खनिज और अन्य स्वास्थ्यवर्धक यौगिकों का समृद्ध स्रोत है. इस का ताजा सेवन कई बीमारियों को दूर करने में मदद करता है. लेकिन ताजा नीरा का संग्रह मुश्किल है, क्योंकि यह संग्रह के तुरंत बाद किण्वन के लिए प्रवृत्त होता है और तापमान और समय अवधि बढ़ने के साथ यह बढ़ता जाता है. किण्वन को रोकने के लिए कई परिरक्षण विधियों का अभ्यास किया गया है, लेकिन अब तक कोई सही समाधान नहीं मिला है. इसलिए, किण्वन प्रक्रिया को रोके हुए ताजा नीरा को संरक्षित करने के लिए एक परिरक्षण पद्धति की आवश्यकता है.

इस पहलू में, डा. मोहम्मद वसीम सिद्दीकी, वैज्ञानिक, खाद्य विज्ञान और कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी विभाग, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने नीरा को पाउडर के रूप में संरक्षित करने की एक प्रक्रिया विकसित की है. ताड़ के नीरा से पाउडर बनाने की प्रक्रिया को जरमनी से पेटेंट प्राप्त हुआ है. यह तकनीक नीरा उत्पादकों के लिए नए उद्यमशीलता के रास्ते खोलेगी और लंबे समय तक नीरा को सुरक्षित रखने में सहायक होगी. यह पेटेंटेड तकनीक पूरे साल नीरा के स्वाद और आनंद को लेने में मदद करेगी.

ताजा नीरा का परिरक्षण अत्यंत कठिन होता है, इसलिए यह तकनीक स्प्रे ड्रायर का उपयोग कर के ताजा नीरा को पाउडर में बदल देती है. इस विधि में महीन बूंदों को सूखे पाउडर में बदलना शामिल है. चरणों में वाहक सामग्री की विभिन्न सांद्रता के साथ नीरा का समरूपीकरण शामिल है. बाद में एक नोजल के माध्यम से होमोजेनाइज्ड नीरा घोल का परमाणुकरण होता है, इस के बाद गरम हवा के प्रवाह के संपर्क में तेजी से विलायक वाष्पीकरण होता है. सूखे कणों को फिर एक संग्रह कंटेनर के अंदर एकत्र किया जाता है.

पाउडर को एक साल तक एयरटाइट कंटेनर में स्टोर किया जा सकता है. पानी में घोलने के बाद इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. घोलने के बाद इस के संवेदी गुण लगभग ताजा नीरा के समान ही होते हैं. इस के अलावा सुविधा के लिए इसे किसानों की आवश्यकतानुसार संशोधित किया जा सकता है.

एचएयू में 30 जून को होगी प्रवेश परीक्षा (Entrance Exam)

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बीएससी औनर्स एग्रीकल्चर 4 वर्षीय कोर्स, बीएससी औनर्स एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट, बीटैक बायोटैक्नोलौजी, मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय में बायोकैमिस्ट्री, कैमिस्ट्री, इनवायरमेंटल साइंस, फूड साइंस एंड टैक्नोलौजी, मैथेमेटिक्स, माइक्रोबायोलौजी, फिजिक्स, प्लांट फिजियोलौजी, सोशियोलौजी, स्टेटिसटिक्स व जूलौजी कोर्स, कालेज औफ बायो टैक्नोलौजी में एग्रीकल्चरल बायोटैक्नोलौजी, बायोइंफोरमेटिक्स व मोलेक्यूलर बायोलौजी एंड बायो टैक्नोलौजी में एमएससी कोर्स के लिए 30 जून, 2024 को आयोजित होने वाली प्रवेश परीक्षा की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि उपरोक्त पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए 8491 उम्मीदवारों ने आवेदन किए हैं. उन्होंने बताया कि प्रवेश परीक्षा के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय सहित हिसार शहर में 18 परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं, ताकि परीक्षार्थियों को किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े.

उन्होंने आगे बताया कि परीक्षा संबंधी सभी तैयारियों को अंतिम रूप देते हुए परीक्षा केंद्रों पर परीक्षार्थियों के लिए बैठने से संबंधित अन्य समुचित व्यवस्था भी कर ली गई है. सभी परीक्षार्थियों को परीक्षा भवन में प्रवेशपत्र देख कर ही प्रवेश करने की अनुमति होगी.

कुलसचिव डा. बलवान सिंह मंडल के अनुसार, प्रवेश परीक्षा में नकल करने और दूसरे के स्थान पर परीक्षा देने वालों पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी. इस के लिए विशेष निरीक्षण दलों का गठन किया गया है. प्रत्येक उम्मीदवार की फोटोग्राफी भी की जाएगी.

उन्होंने यह भी बताया कि उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्र में मोबाइल, कैलकुलेटर व इलैक्ट्रोनिक डायरी जैसे इलैक्ट्रोनिक उपकरण ले कर जाने की अनुमति नहीं होगी. इन उपकरणों को उन्हें परीक्षा केंद्र के बाहर छोडऩा होगा, जिन की सुरक्षा की जिम्मेदारी उम्मीदवारों की ही होगी.
विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार ने बताया कि उम्मीदवारों को अपना एडमिट कार्ड डाउनलोड कर के सत्यापित फोटो के साथ लाना होगा. बिना एडमिट कार्ड के वे परीक्षा केंद्र में प्रवेश नहीं पा सकेंगे.

उन्होंने आगे बताया कि उपरोक्त प्रवेश परीक्षा का समय बीएससी 4 वर्षीय पाठ्यक्रम, बीएससी औनर्स एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट व बीटैक बायोटैक्नोलौजी के लिए प्रात: 10.00 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक, जबकि शेष पाठ्यक्रमों के लिए प्रात: 10:00 से दोपहर 12.30 बजे तक होगा. परंतु उम्मीदवारों को परीक्षा आरंभ होने के एक घंटा पहले यानी 9.00 बजे तक अपने परीक्षा केंद्र पर पहुंचना होगा.

उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या के लिए उम्मीदवार विश्वविद्यालय के फ्लैचर भवन स्थित सहायक कुलसचिव (एकेडमिक) के कार्यालय में प्रात: 7.00 बजे से दोपहर 2.00 बजे तक आ कर मिल सकते हैं, अन्यथा कार्यालय के फोन नंबर 01662-255254 पर संपर्क कर सकते हैं. उम्मीदवार प्रवेश परीक्षा संबंधी सभी महत्वपूर्ण जानकारियां विश्वविद्यालय की वैबसाइट  hau.ac.in  और  admissions.hau.ac.in पर उपलब्ध प्रोस्टपेक्टस में देख सकते हैं.